चाँद पिता की लाडली

 चाँद पिता की लाडली दोहों में लिखी कविता है | दोहे हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है |यह मात्रिक छन्द में आता है | दोहे की प्रत्येक पंक्ति में २४ और कुल ४८ मात्राएँ होती हैं |  हर पंक्ति में १३ /११ की मात्रा होते ही यति होती है  १३ मात्र वाली पंक्ति का अंत गुरु -लघु -गुरु या २१२ होता है व ११ मात्रा वाली पंक्ति का अंत गुरु लघु या २१ होना आवश्यक है |दोहे का अंत तुकांत होना आवश्यक है | दोहे में लिखी गयी पस्तुत कविता में सूर्योदय का वर्णन है ….  कविता -चाँद पिता की लाडली डोली किरणों की लिए , आया नवल प्रभात कलरव करती डोलती, चिड़ियों की बरात   तारों की है पालकी, विदा करे है मात सुता निशा की देख तो, चल दी पी के साथ सुता को करके विदा , तड़पती बार –बार पाती –पाती पे  सजे  , माँ के अश्रु हज़ार चाँद पिता की लाडली , चली भानु के साथ शीतलता में पली हुई , ताप ने पकड़ा हाथ दुविधा देखो सुता की, किसे बताये हाल  मैके से विपरीत क्यों, मिलती है ससुराल  सीखे सहना ताप को, बाँध नेह की डोर  दुनिया देखे भोर वो,  देखे पी की ओर  युग- युग से नारी सदा, करती है ये काज  होती दोनों कुलों की , इसीलिये वो लाज  वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “चाँद पिता की लाडली “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, moon, sun, daughter of moon, sunrise, night

असली महिला दिवस

—————– दादी ने आँगन की धुप नहीं देखी और पोती को आँगन की धप्प देखने का अवसर ही नहीं मिलता | दोनों के कारण अलग -अलग हैं | एक पर पितृसत्ता के पहरे हैं जो उसे रोकते हैं दूजी को  मुट्ठी भर आसमान के लिए दोगुना, तीन गुना काम करन पड़ रहा है | ये जो सुपर वीमेन की परिभाषा समाज गढ़ रहा है उसके पीछे मंशा यही है है कि बाहर निकली हो तो दो तीन गुना काम करो …बराबरी की आशा में स्त्री करती जा रही है कहीं टूटती कहीं दरकती | महिला दिवस मनना शुरू हो गया है पर असली महिला दिवस अभी कोसों दूर है ………  असली महिला दिवस वो जल्दी ही उठेगी रोज से थोड़ा और जल्दी जल्दी ही करेगी , बच्चों का टिफिन तैयार , नीतू के लिए आलू के पराठे और बंटू के लिए सैंडविच पतिदेव के लिए पोहा , लो कैलोरी वाला ससुरजी के लिए पूड़ी तर माल जो पसंद है उन्हें अभी भी सासू माँ का है  पेट खराब उनके लिए बानाएगी खिचड़ी वो देर से ही बनेगी उनके पूजा -पाठ के निपट जाने के बाद गर्म –गर्म जो परोसनी है उतनी देर में वो निबटा लेगी कपडे -बर्तन और घर की सफाई फिर अलमारी से कलफ लगी साडी निकाल कर लपेटते हुए हर बार की तरह नज़रअंदाज करेगी ताने जल्दी क्यों जाना है ? किसलिए जाना हैं ? उफ़ !ये आजकल की औरतों ? और दफ्तर जाने से पहले निकल जायेगी ‘महिला दिवस ‘पर महिला सशक्तिकरण के लिए आयोजित सभा को संबोधित करने के लिए जहाँ इकट्ठी होंगी वो सशक्त महिलाएं जिन्होंने ओढ़ रखे हैं अपनी क्षमता से दो गुने , तीन गुने काम महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए वो नहीं बातायेंगी कि    मारा है रोज नींद का कितना हिस्सा रोज याद आती है फिर  भी  माँ से बात करे भी हो जाते कितने दिन बीमार बच्चे को छोड़ कर काम पर जाने में कसमसाता है दिल पूरी तनख्वाह ले कर भी पीना पड़ता है विष अपनों से मिले ये काम, वो काम, ना जाने कितने काम ना कर पाने के तानों के दंश का कभी पूछा है कि अपनी माँ , बहन पत्नी से कि सपनों को पूरा करने की कितनी कीमत अदा कर रही हैं ये औरतें ? चुपचाप इस आशा में कि कभी तो बदलेगा समाज जब मरे हुए सपनों और दोहरे काम के बोझ से दबी मशीनी जिन्दगी में से नहीं करना पड़ेगा किसी एक का चयन वो दिन … हाँ वो दिन ही होगा असली महिला दिवस वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …….. बालात्कार का मनोविज्ञान और सामाजिक पहलू  #Metoo से डरें नहीं साथ दें  महिला सशक्तिकरण :नव सन्दर्भ नव चुनौतियाँ  मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं आपको “असली महिला दिवस “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-hindi poem women issues, international women’s day, 8 march, women empowerment, women

हे! धतुर वाले बाबा

भोले बाबा जो धतूरा , बेल , मदार और ना जाने कितने जहरीले फल प्रेमसे चढ़ा देने पर प्रसन्न हो जाते हैं और सब की बिगड़ी बनाने लगते हैं | उन्हीं के चरणों में एक भक्तिमय प्रार्थना हे! धतुर वाले बाबा सुना है— सबकी बिगड़ी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। ना दौलत ना शोहरत से आप खुश हो, ऐसा सुना है,कि आप उन लोगों के भी है, जिनका कोई नहीं—- हे! मजुर वाले बाबा। सुना है—- सबकी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। ना हो पाऐ पुरी शैतानी ख्वाहिश, इसके लिए—- समंदर से निकला जहर तक पिया हे! त्रिशूल वाले बाबा। सबको दिया घर और दुनिया चलाई, हिमालय की चोटी पर जाकर बैठे, हो खुद आधा नंगा—- हे! फक्कड़,हे! अवघड़, हे! मुड़ वाले बाबा। रहमत जरा सा हमपे भी कर दो, देखो, रोते गले से “रंग” तुमको पुकारे, हे! दूर वाले बाबा। सुना है—- सबकी बिगड़ी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। @@@रचयिता—रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी, मियांपुर जिला–जौनपुर 222002 (U P) यह भी पढ़ें …….. महाशिवरात्रि -एक रात इनर इंजीनीयरिंग के नाम  सोऽहं या सोहम ध्यान साधना -विधि व् लाभ मनसा वाचा कर्मणा -जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल उसकी निशानी वो भोला भाला  आपको  रचना    “हे! धतुर वाले बाबा”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-shiv, mahashivraatri, fasting, dohe, bhagvan shiva, ॐ नम:शिवाय , shankar , bhole , baba

महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे

              महाशिवरात्रि यानि भगवान् शिव और माता पार्वती के विवाह  की पावन तिथि | कहते हैं इस दिन भगवान् शिव बहुत प्रसन्न रहते हैं | वैसे भी भोले बाबा जरा से नाम जप पर ही प्रसन्न हो कर वरदान दे देते हैं तो फिर ये दिन तो उनके लिए भी ख़ास है | इसलिए शिव की ख़ास  कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त व्रत करते हैं , बेल धतूरा , मदार से शिव का पूजन करते हैं | हर घर हर मंदिर से आती हुई ॐ नम : शिवाय की ध्वनियाँ वातावरण को बहुत सात्विक बना देती है | महा शिवरात्रि के पावन अवसर पर हम आप सभी के लिए शिव को समर्पित ११ दोहे व् दो कुण्डलियाँ लाये हैं | तो आइये पढ़ें ……….. महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  शिव सा वर जो चाहिए , कर सोलह सोमवार  जन्मों तक चलता रहे , पति -पत्नी का प्यार  ———————————————– महाशिवरात्रि जो करे  ,शिव -गौरा को याद  सुखद दांपत्य जीवन की , वहाँ पड़ें बुनियाद  ———————————————————— मत चढ़ाओ दूध कभी , ना जोड़ो ये हाथ   करो सेवा दीनो की , मिल जायेंगे नाथ  ——————————————- बेल धतूरा बेर  से ,प्रसन्न होते  आप  लें  विष बरसायें सुधा  , ऐसे भोलेनाथ   —————————————— तैंतीस कोटि  देवता , से कहूँ कर के नमन  आप सभी के बीच है  , सबसे भोला   शिवम्  ———————————————— शिव मंदिर के बाहर , लगी भक्तों की भीड़  जिस की हम सब शाख हैं, शिवजी हैं वो नीड़  ————————————————- आज करूँ में  वंदना , जोड़े  दोनों हाथ   मेरी हर बाधा हरो , हे गौरी के नाथ  ———————————————- माँगे वर शिव सा सदा , जब-जब पूजे गौर  सम कहने वाला नहीं ,  दूजा कोई और  ————————————————— निशदिन पूजें शंभु को,जपें ॐ नम: शिवाय पूरी करते कामना ,  देवलोक से आय  ————————————————– पढ़ें – महाशिवरात्रि -एक रात इनर इंजीनीयरिंग के नाम भक्तों की रक्षा के लिए,लिया हलाहल खाय  नीलकंठ के नाम से , जाने गए शिवाय  —————————————————- विष पी के संसार का , देते जो वरदान  ऐसे दीना नाथ  को , भक्त जरा पहचान  ————————————————– दो -कुण्डलियाँ  ———————- यामा  में शिवरात्रि की  ,  मलो अरघे चंदन  बेल धतूरा चढ़ा के , करो शिव का वंदन  करो शिव का वंदन , हो पूरे काज तुम्हारे  रिपु दल पीटें  माथ, भटकते  मारे -मारे   ना जाना करना भूल  , ये व्रत पूरनकामा  सुनो महत्व की बड़े   , ये शिवरातत्रि की यामा  ———————————————————- भोले बाबा ने दिया , भस्मासुर को वरदान उनके पीछे ही पड़ा , भागते  बचा कर जान   भागते बचा कर जान , दौड़ते यहाँ वहाँ को  श्री हरि तब मुस्काए , रूप धर लिया शिवा को बोले  मीठे बैन , कर  शीश पर धर  तो ले  फिर तो भ्स्म अरि हुआ औ ,मगन हुये शंभु भोले  —————————————————— वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ……….. सोऽहं या सोहम ध्यान साधना -विधि व् लाभ मनसा वाचा कर्मणा -जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल उसकी निशानी वो भोला भाला  आपको  रचना    ““महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-shiv, mahashivraatri, fasting, dohe, bhagvan shiva, ॐ नम:शिवाय , shankar

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ कविता में थोड़ी कल्पना का समावेश किया है | जैसा कि हम सब जानते हैं कि गुलाब के कांटे लोगों को खलते हैं | शायद इस कारण कांटे के मन में द्वेष पैदा होता हो ? उसे गुलाब से शिकायत होती हो ? गुलाब का अपना दर्द हैं …..यहाँ उनका आपसी संवाद है |  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  जब एक डाली पर जन्म हुआ संग -संग ही अपना गात बनातब अपने मध्य यह अंतर क्यूँ ?हो तुम  गुलाब मैं कंटक क्यूँ? तुम रूप रस ,गुण गंध युक्तपूजन -अर्चन श्रृंगार में नियुक्तकवि कल्पना का तुम प्रथम द्वारमिलता सबसे तुम्हें अतिशय प्यार मैं हतभागा सा खड़ा हुआनित आत्मग्लानि से गड़ा हुआ विकृत आकृति को देख -देख  उलाहने देते सब मुझको अनेक मैं कब तक विष पीयूँगा यूँ हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  सुनो मुझसे मत क्लेश करोअपने मन में मत द्वेष भरोअपने घर में कहाँ रह पातानिज डाली से टूटता है नाता जो देखता है वो ललचातातोडा कुचला मसला जाताकैसे समझाउ मैं तुमकोयह रूप बना है बाधक यूँ अच्छा है जो तुम कंटक हो  अच्छा है जो तुम कंटक हो …. वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ….. नींव व्हाट्स एप से रिश्ते  रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको “  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Rose, Rose day, Flower, Hindi poetry

किताबें

ऑनलाइन पढने में और किताब हाथ लेकर पढने में वहीँ अंतर है जो किसी मित्र से रूबरू मिलने और फोन पर बात करने में है | ऑनलाइन रीडिंग की सुविधाओं के साथ कुछ तो है जो अनछुआ रह जाता हैं | एक तरफ हम  उन भावों की कमी से जूझते रहते हैं , दूसरी तरफ किताबिन शोव्केस में सजी हमारा रास्ता निहारी रहतीं हैं | क्या कहतीं हैं वो ….वक्त मिले तो पास बैठ कर सुनियेगा …. किताबें  किताबें  सबसे प्रिय मित्र ,संगी- साथी और मार्गदर्शक होते थे उन दिनों ।  बचपन में लोरी बन कर हमें हंसाते थे , गुदगुदाते थे , बहलाते थे , सुलाते थे । जवानी में लिपटकर सीने से  कल के सपने सजाते थे रूमानी ख़्वाब दिखाते थे तो कभी डाकिया बन जाते थे ।  बुढ़ापे के अकेलेपन में  गीता के श्लोक सुनाते थे, जीने की राह दिखाते थे ,  ईश्वर से मिलाते थे ।  पर आजकल डिजिटल संसार में  सबसे कोने वाली सेल्फ में  सजी रहती है किताबें  आते जाते सबको तकती रहती है किताबें  ज़रा ग़ौर से सुनो तो  कितना कुछ कहती रहती है किताबें ।  साधना सिंह गोरखपुर यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “किताबें “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, books 

जरा धीरे चलो

आज फुर्सत किसके पास है , हर कोई भाग रहा है …तेज , और तेज , लेकिन इस भागने में , अपने अहंकार की तुष्टि में , ना जाने कितने मासूम पलों को खोता जाता है जो वास्तव में जिंदगी हैं … तभी तो ज्ञानी कहते हैं … कविता -जरा धीरे चलो  जिन्दगी थोड़ा ठहर जाओ जरा धीरे चलो तेज इस रफ्तार से  घात से प्रतिघात से  वक्त रहते , सम्भल जाओ जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – कामना के ज्वार में मान के अधिभार में डूबने से बच , उबर जाओ जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – शब्दाडम्बरों के उत्तरों प्रत्युत्तरों के जाल से बच कर , निकल जाओ  जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – ऊषा अवस्थी यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “जरा धीरे चलो “कैसे   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, life, life lessons

व्हाट्स एप से रिश्ते

अभी कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में जाना हुआ | वहां एक महिला मेरे पास आयीं , कुछ देर मुझसे बात करने के बाद बोलीं , ” आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा | यूँ तो जिन्दगी में बहुत से लोग मिलते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बहुत खास होते हैं जिनसे मिलकर लगता है कि ये तो बहुत अपने हैं … आप उनमें से एक हैं | उनकी बात सुन कर मैं थोडा असहज हुई , पर जल्द ही मेरी असहजता मुस्कुराहट में बदल गयी , जब मैंने उन्हें यही बात कार्यक्रम में उपस्थित बहुत से लोगों से कहते सुना |आज रिश्ते निभाए नहीं बनाये जातें | राजनीति में ही नहीं आम लोगों के छोटे -मोटे कार्यक्रमों में नए -नए गठबंधन तैयार होते हैं | रिश्ते बनाये रखना बहुत  जरूरी है क्या पता कब कौन काम आ जाए | इसलिए लोग रिश्तों को इतनी ही ऑक्सीजन देने में विश्वास करते हैं कि वो बने रहे निभे न … व्हाट्स एप से  रिश्ते  सुबह -सुबह   व्हाट्स एप पर भेजे गए गुड मोर्निंग सन्देश  जितने ही  रह गए हैं आज रिश्ते  जहाँ एक खूबसूरत  गुलदस्ते पर  नीति वाक्य लिख कर  दबा दिया जाता है सेंड  टू ऑल  का बटन  ताकि बस बने  रहे रिश्ते  मिलती रहे बस बने रहने जितनी ऑक्सीजन  ताकि  कभी काम पड़ने पर ना हों संकोच या बेगानापन  आत्मीयता के आधार पर नहीं काम आने के आधार पर बनती है  प्राथमिकताओं की सूची  राजनीती में ही नहीं  आम लोगों के छोटे -छोटे कार्यक्रमों में भी  उपयोगिता के आधार पर बनते हैं नए -नए गठबंधन  अब नहीं समझाती घर की औरतें अपने -अपने पतियों को  हमें तो जाना ही पड़ेगा उनके घर  रिश्ता जो है  बल्कि देती हैं हिदायत  सुनो , बेटे की शादी है  अब सब को कर लो ग्रुप में शामिल  अभी तक तो दिया ही है व्यवहार  अब है वसूलने का  समय  रह ना जाये कोई बाकी  और अगले ही दिन शामिल हो जाते हैं कई और नाम सेंड टू ऑल की लिस्ट में  जो कट जायेंगे बेटे की शादी के बाद  आकाश से देखतीं हैं पड़ाइन चाची यहीं हाँ यहीं  जहाँ आज है नक्काशी दार गेट  वहां पर बिछी रहती थी उनकी खटिया  वहीँ जाड़े के दिनों में काटती रहती थीं  बथुआ , पालक , मेथी और सरसों  कद्दूकस करती रहती  गाज़र और मूली के लच्छे  गली से निकलने वाली हर बहु बेटी को रोक कर  अक्सर बांटती रहती थीं अपने स्नेह की दौलत  लाठी टेकती चली जाती थी  हर किसी की जचगी , हारी -बिमारी , मृत्यु पर  साथ में खड़े होने के लिए  नहीं बनी कभी उनकी कमजोरी व् उम्र  रोड़ा  अब वहीँ आसमान से पोछ कर आँसू सोचती हैं काकी  अब कंप्यूटर का जमाना है  जहाँ रिश्ते सहेजने के लिए उनमें रमने की नहीं  रैम बढ़ने की जरूरत होती है  क्योंकि  व्हाट्स एप के युग में  आज रिश्ते निभाने नहीं  बनाये रखने में रह गया है यकीन  यह भी पढ़ें ……. बदनाम औरतें रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको ” व्हाट्स एप से  रिश्ते   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-whats app, relations

किसी विवाह समारोह में

आप भी अवश्य किसी विवाह समारोह में गए होंगे …. रिश्तों के टूटे तारों को समेटा होगा , जी भर जिया होगा और दामन में आत्मीयता को भर कर फिर लौटे होंगे अपनी मशीनी जिन्दगी में …. आइये उसे  फिर से जिए कविता -किसी विवाह समारोह में  किसी विवाह समारोह में अक्सर मैं सोचती हूँ , हम किसके लिए कर रहे हैं विमर्श बराबरी की बातें एक शिकन भी तो नहीं हैं इनके चेहरे पर मेक अप , चूड़ियों और महँगी साड़ियों की बातें करती चहक -चहक कर बतियाती ये औरतें नज़र आती हैं धरती का सबसे संतुष्ट जीव किसी विवाह समारोह में बन्ना -बन्नी ,  और बधाई गाती हुई ये औरतें जो ढोलक की थाप पर नाचते  -झूमते हुए शायद कुछ पल के लिए भूल जाना चाहती हैं अपनी निजी जिन्दगी के दर्द सास ननद और ससुराल की दिक्कतों को तभी तो बड़ी ही ख़ूबसूरती से चुनती है … काहे को ब्याही विदेश के स्थान पर पिया का घर प्यारा लगे किसी विवाह समारोह में एक दूसरे को सजाती संवारती हैं औरतें किसी का जूड़ा बांधतीं , किसी का पल्लू ठीक  करतीं प्लेटों को करीने से लगाती बना देना चाहती हैं दुनिया को सबसे सुंदर फिर धीरे से दूसरी औरत के कान के पास जा कर कर फुस्फुसातीं हैं अगली की साड़ी की कीमत होती है हार के असली या नकली करार देने की कवायद हार और साड़ी की कीमत से बाँटती हैं दूसरी के सुखी या दुखी होने का सर्टिफिकेट और इस नकारात्मकता के साथ कुछ पल पहले अपनी ही रचाई हुई सबसे खुबसूरत दुनिया को कर देती हैं संतुलित किसी विवाह समारोह में हाशिये  पर धकेल दी जाती हैं वो औरतें जो सुंदर नहीं हैं , या जिनके गहने कपड़े नहीं हैं सुंदर समारोह की जान और शान हैं खूबसूरत , धनवान  औरतें जिनके हीरे के कर्णफूलों की चमक से कुछ और बढ़ जाती हैं जिन्दगी की धूप  में पकी हुई औरतों के गालों की झुर्रियां ठीक उसी समय से वो करने लगती हैं हिसाब अगले समारोह के खर्चे का, दोहराती हैं मन में महंगे ब्यूटीपार्लरों के नाम ताकि बढ़ा सकें अपना थोडा सा कद और    यूँ ही ना  कर दी जाए नज़रंदाज़ क्योंकि सिर्फ सुन्दरता ही  यहाँ की डिग्री है तन की या धन की किसी विवाह समारोह के समापन के बाद मेकअप की परतों के उतरते ही उभर आतें हैं उनके दर्द धन , सम्मान और रूप से परे निकल आती हैं  खालिस औरतें जो करोचती नहीं , सहलातीं हैं एक दूसरे का दर्द खुलती हैं मन की गिरहें विदा लेती बेटियाँ और बहनें भुला ना देना की आर्तनाद के साथ कोछ के चावल के संग आंचल के कोने में ,बाँध लेना चाहती हैं मायके का प्यार विदा लेती खानदान की बहुए लेती हैं वादा अपनी एक जुटता का गले मिलती जेठानी -देवरानियाँ करतीं हैं आसरा गाढ़े वक्त में काम आने का किसी विवाह समारोह में नहीं जुड़ता सिर्फ पति -पत्नी का रिश्ता जुड़ते हैं अनेक रिश्ते ताज़ा हो जाते हैं कुछ पुराने चेहरे जो समय की धुंध में कहीं खो गए थे अरे पहिचाना की नाहीं से वाह तुम तो इत्ते बड़े हो गए तक झनझना जाते हैं ना जाने कितने तार बजता है संगीत जो करता है इशारा कि आज के युग में भी जब भौतिकता की अंधी दौड़ में भागते हम जो अलापते हैं ‘मेरी  जिन्दगी मेरी मर्जी ‘का सुर और होते ज़ाते हैं अकेले और कोसते हैं रसहीन होती जिंदगी को तभी कोईविवाह समारोह  हमें फिर से जोड़ता है अपनी जड़ों से देता है आत्मीयता की ऊर्जा ताकि  बिना घर्षण के अगले विवाह समारोह तक चल सके मशीनी जिन्दगी वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें ……… बदनाम औरतें बोनसाई डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बैसाखियाँ  आपको “किसी विवाह समारोह में  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट   पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-wedding, indian wedding, marriage, bride, women

मंगतलाल की दिवाली

हम सब वायु , ध्वनि , जल और मिटटी के प्रदूष्ण के बारे में पढ़ते हैं … पर एक और प्रदुषण है जो खतरनाक स्तर तक बढ़ा है , इसे भी हमने ही खतरनाक स्तर तक बढाया है पर हम ही इससे अनभिज्ञ हैं … कैसे ? आइये समझें मंगत्लाल की दिवाली से काव्य कथा -मंगतलाल की दिवाली  देखते ही पहचान लिया उसे मैंने आज के अखबार में दिखाने को दिल्ली का प्रदूष्ण जो  बड़ी-बड़ी लाल –लाल आँखों वाले का छपा है ना फोटू वो तो मंगत लाल है अरे , हमारे इलाके ही में सब्जियां बेंचता है मंगत लाल दो पैसे की आस -खींच लायी है उसको परदेश में सब्जी के मुनाफे में खाता रहा है आधा पेट बाकी जोड़ -जोड़ कर भेज देता है अपने देश उसी से भरता है पेट परिवार का , जुड़ते हैं बेटी की शादी के पैसे और निपटती है ,हारी -बिमारी , तीज -त्यौहार और मेहमान कई बरस से गया नहीं है अपने गाँव , पूछने पर खीसें निपोर कर देता है उत्तर का करें ? जितना किराया -भाडा में खर्च करेंगे उतने में बन जायेगी , टूटी छत या हो जायेगी घर की पुताई या जुड़ जाएगा बिटिया के ब्याह के लिए आखिर सयानी हो रही होगी चार बरस हो गए देखे हुए , मंगतलाल बेचैन दिखा  इस दीवाली पर गाँव जाने को तपेदिक हो गया अम्मा को मुश्किल है  बचना हसरत है बस देख आये एक बार इसीलिए उसने दीवाली से कुछ रोज पहले भाजी छोड़ लगा लिया दिये का ठेला सीजन की चीज बिक ही जायेगी , मुनाफे से जुड़ जाएगा किराए का पैसा और जा पायेगा अपने गाँव  मैंने, हाँ मैंने  देखा था मंगत को ठेला लगाये हुए मैं जानती थी कि उसकी हसरत फिर भी अपनी  बालकनी में बिजली की झालर लगाते हुए मेरे पास था , अकाट्य तर्क एक मेरे ले लेने से भी क्या हो जाएगा , बाकि तो लगायेगे झालर शायद यही सोचा पड़ोस के दुआ जी ने , वर्मा जी ने और सब लोगों ने सबने वही किया जो सब करते हैं , सज गयीं बिजली की झालरे घर -घर , द्वार -द्वार  और बिना बिके  खड़ा रह गया दीपों का ठेला       अखबार में अपनी फोटू से बेखबर आज मंगतलाल  फिर बेंच रहा है साग –भाजी आंखे अभी भी है लाल पूछने पर बताता है भारी  नुक्सान हो गया बीबीजी , बिके नहीं दिए, नहीं जुड़ पाया किराए-भाड़े का पैसा   और कल रात अम्मा भी नहीं रहीं , कह कर ठेला ले कर आगे बढ़ गया मंगत लाल शोक मनाने का समय नहीं है उसके पास उसके चलने से चल रहीं हैं कई जिंदगियाँ  यहाँ से बहुत दूर , उसके गाँव में    मैं वहीं सब्जी का थैला पकडे जड़ हूँ ओह मंगत लाल ….तुम्हारी दोषी हूँ मैं , दुआ जी , शर्मा जी और वो सब जिन्होंने सोचा एक हमारे खरीद लेने से क्या होगा और झूठा है ये अखबार भी जो कह रहा है दिल्ली के वायु प्रदूषण  से लाल हैं तुम्हारी आँखें  हां ये आँखे प्रदूषण  से तो लाल हैं पर ये प्रदूषण सिर्फ हवा का तो नहीं ….   वंदना बाजपेयी      बैसाखियाँ   एक गुस्सैल आदमी   सबंध      रंडी एक वीभत्स भयावाह यथार्थ     आपको    “  मंगतलाल की दीवाली “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, diwali, deepawali