पुलवामा हमला – शर्मनाक है सोशल मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार

पुलवामा हमले से हर भारतीय आहत हुआ है लेकिन पुलवामा  हमले , एयर स्ट्राइक और पाकिस्तान के कब्जे में लिए गए हमारे वीर विंग कमांडर अभिनंदन का वापस देश लौटना …ये सब ऐसी घटनाएं  थी , जिन्होंने हर भारतीय  की बेचैनी को बढ़ा दिया था | ऐसे समय में जब पूरे देश कोएक जुट होकर एक स्वर में बोलना चाहिए था , तब सोशल मीडिया पर दो पक्ष उभर आये जो देश के साथ नहीं अपनी -अपनी पार्टी के हितों के साथ खड़े थे | भाषा शालीनता की सीमा पार कर अभद्रता और जूतम -पैजार पर उतर आई | किसी भी देश के प्रबुद्ध नागरिकों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती , ऐसे समय में सोशल मीडिया के इस  गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को  नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता | प्रस्तुत  है इसी मुद्दे पर वरिष्ठ लेखिका बीनू भटनागर जी का लेख … पुलवामा हमला – शर्मनाक है सोशल मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार  फरवरी का महीना बड़े उतार चढ़ाव वाला रहा। दुख, त्रासदी,आक्रोश दोषारोपण के साथ देश में देश भक्ति और संवेदनशीलता की पर अजीब सी बहस चल रही थी। जो एकता दिखनी चाहिये थी वह नहीं दिखी। जब हम अपने परिवार के भीतर किसी बात को लेकर लड़ रहे होते है, परिवार के मुखिया से भी बहस कर लेते हैं पर बाहर से आकर कोई बुला भरा कहे तो पूरा परिवार आपसी मतभेद भुला कर एक हो जाता है। भारत में ऐसा नहीं हुआ यहाँ मोदी भक्त भक्ति करते रहे और विरोधी विरोध करते रहे यहाँ तक कि उन्होंने सारे मुसीबत की जड़ ही प्रधानमंत्री को बता दिया। इस घटनाक्रम को ही राजनीतिक साज़िश करार कर दिया गया ,इससे देश की छवि को ही नुकसान पहुँचा। आखिर जनता ने ही बीजेपी को और मोदी जी को सत्ता सौंपी थी। यदि आप उनसे असंतुष्ट हैं तो हमारा संविधान आपको अपनी बात कहने की इजाजत देताहै, लेकिन जब बाहरी शक्तियाँ देश के लिये ख़तरा हों तो सबको देश की सरकार के साथ होना चाहिये था।  14 फरवरी कोजब पुलवामा में सी. आर.पीएफ़ की बस पर हमले में जवान शहीद हुए तो टीवी पर वही कॉग्रेस बीजेपी की तनातनी चल रही थी। कुछ समय बाद ये तनातनी ख़त्म हो गई विपक्ष संयत हो गया मगर सोशल मीडिया अति सक्रिय हो उठा।जब पुलवामाकी ख़बर आई तो मोदी जी कहीं शूटिंग कर रहे थे, कोई वीडियो बन रहा था इसबात को बहुत उछाला गया और कहा गया कि मोदी संवेदनहीन व्यक्ति हैं। उनकी तरफ़ से ख़बर आई थी कि प्रधान मंत्री को सूचना देने में देर हो गई इस पर लोगों को विश्वास नहीं हुआ। इस घटना का समाचार देर से मिला या नहीं इस बात पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हर स्थिति से निपटने के सबके तरीक़े अलग होते हैं। कोई दुख में डूब कर अवसाद ग्रस्त हो जाता है कोई शांत रहकर सब काम यथावत करता है वहThe show must go on में विश्वास रखता है। यही मोदी जी कर रहे थे। अपनी पद और गरिमा के अनुकूल निर्णय ले रहे थे और पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों में बिना परिवर्तन किये चुनावी रैलियाँ कर रहे थे। व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि ये चुनावी रैलियाँ उन्हेरद्ध कर देनी चाहिये थीं , इसलिये नहीं कि ऐसा करना ग़लत था बल्कि इसलिये क्योंकि जनता उन्हें संवेदन हीन समझ रही थी, उनकी छवि को नुकसान हो रहा था। चुनाव में भी इन रैलियों की वजह से कोई फ़ायदा नहीं मिलने वाला था, कुछ नुकसान ही हुआ होगा। वहाँ जब 40 जवान शहीद हुए तो चुनावी भाषण का असर उलटा ही होना था। पढ़िए –बालात्कार का मनोविज्ञान और सामाजिक पहलू सोशल मीडिया पर एक बहस सी हो रही थी कि पुलवामा की आतंकवादी घटना के बाद कौन कितना दुखी है! किसका दुख सच्चा है किसकी दुख दिखावा है! ऐसा लिखते समय कहीं कहीं लोगों का राजनीतिक झुकाव और किसी कौम या व्यक्ति के प्रति दुराग्रह भी नज़र आ रहा था। भाषा की अभद्रता सहनशीलता की सीमा लाँघ रही थी,हर एक अपने को देश प्रेमी साबित करने में लगा था। हर एक की दुख सहने की सीमा और उसे अभिव्यक्ति करने के तरीक़े अलग हो सकते है, दुख को कैसे सहें उसके तरीके अलग हो सकते हैं। आपका तरीका आपके लिये सही है पर दूसरा वह तरीका नहीं अपना रहा तो इसका ये अर्थ नहीं है कि वो दुखी नहीं है या उसका दुख नक़ली है। कोई कवि कह रहा था कि उससे कविता नहीं सूझ रही, पता नहीं लोग दुख में कैसे काव्य रच रहे  हैं।सही है कभी कभी कविता नहीं लिखी जाती…. शब्द ही रूठ जाते हैं पर हो सकता है दूसरे किसी कवि की भावनाओं को शब्द मिल गये हों और अभिव्यक्त करके वो हल्का महसूस कर रहा हो।किसी मित्र ने लिखा कि ऐसी आतंकवादी घटना की निंदा और विरोध में जो अपनी वाल पर कुछ भी नहीं लिख रहा वह देश विरोधी है। चुप्पी देशविरोधी कैसे हो गई। कोई हँस रहा है, जन्मदिन दिन मना रहा है, शादी में शिरकत कर रहा है, रैस्टोरैंट में खाना खा रहा है या सिनेमा देख रहा है तो उसका दुख नकली है! ऐसे विचार प्रकट किये जा रहे है! मतलब आप चाहते क्या थे कि सारा देश अवसाद ग्रस्त हो जाये या आक्रोश में देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाये या यातायात रोके, बंध करवाये! नारे लगाये और सड़कों पर आ जाये।दुख था तो कुछ पीड़ित परिवारों की मदद कर देते, अपनी डी. पी. काली करते या  मोमबत्ती जलाते पर अपने दुख की तुलना दूसरे के दुख से तो न करते ।यदि कोई किसी देशद्रोही गतिविधि में संलग्न नहीं था तो उसे किसी को ये बताने की ज़रूरत नहीं थी कि वह कितना दुखी हैं और उनका दुख असली है या दिखावा! कुछ लोग फ़िज़ूल की अटकलें लगाने से बाज़ नहीं आ रहे थे। ये माना कि सुरक्षा में कहीं न कहीं चूक हुई थी पर ये कहना कि ऐसा जानबूझ कर राजनीतिक लाभ के लिये करवाया गया है सरासर ग़लत था। विपक्ष के पक्षधर बिना किसी प्रमाण के इस प्रकार की बातें फैला रहे थे। कोई सवाल करें तो कहा कि संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अटकलें … Read more

सबरीमाला -मंदिर –जड़ों को पर प्रहार करने से पहले जरा सोचें

Add caption केरल के सबरीमाला क प्रसिद्द तीर्थ स्थान है |सबरीमाला का नाम महान भक्त शबरी के नाम पर है जिसने प्रेम व् भक्ति के  वशीभूत हो कर प्रभु राम को झूठे बेर खिलाये थे | यहीं पर अयप्पा स्वामी का विश्व प्रसिद्द मंदिर है | इस मंदिर में  ब्रह्मचारी व्रत का पालन करने वाले हरि और हर के पुत्र अयप्पा स्वामी  की पूजा होती है | लाखों भक्त यहाँ पूजा -अर्चना के लिए आते हैं | आइये जाने सबरीमाला मंदिर के बारे में                                   सबरी माला का मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखला सहाद्री  घिरा हुआ है | घने जंगलों , ऊँची -ऊँची पहाड़ियों और जंगली जानवरों के बीच से होते हुए यहाँ जाना होता है | इस लिए यहाँ साल भर कोई नहीं जाता | यहाँ जाने का खास मौसम होता है | मंदिर ९१४ किलोमीटर की ऊंचाई पर है | जो लोग यहाँ आते हैं उन्हें ४१ दिन तक कठिन साधना व्रह्तम से गुज़ारना होता है | जिसमें उन्हें पूरी तरह से सात्विक व् शुद्ध रहना होता है | तामसिक भोजन , काम , क्रोध , मोह का त्याग कर ब्रह्मचारी व्रत का पालन करना होता है |  इस मंदिर के द्वार मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों यानी विशु माह (अप्रैल ) में खोले जाते हैं | १५ नवम्बर मंडलम और १४ जनवरी का मकर विल्क्कू ये इसके प्रमुख त्यौहार हैं |बताया जाता है कि मकर संक्रांति की रात घने अँधेरे में रह -रह कर एक रोशिनी दिखयी देती है जिसे मकर विल्क्कू कहते हैं , इसके साथ कुछ आवाज़ भी आती है | इस के दर्शन करना बहुत शुभ माना  जाता है | मान्यता है कि ये देवज्योति भगवान् जलाते हैं | जैसा की हम सब जानते हैं कि दक्षिण में शैव व् वैष्णव भक्तों के बीच अक्सर युद्ध होते रहते थे | अयप्पा ही वो भगवान् हैं जीने कारण दोनों समुदायों में एकता स्थापित हुई | इसलिए यहाँ हर जाति धर्म के लोग जा सकते हैं |  १८ पावन सीढियां                     मंदिर में दर्शन करने के लिए १८ पावन सीडियों कोपार करना पड़ता है | पहली पांच सीढियाँ पांच इंदियों को वश में करने का प्रतीक हैं | बाद को आठ मानवीय भावनाओं की प्रतीक हैं | फिर  थीं सीडियां मानवीय गुण और अंतिम दो ज्ञान और अज्ञान की प्रतीक हैं | श्रद्धालु सर पर पोटली रख कर जाते हैं जिसमें नैवैद्ध ( भगवान् को लगाया जाने वाला भोग ) होता है | जिहें पुजारी भवान को सपर्श करा कर वापस कर देता है |  कौन हैं भगवान् अयप्पा  भगवान् अयप्पा हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र हैं | मान्यता के अनुसार जब भगवान् विष्णु ने भस्मासुर राक्षस से शिव भगवान् को बचने के लिए मोहिनी रूप रखा था तब भस्मासुर के भस्म हो जाने के बाद शिव और विष्णु की शक्तियों के मिलन  से अयप्पा  का जन्म हुआ | उनके जन्म के पीछे एक दैवीय उद्देश्य था | दरअसल उस समय उस इलाके में एक राक्षसी मलिकपुरात्मा का आतंक था | उसे वरदान प्राप्त था कि वो केवल हरि  और हर के पुत्र से ही मारी जायेगी | भगवान् अयप्पा ने उससे युद्ध किया और उसे परास्त किया | परास्त होने के बाद वो राक्षसी एक साधारण युवती में बदल गयी | वो साधारण युवती भगवान् अयप्पा पर मोहित हो उन्हें प्रेम करने लगी | उसने अयप्पा से विवाह करने की इच्छा जाहिर की | अयप्पा ने उन्हें बताया कि उन्होंने बरह्मचारी होने का संकल्प लिया है और उनका जन्म भक्तों की कामनाएं पूर्ण करने के लिए हुआ है, परन्तु युवती नहीं मानी, उसने संकल्प लिया कि जब तक अयप्पा उसे नहीं अपनाएंगे वो कुवारी रहेगी  | अंत में उसके प्रेम व् त्याग को देखकर अयप्पा ने उससे वादा किया कि वो  पहले तो अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे , जब नए भक्त आना बंद हो जायेंगे तब वो उसे अपनाएंगे | कहा जाता है कि तबसे वो वहीँ प्रतीक्षा कर रही है | मुख्य मंदिर के मार्ग में एक उसका भी कक्ष पड़ता है जहाँ प्रतीक्षारत मलिकपुरात्मा रहती हैं | स्त्रियों का प्रवेश निषेध उसके प्रेम को सम्मान देने के लिए किया गया है , क्योंकि अयप्पा ने कसम खायी थी कि वो तब तक किसी अन्य महिला से नहीं मिलेंगे | अयप्पा की अन्य कथा  एक अन्य कथा के अनुसार अयप्पा एक राजकुमार थे उन्होंने एक अरब वावर से अपने राज्य की रक्षा की थी | बाद में सब कुछ त्याग कर संन्यास ले लिया , उनके सन्यास में महिलाओं से ना मिलना भी शामिल था | बाद  में वावर उनका भक्त हो गया, और उसने संकल्प लिया की वो हर हाल में उस आश्रम की शुचिता बना कर रखेगा और वहां आने वाले भक्तों की रक्षा करेगा | इसी कारण  महिलाओं को अभी भी मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है | सबरीमाला और महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा  सबरीमाला मंदिर मंदिर आजकल चर्चा में है | मंदिर में १० से ५० वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश प्रतिबंधित है | सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी महिलाओं के प्रवेश न करने देने के कारण इसकी चर्चा और बढ़ गयी | महिलाओं में खासा रोष है, क्योंकि उन्होंने इसे महिलाओं के ऋतु चक्र से जोड़ कर देखा , प्रचार भी ऐसा ही हुआ  | महिलाओं का रोष स्वाभाविक भी है क्योंकि जिस रक्त और कोख का सहारा भगवान् भी जन्म लेने के लिए करते हैं ये सरासर उसका अपमान है | बात सही है | मंदिर में प्रवेश की मांग करने वाली ज्यादातर  महिलाएं इस मंदिर और उसकी मान्यताओं से परिचित नहीं हैं |    सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा की हिन्दू धर्म में मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध नहीं है | महिलाएं सामाजिक मान्यता के चलते मासिक के दिनों में मंदिर में प्रवेश नहीं करती हैं, अब जब की महिलाओं द्वारा खुद को साफ सुथरा रखने के तरीके मौजूद हैं तो वे स्वेक्षा से ये निर्णय लें सकती हैं कि वो मंदिर में जाए … Read more

#Metoo से डरें नहीं साथ दें

#Metoo के रूप में समय अंगडाई ले रहा है | किसी को ना बताना , चुप रहना , आँसू पी लेना इसी में तुम्हारी और परिवार की इज्ज़त है | इज्ज़त की परिभाषा के पीछे औरतों के कितने आँसूं  कितने दर्द छिपे हैं इसे औरतें ही जानती हैं | आजिज़ आ गयी हैं वो दूसरों के गुनाहों की सजा झेलते -झेलते ,इसी लिए उन्होंने तय कर लिया है कि दूसरों के गुनाहों की सजा वो खुद को नहीं देंगी | कम से कम इसका नाम उजागर करके उन्हें मानसिक सुकून तो मिलेगा |  #Metoo से डरें नहीं साथ दें  #Metoo के बारे में उसे नहीं पता हैं , उसे नहीं पता है कि इस बारे में सोशल मीडिया पर कोई अभियान चलाया जा रहा है , उसे ये भी नहीं पता है कि स्त्रियों के कुछ अधिकार भी होते हैं , फिर भी उसके पास एक दर्द भरा किस्सा है कि आज घरों में सफाई -बर्तन करने आते हुए एक लड़के ने साइकिल से आते हुए तेजी से उसकी छाती को दबा दिया , एक मानसिक और शारीरिक पीड़ा से वो भर उठी | वो जानती है ऐसा पहली बार नहीं हुआ है तब उसने रास्ता बदल लिया था , उसके पास यही समाधान है कि अब फिर वो रास्ता बदल लें | उसे ये भी नहीं पता वो कितनी बार रास्ता बदलेगी?वो जानती है वो काम पर नहीं जायेगी तो चूल्हा कैसे जलेगा , वो जानती है कि माँ को बाताएगी तो वो उसी पर इलज़ाम लगा देंगीं … काम पर फिर भी आना पड़ेगा | उसके पास अपनी सफाई का और इस घटना का कोई सबूत नहीं है … वो आँखों में आँसूं भर कर जब बताती है तो बस उसकी इतनी ही इच्छा होती है कि कोई उसे सुन ले |  लेकिन बहुत सी महिलाएं घर के अंदर, घर के बाहर सालों -साल इससे कहीं ज्यादा दर्द से गुजरीं हैं पर वो उस समय साहस नहीं कर पायीं , मामला नौकरी का था , परिवार का था रिश्तों का था , उस समय समाज की सोच और संकीर्ण थी , चुप रह गयीं , दर्द सह गयीं | आज हिम्मत कर रहीं हैं तो उन्हें सुनिए , भले ही आज सेलेब्रिटीज ही हिम्मत कर रहीं हैं पर सोचिये जिनके पास पैसा , पावर , पोजीशन सब कुछ था , मंच था वो सालों -साल सहती रहीं तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम महिला कितना कुछ सहती रही होगी | आज ये हिम्मत कर रहीं हैं तो उम्मीद की जा सकती है शायद कल को वो भी बोले … कल को एक आम बहु बोले अपने ससुर के खिलाफ, एक बेटी बोले अपने पिता या भाई के खिलाफ …. समाज में ऐसा बहुत सा कलुष है जिसे हम कहानियों में पढ़ते हैं पर वो कहानियाँ जिन्दा पात्रों की ही होती हैं ना | इस डर से कि कुछ मुट्ठी भर किस्से ऐसे भी होंगे जहाँ झूठे आरोप होंगे हम 98 % लोगों को अपनी पीड़ा के साथ तिल -तिल मरते तो नहीं देखना चाहेंगे ना | कितने क़ानून हैं , जिनका दुरप्रयोग हो रहा है , हम उसके खिलाफ आवाज़ उठा सकते हैं पर हम कानून विहीन निरंकुश समाज तो नहीं चाहते हैं | क्या पता कल को जब नाम जाहिर होने का भय व्याप्त हो जाए तो शोषित अपराध करने से पहले एक बार डरे | इसलिए पूरे विश्वास और हमदर्दी के साथ उन्हें सुनिए ….जो आज अपने दर्द को कहने की हिम्मत कर पा रहे हैं वो भले ही स्त्री हो , पुरुष हों , ट्रांस जेंडर हो या फिर एलियन ही क्यों न हो उन्हें अपने दर्द को कहने की हिम्मत दीजिये | एक पीड़ा मुक्त बेहतर समाज की सम्भावना के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं … हैं ना ? वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … #Metoo -सोशल मीडिया पर दिशा से भटकता अभियान  हमारे व्यक्तिव को गढ़ने के लिए हर मोड़ पर मिलते हैं शिक्षक दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं आपको ” #Metoo से डरें नहीं साथ दें  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-hindi article, women issues, #Metoo

#metoo -सोशल मीडिया पर दिशा से भटकता अभियान

सबसे पहले तो आप सब से एक प्रार्थना जो भी अपना दर्द कह रहा है चाहे वो स्त्री हो , पुरुष हो , ट्रांस जेंडर हो या फिर एलियन ही क्यों ना हो उसे कहना का मौका दें , क्योंकि यौन शोषण एक ऐसा मुद्दा है जिस के ऊपर बोलने से पहले शोषित को बहुत हिम्मत जुटानी होती है | अब जरा इस तरफ देखिये ….. #metoo आज से सालों पहले मेरी सास ननद ने मुझे दहेज़ का ताना दिया था | स्कूल में मेरी सहेलियों ने मुझे धोखा दिया वो कहती थीं कि वो पढना नहीं चाहती ताकि मैं न पढूँ और वो चुपके से पढ़ लें और मुझसे आगे निकल जाए |जिस दिन मुझे उनकी इस शातिराना चाल का पता चला मैं अंदर से टूट गयीं | मेरी अपनी ही बहने , भाभियाँ , सहेलियां मेरा लम्बा/नाटा , मोटा/पतला, पूरब/पश्चिम , उत्तर/ दक्षिण का होने की वजह से मुझे अपने ग्रुप से अलग करती रहीं और मेरा मजाक बनाती रहीं | ऑफिस में साहित्य-जगत में महिलाओं ने अपने तिकड़मों द्वारा मेरे कैरियर को आगे बढ़ने से रोका | ये सारी बातें हम सब को बहुत तकलीफ देती हैं इसका दर्द मन में जीवन भर रहता है ,ताउम्र एक चुभन सी बनी रहती है | पर माफ़ कीजियेगा ये सारी बातें metoo हैश टैग के अंतर्गत नहीं आती ये प्रतिस्पर्द्धा हो सकती है , जलन हो सकती है , छोटी सोच हो सकती है , ये सारे शोषण स्त्रियों द्वारा स्त्रियों पर करे हो सकते हैं पर ये यौन शोषण नहीं है | क्या सफलता /असफलता का दर्द एक रेप विक्टिम के दर्द बराबर है ? क्या उस ट्रामा के बराबर है जिससे भुक्तभोगी हर साँस के साथ मरती है | तो फिर इस के अंतर्गत ये सारी बातें करके हम एक महिला को दूसरी महिला के विरुद्ध खड़ा करके उस हिम्मत को तोड़ रहे हैं जो महिलाएं अपने ऊपर हुए यौन शोषण के खिलाफ बोलने का दिखा रही हैं | दुर्भाग्य से सोशल मीडिया पर ये हो रहा है | इस बात से कभी इनकार नहीं किया जा सकता कि मानसिक शोषण बहुत पीड़ादायक होता है | ये समाज इस तरह से बना है कि हम किसी को रंग , वजन , लम्बाई , कम बोलने वाला/ ज्यादा बोलने वाला , इस प्रदेश का , आदि मापदंडों पर उसे कमतर महसूस करा कर उसका मानसिक शोषण करते हैं इस तरह का शोषण पुरुष व् महिलाएं दोनों झेलते हैं जो निंदनीय है | ये भी सही है कि महिलाएं भी महिलाओं का शोषण करती हैं | कार्य क्षेत्र में आगे बढ़ने की होड़ में कई बार वो इस हद तक गिर जाती हैं कि दूसरे को पूरी तरह कुचल कर आगे बढ़ जाने में भी गुरेज नहीं करती | जो नौकरी नहीं करती , वहाँ सास-बहु इसका सटीक उदाहरण हैं | ये सब हम सब ने भी झेला है पीड़ा भी बहुत हुई है | जिसके बारे में कभी अपनी बहन को , कभी पति को , कभी किसी दूसरी सहेली को खुल कर बताया भी है | उनके सामने रोये भी हैं | लेकिन #metoo आन्दोलन यौन शोषण के खिलाफ है जिस विषय में महिलाएं (या पुरुष भी) अपनी बहन को नहीं बता पाती , माँ को नहीं बता पाती , सहेली को नहीं बता पातीं अन्दर ही अंदर घुटती हैं क्योंकि इसमें हमारा समाज शोषित को ही दोषी करार दे देता है | आज महिलाएं मुखर हुई हैं और वो किस्से सामने ला रहीं हैं जो उन्होंने खुद से भी छुपा कर रखे थे , जो उन्हें कभी सामान्य नहीं होने देते , एक लिजलिजे घाव को छुपाये वो सारी उम्र चुप्पी साधे रहती हैं | खास बात ये हैं स्त्री ने अपनी शक्ति को पहचाना है | #metoo आन्दोलन के रूप में महिलाएं अपने शोषण के वो किस्से ले कर सामने आ रहीं हैं जिसे वो खुद से भी छुपा कर रखतीं थी | एक शोषित अपने ऊपर हुए यौन शोषण के बारे में बोल नहीं सकती थी क्योंकि पूरा समाज महिलाओं के खिलाफ था , बोलने पर उसे सजा मिलनी थी , उसकी पढाई छुड़ा दी जाती , नौकरी छुडा दी जाती , उसकी जल्दी से जल्दी शादी करा दी जाती | उसके कपड़ों , चाल -चलन बातचीत पर दोष लग जाता था | उसके पास दो ही रास्ते थे या तो वो बाहर जा कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लडती रहे या घर में कैद हो जाये | सजा शोषित को ही मिलनी थी | जैसा की पद्मा लक्ष्मी ने कहा कि जब उन्होंने सात साल की उम्र में एक परिचित का अभद्र व्यवहार अपनी माँ को बताया तो उनकी माँ ने उन्हें एक साल के लिए दादी के पास भारत भेज दिया | फिर उन्होंने माँ से कभी इस बारे में कुछ साझा नहीं किया | आज ये चुप्पी टूट रही है महिलाएं ये सब कहने का साहस जुटा रहीं हैं | कई नाम से और कई गुमनाम हो कर पोस्ट डाल रहीं हैं | वहीँ महिलाओं पर ये प्रश्न लग रहे हैं तब क्यों चुप थीं ? आश्चर्य है की इस प्रश्न को पूछने वाली महिलाएं भी हैं और एक रेप विक्टिम को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के जज की कुर्सी पर 49 /51 से जीता कर बैठने वाली भी | आखिर क्यों हम एक दूसरे की ताकत नहीं बनना चाहते ? कुछ पुरुष जिनका यौन शोषण हुआ है वो भी सामने आ रहे हैं | दुर्भाग्य से पुरुषों ने उनका साथ नहीं दिया , वो उनका मजाक उड़ाने लगे कि पुरुषों का भी कहीं यौन शोषण होता है | प्रसिद्द कॉमेडी शो ब्रुक्लिन९९ के टेरी ने जब एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति पर यौन शोषण का आरोप लगाया था तो उसका यही कहना था कि इस दर्द से गुज़र कर मैंने ये जाना कि महिलाएं , हर जगह कितना झेलती हैं और किस कदर अपने दर्द के साथ चुप रह कर जीती हैं | तभी उन्होंने फैसला लिया कि वो अपना किस्सा सबके सामने लायेंगे ताकि महिलाएं भी हिम्मत करें वो कहने की जिसमें वो शोषित हैं , दोषी नहीं हैं | उन्हें मृत्यु की धमकी मिली पर व् लगातार लिखते … Read more

युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव …आखिर क्यो ????

आज कल आधुनिकता का दौर तेजी से बढ़ रहा है आधुनिक सभ्यता ने इस कदर पाँव पसार लिए हैं कि लगता नहीं है अब युवा वर्ग पीछे की ओर देखेगा ।युवा वर्ग आखिर शादी की जिम्मेदारियों से बच्चों की जिम्गमेदारियों से  क्यों भाग रहा है ? आखिर ये समस्या आयी कैसे ? क्या इसके पीछे कुछ माता-पिता का व्यवहार तो नहीं ?   आधुनिकता के पीछे भागने वाला कोई भी गरीब व्यक्ति नहीं है इसके पीछे भागने वाला सम्रद्ध सम्पन्न मध्यम वर्ग का प्राणी है जो  समाज में अपनी एक दिखाबटी साख बनाने में विश्वास रखता है ये वो  तबका है जिसको अपने परिवार से ज्यादा अपने स्टेटस को लेकर चिन्ता रहती है समाज में ………आज की इस आधुनिक शैली के कारण ही न जाने कितने परिवार टूट चुके हैं ..और परिवार का इस तरह टूटना कहीं न कहीं बच्चे को भी तोड़ देता है अन्दर से वैवाहिक जीवन की सोच को लेकर ..तब वो बच्चा सोचने लगता है कि अगर विवाह का ये ही हश्र है तो उसको “विवाह नही करना “ वो इस नतीजे पर सोचने को विवश हो जाता है | पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं  एक तरफ घर में माता-पिता के बीच तनाबग्रस्त जीवन और दूसरी ओर बढती हुयी आधुनिक शैली —सोच सकते हैं हम जिस वक्त बच्चा मेच्योर होने की अवस्था में होता है वो इस मनोदशा से गुज़र रहा हो तो उसकी सोच कहाँ जा कर कैसा रूप लेगी ।लिव इन की ओर झुकाव होना ऐसे में सम्भव हो जाता है उनके लिए । विवाह उनको एक बन्धन लगने लगता है ..रोज की माता पिता की ओर से रोका टोकी , रोज के माता पिता के झगडे़ ,  अपनी नौकरी का तनाब उस पर किराये के मकान पर रहने पर किराया देने का बोझ न जान कितने कारण हो जाते है जो वो लिव इन को स्वीकृति देने लगते हैं उनके  मन में ….लेकिन वो भूल जाते हैं कि लिव इन रिलेशन के निगेटिव पक्ष भी होते हैं .. घटनायें तो दोनो में ही घटतीं हैं …चाहें विवाह हो या लिव इन रिलेशन..….शायद वो इस तरफ ध्यान देता नहीं है या देना नहीं चाहता …..उसको सोचना चाहिए —- १-विवाह पर समाज की मोहर लग जाती है  लिव इन पर खुद लड़के-लड़की का डिसीजन होता है २-विवाह एक हमारी भारतिय शैली है  लिव इन विदेश का चलन  ३- विवाह में एक दूसरे से अलग होने पर रिश्ता कानूनी कार्यवाही की माँग करता है  लिव इन में जब तबियत हो बोरिया बिस्तर बाँध कर अलग होने का अपना डिसीजन ४- विवाह में स्त्री की मदद कानून के द्वारा दिलायी जाती है   लिव इन में ऐसा कुछ नही है (शायद ) निगेटिव पॉइंट दोनों में  ही होते है —- कभी -कभी लिव इन में एक पक्ष इस तरह जुड़ जाता है दूसरे की भावनाओं से , कि अपने दोस्त के छोड़ कर चले जाने पर अपने आपको हानि देने से भी नही चूकता..या आपने पार्टनर को हानि देने से भी…… यही हाल विवाह में भी देखा जाता है —-लेकिन हमारा मानना है कि अगर एक समय बाद उम्मीदें , अपेक्षाएं दोनों ही रिश्तों में जाग जाती हैं तो युवा “लिव इन रिलेशन “को प्राथमिकता देते नज़र क्यों  आते हैं ?  घुटन से संघर्ष की ओर   ये समस्या या इसका समाधान अभी नहीं निकला तो वो दिन दूर नही .. जिसका परिणाम आगे आने वाले समय और पीढी को इसका ख़ामियाज़ा न झेलना पड़ेगा …..।   हमारे  युवा वर्ग को सोचना चाहिये कोई भी रिश्ता बिना आपसी विश्वास और स्पेस के ज्यादा समय टिकना बहुत मुश्किल होता है । आपसी सम्बन्ध वही ज्यादा टिकते यानि लम्बा सफर तय करता हैं जिस जगह पर दोनों के रिश्ते  में विश्वास और स्पेस होता है ।          हमारी भारतिय सभ्यता को विदेशी अपना रहे हैं और भारत का युवा विदेशी सभ्यता के फेरे में पड़ा है ।ये एक गम्भीर सोच का मुद्दा है .. लिव इन रिलेशन कोई हलुआ नहीं ..झगड़े लिव इन में भी होते हैं और शायद शादी शुदा लोगों से ज्यादा …विदेश में आये दिन पार्टनर बदल लेते हैं लोग ——ये हिन्दुस्तान में सम्भव है क्या ??  हमारी युवा पीढी को शादी और लिव इन के डिफरेन्स को समझना होगा …….।।।                   लेखिका —कुसुम पालीवाल , नोयडा यह भी पढ़ें …… बुजुर्गों की अधीरता का जिम्मेदार कौन क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते बस्तों के बोझ तले दबता बचपन गुड़िया कब तक न हँसोगी से लाफ्टर क्लब तक  आपको  लेख “युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव …आखिर क्यो ????“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under-live in relationship, live in

प्रिंट या डिजिटल मीडिया -कौन है भविष्य का नम्बर वन

                  प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया में भविष्य किसका बेहतर है ? जब ये प्रश्न मुझसे किया गया तो मुझे लगा मैं अपने बचपन में पहुँच गयी हूँ और मुझसे पूछा  जा रहा है कि बताओ तुम्हें कौन ज्यादा अच्छा लगता है … पापा या मम्मी | जब मम्मी कहती तो लगता पापा भी तो अच्छे है और जब पापा कहती तो लगता तो … अरे नहीं नहीं … भला मम्मी को कैसे छोड़ा जा सकता है | हम लोग जो प्रिंट मीडिया के युग में पैदा हुए डिजिटल मीडिया के युग में लेखन में  आगे बढे | उन सब के लिए ये प्रश्न बड़ा दुविधा में डालने वाला है | इसलिए इसकी विस्तृत एनालिसिस करने का मन बनाया | डिजिटल मीडिया –ज्ञान का भंडार वो भी मुफ्त                            आज से ३० साल पहले क्या किसी ने सोंचा था की हम गणित के एक सवाल में उलझ जाए और झट से कोई उत्तर बता दे , खाना बना रहे हों और इस सब्जी में मेथी डालनी है या जीरा एक मिनट में कोई बता दे , रंगोली के डिजाइन हो या मेहँदी के या विज्ञानं और साहित्य की तरह – तरह की जानकारी जब जी चाहे हमें मिल जाए |शायद तब ये एक परिकथा की तरह ही लगता पर आज ये सबसे बड़ा सच है | डिजिटल मीडिया यानि आपका लैपटॉप , मोबाइल , पी. सी जो आपको दुनिया भर के ज्ञान से घर बैठे – बैठे ही जोड़ देता है | उस्ससे मिलने वाले लाभों के लिए हम जितनी बार भी धन्यवाद देंगें कम ही होगा |                                                            जी हां !  डिजिटल मीडिया की बात करे तो ये ज्ञान का भंडार  है वो भी मुफ्त में | आपसे बस एक क्लिक की दूरी पर | जिसके पास आपकी हर समस्या का जवाब है | खाना बनाने की रेसीपी , दादी माँ के नुस्खे से लेकर विश्व की श्रेष्ठतम पुस्तके  उपलबद्ध हैं | वो भी मुफ्त | डिजिटेलाइज़ेशन के इस दौर में इन्टरनेट बहुत सस्ता हो गया है | जिस कारण आम आदमी भी अच्छे से अच्छी किताबें लेख आदि पढ़ सकता है | मोबाइल पूरी  लाइब्रेरी बन चुका है | आप कहीं भी जाए आप के साथ आपकी पूरी लाइब्रेरी साथ रहेगी | आप का लगेज भी नहीं बढेगा | जब सुविधा हो निकाला और पढ़ लिया | यानि की जिंदगी लेस लगेज मोर कम्फर्ट के सिद्धांत पर चल पडी है | बढती आबादी और छोटे होते घरों के दौर में हम ज्यादा से ज्यादा प्रिंटेड पुस्तके अपने घर में नहीं रख सकते | चाहते न कहते हुए भी हमे पुस्तकें हटानी पड़ती हैं या लाइब्रेरी में देनी पड़ती हैं | ऐसे में डिजिटल होम लाइब्रेरी सारी समस्याओं के समाधान के रूप में नज़र आती है | डिजिटल मीडिया पर हर आम और खास व्यक्ति अपने विचार व्यक्त कर सकता है | इससे हमें बहुत सारे विचार पढने को मिल जाते हैं | ब्लॉगिंग के जरिये हर व्यक्ति अपने विचारों को सब तक पहुंचा सकते हैं | ब्लॉग में विभिन्न तरह की जानकारी साझा कर सकते हैं व् प्राप्त कर सकते हैं | बहुत सी पुरानी दुर्लभ किताबें जिन्हें रीप्रिंट करना संभव नहीं है उन्हें स्कैन कर के डिजिटल मीडिया पर आसानी से प्रिंट किया जा सकता है | यानी हम  अपनी धरोहर को न सिर्फ सुरक्षित कर सकते हैं बल्कि जन – जन तक पहुंचा भी सकते हैं | आज का युवा जो सोशल साइट्स की वजह से ज्यादातर ऑनलाइन रहता है वो वहां से समय निकाल कर कुछ और भी पढ़ लेता है | भले ही वो किताब उठाने की जहमत न करे | शायद इस कारण लोगों की रीडिंग हेबिट बढ़ी है |                                       ऐसा लगता तो है की भविष्य का मीडिया डिजिटल मीडिया ही है … क्योंकि ये सस्ता है सुलभ है और जगह भी नहीं घेरता | तो क्यों न ये सबके दिल में जगह बना ले | प्रिंट मीडिया – बस हारता दिख रहा है                        डिजिटल मीडिया के पक्ष में इतने सारे विचार पढ़ कर आपको लग रहा होगा प्रिंट मीडिया हार रहा है यानी डिजिटल मीडिया उसे पीछे छोड़ देगा | अगर आप भी ऐसा सोंच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि ये हम नहीं आंकड़े कहते हैं | डिजिटल मीडिया के आने के बाद भी हजारों किताबें रोज छप रही हैं | या यूँ कहें कि पहले से ज्यादा छप रही हैं | नयी – नयी मैगजींस व् प्रकाशन हाउस अस्तित्व में आ रहे हैं | अगर वास्तव में प्रिंट मीडिया अस्तित्वहीन होने जा रहा है तो क्या ऐसा हो सकता है की कोई लाखों का खर्चा करने का जोखिम उठाये | निश्चित तौर पर ये खामखयाली ही है की प्रिंट मीडिया खतरे में है | आखिर सस्ता सुलभ व् कम जगह घेरने वाले डिजिटल मीडिया के आ जाने पर भी प्रिंट मीडिया खतरे में क्यों नहीं आया …. किताबों से एक तरह से हमारी बॉन्डिंग  होती है |किताब आप महसूस करते हैं | अपनी लाइब्रेरी में सजाते हैं | वो एक तरह का प्यार का अटूट बंधन होता है | जिसका स्थान कोई नहीं ले सकता | कई लोगों की तो किताबों से इतनी दीवानगी होती है की उनकी किताब कोई छू भी नहीं सकता | ये बात डिजिटल लाइब्रेरी में कहा | कितने लोग ऐसे हैं जो मिनट – मिनट पर खबरे डिजिटल मीडिया से प्राप्त करते रहते हैं फिर भी उन्हें सुबह के अखबार का  बेचैनी से इंतज़ार होता हैं | सबह के अखबार से एक ख़ास जुड़ाव जो होता है | और भावना का स्थान कोई ले सकता है भला ? सर्दियों के दिन हो और धूप में कुछ पढना कहते हो तो मोबाइल तो बिलकुल साथ नहीं देता | ऐसे में किताब ही तारणहार का काम करती है | आपने कुछ पढ़ा आपको बहुत पसंद आया तो आप किताब को उपहार के रूप में भी दे सकते हैं | ये उपहार लेने वाले और देने वाले दोनों के दिल के करीब होता है |अब ई बुक का तो बस लिंक ही भेज सकते हैं | एक सच्चाई ये भी है की फ्री की चीज का महत्व कम होता है …. अब , पानी … Read more

प्रदूषण की मार झेलती दिल्ली

 पेड़ पौधे हैं लाभकारी  पर्यावरण के हैं हितकारी ।  जी हाँ , अपने घर और आसपास पेड़ पौधों को लगाने को प्रोत्साहित करें , वो ही जीवनदायनी हैं । हमारे भारत का दिल , दिल्ली बीमार है । एक ऐसी बिमारी जिसका इलाज स्वयं दिल्लीवासियों के पास है । हर प्रकार के प्रदूषण और अस्वच्छता ने इस दिल को बुरी तरह से अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है कि इससे छुटकारा तो अब असम्भव सा ही प्रतीत होता है । बेबस और लाचार दिल्ली घुट रही है प्रदूषण के आवरण में । दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती भागती लाखों गाड़ियों से निकलता धुआं , राजधानी में मौजूद फैक्ट्रियों से निकलता काला जहर , बिजलीघरों की चिमनी से निकलता धुआं और मौसम में बढ़ने जा रही धुंध मिलकर प्रदूषण का एक ऐसा कॉकटेल तैयार कर रही हैं जो दिल्ली का दम घोट रहा है ।  दिल्ली का दिल कही जाने वाली दिल्ली की हवा अब सांस लेने लायक नहीं रह गई है । हवा में मौजूद प्रदूषण का स्तर हानिकारक स्तर को पार कर अब बेहद खतरनाक स्तर में पहुंच चुका है । हवा में घुला प्रदूषण तय मानक मात्रा से 4 से 5 गुना ज्यादा हो चुका है. कहीं कहीं ये स्तर 10 गुना तक पहुंच गया है ।  दिल्ली की गिनती विश्व के चार सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में  प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। भारत सहित विकासशील देशों में यह समस्या विशेष रूप से खतरनाक रूप लेती जा रही है। भारत की राजधानी दिल्ली की गिनती विश्व के चार सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में होती है । आजादी के बाद जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण में तेजी से हुई वृद्धि ने दिल्ली का पर्यावरण बिगाड़ दिया है। अब चूँकि एक मेट्रो शहर में यह सब विकास की बातें होना स्वभाविक ही है और विकास और उन्नति की दृष्टि से आवश्यक और महत्वपूर्ण भी है । परन्तु इस विकास और उन्नति को दिल्ली की सेहत और सुंदरता को बिगाड़ने का कार्य नहीं करना है ।  मैली है दिल्ली की यमुना भी  दिल्ली की नदी यमुना भी मैली है । आईटी ओ के पास बने यमुना पुल के आसपास की कालोनियों में रहने वालों निवासियों ने यमुना नदी के किनारों को कूड़ा करकट से भर कर रखा है । पुल के ऊपर से नदी में कूड़े की थैलियां फेंकते लोग अनायास ही ध्यान आकर्षित कर लेते हैं , वहां का यह एक आम नज़ारा हो गया है । चाहे इसे लोगों की मानसिकता समझ लें या फिर सरकारी व्यवस्थाओं में कमी , भुगतना तो कुदरत की अनमोल धरोहर को पड़ रहा है । प्रकृति की खूबसूरत धरोहर होती हैं ये नदियां , जीवनदायनी होती हैं , इन्हें सहेज कर रखना हम इंसान की जिम्मेदारी है । बस थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है , थोड़ी सजगता की आवश्यकता है फिर देखिये हमारे आसपास का वातावरण कितना स्वच्छ और सजीव हो सकता है ।  स्वच्छ भारत अभियान , स्वच्छ वातावरण और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की और एक महत्वपूर्ण और सार्थक प्रयास है । भारतीय लोगों को इस दिशा में अग्रसर रहने और सचेत रखने की एक अनूठी पहल है । विशेषतौर पर विद्यालयों में शुरू हुआ यह अभियान वाकई काफी कारगर सिद्ध हो रहा है । बच्चे , जो भविष्य के निर्माता हैं , सीख रहे हैं और पा रहे हैं कुछ ऐसे संस्कार , जो भारतवर्ष के स्वर्ण भविष्य की मजबूत नींव हैं । विद्यालय से मिली शिक्षा और संस्कार , एक बच्चे के हृदय में अमिट छाप छोड़ जाते हैं , जो सम्पूर्ण जीवन उनके संग रहते हैं ।  दिल्ली में बढ़ते प्राइवेट यातायात के साधनों ने बढ़ाया वायु प्रदूषण दिल्ली में बढ़ते प्राइवेट यातायात के साधनों ने वायु प्रदूषण को चरमसीमा तक पहुंचा दिया है । छुटपुट कार्यों और अपने आसपास भी आने जाने के लिए लोगों द्वारा अपनी कार को इस्तेमाल करना बड़ा हास्यस्पद और विचित्र प्रतीत होता है । कार चलाना एक शान की बात समझी जाती है । पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे मेट्रो का ही इस्तमाल कर लेना चाहिए ऑफिस या कहीं दूर दराज स्थान पर जाने आने के लिए । वायु प्रदूषण और यातायात नियंत्रित करने के लिए ।          चारों तरफ बढ़ाओ जागरूकता          पर्यावरण है आजकी आवश्यकता ।  जी हाँ , यही नारा इस समय की पुकार है । आइये हम सब मिलकर इस पुकार को गूँज बना दें ।            तरसेम कौर  यह भी पढ़ें ……….. अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस – परिवार में अपनी भूमिका के प्रति सम्मान की मांग दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती शादी -ब्याह में बढता दिखावा , घटता अपनापन आपको आपको  लेख “प्रदूषण की मार झेलती दिल्ली  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords: pollution, air pollution in delhi,    

रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन यानी तुष्टिकरण का मानसिक कैंसरवाद

रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) आज म्याँमार से भगाये गये लाखो लाख रोहिंग्या मुसलमान इतने शरीफ़ और साधारण नागरिक वहाँ के नही रहे,अगर रहे होते तो उन्हें आज इस तरह के हालात से दो-चार न होना पड़ता और उन्हें सेना लगाकर जबरदस्ती वहाँ से न निकाला गया होता।वहाँ के अमन चैन के जीवन मे ये आतंकियो की तरह अंदर ही अंदर एक दूषित इस्लाम( इस्लामी आतंकवाद ) का बारुद बिछाना शुरु कर दिये थे जिसकी परिणति या प्रतिफल उन्हें इस तरह भुगतना पड़ रहा हैं । चार लाख के करीब रोहिंग्या आज बांग्लादेश के शिविरो मे भयावह शरणार्थियो की तरह पड़े हुये है,जबकि बांग्लादेश की खुद की जनसंख्या की एक चौथाई के करीब संख्या तथाकथित रुप से भारत के अधिसंख्य राज्यो मे चोरी-छिपे रह रहे है।या किसी राज्य विशेष मे तथाकथित राजनैतिक पार्टी ने इन्हें इस देश की संम्मानित नागरिकता भी दिलवा दी है “एैसे महान राज्य की लिस्ट मे एक सर्वोपरि राज्य बंगाल यानि कि कोलकाता है जहाँ की मुख्यमंत्री को महज ममता बनर्जी कहना न्यायोचित न होगा—उन्होनें बंगाल को राज्य नही अपितु एक बारुद बना रंखा है जो दंगे के रुप मे अक्सर फटता रहता है”। इन्हीं महान मुख्यमंत्री के कारण——“आज बंगाल आई.यस.आई.यस(I S I S) जैसी आतंकी संस्था का खूनी इराक लगने लगा है”। आज चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमान बिना किसी आधिकारिक बीजा के हमारे देश मे चोरी-छिपे घुस आये है,जबकि हमारे देश की खुफिया एजेन्सी लगातार ये कह रही है कि इन्हें किसी भी तरह देश मे शरण न दिया जाये—-ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरनाक है,क्योंकि एैसे तमाम सबूत व प्रमाण मिले है कि ये आतंकी ट्रैनिंग के साथ आतंकी गतविधियो में भी संलिप्त रहे है।इनका संबंध पाकिस्तान व इराक के आतंकी संगठनो से भी है,हमारे देश की वर्तमान सरकार भी इन्हें शरण देने को तैयार नही यहाँ तलक कि हमारे गृहमंत्री आदरणीय राजनाथ सिंह ने दो टूक व स्पष्ट कहाँ है कि हम इन्हें कतई अपने यहाँ शरण नही देंगे और आशा करते है कि हमारा सुप्रीम न्यायालय भी इस बात को समझेगा। इस सबके बावजूद हमारे देश के तथाकथित मुसलमान मुस्लिम तुष्टिकरण की उनकी जो कैंसरवादी सोच है उसी के तहत वे रोहिंग्या मुसलमानो को सह व संरक्षण देने की पुरजोर वकालत कर रहे है।इतना ही नही कल तो कोलकाता के एक मुसलमान मौलवी ने तो हद ही कर दी और इस हद को अगर पुरी दुनिया मे कोई देश इस बहादुरी और निर्लज्जता से बर्दाश्त कर सकता है तो वे एकलौता देश हमारा भारत है,यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी की पराकाष्ठा ये है कि—–“भारत माँ को गाली देकर भी सगर्व रहा जा सकता है”। कल कोलकाता के मौलवी ने बड़ी बहादुरी के साथ कहाँ कि—“रोहिंग्या महज़ मुसलमान नही हमारे भाई है इस दुनिया मे कही भी रह रहा मुसलमान पहले मुसलमान है क्योंकि उसका हमारा कुरान एक है,उसका रसुल हमारा रसुल एक है इंशा अल्लाह हम इनकी खातिर लाखो गरदने काट देंगे”।अघोषित रुप से उसने गुजरात के पूर्व-मुख्यमंत्री और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पे कहाँ कि—“ये तुम्हारा गुजरात नही बंगाल है जहाँ हजारो मुसलमान लाखो हिन्दुओ का कत्लोगारद कर सकते है”। इस अभिव्यक्ति से स्पष्ट लगा कि जैसे बंगाल भारत का राज्य नही अपितु एक शत्रु राष्ट्र हो इनके समर्थन मे बोल रहे कुछ आस्तीन के जहरिले साँपो ने राष्ट्रवादी मुसलमानो की जमात को शर्मिंदा किया है—“काश हमारा देश एैसे जहरिले मुसलमान साँपो का उन्मूलन कर पाता”।इन मुसलमानो को रोहिंग्या का मुसलमान दिख रहा है जो बाहर देश से जबरदस्ती हमारे देश मे घुस आये है,इनके लिये ये अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार की बात कर रहे कोर्ट मे इनके लिये पैरवी व इनके पक्ष मे वकील करके तमाम गैर-जिम्मेदाराना दलीले दी जा रही। जबकि हमारे अपने ही देश मे तमाम कश्मीरी पंडित आज कई सालो-साल से अत्यंत कष्टदायी और भयावह जीवन शरणार्थी शिविरो में जीने को बाध्य है जिन्हें आज भी ये आस और उम्मीद है कि वे एकदिन फिर अपने पुरुखो के उस कश्मीर मे पहले की तरह रह पायेंगे।इनके लिये मानवाधिकार गौण है,इनके लिये किसी मुस्लिम संगठन के होंठ नही खुलते। मुझे ये नही समझ आता कि आखिर हम क्यू एैसे बेवफ़ा और गद्दार रोहिग्या मुसलमानो को झेले जिन्हें अपने इस मादरे वतन की मिट्टी से मोहब्बत नही,ये सच है कि—“एैसे भी हमारे मुल्क मे मुसलमान है जो हमारे हिन्दुतान के माथे पे कोहिनूर की तरह चमकते है जिन्हें हमारी हर साँस सलाम करती है”।मुझे बखूबी एक मुसलमान शायर कि लिखि वे एक लाइन अब तलक याद है जिसमें वे कहता है कि मेरी आखिर ख्वाहिश है कि—“मुझे कुछ मत देना,चादर,चराग,उर्स,कौवाली हाँ अगर मुझसे जरा भी मोहब्बत करना तो—-मेरी कब्र के सिरहाने मुट्ठी भर मेरे वतन की मिट्टी रख देना”।लेकिन आज हालत ये है कि हम रफ्ता-रफ्ता कहाँ से कहाँ पहुँच गये सच तो ये है कि—–“ रोहिंग्या मुसलमानो का समर्थन तथाकथित मुसलमानो   गलिज़ सोच का एक भयावह मानसिक कैंसरवाद है”। यह भी पढ़ें ………. अलविदा प्रद्युम्न – शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेंट के तिलिस्म में फंसे अनगिनत अभिवावक जिनपिंग हम ढाई मोर्चे पर तैयार हैं आइये हम लंठों को पास करते हैं शिवराज सिंह चौहान यानी मंदसौर का जनरल डायर पोस्ट में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं | अटूट बंधन संपादक मंडल का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है |