नादान सी वो लड़की – प्रिया मिश्रा की कवितायें
प्रिया मिश्रासतना म.प्र. 1)नादान सी वो लड़की कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की पत्तो से खेलती थी पेड़ो पे झूलती थी हर रोज थी जो गढ़ती कोई नई सी कहानी कब हो गई सयानी? नादान सी वो लड़की। जुल्फे थी मानो उसकी जैसे कोई घटाये हरपल में संग रहती सभी की दुआएँ; कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। तितली के पीछे भागे बंदरो सी कूदे- फान्दे नदियो सी थी वो शीतल हवाओ जैसी चंचल रोके से भी रुके न ऐसी थी वो दीवानी कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। हर बात पे झगड़ती संग सबके लड़ती रहती पल भर में रूठ जाती और झट से मन जाती हर दम ही करती रहती बच्चों सी नादानी बक -बक न थी रूकती बस बोलती ही जाती बातो में तो थी वो हम सभी की नानी कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। नानी की थी वो प्यारी नाना की दुलारी पहले थी जो न सहती एक बात भी किसी की अब चुप हो सह रही है हर बात हर किसी की कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की गर्म रोटी बिन घी के जो न खाती ससुराल में ठंडी रोटी, भी वो खा रही है कब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। परियो सी पली थी बाबा की लाड़ली थी अब बन गई है बीबी और बहू वो किसी की हर बात पे नादानी शैतान की थी नानी अब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की अब न रही शैतानी बन गई है वो नानी हर बात जानती है जबसे माँ बनी है हाँ हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। नानी जो बन गई है तो और खिल गई है अब हो गई सयानी नादान सी वो लड़की। 2) “इंसान चाहिए” चारो तरफ लुटेरे है; अब और नहीं शैतान चाहिये, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। चारो ओरे है गुंडागर्दी ; अब और न गुंडा राज चाहिए , अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। भाई भाई के खून का प्यासा ; ऐसा न नर संहार चाहिए, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। नारी पल पल मरती हो जहाँ ; ऐसा न मकान चाहिए, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। माता पिता बोझ हो जिसको ; ऐसी न संतान चाहिए, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। कन्या हत्या करके पाये; ऐसा न अभिमान चाहिये, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। भ्रष्टाचार चतुर्दिक फैला; ऐसी न सरकार चाहिए, अपनी मातृभूमि पर मुझको अब केवल इंसान चाहिए। 3) “तकलीफ़” आख़िर कब होती है तकलीफ़? क्या तब जब कोई अपना रूठ जाए या तब जब कोई अनजाना छूट जाए? या तब जब देश के रक्षक ही भक्षक बन जाए? या तब जब हमारे गुनाहों की सजा कोई और भोगता है? या तब जब बिना कुछ कहे ही कोई हमे छोड़ जाए? या तब जब जनमो का साथी पल भर भी साथ ना निभाए? या तब जब किसानों की मौत पर उसकी विधवा सिर्फ़ चंद रुपयों का मुआवजा पाए? या फिर तब जब कोई मासूम बच्ची की लाज के साथ खेल जाए? या तब जब सबकुछ जानकर भी कोई जुबा ना हिलाए? “आख़िर कब होती है तकलीफ़?” क्या तब जब सरे राह नारी को छेड़ कोई जाए? और मूक बधिर जनता कोई आवाज़ न उठाए ; या तब जब नन्ही सी बच्ची की जान ली है जाती कभी कोख मार दी है जाती तो कभी मंदिरों के बाहर फेंक दी है जाती! या तब दहेज के लोभी जलाकर है मार देते; या फिर तब जब बड़ा होके बेटा माँ-बाप को ही ना निहारे; “कब होती है तकलीफ़?” क्या तब जब कोई मेहनत कर के भी मोल न पाए , या तब जब रुपयों के दम पर कोई मिनिस्टर बन जाएँ! या तब होती है तकलीफ़ जब कोई चालीस करोड़ एक साडी पे उडाए और कोई औरत अपना तन ढकने को एक वस्त्र भी न पाए! या तब होती है तकलीफ़ जब कोई ऊँच-नीच,ग़रीबी-अमीरी का पाठ है पढाए! या तब जब मजहब या धर्म के नाम भाई -भाई बँट है जाए! हाँ होती है तकलीफ़ !बहुत ज्यादा ,पर क्या कभी मिटा सकेंगे हम ये तकलीफ़? 4)गीत मिलकर संग पाप मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें हर मुश्किल को संग मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें गांव-शहर को स्वच्छ बनाने चलो ओ साथी साथ चलें आजादी का अर्थ बताने चलो ओ साथी साथ चलें भष्ट्राचार को जड़ से मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें बच्चों को बचपन से मिलाने चलो ओ साथी साथ चलें शिक्षा का दीप जलाने चलो ओ साथी साथ चलें सोन चिरैया खोज के लाने चलो ओ साथी साथ चलें ऊंच-नीच का भेद मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें लिंग भेद का भेद मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें हर जुर्म को जड़ से मिटाने चलो ओ साथी साथ चलें बंजर मे हरियाली लाने चलो ओ साथी साथ चलें अपने देश को स्वर्ग बनाने चलो ओ साथी साथ चलें नशे की जड़ को हटाने चलो ओ साथी साथ चले युवाओ को राह दिखाने चलो ओ साथी साथ चले नेताओं को राह दिखाने चलो ओ साथी साथ चले बुजुर्गो को सम्मान दिलाने चलो ओ साथी साथ चले “लिख रही हूँ” लिख रही हूँ तो लगता है जी रही हूँ अभी, अपनी धड़कन को साँसों मे पिरो रही हूँ कही! लिख रही हूँ तो मानो कोई बंधन नहीं, न लिखूँ तो लगता है जकडी हूँ जंजीरो मे कई! मन होता है जो उदास कभी, लिख देती हूँ मै हर ग़म को तभी! फिर न होती उदासी न मुश्किल कही लिखती हूँ क्योंकि यहीं है चाहत मेरी, हर मंज़िल मेरी, हर तमन्ना मेरी! न लिखूँ तो लगे; हूँ अधूरी अभी ! लिखती हूँ क्योंकि ,वो ही है पूरक मेरी! लिखती हूँ तभी जी रही हूँ अभी……… परिचय:- मेरा परिचय नाम -प्रिया मिश्रा शिक्षा –b.com (c.a.) प्रकाशित रचनाएँ–लघुकथाएँ,कवितायेँ एवं लेख देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित (रचना प्रकाशित अखबारो के नाम-दैनिक भास्कर सतना प्लस, जनसंदेस ,राजस्थान पत्रिका “सृजन” ,भोपाल लोकजंग ,झाँसी लोकमत एवं महानगर मेल मुम्बई आदि )