आया राखी का त्यौहार – भाई बहन पर कवितायें
बहन की राखी ईमेल एसएमएस की दुनिया में डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा 22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट पते के जगह, जैसे ही दिखी वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट जग गए, एक दम से एहसास सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य वो झगड़ा, बकबक, मारपीट सब साथ ही दिखा, प्यार के छौंक से सना वो मनभावन, अलबेला चेहरा उसकी वो छोटी सी चोटी, उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी, मेरे हाथों कभी एक दम से आ गया सामने उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा खूबसूरत दिखने की ललक एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी “भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??” हाँ! समझ गया था, लिफाफा में था मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ रेशमी धागे का बंधन था साथ में, रोली व चन्दन थी चिट्ठी….. था जिसमे निवेदन “भैया! भाभी से ही बँधवा लेना ! मिठाई भी मँगवा लेना !!” हाँ! ये भी पता चल चुका था आने वाला है रक्षा बंधन आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता दिख रहा था लिफाफे में …… सिमटा हुआ………..!!! मुकेश कुमार सिन्हा चिट्ठी भाई के नाम*************** भैया पिछले रक्षाबंधन पर जैसे ही मैंने नैहर की चौकठ पर रखा पांव बड़े नेह से भौजाई लिए खड़ी थी हांथो में थाल सजाकर जुड़ा हमारा हॄदय खुशी से आया नयन भर हमने दिया आशीष मन भर सजा रहे भाई का आंगन भरा रहे भाभी का आँचल रहे अखंड सौभाग्य हमारा नैहर रहे आबाद भैया तुम रखना भाभी का खयाल कभी मत होने देना उदास भाभी तेरे घर की लक्ष्मी है और तुम हो घर के सम्राट माँ भी हैं तेरे साथ उन्हें भी देना मान सम्मान सिर्फ़ तुमसे है इतना आस पापा का बढ़ाना नाम ********************* ©कॉपीराइट किरण सिंह _भैया_लौटे_हैँ भैया लौटे हैँ लौटी हैँ माँ की आँखेँ पिता की आवाज मेँ लौटा है वजन बच्चोँ की चहक लौटी है भाभी के होँठो पर लौट आई लाली बहुत दिन बाद हमारी रसोई मेँ लौटी खुशबू आँगन मेँ लौटा है परिवार नया सूट पाकर मैँ क्योँ न खुश होऊँ बहन हूँ शहर से मेरे भैया लौटे हैँ.! _गौरव पाण्डेय ‘रक्षा -बंधन ; एक भावान्जलि ” एक थी , छोटी सी अल्हड़ मासूम बहना। … छोड़ आई अपना बचपन ,तेरे अँगना , बारिश की बूंदो सी पावन स्मृतियाँ , नादाँ आँखे उसकी उन्मुक्त भोली हँसी, …. क्या भैया ! तुमने उसे देखा है कही ,………… ! छोटी सी फ्राक की छोटी सी जेब में , पांच पैसे की टाफी की छीना -छपटी में , मुँह फूलती उसकी ,शैतानी हरकते स्लेट के अ आ के बीच ,मीठी शरारते क्या ?… तुम उसे याद करते हो कभी ,…. ! दिनभर, अपनी कानी गुड़िया संग खेलती , माँ की गोद में पालथी मारे बैठती , ,जहा दो चोटियों संग माँ गूंथती , हिदायतों भरी दुनियादारी की बातें , बोलो भैया ,!वो मंजर भूल तो नहीं जाओगे कभी.… ,! आज तेरे उसी घर – आँगन में, ठहर जाये ,वैसी ही मुस्कानों की कतारे , हंसी -ठहाकों की लम्बी महफिले , हम भाई-बहनो के यादो से भींगी बातें , और ख़त्म ना हो खुशियो की ये सौगाते कभी भी,… ! राखी के सतरंगे धागो में गूँथे हुए अरमान , तुमने दिए ,मेरे सपनो को अनोखे रंग , और ख्वाईशों को दिए सुनहरे पंख , और अब सफेद होते बालो के संग , स्नेह की रंगत कम न होने देना कभी.… ! माथे पर तिलक सजाकर ,नेह डोर बांधकर, भैया मेरे ,राखी के बंधन को निभाना , छोटी बहन को ना भुलाना , इस बिसरे गीत के संग , अपनी आँखे नम न करना कभी …. ! आँखों में , मीठी यादो में बसाये रखना, इस पगली बहना का पगला सा प्यार , यही याद दिलाने आता है एक दिन , बूंदो से भींगा यह प्यारा त्यौहार, बस ,भैया तुम मुझे भूला ना देना, कभी। …. ”’ ई. अर्चना नायडू जबलपुर पक्के रंग कितनी खुश थी मैं जब माँ ने बताया था की परी रानी आधी रात कोदे गयी है मुझे एकअनोखा उपहारकोमल सा नाजुक साजिसे अपनी नन्ही गोद में लिटाघंटों खेलतीहाँ ! भैया तुम मेरी गुडियाँ में तब्दील हो गए कब वो नन्हे -नन्हे हाँथ-पाँव बढ़ने लगे शुरू हो गया संग खेलना मेज के नीचे घर का बनाना मिटटी के बर्तन में खाना रूठना -मानना तकिये के नीचे टॉफ़ी छिपाना हाँ ! भैया तुम मेरे दोस्त में तब्दील हो गए जब बढ़ गया तुम्हारा कद मेरे कद से तो हो गए जैसे बड़े उम्र में सजग -सतर्क रखने लगे मेरा ख़याल कॉलेज ले जाना, लाना मेरा हाथ बटाना मेरी छोटी -छोटी खुशियों का ध्यान हां भैया ! तुम मेरे संरक्षक में तब्दील हो गए और उम्र के इस दौर में जब मेरे दर्द पर भर आती है तुम्हारी आँखें निभाते हो जिम्मेदारियाँ फेरते हो सर पर स्नेहिल हाँथ मौन ही कह जाते हो चिंता मत करो” मैं हूँ तुम्हारे साथ “ कब ! पता नहीं कब ? मेरे भाई ! तुम मेरे पिता में तब्दील हो गए आज तुमको भेजते हुए राखी बार -बार कह रहा है मन मेरी गुड़ियाँ , मेरे भाई , संरक्षक , मेरे पिता बड़ा अनमोल है अपना यह रिश्ता क्योंकि कुछ धागों के रंग कभी कच्चे नहीं होते समय बीतने के साथ साल दर साल यह और मजबूत और गहरे और पक्के होते जाते हैं :वंदना बाजपेयी