संन्यास नहीं, रिश्तों का साथ निभाते हुए बने अध्यात्मिक

अध्यात्म  का अर्थ ये नहीं है की हमने सारे रिश्ते – नाते छोड़ कर कमंडल और चिंता उठा कर संन्यास ले लिया है | वस्तुत : अध्यात्म   आत्मिक उन्नति की एक अवस्था है जो सब के साथ , सबके बीच रहते हुए भी पायी जा सकती है | पर हमने ही उन्हें दो अलग – अलग घेरों में रख रखा है | इस बात समझना सहज तो है पर इन घेरों को तोड़ने के लिए एक यात्रा अंतर्मन की करनी पड़ेगी | ताकि अध्यात्म के मूल भूत सिद्धांतों को समझा जा सके |   अध्यात्मिक  उन्नति के लिए आवश्य नहीं है संन्यास   आज इस विषय पर लिखने का कारण मधु आंटी हैं | वो अचानक रास्ते में मिल गयीं | मधु आंटी  को देखकर  बरसों पहले की स्मृतियाँ आज ताज़ा हो गयी | बचपन में वो मुझे किसी रिश्तेदार के यहाँ फंक्शन में मिली थी | दुबला –पतला जर्जर शरीर , पीला पड़ा चेहरा , और अन्दर धंसी आँखे कहीं  न कहीं ये चुगली कर रही थी की वह ठीक से खाती –पीती नहीं हैं | मैं तो बच्ची थी कुछ पूँछ नहीं सकती थी | पर न जाने क्यों उस दर्द को जानने की इच्छा  हो रही थी | इसीलिए पास ही बैठी रही | आने –जाने वाले पूंछते ,’अब कैसी हो ? जवाब में वो मात्र मुस्कुरा देती | पर हर मुसकुराहट  के साथ दर्द की एक लकीर जो चेहरे पर उभरती वो छुपाये न छुपती | तभी खाना खाने का समय हो गया | जब मेरी रिश्तेदार उन को खाना खाने के लिए बुलाने आई तो उन्होंने कहा उनका व्रत है | इस पर मेजबान रिश्तेदार बोली ,” कर लो चाहे जितने व्रत वो नहीं आने वाला | “ मैं चुपचाप मधु आंटी के चेहरे को देखती रही | विषाद  के भावों में डूबती उतराती रही | लौटते  समय माँ से पूंछा | तब माँ ने बताया मधु  आंटी के पति अध्यात्मिकता  के मार्ग पर चलना चाहते थे | दुनियावी बातों में उनकी रूचि नहीं थी | पहले झगडे –झंझट हुए | फिर वो एक दिन सन्यासी बनने के लिए घर छोड़ कर चले गए |माँ कुछ रुक कर बोली ,”  अगर सन्यासी बनना ही था तो शादी की ही क्यों ?वो लौट कर घर – बार की जिम्मेदारी संभाल  लें इसी लिए मधु इतने व्रत करती है |                बचपन में मधु आंटी से सहानुभूति के कारण मेरे मन में एक धारणा  बैठ गयी| की पूजा –पाठ तो ठीक है पर अध्यात्मिकता या किसी एक का अध्यात्मिक  रुझान रिश्तों के मार्ग में बाधक है |और बड़े होते –होते ऐसे कई रिश्ते देखे जिसमें एक व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चला वहां रिश्तों में खटपट शुरू हो गयी |  हालांकि भगवान् कृष्ण ने अपने व्यक्तित्व व् कृतित्व के माध्यम से दोनों का सही संतुलन सिखाया है | वो योगी भी हैं और गृहस्थ भी | इन दोनों का समुचित समन्वय करने वाले राजा जनक भी विदेहराज़ कहलाते हैं |   मैं तत्व को जानने और योगी होने के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी होने की आवश्यकता नहीं है | फूल अगर खिलना है तो वो सदूर हिमालय के एकांत में भी खिलेगा और शहर के बीचों –बीच कीचड में भी |  अध्यात्मिक  प्रक्रिया फूल खिलने की भांति है | क्यों होता है अध्यात्मिक रुझान  कोई व्यक्ति क्यों अध्यात्मिक हो जाता है | इसका उत्तर एक प्रश्न में निहित है की कोई व्यक्ति क्यों लेखक , कवि या चित्रकार ,कलाकार हो जाता है | दरसल हम इस रुझान को ले कर पैदा होते हैं | पूर्व जन्म के सिद्धांत के अनुसार हम इस मार्ग पर पिछले कई जन्मों से चल रहे थे | जिस कारण इस जन्म में भी हमें इस ओर खिंचाव महसूस हुआ | अगर रुझान वाला काम व्यक्ति नहीं करेगा तो उसे बेचैनी होगी | अध्यात्मिक रुझान भी ऐसा ही है | जिसे मैं तत्व को खोजने की तीव्र इच्छा होगी | वो उस और अवश्य खींचेगा |इस मैं तत्व को जानने  में रिश्ते या सांसारिक कर्म बिलकुल भी बाधक नहीं हैं | व्यक्ति आराम से रिश्तों के बीच में रह कर इन्हें जानने का प्रयास कर सकता है |   आध्यात्म नहीं रिश्तों की मांगे हैं संन्यास लेने का कारण                    यह सच है की संसार में कई लोग ऐसे हुए जिन्होंने अध्यात्मिक प्रक्रिया अपनाने के बाद अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर दिया। ऐसा इसलिए नहीं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया इस तरह की मांग करती है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो रिश्तों की मांगों को पूरा नहीं कर सकते थे।  आध्यात्मिक मार्ग इस बात की मांग नहीं करता कि आप अपने रिश्तों को छोड़ दीजिए लेकिन रिश्ते अक्सर ये मांग करते हैं कि आप आध्यात्मिक राह को छोड़ दीजिए। ऐसे में लोग या तो अध्यात्मिक  मार्ग का चुनाव करते हैं, या अपने रिश्तों को बचाए रखते हैं।सच्चाई ये है की ज्यादातर लोग अपनी कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकल पाते और रिश्तों के दवाब में आकर अध्यात्मिक पथ को छोड़ देते हैं | आश्चर्य है की जब हम रिश्तों में रहते हुए मन में इसकी उसकी बुराई भलाई सोंचते रहते हैं | कई बार अपने मन में चलने वाली कमेंट्री के चलते परिवार वालों से बुरी तरह से झिड़क कर या गुस्से में कुछ अप्रिय  बोल भी देते हैं | पर बात आई गयी हो जाती है | परन्तु जब कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है तो वो मौन में अपने अन्दर झांक रहा होता है | उसकी ये शांति परिवार से बर्दाश्त नहीं होती | उन्हें लगता है वो एक सेट पैटर्न पर चले | वो  हमसे अलग कैसे हो सकता है | वो हमारे जैसा ही हो |  रिश्तों में असुरक्षा का भाव है अध्यात्म में बाधक  अक्सर देखा गया है  जब कोई ध्यान करना शुरू करता है तो शुरूआत में उसके परिवार के दूसरे सदस्य खुश होते हैं, क्योंकि उस की अपेक्षाएं कम हो जाती हैं, वह शांत रहने लगता है और चीजों को बेहतर तरीके से करने लगता है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति ध्यान की गहराई में जाता है, जब वो आंखें बंद करके आनंद के साथ चुपचाप बैठा रहता है, तो लोगों को परेशानी होने लगती है।खास कर जीवन साथी … Read more

कैसे रिश्तों में डालें नयी जान

                                              रोज ही शाम को लीला बाई से मिलना होता था , पार्क में आतीं तो अपने परिवार की बात किए बिना न रहतीं ।मैं भी सोचती कि उम्र हो गयी किंतु इनका दिल है कि परिवार में ही बसा है , फिर भी मैं उनका दिल रखने के लिए उनकी बातें सुन लेती , सोचती कि मुझे तो बच्चों को ले पार्क में आना ही है फिर इनकी बात सुन लूँ  तो क्या जाता है | कई बार बोर भी हो जाती उन्हीं बातों को बार-बार सुन , किंतु वह भी तो मुझे अपना समझ बताती हैं, उनका मुख्य विषय  होता उनका पोता । कहतीं “आज फेसबुक पर नये फोटो डाले है बहू ने, प्राइज़ मिला है पोते को , पढ़ाई में प्रथम आया है , कभी कहतीं स्कूल बास्केट बाल टीम में सेलेक्ट हो गया है , और क्यूँ न हो बड़े लाड़-प्यार से पाला है उसे , किंतु अब बेटे का तबादला हो गया है तो मिल नहीं पाती उस से ,, बस छुट्टियों का इंतजार है ,तभी एक दिन इंटेरकौम कर बोलीं , कुछ दिनों के लिए बेटे के घर जा रही हूँ “ मैने वजह पूछी , कहने लगीं “वापिस आ कर बतावुँगी , अभी फ्लाइट का समय हो गया है ” और जब वे दो माह बाद वापिस आईं और शाम को पार्क में मिलते ही मैं पूछ बैठी “आंटी मिल आईं पोते से , और मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा “आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम ” इतना सुनते ही रो पड़ीं बेचारी कहने लगीं क्या बताऊं ? और जो उन्होंने बताया वाकई दिल को दुखाने वाला था चलिए मैं ही सुनाती हूँ आपको उनकी कहानी  जब स्वार्थ  रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाए  लीला जी अपने इकलौते पोते के प्यार में पागल थी किंतु मजबूरी जब से बेटे का तबादला हो गया था सिर्फ़ गर्मी की छुट्टियों में ही पोते से मिल पाती । जब उसका पोता छुट्टियों में उसके पास आता वह उसकी पसंद के खाने , खिलोनों एवं किताबों का भंडार लगा देती ,नित नये पकवान खिलाती । एसे करते पाँच वर्ष बीत गये और पोता पूरे सोलह वर्षों का हो गया । तभी एक दिन उसके बेटे का फोन आया और बेटा बोला बहू का एक्सीडेंट हो गया है तो माँ तुम आ जाओ घर और अस्पताल दोनों ही संभालने पड़ेंगे । बेचारी ने झट से अपना सूटकेस तैयार किया और रवाना हो गयी अपने बेटे के घर जाने के लिए । मन में बहू के एक्सीडेंट का तो दुख था किंतु अपने पोते से मिलने की  खुशी भी थी । बेटे के घर पहुँचते ही पहले दिन से ही पूरे घर एवं अस्पताल की ज़िम्मेदारी संभाल ली ।  उसके बेटे ने भी कहा माँ पोते के स्कूल व सोने –उठने के टाइम का थोड़ाध्यान रखना, परीक्षा नज़दीक है सो उसे थोड़ा पढ़ने के लिए भी कह देना । लीला जी ने भी अपना समझ पोते के रख-रखाव में कोई कमी न छोड़ी । तभी एक रात पोते के कमरे में दूध का गिलास ले कर गयी और पोते को अपने मित्र से बात करते सुना । पोता कह रहा था  “यार क्या करूँ ये बुड्ढी सारे दिन पहरेदारी करती है ,जब से आई है नाक में नकैल डाल रखी है , न खुद चैन से रहती है न मुझे बैठने देती है ” यह सुन लीला जी  के तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी । चुपचाप दूध का गिलास टेबल पर रख कमरे से बाहर आ गयी । मगर आँसू थे कि थमने का नाम ही न ले रहे थे और कानों  में एक ही शब्द गूँज रहा था बुड्ढी… बुड्ढी…. बुड्ढी मैं सोचती रह गयी कि आख़िर कहाँ कमी रह गयी थी कि बेटे-बहू,लीला बाई सभी तो अपनी जगह सही थे , फिर भी पोते का व्यवहार ऐसा  ? कई दिनों तक जवाब नहीं मिला मुझे , फिर समझ में आया कि  शायद आज के परिवेश में जहाँ नौकरी-पेशा लोग अपने परिवारों से अलग रह रहे है , तो एक पीढ़ी दूसरी तक वे संस्कार पहुँचा ही नहीं पा रही है , सब एक दूसरे के बंधनों से आज़ाद रहना चाहते हैं , शायद एक दूसरे को देख कर चलन ही एसा बन गया है कि हर कोई सिर्फ़ ज़रूरतों को महत्व दे रहा है , रिश्तों को नहीं , बेचारी लीला बाई जिन की जान पोते में बस्ती थी , उनका दिल  सदा के लिए टूट गया । रिश्तों के पौधे को समय पर सींचे  वहीं एक और नयी आंटी थीं अभी कुछ दिन पहले ही नयी दिखाई देने लगी थीं और सभी को बाय-बाय कहती नज़र आईं , सो किसी ने पूछ ही लिया “अरे अभी आई अभी गयी” तो बताने लगीं वे अपनी कहानी लीजिए उन्हीं के मुख से सुन लीजिए ६५ वर्ष की उम्र में मुझे वृद्धाश्रम  भेजने की बात घर में हई तो मेरा दिल दहल उठा । मैं कोसने लगी अपने बेटे व बहू को । मन ही मन सोच रही थी बहू ने पट्टी पढ़ाई होगी बेटे को । वरना मेरा बेटा तो राम सा है ,एसा कभी ना करता । अब तो घर में पानी भी पीने को मन न करता । सोचती एक टुकड़ा न तोड़ूं इस घर में । क्या फायेदा हुआ बेटे को पाल-पोसकर इंजिनियर बनाने का । दूसरा बच्चा भी न किया ,सोचा एक ही को अच्छा कर लूँगी । पर ” हाय री किस्मत ” । अब यह दिन देखने पड़ रहे हैं , अपने बेटे के घर में रहने को भी जगह नहीं । आख़िर माँगती ही क्या हूँ इस से ? दो वक़्त की रोटी ! वह भी नहीं खिला सकता।  क्या फायेदा औलाद पैदा करने का ? बेटा मुझे बार-बारसमझाता, कहता ” सब तुम्हारे भले के लिए ही कर रहा हूँ माँ ”  मैं सोचती सब चिकनी-चुपड़ी बातें ! बार-बार बोलता माँ उधर तुम्हारी सार -संभाल अच्छे से हो जाएगी , हम तो मियाँ-बीबी नौकरी वाले हैं , घर में तुम्हें अकेली कैसे छोड़ दें ? ऊपर से मेरा बार-बार विदेश जाना । तुम्हारी हारी-बीमारी देखने वाला कौन है घर में ? नौकर रख दें , लेकिन आज के नौकरों का भी तो भरोसा नहीं , बड़े-बूढ़ों को अकेले पाकर ना जाने क्या कर डालें ।  मैं कुछ ना बोली । मन में सोचा ” सब बनावटी , दिखावा ” । बस दस दिन बचे थे मुझे जाने में, तभी मेरा १७  वर्षीय पोता छुट्टियों में हॉस्टिल से आया । बेटा-बहू दोनों तो नौकरी पर चले जाते , पोता सारे दिन दोस्तों से फोन पर बात करता  या  कंप्यूटर  पर  खेलता ।  मैं सोचती इससे थोड़ा बात करूँ ,तो कहता ” दादी … Read more

प्रेम की ओवर डोज

प्रेम का सबसे सही प्रमाण विश्वास है-अज्ञात  निधि की शादी को चार साल हो गए हैं वह पति के साथ नासिक में रहती है | |उसके पति उसे बहुत प्रेम करतें हैं | उसका दो साल का बेटा है | निधि के माता – पिता निधि की ख़ुशी देख कर बहुत खुश होते हैं | अक्सर बताते नहीं थकते उनके दामाद जी उन्की बेटी से कितना प्रेम करते हैं | जब भी निधि मायके आती है साथ – साथ आते हैं और उसे साथ ही वापस ले जाते हैं | जहाँ भी निधि जाना चाहती है अपना हर काम छोड़ कर उसके साथ जाते हैं | अगर कभी निधि को अकेले मायके आना पड़ता है तो दिन में ६ बार फोन कर के उसका हाल – चाल लेते हैं | ऐसी कौन सी पत्नी होगी जो अपने भाग्य पर न इतराए | किसके माँ – पिता ये सब देख कर गर्व न महसूस करते होंगे |लिहाजा निधि के माता –पिता भी हर आये – गए से उसके भाग्य की प्रशंसा करते | जब निधि भी उपस्तिथ होती तो हँस कर हां में समर्थन करती | धीरे – धीरे ये हँस कर किया गया समर्थन मुस्कुरा कर फिर मौन , फिर भावना रहित समर्थन में बदलने लगा | एक दिन उसकी माँ यूँ ही दामाद जी की तारीफ कर रहीं थी तो निधि फूट – फूट कर रोने लगी ,” बस करो माँ , बस करो , वो मुझे प्यार नहीं करते , मुझ पर शक करते हैं | इसी कारण एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते | बार – बार फोन करके कहाँ हो क्या कर रही हो पूंछते रहते हैं | अब मैं थक गयी हूँ माँ , अब नहीं सहा जाता |                                                  अब अवाक रहने की बारी माता – पिता की थी | शक्की पति या पत्नी से निभाना बहुत कठिन होता है | बेटी इतना कष्ट सह रही थी पर उन्हें भनक तक नहीं लगी | कैसे लगती ? प्रेम को हम बहुत फ़िल्मी तरीके से लेते हैं | मुझे ये पुराना गीत याद आ रहा है … बैठा रहे सैंया नैनों को जोड़े /एक पल अकेला वो मुझको न छोड़े नहीं कोई जिया को कलेश /पिया का घर प्यारा लगे क्या हम कभी सोंचते हैं की एक पल अकेला न छोड़ना प्रेम की निशानी नहीं है | ज्यादातर मामलों में प्रेम की इस ओवर डोज के पीछे क्रूर मानसिकताएं छुपी होती हैं | जिनमें शक्की होना , पजेसिव होना या सुपर डोमीनेटिंग होना , होती हैं | अगर शादी के एक साल बाद भी प्रेम की ओवर डोज दिखाई दे रही है तो अपने और अपनी बेटी के भाग्य पर इतराने की जगह मामले की तह तक जाने की जरूरत है | हो सकता है आपकी बेटी , बहन , भांजी , भतीजी की नकली हंसी के पीछे बहुत गहरा दर्द छिपा हो | क्योंकि आजकल ज्यादातर परिवार एकल हैं तो निश्चित तौर पर वो अकेले घुट रही होगी | तब खुल कर बात करने की जरूरत है क्योंकि यह कई बार अवसाद अलगाव या बच्चों की खराब परवरिश के नतीजे ले कर आता है | कैसे पहचाने प्रेम की ओवर डोज को ऊपर  के उदाहरण में  नेहा ने जब तक समझा की ये प्यार नहीं बंधन है तब तब तक बहुत देर हो चुकी थी | नेहा की तरह अनेक लड़कियों /लड़कों को इस बात को समझने में समय लग जाता है की वो प्रेम की ओवरडोज के शिकार हैं |जब तक बात समझ आती है  तब तन शिकार का मानसिक संतुलन बिगड़ चुका होता है | उसका सेल्फ कांफिडेंस ,सेल्फ एस्टीम आदि नष्ट हो चुकी होती है |कई बार वो इस लायक नहीं रहता कि वो बाहर की दुनिया का सामना कर सके | बेहतर है की इसके लक्षणों को समय रहते पहचाना जाए … 1)उसकी एक निगाह हमेशा आप पर रहती हैं | वो हर वक्त ये जानना चाहता है की आप कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं | अगर किसी से बात की तो उससे क्या – क्या बात की | अगर आप उसका फोन नहीं उठाते हैं तो वो आप की माँ , पडोसी दोस्त से फोन कर आपके बारे में जानना चाहेंगे की आप कहाँ हैं ? 2) ये सच है की जीवनसाथी के साथ एक अटूट रिश्ता होता है | फिर भी हर किसी की सहेलियों व् दोस्तों का , पड़ोसियों अपना एक दायरा होता है | जहाँ हम बातें शेयर करते हैं | हँसी  मजाक करते हैं | हर किसी को इस “मी टाइम “ की जरूरत होती है | अगर आप का साथी दूसरों के साथ समय बिताने पर  चिढता है तो आप इसे खतरे का संकेत समझें | 3 )अगर आप का साथी आप को हर बात में डिक्टेट करें , मसलन आप कैसे कपडे पहनें , कैसे चप्पल पहने , पर्स लें या बिंदी लगायें तो सतर्क हो जाएँ | शुरू – शुरू में यह काम वो प्यार के नाम पर करेगा / करेगी |उसका साधारण सा वाक्य होगा की वो आप को बहुत प्यार करता है इस कारण वह आप को सबसे सुन्दर सबसे अलग देखना चाहता है |इस वाक्य पर आप अपनी चाबी उसे आसानी से दे देती हैं | 4 ) आपके जो भी दोस्त , रिश्तेदार – नातेदार विपरीत लिंगी हैं उन्हें वो नापसंद करेगा | शुरू में वो किसी एक के बारे में बात करेगा की उसमें ये कमी है वो कमी है …तुम उससे बात न किया करो | परन्तु अगर ये पैटर्न रिपीट हो रहा है तो आप को सतर्क होने की आवश्यकता है | 5)वो आप की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की इच्छा का न केवल खुल कर विरोध करेगा बल्कि हर संभव प्रयास करेगा कि आप आर्थिक रूपसे उस पर निर्भर रहे | आर्थिक निर्भरता के कारण वो आपको जैसे डिक्टेट करेगा वैसे आप को  पड़ेगा | ६) अधिकतर वो आपसे बिना बात झगडा करते हैं | इसमें वो जरूरत से ज्यादा एग्रेसिव हो जाते हैं | झगडे … Read more

रिश्तों को सहेजती है संस्कारों की सौंधी खुशबू

हमारी  भारतीय संस्कृति की जड़े उस वटवृक्ष की तरह है जिसकी छाँव में हमारे आचार  -विचार और व्यवहार पोषित और पल्लवित होते है। साथ ही संरक्षण पाते  है। हर देश ,धर्म,हर भाषा ,और हर व्यक्ति का अपना एक स्वतंत्र प्रभाव होता है।एक अलग पहचान होती है।  इन सब का मिला-जुला  प्रभाव ही हमारे संस्कार और संस्कृति बनकर हमारा ‘परिचय ‘बन जाते है। और  हमारे रग -रग में रच बस जाते है। ये हमारे अदृश्य बंधन  है जो हम सबको एक -दूसरे से बांधे रखते है। साथ ही हमें अपने पाँव जमीं पर रखने कि प्रेरणा देते है।हमसब इसे अपनी अनमोल विरासत मानकर सहेजते है ,सम्हालते है और आने वाली पीढ़ी  को सौपते है।  आज ,समय की आंधी बहुत तेजी से अपना प्रभाव छोड़ते जा रही है। पाश्चात्य और आयातित संस्कृति ने हमारे संस्कारो की जड़ो को हिलाना शुरू कर दिया है। और हम बहुत कुछ खोते जा रहे है। अच्छी बातो का अनुकरण सराहनीय है ,पर अमर्यादित विचारोऔर कुसंस्कारों का अंधानुकरण सर्वथा गलत है। अंतत; हम दिग्भ्रमित हुए जा रहे है।  यूँ  तो हमारे जीवन में हिन्दू परंपरा के अनुसार सोलह संस्कारो का वर्णन है। पर जन्म ,विवाह और मृत्यु के सिवाय हममे से ज्यादातर लोगो को इनकी जानकारी है ही नहीं है। जबकि हर संस्कार हमें बांधने का काम करता है। परिवार का समाज से सम्बन्ध और समाज का परिवार का सम्बन्ध लोगो के मिलने जुलने से ही बढ़ता है | आज जब हम सुबह सोकर उठते है तो हमारा हाथ सबसे पहले मोबाईल पर जाता है और व्हाट्स अप पर ऊँगली दौड़ने लगती है। हमारी दिनचर्या गुड मॉर्निग और गुड नाईट  के आधीन हो गयी है। सुबह उठकर हथेली के दर्शन करना ,धरती माँ को स्पर्श करना ,ईष्ट देवता को याद करना अब दकियानूसी बाते हो गयी है।कई वर्ष पूर्व बच्चो के स्कूल जाने के प्रथम दिन उनसे स्लेट पर श्री गणेशाय; नमः;लिखवाकर  अक्षराभ्यास कराया जाता था। आज जॉनी जॉनी  यस पापा सीखा  कर  संस्कारों को आईना  दिखा दिया जाता है।   शर्मनाक स्थिति तब आ जाती है जब बच्चो के गलत हिंदी बोलने पर अभिभावक उसे सुधारने के बदले स्वयं ही खिल्ली उड़ाने लगते है। और कच्ची पक्की पोयम पर ताली बजाने लगते है। और इस तरह अप्रत्यक्ष ही गलत सीख दे देते है। जो बच्चो के कोमल मन पर गलत प्रभाव डालते है। इसी तरह पिछली पीढ़ियों को उनके जन्मदिन पर आयुष्मान भव;,चिरजीव भव; जैसे वचनों का  आशीर्वाद दिया जाता था दादी के पोपले मुँह  से ,और दादाजी के कांपते हाथो से मिलने वाली दुआओं  की पूँजी अब ख़त्म हो चली है  क्योकि  पर अब कई घरो में बड़े बुजुर्गो का स्थान बदल गया है या तो वे वृद्धाश्रम में रहते है या फिर अकेले ही रहते है और संस्कारो का सागर  सूखने लगा है.अब तो बड़े बड़े होटलों में केक पिज़ा  कोल्ड्रिंक पार्टी ही जन्मदिन का तोहफा माने  जाने लगा है।  यह अजीब विडंबना है कि इस प्रकार संस्कारोंके अधोपतन के लिए हम स्वयं को दोषी कतई नहीं ठहरना चाहते बल्कि समाज ,शिक्षा ,माहौल ,वैश्वीकरण ,अंधी नक़ल पर अपनी कमियों का ठींकरा फोड़ते है। जबकि हर व्यक्ति की संस्कृति उसका स्वाभिमान होता है हम सब भाषणो में  रोज कहते है।मगर हम सिर्फ भौतिक सुखसुविधाओ और पैसे को अपने संस्कारो से ऊँचा मानने की भूल कर रहे है मानवीय मूल्यों कोऔर नैतिकता को तज कर शॉर्टकट अपनाकर आगे बढ़ने को ही अपना बड़प्पन समझ रहे है |         आज कही न कही हमारी मानसिकता कुंठित हो रही है। दोराहे पर खड़ा इंसान सिर्फ व्यवहारिक और व्यवसायिक मूल्यों को अपनाने के लिए क्यों विवश है ?दृढ़ शक्ति की कमी या नैतिक मूल्यों का पतन इसका जिम्मेदार तो नहीं ? या भौतिकवाद का आकर्षण इसके गिरने का कारण बन रहा है। क्यो …. मिटटी के दिये की रोशनी  आज चीनी झालर से कम हो गयी ,? क्यों खीर -पूरी ,मालपूए की सोंधी मिठास से ज्यादा महत्त्व हम चाऊमीन और कोल्ड ड्रिंक को दे रहे है।  यह सब हमें ही  सोचना है। हम व्यर्थ ही नई पीढ़ी को कुसंस्कारी और असभ्य कह देते है ,दर हक़ीक़त हम खुद को नहीं जान पाते। हम भूल जाते है कि हम फूलों  की क्यारी में नागफनी को बो रहे है जब उसके कांटे हमें चुभने  लगते है तब हम इन नासूरो को केवल सहला ही पाते है उन्हें उखाड़  कर फैकने का साहस नहीं कर पाते। हम भूल जाते है कि जमी से जुड़े इंसान ही सफलता की राहो में चल पाते है ,मजबूत और गहरी नींव पर ही सुन्दर और भव्य ईमारत बन सकती है। मगर पिज़्ज़ा पास्ता की नई पीढ़ी तैयार करते करते  हम अपना अभिमान ,अपनी संस्कृति ,अपने संस्कार सभी भूलते जा रहे है। कल जब हमारा अपना खून हमसे इन सवालो के जवाब मांगेगा तब हम उन्हें जवाब नहीं दे पायेंगे। … और हमारी आत्मग्लानि का कोई विकल्प ही नहीं होगा। अर्चना नायडू ,जबलपुर आपको अर्चना नायडू जी का लेख  रिश्तों को सहेजती है  संस्कारों की सौंधी खुशबू   कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

उलझे रिश्ते : जब हो जीवन साथी से गंभीर राजनैतिक मतभेद

डॉ. गॉटमैन के एक्सपेरिमेंट को समझकर कर रिश्ता बचाने में उठाया गया “अगला कदम” अगर आप इस समस्या से नहीं गुज़र रहे हैं तो आप भले ही शीर्षक पढ़ कर मुस्कुरा दें पर इस पीड़ा को वही समझ सकता है जिसके घर में संसद की तरह रोज पक्ष –विपक्ष की बहस होती हो | कहते हैं की ये समय असहिष्णुता का समय है | लोग सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने से डरते हैं | एक तरह के विचार दूसरे विचारों से टकरा रहे हैं | कई बार इस टकराहट में असामान्य अशिष्ट भाषा का प्रयोग भी होता है |दरसल इसमें समय का कोई दोष नहीं है | अब हर किसी को सोशल प्लेटफोर्म मिला हुआ है | जिस कारण वो अपने विचार रख सकता है | लेकिन अगर विचार विरोधी हों तो ? ये सारी  नोक झोंक इन विचारधारों की लड़ाई के कारण ही है | जहाँ दोनों अपनी बात दूसरे पर थोपना कहते हैं | मनवाना चाहते हैं | क्योंकि उन्हें अपनी ही बात सही लगती है | अक्सर ऐसी ही विचारधाराओं की लड़ाई टी.वी. में जब दो पार्टियां आपस में बहस करती हैं तो देखने को मिलती है | उनका बढ़ा  हुआ ब्लड प्रेशर घर के अन्दर भी ब्लड प्रेशर बढ़ा  देता है | अगर बात टी .वी. की हो या सोशल मीडिया की  तो स्विच आपके हाथ में होता है | पर अगर आप का जीवन साथी ही विपरीत राजनैतिक विचारधारा का हो तो ? शिरीष से जब मेरा यानी निकिता उर्फ़ निक्की का अरेंज विवाह हुआ था तो हम दोनों ने एक साथ एक सुंदर  घर बनाने का सपना देखा था |यूँ तो पति – पत्नी का रिश्ता अटूट बंधन होता है | परन्तु पहले दिन से ही हम दोनों में राजनैतिक विचारधारा के न मिलने के  कारण मनमुटाव होने लगा | मुझे  बहुत धक्का लगा जब मुझे पता चला की मैं वामपंथी या प्रगतिशील और शिरीष दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक हैं | मैं रवीश पर फ़िदा और वो सुभाष चंद्रा  पर | मैं तो कभी कभी सुन भी लेती पर वो तो रविश का  नाम लेते ही चिल्लाने लगते | मैं  कुछ हद तक आधुनिकता की समर्थक वो घोर परंपरा वादी | कुल  मिला कर यह कह सकते हैं की हम दोनों पढ़े – लिखे , अच्छी नौकरी वाले वाले समझदार होते हुए भी हर बात पर उलझ जाते | इतना की एक दूसरे के साथ निभा पाने में असमर्थता लगने लगी थी | अखबार की खबरें हमारे बेडरूम और किचन में ( यानी खाने और सोने में )  हम पर हावी हो रहीं थीं |ये नकारात्मकता  केवल ख़बरों तक ही सीमित नहीं रही | हम विचारधारा के आधार पर एक दूसरे की पर्सनाल्टी को जज करने लगे | हमारा घर कुरुक्षेत्र बनता जा रहा था |कब कैसे ये अटूट बंधन कमजोर पड़ता जा रहा था , हम जानते हुए भी नहीं जान पा रहे थे |   धीरे – धीरे दिन खिसकने लगे | मैं प्रेग्नेंट हो गयी | वैसे शुरू से शिरीष मेरे प्रति लविंग व् केयरिंग रहे हैं , मैं भी उनके प्रति वैसी ही हूँ पर राजनैतिक विचार धारा  की बात आते हुए हम दोनों एक दूसरे को नोच खाने को तैयार हो जाते | हमारी जान का दुश्मन अखबार सुबह – सुबह हमारे घर आ जाता | फिर ख़बरों की ऐनालिसिस में हमारा झगडा शुरू हो जाता | ट्रेन एक्सीडेंट में पक्ष और विपक्ष की क्या भूमिका हैं , अगला प्रधनमंत्री कौन बने , फलाना लीडर ज्यादा भ्रस्ट  है या ढीकाना,हम इस बात में भी लड़ पड़ते | सारा माहौल  बिगड़ जाता | हम दोनों झगड़े टालना चाहते  थे | पर झगड़े हर बात में हो रहे थे | क्योंकि हम एक दूसरे की नेगटिव एनालिसिस करने लगे थे | हमें हर बात में खोंट नज़र आने लगता | हर छोटी से छोटी बात में राजनैतिक दृष्टिकोण की भूमिका लगती | हम साथ रहना कहते थे पर हमारी जिंदगी नरक  होती जा रही थी | प्रेगनेंसी के समय इस बढ़ी हुई एंजाइटी के कारण मेरा स्वास्थ्य बिगड़ने लगा | बच्चे पर खतरा जान कर शिरीष मुझे डॉक्टर के पास ले गए | मेरी समस्या को समझते हुए डॉक्टर ने मुझे मनोचिकित्सक के पास भेज दिया | उन्होंने धैर्य  पूर्वक हमारी समस्या सुनी |उसे समझते देर न लगी की हमारी समस्या क्या है ? उन्होंने  बताया की राजनैतिक विचारधारा को अक्सर महत्व नहीं दिया जाता है परन्तु इससे कई बार घर में नकारात्मकता इतनी बढ़ जाती है की रिश्ता टूट जाता है | फिर मुझे रिलैक्स कर उसने डॉ . गॉटमैन व्के उनके एक्सपेरिमेंट के  बारे में बताया | गॉटमैन का एक्सपेरिमेंट  डॉ .गॉटमैन ने रिश्तों पर प्रयोग किये हैं | उनके अनुसार हर कपल में  झगडा होता है |चाहे गीला तौलिया बिस्तर पर रखने पर हो , खाने में नमक पर हो या आलसीपने पर हो या बिना कारण के हो | पर इतने झगड़ों के बावजूद भी कुछ शादियाँ टिकती हैं और कुछ टूट जाती हैं | इतने झगड़ों के बावजूद आखिर क्या है की कुछ शादियाँ टूट जाती हैं और कुछ टिकी रह जाती हैं | इस  पर 1970 में उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर एक्सपेरिमेंट किया | उन्होंने बहुत सारे जोड़ों को बुलाया और १५ मिनट में अपने किसी विवाद को सुलझा लेने को कहा | वहां उन्होंने उन्हें एक अलग  कमरा दिया | जिसकी रिकार्डिंग हो रही थी | उनका यह प्रयोग नौ साल तक चला | उन टेप्स  को सुनने के बाद व् उन कपल्स को नौ साल तक फॉलो करने के बाद डॉ. गॉटमैन ने यह निष्कर्ष निकाला की किसी भी जोड़े के झगड़ों को सुन कर 90 % सफलता के साथ यह बताया जा सकता है की इनमें से किस का रिश्ता ( शादी ) चलेगी व् किनमें अलगाव हो जाएगा | कैसे निकाला डॉ गॉटमैन ने यह रिजल्ट  इस रिजल्ट को निकालने में डॉ . गॉटमैन का सूक्ष्म निरिक्षण था | उन्होंने झगड़ों के आधार पर मैजिक रेशियो बनाया | जिसके लिए उन्होंने 5 :1 का स्केल चुना | डॉ . गॉटमैन के अनुसार वो कपल जिनका रिश्ता आगे चलना है वो झगडे के दौरान तमाम नेगेटिव बातों के बीच कुछ सकारात्मक … Read more

कोई तो हो जो सुन ले

कभी – कभी हमें एक तर्क पूर्ण दिमाग के जगह एक खूबसूरत दिल की जरूरत होती है जो हमारी बात सुन ले – अज्ञात                                   उफ़ !कितना बोलते हैं सब लोग , बक – बक , बक -बक | चरों तरफ शोर ही शोर | ये सच है की हम सब बहुत बोलते हैं | पर सुनते कितना हैं ?हम सुबह से शाम तक कितने लोगों से कितनी साड़ी बातें करते हैं | पर  कभी आपने गौर किया है की जब मन का दर्द किसी से बांटना चाहो तो केवल एक दो नाम ही होते हैं | उसमें से भी जरूरी नहीं की वो पूरी बात सुन ही लें |  पढ़िए – प्रेम की ओवर डोज                                                 बात तब की है जब मैं एक बैंक में किसी काम से गयी थी |बैंक में पेपर तैयार होने में कुछ समय था | मैं इंतज़ार के समय में कुछ सार्थक करने के उद्देश्य से बैंक के सामने बने सामने पार्क में एक बेंच पर बैठ कर किताब पढने लगी | समय का इससे अच्छा सदुपयोग मुझे कुछ लगता नहीं | तभी एक अजनबी महिला मेरे पास आई और बोली ,” क्या आप भी टेंश हैं , वैसे भी आजकल के ज़माने में कौन टेंशन में नहीं है |” मैं उनको देख कर मुस्कुराई | वो मेरे बगल में बैठ गयीं फिर खुद ही  बोलीं मैं बहुत टेन्स हूँ | मैंने प्रश्न वाचक नज़रों से उनकी ओर देखा | जैसे कोई बीज नर्म मिटटी पा कर अंकुरित होने लगता हैं , वैसे ही  वो अपने दिल की एक – एक पर्त खोलने लगीं | अपने तनाव की , अपने दर्द की , अपनी तकलीफों की | मैं बिना कोई राय व्यक्त किये बस सुनती जा रही थी | अंत में मैं उनके हाथ पर हाथ रख कर बोली ,” आप परेशान न हों , हर समस्या अपने साथ समाधान ले कर आती है | आपकी भी समस्याओं का हल होगा | वो बस अभी आपके दिमाग में कहीं अंदर  छिपा हुआ है , सतह पर नहीं आया | पर आएगा जरूर |बस आप अपनी सेहत का ध्यान रखें व् कूल माइंड से फैसले लें | उन्होंने मुझे थैंक्स कहा और मैं अपना बैग उठा कर चल दी , शायद उनसे फिर कभी न मिलने के लिए | पर रास्ते में ये सोंचते हुए की आखिर क्या कारण है की संयुक्त परिवार में रहने वाली इस महिला को ( रिश्तों की भीड़ से घिरी होने के बावजूद ) अपना दर्द किसी अजनबी से शेयर करने की जरूरत पड़ीं |  पढ़िए – पौधे की फ़रियाद क्या हम रिश्तों की भीड़ में अकेले हैं ? क्या आप ने महसूस किया है की जब हम किसी अपने को अपना दर्द सुनाते हैं तो कई बार वो  इस तरह से सुनते हैं की उनके हाव – भाव बता देते हैं की वो बहुत बोर हो रहे हैं | कई बार  बात बीच में ही काट कर अपनी राय दे देते हैं और कुछ जल्दी से हाँ में हाँ मिला कर किस्सा ही खत्म करना कहते हैं | या हम जब किसी अपने को अपना दर्द सुनाते हैं तो वो बहुत जजमेंटल हो जाता है | जिससे सुनाने वाले को लगता है की उसकी तकलीफ का मजाक उड़ाया जा रहा है |और अपनों के होते हुए भी अपनापन कम होता जा रहा है |शायद इसी लिए हम सब कितना दर्द सीने में दबाये हुए एक हमदर्द ढूंढते रहते हैं | और बंद होंठों के अंदर ही अंदर चीख – चीख कर कहते हैं ” कोई तो हो जो सुन ले ”  वंदना बाजपेयी  रिलेटेड पोस्ट ……… यात्रा दर्द से कहीं ज्यादा दर्द की सोंच दर्दनाक होती है सुने अपनी अंत : प्रेरणा की आवाज़ 

आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ?

वंदना बाजपेयी शहरीकरण संयुक्त परिवारों का टूटना और बच्चों का विदेश में सेटल हो जाना , आज अकेलापन महानगरीय जीन में एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभरा है | जिसका ताज़ा उदाहरण है मुबई की आशा जी जो टूटते बिखरते रिश्तों में निराशा की दास्तान हैं | मुबई के एक घर में एक महिला का कंकाल मिलता है | घर में अकेली रहने वाली ये महिला जो एक विदेश में रहने वाले पुत्र की माँ भी है कब इहलोक छोड़ कर चली गयी न इसकी सुध उसके बेटे को है न पड़ोसियों को न रिश्तेदारों को | यहाँ तक की किसी को शव के कंकाल में बदलने पर दुर्गन्ध भी नहीं आई | सच में मुंबई की आशा जी की घटना बेहद दर्दनाक है | कौन होगा जिसका मन इन हृदयविदारक तस्वीरों को देख कर विचलित न हो गया हो | ये घटनाएं गिरते मानव मूल्यों की तरफ इशारा करती हैं | एक दो पीढ़ी पहले तक जब सारा गाँव अपना होता था | फिर ऐसा क्या हुआ की इतने भीड़ भरे माहौल में कोई एक भी अपना नज़र नहीं आता | हम अपने – अपने दायरों में इतना सिमिट गए हैं की की वहां सिर्फ हमारे अलावा किसी और का वजूद हमें स्वीकार नहीं | अमीरों के घरों में तो स्तिथि और दुष्कर है | जहाँ बड़े – बड़े टिंटेड विंडो ग्लास से सूरज की रोशिनी ही बमुश्किल छन कर आती है , वहां रिश्तों की गुंजाइश कहाँ ? अभी इसी घटना को देखिये ये घटना आशा जी के बेटे पर तो अँगुली उठाती ही है साथ ही उनके पड़ोसियों व् अन्य रिश्तेदारों पर भी अँगुली उठाती है | आखिर क्या कारण है की उनका कोई भी रिश्तेदार पड़ोसी उनकी खैर – खबर नहीं लेता था | ये दर्द नाक घटना हमें सोंचने पर विवश करती है की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? आखिर क्यों हम इतने अकेले होते जा रहे हैं ? एक अकेली महिला की कहानी आशा जी की घटना को देख कर मुझे अपने मुहल्ले की एक अकेली रहने वाली स्त्री की याद आ रही है | जिसे मैं आप सब के साथ शेयर करना चाहती हूँ | दिल्ली के पोर्श समझे जाने वाले मुहल्ले में ये लगभग ७० वर्षीय महिला अपने १० – १5 करोण के तीन मंजिला घर में अकेली रहती है | बेटा विदेश में है | महिला की अपनी कामवाली पर चिल्लाने की आवाज़े अक्सर आती रहती हैं |उसके अतिरिक्त बंद दरवाजों के भीतर का किसी को कुछ नहीं पता | पर हमेशा से ऐसा नहीं था | पहले ये तीन मंजिला घर खाली नहीं था | ग्राउंड फ्लोर पर महिला के पेरेंट्स रहते थे | फर्स्ट फ्लोर पर उनके भाई- भाभी अपने परिवार के साथ रहते थे | भाभी डॉक्टर हैं , व् थर्ड फ्लोर जो दूसरे भाई का था ( जो दिल्ली के बाहर कहीं रहते हैं ) किराए पर उठा था | जहाँ १० साल से एक ही किरायेदार रह रहे थे | जिनकी सभ्यता व् शालीनता के मुहल्ले में सब कायल थे | ये महिला अपने पति से विवाद के बाद तलाक ले कर अपने पिता के घर उनके साथ रहने लगी | बेटी पर तरस खा कर पिता ने यूँहीं कह दिया की ये मकान मेरे बाद तुम्हारा होगा | पिता की मृत्यु के बाद महिला ने कच्चे पक्के दस्तावेज से अपने भाइयों से झगड़ना शुरू कर दिया | सबसे पहले तो किरायेदार से यह कहते हुए घर खाली करवाया की ये घर की मालकिन अब वह हैं और अब उन्हीं के अनुसार ही किरायेदार रहेंगे |उनकी इच्छा है की घर खाली ही रहे | किरायेदारों ने एक महीने में घर खाली कर दिया | फिर उन्होंने अपने भाई – भाभी से झगड़ना शुरू कर दिया | भाभी जो एक डॉक्टर हैं व् जिनकी मुहल्ले में सामजिक तौर पर बहुत प्रतिष्ठा है ने रोज – रोज की चिक – चिक से आजिज़ आ कर अपने परिवार समेत घर खाली कर दिया |छोटा भाई जो दिल्ली के बाहर रहता है उसके दिल्ली आने पर घर में प्रवेश ही नहीं करने दिया | शांत रहने वाले मुहल्ले में इस तरह का शोर न हो ये सोंच कर वो भाई यहाँ आने ही नहीं लगा |इतना ही नहीं मुहल्ले के लोगों को वो घर के अंदर आने नहीं देतीं | उन्हें सब पर शक रहता है , की उनके भेद न जान लें |उनके घर में फिलहाल किसी को जाने की इजाजत है तो वो हैं कामवालियां | वो भी सिर्फ बर्तन के लिए | कामवालियों के मुताबिक़ गंदे – बेतरतीब पड़े घर में वो सारा दिन कंप्यूटर पर बैठी रहती हैं | साल में एक बार बेटे के पास जाती हैं | बेटे की अपनी जद्दोजहद है पहली पत्नी के साथ तलाक हो चुका है , दूसरी के साथ अलगाव चाहता नहीं है | शायद इसी पशोपेश में वो स्वयं चार साल से भारत नहीं आया | और फिलहाल उसकी माँ अपने तीन मंजिला घर में , जिसके दो फ्लोर पूरी तरह अँधेरे में रहते हैं , अकेली रहती है |सबसे अलग , सबसे विलग | कहाँ से हो रही है अकेलेपन की शुरुआत मुहल्ले में अक्सर ये चर्चा रहती है की जिस मकान के लिए वो इतना अकेलापन भोग रही हैं वो तो उनके साथ जाएगा ही नहीं | निश्चित तौर पर ये पुत्र मोह नहीं है ये लिप्सा है | अधिक से अधिक पा लेने की लिप्सा | जब ” पैसा ही सब कुछ और रिश्ते कुछ नहीं की नीव पर बच्चे पाले जाते हैं वो बच्चे बड़े हो कर कभी अपने माता पिता को नहीं पूँछेंगे | वो भी पैसे को ही पूँछेंगे | कितना भी पैसा हो किसी का स्नेह खरीदा नहीं जा सकता | पुराने ज़माने में बुजुर्ग कहा करते थे की इंसान अपने साथ पुन्य ले कर जाता है | इसीलिए मानव सेवा रिश्ते बनाने , निभाने पर बहुत जोर दिया जाता था |पर क्या आज इस तरह रिश्ते निभाये जा रहे हैं ? क्या एक् पीढ़ी पहले रोटी के लिए शहरों आ बसे लोगों ने खुद को समेटना नहीं शुरू कर दिया था ? हमें कारण खोजने होंगे … Read more

क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते

सरिता जैन ये लीजिये आप ने स्टेटस डाला और वो मिलनी शुरू हुई लोगों की प्रतिक्रियाएं | लाइक , कमेंट , और स्माइली … आपके चेहरे पर |बिलकुल फ़िल्मी दुनिया की तरह , लाइट , कैमरा , एक्शन की तर्ज पर | उसी तर्ज पर खुद को सेलिब्रेटी समझने का भ्रम | एक अलग सा अहसास , ” की हम भी हैं कुछ खास | फेस बुक की दुनिया | इस दुनिया के अन्दर बिलकुल अलग एक और दुनिया |पर अफ़सोस ! आभासी दुनिया | आप हम या कोई और जब कोई नया इस आभासी दुनिया में कदम रखता है तो उसका मकसद सिर्फ थोडा सा समय कुछ मित्रों परिचितों के साथ व्यतीत करने का होता है | परन्तु कब इसका नशा सर चढ़ कर बोलने लगता है | यह वह भी नहीं जानता |जिस तरह से शराब या कोई और नशा कोई एक व्यक्ति करता है परन्तु उसकी सजा सारे परिवार को मिलती है | उसी तरह से ये नशा भी बहुत कुछ आपके जीवन से चुराता है | ये चुराता है आप का समय … जी हां वो समय जिस पर आपके बच्चों , परिवार के सदस्यों और सबसे प्रमुख जीवन साथी का अधिकार है | इससे निजी रिश्ते बेहद प्रभावित होते हैं | ये सिर्फ हम नहीं कह रहे | ये आंकड़े कह रहे हैं ………. फेसबुक का पति -पत्नी के रिश्ते पर क्या प्रभाव पड़ता है | इसे जान्ने के लिए एक सर्वे कराया गया | इसमें फेसबुक के 5000 यूजर्स को चुना गया उनकी उम्र 33 साल के आस-पास थी. 12 अप्रैल से 15 के बीच कराए गए इस सर्वे में ये बातें प्रमुख रूप से कही गई हैं. 1. सर्वे के दौरान करीब 26 फीसदी लोगों का कहना था कि वे अपने पार्टनर द्वारा उपेक्षित महसूस करते हैं. इस बात पर उन दोनों के बीच लड़ाई भी होती है. वहीं फेसबुक पर उन्हें ज्यादा तवज्जो और अपनापन मिलता है. 2. सर्वे में करीब 44 फीसदी लोगों ने कहा है कि फेस बुक ने उनके आपसी रिश्ते को बर्बाद कर दिया . कई बार उनका पार्टनर उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने के बजाय फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करना पसंद करता है. 3. 47 फीसदी का मानना है कि वे फेसबुक चीटिंग का शिकार हुए हैं 4. 67 फीसदी लोगों ने ये माना कि एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर और ज्यादातर तलाक के लिए फेसबुक ही सबसे अहम कारण है. 5. सर्वे के दौरान करीब 46 फीसदी लोगों ने कहा कि वे ईर्ष्या के चलते घड़ी-घड़ी अपने पार्टनर का फेसबुक चेक करते रहते हैं. 6. करीब 22 फीसदी लोगों का मानना है कि फेसबुक उन्हें ऐसी परिस्थितियां देता है जिससे अफेयर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. 7. करीब 32 फीसदी लोगों ने ये स्वीकार किया कि उनकी रोमांटिक लाइफ अब पहले की तरह नहीं रह गई है और पार्टनर के बार-बार फेसबुक चेक करने की वजह से उनके बीच का प्यार कम हो गया है. 8. करीब 17 फीसदी लोगों ने माना कि वे फेसबुक के माध्यम से अभी भी अपने x के कांटेक्ट में हैं रिसर्च के डायरेक्टर टिम रॉलिन्स का कहना है कि फेसबुक दोस्तों को खोजने और उनसे टच में बने रहने का मंच है लेकिन यहां अफेयर में पड़ने की आशंका भी बहुत अधिक होती है. फेसबुक आपके प्यार भरे रिश्तों में खटास भी ला सकता है. सवाल यह उठता है की आखिर फेसबुक पर बने रिश्ते लुभाते क्यों हैं | कुछ मुख्य कारण जो उभर कर आये ……… दिखाई देता है दूसरे का सबसे अच्छा रूप  अक्सर देखा गया है दो लोग जो आपस में प्यार करते हैं | जब शादी करते हैं तो निभा नहीं पाते | कारण स्पष्ट है , डेटिंग के दिनों में उन्होंने एक दूसरे का बेस्ट रूप ही देखा होता है | यही बात फेस बुक के साथ है |यहाँ व्यक्ति को अगले का बेस्ट रूप ही दिखाई देता है | जब अपने जीवन साथी का समग्र ( अच्छा + बुरा ) रूप | जाहिर सी बात है वो कम रुचिकर लगेगा ही | उन्मुक्तता  गाँव देहात के जो लोग आपस में या घर -परिवार के बीच बड़े झीझकते हुए बात करते हैं | वो फेस बुक पर हर तरह की बात पर अपनी बेबाक राय देते नज़र आते हैं | क्रॉस जेंडर में इस तरह की बातें कुछ हद तक एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने का कारण भी बनती हैं | इस उन्मुक्तता का निजी जीवन में जितना आभाव होता है उतनी ही तेजी से यहाँ रिश्ते बनते हैं | कोई जवाब देही नहीं  फेस बुक के रिश्तों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती | चले तो चले वरना ब्लाक बटन तो है ही | ऐसे में निजी रिश्ते बहुत उबाऊ लगते हैं जहाँ हर किसी के सवाल का जवाब देना पड़ता है | नाराजगी झेलनी पड़ती है | और गुस्सा -गुस्सी के बीच शक्ल तो देखनी ही पड़ती है | केवल लाइक कमेंट से खास होने का अहसासनिजी रिश्तों में खास का दर्जा पाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं | यहाँ बस व्यक्ति किसी की पोस्ट पर लाइक कमेंट ही लगातार करे तो वह अपना सा लगने लगता है |खास लगने लगता है | सब कुछ सार्वजानिक नहीं जीवन में कुछ पल नितांत निजी और सिर्फ महसूस करने के लिए होते हैं। facebookउन्हें सार्वजनिक करने से वे अपनी खूबसूरती खो देते हैं। आजकल कई लोग जितनी तेजी से अपनी फोटो अपडेट करने और चेक-इन के साथ स्टेटस डालने में दिखाते हैं, उतनी तेजी उनका दिल अपने पार्टनर के लिए धड़कने में नहीं दिखाता। दिल का चोर  जो लोग खुद गलत होते हैं उन्हें अपने पाट्नर पर जरूरत से ज्यादा शक होता है | खुद तो चैटिंग करेंगे अगर पर्नर ने की तो उसका पास वर्ड ले कर समय मिलनी पर जेम्स बांड बन्ने से भी गुरेज नहीं करते | वही जब पार्टनर को पता छठा है की हमारा अकाउंट चेक किया जा रहा है शक की बिनाह पर रिश्ता दरकने लगता है यूँ ही समय निकल जाता है  कई बार जीवन साथी से बेवफाई करने का मन नहीं होता पर सेलेब्रेटी होने के अहसास के लिए जो ५००० फ्रेंड्स व् … Read more

रिश्ते क्या हैं, कैसे बनते हैं, कैसे निभते हैं

विजयारत्नम् रिश्ते हमारी जिंदगी का एक ऐसा महत्वपूर्ण हिस्सा है | जो कि बहुत ही अनमोल होते है | रिश्तों को बनाने के लिए तथा उसे सही प्रकार से निभाने के लिए काफी प्रयत्न करने पड़ते हैं | किसी भी रिश्ते की शुरुआत व्यक्तियों पर निर्भर करता है | कि वह व्यक्ति रिश्तों को किस तरह निभाएगा | रिश्ता एक नहीं बल्कि दो व्यक्तियों के दिलों का मिलना आवश्यक होता है | एक तरफ से देखा जाये तो रिश्ते कई प्रकार के होते हैं | हर रिश्ते का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है | जिसको अगर सही तरीके से निभाया जाये तो जिंदगी भर चलते हैं | वरना दो पल में खत्म हो जाते है |  रिश्तों को अहमियत देना व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है | दिल से निभाया गया रिश्ता जिंदगी के आखिरी साँस तक साथ देता है | रिश्ते का अपना एक उद्गम स्थान होता है | जो की वह हर इन्सान से जुड़ा हुआ होता है | प्रत्येक रिश्ते को निभाने के लिए दोनों तरफ से बराबरी की होनी चाहिए | तभी तो हर एक रिश्ते को एक अच्छी तरीके से निभाया जा सकता है |  हम यदि किसी भी रिश्ते को ज्यादा या कम  महत्व देने लगते है तो वही पर रिश्तों में मनमुटाव होने लगता है | और रिश्तों में झगड़े आदि शुरू हो जाते है | और इस तरह रिश्ते को पूरी तरह से निभाया नहीं जा सकता है | रिश्तों के द्वारा किया जाने वाला प्रयास उसे पूर्ण रूप से निभाने का एक सही रूप माना जाता है | किसी भी रिश्ते को नया रूप देने हेतु उसकी हर एक बात का ध्यान रखा जाता है | एक मात्र छोटी से गलती से हमारी जिंदगी के बड़े – बड़े रिश्तों में दरारें आ जाती हैं | जिससे की रिश्ते टूटने यानि खत्म होने तक की नौबत आ जाती है | जिससे की हमें अपनी जिंदगी ने बहुत उतार – चढ़ाव देखने पड़ते हैं | और इससे जिंदगी में काफी बदलाव भी आ जाते हैं | वो हमारी जिंदगी का चाहे कोई भी रिश्ता हो | माँ – बाप , भाई – बहन , पति – पत्नी का या फिर दोस्ती का इस तरह इन सभी रिश्तों को समझने की अपनी एक भावना होती है |  यदि रिश्तों को समझकर उसे निभाया जा रहा है तो रिश्ते को बहुत ही अच्छे से निभाया जा सकता है | और यदि किसी भी रिश्ते में बदले की भावना या फिर किसी बात से दिल में जरा सी खटास आ जाती है तो वहाँ पर बहुत ही समझदारी के साथ अगर रिश्ते को समझकर उसे खत्म करने की जगह निभा भी सकते है |  हमारी जिंदगी में किसी भी रिश्ते को लेकर कोई हीन भावना द्वेष आदि नहीं होना चाहिये | अपनी – अपनी जगह हर एक रिश्ता बहुत ही अनमोल होता है | जो की हमारे परिवार में यह देखा जाता है कि रिश्तों को सुधारने हेतु काफी प्रयत्न करते हैं | जिन रिश्तों में खटास तथा दूरी की भावना को ज्यादा दिल से लिए जाते है | तो वह रिश्ते को समझकर सुलझा लेना चाहिए | और इस तरीके से रिश्तों को एक ख़ुशी की तरीके से भी जोड़ा जा सकता है | जो की यह एक ख़ुशी परिवारों में कम देखने को मिलती है | हम रिश्तों को सामाजिक रूप से जोड़कर देखते हैं तो रिश्तों को निभाने की एक प्रकार से सभी व्यक्तियों को साथ में रहकर ही कर सकते है | इस प्रकार से यदि देखा जाये तो रिश्तों की अहमियत को ठीक प्रकार से समझ पाना बहुत ही मुश्किल होता है |  रिश्ता हमारी जिंदगी में एक ख़ुशी की लहर बन कर सामने आता है | जो कि इस प्रकार के रिश्तों को निभाने की छमता हर किसी में नहीं होती है | जो व्यक्ति इन रिश्तों की समझ को अच्छी तरह जान लेते है तथा पहचान लेते हैं | उन्हें रिश्ते निभाने के लिए जरा सी भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती है |  रिश्ते रिश्तेदारों के द्वारा किये गए परिश्रम के द्वारा ही निभाए जा सकते हैं | क्योकिं जब कहीं जरा सी बात को बहुत ही नासमझ के साथ बताया जाता है तो वहाँ पर रिश्तों को निभा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है | हमारे समाज में रिश्तों की डोरी को व्यक्ति एक दूसरे की दिल की डोरी जानकर उन रिश्तों को समेटने की कोशिश करता है | जिन्हें वह कभी न कभी खो सकता है | यदि किसी भी रिश्ते में जरा सी भीम कडवाहट पैदा हो जाती है तो उन्हें निभापाना अत्यंत ही मुश्किल हो जाता है | और इससे रिश्तों में काफी दरारें , लड़ाई , झगड़े आदि होने लगते हैं | और धीरे – धीरे रिश्तों के टूटने की नौबत आ जाती है | रिश्तों को हर मुश्किल से गुजरना पड़ता है | जबकि ये कह पाना अत्यंत ही सराहनीय होगा कि हमारे समाज में रिश्तों को समझने की उन्हें निभाने की छमता होती है | रिश्ता दिलों से बनता है | जो की यह हर एक व्यक्ति के साथ पूरी जिंदगी चलता है | रिश्तों से व्यक्ति की पूरी जिंदगी ही बदल जाती है | रिश्तों के साथ होने से अकेलापन नहीं महसूस होता है | जब किसी व्यक्ति के जीवन में कोई भी रिश्ता होता है तो वह व्यक्ति उस रिश्ते को लेकर उससे अपने मन की बात को बता सकता है | और उसे बिलकुल भी अकेलापन नहीं लगता है | रिश्तों के द्वारा ही व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ा रहता है |  यदि समाज में कोई भी रिश्ता न होता तो वह समाज कैसे बनता | इस तरीके से रिश्तों को सही मायने में निभाया जा सकता है एक अच्छे रिश्तें को निभाने में समझदारी से काम लेना बहुत आवश्यक होता है | जो कि यह समझदारी बहुत ही कम देखने को मिलती है | समझदारी से ही हमारे रिश्ते बनते है और निभाए भी जाते हैं | जिससे की रिश्ते और मजबूत हो जाते हैं | यदि समझदारी से रिश्ते निभाए जाये तो रिश्तों को निभाना बहुत ही आसान होता है | -विजया रत्नम्

आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू

कहते हैं जहाँ प्यार है वहां तकरार भी है | दोनों का चोली –दामन का साथ है | ऐसे में कोई अपना खफा हो जाए तो मन  का अशांत हो जाना स्वाभाविक ही है | वैसे तो रिश्तों में कई बार यह रूठना मनाना चलता रहता है | परन्तु कई बार आप का रिश्तेदार थोड़ी टेढ़ी खीर होता है | यहाँ  “ रूठा है तो मना  लेंगे “ कह कर आसानी से काम नहीं चलता |वो ज्यादा भावुक हो या   उसे गुस्सा ज्यादा आता है , जरा सी बात करते ही आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलता हो , जल्दी मानता ही नहीं हो तो फिर आप को उसको मनाने में पसीने तो जरूर छूट जाते होंगे | पर अगर रिश्ता कीमती है और आप उसे जरूर मानना चाहेंगे | पर सवाल खड़ा होता होगा ऐसे रिश्तेदार को मनाये तो मनाये कैसे | ऐसा  ही किस्सा रेशमा जी के साथ हुआ | आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू                 हुआ यूँ की एक दिन हम सब शाम को रोज की तरह  पार्क में बैठे मोहल्ले की बुजुर्ग महिला मिश्रा चाची जी से जीवन की समस्याओं और उनके समाधान की चर्चा कर रहे थे | तभी  रेशमा जी  मुँह लटकाए हुए आई | अरे क्या हुआ ? हम सब के मुँह से अचानक ही निकल गया | आँखों में आँसू भर कर बोली क्या बताऊँ ,” मेरी रिश्ते की ननद है ,मेरी सहेली जैसी  जब तब बुलाती हैं मैं हर काम छोड़ कर जाती हूँ |वह भी मेरे साथ उतनी ही आत्मीयता का व्यवहार  करती है |  अभी पिछले दिनों की बात है उन्होंने फोन पर Sms किया मैं पढ़ नहीं पायी | बाद में पढ़ा तो घर के कामों में व्यस्त होने के कारण जवाब नहीं दिया | सोचा बाद में दे  दूँगी | परन्तु तभी  उनका फोन आ गया | और लगी जली कटी सुनाने , तुम ने जवाब नहीं दिया , तुम्हे फीलिंग्स  की कद्र नहीं है , तुम रिश्ता नहीं चलाना चाहती हो | मैं अपनी बात समझाऊं तो और हावी हो जाए |आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चला |  यह बात मैं अभी बता रही हूँ पर अब यह रोज का सिलसिला है | ऐसे कब तक चलेगा ? बस मन  दुखी है | इतनी पुरानी दोस्ती जरा से एस एम एसऔर बेफालतू के आरोप –प्रत्यारोप  की वजह से टूट जायेगी | क्या करूँ ?          हम सब अपने अपने तर्क देने लगे | तभी मिश्रा चाची मुस्कुरा कर बोली ,” दुखी न हो जो हुआ सो हुआ ,ऐसे कोई नाराज़  हो ,गुस्सा दिखाए, आरोप –प्रत्यारोप का एक लम्बा दौर चले तो मन उचाट होना स्वाभाविक है | पर कई बार रश्ते हमारे लिए कीमती होते हैं हम उन्हें बचाना भी चाहते हैं | पर आरोप -प्रत्यारोप के दौर की वजह से बातचीत नहीं करने का या कम करने का फैसला भी कर लेते हैं | ज्यादातर किस्सों में होता यह है की इन  बेवजह के विवादों में ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिसकी वजह से उस रिश्ते को आगे चलाना मुश्किल हो जाता है | जरूरत है इन  अनावश्यक विवादों से बचा जाए | और यह इतना मुश्किल भी नहीं है | बस थोड़ी सी समझदारी दिखानी हैं |   हम सब भी चुप हो कर चाची की बात सुनने लगे | आखिर उन्हें अनुभव हमसे ज्यादा जो था | जो हमने जाना वो हमारे लिए तो बहुत अच्छा था | अब मिश्रा  चाची द्वारा दिए गए सूत्र आप भी सीख ही लीजिये | चाची ने कहना शुरू किया ,” ज्यादातर वो लोग जो झगडा करते हैं उनके अन्दर  किसी चीज का आभाव या असुरक्षा  होती है| बेहतर है की उनसे तर्क –वितर्क न किया जाए | पर अगर अगला पक्ष करना ही चाहे तो बस कुछ बातें ध्यान में रखें ……….. उनकी बात का समर्थन करों                सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा | अरे कोई हम पर ब्लेम लगा रहा है और हम हां में हां मिलाये | पर यही सही उपाय है | अगर दूसरा व्यक्ति भावुक व् गुस्सैल है तो जब वो ब्लेम करें तो झगडे को टालने का सबसे बेहतर और आसान उपाय है आप उसकी बात से सहमति रखते  हुए उनके द्वारा लगाये हुए कुछ आरोपों को सही बताएं | पर ध्यान रखिये अपनी ही बात से अटैच न हों | जब आप अगले से सहमती दिखाएँगे तो उसके पास झगडा करने को कुछ रह ही नहीं जाएगा | आप उन आरोपों में से सब को सच मत मानिए पर किसी पॉइंट को हाईलाईट कर सकते हैं की हां तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ | या आप अपनी बात इस तरह से रख सकते हैं की सॉरी मेरी इस असावधानी पूर्वक की गयी गलती से आप को तकलीफ हुई | इससे आप कुछ हद तक आरोपों को डाईल्युट  कर पायेंगे व् उसके गुस्से का कारण समझ पायेंगे व् परिस्तिथि का पूरा ब्लेम लेने से भी बच  जायेंगे | बार –बार दोहराइए बस एक शब्द     सबसे पहले तो इस वैज्ञानिक तथ्य को जान लें की जब कोई व्यक्ति भावुक निराशा या क्रोध में होता है तो वो एक ड्रंक ( मदिरा पिए हुए ) व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है | ऐसे में व्यक्ति का एड्रीनेलिन स्तर बढ़ जाता है | जिससे शरीर में कुछ क्रम बद्ध प्रतिक्रियाएं होती हैं व् कई अन्य हार्मोन निकलने लगते हैं | इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रासायनिक तौर पर “ एड्रीनेलिन ड्रंक “ भी कहा जाता है | क्योंकि इस स्तिथि में सामान्य व्यवहार करने , कारण को समझने और अपने ऊपर नियंत्रण रखने की हमारी मानसिक क्षमता पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी होती है | ऐसे में आप उनको समझा नहीं सकते हैं |  आप ने ग्राउंड हॉग के बारे में सुना होगा | यह एक ऐसा पशु है जो सर्दियों के ख़त्म होने के बाद जब हाइबरनेशन से बाहर निकलता है और धूप  में अपनी ही परछाई देख लेता है तो उसी शीत ऋतु  ही समझ कर वापस बिल में घुस जाता है | इस तरह से उसकी शीत ऋतु एक महीना और लम्बी हो जाती है | … Read more