बिना गुनाह की सजा भुगत रहे हैं शिक्षा मित्र

उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित किये गए शिक्षामित्रो को एक साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.जहाँ एक ओर प्रदेश में 1.35 लाख सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रो का समायोजन हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है,वहीँ प्रदेश सरकार ने अब उनके वेतन पर भी रोक लगा दी है.वेतन पर रोक लगने से शिक्षामित्रो के त्यौहार फीके हो गए हैं.जहाँ अन्य लोग दीपपर्व की तैयारियां कर रहे हैं,वंही शिक्षामित्र इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उनकी नौकरी रहेगी या जाएगी.एनसीईटी से कुछ राहत मिलने की खबरे जरूर आयी हैं,लेकिन जब तक कोई ठोस निर्णय न हो जाये,तब तक शिक्षामित्र दुविधा में ही रहेंगे. बात सिर्फ समायोजन रद्द होने या वेतन रोके जाने तक ही सीमित नहीं है,शिक्षामित्रो को बिना किसी गुनाह के जगहंसाई का भी सामना करना पड़ रहा है.कुछ स्कूलों में प्रधानाध्यापक शिक्षामित्रो पर कटाक्ष कर रहे हैं और उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर कराने को लेकर आगे-पीछे हो रहे हैं.इसके अलावा शिक्षामित्रो को घर-परिवार और समाज की भी फब्तियां सुनने पड़ रही हैं. कई ऐसे भी शिक्षामित्र हैं,जिन्होंने सहायक अध्यापक बनने की उम्मीद में नौकरी और रोजगार के कई दूसरे अच्छे-अच्छे मौके छोड़ दिए और काफी मशक्कत के बाद सहायक अध्यापक बनने के बाद एक बार फिर मायूसी का सामना करना पड़ा. वेतन रोकने का आदेश आने के बाद से हजारों शिक्षामित्र आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.यही वजह है कि प्रदेश और केंद्र सरकार के ढुलमूल रवैये को लेकर शिक्षामित्रो में काफी रोष व्याप्त है.ज्यादातर शिक्षामित्र हर दिन अपने पक्ष में किसी अनुकूल खबर का इंतज़ार करते हैं और कोई राहत की खबर न मिलने से फिर मायूस होकर अगले दिन का इंतज़ार करते हैं.मुश्किल यह है कि सरकार ने आधिकारिक रूप से अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वे अपने-अपने विद्यालय जाएँ या न जाएँ और जाएँ तो किस हैसियत से जाएँ.उल्लेखनीय है कि तकनीकी तौर पर समायोजित शिक्षामित्र इस समय न तो सहायक अध्यापक,क्योंकि सहायक अध्यापक बनते ही उनका शिक्षामित्र पद समाप्त हो गया था. कुल मिलकर शिक्षामित्र बिना किसी गलती के सजा भुगत रहे हैं.उन्हें सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित करने का निर्णय प्रदेश सरकार ने लिया था और यदि प्रदेश सरकार ने अपने अधिकारों का उल्लघन किया है,तो इसमें शिक्षामित्रो का क्या दोष है.प्रकाशपर्व दीपावली के पहले यदि 1.35 लाख शिक्षामित्रो को इस तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है,तो निश्चित रूप से उसके लिए सरकारें जिम्मेदार हैं.हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार को इस मामले को लेकर जिस तरह की तत्परता दिखानी चाहिए थी,वह उसने नहीं दिखाई.उधर एनसीईटी भी आधिकारिक रूप से अपना पक्ष घोषित करने में विलम्ब कर रहा है.यदि उसे किसी भी तरह की राहत देनी है,तो जल्द ही उसकी सार्वजानिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए.कुल मिलकर दोनों सरकारों और सम्बंधित विभागों को शिक्षामित्रो की वेदना को गंभीरता से लेना चाहिए और जल्द से जल्द अपना रूख साफ करना चाहिए,जिससे शिक्षामित्रो के मन से संशय दूर हो सकें. ओमकार मणि त्रिपाठी 

आओ मिलकर दिए जलाए

भारतीय संस्कृति में अक्टूबर नवम्बर माह का विशेष महत्व् है,क्योंकि यह महीना प्रकाशपर्व दीपावली लेकर आता है.दीपावली अँधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है भौतिक रूप से दीपावली हर साल सिर्फ एक साँझ की रौशनी लेकर आती है और साल भर के लिए चली जाती है,किन्तु प्रतीकात्मक रूप से उसका सन्देश चिरकालिक है.प्रतिवर्ष दीपपर्व हमें यही सन्देश देता है कि अँधेरा चाहे कितना ही सघन क्यों न हो,चाहे कितना ही व्यापक क्यों न हो और चाहे कितना ही भयावह क्यों न हो,लेकिन उसे पराजित होना ही पड़ता है.एक छोटा सा दीप अँधेरे को दूर करके प्रकाश का साम्राज्य स्थापित कर देता है. अंधेरे का खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता,खुद का कोई बल नहीं होता,खुद की कोई सत्ता नहीं होती.अँधेरा प्रकाश के अभाव का नाम है और सिर्फ उसी समय तक अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है,जब तक प्रकाश की मौजूदगी न हो.अँधेरा दिखाई भले ही बहुत बड़ा देता हो,लेकिन इतना निर्बल होता है कि एक दीप जलते ही तत्काल भाग खड़ा होता है.दीपक प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक से हम ऊंचा उठने की प्रेरणा हासिल करते हैं। शास्त्रों में लिखा गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलने से ही जीवन में यथार्थ तत्वों की प्राप्ति सम्भव है। अंधकार को अज्ञानता, शत्रु भय, रोग और शोक का प्रतीक माना गया है। देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, अर्थात दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है। आज बाहर के अँधेरे से ज्यादा भीतर का अँधेरा मनुष्य को दुखी बना रहा है.विज्ञानं ने बाहर की दुनिया में तो इतनी रौशनी फैला दी है,इतना जगमग कर दिया है कि बाहर का अँधेरा अब उतना चिंता का विषय नहीं रहा,लेकिन उसी विज्ञानं की रौशनी की चकाचौंध में भीतर की दुनिया हीन से हीनतर बनती जा रही है,जिसका समाधान तलाश पाना विज्ञान के बस की बात नहीं है.भीतर के अँधेरे से मानव जीवन की लड़ाई बड़ी लम्बी है.जब भीतर का अँधेरा छंटता है.तो बाहर की लौ जगमगा उठती है ,नहीं तो बाहर का घोर प्रकाश भी भीतर के अँधेरे को दूर नहीं कर पाता.  हममे से कितने हैं जो हैप्पी दीपावली के शोर के बीच सघन निराशा को अपने अन्दर दबाये रहते हैं | उनके लिए दीपावली मात्र एक परंपरा है जिसे निभाना है | यंत्रवत दीपक ले आये , यंत्रवत झालरे सजा दीं  व् यंत्रवत हैप्पी दीपावली का उद्घोष कर दिया |सच्चाई ये है की जब अँधेरा भीतर की दुनिया में हो सब कुछ यंत्रवत हो जाता है |भाव्हें मशीन |  तभी हमारी संस्कृति में आत्मदीपो भव की परिकल्पना की गयी है | स्वयं दीपक बन जाना | स्वयं भी प्रकाशित होना और दूसरों को भी प्रकाशित करना | जैसा की कबीर दास जी कहते हैं की …  जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरी हैं मैं नाहीं  सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देखा माहिं || पर ये दीपक दिखे कैसे ? क्या ये इतना सहज है | जीवन के तमाम जरूरी गैर जरूरी कर्तव्य व् रिश्तों के बंधन हमें रोकते हैं | अत : अन्दर तक ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुँच पाता | परन्तु आत्म दीपक बनने में एक शाब्दिक बाधा है |  शाब्दिक इसलिए क्योंकि हम शब्द को पकड़ते हैं अर्थ को नहीं | जब हम आत्म दीप बनने की राह पर होते हैं तो हम दिया बन जाते हैं | मिटटी का दिया | जो दूसरों को प्रकाश देता है पर उसके खुद के नीचे अँधेरा होता है | ऐसा क्यों है ? दीपक बन गए यानी मात्र प्रवचन दिए | खुद में सुधार नहीं किया | अपने अन्दर अँधेरा ही रहा | मिटटी का दीप अर्थात शरीर बोध | आत्मदीप बनने का अर्थ है ज्योति बन जाना | ज्योति के नीचे अँधेरा नहीं होता | सिर्फ प्रकाश होता है | ज्योति के नीचे अँधेरा हो ही नहीं सकता | ज्योति सिर्फ प्रकाश  स्वरुप  है | दीपक उल्टा भी हो तो भी ज्योति ऊपर की ओर भागती है | क्योंकि उसने दीपक अर्थात मिटटी से स्वयं को अलग कर लिया है |शरीर से ऊपर आत्मतत्व को पहचान लिया है | पर कैसे ? वस्तुतः भीतर की दुनिया का अँधेरा सिर्फ सकारात्मक सोच और प्रेरक विचारों से ही दूर किया जा सकता है.भीतर का अँधेरा दूर करने के लिए आत्मतत्व को पहचानना जरूरी है और ” अटूट बंधन ” का सिर्फ यही मकसद है कि सकारात्मक चिंतन का इतना प्रचार-प्रसार हो कि पूरी धरा से निराशा के अँधेरे का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाये.हमारी आपसे यही अपील है कि एक दिया हमने जलाया है और आप भी हमारे साथ आइये,एक दिया आप भी जलाइए और दीप से दीप जलाने का यह सिलसिला तब तक चलता रहे,तब तक मानव मन से अँधेरे का समूल नाश नहीं हो जाता | आप सभी को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ओमकार मणि त्रिपाठी  यह लेख लखनऊ से प्रकाशित दैनिक  समाचार पत्र ” सच का हौसला ” व् राष्ट्रीय  हिंदी मासिक पत्रिका ” अटूट बंधन ” के संपादक स्व . श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी का है | स्व . त्रिपाठी जी ने अपने जीवन काल में तमाम पुस्तकों का अध्यन किया व्अ ज्ञान को ही सर्व श्रेष्ठ माना | ज्ञान का प्रचार प्रसार उनके जीवन का उद्देश्य था | अपनी अनुपम सोंच व् जुझारू व्यक्तित्व के लिए सदा जाने जाते रहेंगें | हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से उनके लेखों व् विचारों से समय – समय  पर आपको परिचित करवाते रहेंगे | उम्मीद है ” आओ मिलकर दिए जलायें ” लेख आपको पसंद आया होगा | पसंद आने पर इसे शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |  वैचारिक लेखों व् उत्तम साहित्य के लिए आप हमारा ई मेल सब्स्क्रिप्शन लें व् समस्त सामग्री को सीधे अपने ई मेल पर प्राप्त करें | यह भी पढ़ें ……… दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

दीपावली पर जलायें विश्व एकता का दीप

– डॉ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) कितने भी संकट हो प्रभु कार्य समझकर विश्व एकता के दीप जलाये रखना चाहिए :- कितने ही महान कार्य संसार में सम्पन्न हुए और व्यापक बने हैं, जिनके मूल में मनस्वी लोगों के संकल्प और प्रयत्न ही काम करते हैं। संकल्प और निश्चय तो कितने ही व्यक्ति करते हैं, लेकिन उन पर टिके रहना और अंत तक निर्वाह करना हर किसी का काम नहीं। विरोध, अवरोध सामने आने पर कितने ही हिम्मत हार बैठते हैं और किसी बहाने पीछे लौट पड़ते हैं, पर जो हर परिस्थिति से लोहा लेते हुए अपने पैरों अपना रास्ता बनाते हैं और अपने हाथों अपनी नाव खेकर उस पार तक पहुँचते हैं, ऐसे मनस्वी विरले ही होते हैं। मनोबल ऐसे मनस्वियों के साहस का नाम है, जो समझ-सोचकर कदम उठाते और उसे अपने संकल्प से पूरा करते हैं। नाविक क्यों निराश होता है! यदि तू हृदय निराश करेगा जग तेरा उपहास करेगा। यदि तूने खोया साहस तो ये जग और निराश करेगा, अरे अंधेरी रात के पार साहसी नव प्रभात होता है! आज विश्व एकता की शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसलिए जीवन कितने संकटों से घिरा हो विश्व एकता रूपी विचार के दीप जलाये रखना चाहिए। (2) अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है एक दीप जलायें :- ताजी हवा के लिए अपने घर की खिड़की खुली रखनी चाहिए। इसी प्रकार संसार से ज्ञान लेने के लिए मस्तिष्क के कपाट खुले रखना चाहिए। यह युग की मांग है अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है विश्व एकता के दीप जलायें। हमारे चारों ओर प्रकृति का आलोक बिखरा पड़ा है। इसे देखने के लिए अपनी आंखें खोलने की आवश्यकता है। अच्छाई का प्रकाश फैलाने के लिए अपने को समर्पित करने के लिए आगे आये। अन्धकार का कोई अस्तिव नहीं होता प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है। हमें सारे संसारवासियों से प्यार करना चाहिए तथा लोक कल्याण की भावना से संसार में रहना चाहिए। (3) वसुधा को कुटुम्ब बनाने का समय अब आ गया है :- वर्तमान में सारा विश्व छः महाद्वीपों रूपी छः कमरों के घर की तरह सिमटता जा रहा है। वसुधा को कुटुम्ब बनाने की कल्पना साकार होने जा रही है। ऐसे परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जिसमें जाति, धर्म, ऊँच-नीच, रंग-भेद का कोई अस्तित्व तथा अर्थ नहीं रह गया है। आधुनिक संचार माध्यमों ने विश्व की हजारों किलो मीटर की दूरियों को खत्म कर दिया है। मानव जाति को इस तीव्र संचार माध्यमों का शीघ्रता के साथ वसुधा को कुटुम्ब बनाने के लिए सदुपयोग करना चाहिए। (5) हमारे प्रत्येक कार्य विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बने :- हर व्यक्ति के अंदर से आवाज उठती है। इस आवाज का अस्तित्व अच्छे व्यक्ति तथा बुरे व्यक्ति दोनों में होता है। जिस काम को करने से विवेक रोके उसे नहीं करना चाहिए तथा जिस कार्य को करने को विवेक कहे उसे पूरे मनोयोग से करते हुए अपने प्रत्येक कार्य को विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बनाना चाहिए। जो प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को जान जाता है उसे धरती, आकाश एवं पाताल की कोई भी शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती। (4) जिन्दगी का सफर करने वाले अपने विश्व एकता का दीया तो जला लें :- जगत भर की रोशनी के लिए करोड़ों की जिन्दगी के लिए सूरज रे जलते रहना, सूरज रे जलते रहना! हमेशा सोचिए! मैं भारत के लिए क्या कर सकता हूँ? मैं सारे विश्व के लिए क्या कर सकता हूँ? एक तरफ लोक कल्याण की ओर जाना वाला पथ है, एक तरफ एकमात्र अपने स्वार्थ की ओर जाने वाला पथ है। संसार में सदैव विश्व एकता अर्थात लोक कल्याण की उंगली पकड़कर चलना चाहिए। तभी हम भटकने से बच सकते है। जिन्दगी का सफर करने वाले अपने मन का दीया तो जला लें। रात लम्बी है गहरा अंधेरा, कौन जाने कहां हो सवेरा। रोशनी से डगर जगमगा लें, अपने मन में विश्व एकता का दीया तो जला लें। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विश्व एकता की शिक्षा संसार का सबसे शक्ति हथियार है जिससे विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। धरती से युद्धों तथा आतंकवाद को समाप्त करने के लिए विश्व एकता की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचायें। ’’’’’ यह भी पढ़ें …. दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

अटूट बंधन

अटूट बंधन ब्लॉग की नींव “सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय” की भावना से प्रेरित हो कर रखी गयी है | इसके मुख्य उद्देश्य निम्न हैं … हमारे जीवन में रोटी कपडा और मकान के बाद जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है ,वो है हमारे रिश्ते | जहाँ रोटी कपडा और मकान भैतिक आवश्कताओं के लिए जरूरी हैं ,वहीं रिश्ते भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए जरूरी हैं | आज के समय में जब रिश्ते टूट और बिखर रहे हैं तब बहुत जरूरी है उन्हें संभालना , सहेजना ताकि हम भावनात्मक रूप से संतुष्ट रह सके | भावनात्मक संतुष्टि के बिना सारी खुशिया बेकार लगती है | हम अटूट बंधन ब्लॉग पर ऐसे जानकारीयुक्त लेख ले कर आयेगे जो आपके रिश्तों को सँभालने में आपकी सहायता करेंगे व्  आपको गलत रिश्तों से निकलने की समझ भी देंगें | जीवन है तो समस्याएं हैं | जब समस्याएं आती हैं तो हमारा दिमाग काम नहीं करता | उस समय लगता है कोई रास्ता दिखा दे | हमारे ब्लॉग में “अगला कदम” वही हाथ है जो उस समय आपको सहारा देगा , रास्ता दिखाएगा जब आप समस्या से जूझ रहे हो और उसका हल खोज रहे हों | इसमें रिश्तों , कैरियर , स्वाथ्य , प्रियजन की मृत्यु , अतीत में जीने आदि बहुत सारी समस्याओं को उठाया है | ये योजना मेरे दिल के बहुत करीब है | आशा है सब को इससे लाभ होगा | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता | सफलता के लिए सभी प्रयास भी करते हैं | सफलता आशा और उत्साह देती है वहीँ असफलता मन को तोड़ देती है | हालांकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती | पर निराशा के आलम में जरूरी होता है कोई ऐसा व्यक्ति जो उस निराशा से निकल दे और जीवन में फिर से जिजीविषा भर दे | “अटूट बंधन “ ब्लॉग का प्रयास है की वो सकारात्मक विचरों का प्रचार प्रसार  करेगा जिससे लोग निराशा से बाहर निकल कर लौकिक व् परलौकिक सफलता प्राप्त कर सकें | साथ ही स्वस्थ , संतुष्ट व् उर्जा से भरे आपके व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होगा | अटूट बंधन ब्लॉग प्रतिभाशाली लोगों को मंच देने की कोशिश है |हमारा प्रयास रहेगा की आप की रचनाओं को ज्यादा से ज्यादा पाठक पढ़ सके | जो लोग भी अटूट बंधन में अपनी रचनाएँ भेजना चाहते हैं वो editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें | रचना पसंद आने पर प्रकाशित की जायेगी |         उम्मीद है अच्छी भावना से शुरू की गई ये कोशिश कामयाब होगी और पाठकों के साथ मेरा “अटूट बंधन”                                                        बना रहेगा |   वंदना.  बाजपेयी  फाउंडर ऑफ़ अटूट बंधन .कॉम 

लक्ष्मीजी का आशीर्वाद

दीपावली के दिन लक्ष्मी ,गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है । विघ्न विनाशक ,मंगलकर्ता ,ऐश्वर्य ,भोतिक सुखों ,धन -धान्य ,शांति प्रदान करने के साथ साथ विपत्तियों को हरने वाले लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर का महापूजन अतिफलदायी होता है ।  प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी जी का भी उल्लेख मिलता है । अलक्ष्मी जी को “नृति “नाम से भी जाना जाता है तथा दरिद्रा के नाम से पुकारा जाता है । लक्ष्मी जी के प्रभाव का मार्ग धन -संपत्ति ,प्रगति का होता है वही अलक्ष्मीजी दरिद्रता ,पतन,अंधकार,का प्रतीक होती है । लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )में संवाद हुआ । दोनों एक दूसरे का विरोध करते हुए कहने लगी -“में बड़ी हूँ । ” लक्ष्मीजी ने कहा कि देहधारियों का कुल शील और जीवन में ही हूँ । मेरे बिना वे जीते हुए भी मृतक के समान है ।  अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )ने कहा कि “में ही सबसे बड़ी हूँ ,क्योंकि मुक्ति सदा मेरे अधीन है । जहाँ में हूँ वहां काम क्रोध ,मद लोभ ,उन्माद ,इर्ष्या और उदंडता का प्रभाव रहता है । “ अलक्ष्मी(दरिद्रा ) की बात सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- मुझसे अलंकृत होने पर सभी प्राणी सम्मानित होते है । निर्धन मनुष्य जब दूसरों से याचना करता है तब उसके शरीर से पंच देवता -बुद्धि ,श्री ,लज्जा ,शांति और कीर्ति तुरंत निकलकर चल देते है । गुण और गोरव तबी तक टिके रहते है जब तक कि मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फेलाता । अत: दरिद्रे ।. में ही श्रेष्ठ हूँ “। दरिद्र ने लक्ष्मीजी के दर्पयुक्त तर्क को सुनकर कहा-“जिस प्रकार मदिरा पीने से भी पुरुष को वेसा भयंकर नशा नहीं होता, जेसा तेरे समीप रहने मात्र से विद्वानों को भी हो जाता है । योग्य, कृतज्ञ ,महात्मा ,सदाचारी। शांत ,गुरू सेवा परायण ,साधु ,विद्वान ,शुरवीर तथा पवित्र बुद्धि वाले श्रेष्ठ पुरुषों में मेरा निवास है । तेजस्वी सन्यासी मनुष्यों के साथमे रहा करती हूँ । ‘ इस तरह विवाद करते हुए समाधान हेतु ब्रहमाजी के पास दोनों पहुंची ब्रहम्माजी ने कहा कि -पृथ्वी और जल दोनों देवियाँ मुझसे ही प्रकट हुई है । स्त्री होने के कारण वे ही स्त्री के विवाद को समझ सकती है । नदियों में भी गोतमी देवी सर्वश्रेष्ठ है । वे पीडाओं को हरने वाली तथा सबका संदेह निवारण करने वाली है । आप दोनों उन्ही के पास जाएँ । “ लक्ष्मी जी और दरिद्रा बड़ी कोन है के विवाद को सुलझाने हेतु गोतमी देवी के पास पहुँची । गोतमी देवी(गंगाजी )ने कहा कि ब्रह्श्री ,तपश्री ,यग्यश्री ,कीर्तिश्री ,धनश्री ,यशश्री ,विधा ,प्रज्ञा ,सरस्वती ,भोगश्री ,मुक्ति ,स्मृति ,लज्जा ,धृति ,क्षमा ,सिद्धि ,वृष्टि ,पुष्टि ,शांति ,जल ,पृथ्वी ,अहंशक्ति ,ओषधि ,श्रुति ,शुद्धि ,रात्रि ,धुलोक ,ज्योत्सना ,आशी ,स्वास्ति ,व्याप्ति ,माया ,उषा ,शिवा आदि जो कुछ भी संसार में विद्दमान है वह सब लक्ष्मीजी द्वारा व्याप्त है । ब्राहमण ,धीर क्षमावान ,साधु ,विद्द्वान ,भोग परायण तथा मोक्ष परायण पुरुषों जो -जो श्रेष्ठ सुंदर है वह लक्ष्मी जी का ही विस्तार है। दरिद्रा ,क्यों तू लक्ष्मीजी कके साथ स्पर्धा करती है । जा चली जा यहाँ से कहकर दरिद्रा को भगा दिया । इसी कारण तब से गंगाजी का जल दरिद्रा का शत्रु हो गया । कहते है कि तभी तक दरिद्रा का कष्ट उठाना पड़ता है जब तक गंगाजी के जल का सेवन न किया जाए । इसीलिए गंगाजी के जल में स्नान और दान करने से मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुण्यवान होता है ,साथ ही उस पर लक्ष्मीजी का आशीर्वाद भी बना रहता है । दिवाली के दीपक के प्रकाश में आत्ममंथन ,आत्मलोचन ,आत्मोउन्नति ,को प्राप्त करने की दिशा में अंधकार को उखाड़कर प्रकाश की राह पर चलने हेतु अन्यों को भी उन्नति -उजाले की रहा दिखाने का प्रयत्न करते आ रहे है । यही प्रकाश का आगमन ,आराध्य की तरह सर्वत्र पूजनीय तो है ही साथ ही लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर के स्वागत हेतु दीपों को जलाना दिवाली पर उनके आगमन के शुभ सूचक होते है ।  संजय वर्मा “दृष्टि 

दीपावली पर मिटाए भीतरी अन्धकार

 दीपावली पर मिटाए भीतरी अन्धकार  हम हर वर्ष दीपावली मनाते हैं | हर घर ,हर आंगन,हर गाँव ,हर बस्ती एक जगमग रौशनी से नहा उठती है | यूँ लगता है जैसे सारा संसार एक अलग ही पोशाक धारण कर लिया है | इस दिन मिट्टी के दिये में दीप जलाने की मान्यता है | क्योंकि मिट्टी के दिये में हमारी मिट्टी की खुश्बू है,मिट्टी का दिया हमारा आदर्श है,हमारे जीवन की दिशा है,संस्कारों की सीख है,संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का सबसे अच्छा माध्यम है | दीपावली अपने आप में बेहद ही रौशनी से परिपूर्ण आस्था का त्यौहार है पर इसकी सार्थकता तभी पूर्ण है जब हमारे मन के भीतर का अंधकार भी दूर हो | यह त्यौहार भले ही सांस्कृतिक त्यौहार है पर ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रसंग से भी इस पर्व की महता जुडी है | दीपावली लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व है | ‘अंधकार से प्रकाश की ओर प्रशस्त’ ही  इस पर्व का मूल मतलब है  ज्ञान ही मिटाता है भीतरी अन्धकार  ज्ञान की प्रकाश ही असली प्रकाश है | हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है ,वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता हैं | ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है, जब ज्ञान का दीप प्रकाशित होता है  तो भीतर और बाहर दोनों आलोकित करता है | ज्ञान के प्रकाश की हमें हर पल हर क्षण जरुरत है | जहाँ ज्ञान का सूर्य उदित हो गया वहां अंधकार टिक ही नहीं सकता | प्रयास हो की दीपावली पर ज्ञान के प्रकाश से भीतरी अंधकार मिटे  हलांकि दीपावली एक लौकिक पर्व है ,फिर भी यह केवल बाहरी  अंधकार को ही नहीं,बल्कि भीतरी अंधकार को भी मिटाने का पर्व बने ऐसी हमारी कोशिश होनी चाहिए | हम अपने भीतर धर्म और ज्ञान का दीप जलाकर मोह और लालच के अंधकार को दूर कर सकते हैं | हमें  अपने भीतर के सारे दुर्गुणों को मिटाकर उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित करना होगा तभी हमारा मनुष्य जीवन सार्थक और समृद्ध होगा | अगर हम  कभी अपनी सारी इन्द्रियों को विराम देकर एकाग्र मन से अपने अन्दर झांकना शुरू कर  दें तो यक़ीनन हमें एक दिन ऐसी झलक मिल जाएगी कि हमारा अंतर्मन रोमांचित एवं प्रफुलित हो जायेगा ,इसमें कोई संदेह नहीं ……! भीतर का जगत बहुत ही विशाल है ,यहाँ प्रकाश की लौ हमेशा प्रकाशित रहती है| यहाँ हर पल एक दिव्य ज्योत जलते रहती है | बस जरुरत है इसे अपने अन्दर प्रज्वलित करने का | दीपावली पर्व की सार्थकता ही है प्रकाशित करना   दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए हमें अपने अन्दर एक लौ प्रकाशित करना होगा क्योंकि दिया चाहे मन के अन्दर जले  या मन के बाहर उसका काम तो उजाला देना ही है ,सो वह अवश्य देगा | दीपावली का सन्देश है, हम जीवन से कभी विचलीत न हों और न ही कभी पलायन की सोंचें ,उन सबसे अलग हटकर जीवन को परिवर्तन दें क्योंकि पलायन किसी भी समस्या का हल नहीं बल्कि बुजदिली की निशानी है |                                                        संगीता सिंह ‘भावना’                                                सह-संपादक –त्रैमासिक पत्रिका                               करुणावती साहित्य धारा यही भी पढ़ें ……… आओ मिलकर दिए जलायें दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली

एक वर्ष : अटूट बंधन के साथ

प्रिय अटूट बंधन               आज तुम एक वर्ष के हुए और इसी के साथ हमारी मित्रता भी एक वर्ष की हुई। एक वर्ष की इस यात्रा में विभिन्न, पर नित नए कलेवर में नए-नए साहित्यिक पुष्प लिए तुम जब-जब हमारे सम्मुख आए….हमें सम्मोहित करते गए, अपने आकर्षण में बांधते गए। एक-एक कड़ी के रूप में सदस्य जुड़ते रहे कि आज अटूट बंधन परिवार के रूप में हम तुम्हें अपने संग लिए औरों के सम्मुख थोड़ा गर्व से, थोड़ा प्यार से इठलाते हुए, इतरा कर चलते हैं मानो कह रहे हों कि देखा हमारी एक वर्ष की यात्रा का यह मनोरम रूप कि अब इस यात्रा के दूसरे अध्याय को लिखने की और बढ़े जा रहे हैं।         व्यावसायिकरण के इस युग में जब रिश्तों से विश्वास उठने सा लगा था तब हौले से एक पदचाप सुनाई दी, जिसकी छुअन ने मन-प्राणों में एक सिहरन सी जगाई और देखा कि तुम्हारे रूप में एक देवदूत रिश्तों की गठरी लिए साहित्य के आँगन में हौले-हौले उतर रहा है, जिससे कोलाहित हुए धरती-गगन ! सुवासित हुए हृदयांगन ! उस गठरी से बिखरे मोती नए अर्थ लिए रिश्तों की बगिया सिंचित करने लगे। जीवन से हारे, एकाकी, पक्षियों, तितलियों, भौरों, जुगनुओं जैसे सभी हृदयों को अपनी ओर खींचने लगे।           और एक बात बताऊँ, शायद तुम्हें न भी मालूम हो कि हमारा साथ अभी तक फेसबुक के द्वारा हो पुष्पित-पल्लवित होकर इस मोड़ तक पहुँचा है। साकार रूप में तुम्हें देखना कितना रोमांचक होगा…..कम से कम अभी तो मेरे लिए यह कल्पना करना कठिन है।        तुम्हें नहीं पता अटूट बंधन कि तुम किस तरह मेरे सपनों का आसमान और उनकी उड़ान बन गए हो। तुम्हारे साथ-साथ मेरी सृजनशीलता को भी पंख लग गए हैं। मैं भी नित नए विचार-रंगों से तुम्हारा श्रृंगार करके तुम्हारे ही साथ-साथ विकास की उड़ान भरने के लिए अपने बंधे पंखों को खोल कर सपनों में सच का रंग भरने की और उन्मुख हो गयी हूँ। तुमने न जाने कितने मुझ जैसों को अपने बंधन में बाँध कर, अपना बना कर उत्साह, आत्मविश्वास, सृजनशीलता, नवीनता के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर किया है। तुम्हारे साथ उत्सवों के रंग चतुर्दिक बिखर कर अपनी द्विगुणित आभा से हमारे मनों में गहराई से उतर रहे हैं। कितना अच्छा और सुखद  लग रहा है विकास की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए तुम्हारे साथ कदम से कदम मिला कर चलना।        तुम इसी तरह नित नए रंग, नए विचार, नया कलेवर लिए हम सबके साथ अपने नाम को सार्थक करते हुए सबके मनों में प्रवेश करो।   बढ़े कदम बढ़ते रहें, नए कदम जुड़ते रहें   प्यार का ये कारवाँ, बस यूँ ही बढ़ता रहे।        जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं के साथ………..। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई

अटल रहे सुहाग : मैं आ रहा हूँ…..डॉ भारती वर्मा बौड़ाई

       मैं सदा उन अंकल-आंटी को साथ-साथ देखा करती थी। सब्जी लानी हो, डॉक्टर के पास जाना हो, पोस्टऑफिस, बैंक, बाज़ार जाना हो या अपनी बेटी के यहाँ जाना हो……हर जगह दोनों साथ जाते थे।उन्हें देख कर लगता था मानो एक प्राण दो शरीर हों। आज के भौतिकवादी समय को देखते हुए विश्वास नहीं होता था कि वृद्धावस्था में भी एक-दूसरे के प्रति इतना समर्पित प्रेम हो सकता है।            मैं जब-तब उनके यहाँ जाया करती थी। जैसे ही पहुँचती, अंकल कहते–आओ बेटा! देखो तुम्हारी आंटी ने मेरी किताब ही छीन कर रख दी! कहती है बस आराम करो। भला कैसे चलेगा इस तरह मेरा काम?           तब तक रसोई से आंटी की आवाज़ आती–कुछ भी शिकायत कर लो तुम बीना से, किताब तो तुम्हें नहीं ही मिलेगी। भूत की तरह बस चिपके रहते हो किताब से। न अपनी तबियत की चिंता न दवाई खाने की याद रहती है तुम्हें।              ऐसा भी नहीं था कि दोनों के विचार हर बात  में मिलते ही थे। मतभेद भी काफी रहता था। अंकल थे पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति, एक विद्वान् लेखक। काफी लोग उनके पास आया करते थे।उनका अधिकतर समय लिखने-पढ़ने में ही बीतता था। शेष समय अपने घर के अहाते में बागबानी करने में लगे रहते। फलों के खूब पेड़ लगा रखे थे उन्होंने। फूलों की भी बहुत जानकारी थी उन्हें। और आंटी गृहस्वामिनी थी, पर उनमें भी बहुत सी विशेषताएँ थीं। वे हाथ से बहुत अच्छे स्वेटर बनाती थी जो दिखने में मशीन के बने लगते थे। अपने सारे त्योहारों को पूरे मनोयोग, पूरी आस्था से मनाती थी। अंकल जितने अंतर्मुखी, आंटी उतनी ही बहिर्मुखी और मिलनसार। पर अंकल आंटी के हर काम में शामिल रहते…फिर चाहे वह बड़ियाँ-कचरियाँ बनाने का ही काम क्यों न हो। तीन बच्चे थे उनके। तीनों अपने-अपने परिवारों में आनंदपूर्वक रह रहे थे। आते-जाते रहते थे। बेटी एक ही शहर में रहती थी तो वो जब-तब उनके पास आती रहती थी और इस तरह अंकल-आंटी का जीवन भी अपनी गति से ठीक-ठाक चल रहा था।            पर जाने किसकी नज़र लगी उनकी खुशियों पर, कि आंटी की तबियत खराब रहने लगी। बेटी बीच-बीच में आती, फिर वह दोनों को अपने साथ ही ले गई अपने घर। कई जाँचों के बाद पता चला कि आंटी को गॉल ब्लैडर का कैंसर है। जिन आंटी ने अपने लिए कभी एक दिन भी अस्पताल में रह कर नहीं देखा था, अब उन्हें हर सप्ताह-पंद्रह दिन में चिकित्सा के लिए दिल्ली जाना पड़ने लगा। तब अंकल आंटी की इंतजार का समय उनकी बातें करके,उन्हें याद करके बिताते थे। जब उन्हें आंटी की बीमारी के बारे में बताया गया था तो वे फूट-फूट कर रो पड़े थे और उन्हें समझाना ही मुश्किल हो गया था। दोनों के जीवन का रूप ही बदल गया था। एक-दूसरे के लिए सबकुछ कर दें कि करने के लिए कुछ बाकी न रह जाए…इस भावना से दोनों एक-दूसरे के लिए जीने लगे थे। देखने पर मन भर-भर आता था।          करवाचौथ के बाद उनसे मिलने गई थी तो दोनों मुझे देख कर बहुत खुश हुए थे। मन का दुःख छिपाने की बहुत कोशिश कर रहे थे पर चेहरे पर दुःख साफ़ नज़र आ रहा था।        और सुनाओ बेटा! कैसा रहा तुम्हारा त्यौहार? हमने भी बस जैसे-तैसे मना ही लिया। मैंने बरामदे में कुर्सी पर बैठ कर तुम्हारे अंकल के साथ चाँद देखा और साथ मिल कर जल चढ़ाया। पता नहीं आगे यह सौभाग्य हमें मिले न मिले…कहते-कहते दोनों की आँखों में आँसू आ गए थे। मेरी भी आँखें आँसुओं से भीग गयी थी। मन ही मन दुआ कर रही थी कि आंटी ठीक हो जाएं और पहले की तरह  दोनों अपना जीवन सामान्य रूप से बिताएँ। पर ईश्वर ने तो जैसे स्वयं उन्हीं के मुख से बिछड़ने का सत्य बुलवा दिया था।         पर चाहने से भी कुछ हुआ है! एक दिन आंटी के घर सवेरे-सवेरे एम्बुलेंस आकर रुकी। घर से तुरंत भागी गयी। पता चला आंटी नहीं रहीं। मुझे अंकल की चिंता होने लगी कि अब वे कैसे रहेंगे जिन्होंने अपने जीवन का एक भी पल आंटी के बिना नहीं बिताया था। उनकी हालत देख कर अपने आँसू रोकने मुश्किल हो रहे थे। उनसे मिली तो देखते ही रोने लगे–देखा छोड़ गयी तुम्हारी आंटी मुझे! मैं उन्हें कहता था कि जब तुम ठीक हो जाओगी तो हम एक पार्टी रखेंगे और सबको बुलाएँगे। पर मुझे क्या पता था कि उनकी तेरहवीं में मुझे सबको बुलाना पड़ेगा।        इसके बाद भी मैं अंकल से मिलने जाती रही। मुझे देखते ही हँस कर आ बेटी..कहने वाले अंकल एकदम शांत से हो गए थे। बात करते हुए बातें कम और रोते ज्यादा थे। सोचती थी कि अपनी बेटी, जिनके अंकल-आंटी बहुत नज़दीक थे, के पास रहते हुए वे अपने को संभाल लेंगे….पर मैं गलत थी। उनकी शांति तो तूफ़ान के आने के पहले की शांति थी। कल करवाचौथ है तो कुछ तैयारियाँ आज ही करके रख दूँ ताकि कल शॉपिंग करने जा सकूँ..सोच कर काम करने में लग गई। मुझे क्या पता था कि यह सब नियति का सब पूर्वनियोजित है जिससे मैं कल अंकल को अंतिम विदाई दे सकूँ।        अगले दिन नहाने के लिए कपड़े निकाल ही रही थी कि उनकी बेटी का फोन आया। धड़कते मन से फोन कान पर लगाया ही था कि वो रोते-रोते बोली–बीना! पापा भी मुझे छोड़ गए। वो करवाचौथ पर मेरी माँ को अकेला कैसे देख सकते थे ? पर बीना! मैं क्या करूँ अब ?       और मैं उनके अंतिम दर्शन करके, उन्हें अंतिम विदाई देकर रोते-रोते सोच रही थी की सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा भला और क्या होगी कि करवाचौथ पर रात को चंद्र-दर्शन और जल चढ़ा कर पूजा संपन्न करवाने के लिए वे अपनी भौतिक देह को छोड़ कर अपनी संगिनी के पास पहुँच, सदा के लिए एकाकार हो गए थे, अटूट बंधन में बंध गए थे।      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कॉपीराइट@डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई

आत्मविश्वास बढ़ाना है तो पीला रंग अपनाइए

ढोलक की थाप पर बजता एक लोक गीत तो आप ने जरूर सुना होगा ……….. “बन्नी पीली कैसे पड गयी पीहर में रह के  रे ! बन्ने आई तेरी याद फिकर कर के “ या फिर अंग्रेगी की कहावत “येल्लो -येल्लो डर्टी फेलो “इन सब को सुन कर तो ऐसा लगता है कि पीला रंग तकलीफ बीमारी या दुःख का प्रतीक है……….. पर जरा रुकिए याद करिए पीली सरसों के खेत…..जो समृधि और प्रेम की दास्ताँ है ,सूरजमुखी और गेंदे के पीले फूल जो चहरे पर बसबस ही मुस्कान ले आते है और तो और हिन्दू धर्म के सारे भगवान् पीताम्बरधारी हैं पीला पटुका ओढ़े हैं यहाँ तक की उनके चित्रों में सर के पीछे स्वर्णिम पीला चक्र है .तो कुछ तो ख़ास है इस पीले रंग में तो आइये जानते है ….. “पीले रंग के गुण …. ऊर्जा बढ़ाये पीला रंग :- ************************ रंगों का उर्जा से गहरा तालमेल है |इतना तो आप जानते ही होंगे की हर रंग से तरंगे उत्सर्जित होती हैं .पीला रंग  ऐसी तरंगे पैदा करता हैं जो शरीर को उर्जावान और आत्मविश्वासी बनाता है। साथ ही आपको अपने आत्मविश्वास से सामने वाले को प्रभावित करवाने की क्षमता भी उत्पन्न करता हैं। प्राचीन समय से ही पीले रंग को उर्जावान रंगों की श्रेणी में रखा गया जब पीले रंग के वस्त्र के रूप में पहनते हैं तो आपकी तरक्की और सफलता होना तय हो सकता है। शोध क्या कहते हैं :- ********************* हाल ही में अमेरिका में हुए शोध से ये बात सामने आई है कि पीला रंग इंसान की उमंग को बढ़ाने के साथ-साथ दिमाग को भी अधिक सक्रिय करता है। यह अध्धयन अमेरिका में 500 से अधिक महिलाओं पर 3 साल तक किया गया। जिसमें पता लगा कि जो महिलाएं महीने में पीले रंग के कपड़ों को ज्याद पहनती थी उन महिलाओं की कार्यक्षमता और आत्मविश्वास दूसरी महिलाओं की तुलना में काफी अधिक था। अध्धयन में यह बात भी सामने आई की इन महिलाओं को अपने कार्य के साथ-साथ अपने को स्वस्थ बनाने का ध्यान भी अधिक आया। शेधकर्ताओं का मानना है कि पीले रंग के कपड़े पहने से दिमाग का सोचने समझने वाला हिस्सा अधिक सक्रिय हो जाता है जो इंसान के अंदर उर्जा पैदा करता है। यह रंग इंसान को खुशी और उंमग प्रदान करता है। शायद कुछ लोग ही यह बात जानते हैं कि भारत में बृहस्पतवार को पीले वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है। जिसका महत्व उर्जा से ही है। सुन्दरता बढाए पीला रंग:- *****************************कौन है जो सुन्दर नहीं दिखना चाहता जितना यह सच है की बाहरी सुन्दरता का कोई महत्त्व नहीं होता उतना ही यह भी सच है कि .सुन्दरता से सेल्फ लव (आत्मस्वीकारोक्ति ) और कॉन्फिडेंस दोनों बढ़ता है …….. अब हमारी शक्ल  -सूरत तो ईश्वर की देंन  है पर जरा सी कोशिश से आत्म विश्वास बढ़ सके तो हर्ज ही क्या है? देखा गया है जो लोग पीले वस्त्र पहनते हैं वे दूसरे अन्य लोगों की तुलना में अधिक आकर्षक और सुंदर लगते हैं। पीले वस्त्र पहनने से आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है। साथ ही जो उर्जा आपको इन वस्त्रों को पहनने से मिलती है उससे आप अपने सामने वाले लोगों को अधिक प्रभावित कर सकते हैं  पीले रंग से निकलने वाली तरंगे वातावरण में एक ओरा बनाती है। जो किसी को भी प्रभावित कर सकती है।देर कैसी आप भी अपने वस्त्रों की श्रेणी में पीले वस्त्र अधिक से अधिक शामिल करें। ताकी आप भी अपने जीवन का उर्जावान बना सकें। वस्त्र ही नहीं भोजन भी :- **************************** पीले रंग के करम केवल वस्त्रों पर ही नहीं हैं यह भोजन में समां कर टेस्ट बड्स के सहारे सहारे हमारे शरीर में घुस कर हमारे स्वास्थ्य को भी चुस्त –दुरुस्त करता है |जान लीजिये  यदि आप पीले रंग के खाद्य का इस्तेमाल करते हैं तो आप स्वस्थ भी बने रहेंगे। आपने यह तो जरूर ही पढ़ा-सुना  होगा की पीले रंग के फलों ,सब्जियों में विटामिन a होता है जो आँखों की रोशिनी की रक्षा करता है .पीले रंग के फल और सब्जियां हमारे शरीर की प्रतिरोधिक शक्ति को बढ़ाते हैं। यह पेट संबंधी बीमारियों को भी दूर करते हैं। पीले फल जैसे पपीता, संतरा आदि और पीली सब्जियों में जैसे पीली शिमला मिर्च आदि का इस्तेमाल बहुतायत से करने वालों को डॉक्टरों के यहाँ कम चक्कर लगाने पड़ते हैं | क्या कहता है फेंग -सुई :- ***************************इस संदर्भ में चीन के फेंगशुई विशेषज्ञ चांग वान का कहना है कि पीले रंग के परिधान हमारे दिमाग के उस हिस्से को अधिक एलर्ट करते हैं, जो हमें सोचने-समझने में मदद करता है। यही नहीं पीला रंग खुशी का अहसास कराने में भी मददगार होता है। वान का कहना है कि पीले रंग के परिधान पहनने के साथ ही हमें सप्ताह में दो-तीन बार पीले रंग के खाद्य पदार्थ जैसे पीले फल, पीली सब्जियां और पीले अनाज का भी सेवन करना चाहिए। इससे हमारे शरीर में मौजूद हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं। ये हानिकारक तत्व शरीर के अंदर बने रहने पर नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं |अवसाद दूर भगाना हो तो पीला रंग चमत्कारी प्रभाव उत्त्पन्न करता है |                 अब पीले रंग में इतने फायदे हैं तो फिर देर कैसी जल्दी से अलमारी से पीले रंग के कपडे निकालिए ,पीले फूलों से घर को सजाइये साथ की ही साथ पीली फल सब्जियां खाइए, क ….. और ऊर्जा ,आत्मविश्वास ख़ुशी व् सुन्दरता से भर जाइए …. और गुनगुनाइए ……….. आई झूम के वसंत झूमों संग -संग में  रंग लो- रंग लो दिलो को पीले रंग में  प्रियंका सेठ  बी .टेक  सूरत (गुजरात )

फ्रेंडशिप डे पर विशेष :कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं

कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं  दोस्त एक छोटा सा शब्द पर अपने अन्दर बहुत सारे अहसास समेटे हुए |दो लोग जिनमें कोई खून का रिश्ता नहीं होता पर तब भी  भावनात्मक रूप से एक –दूसरे से गहरे से जुड़ जाते हैं | एक दूसरे के साथ समय बिताना आनंददायक लगने  लगता है  | एक दूसरे के  बिना जीना असंभव लगने लगता है एक दूसरे के सुख –दुःख में पूरी शिद्दत से  भागीदार बनना जैसे सांसों का हिस्सा बन जाता है | दोस्त के पास या दूर रहने पर दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ता वो यथावत रहती है |एक सच यह भी है कि  हमारे वही रिश्ते चलते हैं जिनमें सखा भाव हो | चाहे वो भाई –बहन का रिश्ता हो , भाई –भाई का पति –पत्नी का | कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे अपना दोस्त समझना चाहिए |         रिश्तों में कितनी भी दोस्ती हो पर  दोस्ती शब्द कहते ही सबसे पहले कृष्ण सुदामा का ख़याल आता है | एक राजा एक भिखारी पर उनकी मित्रता का क्या कहना “ जहाँ दिल एक हों वहां ऊँच  –नीच अमीरी गरीबी कहाँ दीवार बन पाती है | सूरदास ने अपने लाचार गरीब मित्र से मिलने पर श्री कृष्ण की मनोदशा का कितना सुन्दर वर्णन किया है ………. ऐसे बेहाल बेमायन सो  पग कंटक जाल लगे पुनि जोए । हाय महादुख पायो सखा तुम आये इते न किते दिन खोये ॥ देख सुदामा की दिन दशा करुणा करके करूणानिधि रोये । पानी परात को हाथ छुयो नहीं नैनं के जल सों पग धोये ॥             तुलसी दास जी ने तो  सुग्रीव और प्रभु राम की मित्रता के पावन अवसर पर अच्छे और बुरे मित्र के सारे लक्षण ही बता दिए ……… जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समना देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई॥ बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥ उन्होंने बुरे मित्र के भी लक्षण बताये हैं ………. आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई॥ जाकर ‍िचत अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥ सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें                मित्र वो भी बुरा …….. कहने सुनने में अजीब लगता है पर ऐसे मित्रों से हम सब को जिंदगी में कभी न कभी दो चार होना ही पड़ता है | तभी तो शायद दादी माँ के ज़माने से चली आ रही  कहावत आज भी सच है “ पानी पीजे छान के और दोस्ती कीजे जान के “ मुंह में राम बगल में छुरी वाले ऐसे दोस्त अवसर देखते ही अपना  असली रंग दिखा देते हैं | और भोले भाले लोग दिल पकडे आह भरते रह जाते हैं | कोई ऐसा ही दोस्त मिला होगा तभी तो अब्दुल हमीद आदम कह उठते हैं ……. “दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं दोस्तों की मेहरबानी चाहिए “ जनाब हरी चन्द्र अख्तर तो साफ़ –साफ़ ताकीद करते हैं ……… हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया              पर मुझे लगता है कहीं न कहीं इसमें दोस्त की गलती नहीं हैं | उस शब्द की गलती हैं जिसे हम हर किसी को बाँटते फिरते हैं | आम चलन की भाषा ने दोस्ती शब्द को बहुत छोटा कर दिया है | यहाँ हर जान –पहचान दुआ सलाम करने वाले के लिए परिचय में दोस्त शब्द जोड़ दिया जाता है | शायद अहमद फ़राज़ के शेर में मेरी ही इस बात का समर्थन है ……… तुम तकल्लुफ को इख्लास समझते हो फ़राज़ दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला                   मैं सोचती हूँ आज के ऍफ़ .बी युग में मेरे ५००० फ्रेंड पर इतराने वालों को के बारे में फ़राज़ साहब क्या लिखते ? पर लोगों की भी गलती नहीं दोस्ती ,और दोस्तों की संख्या हमें सामाजिक स्वीकार्यता का अहसास कराती है | जब  रिश्ते –नाते मशीनी हो गए हैं तो अकेलापन घेरता है | ऐसे में भावनात्मक सुरक्षा का ये सहारा बहुत जरूरी हो जाता है | हम आज के युग में ऍफ़ .बी फ्रेंड्स की अनिवार्यता को नकार नहीं सकते …………… झूठा ही सही कम से कम यह अहसास तो है वक्क्त ,बेवक्त कोई अपना मेरे पास तो है             वैसे दोस्ती तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकती है | पर बचपन की दोस्ती की बात ही अलग है | साथ साथ खेलना कूदना पढना ,लड़ना झगड़ना | बिलकुल पारदर्शी रिश्ता होता है | जहाँ हम एक दूसरे को उम्र के साथ बढ़ते हुए पढ़ते हैं | इसमें थोड़ी मीठी सी प्रतिस्पर्धा भी होती है | भला उसकी गुड़ियाँ मेरी गुड़ियां से महंगी कैसे , मेरे नंबर कम कैसे ? पर उसका भी मजा है |……. सवालों के दिन वो जवाबों की राते ……….. याद करते हुए कॉलेज ,हॉस्टल छोड़ते हुए भला किसकी आँख नम नहीं होती |                  सच्चे दोस्त किस्मत वालों को मिलते हैं | इनकी संख्या एक या दो से ज्यादा नहीं हो  सकती | अगर आप को कोइ ऐसा दोस्त मिला है जो आपका सच्चा हितैषी हैं तो उसे संभाल कर रखे | क्योंकि दोस्ती एक खूबसूरत अहसास के साथ –साथ एक जिम्मेदारी भरा फर्ज भी है | हमारे खून के रिश्तों में जहाँ मन –मुटाव होने पर पूरा परिवार संभाल लेता है ,उस दूरी को कम करने का प्रयास करता है | वहीं दोस्ती का रिश्ता केवल दो व्यक्तियों के अहसासों से जुडा  होता हैं | जिसे खुद ही संभालना होता है | सहेजना होता है | एक बार रिश्ता कच्चे कांच की तरह  टूटने पर जुड़ना मुश्किल होता है| कई बार अहंकार भी आड़े आ जाता है | बुलाना ,मानना चाहते हैं पर हम पहल क्युओं करे पर गाडी अटक जाती हैं | ऐसे ही किसी दर्द से गुज़र के जिगर मुरादाबादी कह उठते हैं ……….. आ की तुझ बिन इस कदर ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं जैसे हर शय में … Read more