रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे
रीता १२ वी क्लास में पड़ती है | उसी की एक रिश्तेदार मिताली जिसके पिता नहीं थे, के घर में बड़ी चोरी हो गयी | मिताली ने रीता से आर्थिक व् भावनात्मक मदद माँगी| रीता तैयार हो गयी | वो उसके साथ यहाँ-वहाँ उसके रिश्तेदारों के घर गयी | समय होने या न होने पर भी उसकी फोन कॉल्स उठा कर उसका दुखड़ा सुनती | उसे सांत्वना देती | उसके लिए नोट्स लिखती| रीता धीरे–धीरे अपनी पढ़ाई में पिछड़ने लगी | नतीजा रीता का १२ वी का रिजल्ट खराब हो गया | दुखी रीता ने जब मदद माँगी तो मिताली ने समयाभाव का बहाना कर दिया | रितेश का दोस्त भयंकर संकटों से घिरा था | रितेश हर समय उसकी मदद को तैयार रहता | वो हर समय उसके आँसू पोछने के लिए खड़ा रहता | उसके पूरे समय पर उसके दोस्त का कब्ज़ा हो गया | अपनी दोस्त की परेशानियाँ सुलझाते –सुलझाते रितेश इतना इमोशनली ड्रेन्ड हो चुका होता की अपने परिवार की छोटी –मोटी समस्याओ में भावनात्मक सहारा न दे पता | लिहाज़ा उसकी पत्नी के साथ झगडे होने लगे | जब परिवार बिखरने लगा तो उसने उस भावनात्मक टूटन के दौर में अपने दोस्त से मदद मांगी | पर वह दाल में नमक से ज्यादा साथ कभी नहीं दे पाया| मधु की पड़ोसन ३–३ घंटे उसे अपने पति की बेवफाई के किस्से सुनाती | मधु अपना काम रोक कर , कभी बच्चों का होम वर्क कराते से उठ कर उसकी बात सुनती | उसके बुलाते ही मधु चल देती लिहाजा कभी सब्जी जलती, कभी दूध उफनता| ऊपर से कभी फोन उठाने में देरी हो जाती या अपना कोई काम बता कर बाद में आने को कहती तो उसकी सहेली तरह –तरह के इलज़ाम लगाती “ भाई मेरी क्यों सुनोगी मैं तो पहले से ही दुखी हूँ, सह लूंगी | एक तरह से वो उसे अपना स्ट्रेस दूर करने के लिए पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल कर रही थी | ये सिर्फ तीन उदाहरण हैं पर अगर आप भी जरूरत से ज्यादा ईमानदार , समानुभूति पूर्ण , विश्वास पात्र और भरोसेमंद हैं और साथ ही किसी की समस्या से पूरी वफादारी के साथ जुड़ कर सुनना पसंद करते हैं| तो ऐसा कोई न कोई किस्सा आप का भी होगा | मेरा भी कुछ ऐसा ही उदहारण था | ये तब समझ में आया जब एक कडवा अनुभव हुआ और बहुत कुछ हाथ से निकल गया | वो हाथ से निकली हुई चीज थी ….. मेरा समय जिसका मैं सदुप्रयोग कर सकती थी | मेरे पति व् बच्चों की खुशियाँ जो वो मेरे साथ बाँटना चाहते थे| मेरी सेल्फ रेस्पेक्ट जो बुरी तरह से कुचली जा चुकी थी | और तब मैंने बहुत पहले पढ़े हुए टोनी गेकिंस के इस वाक्य का अर्थ महसूस किया … आप लोगों को अपने द्वारा स्वीकृति देकर , रोक कर व् समर्थन करके सिखाते हैं की वो आप के साथ कैसा व्यवहार करे | मुझे लगता था की दूसरों के प्रति जरूरत से बहुत ज्यादा नरम , विश्वासपात्र व् दयालु होकर मैं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ | मुझे लगता था की दुनिया में सब लोग उतने ही अच्छे हैं जितना मैं सोचती हूँ | मुझे लगता था यही मेरा बेसिक स्वाभाव हैं | पर अफ़सोस परिणाम दुखद आये | मैंने असीम दर्द का अनुभव किया | मैंने महसूस किया की मेरी अपनी सेहत ,खुशियाँ व् जरूरतें पिछड़ रहीं हैं | दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में अतिशय व्यस्त रहने के कारण मेरे पास अपने लिए समय ही नहीं रहा | मैंने महसूस किया की हर रिश्ते में परफेक्ट रहने का असंभव प्रयास करने के कारण मेरे पास हमेशा अपने लिए समय कम रहा | मैंने महसूस किया की मेरे परफेक्ट स्वाभाव को जान कर लोगों ने मुझे १०० % समय की उम्मीद की| वो मुझसे कभी ९९ % आर संतुष्ट नहीं हुए | जबकि वो खुद उन्ही परिस्तिथियों में मुझे २ % तक नहीं दे पाए| यह सबसे पीड़ा दायक था की हर रिश्ते को बचाने के लिए मैंने जान से ज्यादा प्रयास किया | पर जब मेरे प्रयासों में कमी हुई और उन्हें लगा की हमारा रिश्ता टूट रहा है तो उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया | उन्हें हमारे रिश्ते की कदर नहीं थी | रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे ? अगर आप भी इस पीड़ा दायक अनुभव से गुज़रे हैं तो आप के सामने भी यह प्रश्न खड़ा हुआ होगा की दूसरों की मदद करनी चाहिए पर किसकी और कितनी ? यही वो समय है जब आप महसूस करते हैं की आप को अपनी उर्जा हर समय ,हर किसी के लिए नहीं बल्कि सही जगह पर खर्च करनी चाहिए | आप को भी अपनी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए | सीमाएं निर्धारित करने के फायदें जिस जीवन शैली को आप जी रहे होते हैं उसे अचानक से बदलना बहुत मुश्किल होता है | पर जब आप मन कड़ा कर लेते हैं तो थोड़ी परेशानियों के बाद आप पाते हैं की ………… अब आप की उर्जा उन पर खर्च नहीं हो रही है जो सिर्फ आपका फायदा उठाना चाहते हैं | वो सुरक्षित हैं आप के लिए , जिससे आप ज्यादा वाइब्रेंट , खुश , सेहतमंद , उर्जावान महसूस कर सकते हैं | · आप के पास समय है आप के परिवार के लिए , और उन सब के लिए जो आप को वास्तव में प्यार करते हैं | जो आपको खुश देखना चाहते हैं आपके प्रति केयरिंग , व् मदद गार हैं | · आप पाते हैं की आप जैसे –जैसे सीमाएं निर्धारित करना सीखने लगते हैं आप अपना काम ज्यादा कौशल से कर पाते हैं | · आप दूसरों को आप से ज्यादा इज्ज़त से पेश आने को विवश करते हैं | · आप ना कहना सीखते हैं | · आप … Read more