प्रेरक कथा -सच्ची ख़ुशी

                                                  दोस्तों हम अक्सर सच्ची ख़ुशी की तालाश में रहते हैं | पर यह तलाश कभी पूरी नहीं हो पाती | क्योनी सच्ची ख़ुशी पाने नहीं देने में है |  जिसने इस राज को जान लिया वो कभी दुखी नहीं रह सकता |  inspirational story on real happiness बहुत पहले की बात है | अंजन मुनि के आश्रम में बहुत सारे शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे | वो आध्यात्मिक शिक्षा का जमाना था | शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शांति व् ख़ुशी थी | लिहाज़ा सभी शिष्य गुरु से जाना चाहते थे की सच्ची ख़ुशी किस में है | क्योंकि उन्होंने देखा था की जब भी वो कुछ पाने के लिए बहुत प्रयास करते हैं तो उस वस्तु को पाने तक मेहनत तो करनी होती है | पर वस्तु पाते ही ख़ुशी खत्म हो जाती है |उसे पाते ही उसका आकर्षण क्षीण हो जाता है और ख़ुशी भी | आखिर ऐसा क्यों होता है |  अपनी समस्या से परेशान हो कर वो अंजन मुनि के पास गए व् इसका कारण पूंछा | अंजन मुनि बोले ,” मुनिवर कृपया कर के हमारी सहायता करे हम सच्ची ख़ुशी  का पता लगाने में असमर्थ हैं |  मुनि अंजन ने बाताया सच्ची ख़ुशी का मार्ग  शिष्यों का प्रश्न सुन कर अंजन मुनि मुस्कुराए और बोले ,” बस इतनी सी बात ये तो बहुत आसान है | पर इसके लिए तुम्हें छोटा सा एक काम करना पड़ेगा |  क्या , मुनिवर – शिष्यों ने सम्मलित स्वर में पूंछा | गुरु ने आश्रम में एक तरफ रखी पतंगों के बारे में  बताते हुए कहा | वहां जो पतंगें रखी हैं उन पर अपना – अपना नाम लिख कर यहाँ मेरे पास जमा कर दो |  शिष्य पतंग लेने चले गए व् वहां जा कर एक एक पतंग पर अपना अपना नाम रख कर गुरु के पास  रख दी |  अब गुरु ने सबसे कहा की अपने – अपने नाम की पतंगे  उठा लो | और मुझे दो | यह सुनते ही भगदड़ मच गयी | सब अपने नाम की पतंगे खोज रहे थे | इस छीना झपटी में सारी  पतंगें फट गयीं | अब गुरु ने कहा की फिर से एक एक पतंग पर अपना नाम लिख कर यहाँ रखो | शिष्यों ने वैसा ही किया |  अब गुरु ने कहा तुम लोग कोई भी एक पतंग उठा लो | व् जिसका नाम लिखा है उसे दे दो | फिर अपने – अपने नाम की पतंगें  मेरे पास रख दो |  अब कोई भगदड़ नहीं मची सबने आराम से पतंगें उठायी व् जिसके नाम की थीं उसे सौंप दी | थोड़ी देर में गुरु के पास सबने अपने अपने – नाम की पतंगें जमा कर दी  और गुरु के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे |  गुरु ने कहा ,” ये पतंगें ख़ुशी हैं | जब तुम खुद लेना चाहते थे | तब तुम्हें कुछ नहीं मिला | जब तुम देने लगे तो मिल गयीं | यही सच्ची ख़ुशी का रहस्य है |  दोस्तों जब हम ख़ुशी पाना चाहते हैं तो नहीं मिलती जब देते हैं तब मिलती है | अगर आप भी सच्ची ख़ुशी चाहते हैं तो बांटिये | जिससे आप को  भी ख़ुशी मिले |  दीप्ति दुबे  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क यकीन ढिंगली मोक्ष आपको आपको  कहानी  “प्रेरक कथा -सच्ची ख़ुशी  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

प्रेरक कथा -हम किसी से कम नहीं

कुछ लोग अपने को बहुत बड़ा समझते हैं वो किसी की इज्ज़त नहीं कर पाते | ऐसे लोगों की बेईज्ज़ती करके ही उन्हें सही राह दिखानी पड़ती है | पर आज हम बात किसी व्यक्ति की नहीं देश की कर रहे हैं | जहाँ एक देश के लोग दूसरे देशों को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते | जी हां , आप बिलकुल सही समझे ये वाकया तब का है जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था | उस समय अंग्रेज भारतीयों को ब्लडी इन्डियन , या कंगाल आदि जाने क्या –क्या कह कर संबोधित करते थे | आम भारतीय इस अपमान का गरल चुपचाप पीते रहते थे | करते भी क्या बेचारे | पर एक बार उनका पाला एक ख़ास आदमी से पड़ा | वो अपमान पर चुप नहीं बैठा | उसने नहले पर दहला मारा | जानते हैं वो ख़ास आदमी कौन था | वो थे महाराजा जय सिंह | Moral story on self esteem बात तब की है जब महाराजा जय सिंह इंग्लैण्ड गए हुए थे | वो सादे कपड़ों में शाम को लंदन  में घूम रहे थे | वहां उन्होंने रोल्स रायस का शो रूम देखा |और कार का भाव जानने  अन्दर चले गए | शो के मालिक ने उन्हें कंगाल भारत का कंगाल आदमी कह कर अपमानित किया और कार दिखाए  बिना “GET OUT ” कह  कर बाहर निकाल दिया | अपमानित हो कर माहाराज होटल लौट आये और उसी शो रूम में फोन लगवाया कि अलवर के महाराज रोल्स रायस देखना चाहते हैं | कुछ समय बाद महाराज अपनी राजसी पोशाक में पूरे दल बल के साथ उसी शो रूम में पहुंचे | तब तक उनके स्वागत के लिए वहां रेड कारपेट बिछाया जा चुका था | महाराज ने 6 रोल्स रायस खरीदी | वापस देश  आने पर उन्होंने वो गाड़ियां नगर महापालिका को  कूडा उठवाने के लिए दे दी | अब उन पर दिन भर अलवर राज्य का कूडा उठवाया जाता | विश्व की नंबर वन मानी जाने वाली रोल्स रायस कार का इस तरह कूडा उठवाने में उपयोग होने का समाचार विश्व भर में फ़ैल गया | अब  कोई रोल्स रायस खरीदने की सोंचता तो लोग हंस कर कहते की अच्छा , अच्छा वही रोल्स रायस जिससे इंडिया में कूड़ा  उठवाया जाता है | रोल्स रायस की बहुत बदनामी होने से उसकी बरसों की बनायीं इज्ज़त तार – तार होने लगी |कारों की बिक्री घट गयी |मालिकों को बहुत ज्यादा आर्थिक नुक्सान होने लगा |     चारो तरफ हुई किरकिरी से  घबरा कर रोल्स रायस के मालिक के महाराजा को तार भेज कर माफ़ी मांगी व् उनसे अनुरोध  किया की वो इसका उपयोग कूड़ा उठाने में न करें | इसके एवज उसने उन्हें ६ नयी रोल्स रोयस कारे भेजीं |  महाराजा को जब विश्वास हो गया की उन्हें सबक मिल गया है तो उन्होंने कारों से कूडा उठवाना बंद कर दिया | इस तरह उन्होंने अपमान का जवाब नहेले पर दहला मार कर दिया | और दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं |  कोई किसी से कम नहीं  दोस्तों , महाराजा को छोटा समझ कर उनका अपमान करने की जो भूल रोल्स रायस के शो रूम के मैनेजर ने की थी | उसका दंड उसे भारी आर्थिक नुक्सान व् अपनी साख खो कर चुकाना पड़ा | माहाराज ने उसको जाता दिया की हम किसी से कम नहीं |  लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं हैं | ये  कहानी प्रेरणा देती है की  जरूरी है की हम सबका सम्मान करे किसी की आर्थिक , शारीरिक या मानसिक कमी के कारण उसका मजाक न उडाये |  अब यहाँ आप कह सकते हैं की वो तो महाराजा थे | वास्तव में अमीर थे | वो तो केवल सादे कपड़ों में जाने के कारण अपमानित हुए थे | उनके पास तो बहुत पैसा था इसलिए उन्होंने अपने अपमान का बदला ले लिया | आम आदमी के अपमान का बदला कौन लेगा |  तो मैं यहाँ ये कहना चाहूंगी कि आम आदमी के अपमान का बदला समय लेगा | समय किसी का एक समान नहीं रहता | हो सकता है आज जिसे आप कमजोर समझ कर अपमानित कर रहे हैं कल को वो या उसके बच्चे बहुत ताकतवर बन कर आपके सामने आये | और आप को दिखा दें की हम किसी से कम नहीं | फिर आपके पास मुँह छिपाने का भी मौका नहीं होगा | बेहतर है समय रहते समझ लें की “कोई किसी से कम नहीं ” | इसलिए किसी का भी शारीरिक , मानसिक या आर्थिक कमी के कारण अपमान न करें |  दीप्ति दुबे  यह भी पढ़ें ……. जैसा खाए अन्न सफलता का बाग़ विश्वास महात्मा गांधी के पांच प्रेरक प्रसंग                  आपको आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा -हम किसी से कम नहीं“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |                                

अम्माँ की दूरदर्शिता

              दोस्तों जब भी हम कोई काम करने जा रहे होते हैं तो हमारे अन्दर से आवाज़ आती है की ये काम करना ठीक है या नहीं |  इसे गट फीलिंग या सिक्स्थ सेन्स भी कहते हैं | ये एक तरह की पूर्व चेतावनी भी होती है |आज हम एक ऐसी ही कहानी लाये हैं एक बुढिया की जिसे उसकी दूरदर्शिता ने बचाया A moral story on sixth sens  एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी | उसे गाँव के सब  लोग अम्माँ भी कहते थे  | अम्माँ के कोई संतान थी नहीं वो भी सब को अपने बच्चों सा प्यार करती थी | एक बार की बात है की अम्माँ को किसी दुसरे गाँव कुछ सामन ले कर जाना था | उसने सामान की गठरी बाँध ली | यूँ तो कई बार वह सामान ले कर गयी थी | पर जो बच्चे उसके साथ जाते थे | वो इस बार ननिहाल गए  हुए थे | वैसे तो वो गाँव के किसी भी बच्चे से कह सकती थी पर अम्माँ  ने अकेले ही सामान ले जाने की सोंची | उसने गठरी सर पर रख ली और चल पड़ी दूसरे गाँव की ओर | एक तो जेठ का महीना लम्बा रास्ता , भरी गठरी  ऊपर से अम्माँ  का जर्जर शरीर | उसके पसीने छुटने लगे | तभी एक घुड़सवार वहां से गुजरा | अम्माँ ने घुड़सवार से कहा ,” बेटा मुझे दूसरे गाँव जाना है | मेरी गठरी भारी है | क्या तुम मेरी गठरी अपने घोड़े पर रख लोगे | घुड़सवार बोला ,” देखिये माताजी , धूप  कितनी तेज है | फिर आप धीरे – धीरे भी चल् पा  रही हैं | ऐसे में मैं तो वहां पहुँच जाऊँगा पर मुझे आपका इंतज़ार करना पड़ेगा | आप मुझे क्षमा करें | कह कर घुड़सवार चला गया | थोड़ी दूर जाने पर उसके मन में विचार आया ,” अरे बुढिया  तो इतनी बूढी है | मुझे उसकी गठरी ले लेनी चाहिए थी | मैं तो सरपट दौड़ लगा कर आगे बढ़ जाता | वो मेरा पीछा कहाँ कर पाती | फिर गठरी मेरी होती | काफी भारी लग रही थी बहुत माल – ताल होगा | चालों वापस चल कर मदद देने को कहूँ | इधर अम्मा सोंचने लगी | बेकार ही में मैंने अजबनबी से मदद मांगी | कहीं वो गठरी ले कर भाग जाता तो मैं तो उसके पीछे भाग भी न पाती | जो हुआ अच्छा हुआ | अम्माँ मन ही मन सोंच ही रही थीं | तभी वो घुड़सवार आ गया और घोडा रोक बोला ,” माताजी मैं आगे चला तो गया | पर मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा की मुझे मदद करनी चाहिए थी | इसलिए मैं वापस लौट आया | लाइए मैं आप की गठरी घोड़े पर ले चलता हूँ |  अब अम्माँ घुड़सवार पर किये अपने शक पर यकीन हो गया | हो नहो इसके मन में लालच आ गया है | नहीं तो ये क्यों लौटता | अम्मा बोली ,” बेटा जैसे तुम्हारा मन बदल गया , मेरा भी मन बदल गया | तुम जाओ अब मैं अपनि गठरी खुद ही ले जाऊँगी | घुड़सवार अचकचा गया | बोला माताजी अभी तो आप चलने को तैयार थीं | अब जब मैं आ गया तो मना  कर रहीं हैं | आखिर इतनी देर में आपको उलटी पट्टी कौन पढ़ा गया | अम्मा हंस कर बोलीं ,” बेटा उलटी या सीधी  ये पट्टी उसी ने पढाई जिसे कहते हैं  छठी इन्द्रिय | तो देखा दोस्तों आपने किस तरह सिक्स्थ सेन्स से अम्मा ने अपनी गठरी की हिफाजत की |इसे कहते हैं दूरदर्शिता |            दीपा निगम आगरा