अटूट बंधन अंक -३ सम्पादकीय

                                        चलो थाम लें एक दूसरे का हाथ………. कि  उड़ना है दूर तक ………….. जब धरती पर खोली थी मैंने आँखें  तब थी मेरी बंद मुट्ठियाँ  जिसमें कैद था पूरा आसमान  हुलस कर देखा था मैंने  हवाओं ,घटाओं गिरी कंदराओं को  चमकते सूर्य और बेदाग़ चाँद को उफन कर आती सागर की लहरों को  लहलहाते सरसों के खेत  और मटर की बंद फलियों को  जब चल रही थी डगमगाते हुए   नन्हें -नन्हें क़दमों से  और  बंद थी मेरी मुट्ठी  में  माँ की एक अंगुली  जिसके साथ पूरा जहाँ  तब माँ ने ही  दी थी दृष्टि बताये थे दृश्य और अदृश्य  आसमानों के भेद समझाया था मुट्ठियाँ कभी  खुलती नहीं  मुट्ठियाँ कभी खाली नहीं होती  उसमें भरे होते हैं  सपनों के आसमान मेरी -तुम्हारी ,इसकी –उसकी हथेलियों में  फडफडाते हैं नन्हे पर उड़ने को बेकरार कभी आ जाता है हौसला कभी डर कर समेट लेते हैं पर कि कहीं भटक न जाए राह में या टकरा जाए किसी मीनार से या छू जाये कोई बिजली का तार   तो चलो  बन जाएँ बन जाए एक दूसरे की शक्ति हिम्मत न टूटे हौसला न छूटे थाम लें एक दूसरे का हाथ कि उड़ना है दूर तक ………….. शाम का समय है  मैं अपने घर की बालकनी में खड़ी होकर आकाश को निहार रही हूँ ………कुछ नीला कुछ नारंगी ,कुछ लाल सा आसमान जैसे किसी चित्रकार ने बिखेर दिए हो सुन्दर रंग ………. चुन लो अपने मन का कुछ अलसाया सा सूर्य जो दिन भर काम करने के बाद  थक कर पश्चिम में अपनी माँ की गोद में जाने को बेकरार सा है … थोड़ा आराम करले ,फिर आएगा कल एक नयी ताज़गी नयी रोशनी नयी ऊर्जा के साथ ……कल का सूरज बनकर ………ठीक वैसे ही समय का एक टुकड़ा २०१४ के रूप में थक गया है अपनी जिम्मेदारियां निभाते -निभाते,खट्टे -मीठे अनुभव देते -देते  ……. अब बस … अब जाएगा माँ की गोद में ……….फिर आएगा कल नए रूप में, नयी आशा , नयी ताज़गी के साथ  ………. २०१५ बनकर। बादलों के समूह रंग बदलने लगे ही धीरे -धीरे। ………अन्धकार में चुपके से रंगेंगे कल की उजली सुबह।  पक्षियों के झुण्ड लौट रहे हैं घर की तरफ एक साथ एक विशेष पंक्ति में………. कि  साथ न छूटे                                                     ऐसे में मैं देख रही हूँ पक्षियों के कुछ समूहों को एक विशेष क्रम में उड़ते हुए। अंग्रेजी वर्णमाला का उल्टा v  बनाकर।  सबसे बड़ा पंक्षी सबसे आगे ,उसके पीछे उससे छोटा ,फिर उससे छोटा अंत में सबसे छोटे नन्हे -मुन्ने बच्चे …. उड़ान का एक खास क्रम ……… एक वैज्ञानिक नियम का पालन ……..कि  पक्षी के परों  द्वारा पीछे  हटाई गयी हवा उसे आगे बढ़ा देती है।  सबसे बड़ा पक्षी सबसे ज्यादा  हवा हटाता है ,उसके पीछे वाले को उससे कम ,…. उससे पीछे वाले को उससे कम ……. और सबसे नन्हे मुन्ने को बहुत कम मेहनत करनी पड़ती है ,जिससे वो थकता नहीं व् पूरी उड़ान भर साथ देता है।  ये  मूक से पक्षी परस्पर सहयोग करते हुए कितनी लम्बी -लम्बी उड़ाने पूरी कर लेते है।  प्रकृति ने कितनी समझदारी दी है इन पंक्षियों को।                                                      मुझे याद आ जाती है बचपन  माँ के द्वारा सुनाई गयी एक कहानी,एक बार चिड़ियों को पकड़ने के लिए एक बहेलिये ने जाल बिछाया था, दाना  खाने के लोभ  में बहुत सी चिड़ियाँ उसमें फंस गयी. …. चिड़ियों ने बहुत प्रयास किया पर निकल ना सकी ,फिर सबने मिल कर सामूहिक प्रयास किया ,पूरी शक्ति लगा दी ……… और चिड़ियाँ जाल ले कर उड़ गयी दूर बहुत दूर,  जहाँ उनके मित्र चूहे ने उनका जाल काट दिया ……… और चिड़ियाँ आज़ाद हो गयी।  देखा संघटन में शक्ति होती है कहकर माँ की कहानी समाप्त हो जाती ………पर मेरे मन में एक नयी कहानी शुरू हो जाती ,जो आज तक अधूरी है “क्या ऐसा संघटन मनुष्यों में हो सकता है “                                                                 अचानक मैं फिर आसमान देखती हूँ। …कितना ऊंचा ,कितना विशाल ……… शायद इन्हीं आसमानों के बीच में कोई एक आसमान है …. मेरा अपना ,मेरा निजी ,जिसे पाने का सपना देखा था कभी माँ की लोरियों के साथ नींद के आगोश में जाते हुए ,कभी नन्हा सा बस्ता लेकर स्कूल जाते हुए या सहेलियों के साथ कॉलेज की डिग्री लेते हुए। …… फिर देखती हूँ अपने पर शायद उड़ ना पाऊ ,शायद टकरा जाऊ किसी ऊंची मीनार से , या छू जाए बिजली का तार ,या सहन न हो मौसमी थपेड़े ………समेट  लेती हो अपने पर,  मेरे सपनों का आसमान सपनों में ही रह जाता है उसके ठीक बगल में है ,इसके सपनों का आसमान ,उसके सपनों का आसमान …………और शायद ! तुम्हारे सपनों का आसमान , दुर्भाग्य ,जो अब सपनों में ही रह गया.……………                                यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि “कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता , एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों “ और बहुत से लोगों ने इस राह पर चल कर जोश व् लगन से असंभव को संभव कर दिखाया है। परन्तु यह भी एक सामाजिक सच्चाई है सुदूर गाँवों में कितने बच्चों को शिक्षा का महत्त्व ही नहीं पता , शहरों  में कितने नन्हे मुन्ने बच्चों के हाथों में स्कूल के बस्तों की जगह झाड़ू और बर्तन मांजने का जूना  पकड़ा दिया जाता है। ……… महज अच्छा वर न मिल पाने के भय से कितनी लडकियों  को उच्च शिक्षा का मौका नहीं दिया जाता है.………कितनी लडकियां सपने देखने की उम्र में प्रसूति ग्रहों के चक्कर लगा रही होती हैं ……………जल्दी शादी ,जल्दी बच्चे, और बच्चे और  जल्दी मौत। क्या उनका यही सपना था ,क्या इसके अतिरिक्त  उन्होने कोई और सपने नहीं देखे थे। क्या विधाता ने उनके सपनों का कोई आसमान रचा ही नहीं था ?मैं फिर आसमान की तरफ देखती हूँ ,माँ … Read more