पुलवामा हमला – शर्मनाक है सोशल मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार
पुलवामा हमले से हर भारतीय आहत हुआ है लेकिन पुलवामा हमले , एयर स्ट्राइक और पाकिस्तान के कब्जे में लिए गए हमारे वीर विंग कमांडर अभिनंदन का वापस देश लौटना …ये सब ऐसी घटनाएं थी , जिन्होंने हर भारतीय की बेचैनी को बढ़ा दिया था | ऐसे समय में जब पूरे देश कोएक जुट होकर एक स्वर में बोलना चाहिए था , तब सोशल मीडिया पर दो पक्ष उभर आये जो देश के साथ नहीं अपनी -अपनी पार्टी के हितों के साथ खड़े थे | भाषा शालीनता की सीमा पार कर अभद्रता और जूतम -पैजार पर उतर आई | किसी भी देश के प्रबुद्ध नागरिकों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती , ऐसे समय में सोशल मीडिया के इस गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता | प्रस्तुत है इसी मुद्दे पर वरिष्ठ लेखिका बीनू भटनागर जी का लेख … पुलवामा हमला – शर्मनाक है सोशल मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार फरवरी का महीना बड़े उतार चढ़ाव वाला रहा। दुख, त्रासदी,आक्रोश दोषारोपण के साथ देश में देश भक्ति और संवेदनशीलता की पर अजीब सी बहस चल रही थी। जो एकता दिखनी चाहिये थी वह नहीं दिखी। जब हम अपने परिवार के भीतर किसी बात को लेकर लड़ रहे होते है, परिवार के मुखिया से भी बहस कर लेते हैं पर बाहर से आकर कोई बुला भरा कहे तो पूरा परिवार आपसी मतभेद भुला कर एक हो जाता है। भारत में ऐसा नहीं हुआ यहाँ मोदी भक्त भक्ति करते रहे और विरोधी विरोध करते रहे यहाँ तक कि उन्होंने सारे मुसीबत की जड़ ही प्रधानमंत्री को बता दिया। इस घटनाक्रम को ही राजनीतिक साज़िश करार कर दिया गया ,इससे देश की छवि को ही नुकसान पहुँचा। आखिर जनता ने ही बीजेपी को और मोदी जी को सत्ता सौंपी थी। यदि आप उनसे असंतुष्ट हैं तो हमारा संविधान आपको अपनी बात कहने की इजाजत देताहै, लेकिन जब बाहरी शक्तियाँ देश के लिये ख़तरा हों तो सबको देश की सरकार के साथ होना चाहिये था। 14 फरवरी कोजब पुलवामा में सी. आर.पीएफ़ की बस पर हमले में जवान शहीद हुए तो टीवी पर वही कॉग्रेस बीजेपी की तनातनी चल रही थी। कुछ समय बाद ये तनातनी ख़त्म हो गई विपक्ष संयत हो गया मगर सोशल मीडिया अति सक्रिय हो उठा।जब पुलवामाकी ख़बर आई तो मोदी जी कहीं शूटिंग कर रहे थे, कोई वीडियो बन रहा था इसबात को बहुत उछाला गया और कहा गया कि मोदी संवेदनहीन व्यक्ति हैं। उनकी तरफ़ से ख़बर आई थी कि प्रधान मंत्री को सूचना देने में देर हो गई इस पर लोगों को विश्वास नहीं हुआ। इस घटना का समाचार देर से मिला या नहीं इस बात पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हर स्थिति से निपटने के सबके तरीक़े अलग होते हैं। कोई दुख में डूब कर अवसाद ग्रस्त हो जाता है कोई शांत रहकर सब काम यथावत करता है वहThe show must go on में विश्वास रखता है। यही मोदी जी कर रहे थे। अपनी पद और गरिमा के अनुकूल निर्णय ले रहे थे और पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों में बिना परिवर्तन किये चुनावी रैलियाँ कर रहे थे। व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि ये चुनावी रैलियाँ उन्हेरद्ध कर देनी चाहिये थीं , इसलिये नहीं कि ऐसा करना ग़लत था बल्कि इसलिये क्योंकि जनता उन्हें संवेदन हीन समझ रही थी, उनकी छवि को नुकसान हो रहा था। चुनाव में भी इन रैलियों की वजह से कोई फ़ायदा नहीं मिलने वाला था, कुछ नुकसान ही हुआ होगा। वहाँ जब 40 जवान शहीद हुए तो चुनावी भाषण का असर उलटा ही होना था। पढ़िए –बालात्कार का मनोविज्ञान और सामाजिक पहलू सोशल मीडिया पर एक बहस सी हो रही थी कि पुलवामा की आतंकवादी घटना के बाद कौन कितना दुखी है! किसका दुख सच्चा है किसकी दुख दिखावा है! ऐसा लिखते समय कहीं कहीं लोगों का राजनीतिक झुकाव और किसी कौम या व्यक्ति के प्रति दुराग्रह भी नज़र आ रहा था। भाषा की अभद्रता सहनशीलता की सीमा लाँघ रही थी,हर एक अपने को देश प्रेमी साबित करने में लगा था। हर एक की दुख सहने की सीमा और उसे अभिव्यक्ति करने के तरीक़े अलग हो सकते है, दुख को कैसे सहें उसके तरीके अलग हो सकते हैं। आपका तरीका आपके लिये सही है पर दूसरा वह तरीका नहीं अपना रहा तो इसका ये अर्थ नहीं है कि वो दुखी नहीं है या उसका दुख नक़ली है। कोई कवि कह रहा था कि उससे कविता नहीं सूझ रही, पता नहीं लोग दुख में कैसे काव्य रच रहे हैं।सही है कभी कभी कविता नहीं लिखी जाती…. शब्द ही रूठ जाते हैं पर हो सकता है दूसरे किसी कवि की भावनाओं को शब्द मिल गये हों और अभिव्यक्त करके वो हल्का महसूस कर रहा हो।किसी मित्र ने लिखा कि ऐसी आतंकवादी घटना की निंदा और विरोध में जो अपनी वाल पर कुछ भी नहीं लिख रहा वह देश विरोधी है। चुप्पी देशविरोधी कैसे हो गई। कोई हँस रहा है, जन्मदिन दिन मना रहा है, शादी में शिरकत कर रहा है, रैस्टोरैंट में खाना खा रहा है या सिनेमा देख रहा है तो उसका दुख नकली है! ऐसे विचार प्रकट किये जा रहे है! मतलब आप चाहते क्या थे कि सारा देश अवसाद ग्रस्त हो जाये या आक्रोश में देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाये या यातायात रोके, बंध करवाये! नारे लगाये और सड़कों पर आ जाये।दुख था तो कुछ पीड़ित परिवारों की मदद कर देते, अपनी डी. पी. काली करते या मोमबत्ती जलाते पर अपने दुख की तुलना दूसरे के दुख से तो न करते ।यदि कोई किसी देशद्रोही गतिविधि में संलग्न नहीं था तो उसे किसी को ये बताने की ज़रूरत नहीं थी कि वह कितना दुखी हैं और उनका दुख असली है या दिखावा! कुछ लोग फ़िज़ूल की अटकलें लगाने से बाज़ नहीं आ रहे थे। ये माना कि सुरक्षा में कहीं न कहीं चूक हुई थी पर ये कहना कि ऐसा जानबूझ कर राजनीतिक लाभ के लिये करवाया गया है सरासर ग़लत था। विपक्ष के पक्षधर बिना किसी प्रमाण के इस प्रकार की बातें फैला रहे थे। कोई सवाल करें तो कहा कि संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अटकलें … Read more