रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे

रीता १२ वी क्लास में पड़ती है | उसी की एक रिश्तेदार  मिताली जिसके पिता नहीं थे, के घर में  बड़ी चोरी हो गयी | मिताली ने रीता से आर्थिक व् भावनात्मक मदद माँगी| रीता तैयार हो गयी | वो उसके साथ यहाँ-वहाँ  उसके रिश्तेदारों के घर गयी | समय  होने या न होने पर भी उसकी फोन कॉल्स उठा कर उसका दुखड़ा सुनती | उसे सांत्वना देती | उसके लिए नोट्स लिखती| रीता धीरे–धीरे अपनी पढ़ाई में पिछड़ने लगी | नतीजा रीता का १२ वी का रिजल्ट खराब हो गया | दुखी रीता ने जब मदद माँगी तो मिताली ने समयाभाव का बहाना कर दिया |                  रितेश का दोस्त भयंकर संकटों से घिरा था | रितेश हर समय उसकी मदद को तैयार रहता | वो हर समय उसके आँसू पोछने के लिए खड़ा रहता | उसके पूरे समय पर उसके दोस्त का कब्ज़ा हो गया | अपनी दोस्त की परेशानियाँ सुलझाते –सुलझाते रितेश इतना इमोशनली ड्रेन्ड  हो चुका होता की अपने परिवार की छोटी –मोटी समस्याओ में भावनात्मक सहारा न दे पता | लिहाज़ा उसकी पत्नी के साथ झगडे होने लगे | जब परिवार बिखरने लगा तो उसने उस भावनात्मक टूटन के दौर में अपने दोस्त से मदद मांगी | पर वह दाल में नमक से ज्यादा साथ कभी नहीं दे पाया|               मधु की पड़ोसन ३–३ घंटे उसे अपने पति की बेवफाई के किस्से सुनाती | मधु अपना काम रोक कर , कभी बच्चों का होम वर्क कराते से उठ कर उसकी बात सुनती | उसके बुलाते ही मधु चल देती लिहाजा कभी सब्जी जलती, कभी दूध उफनता| ऊपर से कभी फोन उठाने में देरी हो जाती या अपना कोई काम बता कर बाद में आने को कहती तो उसकी सहेली तरह –तरह के इलज़ाम लगाती “ भाई मेरी क्यों सुनोगी मैं तो पहले से ही दुखी हूँ, सह लूंगी | एक तरह से वो उसे अपना स्ट्रेस दूर करने के लिए पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल कर रही थी |                            ये सिर्फ तीन उदाहरण हैं पर अगर आप भी  जरूरत से ज्यादा  ईमानदार , समानुभूति पूर्ण , विश्वास पात्र और भरोसेमंद हैं और साथ ही किसी की समस्या से  पूरी वफादारी के साथ जुड़ कर सुनना पसंद करते हैं|  तो ऐसा कोई न कोई किस्सा आप का भी होगा |  मेरा भी कुछ ऐसा ही उदहारण था | ये तब समझ में आया जब एक कडवा अनुभव हुआ और बहुत कुछ हाथ से निकल गया | वो हाथ से निकली हुई चीज थी ….. मेरा समय जिसका मैं सदुप्रयोग कर सकती थी | मेरे पति व् बच्चों की खुशियाँ जो वो मेरे साथ बाँटना चाहते थे| मेरी सेल्फ रेस्पेक्ट जो बुरी तरह से कुचली जा चुकी थी | और तब मैंने बहुत पहले पढ़े हुए टोनी गेकिंस के इस वाक्य का अर्थ महसूस किया …  आप लोगों को  अपने द्वारा स्वीकृति देकर , रोक कर व् समर्थन करके सिखाते हैं की वो आप के साथ कैसा व्यवहार करे |  मुझे लगता था की दूसरों के प्रति जरूरत से बहुत ज्यादा नरम , विश्वासपात्र व् दयालु होकर मैं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ | मुझे लगता था की दुनिया में सब लोग उतने ही अच्छे हैं जितना मैं सोचती हूँ | मुझे लगता था यही मेरा बेसिक स्वाभाव हैं | पर अफ़सोस परिणाम दुखद आये | मैंने असीम दर्द का अनुभव किया | मैंने महसूस किया की मेरी अपनी सेहत ,खुशियाँ व् जरूरतें पिछड़ रहीं हैं | दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में अतिशय व्यस्त रहने के कारण मेरे पास अपने लिए समय ही नहीं रहा | मैंने महसूस किया की हर रिश्ते में परफेक्ट रहने का असंभव प्रयास करने के कारण मेरे पास हमेशा अपने लिए समय कम रहा | मैंने महसूस किया की मेरे परफेक्ट स्वाभाव को जान कर लोगों ने मुझे १०० % समय  की उम्मीद की| वो मुझसे कभी ९९ % आर संतुष्ट नहीं हुए | जबकि वो खुद उन्ही परिस्तिथियों में मुझे २ % तक नहीं दे पाए| यह सबसे पीड़ा दायक था की हर रिश्ते को बचाने के लिए मैंने जान से ज्यादा प्रयास किया | पर जब मेरे प्रयासों में कमी हुई और उन्हें लगा की हमारा रिश्ता टूट रहा है तो उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया | उन्हें हमारे रिश्ते की कदर नहीं थी |   रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे ?                                                       अगर आप भी इस पीड़ा दायक अनुभव से गुज़रे हैं तो आप के सामने भी यह प्रश्न खड़ा हुआ होगा की  दूसरों की मदद करनी चाहिए पर किसकी और कितनी ? यही वो समय है जब आप महसूस करते हैं की आप को अपनी उर्जा हर समय ,हर किसी के लिए नहीं बल्कि सही जगह पर खर्च करनी चाहिए | आप को भी अपनी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए | सीमाएं निर्धारित करने के फायदें  जिस जीवन शैली को आप जी रहे होते हैं उसे अचानक से  बदलना  बहुत मुश्किल होता है | पर जब आप मन कड़ा  कर लेते हैं तो थोड़ी परेशानियों  के बाद आप पाते हैं की …………        अब आप की उर्जा उन पर खर्च नहीं हो रही है जो सिर्फ आपका फायदा उठाना चाहते हैं | वो  सुरक्षित हैं आप के लिए , जिससे आप ज्यादा वाइब्रेंट , खुश , सेहतमंद , उर्जावान महसूस कर सकते हैं | ·      आप के पास समय है  आप के परिवार के लिए , और उन सब के लिए जो आप को       वास्तव में प्यार करते हैं |  जो आपको खुश देखना चाहते हैं आपके प्रति केयरिंग , व्       मदद गार हैं | ·         आप पाते हैं की आप जैसे –जैसे सीमाएं निर्धारित करना सीखने लगते हैं आप  अपना       काम ज्यादा कौशल से कर पाते हैं | ·         आप दूसरों को आप से ज्यादा इज्ज़त से पेश आने को विवश करते हैं | ·         आप ना कहना सीखते हैं | ·         आप … Read more

सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips

                              मनुष्य एक भावुक प्राणी है| ये भावनाएं ही उसे जानवर से इंसान बनती हैं , पर कई बार इन भावनाओं की वजह से ही  हम शोषण का शिकार हो जाते हैं | ये शोषण कभी अपने द्वारा होता है , कभी अपनों द्वारा | जिसकी वजह से हम जिन्दगी में हारते जाते हैं चाहे वो रिश्ते हों , सम्मान हो या सफलता| जरूरी है इन भावनाओं का संतुलन सीखना | जरा इन उदाहरणों पर गौर करें …                                                                             एक बच्चा जो पढने में बहुत तेज था| उसे खुद व्  उसके माता-पिता को आशा थी कि वो 10 th बोर्ड में 95% मार्क्स ले कर आएगा |  उसने मेहनत भी खूब करी | पेपर भी अच्छे हुए | रिजल्ट आने  से कुछ दिन पहले उसने अपने नंबर कैलकुलेट किये  , उसके  मुताबिक़ उसके ९२ % आने थे | वो इतना निराश हुआ की उसने आत्महत्या कर ली | कुछ दिन बार रिजल्ट निकला , उस बच्चे के 96 % मार्क्स थे |  वो बच्चा जिसका भविष्य बहुत अच्छा था , संभावित कल्पना को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मृत्यु का वरण कर लिया |                         राहुल ने  बिजनिस के दो -तीन  प्रयास किये , हर बार असफल रहा | लोगों के ताने उलाहने सुनने के बाद अब उसकी कमरे से निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती | एक कमरे में बैठे रहना और दीवारों को घूरना ही उसका जीवन हैं | एक और प्रयास के लिए उसके पास धन है पर उसका मन साथ नहीं दे रहा है |                             सविता जी एक टेलेंटेड लेखक हैं | मैंने उनके कई लेख पढ़े हैं , पर वो सार्वजानिक लेखन में नहीं आना चाहती क्योंकि उनके पति व् परिवार को उनका लिखना पसंद नहीं है , अक्सर उन्हें कलम घिस्सू की उपाधि दे कर हँसी  उड़ाई जाती है | सविता जी को पता है कि उनमें प्रतिभा है ,लेकिन अपने परिवार का तिरिस्कार झेल कर लिखने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाती | यही उनकी निराशा व्  कुंठा की वजह है | वो उदास रहती है ठीक से घर का काम नहीं कर पाती , न घर को सजाती संवारती हैं न खुद को |                                                  और एक उदाहरण जो शायद  आप ने देखा हो , अभी कुछ दिन पहले की बात है मैंने फेस बुक पर एक स्टेटस पढ़ा , ” मेरे मित्र जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ , उनकी हर पोस्ट लाइक करती हूँ , कमेंट करती हूँ , वो मेरी पोस्ट पढने तक नहीं आते इसलिए मैं फेसबुक छोड़ रही हूँ / कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हूँ | ऐसे में किन्हीं दो चार मित्रों की तुलना में उन्हें वो मित्र नज़र ही नहीं आ रहे हैं जो उनकी पोस्ट पर लाइक कर रहे हैं |                                  ये सारे उदाहरण भावनाओं द्वारा नियंत्रित होने के हैं | इन सब में प्रतिभा है , क्षमता है , दूसरे मौके हैं पर इन सब ने भावनाओं के आधीन हो कर छोड़ देना ज्यादा उचित समझा … कहीं मौके को कहीं जीवन को और कहीं जीवंतता को | मैं स्वयं भी बहुत Emotionally weak रहीं हूँ | मैंने इस बात को समझते हुए खुद को बदला है | मेरा ये लेख लिखने  का उद्देश्य भी यही है कि आप भी भावात्मक संतुलन नहीं बना पाते हैं तो आप भी जीवन में बहुत कुछ खो देंगे | इसलिए मैं आपके साथ ये emotional management tips share कर रही हूँ | जो आपके जीवन में सफलता और जीवंतता लाएगी |  भावनात्मक संतुलन के नियम  -Emotional management tips (in hindi)                                                                      जब भी मैं Emotional management कीबात करती हूँ तो मेरे सामने  रथ पर बैठे अर्जुन और उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण आ जाते हैं | अर्जुन एक महान योद्धा थे , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे , फिर भी युद्ध से ठीक पहले वो भावनाओं के शिकार होकर युद्ध छोड़ने की बात करने लगे | वो अपनी भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रख पा रहे थे , जिस कारण उनसे धनुष भी नहीं उठाया जा रहा था | क्या उस समय वो द्रोणाचार्य द्वारा दिया हुआ ज्ञान भूल गए थे ? क्या बरसों का उनका अभ्यास एक क्षण में खत्म हो गया था ? नहीं … बस उनके मन ने साथ देना बंद कर दिया था | दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़े अर्जुन के पास skill तो था पर will नहीं थी                                                                              स्किल यानी हमारा talent, हमारी प्रतिभा , हमारी क्षमता , और विल हमारी इच्छा शक्ति | सफलता के लिए स्किल जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है will. हम कई बार खुद कहते हैं कि फलाने  व्यक्ति में तो इतना talent नहीं था फिर वो इतना successful कैसे हो गया | जाहिर सी बात है कि उसकी सफल होने की इच्छा उस टैलेंटेड व्यक्ति से ज्यादा थी | शुरुआत में सबकी इच्छा ज्यादा होती है परन्तु असफलता ,हार व् आलोचना जो किसी भी सफलता का हिस्सा हैं हर कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता, जिसके कारण या तो वो प्रयास ही छोड़ देता है या  आधे … Read more

5 मिनट रूल – दूर करें काम को टालने की आदत

               राहुल के हाथ में निधि की शादी का कार्ड था और उसकी आँखों में आँसू | राहुल और निधि एक ही कॉलेज में पढ़े थे | कब उसे निधि भाने लगी, कि वो उसे जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा उसे पता ही नहीं चला| निधि एक अंतर्मुखी स्वयं में सिमिटी रहने वाली लड़की थी| फिर भी उसकी बातों से राहुल को अंदाजा था कि निधि भी उसे पसंद करती हैं | पर वो उससे कह नहीं सका | वो हर रोज सोंचता कि वो निधि से मिलेगा तब कह देगा , पर हर रोज आने वाले कल पर बात टाल देता और नतीजा निधि की शादी किसी और से हो रही है | अब जरा इन उदाहरणों पर भी गौर करें … कल से पक्का अपना स्टडी टाइम टेबल फॉलो करूँगा | आज तो नहीं हो पाया पर कल से जरूर वाक पर जाना है , आखिर सेहत का ध्यान  तो रखने ही चाहिए| रोज देर से उठने से सुबह की भागमभाग बहुत परेशान  करती है , तय कर लिया है मैंने कल से जरूर 5 बजे उठूँगा ताकि हर काम समय पर हो | आज पार्टी है , जानता हूँ डॉक्टर ने मना किया है पर आज और समोसा खा लेता हूँ , एक दिन में कुछ हर्ज थोड़ी न हो जाएगा , कल से तय कर लिया है डॉक्टर के डाएट  प्लान पर ही चलूँगा|  कल से थोडा सा वक्त परिवार और बच्चो के लिए भी निकालूँगा , हर समय बिजनिस ही ठीक नहीं |                               पढाई हो कोई जरूरी काम हो , किसी से रिश्ते बिगड़े रिश्ते बनाने हो , कोई बुरी आदत छोडनी हो या प्रेम-मुहब्बत का चक्कर हो , अगर आप की काम को टालने( procrastination) की आदत है तो प्रतिभा क्षमता होते हुए भी अंत में आप के हाथ में कुछ नहीं लगता |     मेरी सलाह है जो आज कर सकते हो उसे कल पर मत छोड़ो , टालने की आदत समय का चोर है -चार्ल्स डिकेंस     टाल-मटोल की आदत से कैसे बचें  –How to overcome Procrastination                                                                   भले ही हम  बचपन से “TOMORROW NEVER COMES” पढ़ते आये हों | पर आँकड़े कहते हैं कि कामों को टालने की आदत 95% लोंगों  होती है | ये आदत उनमें नाम मात्र  या ज्यादा हो सकती है, पर होती जरूर है| अब अंदाजा लागाइये की सिर्फ 5 % लोग ही successful क्यों होते हैं ?जाहिर है उनमें काम को टालने की आदत नहीं होती |  Laziness और Procrastination में अंतर है                                                          अक्सर लोग आलसी या टाल-मटोल करने वालों को तराजू के एक ही पलड़े में रखते हैं | ये सही नहीं है | आलसी व्यक्ति में काम करने की इच्छा ही नहीं होती जबकि टाल-मटोल करने वाले की उस काम को करने की बहुत इच्छा होती है, फिर भी वो नहीं करता| वो जानता है की उसके लिए ये काम टॉप प्रायोरिटी का है पर वो उसे न करके कम प्रायोरिटी वाले कामों में उलझा रहता है |  आखिर क्यों करते हैं हम काम में टाल-मटोल                                           जरूरी काम है ये जानते हुए भी उस के प्रति टाल -मटोल करने के पीछे कई कारण होते हैं |  1) असफलता का भय –लोगों को लगता है कि अगर सफल नहीं हुए तो , खुद को उस बुरी वाली फीलिंग से बचाने के लिए लोग काम को टालते हैं |  2)अपनी कम्फर्ट ज़ोन छोड़ने में असुविधा – एक ढर्रे  में जीते हुए उससे अलग हट कर कुछ भी करने से हम बचना चाहते हैं|  3) सफलता का भय – आश्चर्य है लेकिन असफलता की तरह सफलता का भी भय होता है , लोग जानते हैं कि वो काम करने के बाद वो सफल हो जायेंगे,लेकिन उन्हें डर लगता है की क्या वो सफलता संभाल पायेंगे | सफलता बहुत डिमांडिंग होती है, और आपका पूरा रूटीन बदल देती है| 4) स्ट्रेस से बचना – किसी भी ऐसी काम को जिसे हम टाल रहे हैं उसे करने में स्ट्रेस होता है, हम उस स्ट्रेस से बचना चाहते हैं| मान लीजिये आपके किसी रिश्तेदार से संबंध खराब चल रहे हैं, आप उससे फोन पर बात करना चाहते हैं परन्तु आप ये सोंच कर नहीं करते क्योंकि आपको लगता है कि वो न जाने क्या बुरा बोल दे,  स्ट्रेस और न बढ़ जाए, बात और बिगड़ जाए |  5) प्लानिंग सही नहीं – पहले भी हमने Atootbandhann.com पर ” अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें एक लेख प्रकाशित किया था|  दरसल काम की टाल-मटोल का कारण सही प्लानिंग न होना होता है | जैसे राकेश जी यही सोंचते रहे की बिजनिस और परिवार में संतुलन बना कर रखेंगे पर २० साल तक कर नहीं पाए , बच्चे बड़े हो गए , अब उन्हें पिता के साथ उतना वक्त बिताने की जरूरत नहीं रही |  अगर वो प्लानिंग सही तरीके से करते तो  वो बच्चों के साथ वक्त बिता पाते| 6) बोरिंग काम –आप समझते हैं कि वो काम जरूरी है पर आपको बोरिंग लगता है | कुछ बातें जो काम को टालने के बारे में समझिये                        अगर आपको भी टाल–मटोल करने की आदत है और आप उसे छोड़ना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा ..वो कहते हैं ना एक अच्छी शुरुआत ही अच्छे अंजाम तक पहुंचती है | 1 ) स्वीकार करिए– स्वीकार करिए कि आपको काम को टालने की आदत है | जब आप स्वीकार करेंगे तभी आप अगला स्टेप ले आयेंगे जो उसे ठीक करने की दिशा में होगा | 2)रियलिस्टिक बनिए – अगर आप को सुबह देर से उठने की आदत है और आप पढाई या वाक् पर जाने का सुबह … Read more

कैसे आत्मसुझाव की शक्ति से बदलें जीवन

     How to use power of autosuggestion in hindi              क्या आप को नहीं लगता की काश आपके पास कोइ ऐसी जादू की छड़ी होती जिससे आप अपने जीवन में सफलता खुशियाँ , अच्छे रिश्ते या जो कुछ चाहिए सब मिल जाये | जरूर आपका उत्तर हां ही होगा | लेकिन अगर मैं कहूँ की ये जादू की छड़ी आपके पास है जो रातों रात आपकी किस्मत बदल दे , बस आप उसका इस्तेमाल करना नहीं जानते हैं |तो मित्रों आज मैं आपका उसी जादू की छड़ी से परिचय करा रही हूँ जो आपके जीवन को बदल देगी | उस जादू की छड़ी का नाम है “आत्म सुझाव या autosuggestion” | आत्म सुझाव जैसा की शब्द से ही प्रतीत हो रहा है कि यह  खुद को दिया जाने वाला सकारात्मक सुझाव है |आप्केमन में प्रश्न जरूर उठेगा की क्या खुद को सुझाव देकर भी अपनी जिन्दगी को बदला जा सकता है | मेरा जवाब होगा जी हाँ , बिलकुल बदला जा सकता है |  दरसल autosuggestion या आत्म सुझाव personality development की एक बहुत पावरफुल टेक्नीक है जिसके द्वारा हम स्वयं को instructions देकर अपनी जिन्दगी को बदल सकते हैं | इसका सम्बन्ध हमारे subconscious mind से हैं | जो हमारे ही सुझावों सच मान लेता है और उन्हें हकीकत में बदलने लगता है | आत्मसुझाव द्वारा खुद को बदलने की पारुल  की कहानी पारुल के परिवार में सब का रंग उजला दूध की तरह गोरा था | पर पारुल का रंग गहरा साँवला | अकसर भाई – बहन झगडे में उसे कल्लो कह कर चिढाते | कभी – कभी पिताजी माँ से हँसते हुए कहते कि खर्चा कम करो , बिटिया काली है इसकी शादी नें बहुत दहेज़ देना पड़ेगा | समाज में भी सब उसको उसकी बहनों के साथ देख कर ताना मारते ,” लगता ही नहीं ये दोनों सगी बहनें है | भगवान् भी कितना भेदभाव करते हैं |  ये सारी  इन्फोर्मेशन पारुल के दिमाग में इस तरह इकट्ठी हो गयी | जिसका निष्कर्ष ये निकला की वो काली और बदसूरत है जिस कारण उसके जीवन में हमेशा उपहास का पात्र बनना पड़ेगा , उसके जीवन में कभी खुशियाँ नहीं आ पाएंगी | पारुल बाहर से सामान्य होते हुए भी अंदर  ही अन्दर एक गहरी निराशा पाले थी | जिसका असर उसके जीवन के हर क्षेत्र पर दिखने लगा | वो पढाई में भी पिछड़ने लगी |  पारुल टेंथ में थी जब उसे ऑटोसजेशन टेक्नीक के बारे में पता चला | उसने खुद को सुझाव देना शुरू किया कि साँवला होना  बदसूरत होना नहीं है | वह चमकदार त्वचा , लम्बाई व् वजन के हिसाब से परफेक्ट है | इसलिए वो खूबसूरत है | उसने उन रंगों को पहनना शुरू किया जिनसे वो परहेज करती थी | किसी ने मजाक भी उड़ाया तो उसने केवल इसे उनका नजरिया ही माना | धीरे – धीरे उसे विश्वास हो गया की वो वाकई सुन्दर है | आश्चर्य  की बात है की अब लोग भी उसे सुन्दर कहने लगे | उसका आत्मविश्वास बढ़ा | उसके नंबर अच्छे आने लगे | आज पारुल बैंक में P.O. है | अपनी शिक्षा व् अपने व्यक्तित्व के कारण आज उसकी हर कोई तारीफ करता है | पारुल अपनी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट उस समय को कहती है | जब उसने ऑटोसजेशन की टेक्नीक अपनाई |                      पारुल की जिंदगी तो सुधर गयी पर आज भी कई लडकियां फेयर नेस क्रीम और गोर रंग के जाल में फंसी हीन भावना महसूस कर रही हैं |सिर्फ रंग  या सुन्दरता ही क्यों हम सब कहीं न कहीं कोई न कोई लेवल अपने ऊपर लगा लेते हैं और उसी के जाल में फंस कर अपने जीवन में आ सकने वाली सारी  सफलताओं , खुशियों के दरवाजे खुद ही बंद कर देते हैं | मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही है की ज्यादा से ज्यादा लोग इस टेक्नीक को समझें और इसका फायदा उठा कर अपने जीवन में सेहत , सफलता और खुशियाँ लायें | हालांकि ऑटोसजेशन  सब पर काम करता है पर वो चमत्कार तभी दिखाता है जब आप को अपने किसी बिलीफ को बदलने की प्रबल इच्छा हो |  आत्मसुझाव क्या है ?                   आत्मसुझाव एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है | जिसे emile coue’ने  २०th सेंचुरी में विकसित किया था | इसमें बार – बार अपने मन वो वो बोलना , सोंचना व् देखना है जो हम अपनी जिंदगी में चाहते हैं | दरसल बार – बार बोलने , देखने , सोंचने से हमारा अवचेतन मन इस बात में अंतर नहीं कर पाता की हम ऐसा चाहते हैं या ऐसा ही है | वो उस बात को ही सच मान लेता है जो उससे कही जा रही है | भगवद गीता में कहा गया है ,” यथा दृष्टि तथा सृष्टि … आप जैसा सोंचते हो दुनिया वैसी ही है | जैसे किसी को स्टेज पर बोलने से डर लगता है | यह डर उसकी मेमोरी में स्टोर है | जिसकी वजह कुछ वजह ये भी हो सकती है कि बचपन में उसने या उसके किसी दोस्त ने स्टेज पर कुछ गलत बोल दिया हो जिसका बहुत मजाक उड़ा हो | या फिर उसके घर में उसे बात – बात पर टोंका जाता हो |यह डर वो निकाल नहीं पा रहा है | इसलिए वो स्टेज पर बोलने के मौके छोड़ देता है या घबरा जाता है | उसे लगता है सब लोग उसका मजाक उड़ाने वाले हैं | लेकिन अगर उसे स्टेज पर बोलना है तो उसे अपने को बार – बार कहना पड़ेगा कि वह स्टेज पर बहुत अच्छा बोलता है | उसका बोला हुआ लोग सुनते हैं | तालियाँ बजाते हैं |    जानिए कैसे आत्मसुझाव से बदला जा सकता है जीवन                                      autosuggestion को समझने के लिए हमें conscious और sub conscious mind और उसकी कार्यविधि को समझना पड़ेगा | हमारा दिमाग जो हमारे सारे विचारों का केंद्र हैं जो हमें देखने , सुनने , समझने , चयन करने की क्षमता  देता हैं | … Read more

असफल रिश्ते – लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें

 नाजुक , नादान और बेंतहा खूबसूरत सी  रोली एक मेडिकल स्टूडेंट थीं  | कुछ ही समय में उसकी MBBS की डिग्री कम्प्लीट होने वाली थी  | जैसा की आम भारतीय समाज में होता है | माता – पिता उसके लिए सुयोग्य वर खोजने लगे |आम माता –पिता की तरह वो भी टूटती शादियों से अनजान नहीं थे |   माता –पिता जानते थे की रोली पढ़ी – लिखी शिक्षित लड़की है | इसलिए उन्होंने प्रयास किया की जिन लड़कों को उन्होंने पसंद किया है | रोली उनसे कई बार मिले , बातचीत करे व् तब किसी निर्णय पर पहुंचे | आधुनिक समय में इसे डेटिंग भी कहते हैं | रोली ने उनमें से एक लड़के निशांत  से मिलने का फैसला किया | निशांत IIM  पास आउट , देखने में सुन्दर , बातचीत में सभ्य लगा | रोली को वो पहली नज़र में  ही पसंद आ गया | उसने माता – पिता से निशांत के साथ रिश्ते के लिए हाँ कह दिया | उसके बाद वो लोग कई बार मिले पर एक दूसरे के आकर्षण में एक कदर बंधे रहे की आपस की कॉम्पेटिबिलिटी जांचने की कोई जरूरत ही नहीं समझी |                    शादी के बाद रोली को निशांत का एक अलग ही रूप नज़र आया | वो रूप जिससे वो बिलकुल अनभिग्य थी | रोज – रोज के झगडे कलह से जीवन दूभर हो रहा था | जैसा कि हमेशा से होता है समाज सारा दोष रोली के सर पर डाल रहा था | अरे , शादी से पहले इतनी बार मिलने का मौका दिया | तब क्यों नहीं देखा | अब सब दोष क्यों दिखाई दे रहे हैं | एक खूबसूरत रिश्ता जिसे “अटूट बंधन” बनना था कुछ समय रोते घिसटते चला और अंत में टूट गया |                               ये कहानी सिर्फ रोली की नहीं है | आज माता – पिता जहाँ बच्चों को शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का मौका दे रहे हैं | फिर भी बच्चे उस समय केवल रूप , आकर्षण , पैसे , हास्य बोध के जाल में इस तरह उलझे रहते हैं की वो आपसी साझेदारी के बारे में नहीं सोंचते | बेहतर हो कि वो उस समय आपसी compatibility   जांच ले | फिर शादी का फैसला लें   लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें                                                      आज से  १५ , २० साल पहले की बात थी की माता – पिता अपने बच्चों के लिए जीवन साथी खोजते थे | इसके लिए बाकायदा वो मामा , चाचा , मौसा को साथ ले जाते थे | लड़के वाले देखने आते थे | और लडकियां दिखाई जाती थीं | लडकियाँ  दिखाना एक बहुत बड़ा कार्यक्रम होता था | सजे धजे घर के बीच में ढेरों नाश्तों से लड़के वालों का स्वागत करते हुए  लड़की वाले अपनी लड़की को चाय की ट्रे के साथ बुलाते थे | लडकियां सकुचाती शर्माती सी आती | उन्हें अपने से पूंछे जाने वाले प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना होता था | वो जमाना था जब शादियों में लड़केवालों की पसंद अहम् होती थी | लड़कियों को बोलने का अधिकार नहीं था | उनकी पसंद –नापसंद के स्थान पर उन्हें बस परिवार की पसंद पर मोहर लगानी होती थी | लड़के बोल सकते थे … पर कितना ?निर्णय वहां भी परिवार का होता था |                           जमाना बदला | आज विवाह का अर्थ केवल एक साथी नहीं जिसके साथ जीवन काटना है | आज विवाह का अर्थ है दो लोग मिलकर जीवन को बहुत खूबसूरत बनाये | उनमें मानसिक व् वैचारिक स्तर पर भी सामनता हो | लड़कियों की बढती शिक्षा व् आत्मनिर्भरता के साथ के साथ दोनों के बीच में ये समानता मिलाना बहुत जरूरी हो गया है | इसीलिए आज न सिर्फ लड़कों वरन लड़कियों की पसंद को भी तवज्जो दी जा रही हैं | माता – पिता की कोशिश रहती है की लड़का /लड़की आपस में बात चीत करें , एक दूसरे को समझें व् अगर उनमें compatibility हैं तभी marriage के लिए आगे बढें |                         इतना सब कुछ होने के बाद भी आज विवाह ज्यादा टूट रहे हैं | टूटने वाले विवाहों में arranged marriage ही नहीं कई love marriage भी हैं | इसका कारण ये हैं जब प्रेम सम्बन्ध चल रहा होता है या जब माता – पिता शादी से पहले मुलाक़ात करने को कहते हैं तो लड़का / लड़की केवल बाहरी सौन्दर्य में उलझे रहते हैं | ज्यादा से ज्यादा समय अच्छा दिखने में लगा देते हैं | और स्वयं भी दूसरे की personality, looks, height, colour या salary package के जाल में इतना उलझे रहते हैं की इसी को जीवन साथी बनाने का आधार बना लेते हैं | लेकिन जीवन की खुशियाँ केवल रूप , रंग , पैकेज से नहीं आती है | ये तो एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझने से आती हैं | अगर आप भी जीवन साथी की तालाश में डेटिंग कर रहे हैं तो आप को कुछ ख़ास बातों को चेक करना पड़ेगा | जिससे आगे आप दोनों में compatibility issuses न आये |आप दोनों एक दूसरे का पूरी तरह से साथ दें | आप का आगे का जीवन प्यारके खुश नुमा अहसास से भरा हो | 1)       वो दूसरी महिलाओं के प्रति कैसा व्यवहार रखता है                                                     कई  भी पुरुष महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है ये जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि देर सवेर वो आपके साथ भी वैसा ही बर्ताव करेगा | भले ही आज वो आप पर अपना बेस्ट इम्प्रेशन डालने के लिए बहुत अच्छे से बात कर रहा हो पर कल को वो अवश्य बदलेगा | क्योंकि किसी भी इंसान का बेसिक नेचर कभी नहीं बदलता है | महिलाओं के प्रति उसके व्यवहार को आप तीन … Read more

ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की होती है भूल

कितना आसान होता है गलत को गलत कहना और सही को सही कहना | पर ऐसा हमेशा होता नहीं है | मानव मन न जाने कितनी गुत्थियों में उलझा है | ऐसा ही दृश्य कई बार ऐब्युसिव रिश्तों में लोंगों के न सिर्फ टिके रहने में बल्कि अपने ऐब्युजर को प्यार करने में दिखाई देता है | आश्चर्य होता है की हमें कोई जरा सी बुरी बात कह दे तो हम उससे पलट कर कई दिन तक बात नहीं करते | पर सालों-साल कोई किसी रिश्ते में अपमान , दुर्व्यवहार और अकेला कर दिए जाने का शोषण झेलता रहे और इसे प्यार समझता रहे | सवाल उठता है आखिर क्यों ?  ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की तान्या की कहानी  Why I Love my abuser  तान्या पार्टी के लिए तैयार हो रही थी | सौरभ से शादी के बाद उसकी पहली पार्टी थी | और जैसा कि हमेशा होता है, नयी शादी के बाद सजने संवारने का उत्साह जायदा होता है | तान्या ने अपना मेक अप बॉक्स उठाया | बड़ी बहन से बहुत प्यार से गिफ्ट किया था | मैचिंग लिपस्टिक, बिंदी, काजल, ऑय लाइनर और न जाने क्या-क्या | ओह थैंक्स दीदी, मेरी लाइफ को खूबसूरत बनाने की तुम्हारी इस कोशिश के लिए… मन ही मन बुदबुदाते हुए तान्या ने पर्पल लिपस्टिक उठा ली | और भरने लगी अपने होंठों पर रंग | उसके होठों पर बहुत फब रही थी  | तभी सौरभ ने कमरे में प्रवेश  किया | तान्या ने तारीफ़ की आशा से सौरभ की ओर देखा | उसे देखते ही सौरभ ने मुँह  बिचकाते हुए कहा ,“ये क्या चमकीली बन के जा रही हो | हतप्रभ सी रह गयी तान्या, फिर भी बात को सामान्य करने के उद्देश्य से उसने कहा ,“मेरी सभी सहेलियां लगाती हैं सौरभ, इसमें गलत क्या है? “गलत ये है की तुम्हारे पति को पसंद नहीं है | इसलिए तुम लिपस्टिक नहीं लगाओगी| तान्या एक क्षण सकते में आ गयी | फिर उसने मन ही मन सोंचा ,“ हिम्मत कर तान्या, हिम्मत कर, मायके में सभी कहते थे कि पति पत्नी की पसंद नापसंद में थोडा बहुत अन्तर होता है | पर अपनी पसंद बिलकुल त्याग मत देना | एक दूसरे की पसंद को स्वीकार करने की आदत यहीं से पड़ती है |  खुद को समझा कर तान्या  ने सौरभ को मुस्कुरा कर देखा और दूसरे कमरे में चली गयी और अपनी चोटी में क्लिप लगाने लगी | तभी सौरभ वहां आ गया | उसे बांहों में भर कर अपने होठ से उसके होंठ बुरी तरह रगड़ने लगा | इससे पहले की तान्या कुछ समझ पाती सौरभ उसकी सारी लिपस्टिक चट कर चुका था | फिर शातिर मुस्कान से बोला ,“ पति हूँ तुम्हारा| तुम्हारे इन रसीले होंठों पर सिर्फ मेरा हक़ है | घायल होंठ और घायल आत्मा के साथ उस पार्टी की रंगीन शाम के साथ ही तान्या की हर शाम बदरंग हो गयी | उस शाम के बाद से घबराई, डरी, सहमी सी तान्या को सौरभ रोज पति का हक़ और पति की इच्छा ही एक स्त्री जीवन को सार्थक करता है, का पाठ पढाता | तान्या हर संभव प्रयास करती उसे समझने का |  धीरे – धीरे तान्या बदलती जा रही थी | वो वही बनती जा रही थी जो सौरभ चाहते थे | पढ़ी-लिखी अपना कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाली तान्या को नौकरी तो दूर, कितना हँसना है, कितना बोलना है, किससे बोलना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, कैसे ब्लाउज, कैसी चप्पल, कैसी चोटी, सब कुछ सौरभ का निर्णय होता | औरतों के लिए पति ही सबकुछ है इसलिए उसे यह निर्णय मानने ही उचित लगते |  अम्मा ने भी तो यही पाठ पढ़ा कर भेजा था ,“बिटिया लोनी मिटटी बन कर रहना |” पर क्यों उसे लगता वह ताबूत में है? जहाँ उसे मुट्ठी भर दानों व् समाज की स्वीकार्यता के लिए सब कुछ सहना है | फिर उसे इतनी बेचैनी क्यों? कभी इन बेचानियों को वो बर्दाश्त कर लेती, तो कभी – कभी अन्दर का दवाब लावा बन कर बहने लगता | वो सौरभ से कहती, “सौरभ ये सही नहीं है| मैं बहुत घुटन महसूस कर रही हूँ, मैं ये नहीं कर पाउंगी | तब सौरभ उसे और कुसंस्कारी अशालीन औरत के अलंकारों से नवाज़ देते और घबरा कर वह स्वयं उसी ताबूत में में घुस जाती मुट्ठी भर दानों के साथ |  तान्या ये जानती थी कि वो उस व्यक्ति से प्यार कर रही है जो प्यार के नाम पर उसका शोषण करता है| प्यार कभी भी कंडिशनल नहीं होता | वो इस शोषण वाले रिश्ते से निकलने की कोशिश करती तो उसे लगता वो सौरभ के उस प्यार को हमेशा के लिए खो देगी जो उसके दुर्व्यवहार किताप्ती रेत में कभी – कभी बेमौसम बरसता | लेकिन कभी उसे लगता की प्यार का मूल रूप ही शोषण है | उसे प्यार नाम से ही नफरत होती | धीरे – धीरे वो अपने में सिमटती चली  जा रही थी | उसने हार कर अपनी समस्या अपनी सहेली को बतायी | उसने गंभीरता से सुना और बोली, “तान्या इसका हल ये है कि तुम खुद से प्यार करो”| तुमने  सौरभ को ये हक़ दे दिया है की वो तुम्हे उपयोगी या अनुपयोगी करार दे | तुम्हाती वर्थ सौरभ के द्वारा तुम्हें स्वीकारते जाने में नहीं है | वो प्यार करे न करे जब तक तुम खुद को प्यार नहीं करोगी , खुद को नहीं स्वीकारोगी तब तक सौरभ तुम्हारा ऐसे ही शोषण करता रहेगा |  वो दिन तान्या के लिए सबसे बड़ा निराशा का दिन था |वो तो इतना सब कुछ होने के बाद भी सौरभ से प्यार करती है | फिर खुद से प्यार |  तान्या समझ ही नहीं पायी कि उसका ये खुद क्या है जिसे उसको प्यार करना | वो अतीत की तान्या जिसे वो रगड़ – रगड़ कर मिटा चुकी है | जिसके जख्म उसके शरीर पर हैं पर जिसकी कोइ पहचान  बाकी नहीं है |  या वो तान्या जो सौरभ के ताबूत में बंद है | जिसे सौरभ ने रचा है | हर दिन छेनी हथौड़े से तराश – तराश कर | घायल –चोटिल … Read more

2018 में लें हार न मानने का संकल्प

 ये लो मिठाई , निक्की की पहली कमाई की है , फायनली सब कुछ ठीक हो गया , मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती शर्मा ने कहा | मैंने खुश हो कर मिठाई का डब्बा हाथ में लिया और उन्हें बधाई देते हुए कहा ,” अब देखिएगा निक्की सफलता की नयी दास्ताने लिखेगी | घंटे भर हमने चाय के कप के साथ हँसी –ख़ुशी के माहौल में बातचीत की | उनके जाने के बाद मैं निक्की के बारे में सोंचने लगी | निक्की बचपन से ही मल्टी टेलेंटेड रही है |पढाई में अव्वल , खूबसूरत पेंटिंग बनाना , कागज़ और गत्तों से डॉल हाउस बनाना और गायकी  तो इतनकी गज़ब की क्या कहा जाए | सबकी तारीफें सुन श्रीमती शर्मा बेटी पर फूली न समाती|उन की तरह हम सब को विश्वास था की निक्की जीवन में बहुत सफल होगी | पढाई में हमेशा फर्स्ट आने वाली निक्की का बारहवीं से मन थोडा पढाई से हटने लगा | बारहवीं में उसने बायो व् मैथ्स का कॉम्बीनेशन लिया था |उसने ने NEET व् AIEEE पेपर २ दोनों की परीक्षा दी | उसका NEET के द्वारा बिहार के छोटे शहर में सेलेक्शन भी हो गया |बधाइयों का ताँता लग गया | निक्की  भी बहुत खुश थी क्योंकि बचपन से  वो डॉक्टर बनना चाहती थी |वो मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गयी | महीने भर बाद उस के रोते हुए फोन आने लगे , मम्मा मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगी| मैं घर आना चाहती हूँ | माँ – पिता के हाथ से जैसे तोते उड़ गए | उन्होंने बहुत समझाया पर वो इनकार करती रही | दिल्ली की लड़की शायद छोटे शहर में एडजस्ट न हो पा रही हो सोंच कर पिता उसे हफ्ते भर के लिए दिल्ली ले कर आये | पर उसने वापस जाने से मना कर दिया | उसे तो डॉक्टर बनना ही नहीं है | उसकी द्रणता  देखकर माता – पिता ने हथियार डाल दिए | नेक्स्ट ऑप्शन के तौर पर AIEEE का आर्कीटेक्चर चुना |साल तो बर्बाद हो गया था पर अगले वर्ष उसने आर्कीटेक्चर  ज्वाइन किया |कुछ ही महीनों में वो पिछड़ने लगी , ऊबने लगी | उसने माँ से इसे भी छोड़ने को कहा | माता – पिता डर गए | पर उसने अगले एग्जाम को देने से उसने इनकार कर दिया | क्योंकि उसे लगता था उसका पास होना मुश्किल है | पूरा घर निराशा की गिरफ्त में आ गया | श्रीमती शर्मा की गिरती सेहत इस बात का प्रमाण दे देती | तभी किसी ने सलाह दी निक्की गाना तो अच्छा गाती है | इसी में इसका कैरियर बनवा दीजिये | निक्की की सिंगिंग क्लासेज शुरू हो गयीं | निक्की ने रियाज शुरू किया पर कुछ दिन बाद उसे भी छोड़ दिया | हैरान परेशान सी निक्की को समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है | आखिर वो क्यों बार – बार असफल हो रही है | मल्टी टेलेंटेड निक्की मल्टी फेलियर निक्की में बदल रही थी |निक्की गहरे अवसाद में घिर गयी | महीनों खाना , सोना , दैनिक चर्या का क्रम बिगड़ा रहा | फिर निक्की ने ही कहा वो कम्प्यूटर कोर्स करेगी | बेटी में वापस आशा का संचार देख कर माता – पिता जो उसे खो देने के भय से भयभीत थे तुरंत राजी हो गए | निक्की ने कम्प्यूटर्स की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों से पास की | घर में एक छोटा सा स्टार्ट अप खोला |और आज निक्की की पहली कामाई की मिठाई …. वाकई बहुत मीठी है |  जीवन में कभी आशा है तो कभी निराशा , कभी सुख ,कभी दुःख , कभी सफलता तो कभी असफलता | जीवन इन सब से मिलकर ही बनता है | अगर हम इसको सहज भाव से लेते हैं तो कोई मुश्किल नहीं है | पर जहाँ हमें आशा सुख और सफलता आल्हादित करती है वही निराशा , दुःख और असफलता हमारी हिम्मत तोड़ देते हैं |इन पलों में असीम वेदना से गुज़रते व्यक्ति को लगता है कि काश कोई ऐसे जादू की छड़ी होती जो हमें इन सब हारों से निकाल  लेती | तो आज मैं आपको वो जादू की छड़ी ही दे रही हूँ | वो है कभी हार न मानने का संकल्प | जी हाँ , इस लेख को लिखने की यही खास वजह है | 2018 आने वाला है | हम सब एक बार फिर नए जोश के साथ नए साल का स्वागत करना चाहते हैं | हम सबको आशा है कि नया साल अपने थैले में हमारे लिए बहुत सारी  खुशियाँ और सफलता ले कर आयेगा | मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि ऐसा जरूर होगा | बस आपको , मुझको , हम सब को एक संकल्प लेने की आवश्यकता है … आइये लें 2018 में हार न मानने का संकल्प दुःख , निराशा और असफलता में से आज मैं इस लेख के लिय असफलता का चयन कर रही हूँ | क्योंकि असफलता ही है जो दुःख और निराशा के मूल में हैं | हम सब सफलत होना चाहते हैं |फिर भी हो नहीं पाते | कई बार उससे निकलने के लिए हम दूसरा , तीसरा प्रयास भी करते हैं पर बार – बार असफल होते जाते हैं |एक के बाद एक असफलताएं झेलना कोई आसान काम नहीं है |  जाहिर है असफलताएं हमारी हिम्मत तोडती हैं | कई बार तो हिम्मत इतनी टूट जाती है की हम जिंदगी से ही हार मान कर बैठ जाते हैं | और उसके बाद आने वाले मौके हमे दिखाई ही नहीं देते | और हमारे जीवन में हारने का सिलसिला शुरू हो जाता है | पूरा समाज हमारे ऊपर लेवल लगा देता है …. “असफल “ आपको शायद अमिताभ बच्चन की वो फिल्म याद हो जिसमें एक मासूम बच्चे के हाथ पर गोद दिया जाता है ,” मेरा बाप चोर है “ अपमान निराशा से भरे उस बच्चे में विद्रोह जागता है और यहीं से शुरू होती है उसके एंग्री यंग मैंन बनने  की कहानी |वो पहले सफलता हासिल करता है फिर दुश्मनों से बदला लेता है |हम अमिताभ बच्चन की फिल्मों पर तालियाँ बजाते हुए घर लौट आते हैं | … Read more

सोल हीलिंग – कैसे बातचीत से पहचाने आत्मा छुपे घाव को

                                                          बचपन में सब कहते थे की शैव्या बहुत सीधी  है | शैव्या थी भी ऐसी ही | माँ ने कहती  यहाँ बैठ जाओं तो घंटो बैठी रहेगी | घर से निकलने से ठीक पहले तैयार शैव्या से पिताजी ने कहते  नहीं आज घूमने नहीं चल पाएंगे |बिना ना – नुकुर किये  शैव्या मान जाती |दादी कहती ,” शैव्या अपनी सबसे प्यारी गुडिया चाहेरी बहन काव्या को दे दो | शैव्या ख़ुशी- ख़ुशी दे देती | दरसल सबकी ख़ुशी में ही शैव्या खुश रहती थी | इसी लिए सब उससे खुश रहते थे | समाज के हिसाब से देखे तो ये तो बहुत अच्छी बात हैं | पर ये बात आगे चलकर शैव्या के लिए बहुत अच्छी सिद्ध नहीं हुई | सबकी ख़ुशी में खुश होने वाली शैव्या धीरे – धीरे भूल ही गयी कि उसकी पसंद –ना पसंद किसमें  है | उसकी ख़ुशी किसमे है | तू जो कहे हाँ तो हाँ , तू  जो कहे ना तो ना में शैव्या का निजी व्यक्तित्व दबता गया | सबको खुश रखने वाली शैव्या दुखी रहने लगी | सबका प्यार पाने वाली शैव्या अपने आप से नफरत करने लगी |शैव्या सबसे कटने लगी | तो लोग उसे दब्बू , खुदगर्ज बुलाने लगे | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शैव्या के व्यव्हार में उसकी आत्मा के घाव और उसका दर्द लोग समझ नहीं पाए | पर ये कहानी सिर्फ शैव्या की नहीं है |   जरा सोंचिये हम सब सब कितनी बातें करते हैं | सुबह से शाम तक | और बातों के आधार पर दूसरों को समझने की कोशिश भी करते हैं | पर क्या बातें वो बता पाती हैं जो वो  छुपा रहे हैं | जाहिर है नहीं | यहाँ मैं  उनकी निजी   बातों  की बात नहीं कर रही हूँ | बल्कि उन  घावों की बात कर रही हूँ जो हमारी/उनकी  आत्मा पर होते हैं |हर आत्मा पवित्र , शांति पूर्ण व् शक्ति से भरी हुई है | पर समय के साथ – साथ हमारी आत्मा पर गहरे घाव होते जाते हैं | क्योंकि हमारे व्यक्तित्व का निर्माण बहुत सारी  बातों से होता है | जिसमे हमारे बचपन का बहुत बड़ा हिस्सा होता है | लेकिन ऐसा नहीं है कि उसके बाद हमारा व्यक्तित्व बनना बंद हो जाता है | जीवन में जब भी ,किसी भी उम्र में जब हम एक जैसी परिस्थितियों  के साथ लम्बे समय तक रहते हैं तो उनसे हमारा व्यक्तित्व बनता जाता है | लेकिन हर व्यक्तिव के बनने के पीछे कुछ घाव होते हैं जिसे हम छुपा रहे हैं | सोल या आत्मा के सन्दर्भ में कुछ भी गलत नहीं है | कोई भी बुरा नहीं है | पर जब हम किसी व्यक्ति की बात करते हैं तो कहते हैं कि वो बहुत खुशमिजाज है , वो बहुत नकचिढा है , अकडू है या भावनाहीन है | अगर आप आध्यात्मिक है तो अवश्य ही आपको ये विरोधाभासी लगता होगा |  सोल हीलिंग में आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेगे कि जो इंसान ऐसा या वैसा है वो ऐसा क्यों है | जब आप उसके मूल स्वाभाव को समझ लेंगे | तब उसके व्यवहार की बुराई – भलाई करने के स्थान पर आप उससे सहज रूप से स्नेह करने लगेंगे | आत्मा को आत्मा से जोड़ने में इससे बेहतर और क्या हो सकता है | तो आइये चलते हैं सोल हीलिंग पर … सोल हीलिंग – कैसे बातचीत से पहचाने व्यक्ति के  छुपे घाव  को  soul healing-how to identify soul’s hidden wounds by talking किसी व्यक्ति की बातचीत से आप उसकी आत्मा के छुपे घावों को जानने के लिए सबसे पहले तो इस उदाहरण पर जरा ध्यान दीजिये …. रीता , निधि , श्यामा , मीता और राधिका पांच सहेलियाँ हैं | वो एक पिकनिक जाने का कार्यक्रम बनाती हैं | पाँचों नियत समय पर उस स्थान में पहुँचती हैं | जहाँ उनकी टैक्सी खड़ी  होगी | पर वहां पहुँचते ही देखती हैं कि टैक्सी का टायर पंचर है | उफ़ , ये पहला शब्द है जो शायद सबके मुँह से निकलता है | फिर देखिये क्या होता है .. निधि : टैक्सी कैसे पंचर हो गयी | जरूर इसके ड्राइवर ने किसी कील पर चढ़ा दी होगी | फिर रीता की ओर देख कर ,” रीता तुमने टैक्सी देर से बुलाई | अगर तुम जल्दी बुला देती तो शायद कील  इस टैक्सी के टायर में नहीं चुभी होती | लेकिन तुम जल्दी कैसे बुलाती ? क्योंकि तुम उठ ही नहीं पायी होगी | उफ़ , एक तो इतनी गर्मी है | सूरज को भी इतना तपना था | अब इतनी गर्मी में हम को दूसरी टैक्सी भी नहीं मिलेगी | किसी ने ठीक से प्रोग्राम नहीं सेट किया | पूरा प्रोग्राम चौपट हो गया |  रीता : माफ़ी मांगती हूँ निधि , सब मेरी ही गलती है | sorry , मैं जल्दी उठ नहीं पायी | वो क्या है रात को देर तक पढाई की | नींद नहीं खुली | मम्मी से कहा था जगाने को पर उन्होंने जगाया ही नहीं | मम्मी की तरफ से भी सॉरी | नहीं तो हमारी टैक्सी ठीक होती | सॉरी,तुम्हे इतनी गर्मी लग रही है | सब मेरी ही गलती है | अब जब दूसरी टैक्सी करेंगे तो उसके सारे पैसे मैं दूंगी | अब तो खुश हो जाओ |  श्यामा : निधि की सॉरी से रीता पर कोई असर नहीं है वो लगतार बोलती ही जा रही है | श्यामा इन दोनों के झगडे से बेखबर मोबाईल से तस्वीरे खींच रही है | वो ऐसे दिखा रही है कि जैसे दोनों से उसे कोइ मतलब ही नहीं है | या उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है | मीता : रीता और निधि  के बीच में जाकर अरे छोड़ो कह कर अपने मोबाइल पर सेव् किया हुआ कॉलेज का वीडियो दिखाने लगती है | इधर , उधर की बातें करने लगती है | जिससे झगडा  धीमा तो होता है पर जारी रहता है |  राधिका : … Read more

अतीत से निकलने के लिए बदलें खुद को सुनाई जाने वाली कहानी

            मेरी जिंदगी की कहानी तब बदली जब मैंने खुद को सुनाई जाने वाली  अतीत की कहानी बदली हम और हमारा मन इसका आयाम इतना विस्तृत है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती | हम किसी दूसरे से कितनी देर बात करते होंगे | घंटे दो घंटे पर खुद से दिन भर बोलते रहते हैं | ये बातचीत कभी खत्म ही नहीं होती | दिन भर , रात भर, यहाँ तक की सपनों में भी चलती ही रहती है | और हम इससे अनजान ये सोंचते रहते हैं की अपने से हम कुछ भी बोले  क्या फर्क पड़ता है | कहने वाले हम, सुनने वाले भी हम तो क्यों सोंच – सोंच कर बोले ? कौन है जो रूठ जाएगा | पर हकीकत इसके उलट होती है |खासकर उनके लिए जिनका अतीत सुखद नहीं है |  अगर हम खुद को सुनाई जाने वाली कहानियों पर ध्यान नहीं देंगे तो हमारा वर्तमान रूठ जाता है | भविष्य रूठ जाता है | कैसे ? जब आप खुद को हर समय अपने अतीत के दर्द भरी कहानियाँ सुनाते रहते हैं तो वही दर्द आप की जिंदगी में फिर से आता रहता है |  कई बार आपने देखा होगा की दुखी लोगों की जिंदगी में सामान दुःख बार – बार आते रहते हैं | वो हैरान रहते हैं की समय और परिस्थिति बदलने के बाद भी हर बार उनके साथ ऐसा क्यों होता है | अगर आप भी उनमें से एक हैं तो क्या आप की इच्छा नहीं करती इसका कारण जानने की | इसका सीधा – सच्चा सा कारण है खुद को सुनायी जाने वाली कहानी |  रीता की जिन्दगी और उसकी खुद को सुनाई जाने वाली कहानी रीता ( उम्र ३६ वर्ष ) एक बैंक में काम करती है | दो बच्चों की माँ है | अपने पति व् बच्चों के साथ एक खुशहाल जिन्दगी जी रही है | पर शुरू से रीता की जिन्दगी ऐसी नहीं थी | बचपन से प्यार को तरसती रीता को हमेशा यही लगता था की वो प्यार के काबिल ही नहीं है | उसकी जिंदगी में खुशियाँ ही नहीं हैं और न आ सकती हैं |  उसकी जिंदगी तब बदली जब रीता ने खुद को सुनाई जाने वाली कहानी बदल दी |  रीता अपने माता – पिता की एकलौती संतान थी | उसकी माँ ने उसके पिता से प्रेम विवाह किया था | परन्तु प्रेम विवाह में प्रेम शादी के एक साल बाद ही कपूर के धुएं की तरह उड़ गया |रीता छोटी ही थी | जब वो अपने पिता को अपनी माँ को रोज बात बेबात पीटते हुए देखती |  उसके पिता उसका भी ख्याल नहीं करते | गुस्से में चीखते माता – पिता और घंटों रोती  माँ ये उसके बचपन का सबसे सामान्य दृश्य था | एक दिन पिता की पिटाई से आजिज़ माँ ने उनसे अलग होने का फैसला कर लिया | पिता ने  उन्हें तलाक और पैसे देने से मना  कर दिया | माँ उसे लेकर घर से निकल आयीं | वो दिन भयंकर असुरक्षा के थे | नाना ने उन्हें अपने घर घुसने नहीं दिया | क्योंकि माँ ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी करी थी | पर उसकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी | उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके कमाना शुरू किया | वो डबल शिफ्ट करती | उन्होंने रीता का नाम स्कूल में लिखवा दिया | रीता की पढाई तो शुरू हो गयी पर उसे माँ का प्यार नहीं मिलता | माँ जरूरत से जयादा व्यस्त थी |वो उसके किसी स्कूल फंक्शन , पेरेंट – टीचर मीटिंग , अवार्ड सेरेमनी में नहीं गयीं | मासूम  रीता खुद ही अपनी पढाई , होमवर्क  स्कूल ड्रेस का ध्यान रखती |  कभी – कभी ही उसे माँ के साथ रहने का मौका मिलता तब माँ इतनी निढाल होती की बात करने की इच्छा न जतातीं या अपने अतीत को याद कर रोती  रहती | जिससे रीता सहम जाती |पिता तो उनसे मिलने भी नहीं आते |  इन्हीं हालातों में रीता एक निराश , हताश , कुंठित लड़की के रूप में बड़ी हो गयी | अतीत की वो कहानी जो रीता खुद को सुनाती रीता अक्सर जब – तब अपने अतीत में चली जाती | जो भी उसके पास बैठा होता या अकेले होने पर अपने अतीत की कहानी सुनाती |कहीं न कहीं हर समय अतीत के दर्द को याद करने से उसके मन में ये निष्कर्ष निकलता ……. सारे पुरुष गंदे होते हैं | वो भरोसे के लायक नहीं होते | उसके पिता एक क्रूर व्यक्ति थे | पुरुष का असली चेहरा यही है | उसकी माँ ने उसे कभी प्यार नहीं दिया | वो भी कुछ हद तक खुदगर्ज थी | बस अपने काम में लगीं रहीं | या फिर वो शायद  प्यार के काबिल ही नहीं है | क्योंकि उसकी पिछली जिंदगी के अनुभव  ख़राब है इसलिए वो शायद कभी अच्छी माँ बन ही नहीं पाएगी | वो यूँ ही बिना प्यार दिए बिना प्यार मिले तडपती तरसी ही दुनिया  से जायेगी | खुद को सुनाई इस कहानी का रीता के जीवन पर असर रीता के अतीत की कहानी उसके भविष्य पर हावी होने लगी | रीता पढ़ – लिख कर अच्छी खासी नौकरी कर रही थी | यही समय था जब नीलेश रीता की जिन्दगी में आया | यूँ तो वोपुरुषों से दूर ही रहती क्योंकि उसे लगता वो प्यार के काबिल नहीं है | पर नीलेश  प्यार के दो शब्दों से रीता पिघल सी गयी | उसे लगा नीलेश उस से प्यार करके उस पर अहसान कर रहा है क्योंकि वो तो प्यार के लायक ही नहीं है |  परन्तु ये प्यार ज्यादा दिन  तक टिक न सका | नीलेश का ट्रांसफर हो गया | रीता घबरा गयी | पहली बार तो उसे अपने बारे में कुछ अच्छा अहसास हुआ था | भले ही थोड़े दिन का सही | रीता ने आनन् – फानन में नीलेश से शादी करने का फैसला कर लिया | रीता नीलेश के साथ शादी करके अपना घर द्वार , नौकरी सब कुछ छोड़ कर चेन्नई चली गयी |उसने भी अपनी माँ की ही तरह अपनी माँ … Read more

टूटते रिश्ते – वजह अवास्तविक उम्मीदें तो नहीं

 शादियों का मौसम है | खुशियों का माहौल है | नए जोड़े बन रहे हैं | कितने अरमानों से दो लोग एक दूसरे के जीवन में प्रवेश करते हैं | मांग के साथ तुम्हारा मैंने माग लिया सनसार की धुन पर थिरकता है रिश्ता | फिर क्या होता है की कुछ ही दिनों में आपस में चिक- चिक शुरू होजाती है |सपनों का राजकुमार / राजकुमारी शैतान का भाई/बहन  नज़र आने लगता है | एक की पसंद के रंग दूसरे की आँखों में चुभने लगते हैं और एक की पसंद का खाना दूसरे के हलक के नीचे ही नहीं उतरता  और शादी टूटने की नौबत आ जाती है | हालांकि ये हर घर का किस्सा नहीं है | फिर भी अब इसका प्रतिशत बढ़ रहा है | संभल कर -अवास्तविक उम्मीदों से न टूटे रिश्ते की डोर  मेरी घनिष्ठ मित्र रीता की बेटी निधि और रोहन की शादी हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ है  की उनके रिश्ते के टूटने की खबर आने लगी | पिछले साल उनकी शादी को याद करती  हूँ तो कितनी ही अच्छी स्मृतियाँ ताज़ा हो जाती हैं | रीता ने शादी के खर्च में जैसे खजाने के द्वार खोल दिए हों | और क्यों न खोलती एक ही तो बेटी है उसकी |फिर उनकी खुशियों की गारंटी भी उसके पास थी | निधि और रोहन पिछले कई सालों से एक दूसरे को जानते थे | उन्होंने ने ही विवाह का फैसला किया था | परिवार वालों ने तो बस मोहर लगायी थी |उस दिन दोनों की ख़ुशी छिप नहीं रही थी |  दोनों ही एक दूसरे को पा कर बहुत खुश थे | यह ख़ुशी विवाह समारोह में परिलक्षित हो रही थी |  निधि और रोहन दोनों ही अच्छे परिवारों से हैं | कोई  ऐसा दोष भी दोनों में दृष्टि गत नहीं  था | हम सब को इस विवाह के सफल होने की उम्मीद थी | शुरू –शुरू में उनकी खुशियों की खबर आती रहती थी | फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जो दोनों एक –दूसरे से अलग होना चाहते हैं  | मैंने दोनों से अलग –अलग बात करने का निश्चय किया | ताकि इस टूटते हुए रिश्ते को संभाला  जा सके | पर दोनों से बात करके मेरे आश्चर्य की सीमा न रही | एक खूबसूरत रिश्ता छोटी –छोटी बातों पर टूटने की कगार पर था | ज्यादातर रिश्ते टूटने में दोनों परिवारों के बीच कुछ कटुता होती है | पर यहाँ मामला केवल उन दोनों के बीच का था | ये केवल निधि और रोहन का ही मामला नहीं है | ऐसा पहले भी होता आया है , जब दोनों में से एक या दोनों एक –दूसरे से ऐसी उम्मीदें पाल लेते हैं | जिनका पूरा होना मुश्किल है | हालांकि पहले ये  प्रतिशत बहुत कम था | एक बात यह भी है  की पहले संयुक्त परिवारों के दवाब के कारण रिश्ता वेंटिलेटर पर चलता रहता था | दो लोग साथ  जरूर रहते थे पर पास  नहीं |  पर अब पति – पत्नी के अकेले रहने , तलाक   के समाज द्वारा मान्य  होने व् दोनों के आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण इन  अवास्तविक उम्मीदों पर रिश्ते टूटने लगे हैं | जाने कैसे अवास्तविक उम्मीदों से टूटती है रिश्ते की डोर               समस्या को समस्या कह देना किसी समस्या का अंत नहीं है | उसका समाधान खोजना आवश्यक है | जहाँ तक मैं समझती  हूँ की  जिस तरह फिल्मों और टी .वी में “ परफेक्ट रिश्ते को  दिखाया जाता है | उसे देखकर युवा मन अपने जीवन साथी  के लिए आदर्श कल्पनाएँ पाल लेते हैं | जो हकीकत के धरातल पर पूरी होती नहीं दिखती तो मन असंतोष से भर जाता है | पहले आपसी खटपट होती है जो रिश्ते की डोर को कमजोर करती है फिर एक –दूसरे से अलग होकर कोई दूसरा परफेक्ट साथी ढूँढने की चाह उत्पन्न होती है | दुखद है जब दो लोग एक दूसरे का हाथ थाम कर जीवन सफ़र में आगे बढ़ते हैं तो महज इन छोटी – छोटी अवास्तविक उम्मीदों से रिश्ता टूट जाए | भले  ही रिश्ते स्वर्ग में बनते हो पर निभाए धरती पर जाते हैं | और उनको ख़ूबसूरती से निभाना एक कला है | आज मैं यहाँ उन अवास्तविक अपेक्षाओं  पर चर्चा करूँगी  जिनकी वजह से रिश्ते टूट जाते हैं या कमजोर पड़  जाते हैं | वो सदैव  रोमांटिक  ही रहेंगे –                  कोई भी रिश्ता एक दूसरे के प्रति प्रेम  के साथ ही शुरू होता है | एक दूसरे को पसंद करना ही किसी रिश्ते की बुनियाद होती है | जाहिर है शुरू –शुरू में इसका इज़हार भी बहुत होता है | एक दूसरे ने क्या कपडे पहने हैं | कैसा दिख रहा है | कैसे बोल रहा है | इस बात पर साधारणतया ध्यान  भी बहुत जाता है | परन्तु जैसे  –जैसे रिश्ता पुराना पड़ता जाता है | जीवन की और जरूरते  प्राथमिकताओं में आ जाती हैं | इसका अर्थ यह नहीं है की प्रेम कम हुआ है बल्कि अर्थ यह है की अगला व्यक्ति जिम्मेदार है | जो प्रेम के साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाना चाहता है | अगर आप अपने साथी से कुछ खास बातें ही एक्स्पेक्ट करते रहेंगे  तो  आपको भी दुःख होगा व् यह साथी को भी उलझन होगी की की उसे हर समय आप को खुश करने के लिए कुछ खास काम करने होंगे | ऐसी स्थिति में वो काम प्रेम नहीं ड्यूटी बन जायेंगे जिससे उनका सारा आनंद  ही खत्म हो जाएगा | बेहतर यही है की रोमांस को केवल बाँहों में बाहें डाल कर फिल्म  देखने , कैंडल लाईट डिनर  करने या महंगे गिफ्ट खरीद कर देने तक ही सीमित नहीं कर दिया जाए | जरूरी है रोमांटिक तरीकों के अलावा छिपे हुए प्रेम को पहचाना जाए जो एक दूसरे का ख्याल रखने , चिंता फिकर करने या हर परिस्तिथि में साथ खड़े होने से आता है | जैसे जैसे कपल प्रेम के  इन छिपे हुए तरीकों को समझना शुरू कर देंगे वैसे वैसे रिश्ता प्रगाढ़ होता जाएगा | वो हमेशा सही ही बात बोलेंगे –            जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे ,                  … Read more