चाँद पिता की लाडली
चाँद पिता की लाडली दोहों में लिखी कविता है | दोहे हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है |यह मात्रिक छन्द में आता है | दोहे की प्रत्येक पंक्ति में २४ और कुल ४८ मात्राएँ होती हैं | हर पंक्ति में १३ /११ की मात्रा होते ही यति होती है १३ मात्र वाली पंक्ति का अंत गुरु -लघु -गुरु या २१२ होता है व ११ मात्रा वाली पंक्ति का अंत गुरु लघु या २१ होना आवश्यक है |दोहे का अंत तुकांत होना आवश्यक है | दोहे में लिखी गयी पस्तुत कविता में सूर्योदय का वर्णन है …. कविता -चाँद पिता की लाडली डोली किरणों की लिए , आया नवल प्रभात कलरव करती डोलती, चिड़ियों की बरात तारों की है पालकी, विदा करे है मात सुता निशा की देख तो, चल दी पी के साथ सुता को करके विदा , तड़पती बार –बार पाती –पाती पे सजे , माँ के अश्रु हज़ार चाँद पिता की लाडली , चली भानु के साथ शीतलता में पली हुई , ताप ने पकड़ा हाथ दुविधा देखो सुता की, किसे बताये हाल मैके से विपरीत क्यों, मिलती है ससुराल सीखे सहना ताप को, बाँध नेह की डोर दुनिया देखे भोर वो, देखे पी की ओर युग- युग से नारी सदा, करती है ये काज होती दोनों कुलों की , इसीलिये वो लाज वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको कविता “चाँद पिता की लाडली “ लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-poem, hindi poem, moon, sun, daughter of moon, sunrise, night