“एक दिन पिता के नाम “……… गडा धन (कहानी- निधि जैन )
“गड़ा धन” “चल बे उठ…. बहुत सो लिया… सर पर सूरज चढ़ आया पर तेरी नींद है कि पूरी होने का नाम ही न लेती।” राजू का बाप उसे झिंझोड़ते हुए बोला। “अरे सोने तो दो… बेचारा कितना थका हारा आता है। खड़े खड़े पैर दुखने लगते और करता भी किसके लिए है…घर के लिए ही न कुछ देर और सो लेने दो..” “अरे करता है तो कौन सा एहसान करता है…खुद भी रोटी तोड़ता है चार टाइम”, फिर से लड़के को लतियाता है,”उठ बे हरामी …देर हो जायेगी तो सेठ अलग मारेगा…” लात घलने से और चें चें पें पें से नींद तो खुल ही गई थी। आँखे मलता दारूबाज बाप को घूरता गुसलखाने की ओर जाने लगा। “एssss हरामी को देखो तो कैसे आँखें निकाल रहा जैसे काट के खा जाएगा मुझे..” “अरे क्यू सुबह सुबह जली कटी बक रहे हो” “अच्छा मैं बक रहा हूँ और जो तेरा लाडेसर घूर रहा मुझे वो…”और एक लात राजू की माँ को भी मिल गई। लड़का जल्दी जल्दी इस नर्क से निकल जाने की फिराक में है और बाप सबको काम पर लगाकर बोतल से मुंह धोने की फिराक में। लड़का जानता है इस नर्क से निकलकर भी वो नर्क से बाहर नही क्योकि बाहर एक और नर्क उसका रास्ता देख रहा है,दुकान पर छोटी छोटी गलती पर सेठ की गालियाँ और कभी कभी मार भी पड़ती थी बेचारे 12 साल के राजू को। यहाँ लक्ष्मी घर का सारा काम निबटा कर काम पर चली गई।घर का खर्च चलाने को दूसरों के घरों में झाड़ू बर्तन करती थी। “लक्ष्मी तू उस पीर बाबा की मजार पर गई थी क्या धागा बाँधने…” मालकिन के घर कपडे धोने आई एक और काम वाली माला पूछने लगी। माला अधेड़ उम्र की महिला है और लक्ष्मी के दुखों से भली भाँति परिचित भी।इसलिए कुछ न कुछ करके उसकी मदद करने को तैयार रहती। “हाँ गई थी… उसे लेकर..नशे में धुत्त रहता दिन रात..बड़ी मुश्किल से साथ चलने को राजी हुआ..” लक्ष्मी ने जवाब दिया “पर होगा क्या इस सब से….इतने साल तो गए… इस बाबा की दरगाह… उस बाबा की मजार….ये मंदिर…वो बाबा के दर्शन… ये पूजा… चढ़ावा… सब तो करके देख लिया पर न ही कोख फलती है और न ही घर गृहस्थी पनपती है। बस आस के सहारे दिन कट रहे हैं।” कहते कहते लक्ष्मी रूआंसी हो गई। माला ढांढस बंधाती बोली,”सब कर्मों के फल हैं री और जो भोगना बदा है सो तो भोगना ही पड़ेगा।” “हम्म..”बोलते हुए लक्ष्मी अपने सूखे आंसुओं को पीने की कोशिश करने लगी। “सुन एक बाबा और है,उसको देवता आते हैं.. सब बताता है और उसी के अनुसार पूजा अनुष्ठान करने से बिगड़े काम बन जाते हैं।” “अच्छा तुझे कैसे पता?” “कल ही मेरी रिश्ते की मौसी बता रही थी कि किस तरह उसकी लड़की की ननद की गोद हरी हो गई और बच्चे के आने से घर में खुशहाली भी छा गई। मुझे तभी तेरा ख़याल आया और उस बाबा का पता ठिकाना पूछ कर ले आई। अब तू बोल कब चलना है?” “उससे पूछकर बताऊँगी…. पता नही किस दिन होश में रहेगा..” “हाँ ठीक है,वो सिर्फ इतवार बुधवार को ही बताता है और कल बुध है,अगर तैयार हो जाए तो सीधे मेरे घर आ जाना सुबह ही,फिर हम साथ चलेंगे…मुझे भी अपनी लड़की की शादी के बारे में पूछना है..” लक्ष्मी ने हाँ भरी और दोनों काम निबटा कर अपने अपने रास्ते हो लीं। लक्ष्मी माला की बात सुनकर खुश थी कि अगर सब कुछ सही रहा तो जल्दी ही हमारे घर की भी मनहूसियत दूर हो जायेगी। पर कही राजू का बाप न सुधरा तो…आने वाली संतान के साथ भी उसने यही किया तो..जैसे सवाल ने उस्की खुशी को ग्रहण लगाने की कोशिश की पर उसने खुद को संभाल लिया। सामने आम का ठेला देख राजू की याद आ गई। राजू के बाप को भी तो आम का रस बहुत पसंद है। सुबह सुबह बेचारा राजू उदास होकर घर से निकला था,आमरस से रोटी खायेगा तो खुश हो जायेगा और राजू के बाप को भी बाबा के पास जाने को मना लूँगी,मन में ही सारे ताने बाने बुन, वो रुकी और एक आम लेकर जल्दी जल्दी घर की ओर चल दी। घर पहुंचकर दोनों को खाना खिलाकर सारे कामों से फारिग हो राजू के बाप से बात करने लगी। दारु का नशा कम था शायद या आमरस का नशा हो आया था,वो दूसरे ही दिन जाने को मान गया। दूसरे दिन राजू,रमेश (राजू का बाप) और लक्ष्मी सुबह ही माला के घर पहुंच गए और वहां से माला को साथ लेकर बाबा के ठिकाने पर। बाबा के दरवाजे पर कोई आठ दस लोग पहले से ही अपने अपने दुखों को सुखों में बदलवाने के लिए बाहर ही बैठे थे। एक एक करके सबको अंदर बुलाया जाता। वो लोग भी जाकर बाबा के घर के बाहर वाले कमरे में उन लोगों के साथ बैठ गए। सभी लोग अपनी अपनी परेशानी में खोये थे। यहाँ माला लक्ष्मी को बीच बीच में बताती जाती कि बाबा से कैसा व्यवहार करना है और समझाती इतनी जोर से कि नशेड़ी रमेश के कानों में भी आवाज पहुँच जाती। एक दो बार तो रमेश को क्रोध आया पर लक्ष्मी ने हाथ पकड़ कर बैठाये रखा। करीब दो घंटे की प्रतीक्षा के बाद उनकी बारी आई,तब तक पाँच छः दुखी लोग और आ चुके थे। खैर,अपनी बारी आने की ख़ुशी लक्ष्मी के चेहरे पर साफ़ झलक रही थी यूँ लग रहा था मानो यहाँ से वो बच्चा लेकर और घर का दलिद्दर यहीं छोड़ कर जायेगी। चारों अंदर गए। बाबा पूर्ण आडम्बरयुक्त थे।चारों ने बाबा को प्रणाम बोला।बाबा ने उनकी समस्या सुनी। फिर बाबा ने भगवान् को उनके नाम का प्रसाद चढ़ाया और थोड़ी देर ध्यान लगाकर बैठ गए। कुछ देर बाद बाबा ने जब आँखें खोली तो आँखें आकार में पहले से काफी बड़ी थीं। अब लक्ष्मी को विशवास हो गया था कि … Read more