स्ट्रेस ईटिंग डिसऑर्डर – जब आप खाना खा रहे हो और खाना आपको
कई बार तब हम भोजन में अपनी समस्याओं का समाधान ढूँढने लगते हैं जब भावनाएं हमें खा रही होती हैं – अज्ञात “देखिये आप बिंज ईटिंग डिसऑर्डर से बुलुमिया नेर्वोसा की तरफ बढ़ रही हैं अब अगर आप खाने से दूर नहीं रहीं तो ये खाना आपको खा जाएगा “कहते हुए डॉक्टर ने मुझे दवाइयों और देखभाल की लंबी – चौड़ी फेहरिशत पकड़ा | मैं निराशा से भरी डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली | मुझे देख कर बाहर बैठी दो लडकियां मुस्कुरा दी | एक ने चुटकी ली ,” अगर ये अपना खाना कम कर दे तो देश की खाने की समस्या काफी हद तक खत्म हो जायेगी | उसके बाद हंसी के ठहाके काफी देर तक मेरा पीछा करते रहे और मैं साडी के पल्लू से अपने भीमकाय शरीर को ढकने का असंभव प्रयास करती रही | आप की जानकारी के लिए बता दूं की मेरी उम्र ३६ साल कद पांच फुट दो इंच और वजन पूरे ९० किलो | यानी 100 से बस १० कम | मेरा स्ट्रेस ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज़ चल रहा है | क्योंकि मैं खाने से दूर नहीं रह पाती | अच्छा बुरा मैं कुछ भी खाती हूँ |यहाँ तक की कुछ न मिलने पर मैं कच्चा आलू भी कहा लेती हूँ | मैं तनाव में खाती हूँ और खाने की वजह से उपजे तनाव में और खाती हूँ | खाने से मेरा ऐसा लगाव पहले नहीं था | माँ कहती हैं ,” मैं बचपन में कुछ नहीं खाती थी , वो बुलाती रह जाती थीं और मैं खेल में इतनी मगन की सुनती ही नहीं | खाना ठंडा हो जाता तो एक दो कौर खा कर माँ अच्छा नहीं लग रहा है कह कर भाग जाती | कई बार माँ के डर लंच में दिया खाना सहेलियों को खिला देती या स्कूल के डस्टबिन में फेंक आती , ताकि वो मुझे डांट न सके | फिर कब कैसे मैं इतना ज्यादा खाने लगी और खाना मुझे खाने लगा ? यादों के झरोखों से देखती हूँ तो वो दिन याद आता है जब रितेश से मेरी शादी हुई थी , न जाने कितने अरमान ले कर मैं इस घर में आई थी | पर यहाँ आते ही मुझे रितेश की दो बातें सख्त नापसंद लगी | एक तो उनका शराब पीना और दूसरा अपनी सेकेट्री से जरूरत से ज्यादा घनिष्ठता |और रितेश को … रितेश को तो शयद मैं पसंद ही नहीं थी | उसने घर वालों के कहने पर मुझसे शादी की थी | कुछ दिन तक तो मैं सहती रही फिर मैंने विरोध करना शुरू किया | पर उसका उल्टा असर हुआ | रितेश और उग्र होते गए उनकी शराब की मात्र व् सेकेट्री को दिया जाने वाला समय बढ़ने लगा | मैं दुःख में अपने प्रति लापरवाह सी रहने लगी | सहेलियों ने कहा तू बन ठन कर रहा कर | उसका कुछ असर तो हुआ रितेश मेरी बात को थोडा बहुत सुनने लगे | मैंने सासू माँ से भी रितेश के बारे में बात की | उनके समझाने पर रितेश मेरे पास आये और अपने स्नेह का चिन्ह मेरे माथे पर अंकित कर के बोले,” आज से मैं सिर्फ तुम्हारा “ उन्होंने मुझसे वादा किया की अगले दिन से वो जल्दी घर आयेंगे व् खाना मेरे साथ ही खायेंगे | जब छोड़ देना साथ चने से बेहतर लगे अंधे को क्या चाहिए दो आँखें |और मैंने तो आँखों में अपने व् रोहित के सुनहरे भविष्य के न जाने कितने ख्वाब एक पल में पाल लिए | मैं इतनी खुश थी की पूछो मत | उसने जो – जो कहा था , मैंने खाने में वो सब कुछ बनाया | सब कुछ उसकी पसंद का …मटर पनीर , पुलाव , दम आलू की सब्जी और खीर | | कांच के डोंगों में डाईनिग टेबल पर सजा भी दिया | साथ में सजा दिया अपना नन्हा सा दिल | फिर खुद तैयार होने लगी |ये रात मेरी शादी के बाद की पहली रात से भी हसीं जो होने वाली थी | मैंने गुलाबी साडी बिंदी और गुलाबी ही चूड़ियाँ पहनी | फिर आईने में अपने को ही देख कर लजा सी गयी | यूँ ही नहीं मेरी सहेलियां मुझे हीरोइन कह कर बुलाती थी | रंग , रूप , कद काठी सब कुछ परफेक्ट | सहेलियां रस्क करती ,” यार तुझ पर तो मोटापा चढ़ता ही नहीं “ एक हम हैं कमर का कमरा बन गया | सोंचते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी , अगले ही पल गहरी उदासी छा गयी | आखिर क्या है उस सेकेट्री के पास की रोहित ऑफिस से इतनी लेट आते हैं वो भी शराब पी कर | और उसके बाद रितेश , रितेश नहीं रहते , जानवर हो जाते है | कितनी बार मैंने रितेश से शिकायत की की मेरे हिस्से में ये जंगली और सेकेट्री के हिस्से में रितेश , ऐसा क्यों ? फिर खुद ही मन को समझाया ,” अरे पगली , आज क्या दुखी होना | आज तो तेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हो रहा है | आज से रितेश समय पर घर आएगा , शराब भी नहीं पिएगा और सेकेट्री … उसे तु छुएगा भी नहीं | मन के सूर्य पर छाए बादलों को मैंने अपने विचारों से ही दूर किया और रितेश की प्रतीक्षा करने लगी | १० , 11 , १२ .. एक बजे रितेश आये | उनके पास से आती शराबकी महक साथ ही लेडीज परफ्यूम की तीखी गंध मिल कर मेरी दुनिया को विषैली , जहरीली बदबू से भर रही थी , मैं खुद को काबू में न रख सकी | मैं चिल्लाने लगी , रितेश , रीइते ते ते श , तुमने अपना वादा तोड़ दिया , तुम आज जल्दी आने वाले थे , मेरे साथ खाना खाने वाले थे और …. तुमने मेरे सारे हक़ उसको दे दिए | तुम कभी नहीं सुधर सकते कभी नहीं | रितेश ने लडखडाते क़दमों से आगे बढ़ते हुए कहा ,” तो क्या हुआ अब दे देता हूँ तुम्हे तुम्हारा हक़ | रितेश ने डाईनिग टेबल से खाना उठा कर मुँह में ठूसना शुरू … Read more