अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति सम्मान की मांग

  मिसेज गुप्ता कहती हैं की उस समय परिवार में सब  कहते थे, “लड़की है बहुत पढाओ  मत | एक पापा थे जिन्होंने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम जितना चाहो पढो” |   श्रीमती देसाई बड़े गर्व से बताती हैं की उनका भाई शादी में सबसे ज्यादा रोया था | अभी भी हर छोटी बड़ी जरूरत में उसके घर दौड़ा चला जाता है |   कात्यायनी जी ( काल्पनिक नाम ) अपने लेखन का सारा श्री पति को देती हैं | अगर ये न साथ देते तो मैं एक शब्द भी न लिख पाती | जब मैं लिखती तो घंटो सुध न रहती | खाना लेट हो जाता पर ये कुछ कहते नहीं | भले ही भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे हों | श्रीमान देशमुख अपनी पत्नी की ख़ुशी के लिए  स्कूटर न लेकर उसके लिए उसकी पसंद का सामान लेते हैं |                            फेहरिस्त लम्बी है पर  ये सब हमारे आपके जैसे आम घरों के उदाहरण है | ये सही है  कि हमारे पिता , भाई , पति बेटे और मित्र हमारे लिए बहुत कुछ करते हैं |पर क्या हम उनके स्नेह को नज़रअंदाज कर देते हैं | अगर ऐसा नहीं है तो क्यों पुरुष ऐसा महसूस कर रहे हैं |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति  सम्मान की मांग है  कल व्हाट्स एप्प पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक खूबसूरत गीत के साथ अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस मानाने की अपील की गयी थी .. गीत के बोल कुछ इस तरह से थे “ मेन्स डे पर ही क्यों सन्नाटा एवेरीवेयर , सो नॉट फेयर-२” … पूरे गीत में उन कामों का वर्णन था जो पुरुष घर परिवार के लिए करता है, फिर भी उसके कामों को कोईश्रेय नहीं मिलता है | जाहिर है उसे देख कर कुछ पल मुस्कुराने के बाद एक प्रश्न दिमाग में उठा “ मेन्स डे’ ? ये क्या है ? तुरंत विकिपिडिया पर सर्च किया | जी हां गाना सही था |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस कब मनाया जाता है    १९ नवम्बर को इंटरनेशनल मेन्स डे होता है | यह लगातार १९९२ से मनाया जा रहा है | पहले पहल इसे ७ फरवरी को मनाया गया | फिर १९९९ में इसे दोबारा त्रिनिदाद और टुबैगो में शुरू किया गया |     अब पूरे विश्व भर में पुरुषों द्वारा किये गए कामों को मुख्य रूप से घर में , शादी को बनाये रखने में , बच्चों की परवरिश में , या समाज में निभाई जाने वाली भूमिका के लिए सम्मान की मांग उठी है |     पुरुष हो या स्त्री घर की गाडी के दो पहिये हैं | दोनों का सही संतुलन , कामों का वर्गीकरण एक खुशहाल परिवार के लिए बेहद जरूरी होता है | क्योंकि परिवार समाज की इकाई है | परिवारों का संतुलन समाज का संतुलन है | इसलिए स्त्री या पुरुष हर किसी के काम का सम्मान किया जाना जरूरी हैं | काम का सम्मान न सिर्फ उसे महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है अपितु उसे और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित भी करता है | क्यों उठ रही है अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग    यह एक  सच्चाई  है की दिन उन्हीं के बनाये जाते हैं जो कमजोर होते हैं |पितृसत्तात्मक  समाज में हुए महिलाओं के शोषण को से कोई इनकार नहीं कर सकता | महिला बराबरी की मांग जायज है | उसे किसी तरह से गलत नहीं ठहराया जा सकता है | पर इस अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस  की मांग क्यों ? तस्वीर का एक पक्ष यह है की दिनों की मांग वही करतें हैं जो कमजोर होते हैं | तो क्या स्त्री इतनी सशक्त हो चुकी है की पुरुष को मेन्स डे सेलेब्रेट करने की आवश्यकता आन पड़ी | या ये एक बेहूदा मज़ाक है | जैसा पहले स्त्री के बारे में कहा जाता था की पुरुष से बराबरी की चाह में स्त्री अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों का नाश कर रही है , अपनी कोमलता खो रही है | क्योंकि उसने पुरुष की सफलता को मानक मान लिया है | इसलिए वो पुरुषोचित गुण अपना रही हैं |अब पुरुष स्त्री की बराबरी करने लगे हैं |      सवाल ये उठता है की पुरुषों को ऐसी कौन सी आवश्यकता आ गयी की वो स्त्री के नक़्शे कदम पर चल कर मेन्स डे की मांग कर बैठा | क्या नारी को अपनी इस सफलता पर हर्षित होना चाहिए “ की वास्तव में वो सशक्त साबित हो गयी है | पर आस पास के समाज में देखे तो ऐसा तो लगता नहीं , फिर अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग क्यों ?     अपने प्रश्नों के साथ मैंने फिर से वीडियो देखा …. और उत्तर भी मिला | इस वीडियों के अनुसार पुरुष घर के अन्दर अपने कामों के प्रति सम्मान व् स्नेह की मांग कर रहा है | कहीं न कहीं मुझे लग रहा है की ये बदलते समाज की सच्चाई है | पहले महिलाएं घर में रहती थी और पुरुष बाहर धनोपार्जन में | पुरुष को घर के बाहर सम्मान मिलता था और वो घर में परिवार व् बच्चों के लिए पूर्णतया समर्पित स्त्री का घर में बच्चो व् परिवार द्वारा ज्यादा मान दिया जाना सहर्ष स्वीकार कर लेता था |समय बदला , परिसतिथियाँ  बदली |आज उन घरों में जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों बाहर धनोपार्जन कर रहे हैं |   बाहर दोनों को सम्मान मिल रहा है | घर आने के बाद जहाँ स्त्रियाँ रसोई का मोर्चा संभालती हैं वही पुरुष बिल भरने ,घर की टूट फूट की मरम्मत कराने , सब्जी तरकारी लाने का काम करते हैं | संभ्रांत पुरुषों का एक बड़ा वर्ग इन सब से आगे निकल कर बच्चों के डायपर बदलने , रसोई में थोडा बहुत पत्नी की मदद करने और बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की नयी भूमिका में नज़र आ रहा है | पर कहीं न कहीं उसे लग रहा है की बढ़ते महिला समर्थन या पुरुष विरोध के चलते उसे उसे घर के अन्दर या समाज में उसके स्नेह भरे कामों के लिए पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है |     अपने परिचित का एक उदाहरण … Read more

मृत्यु – शरीर नश्वर है पर विचार शाश्वत

  मृत्यु जीवन से कहीं ज्यादा व्यापक है , क्योंकि हर किसी की मृत्यु होती है , पर हर कोई जीता नहीं है -जॉन मेसन                                             मृत्यु …एक ऐसे पहेली जिसका हल दूंढ निकालने में सारी  विज्ञान लगी हुई है , लिक्विड नाईटरोजन में शव रखे जा रहे हैं | मृत्यु … जिसका हल खोजने में सारा आध्यात्म लगा हुआ है | नचिकेता से ले कर आज तक आत्मा और परमात्मा का रहस्य खोजा जा रहा है | मृत्यु जिसका हल खोजने में सारा ज्योतिष लगा हुआ है | राहू – केतु , शनि मंगल  की गड्नायें  जारी हैं | फिर भी मृत्यु है | उससे भयभीत पर उससे बेखबर हम भी | युधिष्ठर के उत्तर से यक्ष भले ही संतुष्ट हो गए हों | पर हम आज भी उसी भ्रम में हैं | हम शव यात्राओ में जाते है | माटी बनी देह की अंतिम क्रिया में भाग लेते हैं | मृतक के परिवार जनों को सांत्वना देते हैं | थोडा भयभीत थोडा घबराए हुए अपने घर लौट कर इस भ्रम के साथ अपने घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं की मेरे घर में ये कभी नहीं होगा |                                      विडम्बना है की हम मृत्यु को  स्वीकारते हुए भी नकारते हैं | मृत्यु पर एक बोधि कथा है | कहते हैं एक बार एक स्त्री के युवा पुत्र की मृत्यु हो गयी | वो इसे स्वीकार नहीं कर पा रही थी | उसी समय महत्मा बुद्ध उस शहर  में आये | लोगों ने उस स्त्री से कहा की मातम बुद्ध बहुत बड़े योगी हैं | वो बड़े – बड़े चमत्कार कर सकते हैं | तुम उनसे अपने पुत्र को पुन : जीवित करने की प्रार्थना करो | अगर कुछ कर सकते हैं तो वो ही कर सकते हैं | वह स्त्री तुरंत अपने पुत्र का शव लेकर महात्मा बुद्ध के दरबार में पहुंची और उनसे अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने की फ़रियाद करने लगी | | महात्मा बुद्ध असमंजस में पड़ गए | वो एक माँ की पीड़ा को समझते हुए उसे निराश नहीं करना चाहते थे | थोड़ी देर सोंचने के उपरान्त वो बोले की ,” मैं मंत्र पढ़ के तुम्हारे पुत्र को पुनर्जीवित कर देता हूँ | बस तुम्हें किसी ऐसे घर से चूल्हे की राख लानी पड़ेगी | जहाँ कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | आँसू पोछ कर वो स्त्री शहर की तरफ गयी | उसने हर द्वार खटखटाया | परन्तु उसे कहीं कोई ऐसा घर नहीं मिला जहाँ कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | निराश ,हताश हो कर वो वापस महात्मा बुद्ध के पास लौट आई | उनके चरणों में गिर कर बोली ,” प्रभु मुझे समझ आ गया है की मृत्यु अवश्यसंभावी है , मैं ही पुत्र मोह में उसे नकार बैठी थी |                          जीवन के इस पार से उस पार गए पथिक पता नहीं वहाँ  से हमें देख पाते हैं की नहीं | अगर देख पाते तो जानते की इस पार छूटे हुए परिवार के सदस्यों , मित्रों हितैषियों का जीवन भी  उस मुकाम पर रुक जाता है | मानसिक रूप से उस पार विचरण करने वाले  परिजनों के लिए न जाने कितने दिनों तक कलैंडर की तारीखे बेमानी हो जाती हैं , घडी की सुइयां बेमानी हो जाती हैं , सोना जागना बेमानी हो जाता है | क्योंकि वो भी थोडा सा मर चुके होते हैं | अंदर ही अंदर मन के किसी कोने में , जहाँ ये अहसास गहरा होता है की जीवन अब कभी भी पहले जैसा नहीं होगा | यहाँ तक की वो खुद भी पहले जैसे नहीं रहेंगे | जहाँ उन्हें फिर से चलना सीखना होगा ,  संभलना सीखना होगा , यहाँ तक की जीना सीखना होगा |ऐसे समय में कोई संबल बनता है तो उस व्यक्ति के द्वारा कही गयी बातें | उसके विचार | जैसे – जैसे हम वेदना  का पर्दा हटा कर उस व्यक्ति का जीवन खंगालते हैं तो समझ में आती हैं उसके द्वारा कही गयी बातें उसका जीवन दर्शन | कितने लोग कहते हैं की मेरे पिता जी / माता जी अदि – आदि ऐसे कहा करते थे | अब उनके जाने के बाद मुझे ये मर्म समझ में आया है | अब मैं भी यही करूँगा / करुँगी | विचारों के माध्यम से व्यक्ति कहीं न कहीं जीवित रहता है |                                     व्यक्ति का दायरा जितना बड़ा होता है | उसके विचार जितने सर्वग्राही या व्यापक दृष्टिकोण वाले होते हैं | उसके विचारों को ग्रहण करने वाले उतने ही लोग होते हैं |  हम सब को दिशा दिखाने वाली भगवत भी प्रभु श्री कृष्ण के श्रीमुख से व्यक्त किये गए विचार ही थे | परन्तु उससे युगों – युगों तक समाज का भला होने वाला था इसलिए उसे लिखने की तैयारी पहले ही कर ली गयी थी | कबीर दास ने तो ‘मसि कागद छुओ नहीं ‘कलम गहि नहीं हाथ ” परन्तु उनके विचार इतने महान थे की की उनके शिष्यों ने  उनका संकलन किया | जिससे हम आज भी लाभान्वित हो रहे है | पुनर्जन्म है की नहीं इस पर विवाद हो सकता है | परन्तु स्वामी विवेकानंद  के अनुसार  पॉजिटिव एनर्जी और नेगेटिव एनर्जी के दो बादल होते हैं | हम जैसे विचार रखते हैं | जैसे काम करते हैं | अंत में उन्ही बादलों के द्वारा हमारी आत्मा को खींच लिया जाता है | वही हमारे अगले जन्म को भी निर्धारित करता है |                                   विज्ञानं द्वारा भी सिद्ध हो गया है की विचार उर्जा का ही दूसरा रूप है | और उर्जा कभी नष्ट नहीं होती | चूँकि विचार शास्वत है और शरीर नश्वर ,इसलिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने … Read more

अटूट बंधन

अटूट बंधन ब्लॉग की नींव “सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय” की भावना से प्रेरित हो कर रखी गयी है | इसके मुख्य उद्देश्य निम्न हैं … हमारे जीवन में रोटी कपडा और मकान के बाद जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है ,वो है हमारे रिश्ते | जहाँ रोटी कपडा और मकान भैतिक आवश्कताओं के लिए जरूरी हैं ,वहीं रिश्ते भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए जरूरी हैं | आज के समय में जब रिश्ते टूट और बिखर रहे हैं तब बहुत जरूरी है उन्हें संभालना , सहेजना ताकि हम भावनात्मक रूप से संतुष्ट रह सके | भावनात्मक संतुष्टि के बिना सारी खुशिया बेकार लगती है | हम अटूट बंधन ब्लॉग पर ऐसे जानकारीयुक्त लेख ले कर आयेगे जो आपके रिश्तों को सँभालने में आपकी सहायता करेंगे व्  आपको गलत रिश्तों से निकलने की समझ भी देंगें | जीवन है तो समस्याएं हैं | जब समस्याएं आती हैं तो हमारा दिमाग काम नहीं करता | उस समय लगता है कोई रास्ता दिखा दे | हमारे ब्लॉग में “अगला कदम” वही हाथ है जो उस समय आपको सहारा देगा , रास्ता दिखाएगा जब आप समस्या से जूझ रहे हो और उसका हल खोज रहे हों | इसमें रिश्तों , कैरियर , स्वाथ्य , प्रियजन की मृत्यु , अतीत में जीने आदि बहुत सारी समस्याओं को उठाया है | ये योजना मेरे दिल के बहुत करीब है | आशा है सब को इससे लाभ होगा | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता | सफलता के लिए सभी प्रयास भी करते हैं | सफलता आशा और उत्साह देती है वहीँ असफलता मन को तोड़ देती है | हालांकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती | पर निराशा के आलम में जरूरी होता है कोई ऐसा व्यक्ति जो उस निराशा से निकल दे और जीवन में फिर से जिजीविषा भर दे | “अटूट बंधन “ ब्लॉग का प्रयास है की वो सकारात्मक विचरों का प्रचार प्रसार  करेगा जिससे लोग निराशा से बाहर निकल कर लौकिक व् परलौकिक सफलता प्राप्त कर सकें | साथ ही स्वस्थ , संतुष्ट व् उर्जा से भरे आपके व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होगा | अटूट बंधन ब्लॉग प्रतिभाशाली लोगों को मंच देने की कोशिश है |हमारा प्रयास रहेगा की आप की रचनाओं को ज्यादा से ज्यादा पाठक पढ़ सके | जो लोग भी अटूट बंधन में अपनी रचनाएँ भेजना चाहते हैं वो editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें | रचना पसंद आने पर प्रकाशित की जायेगी |         उम्मीद है अच्छी भावना से शुरू की गई ये कोशिश कामयाब होगी और पाठकों के साथ मेरा “अटूट बंधन”                                                        बना रहेगा |   वंदना.  बाजपेयी  फाउंडर ऑफ़ अटूट बंधन .कॉम 

अटूट बंधन वर्ष- २ अंक – ६ अनुक्रमाणिका

अटूट बंधन वर्ष -२ अंक -६ अनुक्रमाणिका 1)सम्पादकीय – नजरिया बनाता है विजेता 2 )कार्यकारी संपादक का सम्पादकीय – समग्र जीवन की सफलता नवरात्रों पर विशेष – कन्या पूजन का महत्व्  – निवेदिता श्रीवास्तव लखनऊ 3 )व्यक्तित्व विकास – दूर करतें व्यक्तित्व के ५ दोष – डॉ . कमलेश निगम ,मुंबई 4 )राम नाम जप का वैज्ञानिक महत्व – आचार्य विनोद पाठक , चंडीगढ़ 5 )जीवन मन्त्र – सबसे जरूरी है खुद पर भरोसा – डॉ . दीपक शुक्ल, कोलकाता 6 )चर्चित व्यक्तित्व – मानवाधिकारों के प्रखर प्रहरी – उत्तर प्रदेश के कारागार मंत्री श्री बलवंत सिंह रामूवालिया जी  का विशेष साक्षात्कार 7 )सक्सेस मंत्र – समय प्रबंधन का २० /८० का नियम- परस मेहता , अहमदाबाद  8 )आवरण कथा –आत्म शक्ति कैसे बढायें 9 )बाल –जागत – कहीं आप टॉक्सिक अभिवावक तो नहीं – डॉ . अंजुम चोपड़ा रांची 10 )काव्य –जगत – रश्मि प्रभा , स्वेता मिश्र नाइजीरिया  , शिवानी शर्मा , अनुभूति गुप्ता व् हयात सिंह की कवितायें 11 )रिश्ते –नाते – रिश्तों का संसार और आध्यात्मिकता – आराधना शास्त्री –बेंगलुरु , कर्नाटक 12 )कहानी –मन का अँधेरा – डॉ . विनय कुमार सिंह , जोहन्सबर्ग दक्षिण अमेरिका 13 )कहानी – बाहें – डॉ डेज़ी नेहरा , हरियाणा 14 )नारी मन – गुडिया माटी और देवी – वंदना बाजपेयी 15 )स्वास्थ्य जगत – स्वस्थ किडनी , स्वस्थ शरीर – डॉ . विजय गोयल , चेन्नई 16 )ज्योतिष – माह का राशिफल 17 )प्रेरक बातें – बात जो दिल को छू जाए  18 )व्यंग – दूरदर्शी दूधवाला – डॉ . अशोक परूथी , अमेरिका 19)पुस्तक समीक्षा – हैदराबाद की साहित्यिक पत्रकारिता , – नीरजा द्वारा आशा मिश्र ‘मुक्त ‘ की पुस्तक समीक्षा 20 )आध्यात्म – हर तरफ रामलीला – ओशो 21 )चिट्ठी –पत्री – पाठकों द्वारा भेजे गए पत्र 22 )प्रेरक प्रसंग 23 ) रोचक तथ्य व् अन्य स्थायी स्तम्भ

लवली पब्लिक स्कूल के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक वंदना बाजपेयी के उदगार : सपनों को जीने के लिए जरूरी है जूनून

सपनों  को जीने के लिए जरूरी है जूनून | उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि हर बच्चे की आँखों में हजारों सपने होते हैं , वो सफल होना चाहता है | पर सफलता के लिए सिर्फ सपने देखने से काम नहीं चलता क्योंकि सपनों में जीने और सपनों को जीने में जमीन आसमान का अंतर होता है | सफल वहीं होते हैं जो सपनों को जीते हैं |  उक्त उदगार थे दिल्ली के सुप्रसिद्ध लवली पब्लिक स्कूल के वार्षिकोत्सव की मुख्य अतिथि  अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक वंदना बाजपेयी के |                                         कल मंगलवार को दिल्ली के सुप्रसिद्ध लवली पब्लिक स्कूल ने वार्षिकोत्सव मनाया | जिसमें सभा को संबोधित करते हुए अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक श्रीमती वंदना बाजपेयी बच्चों को सफलता के गुर बताये |  उन्होंने   एक छोटी सी कविता के माध्यम से समझाया कि सपनों को जीने के लिए जूनून या पैशन का होना बहुत जरूरी है| उन्होंने बच्चों से प्रश्न किया कि अगर कुकर में तरह -तरह की सब्जियाँ व् दुनिया भर के मसाले डाल कर गैस पर चढ़ा दिया जाए पर गैस जलाई नहीं जाए तो क्या सब्जी पक सकती है ? बच्चों के नहीं में उत्तर देने पर उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि इसी प्रकार जूनून वो आग है जिसमें पक कर सपने सफलता में बदलते हैं | पर सच्चाई यह भी है कि उसी काम को जूनून से किया जा सकता है जिस काम से प्यार हो | उन्होंने बच्चों के पेरेंट्स से आग्रह किया कि आप बच्चों के कैरियर के सन्दर्भ में विशेष सतर्कता बरतें |आप के बच्चे में जिस क्षेत्र में जाने की रूचि हो उसे उसी क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करे | बच्चा जिस काम से प्यार करता है उसी काम को पूरे जूनून से कर पायेगा तभी खुश रह पायेगा | जब काम ही खेल लगने लगे तो पूरी जिंदगी खेल खेल में हँसते – गाते ही कट जाती है | श्रीमती बाजपेयी ने बच्चों को आगाह किया की मन का काम होने के बावजूद कई बार बाधाएं आती हैं परन्तु उस समय घबराना नहीं चाहिए | क्योंकि छोटी –छोटी असफलताएं जीत से अलग नहीं होती | ये असफलताएं एक बड़ी जीत का हिस्सा होती हैं | हर सफल व्यक्ति अपने जीवन में असफलताओं को देखता है पर इस उम्मीद के साथ अपने काम में लगा रहता है कि जिस प्रकार रात के बाद दिन व् दिन के बाद रात आती है उसी प्रकार यह यह भी सफलता की राह का हिस्सा भर हैं | श्रीमती बाजपेयी ने उन बच्चों को जो किसी काम को पूरे जोश खरोश के साथ शुरू करते हैं पर आधा करके छोड़ देते हैं उदाहरण देकर समझाया की , अगर बहुत सारे आधे –आधे गड्ढे खोद कर छोड़ दिए जाए तो भी किसी में पानी नहीं मिलेगा | उस के स्थान पर यदि एक ही गड्ढे को लगातार खोदा जाए तो पानी भी मिलेगा और परिश्रम भी व्यर्थ नहीं होगा | किसी भी काम को आधे में नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसे उसी में निरंतर लगे रहना चाहिए | जो लोग अपने काम में निरंतर लगे रहते हैं उन्हें देर –सवे र सफलता मिल ही जाती है |श्रीमती बाजपेयी ने बच्चों द्वारा किये गए सरकरात्मक सोंच के कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ये कार्यक्रम उन्हें बेहद पसंद आया | अटूट बंधन पत्रिका भी इसी दिशा में काम कर रही है कि की हर व्यक्ति का सकारात्मक सोंच से व्यक्तित्व विकास किया जा सके | क्योंकि अब यह विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुका है के विचारों में द्रव्यमान होता हैं जिस कारण वो अपने समान परिस्तिथियों को खीच लाते हैं | इस विषय पर उन्होंने छोटी सी कहानी सुना कर सभा को सकारात्मक विचारों का महत्त्व बताया | उन्होंने आशा व्यक्त की कि वो यहाँ भविष्य के कई सफल लोगों को देख रही हैं | श्रीमती बाजपेयी ने मेधावी बच्चों को पूरुस्कार भी वितरित किये |इससे पहले लवली पब्लिक स्कूल कि डायरेक्टर प्रिंसिपल ने गुलदस्ता देकर मुख्य अतिथि का स्वागत किया | उन्होंने बच्चों के पेरेंट्स को संबोधित करते हुए कहा कि आप अपने बच्चों को एक ही लकीर पर चलते हुए केवल डॉक्टर व् इंजीनीयर बनाने की न सोंचे बल्कि उस क्षेत्र में भेजे जिस में बच्चे की प्रतिभा हो | आज ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें बच्चे अपने कैरियर के रूप में चुन सकते हैं | कई ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ जा कर ये माधवी छात्र उस क्षेत्र में कैरियर बना कर दूसरों के लिए उदहारण बन सकते हैं | उन्होंने कहा कि आज के तनाव भरी जिंदगी में बच्चों के साथ –साथ माता –पिता का भी तनाव मुक्त रहना जरूरी है | इसके लिए उन्होंने हास्य योग का सुझाव दिया | उनके अनुसार सामान्यत: कभी –कभी किसी चुटकुले पर हंसने व् हास्य योग में अंतर है | क्योंकि ये एक व्यायाम की तरह काम करता हैं व् तनाव को पूर्णतया अपने नियन्त्रण में करने की आदत डाल देता है | श्रीमती मलिक नें बताया कि वो बच्च्चों को स्वयं इसका अभ्यास कराती हैं | उन्होंने इस अवसर पर हास्य योग की एक सी .डी भी अभिवावकों को दिखलाई व् उन्हें उसे घर में करने का परामर्श भी दिया |वार्षिकोत्सव में बच्चों ने तरह –अरह के रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये | जिसमें ज्यादातर भातीय संस्कृति से प्रेरित थे | चाहे वो गायत्री मन्त्र हो हनुमान चालीसा या वभिन्न चक्रों से जो उर्जा स्तर बढ़ता है व् उसका जो लाभ होता है उसकी व्याख्या | रंगबिरंगी वेश –भूषा में सुर ताल के साथ नृत्य करते बच्चों के इन सभी कार्यक्रमों ने दर्शकों का मन मोह लिया |कार्यक्रम में चेयरमैंन ऑफ़ फेडेरेशन ऑफ़ पब्लिक स्कूल ( फार्मर एक्सीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ) डॉ . आर . पी मलिक , लवली पब्लिक स्कूल की डायरेक्टर प्रिंसिपल एस . डी मलिक , श्रीमती सेन गुप्ता , लवली पब्लिक स्कूल की शिक्षिकाएं व् बच्चे व् भारी संख्या में अभिवावक उपस्तिथ थे |

अटूट बंधन सम्मान समारोह -२०१५ एक रिपोर्ट

कल रविवार हिंदी भवन में हिंदी मासिक पत्रिका “ अटूट बंधन “ ने सम्मान समारोह – २०१५ का आयोजन किया | कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुविख्यात लेखिका व् साहित्य एकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी थी व् मुख्य वक्ता अरविन्द सिंह जी( राज्यसभा टी. वी ) व् सदानंद पाण्डेय जी ( एसोसिएट एडिटर वीर अर्जुन ) थे | श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी ने सरस्वती प्रतिमा के आगे दीप जला कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया | उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक स्त्री ही स्त्री की शक्ति हैं | उन्होंने आगे कहा कि ये पुरुष प्रधान समाज की सोंच है की ,” एक स्त्री दूसरी स्त्री को पसंद नहीं करती हैं , या नीचा दिखाने का प्रयास करती है , उनमें परस्पर वैमनस्य होता है | वास्तविकता इससे बिलकुल उलट है | एक स्त्री दूसरी स्त्री का दुःख बहुत अच्छी तरह से समझ सकती है व् बाँट सकती है | मैत्रेयी पुष्पा जी ने महिला सिपाहियों के सामने दिए गए अपने भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वो विद्यार्थी थी व् बस से स्कूल जाया करती थी तो स्त्री होने के नाते उन्हें जो कष्ट , ताने , अपमान सहने पड़ते थे उसे वो मौन होकर झेलने को विवश थी | रास्ते में एक थाना पड़ता था | दिल करता था बस से कूद कर वहां उस दुर्व्यवहार की शिकायत करे परन्तु पुरुष पुलिस कर्मियों के दुर्व्यवहार के किस्से उन्हें भयभीत करते थे | अगर कोई महिला पुलिस कर्मी वहां होती तो वह जरूर बस से उतर कर थाने जाती और बस उससे लिपट कर रो लेती | न वो कुछ कहती न वो कुछ सुनती पर सारा दर्द बिना कहे सुने बयाँ हो जाता | अपनी बात पर जोर देते हुए श्रीमती पुष्पा ने कहा कि हर क्षेत्र में महिलाओ का आगे आना जरूरी हैं क्योंकि ये दूसरी महिलाओ को सुरक्षा का अहसास दिलाता है | उन्होंने ख़ुशी जाहिर की संपादन के क्षेत्र में आज महिलाएं आगे आ रही हैं | पर अभी और महिलाओं को आगे आना चाहिए | ये अभी तक स्त्रियों के लिए वर्जित क्षेत्र था | इस क्षेत्र में महिलाओं का आगे आना पुरुष संपादकों द्वारा महिला रचनाकारों के शोषण को रोकेगा | जिससे उनकी लेखनी मुखर हो सकेगी | उन्होंने आगे कहाँ की साहित्य जीवन की शिक्षा देता हैं | व्यक्ति डाक्टर हो सकता है , इंजिनीयर हो सकता है , पर जिसने साहित्य नहीं पढ़ा उसने जीवन को नहीं पढ़ा | पत्र –पत्रिकाओं के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एक पत्रिका को रचनाकार मिल सकते हैं , बहुत प्रयास से उसका प्रचार –प्रसार भी किया जा सकता है ,परन्तु अगर उसकी विषय वस्तु में दम नहीं होगा तो पाठक नहीं मिलेंगे | जिसक पत्रिका की विषय वस्तु में दम होगा उसे पाठक ढूंढ – ढूंढ कर पढेंगे | रचना ठोस व् सत्य आधारित होनी चाहिए फिर चाहे उसमें आधुनिक जीवन शैली का वर्णन हो या लोक का | उन्होंने इस दुष्प्रचार का विरोध किया कि लोग हिंदी पढना नहीं चाहते हैं | सच्चाई ये है कि लोग हिंदी साहित्य को पढना चाहते हैं , पर भ्रामक प्रचार से दूर हो रहे हैं | इसके लिए स्कूल , कॉलेजों में कविता कहानी की कार्यशालायें लगाने पर बल दिया | मुख्य वक्ता अरविन्द कुमार सिंह जी ने कहा कि जो साहित्य के क्षेत्र में उतरता है वह सरस्वती की सेवा के लिए उतरता है , वहां धन कमाने की अभिलाषा नहीं होती | उन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का उदहारण देते हुए बताया कि ,”द्विवेदी जी ने सन १९०२ में पत्रिका निकालने के लिए अपनी नौकरी छोड़ी थी | तब वो मुश्किल से २० रुपये अपनी धर्म पत्नी को घर खर्च के लिए दे पाते थे | साहित्य एक साधना है , उन्होंने अटूट बंधन परिवार के सभी सदस्यों की इस साधना में तल्लीन होने की भूरी –भूरी प्रशंसा की | श्री सदानंद पाण्डेय जी ने कहा कि निराशा जीवन को दिशा हीन कर देती है | ऐसे में ऐसे विचारों का आगे आना बहुत आवश्यक है जो व्यक्ति में आशा का संचार कर सके | उन्होंने आशा जतायी कि आज मीडिया में जिस तरह से कर्मठ , योग्य , शिक्षित लोग आगे आ रहे हैं उससे लोगों में अच्छे विचारों का प्रचार –प्रसार होगा | कार्यक्रम में ११ व्यक्तियों को सम्मानित किया गया इसमें मदर टेरेसा पब्लिक स्कूल पुणे के संस्थापक व् प्रिंसिपल मैथ्यूज रोजेवेला को “अटूट बंधन योग रत्न “, नेत्र चिकित्सक डॉ . अर्चना परवानी को “अटूट बंधन नारी रत्न” , लवली पब्लिक स्कूल दिल्ली की संस्थापक व् प्रिंसिपल डॉ . एस डी मलिक को ‘अटूट बंधन शिक्षा रत्न “,बांकेलाल यादव पुणे को “ अटूट बंधन व्यापार रत्न “, महेश अग्रवाल, हैदराबाद को “अटूट बंधन प्राणी मित्र रत्न” , अरविन्द गाँधी , उत्तर प्रदेश को “ अटूट बंधन समाज सेवा रत्न” , स्ट्रेट तो बाज़ार के संथापक ऋषभ चुग व् ३ नव युवाओं को “अटूट बंधन नव उद्धम रत्न” , डॉ गिरीश चन्द्र पाण्डेय प्रतीक पिथौरागढ़ ,उत्तराखंड को” अटूट बंधन साहित्य रत्न ( पुरुष वर्ग ) “, नॉएडा की डॉ . छवि निगम को “अटूट बंधन साहित्य रत्न ( महिला वर्ग )” , श्री योगेश त्रिपाठी , उत्तर प्रदेश को “ अटूट बंधन मीडिया रत्न “, दिल्ली के छात्र अक्षत शुक्ला को “ अटूट बंधन बाल रत्न “से सम्मानित किया गया | इस अवसर पर अटूट बंधन के प्रधान संपादक श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी , कार्यकारी संपादक श्रीमती वंदना बाजपेयी जी व् प्रबंध संपादक श्रीमती रेनू चुग जी भी उपस्तिथ थी | अटूट बंधन के प्रधान सम्पादक श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी ने भीड़ भरे हाल में अपने ह्रदय के उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि ये पूंजीपतियों कि पत्रिका नहीं है बल्कि स्वप्न दृष्टा का दुस्साहस है | उन्होंने कहा कि वो पत्रकारिता जगत में पिछले २० साल से हैं और उन्होंने हजारों पत्र -पत्रिकाओं को उदय होते व् अस्त होते देखा है | वो जानते थे कि पत्र -पत्रिकाएँ निकालना आसान नहीं हैं इसमें ढेर सारी पूँजी , समय व् ऊर्जा कि जरूरत होती है | परन्तु फिर भी जब उन्होंने अपने चारों ओर निराश -हताश समाज को देखा … Read more

जन्म दिन की शुभकामनाएं ” अटूट बंधन “

आज आपकी प्रिय पत्रिका ” अटूट बंधन” एकवर्ष पूरा कर दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रही हैं| जिस तरह आप सब ने स्नेह व् आशीर्वाद देकर पत्रिका को प्रथम वर्ष में ही देश की लोकप्रिय पत्रिकाओ में शामिल कर दिया है | उसके लिए पूरा ” अटूट बंधन ग्रुप ” आप सब का आभारी है| आशा है आगे भी आपका साथ हमें इसी प्रकार मिलता रहेगा | जैसा की सर्वविदित है ” अटूट बंधन ” पोजिटिव थिंकिंग का महा अभियान है| हमारा मानना है क्रांति तलवार से नहीं विचारों से होती है | और दुनिया की सबसे कठिन लड़ाई अपने से होती है | जब इंसान खुद से हार जाता है , तो वो किसी से कभी भी नहीं जीत सकता | निराशा की कोई जाति नहीं होती , धर्म नहीं होता , अमीर –गरीब नहीं होती , देश और प्रान्त की सीमाएं भी उसे नहीं बाँध सकती | वो सर्व व्यापक हैं | जब जीवन में निराशा आती है तो उस अन्धकार में कुछ भी दिखाई नहीं देता | “ अटूट बंधन का उदेश्य उसी निराशा के खिलाफ सकारात्मक चिंतन का दीप जलना हैं | जब  ओमकार मणि त्रिपाठी जी  ने नेक नियति व् सर्व जन हिताय की भावना से इस पत्रिका की नींव रखी तो देश भर से लोग स्वत: ही जुड़ते गए व् अटूट बंधन ग्रुप बना | सभी ने पत्रिका के माध्यम से सकारात्मक विचारों के प्रचार –प्रसार , व् मनुष्य के अन्दर समस्याओं से जूझ कर विजेता के रूप में सामने आने वाली क्षमताओं के विकास के इस महाभियान के प्रसार में अपनी शत प्रतिशत शक्ति लगा दी |पत्रिका की प्रबंध संपादक रेनू चुग जी, सलाहकार संपादक नागेश्वरी राव जी , अरुणा पाण्डेय जी व् दक्षिण भारत ब्यूरो प्रमुख महेश अग्रवाल जी  व् प्रशासकीय  सलाहकार सत्यकार मणि त्रिपाठी जी के  अथक प्रयासों ने पत्रिका को एक वर्ष से भी कम समय में पाठकों के बीच लोकप्रिय पत्रिका के रूप में स्थापित कर दिया | हमारा प्रयास है ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित हों | अटूट बंधन परिवार का निरंतर विस्तार हो रहा है | आप भी इस महाभियान में शामिल होइए, क्योंकि हमारी लड़ाई निराशा के अंधेरों के खिलाफ है | हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है की आप का साथ हमें मिलेगा जिससे हम जन कल्याण के अपने व्यापक उदेश्य को पूरा करने में सफल हो पायेंगे ……….

अटूट बंधन अंक -९ अनुक्रमणिका

अटूट बंधन अंक -९ जुलाई अंक अनुक्रमणिका  १) आपके विचार ही आपकी उर्जा हैं जो जीवन को दिशा देते हैं क्या सकारात्मक विचार के द्वारा व्यक्तित्व का विकास कर जीवन को सफल बनाया जा सकता है ? व् आज के युग में जब हम सुबह भारत में शाम अमेरिका में बिता कर गर्व से कहते हैं कि अब पूरा विश्व एक आँगन बन गया है ,क्या हमारा आँगन बड़ा हो गया है व् दायरे संकुचित ………. सकारात्मक विचार से व्यक्तिव विकास व् बड़ा होता आँगन पर विशेष सम्पादकीय २) हम सभी चाहते हैं कि हमारा घर सुन्दर दिखे …. और बजट भी हमारे अनुकूल हो ,तो क्या रंगों में थोड़ी हेर –फेर करके घर को ग्रैंड लुक दिया जा सकता है ……. जानिये कोलकाता की प्राची शुक्ला के लेख “गृह सज्जा में रंगों का महत्व “लेख से ३) सुबह से शाम तक सेल्फी खींचना और ऍफ़ .बी पर डालना …. ये महज एक शौक हो सकता है पर जब आप इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं तो क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं …….. पढ़िए मनीषा सक्सेना के ज्ञानवर्धक लेख “सेल्फी का दीवानापन “ में४) सत्ता के गलियारों में बैठे लोग “ फर्जी डिग्री के मामले में पकडे जाते हैं तो जनता का आहत होना स्वाभाविक है | जिन्हें हमने भारी बहुमत से जीता कर संसद व् विधान सभा में भेजते समय अपने मासूम सपने सौपे थे उनकी नीयत और नैतिकता की खोट से पूरा देश स्तब्ध है …………पढ़िए देश दशा में कुछ सवालों के उत्तर तलाशता एक संवेदनशील लेख “सत्ता की चौखट पर आहात नैतिकता ५) कितने लोग हैं जो आईने के सामने खड़े होकर खुद को स्वीकार कर पाते हैं हैं अपने फेवरेट | बस किसी ने कुछ कहा और कच्ची नीव के मकान की तरह हमारा आत्मविश्वास भरभरा के गिर पड़ता है रह जाता है बस अवसाद …….. पर इसे रोका जा सकता है ,खुद को स्वीकारे करके ,खुद से प्यार करके …………. कैसे ?पढ़िए आवरण कथा “करे खुद से प्यार “में ६) जब घर में अन्धकार हो ,तो दीपक जालाते हैं पर जब मन में अन्धकार हों तो क्या करे ….. जानिये दिल्ली के सच्चिदानंद शुक्ला के ज्ञान वर्धक लेख “निराशा में जलाए आशा के दीप “में ७) जीवन में सब कुछ मिल जाता है पर सच्चा गुरु नहीं मिलता ….. गुरु के लिए मन में श्रद्धा भाव स्वाभाविक है …………..पढ़िए गुरु पूर्णिमा पर दिनेश शर्मा गोरखपुर का विशेष लेख “गुरु बिना अधूरा है जीवन “८) व्यक्तिव विकास में पढ़िए जीतेंद्र पाण्डेय भोपाल मध्य प्रदेश का उत्त्सह्वर्धक लेख “लगन से जीते बाधाएं ‘९) नैतिक शिक्षा देता प्रेरक प्रसंग “ जो झुकता है वो पाता है “१०) बच्चे परेशांन हैं बूढ़े परेशांन ,मैगी के बैन से सब परेशान हैं ………. ये मैगी क्या गयी ………बच्चों का टेस्टी फ़ूड ले गयी , औरतों की कलफ लगी साडी के साथ बस दो मिनट वाली स्माइल ले गयी ,डॉक्टरों के मरीज ले गयी …….. और भी जाने क्या क्या ले गयी …. जानने के लिए पढ़िए हँसाता –गुदगुदाता व्यंग “हाय मैगी …बाय मैगी में ११) इंसान सामाजिक प्राणी है ,न अकेला हंस सकता है न रो सकता है ….इसीलिये उसे चाहिए तरह तरह के लोग तरह तरह के रिश्ते …. रिश्ते –नाते कॉलम में पढ़िए डॉ हेमा चतुर्वेदी मुंबई महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण लेख ….”रिश्तों का महत्व “१२) काव्यजगत में पढ़िए ……….इंजी .आशा शर्मा ,तरसेम कौर ‘सुमी ‘,हयात सिंह ,शबाना कलीम अव्वल ,सपना मांगलिक ,श्रीमती एस .सेन गुप्ता ,चद्र मौली पाण्डेय और बीनू भटनागर जी की भाव् प्रणव कवितायें १३) अतीत का बारबार वर्तमान में हावी होना ,जिंदगी को रोक देता है पर जिंदगी रोकी नहीं जा सकती एक ही उपाय है …….पढ़िए आराधना सिंह की बेहतरीन कहानी “ ब्लोक अतीत “१४) अगर कोई बच्चा जरूरत से ज्यादा शैतान है ,पढाई में मन नहीं लगा पाता ,हमेशा ख्यालों में खोया रहता है तो ये सामान्य लक्षण नहीं हैं …. जरूरत है इन्हें पहचानने की व् सुधार करने की ….. बाल जगत में पढ़िए डॉशिखा अग्निहोत्री चेन्नई का अवश्य पठनीय लेख “ कहीं आप का बच्चा ए .डी एच .डी का शिकार तो नहीं “ १५) बारिश का मौसम यानी की बीमारियों का मौसम …. पर क्या कुछ बचाव कर सकते हैं कि स्वस्थ रहे और भीगते हुए भी चाय पकौड़ी के साथ मौसम का लुत्फ़ ले सके …….. स्वाथ्य जगत में पढ़िए दो सर्वजीत त्रिपाठी वाराणसी का स्वास्थ्यवर्धक लेख “बचे बारिश के मौसम की बीमारियों से “ १६) समय बदला ,युग बदले पर नारी आज भी वहीँ खड़ी है क्या कोई समाधान है …… स्त्री विमर्श में पढ़िए पुष्प लता शर्मा का लेख “ परिवर्तन जरूरी है १७) हमारे नए कॉलम “ बात जो दिल को छू जाए” में आप पढेगे ऐसी बाते जो आपकी संवेदनाओ को झक्झोरेंगी और यकीनन दिल को छुएगी १८) १४ जुलाई को गुरु सिंह राशी में प्रवेश करेगा …. जिसका असर हर राशी के जातको पर अलग –अलग पड़ेगा ………. आपकी राशी पर इसका क्या असर पड़ेगा जानने के लिए ज्योतिष सेक्शन में पढ़िए रोचकता से भरपूर लेख ‘ १४ जुलाई से किसकी बदलेगी तकदीर “में १९) हम सब हँसना चाहते हैं पर शुद्ध हास्य कहीं खो गया है ……. अध्यात्म में पढ़िए”हंसो जी भर के “२०) डॉ संध्या तिवारी व् रचना व्यास की लघुकथाएं २१) विविध में जानिये क्यों करते हैं मंदिर में घंटा नाद २२) प्रेरक विचार व् रोचक तथ्य २३) आपके स्नेह से लिखे खतों में से चुनिन्दा खतों को को जनता तक पहुचायेगा “चिट्ठी –पत्री कॉलम’२४) अन्य सभी स्थयी स्तम्भ पूर्ववत atoot bandhan ……………हमारा पेज 

अटूट बंधन

अटूट बंधन  के पाठकों का शुक्रिया  एक नन्हा सा जुगनू , निकल पड़ा कोमल मखमली परों पर रख कर कुछ सपनों की कतरने हौसलों कीमुट्ठी भर धूपदेखते ही देखतेहोने लगा उजियाराकैसे ?कोई परीयाजादू की छड़ीविश्वास नहीं होतापरकरिश्में अब भी होते हैं ये किसी करिश्में से कम नहीं कि इतने कम समय में कोई पत्रिका इतनी लोकप्रिय हो जाए ………पाठकों के फोन ,ईमेल और मिलने पर उनकी आँखों में श्रद्धा का भाव हमें यह अहसास दिला रहा है कि हम पूरी ईमानदारी के साथ अपना ” वैचारिक क्रांति के अभियान” का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं | हमें उम्मीद है आगे भी समस्त पाठक यूँ ही हमारा मनोबल बढाते रहेंगे और हम अच्छा काम करते रहेंगे …….पूरा “अटूट बंधन “परिवार इस सहयोग व् सराहना के लिए अपने सभी पाठकों का ह्रदय से धन्यवाद व्यक्त करता है अटूट बंधन। …………. हमारा पेज