हिंदी – लौटना है ‘व्हाट झुमका’ से ‘झुमका गिरा रे’ तक

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हिंदी  – बोली-बानियों की मिठास का हो समावेश                                  अभी कुछ दिनों पहले एक फिल्म आई थी, “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” उसका एक गीत जो तुरंत ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया वो था “व्हाट झुमका” l इस गीत के साथ ही जो कालजयी गीत याद आया, वो था मेरा साया फिल्म का “झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में”l  मदन मोहन के संगीत, राजा मेहंदी आली खान के गीत और आशा भोंसले जी की आवाज में ये गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ हैl  इसके साथ ही ट्विटर पर बहस भी छिड़ गई कि इन दोनों में से बेहतर कौन है, और निश्चित तौर पर पुराना गीत विजयी हुआ l उसने ना सिर्फ अपने को इतने समय तक जीवित रखा बल्कि हर नए प्रयोग के बाद वो गीत याद आया l गीत-संगीत के अतिरिक्त  इसके एक कारण के तौर पर गीत के फिल्मांकन में हमारी ग्रामीण संस्कृति, लोक से जुड़ाव और स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग l लौटना है ‘‘व्हाट झुमका’ से झुमका गिरा रे” तक   जब मैं इसी तराजू पर तौलती हूँ तो मुझे लगता है कि हमारी हिंदी भाषा को भी “व्हाट झुमका” से उसी देसी मिठास की ओर लौटने की जरूरत है l यूँ भाषा एक नदी कि तरह होती है और बोलियाँ, बानियाँ उस नदी को जीवंत करता परिस्थिति तंत्र हैं l क्योंकि भाषा सतत प्रवाहशील और जीवंत है तो उसमें विदेशी शब्दों की मिलावट को गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि वो उसकी सार्थकता और प्रासंगिकता को बढ़ावा देते हैं l आज भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी में अंग्रेजी ही नहीं फ्रेंच, कोरियन, स्पैनिश शब्दों का मिलना उसके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है l आम बोलचाल की भाषा के आधार पर साहित्य में भी नई वाली हिन्दी का समावेश हुआ और तुरंत ही लोकप्रिय भी हुई l इसने भाषा के साथ- साथ साहित्य की पुरानी शैली, शिल्प और उद्देश्य की परिधि को भी लाँघा l     किसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा की जरूरत है? नई किताबों पर हिंगलिश की फसल लहलहा रही है l इस हिंगलिश के लोकप्रिय होने की वजह हमें अपने घरों में खँगालनी होगी l हाल ये है कि ना अंग्रेजी ही अच्छी आती है ना हिंदी l शहरी क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा घर अब बचा हो जहाँ पाँच पंक्तियाँ पूरी-पूरी हिंदी में बोली जाती हों l यही नहीं हमारी डॉटर को सब्जी में गार्लिक बिल्कुल पसंद नहीं है, जैसे हास्यास्पद प्रयोग भी सुनने को खूब मिलते हैं l किसी दीपावली पर मैंने अपनी घरेलू सहायिका के लिए दरवाजा खोलते हुए कहा, “दीपावली की शुभकामनायें” l उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “हैप्पी दीपावली भाभी, हैप्पी दीपावली l” गली की सफाई करने वाला “डस्टबिन” बोलता है, सब्जी वाला सेब को एप्पल ही कहता है l    जिसे जितना आत्म विश्वास अपने ऊपर होगा उतना ही आत्म विश्वास अपनी भाषा पर होगा अक्सर अंग्रेजी के पक्ष में ये तर्क दिया जाता है कि ये अन्तराष्ट्रीय भाषा है और इसे सीखना विकास के लिए जरूरी है l परंतु हमारे सब्जी वाले, गली की सफाई करने वाले, घरेलू सहायिकाओं, आम नौकरी करने वाले मध्यम वर्गीय परिवारों को कौन से अन्तराष्ट्रीय आयोजन में जाना है ? यह मात्र हमारी गलत परिभाषाओं का नतीजा है, जहाँ सुंदर माने गोरा और पढ़-लिखा माने अंग्रेजी आती है माना लिया गया l   अंग्रेजी का यह धड़ाधड़ गलत-सही प्रयोग हमारे अंदर आत्म विश्वास की कमी को दर्शाता है l आज कल के प्रसिद्ध आध्यात्मिक आचार्य, आचार्य प्रशांत कहते हैं कि जब वो नौकरी करने के जमाने में हिन्दी में हस्ताक्षर करते थे, तब कंपनी की ओर से उँ पर बहुत दवाब डाला जाता था कि हस्ताक्षर अंग्रेजी में हों l जबकि अंग्रेजी पर उनकी पकड़ अच्छी थी l यहाँ पर दवाब केवल हीन भावना का प्रतीक था l   भाषा होती है का कला और संस्कृति की वाहक भाषा केवल भाषा नहीं होती, वो कोई निर्जीव वस्तु नहीं है l वो कला संस्कृति, जीवन शैली की वाहक होती है l जब हम हिन्दी के ऊपर अंग्रेजी चुनते हैं तो हम लस्सी के ऊपर पेप्सी चुनते हैं, समोसे के ऊपर बर्गर चुनते हैं और आध्यात्म को छोड़कर क्लब संस्कृति चुनते हैं l बाजार को इससे फायदा है वो अंग्रेजी के रैपर में ये सब बेच रही है l हर देश, हर संस्कृति एक मूल सोच होती है l हम “थोड़े में संतोष” करने वाली जीवन शैली के बदले में सुख सुविधाओं के बीच अकेलापन खरीद रहे हैं l हम ना सिर्फ स्वयं उस दौड़ में दौड़ रहे हैं बल्कि हमने अपने उन बच्चों को भी इस रेस में दौड़ा दिया है जिनहोने अभी अपने पाँव चलना भी नहीं सीखा है l   लिपि को भी संरक्षण की जरूरत है बाल साहित्य पर विशेष ध्यान देना होगा l  ताकि बच्चे प्रारंभ से ही अपनी भाषा से जुड़े रहें  आज एक बड़ा खतरा हिंदी की देवनागिरी लिपि को भी हो गया है l आज इंटरनेट पर यू ट्यूब पर, व्हाट्स एप पर नई पीढ़ी हिन्दी में बोलती तो दिखाई दे रही है पर लिपि रोमन इस्तेमाल करने लगी है l इससे देवनागिरी लिपि को खतरा हुआ है l हमारा प्रचुर साहित्य, हमारा आध्यात्म, दर्शन जो हमारे भारत की पहचान है, अंग्रेजी में अनुवाद हो कर हमारी अगली पीढ़ियों तक पहुंचेगा l अनुवादक की गलती पीढ़ियों पर भारी पड़ेगी l   कुछ कदम सुधार की ओर   भाषा को बचाना केवल भाषा को बचाना संस्कृति, संस्कार, देश की मूल भावना को बचाना है, उस साहित्यिक संपदा को बचाना है जिसमें हमारी मिट्टी से जुड़ी जीवन गाथाएँ हैं l कोई भी भाषा सीखना बुरा नहीं है l पर जो समर्थ हैं, दो चार भाषाएँ जानते हैं, हिन्दी के प्राचीन वैभव को उत्पन्न कर सकते हैं l इस काम का बीड़ा उन पर कहीं ज्यादा है l उन्हें देखकर आम जन भी अपनी भाषा पर गर्व कर पाएगा l जिन-जिन कामों को करने में अंग्रेजी की  जरूरत नहीं है, उनके प्रश्न पत्र हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में होने चाहिए l रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलबद्ध कराने होंगे l यू ट्यूब और अब फेसबूक इंस्टाग्राम पर भी ये के साधन … Read more

ओटीटी (ओवर-द-टॉप):- एंटरटेनमेंट का नया प्लेटफॉर्म

ओटीटी (ओवर-द-टॉप):- एंटरटेनमेंट का नया प्लेटफॉर्म

ओवर-द-टॉप (ओटीटी) मीडिया सेवा ऑनलाइन सामग्री प्रदाता है जो स्ट्रीमिंग मीडिया को एक स्टैंडअलोन उत्पाद के रूप में पेश करती है। यह शब्द आमतौर पर वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म पर लागू होता है, लेकिन यह ऑडियो स्ट्रीमिंग, मैसेजिंग सेवाओं या इंटरनेट-आधारित वॉयस कॉलिंग समाधानों को भी संदर्भित करता है। ओटीटी (ओवर-द-टॉप):- एंटरटेनमेंट का नया प्लेटफॉर्म ओटीटी सेवाएं दूरसंचार नेटवर्क या केबल टेलीविजन प्रदाताओं जैसे पारंपरिक मीडिया वितरण चैनलों को दरकिनार करती हैं। जब तक आपके पास इंटरनेट कनेक्शन तक पहुंच है – या तो स्थानीय रूप से या मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से – आप इस सेवा तक आसानी से पहुंच सकते हैं। साथ ही यह उपभोक्ताओं को सामग्री के मामले में विकल्प प्रदान करता है – मूल और साथ ही विविध शैलियों, उचित कीमत पर और कई उपकरणों (स्मार्टफोन, टैबलेट, गेमिंग कंसोल या स्मार्ट टीवी) की संगतता के साथ इसे लोकप्रिय बनाते हैं। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ओटीटी 2008 से भारत में अस्तित्व में है, जब रिलायंस एंटरटेनमेंट ने पहला ओटीटी प्लेटफॉर्म लॉन्च किया था। 2010 में लॉन्च किया गया, मीडिया मैट्रिक्स वर्ल्डवाइड के एक समूह, डिजीविव द्वारा नेक्सजीटीवी ने सभी उपकरणों जैसे मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप आदि में उपयोगकर्ताओं को मनोरंजन की पेशकश की। ज़ी डिजिटल कन्वर्जेंस लिमिटेड ने 2012 में लॉन्च किया, डिट्टो टीवी ने लाइव और कैच अप टीवी की पेशकश की। 2018 में इसे ज़ी 5  के साथ एकीकृत किया गया था। आज, भारत 30 से अधिक ओटीटी प्रदाताओं से सेवाओं का आनंद लेता है, जिसमें नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, डिज़नी + हॉटस्टार, ज़ी5 और इरोस आदि जैसे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी शामिल हैं। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स ग्लोबल एंटरटेनमेंट और मीडिया आउटलुक 2019-23 के अनुसार, ओवर द टॉप (ओटीटी) ) 2018 में 4,464 करोड़ रु. 2023 में 11,976 करोड़ रुपये से 21.8% सीएजीआर की दर से विकास के लिए बाजार में आंकी गई। ओटीटी का केवल ऑडियो बाजार इस बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। ओटीटी मैसेजिंग, ओटीटी वॉयस कॉलिंग, वीडियो कॉलिंग और ओटीटी टीवी सहित कई अन्य प्रकार की ओटीटी सेवाएं भी हैं। कोविड-19 ने ओटीटी सामग्री की खपत में वृद्धि का कारण बना, जिससे सभी प्लेटफार्मों पर ओटीटी सामग्री की मांग बढ़ गई, जो लाइव सामग्री में अंतराल को भरने के लिए टू डी  और थ्री डी  एनिमेटेड सामग्री में बदल गई। इस साल अमेज़न प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स जैसी वैश्विक कंपनियों ने भारत में विभिन्न स्टूडियो के साथ विशेष सामग्री लाइसेंसिंग सौदों पर हस्ताक्षर किए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वीएफएक्स स्टूडियो को ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविजन गुणवत्ता सामग्री में वृद्धि से लाभ हुआ है। महामारी कोविड 19 के कारण देश में मनोरंजन-फिल्म उद्योग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ओवर-द-टॉप (ओटीटी) स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म फिल्म उद्योग के बचाव में आए। इस दौरान कुछ फिल्मों का प्रीमियर थिएटर के बजाय ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हुआ। उद्योग और इंटरनेट खोज डेटा दिखाते हैं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दर्शकों की संख्या वास्तव में पिछले साल बढ़ी है, खासकर छोटे शहरों और शहरों में। शुरुआती प्रभाव सभी प्लेटफार्मों के लिए समान रूप से कायम नहीं रहा है, लेकिन पूर्व-महामारी के महीनों की तुलना में शुद्ध दर्शकों की संख्या बहुत अधिक है। छोटे पर्दे पर कम बजट की फिल्मों का आनंद लिया गया, जिससे उनकी डायरेक्ट-टू-डिजिटल रिलीज़ बढ़ गई और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए अधिक किफायती होने के कारण, प्रोडक्शन हाउस के लिए राजस्व का एक समानांतर स्रोत बन सकता है। न्यायालयों ने यह विचार किया है कि यद्यपि भारत में ओटीटी प्लेटफार्मों का कोई विशिष्ट विनियमन नहीं है, यदि ओटीटी प्लेटफार्मों में कोई सूचना या सामग्री है जो कानून के तहत अनुमत नहीं है, तो उनके खिलाफ आईटी अधिनियम के प्रावधान निवारक कार्रवाई के लिए लागू होंगे। न्यायालयों ने यह भी विचार किया है कि ओटीटी प्लेटफार्मों पर ऑनलाइन सामग्री सिनेमैटोग्राफी अधिनियम, 1952 के दायरे में नहीं आएगी और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं की सेंसरशिप की मांग करने वाली व्यापक याचिकाओं को अक्सर खारिज कर दिया है। नवंबर 2020 में, केंद्र सरकार ने डिजिटल / ऑनलाइन मीडिया को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाने के लिए भारत सरकार (व्यवसाय का आवंटन) नियम, 1961 में संशोधन किया। 9 नवंबर 2020। अधिसूचना के तहत, डिजिटल / ऑनलाइन मीडिया में (ए) ऑनलाइन सामग्री प्रदाताओं द्वारा उपलब्ध कराई गई फिल्में और ऑडियो-विजुअल कार्यक्रम शामिल हैं; और (बी) ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री। इस अधिसूचना के अनुसरण में ऑनलाइन सामग्री प्रदाताओं को अब एमआईबी के अधिकार क्षेत्र में लाया गया है जो इस स्थान को विनियमित करेंगे। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 87 के तहत अधिसूचित, नियमों का भाग III डिजिटल समाचार मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए आचार संहिता और प्रक्रिया से संबंधित है। मध्यस्थ नियम समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री (ओटीटी प्लेटफॉर्म सहित) के सभी प्रकाशकों पर तब तक लागू किए गए हैं, जब तक कि उनकी भारत में भौतिक उपस्थिति है या भारत में अपनी सामग्री उपलब्ध कराकर एक व्यवस्थित व्यावसायिक गतिविधि का संचालन करते हैं। मध्यस्थ नियम समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री (ओटीटी प्लेटफार्मों सहित) के सभी प्रकाशकों के लिए आचार संहिता के लिए भी निर्धारित करते हैं जो एमआईबी द्वारा प्रशासित किया जाएगा। ओटीटी का भविष्य वादों से भरा हुआ प्रतीत होता है क्योंकि लोगों ने कोरोना द्वारा लगाए गए खतरों में लिप्त होने के बजाय घर पर ही आनंद लेने के नए सामान्य को स्वीकार कर लिया है। यह बजट के अनुकूल प्लेटफॉर्म भी है और इसने चीजों को अपनी सुविधानुसार देखने के विकल्प भी प्रदान किए हैं। यह उम्मीद की जाती है कि मूल सामग्री की मांग 2023 तक 2019 के स्तर से दोगुनी होकर प्रति वर्ष 3,000 घंटे से अधिक हो जाएगी। क्यूरेट किए गए लघु वीडियो प्लेटफार्म को 2023 तक ऑनलाइन वीडियो देखने पर खर्च किए गए कुल समय का 25% प्राप्त करना है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर क्षेत्रीय भाषा की खपत का हिस्सा 2025 तक खर्च किए गए कुल समय के 50% को पार करना है, जो कि पिछली हिंदी को 45% तक कम कर देता है। सब्सक्रिप्शन आय बढ़ाने में खेल तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं … Read more

आजादी से निखरती बेटियाँ  

  कुछ दिन पहले एक मौल में शौपिंग कर रही थी कि पांच वर्ष से नौ दस वर्ष की तीन बहनों को देखा जो अपने पिता के पीछे पीछे चल रहीं थी. रैक पर सजे सामानों को छूती और ललचाई निगाहों से पिता की ओर देखती और झट से उसे छोड़ दूसरे चीजों को निहारने लगतीं. इतनी कम उम्र में हिजाब संभालती इन बच्चियों को देख साफ़ पता चल रहा था कि इन्हें यहाँ बहुत कुछ लेने की इच्छा है पर खरीदा वही जायेगा जो पिता चाहेंगें. दिखने में धनाड्य पिता धीर-गंभीर बना अपनी धुन में सामान उठा ट्राली में रख रहा था. वहीँ बच्चियों की माँ पीछे घसीटती हुई गोद के बच्चे को संभालती चल रही थी, जो कुछ भी छूने के पहले अपने पति का मुख देखती थी. अगल-बगल कई और परिवार भी घूम रहें थें, जहाँ बेटियाँ अपनी माँ को सुझाव दे रही थी या पिता पूछ रहें थें कि कुछ और लेनी है. उन बच्चियों को हसरत भरी निगाहों से स्मार्ट कपड़ों में घूमती उन दूसरी आत्मविश्वासी लड़कियों को निहारते देख, मेरे मन में आ रहा था कि जाने वे क्या सोच रही होंगी. उनकी कातरता बड़ी देर तक मन को कचोटते रही. इसी तरह देखती हूँ कि घरों में भाई अक्सर ज्यादा अच्छे होतें हैं पढने में कि वे डॉक्टर, अभियंता या कुछ और बढ़िया सी पढ़ाई कर बड़ी सी नौकरी करते हैं और उसी घर की लडकियां बेहद साधारण सी होती हैं पढ़ने में और अन्तोगत्वा साधारण पढ़ाई कर उनकी शादी हो जाती है. ऐसा कैसे होता कि लडकियां ही कमजोर निकलती हैं उनके भाई नहीं? कारण है भेदभाव जो आज भी अलिखित रूप से हमारे समाज में मौजूद है. बेटियों को ऊँचा सोचने के लिए आसमान ही नहीं मिलता है, बोलने को हिम्मत ही नहीं होती है, पाने को वो मौका ही नहीं मिलता है जो उनके पंख पसार उड़ने में सहायक बने. एक आम सी धारणा है कि बेटियों को दूसरे घर जाना है सो दबा के रखनी चाहिए. उनके मन की हर बात मान उन्हें बहकाना नहीं चाहिए क्यूंकि कल को जब वे ससुराल जाएँगी तो उन्हें तकलीफ होगा. इतनी टोका-टोकी और पाबंदियां बचपन से ही लगा दी जाती है कि बच्चियों का आत्मविश्वास कभी पनप ही नहीं पाता है. आज के युग में भी उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे वही काम करें वैसे ही करें जो उनकी माँ, दादी या बुआ कर चुकी हैं. बच्चियों को हर क्षण मानों एहसास दिलाया जाता है कि तुम लड़की हो और तुम इन अधिकारों की हकदार नहीं हो. तुम अकेले कहीं जा नहीं सकती हो, तुम अपनी पसंद के कपडे नहीं पहन सकती, तुम को अपने पिता-भाई की हर बात को माननी ही होगी. स्पोर्ट्स और पसंद के विषय चुनना तो दूर की बात है. ऐसा नहीं है कि समाज में बदलाव नहीं आया है. आया है और बेहद जोरदार तेजी से आया है. उच्च वर्ग और निम्न वर्ग तो सदैव पाबंदियों और वर्जनाओं से दूर रहा है. सारा प्रपंच तो मद्ध्य्म वर्ग के सर पर है. मद्ध्यम वर्ग में भी शहरी लोगो की सोच में बहुत बदलाव आ चुका है जो अपनी बेटियों को भी ज्यादा-कम आजादी दे रहें हैं. पूरी आजादी तो शायद अभी देश में किसी तबके और जगह की लड़कियों को नहीं मिली होगी. ‘आजादी’ देने का मतलब छोटे कपड़े पहनने, शराब पीना या देर रात बाहर घूमने से कतई नहीं होता है, ये तो बेटे या बेटी किसी के लिए भी अवारागार्दियों की छूट कहलाएगी. आजादी से मतलब है बेटी को ऐसे अधिकारों से लैस करना कि वह घर-बाहर कहीं भी खुल कर अपनी बात रख सके. उसका ऐसा बौद्धिक विकास हो सके कि वह अपने जीवन के निर्णयों के लिए पिता-भाई या पति पर आश्रित नहीं रहे. शिक्षा सिर्फ शादी के मकसद से न हो, सिर्फ धार्मिक पुस्तकों  तक ही सीमित न हो बल्कि बेटियों को इतना योग्य बनाना चाहिए ताकि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके. बच्चियों के स्वाभाविक गुण व् रुझान की पहचान कर उसके विकास में सहयोग करना हर पालक का धर्म है. पालन ऐसा हो कि एक बेटी ‘अपने लिए भी जिया जाता है’, बचपन से सीख सके. वरना यहाँ मानों ‘ससुराल’ और सास’ के लिए ही किसी बेटी का लालन-पालन किया जाता है. अगर यही सोच सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, पी वी सिन्धु या गीता फोगाट के माता-पिता जी का होता तो देश कितनी प्रतिभाओं से के परिचय से भी वंचित रह जाता. बेटे-बेटियों के लालन-पालन का अन्तर अब टूटता दिख रहा है. उन्हें परवरिश के दौरान ही इतनी छूट दी जा रही है कि वह भी अपने भाई की तरह अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने लगी है. ‘पराये घर जाना है’ या ‘ससुराल जा कर अपनी मन की करना’ बीते ज़माने के डायलाग होते जा रहें हैं. शादी की उम्र भी अब खींचती दिख रही है, पहले जैसे किसी लड़के के कमाने लायक होने के बाद ही शादी होती थी. आज लोग अपनी बेटियों के लिए भी यही सोच रखने लगें हैं. इस का असर समाज में दिखने लगा है, चंदा कोचर, इंदु जैन, इंदिरा नूई, किरण मजुमदार शॉ आज लड़कियों की रोल मॉडल बन चुकी हैं. परवरिश की सोच के बदलावों से बेटियों की प्रतिभाएं भी सामने आने लगी है. मानव संसाधन देश का सबसे बहुमूल्य संसाधन हैं. उनका विकास ही देश को विकसित बनता है. यदि आधी आबादी पिछड़ी हुई है तो देश का विकास भी असंभव है. जरुरत है प्रतिभाओं का विकास, उनको सही दिशा देना. फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, प्रतिभा को खोज उन्हें सामने लाना ही चाहिए. आजादी से निखरती ये बेटियाँ घर-परिवार-समाज के साथ साथ स्व और देश को भी विकसित कर रहीं हैं. बस जरुरत है कि हर कोई ‘आजादी और स्वछंदता’ के अंतर के भान का ज्ञान रखे. रीता गुप्ता RANCHI, Jharkhand-834008. email id koylavihar@gmail.com

श्रीराम द्वारा सीता का त्याग : सत्य या इतिहास के साथ की गयी छेड़ छाड़

अभी कुछ दिन पहले इस लॉक डाउन काल में  दूरदर्शन में पूराने लोकप्रिय सीरियल रामायण और महाभारत का पुन: प्रसारण शुरू हुआ | जिसने भी निर्दोष, पति से अनन्य प्रेम करने वाली माता सीता का निर्वासन और धरती में समा जाने का दृश्य देखा उनका ह्रदय आर्तनाद कर उठा |क्या अपनी पत्नी के प्रति धर्म निभाना राज धर्म में  नहीं आता ? आज अटूट बंधन में चिंतन -मंथन में हम इसे बिलकुल नए नज़रिए से देखेंगे | जिसे अपनी तार्किक भाषा में सिद्ध करने का प्रयास किया है नयी कलम के सिपाही मोहित उपाध्याय ने … श्रीराम द्वारा सीता का त्याग : सत्य या इतिहास के साथ की गयी छेड़ छाड़ निस्संदेह यह बात सत्य हैं कि हमारी बड़ी मां सीता के बिना श्रीराम का कोई अस्तित्व नहीं हैं इसलिए भारतवर्ष में जय श्रीराम नहीं बल्कि जय सियाराम बोला जाता है । जिनके नाम को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता भला कहीं ऐसा हो सकता हैं कि वह व्यक्ति अपनी धर्मपत्नी को, जिससे वह अपने में सर्वाधिक प्यार करता है, का त्याग कर दें । यह किसी नर भुजंग द्वारा श्रीराम के मर्यादित जीवन पर कलंक लगाने के लिए भारतवर्ष के इतिहास  और सभ्यता के साथ की गई छेड़छाड़ का परिणाम हैं ताकि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को स्त्री विरोधी दर्शाया जा सके ।महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण में ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है । सोचकर देखिए कि जिन महर्षि वाल्मीकि ने राम और सीता जैसे आदर्श चरित्र की कल्पना की है वही महर्षि वाल्मीकि ऐसी अमर्यादित और तुच्छ आचरण की घटनाओं को अपने साहित्य में जगह प्रदान करेंगे ! वाल्मीकि जैसा उच्च कोटि के कवि ऐसी मनगढ़ंत कल्पना करेंगे !   हम सभी  इस तथ्य से अवगत हैं कि रामायण काल में भारत की राज्य-व्यवस्था वर्तमान समय की  लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली के विपरीत राजतंत्रात्मक थी और इस राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली के सामाजिक जीवन में राजा महाराजा के यहां  अनेक पत्नियों को धारण करने की प्रथा प्रचलित थी । यहां तक कि स्वयं श्रीराम के पिता चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ की तीन पत्नियां थी जिसमें श्रीराम महारानी कौशल्या के पुत्र थे । लेकिन स्वयं श्रीराम ने इस प्रथा के विपरीत जाकर आजीवन एक पत्नी व्रत धारण किया और उनके  इसी  एकपत्नी व्रत का परिणाम था कि जब वनवास काल के दौरान रावण की बहन सूर्पणखा दण्डकारण्य में श्रीराम की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रणय निवेदन स्वीकार करने की याचना करती हैं तो श्रीराम  अपने  एक पत्नी व्रत धारण करने की बात कहकर सूर्पणखा के प्रणय निवेदन को  अस्वीकार कर देते है । यानि स्त्रियों को उपभोग की वस्तु  समझने की  इस रूढ़िरूढ़िवादी प्रथा को समाप्त करने के लिए और उन्हें समानता  और गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रदान करने वाले श्रीराम पर ऐसे लांछन लगाना कहां तक उचित होगा !     इस संदर्भ में एक बड़ा महत्वपूर्ण प्रसंग हैं जिसका उल्लेख किये बिना शायद हम मां सीता और श्रीराम  और यहां तक की स्वयं महर्षि वाल्मीकि के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे …इस प्रसंग की अपनी उपयोगिता  इतनी अधिक है कि यह आज के इस सामाजिक जीवन में भी  अपनी प्रासंगिकता को बनाए हुए   आज की  जिस इक्कीसवीं सदी में हम जी रहे हैं और जिसे हम आधुनिक जीवन की संज्ञा देते हैं, उसी  आधुनिक जीवन में जब कोई स्त्री या लड़की हमारे  इस सभ्य समाज में छिपे नर भुजंगों की कुटिलता का शिकार हो जाती हैं तब यही हमारा सभ्य समाज  उस स्त्री को जो इन राक्षसों  की वहशीपन का शिकार हो जाती हैं और जिसमें  उसका कोई दोष नहीं होता है,  उस स्त्री को नीची निगाह से देखता है, उसको यह विश्वास नहीं दिला पाता है कि यह पूरा समाज तुम्हारे हक के लिए लड़ेगा,  तुम्हें न्याय प्रदान करेंगा बल्कि  यही सभ्य समाज उस निरपराध स्त्री को आत्महत्या तक करने की लिए मजबूर कर देता है     लेकिन श्रीराम ने यही महान कार्य किया जो आज का हमारा समाज नहीं कर पा रहा हैं…   उन्होंने अहिल्या के साथ अन्याय नहीं होने होने दिया । वह अहिल्या जो किसी तथाकथित सभ्य पुरुष की वहशीपन का शिकार हो गई और जिसको उसके पति ने दुश्चरित्र कहकर  अकेला छोड़ दिया  और समाज में वह अलग-थलग पड़ गयी तब श्रीराम , जो उस समय एक चक्रवर्ती सम्राट के पुत्र थे  और अयोध्या के राजकुमार थे, महर्षि विश्वामित्र  और अपने  अनुज लक्ष्मण के साथ अहिल्या के पास गए और  उसके कमजोर मनोबल को  उच्चता प्रदान की और उसे यह विश्वास दिलाया कि दोष तुम्हारा नहीं, तुम तो पवित्रता की मूर्ति हो, दोष तो तुम्हारे पति  और इस पूरे समाज का  हैं जिसने तुम्हारे साथ अन्याय किया और किसी दुश्चरित्र व्यक्ति द्वारा तुम्हारी यौन शुचिता भंग कर देने पर तुम्हारी शारीरिक  और मानसिक पवित्रता पर संदेह उत्पन्न किया और तुम्हें अकेला छोड़ दिया । इतना ही नहीं श्रीराम ने उस समाज को, जिसने अहिल्या को दुश्चरित्र कहकर  अकेला छोड़ दिया था, फटकार लगाई  और अहिल्या को फिर से सामाजिक मान्यता प्रदान की । इसीलिए कहा जाता हैं कि श्रीराम ने  अहिल्या का उद्धार किया ……   मानसिक तर्क का प्रयोग करते हुए सोचकर देखिए कि जो श्रीराम  अहिल्या के संबंध में झूठी सामाजिक मान्यता के सामने नहीं झुके उन्हीं मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने अपनी पत्नी के संदर्भ में इस समाज की झूठी बातों में आकर मौन आत्मसमर्पण कर दिया होगा !कदापि ऐसा नहीं किया होगा …हम तो सदियों से लकीर के फकीर बनते चले आ रहे हैं और  एक झूठी लकीर को पीटते चले  आ रहे हैं ……….       सदियों से हम इस बोझ को ढोते आ रहे हैं, हम इस मनगढ़ंत कहानी को स्वीकार करते चले आ रहे हैं कि श्रीराम ने सीता का त्याग किया और आखिर में आकर सीता ने मजबूर होकर अपने प्राण त्याग दिए …… हम लकीर के फकीर बनते चले आ रहे हैं ………..आखिर क्यों ? क्या हमारे पास बुद्धि नहीं हैं?…क्या हमारे पास तर्क नहीं हैं कि हम इस बात का आकलन कर सकें कि ऐसी कोई घटना घटित हुई थी या नहीं !जीवन में हमेशा इस तथ्य को याद रखिए कि कोई भी आस्था यदि तर्क पर खरी नहीं उतरती है तो उसका मानवीय … Read more

सेल्फ आइसोलेशन के 21 दिन – हम कर लेंगे

हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने घोषणा करी है कि covid-19 महामारी के खतरे से देश को बचाने के लिए 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 तक 21 दिनों के लिए India lockdown किया जाएगा | WHO के अनुसार बिमारी के संक्रमण की तीसरी स्टेज के लिए ये 21दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं |इस दौरान सभी को अपने घरों में रहने की हिदायत दी गयी है | ये 21 दिन देश के और देश के नागरिकों के की परीक्षा के दिन हैं |समय कठिन है पर साथ में विश्वास है कि हम कर लेंगे | आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए हैं| पूजा करके माता के आगे घी का दीपक जला दिया है और एक आशा का दीप अपने मन के आगे जला  लिया है| आज रह-रह कर “बीरबल की खिचड़ी” कहानी का वह धोबी याद आ रहा है जो ठंडे पानी में रात भर खड़े रहने की हिम्मत दूर महल में जलते उस दीपक को देखकर जुटाए रहा | उसके मन में विश्वास था, शायद इसी लिए वो ऐसा कर सका| विश्वास में शक्ति होती है | इस कठिन समय में हम सब को भी इसी विश्वास के सहारे आगे बढ़ना है |  अपने पर संयम  रख कर ही हम इस बिमारी को हरा सकते हैं | हम सब को दिहाड़ी मजदूरों की, बिखारियों  की बहुत चिंता है | आशा है सरकार उनको भोजन उपलब्द्ध करायेगी | दिल्ली सरकार के कुछ वीडियो देखे हैं जिसमें पुलिस वाले भिखारियों को भोजन दे रहे हैं | लंगर में खाना मिल रहा है|आशा है और शहरों में भी यही किया जाएगा |बाकी कई किराना स्टोर्स अपने अपने एरिया में हेल्प लाइन नंबर दे रहे हैं जो घर आ कर सामान पहुंचा सकेंगे | कोरोना और ट्रॉली प्रॉब्लम बहुत पहले एक विश्व प्रसिद्द ट्रॉली  प्रॉब्लम की विश्व  पहेली के बारे में सुनती थी|  शायद आपने भी सुना हो …ये पहेली आज भी अनुत्तरित ही है | पहेली हैं कि आप ट्रॉली चला रहे हैं |  उसके ब्रेक फ़ैल हो गए | आपके सामने दो पटरियां हैं | एक पर एक व्यक्ति है दूसरी  पर ६ व्यक्ति हैं | ट्रॉली एक पटरी पर अवश्य जायेगी |  आप किसे बचायेंगे …एक को या छ: को ? इसमें बहुत सारे समीकरण बनते हैं| मैं अभी दो की बात करुँगी | जाहिर है अभी ज्यादातर लोग कहेंगे कि हम ६ को बचायेंगे | दूसरा समीकरण देखिये …दूसरी पटरी पर जो अकेला व्यक्ति खड़ा है वो हमारा अपना प्रियजन है | तब ?   पूरा विश्व आज इसी ट्रॉली प्रॉब्लम से गुज़र रहा है | इटली में डॉक्टर रोते हुए वृद्धों को मौत के मुँह में जाने दे कर जवान व्यक्ति को बचा रहे हैं |क्योंकि उनके जिन्दा रहने की अधिक सम्भावना है |  ये उनकी चाही हुई परिस्थिति नहीं है | उनके द्वारा खायी हुई कसम के भी विपरीत है पर विकट समय में उनको ये निर्णय करना पड़ रहा है | नकारात्मक सोचने  का नहीं है समय  ये समय नकारात्मक सोचने  का नहीं है | मैं जानती हूँ कि हम सब कम खा के कम सुविधाओं में जी सकते हैं पर आहत है उनके लिए जो गरीब है, दिहाड़ी मजदूर हैं, अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों के लिए जो अकेले रहते हैं, अपने उन रिश्तेदारों के लिए जो इस समय कई शारीरिक दिक्कतों को झेल रहे हैं, या जो दूसरे शहरों में कहीं फंस गए हैं |कोशिश करें कि अगर आप के घर के आस -पास ऐसे कोई लोग हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग बनाते हुए ही सही उनकी मदद करें | उन्हें हेल्पलाइन नंबर दें | अपने घर से खाना बना कर उन्हें दे सकते हैं | फोन पर बात कर हालचाल ले सकते हैं | दिहाड़ी मजदूरों भिखारियों के लिए पास की पंसारी की दुकान में कुछ धन दे कर एक बड़े अभियान में मदद कर सकते हैं | क्योंकि कई पंसारी स्टोर ऐसी लंगर योजना में निजी धन लगा कर आगे आ रहे हैं |  ना हो तो उपाय है कि हम स्वयं को बचा कर उन सब को बचाएँ | आशा है हम और वो सब भी इस कठिन  समय को झेल कर इस परीक्षा को पार कर लेंगे |   पहले तो जीवन को बचाने  की फिर नौकरी /व्यवसाय , देश की अर्थव्यवस्था बचाने की बहुत सारी आशंकाओं के बीच एक दिया आशा का जालाये रखें | सकारात्मक रहने की कोशिश करें पर दिमाग पर बहुत ज्यादा बोझ डाल कर नहीं | मानसिक स्वास्थ्य का भी रखें ख्याल  शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही बचाए रखने की जरूरत है | क्योनी ये समय डर, आशंका और निराशा का है |बार -बार हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग की नयी आदत हमें डालनी है | ऐसे में मन घब्राना स्वाभाविक है |  जब मन बहुत घबराए तो सब तरफ से मन हटा कर अपनी साँसों पर ध्यान दीजिये | इसे चाहें मेडिटेशन मान कर करें, चाहें व्यायाम | वही हवा (प्राण वायु)जो मेरी साँसों में जा रही है वही आपकी में भी वही संसार में सबकी | हम सब इस कदर जुड़े हुए हैं | यही समझ, यही  जुड़ाव ही हमें हर समस्या से पार ले जाएगा | यही हमारी शक्ति है |इसी शक्ति के सहारे हम ये 21 दिन पार कर लेंगे | नियमों का पालन करें, स्वस्थ रहे प्रसन्न रहे माँ जगदम्बा सब पर कृपा करें वंदना बाजपेयी Covid-19:कोरोना पैनिक से बचने के लिए सही सोचें आपको यह लेख कैसा लगा ? अपने विचारों से हमें अवगत करायें | filed under-social distencing, covid-19, virus, 21 days, corona    

Covid-19 : कोरोना पैनिक से बचने के लिए सही सोचें

  एक नन्हा सा दिया भले ही वो किसी भी कारण किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए पूरे मार्ग का अंधियारा हरता है …गौतम बुद्ध   आज हम सब ऐसे दौर में हैं जब एक नन्हा सा वायरस COVID-19 पूरे विश्व की स्वास्थ्य पर, अर्थ पर और चेतना पर हावी है| पूरे विश्व में संक्रमित व्यक्तियों व् मृत रोगियों के लगातार बढ़ते आंकडे हमें डरा रहे हैं| हम  चाहते ना चाहते हुए भी बार-बार न्यूज़ देख रहे हैं| निरीह हो कर देख रहे हैं कि एक नन्हे से विषाणु ने पूरे विश्व की रफ़्तार के पहिये थाम दिए हैं| कल तक ‘ग्लोबल विलेज’ कहने वाले हम आज अपने घरों में सिमटे हुए हैं| देश के कई शहर लॉक डाउन हैं| कल तक हम सब के अपने-अपने सपने थे, आशाएं थीं, उम्मीदें थीं पर आज हम सब का एक ही सपना है कि हम सब सुरक्षित रहे और सम्पूर्ण मानवता इस युद्ध में विजयी हो| इन तमाम प्रार्थनाओं के बाद हम ये भी नहीं जानते कि ये सब कब तक चलेगा| जिन लोगों को एकांत अच्छा लगता था वो भी बाहर के सन्नाटे से घबरा रहे हैं| ऐसे में हम तीन तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं| यहाँ मैं किसी प्रतिक्रिया के गलत या सही होने की बात न कर के मनुष्य की विचार प्रक्रिया पर बात करके उसे सही विचार चुनने की बात कह रही हूँ|   मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहे बाकी दुनिया… इस क्राइसिस से पहले  हममें से कई लोग बहुत अच्छे थे| पूरी दुनिया के बारे में  सोचते थे| आज वो केवल अपने और अपने परिवार के बारेमें सोच रहे हैं| ये वो लोग हैं जो ६ महीने का राशन जमा कर रहे हैं| अमेरिका में टॉयलेट पेपर तक की कमी हो गयी| ये वो लोग हैं जो बीमारों के लिए सैनिटाईजर्स की कमी हो गयी है अपने ६ महीने के स्टोर से कुछ देने नहीं जायेंगे| हो सकता है कि ये बीमारना पड़ें| इनके सारे सैनीटाईज़र्स यूँ ही ख़राब हो जाए| खाने –पीने की चीजें सड़ जाएँ पर किसी संभावित आपदा से निपटने के लिए ये सालों की तैयारी कर के बैठे हैं| बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि ये लोग समाज के दोषी हैं पर मैं ऐसा नहीं कह  पाऊँगी …कारण है हमारा एनिमल ब्रेन|   मनुष्य का विकास एनिमल या जानवर से हुआ है | क्योंकि जंगलों में हमेशा जान का खतरा रहता था इसलिए दिमाग ने एक कला विकसित कर ली, संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगा कर खुद को सुरक्षित करने की| ये कला जीवन के लिए सहायक है और मनुष्य को तमाम खतरों से बचाती भी है|परन्तु ऐसे समय में जब हम जानते हैं कि खाने पीने के सामानों की ऐसी दिक्कत नहीं आने वाली हैं किसी एक व्हाट्स एप मेसेज पर, किसी एक दोस्त के कहने पर, किसी एक न्यूज़ पर दिमाग का वो हिस्सा एक्टिव हो जाता है और व्यक्ति बेतहाशा खरीदारी करने लगता है| हममे से कई लोगों ने इन दिनों इस बात को गलत बताते हुए भी  मॉल में लगी लंबी लाइनों को देखकर खुद भी लाइन में लग जाना बेहतर समझा होगा| भले ही हम उस समय खाली दूध या कोई एक सामान लेने गए हों और खुद भी पैनिक की गिरफ्त में आ गए | इधर हमने भरी हुई दुकानों में  एक दिन में पूरा राशन खाली होते हुए देखा है|   हम तो आपस में ही पार्टी करेंगे- दूसरी तरह के लोग जिन्हें हम अति सकारात्मक लोग कहते हैं| पॉजिटिव-पॉजिटिव की नयी थ्योरी इनके दिमाग में इस कदर फिट है कि इन्हें हर समय जोश में भरे हुए रहना अच्छा लगता है| पॉजिटिव रहने का अर्थ  ये नहीं होता है कि आप सावधानी और सतर्कता  के मूल मन्त्र को भूल जाएँ| जब की सकारात्मकता का आध्यात्मिक स्वरुप हमें ये सिखाता है कि आप जो भी काम करें पूरी तन्मयता और जागरूक अवस्था में करें, अवेयरनेस के साथ करें| शांत रहने का अर्थ नकारत्मक होना नहीं है| एक बार संदीप माहेश्वरी जी ने कहा था कि सक्सेस-सकस भी एक अवगुण है| आम तौर पर लोग अटैचमेंट नहीं सीख पाते | लेकिन जो लोग सक्सेस के प्रति अटैच्ड हो जाते हैं उनके दिमाग में चौबीसों घंटे सक्सेस सक्सेस या काम –काम चलता रहता है| अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना रात और सपनों में भी चलता रहता है| यही स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है| जितना अटैच होना सीखना पड़ता है उतना ही डिटैच होना भी | कब आप स्विच ओं कर सकें कब ऑफ कर सकें | अति सकारात्मकता  भी यही प्रभाव उत्प्प्न करती है | अगर व्यक्ति चौबीसों घंटे सकारात्मक रहेगा तो उसका दिमाग सतर्क रहने वाला स्विच ऑफ़ कर देगा| यही हाल कोरोना व्यारस के दौर में हमें देखने को मिल रहा है| जब पूरा शहर लॉक डाउन किया गया है तो कुछ लोग जबरदस्ती अपने घर में दूसरों को बुला रहे हैं | पार्टी कर रहे हैं | पुलिस को धत्ता बता कर ये ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि ये एक –एक कर लोगों को घर बुलाते हैं | जब २५ -३० लोग इकट्ठा हो जाते हैं तब पार्टी शुरू होती है| इनका कहना होता है कि बिमारी –बिमारी सोचने से नकारात्मकता फैलती है|   अगर समझाओं  तो भी इनका कहना होता है कि अगर मैं मरुंगा तो मैं मरूँगा …इससे दूसरे को क्या मतलब | सकार्त्मकता के झूठे लबादे ने इनका सत्रकता वालादिमागी स्विच ऑफ कर दिया है | जो इन्हें खुद खतरे उठाने को विवश करता है और सामुदायिक भावना के आधीन हो सामाजिक जिम्मेदारी की अवहेलना के प्रति उकसाता है| ऐसे ही कुछ अति सकारात्मक लोगों द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों को धन्यवाद ज्ञापन के आह्वान को ध्वनि तरंगों के विगन से जोड़ देने का नज़ारा हम कल २२ मार्च को आम जनता के बीच देख चुके हैं | जब जनता जुलुस के रूप में सड़कों पर उतर आई | इसके पीछे व्हाट्स एप में प्रासारित ये ज्ञान था| हमें पता है कि आम जनता में समझ अभी इतनी नहीं है| वो वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध करे गए ऐसे व्हाट्स एप ज्ञान से प्रभावित हो जाती है| ऐसे में इन अति सकारात्मक लोगों … Read more

अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे

हम जंग न होने देंगे  विश्व शांति के साधक हैं, जंग न होने देंगे !  भारत -पकिस्तान पड़ोसी साथ -साथ रहना है  प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,  तीन बार कर चुके लड़ाई , कितना महंगा सौदा , रूसी बम हो या अमरीकी, खून एक बहना है| जो हम पर गुजरी, बच्चों के संग ना होने देंगे | जंग ना होने देंगे |             ‘विश्व शांति के हम साधक हैं जंग न होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। हम जंग न होने देंगे..’ इस युगानुकूल गीत द्वारा महान युग तथा भविष्य दृष्टा कवि अटल जी ने सारी मानव जाति को सन्देश दिया था कि विश्व को युद्धों से नहीं वरन् विश्व शांति के विचारों से चलाने में ही मानवता की भलाई है। इस विश्वात्मा के लिए हृदय से बरबस यह वाक्य निकलता है – जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि। विश्व शान्ति के महान विचार के अनुरूप अपना सारा जीवन विश्व मानवता के कल्याण के लिए समर्पित करने वाले वह अत्यन्त ही सरल, विनोदप्रिय एवं मिलनसार व्यक्ति थे। सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ–साथ एक अच्छे वक्ता भी थे। अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे             भले ही 16 अगस्त 2018 में अटल जी इस नाशवान तथा स्थूल देह को छोड़कर विश्वात्मा बनकर परमात्मा में विलीन हो गये। लेकिन उनकी ओजस्वी वाणी तथा महान व्यक्तित्व भारतवासियों सहित विश्ववासियों को युगों–युगों तक सत्य के मार्ग पर एक अटल खोजी की तरह चलते रहो, चलते रहो की निरन्तर प्रेरणा देता रहेगा। चाहे एक विपक्षी नेता की भूमिका हो या चाहे प्रधानमंत्री की भूमिका हो दोनों ही भूमिकाओं में उन्होंने भारतीय राजनीति को परम सर्वोच्चता पर स्थापित किया। संसार में बिरले ही राजनेता ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर पाते हैं। जीवन भर अविवाहित रहकर मानवता की सेवा ही उनका एकमात्र ध्येय तथा धर्म था।             अटल जी पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। इस दौरान वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी दृष्टिकोण से ओतप्रोत भाषण दिया था। अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। इस भाषण कुछ अंश इस प्रकार थे – अध्यक्ष महोदय, भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना बहुत पुरानी है। हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। … मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। अटल जी ने अपने भाषण की समाप्ति ‘‘जय जगत’’ के जयघोष से की थी। इस विश्वात्मा ने ‘‘जय जगत’’ से अपने भाषण की समाप्ति करके दुनिया को सुखद अहसास कराया कि भारत चाहता है, किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जीत हो। दुनिया को अटल जी के अंदर भारत की विश्वात्मा के दर्शन हुए थे।             अटल जी के इस भाषण में भी उनके विश्व शांति का साधक होने का पता चलता हैं। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था। यह पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र जैसे शान्ति के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की ‘विश्व गुरू’ की गरिमा का बोध सारे विश्व को हुआ था। संयुक्त राष्ट्र में उस समय उपस्थित विश्व के 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने देर तक खड़े होकर भारत की महान संस्कृति के सम्मान में जोरदार तालियां बजाकर अपनी हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की थी। इस विहंगम तथा मनोहारी दृश्य ने महात्मा गांधी के इस विचार की सच्चाई को महसूस कराया था कि एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब दिशा से भटकी मानव जाति सही मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर रूख करेगी।             ब्रिटिश शासकों ने जोर–जबरदस्ती से विश्व के 54 देशों में अपने उपनिवेशवाद का विस्तार किया था। मेरे विचार से आधुनिक लोकतंत्र का विचार उसी काल में अस्तित्व में आया तथा विकसित हुआ था। अटल जी लोकतंत्र के प्रहरी थे जब कभी लोकतंत्र की मर्यादा पर आँच आई तो अटल जी ने उसका डटकर मुकाबला किया। इसके साथ ही उन्होंने कभी भी राजनीतिक और व्यक्तिगत संबंधों को मिलाया नहीं। 21वीं सदी में इस विश्वात्मा के दिखाये मार्ग में आगे बढ़ते हुए हमें लोकतंत्र को देश की सीमाओं से निकालकर वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का स्वरूप प्रदान करना चाहिए। लोकतंत्र की स्थापना मानवता की रक्षा के लिए ही की गयी थी। अतः राज्य, देश तथा विश्व से मानवता सबसे ऊपर है।             यूरोप के 27 देश जो कभी आपस में युद्धांे की विभीषका में बुरी तरह से फंसे थे। उन्होंने लोकतंत्र को देश की सीमाओं से निकालकर लोकतांत्रिक यूरोपिन यूनियन की स्थापना कर ली है। इसके अन्तर्गत इन देशों ने मिलकर अपनी एक यूरोपियन संसद, नियम–कानून, यूरो मुद्रा, वीजा से मुक्ति आदि कल्याणकारी कदम उठाकर अपने–अपने देश के नागरिकों को आजादी, समृद्धि तथा सुरक्षा का वास्तविक अनुभव कराया है। साथ ही दकियानुसी विचारकों की इस शंका को झूठा साबित कर दिया कि यूरोप के 27 देशों में आने–जाने के लिए वीजा से मुक्ति देने से यूरोप के अधिकांश लोग लंदन तथा पेरिस जैसे विकसित महानगरों की ओर भागेगे जिससे भारी अराजकता तथा अफरा–तफरी मच जायेगी।             अटल जी सर्वाधिक नौ बार सांसद चुने गए थे। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे थे और श्री जवाहरलाल नेहरू व श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी। अटल जी विश्व शांति के पुजारी के रूप में भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा सारी दुनिया में शांति की स्थापना हेतु कई कदम उठाये गये। अत्यन्त ही सरल स्वभाव वाले अटल जी को 17 अगस्त 1994 को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया। उस अवसर पर अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘मैं आप सबको हृदय से धन्यवाद देता हूं। मैं प्रयत्न करूगा कि इस सम्मान के लायक अपने आचरण को बनाये रख सकूं। जब कभी मेरे … Read more

6 अगस्त – हिरोशिमा दिवस पर परमाणु हमले से मुक्त हो धरती

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा तथा नागाशाकी शहरों पर 6 और 9 अगस्त 1945 को हुए परमाणु हमले से पूरी दुनिया दहल गई थी। इस हमले की प्रतिवर्ष आयोजित वर्षगांठ के मौके पर पूरे जापान सहित विश्व भर की आंखें नम हो जाती है। जापान के पीस मैमोरियल पार्क, हिरोशिमा में हजारों की तादात में प्रतिवर्ष 6 अगस्त को लोग एकत्रित होते हैं और हिरोशिमा और नागासाकी हमले में मारे गए अपने प्रियजनों को बड़े ही भारी मन से मार्मिक श्रद्धांजलि देते हैं। विश्व भर में इस हमले को 20वीं सदी की सबसे बड़ी घटना बताते हुए दुख जताया जाता है। जापान में 6 अगस्त को शांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस उम्मीद में यह आयोजन होता है कि दुनिया में अब कभी इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा। 6 अगस्त -हिरोशिमा दिवस पर परमाणु हमले से मुक्त हो धरती              20वीं सदी की इस सबसे बड़ी दर्दनाक घटना का अपराधी अमेरिका था, और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने यह कहकर इस विनाशलीला का बचाव किया था कि मानव इतिहास की सबसे खूनी द्वितीय विश्व युद्ध को खत्म कराने के लिए ऐसा करना जरूरी था। हमले के 16 घंटे के बाद राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जब घोषणा की, तब पहली बार जापान को पता लगा कि हिरोशिमा में हुआ क्या है? राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के शब्द थे, 16 घंटे पहले एक अमेरिकी विमान ने हिरोशिमा पर एक बम गिराया है। यह परमाणु बम है। हम और भी अधिक तेजी से जापान को मिटाने और उसकी हर ताकत को नेस्तनाबूद करने के लिए तैयार हैं। अगर वह हमारी शर्तों को नहीं मानता, तो बर्बादी की ऐसी बारिश के लिए उसे तैयार रहना चाहिए, जैसा इस पृथ्वी ने पहले कभी नहीं देखा है। हिरोशिमा, नागासाकी पर हमले ने बदली थी युद्ध की तस्वीर              अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर हमला कर जापान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। दो दिनों के अंतराल पर हुए इन हमलों से बसे बसाए दो शहर पूरी तरह शमशान में तब्दील हो गए थे। हिरोशिमा पर हुए हमले में एक करीब 1,50,000 हजार लोगों की मौत हुई थी जबकि नागासाकी पर हुए हमले में करीब 80,000 लोग मारे गए थे। अमेरिका के इन दो हमलों ने द्वितीय विश्व युद्ध की सूरत बदल कर रख दी थी। हमले के बाद जापान ने तुरंत सीजफायर का ऐलान कर घुटने टेक दिए। अमेरिका द्वारा किए गए यह दोनों हमले ऐसी जगह किए गए थे जहां न तो कोई बड़ा सैन्य अड्डा था न ही वहां कोई बड़ी सैन्य गतिविधि चल रही थी। यह इलाके पूरी तरह से रिहायशी थे।             आंकड़ों के मुताबिक हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में करीब साठ प्रतिशत लोगों की मौत तुरंत हो गई थी, जबकि करीब तीस प्रतिशत लोगों की मौत अगले एक माह के अंदर भयंकर जख्मों के बाद हुई। इसके अलावा करीब दस फीसद लोग यहां पर मलबे में दबने और अन्य कारणों से मारे गए थे। इस हमले से पहले द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का पलड़ा भारी था और वह अन्य देशों पर हावी होने में कामयाब भी हो रहा था। लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए हमलों ने जापान की कमर तोड़कर रख दी। अभी भी है नुक्लीयर हथियारों से खतरा              स्टाॅकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्तमान में विश्व के नौ देशों ने ऐसे परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं जिनसे मिनटों में यह दुनिया खत्म हो जाए। ये नौ देश हैं– अमेरिका (7,300), रूस (8,000), ब्रिटेन (225), फ्रांस (300), चीन (250), भारत (110), पाकिस्तान (120), इजरायल (80) और उत्तर कोरिया (60)। इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 16,445 परमाणु हथियार हैं। बेशक स्टार्ट समझौते के तहत रूस और अमेरिका ने अपने भंडार घटाए हैं, मगर तैयार परमाणु हथियारों का 93 फीसदी जखीरा आज भी इन्हीं दोनों देशों के पास है।             द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषका से व्याकुल होकर तथा विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने अप्रैल 1945 को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी उनकी विश्व शान्ति की इस पहल से 24 अक्टूबर, 1945 को शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। प्रारम्भ में केवल 51 देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। आज 193 देश इसके पूर्ण सदस्य हैं व 2 देश संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देश (आॅबजर्बर) हैं। 71 वर्ष बाद अमेरिका ने किया पछतावा              अमेरिकी के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने 27 मई 2016 को जापान की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान हिरोशिमा परमाणु हमले के पीड़ितों को जापान के हिरोशिमा में स्थित पीस मैमोरियल पार्क में जाकर श्रद्धांजलि दी। हिरोशिमा में दुनिया के पहले परमाणु हमले के करीब 71 साल बाद पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस स्थल का दौरा किया। इस दौरान ओबामा ने कहा कि 71 साल पहले आसमान से मौत गिरी थी और दुनिया बदल गई थी। श्री बराक ओबामा के बयानों में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम हमलों के लिए दुख और पछतावा दिखा। बच्चे ही लायेंगे विश्व में शांति -महात्मा गांधी              राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विश्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सशक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे विश्व को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के ढाई अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है।             दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्त कराने वाले नेल्सन मंडेला महान इंसान थे। मंडेला को शांति के लिए नोबल पुरस्कार, भारत रत्न जैसे कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें ये सम्मान शांति … Read more

जोमैटो और शुक्ला जी

                      The Telegraph से साभार अगर आप ग्रीनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के रिकार्ड चेक करें तो देखेंगे कि मशहूर होने   के भी अलग अलग किस्से होते हैं |कोई नाखून बढ़ा कर मशहूर होता है, कोई बाल बढ़ा कर तो कोई लगातार हँस कर , या रो कर | पहले लोग इसके लिए बहुत मेहनत करते थे | किसी के लम्बे बालों या नाखूनों की उलझन को सहज ही समझा जा सकता है | पर आज सोशल मीडिया युग है इसमें एक आलतू -फ़ालतू सी ट्वीट आपको रातों -रात स्टार बना सकती है | ऐसा ही किया शुक्ला जी ने ….अब शुक्ला जी तो स्टार बने ही बने मुफ्त का ज़ोमैटो का विज्ञापन भी कर दिया | अब शुक्ला जी टाइप  के लोग हर जाति धर्म में होते ही हैं | इन्हें कुछ दिन बाद सिरफिरे कह कर भुला भी दिया जाएगा पर ज़ोमैटो तो एक कम्पनी है उसे तो इससे आर्थिक लाभ हुआ उसका श्रेय शुक्ला जी को जरूर जाएगा क्योंकि “विज्ञापन का भी कोइऊ धर्म नहीं होता “ जोमैटो और शुक्ला जी   अब ज़ोमैटो और शुक्ल जी का किस्सा जिनको नहीं पता है उनकी जानकारी के वास्ते इतना बता दें कि एक ऑनलाइन वेबसाईट (कम्पनी) है ज़ोमैटो | जिसमें जुड़े किसी भी रेस्ट्रोरेन्ट से आप खाना ऑन  लाइन आर्डर कर के मंगवा सकते हैं |  ये आपको  घर बैठे उस रेस्ट्रोरेन्ट का लजीज खाना पहुँचा देती है | बड़े शहरों में ये वेबसाईट खासी प्रसिद्द है | इसके लिए इसने तमाम डिलीवरी बॉय रखे हैं जो पैक  करा हुआ खाना ग्राहक तक पहुंचाते हैं | अभी कुछ दिन पहले ज़ोमैटो के एक डिलीवरी बॉय के द्वारा रास्ते में स्कूटर रोक कर इन पैक किये हुए खाने को करीने से खोल कर हर पैकेट से कुछ चम्मच भोग लगा कर वापस वैसे ही पैक कर डिलीवरी कर देने की पोस्ट वायरल हुई थी | इससे उन लोगों को भी ज़ोमैटो के बारे में पता चला जिनके  पास इसकी जानकारी नहीं थी …और जिन्होंने इससे खाना तो कभी मँगाया ही नहीं था | अब एक हैं शुक्ला जी |  शुक्ला जी को चार रोज पहले  उनके मुहल्ले के चार लोगों से ज्यादा कोई नहीं जानता था | एक दिन शुक्ला जी ने जोमैटो से कुछ खाना मँगवाया | और जैसे ही उनके पास मेसेज आया कि फलां डिलीवरी बॉय उनके घर खाना ले कर आ रहा है तो मेसेज में उसके धर्म को देख कर शुक्ला जी को अपना धर्म याद आया | शुक्ला जी का कहना था कि वो सावन के दिनों में अपने धार्मिक कारणों की वजह से किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के हाथ से लाया गया खाना नहीं ले सकते | कृपया उनके धर्म के व्यक्ति का डिलीवरी बॉय से खाना भिजवाया जाए | जोमैटो ने उनकी इस शर्त को मानने  से इनकार कर दिया | शुक्ला जी को गुस्सा बहुत आया , उन्होंने जनेऊ सर पर (कान पर नहीं ) चढ़ा कर  खाना कैंसिल करते हुए ये बात  ट्वीट कर दी | उनकी ट्वीट पर ज़ोमैटो ने अपने पक्ष की ट्वीट करी कि वो ये आग्रह स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि … “खाने का कोई धर्म नहीं होता | खाना अपने आप में एक धर्म है |” अब बस जनता को हथियार मिल गया कुछ लोग शुक्ला जी के पक्ष में तो कुछ ज़ोमैटो के पक्ष में खड़े हो गए | देखते ही देखते ट्विटर और फेसबुक की हर वाल पर शुक्ल जी या ज़ोमैटो जी  छा गए | हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों की खुदाई   फिर शुरू हुई और एक पुरानी ट्वीट  और पापुलर हुई  जिसमें हलाल का मीट ना देने पर ज़ोमैटो ने ग्राहक से माफ़ी माँगी थी | एक और खबर छाने लगी कि कैसे एक मुस्लिम मदरसे ने इस्कॉन टेम्पल में बनाए खाने को मिड डे मील के रूप में लेने से इंकार कर दिया था | मने की सहिष्णुता /असहिष्णुता का खेल शुरू होगया | मतलब ई कि शुक्ला जी ही सिरफिरे नहीं हैं , उनके जैसे सिरफिरे पहले भी रह चुके हैं | खैर अब मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से शुक्ला जी को FIR मिल (दर्ज )गयी है और ज़ोमैटो को वार्निंग | तो अब पर्दा गिराने से पहले  अगर ज़ोमैटो की बात की जाए तो  इससे कई वेज और नॉन वेज रेस्ट्रोरेन्ट जुड़े हैं | ग्राहक अपनी पसंद के किसी भी रेस्ट्रोरेन्ट से खाना मँगवा सकता है | कई ऐसे रेस्ट्रोरेन्ट जहाँ वेज और नॉन वेज दोनों प्रकार का खाना बनता है वो भी नवरात्र स्पेशल व् पितृ पक्ष स्पेशल नाम की थाली निकालते हैं | उसमें दावा होता है कि ये थालियाँ अलग रसोई में पूर्णतया शुद्ध सात्विक तरीके से बनायी गयीं हैं | निश्चित तौर पर ऐसा कम्पनियाँ धर्म की वजह से नहीं करती बल्कि अपने व्यापार को बढ़ने के लिए करती हैं | निश्चित तौर पर इससे उनका व्यापर बढ़ा  है और सहूलियत मिलने पर व्रत करने वालों की संख्या भी | आज अगर आप नवरात्र थाली स्पेशल देखें तो आप को जरूर लगेगा कि काश आपने भी व्रत कर लिया होता | क्योंकि उसमें इतने आइटम होते हैं जितने आम आदमी की थाली में नहीं होते | पुन्य लाभ और स्वाद लाभ दोनों | ऐसा वो अन्य धर्मों की थालियों में भी करते होंगे | इन समस्त सुविधाओं में ऐसा कभी रेस्ट्रोरेन्ट की ओर से नहीं लिखा जाता कि वो अपने रसोइये किसी खास धर्म के व्यक्ति को ही रखेगा | रसोइया कौन है इसकी जानकारी किसी को नहीं होती | होटल में भी खाना परोसने वाले व्यक्ति के धर्म की जानकारी किसी को नहीं होती | आज पैकेट बंद फ़ूड का ज़माना है | बिस्कुट , दालमोठ , अचार आदि में किस धर्म के व्यक्ति के हाथ लगे हैं ये पैकेट पर नहीं लिखा रहता | ऐसे में शुक्ला जी का ये विश्वास कर लेना कि खाना तो स्वधर्मी ने ही बनाया होगा परन्तु डिलीवरी बॉय का नाम देखकर  लेने से इनकार कर देना गलत है | ऐसे व्यक्तियों के लिए घर का बना खाना ही सही है | और अगर ऐसा न कर सकें तो  फल या दूध दही से गुज़ारा … Read more

प्रो लाइफ या प्रो चॉइस …स्त्री के हक़ में नहीं हैं कठोर कानून

माँ बनना दुनिया के सबसे खूबसूरत अनुभवों में से एक है | किसी कली  को अपने अंदर फूल के रूप में विकसित होते हुए महसूस करने का अहसास बहुत सुखद है | कौन स्त्री है जो माँ नहीं बनना चाहती | फिर भी कई बार उसे ग्राभ्पात करवाना पड़ता है | गर्भपात का दर्द बच्चे को जन्म देने के दर्द से कई गुना ज्यादा पीड़ा दायक है …फिर भी स्त्री इससे गुजरने के पक्ष में निर्णय लेती है… तो यकीनन कोई बड़ा मसला ही होगा | ( यहाँ केवल लिंग परिक्षण के बाद हुए गर्भपातों को सन्दर्भ में ना लें , वो गैर कानूनी हैं )परन्तु अब ये बात फिरसे उठने लगी है कि गर्भपात को पूरी तरह से गैर कानूनी करार दे दिया जाए | खास बात ये है कि ये मान किसे विकासशील देश नहीं विकसित देश अमेरिका से उठ रही है | प्रो लाइफ या  प्रो चॉइस …स्त्री के हक़ में नहीं हैं कठोर कानून  प्रो लाइफ और प्रो चॉइस  के पक्ष और विपक्ष का वैचारिक विरोध कोई नयी बात नहीं है | हम सब जीवन के पक्ष में है | फिर भी अगर इन परिस्थितियों पर गौर करा जाए जहाँ स्त्री गर्भपात के अधिकार की मांग करती है … बालात्कार से उत्पन्न बच्चे धोखा देकर भागे प्रेमी से उत्पन्न बच्चे ऐसा भ्रूण जिसे कोई ऐसा रोग हो जो उसे जीवन भर असहाय बना दे | ऐसा भ्रूण जिसका गर्भ में पलना माँ के जीवन को खतरा हो | या स्त्री मानसिक रूप से इसके लिए तैयार ना हो | चाहे इसका कारण उसका कैरियर हो या बच्चा पालने की अनिच्छा | प्रो चॉइस महिलाओं को ये अधिकार देता है कि ये शरीर उनका है और उसमें बच्चे को पालने या जन्म देने का अधिकार  उनका है | जबकी प्रो लाइफ का कहना है कि किसी भी जीव चाहें वो भ्रूण अवस्था में ही क्यों ना हो उसका जीवन खत्म करने का अधिकार किसी को नहीं है | यूँ तो प्रो लाइफ के तर्क बहुत सही लगते हैं ,क्योंकि वो जीवन के पक्ष में है , लेकिन प्रो चॉइस के अधिकार पाने के लिए महिलाओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा , क्योंकि गर्भपात हमेशा से कानूनी रूप से गलत माना जाता रहा है |  अभी हाल में अमेरिका के ओकलाहोमा में प्रो लाइफ के पक्ष में निर्णय देते हुए गर्भपात को पूरी तरह से गैर कानूनी बना दिया जिसमें गर्भपात करने वाले डॉक्टर को भी 99 वर्ष के लिए जेल जाना पड़ेगा | जाहिर है कोई डॉक्टर ये खतरा नहीं उठाएगा | ऐसा करने वाला ये राज्य अमेरिका का पांचवां राज्य है | तो क्या महिलाएं गर्भपात नहीं करवाएगी ? जहाँ विवाहित दंपत्ति  प्रेम पूर्ण साथ -साथ रहते हैं वहां वो वैसे भी भी बच्चे को लाने या नहीं लाने का निर्णय साथ –साथ करते हैं और अगर बिना मर्जी के बच्चा आ ही गया तो उसे सहर्ष पाल ही लेते हैं |( फिल्म –बधाई हो जो असली जिंदगी की ही कहानी है  ) परन्तु ऊपर लिखे सभी कारणों में अगर स्त्री  गर्भपात नहीं करवा पाएगीं तो वो क्या करेगी … उन बच्चों ओ जन्म देकर कूड़े में फेंकेंगी , या अनाथालयों मे भेजेंगी ,क्योंकि रेप चाइल्ड या धोखेबाज प्रेमी से उत्पन्न बच्चों को पालने, उस बच्चे को देखकर उस सदमे के साथ हमेशा जीने के लिए विवश करता है , जबकि बच्चे का पिता पूर्ण रूप से उस बच्चे और अपने कर्तव्यों के प्रति आज़ाद रहता है | प्रो चॉइस स्त्री को ये अधिकार देता है कि केवल वो ही दंडित ना हो | या फिर खराब भ्रूण के कारण अल्प मृत्यु का शिकार होंगी | जैसे की भारतीय मूल की सविता की २०१२ में आयरलैंड में मृत्यु हो गयी थी | जिसके गर्भ में पलने वाला भ्रूण खराब था और उससे माँ की जान को खतरा था | परन्तु कोई डॉक्टर गर्भपात  के लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि उस समय वहाँ का कानून यही था कि  किसी भी तरह का गर्भपात गैर कानूनी है | उनके पति द्वारा अदालत में गुहार लगाने के बावजूद सविता को नहीं बचाया जा सका और वो मृत्यु का शिकार हुई |उसके बाद वहां हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनज़र वहां की सरकार को कानून में बदलाव करना पड़ा कि स्त्री की अगर जान को खतरा हो तो उस भ्रूण का गर्भपात  करवाया जा सकता है | कानून बनने के बाद भी बहुत सी स्त्रियाँ गर्भपात करवाएंगी पर वो अप्रशिक्षित व् अकुशल दाइयों और झोला छाप डॉक्टरों द्वारा होगा …जिसमें स्त्री के जीवन को खतरा है |                             जीवन का अंत करना भले ही सही ना हो परन्तु ख़ास परिस्थितियों में किसी स्त्री , किसी भावी माँ के शारीरिक , मानसिक स्थिति को देखते हुए ये जरूरी हो जाता है कि महिलाओं के पास ये अधिकार रहे कि वो बच्चे को जन्म दे या नहीं | आप क्या कहते हैं ? वंदना बाजपेयी  फेसबुक और महिला लेखन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती करवाचौथ के बहाने एक विमर्श आपको आपको  लेख “  प्रो लाइफ या  प्रो चॉइस …स्त्री के हक़ में नहीं हैं कठोर कानून “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |     filed under-pro-life, pro-choice, abortion, laws for abortion,women issues