सिर्फ अहसास हूँ मैं…….. रूह से महसूस करो

फिर पद चाप  सुनाई पड़ रहे  वसंत ऋतु के आगमन के  जब वसुंधरा बदलेगी स्वेत साडी  करेगी श्रृंगार उल्लसित वातावरण में झूमने लगेंगे मदन -रति और अखिल विश्व करने लगेगा मादक नृत्य सजने लगेंगे बाजार अस्तित्व में आयेगे अदृश्य तराजू जो फिर से तोलने लगेंगे प्रेम जैसे विराट शब्द को उपहारों में अधिकार भाव में आकर्षण में भोग -विलास में और विश्व रहेगा अतृप्त का अतृप्त फिर सिसकेगी प्रेम की असली परिभाषा क्योकि जिसने उसे जान लिया उसके लिए हर मौसम वसंत का है जिसने नहीं जाना उसके लिए चार दिन के वसंत में भी क्या है ?                 मैं प्रेम हूँ ….. चौक गए …सच! मैं वहीं प्रेम हूँ जिसे तुम सदियों से ढूंढते आ रहे हो ,कितनी जगहों पर कितने रिश्तों में कितनी जड़ और चेतन वस्तुओं  में तुमने मुझे ढूँढने का प्रयास किया है…..यहाँ वहाँ इधर –उधर सर्वत्र व्याप्त होते हुए भी मैं सदा तुम्हारे लिए एक अबूझ पहेली ही रहा जिसको तुम तरह –तरह से परिभाषित करते रहे और जितना परिभाषित करते रहे उतना उलझते रहे ये लुका –छिपी मुझे दरसल भाती  बहुत है मैं किसी  कमसिन अल्हड नायिका की तरह मुस्कुराता हूँ  जब तुम  मुझे पा के अतृप्त , भोग कर अभोगे ,जान कर अनजान रह जाते हो  …आश्चर्य  जितना तुम मुझे परिभाषाओं से बाँधने का प्रयास करते हो उतना ही मैं परिभाषा से रहित हो जाता हूँ क्योकि बंधन मुझे पसंद नहीं |मैं तुम्हारे हर रिश्ते में हूँ कहीं माता –पिता का प्यार ,कहीं बहन –भाई का स्नेह ,कहीं बच्चों की किलकारी तो कहीं पति –पत्नी का दाम्पत्य |इतने रिश्तों में होते हुए भी तुम अतृप्त हो क्यों ?उत्तर सरल है जब भी तुम किसी रिश्ते में अधिकार और वर्चस्व की भावना ले आते हो ,मेरा दम घुटने लगता है ,बस सतह पर अपना प्रतिबिम्ब छोड़ मैं निकल कर भाग जाता हूँ ,और सतह के जल से तुम तृप्त नहीं होते | फिर तुम मुझे प्रकृति में सिद्ध करते हो कि मैं झरनों  की झम –झम में नदियाँ की कल –कल में फूलों की खुश्बूँ में हूँ तो मैं पाषाण प्रतिमा में  प्रवेश कर साक्षात् ईश्वर बन जाता हूँ ,जब तुम  मुझे सुख –सुविधाओं में  सिद्ध करते हो तो मैं अलमस्त कबीर की फटी झोली बन जाता हूँ ….तुम हार नहीं मानते तुम मुझे देह को भोगते हुए देहातीत होने को सिद्ध करते हो |मैं फिर मुस्कुरा कर कहता हूँ अरे ! मैं तो वो राधा हूँ,जो प्रेम की सम्पूर्णता में  पुकारती है “आदि मैं न होती राधे –कृष्ण की रकार पे ,तो मेरी जान राधे –कृष्ण “आधे कृष्ण” रहते “ राधा  किसी दूसरे की पत्नी बच्चों की माँ , अपने कृष्ण हजारों मील दूर ,कहाँ है देह ?यहाँ तो देह का सानिध्य नहीं है ….राधा के लिए कृष्ण देह नहीं हैं अपतु राधा  के लिए कृष्ण के अतिरिक्त कोई दूसरी देह ही नहीं है ,न जड़ न चेतन |तभी तो जब एक चाकर ने  कृष्ण के परलोक पलायन का दुखद समाचार  राधा को दिया ,हे राधे कृष्ण चले गए … मुस्कुरा  कर कह उठी राधा “परिहास करता है ,कहाँ गए कृष्ण ,कहाँ जा सकते हैं वो तो कण –कण में हैं ,पत्ते –पत्ते  में हैं ,उनके अतिरिक्त कुछ है क्या ? राधा के लिए कृष्ण ,कृष्ण नहीं हैं ,अपितु कृष्ण के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ,स्वयं राधा भी राधा नहीं रहीं वो कृष्ण हो गयी …. सारे  भेद ही मिट गए…. लोक –काल से परे हो गया ,पूज्य हो गया ये प्रेम |  पर ठहरो नहीं, यहीं पर मत अटको अभी मेरे पिटारे में बताने को और भी बहुत कुछ है ….. मैं तुलसी का वो पत्ता हूँ जो कृष्ण के वजन से भी गुरु हो गया ,हाँ !उस कृष्ण के वजन से जिनके पलड़े को  सत्यभामा का अभिमान व् अहंकार मिश्रित प्रेम अपने व् सारे द्वारिका के स्वर्ण आभूषणों के भार  से जरा भी न झुका सका |                                         विज्ञान ने भी मुझे जानने  समझने की कोशिश की है…कभी कहता है मैं मष्तिष्क के हाइपोथेलेमस में हूँ तो कभी कहता है मैं मात्र एक रसायन हूँ ….मैं फिर मुस्कुरा उठता हूँ ….जनता हूँ विरोधाभास मेरा स्वाभाव है …. जितना गूंढ उतना सुलभ  , जितना सूक्ष्म उतना व्यापक, जितना जटिल उतना सरल …. तभी तो लेने में नहीं देने में बढ़ता हूँ ….. इतना कि व्यक्ति में क्या समष्टि में न समाये …. ज्ञानी जान न पाए मुझे पर कबीर गा उठते हैं “पोथी पढ़ी –पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय “|ये ढाई अक्षर समझना ही तो दुष्कर है क्योंकि इसके बाद ज्ञान के सारे द्वार खुल जाते हैं ,आनद के सारे द्वार खुल जाते हैं |कितने विचारक तुम्हे मेरा अर्थ समझाने का प्रयास करते हैं …. पर मैं गूंगे का गुड हूँ जिसने जान लिया उसके लिए समझाना आसान नहीं ….  फिर भी प्रयास जारी रखे गए क्योंकि जिसने पा लिया उसने जान लिया प्रेम को पाना मतलब आनंद को पाना उसे बांटने में आनन्द आने लगा …. अरे ! मैं ही तो वो प्याला हूँ जो एक बार भर जाए तो छलकता रहता है युगों –युगों तक कभी रिक्त नहीं होता |रिश्तों के बंधन हैं मर्यादाएं पर मैं कोई बंधन नहीं मानता …. अपने शुद्ध रूप में जो सात्विक है मैं सबके लिए एक सामान हूँ रिश्तों –नातों के लिए ही नहीं समस्त सृष्टि के लिए |कभी अनुभव किये हैं अपने आंसूं ,सुख के मीठे से ,दुःख के जहरीले ,कडवे से और तीसरे स्नेह के ,कुछ अबूझ से जो आत्मा को तृप्त करते हैं एक विचित्र सा आनंद प्रदान करते हैं जैसे किसी ने आत्मा को छू  लिया है…. क्योकि यहाँ सिर्फ देना ही देना है लेने की भावना नहीं |मेरे इस शुद्ध  सात्विक रूप को ही ऋषि मुनियों ने जाना है ,आनंद का अनुभव किया है  किसी ने तुम्हे यह कह कर  समझाने का प्रयास  किया है सबमें स्वयं को देखो तभी परस्पर झगडे –फसाद ,सीमाओं को तोड़ कर मुझे पा सकोगे |तो किसी ने यह कह कर समझाने का प्रयास किया है अपने अन्दर गहरे उतरो ,सबको खुद में देखो …उस बूँद की तरह जो सागर का हिस्सा भी है ,और स्वयं सागर भी …. क्योकि असली … Read more

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

                                                       ॐ  ॐ  ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः                                                                                   सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा  कश्चिद् दुःखभागभवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥                                           भारतीय  संस्कृति का यह श्लोक मुझे सदैव प्रभावित करता रहा है। ….. जिसमें प्राणी मात्र की मंगलकामना निहित है।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ,एक का दुःख दूसरे पर प्रभाव डालता  है.इसीलिए  भारतीय दर्शन सदा से सबके सुख की कामना करना सिखाता है। कहीं न कहीं यह “अटूट बंधन “का  यह ब्लॉग बनाने का मेरा उद्देश्य भी यही रहा है। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है ,परन्तु मेरा मानना  है की साहित्य समाज का  दर्पण होने के साथ -साथ समाज को सकारात्मक सोचने पर विवश भी करता है और उसे नयी दिशा देने में उत्प्रेरक का काम भी करता है।साहित्य की भूमिका एक दीपक की तरह होती है , जो किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए सब का पथ आलोकित करता है |इस  ब्लॉग में मेरा प्रयास सदैव यही रहेगा की आप को उच्च कोटि की रचनायें , ………. चाहे वो साहित्य आध्यात्म ,धर्म ,सामाजिक सरोकारों से या संस्कृतिक चेतना से  सम्बंधित हो पढ़ने को मिले। इसके अतिरिक्त समस्याओं से घिरे मन को अपनी समस्याओं का सामना करने के लिए सकारात्मक सोंच और नयी दिशा मिले | आशा यहाँ समय व्यतीत करने के बाद आप कुछ शांति ,कुछ उत्साह का अनुभव करेंगे व् आपकी सकारात्मकता  का दायरा विकसित होगा।                             आइये इस यात्रा में आगे बढें | आप सभी को जीवन में स्वास्थ्य , सफलता और खुशियाँ मिले |                                                                                   वंदना बाजपेयी