जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, यानि की खाली घोंसला और सिंड्रोम मतलब लक्षणों का समूह|  जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह उन लक्षणों का समूह है जो बच्चों द्वारा हॉस्टल या नौकरी पर घ से चले जाने से माता- पिता खासकर माँ में उत्पन्न होता है |आइये जानते हैं इसके बारे में … नए ज़माने की बिमारी एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम        आज सुधा जी के घर गयी| सोफे पर उदास सी बैठी थी| मेरे लिए पहचानना मुश्किल था यह वही  सुधा जी हैं जिन्हें कभी शांति से बैठे नहीं देखा| एक हाथ बेसन में सने बेटे के लिए पकौड़ियाँ तल रही होती दूसरे हाथ से एक्वागार्ड ओन कर पानी भर रही होती और मुंह जुबानी बेटी के गणित के सवालों से जूझ रही होती| अक्सर मुस्करा कर कहा करती तुम आ जाया करो ,मेरे पास तो फुर्सत नहीं है| मेरी तो हालत यह है कि अगर यमराज भी आ जाए तो मैं कहूँगी अभी ठहर जाओ पहले ये काम खत्म कर लूँ| मैं मुस्कुरा कर कहती करिए ,करिए ,ये समय भी हमेशा नहीं रहेगा|  पर आज …. मैंने उनके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा “ क्या हुआ? उनकी आँखों से आँसू की धारा बह चली| सुबुकते हुए बोली “ कितना चाहती थी मैं की बच्चे कुछ बन जाए, जीवन में सफल हो जाए …उनको समय पर हेल्दी खाना , डांस क्लासेज, ट्युशन ले जाना ,पढाना, हर समय उन्हीं के चारों ओर घूमती रहती| अब जब की दोनों का मनपसंद कॉलेज में चयन हो गया है और मुझसे दूर चले गए हैं …. घर जैसे काट खाने को दौड़ता है| अब कौन है जिसको मेरी जरूरत है, खाना बनाऊ  तो किसके लिए, कौन बात –बात पर कहेगा “ आप दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ मॉम हो| कहकर वो फिर रोने लगी |                   ये समस्या सिर्फ सुधा जी की नहीं है| इससे एकल परिवार में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं व् कुछ हद तक पुरुष भी जूझ रहे हैं| वो बच्चे जो माँ के जीवन की धुरी होते हैं जब अचानक से हॉस्टल चले जाते हैं तो माँ का जीवन एकदम खाली हो जाता है| २४ घंटे व्यस्त रहने वाली स्त्री को लगता है जैसे उसके पास कोई काम ही नहीं हैं| यही वो समय होता है जब उनके पति अपने –अपने विभाग में ज्यादा जिम्मेदारियों में व्यस्त होते हैं| एकाकीपन और महत्वहीन होने की भावना स्त्री को जकड लेती है| मनो चिकित्सीय भाषा में इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहते है| क्या है एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम                 शाब्दिक अर्थ देखे तो ,एक चिड़िया द्वारा तिनके –तिनके को जोड़कर घोसला बनाना फिर चूजे के पर लगते ही उसका खाली हो जाना| देखा जाए तो एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कोई शारीरिक बीमारी नहीं है|  ये उस खालीपन का अहसास है जो बच्चों के घर के बाहर चले जाने से उत्पन्न हो जाता है| ये अहसास  अब बच्चों को मेरी जरूरत नहीं रही| या मुझे अब २४ घंटे बच्चों का साथ नहीं  मिलेगा| साथ ही बच्चों की जरूरत से ज्यादा चिंता … वो ठीक से तो होगा , सुरक्षित होगा , खाया होगा या नहीं| यदि किसी का एक ही बच्चा है और उसने जरूरत से ज्यादा अपने को बच्चे में व्यस्त कर रखा है तो उसकी पीड़ा भी ज्यादा होगी|  एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण             इस के शिकार पेरेंट्स ऐसी वेदना से गुजरते हैं जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है | इसके अतिरिक्त उनमें  हर समय होने वाले सर दर्द ,  आइडेंटिटी क्राइसिस , और  वैवाहिक झगड़ों व्  अवसाद के भी लक्षण दिखाई देते हैं | एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम में क्या करे           जाहिर है यह मानसिक अवस्था है ,इसलिए इसकी तैयारी भी मानसिक ही होगी | जब आपके बच्चे दूर रह रहे हों तब  अपने टाइम टेबल के हिसाब से उनका टाइम टेबल सेट करना छोड़ दीजिये ,बल्कि इस बात पर ध्यान देने की कोशिश करिए की आप अपने बच्चे की सफलता में अब  क्या योगदान दे सकते हैं|  फोन ,विडिओ कालिंग या वहां जा कर उनसे टच बनायें रखिये | जितना हो सके सकरात्मक रहिये| अगर आप फिर भी अवसाद महसूस कर रहे हैं तो दोस्तों ,रिश्तेदारों की मदद लीजिये व् अगर जरूरत समझे तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करिए| इस समय का उपयोग अपने जीवन साथी के साथ झगड़ने में नहीं रिश्ते सुधारने में करिए| क्योंकि अब आप आराम से एक दूसरे को वक्त दे सकते हैं, कैंडल लाइट डिनर कर सकते हैं |ताजमहल घूमने जा सकते हैं |     एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से बचने की तैयारी    आपको पता है कि बच्चो को अपना भविष्य बनाने के लिए आपसे दूर जाना ही है तो उसकी तैयारी पहले से करिए | कोई रचनात्मक स्किल में रूचि लीजिये |कोई एन जी .ओ ज्वाइन कीजिये |  घर के अन्दर और बाहर कोई बड़ी जिम्मेदारी लीजिये |कुछ भी ऐसा कीजिये जिसमें  आप अपनी पूरी शक्ति झोक सके और आप को उस खालीपन का अहसास न हो जो बच्चों के घर से दूर जाने की वजह से उत्पन्न हुआ है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …. प्रिंट या डिजिटल मीडिया कौन है भविष्य का नंबर वन बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन आखिर क्यों 100% के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे गुरु कीजे जान कर   आपको  लेख “क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?

                मानव मस्तिष्क हमेशा कुछ नया और अद्भुत खोजने की कोशिश करता है। विज्ञान जगत द्वारा रोमांच की अजीबोगरीब दुनिया में छिपे रहस्यों का पता लगाने के लिये रोज कोई न कोई नई तकनीक विकसित की जा रही है। आदिकाल से ही इस धरती पर रहने वाले लोगों की दिलचस्पी हमेशा ये जानने में रही है कि इस पृथ्वी लोक के अलावा क्या ब्रह्माण्ड कोई दूसरा ग्रह भी है जहां कोई जीव रहते हैं? विज्ञान को या वैज्ञानिकों को अभी तक ऐसे कोई पक्के सुबूत नहीं मिले हैं जिन्हें देखकर ये दावा किया जा सके कि एलियनों का अस्तित्व वाकई में है। संसार में दावे प्रतिदावे तरह- तरह के रहे हैं। कभी किसी अज्ञात उड़न तश्तरी देखने का दावा तो कभी धरती पर किसी हलचल का दावा। लेकिन विभिन्न तरह के साक्ष्य और भी हैं जो संकेत देते हैं कि हो सकता है कि एलियन होते ही हों और वो आज भी धरती पर आते हों और फिर चले जाते हों। क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर ऐसे कई निशान और सुराग मिले हैं जो ना सिर्फ बहुत पुराने हैं बल्कि वो इतने सटीक हैं कि ये सोचना मुश्किल है कि उस काल में रह रहे लोगों ने उन्हें बनाया होगा।                 कुछ वर्षों पूर्व जब अंध-विश्वास के कारण विज्ञान अपनी उपस्थिति तथा उपयोगिता नहीं सिद्ध कर पा रहा था। तब लोग प्रेत-आत्माओं और काले जादू की दुनिया पर विश्वास रखते थे। प्रेत-आत्माओं और काले जादू की दुनिया  से मानव जाति का अज्ञान रूपी पर्दा उठाने के बाद वैज्ञानिक ऐसे रास्तों को खोजना चाह रहे हैं जो उन्हें ब्रह्माण्ड में स्थित दूसरे ग्रहों में रहने वाले प्राणियों तक पहुँचा सके। साथ ही उनके साथ ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान कर सके।  जाने क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?                 वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा ब्रह्माण्ड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक एक जबदस्त विस्फोट- बिग बैग हुआ और ब्रह्यांड अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के प्रारभिक क्षणों में आदि पदार्थ व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से चारों तरफ बिखरने लगा।  कुछ ही क्षणों में ब्रह्माण्ड व्यापक हो गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ धीमी हुई। ब्रह्माण्ड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना पदार्थ से टकराये बेरोकटोक लम्बी दूरी तय करने लगा और ब्रह्माण्ड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तक ब्रह्यांड हजार गुना अधिक विस्तार ले चुका है। ब्रह्माण्ड बनने की खोज के लिए जिनेवा के पास हुए अब तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक महाप्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों का दावा था कि उन्हें इस महाप्रयोग से हिग्स बोसोन कण मिला है। भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने आगाह किया है कि वैज्ञानिकों ने जिस कण हिग्स बोसोन की खोज की है, उसमें समूचे ब्रह्मांड को तबाह-बरबाद करने की क्षमता है। क्या है ब्रह्माण्ड का भविष्य                  ब्रह्यांड का आने वाले समय में क्या भविष्य क्या है, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है? क्या अनंत ब्रह्माण्ड अनंतकाल तक विस्तार लेता ही जाएगा? सैद्धांतिक दृष्टि से इस बारे में सच्चाई यह उभरती है कि चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों तथा अन्य अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार को सौरमण्डल कहते है। कोई भी ग्रह एक विशाल, ठंडा खगोलीय पिण्ड होता है जो एक निश्चित कक्षा में अपने सूर्य की परिक्रमा करता है। ब्रह्माण्ड में अवस्थित आकाशीय पिंडों का प्रकाश, उद्भव, संरचना और उनके व्यवहार का अध्ययन खगोलिकी का विषय है। अब तक ब्रह्माण्ड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग 19 अरब आकाश गंगाओं के होने का अनुमान है और प्रत्येक आकाश गंगा में लगभग 10 अरब तारे हैं। आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है। हमारी पृथ्वी पर आदिम जीव 2 अरब साल पहले पैदा हुआ और आदमी का धरती पर अवतरण 10-20 लाख साल पहले हुआ।                 एक प्रकाशवर्ष वह दूरी है जो दूरी प्रकाश एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेंड की गति से एक वर्ष में तय करता है। उदाहरण के लिए सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सवा नौ करोड़ मील है, प्रकाश यह दूरी सवा आठ मिनट में तय करता है। अतः पृथ्वी से सूर्य की दूरी सवा आठ प्रकाश मिनट हुई। जिन तारों से प्रकाश आठ हजार वर्षों में आता है, उनकी दूरी हमने पौने सैंतालिस पद्म मील आँकी है। लेकिन तारे तो इतनी इतनी दूरी पर हैं कि उनसे प्रकाश के आने में लाखों, करोड़ों, अरबों वर्ष लग जाता है। इस स्थिति में हमें इन दूरियों को मीलों में व्यक्त करना संभव नहीं होगा और न कुछ समझ में ही आएगा। इसीलिए प्रकाशवर्ष की इकाई का वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया है। अनादी – अंनत है ब्रह्माण्ड                  मान लीजिए, ब्रह्माण्ड के किसी और नक्षत्रों आदि के बाद बहुत दूर-दूर तक कुछ नहीं है, लेकिन यह बात अंतिम नहीं हो सकती है। यदि उसके बाद कुछ है तो तुरंत यह प्रश्न सामने आ जाता है कि वह कुछ कहाँ तक है और उसके बाद क्या है? इसीलिए हमने इस ब्रह्मांड को अनादि और अनंत माना। इसके अतिरिक्त अन्य शब्दों में ब्रह्मांड की विशालता, व्यापकता व्यक्त करना संभव नहीं है।                 अंतरिक्ष में कुछ स्थानों पर टेलिस्कोप से गोल गुच्छे दिखाई देते हैं। इन्हें स्टार क्लस्टर या तारा गुच्छ कहते हैं। इसमें बहुत से तारे होते हैं जो बीच में घने रहते हैं और किनारे बिरल होते हैं। टेलिस्कोप से आकाश में देखने पर कहीं कहीं कुछ धब्बे दिखाई देते हैं। ये बादल के समान बड़े सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं। इन धब्बों को ही नीहारिका कहते हैं। इस ब्रह्माण्ड में असंख्य नीहारिकाएँ हैं। उनमें से कुछ ही हम देख पाते हैं। इस अपरिमित ब्रह्माण्ड का अति क्षुद्र अंश हम देख पाते हैं। आधुनिक खोजों के कारण जैसे जैसे दूरबीन की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे वैसे ब्रह्माण्ड के इस दृश्यमान क्षेत्र की सीमा बढ़ती जाती है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ब्रह्माण्ड की पूरी थाह मानव क्षमता से बहुत दूर है।                 दूरबीन से ब्रह्माण्ड को देखने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम इस ब्रह्मांड के केंद्रबिंदु हैं और बाकी चीजें हमसे दूर भागती जा रही हैं। यदि … Read more

तस्वीरों के लिए हो अलग फेसबुक ग्रुप

प्रत्येक व्यक्ति के अपने – अपने अलग – अलग पसंद नापसंद होते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्तियों की अवधारणा प्रत्येक व्यक्तियों के लिए अलग – होती है!लेकिन यह भी सत्य है कि हम लोगों के पसंद और नापसंद के अनुसार चलेंगे तो जीवन की भूल भुलैया में फंसकर रह जायेंगे और हम खुद को स्थापित कर ही नहीं पायेंगे इसलिए कोई भी कृत्य अपनी अन्तरात्मा की सहमति से करनी चाहिए !  फिर भी मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो उसे सामाजिक मूल्यों का ध्यान रखना ही पड़ता है क्यों कि मनुष्य चाहे कितना भी कह ले की मुझे किसी के कहने का फर्क नहीं पड़ता है लेकिन मुझे लगता है फर्क पड़ता तो ज़रूर है वो चाहे प्रशंसा से खुश होना या फिर निंदा से दुखी होना! यह अलग बात है कि कुछ लोग इस बात को मन में दबा लेते हैं और कुछ कहकर हल्का हो जाते हैं!  अभी कुछ दिनों से देख रही हूँ फेसबुक पर तस्वीरों को लेकर काफी चर्चा हो रही है वो चाहे व्यंग्य के रूप में हो या कटाक्ष के रूप में या फिर सीधे – सीधे!  जाहिर सी बात है जो तस्वीरें पोस्ट करते हैं वे तो आहत होंगे ही! लेकिन प्रश्न यह भी है कि आखिर अपने शौक का कोई क्या करे! वैसे भी कोई भी अच्छी चीज आदमी अपने परिजनों और मित्रों को दिखाना तो चाहता ही है ! और जब वह अपनी सुन्दर तस्वीरों को साझा करता है तो कुछ लोगों को अच्छा लगता है तो कुछ लोगों को बुरा, क्यों कि सबकी विचारधाराएँ एक समान नहीं होतीं!  ऐसे में मेरे मन में एक विचार आया कि एक एक ऐसा ग्रुप बनाना चाहिए जहाँ हम सिर्फ अपनी तस्वीरें पोस्ट करें ! उनमें अपने पसंदीदा / समान विचारधारा के मित्रों और परिजनों को ही जोड़े ! इससे मन में जो खुशी के साथ-साथ कटुता भर जाता है उससे निजात पाया जा सकता है और टिप्पणी करने वाले भी खुलकर टिप्पणी कर सकेंगे!  क्यों कि सार्वजनिक पोस्ट पर सभी की विचारधाराएँ समान नहीं होतीं इसलिए टिप्पणीकारों के प्रति भी लोगों की गलत धारणा बन जाती है!  बस यूँ ही बैठे बिठाये यह विचार मेरे दिमाग में आया तो सोची साझा कर लूँ!  फिर भी …. बचपन में मेरी दादी एक कहानी सुनाई थीं जो मुझे याद है…  एक आदमी एक गधा खरीदा जिसपर अपने बेटे को बिठा दिया और खुद पैदल चल रहा था तो किसी ने देखकर कहा कि कैसा बेटा है खुद गधे पर बैठ गया है और बाप पैदल चल रहा है! उसके बाद बेटा गधे पर से उतर गया और बाप गधे पर बैठ गया! फिर किसी ने देखकर कहा कि कैसा बाप है खुद गधे पर बैठ गया है और बेटा बिचारा पैदल चल रहा है! उसके बाद बाप बेटे दोनों ही गधे पर बैठ गये! फिर किसी ने देखकर बोला कैसे लोग हैं बेचारे दुबले पतले गधे पर दोनों मोटे – मोटे बाप बेटे बैठ गये हैं! यह सुनकर बाप बेटे दोनो ही गधे पर से उतर कर गधे को लिये पैदल चलने लगे! फिर किसी ने देखकर कहा ये देखो ये बाप बेटे कितने मूर्ख हैं जो खाली गधे को लिये खुद पैदल चल रहे हैं !  मतलब….. कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना!  किरण सिंह  यह भी पढ़ें … प्रिंट या डिजिटल मीडिया कौन है भविष्य का नंबर वन बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन आखिर क्यों 100% के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे गुरु कीजे जान कर   आपको  लेख “तस्वीरों के लिए  हो अलग फेसबुक ग्रुप  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    keywords:picture, Facebook group, Facebook,difference of opinion

प्रिंट या डिजिटल मीडिया -कौन है भविष्य का नम्बर वन

                  प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया में भविष्य किसका बेहतर है ? जब ये प्रश्न मुझसे किया गया तो मुझे लगा मैं अपने बचपन में पहुँच गयी हूँ और मुझसे पूछा  जा रहा है कि बताओ तुम्हें कौन ज्यादा अच्छा लगता है … पापा या मम्मी | जब मम्मी कहती तो लगता पापा भी तो अच्छे है और जब पापा कहती तो लगता तो … अरे नहीं नहीं … भला मम्मी को कैसे छोड़ा जा सकता है | हम लोग जो प्रिंट मीडिया के युग में पैदा हुए डिजिटल मीडिया के युग में लेखन में  आगे बढे | उन सब के लिए ये प्रश्न बड़ा दुविधा में डालने वाला है | इसलिए इसकी विस्तृत एनालिसिस करने का मन बनाया | डिजिटल मीडिया –ज्ञान का भंडार वो भी मुफ्त                            आज से ३० साल पहले क्या किसी ने सोंचा था की हम गणित के एक सवाल में उलझ जाए और झट से कोई उत्तर बता दे , खाना बना रहे हों और इस सब्जी में मेथी डालनी है या जीरा एक मिनट में कोई बता दे , रंगोली के डिजाइन हो या मेहँदी के या विज्ञानं और साहित्य की तरह – तरह की जानकारी जब जी चाहे हमें मिल जाए |शायद तब ये एक परिकथा की तरह ही लगता पर आज ये सबसे बड़ा सच है | डिजिटल मीडिया यानि आपका लैपटॉप , मोबाइल , पी. सी जो आपको दुनिया भर के ज्ञान से घर बैठे – बैठे ही जोड़ देता है | उस्ससे मिलने वाले लाभों के लिए हम जितनी बार भी धन्यवाद देंगें कम ही होगा |                                                            जी हां !  डिजिटल मीडिया की बात करे तो ये ज्ञान का भंडार  है वो भी मुफ्त में | आपसे बस एक क्लिक की दूरी पर | जिसके पास आपकी हर समस्या का जवाब है | खाना बनाने की रेसीपी , दादी माँ के नुस्खे से लेकर विश्व की श्रेष्ठतम पुस्तके  उपलबद्ध हैं | वो भी मुफ्त | डिजिटेलाइज़ेशन के इस दौर में इन्टरनेट बहुत सस्ता हो गया है | जिस कारण आम आदमी भी अच्छे से अच्छी किताबें लेख आदि पढ़ सकता है | मोबाइल पूरी  लाइब्रेरी बन चुका है | आप कहीं भी जाए आप के साथ आपकी पूरी लाइब्रेरी साथ रहेगी | आप का लगेज भी नहीं बढेगा | जब सुविधा हो निकाला और पढ़ लिया | यानि की जिंदगी लेस लगेज मोर कम्फर्ट के सिद्धांत पर चल पडी है | बढती आबादी और छोटे होते घरों के दौर में हम ज्यादा से ज्यादा प्रिंटेड पुस्तके अपने घर में नहीं रख सकते | चाहते न कहते हुए भी हमे पुस्तकें हटानी पड़ती हैं या लाइब्रेरी में देनी पड़ती हैं | ऐसे में डिजिटल होम लाइब्रेरी सारी समस्याओं के समाधान के रूप में नज़र आती है | डिजिटल मीडिया पर हर आम और खास व्यक्ति अपने विचार व्यक्त कर सकता है | इससे हमें बहुत सारे विचार पढने को मिल जाते हैं | ब्लॉगिंग के जरिये हर व्यक्ति अपने विचारों को सब तक पहुंचा सकते हैं | ब्लॉग में विभिन्न तरह की जानकारी साझा कर सकते हैं व् प्राप्त कर सकते हैं | बहुत सी पुरानी दुर्लभ किताबें जिन्हें रीप्रिंट करना संभव नहीं है उन्हें स्कैन कर के डिजिटल मीडिया पर आसानी से प्रिंट किया जा सकता है | यानी हम  अपनी धरोहर को न सिर्फ सुरक्षित कर सकते हैं बल्कि जन – जन तक पहुंचा भी सकते हैं | आज का युवा जो सोशल साइट्स की वजह से ज्यादातर ऑनलाइन रहता है वो वहां से समय निकाल कर कुछ और भी पढ़ लेता है | भले ही वो किताब उठाने की जहमत न करे | शायद इस कारण लोगों की रीडिंग हेबिट बढ़ी है |                                       ऐसा लगता तो है की भविष्य का मीडिया डिजिटल मीडिया ही है … क्योंकि ये सस्ता है सुलभ है और जगह भी नहीं घेरता | तो क्यों न ये सबके दिल में जगह बना ले | प्रिंट मीडिया – बस हारता दिख रहा है                        डिजिटल मीडिया के पक्ष में इतने सारे विचार पढ़ कर आपको लग रहा होगा प्रिंट मीडिया हार रहा है यानी डिजिटल मीडिया उसे पीछे छोड़ देगा | अगर आप भी ऐसा सोंच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि ये हम नहीं आंकड़े कहते हैं | डिजिटल मीडिया के आने के बाद भी हजारों किताबें रोज छप रही हैं | या यूँ कहें कि पहले से ज्यादा छप रही हैं | नयी – नयी मैगजींस व् प्रकाशन हाउस अस्तित्व में आ रहे हैं | अगर वास्तव में प्रिंट मीडिया अस्तित्वहीन होने जा रहा है तो क्या ऐसा हो सकता है की कोई लाखों का खर्चा करने का जोखिम उठाये | निश्चित तौर पर ये खामखयाली ही है की प्रिंट मीडिया खतरे में है | आखिर सस्ता सुलभ व् कम जगह घेरने वाले डिजिटल मीडिया के आ जाने पर भी प्रिंट मीडिया खतरे में क्यों नहीं आया …. किताबों से एक तरह से हमारी बॉन्डिंग  होती है |किताब आप महसूस करते हैं | अपनी लाइब्रेरी में सजाते हैं | वो एक तरह का प्यार का अटूट बंधन होता है | जिसका स्थान कोई नहीं ले सकता | कई लोगों की तो किताबों से इतनी दीवानगी होती है की उनकी किताब कोई छू भी नहीं सकता | ये बात डिजिटल लाइब्रेरी में कहा | कितने लोग ऐसे हैं जो मिनट – मिनट पर खबरे डिजिटल मीडिया से प्राप्त करते रहते हैं फिर भी उन्हें सुबह के अखबार का  बेचैनी से इंतज़ार होता हैं | सबह के अखबार से एक ख़ास जुड़ाव जो होता है | और भावना का स्थान कोई ले सकता है भला ? सर्दियों के दिन हो और धूप में कुछ पढना कहते हो तो मोबाइल तो बिलकुल साथ नहीं देता | ऐसे में किताब ही तारणहार का काम करती है | आपने कुछ पढ़ा आपको बहुत पसंद आया तो आप किताब को उपहार के रूप में भी दे सकते हैं | ये उपहार लेने वाले और देने वाले दोनों के दिल के करीब होता है |अब ई बुक का तो बस लिंक ही भेज सकते हैं | एक सच्चाई ये भी है की फ्री की चीज का महत्व कम होता है …. अब , पानी … Read more

पेट्रोलियम पदार्थों की अंधाधुंध खपत पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा

petroleum और उससे उत्पाद जैसे जादुई पिटारे से निकला जिन्न | वो जिन्न जो हर समय काम करने को तैयार रहता है परन्तु बाद  में अपने मालिक को ही खा जाता है | आज ये तुलना भले ही आपको हास्यास्पद लगे परन्तु यही सच है |और वो मालिक् जिसको ये कालांतर में खा जाएगा वो है हमारा पर्यावरण |हमारी धरती |जब धरती ही नहीं बचेगी तो हमारा और आपका अस्तित्व कैसे बच सकता है |  पेट्रोलियम पदार्थों की अंधाधुंध खपत विश्व पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा  वस्तुत : ये एक गंभीर मुद्दा है | जिसे विकास की अंधी दौड़ में भागता मनुष्य नज़रंदाज़ कर देता है | क्योंकि petroleum  और उसके उत्पाद विकास का पर्याय हैं | वो विकास जो हवाई जहाज और ऑटो मोबाइल के धुएं के साथ आगे बढ़ता है | और ये धुआं कब विकास को विनाश में बदल देता है , पता ही नहीं चलता | बेचैनी तब शुरू होती है जब ये जहरीली गैसें जो साँस के मार्फ़त हमारे शरीर में जाकर हमारी साँसों को ही थामने लगती है |  अगर समय रहते हमने इस समस्या पर उसका ध्यान नहीं दिया तो … अंजाम क्या होगा ?  इस तो के उत्तर में मुझे हॉलीवुड की फिल्म इंटर स्टेलर याद आ जाती है | जहाँ पृथ्वी की आगामी परिस्तिथियों का पूर्वानुमान है | जहाँ लोगों का दम घुट रहा है |क्योंकि वो ऑक्सीजन  की कमी में सांस लेने को विवश हैं | एक एक सांस के लिए तडपते लोग , बड़ा भयावाह मंजर था | पर दुखद ये है कि हम निश्चित तौर पर किसी ऐसे भविष्य की और बढ़ रहे हैं | दूर क्यों जाए अभी पिछले वर्ष ही बीजिंग में धुएं और कोहरे की वजह से ऑटोमोबाइल और चिमनियों से निकली हानिकारक गैसों ट्रैप हो गयी | लोगों का साँस लेना मुश्किल हो गया दम घुटने लगा | आनन् – फानन सरकार को रेड अलर्ट जारी करना पड़ा | सभी फेक्टरियाँ , स्कूल – कॉलेज , कार्यालय बंद किये गए | यातायात प्रतिबंधित कर दिया गया | लोग घरों में कैद हो गए | इस भागीरथी प्रयास के बाद लोगों को साँस लेने लायक हवा मिल सकी | पर ये केवल चाइना का मामला नहीं है | हमारे देश की राजधानी दिल्ली की हवा प्रदुषण मानकों पर विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित अवस्था में है | या यूँ कहिये दम घुटने की बॉर्डर लाइन पर है | क्या हम एक धीमी मौत की तरफ बढ़ रहे हैं ?अभी दीपावली के बाद का हाल किसी से छुपा नहीं है | पर दिल्ली वाले ही जानते हैं आँखों में जलन , सांस लेने में दिक्कत और कम दृश्यता भरे वो दिन कितनी मुश्किल से कटे  थे | जहरीली गैसों से युक्त ये स्मॉग जानलेवा था |  पेट्रोलियम पदार्थों का स्वास्थ्य पर है बुरा असर  अब जरा डाक्टरों की राय भी सुन लीजिये | पेट्रोलियम  की वेपर्स को सांस के साथ ग्रहण करने से नर्वस सिस्टम व् रेस्पिरेटरी सिस्टम के रोग हो सकते हैं | अगर मात्र थोड़ी है तो चक्कर , उनींदापन , भूख न लगना  , सिरदर्द उलटी आदि की शिकायत हो सकती है परन्तु अधिक मात्र में तो कोमा व् मृत्यु भी हो सकती है | तरल; अवस्था में पेट्रोलियम पदार्थ जब त्वचा के संपर्क में आते हैं तो वो त्वचा में जलन उत्पन्न करते हैं | कुछ मात्र में त्वचा द्वरा अवशोषित होकर अनेकानेक हानियाँ पहुंचाते हैं | गैसोलीन जो की बेंजीन प्रदुक्ट है कैंसर का प्रमुख कारक है | जो मुख्य रूप से त्वचा व् रक्त कैंसर उत्पन्नं करता है | ये सब मैं आपको डराने के लिए नहीं बता रहा | मेरा यह बताने का उद्देश्य महज इतना है की हम सचेत हो जाए व् पेट्रोल और पेट्रोलियम उत्पादों का कम से कम प्रयोग करें जिससे हन्मारा पर्यावरण कम प्रदूषित हो और हम सब बेहतर स्वास्थ्य का मजा लें | यहाँ मैं कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूँ जिससे हम पेट्रोल के इसतेमाल में कटौती कर सकते हैं | पेट्रोल बचाने के उपाय  जैसा की हम सब जानते हैं की 71 % पेट्रोल ऑटोमोबाइल में इस्तेमाल होता है | अत : हम स्वयं व्यातायात  व्यवस्था में थोडा सा परिवर्तन कर  पेट्रोल बचा सकते हैं ……. * अपनी गाडी का कम प्रयोग करें | जहाँ बहुत जरूरी न हो वहां कार पूलिंग या सार्वजानिक यातायात के साधनों का प्रोग करें | आप  को पिछले वर्ष  की दिल्ली की औड– ईवन परियोजना जरूर याद आई होगी | हालांकि यह एक प्रयोग था पर प्रयोग बेहद सफल रहा | ऐसा आंकड़े बताते हैं | * पैदल चले | निकट की दूरी के लिए कार , स्कूटर की नबाबी न दिखा कर ज्यादा से ज्यादा पैदल या सायकिल से चलें | यह खुद के व् प्रयावरण के स्वास्थ्य के लिए बेहतर विकल्प है | मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा इस समस्या से निपटने के लिए चाइना में सायकिल का बहुतायत से प्रयोग होने लगा है | * अपनी गाडी का पॉल्यूशन  सर्टिफिकेट लें | व् ध्यान रखे वो ज्यादा धुआं न छोड़ रही हो | * मेरा देश , मेरा प्रदेश और मेरा शहर | सामान खरीदते समय स्वदेशी की भावना अपनाएं | ज्यादातर सामान अपने शहर की लोकल मार्किट में बना हुआ खरीदे | जिससे दुसरे शर से उसे लाने में पेट्रोल न खर्च हो | आयातित वस्तुओं से जरा परहेज करें | * प्लास्टिक का बहिष्कार करें | प्लास्टिक एक पेट्रोलियम उत्पाद है और बायो डिगरेडेबल  भी नहीं | बाज़ार जाते समय साथ में कपडे का थैला ले जाए |क्या आप इस तथ्य से अवगत हैं की गायों व् पशुओं की मौत की जिम्मेदार प्लास्टिक थैलियाँ अपने रंग में इतेमाल किये जाने वाले केमिकल की वजह से नदियों व् धरती पर प्रदुषण फैला कर हमें भी मार रही हैं | * प्राकतिक धागों से बने वस्त्र ही पहने | नायलन , पौलिस्टर के कपड़ों को बाय बाय कीजिये | कड़ी , सूती रेशमी ऊनी कपड़ों को ही पहनिए | हाँ यथा संभव रेशमी कपड़ों का भी परहेज करे क्योंकि वो धागे जो आप को खुबसूरत  बनाते हैं बड़ी ही निर्ममता से प्राप्त किये जाते हैं | * जीवन को रंगना जरूरी है पर क्रेयोंस से नहीं | मधुमक्खी की वसा का प्रयोग करें | * डीयो, परफ्यूम  , सेंट  को … Read more

सफलता के लिए बोर्ड एग्जाम की तैयारी के 11 उपयोगी टिप्स

आगामी मार्च में दसवीं व् बारहवीं की बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं | सभी विद्यार्थीं अपनी  तैयारी को अंतिम रूप दे रहे हैं | माता -पिता भी बच्चों का विशेष ध्यान रख रहे हैं | सबकी कोशिश यही है की बच्चे परीक्षाओं में अच्छे मार्क्स लाये और सफल हों |परन्तु देखा गया है की कई बार सही तैयारी न करने से मेहनत करने के बाद भी सही परिणाम नहीं मिलते हैं | इसी कारण परीक्षाओं से ठीक पहले माता – पिता व् बच्चे तनाव में आ जाते हैं | उन्हें काउंसलिंग की जरूरत होती है | अगर सही समय में पता चल जाए कि तैयारी किस प्रकार करनी है तो कोई कारण नहीं कि कोई बच्चा सफल न हो पाए |  बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं के लिए विशेष लेख बोर्ड परीक्षाओं के मद्दे नज़र बच्चों की और अभिवावकों की  चिंताओं को ध्यान में रखते हुए  लखनऊ के सुप्रसिद्ध सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक-प्रबन्धक- डा0 जगदीश गांधी अपने लेख के माध्यम बच्चों को बोर्ड  एग्जाम में सफलता के लिए 11 उपयोगी टिप्स बता रहे हैं | जिनकी सहायता से बच्चे अच्छे प्रतिशत के साथ सफल हो सकते हैं | (1)  सफलता की एकमात्र कुंजी निरन्तर अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास ही है:-  किसी ने सही ही कहा है कि ‘करत-करत अभ्यास से जड़मत होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निशान’ अर्थात् जिस प्रकार एक मामूली सी रस्सी कुएँ के पत्थर पर प्रतिदिन के अभ्यास से निशान बना देती है उसी प्रकार अभ्यास जीवन का वह आयाम है जो कठिन रास्तों को भी आसान कर देता है। इसलिए अभ्यास से कठिन से कठिन विषयों को भी याद किया जा सकता है। इस प्रकार सफलता की एकमात्र कुंजी निरन्तर अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास ही है। विशेषकर गणित तथा विज्ञान विषयों में यदि आप अपना वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टिकोण विकसित नहीं कर पाये तो आप सफलता को गवां सकते हैं। इसलिए इन विषयों के सूत्रों को अच्छी तरह से याद करने के लिए इन्हें बार-बार दोहराना चाहिए और लगातार इनका अभ्यास भी करते रहना चाहिए। दीर्घ उत्तरीय पाठ/प्रश्नों को एक साथ याद न करके इन्हें कई खण्डों में याद करना चाहिए। बार-बार अभ्यास करने से जीवन की कठिन से कठिन बातें भी याद रखी जा सकती हैं। (2)  बोर्ड परीक्षाओं का तनाव लेने के बजाय छात्र खुद पर रखें विश्वास:- प्रायः यह देखा जाता है कि बोर्ड की परीक्षाओं के नजदीक आते ही छात्र-छात्रायें एक्जामिनेशन फीवर के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में शिक्षकों एवं अभिभावकों के द्वारा बच्चों के मन-मस्तिष्क में बैठे हुए इस डर को भगाना अति आवश्यक है। वास्तव में बच्चों की परीक्षा के समय में अभिभावकों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। एक शोध के अनुसार बच्चों के मन-मस्तिष्क पर उनके अभिभावकों के व्यवहार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में अभिभावकों को बच्चों के साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करना चाहिए ताकि उनमें सुरक्षा की भावना और आत्मविश्वास बढ़ें। इस प्रकार बच्चों का मन-मस्तिष्क जितना अधिक दबाव मुक्त रहेगा उतना ही बेहतर उनका रिजल्ट आयेगा और सफलता उनके कदम चूमेगी। इसलिए छात्र-छात्राओं को बोर्ड परीक्षााओं का तनाव लेने के बजाय खुद पर विश्वास रखकर ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’ कहावत पर चलना चाहिए और अपने कठोर परिश्रम पर विश्वास रखना चाहिए। (3)  स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है:- किसी ने बिलकुल सही कहा है कि एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं डाक्टरों के अनुसार प्रतिदिन लगभग 7 घण्टे बिना किसी बाधा के चिंतारहित गहरी नींद लेना सम्पूर्ण नींद की श्रेणी में आता है। एक ताजे तथा प्रसन्नचित्त मस्तिष्क से लिये गये निर्णय, कार्य एवं व्यवहार अच्छे एवं सुखद परिणाम देते हैं। थके तथा चिंता से भरे मस्तिष्क से किया गया कार्य, निर्णय एवं व्यवहार सफलता को हमसे दूर ले जाता है। परीक्षाओं के दिनों में संतुलित एवं हल्का भोजन लेना लाभदायक होता है। इन दिनों अधिक से अधिक ताजे तथा सूखे फलों, हरी सब्जियों तथा तरल पदार्थो को भोजन में शामिल करें। (4)  अपने लक्ष्य का निर्धारण स्वयं करें और देर रात तक पढ़ने से बचें:-  एक बार यदि हमें अपना लक्ष्य ज्ञात हो गया तो हम उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। यदि हमारा लक्ष्य परीक्षा में 100 प्रतिशत अंक लाना है तो पाठ्यक्रम में दिये गये निर्धारित विषयों के ज्ञान को पूरी तरह से समझकर आत्मसात करना होगा। इसके साथ ही रात में देर तक पढ़ने की आदत बच्चों को नुकसान पहुँचा सकती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्रातःकाल का समय अध्ययन के लिए ज्यादा अच्छा माना जाता है। सुबह के समय की गई पढ़ाई का असर बच्चों के मन-मस्तिष्क पर देर तक रहता है। इसलिए बच्चों को सुबह के समय में अधिक से अधिक पढ़ाई करनी चाहिए। रात में 6-7 घंटे की नींद के बाद सुबह के समय बच्चे सबसे ज्यादा शांतिमय, तनाव रहित और तरोताजा महसूस करते हैं। (5)  सफलता के लिए  लिखकर याद करने की आदत डालें:- प्रत्येक मनुष्य की स्मरण शक्ति असीमित है। आइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक तथा एक साधारण व्यक्ति के मस्तिष्क की संरचना एक समान होती है। केवल फर्क यह है कि हम अपने मस्तिष्क की असीम क्षमताओं की कितनी मात्रा का निरन्तर प्रयास द्वारा सदुपयोग कर पाते हैं। इसलिए छात्रों को अपने पढ़े पाठों का रिवीजन पूरी एकाग्रता तथा मनोयोगपूर्वक करके अपनी स्मरण शक्ति को बढ़ाना चाहिए। एक बात अक्सर छात्र-छात्राओं के सामने आती है कि वो जो कुछ याद करते हंै वे उसे भूल जाते हैं। इसका कारण यह है कि छात्र मौखिक रूप से तो उत्तर को याद कर लेते हैं लेकिन उसे याद करने के बाद लिखते नहीं है। कहावत है एक बार लिखा हुआ हजार बार मौखिक रूप से याद करने से बेहतर होता है। ऐसे में विद्यार्थी को अपने प्रश्नों के उत्तरों को लिखकर याद करने की आदत डालनी चाहिए। (6)  बोर्ड परीक्षाओं के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन जरूरी है:- सिर्फ महत्वपूर्ण विषयों या प्रश्नों की तैयारी करने की प्रवृत्ति आजकल छात्र वर्ग में देखने को मिल रही है जबकि छात्रों को अपने पाठ्यक्रम का पूरा अध्ययन करना चाहिए और इसे अधिक से अधिक बार दोहराना चाहिए। … Read more

समाज में बढ़ते नैतिक अवमूल्यन के लिए कौन जिम्मेदार है ?

  आज हर व्यक्ति जो थोडा बहुत भी भावनात्मक है,देश की इस हालत से चिंतित है,भारतीय समाज का नैतिक अवमूल्यन क्रमोत्तर हो रहा है.देश में चारो ओर अराजकता है।  किसी भी तरफ नज़र उठा कर देख लीजिये चोरी,डकैती,राहजनी,हत्या,बलात्कर जैसे अपराध अपने अपराधी अट्टहास कर रहे हैं.  पर इसका उत्तरदायी कौन है? वर्तमान राजनीति,पोंगा पंडितो,हर छोटी बड़ी बात में फतवा देने वाले मौलवी,अकर्मण्य सरकार या देश समाज की शोचनीय स्थिति से बेफिक्र आज का युवा ?  समाज में  बढ़ते नैतिक अवमूल्यन के लिए हम भी हैं  जिम्मेदार  सच तो ये है की हम सब बराबर के ज़िम्मेदार हैं . हम रोज शिकायत करते हैं कि अपराध बढ़ रहे हैं , भ्रष्टाचार बढ़ रहा है , बुराई बढ़ती जा रही है प्रतिदिन एक बँधे हुए ढर्रे की तरह हम नित्य ही इस संबंध में टीका-टिप्पणी करते हैं, कभी सरकार को दोष देते हैं तो कभी प्रशासन व्यवस्था को । कभी किन्हीं व्यक्तियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इस तरह की शिकायतें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च-स्थिति के लोगों तक से सुनी जा सकती हैं। लेकिन कभी हमने यह भी सोचा है कि इनके लिए हम स्वयं कितने जिम्मेदार हैं। हम भूल जाते हैं कि बहुत कुछ अपराध, बुराइयाँ हमारे व्यावहारिक जीवन में अपने प्रयत्नों का परिणाम हैं। हमारे अनीतिपूर्ण जीवन, सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा, हाथ धरे बैठ जाने की प्रवृत्ति से ही बुराइयों को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में होने वाले अपराधों पर चुप्पी तोडिये   कई बार किसी नागरिक पर बदमाश लोगों के आक्रमण को देखकर भी हममें से बहुत लोग चुपचाप आगे पग बढ़ा देते हैं। हममें से कइयों की जानकारी में रिश्वत का दौर चलता रहता है। कई बार जानते हैं कि सार्वजनिक कार्यों में ठेकेदार तथा नौकरशाही अनावश्यक लाभ उठा रहे हैं। हममें से बहुत से लोग धोखाधड़ी, ठगी, चोरबाजारी, मिलावट करने वालों को भारी भली-भाँति जानते हैं किन्तु यह सब जानकर हम इनका भंडा फोड़ नहीं करते। इनकी शिकायत पुलिस को या अपराध निरोधक संस्थाओं को नहीं करते। इनके खिलाफ संगठित होकर आँदोलन नहीं होता। यदि हम इनके लिए स्वयं को उत्तरदायी मानकर अपना सुधार करने में लगें, अपने कर्तव्यों को समझने लगें तो कोई संदेह नहीं कि बुराइयाँ घटने लगें और एक दिन समाप्त भी हो जायँ।              हम नहीं चाहतें कि कोई हमारा अपमान करे तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम किसी का अपमान न करें। इसी तरह विश्वासघात, छल, कपट, धोखाधड़ी उत्पीड़न, शोषण नहीं होना चाहते तो हमारा भी धर्म है कि हम दूसरों के साथ ऐसा न करें। लेकिन खेद है कि जब कोई हमारे ऊपर अत्याचार करता है हम बुराई की, सिद्धान्तों, की, दुहाई देते हैं और केवल बचाव के लिए गुहार मचाते हैं किंतु जब हम स्वयं दूसरों के साथ ऐसा करते हैं तब किसी के कुछ कहने सुनने पर वे हमारे कान पर जूँ तक नहीं रेंगती और यही कारण है कि बुराइयां दिनों दिनों बढ़ती जाती हैं। हम उनकी शिकायतें, करने, आलोचना करने, में ही अपना काम पूरा समझ लेते हैं।          इस सम्बन्ध में हमारी यह शिकायत हो सकती है कि “आजकल कोई सुनता नहीं, ” जो इस तरफ के कदम उठाता है उसे ही उल्टी परेशानियां उठानी पड़ती हैं।  बहुत कुछ अंशों में यह ठीक भी है। किसी बात की सूचना देने पर गुँडे के बजाय सूचना देने वाले को ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। बुराई का प्रतिरोध करने वाले को दूषित तत्वों का कोप-भाजन बनना पड़ता है। यह सब ठीक है किंतु बिना कोई खतरा उठाये दूर तो नहीं किया जा सकता। सुधार के लिए एक ही मार्ग है, वह है सब तरह के खतरे उठाकर बुराइयों का मुकाबला करना। यदि प्रशासन इस सम्बन्ध में ढील दे तो उसके खिलाफ भी आवाज उठायी जाये। कई सरकारी कर्मचारी या समाज का सदस्य ही दूषित तत्वों का बचाव करे इन्हें प्रोत्साहन दें तो उनकी भी आलोचना करने में नहीं चूकना चाहिए।  समाज में  बढ़ते नैतिक अवमूल्यन  को रकने के लिए सिद्धांतों न रचें  कर्म करें         हमारी एक सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम बड़े-बड़े सिद्धान्त बघारते हैं, नीति और न्याय की ऊँची-ऊँची बातें करते हैं, लेकिन यह सब दूसरे के लिए। अपने कार्यकलापों को न्याय, नीति की कसौटी पर हम बहुत ही कम कसते हैं। एक दुकानदार बाजार में बैठकर सरकार, पुलिस आदि के भ्रष्टाचार की जी खोलकर आलोचना करता है किन्तु उसकी आलोचक वृत्ति उस समय गायब हो जाती है जब वह वस्तुओं में मिलावट करता है, ग्राहकों को कम तौलता है, अधिक मुनाफा वसूल करता है। आतताई और गुँडों को हम लोग कोसते हैं, उन्हें बुरा कहते हैं किन्तु हमारी समीक्षात्मक बुद्धि उस समय जाने कहाँ चली जाती है। जब हम पराई स्त्री को बुरी निगाह से देखते, बिना प्रति, मूल्य देय समाज के साधनों का उपभोग करते हैं, अनीति के साथ धन एकत्रित करते हैं, दूसरों के श्रम अधिकार एवं साधनों का अनुसूचित शोषण करते हैं।         भारत का हर नागरिक भारतवर्ष की दुर्दशा में बराबर का सहभागी है.हमारी मुश्किल ये है की अगर हम स्वयं को सज्जनों की श्रेणी में रखते हैं तो दुर्जनों की संगत से बचने के चक्कर में किसी भी प्रकार की दुर्जनता का विरोध नहीं करते और यदि दुर्भाग्यवश हम दुर्जन की श्रेणी में हो तब तो हमारा एक ही ध्येय होता है ‘दूसरो को येन केन प्रकारेण दुखी करना’.अर्थात दोनों ही श्रेणियों के लोगो को देश और समाज की स्थिति से कुछ लेना देना नहीं.यही स्थिति दुखदायी है और इसी प्रवृति ने हमें विनाश की ओर अग्रसर किया है.हमारे आस पास कुछ भी होता रहे हम बस अपने में मगन रहते हैं.मैं,मेरा परिवार,मेरे बच्चे,मेरा घर…… ये सुखी रहे तो हम सुखी हैं.हमारी चिंताए अपने परिवार तक ही सीमित हैं पर जब देश की विपन्नता हम पर सीधे प्रभाव डालती है तो हम चीत्कार करने लगते हैं,राजनीति और प्रशासन को दोष देने लगते हैं.देश की राजनैतिक,आर्थिक,सामाजिक और प्रशासनिक प्रत्येक तरह की व्यवस्थाएं न सिर्फ सुधरे बल्कि सुद्रण भी हो इसके लिए हमें अपने चारो ओर घट रही घटनाओ पर संज्ञान लेना होगा.हर अन्यायपूर्ण व्यवस्था का पुरजोर विरोध करना होगा.और कुछ नहीं तो निर्भीक हो कर तेज आवाज में अपनी राय स्पष्ट करनी होगी.पर सच ये है की हम ऐसा करने की बजाय कभी व्यावहारिक होने का हवाला दे कर … Read more

प्रदूषण की मार झेलती दिल्ली

 पेड़ पौधे हैं लाभकारी  पर्यावरण के हैं हितकारी ।  जी हाँ , अपने घर और आसपास पेड़ पौधों को लगाने को प्रोत्साहित करें , वो ही जीवनदायनी हैं । हमारे भारत का दिल , दिल्ली बीमार है । एक ऐसी बिमारी जिसका इलाज स्वयं दिल्लीवासियों के पास है । हर प्रकार के प्रदूषण और अस्वच्छता ने इस दिल को बुरी तरह से अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है कि इससे छुटकारा तो अब असम्भव सा ही प्रतीत होता है । बेबस और लाचार दिल्ली घुट रही है प्रदूषण के आवरण में । दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती भागती लाखों गाड़ियों से निकलता धुआं , राजधानी में मौजूद फैक्ट्रियों से निकलता काला जहर , बिजलीघरों की चिमनी से निकलता धुआं और मौसम में बढ़ने जा रही धुंध मिलकर प्रदूषण का एक ऐसा कॉकटेल तैयार कर रही हैं जो दिल्ली का दम घोट रहा है ।  दिल्ली का दिल कही जाने वाली दिल्ली की हवा अब सांस लेने लायक नहीं रह गई है । हवा में मौजूद प्रदूषण का स्तर हानिकारक स्तर को पार कर अब बेहद खतरनाक स्तर में पहुंच चुका है । हवा में घुला प्रदूषण तय मानक मात्रा से 4 से 5 गुना ज्यादा हो चुका है. कहीं कहीं ये स्तर 10 गुना तक पहुंच गया है ।  दिल्ली की गिनती विश्व के चार सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में  प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। भारत सहित विकासशील देशों में यह समस्या विशेष रूप से खतरनाक रूप लेती जा रही है। भारत की राजधानी दिल्ली की गिनती विश्व के चार सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में होती है । आजादी के बाद जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण में तेजी से हुई वृद्धि ने दिल्ली का पर्यावरण बिगाड़ दिया है। अब चूँकि एक मेट्रो शहर में यह सब विकास की बातें होना स्वभाविक ही है और विकास और उन्नति की दृष्टि से आवश्यक और महत्वपूर्ण भी है । परन्तु इस विकास और उन्नति को दिल्ली की सेहत और सुंदरता को बिगाड़ने का कार्य नहीं करना है ।  मैली है दिल्ली की यमुना भी  दिल्ली की नदी यमुना भी मैली है । आईटी ओ के पास बने यमुना पुल के आसपास की कालोनियों में रहने वालों निवासियों ने यमुना नदी के किनारों को कूड़ा करकट से भर कर रखा है । पुल के ऊपर से नदी में कूड़े की थैलियां फेंकते लोग अनायास ही ध्यान आकर्षित कर लेते हैं , वहां का यह एक आम नज़ारा हो गया है । चाहे इसे लोगों की मानसिकता समझ लें या फिर सरकारी व्यवस्थाओं में कमी , भुगतना तो कुदरत की अनमोल धरोहर को पड़ रहा है । प्रकृति की खूबसूरत धरोहर होती हैं ये नदियां , जीवनदायनी होती हैं , इन्हें सहेज कर रखना हम इंसान की जिम्मेदारी है । बस थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है , थोड़ी सजगता की आवश्यकता है फिर देखिये हमारे आसपास का वातावरण कितना स्वच्छ और सजीव हो सकता है ।  स्वच्छ भारत अभियान , स्वच्छ वातावरण और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की और एक महत्वपूर्ण और सार्थक प्रयास है । भारतीय लोगों को इस दिशा में अग्रसर रहने और सचेत रखने की एक अनूठी पहल है । विशेषतौर पर विद्यालयों में शुरू हुआ यह अभियान वाकई काफी कारगर सिद्ध हो रहा है । बच्चे , जो भविष्य के निर्माता हैं , सीख रहे हैं और पा रहे हैं कुछ ऐसे संस्कार , जो भारतवर्ष के स्वर्ण भविष्य की मजबूत नींव हैं । विद्यालय से मिली शिक्षा और संस्कार , एक बच्चे के हृदय में अमिट छाप छोड़ जाते हैं , जो सम्पूर्ण जीवन उनके संग रहते हैं ।  दिल्ली में बढ़ते प्राइवेट यातायात के साधनों ने बढ़ाया वायु प्रदूषण दिल्ली में बढ़ते प्राइवेट यातायात के साधनों ने वायु प्रदूषण को चरमसीमा तक पहुंचा दिया है । छुटपुट कार्यों और अपने आसपास भी आने जाने के लिए लोगों द्वारा अपनी कार को इस्तेमाल करना बड़ा हास्यस्पद और विचित्र प्रतीत होता है । कार चलाना एक शान की बात समझी जाती है । पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे मेट्रो का ही इस्तमाल कर लेना चाहिए ऑफिस या कहीं दूर दराज स्थान पर जाने आने के लिए । वायु प्रदूषण और यातायात नियंत्रित करने के लिए ।          चारों तरफ बढ़ाओ जागरूकता          पर्यावरण है आजकी आवश्यकता ।  जी हाँ , यही नारा इस समय की पुकार है । आइये हम सब मिलकर इस पुकार को गूँज बना दें ।            तरसेम कौर  यह भी पढ़ें ……….. अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस – परिवार में अपनी भूमिका के प्रति सम्मान की मांग दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती शादी -ब्याह में बढता दिखावा , घटता अपनापन आपको आपको  लेख “प्रदूषण की मार झेलती दिल्ली  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords: pollution, air pollution in delhi,    

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति सम्मान की मांग

  मिसेज गुप्ता कहती हैं की उस समय परिवार में सब  कहते थे, “लड़की है बहुत पढाओ  मत | एक पापा थे जिन्होंने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम जितना चाहो पढो” |   श्रीमती देसाई बड़े गर्व से बताती हैं की उनका भाई शादी में सबसे ज्यादा रोया था | अभी भी हर छोटी बड़ी जरूरत में उसके घर दौड़ा चला जाता है |   कात्यायनी जी ( काल्पनिक नाम ) अपने लेखन का सारा श्री पति को देती हैं | अगर ये न साथ देते तो मैं एक शब्द भी न लिख पाती | जब मैं लिखती तो घंटो सुध न रहती | खाना लेट हो जाता पर ये कुछ कहते नहीं | भले ही भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे हों | श्रीमान देशमुख अपनी पत्नी की ख़ुशी के लिए  स्कूटर न लेकर उसके लिए उसकी पसंद का सामान लेते हैं |                            फेहरिस्त लम्बी है पर  ये सब हमारे आपके जैसे आम घरों के उदाहरण है | ये सही है  कि हमारे पिता , भाई , पति बेटे और मित्र हमारे लिए बहुत कुछ करते हैं |पर क्या हम उनके स्नेह को नज़रअंदाज कर देते हैं | अगर ऐसा नहीं है तो क्यों पुरुष ऐसा महसूस कर रहे हैं |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति  सम्मान की मांग है  कल व्हाट्स एप्प पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक खूबसूरत गीत के साथ अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस मानाने की अपील की गयी थी .. गीत के बोल कुछ इस तरह से थे “ मेन्स डे पर ही क्यों सन्नाटा एवेरीवेयर , सो नॉट फेयर-२” … पूरे गीत में उन कामों का वर्णन था जो पुरुष घर परिवार के लिए करता है, फिर भी उसके कामों को कोईश्रेय नहीं मिलता है | जाहिर है उसे देख कर कुछ पल मुस्कुराने के बाद एक प्रश्न दिमाग में उठा “ मेन्स डे’ ? ये क्या है ? तुरंत विकिपिडिया पर सर्च किया | जी हां गाना सही था |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस कब मनाया जाता है    १९ नवम्बर को इंटरनेशनल मेन्स डे होता है | यह लगातार १९९२ से मनाया जा रहा है | पहले पहल इसे ७ फरवरी को मनाया गया | फिर १९९९ में इसे दोबारा त्रिनिदाद और टुबैगो में शुरू किया गया |     अब पूरे विश्व भर में पुरुषों द्वारा किये गए कामों को मुख्य रूप से घर में , शादी को बनाये रखने में , बच्चों की परवरिश में , या समाज में निभाई जाने वाली भूमिका के लिए सम्मान की मांग उठी है |     पुरुष हो या स्त्री घर की गाडी के दो पहिये हैं | दोनों का सही संतुलन , कामों का वर्गीकरण एक खुशहाल परिवार के लिए बेहद जरूरी होता है | क्योंकि परिवार समाज की इकाई है | परिवारों का संतुलन समाज का संतुलन है | इसलिए स्त्री या पुरुष हर किसी के काम का सम्मान किया जाना जरूरी हैं | काम का सम्मान न सिर्फ उसे महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है अपितु उसे और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित भी करता है | क्यों उठ रही है अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग    यह एक  सच्चाई  है की दिन उन्हीं के बनाये जाते हैं जो कमजोर होते हैं |पितृसत्तात्मक  समाज में हुए महिलाओं के शोषण को से कोई इनकार नहीं कर सकता | महिला बराबरी की मांग जायज है | उसे किसी तरह से गलत नहीं ठहराया जा सकता है | पर इस अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस  की मांग क्यों ? तस्वीर का एक पक्ष यह है की दिनों की मांग वही करतें हैं जो कमजोर होते हैं | तो क्या स्त्री इतनी सशक्त हो चुकी है की पुरुष को मेन्स डे सेलेब्रेट करने की आवश्यकता आन पड़ी | या ये एक बेहूदा मज़ाक है | जैसा पहले स्त्री के बारे में कहा जाता था की पुरुष से बराबरी की चाह में स्त्री अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों का नाश कर रही है , अपनी कोमलता खो रही है | क्योंकि उसने पुरुष की सफलता को मानक मान लिया है | इसलिए वो पुरुषोचित गुण अपना रही हैं |अब पुरुष स्त्री की बराबरी करने लगे हैं |      सवाल ये उठता है की पुरुषों को ऐसी कौन सी आवश्यकता आ गयी की वो स्त्री के नक़्शे कदम पर चल कर मेन्स डे की मांग कर बैठा | क्या नारी को अपनी इस सफलता पर हर्षित होना चाहिए “ की वास्तव में वो सशक्त साबित हो गयी है | पर आस पास के समाज में देखे तो ऐसा तो लगता नहीं , फिर अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग क्यों ?     अपने प्रश्नों के साथ मैंने फिर से वीडियो देखा …. और उत्तर भी मिला | इस वीडियों के अनुसार पुरुष घर के अन्दर अपने कामों के प्रति सम्मान व् स्नेह की मांग कर रहा है | कहीं न कहीं मुझे लग रहा है की ये बदलते समाज की सच्चाई है | पहले महिलाएं घर में रहती थी और पुरुष बाहर धनोपार्जन में | पुरुष को घर के बाहर सम्मान मिलता था और वो घर में परिवार व् बच्चों के लिए पूर्णतया समर्पित स्त्री का घर में बच्चो व् परिवार द्वारा ज्यादा मान दिया जाना सहर्ष स्वीकार कर लेता था |समय बदला , परिसतिथियाँ  बदली |आज उन घरों में जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों बाहर धनोपार्जन कर रहे हैं |   बाहर दोनों को सम्मान मिल रहा है | घर आने के बाद जहाँ स्त्रियाँ रसोई का मोर्चा संभालती हैं वही पुरुष बिल भरने ,घर की टूट फूट की मरम्मत कराने , सब्जी तरकारी लाने का काम करते हैं | संभ्रांत पुरुषों का एक बड़ा वर्ग इन सब से आगे निकल कर बच्चों के डायपर बदलने , रसोई में थोडा बहुत पत्नी की मदद करने और बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की नयी भूमिका में नज़र आ रहा है | पर कहीं न कहीं उसे लग रहा है की बढ़ते महिला समर्थन या पुरुष विरोध के चलते उसे उसे घर के अन्दर या समाज में उसके स्नेह भरे कामों के लिए पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है |     अपने परिचित का एक उदाहरण … Read more

शादी – ब्याह :बढ़ता दिखावा घटता अपनापन

                                                                  आज कल शादी ब्याह ,दिखावेबाजी के अड्डे बन गए हैं | मुख्य चर्चा का विषय दूल्हा – दुल्हन व् उनके लिए शुभकामना के स्थान पर कितने की सजावट , खाने में कितने आइटम व् कितने के कपडे कितनी की ज्वेलरी हो गए हैं | ये दिखावेबाजी क्या घटते अपनेपन के कारण है | इसी विषय की पड़ताल करता रचना व्यास जी का उम्दा लेख  शादी – ब्याह :क्यों बढ़ रहा है दिखावा  हम समाज में रहते हैं साहचर्य के लिए ,अपनत्व के लिए और भावनात्मक संतुलन के लिए पर मुझे तो आजकल बयार उल्टी दिशा में बहती नजर आ रही है। अब बयार है प्रतियोगिता की, प्रदर्शन की ,एक दूसरे को नीचा दिखाने की। आजकल व्यक्तित्व, शिक्षा का स्तर व समझदारी से नहीं पहचाना जाता बल्कि कपड़े गहने ,जूते और गाड़ी से श्रेष्ठ बनता है।                                                                 एक स्त्री होने के नाते मैं गौरवान्वित हूँ  और इस प्रगतिशील युग में जन्मी होने के कारण विशेष रूप से धन्य हूँ।  हमने सभी मोर्चो पर खुद को उत्कृष्ट साबित कर दिया है। पर भीतर ये गहरी पीड़ा है कि हममेंसे ज्यादातर ऊपर बताई गई उस प्रतियोगिता की अग्रणी सदस्या है।  हम अपने बजट का ज्यादातर हिस्सा कॉस्मेटिक्स ,कपड़ों और मैचिंग ज्वैलरी पर खर्च करते हैं। संस्कृत साहित्य के महान नाटककार कालिदास का कथन है  “किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।”  अर्थात मधुर आकृतियों के विषय में प्रत्येक वस्तु अलंकार बन जाती है। यदि व्यक्तित्व में ओज हैं ,सात्विकता है तो साधारण श्रृंगार भी विशिष्ट प्रतीत होगा।  आज जब हम किसी पारिवारिक या सामाजिक  आयोजन में जाते है तो स्पष्ट महसूस कर सकते है कि मेजबान का पूरा ध्यान कार्यक्रम को भव्य बनाने पर रहता है। शादी ब्याह : गायब हो रहा है अपनापन  चाहे बजट बढ़ जाये पर सजावट में ,व्यंजनों की संख्या में ,मेहमानों की सुविधा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। वहीं मेहमान का पूरा ध्यान स्वयं को ज्यादा प्रतिष्ठित व सुंदर दिखाने पर होता है। इस बीच में बड़ो के लिए सम्मान ,छोटों के लिए आशीर्वाद और हमउम्र के लिए आत्मीयता बिलकुल गायब रहती है। मुझे आत्मिक पीड़ा ये है कि इस सबके लिए हम स्त्रियाँ ज्यादा उत्तरदायी है।  आज से पंद्रह वर्ष पूर्व तक अपने करीबी की शादी में हम हफ्ते भर रुकते थे। सारा शुभ काम उनके निवासस्थान पर ही होता। सारी स्त्रियाँ हँसते -हँसते हाथों से काम करती। गिने चुने सहायक काम के लिए होते जिन्हें गलती से भी नौकर नहीं समझा जाता था। असुविधा होने पर भी शिकायत नहीं होती थी। ख़ुशी -ख़ुशी जब वापस अपने घर लौटते तो थकान का कोई नामो -निशान भी नहीं होता। आज होटल में मेहमानों के सेपरेट रूम होते हैं। सर्वेन्ट्स की फौज होती है। पानी तक उठकर नहीं पीना पड़ता पर दो दिन बाद जब घर आते हैं तो बहुत थके होते है। क्या हमारा स्टेमिना इतना कम हो गया। दरअसल हमारे बीच का अपनत्व कम हो गया ,एक दूसरे के लिए शुभ भावना विलीन हो गई इसलिए हमें भावनात्मक ऊर्जा पूरी नहीं मिलती ,हृदय के आशीर्वाद नहीं मिलते।      अब हमें मात्र औपचारिकता निभानी होती है। दो दिन तक गुड़िया की तरह सज लो ,दिखावे को हँस लो और एक भार -सा सिर पर लादकर आ जाओ कि इनने इतना खर्च किया अब दो -तीन साल बाद मेरी बारी  है। रिसेप्शन शानदार होना चाहिए भले ही हमने अपने बेटे व बेटी को ऐसी सहिष्णुता नहीं सिखाई कि उसकी शादी सफल हो।  पहले कुछ रूपये शादी में लगते थे और हमारे दादा -दादी गोल्डन व प्लेटिनम जुबली मनाते थे। उससे आगे हजारों लगने लगे पर तलाक की नौबत कभी नही आती थी। आज लाखों -करोड़ों शादी में लगाते है और उससे भी ज्यादा तलाक के समय देना होता है।  इस सर्द दुनिया में रिश्तों की गर्माहट जरूरी है।तभी रिश्ते सजीव और चिरयुवा रहेंगे। एक अंधी दौड़ हम स्त्रियों ने ही शुरू की है क्यों न हम ही इसे खत्म कर दे। अबकी बार किसी आयोजन में जाए तो अपनी गरिमामय पोशाक में जाये। किसी के कपड़ो की समीक्षा मन में भी न करें। खाना कैसा भी बना हो उसे तारीफ करके ,बगैर झूठा छोड़े खाएं।  सब पर खुले मन से स्नेह और आशीष लुटाए ;बदले में प्रेम की ऊष्मा व ऊर्जा लेकर घर आयें। संतोष व सादगी की प्रतिमूर्ति बनकर ही हम स्त्रीत्व को सार्थक कर सकती है और समाज को एक खुला व खुशनुमा माहौल दे सकती हैं।यही नवविवाहित दम्पत्ति  को दिया गया हमारा ससे खुबसूरत तोहफा होगा | तो अगली बार कहीं शादी में जायें तो आप भी विचार करें की दिखावा कम और अपनापन ज्यादा हो |  द्वारा रचना  व्यास  एम  ए (अंग्रेजी साहित्य  एवं  दर्शनशास्त्र),   एल एल बी ,  एम बी ए यह भी पढ़ें …  फेसबुक और महिला लेखन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती करवाचौथ के बहाने एक विमर्श आपको आपको  लेख “शादी – ब्याह :बढ़ता दिखावा घटता अपनापन  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |