लली

मिताली ने डाइनिंग टेबल पर अपनी सारी फाइलें  फैला ली और हिसाब किताब करने लगी | आखिर गलती कहाँ हो रही है जो उसे घाटा हो रहा है | कुछ समझ में नहीं आ रहा है | एक तो काम में घाटा ऊपर से कामवाली का टेंशन | महारानी खुद तो गाँव चली गयीं और अपनी जगह किसी को लगा कर नहीं गयीं | पड़ोस की निधि से कहा तो है की अपनी कामवाली से कह कर किसी को भिजवाये | पर चार दिन हो गए अभी तो दूर – दूर तक कोई निशान दिखाई नहीं दे रहे हैं | आखिर वो क्या – क्या संभाले ? अपने ख्यालों को परे झटक कर मिताली फिर हिसाब में लग गयी | तभी दिव्य कमरे में आये | उसे देख कर बोले ,” रहने दो मिताली तुमसे नहीं होगा | ये बात मिताली को तीर की तरह चुभ गयी | दिव्य को देख कर गुस्से में चीखती हुई बोली ,” क्या कहा ? मुझसे नहीं होगा … मुझसे , मैं MBA हूँ | वो तो तुम्हारी घर गृहस्थी के चक्कर में इतने साल खराब हो गए , वर्ना मैं कहाँ से कहाँ होती | वो ठीक हैं मैडम पर आपके इस प्रोजेक्ट के चक्कर में मेरा बैंक बैलेंस कहाँ से कहाँ जा रहा है | दिव्य ने हवा में ऊपर से नीचे की और इशारा करते हुए कहा | मिताली कुछ कहने ही वाली थी की तभी बाहर से आवाज़ आई ,” लली “ मिताली ने बाहर जा कर देखा | कोई 52- 55 वर्ष  की महिला खड़ी  थी | मोटी स्थूलकाय देह , कपड़ों से उठती फिनायल की खुशबू से मिताली को समझते देर न लगी की ये काम वाली है जिसे निधि ने भेजा है | इससे पहले की मिताली कुछ कहती वो ही मुस्कुराते हुए बोल पड़ी ,”सुनो लली ,  कमला नाम है मेरा , निधि मेमसाहब ने बताया था की आप को कामवाली की जरूरत है | मिताली : ( उसे देखते हुए ) हां पर मुझे कम उम्र लड़की चाहिए | कमला : देखो लली , काम तो हम लड़कियों से ज्यादा अच्छा करते हैं | एक बार करा कर देखोगी तब पता चलेगा | मिताली : देखो मेरा समय बर्बाद मत करो , तुम्हारा शरीर इतना भारी है तुम कैसे पलंग के नीचे से कूड़ा निकाल पाओगी | कमला : अरे लली , उसकी चिंता न करो , हम सब कर कर लेंगें | मिताली : कैसे? कमला : अब का बताये लली ,करा के तो देखो मिताली : नहीं कराना , मुझे लड़की ही चाहिए बस | कमला : देखो लली , मिताली : ( गुस्से में उसकी बात बीच में ही काटते हुए ) क्या , लली , लली लगा रखा है | बड़े – बड़े बच्चे हैं मेरे | अब कोई कम उम्र लली थोड़ी न हूँ मैं | कमला : आश्चर्य से उसे देख कर बोली , “ का बातावें धोखा खा गए | अब आप को देख कर कोई कह सकता है की आप के बड़े – बड़े बच्चा  हैं | लड़की सी लगती हैं उमर का  तो तनिक पता ही नहीं चलता है | भाग हैं , भगवान् की देन है | उसके शब्दों ने जादू सा असर किया | अब मिताली थोड़ी ठंडी पड़ गयी | धीरे से बोली , “ कितना लोगी ?’ कमला : सफाई बर्तन का पंद्रह सौ मिताली :पंद्रह सौ , अरे ये तो बहुत ज्यादा हैं | पहले वाली तो बारह सौ लेती थी |  इससे अच्छा तो बर्तन मैं ही कर लूं और तुम सफाई कर लो  |मिताली घाटे का गणित लगाते हुए बोली | कमला : क्या  लली , अपने हाथ देखे हैं | कितने मुलायम हैं | सबके कहाँ होते हैं ऐसे हाथ |  भगवान् बानाए रखे | कया  , २ ००- २५०  रुपया के लिए इन्हें भी कुर्बान कर दोगी | मिताली अपने हाथ देखने लगी | सच में कितने मुलायम हैं | तभी तो दो नंबर की चूड़ियाँ भी झटपट चढ़ जाती है | सहेलियां भी तो अक्सर तारीफ करती हैं | मिताली ने अपने हाथ देखते हुए स्वीकृति में सर हिलाया | खुश होते हुए कमला बोली ,” ठीक है लली , कल से आयेंगे | फिर से लली ,इस बार मीताली  के स्वर में प्यार भरी  झिडकी थी | कमला हँसते हुए बोली ,” अब हम तो लली ही कहियें | जैसे दिखती हो , वही कहेंगे | और दोनों हँस पड़ीं |                            कमला ने काम पर आना शुरू कर दिया | और मिताली उसी प्रोजेक्ट , हिसाब , किताब , गुणा  – भाग में लग गयी | वो घाटे  से उबर नहीं पा रही थी | क्या दिव्य सही कहते हैं की उसे बुकिश नॉलिज है | प्रैक्टिकल नहीं | कहीं , कुछ तो है गलत है | पांच – छ : लोगों की छोटी सी कंपनी को वो संभाल  नहीं पा रही थी | सबके इगो हैंडल करना उसके बस की बात नहीं थी | पैसा वो लगाये , काम वो सबसे ज्यादा करे और मनमर्जी सबकी सहे |  हर कोई अपनी वाहवाही चाहता था |  दिव्य कहते हैं की सब का इगो हैंडल करना ही सबसे बड़ा हुनर है | नहीं तो कम्पनी ही टूट जायेगी |फिर बचेगा क्या ? कैसे करे वो ? और अब तो दिव्य ने भी पैसे देने से इनकार कर दिया है  | मिताली हारना नहीं चाहती थी |उसने लोन लेने का मन बनाया | सारे कागज़ तैयार किये | पर MBA की डिग्री की फोटो कॉपी रह गयी | मिताली डिग्री की फोटो कॉपी कराने बाज़ार के लिए निकली |                              रास्ते में पार्क पड़ता है | जहाँ काम वालियां अक्सर झुण्ड में बैठ कर बतियाती हैं | उसे दूर से कमला बैठी दिख गयी | कमला ने उसे नहीं देखा वो बातचीत में मशगूल थी |  पार्क के पास पहुँचते – पहुँचते मिताली को उनकी सपष्ट आवाज़े सुनाई देने लगीं | एक बोली ,” कमला चाची इस उम्र में भी तुम कैसे इतने घर पकड़  ली हो | हमें तो 40 की होने के बाद से ही काम नहीं मिलने लगा | सब ओ लड़की … Read more

जमीन में गड़े हैं / jameen mein gade hain

                                                               एक बच्चा था | वह किसी गाँव में अपने माता – पिता व् दादी के साथ रहता था | उनका परिवार  सामान्य था | परन्तु तभी एक दुर्घटना घटी और उस बच्चे के माता –  पिता की मृत्यु हो गयी |माता –  पिता की मृत्यु होते ही उस परिवार की आर्थिक स्तिथि बिगड़ने लगी | दादी को मजबूरी में दुसरे घरों में काम पर जाना पड़ता | पर वो पैसे इतने ज्यादा नहीं थे की उनका घर अच्छे से चल पाता | ऐसी ही तंगहाली में वो बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो स्कूल जाने लगा था | उसके दोस्त बन गए थे | बच्चा अक्सर देखता की उसके दोस्तों के घर उसके रिश्तेदार आते | उसके मन में प्रश्न उठता की आखिर उसके घर में रिश्तेदार क्यों नहीं आते हैं |आखिर वो हैं कहाँ ?  उसने रात में यही प्रश्न अपनी दादी से किया | दादी ने प्यार से उसका सर सहलाते हुए जवाब दिया की उसके  तो बहुत से रिश्तेदार हैं | पर क्या करे वो जमीन में गड़े हैं | बच्चे को दादी का जवाब अटपटा लगता पर उसने सच मान लिया  | स्कूल आते – जाते अक्सर वो उस जमीन के टुकड़े ( खेत )  को देखता और सोंचता की इसमें उसके रिश्तेदार गड़े हैं | वह दिल ही दिल में खुश होता की उसके  भी बहुत से रिश्तेदार हैं | जो दिखते भले ही न हों पर उसे उनके होने का अहसास तो है |  यही सब सुनते – सोंचते बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो 14  वर्ष का किशोर था | एक दिन बच्चों की लड़ाई में किसी बच्चे ने कह दिया ,” तेरा है ही कौन , बस एक बूढ़ी दादी  , फिर इतनी हिम्मत मत कर की हमसे जुबान लड़ा | बच्चे को ये बात बहुत चुभ गयी | वो सीधा घर आकर दादी के पास गया और बोला ,” दादी अब मैं बच्चा नहीं हूँ , सच – सच बता दो मेरे रिश्तेदार कहाँ हैं ? दादी उस समय माला फेर रही थी | एक सेकंड रुक कर बोली ,” बार बार वही प्रश्न करते हो | देखते नहीं मैं माला जप रही हूँ | कितनी बार बताया की तेरे रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं पर समझता ही नहीं |   अब बच्चे को गुस्सा आ गया | वह फावड़ा ले कर उस जमीन के टुकड़े के पास आ गया |  वो गुस्से में चिल्लाता जा रहा था  ,” देखे कहाँ हैं मेरे रिश्तेदार , यहाँ , यहाँ या वहां ” और जमीन खोदता जा रहा था | खोदते – खोदते उसने पूरा खेत ही खोद डाला पर कोई निकला नहीं | तभी दादी वहां आ गयीं और बोली अब तुमने खेत खोद ही डाला है तो इसमें बीज भी बो दो | बच्चे ने बीज बो दिए | कुछ दिन बाद नन्हे – नन्हे पौधे निकल आये | बच्चे को उन्हें देख कर ख़ुशी हुई | वह रोज उन्हें  खाद पानी देने लगा |  जमीन उपजाऊ थी | अच्छी पैदावार हुई | फसल बेंच कर उनके यहाँ  धन आ गया | अब वो गरीब नहीं थे | अब उसने नए बीज बो दिए | नयी फसल और …और पैसा | पूरे  गाँव में उनकी अमीरी के चर्चे होने लगे |                     एक दिन घर का दरवाजा खटका | दूर के चाचा आये थे | बेटी की शादी का न्यौता ले कर | फिर तो रोज दरवाजे खटकने लगे | कभी कोई रिश्तेदार तो कभी कोई रिश्तेदार | कभी तो इतने रिश्तेदार आ जाते की समस्या हो जाती की उन्हें बिठाए कहाँ | अब बच्चा खुश था | वो जान गया था की दादी का ” सब रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं”  कहने का क्या मतलब था | दोस्तों आज हम self love और self development की बात करते हैं | पर हमारी लोक कथाओं में पहले ही इसे कितनी ख़ूबसूरती से बता दिया गया है की अगर हम चाहते हैं की हमारे रिश्तेनातेदार हमें पूंछे | तो हमें अपने विकास पर ध्यान देना होगा | धन केवल धन नहीं है | यह एक शक्ति भी है | जिसके कारण हमारे सामाजिक रिश्ते अच्छे से चलते हैं |मेहनत व् परिश्रम से धन कमा  कर प्रतिष्ठा अर्जित करना कोई अपराध नहीं है |  ओमकार मणि त्रिपाठी  ( पूर्व लेख से लिया गया )  रिलेटेड पोस्ट …… शैतान का सौदा अच्छी मम्मी ,गन्दी मम्मी जरा झुको तो सही एक चुटकी जहर रोजाना दो पत्ते

शैतान का सौदा

एक बार  एक पादरी रास्ते पर टहल रहा था। उसने एक आदमी को देखा, जिसे अभी-अभी किसी नुकीले हथियार से मारा गया था। वह आदमी अपने चेहरे के बल रास्ते पर गिरा हुआ था, सांस के लिए संघर्ष कर रहा था और दर्द से कराह रहा था। पादरियों को हमेशा यह सिखाया जाता है कि करुणा सबसे बड़ी चीज होती है, प्रेम का मार्ग ही ईश्वर का मार्ग है। स्वभावतः वह उस आदमी की तरफ दौड़ा। उसने उसे सीधा किया और देखा तो वह खुद शैतान ही था। वह अचंभित रह गया, डर कर तुरंत पीछे की तरफ हट गया। शैतान उससे प्रार्थना करने लगा, कृपया मुझे अस्पताल ले चलो! कुछ करो! पादरी थोड़ा हिचकिचाया और बोला, तुम तो शैतान हो, तुम्हें भला मुझे क्यों बचाना चाहिए? तुम ईश्वर के खिलाफ हो। भला मैं तुम्हें क्यों बचाउं? तुम्हें तो मर ही जाना चाहिए। पूरा पादरीपन शैतानों को भगाने के संबंध में है और ऐसा लगता है कि किसी ने ऐसा करके सचमुच एक अच्छा काम किया है। मैं तुम्हें बस मर जाने दूंगा।’शैतान ने कहा, ‘ऐसा मत करो। जीसस तुमसे कह गए हैं कि अपने शत्रु से भी प्रेम करो और तुम जानते हो कि मैं तुम्हारा शत्रु हूं। तुम्हें जरूर मुझसे प्रेम करना चाहिए।’फिर पादरी ने कहा, ‘मुझे पता है, शैतान हमेशा धर्म ग्रंथों से उदाहरण देते हैं। मैं इस चक्कर में पड़ने वाला नहीं हूं।’ तब शैतान बोला, ‘मूर्खता मत करो। अगर मैं मर गया, तो फिर चर्च कौन आएगा? ईश्वर को कौन खोजेगा? फिर तुम्हारा क्या होगा? ठीक है, तुम ग्रंथों की नहीं सुनते हो, लेकिन अब मैं धंधे की बात कर रहा हूं, बेहतर होगा कि तुम सुनो। ’पादरी समझ गया कि वह ठीक कह रहा है। जब शैतान नहीं होंगे, तो चर्च कौन आएगा? लोग चर्च और मंदिर ईश्वर के कारण नहीं जाते, बल्कि इसलिए जाते हैं क्योंकि उन्हें शैतान की चिंता होती है। अगर शैतान मर जाता है, फिर पादरी का क्या होगा? इससे धंधे की अक्ल आई। उसने तुरंत शैतान को अपने कंधों पर डाला और उसे अस्पताल ले गया। दोस्तों , धर्म के नाम पर हम ज्यादातर पाखंड में जीते हैं  | धर्मिक  होना व धर्म  का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना दो अलग – अलग बातें हैं | बेहतर है की हम इस अंतर को समझे | जो कट्टरता अपनी दुकान चलने के लिए इन  तथाकथित पाखंडी  धर्म गुरुओं द्वारा परोसी जा रही है | उसका विरोध करें |  यह भी पढ़ें ……….. मर – मर कर जीने से अच्छा है जी कर मरें मेंढक कैसे जीवित रहा ईश्वर का काम काज अपना – अपना स्वार्थ

बाल कहानी : अच्छी मम्मी , गन्दी मम्मी / achhi mummy , gandi mummy

अगर किसी बच्चे से पूंछा जाए ,” बेटा मम्मी कैसी होती हैं ? तो वो क्या जवाब देगा : सबसे अच्छी |पर आज हम बात कर रहे हैं उस बच्चे की ,जिसको अपनी मम्मी गन्दी  नज़र आयीं | जाहिर है माँ का दिल तो टूट ही जाएगा | जिस बच्चे के लिए इतनी मेहनत करो , चिंता करो फिर भी वो हमको गन्दा कहता है | पर देखना यह है की , फिर कैसे उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और अपनी मम्मी उसे अच्छी नज़र आने लगीं |  तो चलते हैं नीता भाभी के घर , जहाँ उनके ननद स्वेता आई हुई है |                                      अरे ये क्या ! आज फिर नीता भाभी की आँखों में आंसू थे | क्यों भाभी अब आज क्या हुआ ननद स्वेता ने पूँछ ही लिया | हालांकि उसे पता था बात जरूर चिंटू की होंगी | उसी ने दिल दुखाया होगा नीता भाभी का | फिर भी भाभी के मुँह  से सुनना जरूरी था | भाभी सुबकते हुए बोली अब क्या बताऊ तुम्हे , रोज की बात है ये चिंटू | जनाब जमीन से उगे नहीं हैं और कोई बात न मानने की जैसे कसम खा ली है | अभी खाना खिला रही थी | मैगी चाहिए , रोटी दाल तो गले से उतरती नहीं | जब मैंने मना  किया तो वही पुराना डायलॉग ” तुम गन्दी मम्मी हो , हर बात पर टोंकती हो , अपनी मर्जी चलाती हो | “अब तुम ही बताओ स्वेता , ५ साल के बच्चे से रोज -रोज अपने लिए गन्दी मम्मी सुन कर कैसा लगेगा ?  जिसके लिए दिन भर काम में लगी रहती हूँ वो ही कुछ समझाने पर, गलत काम में रोकने पर गन्दी मम्मी कह देता है | हां भाभी , आप बात तो सही कह रही हैं | बुरा तो लगता होगा | चिंटू को ऐसे नहीं कहना चाहिए | चलिए कोई बात नहीं मैं उसे समझा दूँगी | नीता भाभी को तसल्ली हो गयी | स्वेता ने रात को चिंटू को मना लिया | चिंटू आज मम्मी के साथ नहीं , बुआ के साथ सोना | मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँगी | चिंटू खुश हो कर ताली बजाने लगा | वाह बुआ , वाह , कहानी तो मैं जरूर सुनूंगा | रात को चिंटू बुआ स्वेता के पास आ कर लेट गया और प्यार से उसका मुंह अपनी और करके बोला ,” हां बुआ सुनाओ कहानी , कौन सी कहानी सुनाओगी , राक्षस की , परियों की , या जादू वाले तालाब की , जिसमें बड़ा सा अजगर रहता था | स्वेता ने चिंटू के गाल पर मीठी चपत लागाते हुए कहा , ” मैं तुम्हे दो मम्मीयों की कहानी सुनाउंगी | कहानी का नाम है ,” अच्छी मम्मी , गन्दी मम्मी | ” चिंटू कौतुहल से बुआ का मूंह देखने लगा | अरे वाह आज तो बुआ कोई नयी कहानी सुनाएंगी | स्वेता ने कहानी सुनना शुरू किया……. बहुत पहले की बात है , दो मम्मियां  थी | दोनों के २ साल का एक -एक बेटा था | दोनों ही अपने बेटों को बहुत प्यार करती थी | पर जैसा की कहानी का नाम है , वैसे ही एक मम्मी अच्छी थी , जो अपने बेटे को किसी बात पर टोंकती नहीं थी | जो वो करना चाहता था करने देती थी | दूसरी थी गन्दी मम्मी | वो तो बस ! जो भी उसे गलत लगता उस पर टोंक देती | थी न गन्दी मम्मी ,” स्वेता ने चिंटू से प्रश्न किया | हाँ  बुआ ! बहुत गन्दी मम्मी थी | बच्चों को ऐसे बात -बात पर टोंकना अच्छी बात नहीं है | जैसे मम्मी को ही सब पता होता है | बच्चों को कुछ भी नहीं | सच में गन्दी मम्मी | स्वेता ने मुस्कुरा कर आगे कहानी सुनना शुरू किया | एक बार की बात है दोनों बच्चे रसोई में खेल रहे थे | दोनों को आग बहुत अच्छी लगी | लाल नारंगी कितनी सुन्दर , दोनों बच्चे उसे पकड़ने के लिए घुटूँ घुटुँ आगे बढ़ने लगे | अब गन्दी मम्मी तो गन्दी थी | तुरंत रोक दिया अपने बेटे को | अरे आग की तरफ नहीं | बेचारा रोता रह गया | पर गन्दी मम्मी तो गन्दी मम्मी , आदत से मजबूर | पर वो दूसरा बच्चा उसकी मम्मी तो अच्छी थी | बच्चे को रोकती नहीं थी | सो पहुँच गया आग के पास और पकड ली आग | पर ये क्या उसकी चीखों से घर हिल गया | उसका पूरा हाथ जल गया | मम्मी डॉक्टर के पास ले कर दौड़ीं | इतनी सारी दवाइयां खाई दर्द झेला फिर ठीक हुआ |  एक दिन फिर दोनों बच्चे खाना खा रहे थे | खाना गन्दी जमीन पर गिर गया | गन्दी मम्मी ने तो टोंक दिया | अरे ये खाना नहीं , पेट खराब हो जाएगा वो बेचारा बच्चा मन मसोस के रह गया | पर अच्छी मम्मी ने बिलकुल मना नहीं किया | उसके बेटे ने गन्दा खाना खाया | पेट खराब हुआ , तीन दिन अस्पताल में रहना पड़ा | बड़े बड़े इंजेक्शन लगे | चिंटू रुआसा सा होने लगा | और बुआ , फिर आगे क्या हुआ , उसने पूंछा ? हां अब तो कहानी खत्म होने वाली है |  एक बार की बात है | दोनों मम्मीयाँ छत पर बैठ कर बातें कर रही थी | और बच्चे खेल रहे थे | तभी दोनों बच्चे बिना मुंडेर वाली छत पर किनारे जाने लगे | गन्दी मम्मी ने तो अपने बेटे को रोक लिया | उफ़ वो नहीं सुधरेगी , गन्दी जो थी |स्वेता ने बुरा सा मुंह बना कर कहा | और वो अच्छी मम्मी वाला बच्चा बिना मुंडेर की छत के किनारे की तरफ बढ़ने लगा | आगे आगे और…. आगे … और | बस बुआ बस चिंटू ने बीच में बात काटते हुए हुए कहा ,” अरे कोई रोको उसको वो गिर जाएगा , उसके चोट लग जायेगी , वो मर भी सकता है , जो मम्मी उसको नहीं रोक रही है वो … Read more

जरा झुको तो सही

एक घड़ा पानी से भरा हुआ रखा रहता था। उसके ऊपर एक कटोरी ढकी रहती थी। घड़ा अपने स्वभाव से ही बड़ा दयालु था । बर्तन उस घड़े के पास आते, उससे जल पाने को अपना मुख नवाते। घड़ा प्रसन्नता से झुक जाता और उन्हें शीतल जल से भर देता। प्रसन्न होकर बर्तन शीतल जल लेकर चले जाते। अब जो कटोरी उसके ऊपर ढकी थी वो बहुत दिन से यह सब देख रही थी। एक दिन उससे रहा न गया, तो उसने शिकायत करते हुए कहा , घड़े भाई ‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’ ‘पूछो।‘ घड़े ने शांत स्वर में उत्तर दिया। कटोरी ने अपने मन की बात कही, ‘मैं देखती हूं कि जो भी बर्तन तुम्हारे पास आता है, तुम उसे अपने जल से भर देते हो। मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं, फिर भी तुम मुझे कभी नहीं भरते। यह मेरे साथ अन्याय  है।‘ कटोरी की शिकायत सुन कर घड़ा बोला ,  ‘कटोरी बहन, तुम गलत समझ रही हो।मेरे काम में पक्षपात जैसा कुछ नहीं। तुम देखती हो कि जब बर्तन मेरे पास आते हैं, तो जल ग्रहण करने के लिए विनीत भाव से झुकते हैं। तब मैं स्वयं उनके प्रति विनम्र होते हुए उन्हें अपने शीतल जल से भर देता हूं। किंतु तुम तो गर्व से भरी हमेशा मेरे सिर पर सवार रहती हो।इतनी अकड़ अच्छी नहीं |  जरा तुम भी कभी विनीत भाव से कभी मेरे सामने झुको, तब फिर देखो कैसे तुम भी शीतल जल से भर जाती हो। नम्रता से झुकना सीखोगी तो कभी खाली नहीं रहोगी।  # दोस्तों हम भी कई बार अपने झूठे अहंकार को लेकर अकड जाते है और अपने परिवार व् दोस्तों का भी प्यार खो देते हैं | स्नेह के प्यासे तो रहते ही हैं | जीवन में अकेला पन भी महसूस करते हैं | अब कटोरी को तो समझ में आ गया और उसने झुकना भी सीख लिया | तो आप भी झुक कर देखिये …. और आनंद लीजिये स्नेह के जल का |  स्मिता शुक्ला  यह भी पढ़ें ……. एक चुटकी जहर रोजाना सच्चे गुरु की खोज सही समय पर प्रेरणा का महत्व क्या आपपना कूड़ा दूसरों पर डालते हैं

एक चुटकी ज़हर रोजाना”

शरद जैन उज्जैन आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली। आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी. एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.” लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा …. अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !” कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?” “क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा. पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.” पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?” आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई. ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी। धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी। किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी। छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी। इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … ! वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!” पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा  **दोस्तों , कोई भी परिवार प्रेम और आपसी समझदारी से बनता है | कई बार हम शुरू में एक दूसरे को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते , परन्तु साथ रहते रहते लगाव हो जाता है | इसलिए हर रिश्ते को कुछ समय देना चाहिए | आनन् फानन में रिश्ता नहीं तोडना चाहिए  फेसबुक से  यह भी पढ़ें ……. एक चुटकी जहर रोजाना सच्चे गुरु की खोज सही समय पर प्रेरणा का महत्व क्या आपपना कूड़ा दूसरों पर डालते हैं

सच्चे गुरु की खोज

एक बार एक व्यक्ति किसी  आध्यात्मिक गुरु से अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहता था | पर वो चाहता था की गुरु योग्य हो | वह अपने गाँव में पीपल के पेड़ के नीचे बैठे बाबा से मिला | उसने कहा मुझे ऐसा गुरु चाहिए जो मेरे सब प्रश्नों का उत्तर दे सके | क्या ऐसा कोई गुरु है , काया कभी मुझे वो मिलेगा , क्या आप उस तक मुझे पहुंचा सकते हैं ? बाबा बोले ,” बेटा वो गुरु तुम्हें जरूर मिलेगा | पर इसके लिए जरूरी है सच्ची अलख जगना | पर फिलहाल मैं उसकी पहचान तुम्हें बता देता हूँ | बाबा ने उस गुरु  के कद , काठी , आँखों के रंग आदि की पहचान बता दी | वो जहाँ मिलेगा यह भी बता दिया | उसके पास के दृश्य भी बता दिए | वो व्यक्ति बहुत खुश हो गया | उसने तुरंत बाबा के पैर छुए और कहा ,” आपका बहुत उपकार है बाबा , आपने मेरे गुरु का इतना विस्तृत वर्णन दे दिया | मैं उन गुरु महाराज को चुटकियों में ढूंढ लूँगा | अब मुझे जाने की आज्ञा  दें | मैं यूँ गया और यूँ आया | फिर आपको भी उन्प्रश्नों के उत्तर बताऊंगा |                             व्यक्ति चला गया | गाँव , गाँव ढूंढता रहा | ढूंढते – ढूंढते २० वर्ष बीत गए | पर वैसा गुरु न मिला | वो निराश हो गया | लगता है उसके प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं मिलेगा | उसने सोंचा चलो अपने गाँव वापस चलूँ , लगता है गुरु का मिलना मेरे भाग्य में नहीं है | उत्तर न मिलने पर उसे बहुत बेचैनी थी | जब वो गाँव पहुंचा तो वही बाबा उसे पीपल के पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए | उसने सोंचा उन्हें बताता चलूँ की मुझे उनके द्वारा बताया गया गुरु कहीं नहीं मिला | जब ऐसा गुरु था ही नहीं तो उन्होंने मुझे भटकाया ही क्यों | वो बाबा भी अब वृद्ध हो चुके थे | व्यक्ति जब बाबा के सामने पहुंचा तो देख कर दांग रह गया की ये तो वही गुरु हैं जिन्हें वो पिछले २० साल से ढूंढ रहा था | वो तुरंत बाबा के चरणों में गिर गया और बोला ,” बाबा आप तो वही हैं फिर आपने मुझे उस समय क्यों नहीं बताया |                              बाबा बोले बेटा मैंने पहले ही कहा था की जब अलख जागेगी , सच्ची प्यास लगेगी | तभी वो गुरु तुम्हें मिलेगा और तभी ज्ञान | अब देखो मैं तुम्हारे सामने बैठा था | अपने लक्षण बता रहा था | पर तुम्हें मैं दिखाई ही नहीं दिया तुम जवानी के जोश में थे | तुम्हें लगा खूब यात्राएं , करूँगा ढूँढूंगा , गुरु तो मिल ही जाएगा |आद्यात्म पाने की चीज नहीं है , मिटने की चीज है | जब अहंकार मिट जाता है तब यात्रा शुरू होती है |  तब तुम्हें प्यास नहीं थी जोश था | इतनी यात्राएं करते – करते तुम्हारी प्यास बढ़ गयी |अहंकार मिट गया | तब तुम्हें मैं नज़र आ गया | मैं भी २० साल से तुम्हारा इंतज़ार ही कर रहा था |                                    कहने का तात्पर्य ये है की सच्चा गुरु तब मिलता है जब प्यास लगी हो , अलख जगी हो | वर्ना पडोसी जारहा है और हम भी चल दिए तो सामाजिक समूह का विकास होता है आध्यात्मिकता का नहीं |  यह भी पढ़ें ……….. मर – मर कर जीने से अच्छा है जी कर मरें मेंढक कैसे जीवित रहा ईश्वर का काम काज अपना – अपना स्वार्थ

“प्यासा कौवा “फिर से /pyasa kauva fir se

  दोस्तों , आप सब ने एक कहानी पढ़ी होगी ” thirsty crow ” या प्यासा कौवा | जिन्होंने नहीं पढ़ी उन्हें बता दें की   एक बार एक कौवा बहुत प्यासा था | पर दूर – दूर तक कहीं पानी का निशान नहीं था | अचानक उसे एक घडा दिखाई दिया पर उसमें पानी बहुत कम था | कौवे ने दिमाग लगाया और आस – पास पड़े पत्थर उसमें डालने लगा | थोड़ी देर में पानी ऊपर आ गया | कौवे ने पानी पिया और उड़ गया … फुर्र से | पर आज की कहानी थोड़ी अलग है हुआ यूँ की टीचर  ने  क्लास में आकर बच्चों से कहा की इस कहानी का दूसरा अंत क्या हो सकता है | सब अपनी – अपनी कॉपी में लिखो |सबसे अच्छा अंत लिखने वाले बच्चे को चॉकलेट  इनाम में दिया जाएगा |  बच्चे लिखने लगे | जब टीचर के पास copies आयीं तो  teacher ने देखा की ज्यादतर बच्चों ने लिखा की पानी इतना ऊपर नहीं आया की कौवा पी सके , या पानी पीते समय घडा हिल गया और वो पानी भी गिर गया | लिहाज़ा कौवा प्यासा  ही रहा | और तड़प – तड़प कर मर गया |                 एक बच्चे ने लिखा की कौवे ने थोड़ी दूर आगे खोजा | पर पानी न मिला तो निराश हो बैठ गया और मर गया | मसलन ये की class के ९९ % बच्चों ने कहानी अंत नकारत्मक कर दिया | केवल दो बच्चों ने कहानी का अंत सकारात्मक किया | उनमें से एक बच्चे ने लिखा की कौवे ने वहीं स्ट्रॉ ढूंढ ली और थोडा सा पानी पी लिया |पर रोहित की कॉपी पर teacher ठिठक गयीं |  रोहित ने लिखा था की घड़े में पानी इतना कम था की कंकड़ डालने के बाद भी कौवा घड़े से जब पानी नहीं पी पाया तो उसने सोंचा की ऐसे भी मरना है और वैसे भी तो क्यों न और पानी ढूढने की कोशिश की जाए |  उसने अपने पंखों में पूरी दम लगा कर उड़ान भरी | हालंकि सूरज  तप रहा था और उसकी देह जल रही थी , पर उसने कोशिश नहीं छोड़ी | वह उड़ता गया उड़ता गया | आखिर कार वो ऐसे जगह पहुँच गया जहाँ पानी  का झरना  बह रह था | उसने भर पेट पानी पिया | थोडा पंखों पर छिड़का | और गीली हवाओं का पूरा  आनंद  लिया | ये जीत उसको इस लिए मिली क्योंकि उसने ” करो या मरो ” सोंच कर कोशिश की थी | अंत में रोहित ने कहानी का शीर्षक लिखा …                      “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ”  कहने की जरूरत नहीं की जीत की चॉकलेट रोहित को ही मिली | क्योंकि उसने न सिर्फ सकारात्मक अंत किया था | बल्कि ये भी सिखाया की कोई भी असफलता आखिरी नहीं होती | उसके बाद फिर प्रयास किये जा सकते हैं और जीत हांसिल की जा सकती है | वंदना बाजपेयी रिलेटेड पोस्ट ……. दो पत्ते black डॉट फोन का बिल तूफ़ान से पहले  

छोटे बेटे की सूझ – बूझ

बहुत समय पहले की बात है | एक किसान था | उसके दो बेटे थे | तीनो मिलकर खेती किया करते थे | उनका घर धन – धन्य से भरपूर था | समय के साथ किसान बूढ़ा हुआ | उसने अपना खेत छोटे बेटे को देने का फैसला किया | और बड़े बेटे को उसके एवज में धन | यह सुनकर बड़ा बेटा नाराज़ हो गया | उसने  कहा ,” पिताजी ये तो सरासर अन्याय है | ये सही है की हम सब इस खेत से ही जीवन यापन करते रहे हैं | परन्तु मैंने छोटे से ज्यादा साल खेत पर काम किया है | क्योंकि वो मुझसे उम्र में छोटा है | यानी की मेरे “कार्य दिवस ”   उससे ज्यादा हैं | इस हिसाब से मुझे खेत मिलना चाहिए | किसान ने उसे समझाते हुए कहा ,” देखो बेटा ये खेत मेरे बच्चे से भी बढ़कर है | मैं चाहता हूँ मेरे बाद ये और फूले फले | कार्य दिवस तुम्हारे ज्यादा होते हुए भी मैंने योग्य पुत्र का चयन किया | जो मेरे खेत का ध्यान बेहतर रख सकेगा | तुम्हें खाने पीने की दिक्कत न हो इसलिए तुम्हें धन दिया है | अब बड़े बेटा खुद पर काबू न रख सका | वह जोर से बोला ,” पिताजी आपने छोटे को मुझ से ज्यादा योग्य कैसे समझ लिया | देखा जाए तो मैं उससे बड़ा हूँ | अनुभव मुझे ज्यादा है | मैं ज्यादा योग्य हूँ | किसान बोला ,”मैंने बहुत सोंच समझ कर निर्णय  लिया है | फिर भी अगर तुम चाहतें हो की दूध का दूध और पानी का पानी हो  | तो मैं एक परीक्षा लेता हूँ | पहले तुम से शुरू करता हूँ | तुम्हें करना यह है की मेरे मित्र सुबोध के फार्म में जा कर पता लगाना है की वहां कितनी गाये बिकने योग्य हैं | प्रश् सुनते ही बड़ा बेटा खुश हो गया | वो सुबोध के खेत में गया और १० मिनट में ही लौट आया | उसने पिता से कहा ,” पिताजी वहां ६ गायें बिकने योग्य हैं | फिर किसान ने छोटे बेटे को बुलाया |और उसे भी यही काम दिया | वो भी वहां गया | लौटकर बोला ,” पिताजी वहां ६ गायें बिकने योग्य हैं | जिसमें चार काली और दो सफ़ेद हैं | दो काली और एक सफ़ेद गाय सबसे ज्यादा हष्ट  – पुष्ट है | एक गाय की कीमत दो हजार  रुपये हैं | सुबोध चाचाजी का कहना है की एक से ज्यादा गाय खरीदने पर वो प्रति गाय सौ रूपये कमिशन देंगे | हाँ अगर हम इंतज़ार कर सकते हैं तो अगले हफ्ते बढ़िया जर्सी गाय आ रही हैं | लेंकिन अगर  हमें जल्दी है तो वो कल शाम  तक गाय पहुंचा देंगे | छोटे बेटे का उत्तर सुनने के बाद किसान ने बड़े बेटे की तरफ देखा | उसने सर झुका लिया | वह समझ गया की केवल काम करना ही पर्याप्त नहीं होता | काम को इस तरीके से एक बार में ही करना है  जिससे बार – बार न जाना पड़े | दोस्तों , हम अक्सरआपने देखा होगा की काम करने वाले दो व्यक्ति बराबर से सफल नहीं होते हैं | इसका कारण होता है | कुछ लोग उतना ही काम करते हैं जितना उनको दिया जाता है | पर कुछ लोग आगे की सोंचते हैं, ज्यादा काम करते हैं  और पूरी जानकारी करके योजना बनाते हैं | निश्चित तौर पर वही सफल होते हैं |  सरिता जैन यह भी पढ़ें ………… दो पत्ते black डॉट फोन का बिल तूफ़ान से पहले

दो पत्ते

एक बार ओशो कहीं प्रवचन  दे रहे थे | एक व्यक्ति उनके सामने आया और बोला मैं ऐसी जिंदगी बिलकुल नहीं जी सकता | मैं तब तक लड़ता रहूँगा जब तक मैं जीत न जाऊं , या परिस्तिथियों को बदल न लूँ | अब ओशो ठहरे गुरु वो समझ गए की ये व्यक्ति जिन परिस्तिथियों को बदलने की बात कर रहा है वो बदली नहीं जा सकती हैं केवल उनको स्वीकार किया जा सकता है | वो कहते है न की … कई बार हमारी समस्या  जब किसी तरह से हल नहीं हो पा रही होती है , तब वहाँ कोई समस्या ही नहीं होती बल्कि एक सच होता है जिस हमें स्वीकार करना होता है |                                    ओशो शिष्य को  सच बता सकते थे पर सच स्वीकारना इतना आसान नहीं होता | इसलिए ओशो ने उसे एक कहानी सुनाई | ओशो बोले ,” एक बार की बात है एक नदी के किनारे एक पेड़ लगा था |  पेड़  के पत्ते उसमें टूट – टूट कर गिरते रहते थे | उसी पेड़ में दो पत्ते आपस में बहुत मित्र थे | खूब बातें होती थी | एक दिन हवा का एक झोका आया और दोनों टूट कर नदी में गिर पड़े | हवा चलते समय जब दोनों पत्तों को लगा की अंत निकट है | तो एक पत्ता आड़ा गिरा और दूसरा सीधा | loading …….. अब जो पत्ता आड़ा  गिरा वो अड़ गया की मैं नदी के साथ नहीं बहूँगा | मैं तो इसे रोक कर रहूँगा | और उसने अपना पूरा बल धारा के विपरीत लगा दिया | और एक भयानक संघर्ष शुरू हो गया | दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था | वो धारा के साथ – साथ बहने लगा | और मन ही मन सोंचने लगा | वाह ! मैं कितना ताकतवर हूँ | मैं तो नदी को ही बहाए लिए जा रहा हूँ | जिधर – जिधर मैं जाता हूँ , उधर ही उधर नदी जाती है |                                              फिर थोडा रुक कर ओशो ने शिष्य से पूंछा ,” बताओ दोनों का अंत क्या हुआ ? शिष्य ने सकुचाते हुए कहा ,” गुरु वर अंत तो दोनों का एक ही हुआ | ओशो बोले ,” यही इस कथा का मूल सार है | आड़े पत्ते का सारा जीवन संघर्ष में बिता | वो बहुत पीड़ा में रहा | वहीं सीधा पत्ता सारे जीवन खुश रहा |गलतफहमी की सही पर वो नदी को बहाए लिए जा रहा है ये सोंच उसकी यात्रा आनद से कटी | जीवन की कुछ समस्याएं जिनका कोई समाधान नहीं है | उन्हें या तो आप सीकर कर लें और ख़ुशी – खशी जीवन जिए या बेमतलब का युद्ध करें और सारा जीवन संघर्ष व् अवसाद में बीत जाए | सरिता जैन रिलेटेड पोस्ट … सुकरात और ज्योतिषी शब्दों के घाव गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं