होलिका दहन : अपराध नहीं , लोकतंत्र का उत्सव

फोटो क्रेडिट -भारती वर्मा बौड़ाई होलिका दहन कर  को आजकल स्त्री विरोधी घोषित करने का प्रयास हो रहा है | उसी पर आधारित एक कविता जहाँ इसे लोकतंत्र समर्थक के रूप में देखा जा रहा है … होलिका दहन : अपराध नहीं , लोकतंत्र का उत्सव  वो फिर आ  गए अपने दल -बल के साथ हर त्यौहार  की तरह इस बार भी ठीक होली से पहले अपनी  तलवारे लेकर जिनसे काटनी  थी परम्पराएं कुछ तर्कों से , कुछ कुतर्कों से और इस बार इतिहार के पन्नों से खींच कर निकली गयी होलिका आखिर उस का अपराध ही क्या था , जो जलाई जाए हर साल एक प्रतीक के रूप में हाय ! अभागी , एक बेचारी स्त्री पुरुष सत्ता की मारी स्त्री जो हत्यारिन नहीं, थी एक प्रेमिका अपने प्रेमी संग विवाह रचाने को आतुर एक बहन जो  भाई के प्रेम में झट से तैयार हो गयी पूरी करने को इच्छा दे दी आहुति … उसके भस्म होने का , जश्न मनाते बीत गयी सदियाँ धिक्कार है हम पर , हमारी परम्पराओं पर , आह ,  कितने अधम  हैं हम बदल डालो , बदल डालो , नहीं जलानी है अब होलिका आखिर अपराध की क्या था ? आखिर अपराध की क्या था ? की सुंदर नक्काशीदार भाषा के तले बड़ी चतुराई से दबा दिया ब्यौरा इस अपराध का कि कि अपने मासूम  भतीजे को भस्म करने को थी तैयार वो अहंकारिणी जो दुरप्रयोग करने को थी  आतुर एक वरदान का हाँ , शायद ! उस मासूम की राख की वेदी पर करती अपने प्रियतम का वरण , बनती नन्हे -मुन्ने बच्चों की माँ एक भावी माँ जो नहीं जो नहीं महसूस कर पायी अपने पुत्र को खोने के बाद एक माँ की दर्द नाक चीखों को अरे नादानों वो भाई केप्रेम की मारी अबला नहीं उसमें तो नहीं था सामान्य स्त्री हृदय जिस पर दंड देने को थी  आतुर उस मासूम का अपराध भी कैसा बस व्यक्त कर रहा था , अपने विचार जो उस समय की सत्ता के नहीं थे अनुकूल उसके एक विचार से भयभीत होने लगी सत्ता , डोलने लगा सिंघासन मारने के अनगिनत प्रयासों का एक हिस्सा भर थी होलिका एक शक्तिमान हिंसक की मृत्यु और मासूम की रक्षा के चमत्कार का प्रतीक बन गया होलिकादहन समझना होगा हमें ना ये स्त्री विरोधी है न पुरुष सत्ता का प्रतीक ये लोकतंत्र का उत्सव है जहाँ शोषक स्वयं भस्म होगा अपने अहंकार की अग्नि में और मासूम शोषित को मिलेगी विजय शक्तिशाली या कमजोर , मिलेगा हर किसी को अपनी बात रखने का अवसर … तोआइये … पूरे उत्साह के साथ मनइये होलिका दहन ये कोई अपराध नहीं है न ही आप हैं स्त्री मृत्यु के समर्थक करिए गर्व  अपनी परम्परा पर शायद वहीँ से फैली है लोकतंत्र की बेल जिसे सहेजना है हम को आपको नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … होली और समाजवादी कवि सम्मलेन होली के रंग कविताओं के संग फिर से रंग लो जीवन फागुन है होली की ठिठोली आपको “ होलिका दहन : अपराध नहीं , लोकतंत्र का उत्सव “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- happy holi , holi, holi festival, color, festival of colors, होलिका दहन 

गुझिया -अपनेपन की मिठास व् परंपरा का संगम

फोटो क्रेडिट –www.shutterstock.com रंगों के त्यौहार होली से रंगों के बाद जो चीज सबसे ज्यादा जुडी है , वो है गुझिया | बच्चों को जितना इंतज़ार रंगों से खेलने का रहता है उतना ही गुझिया का भी | एक समय था जब होली की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू हो जाती थी | आलू के चिप्स , साबूदाने व् आलू , चावल के पापड़ , बरी आदि  महीने भर पहले से बनाना और धूप  में सुखाना शुरू हो जाता था | हर घर की छत , आँगन , बरामदे में में पन्नी पर पापड़ चिप्स सूखते और उनकी निगरानी करते बच्चे नज़र आते | तभी से बच्चों में कहाँ किसको कैसे रंग डालना है कि योजनायें बनने लगतीं | गुझिया -अपनेपन की मिठास व् परंपरा का संगम  संयुक्त परिवार थे , महिलाए आपस में बतियाते हुए ये सब काम कर लेती थीं , तब इन्हें करते हुए बोरियत का अहसास नहीं होता था | हाँ ! गुझिया जरूर होलाष्टक लगने केर बाद ही बनती थी | पहली बार गुझिया बनने को समय गांठने का नाम दिया जाता | कई महिलाएं इकट्ठी हो जाती फाग गाते हुए कोई लोई काटती , कोई बेलती , कोई भरती  और कोई सेंकती, पूरे दिन का भारी काम एक उत्सव की तरह निपट जाता | तब गुझियाँ भी बहुत ज्यादा  संख्या में बनती थीं ….घर के खाने के लिए , मेह्मानों के लिए और बांटने के लिए | फ़ालतू बची मैदा से शक्कर पारे नामक पारे और चन्द्र कला आदि बन जाती | इस सामूहिक गुझिया निर्माण में केवल घर की औरतें ही नहीं पड़ोस की भी औरतें शामिल होतीं , वादा ये होता कि आज हम आपके घर सहयोग को आयें हैं और कल आप आइयेगा , और देखते ही देखते मुहल्ले भर में हजारों गुझियाँ तैयार हो जातीं | बच्चों की मौज रहती , त्यौहार पर कोई रोकने वाला नहीं , खायी गयी गुझियाओं की कोई गिनती नहीं , बड़े लोग भी आज की तरह कैलोरी गिन कर गुझिया नहीं खाते थे | रंग खेलने आये होली के रेले के लिए हर घर से गुझियों के थाल के थाल निकलते … ना खाने में कंजूसी ना खिलाने में | हालांकि बड़े शहरों में अब वो पहले सा अपनापन नहीं रहा | संयुक्त परिवार एकल परिवारों में बदल गए | अब सबको अपनी –अपनी रसोई में अकेले –अकेले गुझिया बनानी पड़ती है | एक उत्सव  की उमंग एक काम में बदलने लगी | गुझिया की संख्या भी कम  होने लगी, अब ना तो उतने बड़े परिवार हैं ना ही कोई उस तरह से बिना गिने गुझिया खाने वाले लोग ही हैं , अब तो बहुत कहने पर ही लोग गुझिया की प्लेट की तरफ हाथ बढ़ाते हैं , वो भी ये कहने पर ले लीजिये , ले लीजिये खोया घर पर ही बनाया है,सवाल सेहत का है, जितनी मिलावट रिश्तों में हुई है उतनी ही खोये में भी हो गयी हैं  …  फिर भी शुक्र  है कि गुझिया अभी भी पूरी शान से अपने को बचाए हुए हैं | इसका कारण इसका परंपरा से जुड़ा  होना है |  यूँ तो मिठाई की दुकानों पर अब होली के आस -पास से ही गुझिया बिकनी शुरू हो जाती है … जिनको गिफ्ट में देनी है या घर में ज्यादा खाने वाले हैं वहां लोग खरीदते भी हैं , फिर भी शगुन के नाम पर ही सही गुझिया अभी भी घरों में बनायीं जा रही है … ये अभी भी परंपरा  और अपनेपन मिठास को सहेजे हुए हैं | लेकिन जिस तेजी से नयी पीढ़ी में देशी त्योहारों को विदेशी तरीके से मनाने का प्रचलन बढ़ रहा है …उसने घरों में रिश्तों की मिठास सहेजती गुझिया  पर भी संकट खड़ा कर दिया है | अंकल चिप्स , कुरकुरे आदि आदि … घर के बने आलू के पापड और चिप्स को पहले ही चट कर चुके हैं, अब ये सब घर –घर में ना बनते दिखाई देते हैं ना सूखते फिर भी गनीमत है कि अभी कैडबरी की चॉकलेटी गुझिया इस पोस्ट के लिखे जाने तक प्रचलन में नहीं आई है ) , वर्ना दीपावली , रक्षाबंधन और द्युज पर मिठाई की जगह कैडबरी का गिफ्ट पैक देना  ही आजकल प्रचलन में है |  परिवर्तन समय की मांग है … पर परिवर्तन जड़ों में नहीं तनों व् शाखों में होना चाहिए …ताकि वो अपनेपन की मिठास कायम रहे | आइये सहेजे इस मिठास को … होली की हार्दिक शुभकामनायें  वंदना बाजपेयी  होली और समाजवादी कवि सम्मलेन होली के रंग कविताओं के संग फिर से रंग लो जीवन फागुन है होली की ठिठोली आपको “गुझिया -अपनेपन की मिठास व् परंपरा का संगम  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- happy holi , holi, holi festival, color, festival of colors, gujhiya

होली आई रे

                                                होली त्यौहार है मस्ती का , जहाँ हर कोई लाल , नीले गुलाबी रंगों से सराबोर हो कर एक रंग हो जाता है ….वो रंग है अपनेपन का , प्रेम का , जिसके बाद पूरा साल ही रंगीन हो जाता है …आइये होली का स्वागत करे एक कविता से … कविता -होली आई रे  फिर बचपन की याद दिलाने बैर  भाव को दूर भगाने जीवन में फिर रंग बढाने होली आई रे … बूढ़े दादा भुला कर उम्र को दादी के गालों पर मलते रंग को जीवन में बढ़ाने उमंग को होली आई रे पप्पू , गुड्डू , पंकू देखो अबीर उछालो , गुब्बारे फेंकों कोई पाए ना बचके जाने होली आई रे गोरे फूफा हुए हैं लाल तो काले चाचा हुए सफ़ेद आज सभी हैं नीले – पीले होली आई रे  बन कन्हैया छेड़े जीजा राधा सी शर्माए  दीदी प्रीत वाही फिर से जगाने होली आई रे घर में अम्माँ गुझिया तलती चाची दही और बेसन मलती बुआ दावत की तैयारी करती होली आई रे बच्चे जाग गए हैं तडके इन्द्रधनुषी बनी हैं सडकें सबको अपने रंग में रंगने होली आई रे  जिनमें कभी था रगडा -झगडा चढ़ा प्रेम का रंग यूँ तगड़ा सारे बैर -भाव मिटाने होली आई रे नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … होली और समाजवादी कवि सम्मलेन होली के रंग कविताओं के संग फिर से रंग लो जीवन फागुन है होली की ठिठोली आपको “ होली आई रे “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- happy holi , holi, holi festival, color, festival of colors

होलिका दहन-वर्ण पिरामिड

1– हो दर्प दहन खिलें रंग अपनों संग प्रेम विश्वास के होली के उल्लास में। ————————– 2– आ छोड़ें अपनी द्वेष ईर्ष्या करें संपन्न होलिका दहन मथें विचार गहन। ———————– 3) ——- आ  चल जलाएँ  बुराइयाँ होलिका संग  बदलेगा ढंग  सबके जीवन का। ——————— 4) ——- हो  जीत  अधर्म  बेईमानी  अन्याय पर  होलिका दहन  करे इनको वहन  ———————- 5 ——— स्व बचे लकड़ी पर्यावरण हो सुरक्षित कंडे अपनाएँ यूँ होलिका जलाएँ।   ————————- 6 ——— आ पूजें  होलिका  रंग कंडे मौली ले हाथ  जलाएँ दीप आठ  परिक्रमा करें सात। ———————— डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई । फोटो क्रेडिट –जनसत्ता होली की हार्दिक शुभकामनाएं 

होली स्पेशल – होली की ठिठोली

जल्दी से कर लीजिये हंसने का अभ्यास इस बार की होली तो होगी खासमखास  दाँतन बीच दबाइए लौंग इलायची सौंफ  बत्तीसी जब दिखे तो मुँह से आये न बास खा खा कर गुझिया जो ली हो तोंद बढ़ाय  हसत -हसत घट  जायेगी हमको है विश्वास देवर को भाभी रंगें , चढ़े जीजा पर साली का रंग घर आँगन के बीच मचे होली का हुडदंग अम्मा कहती दूर हटो , कोई न आओ पास पापड़ सब टूट जायेंगे , होगा सत्यानाश  लाल , काला ,  हरा गुलाबी हैं तो अनेकों रंग  पर रंग हंसी के आगे लगते सब बकवास दूर भगाईये  डाक्टर  नीम हकीम और वैध बिन पैसे का  हास्य रस   करे रोग सब नाश वंदना बाजपेयी  होली की हार्दिक शुभकामनाएं 

होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित

होली केवल रंगों का त्यौहार ही नहीं है , हंसने खिलखिलाने का भी त्यौहार है | हँसने –हँसाने का ये सिलसिला जारी रहने के लिए लाये हैं एक हास्य रचना  होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित होली और गुझियाँ का चोली दामन का साथ है |”सारे तीरथ बार –बार और गंगा सागर एक बार “की की तर्ज पर गुझियाँ ही वो मिठाई है जो साल में बस एक बार होली पर बनती है |जाहिर है घर में बच्चों –बड़ों सबको इसका इंतज़ार रहता है,और गुझियाँ का नाम सुनते ही बच्चों के मुँह में व् महिलाओं के माथे पर पानी आ जाता है |    कारण  यह है कि गुझियाँ खाने में जितनी स्वादिष्ट लगती है पकाने में उतनी ही बोरिंग| एक –एक लोई बेलो ,भरो ,तलो …. बिलकुल चिड़िमार काम |अकसर होली के आस –पास महिलाएं जब एक दुसरे से मिलती हैं तो पहला प्रश्न यही होता है “आप की गुझियाँ बन गयी? और अगर उत्तर न में मिला तो तसल्ली की गहरी साँस लेती है “एक हम ही नहीं तन्हाँ न बना पाने में तुझको रुसवा“ पर बकरे की माँ कब तक खैर बनाएगी ,बनाना तो सबको पड़ेगा ही ….. शगुन जो ठहरा |          एक सवाल मेरे मन में अक्सर आता है कि पिट्स,,वी टी आर , फादर्स  रेसेपी … जैसी तमाम कंपनियों ने जब रसगुल्ले ,ढोकले ,दहीबड़े यहाँ तक की जलेबी के इंस्टेंट मिक्स बना कर हम हम महिलाओं को पकाने के काम से इतनी आज़ादी दी कि हम आराम से पड़ोस में किसकी बेटी का ,बेटे का ,सास –बहु ,नन्द –भौजाई का आपस में क्या पक रहा है जान सके ,तो किसी को यह ख़याल क्यों नहीं आया कि इंस्टेंट गुझिया मिक्स बनाया जाए |ऐसी निराशा के आलम में जब होली  से ठीक एक दिन पहले “आज गुझियाँ बना ही लेंगे की भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए हमने अखबार खोला, तो हमारी तो ख़ुशी के मारे चीख निकल गयी | साफ़ –साफ़ मोटे –मोटे अक्षरों में लिखा था “ हमारी माताओं –बहनों की तकलीफ को देखते हुए होली पर महिलाओं के लिए इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स बिकुल फ्री| जल्दी करिए स्टॉक सीमित है |केवल महिलाएं अपने एरिया की अधिकृत दुकान तक पहुंचे |विज्ञापन सरकारी था |शक करने का कोई सवाल ही नहीं था |वैसे भी हम दिल्ली वालों  फ्री चीजों की आदत हो चुकी है | और अब तो फ्री -फ्री के खेल को एन्जॉय करना भी शुरू कर दिया है | हमने तुरंत अपना मोबाइल उठाया और अपनी सहेलियों को फ्री की यह शुभ सूचना देने के में २०० रूपये खर्च कर दिए | मीना ,रीना ,टीना  ,मुन्नी ,दिव्या सुधा सब दस मिनट में तैयार हो कर हमारे घर आ गयी |हमने दुकान की तरफ  कदम बढ़ाये |रास्ते भर हम यही गुणगान करते रहे “क्या सरकार है जिसने हम महिलाओ  के दर्द को समझा ,इतना तो हमारे पतियों नें नहीं समझा | दुकान पर पहुँच कर देखा करीब ५ -७ सौ महिलाओं की भीड़ है| खैर हम सभी सभ्य  जनता की तरह लाइन में लग गए और अपनी –अपनी सास –बहुओं की बुराई कर सहृदयता पूर्वक  टाइम काटने लगे| तभी अचानक से खबर आई इस ईलाके के लिए पैकेट केवल ५० हैं |कहीं हम ही न रह जाए यह सोच कर महिलाओं में भगदड़ मच गयी |सब  अपनी –अपनी साडी के पल्ले कमर पर बाँध  योद्धा की तरह आगे बढ़ने लगी |कुछ  ने दूसरों को गिराया, कुछ स्वयं ही गिरी  , सास –बहु की बुराई की जगह एक दूसरे की बुराई होने लगी |कैसी सहेली हैं रे तू (दिल्ली में तू भाषा में आम चलन में  है)मेरी जॉइंट फैमिली है तुझे दया नहीं आती |दूसरी आवाज़ आई अरे मैं तो काम पर जाती हूँ ,मुझे मिलना चाहिए |तभी कुछ आवाज़े आई “सीनियर सिटीजन का पहला हक है | मौके की नाजुक हालत देख कर दुकान दार भाग गया | विकराल छीना –झपटी मच गयी |             इसी छीना – झपटी में सारे के सारे पैकेट फट गए,पर ये क्या उसमें गुझियाँ मिक्स की जगह अबीर –गुलाल निकला| हम सारी महिलाएं रंगों से सराबोर थी |एक –दूसरे की हालत देखकर हमें हंसी आने लगी |सारा गुस्सा काफूर हो गया | फटे हुए पैकेट को खंगाला गया तो उसमें मिली पर्चियों पर बड़ा –बड़ा लिखा था  “बुरा न मानो होली है”  हम लोगो कि हंसी छूट गयी…होलीके माहौल में बुरा क्या मानना।हम सब हँसते –मुस्कुराते घर की तरफ चल पड़े। इस बात का अफ़सोस तो जरूर था की घर जा कर गुझियाँ बनानी पड़ेगी। पर इस बात का संतोष भी था पहली बार सरकार ने जनता के साथ होली खेली। जनता रंगों से सराबोर हुई और अबीर -गुलाल तो मिला ही बिलकुल मुफ्त।  खैर हमने तो होली खेल ली अब गुझियाँ भी बना ही लेंगे पर अगर आप के शहर में ऐसा कोई विज्ञापन आता है .तो जरा संभल कर ….बड़े धोखे हैं इस राह हैं …..फिर भी अगर मुफ्त के चक्कर  में आप भी फंस जाए और होली के रंगों में रंग जाए तो भी कोई गम नहीं क्योंकि…………….. “बुरा न मानो होली है” वंदना बाजपेयी  अटूट बंधन परिवार की ओर से आप सभी को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं  यह भी पढ़ें ..                             सूट की भूख न उम्र की सीमा हो … किरण आर्य हमने भी करी डाई – ईटिंग एक लेखक की दास्ताँ       आपको  व्यंग लेख “ होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |