फेसबुक की दोस्ती
जिसे देखा नहीं जाना नहीं उससे भी दिल के रिश्ते इतने गहरे जुड़ जाते हैं , इस बात का अहसास फेसबुक से बेहतर और कहाँ हो सकता है| अक्सर फेसबुक की दोस्ती को फेसबुकिया फ्रेंड्स कह कर हलके में लिया जाता है | इसमें है ही क्या? जब चाहे अनफ्रेंड कर दिया जब चाह अनफॉलो और जब चाह तो ब्लाक, कितना आसान लगता है सब कुछ, पर क्या मन भावनाएं इतनी आसानी से ब्लाक हो पाती हैं| कहानी -फेसबुक की दोस्ती समय कब पलट जाता है कोई नहीं जानता | आज निकिता और आरती एक दूसरे की नाम बी नहीं सुनना चाहती , शक्ल देखना तो बहुत दूर की बात है | एक समय था जब दोनों पक्की सहेलियाँ हुआ करती थीं | ये दोस्ती फेसबुक से ही शुरू हुई थी| निकिता एक संघर्षरत लेखिका थी | वो फेसबुक पर लिखती थी कवितायें , गीत, लघु कथाएँ, लेख और आरती जी भर -भर के उन पर लंबे लम्बे कमेंट किया करती | धीरे-धीरे फेसबुक की दोस्ती फोन की दोस्ती में बदल गयी | भावनाओं ने भावनाओं को जब तब पुकार उठतीं | दोनों में अक्सर बातें होती , सुख -दुःख साझा होते | मन हल्का हो जाता | दोस्ती की मजबूत बुनियाद तैयार होने लगी| एक दूसरे से मीलों दूर होते हुए भी दोनों एक दूसरे के बहुत करीब होती जा रहीं थी| बस एक क्लिक की दूरी पर | निकिता के यहाँ क्या आया है सबसे पहले खबर आरती को मिलती | आरती की रसोई में क्या पक रहा है उसकी खुश्बू निकिता को सबसे पहले मिलती , भले ही आभासी ही क्यों न हो | दिल का रिश्ता ऐसा होता है जिसमें दूर होते हुए भी पास होने का अहसास होता है | फिर वो दोनों तो एक दूसरे के दिल के करीब थे| कॉमन फ्रेंड्स में भी उनकी मित्रता के चर्चे थे | पता नहीं उनकी दोस्ती को नज़र लग गयी या किस्मत के खेल शुरू हो गए| आरती एक बहुत अच्छी पाठक थी वो कोई लेखिका नहीं थी, न ही उसका लेखिका बनने का इरादा था | पर कभी -कभी कुछ चंद लाइने लिख कर डाल दिया करती उसका लिखा भी लोग पसंद ही करते | एक दिन आरती ने एक कविता लिखी , वो कविता बहुत ज्यादा पसंद की गयी | एक बड़ी पत्रिका के संपादक ने स्वयं उस कविता को अपनी पत्रिका के लिए माँगा | उसने अपनी ख़ुशी सबसे पहले निकिता से शेयर की | निकिता ने भी बधाई दी | धीरे धीरे आरती की कवितायें नामी पत्रिकाओं में छपने लगीं व् निकिता की छोटी -मोटी पत्रिकाओं में | कहते हैं कि दोस्ती तो खरा सोना होती है , फिर न जाने क्यों नाम , शोहरत की दीमक उसे चाटने लगी ? शुरू में जो निकिता आरती की सफलता पर बहुत खुश थी अब उसका छोटी-छोटी बातों पर ध्यान जाने लगा , क्यों आरती ने आज उसकी कविता पर लम्बा कमेंट नहीं किया , क्यों किसी दूसरी लेखिका की पोस्ट पर वाह -वाह कर रही हैं ? अपने को बहुत बड़ा समझने लगी है | कुछ ऐसा ही हाल आरती का भी था, वो लिखने क्या लगी, निकिता का सारा प्रेम ही सूखने लगा | दोनों लाख एक दिखाने की कोशिश करतीं पर कहीं न कहीं कुछ कमी हो गयी ऊपर से सब कुछ वैसा ही था पर अन्दर से दूरी बढ़ने लगी | अब दोनों उस तरह खुल कर बात नहीं करतीं , बाते छिपाई जाने लगीं, फोन हर दिन की जगह कई महीने बीत जाने पर होने लगे | दोनों को लगता दूरी दूसरे की वजह से बढ़ रही है | फिर दोनों ही मन में ये जुमला दोहराते …छोड़ो , ये फेसबुक की दोस्ती ही तो है | पढ़िए- बाबा का घर भरा रहे कुछ समय बाद निकिता के काव्य संग्रह को सम्मान की घोषणा हुई | निकिता बहुत खुश थी | उसको आरती के शहर जाना था | सम्मान समारोह वहीँ होना था| निकिता ने खुश हो कर आरती को फोन किया | आरती ने फोन नहीं उठाया | दो तीन बार मिलाने पर आरती ने फोन उठाया | सम्मान की बात सुन कर बड़ी दबी जुबान में बधाई कहते हुए कहा आने की पूरी कोशिश करुँगी | निकिता को ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी | फिर भी उसे आरती के मिलने का इंतज़ार था | सम्मान वाले दिन उसने कई फोन मिलाये पर आरती ने फोन नहीं उठाया , न ही वो समारोह में आई | कहीं न कहीं निकिता को लगने लगा कि आरती उसके काव्य संग्रह को सम्मान मिलने के कारण ईर्ष्याग्रस्त हो गयी है | घर लौट कर निकिता ने फेसबुक पर सम्मान के फोटो डाले पर आरती के लाइक नहीं आये , यहाँ तक की वो तो फेसबुक पर आई ही नहीं | अब तो निकिता को पक्का यकीन हो गया कि आरती उसके सम्मान से खफा है | निकिता को अपने ऊपर भी बहुत गुस्सा आया कि क्यों उसने आरती से इतनी गहरी दोस्ती की , उसे छले जाने का अहसास होने लगा | जिसे उसने दिल से मित्र समझा वो तो उसकी शत्रु निकली | ओह … कितना धोखा हुआ उसके साथ | जैसा की हमेशा होता है उसने प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग कर कई पोस्ट आरती के ऊपर डाले , कुछ लोग समझे कुछ नहीं | पर आरती तो आई ही नहीं | एक दिन आहत मन निकिता ने उसे अन फॉलो कर दिया | उसने मन कड़ा कर लिया ,आखिर फेसबुक की दोस्ती ही तो थी | करीब चार महीने बाद आरती फेसबुक पर आई , उसने अपने पति की मृत्यु की ह्रदय विदारक सूचना दी … Read more