श्रीकृष्ण वंदना

जन्माष्टमी प्रभु श्रीकृष्ण के धरती पर अवतरण का दिन है | दुनिया भर में भक्तों द्वारा यह पर्व हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है | भक्ति प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति है | भक्ति भावना में निमग्न व्यक्ति सबसे पहले ईश के चरणों की वंदना करता है … श्रीकृष्ण वंदना  अंतर में बैठे हो प्रभुवर , इतनी करुणा  करते रहिये | मम जीवन रथ की बागडोर , कर कमलों में थामें रहिये ||  उच्श्रिंखल इन्द्रिय घोड़े हैं , निज लक्ष्य का बोध न रखते हैं  ठुकरा मेरे निर्देशों को , भव पथ पर सदा भटकते हैं || अति बलि निरंकुश चंचल मन , प्रिय मेरे वश नहीं होता है | ये मस्त गेंद की भांति प्रभु , दिन रात्रि दौड़ता रहता है || चंचल मरकट  की भांति जभी  ये स्वप्न जगत में जाता है | तब कुशल नटी की भांति वहाँ, अद्भुत क्रीडा दिखलाता है || निज जान अकिंचन दासी को , चरणों में नाथ लगा लीजे , गोविन्द वारि करुणा  की बन  अब सतत वृष्टि मुझ पर कीजे || मेरे जीवन कुरुक्षेत्र में आ , गीता का ज्ञान उर में भरिये , प्रिय सारथि अब जीवन रथ को ,  आध्यात्म मार्ग पर ले चलिए ||   उर  के विकार कौरव दल का , प्रिय सारथि अब विनाश करिए | सद्वृति रूपी पांडव की , अविलम्ब प्रभु रक्षा करिए || मन से वाणी से काया  से , जीवन भर जो भी कर्म करूँ  हे जगन्नाथ करुना सागर | वे सभी समर्पित तुम्हें करूँ || ये ‘राष्ट्रदेवी ‘अल्पज्ञ प्रभु  स्वीकार उसे करते रहिये  शुभ कर्मों का आचरण करूँ  | अवलंबन प्रिय देते रहिये || कृष्णी राष्ट्र देवी त्रिपाठी (श्रीमती एम डी त्रिपाठी,) (संक्षिप्त गीतामृतं से ) यह भी पढ़ें ……. जन्माष्टमी पर सात काव्य पुष्प पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की धर्म और विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है कान्हा तेरी प्रीत में कृष्ण की गीता और मैं आपको    ”  श्रीकृष्ण वंदना “कैसी लगी    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- janmashtami, shri krishna, lord krishna, govind, avtar, krishna avtar

जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प

माखन चोर , नटखट बाल गोपाल , मथुरा का ग्वाला , धेनु चराने वाला , चितचोर , योगेश्वर , प्रभु श्री कृष्ण के नामों की तरह उनका व्यक्तित्व भी अनेकों खूबियाँ समेटे हुए हैं | तभी तो उनका जानना सहज नहीं है | सहज है तो प्रेम रस में निमग्न भक्ति … जो कह उठती है ” मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई ” और महा ज्ञानी कृष्ण भक्त के बस में आ जाते हैं | तो आइये जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इन ७ कविताओं को पढ़ें जो कृष्ण की भक्ति के रंग में रंगी हुई हैं और खो जाएँ …. बांसुरी की मोहक धुनों में जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प  १—कृष्ण चक्र, बाँसुरी, शंख का  है अदभुत संगम, प्रेम-मधुरिमा फैले सर्वत्र  बजाते बाँसुरी कृष्ण! रण का करना घोष जब  फूँकते शंख कृष्ण! आततायी को क्षमा नहीं  चक्र घुमायें कृष्ण! —————————— २—पाहन शैया पर कृष्ण —————————- थोड़ा  करने तो दो  आराम मुझे.. अभी अभी तो  लेटा हूँ आकर  अपनी पाहन शैया पर  चिंतन भी  तुम सबके हित ही  एकाकी हो रहा हूँ कर, मिला न माखन  व्यर्थ हुए सब  अपने लटके-झटके  सोचा कुछ करने को तो  जा खजूर में अटके  अब तो पूरी तैयारी कर  मुझे लगानी घात  जसुमति माँ को सब देखना  माखन लाऊँगा साथ। ——————————— ३—कान्हा  ————— नटखट कान्हा से तंग आकर  जसुमति ने घर में ताला डाला  दाऊ संग निकले झरोखे से  झट गऊओं संग डेरा डाला  पूँछ पकड़ कर बैठे कान्हा  और दाऊ देख रहे खड़े खड़े  दूर खड़ी माँ जसुमति निहारे  अपने नैना करके बड़े बड़े। —————————— ४—माधव  —————— जब से प्रेम हुआ माधव से  सब कुछ भूल गई  किया समर्पण नहीं रहा कुछ  सब अपना वार गई  उठे दृष्टि अब ओर किसी भी  दिखाई देते हैं माधव  हुई माधवमय मैं अब सुन लो  यमुना के तीर गई। ————————— ५—माधव  —————- नृत्य कर रहा मोहित होकर  सबको मोहने वाला  देख इसे सुधबुध बिसराई ये कैसा जादू डाला  कौन न जाए वारी इस पर  पीकर भक्ति हाला माधव छवि ही रहे ध्यान में  गले मोतियन माला देकर गीता ज्ञान सभी के  भरम मिटाने वाला  अपनी लीला दिखला कर  हर संकट इसने टाला। ———————————- ६—उत्तर दो मोहन! ————————— पूछे मीरा कृष्ण से  उत्तर दो मोहन!  हो रहा विश्वास का  क्यों इतना दोहन? कैसे कोई आज कहीं  सच्ची प्रीत करेगा? वासना का दंश प्रतिपल  मन को जब मथेगा  तुम्हें सोचना होगा हित  अब आगे बढ़ कर  पाठ पढ़ाना कुकर्मियों को  उदंड शीश काट कर। ———————————-  ७—बंसी बजैया बंसी बजैया! सकल जग के हो  तुम खेवैया। •••••••••• कहो माधव  ग्वाल संग करते  कैसा कौतुक? ••••••••••• आओ मोहना  निरखें सब मग  रूप सोहना। ••••••••••• हमारे मन  बसो सर्वदा तुम  जीवन धन। ••••••••••• मुरली तान  हुई अधीर राधा  कहाँ है भान? •••••••••••• कदम्ब तले  रास गोपियों संग  देवता जलें। ••••••••••••• मटकी फोड़ी जसुमति देखती  लीला निगोड़ी। ——————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की धर्म और विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है कान्हा तेरी प्रीत में आपको    ”  जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प “कैसे लगे    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- janmashtami, shri krishna, lord krishna, govind

हे श्याम सलोने

©किरण सिंह ************ हे श्याम सलोने आओ जी  अब तो तुम दरस दिखाओ जी  राह निहारे यसुमति मैया  तुम ठुमक ठुमक कर आओ जी  आओ मधु वन में मुरलीधर प्रीत की बंशी बजाओ जी दबा हुआ बच्चों का बचपन  अब राह नई दिखलाओ जी  पुनः द्रौपदी चीख रही है  अस्मत की चीर बचाओ जी  राग द्वेष से मुक्त करो हमें  गीता का पाठ पढ़ाओ जी  मति हीन हम सब मूरख हैं  अपना स्वरूप दिखलाओ जी  जन्म ले लिये कृष्ण मुरारी  सखियाँ सोहर गाओ जी 

कान्हा तेरी प्रीत में – जन्माष्टमी के पावन पर्व पर डॉ . भारती वर्मा की कवितायें

कान्हा तेरी प्रीत में ~पढ़िए प्रभु श्रीकृष्ण को समर्पित डॉ . भारती वर्मा की कवितायें  1–कान्हा ————– कान्हा तेरी प्रीत में हुई बावरी मैं तेरे रंग में रंग कर हुई साँवरी में  भावे न अब कछु मोहे तुझे देखती मैं दिवस हो या रैन अब तुझे जपती मैं तेरी प्रीत के गीत ही गाती रहती मैं कोई कहे चाहे कुछ भी बनी मतवाली मैं जब बजती बंसी तेरी रुक न पाती मैं आ कदम्ब के पेड़ तले बैठी रहती मैं तुम छलिया छलते सदा मूरख बनती मैं  रास रचाते यमुना तीरे तुम्हें देखती मैं ना मैं मीरा ना मैं राधा पर तेरी हूँ मैं  तेरी राह निहारूँ नित किससे कहूँ मैं तेरी प्रीत के रंग रंगी भूल गई सब मैं। ————————— 2–साँवरे ————– साँवरे अपने रंग रंग दीन्हा। मोर मुकुट मन में बसाए नैनों को अब कुछ ना भाए साँवरे ये तूने क्या कर दीन्हा। बंसी तेरी मधुर तान सुनाए मन तेरी और खींचा चला आए साँवरे ये कैसा  दुःख दीन्हा। ——————- 3–मुरली —————-  कान्हा तेरी मुरली जब से बजी सुन इसे सबने धीर धरी कान्हा तेरी मुरली जब से बजी सुन इसे सबकी पीर गई कान्हा तेरी मुरली के रंग हज़ार मिलें यहीं ढूंढों चाहे बाज़ार कान्हा तेरी मुरली छलिया बड़ी छल से मन में जाय बसी कान्हा तेरी मुरली कहे पुकार सुन इसे आओ मेरे द्वार कान्हा तेरी मुरली ने छीना चैन सब लीन्हा किया बेचैन कैसा जादू किया तेरी मुरली ने तेरे रंग में रंगा संसार कान्हा तेरी मुरली अपरंपार इसमें छिपा है जीवन सार। ———————————-

गीता के कर्मयोग की काव्यात्मक व्याख्या

गीता का तीसरा अध्याय कर्म योग के नाम से भी जाना जाता है प्रस्तुत है गीता के  कर्मयोग  की सरल काव्यात्मक व्याख्या /geeta ke karmyog ki saral kaavyaatmak vyakhya  श्रीमती एम .डी .त्रिपाठी ( कृष्णी राष्ट्रदेवी )  अर्जुन ने प्रभु से  कहा  सुनिए करुणाधाम  मम मन में संदेह अति  निर्णय दें घनश्याम  ज्ञान अगर अति श्रेष्ठ है  कर्मों से दीनानाथ  लगा रहे हो घोर फिर  कर्मों में क्यों नाथ   कहा प्रभू ने पार्थ सुनो  ये दो निष्ठाएं जग में हैं  ज्ञान योग व् कर्म योग में  कुछ भी तो भेद नहीं है  कोई भी नर एक क्षण भी तो  नहीं कर्म किये बिना रह सकता है  यदि तन से नहीं तो मन से ही  वह कर्म का चिंतन करता है  इसलिए कर्म को त्यागना  संभव नहीं है पार्थ  हर क्षण में है कर्म का  नर जीवन में साथ  हठ पूर्वक रोक जो इन्द्रियों को  जो कर्म का चिंतन करता है  ऐसा नर निश्चय ही अर्जुन  मिथ्याचारी कहलाता है  इन्द्रियों को जो वश में रख के  आसक्ति रहित हो कर्म करे  वही श्रेष्ठ पुरुष कहलाता है  जो शास्त्र विहित कर्तव्य करे  कर्तव्य कर्म का करना ही  सब भांति मनुज के हित में है  निष्काम कर्म करने से ही  कल्याण जीव का होता है  जो शास्त्र विहित हैं कर्म सभी  वे यज्ञ स्वरुप हो जाते हैं  फिर अनासक्त हो जाने से  बंधन भी सब छुट जाते हैं  प्रभु अर्पण यदि तुम कर्म करो  सब इच्छित फल पा जाओगे  आसक्ति भाव से कर्म किया  तो बंधन में बंध जाओगे  इसलिए निरंतर हे अर्जुन  आसक्ति रहित तू कर्म करे  दो लोक बनेगे तब तेरे  किंचित फल की आशा न करे  आरभ सृष्टि के ब्रह्मा ने  है प्रजा की रचना यज्ञ से की  तुम अनासक्त हो कर्म करो  निज प्रजा को भी यह आज्ञा दी  हे पार्थ सुनो सम्पूर्ण जीव की  उत्पत्ति अन्न से होती है  अरु अन्न की उत्पत्ति वर्षा से  वर्षा कर्म यज्ञ से होती है  जीवन उसका ही धनी की जो  प्रभु हित कर्तव्य कर्म करता  जो स्वार्थ युक्त हो कर्म करे  वो पाप अन्न ही खाता है  जनकादिक सभी ज्ञानियों ने  आसक्ति रहित ही कर्म किये  फिर लोक कल्याण को पा कर के  है अंत मोक्ष को प्राप्त किये  त्रैलोक्य में भी मुझको अर्जुन  कुछ भी कर्तव्य है शेष नहीं  परलोक हितार्थ सदा ही तो  कर्तव्य कर्म से दूर नहीं  परवश स्वाभाव से हो प्राणी  कर्मों को करता रहता है  ” मैं करता हूँ ” अपने में  भावना यह धारण करता है  यह ही बंधन का कारण है  इससे ही दुःख उठाते हैं  इस गुण विभाग के तत्वों को  ज्ञानी जन खूब जानते हैं  कामना रहित कर्मों द्वारा  आचरण शुद्ध  हो जाएगा  बस अनासक्त हो जाने से  बंधन भी सब छुट जाएगा  इस काम रूप बैरी का ही  हे अर्जुन प्रथम विनाश करो  जो सर्वशक्ति आत्मा तेरी  उस पर अटल विशवास करो || लेखक परिचय : श्रीमती एम डी त्रिपाठी , हिंदी की व्याख्याता रहने के बाद प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों  की सेवा में पूर्ण रूप से लग गयी | उन्होंने श्री कृष्ण भक्ति पर अनेकों पुस्तके लिखी है | प्रस्तुत रचना संक्षिप्त गीतामृतम से है |हम श्रीमती त्रिपाठी जी का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं |  यह भी पढ़ें …….. पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की                                            

पवित्र ‘‘गीता’’ सभी को कर्तव्य एवं न्याय के मार्ग पर चलने की सीख देती है!

जन्माष्टमी पर्व  पर विशेष लेख /janmashtami par vishesh lekh  – डाॅ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,  सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) पवित्र ‘‘गीता’’ हमें कर्तव्य एवं न्याय के मार्ग पर चलने की सीख देती है:- श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का पावन त्यौहार बड़ी ही श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ था। कर्षति आकर्षति इति कृष्णः। अर्थात श्रीकृष्ण वह है जो अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंकार का नाश करते हैं। भारतवर्ष में इस महान पर्व का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों तरह का विशिष्ट महत्व है। यह त्योहार हमें आध्यात्मिक एवं लौकिक संदेश देता है। आस्थावान लोग इस दिन घर तथा पूजा स्थलों की साफ-सफाई, बाल कृष्ण की मनमोहक झांकियों का प्रदर्शन तथा सजावट करके बड़े ही प्रेम व श्रद्धा से आधी रात के समय तक व्रत रखते हैं। श्रीकृष्ण के आधी रात्रि में जन्म के समय पवित्र गीता का गुणगान तथा स्तुति करके अपना व्रत खोलते हैं तथा पवित्र गीता की शिक्षाआंे पर चलने का संकल्प करते हैं। साथ ही यह पर्व हर वर्ष नई प्रेरणा, नए उत्साह और नए-नए संकल्पों के लिए हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। हमारा कर्तव्य है कि हम जन्माष्टमी के पवित्र दिन श्रीकृष्ण के चारित्रिक गुणों को तथा पवित्र गीता की शिक्षाओं को ग्रहण करने का व्रत लें और अपने जीवन को सार्थक बनाएँं। यह पर्व हमें अपनी नौकरी या व्यवसाय को समाज हित की पवित्र भावना के साथ अपने निर्धारित कर्तव्यों-दायित्वों का पालन करने तथा न्यायपूर्ण जीवन जीते हुए न्यायपूर्ण समाज के निर्माण की सीख देता है। (2) ‘कृष्ण’ को कोई भी शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकी:- कृष्ण के जन्म के पहले ही उनके मामा कंस ने उनके माता-पिता को जेल में डाल दिया था। राजा कंस ने उनके सात भाईयों को पैदा होते ही मार दिया। कंस के घोर अन्याय का कृष्ण को बचपन से ही सामना करना पड़ा। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की। बचपन से लेकर ही कृष्ण का सारा जीवन संघर्षमय रहा किन्तु धरती और आकाश की कोई भी शक्ति उन्हें प्रभु के कार्य के रूप में न्याय आधारित साम्राज्य धरती पर स्थापित करने से नहीं रोक सकी। परमात्मा ने कृष्ण के मुँह का उपयोग करके न्याय का सन्देश पवित्र गीता के द्वारा सारी मानव जाति को दिया। परमात्मा ने स्वयं कृष्ण की आत्मा में पवित्र गीता का ज्ञान अर्जुन के अज्ञान को दूर करने के लिए भेजा। इसलिए पवित्र गीता को कृष्णोवाच नहीं भगवानोवाच अर्थात कृष्ण की वाणी नहीं वरन् भगवान की वाणी कहा जाता है। हमें भी कृष्ण की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए। (3) परमात्मा सज्जनों का कल्याण तथा दुष्टों का विनाश करते हैं:- महाभारत में परमात्मा की ओर से वचन दिया गया है कि ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।’ अर्थात धर्म की रक्षा के लिए मैं युग-युग में अपने को सृजित करता हूँ। सज्जनों का कल्याण करता हूँ तथा दुष्टों का विनाश करता हूँं। धर्म की संस्थापना करता हूँ। अर्थात एक बार स्थापित धर्म की शिक्षाओं को पुनः तरोताजा करता हूँ। अर्थात जब से यह सृष्टि बनी है तब से धर्म की स्थापना एक बार हुई है। धर्म की स्थापना बार-बार नहीं होती है। (अ) परमात्मा ने अपने धर्म (या कत्र्तव्य) को स्पष्ट करते हुए अपने सभी पवित्र शास्त्रों में एक ही बात कही है जैसे पवित्र गीता में कहा है कि मेरा धर्म है, ‘‘परित्राणांय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’’ अर्थात परमात्मा की आज्ञाओं को जानकर उन पर चलने वाले सज्जनों (अर्थात जो अपनी नौकरी या व्यवसाय समाज के हित को ध्यान में रखकर करते हैं) का कल्याण करना तथा मेरे द्वारा निर्मित समाज का अहित करने वालों का विनाश करना। (ब) परमात्मा ने आदि काल से ही मनुष्य का धर्म (कत्र्तव्य) यह निर्धारित किया है कि वह केवल अपने सृजनहार परमात्मा की इच्छाओं एवं आज्ञाओं को शुद्ध एवं पवित्र मन से पवित्र ग्रन्थों को गहराई से पढ़कर जाने एवं उन शिक्षाओं पर चलकर बिना किसी भेदभाव के सारी सृष्टि के मानवजाति की भलाई के लिए काम करें। मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है कि प्रभु की शिक्षाओं को जानना तथा पूजा के मायने है उनकी शिक्षाआंे पर दृढ़तापूर्वक चलना। मात्र भगवान श्रीकृष्ण के शरीर की पूजा, भोग लगाने तथा आरती उतारने से कोई लाभ नहीं होगा। (4) सारी सृष्टि की भलाई ही हमारा धर्म है:- भगवान श्रीकृष्ण से उनके शिष्य अर्जुन ने पूछा कि प्रभु! आपका धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को बताया कि मैं सारी सृष्टि का सृजनहार हूँ। इसलिए मैं सारी सृष्टि से एवं सृष्टि के सभी प्राणी मात्र से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता हूँ। इस प्रकार मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य सारी सृष्टि तथा इसमें रहने वाली मानव जाति की भलाई करना है। इसके बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन् मेरा धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरी आत्मा के पुत्र हो। इसलिए मेरा जो धर्म अर्थात कर्तव्य है वही तुम्हारा धर्म अर्थात कर्तव्य है। अतः सारी मानव जाति की भलाई करना ही तुम्हारा भी धर्म अर्थात् कर्तव्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस प्रकार तेरा और मेरा दोनों का धर्म अर्थात् कर्तव्य सारी सृष्टि की भलाई करना ही है। यह सारी धरती अपनी है तथा इसमें रहने वाली समस्त मानव जाति एक विश्व परिवार है। इस प्रकार यह सृष्टि पूरी की पूरी अपनी है परायी नहीं है। (5) ‘अर्जुन’ के मोह का नाश प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लेने से हुआ:- कृष्ण के मुँह से निकले परमात्मा के पवित्र गीता के सन्देश से महाभारत युद्ध से पलायन कर रहे अर्जुन को ज्ञान हुआ कि कर्तव्य ही धर्म है। न्याय के … Read more

कृष्ण की गीता और मैं

सत्या शर्मा ‘कीर्ति ‘ और फिर न्याय की देवी के समक्ष वकिल साहिबा ने कहा — गीता पर हाथ रख कर कसम खाइये…………… मैंने भी तत्क्षण हाथ रख खा ली कसम । पर क्या मैनें जाना कभी गीता को ? कभी पढ़ा कि गीता के अंदर क्या है ? कौन से गूढ़ रहस्य हैं उसके श्लोकों में ?  कब जिज्ञासा जागी थी कि आखिर रण भूमि में ही श्री कृष्ण को क्यों अपने पार्थ को देना पड़ा था साक्षात् ब्रह्म ज्ञान का दर्शन ? श्लोक 12 में क्या है ?  क्यों उसके बाद अर्जुन मोहमाया से मुक्त हो गए ? पर , खाली मैंने कसम । डबडबा गयी थी न्याय की देवी की आँखे ।अपने महाग्रन्थ के साथ अन्याय होते देख कर ।पट्टियों से बंद आँखें भी रक्तिम हो चुकी थी । अचानक वकील साहिबा ने पूछ बैठा —-श्री कृष्ण को जानते हैं ? मैंने दंभ में भर कर कहा क्यों नही — जिनके जन्मदिन पर दही हांडी फोड़ते हैं । जिन्होंने अपने बाल्यकाल में नटखटपन से सबक दिल जीत लिया था । जिन्होंने कई असुरों का बध किया। जिन्होंने भरी सभा में द्रौपदी की लाज बचाई। जिन्होंने गोपियों संग रास रचाया। और गीता ……. एक ऐसा धर्मग्रन्थ जिस पर हाथ रख भरी अदालत में कसम खाते हैं कह कर मैंने सर झुका ली । फिर अपने झुके सर से देखा मैंने न्याय की देवी के आँखों से बहते रक्त के आसूँ बह रहे हैं |  फोटो क्रेडिट –wikimedia org रिलेटेड पोस्ट … भूमिका गुमनाम नया नियम अनावृत्त

जन्माष्टमी पर विशेष :जय कन्हैया लाल की

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष /shrikrishn janmashtami par vishesh  झांकी  जय कन्हैया लाल की  1 …………..जब -जब धरती पर धर्म की हानि होती है ,ईश्वर अवतार लेते हैं तभी तो भक्त गा उठते हैं …………… कभी राम बन के कभी श्याम बन के चले आना प्रभुजी चले आना                                          कभी कृष्ण रूप में आना                                              राधा साथ ले के                                            बंशी हाथ ले के                                                        चले आना प्रभुजी चले आना २ …………………द्वापर युग में भादों मास की अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का जन्म कारावास में हुआ | जब जन्मे कृष्ण भगवान् जेल दरम्यान वो मुरली वाले खुल गए  जेल के ताले ………………… ३ ……………….. अपने मामा कंस द्वारा हत्या कर दिए जाने के भय से पिता वासुदेव उन्हें टोकरी में रख कर यशोदा और नंद बाबा के घर छोड़ आये | रास्ते में जमुना नदी उफान -उफान कर बाल कृष्ण के पाँव छूने को लालायित हो उठी  एक बार मोहे पाँव छूँ अन  दो मिटे मन की उदासी  लोग कहें मैं नीर भरी हूँ  मैं अंतर घट प्यासी  ४……….. माता यशोदा ने बाल कृष्ण को अपने आँचल की छाँव में बिठा ममता से सराबोर कर दिया  हे ! रे !कन्हैया  किसको कहेगा तू मैया  इक ने तुझको जन्म दिया है  एक ने तुझको पाला  एक ने तुझको दी हैं रे आँखें  एक ने दिया उजाला  ५……….. पर नन्हे कृष्ण को भाता था तो बस शरारत करना और माखन चुराना और उस पर भी ………. एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी  मैया ….. जरा बताओ न मैं ज्यादा प्यारा हूँ या माखन ? फोटो क्रेडिट –patrika.com ६ …………. एक और काम प्रिय था …. वो था बांसुरी बजाना  जमुना की लहरे  बंशी वट  की छैंया  किसका नहीं है कहो कृष्ण कन्हैया  सांवरे की बंशी को तो बजने से काम  राधा का भी श्याम  वो तो मीरा का श्याम   ७ …………. पर शरारत करते तो माँ के हाथों से पिटाई तो होती ही थी चोरी माखन की दें छोड़ कन्हैया मैं समझे रही तोय                                         बड़ो नाम है नंद बाबा को                                             हँसी हमारी होय ७ ………….. पर कृष्ण कहाँ मानने वाले थे ,जानते थे …. माँ कितनी देर नाराज रहेंगी ,आखिरकार तो गोद  में बिठा ही लेंगी  ढूंढें री अँखियाँ तोहे चहुँ ओर  जाने कहाँ छिप गया नंद किशोर  बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया  का करे यशोदा मैया ……….. ८ ………… गोपिकाओ के सर कृष्ण की बांसुरी और प्रेम का नशा चढ़ा रहता | श्याम रंग रंगी मोरी चूनरी काहे समझत न तू  बावरी …………. यह प्रेम कृष्ण के द्वारिका में बस जाने के बाद भी कहाँ कम हुआ | तभी तो गोपिकाएं कह उठती हैं ……………   लरिकार्इ को प्रेम कहौ अलि कैसे करिकै छूटत? कहा कहौं ब्रजनाथ-चरित अब अन्तरगति यों लूटत।। चंचल चाल मनोहर चितवनि, वह मुसुकानि मंदधुनि गावत। नटवर भेस नन्द नन्दन को, यह विनोद गृह बन में आवत। चरन कमल की सपथ करति हौं यह संदेस मोहि विष सम लागत। सूरदास मोहि निमिष न बिसरत मोहन मूरति सोवत जागत।। ९ ……….. कृष्ण के मन में बसती  थी बस राधा………..                                                 प्रेम भी कोई ऐसा -वैसा नहीं ,राधा रानी कह उठती हैं ………..                                                आदि मैं न होती राधे कृष्ण की रकार पे                                                तो मेरी जान राधे कृष्ण आधे कृष्ण रहते और भक्त भी तो समझदार हैं की तभी तो गाते हैं …………. राधे -राधे रटो  चले आयेंगे बिहारी ………. १० ……………. कुरुक्षेत्र  में कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार को गीता का ज्ञान दिया  और साथ हे अपने ईश्वर होने का प्रमाण भी ………………………. साफ़ -साफ़ कह दिया  अभ्युत्थायदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।           अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।7।। धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्र्स्पनार्थाय सम्भवामि युगे युगेश्रीमद्भगवद्गीता, अध्य ११ ………. कृष्ण का विराट रूप देख अर्जुन को उनके ईश्वर होने पर यकीन हो गया अब लगे घबराने “अरे जिन्हें मित्र समझते थे वो तो ईश्वर निकले ………. फिर क्या क्षमा मांग ली सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति । अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ।।41।। १२ ………… जब जब आततायी बढ़ेंगे श्री कृष्ण शोषित  मनुष्यों की रक्षा  के लिए भगवान् स्वयं  अवतार लेंगे जय श्री कृष्ण………. गोविन्द तुम्हीं गोपाल तुम्ही घनश्याम यशोदा नंदन हो हे नाथ कहीं योगेश्वर हो हे नाथ कहीं मन मोहन हो ब्रज के नंद लाला राधा के सांवरिया सभी दुःख दूर हुई जब तेरा नाम लिया  अटूट बंधन