क्या आप भी दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते हैं ?

 रुकिए … रुकिए, आप इसे क्यों पढेंगें | आप की तो आदत है फ़िल्मी , मसाला या गॉसिप पढने की | किसी शोध परक आलेख को भला आप क्यों पढेंगे ? आप सोंच रहे होंगे बिना जाने – पहचाने ये कैसा इलज़ाम है | … घबराइये नहीं , ये तो एक उदाहरण था “पर्सनालिटी टैग” का जिसके बारे में मैं आज विस्तार से बात करने वाली हूँ | अगर आपको लगता है की जाने अनजाने  आप भी ऐसे ही दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते रहते  हैं तो इस लेख को जरा ध्यान से पढ़िए |  हम सब की आदत होती है की किसी की एक , दो बात पसंद नहीं आई तो उसकी पूरी पर्सनालिटी पर ही टैग लगा देते हैं | बॉस ने कुछ कह दिया … अरे वो तो है  ही खडूस , टीचर की  क्लास में पढ़ाते समय दो – तीन  बार जुबान फिसल गयी | हमने टैग लगा दिया उन्हें तो इंग्लिश/हिंदी  बोलना ही नहीं आता | कौन , वही देसाई मैम जिनको इंग्लिश/हिंदी  नहीं आती | भाई पिछले दो साल से रक्षा बंधन पर नहीं आ पाया … टैग लगा दिया वो बेपरवाह है | उसे रिश्तों की फ़िक्र नहीं | ऐसे आये दिन हम हर किसी पर कोई न कोई टैग लगाते रहते हैं | दाग अच्छे हैं पर पर्सनालिटी पर टैग नहीं  आज इस विषय पर बात करते समय जो सबसे अच्छा उदहारण मेरे जेहन में आ रहा है वो है एक विज्ञापन का | जी हाँ ! बहुत समय पहले एक वाशिंग पाउडर का ऐड देखा था | उसमें एक ऑफिस में काम करने वाली लड़की बहुत मेहनती थी | क्योंकि वो ऑफिस का सारा काम टाइम से पहले ही पूरा कर देती थी | लिहाज़ा  वह बॉस की फेवरिट भी थी | जहाँ बॉस सबको छुट्टी देने में आना-कानी करता उसको झट से छुट्टी दे देता | ऑफिस के लोगों को उसकी मेहनत नहीं दिखती | दिखती तो बस बॉस द्वारा की गयी उसकी प्रशंसा व् जब तब दी गयी छुट्टियां | अब लोगों ने उसके ऊपर टैग लगा दिया , बॉस की चमची , जरूर बॉस से कुछ चक्कर चल रहा है , चरित्रहीन | एक दिन वो लड़की ऑफिस नहीं आई | बॉस ने ऑफिस की एक जरूरी फ़ाइल उस के घर तक दे आने व् उससे एक फ़ाइल लाने का काम दूसरी लड़की को दे दिया | दूसरी लड़की बॉस को तो मना  नहीं कर सकी पर सारे रास्ते यही सोंचती रही की बॉस की चमची ने तो मुझे भी अपना नौकर बना दिया | अब मुझे उसके घर फ़ाइल पहुँचाने , लाने जाना पड़ेगा | इन सब ख्यालों के बीच  वो उसके घर पहुंची और कॉल बेल दबाई | थोड़ी देर बीत गयी कोई गेट खोलने नहीं आया | उसने फिर बेल दबाई | फिर भी कोई नहीं आया | अब तो उसे बहुत गुस्सा आने लगा | वाह बॉस की चमची सो रहीं होंगी और मैं नौकर बनी घंटियाँ बजा रही हूँ | गुस्से में उसने दरवाज़ा भडभडाया | दरवाज़ा केवल लुढका था इसलिए खुल गया | वो लड़की बडबडाते हुए अंदर  गयी | सामने के कमरे में  एक औरत व्हील चेयर में बैठी थी | उसने धीमी आवाज़ में कहा ,” आओ बेटी , मैं कह रही थी की दरवाज़ा खुला है पर शायद मेरी आवाज़ तुम तक नहीं पहुंची | मेरी बेटी बता गयी थी की तुम फ़ाइल देने आओगी | ये वाली फ़ाइल लेती जाना | बहुत मेहनत करती है मेरी बेटी | ऑफिस का काम , घर का काम , ऊपर से मेरी बिमारी में डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर तक की भाग –दौड़ |पर उसकी मेहनत के कारण ही उसके बॉस जब जरूरत पड़ती है उसे छुट्टी दे देते हैं | अब आज ही सुबह चक्कर आ गया | ब्लड टेस्ट करवाया |रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाने गयी है | इसलिए तुम्हें आना पड़ा | जो लड़की फ़ाइल देने आई थी | जो उसे अभी तक बॉस की चमची कह कर बुलाये जा रही थी बहुत  लज्जित महसूस करने लगी | अरे , बेचारी इतनी तकलीफ में रह कर भी ऑफिस में हम सब से ज्यादा काम करती है | हम सब तो घर में हुक्म चलाते हैं | उसे तो बीमार आपहिज  माँ की सेवा करनी पड़ती है | अपनी उहापोह में वो लौटने लगी |तभी उसे उस लड़की की माँ का स्वर सुनाई दिया ,” बेटा दरवाज़ा बंद करती जाना | और हां , एक बात और हो सकता है यहाँ आने से पहले तुम भी औरों की तरह मेरी बेटी को गलत समझती होगी | उसे तरह – तरह के नाम देती होगी | पर यहाँ आने के बाद सारी  परिस्थिति देख कर तुम्हारी राय बदली होगी | इसलिए आगे से किसी की  पर टैग लगाने से पहले सोंचना | क्योंकि दाग मिट सकते हैं पर टैग नहीं    कहने को यह एक विज्ञापन था | पर इस विज्ञापन को बनाने वाले ने मानव मन की कमी को व्यापकता से समझा था | की हम अक्सर हर किसी पर टैग लगाते फिरते हैं | ये जाने बिना की पर्सनालिटी पर लगे टैग आसानी से नहीं मिटते | पर्सनालिटी टैग  हमारी प्रतिभा को सीमित कर देते हैं आपको याद होगा की अमिताभ बच्चन ने फिल्म अग्निपथ में अपनी आवाज़ बदली थी | जिस कारण लोगों ने फिल्म को अस्वीकार कर दिया | गोविंदा को सीरियस रोल में लोगों ने अस्वीकार कर दिया | राखी सावंत को आइटम नंबर के अतिरिक्त कोई किसी रूपमें देखना ही नहीं चाहता | एक कलाकार, कलाकार होता है | पर वो अपने ही किसी करेक्टर में इस कदर कैद हो जाता है | की उसके विकास के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं | यह हर कला के साथ होता है | चाहे साहित्यकार हो , चित्रकार या कोई अन्य कला | साहित्य से संबंध  रखने के कारण मैंने अक्सर देखा है की एक साहित्यकार को आम बातों पर बोलने से लोग खफा हो जाते हैं |क्योंकि वो उसे उसी परिधि में देखना चाहते हैं | स्त्री विमर्श की लेखिकाएं के अन्य विषयों पर लिखे गए लेख पढ़े जाने का आंकड़ा कम है | … Read more

प्रेम की ओवर डोज

प्रेम का सबसे सही प्रमाण विश्वास है-अज्ञात  निधि की शादी को चार साल हो गए हैं वह पति के साथ नासिक में रहती है | |उसके पति उसे बहुत प्रेम करतें हैं | उसका दो साल का बेटा है | निधि के माता – पिता निधि की ख़ुशी देख कर बहुत खुश होते हैं | अक्सर बताते नहीं थकते उनके दामाद जी उन्की बेटी से कितना प्रेम करते हैं | जब भी निधि मायके आती है साथ – साथ आते हैं और उसे साथ ही वापस ले जाते हैं | जहाँ भी निधि जाना चाहती है अपना हर काम छोड़ कर उसके साथ जाते हैं | अगर कभी निधि को अकेले मायके आना पड़ता है तो दिन में ६ बार फोन कर के उसका हाल – चाल लेते हैं | ऐसी कौन सी पत्नी होगी जो अपने भाग्य पर न इतराए | किसके माँ – पिता ये सब देख कर गर्व न महसूस करते होंगे |लिहाजा निधि के माता –पिता भी हर आये – गए से उसके भाग्य की प्रशंसा करते | जब निधि भी उपस्तिथ होती तो हँस कर हां में समर्थन करती | धीरे – धीरे ये हँस कर किया गया समर्थन मुस्कुरा कर फिर मौन , फिर भावना रहित समर्थन में बदलने लगा | एक दिन उसकी माँ यूँ ही दामाद जी की तारीफ कर रहीं थी तो निधि फूट – फूट कर रोने लगी ,” बस करो माँ , बस करो , वो मुझे प्यार नहीं करते , मुझ पर शक करते हैं | इसी कारण एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते | बार – बार फोन करके कहाँ हो क्या कर रही हो पूंछते रहते हैं | अब मैं थक गयी हूँ माँ , अब नहीं सहा जाता |                                                  अब अवाक रहने की बारी माता – पिता की थी | शक्की पति या पत्नी से निभाना बहुत कठिन होता है | बेटी इतना कष्ट सह रही थी पर उन्हें भनक तक नहीं लगी | कैसे लगती ? प्रेम को हम बहुत फ़िल्मी तरीके से लेते हैं | मुझे ये पुराना गीत याद आ रहा है … बैठा रहे सैंया नैनों को जोड़े /एक पल अकेला वो मुझको न छोड़े नहीं कोई जिया को कलेश /पिया का घर प्यारा लगे क्या हम कभी सोंचते हैं की एक पल अकेला न छोड़ना प्रेम की निशानी नहीं है | ज्यादातर मामलों में प्रेम की इस ओवर डोज के पीछे क्रूर मानसिकताएं छुपी होती हैं | जिनमें शक्की होना , पजेसिव होना या सुपर डोमीनेटिंग होना , होती हैं | अगर शादी के एक साल बाद भी प्रेम की ओवर डोज दिखाई दे रही है तो अपने और अपनी बेटी के भाग्य पर इतराने की जगह मामले की तह तक जाने की जरूरत है | हो सकता है आपकी बेटी , बहन , भांजी , भतीजी की नकली हंसी के पीछे बहुत गहरा दर्द छिपा हो | क्योंकि आजकल ज्यादातर परिवार एकल हैं तो निश्चित तौर पर वो अकेले घुट रही होगी | तब खुल कर बात करने की जरूरत है क्योंकि यह कई बार अवसाद अलगाव या बच्चों की खराब परवरिश के नतीजे ले कर आता है | कैसे पहचाने प्रेम की ओवर डोज को ऊपर  के उदाहरण में  नेहा ने जब तक समझा की ये प्यार नहीं बंधन है तब तब तक बहुत देर हो चुकी थी | नेहा की तरह अनेक लड़कियों /लड़कों को इस बात को समझने में समय लग जाता है की वो प्रेम की ओवरडोज के शिकार हैं |जब तक बात समझ आती है  तब तन शिकार का मानसिक संतुलन बिगड़ चुका होता है | उसका सेल्फ कांफिडेंस ,सेल्फ एस्टीम आदि नष्ट हो चुकी होती है |कई बार वो इस लायक नहीं रहता कि वो बाहर की दुनिया का सामना कर सके | बेहतर है की इसके लक्षणों को समय रहते पहचाना जाए … 1)उसकी एक निगाह हमेशा आप पर रहती हैं | वो हर वक्त ये जानना चाहता है की आप कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं | अगर किसी से बात की तो उससे क्या – क्या बात की | अगर आप उसका फोन नहीं उठाते हैं तो वो आप की माँ , पडोसी दोस्त से फोन कर आपके बारे में जानना चाहेंगे की आप कहाँ हैं ? 2) ये सच है की जीवनसाथी के साथ एक अटूट रिश्ता होता है | फिर भी हर किसी की सहेलियों व् दोस्तों का , पड़ोसियों अपना एक दायरा होता है | जहाँ हम बातें शेयर करते हैं | हँसी  मजाक करते हैं | हर किसी को इस “मी टाइम “ की जरूरत होती है | अगर आप का साथी दूसरों के साथ समय बिताने पर  चिढता है तो आप इसे खतरे का संकेत समझें | 3 )अगर आप का साथी आप को हर बात में डिक्टेट करें , मसलन आप कैसे कपडे पहनें , कैसे चप्पल पहने , पर्स लें या बिंदी लगायें तो सतर्क हो जाएँ | शुरू – शुरू में यह काम वो प्यार के नाम पर करेगा / करेगी |उसका साधारण सा वाक्य होगा की वो आप को बहुत प्यार करता है इस कारण वह आप को सबसे सुन्दर सबसे अलग देखना चाहता है |इस वाक्य पर आप अपनी चाबी उसे आसानी से दे देती हैं | 4 ) आपके जो भी दोस्त , रिश्तेदार – नातेदार विपरीत लिंगी हैं उन्हें वो नापसंद करेगा | शुरू में वो किसी एक के बारे में बात करेगा की उसमें ये कमी है वो कमी है …तुम उससे बात न किया करो | परन्तु अगर ये पैटर्न रिपीट हो रहा है तो आप को सतर्क होने की आवश्यकता है | 5)वो आप की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की इच्छा का न केवल खुल कर विरोध करेगा बल्कि हर संभव प्रयास करेगा कि आप आर्थिक रूपसे उस पर निर्भर रहे | आर्थिक निर्भरता के कारण वो आपको जैसे डिक्टेट करेगा वैसे आप को  पड़ेगा | ६) अधिकतर वो आपसे बिना बात झगडा करते हैं | इसमें वो जरूरत से ज्यादा एग्रेसिव हो जाते हैं | झगडे … Read more

ब्रेकअप बेल्स – समस्या के बीज बचपन में भी दबे हो सकते हैं

यह ब्रेकअप शब्द है तो छोटा सा पर कडवा इतना की इसकी कडवाहट पूरी जिंदगी में भर जाती हैं |यूँ तो  अलगाव या ब्रेकअप किसी भी रिश्ते का हो सकता है | कभी भी हो सकता है |पर कुछ रिश्ते जिन्हें हम सहेजना चाहते हैं , संभालना कहते हैं |चाहते है की उनका अटूट बंधन बना रहे |  उनका ब्रेक अप बहुत पीड़ा दायक होता है | कभी – कभी पूरा ब्रेकअप नहीं होता | फिर भी रिश्ते में पहले जैसी बात नहीं रहती | कुछ ऐसा होता है जो दो लोगों के बीच  स्थिर नहीं रहता | खो जाता है | वो है पहले जैसा प्यार , विश्वास और अपनापन | पर अगर आप किसी भी प्रिय रिश्ते से ब्रेकअप की एनालिसिस करेंगे तो पता चलेगा की कोई भी रिश्ता अचानक से नहीं टूटता | उसके टूटने की बहुत पहले हो चुकी होती है | अन्दर ही अंदर ब्रेक अपबेल्स बजने लगती हैं | जो हमें सुनाई तो दे रही होती हैं पर हम उन्हें अनदेखा करते रहते हैं | शायद तब तक जब तक रिश्ता बिखर न जाए | कितना अच्छा हो अगर हम ब्रेक अप बेल्स सुन सकें और समय रहते अपने रिश्ते को बचा लें | आज मैं एक सच्ची कहनी  कहानी शेयर कर रही हूँ की कैसे उन्होंने  समय रहते ब्रेक अप बेल्स को सुना और  अपने जीवनसाथी के साथ अपने खत्म होते रिश्ते को बचाया | कैसे  समझा की हमारे ताज़ा रिश्तों की  समस्याओं के तार हमारे बचपन में भी छिपे हो सकते है | इस कहानी को शेयर करने का उद्देश्य महज इतना है की अगर आप को भी ब्रेकअप बेल्स सुनाई दे रहीं हैं तो उन्हें अनदेखा न कर समस्या को समझें , समाधान खोजें और अपने खूबसूरत रिश्ते को बचा लें | ब्रेकअप बेल्स – समस्या  के बीज बचपन में भी दबे हो सकते हैं                      मैं खिड़की पर बैठी हुई  हुई थी | बाहर अपने ही घर के फ्रंट गार्डन में लगाए हुए कैक्टस देख रही थी | ये कैक्टस कुछ मैंने लगाये थे कुछ भानु ने | शादी के बाद कितना शौक था मुझे व् भानु को की हम अपने घर का गार्डन सबसे यूनीक बनायेंगे | न जाने कहाँ – कहाँ से ढूंढ कर लाये थे हम कैक्टस | पर अफ़सोस उस समय हमें कहाँ पता था की ये कैक्टस देखने में भले ही कितने सुन्दर लगें पर ये कैक्टस चुभते भी हैं | तार – तार कर देते हैं आत्मा को | विचित्र बात ये थी कि मेरे लगाए कैक्टस भानु को चुभ रहे थे और भानु के लगाये मुझको | लेकिन ये वो कैक्टस नहीं थे जो हमने अपने गार्डन में लगाए थे | ये तो हमारे मन की मिटटी में लग गए थे अपने आप न जाने कब , कैसे हमें अहसास ही नहीं हुआ | अहसास तब हुआ जब वो दूसरे को चुभने लगे | मैं अपने विचारों में डूब उतरा रही थी | तभी भानु मुझे बैग लेकर ऑफिस जाते दिखे | जाते समय बाय करने का रिश्ता तो हमारा कब का खत्म हो गया था | पर आज … आज मैं नहीं रुकी | दौड़ कर भानु के पास गयी और उससे कहा ,” भानु क्या तुम हमारे रिश्ते को एक मौका और दे सकते हो | भानु ने उड़ती सी नज़र मेरे ऊपर डाल कर कहा ,” देखो  निकिता वैसे तो कुछ होने वाला नहीं है | फिर भी इस आखिरी कोशिश में मैं तुम्हारे साथ हूँ |मैं भी नहीं चाहता की हमारे रिश्ते का ऐसा दर्दनाक अंत हो | कहकर भानु चले गए | मुझे ऐसा लगा जैसे एक – एक सांस के लिए तडपते मरीज को किसी ने ऑक्सीजन मास्क दे दिया है | इस शर्त के साथ जब तक रोग का इलाज हो इस मास्क को पह्ने रखो | अगर रोग का इलाज ढूँढने में असफल रहीं तो मास्क छीन लिया जाएगा | मेरे पास समय कम था | पर इतनी ख़ुशी जरूर थी कि अपने रिश्ते को भानु भी बचाना कहते हैं | मैं समय बर्बाद न करते हुए समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास करने लगी | कमरे में प्रवेश करते ही मैं विंड चाइम से टकरा गयी | घंटियाँ बजने लगीं | ऐसी घंटियाँ तो बहुत दिन से बज रहीं थीं पर मैं ही अनसुना कर रही थी | वो सामान्य घंटियाँ नहीं ब्रेकअप बेल्स थी | मेरा और भानु प्रेम विवाह था | जब हम अपने एक कॉमन फ्रेंड की शादी में मिले थे तो लगा था जैसे हमें वो मिल गया जिसकी हमें तलाश थी |भानु बिलकुल वैसे ही थे जो मैं एक पुरुष में ढूंढ रही थी | लविंग , केयरिंग , प्रोटेक्टिव | भानु ने अपना व्यवसाय खुद अपने दम पर जमाया था | नया व्यवसाय किसी बच्चे को पालने जैसा होता है | ये मुझे पता था | उनके ऊपर काम का बोझ बहुत था | फिर भी वो मेरे लिए समय निकालते थे |जैसा की भानु कहते थे की मैं वो लड़की थी जिसे भानु तलाश रहे थे | मैं उच्च शिक्षित थी जॉब करती थी | व् अपनी जिंदगी अपने तरीके से संभाल रही थी | हम अपने रिश्ते से बहुत खुश थे | | हमने अपने घर वालों से बात की | उन्होंने हमारे रिश्ते को स्वीकृति दे दी | और दो महीने की जान पहचान के बाद हमने शादी कर ली | मैं भानु के साथ उसके शहर आ गयी | मैंने जॉब छोड़ दिया | सोंचा था एक दो महीने बाद फिर से कर लूंगी | भानु भी राजी थे |वो मुझे आत्मनिर्भर देखना चाहते थे | फिर ऐसा क्या हुआ की शादी के बाद इन दो महीनों में हम बदल गए | हम वो नहीं रह गए जिससे दूसरे ने कभी प्यार किया था |मैं भानु के पास और पास जाने की कोशिश करती और भानु मुझसे दूर बहुत दूर | मेरा करीब आना उन्हें नागवार गुज़रता और उनकी उपेक्षा मुझे |  हम दोनों का रिश्ते में दम घुटने लगा | फिर भी हमने एक साल रिश्ते को खींचा | हमने हर ब्रेक अप बेल को नज़रअंदाज किया | वो हमारे रिश्ते का … Read more

उलझे रिश्ते : जब हो जीवन साथी से गंभीर राजनैतिक मतभेद

डॉ. गॉटमैन के एक्सपेरिमेंट को समझकर कर रिश्ता बचाने में उठाया गया “अगला कदम” अगर आप इस समस्या से नहीं गुज़र रहे हैं तो आप भले ही शीर्षक पढ़ कर मुस्कुरा दें पर इस पीड़ा को वही समझ सकता है जिसके घर में संसद की तरह रोज पक्ष –विपक्ष की बहस होती हो | कहते हैं की ये समय असहिष्णुता का समय है | लोग सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने से डरते हैं | एक तरह के विचार दूसरे विचारों से टकरा रहे हैं | कई बार इस टकराहट में असामान्य अशिष्ट भाषा का प्रयोग भी होता है |दरसल इसमें समय का कोई दोष नहीं है | अब हर किसी को सोशल प्लेटफोर्म मिला हुआ है | जिस कारण वो अपने विचार रख सकता है | लेकिन अगर विचार विरोधी हों तो ? ये सारी  नोक झोंक इन विचारधारों की लड़ाई के कारण ही है | जहाँ दोनों अपनी बात दूसरे पर थोपना कहते हैं | मनवाना चाहते हैं | क्योंकि उन्हें अपनी ही बात सही लगती है | अक्सर ऐसी ही विचारधाराओं की लड़ाई टी.वी. में जब दो पार्टियां आपस में बहस करती हैं तो देखने को मिलती है | उनका बढ़ा  हुआ ब्लड प्रेशर घर के अन्दर भी ब्लड प्रेशर बढ़ा  देता है | अगर बात टी .वी. की हो या सोशल मीडिया की  तो स्विच आपके हाथ में होता है | पर अगर आप का जीवन साथी ही विपरीत राजनैतिक विचारधारा का हो तो ? शिरीष से जब मेरा यानी निकिता उर्फ़ निक्की का अरेंज विवाह हुआ था तो हम दोनों ने एक साथ एक सुंदर  घर बनाने का सपना देखा था |यूँ तो पति – पत्नी का रिश्ता अटूट बंधन होता है | परन्तु पहले दिन से ही हम दोनों में राजनैतिक विचारधारा के न मिलने के  कारण मनमुटाव होने लगा | मुझे  बहुत धक्का लगा जब मुझे पता चला की मैं वामपंथी या प्रगतिशील और शिरीष दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक हैं | मैं रवीश पर फ़िदा और वो सुभाष चंद्रा  पर | मैं तो कभी कभी सुन भी लेती पर वो तो रविश का  नाम लेते ही चिल्लाने लगते | मैं  कुछ हद तक आधुनिकता की समर्थक वो घोर परंपरा वादी | कुल  मिला कर यह कह सकते हैं की हम दोनों पढ़े – लिखे , अच्छी नौकरी वाले वाले समझदार होते हुए भी हर बात पर उलझ जाते | इतना की एक दूसरे के साथ निभा पाने में असमर्थता लगने लगी थी | अखबार की खबरें हमारे बेडरूम और किचन में ( यानी खाने और सोने में )  हम पर हावी हो रहीं थीं |ये नकारात्मकता  केवल ख़बरों तक ही सीमित नहीं रही | हम विचारधारा के आधार पर एक दूसरे की पर्सनाल्टी को जज करने लगे | हमारा घर कुरुक्षेत्र बनता जा रहा था |कब कैसे ये अटूट बंधन कमजोर पड़ता जा रहा था , हम जानते हुए भी नहीं जान पा रहे थे |   धीरे – धीरे दिन खिसकने लगे | मैं प्रेग्नेंट हो गयी | वैसे शुरू से शिरीष मेरे प्रति लविंग व् केयरिंग रहे हैं , मैं भी उनके प्रति वैसी ही हूँ पर राजनैतिक विचार धारा  की बात आते हुए हम दोनों एक दूसरे को नोच खाने को तैयार हो जाते | हमारी जान का दुश्मन अखबार सुबह – सुबह हमारे घर आ जाता | फिर ख़बरों की ऐनालिसिस में हमारा झगडा शुरू हो जाता | ट्रेन एक्सीडेंट में पक्ष और विपक्ष की क्या भूमिका हैं , अगला प्रधनमंत्री कौन बने , फलाना लीडर ज्यादा भ्रस्ट  है या ढीकाना,हम इस बात में भी लड़ पड़ते | सारा माहौल  बिगड़ जाता | हम दोनों झगड़े टालना चाहते  थे | पर झगड़े हर बात में हो रहे थे | क्योंकि हम एक दूसरे की नेगटिव एनालिसिस करने लगे थे | हमें हर बात में खोंट नज़र आने लगता | हर छोटी से छोटी बात में राजनैतिक दृष्टिकोण की भूमिका लगती | हम साथ रहना कहते थे पर हमारी जिंदगी नरक  होती जा रही थी | प्रेगनेंसी के समय इस बढ़ी हुई एंजाइटी के कारण मेरा स्वास्थ्य बिगड़ने लगा | बच्चे पर खतरा जान कर शिरीष मुझे डॉक्टर के पास ले गए | मेरी समस्या को समझते हुए डॉक्टर ने मुझे मनोचिकित्सक के पास भेज दिया | उन्होंने धैर्य  पूर्वक हमारी समस्या सुनी |उसे समझते देर न लगी की हमारी समस्या क्या है ? उन्होंने  बताया की राजनैतिक विचारधारा को अक्सर महत्व नहीं दिया जाता है परन्तु इससे कई बार घर में नकारात्मकता इतनी बढ़ जाती है की रिश्ता टूट जाता है | फिर मुझे रिलैक्स कर उसने डॉ . गॉटमैन व्के उनके एक्सपेरिमेंट के  बारे में बताया | गॉटमैन का एक्सपेरिमेंट  डॉ .गॉटमैन ने रिश्तों पर प्रयोग किये हैं | उनके अनुसार हर कपल में  झगडा होता है |चाहे गीला तौलिया बिस्तर पर रखने पर हो , खाने में नमक पर हो या आलसीपने पर हो या बिना कारण के हो | पर इतने झगड़ों के बावजूद भी कुछ शादियाँ टिकती हैं और कुछ टूट जाती हैं | इतने झगड़ों के बावजूद आखिर क्या है की कुछ शादियाँ टूट जाती हैं और कुछ टिकी रह जाती हैं | इस  पर 1970 में उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर एक्सपेरिमेंट किया | उन्होंने बहुत सारे जोड़ों को बुलाया और १५ मिनट में अपने किसी विवाद को सुलझा लेने को कहा | वहां उन्होंने उन्हें एक अलग  कमरा दिया | जिसकी रिकार्डिंग हो रही थी | उनका यह प्रयोग नौ साल तक चला | उन टेप्स  को सुनने के बाद व् उन कपल्स को नौ साल तक फॉलो करने के बाद डॉ. गॉटमैन ने यह निष्कर्ष निकाला की किसी भी जोड़े के झगड़ों को सुन कर 90 % सफलता के साथ यह बताया जा सकता है की इनमें से किस का रिश्ता ( शादी ) चलेगी व् किनमें अलगाव हो जाएगा | कैसे निकाला डॉ गॉटमैन ने यह रिजल्ट  इस रिजल्ट को निकालने में डॉ . गॉटमैन का सूक्ष्म निरिक्षण था | उन्होंने झगड़ों के आधार पर मैजिक रेशियो बनाया | जिसके लिए उन्होंने 5 :1 का स्केल चुना | डॉ . गॉटमैन के अनुसार वो कपल जिनका रिश्ता आगे चलना है वो झगडे के दौरान तमाम नेगेटिव बातों के बीच कुछ सकारात्मक … Read more

टफ टाइम : एम्पैथी रखना सबसे बेहतर सलाह है

किसी का दुःख समझने के लिए उस दुःख से होकर गुज़ारना पड़ता है – अज्ञात रामरती देवी कई दिन से बीमार थी | एक तो बुढापे की सौ तकलीफे ऊपर से अकेलापन | दर्द – तकलीफ बांटे तो किससे | डॉक्टर के यहाँ जाने से डर लगता , पता नहीं क्या बिमारी निकाल कर रख दे | पर जब तकलीफ बढ़ने लगी तो हिम्मत कर के  डॉक्टर  के यहाँ  अपना इलाज़ कराने गयी | डॉक्टर को देख कर रामरती देवी आश्वस्त हो गयीं | जिस बेटे को याद कर – कर के उनके जी को तमाम रोग लगे थे | डॉक्टर बिलकुल उसी के जैसा लगा | रामरती देवी अपना हाल बयान करने लगीं | अनुभवी डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी की उनकी बीमारी मात्र १० % है और ९० % बुढापे से उपजा अकेलापन है | उनके पास बोलने वाला कोई नहीं है | इसलिए वो बिमारी को बढ़ा  चढ़ा कर बोले चली जा रहीं हैं | कोई तो सुन ले उनकी पीड़ा | अम्मा, “ सब बुढापे का असर है कह  सर झुका कर दवाई लिखने में व्यस्त हो गया | रामरती देवी एक – एक कर के अपनी बीमारी के सारे लक्षण गिनाती जा रही थी | आदत के अनुसार वो डॉक्टर को बबुआ भी कहती जा रही थी | रामरती देवी : बबुआ ई पायन में बड़ी तेजी से  पिरात  है | डॉक्टर – वो कुछ  नहीं रामरती – कुछ झुनझुनाहट होती है डॉक्टर : वो कुछ नहीं रामरती – तनिक अकड  भी जात है | डॉक्टर – वो कुछ नहीं रामरती – जब पीर उठत है तो डॉक्टर : कहा न अम्मा ,” कुछ नहीं रामरती (गुस्से में ), जब तुम्हारे पिरायेगा , तब कहना कुछ नहीं (आपको क्या लगता है , डॉक्टर को सिर्फ दवा लिखनी चाहिए थी  | या ये जानते हुए की रामरती जी अकेलेपन की शिकार हैं उसे दो मिनट उसकी तकलीफ सुन लेनी चाहिए थी | साइकोसोमैटिक डिसीजिज , जहाँ तन का  इलाज़ मन के माध्यम से ही होता है | डॉक्टर भी उसे ठीक करना चाहता था | शायद उसकी रामरती जी की तकलीफ को नज़रंदाज़ करने की या उपहास उड़ाने की  मंशा नहीं थी , जैसा रामरती जी को लगा | —————————————————————————————————————–                 सुराज की नौकरी चली गयी | वो मुँह लटकाए घर आया | कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला | रिश्तेदारों में खलबली मची | सब उसे समझाने आने लगे | तभी उसका एक रिश्तेदार दीपक आया | वो उसे लगा समझाने ,” अरे एक गयी है हज़ार नौकरियाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही है | “ थिंक पॉजिटिव “ , ब्ला ब्ला ब्ला | थोड़ी देर सुनने के बाद सुराज कटाक्ष करने वाले लहजे में  बोला ,” मुझे पता है की हज़ारो , अरे नहीं लाखों नौकरियां मुझे मिल सकती हैं | मिल क्या सकती हैं , बाहर लोग मुझे नौकरी देने के लिए लाइन लगा कर खड़े हैं | पर अभी मैं अपनी नौकरी छूटने का दुःख मानना चाहता हूँ | क्या आप मुझे इसकी इजाज़त देंगे | | दीपक , ओके , ओके कहता हुआ चला गया | वह सुराज को इस परिस्तिथि से बाहर निकालना चाहता था | पर शायद उसका तरीका गलत था | ——————————————————————————               स्वेता जी के पति का एक महीना पहले स्वर्गवास हो गया था | सहानुभूति देने वालों का तांता लगा रहता | उनमें से एक उनके पड़ोसी नेमचंद जी भी थे | जो उनके प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे | रोज़ उनका हाल पूंछने चले आते | स्वेता जी का का संक्षिप्त सा उत्तर होता ,” ठीक हूँ | “ पर उस दिन स्वेता जी का मन बहुत उदास था | उसी समय नेमचंद जी आ गए , और लगे हाल पूंछने | स्वेता जी गुस्से से आग बबूला हो कर बोली ,” एक महीना पहले मेरे पति का स्वर्गवास हुआ है | आप को क्या लगता है मुझे कैसा होना चाहिए | चले आते हैं रोज़ , रोज़ पत्रकार बन के | नेमचंद जी मुँह लटका कर चले गए | वो सहानुभूति दिखाना चाहते थे पर तरीका गलत था | ………………………………………………..                कई बार हमें समस्याओं से जूझते वक्त एक बुद्धिमान दिमाग के तर्कों के स्थान पर एक खूबसूरत दिल की आवश्यकता होती है , जो बस हमें सुन सकें                                बात तब की है जब मैं अपनी सासू माँ के साथ रिश्तों की कुछ समस्याओं से जूझ रही थी | मैं चाहती थी की घर का वातावरण सुदर व् प्रेम पूर्ण हो | पर कुछ समस्याएं ऐसी आ रही थी | जिनको डील करना मेरे लिए असंभव था | हर वो स्त्री जो अपने परिवार को जोड़े रखने में विश्वास करती है , कभी न कभी इस फेज से गुजरती है | व् इसकी पीड़ा समझ सकती है | मैं  समस्याओं को सुलझाना चाहती थी पर असमर्थ थी | लिहाजा मैंने  सलाह लेने की सोंची | मैंने इसके लिए अपनी माँ को चुना | मुझे लगता था , माँ मेरे समस्या अच्छे से सुनेगी व् समाधान भी देंगी | क्योंकि बचपन से अभी तक मैंने माँ को सदा एक सुलझी हुई महिला के रूप में देखा है | समस्याओं को सुलझाना , रिश्तों को निभाना , व् सब को सहेज कर रखना ये उनके बायें हाथ का खेल रहा है | मैंने माँ को फोन लगाया | हेलो , की आवाज़ के साथ ही मैंने रोना शुरू कर दिया | एक – एक करके अपनी सारी  समस्याएं बता दी | माँ , बीच – बीच में ओह ! , अच्छा , अरे कह कर सुनती जा रही थी | मैंने बात खत्म करके माँ से पूंछा माँ , आपको क्या लगता है | इस परिस्तिथि में मुझे क्या करना चाहिए | माँ धीरे से अपने शब्दों में ढेर सारा प्यार भर कर  बोली , बेटा , मुझे पता है  तुम कितनी तकलीफ से गुज़र रही हूँ | मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ | पर मुझे विश्वास है तुम इससे निकल जाओगी |”  पढ़िए –नाउम्मीद करती उम्मीदें           … Read more

आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू

कहते हैं जहाँ प्यार है वहां तकरार भी है | दोनों का चोली –दामन का साथ है | ऐसे में कोई अपना खफा हो जाए तो मन  का अशांत हो जाना स्वाभाविक ही है | वैसे तो रिश्तों में कई बार यह रूठना मनाना चलता रहता है | परन्तु कई बार आप का रिश्तेदार थोड़ी टेढ़ी खीर होता है | यहाँ  “ रूठा है तो मना  लेंगे “ कह कर आसानी से काम नहीं चलता |वो ज्यादा भावुक हो या   उसे गुस्सा ज्यादा आता है , जरा सी बात करते ही आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलता हो , जल्दी मानता ही नहीं हो तो फिर आप को उसको मनाने में पसीने तो जरूर छूट जाते होंगे | पर अगर रिश्ता कीमती है और आप उसे जरूर मानना चाहेंगे | पर सवाल खड़ा होता होगा ऐसे रिश्तेदार को मनाये तो मनाये कैसे | ऐसा  ही किस्सा रेशमा जी के साथ हुआ | आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू                 हुआ यूँ की एक दिन हम सब शाम को रोज की तरह  पार्क में बैठे मोहल्ले की बुजुर्ग महिला मिश्रा चाची जी से जीवन की समस्याओं और उनके समाधान की चर्चा कर रहे थे | तभी  रेशमा जी  मुँह लटकाए हुए आई | अरे क्या हुआ ? हम सब के मुँह से अचानक ही निकल गया | आँखों में आँसू भर कर बोली क्या बताऊँ ,” मेरी रिश्ते की ननद है ,मेरी सहेली जैसी  जब तब बुलाती हैं मैं हर काम छोड़ कर जाती हूँ |वह भी मेरे साथ उतनी ही आत्मीयता का व्यवहार  करती है |  अभी पिछले दिनों की बात है उन्होंने फोन पर Sms किया मैं पढ़ नहीं पायी | बाद में पढ़ा तो घर के कामों में व्यस्त होने के कारण जवाब नहीं दिया | सोचा बाद में दे  दूँगी | परन्तु तभी  उनका फोन आ गया | और लगी जली कटी सुनाने , तुम ने जवाब नहीं दिया , तुम्हे फीलिंग्स  की कद्र नहीं है , तुम रिश्ता नहीं चलाना चाहती हो | मैं अपनी बात समझाऊं तो और हावी हो जाए |आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चला |  यह बात मैं अभी बता रही हूँ पर अब यह रोज का सिलसिला है | ऐसे कब तक चलेगा ? बस मन  दुखी है | इतनी पुरानी दोस्ती जरा से एस एम एसऔर बेफालतू के आरोप –प्रत्यारोप  की वजह से टूट जायेगी | क्या करूँ ?          हम सब अपने अपने तर्क देने लगे | तभी मिश्रा चाची मुस्कुरा कर बोली ,” दुखी न हो जो हुआ सो हुआ ,ऐसे कोई नाराज़  हो ,गुस्सा दिखाए, आरोप –प्रत्यारोप का एक लम्बा दौर चले तो मन उचाट होना स्वाभाविक है | पर कई बार रश्ते हमारे लिए कीमती होते हैं हम उन्हें बचाना भी चाहते हैं | पर आरोप -प्रत्यारोप के दौर की वजह से बातचीत नहीं करने का या कम करने का फैसला भी कर लेते हैं | ज्यादातर किस्सों में होता यह है की इन  बेवजह के विवादों में ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिसकी वजह से उस रिश्ते को आगे चलाना मुश्किल हो जाता है | जरूरत है इन  अनावश्यक विवादों से बचा जाए | और यह इतना मुश्किल भी नहीं है | बस थोड़ी सी समझदारी दिखानी हैं |   हम सब भी चुप हो कर चाची की बात सुनने लगे | आखिर उन्हें अनुभव हमसे ज्यादा जो था | जो हमने जाना वो हमारे लिए तो बहुत अच्छा था | अब मिश्रा  चाची द्वारा दिए गए सूत्र आप भी सीख ही लीजिये | चाची ने कहना शुरू किया ,” ज्यादातर वो लोग जो झगडा करते हैं उनके अन्दर  किसी चीज का आभाव या असुरक्षा  होती है| बेहतर है की उनसे तर्क –वितर्क न किया जाए | पर अगर अगला पक्ष करना ही चाहे तो बस कुछ बातें ध्यान में रखें ……….. उनकी बात का समर्थन करों                सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा | अरे कोई हम पर ब्लेम लगा रहा है और हम हां में हां मिलाये | पर यही सही उपाय है | अगर दूसरा व्यक्ति भावुक व् गुस्सैल है तो जब वो ब्लेम करें तो झगडे को टालने का सबसे बेहतर और आसान उपाय है आप उसकी बात से सहमति रखते  हुए उनके द्वारा लगाये हुए कुछ आरोपों को सही बताएं | पर ध्यान रखिये अपनी ही बात से अटैच न हों | जब आप अगले से सहमती दिखाएँगे तो उसके पास झगडा करने को कुछ रह ही नहीं जाएगा | आप उन आरोपों में से सब को सच मत मानिए पर किसी पॉइंट को हाईलाईट कर सकते हैं की हां तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ | या आप अपनी बात इस तरह से रख सकते हैं की सॉरी मेरी इस असावधानी पूर्वक की गयी गलती से आप को तकलीफ हुई | इससे आप कुछ हद तक आरोपों को डाईल्युट  कर पायेंगे व् उसके गुस्से का कारण समझ पायेंगे व् परिस्तिथि का पूरा ब्लेम लेने से भी बच  जायेंगे | बार –बार दोहराइए बस एक शब्द     सबसे पहले तो इस वैज्ञानिक तथ्य को जान लें की जब कोई व्यक्ति भावुक निराशा या क्रोध में होता है तो वो एक ड्रंक ( मदिरा पिए हुए ) व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है | ऐसे में व्यक्ति का एड्रीनेलिन स्तर बढ़ जाता है | जिससे शरीर में कुछ क्रम बद्ध प्रतिक्रियाएं होती हैं व् कई अन्य हार्मोन निकलने लगते हैं | इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रासायनिक तौर पर “ एड्रीनेलिन ड्रंक “ भी कहा जाता है | क्योंकि इस स्तिथि में सामान्य व्यवहार करने , कारण को समझने और अपने ऊपर नियंत्रण रखने की हमारी मानसिक क्षमता पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी होती है | ऐसे में आप उनको समझा नहीं सकते हैं |  आप ने ग्राउंड हॉग के बारे में सुना होगा | यह एक ऐसा पशु है जो सर्दियों के ख़त्म होने के बाद जब हाइबरनेशन से बाहर निकलता है और धूप  में अपनी ही परछाई देख लेता है तो उसी शीत ऋतु  ही समझ कर वापस बिल में घुस जाता है | इस तरह से उसकी शीत ऋतु एक महीना और लम्बी हो जाती है | … Read more

इमोशनल ट्रिगर्स –क्यों चुभ जाती है इत्ती सी बात

ज्ञान वह क्षमता है जिससे हम अपने गहरे दर्द भरे घाव को भर सकें हाय फ्रेंड्स             मैं मीरा | आज मैं आप के साथ एक किस्सा बाँटना चाहती हूँ | जिसमें सिर्फ मेरा ही नहीं हम सब का मनो विज्ञान छिपा है | बात तब की है जब मैं इस इस कालोनी में नयी – नयी रहने आई थी | और सुधा के रूप में मुझे एक अत्यंत सुलझी हुई महिला पड़ोसन केर रूप में मिली |हम दोनों की अक्सर बातचीत होने लगी |  जाहिर सी बात है हम दोनों के विचार मिलते थे  व् हम  दोनों  को आपस में बात करना अच्छा लगता था  | हम दोनों घंटों बात करते | पर जब सुधा ये  बताती की उसने खाने में क्या बनाया है | या उसके पति ने उसके बनाये खाने की तारीफ़ में क्या – क्या कशीदे पढ़े तो मैं  अपसेट सी हो जाती | कहीं न कहीं मैं  हर्ट फील करती |एक दिन तो अति हो गयी | मैंने  ने गाज़र का हलवा बनाया व् बड़े प्रेम से सुधा को परोसा | सुधा ने हलवे की तारीफ़ करते हुए कहा , बना तो बहुत अच्छा है पर अगर तुम थोड़ी देर और आंच पर रखती तो शायद और बेहतर बनता | सुनते ही मैं आगबबुला हो गयी और सुधा से तीव्र स्वर में बोली ,” क्या मतलब है आपका , क्या मुझे हलवा बनाना नहीं आता | या आप अपने को किचन क्वीन समझती हैं | अरे आप के पति आप के खाने की प्रशंसा कर देते हैं तो आप को लगता है की आप सबसे बेहतर हो गयी | मेरे हलवे की बुराई करने के लिए धन्यवाद |इतना ही नहीं उनके जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक अनाप शनाप जाने क्या – क्या कहती रही |  सुधा को बहुत बुरा लगा | उसने मोहल्ले भर में बात फैला दी | मीरा तो दोस्ती करने लायक ही नहीं है | गुस्सा तो नाक पर रखा रहता है |  आखिर बस इतनी सी बात पर  इतना गुस्सा क्यों हो गयी | जब लगे सब खत्म हो गया है                    काफी देर बाद जब मुझे होश आया | तो मुझे भी बहुत अफ़सोस हुआ | आखिर इत्ती सी बात पर मैंने न जाने क्या – क्या कह दिया | फिर मैंने अपने पूर्व अनुभवों को याद किया की अनेकों बार मैं इत्ती सी बात पर हर्ट हो जाती हूँ | मेरे कई रिश्ते इसी बात पर टूटे | ये मेरा एक पैटर्न था | पर अब मैं इसे बदलना चाहती थी | मैं दुबारा सुधा से दोस्ती करना चाहती  थी | या कम से कम इतना चाहती थी की अब जिससे दोस्ती करु वो रिश्ता न टूटे | इसलिए मैंने गहन पड़ताल की और पाया की  बात सिर्फ मेरी या सुधा की नहीं है हम सब अनेकों बार किसी की बस इतनी सी बात पर बहुत नाराज़ हो जाते हैं या कोई हमारी बस इतनी से बात पर बहुत नाराज़ हो जाता है | हमें समझ नहीं आता  की हमारे या किसी दूसरे के लिए ये इत्ती सी बात इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो जाती है | हां ये जरूर है की हमारी इत्ती सी बात दुसरे की इत्ती सी बात से अलग होती है | अब जब भी आपको इत्ती सी बात पर गुस्सा आये तो जरा गौर करियेगा की आपको उस बात पर गुस्सा आ रहा है या उसके पीछे कोई इतिहास है | दरसल हम सब के इमोशनल ट्रिगर्स होते हैं | उन का संबंध अतीत के हमारे किसी दर्द , किसी अधूरी इच्छा या किसी अपेक्षा से होता है | हम अपने सर पर एक बहुत बड़ा बोझा ढो  रहे होते हैं | उस बोझे के साथ हम किसी तरह से संतुलन बना कर चल रहे होते हैं | पर जब ये इत्ती सी बात का वजन बढ़ जाता है तो हमारा संतुलन टूट जाता है | उदहारण के तौर पर इत्ती सी बात के अपने इमोशनल ट्रिगर्स  बता रही हूँ                          मैं अपने पति से अपने बनाये खाने की प्रशंसा सुनना चाहती थी |मैं  अच्छे से अच्छा खाना बनाती और परोसती पर वो चुपचाप बिना कोई एक्सप्रेशन दिए हुए खा  लेते | मैंने कई बार टोंका तो वो बस इतना उत्तर दे देते की वो खाने के लिए नहीं जीते , उन्हें और भी जरूरी काम करने हैं जिंदगी में | और मैं चुपचाप झूठी प्लेटें उठाने  में लग जाती |  कारण चाहें जो भी रहा हो पर मेरे  पति ने मेरी  ये इच्छा पूरी नहीं की | धीरे – धीरे मुझे को लगने लगा की मैं  अच्छा खाना नहीं बनाती | पर जब मैं खुद अपना बनाया खाना चखती तो मेरी पाककला मेरी अपने प्रति  स्वयं ही बनायी धारणा  के खिलाफ चुगली कर देती | मेरा दिल और दिमाग अलग – अलग बोलता | मैं बहुत असमंजस में पड़ जाती |ऐसे में जब कोई ये बताता की उसके पति उसके बनाये खाने की कितनी प्रशंसा करते हैं तो कहीं न कहीं मेरा दर्द उमड़ आता और मैं खुद पर काबू न कर पाती | मैंने यही चीज कुछ और लोगों में भी देखी … नाउम्मीद करती उम्मीदें ·        निधि ने आई आई टी की तैयारी की पर exam से ठीक पहले बीमार पड़ गयी | वो आई आई टी में सफल नहीं हो पायी | हालांकि उसने अच्छे एन  आई टी  से शिक्षा हासिल की पर जब कोई आई आई टी की तारीफ़ करता है तो वो हर्ट हो जाती है | यहाँ तक की परिवार के अन्य बच्चों के सिलेक्शन की खबर सुन कर वो लम्बा भाषण दे डालती है की आई आई टी जीवन में सफलता की गारंटी नहीं है | कहते  –कहते उसका स्वर  उग्र हो जाता और साफ़ पता चल जाता की उसे बुरा लगा है |  ·        निकिता जी का बेटा विदेश में रहता है | वो यहाँ अकेले बुढापे में रह रहीं हैं | जब कोई अपने बेटे की सेवा भाव की तारीफ़ करता तो बात उन्हें चुभ जाती |·        मीता की माँ भाई – भाभी के पास रहती हैं | भाई – भाभी दोनों उनका ख्याल नहीं रखते हैं | मीता अपना ये … Read more

खिलो बच्चो , की मेरे सपनों की कैद से आज़ाद हो तुम्हारे सपने

ये जिंदगी हमेशा नहीं रहने वाली है | वो क्षण जो अभी आपके हाथ में सितारे की तरह चमक रहा है ,ओस की बूँद की तरह पिघल जाने वाला है | इसलिए वही काम, वही चुने जिसे आप सच में प्यार करते हों – नीना सिमोन                         जीवनसाथी  साथ केवल वो व्यक्ति ही नहीं होता जिसके साथ हम सात फेरे ले कर जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाते हैं | जीवन साथी वो काम भी होता है जिससे न सिर्फ हमारा घर चलता है बल्कि उसे करने में हमें आनंद भी आता हियो और संतोष भी मिलता है | परन्तु ऐसा हमेशा नहीं हो पाता क्योंकि माँ – पिता ने अपने बच्चों के लिए सपने देखे होते हैं और वो उसे उसी दिशा में मोड़ना चाहते हैं | कई बार ये दवाब इतना ज्यादा होता है की नन्ही आँखें अपने सपने आँखों में ही कैद करे रहती हैं उन्हें बाहर निकालने की हिम्मत भी नहीं कर पाती हैं | ये सपने उनकी आँखों में पानी बन  तैरते रहते हैं और डबडबायी आँखों से उनका जीवन पथ धुंधला करते रहते हैं | क्या ये जरूरी नहीं की पेरेंट्स अपने बच्चों का दर्द समझे और उन्हें उनके सपने पूरा करने में सहयोग दें | अगर ऐसा हो जाता है तो दोनों का ही जीवन बहुत खुशनुमा बहुत आसान हो जाता है | ऐसी ही हिम्मत प्रिया ने दिखाई | जिसने अपनी बेटी को वो पथ चुनने दिया जो उनके लिए बिलकुल अनजान था | उससे भी बड़ी बात ये थी की प्रिया के सपनों के पथ पर कुछ साल चल चुकी थी | अब  अपने सपने पाने के लिए उसे उतना ही वापस लौटना था | ये फैसला दोनों के लिए आसान नहीं था पर उसको लेते ही दोनों की जिंदगी आसान बन गयी | प्रिया अपनी कहानी कुछ इस तरह से सुनाती हैं …. जब मोटिवेशन , डीमोटिवेट करे कई सालपहले की बात है जब प्रिया के भाई की शादी थी | उसने बड़े मन से तैयारी की थी | एक – एक कपडा मैचिंग ज्वेलरी खरीदने के लिए उसने घंटों कड़ी धुप भरे दिन बाज़ार में बिताये थे | पर सबसे ज्यादा उत्साहित थी वो उस लहंगे के लिए जो उसने अपनी ६ साल की बेटी पिंकी  के लिए खरीदा था | मेजेंटा कलर का | जिसमें उतनी ही करीने हुआ जरी का काम व् टाँके गए मोती , मानिक | उसी से मैचिंग चूड़ियाँ , हेयर क्लिप व् गले व् कान के जेवर यहाँ तक की मैचिंग सैंडिल भी खरीद कर लायी थी | वो चाहती थी की मामा की शादी में उसकी परी सबसे अलग लगे | जिसने भी वो लहंगा देखा | तारीफों के पुल बाँध देता तो  प्रिया की ख़ुशी कई गुना बढ़ जाती | शादी का दिन भी आया | निक्ररौसी से एक घंटा पहले पिंकी लहंगा पहनते कर तैयार हो गयी | लहंगा पहनते ही पिंकी ने शिकायत की माँ ये तो बहुत भारी है , चुभ रहा है | प्रिया  ने उसकी बात काटते हुए कहा ,” चुप पगली कितनी प्यारी लग रही है , नज़र न लग जाए | उपस्तिथित सभी रिश्तेदार भी कहने लगे ,” वाह पिंकी तुम तो परी लग रही हो |एक क्षण के लिए तो पिंकी खुश हुई | फिर अगले ही क्षण बोलने लगी , माँ लहंगा बहुत चुभ रहा है भारी है | प्रिया  फिर पिंकी को समझा कर दूसरे कामों में लग गयी | पर पिंकी की शिकायत बदस्तूर जारी रही | बरात प्रस्थान के समय तक तो उसने रोना शुरू कर दिया | वो प्रिया  का हाथ पकड़ कर बोली माँ मैं ठीक से चल नहीं पा रही हूँ मैं शादी क्या एन्जॉय करुँगी | प्रिया  को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे | अगर पिंकी लहंगा नहीं पहनेगी तो इतने सारे पैसे बर्बाद हो जायेंगे , जो उसने लहंगा खरीदने के लिए खर्च किये थे | फिर वो इस अवसर पर पहनने के लिए कोई दूसरा कपडा भी तो नहीं लायी है | नाक कट जायेगी | पर उससे पिंकी के आँसूं भी तो नहीं देखे जा रहे थे | अंतत : उसने निर्णय  लिया और पिंकी का लहंगा बदलवा कर साधारण सी फ्रॉक पहना दी | पिंकी माँ से चिपक गयी | प्रिया  भी मुस्कुरा कर बोली ,”जा पिंकी अपनी आज़ादी एन्जॉय कर “ फिर तो पूरी शादी में पिंकी छाई  रही | हर बात में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया | क्या डांस किया था उसने | सब उसी की तारीफ़ करते रहे |  नाउम्मीद करती उम्मीदें                                   बरसों बाद आज माँ बेटी उसी मोड़ पर खड़े थे | पिंकी मेडिकल सेकंड ईयर की स्टूडेंट है |उसको डॉक्टर बनाने का सपना प्रिया  का ही था | पिंकी का मन तो रंगमंच में लगता था , फिर भी उसने माँ का मन रखने के लिए जम कर पढाई की और इंट्रेंस क्लीयर किया | कितनी वह वाही हुई थी प्रिया की | कितनी भाग्यशाली है | कितना त्याग किया होगा तभी बेटी एंट्रेंस क्लीयर कर पायी | प्रिया गर्व से फूली न समाती | परन्तु पिंकी ने इधर मेडिकल कॉलेज जाना शुरू किया उधर उसका रंगमंच से प्रेम उसे वापस बुलाने लगा | उसने माँ से  कहा भी पर प्रिया ने उसे समझा – बुझा कर वापस पढाई में लगा दिया | पिंकी थोड़े दिन तो शांत  रहती | फिर वापस उसका मन रंगमंच की तरफ दौड़ता | करते – करते दो साल पार हो गए | पिंकी थर्ड इयर में आ गयी | अब उसका मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगने लगा | वो अवसाद में रहने लगी | प्रिया को भय बैठ गया | अगर इसने पढ़ाई छोड़ दी तो समाज को क्या मुँह दिखायेगी | सब चक – चक   करेंगे | फिर दो साल में पढाई में इतने पैसे भी तो लगे हैं उनका क्या होगा | वो तो पूरे के पूरे बर्बाद हो जायेंगे | पर बेटी का अवसाद से भरा चेहरा व् गिरती सेहत भी उससे नहीं देखी  जा रही थी | अंतत : उसने निर्णय लिया और एक कागज़ पर … Read more

गहरा दुःख : आओ बाँट ले दर्द शब्दों से परे

सबसे पीड़ादायक वो ” गुड बाय ” होते हैं जो कभी कहे नहीं जाते और न ही कभी उनकी व्याख्या की जाती है | -अज्ञात   सुख – दुःख जीवन के अभिन्न अंग हैं | परन्तु कुछ दुःख ऐसे होते हैं , जो कभी खत्म नहीं होते | ये दुःख दिल में एक घाव कर के रख देते हैं | हमें इस कभी न भरने वाले घाव के साथ जीना सीखना होता है |  ये दुःख होता है अपने किसी प्रियजन को हमेशा के लिए खो देने का दुःख | जब संसार बिलकुल खाली लगने लगता है | व्यक्ति जीवन के दांव में अपना सब कुछ खो चुके एक लुटे पिटे जुआरी की तरह  समाज की तरफ सहारा देने की लिए कातर दृष्टि से देखता है | परन्तु समाज का व्यवहार इस समय बिलकुल  अजीब सा हो जाता है | शायद हम सांत्वना के लिए सही शब्द खोज नहीं पाते हैं और दुखी व्यक्ति का सामना करने से घबराते हैं या हम उसे जल्दी से जल्दी बाहर निकालने के लिए ढेर सारे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं | जो उस अवस्था में किसी धार्मिक ग्रन्थ के तोता रटंत से अधिक कुछ भी प्रतीत नहीं होता |                                      ऐसा ही अनुभव मुझे अपने पिता की मृत्यु  पर हुआ था | जब दिल्ली में हम इस घर में नए – नए शिफ्ट हुए | जल्द ही आस – पड़ोस से दोस्ती हो गयी थी | हम कुछ सामाजिक कार्यक्रमों में भी व्यस्त थे | तभी पिता जी के न रहने का दुखद समाचार मिला | अपने हर छोटे बड़े निर्णय जिस पिता का मुँह देखते थे उन का साया सर से उठ जाना  ऐसा लगा जैसे दुनिया बिलकुल खाली हो गयी हैं | वो स्नेह का कोष जिससे जीवन सींचते थे | अचानक से रिक्त हो गया , अब जीवन वृक्ष कैसे आगे बढेगा | अपने अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा | परन्तु इस समय में जब मुझे अपनों की बहुत ज्यादा आवश्यकता थी | अपनों का समाज का व्यवहार बड़ा ही विचित्र लगा | टर्मीनली इल – कुछ लम्हें जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ                    जहाँ मेरे निकट जन , सम्बन्धी मुझे जल्दी से जल्दी बाहर निकालने का प्रयास करने में एक हद तक मुझ पर दवाब डाल रहे थे | उनके द्वारा कही गयी ये सब बातें …अब वो बातें मत सोंचों , पार्क जाओ , घूमों फिरो , बच्चों के लिए कुछ अच्छा बनाओं , कुछ नया सामान  लाओ, मुझे बेमानी लग रही थी | क्या वो मेरा दुःख नहीं समझ पा रहे है | उनकी एक्सपेक्टेशन्स इतनी बचकानी क्यों है ? मेरे हाथ में कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है की मैं पुरानी यादों को एकदम से डिलीट करके , जिंदगी को “फ़ास्ट फारवर्ड “ कर सकूँ | वही दिल्ली वापस आने पर अचानक से मेरे पड़ोसियों का व्यवहार बड़ा विचित्र हो गया | वो जैसे मुझे कन्नी काटने लगे | कभी सड़क पर अचानक से मिल जाने पर “ वेलकम स्माइल “ भी नहीं मिलती | जैसे मैं हूँ ही नहीं | पिता को खोने के गम के साथ  – साथ मैं अजीब सी रिक्तता से घिरती जा रही थी | स्नेह की रिक्तता , अपने पन की रिक्तता | जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया                    हालंकि बाद में मुझे  अहसास हुआ की दोनों में से कोई गलत नहीं थे | जहाँ एक और मेरे अपने येन केन प्रकारेंण मुझे सामान्य जिंदगी में देखना चाहते थे | ताकि उनकी भी जिन्दगी सामान्य हो सके | वो मेरे शुभचिंतक थे | वो मुझे इस हालत में छोड़ना नहीं कहते थे | परन्तु उनकी सामन्य जिन्दगी मेरी असमान्य जिन्दगी  में अटक गयी थी | मेरे सामान्य होने पर वो अपनी सामान्य जिंदगी आसानी से जी सकते थे | शायद इसी लिए मुझे जल्दी से जल्दी सामान्य करने के लिए वो मुझ पर शब्दों की बमबारमेंट कर रहे थे | और उनके जाने के बाद मैं चीखने जैसी स्तिथि में  सर पकड कर सोंचती ,” अब मत आना मुझे समझाने , ये सारा ज्ञान मेरे पास है , फिर भी मैं नहीं निकल पा रही हूँ | वहीं दूसरी ओर जैसा की एक पड़ोसन ने बताया की हमारी दोस्ती नयी थी | और उस समय मेरा चेहरा इतना दुखी दिखता था की वो ये समझते हुए भी की मैं बहुत दुखी हूँ कुछ कह नहीं पाती | सही शब्दों की तालाश में वो अपना मुँह इधर – उधर कर लेती | और मैं बेगाना सा महसूस करती रहती | यह सही कहने का नहीं , सही करने का वक्त है         एक तरफ शब्दों  की अधिकता , दूसरी तरफ शब्दों की कमी … क्या हम सब इसी के शिकार नहीं हैं ? क्या हम सब किसी दुखी व्यक्ति को सांत्वना देना कहते  हुए भी दे नहीं पाते हैं | किसी को हमेशा के लिए खो देने के अलावा भी कई ऐसी परिस्तिथियाँ होती हैं | जहाँ हमें समझ नहीं आता  है की हम क्या कहें | जैसे किसी का डाइवोर्स हो जाने पर , किसी की नौकरी छूट  जाने पर या किसी को  ठीक न होने वाले कैंसर की खबर  सुन  कर | अक्सर ऐसी परिस्तिथियों में हम सही शब्द नहीं खोज पाते | तब या तो जरूरत से ज्यादा बोलते हैं या जरूरत से कम | वास्तव में किसी को सांत्वना देने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ख़याल रखना चाहिए | सब से पहले खुद को संभालें –             जब भी आप को अपने किसी प्रियजन  या जान – पहचान वाले के जीवन में हुए किसी हादसे या दुखद घटना का पता चलता है तो  जाहिर है आप को भी बहुत दुःख लगेगा | ऐसे में जब आप उससे मिलने जायेंगे तो आप उसका कितना भी भला चाहते  हों आप भी तनाव में आ जायेंगे | आप के दिल की धडकन भी बढ़ जायेगी , रक्त चाप बढ़ जाएगा और एक तरह का स्ट्रेस महसूस होगा | ऐसे में आप कभी भी सही शब्द नहीं खोज पायेंगे |याद रखिये आप उसे संभालने जा रहे हैं न की उसका तनाव बढाने | इसलिए पहले खुद को संभालिये | जब आप खुद को संभालेंगे | तनाव मुक्त होंगे , तभी आप सही शब्द खोज पायेंगे और दूसरे को … Read more

जब मोटिवेशन ,डीमोटिवेट करें – मुझे डिफेंसिव पेसिमिज्म से सफलता मिली

जो आशावादी  था उसने हवाई जहाज बनाया , जो डिफेंसिव पेसिमिस्ट था उसने पैराशूट बनाया | दोनों ही सफल हैं व् समाज के लिए जरूरी भी |                      मैं मालविका वर्मा , मेडिकल फोर्थ इयर स्टूडेंट हूँ | आज जब मैं सफलता के नए अध्याय  लिख रही हूँ तो पीछे पलट कर देखने पर मुझे अपने वो तीन ड्राप ईयर’स और उनमें की गयी गलतियां याद आती हैं | जब मैं लगातार असफल हो रही थी | मेरा सपना डॉक्टर बनने का था और मैं  किसी भी प्रकार उसका इंट्रेंस क्लीयर करना चाहती थी | मैंने भी ठान ली थी चाहें कुछ भी हो जाए मुझे ये इंट्रेंस एग्जाम क्लीयर करना ही है | फिर भी मैं असफल हो रही थी | दरसल मेरी गलती मेहनत में नहीं मेरी स्ट्रेटजी में थी | जो की अपने मूल स्वाभाव को न समझ पाने के कारण हुई |                             शुरू से ही मेरे घर में पढाई का बहुत अच्छा  वातावरण था  | मेरे पिता आई आई एम अहमदाबाद से गोल्ड मेडीलिस्ट व् माँ एक नामी स्कूल में प्रिंसिपल है | बचपन से ही मेरे ऊपर दवाब था |दो जीनियस लोगों की बेटी को अच्छा तो करना ही चाहिए | आखिर कार जींस जो मिले हैं |  और था भी सही | शुरू से ही मेरे माता – पिता ने मेरी पढाई का बहुत ध्यान रखा | माँ मुझे घर आने के बाद  नियम से पढ़ाई कराती  और पिताजी न सिर्फ मुझे एक से बढ़कर एक बुक्स मुहैया कराते बल्कि यूँ खेलते – खेलते न जाने कितनी जानका रियाँ दे देते | इस तरह से कह सकते हैं की बचपन से ही मेरा आई क्यू बहुत स्ट्रांग हो गया | साथ ही मेरे सपने भी | मैं भी अपने माता – पिता के पदचिन्हों पर चलकर कुछ बेहतर करना चाहती थी | जिससे वो मुझ पर फक्र कर सकें | मेरे ऊपर दवाब भी था और मेरे अनवरत प्रयास भी जारी थे | मैं खेल के समय में कटौती करके पढ़ाई करती मुझे मेडिकल एंट्रेंस जो क्लीयर करना था | माँ और पिता भी मुझे असफल जीवन से डराते भी थे | या यूँ कहिये की मुझे असफलता बहुत भयभीत करती |इसलिए मैं असफल; होने का हर कारण सोंच कर पहले से ही उस द्वार को बंद कर देती | मैं लगातार सफल होती जा रही थी | इस कारण मुझ पर दवाब बढ़ रहा था | १२ th तक सब अच्छा चला | पर मेडिकल में मैं कुछ नंबर  से रह गयी | मैंने ड्राप करके दुबारा एग्जाम देने का मन बनाया | जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया                   इसी समय बहुत से लोगों ने मुझे राय देना शुरू किया | तुम पॉजिटिव सोंचा करो | पॉजिटिव सोंचने से रिजल्ट अच्छे आते हैं | मुझे बात सही लगी | मैं बाज़ार से ढेर सारी  किताबें पॉजिटिव थिंकिंग की ले आई | अच्छा सोंचो , ऊँचे सपने देखो , अच्छे एंड रिजल्ट की कल्पना करो , अपने आत्मविश्वास को बढाओ … और छू लो आसमान | मुझे सब कुछ बहुत आसान लगा | मैं खुद को डॉक्टर के रूपमें देखती , मैं कल्पना करती की मैं सारे exam बहुत अच्छे दे रही हूँ , मैं आत्म विश्वास से भरी हुई हूँ | पर खुश होने के  स्थान पर रिलैक्स होने से  मेरा तनाव बढ़ जाता |यहाँ मैं बता दूं मैंने सपनों और कल्पनाओं को जीया तो जरूर पर मेहनत में कोई कमी नहीं की | फिर भी रिजल्ट सही नहीं  आया | यहाँ तक की इस बार मेरे पिछली  बार से भी कम नंबर आये | मेरा आत्मविश्वास डगमया पर मैंने फिर प्रयास करने की ठानी | अब की मैंने मेहनत और बढा दी , साथ ही साथ खुद को सफल रूपमें देखने व् सोंचने की सीमा भी | अब मैं ज्यादातर यही सोंचती की मुझे सफलता मिल गयी है , मैं डॉक्टर बन गयी हूँ | पर अफ़सोस मेरे नंबर और कम आये | अब मैं सफलता से थोडा और दूर थी | अब मैंने अपने कारणों की एनालिसिस करना शुरू किया | मेरी मेहनत में तो कोई कमी नहीं थी | फिर क्यों मैं असफल हुई | टर्मीनली इल – कुछ पल जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ           यही वो समय था | जब मेरे पिता अपना जॉब स्विच ओवर कर रहे थे | उनका इंटरव्यू था | जैसा की मैंने पहले ही लिखा था की वो  जीनियस हैं | पर इंटरव्यू से पहले वो बहुत नर्वस थे | वो तमाम फ़ालतू कल्पनाएँ कर रहे थे | मसलन अगर घबराहट में उनके हाथ से कॉफ़ी का कप गिर गया , या वो कुर्सी पर ठीक से बैठ नहीं पाए , या गैस की वजह से उन्हें तेज डकार आ गयी | उनकी कल्पनाओं को सुन – सुन कर मुझे हंसी आ रही थी | मुझे लगा इतने कमजोर आत्मविश्वास में वो इंटरव्यू देंगे तो क्या ख़ाक सफल होंगे | पर शाम को जब वो मिठाई का डिब्बा क्ले कर आये तो मेरे आश्चर्य की सीमा न रही | उन्होंने इंटरव्यू क्रैक कर लिया था | उनकी सैलिरी १० % बढ़ गयी थी | मैंने याद किया की अपने हर इंटरव्यू से पहले पिताजी ऐसे अजीबो गरीब कल्पनाएँ करते हैं | फिर भी वो इंटरव्यू क्रैक करते हैं | फिर खुद ही सोंचा ,” शायद वो जीनियस हैं इसलिए | “ तभी ध्यान आया की पिताजी अपने जीवन की हर समस्या में बुरे से बुरे की कल्पना करते हैं और फिर उस समस्या से बाहर निकल जाते हैं | फिर मैंने  अपने ऊपर ध्यान दिया | मैं भी तो पहले असफल हो जाउंगी का भय पाले रहती थी तब तक लगातार सफल हो रही थी | जब अपने को सफल होने की कल्पना करने लगी तो असफल होने लगी | ओह ! मेरे हाथ में सूत्र लग गया | मैंने एक बार फिर ड्राप करने का निर्णय लिया | पहले मेरे माता – पिता ने मेरा विरोध किया फिर मान गए | इस बार मैंने कोई गलती नहीं की | रिजल्ट मेरी इच्छा के अनुसार आया | मेरा चयन हो गया था | … Read more