करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य

पति -पत्नी के प्रेम का प्रतीक  करवाचौथ का व्रत सुहागिनें निर्जल रहा करती हैं और चंद्रमा पर जल का अर्घ्य चढ़ा कर ही जल ग्रहण करती हैं | समय के साथ करवाचौथ मानाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी आये पर मूल में प्रेम ही रहा | आज उसी प्रेम को चार काव्य अर्घ्य के रूप में समर्पित कर रहे हैं |  करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य  १— जोड़ियाँ  कहते हैं  बनती हैं जोड़ियाँ ईश्वर के यहाँ  आती तभी  धरती पर  पति-पत्नी के रूप में..! ईश्वर के  वरदान सदृश  बंधे हैं जब इस रिश्ते में  तो आओ आज  कुछ अनुबंध कर लें…!! जैसे हैं  बस वैसे ही  अपना कर  एक-दूजे को  साथ चलते रहने का  मन से प्रबंध कर लें….!!! अपने “ मैं” को  हम में मिला कर  पूरक बनने का  दृढ़ संबंध कर लें…..!!!! पति-पत्नी के साथ ही  आओ  कुछ रंग बचपन के  कुछ दोस्ती के  कुछ जाने से  कुछ अनजाने से  आँचल में भर कर इस प्यारे से रिश्ते को  और प्यारा कर लें…..!!!!! ——————————— २–  करवाचौथ पर  —————— मीत! सुना तुमने..? बन रहा  इस बार  विशेष संयोग  सत्ताइस वर्षों बाद  इस करवाचौथ पर….! मिलेंगी जब  अमृत सिद्धि  और स्वार्थ सिद्धि  देंगी विशेष फल हर सुहागिन को….!! लगता  हर दिन ही  मुझे करवाचौथ सा  जब से  मिले तुम  मुझे मीत मेरे! ये मेरा  सजना-सँवरना है सब कुछ तुम्हीं से  राग-रंग  जीवन के  हैं सब तुम्हीं में….!!! पूजा कर  जब चाँद देखेंगे  छत पर  हम दोनों मिलकर  माँगेंगे आशीष  हम चंद्रमा से  सदा यूँ ही  पूजा कर  निहारे उसे  हर करवाचौथ पर…..!!! ——————————— ३–  सुनो चाँद! ————— सुनो चाँद! आज कुछ  कहना चाहती हूँ तुमसे  ये पर्व  मेरे लिए  उस निष्ठा  और प्रेम का है  जिसे  जाना-समझा  अपने माता-पिता को  देख कर मैंने  कि प्रेम और संबंध में  कभी दिखावा नहीं होता  होता है तो बस  अनकहा प्रेम  और विश्वास  जो नहीं माँगता  कभी कोई प्रमाण  चाहत का……! मैं  तुम्हारे सम्मुख  अपने चाँद के साथ  कहती हूँ तुमसे.., मुझे  प्यारा है  अपने मीत का  अनकहे प्रेम-विश्वास का शाश्वत उपहार  अपने हर  करवाचौथ पर….!! तुम  सुन रहे हो न  चाँद……..!!! ———————— ४— अटका है..! ————— मेरी  प्रियतमा! कहना चाहता हूँ  आज तुम्हें  अपने हृदय की बात…, सुनो! आज भी  मुझे याद है  पहला करवाचौथ  जब हम  यात्रा के मध्य थे, स्टेशन पर  रेल से उतर कर  चाँद को  अर्ध्य दिया था तुमने…! वो  सादगी भरा  मोहक रूप  पहले करवाचौथ का  आज भी  मेरी आँखों में  वैसा ही बसा है…!! मेरा हृदय  सच कहूँ तो  आज भी वहीं  करवाचौथ के  चाँद के साथ  तुम्हारी  उसी भोली सी  सादगी पर अटका  स्टेशन पर  अब भी वहीं खड़ा है….!!! सुन  रही हो न  तुम मेरी प्रियतमा….!!!! ——————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई आपको कविता “करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य “कैसी लगीं ? कृपया अपने विचार अवश्य रखे | यह भी पढ़ें … करवाचौथ के बहाने एक विमर्श करवाचौथ और बायना करवाचौथ -एक चिंतन प्यार का चाँद filed under- Indian festival, karvachauth, love, karva chauth and moon

मूल्य

रद्दी वाले ने रख दिए मेरे हाथ में 150 रुपये  और पीछा करती रहीं मेरी भरी हुई आँखें  और निष्प्राण सी देह  उस रद्दी वाले का   वो बोरा  ले जाते हुए  जब तक आँखों से ओझल नहीं हो गया  इस बार की रद्दी मामूली नहीं थी पुराने अखबारों की बासी ख़बरों की तरह  इस बार की रद्दी में किलो के भाव में बिक गया था मेरा स्वाभिमान  जिसे विवाह में अपने साथ लायी थी  इस रद्दी में कैद थी मेरी अनगिनत  जागी हुई राते  जो गवाह थी मेरे अथक परिश्रम का  वो सहेलियों के बीच एक एक -एक नंबर से आगे बढ़ने की होड़  वो टैक्सोनामी की किताबे  जिसके पीले पड़े पन्नों में छोटे बड़े कितने चित्रों को बना कर  पढ़ा था वर्गीकरण का इतिहास  वो जेनेटिक्स की किताबें  जो बदलना चाहती थीं आने वाली पीढ़ियों का भविष्य  वो फोसिल्स की किताबे जाते -जाते कह गयीं कि  कि कुछ चीजों के अवशेष भी नहीं बचते  इन्हीं हाँ इन्हीं किताबों में कैद था मेरा इंतज़ार  कि बदल जाएगा कभी ना कभी वो वाक्य  जो प्रथम मिलन पर तुमने कहा था  हमारे घर की औरतें  बाहर जा कर काम नहीं करतीं मर्दों की दुनिया में  मैं नहीं तोड़ सकता तुम्हारे लिए परम्पराएं  हमारे घर की औरतों की  जो रसोई के धुएं में  सुलगती रहतीं हैं धुँआ हो जाने तक  कुंदन से पवित्र घर ऐसे ही तो बनते हैं उसी दिन …. हां उसी दिन से शुरू हो गयी थी  मेरी आग में ताप कर कुंदन बन जाने की प्रक्रिया  इतिहास गवाह है भरी हुई आँखों व्   हल्दी और नमक और आटे  से सने हाथों को अपने आंचल से पोछते हुए  ना जाने कितनी बार दौड़ कर देख आती थी  अपनी किताबों को  सुरक्षित तो हैं ना  हर साल दीवाली की सफाई में झाड -पोछ कर फिर से अलमारी में सजा देती अपने इंतज़ार को  शायद इस इंतज़ार की नमीं ही  मुझे रोकती रही  रसोई के धुएं में धुँआ हो जाने से पहले वो अक्सर सपनों में आती थीं अपने दर्द की शिकायतें  कहने नहीं लायीं थी तुम इन्हें सेल्फ में बंद करने को तुम्हें संवारना था बच्चों का भविष्य फिर क्यों कर रही हो हमारी बेकद्री फिर धीरी -धीरे वो भी मौन हों गयीं क्योंकि उन्होंने सुन लिए थे तुम्हारे ताने चार किताबें पढ़ कर मत समझो अपने को अफलातून आज भी तुम्हारी जगह रसोई में है चूल्हे से देहरी तक वहाँ  ही मनाओं  आज़ादी का जश्न और मैं कैद में मनाती  रही नाप -तौलकर दी गयी आज़ादी का जश्न मेरे साथ तुमने भी तो भोगा है परतंत्रता का दंश अपराधी हूँ मैं तुम्हारी इसीलिये देह की कारा  छोड़ने से पहले कर दी तुम्हारी भी मुक्ति ये १५० रुपये गवाह है कि कुछ तो समझीं कबाड़ी वाले ने मेरे ज्ञान की कीमत पर तुमने …. वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ”  मूल्य   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, women, cost

रिश्ते तो कपड़े हैं

टूटते और बनते रिश्तों के बीच आधुनिक समय में स्वार्थ प्रेम पर हावी हो गया , अब लोग रिश्तों को सुविधानुसार कपड़ों की तरह बदल लेते हैं … कविता -रिश्ते तो कपडे हैं  आधुनिक जमाने में  रिश्ते तो कपड़े हैं नित्य नई डिज़ाइन, की तरह बदलते हैं नया पहन लो पुराने को त्याग दो मन जब भी भर जाए खूँटी पर टाँग दो यदि कार्य बनता है तो नाता जोड़ लो काम निकल जाए तो घूरे पर फेंक दो उषा अवस्थी यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “रिश्ते तो कपड़े हैं   “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita, love, 

नींव

             दुनिया के सारे घरों की नींव में दफ़न औरतें भी देखती हैं कंगूरे बनने के ख्वाब , कभी -कभी भयभीत भी होती हैं यूँ अँधेरे में अकेले छूट जाने से …फिर भी , फिर भी न जाने क्यों वो पसंद करती हैं नींव बनना कविता -नींव  जब भी मैं बनाती हूँ अपनी प्राथमिकताओं की सूची एक से दस तक तो हर बार मेरी निजी प्राथमिकताएं पाती हैं दसवाँ  स्थान या कभी -कभी हो जाती हैं सूची से ही बाहर और फिर कितनी रातों में नींद को लाने के क्रम में आधे -खुले , आधे बंद नेत्रों के सामने मंडराते किसी भूतिया साये की तरह डराती हैं मुझे बदलो अपनी प्राथमिकताओं की सूची को तुम्हें आधार बना ,सब निकल जायेंगे आगे और वक्त निकल जाने के के बाद छोड़ देंगे तुम्हे वक्त के रहमोकरम पर या फिर कितनी ही रातों की खुशनुमा नींदों में स्वप्न में आ फुसलाती हैं मुझे वो देखो तुम्हारा आसमान वो क्षितिज पर उगता तारा वो तालियाँ , वो वाहवाही वो शोर … सिर्फ तुम्हारे लिए बदलो प्राथमिकताओं की सूची को , काट कर दूसरों के नाम करो अपने को पहले नंबर पर कि वक्त बदलते वक्त नहीं लगता हर बार फिर -फिर पलटती हूँ सूची लाख कोशिशों के बाद भी नहीं बदल पाती उसे जानती हूँ कंगूरे बनने के लिए किसी को बनना पड़ेगा नींव किसी स्त्री विमर्श से परे , किसी माय लाइफ माय रूल्स के नारों के परे जाने क्यों बार -बार हर बार मैं खुद स्वीकारती हूँ नींव बनना नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … कह -मुकरियाँ ओ री गौरैया अशोक कुमार जी की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ आपको    “नींव   “    कविता कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita,foundation 

रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ

कविता मन के भाव हैं , कब ये भाव शब्द के रूप में आकर ले कर पन्ने पर उतर जाते हैं कवि भी नहीं जानता | आइये आज ऐसे ही रीतू जी के कविता के रूप में ढलते कुछ भावों में डूब जाए … रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ जीवन का लेखा-जोखा जीवन के इस सांध्यकाल मे आ, साथी पैगाम लिखूं…….. बीती,कैसे,ये सदियां ये सारे हिसाब लिखूं……… आ,साथी पैगाम लिखूं…… अरमानो के जंगल मे घूमू प्रीत के वो फिर गीत लिखू प्रथम प्रेम के प्रेम नेह को फिर से साथी याद कंरू आ,साथी पैगाम लिखू….. क्या खोया,क्या पाया इसका फिर हिसाब लिखू….. जीवन के इस सांध्यकाल मे, आ,साथी पैगाम लिखू…. कुछ तुम उलझे,कुछ हम सुलझे, कुछ हंसते-गाते वक्त गुजार चले, कुछ गम झेले,कुछ सुख भोगे ये प्रेम भरी,किशती मे नैया,अपनी पार चले। एक दूजे का ऐतबार लिखूं ,।। आ साथी ,पैगाम लिखूं गरीबी ये गरीबी नही तो क्या है….. चंद सिक्को की खातिर लहू बेच रहा अपना कोई ये गरीबी नही तो क्या है…… चंद सिक्कों की खातिर अस्मत बेच रहा कोई चंद सिक्कों की खातिर घर से मिलो दूर जूझ रहा कोई ये गरीबी नही तो क्या है…. प्रतिभा होते हुऐ भी बच्चो को उंच शिक्षा दिला नही पा रहा ये गरीबी नही तो क्या है बेटी जिनकी बिन ब्याही रहे पढने लिखने से महरूम रहे ये गरीबी नही तो कया है चंद सिक्कों की खातिर…. सपनो के महल धाराशाही हुऐ कल्पना के पंछी घायल हुए ये गरीबी नही तो क्या है….. सर पे टपकती हुई छत को ढीक ना करा पाये ये गरीबी नही तो कया है…. किसान का जीवन चिलचिलाती धूप मे खेत खोदता बेचारा किसान….. वक्त से पहले फसल बोने को तैयार बेचारा किसान….. पानी की बाट मे नभ को निहारता बेचारा किसान….. रात के सन्नाटे मे खेत को सम्भालता बेचारा किसान…. भूखे पेट रहकर भी दूसरो का पेट भरता बेचारा किसान…… बैमौसम बरसात की मार सहता बेचारा किसान….. कभी कटी फसल पानी मे डूबती निहारता बेचारा किसान…. संजोये सपने रेत मे मिलते देखता बेचारा किसान…… सुंदर कपडो मे सजा हो,शिशु अपना,देखने को तरसता बेचारा किसान…… नंगे बदन,नंगे पांव भागते खेत मे, शिशु को निहारता बेचारा किसान… टपकते हुऐ,घर मिटटी के देख आंसू भर लेता आंखो मे बेचारा किसान….. आडतिये की मनमर्जी को सहता बेचारा किसान…… बैंक से लोन की आस करता बेचारा किसान….कब होगी खुशहाली,उसकी इस आस मे जीता किसान।। मन की वीणा मेरे प्राण प्रिय,मन की वीणा बजा दो सुप्त हुऐ,तार कही,तुम फिर से आज जगा दो।। मेरे प्राण….. मै नही पिछली झंकार भूली,मै नही पहले दिन का प्यार भूली।। गोद मे ले,मोद से मुझे निहारो, सुप्त हुऐ तारो को,प्रिय फिर से जगा दो। हाथ धरो हाथो मे,मै नया वरदान पाऊ, फूंक दो नव प्राण मै प्राण पाऊ स्वर्ग का सा हिडोला झूलू, जब तुम प्रेम से बाहो मे लैकर मुसकुराओ। सुप्त हुऐ तारो को प्रिय फिर से तुम जगा दो। सुख का प्रभात होगा, जग उषा मुसकान,प्रेम से स्नात होगा, उषा हंसेगी,किरणे मुसुकुरायेगी, प्रेम की मधुर तान से,सुप्त प्राणो मे जान आयेगी।। मेरे प्राणप्रिय मन की वीणा बजा दो इन सुप्त हुऐ तारो को तुम फिर आज जगा दो।।। उम्मीद ही मेरी कल्पना के ख्वाब हो तुम……।। कही दिल के चमकते हुए ताज हो तुम…….।। कही ममता की कमजोरी हो तुम……..।। कही आशीवाद की आस हो तुम….. कही बिखरी हुई ताकत हो तुम…… कही बुझते हुऐ चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले वजूद का अहसास हो तुम…… कैसे बिसराऊ तुम्हे… मेरी आत्मा की जान हो तुम…..। कैसे नकार दूं तुम्हारी आकांक्षा मेरी इच्छाओ के सूत्रधार हो तुम…… मेरे जीवन के पहले-पहले प्यार की सौगात हो तुम….. उम्मीदो पर खरे उतरो इन उम्मीदो की नाव के पतवार हो तुम।।. रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “रीतू  गुलाटी की पांच कवितायेँ  “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita, 

कह -मुकरियाँ

कह मुकरियाँ साहित्य की एक विधा है  | यह शब्दों कह और मुकरियाँ से बनी है  | इसका सीधा सा अर्थ है कही हुई बात से मुकर जाना | ये चार पंक्तियों का बंद  होता है , फिर भी स्पष्ट कुछनहीं  होता | चौथी पंक्ति दो वाक्य भागों में विभक्त होती है | जिसमें पहला वाक्य तीन लाइन को सन्दर्भ में ले कर अपेक्षित सा प्रश्न होता है और दूसरा वाक्य उत्तर होता है | जो प्रश्नकर्ता द्वारा बूझी  गयी पहेली के एकदम विपरीत होता है | एक चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न  होता है और प्रश्नकर्ता चमत्कृत हो जाता है | इतिहास में अमीर खुसरो को कह –मुकरी में विशेषता हासिल थी |एक उदाहरण देखिये …. लिपट –लिपट के वा के सोई छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा का सखी साजन ? ना सखी जाड़ा |    आज हम आपके लिए मीना पाठक की ऐसे ही सुंदर कह –मुकरियाँ लायें हैं | आशा है आपको पसंद आएँगी  कह -मुकरियाँ  मारे जब वो खींच के धार प्रेम से भीगूँ मैं हर बार मारे मन मेरा किलकारी क्या सखी साजन,   ? ना सखी  पिचकारी 2- मन ये मेरा बहका जाये संग पवन के उड़ता जाये   अधर लगाऊँ फड़के अंग क्या सखी सजन ? ना सखी भंग | 3- जब वो गालों को छू जाये मन मेरा पुलकित हो जाये शर्म से हो जाऊं मै लाल क्या सखी साजन ? ना री, गुलाल | 4- खुशबू उसकी मन को भाये अधर चूमता उसको जाये झंझट बहुत कराये रसिया क्या सखी साजन ? ना सखी गुझिया | 5- अंग लगा कर मै तर जाऊं  उसके रंग मै रंग जाऊं छुअन से उसके मचले अंग क्या सखी साजन ? ना सखी रंग | 6- यादें जब आती है उसकी मन मेरा मारे है सिसकी दौड़ाए ले रंग हथेली क्या सखी साजन ? ना री, सहेली |  मीना पाठक  कच्ची नींद का ख्वाब किताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ” कह-मुकरियाँ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, kah-mukariyaan                              

जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प

माखन चोर , नटखट बाल गोपाल , मथुरा का ग्वाला , धेनु चराने वाला , चितचोर , योगेश्वर , प्रभु श्री कृष्ण के नामों की तरह उनका व्यक्तित्व भी अनेकों खूबियाँ समेटे हुए हैं | तभी तो उनका जानना सहज नहीं है | सहज है तो प्रेम रस में निमग्न भक्ति … जो कह उठती है ” मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई ” और महा ज्ञानी कृष्ण भक्त के बस में आ जाते हैं | तो आइये जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इन ७ कविताओं को पढ़ें जो कृष्ण की भक्ति के रंग में रंगी हुई हैं और खो जाएँ …. बांसुरी की मोहक धुनों में जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प  १—कृष्ण चक्र, बाँसुरी, शंख का  है अदभुत संगम, प्रेम-मधुरिमा फैले सर्वत्र  बजाते बाँसुरी कृष्ण! रण का करना घोष जब  फूँकते शंख कृष्ण! आततायी को क्षमा नहीं  चक्र घुमायें कृष्ण! —————————— २—पाहन शैया पर कृष्ण —————————- थोड़ा  करने तो दो  आराम मुझे.. अभी अभी तो  लेटा हूँ आकर  अपनी पाहन शैया पर  चिंतन भी  तुम सबके हित ही  एकाकी हो रहा हूँ कर, मिला न माखन  व्यर्थ हुए सब  अपने लटके-झटके  सोचा कुछ करने को तो  जा खजूर में अटके  अब तो पूरी तैयारी कर  मुझे लगानी घात  जसुमति माँ को सब देखना  माखन लाऊँगा साथ। ——————————— ३—कान्हा  ————— नटखट कान्हा से तंग आकर  जसुमति ने घर में ताला डाला  दाऊ संग निकले झरोखे से  झट गऊओं संग डेरा डाला  पूँछ पकड़ कर बैठे कान्हा  और दाऊ देख रहे खड़े खड़े  दूर खड़ी माँ जसुमति निहारे  अपने नैना करके बड़े बड़े। —————————— ४—माधव  —————— जब से प्रेम हुआ माधव से  सब कुछ भूल गई  किया समर्पण नहीं रहा कुछ  सब अपना वार गई  उठे दृष्टि अब ओर किसी भी  दिखाई देते हैं माधव  हुई माधवमय मैं अब सुन लो  यमुना के तीर गई। ————————— ५—माधव  —————- नृत्य कर रहा मोहित होकर  सबको मोहने वाला  देख इसे सुधबुध बिसराई ये कैसा जादू डाला  कौन न जाए वारी इस पर  पीकर भक्ति हाला माधव छवि ही रहे ध्यान में  गले मोतियन माला देकर गीता ज्ञान सभी के  भरम मिटाने वाला  अपनी लीला दिखला कर  हर संकट इसने टाला। ———————————- ६—उत्तर दो मोहन! ————————— पूछे मीरा कृष्ण से  उत्तर दो मोहन!  हो रहा विश्वास का  क्यों इतना दोहन? कैसे कोई आज कहीं  सच्ची प्रीत करेगा? वासना का दंश प्रतिपल  मन को जब मथेगा  तुम्हें सोचना होगा हित  अब आगे बढ़ कर  पाठ पढ़ाना कुकर्मियों को  उदंड शीश काट कर। ———————————-  ७—बंसी बजैया बंसी बजैया! सकल जग के हो  तुम खेवैया। •••••••••• कहो माधव  ग्वाल संग करते  कैसा कौतुक? ••••••••••• आओ मोहना  निरखें सब मग  रूप सोहना। ••••••••••• हमारे मन  बसो सर्वदा तुम  जीवन धन। ••••••••••• मुरली तान  हुई अधीर राधा  कहाँ है भान? •••••••••••• कदम्ब तले  रास गोपियों संग  देवता जलें। ••••••••••••• मटकी फोड़ी जसुमति देखती  लीला निगोड़ी। ——————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की धर्म और विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है कान्हा तेरी प्रीत में आपको    ”  जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प “कैसे लगे    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- janmashtami, shri krishna, lord krishna, govind

रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड

रक्षा बंधन का पावन दिन जिस दिन भाई -बहनों के पुनीत प्रेम की  धारा में पूरा भारत बह रहा होता है तो कवि मन क्यों न बहे | प्रेम और स्नेह की इस सरिता में कुछ वर्ण पिरामिडों के पुष्प हम भी अर्पित कर रहे हैं …. रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड  ये  पर्व बहन  भाई प्रेम  रक्षाबंधन  आता सावन में  रहता हृदय में। ~~~~~~~~~~~ •• है  बैठी  प्रसन्न राखी थाल  सजाये बहन आये कब भाई  बाँधू राखी जो लाई। ~~~~~~~~~~~~~~~ •• ये धागा  नहीं है  स्नेह सूत्र  विभोर मन  जुड़ाव मन का  संबंध जीवन का। ~~~~~~~~~~~~~ •• मैं  रहूँ  कहीं भी योजक ये  रेशम सूत्र  बनेगा बहना कलाई का गहना। ~~~~~~~~~~~~ •• तू  रहे  स्वस्थ  सदा मस्त  धन समृद्ध  हर्ष का चंदन  मने रक्षाबंधन। ~~~~~~~~~~~~ डा० भारती वर्मा बौड़ाई  रक्षाबंधन की अशेष हार्दिक शुभकामनाएँ। यह भी पढ़ें … यह भी पढ़ें … निर्णय लो दीदी – ओमकार भैया को याद करते हुए  रक्षा बंधन -भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार आया राखी का त्यौहार -भाई बहन पर कुछ कवितायें  रक्षा बंधन स्पेशल -फॉरवर्ड लोग   आपको   “ रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड ” कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: raksha bandhan, rakhi, bhai -bahan

प्रेम कभी नहीं मरेगा

आज टूटते हुए रिश्तों को देखकर ऐसा लगता है कि प्रेम बचा ही नहीं है , परन्तु ऐसा नहीं है , प्रेम अहंकार की इस सतह के नीचे आज भी साँसे ले रहा है …. वो सदा था है और रहेगा | प्रेम कभी नहीं मरेगा  अहं ने  उठा लिया है  अपना सिर इतना  कि बैठ ही गया  मनुष्य के सिर चढ़ कर  हर ली है उसके  सोचने-समझने की शक्ति  तभी तो  अपने- अपने  कमरों के दरवाजे बंद कर  छिपा रहता है मोबाइल में  ऊबता है तो  बीच-बीच में  दूरदर्शन खोल लेता है  इनसे जब थकता है  तो कमरे से निकल  दरवाजे पर ताला लगा  घूमने बतियाने  निकल जाता है  रास्ते से भटका अहं हत्या कर रहा है  उस प्रेम की  जो सदानीरा बन  बहता था  अट्टालिकाओं के मध्य से  पर  स्मरण रख  मानव! तेरा अहं कितना भी चाहे  प्रेम कभी नहीं मरेगा  गिरना और मरना  तो अहं को ही पड़ेगा। ————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “प्रेम कभी नहीं मरेगा    “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita, love, 

सदन है! लेकिन अटल कोई नहीं

अटल जी जैसा नेता जिसे पक्ष व् विपक्ष के सभी लोग सम्मान करते है आज के समय में दूसरा कोई नहीं है | इस समय उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है | आइये पढ़ें अटल बिहारी बाजपेयी जी की दीर्घायु की प्रार्थना करते हुए एक कविता … सदन है! लेकिन अटल कोई नहीं सदन है——- लेकिन अटल कोई नही। वे घंटो अपनी रौ मे बोलते, कभी अपनी,कभी सब की गाँठ खोलते, कहकहे,ठहाको के बीच वे उनका चुटिलापन, कितना खाली हो गया है सदन——- शायद!अब भी उनका हल कोई नही। सदन है——— लेकिन अटल कोई नही। ना झुका, ना रुका पोखरण तक, शायद! राष्ट्रभक्ति थी उनके अंतःकरण तक, लेकिन वे पड़ोस को चाहते भी थे, तभी तो बस ले लाहौर तक गये थे, लेकिन छल किया मुशर्रफ़ ने, और अटल के मन मे था महज़ प्यार—- एै “रंग” छल कोई नही। सदन है—- लेकिन अटल कोई नही। वे जिये शतायु हो ये कामना है, सच सियासत मे उनके बाद बस टाट ही आये, उनके जैसा—— रेशमी मखमल कोई नही। सदन है—— लेकिन अटल कोई नही। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। फोटो क्रेडिट –somethingtosay.in यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको “सदन है! लेकिन अटल कोई नहीं    “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, Atal Bihari Vajpayee