लक्ष्मी की विजय
दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है | पर एक लक्ष्मी हमारे घरों में भी होती है जिसे हम गृह लक्ष्मी कहते हैं | अब अगर पृथ्वी पर गृह लक्ष्मियाँ अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पुकारेंगी तो एक स्त्री होने माता लक्ष्मी को तो आना ही पड़ेगा | अब जब गृह लक्ष्मियाँ की माता लक्ष्मी से बात होगी तो माता लक्ष्मी यहाँ की दशा तो सुधारेंगें ही स्वर्ग में कुछ आमूल चूल बदलाव भी करेंगी | आखिर हम एक दूसरे से सीखते जो हैं | तो क्या होंगे ये बदलाव पढ़िए नागेश्वरी राव जी की खूबसूरत कहानी लक्ष्मी की विजय विष्णु जी पुकार ने लगे, लच्छु देखो, तुम्हारा सैलफोन बज रहा है, कोई तुम्हारा भक्त पुकार रहा होगा, “अजी, आप हमारे सैलफोन के पीछे क्यों पड़े है, जब आप स्काइप पर अपने भक्तों से बात करते हैं तो मैंने कुछ कहा है क्या! ” नहीं बाबा, मैंने यों ही मजाक किया, इतने में ही बुरा मान गई! नही! नहीं! श्रीमान, मैंने केवल आपकी ही बोली बोलने की प्रयास किया है. फिर बोली, नाथ, मेरे हाथ भारी हो रहे हैं जरा मानव लोक से चिकित्सक को खबर कीजियेगा! मैं भी उन्हें बुलाने की बात सोच रहा था, मेरे पगों में भी रक्तचाप में गिरावट आ गयी| तभी फिर से बिपर बज उठी, लक्ष्मी जी ने फ़ोन उठाई, किसी महिला की कोमल आवाज बोल उठी ” मैडम आपसे कुछ सलाह लेनी है, क्योकि सर्वत्र आपका ही बोलबाला है साथ ही आप अनुभवी और उच्च आसन पर विराजमान हैं, हमारे महिला-मंडल आपसे भेंट के लिए समय निर्धारित कर कुछ मसलों पर चर्चा करना चाहती है, कृपया आप मिलने की अनुमति देकर नियोजित समय बतायेगीं ? लक्ष्मी अवश्य, हम भी जाने, भूलोक में स्त्रियाँ किन-किन समस्याओं से जूझते हैं, उनका जीवन शैली और सोच कैसी है? फिर उन्होंने अपने घडी में देखकर , कही कि कल सुबह दस बजे आ जाइये , इस पर महिला अध्यक्ष ने अत्यंत हर्ष के साथ धन्यवाद कहकर फोन रख दी. लक्ष्मी की प्रसन्नता से दमकती चेहरे को देखकर विष्णु जी बोले क्या बात है! चेहरा कमल सा खिला हुआ है, तो लक्ष्मी जी ने इठलाती हुई कही कि क्यों न प्रसन्न होऊं, कई वर्षो से, नही! नही! कई युगों के बाद आज मुझे किसी ने वरदान के लिए नही अनुभवी नारी के रूप में मुझे पहचानकर निमंत्रित किये है. दूसरे दिन महिलाओं के अध्यक्षा दीपा अपने अन्य सखियो के साथ बुके लेकर लक्ष्मी जी के सामने उपस्थित हुई| वे लक्ष्मी जी को आभूषण रहित, सादे कुर्ता पायजामा में देखकर अचम्मित हो गए. उनके विस्मय-बोधक चिन्ह अंकित चेहरे को ताड कर लक्ष्मी जी मंद मुस्कराटों को बिखेरती हुई कही” बाह आभरणो की आवश्यकता तबतक होती जबतक किसीकी व्यक्तित्व के अस्मिता की पहचान नही होती है। बात को बढ़ाती हुई बोली– बोलिए आपको किस बात का गम है? भूमण्डल में स्त्रियाँ सभी क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर कर चुकी है. दीपा ने कही है कि आपने सही फ़रमाई, लेकिन आप हमारे द्वारा अविष्कृत यंत्र में बैठकर मॉनिटर में दखेंगे तो हमारे समस्याओ की पूर्ण जानकारी हो जाएगी। लक्ष्मी जी यंत्र में प्रविष्ट होते ही यंत्र अविष्कारक लता ने मॉनिटर पर एक एक परिवार का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहती गई “ये हैं सुरेश अपने प्रोफेसर पत्नी को मंत्री के पास टिकट पाने के लिए भेजते है|उनका कहना है कि जब वेद पुराणो में राजा अपने शान या स्वार्थ सिद्धि के लिए अपनी पत्नी को दूसरे राजाओ के पास भेजते थे तो धन और पद के लिए अपनी इच्छा से हम अपनी पत्नी को क्यों नही भेज सकते ? दूसरा समाजसेवक दीनदयाल जी ये खुद कुछ कमाते नही., पर अपने पत्नी अंजू((U.D.C) को विभिन्न नूतन अन्वेषित गलियों से विभूषित कर, धन समर्पित करने के लिए बाध्य करते है, जिसे वे अधिकारियों,गुंडों, व्यभिचार में लुटाते है. तीसरी, शारदा जिनका मुँह ही नहीं कान, आँखे भी कैंची की तरह चल कर अपने और दूसरे के परिवार को बर्बाद करती है| उन्हें अपने गहने, साड़ियों, पार्टियो और डिंग आंककर नाक में दम करने के सिवा कुछ सूझता नही. चौथा दिनेश अध्यापक है, जो चाहते है, कि पत्नी नौकरी करे, परिवार के सदस्यों की सेवा चौबीसों घंटे करे और पाठशाला में किसीसे भी बात न करे. शक से पीड़ित होकर पत्नी के हर व्यवहार में मीन- मेख निकाल कर न खुद खुश रह पाते है न पत्नी को, ऊपर से अपने को ज्ञानी, दयालु, विशाल एवं निर्लिप्त कहते है. इस प्रकार वह मॉनिटर पर वह अभिनेताओं,डॉक्टर, कलाकारों, सरकारी-गैर सरकारी कर्मचारियों आदि विभिन्न वर्गो के पारिवारिक,व्यक्तिगत, समाजिक,धार्मिक आदि के रूपों को दर्शाती गयी| लक्ष्मी जी इस विस्तृत व्याख्यान से स्तब्ध रह गयी फिर विभिन्न युगों के आचार व्यवहार अपने स्वर्ग के लोगो के विचारो और आचरणों की तुलना में डूब गयी| थोड़ी देर में ही उनके आँखों में चमक आ गयी जैसे राशन की दुकान की के लम्बे कतार में खड़े व्यक्ति को चावल,गेहूं, चीनी,मिटटी के तेल आदि सबकुछ मिल गया हो. लक्ष्मी जी मुस्कराटों को बिखेरती हुई कहती है कि संसार में सबकुछ हैं जिसे इंसान अपने मेहनत,विवेक,सयंम द्वारा पा सकता है. पर ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ और अहंकार के कारण यथार्थ का सही अवगाहन के आभाव में वह दुखी और पीड़ित है. समय का, स्थान का, लिंगो का, विचारो का, भावो का सही समीकरण नहीं हो पाया है विचारो में विकृतियां का आना स्वाभाविक है| मैं विष्णु लोक जाकर भगवान् विष्णु से इस बारे में चर्चा करुँगी | वे इन सबसे रूबरू होंगे,शायद वे स्त्री की शक्ति देखना चाहते हैं | वे देखना चाहते हैं कि आप अपने दुनिया को कितना जानते है, सचेत हैं, कितना योगदान दे सकते है ? अच्छा , अब मैं चलती हूँ कहकर लक्ष्मी आगे बड़ी तो दीपा और अन्य महिलाएँ आग्रह करने लगी, उनका आतिथ्य स्वीकार करे, जो आपके व्यंजनों से काफी भिन्न है, जैसे पिज़ा ,बर्गर, डोसा, बेलपूरी,रसमलाई,गुलाबजामुन आदि आपकी जीभ को खुश कर देंगे| लक्ष्मी जी, प्यारभरा आमंत्रण स्वीकार किया और भोज्य पदार्थो का आनंद उठाकर अपने पति के पास जाकर बोली है कि भूलोक के स्त्रियों की समझदारी और उनकी चेतनशीलता को देख कर, मेरी बुद्धि भी तेज हो गई| अभी तक स्वर्ग की जनता सुरापान, कोमलांगियों के सतही सौंदर्यपान करने में ही तल्लीन है, उनके शरीर,मन, आत्मा चैतन्यशून्य हो गयी है | हमे भी स्वर्ग के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन लाना होगा| सभी को अपनी अपनी योग्यता के अनुसार काम करना होगा तदनुसार परिश्रमिक और सुविधाएँ उपलब्ध होना चाहिए| एक दूसरे के साथ सौहृदतापूर्वक व्यवहार करना पड़ेगा, नियम का उल्लंघन करने वालो को वेतन में कटौती या शारीरिक दंड देनी चाहिए| जिससे न आपके न हमारे या अन्य सदस्योँ के अंगो में शीतलता आयेगी न भूलोक से चिकित्सकों को बुलाना पड़ेगा| विष्णु जी मुस्कराते हुए कहे : डार्लिंग मैंने भी अपने साधनो द्वारा सारे खबरें प्राप्त कर ली है टीवी और कंप्यूटर द्वारा घोषणा करवा दी है की कि … Read more