छिपा हुआ आम

सुगंध का नियम था कि वो रोज शाम को पार्क में  टहलने जाती | आज मन अशांत था फिर भी नियम ना टूटे इस लिए चली गयी , पर मन टहलने में नहीं लगा | घर भी नहीं जाना चाहती थी इसलिए वक्त काटने को वहीँ बेंच पर बैठ गयी | ठंडी हवा के झोंकों ने उसके गालों को सहलाया | अंदर का ताप कुछ कम हुआ | इधर -उधर नज़र दौड़ाई | बच्चे खेल रहे थे | बच्चों के खेल में मन कुछ रमा ही था की पार्क के एक कोने की बेंच पर निगाह चली गयी | एक जोड़ा बैठा हुआ था | दुनिया से बेखबर , एक दूसरे में तल्लीन | महिला की मांग का सिंदूर उसके विवाहित होने की गवाही दे रहा था | पकड़ी ना जाये इस भय से सुगंध ने नज़रें हटा लीं | पर नज़र रह -रह कर उधर ही चली जाती | दिल में एक हूक  सी उठती | काश उसका पति मनोज भी उसके साथ आया होता | पर मनोज के पास उसके लिए समय कहाँ था ? इसी बात पर सुगंध और उसके पति मनोज में अक्सर झगड़ा होता रहता था | सुगंध को लगता कि उसका पति उससे प्यार उससे प्यार नहीं करता , उसके साथ घूमने नहीं जाता , उसका ध्यान नहीं रखता , यहाँ तक की ऑफिस ६ बजे बंद हो जाता है पर वो हर रोज ८ -९ बजे आता है |  वहीँ  मनोज कहता कि उससे जान से भी ज्यादा प्यार करता है | दोनों के पक्ष अलग -अलग होते |  अपना दर्द याद आते ही सुगंध की आँखें भर आयीं | पक्षियों का कलरव , बच्चों का शोर , और उस प्रेमी युगल का प्रणय दृश्य सब उसे बेमानी लगने लगे | भारी क़दमों से सुगंध घर की ओर लौट पड़ीं | घर के दरवाजे पर ही पड़ोस की भाभी जी मिल गयीं | कुछ अनमनी सी देख उन्होंने पूँछ लिया ,” क्या हुआ सुगंध , मूड इतना खराब क्यों हैं ? पहले तो सुगंध ने कुछ नहीं कहा  कर बात टालने की कोशिश की , लेकिन उनके स्नेह भरे शब्दों से वो टूट गयी और फूट -फूट कर रोते हुए बोली , ” सब अपने जोड़े के साथ पार्क में जाते हैं और मैं अकेली | ये अकेलापन अब सहा नहीं जाता | थोड़ी ही देर में बात पूरे मुहल्ले में फ़ैल गयी |  जब मनोज घर लौटा तो आस -पास के लोग समझाने लगे कि भाई अपनी पत्नी का भी थोड़ा  ध्यान रखा करो | मनोज उनसे हाँ -हूँ कह कर गुस्से में अपने घर गया | वहाँ वह  आँसूं से तर -बतर थी | उसे उम्मीद थी कि उसका आँसुओं  से भरा चेहरा देखकर मनोज उसे प्यार करेंगे | पर उसका चेहरा देख कर मनोज का तो गुस्सा बढ़ गया | वो चिल्ला कर बोला ,” तो यही नाटक दिखा रहीं थी सब को …. आखिर  साबित क्या करना चाहती हो ? विपरीत अपेक्षाओं के कारण दोनों में जोर -दार झगड़ा हुआ | किसी ने खाना नहीं खाया ना ही कोई  रात भर सोया |  दूसरे दिन मनोज जब ऑफिस से लौटा तो उसने २०,००० रुपये सुगंध के आगे रखकर कहा ,” लो ये रुपये , मजे नहीं कर रहा था , ओवर टाइम कर रहा था तुम्हारे लिए हीरे का हार  लाने के लिए | ताकि जब तुम अपनी बहन की शादी में जाओ तो तुम्हे किसी तरह का मलाल ना रहे |  सुगंध की आँखों में आंसू  थे | वो प्यार के इस रूप से अनभिज्ञ थी |  ——— मित्रों , बात सुगंध और मनोज की नहीं है | झगडे होते ही इस लिए हैं कि दोनों एक दूसरे को समझ नहीं पाते | दोनों में से एक टेक्निकली सही होता है दूसरा प्रक्टिकली |  टेक्निकली सुगंध सही थी | उसका पति उसे समय नहीं देता तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उसका पति उसे प्यार नहीं करता |  प्रैक्टिकली मनोज सही है | वो उसे वो उसे वो गिफ्ट देना चाहता है जो उसकी बहुत प्रिय है | उस गिफ्ट को देते समय वो उसकी आँखों में वो चमक देखना चाहता है जो हीरे की चमक को भी फीका कर दे |  …………………………. इसी सम्बन्ध में मेरी दादी एक कहानी सुनाया करती थीं |  एक अध्यापक एक बच्चे को गणित सिखा रहा था |  उसने कहा , ”  रोहन मैं पहले तुम्हे दो आम दूँ , फिर दो आम और दे दूँ | अब बताओ तुम्हारे पास कितने आम होंगे ? रोहन – पाँच  बच्चा ठीक से समझ नहीं पाया ये सोच कर अध्यापक चित्र बनाते हैं | फिर रोहन से पूंछते हैं रोहन  बेटा बताओ तुम्हारे पास कितने आम हैं ? रोहन -पाँच  अध्यापक उसे समझाने के लिए अब आम की जगह स्ट्राबेरी का उदहारण लेते हैं | रोहन , मैं पहले तुम्हे दो स्ट्राबेरी देता हूँ फिर दो और देता हूँ | अब तुम्हारे पास कितनी स्ट्राबेरी हैं | रोहन -चार  अध्यापक खुश हो गए | उन्होंने फिर आम का उदाहरण  दे कर प्रश्न पूछा , ” रोहन अब तुम्हारे पास कितने आम हैं |  रोहन – पाँच  अब तो अध्यापक को गुस्सा आ गया | उन्होंने कड़क आवाज़ में पूछा , रोहन जब दो और दो स्ट्राबेरी चार होती है तो दो और दो आम पाँच कैसे हो गए |  रोहन ने कहा , ”  सर मेरे पास एक आम पहले से ही बैग में है | इसलिए जब आप मुझे दो और दो चार आम देते हैं तो मेरे पास पाँच आम हो जाते हैं | पर मेरे पास स्ट्राबेरी नहीं हैं इसलिए दो और दो स्ट्राबेरी मिलकर चार ही रहती हैं |  अब बारी अध्यापक के मुस्कुराने की थी |  टेक्निकली अध्यापक सही थे | प्रैक्टिकली रोहन सही था |  ……………… कई बार यही होता है कि दोनों सही होते हैं पर विवाद थमता नहीं है | क्योंकि दोनों अलग तरीके से रिश्ते को देख रहे होते हैं | एक टेक्निकली सही होता है एक  प्रैक्टिकली| जरूरी है कि रिश्तों में गलतफहमियाँ पालने की जगह हम एक एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें | क्या पता छिपा हुआ आम … Read more

99 क्लब का सदस्य

बहुत समय पहले की बात है एक राजा अपने मंत्रियों के साथ देश का भ्रमण कर रहा था | ज्यादातर लोग अपनी किसी ना किसी समस्या से परेशान  थे और उसी में उलझे हुए थे | वही उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला जो बहुत खुश था | वो दिन भर खेत में कड़ी मेहनत  कर घर लौटता था | उसके कमाई तो ज्यादा नहीं थीं पर आवश्यकताएं सब पूरी हो रहीं थी | घर में प्रेम और विश्वास था | उसके घर के बाहर तक उनके हंसने की आवाजें आती थीं | राजा के मंत्रियों ने राजा से कहा ,” राजन समझ में नहीं आ रहा कि ये व्यक्ति इतना खुश क्यों है ? प्रजा में ज्यादातर लोग धनाभाव का रोना रो रहे हैं पर यह अल्प आय में ही संतुष्ट है | परिवार में भी खुशहाली व् सामंजस्य है | हमारे पास इतना धन है फिर भी हम इसकी तरह से खुश नहीं है | आखिर इसका कारण क्या है ? राजा ने उत्तर देते हुए कहा , “ ये व्यक्ति इसलिए खुश है क्योंकि ये 99 क्लब का सदस्य नहीं है | “ “क्या मतलब ?” मंत्रियों ने समवेत स्वर में पूछा | राजा ने कहा कि ऐसा करो एक थैले में 99 सोने के सिक्के लाकर इसके दरवाजे के बाहर एक थैले में रख दो …. फिर देखना खेल | मंत्रियों  ने वैसा ही किया | सुबह जब उस व्यक्ति ने उठ कसर दरवाजा खोला तो एक थैला रखा हुआ दिखाई दिया | व्यक्ति ने थैला खोल कर देखा तो चौंक गया … उसमें ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं थीं | उसने मुद्राओं को गिनना शुरू किया | 50 तक पहुंचा था कि बीच में पत्नी आ गयी | संख्या भूल गया | पत्नी को मौन रहने का इशारा कर फिर से गिनना शुरू किया | तभी बच्चे आ कर इतनी मुद्राएं देखकर चहकने लगे | गिनने में फिर व्यवधान आया | व्यक्ति ने सबको डांट कर चुप कराया | फिर से गिनना शुरू किया | बड़ी मुश्किल से एक घंटे में वो गिन पाया कि 99 स्वर्ण मुद्राएं हैं | उसे लगा उससे गिनने में कुछ भूल हुई है कोई 99 क्यों देगा सौ क्यों नहीं | फिर से गिना … फिर गिना … 99 ही  थीं | उसे लगा आस –पास ही कहीं गिर गयीं होंगी | उसने ढूँढने की कोशिश की | सहायता के लिए पत्नी व् बच्चों को भी बुलाया | पर मुद्रा नहीं मिलनी थी तो नहीं मिलनी थी | दोपहर हो गयी | खेत में भी पानी देने नहीं जा सका था | बहुत ही निराश मन से उसने वो 99 स्वर्ण मुद्राएं अपनी अलमारी में रख लीं और मन ही मन सोचने लगा कि अब और मेहनत करूंगा और इन्हें पूरी 100 कर लूंगा | अगले दिन से वो बहुत अधिक मेहनत करने लगा | दोपहर का खाना भी नहीं खाता , काम में ही लगा रहता | अलबत्ता शाम को आकर अपनी मुद्राएं गिनना नहीं भूलता | एक दिन उसे दो मुद्राएं कम मिलीं | वो आगबबूला हो गया | फ़ौरन पत्नी को बुलाया | पत्नी ने कहा कि घर  में कुछ जरूरी खर्च आ गया था | मैंने सोचा इतनी मुद्राय्वें तो रखी हैं इन्हीं में से दो ले लेते हैं | मैंने दो मुद्राओं में से ये परदे , खाने का सामान व् एक अंगूठी खरीदी है | व्यक्ति का क्रोध बढ़ गया वो पत्नी पर पहली बार हाथ उठा कर बोला , “ नालायक औरत तेरे पास तो खर्च करने के आलावा कोई काम नहीं है | मैं कितनी मेहनत से इन्हें जमा कर रहा था और तूने बिना सोचे समझे दो उड़ा दी | पत्नी रोने लगी | व्यक्ति को अब तीन स्वर्ण मुद्राएं जमा करनी थीं | उसने मेहनत दुगनी कर दी | इसी बीच उसने देखा कि दो मुद्राएं और कम हो गयीं हैं | इस बार वो मुद्राएं लेने वाले बच्चे थे | बच्चों ने मासूमियत से कहा , “ पिताजी स्कूल की तरफ से आयोजन था | हमने अच्छे कपड़े लिए व् चंदे के लिए भी रूपये दिए | उसी में वो दो मुद्राएंमुद्राएं  खर्च हो गयीं | अब तो उस व्यक्ति के गुस्से का परवार ही न रहा | अब उसे पूरी पांच मुद्राएं जमा करनी थी | सोच कर उसके दिमाग की नसे फटने लगीं |  गुस्से में चिल्लाते हुए उसने अपने बच्चों की पिटाई शुरू कर दी | बच्चे मम्मी बचाओ , मम्मी बचाओ , चिल्लाने लगे | बच्चों को बचाने के चक्कर में दो हाथ माँ को भी लग गए , वो गिर गयी , उसका सर फट गया | माँ का खून देखकर बच्चे पिता पर चिलाने लगे | पूरे घर में कोहराम मच गया | ठीक उसी समय राजा अपने मंत्रियों के साथ उस घर में पहुंचा | मंत्री हैरान थे | जो आदमी अपने परिवार के साथ इतना खुश रहता था | आज उसके घर में इतनी अशांति बिखरी हुई है | आखिर उन स्वर्ण मुद्राओं ने ऐसा क्या कर दिया ? राजा मुस्कुरा कर बोला , “ कुछ नहीं , बस अब ये 99 क्लब का सदस्य बन गया | मित्रों ये एक प्रेरक कथा है , जो हम सब को जीवन का आइना दिखाती है | हम सब भी कुछ जोड़ने के चक्कर में आज की खुशियाँ छोड़ते रहते हैं … मसलन कार आ जाए … ख़ुशी तो उसमें है … इसलिए उसके बाद खुश होऊंगा | बच्चे का अच्छे स्कूल में सिलेक्शन हो जाए  उसके बाद खुश होऊँगा  | IIT में सिलेक्शन के बाद खुश होऊंगा | दादी बन जाऊं असली ख़ुशी तो तब आएगी | खुशियाँ तो रिटायर मेंट के बाद की चीज है |  ये सब यानि  कि हम सब 99 क्लब के सदस्य हैं जो अपनी खुशियाँ कल पर टालते रहते हैं …. इसलिए हमेशा ख़ुशी की कमी पड़ी रहती है | परिवार में झगडे होते हैं , मानसिक अशांति होती है , कई बार काम की अधिकता में शरीर के प्रति लापरवाही इतनी हो जाती है कि अनेक रोग घेर लेते हैं | जब तक वो बहु प्रतीक्षित ख़ुशी मिलती है तब तक हम उसे भोगने लायक … Read more

विश्वास करें ये काम करता है

                                      कल बच्चों का खेल देख रही थी | कुछ ईंटों जैसे ब्लॉक्स थे जो इस प्रकार रखे थे कि एक ईंट हटाते ही उसके आगे की सारी ईंटे एक -एक करके गिरने लगती थीं | जैसे लाल ईंट हटाई तो आगे कि सारी लाल ईंटे एक -एक कर गिरने लगती थीं यही हाल पीली नीली और सफ़ेद ईंटों का भी था | बच्चा बहुत सावधानी से खेल रहा था  क्योंकि एक भी गलत रंग की ईंट गिर गयी तो आगे ढेर सारी गलत ईंटों का गिरना रोका नहीं जा सकता था | थोड़ी देर तक देखने के बाद मुझे लगा ये खेल नहीं जिन्दगी है | कई बार -एक सही या गलत कदम थोड़े समय तक के लिए आगे के रास्ते बिलकुल तय कर देता है …. सारी ईंटे एक ही दिशा में गिरती जाती हैं हम चाह  कर भी रोक नहीं पाते | वो एक सही या गलत ईंट हमारी जिन्दगी की कुछ समय तक के लिए दिशा तय कर देती है | क्या ये सही ईंट गिराना हमारे हाथ में होता है ?कई लोग इसी डर से कि कहीं गलत ईंट ना गिर जाए खेल में प्रवेश ही नहीं करते | बहुत प्रतिभा और क्षमता होते हुए भी किनारे ही खड़े रह जाते हैं | ऐसे समय में बहुत जरूरत होती है किसी ऐसे व्यक्ति कि जो ईंट गिराने को तैयार खिलाड़ी से यह कह दे , ” विश्वास करें , ये काम करता है |” समाज में जितना महत्व सफल व्यक्तियों का है उससे कम महत्व उन व्यक्तियों का नहीं है जो सही ईंट गिराने की प्रेरणा  देते हैं| बहुत छोटे स्तर पर ही सही पर एक दूसरे को प्रोत्साहन देने की, उनमें विश्वास जगाने की ये कड़ी रुकनी नहीं चाहिए | आज एक ऐसी ही प्रेरक कथा ले कर आयीं हैं नीलम गुप्ता जी … विश्वास करें ये काम करता है बहुत समय पहले ही बात है , इक व्यक्ति रेगिस्तान में रास्ता भटक गया |  उसके पास जितना पानी था था खत्म हो गया | प्यास के मारे उसका गला सूख रहा था पर दूर -दूर तक सिर्फ रेत ही रेत दिखाई दे रही थी | तभी दूर उसे एक झोपड़ी नज़र आई | पहले तो उसे लगा कि इस रेतीले इलाके में भला झोपड़ी कैसे होगी , हो न हो ये उसका मति भ्रम है | फिर भी उसके पास उस दिशा में आगे बढ़ने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था | जैसे -तैसे वो अपनी पूरी शक्ति लगा कर आगे बढ़ने लगा | हर कदम पर अगला कदम उठाना मुश्किल हो रहा था | फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और झोपडी की दिशा में आगे बढ़ गया | जैसे -जैसे वो पास जा रहा था , झोपडी और साफ़ दिखाई देने लगी थी | अब उसे विश्वास हो गया किवहां झोपडी अवश्य है | उम्मीद जगी कि शायद  वहां कोई रहता हो , जो उसे पीने को पानी दे सके व्उसकी प्यास बुझा सके| अब वो बची खुची शक्त का इस्तेमाल कर झोपडी की और बढ़ने लगा | झोपड़ी के पास पहुँचने  पर उसने देखा कि झोपडी के बाहर एक हैंड पंप लगा है | ख़ुशी के कारण उसकी चीख निकल गयी | वो जल्दी से जाकर हैंड पंप चलाने लगा …..पर पानी की एक बूँद भी ना निकली | वो और जोर लगाता …. और जोर ,पर पानी था कि निकलने  का नाम ही नहीं ले रहा था | वो पसीने -पसीने हो गया , उसकी रही सही हिम्मत भी जाती रही | थक हार कर उसने पंप चलाना बंद कर दिया |  उसके शरीर का बहुत सारा पानी पसीने के रूप में निकल चुका था | वो समझ गया कि अब उसका बिना पानी के इस रेगिस्तान से निकलना नामुमकिन है | उसकी आँखें भर आयीं | निराशा में उसने झोपडी केव अंदर कुछ देर विश्राम करने का मन बनाया | वो दुखी मन से जब झोपडी के अंदर गया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं  रहा , क्योंकि  वहां किसी ने एक हुक से एक बोतल लटका रखी थी जिसमें पानी भरा हुआ था | बोतल में कॉर्क लगी हुई थी | व्यक्ति की जान में जान आई | इतना पानी पी कर कम से कम वो कुछ दूर जा सकता था | आगे शायद और पानी मिल जाए , ये उम्मीद तो थी ही | उसने झटके से बोतल हुक से निकाल ली | वो पानी पीने ही वाला था कि उसे बोतल पर एक स्लिप दिखाई दी | जिसमें लिखा था ,” इस पानी को हैण्ड पम्प के ऊपरी छेद में डाल दें और जाते समय ये बोतल भर कर यहाँ ऐसे ही लटका दें | नोट पढ़कर व्यक्ति घबरा गया | अगर उसने ये पानी भी छोड़ दिया तो उसकी मृत्यु निश्चित है | अगर उसने ये पानी पम्प में डाला और पम्प चल गया तो ना सिर्फ वो पेट भर पानी पी पायेगा बल्कि आगे के रास्ते के लिए भर भी पायेगा | व्यक्ति असमंजस में पड़ गया | क्या करें क्या ना करे | एक तरफ निश्चित मृत्यु दिखाई दे रही थी …. एक तरफ जीवन की सम्भावना थी | बहुत देर तक अपने विचारों में जूझने के बाद उसने पानी पम्प में डालने का फैसला किया | पानी डालने के बाद उसने पम्प चलाया | पम्प से मोटी धार पानी की गिरने लगी | उसने ढेर सारा पानी पिया ,  आगे के सफ़र के लिए पानी अपने पास रखा , उस बोतल में पानी भरा और जब अन्दर बोतल को उसे हुक पर लटकाने आया तो उसे हुक के पास एक नोट दिखाई दिया | उसने गौर से देखा उस नोट में रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता दिया हुआ था |  व्यक्ति ने बोतल की कॉर्क बंद करके उसेवैसे ही लटका दिया | वो झोपडी से बाहर निकलने जाने लगा , तभी ठिठका और बोतल उतार कर उस पर चिपके कागज़ के ऊपर उसने उस नोट के आगे लिखने शुरू किया , ” मेरा विश्वास करें ये काम करता है |” उसके … Read more

समस्या या समाधान

समस्याओं को अपने जीवन में आने से नहीं रोका जा सकता …. ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं पर आप समस्या आने पर किस चीज पर फोकस करते हैं समस्या पर या समाधान पर … यही आपकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ तय करता है | समस्या या  समाधान  ये कहानी है एक आदमी की जो किसी काम से दूसरे शहर गया | जाते समय उसे शंका थी कि शायद काम पूरा नहीं होयेगा | जब वो वहां पहुँचा तो ठीक वैसा ही हुआ जैसा उसने सोचा था | काम पूरा ना होने के कारण उसका मन खिन्न था | दुखी मन से वो अपनी गाडी स्टार्ट कर के अपने घर लौटने लगा | रास्तेमें एक पुल पड़ता था , जिसके नीचे नदी बह रही थी | आदमी अपने निराशा जनक ख्यालों में डूबा हुआ था | तभी उसने महसूस किया की गाड़ी थोडा धीमे चल रही है | उसने उतर कर देखा तो गाडी क पीछे वाला एक टायर पंचर था | आदमी को और निराशा हुई | उसे चिंता हुई कि ऐसे तो घर पहुँचने में और देर होगी , यहाँ कोई मेकेनिक भी नहीं है | अंत में उसने खुद ही टायर बदलने की सोंची | उसने पंचर हुए टायर के नटबोल्ट खोले , उन्हें एक तरफ रखा और पहिया निकलने की कोशिश करने लगा | तभी टायर का धक्का लगने से वो चारों बोल्ट नदी में जा गिरे | अब तो उस व्यक्ति की निराशा और बढ़ गयी | वो वहीं सर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा , अब तो कुछ नहीं किया जा सकता , अब तो उसके पास किसी दूसरी गाडी के इंतज़ार करने के आलावा कोई चारा नहीं था | अपने को कोसते हुए व् तनाव करते हुए वो उस पुल से पास होने वाली किसी गाड़ी का इंतज़ार करने लगा | तभी वहां से एक किसान निकला और उसने पूछा ,” क्या हुआ भैया , कुछ परेशान  दिख रहे हैं ? वह व्यक्ति किसान की तरफ देख कर गुस्से से बोला , ” हाँ परेशान  हूँ , पर आप मेरी मदद नहीं कर सकते , इसलिए अपना काम करें | किसान फिर बोला , ” मैं आप की मदद नहीं कर सकता पर हो सकता है समस्या सुनने के बाद कोई सुझाव तो दे सकूँ | वह व्यक्ति किसान का मन रखने के लिए अपनी बात बताने लगा , कि कैसे उसे टायर के सारे बोल्ट नदी में गिर गए | हालांकि उस व्यक्ति को विश्वास था कि ये किसान उसकी कुछ भी मदद नहीं कर पायेगा | तभी किसान ने कहा , ” अच्छा ये बात है , तो आप का टायर तो वो मेकेनिक लगा देगा जो अगले गाँव के बाहर रहता है | व्यक्ति ने किसान से पूछा , ” अच्छा , पर वहां तक जाऊँगा कैसे ? देखते नहीं मेरी गाड़ी का पहिया पंचर है | किसान बोला , ” जी ये बात मुझे पता है , पर आप ऐसा भी तो कर सकते हैं कि अपनी गाडी के अन्य पहियों से एक -एक नट -बोल्ट खोल कर इस पहिये में लगा दें | ऐसा करने से आपकी गाडी के हर पहिये के पास तीन नट -बोल्ट होंगे | ऐसे आप धीरे -धीरे गाडी चला कर उस मेकेनिक तक पहुँच जायेंगे | व्यक्ति किसान की बात सुन कर आश्चर्य में पड़ गया | उसने किसान को धन्यवाद देते हुए कहा , ” कमल का सुझाव दिया है आपने , मैं वर्षों से गाड़ी चला रहा हूँ पर ये विचार मेरे दिमाग में नहीं आया | आपने शायद ही कभी कोई गाडी चलाई हो फिर भी ये विचार आप के मन मं आ गया | ये तो कमाल है | किसान बोला, ” नहीं , नहीं कमाल की बात नहीं है , दरअसल समस्या से जूझते समय आप का दिमाग केवल समस्या पर था व् मेरा दिमाग समाधान पर था | व्यक्ति किसान की बात से सहमत होकर उसी के अनुसार काम करते हुए धीरे -धीरे अपनी गाडी लेकर दूसरे गाँव की ओर चल पड़ा | मित्रों ये छोटी सी कहानी , बहुत बड़ी बात कहती है | अक्सर हम लोग जब भी किसी समस्या का समाधान ढूंढना चाहते हैं तो हम अपना ध्यान समस्या पर टिकाये रहते हैं | जैसे मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ , मेरा तो भाग्य ही खराब है , अगर ये काम नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा …. और उसी को बार -बार सोचते रहते हैं , जबकि समाधान समस्या के ही आस -पास होता है पर हम उस बारे में सोचते नहीं हैं | समस्या के बारे में लगातार सोचने से हमारी उर्जा भी कम हो जाती है और हम समाधान से और भी दूर हो जाते हैं | जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं उन्होंने समस्या के स्थान पर समाधान को सोचने में समय लगाने को चुना है | अटूट बंधन  यह भी पढ़ें …. भाग्य में रुपये मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं वो व्हाट्स एप मेसेज सब कुछ हरा आपको    “ समस्या या समाधान  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories,solution

मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं

अमीर लोगों का दिल कई बार बहुत छोटा होता है और गरीबों का बहुत बड़ा | ऐसे नज़ारे देखने को अक्सर मिल ही जाते हैं | परन्तु  कभी  -कभी कोई बहुत छोटी सी बात हमें बहुत देर तक खुश कर देती है और जीवन का एक सूत्र भी दे देती है | मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं किस्सा आज का ही है | यूँ तो दिल्ली में बंदर बहुत है | पर किस दिन किस मुहल्ले पर धावा बोलेंगे यह कहा नहीं जा सकता | जब ये आते हैं तो ये झुंड के झुंड आते हैं | ऐसे में सामान लाना मुश्किल होता है | क्योंकि ये हाथ के पैकेट छीन लेते हैं | पैकेट बचाने की जुगत में काट भी लेते हैं |  आज शाम को जब मैं पास की बाज़ार से सामान लेने गयी तब बन्दर नहीं थे | अपनी कालोनी में घुसते ही बहुत से बंदर दिखाई दिए | मेरे दोनों हाथों में बहुत सारे पैकेट थे , उसमें कई सारे खाने -पीने के सामान से भरे हुए थे | मैं घर के बिलकुल पास थी पर मेरे लिए आगे बढ़ना मुश्किल था | उपाय यही था कि मैं वापस लौट जाऊं और आधा एक घंटा इंतज़ार करूँ जब बन्दर इधर -उधर हो जाए तब घर जाऊं |  तभी एक रिक्शेवाला जो मेरी उलझन देख रहा था बोला , ” लाइए आपको छोड़ दूँ | उसने मेरा सामान रिक्शे में रख दिया , मैं बैठ गयी | मुश्किल से पाँच -सात मिनट का रास्ता था पर मेरी बहुत मदद हो गयी थी इसलिए मैं घर पहुँच कर रिक्शेवाले को धन्यवाद देते हुए २० रुपये का नोट देने लगी |  रिक्शेवाले ने नोट लेने से इनकार करते हुए कहा ,  ” ये मत दीजिये , मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं “|  रिक्शेवाला तो चला गया पर उसका वाक्य मेरे दिमाग में अभी भी बज रहा है … शायद मैं उस वाक्य को जिंदगी भर ना भूल पाऊं | आदमी छोटा बड़ा नहीं होता … दिल छोटे बड़े होते हैं | कुछ खुशियों को पैसे में नहीं तोला जा सकता | वो सबके लिए सुलभ हैं फिर भी मैं , मेरा मुझसे में हम क्या -क्या खोते जा रहे हैं |आज बरबस ही राजकपूर जी पर फिल्माया गीत गुनगुनाने का जी कर रहा है …. किसी को हो न हो हमें है ऐतबार , जीना इसी का नाम है ….. वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories,Help

ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन

                           ज्ञान , भक्ति , कर्म योग और क्रिया योग ये सभी ईश को पाने का साधन हैं | साधक के मन में अक्सर ये प्रश्न उठता है कि इसमें श्रेष्ठ कौन है | ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन                                          एक बार की बात है चार युवक एक जंगल में जा रहे थे | उनमें से एक ज्ञान मार्ग का उपासक था , एक भक्ति मार्ग का , एक कर्म मार्ग का और एक क्रिया मार्ग का | वैसे तो ये चारों  अलग -अलग ही रहते थे  क्योंकि हर कोई अपने मार्ग को बेहतर समझता था | ज्ञान मार्ग का उपासक जो बुद्धि पर ज्यादा जोर देता है , उसके अनुसार हर बात तर्क से सिद्ध होनी चाहिए | वो दूसरे मार्ग का अनुसरण करने वालों को हेय  दृष्टि से देखता है , उसे लगता है कि दूसरे सब मूर्ख हैं क्योंकि असली रहस्यों से तो वो उलझता है | भक्ति मार्ग का उपासक अन्य मार्ग वालों पर तरस करता है उसे लगता है कि जब ईश्वर को आसानी से प्रेम करके पाया जा सकता है तो ये सारे नादान लोग अलग -अलग दिशाओं में क्यों भटकते हैं कर्म योगी को ये सभी आलसी लगते हैं उसके अनुसार बिना अन्न उपजाए , घर साफ़ किये , भोजन बनाये ये दुनिया चल ही नहीं सकती , ये सब तो आलसी हैं , कुछ करना चाहते नहीं हैं इसलिए ज्ञान , भक्ति और  क्रिया में उलझे रहते हैं | क्रिया योगी ये मानता है कि ईश्वर को पाने का उपाय यही है कि उर्जा को ऊँचे  तल में ले जाया जाए | अब उर्जा उच्च तल में कैसे जायेगी इसके लिए ध्यान , नियम आदि करने पड़ेंगे | यही क्रिया है | इसके बिना मुक्ति संभव नहीं , अब बैठे बिठाये भजन करने से या ज्ञान बांटने से तो ये होने से रहा |                                                      तो इस प्रकार ये सब अपने मार्ग पर चलते हैं कभी साथ नहीं रहते | परन्तु संयोग ऐसा बना कि जंगल में चारों  साथ थे | तभी तेज आंधी के साथ तूफानी बारिश आई | वो सब आश्रय की तलाश में चल पड़े | पर जंगल में आशय मिलना मुश्किल था | तभी एक प्राचीन मंदिर दिखाई दिया  | मंदिर टूटा फूटा था …. पर बारिश से बचने के लिए वो वहीँ चले गए | पर यहाँ भी बारिश आ रही थी | वो मूर्ति के पास बैठ गए , कुछ छींटे अभी भी पड़  रही थीं | वो मूर्ति से और चिपक कर बैठ गए |  उनका उद्देश्य केवल बारिश से बचना था | तभी ईश्वर प्रकट हो गए |  चारों आश्चर्य में  पड़ गए | सबको लगा कि अभी तो हम कुछ कर भी नहीं रहे थे , फिर ईश्वर आज प्रकट कैसे हुए वो पहले प्रकट क्यों नहीं हुए जब हम अपने -अपने तरीके से उन्हें पाने का प्रयास कर रहे थे | ईश्वर  बोले , ” आश्चर्य में मत पड़ों  | आज मेरे प्रकट होने का कारण ये है कि  तुम चारों  इकट्ठे हो | तुममें  कोई विरोध नहीं है …. मुझे पाने के लिए इसी संयोग की जरूरत है | मित्रों ये कहानी हमने ईशा फाउंडेशन के प्रवचन से ली है | जब सबमें समदर्शना  आ जाये | जब अपने मार्ग स विपरीत मार्ग छोटा न लगे तभी ईश्वर की प्राप्ति संभव है | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “  ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories, exam, yoga, gyan, karm, bhakti, kriya yoga

मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ

क्या किसी इम्तिहान में  हार , जिन्दगी की हार है , क्या फिर से कोशिश नहीं की जा सकती ,जबकि हमें पता है कि हर सफल व्यक्ति न जाने कितनी बार सफल हुआ है | एग्जाम के रिजल्ट से निराश हुए बच्चों के लिए … प्रेरक कथा -मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ बेटा फोन उठाओ ना , तीसरी बार जब पूरी  रिंग के बाद भी बेटे वैभव  ने फोन नहीं उठाया तो  मधु की आँखों से गंगा -जमुना बहने लगी , दिल तेजी से धड़कने लगा …. कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी | आज ही IIT का रिजल्ट आया है  और वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | रिजल्ट  वैभव ने घर पर ही देखा था पर उसे बताया नहीं , दोस्तों से मिल कर आता हूँ माँ कह कर तीर की तरह निकल गया |  उसने सोचा था अभी रिजल्ट नहीं निकला होगा … थोड़ी देर में आकर देखेगा | वो तो जब बड़ी बेटी घर आई और वैभव के रिजल्ट के बारे में पूंछने लगी तो  उसका ध्यान गया | बड़ी बेटी ने ही लैपटॉप खोल कर रिजल्ट देखा …. वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | उसी ने बताया रिजल्ट तो दो घंटे पहले निकल गया था | ओह … उसे माजरा समझते देर ना लगी …. वैभव ने रिजल्ट देख लिया , इसीलिये दुखी हो कर वो घर से बाहर चला गया | मधु का दिल चीख पड़ा … कितनी मेहनत की थी उसने , पिछली बार तो जब IIT में रैंक पीछे की आई थी तो उसने ही ड्राप कर रैंक सुधारने का फैसला लिया था | उसने बेटे की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी समझ कर हाँ कर दी थी , पति विपुल की मृत्यु के बाद और था ही कौन जिससे वो राय मशविरा करती |विपुल जब उसके ऊपर तीनों बच्चों को छोड़ दूसरी दुनिया चले गए थे  , तब आगे के कमरे में केक बना कर अपना व् बच्चों का गुज़ारा चलाते हुए उसने कभी बच्चों को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी | बस यही प्रयास था बच्चे पढ़ लिख कर काबिल बन जाएँ | वैभव सबसे बड़ा था , उसके बाद दो बेटियाँ … वो अकेली कमाने वाली | उसने वैभव पर कभी दवाब भी नहीं डाला था पर  वैभव खुद ही  चाहता था कि वो  बहुत आगे बढे , जीते और अपनी माँ का नाम ऊँचा करे | इसी लिए तो दिन -रात पढाई में लगा रहता … न खाने की सुध न सोने की | जब भी वो  कुछ कहती तो उसके पास एक ही उत्तर होता ,  ” मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ ”  तो क्या वैभव इस हार को बर्दाश्त न कर के …. नहीं नहीं , ऐसा नहीं हो सकता सोचकर उसने फिर से फोन मिलाना शुरू किया | उसकी आँखों के सामने वो सारी  खबरे घूमने लगीं जो उन बच्चों की थीं जिन्होंने परीक्षाफल से निराश होकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी | उनमें से कई अच्छे लेखक बन सकते थे , कई इंटीरियर डेकोरेटर कई अच्छे शेफ …. पर …वो सब एक हार से पूरी तरह हार गए |  उसकी आँखों के आगे उन  रोती -बिलखती माओं के चेहरे घूमने लगे | आज क्या दूसरों की खबर उसकी हकीकत बन जायेगी … नहीं … उसने और तेज़ी से फोन मिलाना शुरू किया | तभी दरवाजे की घंटी बजी | वो बड़ी आशा से दरवाजा खोलने भागी | छोटी बेटी थी | माँ को बदहवास देखकर वो सहम गयी | बड़ी ने छोटी को संभाला | मधु ने निश्चय किया कि वो पुलिस को खबर  कर दे | बहुत हिम्मत करके उसने दरवाजा खोला …. सामने वैभव खड़ा था | उसने रोते हुए वैभव को गले लगा लिया |  दोनों बहने भी वैभव के गले लग गयी |  सब को देख कर हड्बड़ाये हुए वैभव ने पुछा ,  ” क्या हुआ है माँ … सब ठीक तो है , आप लोग इतने परेशान  क्यों हैं |  मधु ने रोते हुए सब बता दिया | ओह !कह कर वैभव बोला , ” माफ़ करना माँ मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया | मैंने सोचा मैंने तो तुम्हें रिजल्ट बताया नहीं है , ये सच है कि  जब मैंने देखा कि मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ है तो मुझे धक्का लगा  फिर मैंने देखा  मेरा दोस्त निशान जिसने मेरे साथ  ही ड्राप किया था उसका भी सिलेक्शन नहीं हुआ है | मुझे याद आया उसने दो दिन पहले ही कहा था कि  अगर मेरा सेलेक्शन  नहीं हुआ तो मैं गंगा बैराज से कूद कर जान दे दूँगा | उसी घबराहट में मैं उससे बात करने के लिए घर से निकल गया | वो अपने घर से जा चुका था , बाहर बारिश हो रही  थी | फोन भीग न जाए इसलिए मैंने  फोन उसके घर साइलेंट पर करके रख दिया और   निशान को खोजने निकल पड़ा | मैं  उसके कहे के अनुसार गंगा बैराज पर पहुंचा …. निशान वही था … वो कुछ लिख रहा था | मैंने जल्दी से जा कर उसे गले लगाया , हम दोनों देर तक रोते रहे |  जब चुप हुए तो मैंने उसे समझाया , ” मूर्ख क्या करने चला था , कभी सोचा  अपनी माँ के बारे में , तुझसे ये हार सहन नहीं हो रही और वो तेरा दुःख भी झेलेंगी और  सारी  जिन्दगी ये हार झेलेंगी की वो एक अच्छी माँ नहीं हैं | लोग तो यही कहेंगे ना कि माता -पिता बहुत दवाब डालते थे … जान ले ली अपने ही बच्चे की | तुझे केवल अपनी हार दिखी उनकी हार नहीं दिखी | निशान फिर रोने लगा , ” हां , सच कहा , मैं स्वार्थी हो गया था … उस समय मुझे अपने आलावा कुछ नहीं दिख रहा था | जीवन है तो फिर जीत सकते हैं … लेकिन मेरे माता -पिता जो हारते वो कभी ना जीत पाते | मधु अपने बेटे की मुँह से ऐसे बात सुन कर रोने लगी |  वैभव उसके पास आ कर बोला , ” माँ , तुम्हारे  लिए भी तो आसान  था जब पिताजी छोड़ कर चले … Read more

सब कुछ हरा

                                 हम इस दुनिया को अपने हिसाब से ही देखना चाहते हैं | इसलिए सबको बदलना चाहते हैं ,क्या ये उचित हैं ? ये कहानी है ऐसे अमीर की जो सब कुछ हरा देखना  चाहता था | क्या ये संभव है ? प्रेरक कहानी -सब कुछ हरा /Motivational story (in Hindi)-Sab kuch hra                             बहुत समय पहले की बात है एक  बहुत अमीर आदमी था | यूँ तो वो बहुत खुश रहता था पर उसकी आँखों में एक अजीब सी बिमारी हुई , जिसके कारण उसकी आँखों में बहुत दर्द रहने लगा | अमीर आदमी ने देश विदेश जा कर अपना इलाज़ करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ |  लोगों ने बताया तो उसने नामी गिरामी वैद्ध को भी दिखाया व् होमोपैथी का इलाज़ भी कराया   पर समस्या जस की तस रही | अब वो आदमी बहुत परेशान  रहने लगा | उसे लगता अब सारा जीवन उसे ऐसे ही इस दर्द के साथ रहना पड़ेगा |  वो निराश रहने लगा , मन अवसाद में घिरने लगा | एक दिन किसी ने बताया कि  बिठूर के पास एक साधू  रहते हैं वो शायद तुम्हें कोई उपाय बताये , अब तक तो जो भी उनके दरबार गया है उसका काम पूरा ही हुआ है | ये सुन कर अमीर आदमी के चेहरे पर आशा की मुस्कान फ़ैल गयी | उसने तुरंत वहां जाने का निश्चय किया | वो अपने कुछ मित्रों के साथ उसी दिन बिठूर के लिए निकल गया | वहां पहुँच कर उसने देखा कि साधू महाराज कोई पूजा कर रहे हैं | वो वहीँ इंतज़ार करने लगे | थोड देर में साधू की पूजा समाप्त हुई | उन्होंने अमीर आदमी को देखकर उन्हें अपने पास बुलाया | वो अमीर आदमी  साधू  के पैर पकड़ कर बोला , ” महाराज , मेरी आँखों में बहुत दर्द होता है | देश -विदेश में इलाज करवाया , कोई फायदा नहीं हुआ | अब बड़ी आशा से आपके पास आया हूँ , कृपया मुझे इस तकलीफ से मुक्ति दे दें ‘| साधू ने उस अमीर की आँखे देख कर कहा , ” तुम्हारी आँखों का दर्द दूर हो जाएगा , बस तुम ज्यादा से ज्यादा हरा देखा करो “| वो आदमी घर लौट आया | उसने अपने घर कइ बगीचे में कई पेड़ लगवा दिए | रोज सुबह उठ कर उन्हें देखता | उसकी आँखों के दर्द में कमी आने लगी | अब तो उसने घर के आस -पास कारखाने तक बहुत पेड़ लगवाये  |कुछ और आराम आया | खुश हो कर उसने  घर की दीवारे , परदे , बिस्तर , फर्नीचर , सामान सब हरा कर दिया गया | उसने हरे रंग के कपडे पहनना भी शुरू कर दिया व् घर के सभी लोगों को यहाँ तक की नौकरों को भी , हरे रंग के कपडे पहनने का आदेश दिया | अब उसकी आँखों का दर्द  बिलकुल ठीक हो गया था | एक दिन वही साधू उसके शहर आये व् उससे मिलने भी आ गए | वो अन्दर जा ही रहे थे कि अमीर आदमी के नौकर का ध्यान साधू के कपड़ों पर गया | उन्होंने लाल रंग के कपड़े  पहन रखे थे | नौकर ने तुरंत एक बाल्टी पानी में हरा रंग घोल कर उनके ऊपर फेंक दिया | तभी अमीर आदमी आ गया | उसने नौकर की उस हरकत के लिए माफ़ी मांगी | उसने साधू  से कहा , ” महात्मन मैं अपने नौकर की गलती के लिए शर्मिंदा हूँ | दरअसल आप ने मुझसे  हरा रंग ज्यादा देखने को कहा था | तो  देखिये यहाँ सब कुछ हरा ही हरा है | इससे मुझे बहुत आराम मिला | मेरा दर्द पूरी तरह चला गया | क्योंकि नौकर ने देखा कि आप ने लाल रंग के कपडे पहन रखे हैं , मेरी तकलीफ बढ़ न जाए , इसलिए उसने आपके कपड़ों पर हरा रंग डाल दिया | उत्तर सुन कर साधु  हंसने लगा | उसने कहा , ” ये तुमने क्या किया , सब कुछ हरा देखने के लिए तुमने अपने चारों  और हर वस्तु और लोगों को हरे रंग में रंग दिया , अरे तुम हरे कांच वाला चश्मा भी तो ले सकते थे | दुनिया जैसे थी वैसी ही रहती और तुम्हें भी सब कुछ हरा दिखाई देता |                            मित्रों , हर प्रेरक कहानी में कुछ सन्देश छिपा रहता है | इस कहानी में भी एक बहुत सुंदर सन्देश छिपा है कि हमें दूसरों को बदलने के स्थान पर अपना नजरिया बदलना चाहिए | हममे से ज्यादातर लोग इस बात से दुखी रहते हैं कि वो … ऐसा नहीं करता , वैसा नहीं करता , उसे ऐसा कहना चाहिए , वैसा कहना चाहिए हम दुनिया को अपने हिसाब से बदलना चाहते हैं इसी कारण  दुखी रहते हैं , इसी कारण  रिश्तों में विवाद होते हैं | दूसरों को बदलने के स्थान पर अगर अपना नजरिया बदल लें … क्या हुआ ये अगर ऐसे रहना , उठना बोलना पसंद करता है , वो उसकी ख़ुशी है , मै जैसे रहना , उठाना बैठना पसंद करता हूँ वो मेरी ख़ुशी है | उसे अपनी जिन्दगी जीने देते हैं , मैं अपनी जिन्दगी अपनी तरह से जिऊँगा | उसके बावजूद हम अच्छे दोस्त रह सकते हैं | करके देखिये जीवन कितना आसन हो जाएगा | ऐसे में सब कुछ हरा भले ही न हो पर आपका मन जरूर हरा भरा रहेगा | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … काश हमें पहले पता होता समय पर निर्णय का महत्त्व मेरी कीमत क्या है जो मिला नहीं उसे भूल जा आपको  कहानी  “   सब कुछ हरा  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Moral Stories, Green, motivational stories,

काश मुझे पहले पता होता

                      यूँ तो गलती करना इंसान का स्वाभाव है पर कई बार हम ऐसी गलतियाँ  करते हैं , जिनका बहुत बड़ा असर हमारे जीवन पर पड़ता है | तब हम कहते हैं काश हमें पहले पता होता तो हम ये गलती  न करते , परन्तु तब तक तो समय निकल गया होता है | काश मुझे पहले से पता होता -Moral story of Regret  in Hindi                        बहुत समय पहले की बात है कि एक राज्य में एक राजमिस्त्री रहता था |  वो बहुत  सुन्दर -सुंदर  घर और महल बनाता | उसको काम करने में समय तो ज्यादा लगता पर जब  घर या महल बन कर तैयार होते तो वो इतने सुन्दर होते कि  लोग तारीफ़ करते नहीं थकते | उसे अपने काम से बहुत प्यार था और गर्व भी | कई बार राजा भी कुछ जल्दी बनाने को कहता तो वो मना कर देता | उसका एक ही कहना होता  , ” या तो अच्छे काम के लिए धैर्य रखो या काम ही न लो ” | काम के प्रति उसके समर्पण को देख कर राजा भी कुछ न कह पाता और मन ही मन उसकी प्रशंसा करता |                           समय बीता राजमिस्त्री 50 वर्ष  हो चला था | राजा की मृत्यु हो चुकी थी | अब उनका बेटा राजा बन चुका था | वो भी राजमिस्त्री का उतना ही सम्मान करता था |  राजमिस्त्री अभी भी उतनी ही शिद्दत से अपना काम करता था , अभी भी कोई उसके काम में कमी नहीं निकाल; सकता था | पर धीरे -धीरे अब उसे महसूस होने लगा था कि अब उसे काम छोड़ कर अपना समय अपने परिवार के साथ बिताना चाहिए | एक दिन उसने  यही बात राजा से कही ,” राजन , अब  काम करते हुए मुझे लम्बा अरसा हो गया है , अब मैं आराम करना चाहता हूँ | कृपया आप मेरा निवेदन स्वीअर कर के मुझे सेवानिवृत्ति  दे दें |” आप ये पढना भी पसंद करेंगे … भेंड चाल  स्वाद का ज्ञान  खीर में कंकण  वो भी नहीं था  राजा ने  कहा , ” आप ने मेरे  पिता के समय से बहुत अच्छा काम किया है | मेरे मन में आपका बहुत सम्मान है |  मैं आपके निर्णय का स्वागत करता हूँ , पर मेरी एक इच्छा है कि आप एक महल और बना दें | उसके बाद आप सेवा निवृत्त हो जाएँ |” राजमिस्त्री राजा को इनकार न कर सका | उसने महल बनाना शुरू किया | पर इस बार उसे काम खत्म करने की जल्दी थी | उसने देखा नहीं कैसा सामान आ रहा है | अन्य कारीगर उसके बताये अनुसार काम कर रहे हैं या नहीं | खुद के काम भी उसने बेमन से किया | और जैसे -तैसे करके जल्दी से महल बना दिया | उस दिन वो बहुत खुश था | वह राजा के पास गया और राजा से बोला  , ” महाराज आपका महल बन गया है , ये चाभियाँ संभालिये और मुझे सेवा निवृत्त करिए | राजा ने उसे धन्यवाद देते हुए कहा , ” आपने सारी  उम्र बहुत मेहनत से काम किया | मेरे मन में आपके व् आपके काम के प्रति बहुत श्रद्धा है | मैं आपको ये महल मैं आपको सेवानिवृत्ति पर उपहार के रूप में देता हूँ | जाइए और अपने परिवार के साथ इस महल में आराम से रहिये | कहते हुए  उन्होंने राजमिस्त्री को वो चाभियाँ पकड़ा दी | ओह , राजमिस्त्री के दुःख का ठिकाना नहीं रहा | उसने अपनी पूरी जिंदगी में जो सबसे खराब महल बनाया था , अब उसे जिंदगी भर उसी में रहना था | चाभियाँ लेते हुए उसके हाथ काँप रहे थे और होंठ बुदबुदा रहे थे , ” काश मुझे पहले पता होता “|                           मित्रों ये तो एक कहानी है , पर हम भी एक  महल रोज बना रहे हैं वो महल है हमारे रिश्तों का , हमारे सपनों का ,      हमारे कैरियर का , हमारे स्वास्थ्य का … और हमें जीवन      पर्यंत इसी महल  में रहना  है | अगर हर रोज  इसका ध्यान नहीं रखेगे | इसे नहीं तराशेंगे |  तो हम भी उस राजमिस्त्री की तरह बाद में पछतायेंगे और कहेंगे “काश मुझे पहले पता होता “| वैसे तो ये कहानी सबके लिए उपयोगी है पर विशेष रूप से स्टूडेंट्स के लिए उपयोगी है | क्योंकि उनके ये साल बहुत कीमती है | कितने बे लोग हैं जो आज पछताते हैं और ये सोचते हैं की काश तब पढाई कर ली होती |इसलिए आप भी रोज  पढ़िए , मेहनत करिए और अपना खूबसूरत सा महल बनाइये |  नीलम गुप्ता  प्रेरक कथाओं से  यह भी पढ़ें … अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढाये  सिर्फ 15 मिनट -power of delayed gratification क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखते हैं आपको  कहानी  “काश मुझे पहले पता होता    “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Moral Stories, Regret, motivational stories, king, work

भेंड -चाल

                        अरब में एक राज्य था | जहाँ का राजा व् मंत्री दोनों बहुत अच्छे थे व् प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे | उनके राज्य में कोई कष्ट नहीं था | सब सुखी थे व् सब राजा व् वजीर की प्रशंसा किया करते थे | कहते हैं न , कि कोई दुखी व्यक्ति किसी को खुश नहीं देखना चाहता है | उसे लगता है या तो वो खुश हो जाए या सब दुखी हो जाएँ | ऐसे ही एक जादूगरनी थी | जो दूसरे राज्य में रहती थी |  वो अपने जीवन से बहुत दुखी थी | एक बार उसने अपना राज्य छोड़ने का फैसला किया वो टहलते -टहलते  उस राज्य में पहुंची | वहां जा कर उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि वहां हर कोई खुश था | किसी को कोई तकलीफ ही नहीं थी | सब अपने राजा और वजीर के शुक्रगुजार थे और आनंद से जी रहे थे | जादूगरनी ने सोचा कि अगर वो सुखी नहीं तो कोई और कैसे सुखी रह सकता है |  वो सोचने लगी की इस गाँव के लोगों को कैसे दुखी किया जाए | उसने बहुत तलाशा तो उसे एक कुआ मिला जहाँ से सारे गाँव के लोग पानी लेते थे | क्योंकि गाँव में बस वो ही एकलौता कुआ था | जादूगरनी ने अपने जादू उस के पानी पर कर दिया | जादू के अनुसार जो भी उस  कुए का पानी पीएगा वो पागल हो जाएगा | सुबह जब लोग उठे और उन्होंने पानी पीना शुरू किया , तो वो पागल हो गए | उन्हें राज्य में सब कुछ गलत लगने लगा | वो राजा और वजीर की बुराई करने लगे | राजा और वजीर तब तक सो कर नहीं उठे थे | जब वो सो कर उठे तो उन्हें पता चला कि सब लोग असंतुष्ट है | राजा को पता चला कि लोग सुबह से कुए की जगत पर गए उन्होंने पानी पिया और उसके बाद से ही राजा को और उसकी नीतियों को कोसने लगे | राजा ने तुरंत उस कुए से पानी मंगवाया | उन्होंने एक गिलास पानी खुद पिया और एक गिलास पानी वजीर को दिया | राजा और वजीर भी पागल हो गए | शाम तक गाँव में सब कुछ सामान्य हो गया | अब लोग राजा और वजीर को नहीं कोस रहे थे | वो उनकी प्रशंसा कर रहे थे | क्या राजा और वजीर ने सब को ठीक कर दिया था ? नहीं , राजा और वजीर भी पागल हो गए थे |                      मित्रों ये कहानी हमने खलील जिब्रान की कहानियों से ली है | ये कहानी भेड़ -चाल ये बताती है कि हम सब भेड़ों की तरह एक ही दिशा में हांके जाने पर विश्वास करते हैं | भीड़ के साथ अगर गलत भी है तो वो हमें सही लगता है | और ये जानते हुए भी कि सच क्या है हम भीड़ को ही फ़ॉलो करते हैं | क्योंकि हम समूह से अलग सोचना ही नहीं चाहते |  अपना दिमाग लगाना ही नहीं चाहते |  राधा का एक्सीडेंट हुआ | तुरंत ढेर सारी  भीड़ लग गयी | पर किसी ने राधा को नहीं उठाया |  तभी भीड़ में से एक आदमी ने हिम्मत कर के राधा को हॉस्पिटल पहुचाया | आप सोच सकते हैं कि उन लोगों ने क्यों नहीं उठाया , वो भी तो उठा सकते थे | उठा सकते थे , पर उनमें से हर कोई ये सोच रहा था की दूसरे ने नहीं उठाया तो मैं क्यों उठाऊं | कामलो सो लाडलो सड़क पर पड़े पत्थर से ठोकर खा कर भी हम उसे इस लिए नहीं उठाते क्योंकि किसी और ने नहीं उठाया | और सड़क पर पड़ा वो पत्थर वैसे ही पड़ा हुआ और लोगों को ठोकर मारता रहता है | इस दुनिया में बहुत से तानाशाह हुए हैं | जब वो खत्म हुए तो उस देश की जनता से पूंछा गया कि आपने उनके विरुद्ध आवाज़ क्यों नहीं उठाई | तो उन सब का उत्तर होता है ,  ” हमें पता था कि वो गलत कर रहे हैं | फिर भी हम इस लिए नहीं बोले क्योंकि कोई भी नहीं बोल रहा था | ये भेंड चाल  बहुत ही खतरनाक है | आज जमाना सोशल मीडिया का है | फेसबुक व्हाट्स आइप के जरिये झूठी खबर को मिनटों में फैलाया जा सकता है | फेक वीडियो देख कर दंगे भी हो सकते हैं | ऐसे में जरूरी है कि पागल लोगों के साथ   खुद पागल न बने , अपने दिमाग का इस्तेमाल करें व् भेंड चाल में न फंसे | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें ……….. डॉक्टर साहब दूसरी गलती राधा की समझदारी फर्क  आपको  कहानी  ”  भेंड -चाल “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, sheep