बिना गुनाह की सजा भुगत रहे हैं शिक्षा मित्र
उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित किये गए शिक्षामित्रो को एक साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.जहाँ एक ओर प्रदेश में 1.35 लाख सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रो का समायोजन हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है,वहीँ प्रदेश सरकार ने अब उनके वेतन पर भी रोक लगा दी है.वेतन पर रोक लगने से शिक्षामित्रो के त्यौहार फीके हो गए हैं.जहाँ अन्य लोग दीपपर्व की तैयारियां कर रहे हैं,वंही शिक्षामित्र इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उनकी नौकरी रहेगी या जाएगी.एनसीईटी से कुछ राहत मिलने की खबरे जरूर आयी हैं,लेकिन जब तक कोई ठोस निर्णय न हो जाये,तब तक शिक्षामित्र दुविधा में ही रहेंगे. बात सिर्फ समायोजन रद्द होने या वेतन रोके जाने तक ही सीमित नहीं है,शिक्षामित्रो को बिना किसी गुनाह के जगहंसाई का भी सामना करना पड़ रहा है.कुछ स्कूलों में प्रधानाध्यापक शिक्षामित्रो पर कटाक्ष कर रहे हैं और उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर कराने को लेकर आगे-पीछे हो रहे हैं.इसके अलावा शिक्षामित्रो को घर-परिवार और समाज की भी फब्तियां सुनने पड़ रही हैं. कई ऐसे भी शिक्षामित्र हैं,जिन्होंने सहायक अध्यापक बनने की उम्मीद में नौकरी और रोजगार के कई दूसरे अच्छे-अच्छे मौके छोड़ दिए और काफी मशक्कत के बाद सहायक अध्यापक बनने के बाद एक बार फिर मायूसी का सामना करना पड़ा. वेतन रोकने का आदेश आने के बाद से हजारों शिक्षामित्र आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.यही वजह है कि प्रदेश और केंद्र सरकार के ढुलमूल रवैये को लेकर शिक्षामित्रो में काफी रोष व्याप्त है.ज्यादातर शिक्षामित्र हर दिन अपने पक्ष में किसी अनुकूल खबर का इंतज़ार करते हैं और कोई राहत की खबर न मिलने से फिर मायूस होकर अगले दिन का इंतज़ार करते हैं.मुश्किल यह है कि सरकार ने आधिकारिक रूप से अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वे अपने-अपने विद्यालय जाएँ या न जाएँ और जाएँ तो किस हैसियत से जाएँ.उल्लेखनीय है कि तकनीकी तौर पर समायोजित शिक्षामित्र इस समय न तो सहायक अध्यापक,क्योंकि सहायक अध्यापक बनते ही उनका शिक्षामित्र पद समाप्त हो गया था. कुल मिलकर शिक्षामित्र बिना किसी गलती के सजा भुगत रहे हैं.उन्हें सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित करने का निर्णय प्रदेश सरकार ने लिया था और यदि प्रदेश सरकार ने अपने अधिकारों का उल्लघन किया है,तो इसमें शिक्षामित्रो का क्या दोष है.प्रकाशपर्व दीपावली के पहले यदि 1.35 लाख शिक्षामित्रो को इस तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है,तो निश्चित रूप से उसके लिए सरकारें जिम्मेदार हैं.हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार को इस मामले को लेकर जिस तरह की तत्परता दिखानी चाहिए थी,वह उसने नहीं दिखाई.उधर एनसीईटी भी आधिकारिक रूप से अपना पक्ष घोषित करने में विलम्ब कर रहा है.यदि उसे किसी भी तरह की राहत देनी है,तो जल्द ही उसकी सार्वजानिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए.कुल मिलकर दोनों सरकारों और सम्बंधित विभागों को शिक्षामित्रो की वेदना को गंभीरता से लेना चाहिए और जल्द से जल्द अपना रूख साफ करना चाहिए,जिससे शिक्षामित्रो के मन से संशय दूर हो सकें. ओमकार मणि त्रिपाठी