डॉक्टर साहब

                                 रमेश जी का बेटा नितिन बहुत तेज बाइक  चलाता था | रमेश जी अक्सर मना करते , ” बेटा इतनी तेज मत चलाया करो कहीं एक्सीडेंट न हो जाए | मेरी  तो जान ही तुममें बसी रहती है | बेटा हँस  कर उनकी बात टाल देता , ” अरे पिताजी , आप खामखाँ में डरते हैं, अब कोई साइकिल की तरह तो बाइक चलाएगा नहीं | फिर मैं तो सावधानी से  चलाता हूँ | तेजी तो हमारी उम्र में होगी ही | अभी १९ का ही तो हूँ आप की तरह कैसे सोच सकता हूँ | रमेश जी उसकी इस बात पर निरुत्तर हो जाते | एक दिन वही  हुआ जिसका डर था | रमेश जी ऑफिस में काम कर रहे थे कि उनके पास वो दुखद फोन आया | फोन हॉस्पिटल से था | बेटे का एक्सीडेंट हो गया था , और वो हॉस्पिटल में  भर्ती था | तुरंत ही ऑपरेशन  होना जरूरी था | रमेश जी आनन् फानन में हॉस्पिटल भागे | बेटा ऑपरेशन थियेटर  में था | अभी ऑपरेशन शुरू नहीं हुआ था क्योंकि हेड डॉक्टर अभी नहीं आये थे | ये सुन कर रमेश जी का दिमाग घूम गया | वो डॉक्टर को गालियाँ बकने लगे | सब डॉक्टर एक जैसे हैं , हराम की कमाई खाते हैं | मरीज का धयान नहीं , जिए या मरे , आप साहब बैठे होंगे क्लब में |   अगर अपना बेटा मर रहा होता तो क्या इतनी लापरवाही दिखाते | इंसानियत तो है ही नहीं | यह भी गुज़र जाएगा वो बडबडा ही रहा था की हेड डॉक्टर आ गए और तेजी से ऑपरेशन थियेटर में घुस गए | ऑपरेशन चार घंटे चला | नर्स ने आकर खबर दी की ऑपरेशन सफल हुआ आपका बेटा खतरे से बाहर है | रमेश जी जो इतनी देर से भगवान् का नाम जप रहे थे , ने चैन की सांस ली | फिर मन ही मन सोचा कि उस डॉक्टर का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उसके बेटे की जान बचायी है | वो बेकार ही उन्हें कोस रहा था | तभी हेड डॉक्टर  ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकले | इससे पहले की रमेश उन्हें धन्यवाद दे पाता , तीर की तरह बाहर चले गए | रमेश को उनका ये व्यवहार बहुत अहंकारी लगा | वो  नर्स के पास जा कर कहने लगे , ” बड़े घमंडी हैं ये डॉक्टर साहब | माना की अपना काम सही कर दिया पर क्या दो मिनट  मरीज के परिवार वालों को सांत्वना नहीं दे सकते थे? अगर अपना बेटा होता तो क्या ऐसे ही करते ? कामलो सो लाडलो नर्स रमेश जी की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोली , ” आपको नहीं पता ? आपके बेटे का जिस के साथ एक्सीडेंट हुआ है वो डॉक्टर साहब का ही लड़का है | आप का बेटा तो तेज गाडी चलाने के बाद भी बच गया पर डॉक्टर साहब का लड़का जो उसकी गाडीकी चपेट में आ गया , नहीं बच सका | वो अब उसी का क्रिया कर्म करने जा रहे हैं | रमेश जी की आँखे छलक गयी और मुंह से बस इतना निकला , ” ओह , डॉक्टर साहब “| ———————————— मित्रों हम अक्सर दूसरों के खिलाफ धरणा  बना लेते हैं | पर  ये जरूरी नहीं कि वोलोग वैसे ही हों | कभी -कभी मन अपने ही शब्दों के कारण आत्मग्लानी से भर उठता है | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … पीली frock तूफान से पहले राधा की समझदारी फर्क  आपको  कहानी  “डॉक्टर साहब  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, doctor, 

राधा की समझदारी

क्या आप जो काम शुरू करते हैं उसे बीच में ही छोड़ देते हैं या पूरा खत्म करते हैं ? अगर बीच मेविन ही छोड़ देते हैं तो राधा की तरह आप को भी ये आदत छोड़ कर समझदारी अपनानी होगी | प्रेरक कथा -राधा की समझदारी  राधा अपने कमरे में बैठी पल्लू से आँसू पोंछ रही थी | बाहर से आने वाले स्वर उसे साफ़ -साफ़ सुनाई दे रहे थे | उसकी सास और ननद मुहल्ले की औरतों से कह  रहीं थी की क्या बहु आई है कोई काम करने का सहूर नहीं है | इसकी माँ तो कह रही थी कि इसे सब काम आते हैं , पर देखो सुबह से कोई काम पूरा नहीं किया है | मुहल्ले की औरतें उफ़ कहते हुए उसकी सास के साथ सहानभूति जता रही थीं | उस पर वही  पूराना वाक्य , ” क्या जमाना आ गया है , आजकल की बहुए तो … |                                      राधा के दिल में हुक सी उठ रही थी | उसकी इच्छा थी कि उसका नाम अच्छी बहुओं में शामिल हो | वो उच्च शिक्षित थी  तब भी सब कुछ तो सिखाया था माँ ने खाना पकाना , कपडे धोना , सीना -पिरोना | उसे भी लगता था कि शिक्षा का अर्थ ये नहीं है कि घर के कामों से परहेज किया जाए , बल्कि उन्हें और अच्छे तरीके से किया जाए | उसने तय कर रखा था वो सब काम करके ससुराल में सबको खुश रखेगी | पर आज पहले ही दिन सब गड़बड़ हो गयी | पापा ये वाला लो सुबह इसी उद्देश्य   से वो नहा -धो कर रसोई में पहुंची | सब्जी काट कट कर आटा  माढने के लिए परात में निकाला ही था कि सासू माँ की आवाज़ आ गयी | बहु पूजाघर साफ़ किया कि नहीं | उसने झट से हाथ धोये और परात को थाली से ढक कर रख दिया फिर पहुँच गयी पूजाघर सफाई करने |  सभी मूर्तियों को  उसने हटा कर मंदिर की सफाई की कागज़ बिछाया | मूर्तियाँ साफ़ करने जा ही रही थीं की पति का फरमान आ गया ,” राधा पहले कपडे धो लेना , मेरी ये शर्ट सूख जाए तो प्रेस कर देना , शाम को यही पहन कर क्लायंट से मिलने जाना है | राधा मंदिर से भागती -भागती कपडे धोने बैठ गयी | तभी देवर ने कहा ,” भाभी ये तो धुलते ही रहेंगे , पहले मेरी मैथ्स का सवाल सुलझा दो , मुझे स्कूल जाना है | राधा कपडे छोड़ गणित के सवाल सुलझा ही रही थी की बाहर ससुर जी की जोर -जोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी , ” ये क्या घर को अजायबघर बना कर रखा है , न अभी तक घर साफ़ हुआ है न कपडे , न खाना बना है नही कुछ और काम , माँ ने कुछ सिखा के नहीं भेजा | राधा को ये बात बहुत चुभी पर सच्चाई ये थी कि उसने सुबह से कोई काम पूरा नहीं किया था | भले ही उसका उद्देश्य  सबको खुश करने का था पर काम तो कोई भी नहीं हुआ | जब उसके पति मीत को अपने पिता के गुस्से के बारे में पता चला तो वो राधा के पास आया और उसे प्यार से समझाने लगा , ” राधा तुमने हर काम शुरू किया पर उसे बीच में ही छोड़ दिया  , कोई भी काम पूरा न होने से एक दिन में ही पूरा घर बेतरतीब हो गया | भले ही तुम्हारा उद्देश्य सबको खुश करने का हो पर तुमने सबको नाराज़ ही किया | बेहतर होता कि तुम सुबह से जो काम हाथ में लेतीं उसे पूरा करके दूसरा काम शुरू करतीं | जैसे पहले मदिर साफ़ कर रसोई में जाती , वहां खाना बना कर छोटे भाई का गणित का सवाल हल करती फिर सफाई खत्म करके कपडे करती तो न सिर्फ सारे काम पूरे होते बल्कि घर की व्यव्ष्ठ भी सही तरीके से चलती | स्वाद का ज्ञान बात राधा को समझ में आ गयी कि हर काम को अधूरा छोड़ने के कारण ही सारी  अव्यवस्था फैली है | दूसरे दिन से राधा ने मीत के हिसाब से काम शुरू किया | अगर किसी ने बीच में किसी और काम के लिए पुकारा भी तो उसने आदर पूर्वक कहा कि पहले मैं ये काम कर लूँ फिर करती हूँ | पूरा काम बहुत व्यवस्थित तरीके से चला | शाम तक सभी लोग राधा की तारीफ़ करने लगे | ———————————————- दोस्तों राधा द्वारा बस एक दिन किसी काम को पूरा न करने के कारण घर में कितनी अव्यवस्था फ़ैल गयी | पर हम में से कई लोग जीवन में कई काम शुरू करते हैं पर उसे पूरा न कर के दूसरा काम शुरू कर देते हैं तो जिंदगी में कितनी अव्यवस्था  फ़ैल जाती होगी | ज्यादातर जो लोग सफल हुए हैं उन्होंने किसी काम को बीच में न छोड़ कर उसके काम करने के तरीकों में बदलाव किया है , तब तक किया है जब तक उन्हें सफलता नहीं मिल गयी | अगर आप भी अपने जीवन को व्यवस्थित करना चाहते हैं तो किसी काम को बीच में छोड़े | जीवन में सफलता के लिए राधा की तरह समझदारी अपनाने की जरूरत है | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … पीली frock तूफान से पहले यकीन खीर में कंकण आपको आपको  कहानी  “राधा की समझदारी  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, work smart, work

फर्क

                                सुधाकर बाबू का किस्सा पूरे  ऑफिस में छाया हुआ था | सुधाकर बाबू की अखबार के एक अन्य कर्मचारी से ठन  गयी थी | सुधाकर बाबू प्रिंटिंग का काम देखते थे और दीवाकर जी अखबार का पहला पेज डिजाइन करता थे  | सुधाकर बाबू की दिवाकर जी से कैंटीन में चाय समोसों के साथ गर्मागर्म बहस हो गयी |  यूँ तो दोनों की अपने -अपने पक्ष में दलील दे रहे थे | इसी बीच  सुधाकर बाबू ने दिवाकर जी पर कुछ  ऐसी फब्तियां कस दी कि दिवाकर जी आगबबबूला हो गए | तुरंत सम्पादक के कक्ष में जा कर लिखित शिकायत कर दी कि जब तक  सुधाकर बाबू उनसे माफ़ी नहीं मांगेंगे तब तक वो अखबार का काम नहीं संभालेंगे, छुट्टी ले कर घर पर रहेंगे | संपादक जी घबराए | दिवाकर जी पूरे दफ्तर में वो अकेले आदमी थे जो अख़बार का  पहला पेज डिजाइन करते थे | पिछले चार सालों  में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली थी | कभी छुट्टी लेने को कहते भी तो अखबार के मालिक सत्यकार जी उन्हें मना लाते | सम्पादक जी ने हाथ -पैर जोड़ कर उन्हें हर प्रकार से मनाने की कोशिश की पर इस बार वह नहीं माने | अगर कल का अखबार समय पर नहीं निकल पाया तो लाखों का नुक्सान होगा | कोई और व्यवस्था भी नहीं थी |  उन्होंने सुधाकर जी को बुलाया | पर वो भी  माफ़ी मांगने को राजी न हुए | मजबूरन उन्हें बात मालिक तक पहुंचानी पड़ी | बात सुनते ही अखबार के मालिक ने आनन् -फानन में सुधाकर जी को बुलाया | प्रायश्चित इस बार सुधाकर जी भी गुस्से में थे | उन्होंने मालिक से कह दिया की बहस में कही गयी बात के लिए माफ़ी वो नहीं मांगेंगे | क्योंकि बहस तो दोनों तरफ से हो रही थी | दिवाकर जी को बात ज्यादा बुरी लग गयी तो वो क्या कर सकते हैं | आखिर उनकी भी कोई इज्ज़त है वो यूँही हर किसी के आगे झुक नहीं सकते | सत्यकार जी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की |उन्होंने कहा कि आपसी विवाद में अगर किसी को बात ज्यादा बुरी लग गयी है तो आप माफ़ी मांग लें | दिवाकर जी यूँ तो कभी -किसी से माफ़ी माँगने को नहीं कहते |  उन्होंने सुधाकर  जी को लाखों के नुक्सान का वास्ता भी दिया |  पर सुधाकर जी टस से मस न हुए | उन्होंने इसे प्रेस्टीज इश्यु बना रखा था | उनके अनुसार वो माफ़ी मांग कर समझौता नहीं कर सकते | दूसरा फैसला अंत में सत्यकार जी ने सुधाकर जी से  पूंछा ,  ” आपकी तन्ख्य्वाह कितनी है ? सुधाकर जी ने जवाब दिया – १५००० रुपये सर सत्यकार जी बोले , मेरे ऑफिस का १५ ०००० करोंण का टर्नओवर हैं | पर मैं विवादों को बड़ा बनाने के स्थान पर जगह -जगह झुक जाता हूँ | शायद यही वजह है कि हमारे बीच  १५००० रुपये से १५००० करोंण का फर्क है | देर शाम को दिवाकर जी अपनी टेबल पर बैठ कर अखबार का फीचर डिजाइन कर रहे थे और सुधाकर जी  टर्मीनेशन लैटर के साथ ऑफिस के बाहर निकल रहे थे | विवाद को न खत्म करने की आदत से उनके व्  सत्यकार जी के बीच सफलता का फर्क कुछ और बड़ा हो गया था | बाबूलाल मित्रों एक कहावत है जो झुकता है वही उंचाई  पर खड़ा रह सकता है | छोटी -छोटी बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने वाले जीवन में बहुत ऊंचाई पर नहीं पहुँच पाते | यह भी पढ़ें …….. घूरो , चाहें जितना घूरना हैं गैंग रेप   अनावृत  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क आपको आपको  कहानी  “राग पुराना”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, hindi stories, difference, short stories in hindi

किसान और शिवजी का वरदान /kisan aur shivji ka vardan

                                             एक किसान था | वो बड़ी मेहनत से खेती करता पर फसल उसकी इच्छा के अनुरूप  नहीं होती थी | कभी बारिश कम होती , कभी ज्यादा , कभी गर्मी ज्यादा कभी कम | किसान परेशांन रहता | एक दिन उसने सोचा कि अपनी शिकायत भगवान् शिव से की जाए | आखिर ये दुनिया वही  तो चला रहे हैं , फिर उन्हें इतनी समझ नहीं आई कि प्रकृति किसान के अनुसार होनी चाहिए आखिर किसान खेती करते हैं उन्हें फसल उगानी होती है तो धूप  , पानी , बादल किसान की मर्जी पर चलने चाहिए | ऐसा सोच कर वो भगवान् शिव के पास गया | उसने भगवान् से कहा ,” प्रभु आप तो साधू सन्यासी आदमी , आप को क्या पता की  खेती कैसे करते हैं , ये तो किसानों को पता है | फिर भी आप ने प्रकृति का सारा उत्तरदायित्व अपने हाथ में ले लिया है | उससे ही सब गड़बड़ हो गयी | जब हमें धूप  चाहिए होती है तो बादल बरसते हैं और जब बादल चाहिए होते हैं तो धूप  खिल जाती है | ऐसे तो हमारा खेती करना मुश्किल हो रहा है | ऐसा करिए आप  प्रकृति का नियंत्रण हमारे हाथ में दे दीजिये | भगवान् बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा भगवान् शिव उस समय खुश थे | उन्होंने कहा ,  ” तथास्तु | किसान ख़ुशी ख़ुशी घर आया |  अगले दिन वो खेत पर गया | उसने बादलों को बुला कर कहा ,  ” बरसो “ बादल बरसने लगे | किसान ने जब देखा की जमीन में पर्याप्त पानी भर गया है तो उसने बादलों को कहा , ” रुको , बादलों ने बरसना बंद कर दिया | अब किसान ने खेत की जुताई की | बीज बोये | किसान ने कहा धूप  और सूरज चमक उठा | अगले दिन किसान खेत देखने गया | बहुत तेज धूप खिली हुई थी | किसान को कुछ असुविधा हुई , उसने कहा बादल और बादल छा गए उसने आराम से खेत में काम किया | कहने का मतलब ये था कि वो आराम से अपनी मर्जी के अनुसार धूप और पानी को लाता | जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी   उस साल उसकी मक्के की फसल बहुत अच्छी हुई | खूब ऊँचे – ऊँचे पेड़ पर मक्के भी बहुत लगे थे | किसान बहुत खुश था | वो मन ही मन सोचता देखा , भगवान् ही सब गड़बड़ कर रहे थे | मेरे हिसाब से प्रकृति चली तो सब ठीक हो गया | फसल भी अच्छी हुई | जिस दिन फसल काटने का समय था | किसान नहा धो कर केट पर पहुँचा | उसने भुट्टे को देखा , उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | उसमें सारे दाने छोटे व् अविकसित थे | किसान का सर चकरा गया  | ये कैसे हो सकता है | बादल , वर्षा धूप सब तो उसके नियंत्रण में थी , फिर दाने अविकसित कैसे रह गए | किसान ने निश्चय किया कि वो अपने प्रश्न का उत्तर ईश्वर से अवश्य लेगा | वो भगवान् शिव के पास पहुंचा | शिव जी उस समय समाधी लगाये हुए थे | किसान ने वहीँ रुक कर इंतज़ार करने का निश्चय किया |आखिर उसे अपने प्रश्न  का उत्तर तो चाहिए ही था |  वर्षों बीत गए | किसान के खेत भी सूख गए पर वो वही अपने प्रश्न के उत्तर का इंतज़ार करता रहा | आखिरकार भगवान् शिव ने आँखें खोली | उसके वहां आने का प्रयोजन पूंछा | किसान ने साड़ी बात कह दी | भगवान् शिव मुस्कुरा कर बोले ,” तुम्हारे हाथ में प्रकृति थी | तुमने उतनी ही धूप , वर्षा , छाया की जितनी पौधों को जरूरत थी | पौधे निश्चिन्त हो गए | उन्हें लगा उन्हें तो पानी आसानी से मिल रहा है तो जड़ों को नीचे और नीचे ले जाने की मेहनत क्यों की जाए | उसी वजह से पौधों को पोषक तत्व कम मिल पाए और उनके दाने अविकसित ही रह गए | मित्रों , जीवन की कठनाइयां जीवन को बेहतर बनाने के लिए होती है | कठनाई रहित जीवन हमें कहीं सुविधायें तो देता है पर हमारा विकास रोक देता है अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … एक चुटकी जहर रोजाना दूसरी गलती प्रश्नपत्र शब्दों के घाव आपको    “किसान और शिवजी का वरदान “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read,  stories,stories in Hindi, motivational stories in hindi, blessings, farmer, God, shiva

जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी

अमेरिका की जनरल मोटर्स कंपनी अपनी श्रेष्ठ कारों के लिये प्रसिद्ध हैं कस्टमर सेटिस्फेक्शन उनका मुख्य उद्देश्य रहा है  |किसी भी कस्टमर की शिकायत पर वो सबसे पहले  ध्यान देते हैं ,परंतु एक बार शिकायत ऐसी आयी की उन्हें वो शिकायत नहीं मज़ाक लगा |पर वो वास्तव में शिकायत थी |आइये जानते हैं उस रोचक शिकायत और उसके हल का पूरा किस्सा …  जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी     एक बार की बात है अमेरिका की प्रसिद्द जेनरल मोटर्स को इ मेल पर एक शिकायत मिली | शिकायत बहुत अजीब थी | शिकायत कर्ता ने लिखा था कि आप की गाडी को वैनिला आइस क्रीम से एलर्जी है क्या ?   कंपनी को ये मज़ाक लगा | उन्होंने शिकायत को नज़र अंदाज़ करने की सोची | कुछ दिन बाद फिर वही ईमेल आया ,”कृपया बताएं आपकी कंपनी की कारों को वैनिला आइस क्रीम से कुछ एलर्जी है क्या? कस्टमर पर बहुत ध्यान देने की अपनी नीति के चलते इस बार की शिकायत  की उन्होंने अनदेखी नहीं। की ,तुरंत उस व्यक्ति को ईमेल किया गया कि आपको ऐसा क्यों लगता है उस व्यक्ति ने कहा कि मैं रोज रात को डिनर के बाद अपनी फैमिली को कार से पास की आइस क्रीम शॉप में ले जाता हूँ ,हम हर रोज अलग़ अलग फ्लेवर की आइस क्रीम खाते हैं |   आश्चर्य की बात है कि जिस दिन हम वैनिला आइस क्रीम खाते हैं तो कार स्टार्ट होने का नाम ही नहीं लेती है | ऐसा एक बार नहीं कई बार आज़माया है |तभी मैंने आपसे पूंछा कि आपकी कंपनी की कार को वैनिला आइसक्रीम से कुछ एलर्जी है क्या ? जब वैनिला की एलर्जी पर विचार को जेनेरल मोटर्स ने भेजा इंजिनीयर  अब कंपनी को समस्या गंभीर लगी ,उन्होंने मीटिंग बुलाई ,विचार विमर्श किया व् एक सीनियर इंजिनीयर को उसके घर के पास भेजा गया ,ताकि सच्चाई जान सकें| उस रात खाना खाने के बाद वो लोग फिर आइसक्रीम खाने गए पर इस बार गाड़ी इंजिनीयर चला रहा था| वो लोग आइसक्रीम की दुकान तक गए ,उनहोंने चॉकलेट आइसक्रीम  ली ,गाडी स्टार्ट की और गाडी फुर्र से चल दी | दूसरे दिन फिर वो लोग आइसक्रीम शॉप पर गए , उन्होंने मैंगो फ्लेवर की आइसक्रीम ली और कार स्टार्ट की और फिर चार फुर्र से स्टार्ट हो गयी | अभी तक कोई समस्या दिख ही नहीं रही थी | भगवान् बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा अब तीसरे दिन उन लोगों ने वैनिला आइस क्रीम ली , गाडी में बैठे उसे स्टार्ट करने की कोशिश की और कार है कि स्टार्ट होने का नाम ही न लें | कितनी जद्दोजहद की पर कार काफी देर बाद ही स्टार्ट हो पायी | ऐसे में उस व्यक्ति का ये समझना कि कार को वैनिला आइस क्रीम से एलर्जी है , गलत नहीं कहा जा सकता | पर क्या कोई इंजिनीयर ऐसा सोच सकता है | जाहिर सी बात है उसे समस्या का हल ढूंढना था क्योंकि वो जानता था कि भला कार  को भी कहीं एलर्जी हो सकती है | इंजिनीयर ने ढूँढा एलर्जी का समाधान                                      उनलोगों को छोड़ कर इंजिनीयर वापस वहीं आ गया और समस्या पर सोचने लगा | अन्तत : उसे हल मिल गया | दरसल उस आइस क्रीम शॉप में बहुत भीड़ रहती थी | यूँ तो उसकी सब आइसक्रीम बिकती थी पर  वैनिला आइसक्रीम सबसे ज्यादा बिकती थी | इस कारण शॉप कीपर ने वैनिला आइसक्रीम का एक अलग काउंटर काफी  आगे खोल दिया जिससे ग्राहकों को आसानी से अपनी मंपसद आइसक्रीम मिल जाए और उन्हें हर प्रकार के फ्लेवर की चाहत रखने वालों से जूझना न पड़ें |                                 इस बात पर ध्यान जाते ही इंजिनीयर का ध्यान इस बात पर भी गया कि वैनिला का वो काउंटर कार पार्किंग के बहुत पास है | जल्दी से आइसक्रीम मिल जाने और उसे कार तक जल्दी से ले आने में बहुत कम समय लगता था , जबकि दूसरे फ्लेवर की आइसक्रीम लाने में ज्यादा समय लगता था | अब इंजिनीयर को पूरी बात समझते देर न लगी | दरअसल कार को बंद करने के बाद जल्दी स्टार्ट करने पर वो इसलिए स्टार्ट नहीं होती थी क्योंकि  उसका इंजन जल्दी ठंडा नहीं हो पाता था | उसमें हीट ऐब्जोर्ब करके उसे जल्दी ठंडा करने के लिए कोई टेक्नीक इस्तेमाल करना बहुत जरूरी था | इंजिनीयर ने ये समस्या कंपनी में जा कर बताई | इस पर काम शुरू हुआ और  कार का इंजन जल्दी ठंडा होने की तकनीक विकसित की गयी | फिर वैनिला आइसक्रीम से कार की एलर्जी भी खत्म हो गयी |  अंधविश्वास की जगह ढूँढें समाधान   दोस्तों इस कहानी में सबसे मजेदार शिक्षा ये मिलती है कि अकसर हम ऐसी बैटन में अन्धविश्वास के शिकार हो जाते हैं | ऐसे में या तो हम वैनिला आइसक्रीम खाना छोड़ देते या कार को बेंच कर कोई दूसरी कार खरीदते क्योंकि हमें लगता कि चार पर कोई भूतिया असर हैं जिस कारण वो अजीब व्यवहार कर रही है | इंजिनीयर ने जैसे उस समस्या को गहराई से सोचा और उसका सामाधान निकाला हमें भी अन्धविश्वास की जगह वजह खोजने पर काम करना चाहिए | अटूट बंधन परिवार तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज समय पर निर्णय का महत्व प्रश्नपत्र शब्दों के घाव आपको    “जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read,  stories,stories in Hindi, motivational stories in hindi, Superstition

प्रश्नपत्र

                                        स्टूडेंट्स ने साल भर कितनी पढाई की है और उस पढाई से उन्होंने क्या ज्ञान हासिल किया है इसे परखने का तरीका है परीक्षा , जिसमे प्रश्नपत्र में पूछे  गए प्रश्नों को पढ कर उत्तर देना होता है उसी के आधार पर उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण किया जाता है | परन्तु क्या कोई ऐसा प्रश्न पत्र हो सकता है जिसमें आप कुछ भी लिखे आपका अनुतीर्ण होना निश्चित हो | आइये  जानते हैं … motivational story-question paper चार दोस्त थे, सुधीर , दीपक , मोहित और अजय | सारा साल वो लग कर पढाई करने के स्थान पर अपना समय खेल कूद और इधर -उधर बर्बाद करते रहे | अर्धवार्षिक परीक्षा में कई विषयों में उनके नंबर इतने कम थे कि अगर वार्षिक परीक्षा में नंबर कम आये तो उनका फेल होना निश्चित था | वार्षिक परीक्षाएं सर पर थी |  वो चारों  बहुत भयभीत थे , सवाल एक ही था कि कैसे पास हुआ जाए | अन्तत : उन्होंने एक योजना बना ली | जिस दिन उनका इम्तिहान था , उन्होंने खुद को मिटटी में लपेटा | सर में बालों में खूब मिटटी लगाईं और एग्जाम से आधा घंटा लेट कॉलेज पहुंचे | वे सीधे कॉलेज के डीन  के कमरे में गए और उनसे बोले ,” सर ,  हम सही समय पर एग्जाम देने आ रहे थे |  हमारे एरिया के पास एक दलदल वाला स्थान है वहां एक बुजुर्ग की कार  फंस गयी | हमने जा  कर देखा , वो कार की सीट पर बैठे तेजी से अपना दिल दबा रहे थे | हमें समझते देर नहीं लगी कि उनको हार्ट अटैक आया है |  उनको हॉस्पिटल तक पहुँचाने के लिए भी कोई और सवारी आस -पास नहीं थी | हमने पूरी ताकत लगा कर  कार को दलदल से निकाला , और  पास रहने वाले लोगों से उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाने की गुहार लगायी | क्योंकि वो बस्ती गरीब लोगों की है ज्यादातर लोगों को कार चलाना नहीं आता हैं , इसलिए कोई ड्राइवर नहीं मिला |  तब तक हमने अंकल को फर्स्ट ऐड दिया , तभी एक व्यक्ति उन्हें कार चला कर ले जाने के लिए तैयार हो गया | हमारा एग्जाम था इसलिए हम उस व्यक्ति को कार  की चाभियाँ दे कर एग्जाम देने चले आये | फिर भी ऐसी मानसिक स्थिति में हम एग्जाम देने में असमर्थ हैं | डीन ने थोड़ी देर तक उन्हें देखा , फिर उन्हें एक हफ्ते बाद एग्जाम देने को कहा | डी न  ने ये भी कहा कि आपका प्रश्न पत्र फिर से सेट होगा | चारों ने हाँ कर दी | वो बहुत खुश थे , उनकी योजना सफल हुई थी | हफ्ते भर चारों ने दिन -रात एक कर खूब पढाई की | वो नियत समय पर कॉलेज पहुंचे | सब को पास  होने की पूरी उम्मीद थी | वो संडे का दिन था | वैसे भी पूरा कॉलेज खाली था | डीन  ने उनको अलग -अलग कमरों में भेज दिया | सबके सामने प्रश्न पात्र रखे गए | प्रश्नपत्र देख कर चारों के होश उड़ गए | प्रश्न पत्र इस प्रकार था … परीक्षार्थी का  नाम – पहला प्रश्न – कार किस रंग की थी ? दूसरा प्रश्न – कार के कौन से पहिये दलदल में फंसे थे ? तीसरा प्रश्न -कार  चलाने वाल्रे बुजुर्ग ने कौन से रंग की शर्ट पहनी थी ? चौथा प्रश्न -क्या कार में कोई फर्स्ट ऐड किट थी | पांचवाँ प्रश्न – जो व्यक्ति उस बुजुर्ग को ले कर गया था , क्या आपने उसका नाम पूंछा था | और चारों महज इसलिए फेल हो गए क्योंकि उन्होंने प्रश्नों के उत्तर अलग -अलग दिए थे |                        ये जिंदगी एक परीक्षा ही है , जो झूठ के सहारे नहीं पास की जा सकती | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “प्रश्नपत्र  ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें   filed under- examination, exam, question paper, motivational stories in hindi, truth

समय पर निर्णय का महत्व

                          क्या आप के साथ ऐसा होता है कि आप समझ रहे हैं की आप का वजन बढ़ रहा है पर आप ऑयली डाईट से हेल्दी डाईट पर शिफ्ट नहीं हो पा रहे हैं | आप का कोई रिश्ता इस लायक नहीं है कि उसे झेला जाए पर आप उसे झेल रहे हैं जबकि आप का मानसिक स्वास्थ्य रोज बिगड़ रहा है | आप को कोई जरूरी काम करना है पर आप आज कल पर टाल रहे हैं |  जब आप कहते हैं अब  बस … बहुत हुआ अब सही समय पर सब काम करेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | समय पर निर्णय का महत्व  एक बार की बात है एक गैस के बर्नर पर एक बहुत बड़ा पानी से भरा भगौना रखा था |एक मेंढक जो किचन के पास लॉन में फुदक रहा था | फुदकते -फुदकते किचन में चला आया | किचन में वो उस पानी के भगौने में कूद गया जो गैस बर्नर पर रखा था | मेंढक को पानी में छप -छप करने में बहुत मज़ा आ रहा था | वो काफी देर तक खेलता रहा , फिर उसे हल्की सीझपकी आ गयी | तभी किचन में रसोइया आया उसने मेंढक को देखे बिना ही गैस का बर्नर धीमी आंच पर ऑन कर दिया और दूसरे कामों के लिए किचन से बाहर चला गया | मेंढक को बढ़ते तापमान का अंदाजा हुआ तो उसने अपने शरीर के तापमान को भी उसके अनुसार बढ़ा लिया | थोड़ी देर में तापमान और बढ़ा , मेंढक ने फिर अपना तापमान बढ़ा लिया और पानी के तापमान से अनकुलन कर लिया , उससे सोचा सब ठीक है अब वो इस पानी में आराम से रह सकता है | क्या आप घर से काम करते हैं जब तापमान और बढ़ा तो भी मेंढक ने बाहर निकलने के स्थान पर अपना शारीरिक तापमान उसी बर्तन के पानी के तापमान के  अनुकूल कर लिया और आराम से पानी में तैरता रहा | एक समय ऐसा आया कि तापमान इतना बढ़ गया कि वो अपने शरीर का तापमान उसके अनुकूल नहीं कर सकता था | लिहाज़ा उसने भगौने को छोड़ कर बाहर कूदने का प्रयास किया | परन्तु वो अपने प्रयास में असफल रहा क्योंकि उसने अपनी सारी ताकत  अपने शरीर का तापमान पानी के तापमान के अनुकूल बनाने में लगा दी थी | बाहर निकलने के लिए जिस ताकत की जरूरत थी अब वो उसमें नहीं थी | वो अपने प्रयास में विफल होता गया और पानी काताप्मान बढ़ता गया | एक समय ऐसा आया कि पानी का तापमान इतना बढ़ गया कि वो उसे सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गयी | काश उसने समय कर पानी से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया होता | मित्रों ये सिर्फ उस मेंढक के साथ ही नहीं हुआ | हम सब जहाँ जिस परिस्थिति में हैं , ये समझते हुए भी कि आगे खतरा आ सकता है उसी में फंसे रहते हैं | बाहर निकलने का निर्णय नहीं लेते | धीरे -धीरे परिस्थितियाँ इतनी खराब हो जाती हैं  पर अब हम उन्हीं में फंस कर रह जाते हैं , बाहर निकल ही नहीं सकते व् वहीँ घुटते रहने को विवश होते हैं | 1) नीलम को मेडिकल की पढाई करने का मन नहीं था , पर पापा की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उसने मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी शुरू की | वो बहुत कोशिश करती रही कि उसका पढने में मन लगे , पर सेल्फ मोटिवेशन के आभाव में वो लगातार पिछडती ही रही | १२ के बोर्ड एग्जाम तक नौबत ये आई कि उसने एंट्रेंस देने से मना  किया , उसने कहा कि अब मैं एंट्रेंस नहीं दूँगी मैं सिर्फ १२ th तक की पढाई करुँगी ताकि मेरे १२ th बोर्ड में अच्छे नंबर आ जाएँ | तब तक उसके पिता के बहुत पैसे लग गए थे | उनको बहुत निराशा हुई , उनकी निराशा देख कर नीलम ने फिर फैसला बदला | लिहाज़ा उसके बोर्ड में बहुत कम नंबर आये और मेडिकल में भी सेलेक्शन नहीं हुआ , जिस कारण उसका कॉलेज में एडमिशन भी नहीं हो पाया | अगर वो पहले बता देते तो कम से कम वो किसी अच्छे कॉलेज से पढ़कर अपना ड्रीम जॉब टीचिंग पा सकती थी | टेंशन को न दें अटेंशन 2)मृदुल जी के चेहरे पर छोटी सी गांठ उभर आई थी | वो तम्बाकू भी खाते थे इसलिए परिवार वालों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने  को कहा | मृदुल जी ने मना  कर दिया | उन्होंने कहा ,” देखो मैं हट्टा -कट्टा हूँ | एक गाँठ मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती | धीरे -धीरे गांठ थोड़ी बड़ी होती गयी , और मृदुल जी उसके साथ  अपने दैनिक स्वास्थ्य की तुलना करके उसकी अवहेलना करते रहे | बाद में अचानक गांठ इतनी तेजी से बढ़ी की डॉक्टर के पास जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा | डॉक्टर ने टर्मिनल स्टेज कैंसर बताया | उसके ठीक दस दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी | अगर वो गाँठ के पड़ते ही डॉक्टर को दिखा लेते तो आज वह अपने परिवार के बीच होते | 3) कुछ लोग ख़राब शादी में केवल ये सोच कर टिके रहते हैं कि एक दिन सब अच्छा हो जाएगा | परन्तु परिस्थितियाँ बिगडती जाती हैं | जैसी रीना जी शुरू से ही समझ गयी थी कि शक्की पति के साथ निभाना मुश्किल है परन्तु वो इस  बात का इंतज़ार कर सहती रहीं की सब कुछ ठीक होगा | उन्होंने घर में खुद को कैद कर लिया पर पति का शक फिर भी नहीं गया | एक दिन पति ने शक के कारण उनकी हत्या कर दी | पति को जेल हो गयी व् दोनों बच्चे अनाथ हो कर सड़क पर आ गए |ये सच है की माता -पिता का तलाक होना बच्चों के लिए बुरा है पर उनका भयानक लड़ते झगड़ते रिश्ते में बने रहना और भी बुरा है | कई बार लोग खराब शादी से सिर्फ इसलिए नहीं निकलते कि बच्चों पर ख़राब असर पड़ेगा परन्तु स्थितियां इतनी ज्यादा बिगडती हैं … Read more

मेरी कीमत क्या है ?

                                         हर माँ अपने बच्चे से मेरा अनमोल रतन कहती है | हर व्यक्ति अपने परिवार के लिए बेशकीमती होता है, पर दुनिया उसे ऐसा नहीं मानती है | हर चीज को तोल -मोल कर खरीदने वाली दुनिया की नज़र में इंसान की भी कीमत है | ऐसे में अगर एक बच्चा अपने दादाजी के पास पूंछने चला जाता है कि मेरी कीमत क्या है? तो आश्चर्य की क्या बात है | एक प्रेरणादायक कहानी – प्रेरक कथा – मेरी कीमत क्या है ? एक बच्चा जो रोज अपने बड़ों को चीजों को कीमत के अनुसार खरीदते हुए देखता था , उसने एक दिन अपने दादाजी से पूंछा ,” दादाजी , दादाजी , मेरी कीमत क्या है ? दादाजी  उस समय बागवानी कर रहे थे , उनकी नज़र बाग़ में पड़े एक पत्थर पर थी | वो उसे  हाथो में उठा कर बहुत देर से देख रहे थे | बच्चे का प्रश्न सुन कर उन्होंने वो पत्थर अपने पोते को देते हुए कहा कि जाओ ये  पत्थर मार्किट में  ले जाओ और लोगों को दिखाओ , कोई इसे खरीदने को कहे तो कुछ बोलना नहीं बस दो अंगुली दिखा देना , वो जितनी कीमत बताये उसे आ कर मुझे बताना | बच्चा वहां जा कर खड़ा हो गया | एक औरत ने उसे देखा | उसने बच्चे से पूंछा तुम क्या ये पत्थर बेचने आये हो | बच्चे ने हाँ में सर हिलाया | वो बहुत देर तक उस पत्थर को देखती रही फिर बोली इस पत्थर को मैं  खरीदूंगी | मैं से अपनी सेंटर टेबल पर रखी प्लेट में और पत्थरों के साथ रखूंगी | इससे मेरी सेंटर टेबल की ख़ूबसूरती बढ़ जायेगी | तुम्हें इसके लिए कितने पैसे चाहिये? पढ़िए -गलतियों की सजा दें या माफ़ करें बच्चे ने दादाजी के कहे अनुसार दो अंगुलियाँ दिखा दी | महिला ने हंस कर कहा … ओह , ठीक है मैं तुम्हे इसके दो रूपये दूँगी | बच्चा पत्थर ले कर दादाजी के पास चला आया और उन्हें सारी बात बताई | दादाजी  ने कहा ,” अब मैं चाहता हूँ कि तुम इस पत्थर को म्यूजियम में ले जाओ |कोई इसकी कीमत पूंछे तो बस दो अंगुलियाँ दिखाना | बच्चा पत्थर ले कर भागता हुआ म्यूजियम चला गया | वहां  वह उस पत्थर को लेकर खड़ा हो गया | वहां कई आदमियों ने उस पत्थर को देखा | एक आदमी ने खरीदने की इच्छा जाहिर करी और उस बच्चे से उसकी कीमत पूँछी | बच्चे ने कुछ कहा नहीं बस दो अंगुलियाँ दिखा दी | आदमी ने कहा ठीक है , मैं इसके लिए तुम्हें २०० रुपये दूंगा | बच्चा फिर पत्थर ले कर दादाजी के पास आ गया | दादाजी ने कहा अब बस आखिरी बार मैं तुम्हे ये पत्थर ले कर शहर की सबसे प्रसिद्द ज्वेलरी शॉप में  भेज रहा हूँ , पर वहां भी तुम्हें बस अंगुलियाँ दिखानी हैं , कुछ बोलना नहीं है | बच्चा पत्थर ले कर चला गया | वहां उसने वो पत्थर दूकान के मालिक को दिखाया | दुकान का मालिक पत्थर देख कर बोला ,” अरे ये तो बहुत दुर्लभ पत्थर है , ये तुम्हें कहाँ से मिला ? मैं इसे लूँगा , तुम्हे इसकी कितनी कीमत चाहिए | पढ़िए -संता क्लॉज आयेंगे बच्चे ने फिर दो अंगुलियाँ दिखा दी | दुकान के मालिक ने कहा ,” मैं इसे २००००० रुपये में लूँगा | बच्चा आश्चर्य चकित हो गया | वो फिर पत्थर ले कर दौड़ता हुआ घर आया | उसने दादाजी को पत्थर देते हुए सारी घटना बतायी | दादाजी बोले ,” बेटा क्या अब तुम्हें समझ आ गया कि तुम्हारी कीमत क्या है ?  हम सबके अन्दर एक कीमती हीरा है , लेकिन अगर तुम अपने को ऐसे लोगों से घिरा रखोगे जो तुम्हे केवल दो रुपये का समझते हैं तो तुम जिंदगी भर अपने को दो रूपये का समझते रहोगे | इसलिए अपनी प्रतिभा का विकास करते हुए ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ लोगो की नज़र में तुम बेशकीमती हो , वहीँ तुम्हारी कद्र होगी और वहीँ पर तुम अपने जीवन की सही वैल्यू  पाओगे | इसलिए याद रखना कि हर कोई बेशकीमती है बस फर्क हमारे आस -पास के लोगों के नज़रिए का होता है | अब बच्चे को अपनी कीमत समझ आ गयी थी | –                     ———————————————————————– एक नज़र अपनी कीमत पर –  मित्रों अब जरा इसे अपने ऊपर रख कर समझिये | मान लीजिये आपको बागवानी बहुत अच्छे से आती है , लेकिन आप ऐसे मुहल्ले में रहते हैं जहाँ किस के पास लॉन तो छोडिये गमला रखने का भी स्थान नहीं है | अब आप लाख बताते रहे कि इस पौधे में ये खाद पड़ती है , वो बेल ऐसे लगती है , ये पौधा अब फल देता है , लोग आपकी बात सुनेगे ही नहीं , उन्हें लगेगा आप किताब से पढ़ कर ज्ञान झाड़ते हैं और उनका समय बर्बाद करते हैं | , उनका समय कीमती है और आप फ़ालतू हैं इसलिए बस गप्प हांकते हैं | अब राधा और सोनिया को ही लें | राधा  और सोनिया दोनों कोखाना बनाने का शौक था | दोनों अक्सर नयी -नयी डिश बना कर देखती | बड़े होने पर राधा ने एक होटल में और सोनिया ने एक हॉस्पिटल में कुक की नौकरी शुरू कर दी | राधा जब भी नयी डिश बनती , या पुरानी डिश को अच्छे से सजाती उसे खूब वाहवाही मिलती | उसका काम लोगों को और होटल के मालिक को नज़र आने लगा | उसकी तनख्वाह बढ़ने लगी | कुछ समय बाद उसने उससे बड़े होटल में नौकरी शुरू कर दी … फिर उससे बड़े .. | सोनिया मरीजों के लिए खाना बनाती | उसे ज्यादातर मूंग की दाल की खिचड़ी , दलिया , दाल का पानी बनाना पड़ता | क्योंकि मरीजों को भूंख नहीं लगती वो उसके खाने में कमी निकालते ( हमने भी अपने घरों में ऐसे  बुजुर्ग देखे हैं जो बीमार होने पर घर की औरतों को दोष … Read more

भगवान बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा

              लोक कथाएँ , जिन्हें दादी नानी की कहानियाँ भी कहते हैं , बहुत खूबसूरत तरीका होता है जिसमें बच्चों को कथा के माध्यम से शिक्षा  दी जाती हैं | आज हम ऐसी ही एक लोक कथा ले कर आये हैं जो  सफल होने के सूत्र बताती हैं | आइये पढ़ें … भगवान बुद्ध से तीन प्रश्न -सफलता का संदर्श देती चाइना की प्रेरणादायक लोककथा  बहुत समय पहले की बात है चाइना में एक लड़का जिंग झियांग रहा करता था | वो अनाथ  था व् बहुत गरीब था | जिंग यहाँ -वहाँ  सबसे भीख मांग -मांग कर खाना  इकट्ठा किया करता था | जब वो खाना लाकर घर में रख देता तब नहाने के लिए जाता | नहाने के बाद आ कर देखता तो उसे हमेशा खाना बहुत कम मिलता | उसे बहुत दुःख होता कि वो इतनी मेहनत से खाना इकठ्ठा कर के लाता है वो भी कम हो जाता है | एक दिन वो खाना रख कर वहीँ बैठ गया | थोड़ी देर में एक चूहा वहाँ  आया और उसका खाना खाने लगा | चूहे को देख कर जिंग ने उससे कहा ,”  एक तो मैं वैसे ही गरीब हूँ, ऊपर से तुम मेरा खाना खा जाते हो , जिसे मैं यहाँ -वहाँ  से मांग कर लाया होता हूँ | तुम अमीरों के घर का खाना क्यों नहीं खाते , उन्हें तो कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा | सफलता का बाग़ चूहा जिंग की बात सुनकर बोला ,” ये तो तुम्हारे भाग्य में लिखा है तुम जिंदगी भर गरीब ही रहोगे , तुम्हें पूरा खाना नहीं मिलेगा , इसीलिये मैं अमीरों का खाना न खा कर तुम्हारा खाना खाता हूँ |  चूहे की बात सुन कर जिंग दुखी हो कर बोला ,” क्या मुझे सारे जिन्दगी ऐसे ही भीख मांग कर आधा खाना खा कर रहना होगा | क्या मुझे ऐसे नारकीय जीवन से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा | चूहे ने कहा ,” ये तो मैं नहीं बता सकता , हाँ , भगवान् बुद्ध जरूर बता सकते हैं | पर उन तक जाना बहुत मुश्किल है , तुम शायद रास्ते  में ही मर जाओ | जिंग ने कहा , अब चाहे कुछ हो मैं भगवान् बुद्ध से पूंछने जरूर जाऊँगा |  जिंग भगवान् बुद्ध से पूंछने चल दिया कि क्या उसके भाग्य में हमेशा गरीब रहना ही लिखा  है या कुछ करके उसका भाग्य बदला भी जा सकता है | पहला प्रश्न  चलते -चलते रात हो गयी | जिंग ने सोचा कि किसी घर में शरण के लिए आग्रह किया जाए | पर वहाँ  तो सब बड़ी-बड़ी हवेलियाँ थीं | जिंग को आशा नहीं थी कि कोई उसे रात गुज़ारने की अनुमति देगा | फिर भी उसने हिम्मत करके एक हवेली का द्वार खटखटा दिया | आशा के विपरीत उन लोगों ने उसे शरण दे दी |ये जान कर की जिंग भगवान् बुद्ध से मिलने जा रहा है , उन लोगों ने उससे कहा ,” हम  भी बहुत दुखी हैं , हमारी एक ही बेटी है जो बोल नहीं पाती , पहले बोलती थी और गाना भी बहुत सुरीला गाती थी पर अचानक से उसने बोलना बंद कर दिया | बहुत इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ | तुम भगवान् बुद्ध से पूँछ कर बताना कि वो कब बोलेगी ? जिंग ने हामी भर दी | अगली सुबह जिंग ने वहाँ  से विदा ली |  दूसरा प्रश्न  आगे बढ़ने पर जिंग को एक बर्फ का पहाड़ मिला | जिंग हिम्मत करके आगे बढ़ता गया |  ठंडी हवाओं से उसकी रूह काँप रही थी , फिर भी वो मृत्यु की चिंता न करते हुए आगे बढ़ता  जा रहा था | तभी उसे एक झोपडी दिखाई दी | उसने थोड़ी देर आराम करने की सोच कर झोपडी के द्वार पर आवाज़ दी | उसमें से एक व्यक्ति निकला | उस व्यक्ति ने उसे खाने को दिया | उसने बताया कि वो एक जादूगर हैं वो पिछले एक हज़ार  सालों से स्वर्ग का रास्ता खोज रहा है , इसके लिए उसके पास जादू की छड़ी भी है पर फिर भी उसे रास्ता नहीं मिल रहा है | उसने लड़के से कहा कि वो  भगवान् बुद्ध के पास जाए तो पूंछे कि उसे स्वर्ग का रास्ता कब मिलेगा | जिंग ने हामी भर दी | जादूगर ने खुश हो कर जादू की छड़ी से उसे बर्फ का पहाड़ पार करवा दिया | तीसरा प्रश्न  अब लड़का और आगे बढा … अ तो और भी बड़ी मुसीबत थी | सामने एक विशाल नदी थी | जिसकी तूफानी लहरों के बीच उसे पार करना जान पर खेलने के बराबर था |  पर जिंग तो सर पर कफ़न बाँध कर ही निकला था | उसने नदी तैर कर पार करने का मन बनाया | तभी वहां एक बहुत बड़ा कछुआ आया | कछुआ जिंग से बोला ,” मैं तुम्हे नदी पार कराउंगा तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ | जिंग उसके विशाल कवच पर बैठ गया | रास्ते में उसने कहा ,” मैं पिछले 500 सालों  से ड्रैगन बनने का प्रयास कर रहा हूँ , अभी तक नहीं बन आया हूँ | अगर तुम भगवान् बुद्ध के पास जा रहे हो तो उनसे पूँछन मैं ड्रैगन कब बनूँगा | उसे भी हामी भर के जिंग आगे बढ़ा | जब जिंग ने भगवान् बुद्ध से पूंछे तीन प्रश्न  आगे कुछ और कठनाइयाँ  पार करते हुए जिंग भगवान् बुद्ध के पास पहुँचा | नतमस्तक हो के उसने भगवान् बुद्ध से अपने प्रश्न पूंछने कीअनुमति मांगी | भगवान् बुद्ध ने कहा ,” मैं तुम्हारे सिर्फ तीन प्रश्नों के उत्तर दूँगा | अब जिंग असमंजस में पड़ गया | वो भगवान् से कौन से तीन प्रश्न पूंछे | अंत में उसे लगा कि वो लड़की बेचारी बोल नहीं पा  रही है | जादूगर हज़ार साल से प्रयास कर रहा है , कछुआ ५०० सालों से प्रयास कर रहा है | इन सब की तकलीफ कितनी बड़ी है | मेरा क्या है मैं तो भीख मांग कर खाता था , भीख मांग कर ही खाता रहूँगा | जिंग ने अपने प्रश्न छोड़ कर बाकी तीन प्रश्न पूँछ लिए | भाग्य में रुपये … Read more

डर का अस्तित्व

                               हम सब लोग किसी न किसी चीज से डरते हैं | कई बार हम उस विषय में जानते ही नहीं पर फिर भी अनेकों डर अपने मन में पाले रहते हैं | यह डर हमारे अवचेतन मन में गहरे अपनी जडें जमा लेता है | जिससे निकल पाना सहज नहीं है | इससे निकलने के लिए बहुत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है | आज इसी डर पर एक प्रेरक कथा प्रस्तुत की जा रही है | Dar ka astitv – motivational story in Hindi एक बार की बात है की एक बड़े पिंजरे में पाँच  बन्दर थे | उसी पिंजरे में एक सीढ़ी के ऊपर केले का गुच्छा लटका दिया गया | जैसे ही बंदरों ने केले का गुच्छा देखा वो सीढ़ी पर चढ़ने लगे | तभी उन् पर  पाइप से तेज धार से से ठंडा पानी डाला गया | सर्दी के दिन थे ठंडा पानी पड़ने से बन्दर डर गए व् सीढ़ी से नीचे उतर आये | थोड़ी देर बाद एक  बन्दर ने उस सीढ़ी पर फिर चढ़ने की कोशिश की | फिर उस पर ठंडा पानी डाला गया | बन्दर डर गया और उतर आया | अब उन पांच बंदरों में से जो भी सीढ़ी की तरफ बढ़ता उस पर पानी डाला जाता जिससे वो सीढ़ी पर न चढ़ कर वापस लौट आता | थोड़ी देर में सारे बन्दर समझ गए कि सीढ़ी पर चढ़ने पर उन पर ठंडा पानी पड़ता है , इसलिए उन्होंने सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास ही छोड़ दिया | जबकि केले अभी भी वहीँ थे | भाग्य में रुपये अब उस बाड़े के चार बन्दर तो वही रहने दिए , पांचवाँ  बन्दर नए बंदर  से बदल दिया | नए बंदर को बिलकुल भी पता नहीं था कि सीढ़ी पर चढ़ने से ठंडा पानी पड़ता है | वो सीढ़ी की तरफ जाने लगा तो बाकी  चारों बंदरों ने उसे पकड कर वापस बिठा दिया | दो तीन बार प्रयास के बाद वो समझ गया कि सीढ़ी पर चढ़ना सेफ नहीं है | उसने सीढ़ी पर चढ़ने का इरादा छोड़ दिया | अब एक और बन्दर को नए बन्दर से बदल दिया गया | अब बाड़े में तीन पुराने बन्दर व् दो नए बन्दर थे | जब सबसे नए बंदर ने सीढ़ी पर चढ़ना शुरू किया तो बाकी बंदरों ने उसे पहले की तरह नीचे की तरफ खींच लिया | आश्चय की बात ये  थी कि  इन बंदरों में वो पहली बार लाया गया बन्दर भी था जिस पर कभी ठंडा पानी नहीं पड़ा था | सफलता का बाग़ धीरे -धीरे सारे बन्दर  नए बंदरों से बदल दिए गए | अब किसी भी बन्दर पर पानी नहीं पड़ा था पर कोई भी ऊपर चढ़ कर केले लेने की कोशिश नहीं कर रहा था | भले ही उन्हें पता नहीं था कि ऐसा क्यों कर रहे हैं पर उन्हें ये  पता था कि ऐसा ही होता है |                               मित्रों हमारे तमाम अन्धविश्वास इसी डर पर आधारित हैं | जिसमें हमें कारण पता नहीं होता फिर भी हम डर कर कोई नया काम नहीं करते क्योंकि हमें लगता है कि   आज से पहले  अगर किसी ने नहीं किया है तो कोई तो कारण होगा पर न तो हम उस कारण का पता लगते हैं और न ही उस डर को हटा कर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं | आप भी देखें आप ने अपनी जिंदगी में क्या -क्या डर पाल रखे हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करें | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें ……… भोजन की थाली स्वाद का ज्ञान विश्वास गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ डर का अस्तित्व “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under- short stories, hindi stories, motivational hindi stories, fear