क्या आप जानते है आपके घर का कबाड़ भी हो सकता है अवसाद का कारण
क्या आप का घर अक्सर बहुत बेतरतीब रहता है ? क्या आप अपना पुराना सामान मोहवश फेंक नहीं पाते ?क्या आप को पता होता है कि उपयुक्त चीज आपके पास है पर आप उसे सही समय पर ढूढ़ नहीं पाते ? अगर ऐसा है तो जरा अपने स्वाभाव पर गौर करिए ………. आप कार ड्राइव करते समय किसी कि बाइक या सायकिल के छू जाने पर बेतहाशा उत्तेजित हो जाते हैं ,मार-पीट पर ऊतारू हो जाते हैं अकसर आप सड़क ,भीड़ और लोगों पर गुर्राते हैं ?या आप बात बेबात पर अपने बच्चों को पीट देती है ,घर कि काम वाली से झगड़ पड़ती है । तो जरा धयान से पढ़िए…………श्रीमती जुनेजा की कि भी स्तिथि कुछ -कुछ ऐसी ही थी। …. लेकिन जब गुस्सा बहुत बढ़ गया और घर में भी अक्सर कलह पूर्ण वातावरण ही रहने लगा तो उन्होंने मनोचिकित्सक को दिखाने में ही भलाई समझी मनोचिकित्सक के पास जा कर वो लगभग रो पडी । “मैं इतना बुरी इंसान नहीं हूँ ,पर पता नहीं क्यों मुझे आजकल हर समय इतना गुस्सा क्यों आता है मनोचिकित्सक ने उनकी बात बड़े धैर्य से सुनी और कई बैठकों में उनकी रोजमर्रा कि जिंदगी के बारे में जान कर एक सलाह दी “आप रोज सुबह आधा घंटे जल्दी उठा करिए और अपना बिस्तर कमरा संभालिये और ऑफिस जाने से पहले देख लीजिये कि आप की रसोई ,बाथरूम ,कपड़ों की अलमारी आदि ठीक से है या नहीं,इसके बाद ही ऑफिस जाया करिए । श्रीमती जुनेजा इसके बाद घर चली गयी ,और एक महीने बाद उन्होंने पाया कि वो ज्यादा शांत रहने लगी हैं । वस्तुत :आज की जिंदगी बहुत तनावपूर्ण है । हम सब लोग तनाव की जद में हैं अक्सर हम इसका दोष सड़क पर कार चलने वाले व्यक्ति को ,घर की काम वाली को या बच्चों की लड़ाई -झगडे को देते हैं पर इस तनाव का असली कारण हमारे घर में पड़ा कबाड़ है ।समझने वाली बात है अगर आप किसी के घर जाते हैं वहां सिंक बरतनों से बजबजा रहा है ,सामान बेतरतीब फैला है ,वॉशिंग मशीन बिना धुले कपड़ों से लबालब है …. तो आप को कैसा महसूस होता है ?और अगर वो घर आप का ही घर हो तो ? जाहिर है चिड़चिड़ापन ,बेचैनी ,अवसाद बढ़ेगा ही पर क्यों ? ऊर्जा का प्रवाह रोकता है कबाड़ – कभी देखा है नदी के पानी में गति शीलता है ,निरंतर प्रवाह है इसलिए उसका पानी गंदा नहीं होता। पर एक गड्ढे में कितना भी साफ़ पानी भरा हो ,२ ,४ दिन में सड़ने लगता है। और अगर एक दो दिन और बीत जाए तो पास से गुजरना मुश्किल हो जाता है। आपने भी सुना होगा गति ही जीवन है। इसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा सूक्ष्म तरंगों के रूप में हमारे चारों ओर व् घूमती रहती है ।घर का कबाड़ या घर में आवश्यकता से अधिक सामान ( हम बहुधा ऐसे घर में जा कर कहते हैं कि ,क्या घर को कबाड़ खाना बना रखा है ?) ऊर्जा के इस सतत प्रवाह को रोक लेता है। वस्तुतः :ये कबाड़ सकारात्मक विचारों के प्रवाह को रोक देता है ऊर्जा का प्रवाह रुकते ही मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं । मन अवसाद से घिर जाता है। जिससे घर के वातावरण में अजीब सी घुटन व् बेचैनी महसूस होती है । क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक – मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी कहते हैं कि “ढेर सारा फर्नीचर ,अनावश्यक किताबे ,बर्तन व् सामान हमारे दिमाग में भारीपन का अहसास कराता है ,जिससे उलझन ,थकान व् क्रोध बढ़ता है। इसका नकारात्मक प्रभाव हमारे रिश्ते -नातों पर पड़ता है। यहाँ तक कहाँ जा सकता है की कबाड़ दम्पत्तियों में अनबन व् तलाक तक का कारण बन सकता है। “ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार कबाड़ का हमारे मूड व् आत्मसंतुष्टि पर बहुत विपरीत असर पड़ता है। यह निर्जीव सामान हमारा किसी काम पर फोकस (ध्यान केंद्रित करना )रोक देता है। मनोवैज्ञानिक सुधीर गुप्ता के अनुसार कबाड दृश्य ,घ्राण व् स्पर्श संवेदनाओ को अत्यधिक उत्तेजित कर देता है। जिससे हमें ऐसा महसूस होता है जैसा बहुत देर काम करने के बाद महसूस होता है। हमें कभी न खत्म होने वाले काम की थकान महसूस होती है। क्यों इकठ्ठा हो जाता है कबाड़ – हम सब अपने घर को साफ़ -सुथरा रखना चाहते हैं । ज्यादातर घरों में अलसुबह से ही झाड़ू -पोंछा सफाई का काम शुरू हो जाता है । इतनी सफाई पसंद करने के बाद भी आखिरकार घर में ये कबाड़ इकट्ठा क्यों हो जाता है । भावनात्मक लगाव – हम ज्यादातर सामन इसलिए इकट्ठा कर लेते हैं क्योंकि हमें उनसे भावनात्मक लगाव होता है। अभी भी हमारे देश में पश्चिमी देशों की तरह “यूज एंड थ्रो ” का कांसेप्ट नहीं हैं ….कुछ सामान जो मात्र भावनात्मक लगाव की वजह से रखे जाते है … जैसे टूटी हुई घडी के पट्टे ,पुराने सेल ,बचपन या युवावस्था में पहने हुए कपडे ,हैंडल टूटा तवा ,बच्चों के खिलौने। इन्हे हम मात्र भावनात्मक लगाव के चलते अलमारियों में भर लेते हैं। असुरक्षा की भावना – अक्सर भारतीय घरों में असुरक्षा की भवना के चलते कबाड़ इकट्ठा हो जाता है ।भगवान न करे कभी कोई बुरा दिन देखना पड़े। कहीं ऐसा न हो की कभी इतनी सी चीज खरीदने की औकात न रहे इस मानसिकता के चलते कोई चीज फेंकने से हम कतराते हैं और रंग उड़े मग , पुराने सेल फोन , चश्मे आदि हमारे घर में कबाड़ बढ़ाते जाते हैं। कभी तो काम आ जाएगा – कई वस्तुए हम यह सोच कर रखते जाते हैं की कभी न कभी तो काम आ जाएंगी। बड़े बेटे की … Read more