सच की राहों में देखे हैं कांटे बहुत,

सच की राहों में देखे हैं कांटे बहुत,पर,कदम अपने कभी डगमगाए नहीं।बदचलन है जमाने की चलती हवा,इसलिए दीप हमने जलाए नहीं ।खुद को खुदा मानते जो रहे,उनके आदाब हमने बजाए नहीं।धधकते रहे,दंश सब सह गये,किंतु,पलकों पे आंसू सजाए नहीं। ओमकार मणि त्रिपाठी  प्रधान संपादक – अटूट बंधन एवं सच का हौसला  www.sachkahausla.com

जिन्दगी कुछ यूं तन्हा होने लगी है

जिन्दगी कुछ यूं तन्हा होने लगी है अंधेरों से भी दोस्ती होने लगी है  चमकते उजालों से लगता है डर हर शमां वेबफा सी लगने लगी है  सच्चाइयों से जबसे पहचान होने लगीइक सजा इस तरह से जिंदगी हो गईबहारों के मौसम देखे थे जहांकितनी बंजर आज वो जमीन हो गई ओमकार मणि त्रिपाठी  प्रधान संपादक – अटूट बंधन  एवं सच का हौसला  हमारा वेब पोर्टल

सपेरे की बिटिया

कभी पढ़ने आती थी हमारे स्कूल में, सपेरो की बस्ती से————— एक सपेरे की बिटिया। वे तमाम किस्से सुनाती थी साँपो के अक्सर,वे खुद भी साँपो से खेलना जानती थी,पर वे मासुम नही जानती थी,इंसानी साँपो का जहर, एक दिन———– उसी मासूम की नग्न लाश, उसकी बस्ती से पहले——– पड़ने वाले एक झुरमुट में पाई गई, मै सिहर गया! उस नग्न मासूम की लाश देख, मै अब भी इतने सालो बाद भी—– अपनी उस मासूम छात्रा को भूल नही पाता, हर नाग पंचमी को वे मेरी जेहन मे उभर आती है, और पुछती है मुझसे कि बताईये न सर, कि कैसे चुक गई, अपने पुरे बदन पे रेंगे हुये नाखूनी  साँपो से, एक सपेरे की बिटिया। —-रंगनाथ द्विवेदी। एडवोकेट कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। हमारा वेब पोर्टल

बैरी_सावन

मन के दबे से दर्द जगाने फिर से बैरी सावन आया। सूना आँगन सूनी बगिया माना नहीं है कोई घर में यादें कहती मुझे बुलाकर हम भी तो रहती हैं घर में मायके की याद दिलाने फिर से बैरी सावन आया। थोड़ी सी मेहँदी लगवा लूँ और पहन लूँ हरी चूड़ियाँ साड़ी हरी, संग ले घेवर और लगा लूँ माथे बिंदिया सज कर चलूँ मायके अपने मुझे बुलाने सावन आया। फोटो के पास बैठकर कुछ अपनी कहना,उनकी सुनना थोड़ी देर बस् रूठना उनसे और मनाने गले भी लगना दूर बहुत ,पर है मेरे मन में यही बताने सावन आया। मन के दबे से दर्द जगाने फिर से बैरी सावन आया। ————————————– डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई फोटो क्रेडिट ::राकेश आनंद बौड़ाई  हमारा वेब पोर्टल

हामिद का चिंमटा

संगत का साथी हो सकता है यह औखत पर औज़ार फकीर का मँजीरा सिपाही का तमंचा सबसे सलोना यह खिलौना जो साबुत रहेगा अन्धड़ पानी तूफ़ान में सहता सारे थपेड़े कविता मेरे लिए तीन पैसे का चिमटा है जिसे बचपन के मेले में मोल लिया था मैंने कि जलें नहीं रोटियाँ सेंकने वाले हाथ कि दूसरों को दे सकूँ अपने चूल्हे की आग ! प्रेम रंजन अनिमेष  कविता कोष से साभार  यहाँ भी  पधारें .. दैनिक समाचारपत्र – सच का हौसला

कैंसर

कैंसर बस एक ही शब्द  काफी था सुनने के लिए  अनसुनी ही रह गयी  उसके बाद दी  गयी सारी  हिदायते  पहली दूसरी या तीसरी स्टेज का वर्णन  बस दिखाई देने लगी मौत  रेंगते हुए आगे बढती  किसी सौ बाहों वाले केंकेडे  की तरह  जो अपनी  बाँहों के शिकंजे में  कस कर चूस लेगा जीवन  आश्चर्य  की कैंसर  सिर्फ शरीर को ही नहीं होता  यह होता है  रिश्तों को  हमारे द्वरा शुरू किये गए कामों को जिसकी नींव रखी गयी होती है   सपनों की जमीन पर  पर उसमें भी जाने कैसे   नज़रंदाज़  हो जाती हैं  पहली , दूसरी और तीसरी अवस्थाएं  गहराता जाता है रोग  और बढ़ चलता है जीवन  मृत्यु की तरफ  मृत्यु अवश्य्समाभावी है  परन्तु  अपने को   सपने को  और रिश्तों को  यूँ पल -पल मरते देखना  बहुत पीड़ा दायक है  बहुत पीड़ा दायक है …….. नेहा बाजपेयी 

इंतजार

इन्तजार कोई भी करे किसी का भी करे पीड़ादायी और कष्टदायी ही होता है लेकिन बदनसीब होते हैं वो लोग जिनकी जिन्दगी में किसी के इन्तजारका अधिकार नहीं होताक्योंकि इन्तजार  रिश्तो की प्रगाढ़ता का पैमाना भी हैकोई गैरो का नहींसिर्फ अपनों का ही इन्तजार करता हैऔर जैसे – जैसे प्रगाढ़ होता जाता है कोई रिश्ताउसी अनुपात में बढ़ता जाता है इंतजारसूनी हो जाती हैं आँखेजब उन आँखों को नहीं रहताक्रिया पर प्रतिक्रिया याकिसी के आगमनका इन्तजारऔर ये सूनी आंखे ,भावशून्य आँखेह्रदय को संवेदनहीन बनाने लगती हैऔर शायद इसीलियेइन्तजारविहीन आदमीजिन्दा लाश बन जाता हैक्योंकि लाशो को किसी का भीइन्तजार नहीं रहता ओमकार मणि त्रिपाठी 

अजय चन्द्रवंशी की लघु कवितायें

#तटस्थ# वह कशमकश में है वह किस तरफ है क्योकि उसे मालूम है वह किस तरफ है #गाली और क्रांति# वह सब को गाली देता है व्यवस्था को समाज को खुद को भी उसके लिये गाली ही क्रांति है #एक……# वह मंच पर दहाड़ता है और जमीन पर हांफता है #ज़मीनी कवि# उसकी रचना में सिर्फ जमीन होती है कविता कही नही #आलिंगन# उसने गले लगाया मै सिहरा नही चीख उठा!! #सत्यवादी# वह हमेशा सच बोलता है इसलिये कभी बोलता नही #सच्चे वीर# वे सच्चे वीर थे उन्होंने केवल पुरुषों की हत्या की स्त्रियों और बच्चों को छोड़ दिया #दर्द# मेरे दिल में उठा मैंने ही महसूस किया मै ही तड़पा मुझी से खत्म हुआ #खुद्दार# वह रोज ऐलान करता है वह बिका नही है इस तरह रोज़ बेचता है अपने ‘न बिकने’ को #देशभक्त# वह देशभक्त है इसलिये कुछ नही करता सिवा देशभक्ति के अजय चन्द्रवंशी   छत्तीसगढ़ 

होलिका दहन-वर्ण पिरामिड

1– हो दर्प दहन खिलें रंग अपनों संग प्रेम विश्वास के होली के उल्लास में। ————————– 2– आ छोड़ें अपनी द्वेष ईर्ष्या करें संपन्न होलिका दहन मथें विचार गहन। ———————– 3) ——- आ  चल जलाएँ  बुराइयाँ होलिका संग  बदलेगा ढंग  सबके जीवन का। ——————— 4) ——- हो  जीत  अधर्म  बेईमानी  अन्याय पर  होलिका दहन  करे इनको वहन  ———————- 5 ——— स्व बचे लकड़ी पर्यावरण हो सुरक्षित कंडे अपनाएँ यूँ होलिका जलाएँ।   ————————- 6 ——— आ पूजें  होलिका  रंग कंडे मौली ले हाथ  जलाएँ दीप आठ  परिक्रमा करें सात। ———————— डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई । फोटो क्रेडिट –जनसत्ता होली की हार्दिक शुभकामनाएं 

होली स्पेशल – होली की ठिठोली

जल्दी से कर लीजिये हंसने का अभ्यास इस बार की होली तो होगी खासमखास  दाँतन बीच दबाइए लौंग इलायची सौंफ  बत्तीसी जब दिखे तो मुँह से आये न बास खा खा कर गुझिया जो ली हो तोंद बढ़ाय  हसत -हसत घट  जायेगी हमको है विश्वास देवर को भाभी रंगें , चढ़े जीजा पर साली का रंग घर आँगन के बीच मचे होली का हुडदंग अम्मा कहती दूर हटो , कोई न आओ पास पापड़ सब टूट जायेंगे , होगा सत्यानाश  लाल , काला ,  हरा गुलाबी हैं तो अनेकों रंग  पर रंग हंसी के आगे लगते सब बकवास दूर भगाईये  डाक्टर  नीम हकीम और वैध बिन पैसे का  हास्य रस   करे रोग सब नाश वंदना बाजपेयी  होली की हार्दिक शुभकामनाएं