Covid-19 : कोरोना पैनिक से बचने के लिए सही सोचें

  एक नन्हा सा दिया भले ही वो किसी भी कारण किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए पूरे मार्ग का अंधियारा हरता है …गौतम बुद्ध   आज हम सब ऐसे दौर में हैं जब एक नन्हा सा वायरस COVID-19 पूरे विश्व की स्वास्थ्य पर, अर्थ पर और चेतना पर हावी है| पूरे विश्व में संक्रमित व्यक्तियों व् मृत रोगियों के लगातार बढ़ते आंकडे हमें डरा रहे हैं| हम  चाहते ना चाहते हुए भी बार-बार न्यूज़ देख रहे हैं| निरीह हो कर देख रहे हैं कि एक नन्हे से विषाणु ने पूरे विश्व की रफ़्तार के पहिये थाम दिए हैं| कल तक ‘ग्लोबल विलेज’ कहने वाले हम आज अपने घरों में सिमटे हुए हैं| देश के कई शहर लॉक डाउन हैं| कल तक हम सब के अपने-अपने सपने थे, आशाएं थीं, उम्मीदें थीं पर आज हम सब का एक ही सपना है कि हम सब सुरक्षित रहे और सम्पूर्ण मानवता इस युद्ध में विजयी हो| इन तमाम प्रार्थनाओं के बाद हम ये भी नहीं जानते कि ये सब कब तक चलेगा| जिन लोगों को एकांत अच्छा लगता था वो भी बाहर के सन्नाटे से घबरा रहे हैं| ऐसे में हम तीन तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं| यहाँ मैं किसी प्रतिक्रिया के गलत या सही होने की बात न कर के मनुष्य की विचार प्रक्रिया पर बात करके उसे सही विचार चुनने की बात कह रही हूँ|   मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहे बाकी दुनिया… इस क्राइसिस से पहले  हममें से कई लोग बहुत अच्छे थे| पूरी दुनिया के बारे में  सोचते थे| आज वो केवल अपने और अपने परिवार के बारेमें सोच रहे हैं| ये वो लोग हैं जो ६ महीने का राशन जमा कर रहे हैं| अमेरिका में टॉयलेट पेपर तक की कमी हो गयी| ये वो लोग हैं जो बीमारों के लिए सैनिटाईजर्स की कमी हो गयी है अपने ६ महीने के स्टोर से कुछ देने नहीं जायेंगे| हो सकता है कि ये बीमारना पड़ें| इनके सारे सैनीटाईज़र्स यूँ ही ख़राब हो जाए| खाने –पीने की चीजें सड़ जाएँ पर किसी संभावित आपदा से निपटने के लिए ये सालों की तैयारी कर के बैठे हैं| बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि ये लोग समाज के दोषी हैं पर मैं ऐसा नहीं कह  पाऊँगी …कारण है हमारा एनिमल ब्रेन|   मनुष्य का विकास एनिमल या जानवर से हुआ है | क्योंकि जंगलों में हमेशा जान का खतरा रहता था इसलिए दिमाग ने एक कला विकसित कर ली, संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगा कर खुद को सुरक्षित करने की| ये कला जीवन के लिए सहायक है और मनुष्य को तमाम खतरों से बचाती भी है|परन्तु ऐसे समय में जब हम जानते हैं कि खाने पीने के सामानों की ऐसी दिक्कत नहीं आने वाली हैं किसी एक व्हाट्स एप मेसेज पर, किसी एक दोस्त के कहने पर, किसी एक न्यूज़ पर दिमाग का वो हिस्सा एक्टिव हो जाता है और व्यक्ति बेतहाशा खरीदारी करने लगता है| हममे से कई लोगों ने इन दिनों इस बात को गलत बताते हुए भी  मॉल में लगी लंबी लाइनों को देखकर खुद भी लाइन में लग जाना बेहतर समझा होगा| भले ही हम उस समय खाली दूध या कोई एक सामान लेने गए हों और खुद भी पैनिक की गिरफ्त में आ गए | इधर हमने भरी हुई दुकानों में  एक दिन में पूरा राशन खाली होते हुए देखा है|   हम तो आपस में ही पार्टी करेंगे- दूसरी तरह के लोग जिन्हें हम अति सकारात्मक लोग कहते हैं| पॉजिटिव-पॉजिटिव की नयी थ्योरी इनके दिमाग में इस कदर फिट है कि इन्हें हर समय जोश में भरे हुए रहना अच्छा लगता है| पॉजिटिव रहने का अर्थ  ये नहीं होता है कि आप सावधानी और सतर्कता  के मूल मन्त्र को भूल जाएँ| जब की सकारात्मकता का आध्यात्मिक स्वरुप हमें ये सिखाता है कि आप जो भी काम करें पूरी तन्मयता और जागरूक अवस्था में करें, अवेयरनेस के साथ करें| शांत रहने का अर्थ नकारत्मक होना नहीं है| एक बार संदीप माहेश्वरी जी ने कहा था कि सक्सेस-सकस भी एक अवगुण है| आम तौर पर लोग अटैचमेंट नहीं सीख पाते | लेकिन जो लोग सक्सेस के प्रति अटैच्ड हो जाते हैं उनके दिमाग में चौबीसों घंटे सक्सेस सक्सेस या काम –काम चलता रहता है| अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना रात और सपनों में भी चलता रहता है| यही स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है| जितना अटैच होना सीखना पड़ता है उतना ही डिटैच होना भी | कब आप स्विच ओं कर सकें कब ऑफ कर सकें | अति सकारात्मकता  भी यही प्रभाव उत्प्प्न करती है | अगर व्यक्ति चौबीसों घंटे सकारात्मक रहेगा तो उसका दिमाग सतर्क रहने वाला स्विच ऑफ़ कर देगा| यही हाल कोरोना व्यारस के दौर में हमें देखने को मिल रहा है| जब पूरा शहर लॉक डाउन किया गया है तो कुछ लोग जबरदस्ती अपने घर में दूसरों को बुला रहे हैं | पार्टी कर रहे हैं | पुलिस को धत्ता बता कर ये ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि ये एक –एक कर लोगों को घर बुलाते हैं | जब २५ -३० लोग इकट्ठा हो जाते हैं तब पार्टी शुरू होती है| इनका कहना होता है कि बिमारी –बिमारी सोचने से नकारात्मकता फैलती है|   अगर समझाओं  तो भी इनका कहना होता है कि अगर मैं मरुंगा तो मैं मरूँगा …इससे दूसरे को क्या मतलब | सकार्त्मकता के झूठे लबादे ने इनका सत्रकता वालादिमागी स्विच ऑफ कर दिया है | जो इन्हें खुद खतरे उठाने को विवश करता है और सामुदायिक भावना के आधीन हो सामाजिक जिम्मेदारी की अवहेलना के प्रति उकसाता है| ऐसे ही कुछ अति सकारात्मक लोगों द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों को धन्यवाद ज्ञापन के आह्वान को ध्वनि तरंगों के विगन से जोड़ देने का नज़ारा हम कल २२ मार्च को आम जनता के बीच देख चुके हैं | जब जनता जुलुस के रूप में सड़कों पर उतर आई | इसके पीछे व्हाट्स एप में प्रासारित ये ज्ञान था| हमें पता है कि आम जनता में समझ अभी इतनी नहीं है| वो वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध करे गए ऐसे व्हाट्स एप ज्ञान से प्रभावित हो जाती है| ऐसे में इन अति सकारात्मक लोगों … Read more

जाड़े की धूप महिलाएं और विटामिन डी

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए कौन है जिसे मौसम फिल्म का ये खूबसूरत गीत ना पसंद हो ? और फिर जाड़े के दिनों में धूप में पड़े रहना भला किसको अच्छा नहीं लगता , उस पर सखियों और मूँगफली का साथ हो तो कहने ही क्या ? एक समय था जब महिलाएं ११ बजे काम से निवृत्त हो कर धूप सेंकने के लिए घर के बाहर चारपाई पर आ धमकती थीं |किसी के हाथ में उन और सलाइयाँ होती , कोई मेथी बथुआ और पालक साफ़ कर रही होती ,कोई खरबूजे के बीज छील रही होती तो कोई बच्चे के मालिश कर रही होती , और साथ में चल रहा होता हंसी ठहाकों का दौर | बीच –बीच में दूसरी खटियाओं पर कम्बल ओढ़े पड़ी बुजुर्ग औरतें कम्बल में से सर निकाल कर उनकी बात –चीत में अपनी विशेष टिप्पणी शामिल करती रहती | बच्चे भी वहीँ पास में खेल रहे होते, और धूप  की गर्माहट के साथ –साथ रिश्तों की गर्माहट से भी मन भर जाता | आज लोग इस तरह धूप  में नहीं बैठते , रिश्तों में भी वो गर्माहट कहाँ बची है ?  जाड़े की धूप  महिलाएं और विटामिन डी  लेकिन ये बात सिर्फ  धूप और रिश्तों  की गर्माहट की नहीं है , धूप की गर्माहट के साथ धूप में बैठने से विटामिन  डी भी मिलता है | ये तो सबको पता है कि विटामिन डी की कमी से हड्डियाँ कमजोर पड़ जाती हैं , कार्डियो वैस्कुलर बीमारियाँ हों सकती हैं व् बच्चों को अस्थमा भी हो सकता है | परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि विटामिन डी की कमी से अवसाद भी हो सकता हैं | तो अगर आप का मन खिन्न -खिन्न रहता है , कुछ करने का जी नहीं करता , लगता है देर तक पड़े रहे तो विटामिन डी की मात्रा को भी चेक कराये | हो सकता है अवसाद की दवाईयाँ खाने की जगह आप का विटामिन डी खाने से ही काम चल जाए | चेक करने पर पता चल जाएगा कि विटामिन डी की कितनी कमी है |डॉक्टरी  आंकड़ों के मुताबिक़…  ३० से ६० ng/ml विटामिन डी की सामान्य मात्रा है | २१ से २९ ng/ml अपर्याप्त है ( यानी कम तो है पर बहुत घबराने की जरूरत नहीं है ) ० से २० ng/ml कम है ६० ng/ml से ऊपर ज्यादा है | ( जरूरत से ज्यादा विटामिन डी हड्डियों से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करता है ) कहने का तात्पर्य ये है कि ज्यादा कमी होने पर दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है |ये गोली व् शैशे दोनों के रूप में आती हैं , ज्यादातर विटामिन डी ३  सप्लीमेंट दिए जाते हैं | अगर आपको दावा लेने की जरूरत हो तो डॉक्टर से पूछ लें | वैसे यह वासा युक्त भोजन  के साथ लेने से अधिक मात्रा में अवशोषित होता है | थोड़ी कमी होने पर अपने खाने में विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा , जैसे  ,दूध , दही , मछली, गाय का दूध , सोयाबीन का दूध , कॉड  लिवर आयल , मशरूम , अनाज , ओटमील आदि से   बढाई जा सकती है फिर  अपने आँगन में आने वाली धूप तो है ही  | धूप में बैठने के लिए ११ से१ तक  का समय सबसे मुफीद है , कपड़ें  हलके हों तो बेहतर हैं | एक बार और आंकड़ों की शरण में जाकर आपको बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति को ६०० IU विटामिन की एक दिन में आवश्यकता होती है | एक बात ख़ास तौर पर युवा महिलाओं से …. क्योंकि आज कल कई बार युवा महिलाएं ये मान कर कि, “ धूप में बैठने से रंग साँवला हो जाएगा” ,धूप में बैठने से परहेज करती हैं | जाड़े की  धूप का रंग पर इतना असर नहीं होता , और अगर कुछ होता भी है तो उसके लाभ के आगे नगण्य है | वैसे , धूप की तरफ पीठ करके भी बैठा जा सकता है | यूँ विटामिन डी का चेहरे से कोई खास लगाव नहीं है , हाथों-पैरों में भी धूप लेने से विटामिन डी मिल ही जाता है | एक एक और खास बात J आप सब से बाँटना चाहती हूँ  जो अभी कुछ दिन पहले एक लड़की ने कही | हुआ यूँ कि सब धूप में बैठे मूंगफलियों का आनंद ले रहे थे | १० मिनट बाद वो महिला अन्दर जाने लगी | मैंने विटामिन डी की महत्ता बताते हुए उसे रोकना चाहा तो उसने कहा कि मेरा तो रंग ज्यादा साँवला है मेरा तो दस मिनट में उतना विटामिन डी बन गया जितना गोरे लोगों का दो घंटे में बनेगा | आश्चर्य की बात है कि ये भ्रम अधिकतर लोगों को होता है | लोगों को लगता है कि जिनका रंग सांवला है उन्हें बस थोड़ी ही देर धूप में बैठना चाहिए जबकि सच्चाई ये है कि अगर आपकी त्वचा सांवली है तो गोरी त्वचा वालों के मुकाबले सही मात्रा में विटामिन डी बनाने के लिए आपको दस गुना ज्यादा धूप की जरूरत होगी | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके स्किन पिगमेंट्स प्राकर्तिक सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं , और सांवले लोगों में ये पिगमेंट्स अधिक मात्रा में होते हैं इसलिए सांवले लोगों को अधिक देर धूप में रहना होता है |    कुछ अध्यन बताते हैं कि सांवली त्वचा वाले अधिक उम्र के वयस्कों में विटामिन डी की कमी होने की अधिक संभावना  हो सकती है। मोटे तौर पर जहाँ गोरे  लोगों का काम १० –पंद्रह मिनट में चल जाता है वहीँ काले लोगों को एक घंटा धूप में बैठना चाहिए | बूढ़े लोगों को और भी देर तक  धूप में बैठना चाहिए क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ –साथ त्वचा द्वारा सूर्य की किरणों से विटामिन डी बनने की क्षमता कम हो जाती है | अच्छा है इसी उम्र से धूप में बैठ कर विटामिन डी की मात्रा को दुरुस्त रखें | अब बात आंकड़ों की है तो बता दें कि ये आँकड़े सर्दियों की धूप  के हैं , गर्मियों में थोड़ा कम से ही  काम चल जाएगा |  फिर … Read more

Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें

                    एक तरफ बुजुर्ग होते माता -पिता की जिम्मेदारी दूसरी तरह युवा होते बच्चों के कैरियर व्  विवाह की चिंता और इन सब से ऊपर अपने खुद के स्वास्थ्य का गिरते जाना या उर्जा की कमी महसूस होना | midlife जिसे हम प्रौढ़ावस्था भी कहते हैं  वो समय है जब लगातार काम करते -करते व्यक्ति को महसूस होने लगता है कि उसकी जिन्दगी काम के कभी खत्म न होने वाले चक्रव्यूह में फंस गयी है |तबी कई भावनात्मक व् व्यवहारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं | जिसे सामूहिक रूप से midlife क्राइसिस के नाम से जाना जाता है | Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें       याद है जब पहला सफ़ेद बाल देखा था … दिल धक से रह गया होगा | क्या बुढ़ापा आने वाला है ? अरे हम तो अपने लिए जिए  ही नहीं अब तक | तभी किसी हमउम्र की अचानक से मृत्यु की खबर आ गयी |कल तक तो स्वस्थ था आज अचानक … क्या हम भी मृत्यु की तरह बढ़ रहे हैं| क्या इतनी जल्दी सब कुछ खत्म होने वाला है |45 से 65 की उम्र में अक्सर लोगों को एक मनोवैज्ञानिक समस्या का सामना करना पड़ता है , जिसे midlife crisis के नाम से जाना जाता है | इसमें मृत्यु भय , अभी तक के जीवन को बेकार समझना , जैसा जी रहे थे उससे बिलकुल उल्ट जीने की इच्छा , बोरियत , अवसाद , तनाव या खुद को अनुपयोगी समझना आदि शामिल हैं | ये मनोवैज्ञानिक समस्या शार्रीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है |                              उदहारण के तौर पर  कल रास्ते में  साधना जी मिल गयीं | बहुत थकी लग रहीं थी | धीमे -धीमे चल रही थीं | मैंने हाल चल पूंछा तो बिफर पड़ी , ” क्या फायदा हाल बताने से ,  डायबिटीज है , पैरों में ताकत नहीं लगती ऊपर से अभी घुटने का एक्स रे कराया तो पता चला कि हड्डी नुकीली होना शुरू हो गयी है | डॉक्टर के मुताबिक अभी अपना ध्यान रख लो तो  जल्दी ऑपरेशन करने की नौबत नहीं आएगी  अब आप ही बताइये सासू माँ का हिप रिप्लेसमेंट हुआ है , बेटे के बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं , बाकी रोज के काम तो हैं ही ऐसे में तो लगता है कि जिन्दगी बस एक मशीन बन कर रह गयी है |                    ऐसा नहीं है कि ये समस्या सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुष भी इससे अछूते नहीं हैं | रमेश जी  ऑफिस से लौटे ही थे कि पत्नी ने नए सोफे  के लिए फरमाइश कर दी | बस आगबबुला हो उठे | तुम लोग बस आराम से खर्चा करते रहो और मैं गधो की तरह कमाता रहूँ | अपने लिए न मेरे पास समय है न ही  तुम लोगों के बिल चुकाते -चुकाते पैसे बचते हैं |                 ये दोनों ही mid life crisis के उदाहरण हैं |इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे कारण होते हैं | जैसे महिलाओं का मेनोपॉज व् माता -पिता की मृत्यु या किसे हम उम्र प्रियजन को खोना , अपने सपनों के पूरा न हो पाने का अवसाद ( इस उम्र में व्यक्ति को लगने लगता है कि उसके सपने अब पूरे नहीं हो पायेंगे क्योंकि उम्र निकल गयी है | Midlife Crises के सामान्य लक्षण                                   यूँ तो midlife crisis के अनेकों लक्षण होते हैं जो अलग -अलग व्यक्तियों के लिए अलग होते हैं पर यहाँ हम कुछ सामान्य लक्षणों की चर्चा कर रहे हैं | mood swings _ये लक्षण सामान्य तौर पर सबमें पाया जाता है | लोग जरा सी बात पर आप खो बैठते हैं | इसका बुरा प्रभाव रिश्तों पर भी पड़ता है | अवसाद और तनाव – इसका शिकार लोग दुखी restless या तनाव में रहते हैं | खुद के लुक्स पर ज्यादा ध्यान –  उम्र बढ़ने को नकारने के लिए खुद पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं | स्रि बोरियत – ऐसा लगता है कि वो जीवन में कहीं फंस गए हैं जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है | जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता | मृत्यु के विचार – दिमाग पर अक्सर  मृत्यु के विचार छाए रहते हैं | midlife crisis से निकलने के उपाय                                midlife crisis से निकलने के लिए कुछ सामान्य  उपाय अपनाए जा सकते हैं | संकल्प –                          बीमारी कोई भी हो सुधर का पहला रास्ता वो संकल्प है जिसके द्वारा ह्म ये स्वीकार करते हैं कि मेरी जिंदगी जैसे है वैसे नहीं रहनी चाहिए मुझे इसे बदलना है | अगर आप भी ये संकल्प ले लेते हैं तो समझिये आधा रास्ता तय हो गया | ध्यान                            ध्यान एक बहुत कारगर उपाय है जो आपको अपनी तात्कालिक समस्याओं के कारण उत्त्पन्न तनाव व् अवसाद को दूर करने में सहायक है | दिमाग का स्वाभाव है कि वो एक विचार से दूसरे विचार में घूमता रहता है | कभी नींद न आ रही हो तो आपने भी ध्यान दिया होगा कि इसकी वजह ये नहीं थी कि आप रकिसी एक विचारपर केन्द्रित थे बल्कि आपका दिमाग एक विचार से दूसरे विचार पर कूद रहा था | जिसे आम भाषा में ” monkey mind” कहते हैं | नेयुरोलोजिस्ट के अनुसार ये DMN या DEFAULT MODE NETWORK है | ध्यान  मेडिटेशन हमें किसी एक विचार पर ध्यान  केन्द्रित अ सिखाता है | जिस कारण विचार भटकते नहीं है और गुस्सा , अवसाद व् तनाव जो कि अनियंत्रित विचारों का खेल है काफी हद तक कम हो जाता है |  ख़ुशी की तालाश छोड़ दें                                   सुनने में अजीब … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग …3 )

 व्यायाम / कसरत / शारीरिक श्रम का विज्ञान ——- आधुनिक जीवन मशीनीकृत जीवन है जो न केवल वर्तमान समय की आवश्यकता है बल्किजिंदगी की  बढ़ती भाग दौड़ से सामंजस्य बैठाने के लिए जरुरी भी है . विस्तृत होते कंक्रीट के जंगलों ने चारों दिशाओं में दूरियों को जन्म दे दिया है और इन बढ़ती दूरियों को पाटने के लिए न चाहते हुए भी मशीनो पे हमारी निर्भरता बढ़ गई है . वर्तमान उपभोक्तावादी नूतन भौतिकता से भरपूर जीवन शैली ने हमारे जीवन परिचर्या को सरल तो बनाया है पर हमे स्वयं से दूर भी कर दिया है . अब हम सुबह से शाम तक दौड़ रहे है जीवन को साधन सुविधा संपन्न बनाने के लिए और ऐसे में सबसे ज्यादा अनदेखी होती है  स्वयं के शरीर की.  ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1)              मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( कड़ी …3 )  न खाने का पता , न सोने का पता और न ही आराम का पता. और ऐसे में बढ़ता थकान का स्तर शरीर को शिथिल बना देता है व शरीर के ऊर्जा स्तर में निरंतर कमी लाता है इस से व्यक्ति शारीरिक श्रम से बचने लगता है क्योकि मानसिक थकान शरीर पर हावी हो जाती है और शिथिल पड़े शरीर में धीरे धीरे जंग लगने लगती है व यही जंग मोटापे की परतों के रूप में शरीर के चारों और लिपटने लगती है क्योकि भोजन के रूप में ऊर्जा की आपूर्ति तो भरपूर होती है पर शरीर में उसकी खपत नही होती | एक बात और आजकल मेनुअल कार्यों को हम हेय दृष्टि से देखने लगे हैं यथा घर का झाड़ू पूछा करना , बर्तन मांजना , कपडे धोना , घर के सामन को व्यवस्थित करना , पास के बाजार तक पैदल चल कर जाना और थैले में सामान लेकर लौटना  , बगीचे की साफ सफाई करना ,  पैदल चलने से बचना और इसी प्रकार के सैकड़ों छोटे छोटे कार्य जिन्हे हमारे पूर्वज मजे से किया करते थे उन सब से बचना और ऐसे कार्यों को खुद के काबिल नही समझना . अब आप ही बताये गर सारा दिन बैठे बैठे दिमागी घोड़े ही दौड़ाएंगे और हाथ पांव जरा भी इधर का उधर नही करेंगे तो वो शरीर में भोजन के रूप में ली हुई ऊर्जा  कैसे और किस तरह से काम में आये और जब काम में नही आये तो इकट्ठी होए फिर शरीर के स्टोर में मोटापा बनकर. इसलिए ये आवश्यक है कि व्यक्ति के शरीर की प्रणालियां ठीक से कार्य करे और वह मोटापे का शिकार न हो तो उसे भोजन व नींद की तरह  शारीरिक श्रम को भी अपने जीवन का हिस्सा बनाना ही होगा अन्यथा वह कभी भी मोटापे से लड़ ही नही पायेगा . व्यायाम का महत्व  व्यायाम को किसी न किसी रूप में जीवन में शामिल करना अनिवार्य है क्योकि ग्रहण की गई ऊर्जा ( भोजन के रूप में ) की जब शरीर में खपत नही होगी तो वह अतिरिक्त ऊर्जा वसा ऊतकों में परिवर्तित हो जाएगी . व्यायाम या कसरत के लिए जिम जाना जरुरी नही है बल्कि शरीर को कार्य करने केलिए उद्दत करना  है जिस से शरीर में ऊर्जा की खपत बढे और कार्य करने का आत्मिक संतोष भी प्राप्त हो इसके लिए आज से ही कुछ कार्य स्वयं करना शुरू करे यथा बगीचे की सफाई , कार की धुलाई, घर के साधारण किन्तु  महत्वपूर्ण काम , आसपास जाने केलिए दोनों पैरों का भरपूर उपयोग इत्यादि साथ ही एक आदत को नियमित रूप से जीवन का हिस्सा बनाये और वो है मॉर्निंग वॉक या फिर शाम को खाना खाने से पहले की इवनिंग वॉक और भी बहुत ज्यादा नही लगभग आधा घंटा रोज या 3 किलोमीटर  रोज़ . और हाँ इसे टालने के लिए कोई भी बहाना नही  . जैसे हम साँस  लेना नही टाल सकते ठीक वैसे ही इसे जीवन में शामिल कीजिये. बहुत बार कामकाजी महिलाएं या पुरुष जिन्हे सुबह जल्दी निकलना होता है वे गर सुबह नही जा सकते वॉक पे तो शाम को इसे नियमित बनाएं पर इसे न करने का कोई बहाना न तलाशे . समझें शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को  इसलिए  शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को अपनाने के लिए इन तीन बातों को अपनाइये —- **  घर के हर काम को खुश होकर करने की आदत बनाइये इससे दोहरा लाभ होगा . आत्मिक आनंद के साथ साथ मोटापे से मुक्ति ** श्रम से बचने के लिए बहाने बनाना छोड़ दे ….कोई भी बहाना नही (कन्फ्यूशियस ने कहा है कि जिस दिन से हम असफलता के लिए बहाने तलाशने छोड़ देतेहैं सफलता उसी दिन से हमारा दामन थाम लेती है. )             ** स्वयं की अनदेखी ना करें ( क्योकि आप महत्वपूर्ण हैं और आप के साथ बहुत सारे लोगों का जीवन और खुशियां जुडी हुई हैं ) .तनाव का विज्ञान—— आज के जीवन में अगर कुछ है जो सबके साथ जुड़ गया है चाहे बिना चाहे वो है तनाव …तनाव का अपना एक विज्ञान है . हम में से ज्यादातर लोग जीवन में जबरदस्ती तनाव को पाले होते हैं . वास्तव में लोग जिन वजहों से तनावग्रस्त होते हैं , वे महत्वपूर्ण नही होती हैं लेकिन इतनी अधिक प्रभावशाली होती हैं कि उनका हमारे दिमाग, मन एवं शरीर  पर जबरदस्त असर होता है  वास्तव में देखा जाये तो तनाव  हमारे शरीर , दिमाग , संवेदनाओं और उर्जा को व्यवस्थित न कर  पाने की अयोग्यता है. अतीत , वर्तमान और भविष्य का चक्र, अधूरे सपनों को पूरा करने की ख्वाहिश व  जिन्दगी में संतुलन बनाये रखने की चाहना के वाजिब और सही  जवाब को आने से रोकने वाली मानसिक स्थिति ही तनाव है जीवन की भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति, व्यक्तिगत उपलब्धियों की प्राप्ति और इसके लिए  परस्पर होड़ा होड़ी से उपजता है अंतर्द्वद जो जन्म देता है तनाव को . तनाव  एक ऐसी स्थिति है जिससे बचा नही जा सकता है इसलिए जरुरी है इसका अपेक्षित प्रबंधन क्योकि तनाव मोटापे के मूल में रहता है . तनाव शरीर की ऐसी अवस्था जब व्यक्ति सोचते हुए थकने लग कर दिशाहीन हो जाता है और उसका भोजन … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -2)

                         मोटापे से मुक्ति के लिए आवश्यकता है जीवन पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार की तथा  स्वयं से कुछ निश्चित प्रण करने की . ये उपाय बेहद सरल हैं किन्तु इनका पालन करना उतना ही कठिन है . इसके लिए उच्च  स्तर की इच्छा शक्ति , संकल्प व सौंदर्य बोध की आवश्यकता होती है जो शरीर को मोटापे के साथ साथ इससे जनित अनेको बीमारियों से भी मुक्त करवाती है. तो आइये एक शुरुआत करें हम आज से और अभी से और जाने कि किस प्रकार से हम आसानी से इसके खिलाफ लड़ सकते हैं प्रथम भाग  के लिए ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2)    I..भोजन का विज्ञान—  मोटापा नियंत्रण का यह पहला कदम है जिसमें हमें भोजन की मात्रा , क्वालिटी /गुणवत्ता व उससे प्राप्त ऊर्जा पर ध्यान देना है . यथा——: 1. व्यक्ति को दोनों समय का भोजन नियमित करना चाहिए अर्थात मोटापा कम करने के लिए व्यक्ति सबसे पहले ये करता है कि  वो एक समय या दोनों समय का भोजन छोड़ देता है जिसे आम भाषा में डाइटिंग कहा जाता है जो बिलकुल गलत है क्योकि भोजन की मात्रा एकदम से कम कर देने से रक्त में भोजन  की कमी आती है व शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा की अतः शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली इस ऊर्जा असंतुलन से निपटने के लिए शरीर में ऊर्जा  की खपत एकदम से घटा देती है और भूख को बढ़ा देती है ताकि शरीर का ऊर्जा स्तर सामान्य हो जाये किन्तु जब व्यक्ति बहुत देर तक भूखा रह कर खाने बैठता है तो ऊर्जा प्रणाली की क्रियाशीलता के कारन आवश्यकता से अधिक भोजन कर लेता है और ये अतिरिक्त भोजन की मात्रा शरीर में वजन बढ़ने को प्रेरित करती है  वहीँ दूसरी ओर व्यक्ति में भोजन न करने से एक मानसिक बैचैनी उत्पन्न  होती है जो उसे अवसाद की तरफ ले जाने लगती है जिस से वो न चाहते हुए भी ऐसे पदार्थों का सेवन करने लगता है जिसके बारे में वो सोचता है की इससे मोटापा थोड़े ही बढ़ेगा जैसे चाय या कॉफी की मात्रा बढ़ा देना या सलाद की मात्रा बढ़ा देना या फिर  या फिर फलों के रस की और ऐसे में अनजाने में वो एक बार फिर मोटापे को आमंत्रित कर बैठता है 2. दूसरी बात कि व्यक्ति एकदम से मीठा और घी तेल खाना छोड़ देता है क्योकि उसका यही देखा सुना होता है  कि मोटापा इन दोनों चीजों से ही बढ़ता है इन्हे छोड़ कर सब कुछ खाओ जल्दी ही स्लिमट्रिम हो जायेंगे जबकि ऐसा करना गलत ही नही बल्कि शरीर के लिए घातक है क्योकि भोजन का मूल मंत्र है संतुलन न कि त्याग . वस्तुतः भोजन रासायनिक रूप से  शर्करा ( मीठा ), प्रोटीन, वसा ( घी /तेल ), खनिज , विटामिन्स , पानी व रेशा का संतुलित सम मिश्रण है जो  शरीर के निर्माण व  इसकी समय समय पर मरम्मत हेतु आवश्यक होता है और साथ ही शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए ऊर्जा देता है . ऐसे में किसी भी एक पदार्थ की कमी या अधिकता ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली के कार्यों में अवरोध पैदा करने लगती है व शरीर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ने लगता है और ऊर्जा की खपत , संग्रहण व उत्पादन तीनो ही कार्यों में परस्पर टकराहट होने लगती है , ऐसे में शरीर के हार्मोन्स व एंजाइम्स के कार्य करने का सारा गणित गड़बड़ा जाता है और मोटापा तो कम होगा या नही पर शरीर अन्य दूसरी परेशानियों से जूझने लगता है जैसे ….वसा खाना एक दम छोड़ देने से वसा में घुलनशील विटामिन्स की शरीर में कमी हो जाती है और शरीर अनेक अभाव रोगों से ग्रस्त हो जाता है , शरीर में कई हार्मोन्स निर्माण बाधित होने लगता है क्योकि वे वसा से ही बनते हैं …इत्यादि इसी प्रकार से एकदम मीठा छोड़ देने से भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है इससे हमारे लीवर और किडनी का कार्य बढ़ जाता है और इस से शरीर के ऊर्जा स्तर में एकदम से कमी आती है ,शरीर शिथिल पड़ने लगता है , व्यक्ति को सामान्य  कार्यों को करने में भी अत्यधिक कमजोरी महसूस होने लगती है , मांसपेशियों में दर्द रहने लगता है , और वो चिंताग्रस्त रहने लगता है. इसी प्रकार से व्यक्ति एकदम से आवश्यकता से बहुत अधिक पानी पीने लगता है और इससे शरीर की मूत्र उत्सर्जन प्रणाली बिगड़ जाती है और किडनी का कार्य बढ़  जाता है अतः भोजन की किसी भी मात्रा में कमी या अधिकता से ज्यादा जरुरी है भोजन के सारे अवयव यथा शर्करा , प्रोटीन , वसा,रेशा , मिनरल्स व पानी के अनुपात में संतुलित परिवर्तन लाकर किया जाना चाहिए ताकि शरीर को सभी वांछित पदार्थी की प्राप्ति हो सके .  3. तीसरी जरुरी  बात है भोजन  की मात्रा अर्थात एक बार में एक साथ बहुत ज़रा न ही खाना चाहिए बल्कि थोड़ी थोड़ी मात्रा में दिन में चार बार खाना चाहिए जिसमे सुबह का नाश्ता , दोपहर का लंच . शाम का नाश्ता और रात का डिनर. और इन सब खानो में लगभग तीन से चार घंटो का अंतर होना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए की सुबह का नाश्ता ऊर्जा से भरपूर हो , दोपहर का लंच वसा प्रोटीन व शर्करा का संतुलन हो शाम का नाश्ता रेशे से भरा हो और रात का डिनर तरल हो ताकि शरीर का मेटाबॉलिज्म सुचारू रूप से कार्य कर सके और इसकी किसी भी कार्य प्रणाली पे अतिरिक्त कार्य भार न आये पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन  4. चौथी सबसे महत्वपूर्ण बात है भोजन करने का समय ….वर्तमान समय की जीवन शैली ने इस सारे ताने बाने को ही छिन्न भिन्न कर दिया है जबकि होता ये है कि हमारे मस्तिष्क ( दिमाग ) में एक घडी (पिनियल काय )होती है जो  दिन और रात के सापेक्ष शरीर में समय का हिसाब किताब रखती है और अपने समय के संदर्भ में ये सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहती है . इसी … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -1)

                       उसे देखा . बहुत बदली सी लगी .पूछा क्या बात है भई .कुछ ज्यादा ही भरी हुई सी लग रही हो.उसकेबोलने से पहले ही कई ओर से जवाब आया ..अरे भई खाते पीते घर की हैं…अब कुछ तो अंग लगना ही चाहिए न.  और वो बढ़ते शरीर पे साड़ी कसते हुए बस मुस्करा दी पर आँखे उसका साथ न दे सकी. जी हाँ मोटापा ..एक ऐसा बोझ जो दबे पाँव आता है और  न जाने कब ग्रहण की तरह शरीर के लग जाता है पता ही नहीं चल पाता  और जब पता चलता है तब तक तो ये लगता है खोने अपना आपा और फिर सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता चला जाता है.                         आज भारत में हर तीसरा व्यक्ति या तो अधिक भारी है या फिर मोटापे से ग्रसित है और इस प्रकार भारत में 3 करोड़ लोग मोटापे का शिकार हैं और अगले 20 वर्षो में इसकी संख्या दुगुनी होने की संभावना है . ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज ( GBD) की रिपोर्ट के अनुसार वज़न जनित बीमारियों का भार भुखमरी से अधिक हो गया है . आज कुपोषण 8 वें  स्थान पे है और मोटापा 6 ठे पे ,जो अपनेआप में बेहद चौंका देने वाले तथ्य हैं पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन            ये तो हुई आंकड़ों  की बात पर सबसे महत्व पूर्ण तथ्य है ये जानना की आखिर ये मोटापा है क्या ?? कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में  ??आखिर कैसे जाने की शरीर मोटापे की ओर अग्रसर है . तो आइये समझे मोटापे का गणित जो बेहद सरल है —– मोटापा — कैसे खोने लगा है आपा   ( भाग -1)                     मोटापा एक शारीरिक माप है जिसमे वज़न को लम्बाई के अनुपात में मापा जाता है और इस माप को बॉडी मास इंडेक्स (BMI )कहते हैं . इसे मापने का बेहद सरल फार्मूला है जिसके अनुसार —–                         शरीर का वजन ( किलोग्राम में )      BMI === ———————————–                         ( शरीर की लम्बाई मीटर में ) 2             इस सूत्र में वजन व लम्बाई का मान रखकर कोई भी व्यक्ति अपना  BMI जाँच सकता है और नीचे दिए गए चार्ट के आधार पे ये यह परख सकता है कि कहीं  वो अधिक भार या मोटापे की और अग्रसर तो नही हो रहा है और साथ ही वो अपनी श्रेणी का निर्धारण कर सकता है.  BMI का मोटापा सम्बन्धी चार्ट निम्नानुरूप सारणीकृत है क्रम संख्या                             BMI                           श्रेणी 1.                                 18—-25                        स्वस्थ 2.                                  25—-30                      अधिक भारी 3.                             30—-35                  मोटापा I श्रेणी ( खतरा आरम्भ ) 4.                                35—-40                   मोटापा II श्रेणी (खतरे की ओर अग्रसर ) 5.                               40 से अधिक                 मोटापा III श्रेणी ( खतरे के निशान से ऊपर )             BMI  मोटापे से सम्बंधित सूचना देने का सर्वाधिक उपयुक्त इंडेक्स है और इसे किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है इस माप  की एक मात्र कमी ये है कि यह शरीर कि मांस पेशियों के भार एवं वसा जनित भार में अंतर नही कर पाता है . अतः BMI  एक सूचना मपक है जो व्यक्ति को आने वाले खतरों से आगाह कर देता है. मोटापा दो प्रकार का होता है —- 1..कमर व पेट पर जमी वसा से उपजा मोटापा ( सेब आकृति का शरीर ) 2..कूल्हों, जांघो व हाथों पे जमी वसा से उपजा मोटापा ( नाशपाती आकर का शरीर ) इन दोनों प्रकार के मोटापे में कमर व पेट पर  वसा के जमाव से उत्पन्न मोटापा अधिक खतरनाक व हानिकारक है|     कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में शरीर ??             अब सवाल आता है कि मोटापा किस कारण से उत्पन्न होता है और फिर लगातार बढ़ता चला जाता है . मोटापे का मूल स्त्रोत  है अधिक भोजन और कम शारीरिक श्रम जो वर्तमान  जीवन पद्धति का एक अहम हिस्सा हो गया है. इससे शरीर में बची हुई अतिरिक्त ऊर्जा धीरे धीरे वसा कोशिकाओ में जमा हो जाती है और मोटापे का रूप ले लेती है          आरम्भ में यह प्रक्रिया धीमी गति से होती है जिस पर समय रहते ध्यान न दिए जाने पर यह विकराल रूप धारण कर लेती है अर्थात शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता, खपत एवं संग्रहण में असंतुलन से उत्पन्न होता है मोटापा और इसकी परवाह न करने पे ये विस्तार पाता चला जाता है इन दो कारणों के अलावा मोटापा बढ़ने के अन्य कारण ये हो सकते हैं —– 1.भोजन की मात्र के साथ भोजन  की क्वालिटी अर्थात भोजन में संगृहीत ऊर्जा व भोजन में शामिल अवयव 2.भोजन करने का समय 3.नींद की अवधि व गुणवत्ता 4.शरीरिक श्रम व व्यायाम का कु प्रबंधन 5.बढ़ता तनाव 6.आनुवंशिक कारण पढ़िए – क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल रखते हैं            मोटापा इन सारे कारणों का मिला जुला परिणाम  है जो शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली को प्रभावित करते हैं जससे ये प्रणाली अनियंत्रित व अनियमित हो जाती है व मोटापा बढ़ने लगता है हमारा शरीर एक कारखाने की तरह से है जिसमे अनेको कार्य प्रणालियां क्रियाशील रहती हैं . इनमे से ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसका स्वप्रबंधन बेहद शानदार होता है जिसमें वाञ्छित कार्यों के लिए ऊर्जा की खपत के साथ साथ बुरे दिनों ( जब किसी भी कारण से भोजन प्राप्त न हो ) के लिए ये कुछ ऊर्जा को बचा के रख लेता है ताकि शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति सुचारू बनी रहे और शरीर  कार्य करते रहें             शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक मेटाबोलिक प्रक्रिया है जो पूरे शरीर में आवश्यकता व कार्य के अनुरूप ऊर्जा का बंटवारा करती है जिसमें शरीर के अनेक एन्जाइम्स , प्रोटीन्स के साथ अनेक हार्मोन भी भाग लेते हैं . यह एक जटिल प्रक्रिया है जो शरीर में बिना रुके लगातार चलती है जिससे शरीर में ऊर्जा की निरंतरता को बनाये रखा जाता  है              किन्तु आवश्यकता से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति  (भोजन के रूप में  ) होने पर इस कार्य प्रणाली के एन्जाइम्स व हार्मोन्स पर अतिरिक्त कार्य भार बढ़ जाता है और ऐसे में ये अपना कार्य संतुलन खो देते हैं व प्रणाली फेल  हो जाती है … Read more

जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, यानि की खाली घोंसला और सिंड्रोम मतलब लक्षणों का समूह|  जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह उन लक्षणों का समूह है जो बच्चों द्वारा हॉस्टल या नौकरी पर घ से चले जाने से माता- पिता खासकर माँ में उत्पन्न होता है |आइये जानते हैं इसके बारे में … नए ज़माने की बिमारी एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम        आज सुधा जी के घर गयी| सोफे पर उदास सी बैठी थी| मेरे लिए पहचानना मुश्किल था यह वही  सुधा जी हैं जिन्हें कभी शांति से बैठे नहीं देखा| एक हाथ बेसन में सने बेटे के लिए पकौड़ियाँ तल रही होती दूसरे हाथ से एक्वागार्ड ओन कर पानी भर रही होती और मुंह जुबानी बेटी के गणित के सवालों से जूझ रही होती| अक्सर मुस्करा कर कहा करती तुम आ जाया करो ,मेरे पास तो फुर्सत नहीं है| मेरी तो हालत यह है कि अगर यमराज भी आ जाए तो मैं कहूँगी अभी ठहर जाओ पहले ये काम खत्म कर लूँ| मैं मुस्कुरा कर कहती करिए ,करिए ,ये समय भी हमेशा नहीं रहेगा|  पर आज …. मैंने उनके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा “ क्या हुआ? उनकी आँखों से आँसू की धारा बह चली| सुबुकते हुए बोली “ कितना चाहती थी मैं की बच्चे कुछ बन जाए, जीवन में सफल हो जाए …उनको समय पर हेल्दी खाना , डांस क्लासेज, ट्युशन ले जाना ,पढाना, हर समय उन्हीं के चारों ओर घूमती रहती| अब जब की दोनों का मनपसंद कॉलेज में चयन हो गया है और मुझसे दूर चले गए हैं …. घर जैसे काट खाने को दौड़ता है| अब कौन है जिसको मेरी जरूरत है, खाना बनाऊ  तो किसके लिए, कौन बात –बात पर कहेगा “ आप दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ मॉम हो| कहकर वो फिर रोने लगी |                   ये समस्या सिर्फ सुधा जी की नहीं है| इससे एकल परिवार में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं व् कुछ हद तक पुरुष भी जूझ रहे हैं| वो बच्चे जो माँ के जीवन की धुरी होते हैं जब अचानक से हॉस्टल चले जाते हैं तो माँ का जीवन एकदम खाली हो जाता है| २४ घंटे व्यस्त रहने वाली स्त्री को लगता है जैसे उसके पास कोई काम ही नहीं हैं| यही वो समय होता है जब उनके पति अपने –अपने विभाग में ज्यादा जिम्मेदारियों में व्यस्त होते हैं| एकाकीपन और महत्वहीन होने की भावना स्त्री को जकड लेती है| मनो चिकित्सीय भाषा में इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहते है| क्या है एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम                 शाब्दिक अर्थ देखे तो ,एक चिड़िया द्वारा तिनके –तिनके को जोड़कर घोसला बनाना फिर चूजे के पर लगते ही उसका खाली हो जाना| देखा जाए तो एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कोई शारीरिक बीमारी नहीं है|  ये उस खालीपन का अहसास है जो बच्चों के घर के बाहर चले जाने से उत्पन्न हो जाता है| ये अहसास  अब बच्चों को मेरी जरूरत नहीं रही| या मुझे अब २४ घंटे बच्चों का साथ नहीं  मिलेगा| साथ ही बच्चों की जरूरत से ज्यादा चिंता … वो ठीक से तो होगा , सुरक्षित होगा , खाया होगा या नहीं| यदि किसी का एक ही बच्चा है और उसने जरूरत से ज्यादा अपने को बच्चे में व्यस्त कर रखा है तो उसकी पीड़ा भी ज्यादा होगी|  एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण             इस के शिकार पेरेंट्स ऐसी वेदना से गुजरते हैं जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है | इसके अतिरिक्त उनमें  हर समय होने वाले सर दर्द ,  आइडेंटिटी क्राइसिस , और  वैवाहिक झगड़ों व्  अवसाद के भी लक्षण दिखाई देते हैं | एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम में क्या करे           जाहिर है यह मानसिक अवस्था है ,इसलिए इसकी तैयारी भी मानसिक ही होगी | जब आपके बच्चे दूर रह रहे हों तब  अपने टाइम टेबल के हिसाब से उनका टाइम टेबल सेट करना छोड़ दीजिये ,बल्कि इस बात पर ध्यान देने की कोशिश करिए की आप अपने बच्चे की सफलता में अब  क्या योगदान दे सकते हैं|  फोन ,विडिओ कालिंग या वहां जा कर उनसे टच बनायें रखिये | जितना हो सके सकरात्मक रहिये| अगर आप फिर भी अवसाद महसूस कर रहे हैं तो दोस्तों ,रिश्तेदारों की मदद लीजिये व् अगर जरूरत समझे तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करिए| इस समय का उपयोग अपने जीवन साथी के साथ झगड़ने में नहीं रिश्ते सुधारने में करिए| क्योंकि अब आप आराम से एक दूसरे को वक्त दे सकते हैं, कैंडल लाइट डिनर कर सकते हैं |ताजमहल घूमने जा सकते हैं |     एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से बचने की तैयारी    आपको पता है कि बच्चो को अपना भविष्य बनाने के लिए आपसे दूर जाना ही है तो उसकी तैयारी पहले से करिए | कोई रचनात्मक स्किल में रूचि लीजिये |कोई एन जी .ओ ज्वाइन कीजिये |  घर के अन्दर और बाहर कोई बड़ी जिम्मेदारी लीजिये |कुछ भी ऐसा कीजिये जिसमें  आप अपनी पूरी शक्ति झोक सके और आप को उस खालीपन का अहसास न हो जो बच्चों के घर से दूर जाने की वजह से उत्पन्न हुआ है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …. प्रिंट या डिजिटल मीडिया कौन है भविष्य का नंबर वन बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन आखिर क्यों 100% के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे गुरु कीजे जान कर   आपको  लेख “क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

खतरनाक है जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल

        ये  हमारी कंपनी का नया  सिम कार्ड “ गीत “ उनके लिए जो जरूरत से ज्यादा बातें करते हैं | जब वी मेट का शाहिद कपूर भले ही  गीत सिम कार्ड लांच करके आपको जरूरत से ज्यादा बातें करने के रंगीन सपने दिखाए | पर अगर आप भी गीत की तरह बक बक ,बक बक करते रहतें है ,वो भी मोबाइल पर …. जो जरा सावधान , ये खतरनाक हो सकता है |                बड़ा हो छोटा हो ,अमीर हो गरीब आज हर हाथ में एक नन्हा जादुई पिटारा है …. यानी आपका  मोबाइल | जगह –जगह  लगे होर्डिंग्स विज्ञापन आदि जो दिन रात नए लांच हुए मोबाइल की गुणवत्ता बताते रहते हैं ,झूठ भी तो नहीं हैं | ये जादुई पिटारा ही तो है जिससे आप घर ,बाहर , ट्रेन में , कार में बाथरूम में अपनों से कनेक्ट हो सकते हैं | वीडियो गेम खेल सकते हैं ,जहाँ चाहे जिसे चाहे msg भेज सकते हैं | आधुनिक मोबाइल के आने से आप यह तो कह ही सकते हैं की आप अपना पी सी अपनी जेब में लिए घूमते  हैं |  कोई भी सखी ,साथी ,सह्पाठी नया मोबाइल ले कर आता है तो उसके फायदे गिनाना शुरू कर देता है| देखो टच स्क्रीन ,इतने पिक्सेल का कैमरा , इतनी जी.बी की मेमोरी आदि- आदि | फायदे ,फायदे न जाने कितने फायदे पर जरा ठहरिये … मोबाइल से जितने फायदे हैं उसके गलत प्रयोग से उतने नुक्सान भी हैं | मोबाइल बढ़ा रहा है अपनों से दूरियाँ              अब जरा किसी आम घर का दृश्य देखिये | ट्रिन ….ट्रिन …… नमस्कार  से शुरू हुआ वार्तालाप एक –डेढ़ घंटे खिंच ही जाता है | फिर शुरू हो गया वीडियों गेम | मेज पर खाना ठंडा हो रहा है तो हो रहा है ,किसे होश है ….. जब होश आया तो मजबूरन ईयर फोन कान में ठूंस कर ठंडा खाना मुंह में ठूसना शुरू कर दिया |  अब जरा दूसरा दृश्य देखिये | एक कमरे में माता –पिता बच्चे बैठे हैं  दो चार सद्स्यों  के नाम और जोड़ लीजिये ….. सब अपने –अपने मोबाइल में मस्त | कोई फेस बुक कर रहा है ,कोई व्हात्ट्स एप्प , कोई sms तो कोई बात कर रहा है | एक दूसरे के साथ ,एक दूसरे के पास बैठे हुए भी सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त | एक कमरे में न जाने कितनी दुनिया बसी है| ऐसे दृश्य देखकर मुझे रसखान की पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाती हैं ………… “ कोहू न कहू कि कानी करे सिगरो ब्रिज वीर बिकाय गयो रे “              हालाँकि ये पंक्तियाँ भगवान  श्री कृष्ण पर कही गयी हैं पर मोबाइल पर पूर्णतया सूट करती हैं | एक ही छत के नीचे रहने वाले अपने –अपने मोबाइल में इस कदर डूबे रहते हैं कि   स्टे कनेक्टेड “ का नारा देने वाले मोबाइल ने घरों में संवाद हीनता की स्तिथियाँ उत्त्पन्न कर दी हैं | गौर तलब है कि रिश्ते बन रहे हैं या टूट रहे हैं | या यूँ कहे हमारी दुनियाँ बड़ी हो रही है और दायरे सीमित | कई बार दूर से बात करने पर चेहरे के भाव न दिख पाने के कारण बातों के गलत अर्थ लग जाते हैं | ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो जाती हैं | जिसको समझाना या सुलझाना मुश्किल हो जाता है | मोबाइल कर रहा है विद्यार्थियों का फोकस कम                      रिश्ते नातों  को छोड़ भी दिया जाए तो मनुष्य की सबसे अहम् जरूरत स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ को तो मॉफ  नहीं किया जा सकता | पहला सुख ही निरोगी काया है | अभिषेक बच्चन टी वी ऐड में भले ही “ वाक वेन यू टॉक “ को जितना जोर शोर से कहे पर यह सच्चाई से कोसों दूर है | फोन मोबाइल में बात करते समय कोई अन्य काम करने से हमारी ध्यान या कंसेंट्रेशन क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है | विद्यार्थियों के लिए तो यह पक्ष खासा चेतावनी दायक है | जानलेवा भी साबित हो रहा है मोबाइल   मोबाइल के साथ फ्री में आया उसका छोटा भैया ईयर फोन परले दर्जे का जानलेवा साबित होता है | अच्छी क्वालिटी के ईयर फोन बाहर की सारी ध्वनियाँ कट कर देते हैं | इस तरह सगीत सुनने की आदत इतनी बुरी पड़  जाती हैं कि घर में चाहे आग लगे चाहे चोर आये ….होता है तो होने दो | संगीत के आनंद में सुनाई किसे देगा | पर सबसे दर्दनाक है जब न जाने कितने किशोर ,युवा कान में ईयर फोन लगा कर संगीत सुनते हुए  सड़क पार करते हैं तो वाहन के हॉर्न की आवाज़ न सुन पाने की वजह  से  अल्पायु में ही  अपनी ईहलीला समाप्त करके सुरों से पार चले जाते हैं |  मोबाइल के अतिशय प्रयोग से होने वाली बीमारियाँ  १ )  मोबाइल से निकलने वाली रेडियो एक्टिव वेव्स सीधे दिमाग में प्रवेश करती हैं |जो कालांतर में ब्रेन संकुचन , ,तनाव ,चिडचिडापन ,कैंसर व् ट्यूमर का कारण बनता है | अगर आप ज्यादा बात करते हैं और आधुनिक फोन से बात करते हैं तो आप को खतरा ज्यादा है | जहाँ तक हो सके मोबाइल को कान से दूर रखे | रिसर्च कहती है बात करते समय मोबाइल कान से कम से कम २० cm दूर रखना चाहिए | कहना  अतिश्योक्ति न होगी कि यह एक धीमा जहर है जो धीरे –धीरे मौत की तरफ ले जाता है | २ ) टेक्स्ट क्लॉ वो मेडिकल टर्म है जो ज्यादा टेक्स्ट टाईप करने , स्क्रोल करने मसेजिंग करने वालों की अँगुलियों में हो जाता है | टेंडन सूज जाते हैं | अंगुलियाँ मोती व् भद्दी हो जाती हैं व् उनमें दर्द होता है | ३ )  मोबाइल ज्यादा कान पर लगाने से कानों में सुजन व् ट्यूमर की सम्भावना रहती है व् सुनने की क्षमता का हास होता है | ४ ) आजकल टच स्क्रीन वाले मोबाइल को आप खाना खाते समय , बाज़ार में कहीं भी इस्तेमाल करते है तो आप की अँगुलियों से कीटाणु निकल कर वहां ग्रो करने लगते हैं | अगर आप रोज स्क्रीन साफ़ नहीं करते तो दोबारा छूने से ये हमारी बिल्ली हामी को म्याऊ करते हुए  आप को ही बीमार कर … Read more

उपवास का वैज्ञानिक महत्व

   उपवास का केवल धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है | कैसे ? आइये जानते हैं चंद्रेश कुमार छतलानी जी के लेख  से … —————————————                        जानिये क्या है उपवास का वैज्ञानिक महत्व  सर्वप्रथम मैं पाठकों को एक सच्ची राय देना चाहूंगा, इस लेख को पढिए, एक बार, दो बार, फिर इसे भूल जाइए। अगर आप इसे कागज़ पर पढ रहे हैं और मन चाहे तो इसकी चिन्दी – चिन्दी करके ज़ोर से फूंकें, और फिर मौज से इसे धरती पर बिखरता हुआ देखिए। सच पूछें तो उपवास पढ़ने की नहीं वरन् करने की चीज है। लेख, पुस्तकें आदि सिर्फ इसका सामान्य ज्ञान देकर आपको प्रेरित तो कर सकते हैं, लेकिन, अगर उपवास को वास्तव में जानना चाहते हैं तो उपवास कीजिए। यह अनुभव का ज्ञान है। चलिए, अब हम चर्चा करते हैं कि रोग कैसे होते हैं ? थोड्रा सा घ्यान स्थिर कीजिए, और फिर पढि़ए, प्रत्येक रोग के फलस्वरूप किसी न किसी रीति से शरीर से श्लेष्मा बाहर आता है। खांसी में, जुकाम में, क्षय में, मिरगी में, इत्यादि और भी कई रोग, कान के, आखों के, त्वचा के, पेट के एवं हृदय के, जिनमें श्लेष्मा का का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता है, उनमें भी रोग का कारण श्लेष्मा ही होता है। श्लेष्मा, तब शरीर से बाहर न आने की वजह से रक्त में मिल जाता है, और ठंड की वजह से जहां रक्त नलिकाएं सिकुड़ गई हैं, वहां पहुंचकर दर्द पैदा करता है, और जब रोग बढ़ जाता है तो मवाद (सड़ा हुआ रक्त) उत्पन्न होता है। यूं तो थोड़़ा श्लेष्मा प्रत्येक स्वस्थ – अस्वस्थ शरीर में होता ही है और यह मल के साथ थोड़ी – थोड़ी मात्रा में निकलता रहता है। रोग की दशा में रोगी को श्लेष्मा विहिन खाद्य देना चाहिए। जैसे कि कोई फल या सिर्फ नींबू पानी। चिकनाई, मांस, रोटी, आलू एवं अन्य कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ जैसे चावल आदि के रूप में श्लेष्मा शरीर में पंहुचना बंद हो जाता है तो शरीर की जीवनी–शक्ति इकट्ठी होकर रक्त में मौजूद श्लेष्मा एवं मवाद को बाहर फैंकने को प्रवृत्त होती है। यह साधारणतः पेषाब के साथ निकलने लगता है। रोग के अनुसार शरीर के अन्य भागों से भी श्लेष्मा उत्सर्जित हो सकता है। तो फिर भोजन की क्या आवष्यकता हैं ? इसलिए क्योंकि साधारण कार्यों एवं श्रम करने से शरीर की जो छीजन होती है, मस्तिष्क भूख लगने की सूचना भेजता है और खाने के पष्चात, यदि मस्तिष्क को किसी अन्य कार्य में न लगाया जाए तो वह अपनी सारी शक्ति लगाकर किए हुए भोजन को पचाने का कार्य करता है, ताकि शरीर के सेल (कोषों) की मरम्मत हो सके, जीवन–दायिनी शक्ति उत्पन्न हो सके और शरीर गर्म रह सके। प्रश्न यह भी उठता है कि मस्तिष्क को भोजन कहां से मिलता है? तो मित्रों एक सत्य और उजागर कर रहा हूँ कि,  मस्तिष्क अपनी खोई हुई ऊर्जा को आराम और निद्रा से पुनः प्राप्त कर लेता है। हमारा मस्तिष्क हमारा सबसे अच्छा गाइड है, यदि मस्तिष्क कहता है कि रोग में भूख नहीं लगनी चाहिए, तो  भूख बन्द हो जाती है, ताकि शरीर की सारी ऊर्जा विजातिय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकालने में ही खर्च हो, भोजन को पचाने में नहीं। यह हमारे मस्तिष्क की ही शक्ति है वो हमारे शरीर का विश्लेषण कर जिस तरह की आवश्यकता है वैसा व्यवहार शरीर से करवाता है| एक सत्य यह भी है कि हमारे भोजन का जो भाग पचकर शरीर में लग जाता है, वही पुष्टिवर्धक होता है। बाकि या तो उत्सर्जित हो जाता है अथवा शरीर में जमा होता रहता है। जब शरीर में इकट्ठे मल, विष, विजातिय द्रव्य अपने स्वाभाविक मार्ग से (श्वास, पसीना, मल उत्सर्जन आदि) से बाहर नहीं निकल पाते हैं तो अस्वाभाविक तरीकों से शरीर उन्हें उत्सर्जित करने की चेष्टा करता है, सामान्य तौर पर इसे रोग कहा जाता है। दूसरे तरह के रोग वे होते है, जो विकार की अधिकता से जीवन शक्ति के हृास के कारण अंगो की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलने में बाधक होते है। धीरे–धीरे जीवन शक्ति का हृास इतना अधिक हो सकता है कि इसका पुननिर्माण अत्यन्त ही कठिन हो जाता है। प्रारम्भिक स्थितियों में अनावश्यक द्रव्य का शरीर में भोजन द्वारा जाना बन्द होने पर रोगमुक्त होने की पूर्ण संभावना होती है। अर्थात् उपवास के द्वारा हम रोगमुक्त हो सकते है। उपवास प्रकृति की स्वास्थ्य संरक्षक विधि है, पूर्ण एवं स्थायी स्वास्थ्य का दाता है। तो फिर उपवास कैसे किया जाए?  उपवास करने के हेतु कुछ बिंदु निम्नानुसार है: 1.    उपवास करने के लिए शरीर में कुछ बल भी होना चाहिए और एक दृढ़ निश्चय भी। 2.    सर्वप्रथम छोटे–छोटे उपवासों का अनुभव होना चाहिए, उपवास का अनुभव न होने पर सदैव किसी अनुभवी के निर्देशन में ही उपवास करे। पहले 2-3 दिन, फिर एक सप्ताह का और फिर और आगे। 3.    उपवास मे प्रकृति के निकट शुद्ध वायु मे रहें। 4.    कोशिश करें कि अकेले रहें। 5.    आराम अवश्य करें। उपवास के प्रारम्भ में सिरदर्द, कमजोरी, मूर्छा, अनिद्रा, आदि की शिकायत हो सकती है, जीभ गन्दी रह सकती है। धैर्य रखें व चिकित्सक की सलाह लें। 6.    थोड़ी–थोड़ी कसरत रोज करें। 7.    बिना चिकित्सक की सलाह के, उपवास के साथ अन्य चीज़े, जैसे कि वाष्प स्नान आदि न मिलाएं। 8.    उपवास आरंभ करने के एक सप्ताह पूर्व हल्का भोजन करें और इसे निरन्तर कम करते रहें। 9.    उपवास के आरंभिक दिनों को शरीर की सफाई में लगाओं। एनिमा लो, पानी पीओ, गहरी सांसे लो, नींबू पानी पीयो, रगड़–रगड़ कर स्नान करो। अच्छा है कि एक सप्ताह तक एनिमा लेना चाहिए। सारे बदन को रगड़ कर नहाना चाएि। रोज टहलना चाहिए। पाव–पाव भर करके दिनभर में 2-2) सेर पानी पीना चाहिए। नींबू मिलाकर पीये तो और भी ठीक है। पर आधा पाव से अधिक नहीं । अंगूर, संतरे का रस भी लिया जा सकता है। अनुभव के आधार पर धूप स्नान भी किया जा सकता है। 10.    उपवास के समय वायु विकार होने पर चोकर या इसबगोल का उपयोग किया जा सकता है साधरण ज्वर, दुर्गंधपूर्ण पसीने एवं बेस्वाद मुँह की चिंता नहीं करनी चाहिए। 11.    मानसिक स्थिति को संतुलित … Read more

Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार

Anxiety एक बहुत ही सामान्य सा शब्द है जिसे हम सब महसूस करते हैं | पर जब हम Anxiety Disorder की बात करते हैं तो ये एक गंभीर मानसिक बीमारी हैं | जिसे समय रहते इलाज़ की जरूरत है |Anxiety Disorder के बारे में आज हम जानेगे नीता मेहरोत्रा जी के इस विशेष लेख से Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार  आपने अपने आसपास , अपने प्रिय लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखा होगा |  कुछ ऐसे लक्षण जिन्हें भले ही आप न समझ पा रहे हों पर आपको लग रहा हो कि कहीं कुछ तो गलत है |  अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए | ये मानसिक रोगों की शुरुआत हो सकती है |अचानक हुआ व्यवहार में ये परिवर्तन सामान्य नहीं हैं | मेरा उद्देश्य इस लेख के माध्यम से इस विषय में ध्यान आकर्षित करना है |  ताकि समय रहते मानसिक रोगों को पहचाना जा सके व् उनका इलाज हो सके |  व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन ….मानसिक रोगों की शुरुआत के लक्षण  • सामान्य नियमों का पालन नहीं करना  • बिना वजह बहस करना  • नखरे करना  • अत्यधिक जिद्द करना , अपनी बात किसी भी कीमत पर मनवाने के लिए अड़ जाना  • हर समय उत्तेजना से भरे रहना  • खुद को एकदम सही साबित करना और साम-दाम -दंड -भेद से उसे मनवाना  • चिड़चिड़ा होना  • अपने फ्रस्ट्रेशन को संभाल नहीं पाना  • शंकालू होना  • अपने आप कल्पना करके विपरीत परिस्थितियों को वास्तविक बताना  • दूसरों पर बिना उचित बात के दोषारोपण करना  • अनजानी आशंकाओं से भयभीत रहना  . . इन लक्षणों से युक्त आपके प्रिय बहुधा इनसे भी ग्रस्त होते होंगें  • सिरदर्द , माइग्रेन  • बुखार  • अचानक बदन में कँपकपाहट  • आँखों में ब्लड क्लॉट बनना  • याददाश्त में कमी  • ब्लड प्रेशर की समस्या  . . मैं  बात कर रही हूँ मैं Behavioral Disorder /Disruptive Disorder की यह व्यस्कों में आम सी पाई जाने वाली बीमारी है। सामान्यत: यह बचपन में ही प्रारम्भ होता है किन्तु पर्याप्त जानकारी और इलाज़ के आभाव में बड़े होने पर गंभीर समस्या बन जाता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति सामंजस्य के अभाव में बहुत तकलीफ़ से गुज़रता है। वह बहुधा ऐसे सामान्य क्षेत्रों में असफलता का मुँह देखता है जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। उसके रिश्ते , दोस्ती सब तनावपूर्ण हो जाते हैं। . आइये आज जानते हैं Behavioral Disorder कितने प्रकार के होते है …… 1. Anxiety Disorder  2. Emotional Disorder 3. Dissociative Disorder 4. Pervasive Development Disorder 5. Disruptive Behavior Disorder .  Anxiety Disorder . यह एक बहुत ही सामान्य भावना है जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव करता है। किन्तु , कुछ लोगों में इसके आवेग इतना तीव्र होता है कि उनका पूरा जीवन इससे प्रभावित हो जाता है। इससे गंभीर रूप से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित की प्रचुरता पाई जाती है …. • अनिद्रा  • चिड़चिड़ापन  • अत्यधिक जिद्द  • गुस्सा / रोष  • घबराहट  • अपने आप कल्पना में घटनाओं का जन्म और उनको वास्तविक मान कर दुःख में गहरे डूब जाना या अवसादग्रस्त रहना  . यह एक गंभीर समस्या है , Anxiety को पहचान कर , उसका सही इलाज किसी चिकित्सक के परामर्श से बहुत ही जरूरी है।Anxiety व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति हमेशा insecurity से घिरा रहता है परन्तु स्वयं ही यह नहीं समझ पाता कि उसे किस बात का भय या insecurity है। यह व्यक्ति में स्ट्रेस के कारण होती है। व्यक्ति हमेशा नकारात्मक भाव से भरा रहता है। वह खुद से ही नकारात्मक संवाद करता है। .  anxiety से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं  …. 1. हाथ , पैर , बदन में कंपकपाहट  2. पेट में कुछ अजीब तरह की उमड़-घुमड़  4. तनावग्रस्त मांसपेशियाँ 5. Nausea 6. Diarrhoea 7. सिरदर्द , माइग्रेन  8. पीठ का दर्द  9. अचानक सुन्न पड़ जाना  10. हाथ-पैर में सूई जैसा चुभना  11. अचानक अत्यधिक पसीना आना  12. अचानक साँस उखाड़ना और बेहोश तक हो जाना  13. अनिद्रा  14. हार्ट बीट का अचानक अत्यधिक बढ़ना -घटना  15. अपनी काल्पनिक सोच से खुद को तकलीफ पहुँचाने वाले दृश्य / घटनाओं की रचना कर लेना और उसे सच मान कर भयंकर अवसाद में डूब जाना  16. अत्यधिक जिद्द करना और येन केन प्रकारेण अपनी बात मनवा लेना  17. अपने सिवा अन्य सभी को निम्न सोच का समझना  18. समाज में सामंजस्य का पूर्ण अभाव . बहुधा anxiety के लक्षणों को शारीरिक बीमारी हार्ट अटैक या स्ट्रोक समझ कर लोग इलाज प्रारम्भ कर देते हैं जो anxiety को और अधिक बढ़ा देता है। Anxiety की गंभीरता सही उपचार के अभाव में बहुत गंभीर हो जाती है। उन सभी बातों / घटनाओं को जिससे anxiousness बढ़ती है हर संभव टालना चाहिए। साथ ही किसी कुशल चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए क्योंकि एक बार स्थिति को टाल देने पर पर्याप्त इलाज के अभाव में anxiety पलट कर दुगने वेग से अटैक करती है जो गंभीर परिणाम भी दे सकती है। . इलाज _  चिकित्सक से परामर्श अत्यन्त आवश्यक है तथा कुशल चिकित्सक की गहन देखरेख में इलाज का होना भी उतना ही आवश्यक है। . सही इलाज के साथ व्यक्ति को मेडिटेशन , खुद को रिलैक्स करने के तरीकों को भी सीखना और करना चाहिए। बीच-बीच में गहरी साँस अंदर लेकर छोड़ना भी सहायक होता है। . खुद को नकारात्मक बातें करने से यथा संभव रोकना चाहिए। एकांतवास से हर हाल में दूर रहना चाहिए। . कुछ नए रोचक कार्यों में खुद को व्यस्त करना चाहिए। नयी हॉबी डेवलप करनी चाहिए। अपने आसपास हरियाली को जगह देनी चाहिए। पौधों की सेवा स्ट्रेस को दूर भगाती है। . किसी भी तरह के – सही या गलत – गुस्से / रोष के आने पर तुरन्त उस जगह से यह सोच कर हट जाना चाहिए कि उस घटना पर रोष / क्रोध बाद में विस्तार से प्रकट करेंगें। खुद को किसी विपरीत प्रकृति के कार्य में उलझा लेना चाहिए। इससे क्रोध का आवेग निश्चित रूप से कम होते हुए कई बार समाप्त भी हो जाता है। . Anxiety Disorder निम्नलिखित प्रकार का होता है …. 1. Social Anxiety Disorder 2. Specific Phobias 3. Panic Disorder I) SOCIAL ANXIETY DISORDER ========================== Social Anxiety … Read more