मदर्स डे पर माँ को समर्पित भावनाओ का गुलदस्ता
माँ एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में पूरे ब्रह्माण्ड को समेटे हुए है ।माँ कहते ही भावनाओं का एक सागर उमड़ता है,स्नेह का अभूतपूर्व अहसास होता है ,………और क्यों न हो ये रिश्ता तो जन्म से पहले जुड़ जाता है निश्छल और निस्वार्थ प्रेम का साकार रूप है …. मदर्स डे पर कुछ लिखने से पहले मैं अपनी माँ को और संसार की समस्त माताओ को सादर नमन करती हूँ। ………. हे माँ अपने चरणों में स्वीकार करो नमन मेरा । धन वैभव इन सबसे बढ़कर,है अनमोल आशीष तेरा ॥ , कहते हैं माँ के ऋण से कोई उऋण नहीं हो सकता । सच ही है उस निर्मल निस्वार्थ ,त्यागमयी प्रेम की कहीं से किसी से भी तुलना नहीं हो सकती । कोई लेखक हो या न हो , कवि हो या न हो शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कभी न कभी अपनी माँ के प्रति भावनाओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश न की हो ।पर शायद ही संसार की कोई ऐसी कविता हो , लेख हो ,कहानी हो जो माँ के प्रति हमारी भावनाओं को पूरी पूरी तरह से व्यक्त कर सकती हो । शब्द बौने पड जाते हैं । भावनाएं शब्दातीत हो जाती है । माँ पर मैंने अनेकों कविताएं लिखी है पर जब आज” मदर्स डे ” जब कुछ शब्दों पुष्पों के द्वारा माँ के प्रति अपने स्नेह को व्यक्त करने का प्रयास किया…तो बस इतना ही लिख पायी . माँ ,क्या तुमको मैं आज दूं । तुमसे निर्मित ही तो मैं हूँ ॥ कुछ दिया नहीं बस पाया है । आज भी कुछ मांगती हूँ ॥ जाने -अनजाने अपराधों की । बस क्षमा मांगती हूँ तुमसे । बस क्षमा मांगती हूँ तुमसे ॥ माँ का भारतीय संस्कृति में सदा से सबसे ऊंचा स्थान रहा है । यह सच है की माँ के लिए अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए समस्त जीवन ही कम है । पर ये दिन शायद इसी लिए बनाये जाते हैं की कि उस दिन हम सामूहिक रूप से भावनाओं का प्रदर्शन करें । …………भाई बहन का त्यौहार रक्षा बंधन , पति के लिए करवाचौथ ,या संतान के लिए अहोई अष्टमी इसका उदाहरण है। “अटूट बंधन ” परिवार ने पूरा सप्ताह माँ को समर्पित करा है । जिसमें आप सब ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । उसके लिए हम आप सब का धन्यवाद करते हैं । आज मदर्स डे पर “माँ कोई तुझ जैसा कहाँ ” श्रृंखला की सातवी व् अंतिम कड़ी के रूप में हम आप के लिए माँ पर लिखी हुई कवितायेँ लाये हैं । वास्तव में यह कविताएं नहीं हैं भावनाओं का गुलदस्ता है। जिसमें अलग -अलग रंगों के फूल हैं । जो त्याग और ,निश्वार्थ प्रेम की देवी ,घर में ईश्वर का साकार रूप माँ के चरणों में समर्पित हैं वंदना बाजपेयी मैं भी लिखना चाहती हूँ माँ पर कविता , माँ यशोदा की तरह प्यारी न्यारि …… लिखती हूँ जब कागज के पन्नों पर , एक स्नेहिल छवि उभरती है शायद…….संसार की सबसे अनुपम कृति है …..’माँ ‘ जब भी सोचती हूँ माँ को , हर बार या यूं कहें बार-बार माँ के गोद की सुकून भरी रात और साथ ही ,,,,,, नरमी और ममता का आंचल और भी बहुत कुछ प्यार की झिड़की ,तो संग ही दुवाओं का अंबार ऐसा होता है माँ का प्यार ……. हर शब्द से छलक़ता ,,,,, प्यार ही प्यार … सच तो यह है कि, माँ की ममता का नेह और समर्पण , ही पहचान है ,उसकी अपनी तभी तो इस जगत में, ”माँ” महान है …….!!! संगीता सिंह ”भावना” माँ आज समझ सकती हू माँ तेरा वो भीगी पलकों में तेरा मुस्कुराना हसकर सब सहते हुए भी अपने सारे दर्द छुपाना न बताना किसी को कुछ अपनों से भी अपने ज़ख्म छुपाना जब दे कर जोर पूछती मैं तो यही होता हरदम तुम्हारा जवाब न बताना किसी को दुःख अपने यह दुनिया है बड़ी ख़राब यह सब सामने तो सुनती पर पीठ पीछे हसती है न बता सकते हम दुःख माँ बाप को क्योंकि बेटियो में उनकी जान बसती है वो भी दुखी होते है बेटियो के साथ न देख पाते है बेटियो के टूटे ख्वाब न कर पायेगे वो फिर इज़्ज़त दामाद की देखेगे जब उनको तो याद आएगी बेटी के टूटे हुए अरमानो की पर इतना याद रखना मेरी बच्ची तुम भी एक औरत हो कल तुम्हे भी ब्याह कर किसी के घर जाना है जो न करवा पाती अपने पति कि इज़्ज़त उनकी भी इज़्ज़त कहा करता यह ज़माना है ! दर्द हो जो भी उसे अपने अंदर समेट के रखना लेकिन हद से ज्यादा ज्यादतियां भी कभी न तुम बर्दाश्त करना थोड़ी बहुत कहासुनी हर घर में होती है कभी न उसे झगड़े का रूप तुम देना !!! गर्व होता अब मुझे खुद पर मैं भी तुम्हारी तरह हो गई हूँ माँ तुम्हारी ही तरह झूठी जिंदगी जीना मैं भी अब सीख गई हूँ माँ भीगी पलकों से अब मैं भी मुस्कुराती हू किसी को न अपना दर्द सुनाती हू गर हो गई कभी इंतेहा दर्द की तो आँखे बंद कर सपनो में मैं तुम्हारी गोद में सो जाती हू मन ही मन बता देती हू तुम्हे सारे दर्द अपने सर पर तुम्हारे हाथो का प्यार भरा स्पर्श तब पाती हू आ जाती है एक नयी … Read more