भाग्य में रुपये

                         कहा जाता है है कि हमें जीवन में जो भी मिलता है वो हमारे भाग्य में लिखा होता है | कहा ये भी जाता है कि कर्म करना हमारे हाथ में है | इस तरह कर्म और भाग्य में हम अक्सर उलझे रहते हैं | यहाँ पर “अटूट बंधन ” एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत कर रहा है जो इस उलझन को अवश्य दूर करेगी | प्रेरक कथा -भाग्य में रुपये                   व्यापारी मोहन लाल  का धर्म -कर्म से वैसे तो कोई गहरा नाता नहीं था पर भाग्य से कर्म बनता है या कर्म से भाग्य इस प्रश्न में वो अक्सर उलझे रहते | अलबत्ता  शिवरात्री को वो अवश्य मंदिर जाया करते थे | इस बार जब उन्होंने मंदिर के बाहर पूजन सामग्री खरीदी और मंदिर की और बढ़ने लगे तो भारी भीड़ देख कर उन्हें अपनी चप्पल के खो जाने का भय उत्पन्न हुआ | चप्पलें नयी थी , ऐसे में उनकी चिंता स्वाभाविक थी | वहीँ मंदिर के बाहर कई भिखारी बैठे थे | मोहन लाल जी ने सब भिखारियों को गौर से देखा |  एक भिखारी जो कि उन्हें शक्ल से थोडा इमानदार लग रहा था , क्योंकि उसके पास और कुछ चप्पले भी रखी थी, मोहन लाल जी को लगा शायद कुछ और लोगों ने ये चप्पलें उसके पास रख छोड़ी हैं | तो क्यों न वो भी अपनी चप्पलें उस भिखारी के पास निगरानी के लिए रखवा दें | उन्होंने उस के पास जाकर  कहा , ” मैं थोड़ी देर में दर्शन कर के आता हूँ | चप्पल तुम्हारे  पास उतार रहा हूँ , जरा थोड़ी देर निगरानी रखना | भिखारी ने हामी भर दी | भोजन की थाली मोहन लाल जी दर्शन के लिए मंदिर के अन्दर चले गए | मंदिर में बार – बार उन्हें उस भिखारी का ख्याल आ रहा था , उन्हें लग रहा था , बेचारा भिखारी , उसके पैर में तो चप्पल भी नहीं है  | बिवाइयाँ फटी हैं | फिर भी दूसरों की चप्पल की रखवाली कर  रहा है | उन्हें भिखारी पर दया आने लगी | मोहन लाल के मन में दया भाव जागा , उन्होंने ने तय किया कि वो मंदिर से निकल कर उस भिखारी को १०० रुपये देंगें | उधर बाहर बैठे भिखारी के मन में  ख्याल आया कि बाकि जो लोग चप्पल उतार गए हैं वो तो खस्ताहाल हैं , ये तो नयी है | क्यों न मैं इसे ले लूँ |  मालदार आसामी है , उसका क्या जाएगा , झट से नयी खरीद लेगा | मोहनलाल जी जब मंदिर से बाहर निकले तो न वहाँ उनकी चप्पल थी , न वो भिखारी | थोड़ी बहुत देर तक परेशां हो वो नंगे  पैर ही घर की तरफ चल पड़े | स्वाद का ज्ञान रास्ते में फुटपाथ पर एक आदमी पुराने जूते -चप्पल बेंच रहा था | मोहनलाल जी रुक कर देखने लगे | वहीँ पर उनकी  चप्पले रखी हुई थी | मोहनलाल जी ने चप्पल का दाम पूंछा ? दुकान दार ने कहा , ” अभी -अभी एक आदमी १०० रूपये में बेंच कर गया है , आप को भी उतने में ही लगा दूंगा | सुनकर मोहनलाल जी मुस्कुराए | आज उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था |  वे नंगे पैर ही घर की और चल पड़े | भिखारी के भाग्य में आज १०० रूपये लिखे थे | वो उसे मिलने ही थे … चाहे वो चप्पल की रखवाली कर के ईमानदारी से कमाता , चाहे उसने चप्पले चोरी कर और बेंच कर कमाए | भाग्य का लिखा हमें मिलना ही है पर उस लिखे को प्राप्त करने में हम कर्म क्या कर रहे हैं ये हमारा अगला भाग्य बनेगा | प्रेरक कथा टीम ABC यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “भाग्य में रुपये ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

भोजन की थाली

            कहते है जब इंसान भूखा होता है तो उसको सिर्फ एक चीज ही दिखाई देती है , वो है रोटी | भूखा व्यक्ति तो चाँद को भी रोटी समझता है | फिर वो तो बच्चे थे | कडकडाती ठंड के दिन , जब बड़े घरों के लोग चार -चार स्वेटर , कोट मफलर व् मोजों में पैक हो कर भी काँप रहे थे | तो एक छोटी सी कम्बली में तीन प्राणी कहाँ समाते | पेट की भूख सोने भी नहीं देती | कभी  दो साल की गुडिया कहती अम्मा रोटी ,तो कभी तीन साल का पप्पू माँ से रोटी की गुहार लगाता | लाचार बुखार से तपती विधवा माँ उठकर खाली बर्तन में पानी भर कर चमचे  से चलाती | बच्चों को दिलासा देती , सो जाओं अभी दाल पक रही है | पर ये खेल ज्यादा देर तक नहीं चल सका बिलबिलाते बच्चों की भूख से दिल का ताप इतना बढ़ा कि देह ठंडी पड़ गयी | लोगों ने पैसा जमा कर  क्रियाकर्म की व्यवस्था की | उन्हीं जमा पैसों से  तेरहवीं के खाने की व्यवस्था की | विडम्बना है कि जो लोग जीते पर पैसे इकट्ठे कर के दो रोटी न दे सके , वो तेरहवीं का भोज खिलवा  रहे थे | जिन्दा से मरे का भय इंसान को ज्यादा होता है , फिर आखिर छोटे बच्चों को छोड़ कर गयी थी , आत्मा तो भटक ही रही होगी | गुडिया और , पप्पू की फिकर किसी को नहीं थी , वो तो तो यूँ ही अगल -बगल में खेलते -खाते बड़े हो ही जायेंगे | पढ़िए -लाटरी का टिकट तेरहवीं का भोज सज चुका  था | गुडिया और पप्पू अंगुलियाँ चाट -चाट कर खाए जा रहे थे | उन्हें माँ से ज्यादा इस समय रोटी की जरूरत थी | किसी ने पूड़ी हाथ में ले दौड़ती गुडिया को टोंका , माँ मरी है और बच्ची को देखो कैसे चटखारे ले ले कर खा रही है | एक पल को गुडिया सहम गयी , हाथ रुक गए , धीरे से बोलने वाले के पास जा कर कहने लगी , काकी त्या अब पूली पप्पू ते मरने पर मिलेगी | मैं पप्पू ते कहूँगी जल्दी मर जाओ , मुझे दोबारा पूली खानी है | पढ़िए -दो मेंढक                                      दोस्तों ये गुडिया नहीं उसकी भूख बोल रही थी | दरसल ये एक कहानी नहीं सन्देश है , जो खाना आप बर्बाद कर देते हैं उसकी किसी को कितनी आवश्यकता है | कहते हैं जितना खाना अमेरिका में फेंका जाता है उससे पूरे सोमालिया का पेट भर जाए | प्लेट में खाना छोड़ना भले ही पैसे वालों का शौक हो , पर   भूखे के लिए वो जीवन है | प्लेट में उतना ही खाना लें जितना जरूरी हो अपनी  क्षमता भर अन्न जरूरत मंदों को बाँटे दीप्ति दुबे यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ भोजन की थाली ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

चोंगे को निमंत्रण

चोंगा बाहरी चमक -दमक आकर्षित तो करती है, परन्तु इंसान की  असली पहचान  उसके गुण उसके संस्कार या उसका ज्ञान होता है | जो चमक -धमक् में उलझा रहता है , उसके लिए ज्ञान का मार्ग कठिन हैं Motivational Hindi story -chonge ko nimntran   बहुत समय पहले की बात है एक झेंन गुरु थे | वो भिक्षा मांग कर भोजन करते व् सादा जीवन जीते थे | शाम को अक्सर वो अपने आश्रम के पास प्रवचन दिया करते थे | कुछ लोग उन्हें सुनने आते , और उनसे प्रभावित होते | धीरे -धीरे उनके प्रवचनों की चर्चा शहर में होने लगी |  शहर में एक व्यापारी था , उसे लोगों से उस गुरु के बारे में जानकारी मिलती रहती थी | उसकी पत्नी को भी लोग उनके प्रवचन के बारे में बताते |  उसकी पत्नी की गुरु के पास जाने की इच्छा हुई | उसने अपनी इच्छा अपने पति को बताई | पति ने कहा , ” मैंने भी उनके बारे में सुना है मैं भी उनके विचार पसंद करता हूँ , ऐसा करते हैं मैं वहाँ  जा कर अगली एकादशी को उनको भोजन के लिए आमंत्रित कर लेता हूँ | वो यहाँ  आयेंगे , तब तुम इत्मिनान से उनके प्रवचन सुन लेना | पत्नी राजी हो गयी | व्यापारी गुरु के आश्रम में गया | उसने प्रवचन सुनने के बाद गुरु के पास जाकर १० दिन बाद एकादशी पर अपने घर भोजन का आमंत्रण दिया | गुरु जी ने उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया | घर आ कर उसने नगर के कई खास लोगों को आमंत्रित किया कि   एकादशी के दिन मेरे घर में झेन गुरु आ रहे हैं आप भी आइयेगा | उनका प्रवचन सुनेगे व् भोजन करेंगे | एकादशी के दिन उसने आने घर को अच्छे से सजाया | बाहर प्रवचन के लिए पंडाल लगवाया , तरह -तरह के सुस्वादु भोजन तैयार करवाए | झेंन  गुरु तो ठहरे योगी , वो अपने भिक्षा मांगने वाले कपड़ों में ही वहां पहुँच गए |  व्यापारी उन्हें पहचान नहीं पाया | उसने उनकी बेईज्ज़ती करके बाहर भगा दिया | झेन गुरु अपने आश्रम गए | उन्होंने राजा द्वारा भेंट किया हुआ कीमती चोंगा पहना | चोंगा बहुत ही आकर्षक था | उसमें सोने की जरी का काम व् बेशकीमती मोती लगे थे | जब वो चोंगा पहन कर गुरु व्यापारी के घर पहुंचे तो व्यापारी ने उन्हें बहुत आदर से अन्दर बुलाया व् भोजन करने का आग्रह किया | उसी समय झेंन गुरु ने अपना चोंगा उतार कर पाटे पर रख दिया और कहा , ” अब ये चोंगा भोजन करेगा | व्यापारी सकते में आ कर पूंछने लगा , ” क्यों महाराज “? झेंन गुरु ने उत्तर दिया , ” तुमने इसे ही आमंत्रित किया था | अब ये ही भोजन करेगा | “                          सारी  घटना जानने के बाद व्यापारी को बहुत पश्चाताप हुआ और उसने गुरु से माफ़ी मांगी | उस दिन झेन गुरु ने प्रवचन देते हुए कहा ,” जो सिर्फ वस्त्रों में अटका है वो मनुष्य को नहीं देख सकता , जो इरफ शरीर में अटका है वो आत्मा को नहीं देख सकता , वस्त्र और शरीर दोनों चोंगे उतार दो तब ज्ञान के पात्र बनोगे | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ चोंगे को निमंत्रण ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

प्रेरक कथा -दो मेंढक

                                दो मेंढक एक ऐसी प्रेरक कथा है  हमें बहुत कुछ सोंचने पर विवश कर देती हैं | यकीनन मेंढक को प्रतीक बना कर  कर कही गयी ये कथा हमारी  दुविधा को कम कर के सफलता का रास्ता दिखाती है |  Motivational story-Two frogs(in Hindi) दो मेंढक थे वो बहुत अच्छे दोस्त थे | हर जगह साथ- साथ जाते | साथ -साथ घुमते फिरते , खेलते कूदते , खाते -पीते| एक बार की बात है वो एक कुए के ऊपर से गुज़र रहे थे | कुआं ज्यादा गहरा नहीं था , पर उसमें काई बहुत थी | कुए के ऊपर भी काई थी | उनका पैर फिसला और वो कुंए में गिर पड़े | कुए में गिरते ही वो दोनों बचाओ -बचाओ चिल्लाने लगे , साथ ही बाहर निकलने की कोशिश करने लगे | | आसपास के मेंढक कुए की जगत पर इकट्ठे हो गए | ये दोनों मेंढक जितनी कोशिश करते उतनी बार ही वापस कुए में गिर जाते | जो मेंढक बाहर इकट्ठे थे , जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो जोर -जोर से चिल्लाने लगे , ” कोशिश बेकार है तुम लोग नहीं निकल पाओगे , हाथ पैर  मत चलाओ ,  होनी को स्वीकार कर लो | अब उनमें से एक मेंढक तो उनकी बात मान गया और निराश हो कर हाथ पैर चलने बंद कर दिए , वो ईश्वर को याद करने लगा | क्योंकि अगर मदद करेंगे तो वो ही करेंगे और नहीं करेंगे तो अंत समय भगवान् का नाम लेने से अच्छा ही रहेगा | परन्तु दूसरा मेंढक कोशिश करता रहा | लोग चिल्लाते रहे मत करो , कोशिश बेकार है पर उसने एक न मानी वो कोशिश करता रहा | यहाँ तक की वो लहु लुहान हो गया , फिर भी बाहर निकलने की कोशिश करता रहा | अंत में उसने एक ऐसी छलांग लगायी कि वो बाहर आ गया पर उसका दोस्त कुए में डूब कर मर चूका था | आप जानते हैं कि वो मेंढक कैसे निकला … क्योंकि वो मेंढक बहरा था |                          मित्रों ये केवल प्रतीक हैं | जब भी हम कुछ काम शुरू करते हैं दस लोग आ जाते हैं जो हमें डीमोटीवेट करते हैं , रहने दो तुमसे नहीं होगा , जाने दो , छोड़ दो … ये बातें हमारे आत्मबल को कम करती हैं | और हम में से ज्यादातर लोग काम को छोड़ देते हैं | परन्तु जो लोग इन बैटन को अनसुना करके अपना प्रयास नहीं रोकते हैं , सफलता न मिले तब भी करे जाते हैं | अन्तत: उन्हें ही सफलता मिलती हैं | सबसे बड़ा रोग -क्या कहेंगे लोग … संदीप माहेश्वरी  टीम ABC यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा -दो  मेंढक” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

लॉटरी का टिकट

                                              लॉटरी का टिकट भले ही दस- बीस रुपये का हो , वो इंसान को करोण  रुपये जिता  कर मालामाल कर सकता है |  यह एक भाग्य का खेल है और कभी शायद भाग्य साथ दे जाए इसी आशा में लोग लॉटरी खरीदते हैं | पर यहाँ आज इस कहानी के माध्यम  से एक सीख देने की कोशिश की गयी है – Motivational Hindi story- Lottery ka ticket बहुत समय पहले की बात है| एक आदमी था वो जो भी काम करता उसे असफलता ही मिलती |  थोडा -थोडा कर के उसका बहुत सारा पैसा डूब गया | अब उसके पास कोई नया काम करने का पैसा भी नहीं था| लोगों ने उसे समझाया तू किसी के यहाँ नौकरी कर ले , कम से कम पेट तो भरेगा | भाग्य की मार है , अब ईश्वर ने यही लिखा है तो यही सही|  इन सब बातों  से उस व्यक्ति का दुःख और बढ़ गया| उसको लगने लगा ईश्वर ने उसके नसीब में हार ही क्यों लिखी है |  यही सोंचते -सोंचते एक दिन वो मंदिर पहुँच गया| मंदिर बहुत सुनसान जगह पर था | कोई था नहीं इसलिए वो भगवान् की मूर्ति के पाँव पकड कर बहुत देर तक रोता रहा , और कहता रहा , भगवान् मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था , जो तुमने मेरे हिस्से में हार लिखी है | हर कदम पर असफलता लिखी है | अब मैं क्या करूँ ? सुना है तुम सब कुछ कर सकते हो | कम से कम एक लॉटरी का टिकट ही लगवा दो |  ये प्रार्थना  करके वो घर चला गया |  अब वो हर दूसरे तीसरे दिन मंदिर आता और भगवान् से कहता ,” हे प्रभु दया करो , कम से कम एक लॉटरी का टिकट ही लगवा दो | ऐसा करते -करते करीब एक साल बीत गया |  वो आदमी फिर मंदिर आया | उसने भगवान् के आगे बैठ कर फिर रोना शुरू किया ,” प्रभु  क्या बैर है मेरा आपसे , साल भर हो गया आप के पास आते -आते , अभी तक आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी | आज मैं आखिरी बार आया हूँ , अब कभी आप के दरवाजे पर नहीं आऊंगा | अब तो दया करके एक लॉटरी का टिकट लगवा दो | कहते हुए वो व्यक्ति दुखी मन से मंदिर के बाहर जाने लगा , तभी मूर्ति से आवाज़ आई , ” अरे मूर्ख  पहले लॉटरी का टिकट खरीदों तो सही “|                                         मित्रों ये कहानी भले ही काल्पनिक हो पर इसकी शिक्षा सच्ची है | हम भगवान् से मांगते तो रहते हैं पर काम की  दिशा में पहला कदम ही नहीं बढ़ाते या फिर काम शुरू तो कर दिया जोश -खरोश के साथ पर वहीँ रुक जाते हैं | अगला कदम बढाते ही नहीं | ऐसे में सफलता कैसे मिलेगी | हर दिन एक लॉटरी का टिकट है जिसमें हमको बहुत सी खुशियाँ , सफलता और धन देने की क्षमता है पर उस लौटरी के टिकट  को अपनी मेहनत के द्वारा खरीदना पड़ता है | वरना सिर्फ मांगने से संसार का मालिक भी कुछ नहीं कर सकता |  टीम ABC यह भी पढ़ें … टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “लॉटरी का टिकट ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

कोई तो हो जो मुझे समझ सके

                                                          एक कार एक दुकान के आगे आकर रूकती है | उसमें से एक ६ या ७ सात साल का बच्चा  अपने पिता की अँगुली पकड़ कर दुकान में घुसता है | उसे एक प्यारा सा पिल्ला ( पपी) चाहिए जो उसके साथ खेल सके | दुकानदार एक से बढ़कर एक पल्ले दिखाता है , पर बच्चे की नज़र बार -बार उस पिल्ले  की तरफ जाती है जो दुकानदार के बगल में कुर्सी पर बैठा होता है | वो पिल्ला बहुत छोटा सा , सुन्दर सा क्यूट सा होता है | बच्चा उसी  पिल्ले  की ओर अँगुली करके कहता है कि उसे वो पल्ला पसंद है, वह उसी को लेना चाहता है | दुकानदार ने कहा कि वो उसका है वो बेचने के लिए नहीं है | दुकानदार फिर उस बच्चे से कहता है, ” आइये , मैं आपको और बहुत सारे प्यारे -प्यारे पिल्ले दिखाता हूँ | ” बच्चा देखता है उसे कोई पसंद नहीं आता| उसके मन में वही पल्ला बसा हुआ है जो दुकानदार के पास बैठा है |जिसे दुकानदार बेचने को तैयार नहीं है |                   अंत में बच्चा अपने पापा के साथ वापस जाने लगता है तो दुकानदार उसे रोक कर कहता है कि , ” मैं जानता हूँ तुम्हें ये पिल्ला पसंद हैं पर मैं उसे जानबूझकर नहीं दे रहा हूँ क्योंकि उसके एक टांग नहीं है , वो तुम्हारे से दौड़ कर खेल नहीं पायेगा | उसकी बात सुनकर बच्चा पलटता है और अपनी एक टांग से पेंट खिसका कर कहता है कि , ” देखिये मेरी भी एक टांग नहीं है , मैं वही पिल्ला लेना चाहता हूँ | क्योंकि मैं चाहता हूँ कीस दुनिया में कोई तो हो जो मुझे समझ सके |                               दोस्तों , कहीं न कहीं हम सब ढूंढते हैं एक ऐसे इंसान को जो हमें समझ सके | दर्द की भाषा नहीं होती , सिर्फ अहसास होता है |  इसीलिए खोज होती है ,पर क्या ये खोज पूरी हो पाती है ?मुश्किल है … पर असंभव नहीं |खोज जारी रहती है … ढूंढना जारी रहता है | कहीं न कहीं , किसी न किसी मोड़ पर ऐसा कोइमिल ही जाता है जो हमें पूरी तरह से समझता है | जीवन का आनन्द वहीँ से शुरू होता है | टीम ABC यह भी पढ़ें … केवल स्त्री ही चरित्र हीन क्यों टूटे नहीं chain of happiness सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “कोई तो हो जो मुझे समझ सके ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों?

                            पति -पत्नी का रिश्ता एक मर्यादित रिश्ता है| स्त्री और पुरुष में से जब कोई किसी तीसरे के प्रति आसक्त होता है तो चरित्रहीन की गाली  केवल स्त्री को ही क्यों मिलती है| क्यों नहीं पुरुष को भी चरित्रहीन कहा जाता है|  Why only women are labelled as “CharecterLess” एक बार की बात है महात्मा बुद्ध एक गाँव में प्रवचन देने गए, उन्होंने गाँव में घूम –घूम कर प्रवचन देना शुरू किया | तभी एक स्त्री उनके पास आई और बोली महात्मन मैं जानना चाहती हूँ कि आप ने इतनी युवावस्था में संन्यास क्यों लिया| गौतम बुद्ध ने उसे समझाया, “ ये शरीर अभी युवा है, स्वस्थ है, कल को रोग लगेंगे , वृद्धवस्था आएगी और एक दिन इस नाशवान शरीर का अंत भी होगा| जो चीज खत्म ही होनी है उससे मोह करके उसमें आसक्ति क्यों रखी जाए | क्यों न समय रहते इस शरीर का उपयोग ज्ञान को प्राप्त करने व् उसका प्रसार करने में किया जाए, जिसके लिए ईश्वर  ने हमें भेजा है| इसी कारण मैंने सन्यास लिया| स्त्री महात्मा की बात से बहुत प्रभावित हुई | उसने महात्मा बुद्ध को अपने घर पर भोजन के लिए बुलाया| महात्मा बुद्ध ने सहर्ष उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया| जैसे ही ये बात गाँव के लोगों को पता चली उन्होंने महात्मा बुद्ध को उसके घर जाने से मन किया| उन्हने बुद्ध से कहा, “ आप इस गाव में नए हैं, आप नहीं जानते वो स्त्री चरित्रहीन है | इसीलिये वो गाँव के बाहर की तरफ रहती है, गाँव वाले उससे संपर्क भी नहीं रखते|  उसकी बात सुन कर महात्मा बुद्ध ने उसका एक हाथ पकड लिया और कहा अब जरा ताली बजा कर दिखाओं? वह व्यक्ति थोड़ी देर हवा में हाथ चलाता रहा, फिर बोला महाराज , ये क्या अनर्थ है ? आपने मेरा एक हाथ पकड़ा हुआ है, अब एक हाथ से मैं ताली कैसे बजाऊं? महात्मा बुद्ध ने उसका हाथ छोड़ते हुए कहा,  “ अभी तुमने स्वीकार किया कि एक हाथ से ताली नहीं बज सकती, तो फिर वो स्त्री अकेली ही कैसे चरित्र हीन हो सकती है? अवश्य ही इस गाँव के पुरुष भी चरित्र हीन होंगे, पर मुझे तो कोई पुरुष अपने परिवार से दूर वहां गाँव की सरहद पर अकेले रहते नहीं दिखा|  ये दंड केवल उस स्त्री को ही क्यों? जब मैं उन घरों में भोजन कर चुका हूँ जहाँ चरित्र हीन पुरुष रहते हैं, तो मैं उस स्त्री के घर भी भोजन करने जाऊँगा| गाँव के लोगों को महात्मा बुद्ध की बात समझ आगयी और वो उनके पैरों में गिर कर माफ़ी मांगने लगे|                                       मित्रों, ये प्रेरक कथा बुद्ध के समय की है| तब से कितना समय बदला लेकिन समाज का नजरिया अभी भी स्त्रियों के लिए वैसा ही है| अभी भी दो व्यस्क लोगों द्वारा बनाये गए रिश्ते में सामाजिक अवहेलना की शिकार स्त्री ही होती है| स्त्री के ऊपर चरित्रहीन का धब्बा लग जाता है, जबकि पुरुष को ज्यादा से ज्यादा इतना कहा जाता है की वो उस स्त्री के जाल में फंस कर बहक गया था| क्यों नहीं पुरुष को भी कहा जाता है कि वो भी चरित्रहीन है| जब एक हाथ से ताली नहीं बज सकती तो फिर स्त्री अकेले ही चरित्र हीन कैसे हुई| सवाल अभी भी वहीँ है , जवाब हमें ही तलाशने होंगे? टीम ABC जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ टूटे नहीं chain of happiness सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों?” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

टूटे नहीं chain of happiness

                        एक बार की बात है , एक  महिला  कार ले कर किसी मीटिंग के लिए दूसरे शहर जा रही थी | रास्ते में एक सुनसान इलाका पड़ता था| उसी जगह उसकी कार  खराब हो गयी| शाम होने वाली थी , दूर -दूर तक कोई नहीं था जो उसकी मदद करता | इतनी सुनसान जगह में वो अकेले बहुत घबरा रही थी , दूसरे अगर समय पर नहीं पहुँची तो उसे लाखों का नुक्सान हो सकता था | पर उसके पास बैठ कर इंतज़ार करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था| Motivational hindi story-tute nahin chain of happiness                      तभी वहाँ  से एक आदमी गुज़रा | उसने अपनी साइकिल रोक  कर पूंछा ,” मैडम आपको help चाहिए क्या? फिर उत्तर की  प्रतीक्षा किये बगैर साइकिल   से उतर गया | उसने उस महिला से कार की चाभी माँगी और बोनट खोल कर चार ठीक करने लगा, करीब डेढ़ घंटे की मेहनत के बाद वो महिला से बोला मैम आपकी कार ठीक हो गयी है , अब आप जा सकती हैं | महिला खुश हो गयी , उसने उस व्यक्ति को कुछ पैसे देने चाहे तो उस व्यक्ति ने मना कर ते हुए कहा , ” मैडम मेरा एक उसूल है , मैं मदद के पैसे नहीं लेता, आप से भी नहीं लूँगा| पर मैं एक वादा लेता हूँ ,अगर आप को कभी कोई ऐसा मिले जिसको मदद की जरूरत हो तो आप उसकी मदद कर देना | किसी की मदद करने में जो ख़ुशी मिलती है वो अनमोल है , ये chain of happiness टूटे नहीं , हर जरूरत मंद को मदद मिलती रहे यही मेरी इच्छा है| “कहकर वो ओनी साइकिल  ले कर चला गया | वो महिला भी अपनी कार ले कर आगे की ओर बढ़ गयी | रास्ते में एक कॉफ़ी शॉप थी, महिला ने सोंचा चलो , चलकर काफी पीलें, थोडा fresh feel करेंगे | वह कार से उतर कर कॉफ़ी शॉप में गयी , वहां एक लड़की जो काफी बीमार लग रही थी , सबको कॉफ़ी  सर्व कर रही थी | वो बड़े प्यार से हँस – हंस कर सबको कॉफ़ी दे रही थी , परन्तु उसकी चाल बारबार लडखडा जाती थी | उसको देख कर महिला ने कुछ पूँछना चाह पर यह सोंच कर रह गयी कि कहीं उसे बुरा न लगे | कॉफ़ी  पी कर जाते समय उस महिला ने एक लिफाफा वहाँ  उस लड़की के लिए इस नोट के साथ छोड़ दिया कि तुम्हारे पैर में जो बिमारी है उसे इलाज की जरूरत है | मुझे आज एक व्यक्ति मिला था जिसने मेरी हेल्प की | मेरा लाखों का नुक्सान होने से बचाया , उसी की chain of happiness को आगे बढाते हुए मैं ये 10, 000 रुपये तुम्हारे लिए छोड़े  जा रही हूँ , अपना इलाज करा लेना | जब उस लड़की को वो लिफाफा मिला तो उसकी आँखें भर आयीं | वो पैसे लेकर अपने घर गयी और अपने पिता से बोली , ” अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है , ईश्वर की कृपा से मेरे इलाज़ का इंतजाम हो गया है , अब आप निश्चिन्त हो कर विनोद भैया के यहाँ ये सिलाई मशीन लौटा दे , अपना काम ठप्प होने से उन्हें भी काफी आर्थिक दिक्कत हो रही होगी | क्योंकि मुझे जिन्होंने पैसे दिए हैं  उन्होंने कहा है कि chain of happiness रुकनी नहीं चाहिए | उस लड़की के पिता पैसे पा कर बाहुत खुश हुए | वो सिलाई मशीन उठाकर विनोद के घर गए | उस समय विनोद वहाँ  नहीं था , वह उसकी पत्नी को बहुत धन्यवाद देते हुए मशीन लौटा आये | विनोद घर आया तो उसकी पत्नी ने कहा , ” आज  फिरोज चचा मशीन लौटा गए , अब तुम बेकार नहीं बैठोगे , न घर में खाने की कमी होगी, सच में तुम्हारी chain of  happiness हमारे लिए भी काम करती है | जवाब सुन कर विनोद मुस्कुराया| विनोद वही साइकिल वाला लड़का था , जिसने सुनसान रास्ते पर उस कार वाली महिला की मदद की थी |                               मित्रों ये प्रेरक कथा सिर्फ प्रेरक कथा नहीं है , ये बताती है हम सब इस कदर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं कि अगर हम किसी की मदद करते हैं , तो हमारे पास भी जरूरत के समय कहीं न कहीं  से मदद आ जाती है और ये chain of happiness टूटती नहीं है |                                             अगर आप को ये कहानी पसंद आई हो तो आपभी किसी जरूरत मंद की मदद करके chain of happiness को आगे बढ़ा दीजियेगा | टीम ABC जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “टूटे नहीं chain of happiness” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

सच – झूठ की परख

                                                आजकल जरा – जरा सी बात  पर लोगों में वाद विवाद हो जाता है | हर कोई अपने ही पक्ष को सत्य मानकर दलील पर दलील देता हैं ,किसी दूसरे को सुनने को तैयार नहीं होता |  ऐसी बहस का कोई भी अंत नहीं होता | क्योंकि कई बार कोई भी तर्क पूरा सच नहीं होता | Motivational story in Hindi- sach- jhooth ki parakh                            एक बार एक गाँव में 6 अंधे रहते थे | तभी उस गाँव में  एक सर्कस आया, जिसमें हाथी थे| उन व्यक्तियों ने हाथी  को कभी देखा नहीं था , बस सुना था , वो उसे छू कर उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते थे | वो  महावत के पास पहुंचे व् अपनी इच्छा जाहिर की | महावत ने सबसे बूढ़े और सबसे शांत हाथी  से मिलने की इजाज़त दे दी | वो सब ख़ुशी -ख़ुशी हाथी  से मिलने गए | और उसी छू  कर महसूस करने लगे | सब ने हाथी के अलग – अलग हिस्से को छुआ | पहले व्यक्ति ने हाथी के पैर को छुआ , उसे लगा हाथी खंबे जैसा होता है | दूसरे ने उसके पेट को छुआ , उसे लगा हाथी दीवार जैसा होता है | तीसरे व्यक्ति ने हाथी के कान को छुआ , से लगा हाथी  बड़े पंखे जैसा होता है | चौथे व्यक्ति ने हाथी के दांत को छुआ , उसे लगा हाथी एक बड़ी नली जैसा होता है | पांचवें व्यक्ति ने हाथी की सूंढ़ को छुआ , उसे लगा हाथी अजगर जैसा होता है | छठे व्यक्ति ने हाथी की पूँछ को छुआ , उसे लगा हाथी रस्सी जैसा होता है |  जब वो वापस लौट कर आये तो हाथी  के बारे में वो बताने लगे जो उन्होंने अनुभव किया है | पर सबके अनुभव अलग थे | थोड़ी ही देर में वो सब लड़ने लगे | सब को अपना अनुभव सही लग रहा था | कोई किसी की बात मानने को तैयार नहीं था | तभी गाँव का एक व्यक्ति वहां से गुज़रा उनको लड़ते देख कर कारण पूंछा ? पूरी बात जानने के बाद वो बोला , ” आप सब सही कह रहे हैं , आप सब ने सही अनुभव किया , पर आपका अनुभव हाथी  का एक हिस्सा है , पूउरा हाथी आप सब के अनुभवों को मिला कर बनता है |                          मित्रों , धर्म हो या कर्म हो या कोई अन्य विवाद ,हम सब अक्सर अपन तर्क को सही मान कर लड़ते हैं | पर पूरा सच या पूरा झूठ कुछ नहीं होता | बस वो सच का एक हिस्सा होता है | टीम ABC यह भी पढ़ें … जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सच – झूठ की परख ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

गुलाब का बगीचा

                                                 जो भी है बस यही एक पल है| आज  यानि PRESENT , जानते हैं इसे PRESENT क्यों कहा जाता है ? क्योंकि हर आज ईश्वर का दिया हुआ एक खूबसूरत तोहफा है | पर हम अक्सर PASTकी यादों या FUTURE की चिंता में इतना खोये रहते हैं की कि ईश्वर  के दिए इस PRESENT को सही तरीके से नहीं जी पाते | आइये पढ़े , इसी विषय पर एक खूबसूरत प्रेरक कथा |  Hindi Motivational story on Power of now एक बार की बात है एक आदमी एक संत के पास गया और बोला , ” संत जी , मैं बहुत मुश्किल में हूँ , मेरी जिंदगी में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है | जो सोंचता हूँ वो होता नहीं , वो मिलता है जो चाहता नहीं | मैं रोज प्लान बनाता हूँ पर हर दिन गलत ही बीतता है | मेरी मर्जी के विपरीत बीतता है | कुछ ऐसा उपाय कर दीजिये कि मेरा भविष्य अच्छा हो जाए | संत ने उसकी बात सुनी और कहा ,” देखो मैं समझ सकता हूँ की तुम्हारी जिन्दगी में कुछ भी अच्छा नहीं बीत रहा , हर बात विपरीत हो रही है इसलिए स्वाभाविक है कि तुम चाहते हो कि भविष्य में तुम खुश रह सको | तो चिंता करने की कोई बात नहीं है , मैं उसके लिए एक छोटी सी पूजा कर देता हूँ |  वो देखो सामने गुलाब का बगीचा है उसमें से जाकर सबसे खिला हुआ फूल ले आओ , पर याद रखना तुम्हें  जो फूल दिखे उसे ही लेना है , वापस पलट कर  फूल नहीं लेना है | वो आदमी बहुत खुश हुआ उसने सोंचा , बस इतनी सी बात , मैं सबसे खूबसूरत व् खिला हुआ फूल ले कर आऊंगा | वो बगीचे में  आगे की और चल पड़ा | बगीचे में बहुत सुन्दर फूल खिले हुए थे | उसने उन फूलों को देखा , पर उसे लगा शायद इससे भी अच्छा फूल आगे मिल जाए | इसलिए वो आगे बढ़ता गया … बढ़ता गया और अच्छे फूलों को छोड़ता गया ….पर ये क्या आगे जाने पर तो फूल मुरझाये से थे , वो तो पूरे खिले भी नहीं थे | उस आदमी को बहुत दुःख हुआ पर पीछे मुड़ के तो फूल तोड़ नहीं सकता था , इसलिए जैसा भी फूल मिला ले लिया | जब वो संत के पास  पहुँचा तो बड़े ही निराश मन से उसने वो मुरझाया हुआ फूल संत को देते हुए कहा ,” मैं सबसे ज्यादा खिले हुए फूल की तलाश में आगे बढ़ता रहा … बढ़ता रहा , पर आगे के फूल तो सब मुरझाये हुए थे | निराश हो कर मुझे यही मुरझाया फूल लाना पड़ा | आप इसी से पूजा कर दीजिये |” संत बोले ,  ” कैसी पूजा , ये तो मैंने तुम्हें समझाने के लियी किया था | सुबह तुम जिंदगी से शिकायत कर रहे थे , तुम्हारे  जीवन में ये अच्छा नहीं है , वो अच्छा नहीं है … आगे शायद ये बदल जाए , वो बदल जाए तो अच्छा लगे | ये जिंदगी गुलाब के फूलों का बगीचा ही तो है |  अपनी जिन्दगी में भी तुम किसी सबसे खिले फूल की तलाश में लगे हो , और अभी के उनसब फूलों को छोड़ रहे हो |  जानते हो जिन्दगी के बगीचे के ये फूल छोटी- छोटी खुशियाँ हैं , जिनका आनंद तुम अभी ले सकते हो | अभी तुम्हारे माता – पिता तुम्हारे साथ हैं , उनका स्नेह ले सकते हो , बच्चों को स्नेह दे सकते हो , उनकी शरारतों का आनंद ले सकते हो , शरीर स्वस्थ है तो अच्छा खा और पहन सकते हो … परन्तु ये सब करते हुए तुम आनंद नहीं ले रहे , किसी बड़ी ख़ुशी की तालाश में इन्हें छोड़ रहे हो | आगे जाने पर अपनी गलती का अहसास होगा फिर मुझाये फूलों के आलावा हाथ में कुछ नहीं रहेगा |                      मित्रों क्या हम सब उस व्यक्ति की तरह , आज की खुशियों को छोड़ भविष्य की किसी बड़ी ख़ुशी की छह में चिंतित नहीं रहते हैं | क्या ये जरूरी नहीं की जिंदगी गुलाब के फूलों का बगीचा है और हमें आज के फूलों को और आज की खुशियों को ही चुनना चाहिए | टीम ABC यह भी पढ़ें …….. जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सेंटा क्लॉज आएंगे ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords : Power of now, rose garden, future, today, power of today