स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “

स्वामी विवेकानंद हमारे देश का गौरव हैं| बचपन से ही उनके आम बच्चों से अलग होने के किस्से  चर्चा में थे | पर कहते हैं न की कोई व्यक्ति कितना भी महान  क्यों न हो, कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है| स्वामी विवेकानंद जी के भी कुछ पूर्वाग्रह थे , जो उनको एक सच्चा संत बनने के मार्ग में बाधा बन रहे थे| परन्तु अन्तत: उन्होंने उस पर भी विजय पायी, परन्तु ये काम वो अकेले न कर सके इसके लिए उन्हें दूसरे की मदद मिली | क्या आप जानते हैं स्वामी विवेकानंद के पूर्वाग्रह तोड़ कर उन को पूर्ण रूप से महान संत का दर्जा दिलाने वाली कौन थी? उत्तर जान कर आपको बहुत आश्चर्य होगा… क्योंकि वो थी एक वेश्या |आइये पूरा प्रकरण जानते हैं – स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष प्रसंग                           ये किस्सा है जयपुर का, जयपुर के राजा स्वामी राम कृष्ण परमहंस व् स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े अनुयायी थे| एक बार उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने महल में आमंत्रित किया| वो उनका दिल  खोल कर स्वागत करना चाह्ते थे | इसलिए उन्होंने अपने महल में उनके सत्कार में कोई कमी नहीं रखी| यहाँ तक की भावना के वशीभूत हो उन्होंने स्वामी जी के स्वागत के लिए नगरवधुएं (वेश्याएं ) भी बुला ली| राजा ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि स्वामी के स्वागत के लिए वेश्याएं बुलाना उचित नहीं है |  उस समय तक स्वामी जी पूरे सन्यासी नहीं बने थे| एक सन्यासी का अर्थ है उसका अपने तन –मन पर पूरा नियंत्रण हो| वो हर किसी को जाति , धर्म लिंग से परे केवल आत्मा रूप में देखे| स्वामी जी वेश्याओं को देखकर डर गए| उन्हें उनका इस तरह साथ में बैठना गंवारा नहीं हुआ| स्वामी जी ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया| जब राजा को यह बात पता चली तो वो बहुत पछताए| उन्होंने स्वामी जी से कहा कि आप बाहर आ जाए, मैं उन को जाने को कह दूँगा | उन्होंने सभी वेश्याओं को पैसे दे कर जाने को कह दिया| एक वेश्या जो जयपुर की सबसे श्रेष्ठ वेश्या थी| उसे लगा इस तरह अपमानित होने में उसका क्या दोष है| वह इस बर्ताव से बहुत आहत हुई| वेश्या ने भाव -विह्वल होकर गीत गाना शुरू किया  उस वेश्या ने आहात हो कर एक गीत गाना शुरू किया| गीत बहुत ही भावुक कर देने वाला था| उसके भाव कुछ इस प्रकार थे … मुझे मालूम  है मैं तुम्हारे योग्य नहीं, तो भी तुम तो करुणा  दिखा सकते थे मुझे मालूम है मैं राह की धूल  सही , पर तुम तो अपना प्रतिरोध मिटा सकते थे मुझे मालूम है , मैं कुछ नहीं हूँ, कुछ भी नहीं हूँ मुझे मालूम है, मैं पापी हूँ, अज्ञानी हूँ पर तुम तो हो पवित्र, तुम तो हो महान, फिर भी मुझसे क्यों भयभीत हो  जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “                  वो वेश्या आत्मग्लानि से भरी हुई रोते हुए ,बेहद दर्द भरे शब्दों में गा रही थी | उसका दर्द स्वामी जी की आँखों से बरसने लगा| उनसे और कमरे में न बैठा गया वो दरवाजा खोलकर बाहर आ कर बैठ गए| बाद में उन्होंने डायरी में लिखा,मैं हार गया| एक विसुद्ध आत्मा से हार गया | डरा हुआ था मैं,लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं था, मेरे ही अन्दर कुछ लालसा रही होगी, जिस कारण मैं अपने से डरा हुआ था| उसकी विशुद्ध आत्मा और सच्चे दर्द से मेरा भय दूर हो गया| विजय मुझे अपने पर पानी थी, किसी स्त्री का सामना करने पर नहीं| कितनी विशुद्ध आत्मा थी वह, मुझे मेरे पूर्वाग्रह से मुक्त करने वाली कितनी महान थी वो स्त्री |                      मित्रों अपनी आत्मा पर विजय ही हमें सच में महान बना ती है| जब कोई लालसा नहीं रहती , तब हमें कोई व्यक्ति नहीं दिखता, केवल आत्मा दिखती हैं .. निर्दोष पवित्र और शांत     प्रेरक प्रसंग से  टीम ABC  यह भी पढ़ें … विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा आपको आपको  लेख “ स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ ”   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स KEYWORDS :Swami Vivekanand,Swami Vivekanand jaynti

सेंटा क्लॉज आएंगे

                                                                                            कहते हैं आस्था का कोई रूप नहीं होता आकार नहीं होता | पर वो हमारे मन में गहरे कहीं निवास करती है और समय समय पर चमत्कार भी दिखाती है | इसी आस्था और विश्वास पर आइये पढ़ें …. Santa claus aayenge-  Hindi story on faith  दिव्या क्रिसमस की तैयारी के लिए स्टार्स , क्रिसमस ट्री बैलून्स व् गिफ्ट्स खरीद रही थी | तभी स्वेता जी दिख गयीं |  देखते ही बोलीं ,” अरे , आप ये सब खरीद रही हैं | आप तो क्रिस्चियन नहीं हैं | दिव्या ने मुस्कुरा कर कहा हां , पर मेरे घर में भी सेंटा क्लॉज  आते हैं | इससे पहले की वो कुछ कहतीं दिव्या उन्हें उनके सवालों के साथ छोड़ कर आगे बढ़ गयी |                                        घर आ कर उसने सामान रख दिया और बालकनी में चाय का प्याला ले कर बैठ गयी |  चाय की चुस्कियों के साथ वो उस दिन को याद करने लगी जब उसने पहली बार क्रिसमस मनाई थी | तब गौरांग मात्र ३ साल का था | उसने जिद की थी कि हमारे घर में भी क्रिसमस ट्री , स्टार्स सजाये जायेंगे | सेंटा क्लाज आयेंगे | वो गिफ्ट देंगे | वो भी बच्चे का मन रखने के लिए सब सामान ले आई | २२ को नितिन को ऑफिस के टूर  पर जाना था | उनका मन भी जाने का नहीं कर रहा था | पर  जाना जरूरी था | इधर नितिन गए उधर गौरांग को तेज जापानी  बुखार ने घेर लिया | पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस इलाके में जापानी बुखार का प्रकोप रहता  रहा है | कई मासूम बच्चों को इसने  कभी सपने न देखने वाली गहरी नीद में सुला दिया था | दिव्या बेहद डर  गयी | पर गौरांग सेंटा क्लाज आयेंगे,  इसलिए क्रिसमस सेलिब्रेट करने  की जिद करता रहा | हलकी बेहोशी में भी उसकी फरमाइश जारी रही | मन न होते हुए भी दिव्या ने क्रिसमस ट्री पर गिफ्ट्स से सजा दिया | दवा ने थोडा असर किया | गौरांग थोडा सा चैतन्य हुआ | २४ दिसबर की शाम को गौरांग जिद कर रहा था ,” मम्मा , आप खिड़की मत बंद करना सेंटा क्लॉज आयेंगे | अगर खिड़की बाद होगी तो वो अन्दर कैसे आयेंगे | गिफ्ट कैसे देंगे | वो उसको समझाती रही की सर्दी है  , तुम्हे बुखार है , हवा लग जायेगी | इसे बंद कर लेने दो | पर गौरांग रोता रहा … जिद करता रहा | थोड़ी देर में गौरांग की हालत बिगड़ने लगी | डॉक्टर ने हालत क्रिटिकल बतायी | और उसे हॉस्पिटल में एडमिट कर के दिव्या को कुछ जरूरी सामन लाने को कहा | घबराई सी दिव्या घर गयी | सामान थैले में भरते हुए उसकी नज़र बेड रूम की खिड़की पर गयी | न जाने क्या सोंच कर उसके दोनों हाथ जुड़ गए ,” हे सेंटा मेरे बच्चे का जीवन मुझे गिफ्ट में दे दो | फिर आंसूं पोंछती हुई वो घर में ताला लगा कर हॉस्पिटल पहुंची | सारी रात मुश्किल से कटी | सुबह डॉक्टर ने गौरांग को आउट ऑफ़ डेंजर घोषित कर दिया | दिव्या ने चैन की सांस ली |                                  जब गौरांग को ले कर वो वापस घर आई तो  क्रिसमस गुज़र चुका था पर बेड रूम की खिड़की अभी भी खुली थी | खुली खिड़की देख गौरांग चहक कर बोला ,” मम्मा क्या सेंटा  क्लॉज आये थे ?उसने गौरांग का माथा चूमते हुए कहा ,” हां बेटा , सच में आये थे | तो उन्होंने गिफ्ट में क्या दिया ? गौरांग ने रोमांचित होते हुए पूंछा उन्होंने गिफ्ट में तुम्हे दिया .. दिव्या ने उत्तर दिया | मुझे … गौरांग को बहुत आश्चर्य हुआ |                                             पर दिव्या को  उसके बाद हर क्रिसमस को  सेंटा क्लॉज का इंतज़ार रहने लगा | वो हर क्रिसमस पर इस विश्वास के साथ स्टार्स व् ट्री सजाती कि … सेंटा क्लॉज़ आयेंगे |इसलिए तो हर क्रिसमस की ठीक एक रात पहले वो बेड रूम की खिड़की खोल कर तारों में कहीं सेंटा क्लॉज को ढूंढते हुए उन्हें धन्यवाद देना नहीं भूलती हैं | नीलम गुप्ता उसकी मौत झूठा सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सेंटा क्लॉज आएंगे ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: santa claus’s, christmas, christmas tree, faith, christmas gifts

बाल कहानी -जब झूठ महंगा पड़ा

आज हम आपके लिए लेकर आये हैं एक बाल कहानी | ये बाल कहानी है उस नन्हे बच्चे के बारे में जिसका पढने में बिलकुल मन नहीं लगता था | इसलिए उसका होम वर्क कभी पूरा ही नहीं हो पाता था | होम् वर्क न पूरा होने की वजह से  उसको डर  लगता की स्कूल जाने पर टीचर की मार खानी पड  सकती है | इसलिए वो रोज कोई न कोई झूठी  कहानी बना कर स्कूल जाने से मना  कर देता | कई दिन तक तो मम्मी – पापा उसके बहानों  पर विश्वास करते रहे | पर धीरे – धीरे उन्हें भी विश्वास हो गया की ये झूठ बोल रहा है | फिर क्या था उन्होंने ऐसी चाल चली की बच्चे को सच बोलना ही पड़ा | आइये पढ़ते हैं बाल कहानी – जब झूठ महंगा पड़ा  ये कहानी है दो जुड़वां बच्चों की | एक का नाम था मोहन और दूसरे का नाम सोहन |वैसे तो दोनों जुड़वां थे पर दोनों के स्वाभाव में बहुत अंतर था | जहाँ मोहन गंभीर प्रकृति का व् अपना काम समय से पूरा करने वाला था | वहीँ सोहन खिलंदड़ा व् आलसी प्रकृति का | माँ – पापा सोहन को बहुत समझाते पर वो तो बदलने का नाम ही नहीं लेता | दोनों साथ – साथ स्कूल जाते … पर लौटते साथ नहीं | कारण सोहन को होम वर्क पूरा न करने के कारण सजा मिल जाती | और उसे वहीँ पिछले दिन का होम् वर्क  पूरा कर के लौटने को मिलता | अब उसके ऊपर घर में जा कर आज का होम वर्क  करने का प्रेशर होता | जहाँ एक और मोहन स्कूल से आ कर खाना खा कर होम वर्क करने बैठ जाता | वहीँ सोहन घर आ कर बिना खाना खाए खेलने में लग जाता | माँ दस बार बुलातीं तब आता | खाना खा कर झटपट फिर खेलने लग जाता | माँ कहती ही रह जाती सोहन बेटा  होम वर्क कर लो | पर सोहन को नहीं सुनना था तो नहीं सुनना था | अब क्योंकि होम वर्क किया नहीं होता | इसलिए सुबह जहाँ मोहन जल्दी से उठ कर नहा धो कर नाश्ता कर के स्कूल चला जाता | वहीँ सोहन धीमे – धीमे काम करता … इतना धीमे की  स्कूल बस आ कर मोहन को ले कर चली जाए और वो घर में ही रह जाए | जब माँ उसे जल्दी करने को कहती तो कोई न कोई बहाना बना देता | कभी सर में दर्द तो कभी पेट में तो कभी हाथ में | उसके इन बहांनों को सुन पहले तो माँ भी उन पर विश्वास कर लेती और स्कूल न जाने को मान जाती | पर माँ हमेशा देखती कि जैसे ही स्कूल बस मोहन को ले कर चली जाती | सोहन बिलकुल ठीक हो जाता | और सारा दिन घर में खेलता कूदता और ऊधम करता | माँ को शक होने लगा | उन्होंने ये बात पिताजी को बताई | पिताजी ने दो – तीन दिन सोहन पर नज़र रखी उन्हें भी विश्वास हो गया कि सोहन झूठ  बोल रहा है | अब प्रश्न ये था कि सोहन से सच कैसे उगलवाया जाए | आखिरकार पिताजी ने एक योजना बना ली | उन्होंने माँ को योजना बता कर कहा कि अब तुम्हे ध्यान रखना है | माँ ने हामी भर दी | अगले दिन जब माँ ने सोहन , मोहन से स्कूल जाने को कहा तो मोहन तो हमेशा की तरह उठ गया और तैयार होने लगा पर सोहन जोर – जोर से रोते हुए बोला .. आआआअ , मम्मी मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है | मैं स्कूल नहीं जा सकता | माँ ने कहा ,” ठीक है बेटा तुम घर पर आराम करो | हमेशा की तरह स्कूल बस जाते ही सोहन बिस्तर से उठ बैठा और उधम करने लगा | शाम को पिताजी   आये तो उनके हाथ में बड़े – बड़े थैले थे | उन्होंने दोनों बच्चों को बुलाया | और कहा आज स्कूल कौन – कौन गया था |  मोहन बोला ,” मैं गया था पिताजी | सोहन बोला ,” मैं नहीं गया क्योंकि मेरे पेट में दर्द था | आप क्या लाये हैं ? पिताजी बोले ,” हाँ हाँ तुम्हारे पेट में दर्द था | खैर  कोई बात नहीं | आज् मेरे  बॉस ने उन बच्चों  को इनाम दिया है जो रोज स्कूल जाते हैं | अब तुम तो बिमारी के कारण जा नहीं पाते तो ये इनाम मोहन को मिलेगा |  उन्होंने चमचमाती हुई कार जो रिमोट से चलती थी मोहन को दे दी | सोहन मन मसोस के रह गया | यही वो कार  थी जिसके लिए वो पिछले ६ महीने से जिद्द कर रहा था | अब पिताजी ने  एक घडी मोहन की कलाई पर बांधते हुए कहा ,” तुम्हारे स्कूल के प्रिंसिपल ने उन बच्चों को दी है जिनकी १०० % अटेंडेंस है | अब सोहन की आँखों में तो आंसू भर आये |  फिर भी उसे आशा थी की अगले थैले में कुछ उसके लिए भी होगा |उसने पूंछा ,” पिताजी उस थैले में क्या है ? बेटा  इसमें मैं केक लाया था | अब तुम्हारे पेट में दर्द है तो मोहन को ही दे देते हैं | और हाँ मम्मी  से कह कर तुम्हारे लिए खिचड़ी बनवा देते हैं | केक तो सोहन को बहुत पसंद था | वो रोने लगा और बोला ,” पापा मैं खिचड़ी नहीं खाऊंगा |” मैं भी केक खाऊंगा | नहीं बेटा  हम इतने तंगदिल नहीं हैं जो केक  खिला कर तुम्हारा पेट खराब करवाएं | न न , हम तुम्हें केक नहीं खाने देंगे | बल्कि केक खरीदने के बाद तुम्हारी माँ का फोन आया | वो बहुत परेशान थी कि मेरा बेटा  हमेशा बीमार रहता है अप कुछ करते क्यों नहीं | इसीलिए मैं डॉक्टर के पास चला गया | उन्होंने बहुत अच्छा उपाय बताया है | जिससे तुम हमेशा स्वस्थ  रहोगे | वो … बस तुम्हें एक हफ्ते तक रोज इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे | पहला इंजेक्शन लगाने वो अभी आते होंगे | इंजेक्शन नहीं हीहीही … सोहन जोर से चीखा | पर … Read more

जीवन साँप -सीढ़ी का खेल

कभी बचपन में साँप – सीढ़ी का खेल खेला है |बड़ा ही रोमांचक खेल है | हम पासा फेंकते हैं और आगे बढ़ते हैं  | आगे एक से सौ तक के रास्ते में सांप और सीढियां हैं | जब गोटी साँप  के मुँह पर आती है तो साँप काट लेता है | और गोटी साँप पूँछ की नोक तक पीछे हो जाती है | वहीँ कभी कोई सीढ़ी मिल जाती है तो खिलाड़ी  झटपट उसे चढ़ कर आगे बढ़ जाता है | आगे बढ़ना किसे ख़ुशी नहीं देता और पीछे आना किसे दुःख नहीं देता | फिर भी खेल  चलता रहता है | इस खेल में एक ख़ास बात है की जो पीछे चल रहा है पता नहीं कब उसे सीढ़ी मिल जाए और वो आगे बढ़ जाए | या फिर जो आगे है पता नहीं कब उसे साँप  काट ले और वो पीछे हो जाए | जो हारता लग रहा है अगले पल वो जीत भी सकता है | खेल का रोमांच  यही है |  कभी -कभी तो 99 पर बैठा साँप काट कर सीधा 2 पर पहुँचा देता है | हताशा तो बहुत होती है पर हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते हैं | कई बार अगली ही चाल पर अचानक से फिर सीढयाँ मिलती जाती हैं और जीत भी जाते हैं |   हार भी गए तो गम नहीं क्योंकि असली मजा तो खेलने में है … जीत हार में नहीं | क्या यही बात जीवन पर लागू नहीं होती |  यह जीवन साँप – सीढ़ी के खेल की तरह ही है  मीता और सुधा दो पक्की सहेलियां थी | दोनों का खाना पीना , पढना लिखना , खेलना कूदना साथ – साथ होता था | दोनों सिंगर बनना चाहती थी | इसके लिए बचपन से ही वो पास के स्कूल में संगीत सीखने जाया करती थीं | दोनों अच्छा गाती  भी थी | दोनों ने ही भविष्य की प्ले बैक सिंगर बनने  का ख्वाब भी पाल लिया |और इसके लिए जी तोड़ मेहनत करने लगीं |  उन दोनों को स्कूल के वार्षिक समारोह में पहला मौका मिला | मीता और सुधा दोनों की सोलो परफोर्मेंस थी | सुधा स्टेज पर जाते ही घबरा गयी | उसके सुर कहीं के कहीं लग रहे थे | सारा हॉल हँसी के ठहाकों से भर गया |सुधा स्टेज से नीचे आ कर रोने लगी |  वहीँ मीता का गायन ठीक-ठाक था | सामान्य आवाज़ में बिना उतार चढाव के उसने गाना गा दिया | उसी सिर्फ इक्का – दुक्का तालियाँ मिलीं |  मीता को भी बहुत हताशा थी |उसे बहुत अच्छे परफोर्मेंस की आशा थी |  वो सुधा  के पास  दुःख बांटने गयी | तब तक सुधा शांत हो चुकी थी | तभी प्रिंसिपल मैंम  आयीं | उन्होंने सुधा से कहा ,” गायन तुम्हारे बस की बात नहीं है | तुम इसे छोड़ दो | यही बेहतर होगा | उन्होंने मीता से भी कहा कि तुम्हें अभी बहुत रियाज़ की जरूरत है | अगर बहुत मेहनत करोगी तो शायद तुम्हें सफलता मिल जाए |  मीता  को प्रिंसिपल मैंम की बातों  से कुछ संबल तो मिला |फिर  उसके अन्दर सुधा से जीत का भाव भी था |उसने  अगली परफोर्मेंस के लिए उसने सुधा से बहुत मेहनत करने को कहा | स्वयं भी उसने बहुत मेहनत  करने का मन बनाया | पर अगली परफोर्मेंस भी वैसी ही रही | लगातार तीन परफोर्मेंस के बाद भी नतीजा वही रहा | इससे निराश हो कर मीता ने मन बना लिया कि वो गायन छोड़ देगी | पर सुधा ने गायन न छोड़ने व् निरंतर अभ्यास करने का मन बनाया |  जहाँ एक तरफ मीता सुधा से बेहतर तीन परफोर्मेंस करने के बाद भी  गायन छोड़ चुकी थी | वहीँ सुधा चौतरफा दवाब व् हतोत्साहन  झेलते हुए भी लगातार रियाज़ कर रही थी | वो अनेकों बार असफल हुई | पर एक दिन वो मौका आया जब  उसकी परफोर्मेंस बहुत उम्दा हुई | जिसे वहां मौजूद मुख्य अतिथि मशहूर फिल्म  संगीतकार के एस राव ने भी बहुत पसंद किया | उन्होंने उसे अपनी फिल्म में कुछ पंक्तियाँ गाने को दी | सुधा ने उन्हें ठीक से गा दिया उसका नाम और आवाज़ लोगों की निगाह में आने लगी | धीरे – धीरे उसे काम मिलने लगा |  आज सुधा एक मशहूर प्ले बैक सिंगर है | और मीता एक होम मेकर | मीता जो पहली परफोर्मेंस  में सुधा से बेहतर थी | पर वो असफलताओं का सामना नहीं कर पायी | उसने खेल का मैदान ही छोड़ दिया | जिससे वो बिना खेले ही हार गयी | हो सकता है वो मेहनत करती तब भी उसे सुधा जैसी सफलता न मिलती | पर कुछ सफलता तो मिलती या कम से कम अपने पहले प्यार गायन से दूर तो न होती | वो गायन जो उसकी रग -रग में भरा था | उससे दूर रह कर वो कभी खुश रह सकी होगी ?  खेल कर हारने से बिना खेले हारना ज्यादा दुखद है  असली मजा खेलने में है  सुधा और मीता की हो या हमारी – आपकी ,ये जिन्दगी साँप -सीधी के खेल जैसी है |  यहाँ असफलता के साँप  और सफलता की सीढियां हैं | कभी असफलताओं का साँप काटता है तो कभी अचानक से सीढ़ी मिल जाती है और शुरू हो जाता है सफलताओं का दौर | लेकिन जिंदगी के खेल में जब भी साँप काटता है हम निराश हो जाते हैं | कई बार अवसाद में जा कर खेल खेलना ही छोड़ देते हैं | खेल खेलना ही छोड़ दिया तो हार निश्चित है | जब साँप सीढ़ी के खेल में हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते तो जिंदगी में क्यों हम हताश होकर पासा फेंकना क्यों छोड़ देते हैं ?  पासे फेंकते रहे , क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए | और सफलताओं का सिलसिला शुरू हो जाए | वैसे भी असली मजा तो खेलने में है |                                                      दोस्तों अपनी जिंदगी को वैसे ही लें जैसे साँप सीढ़ी के खेल को लेते है |राजा हो या भिखारी जब अंत सबका एक … Read more

भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया

बहुत समय पहले की बात है भारत के दक्षिण में उस समय राजा चंद्रसेन का राज्य था | यूँ तो राजा चंद्रसेन शैव था पर उसके राज्य में शैव व् वैष्णव दोनों सम्प्रदाय के लोग रहते थे | राजा भी सभी का समान रूप से सम्मान करता था | फिर भी उसके राज्य में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय में बहुत झगडे हुआ करते थे | दोनों एक दूसरे की सम्पत्ति व् पूजा स्थलों को नुकसान  पहुँचाया करते थे | राजा इसे रोकने का हर संभव प्रयास करता | लोगों को समझाता पर अन्तत : कोई परिणाम न निकलता | ऐसे लोग बहुधा भीड़ में छुपे रहते जो दूसरों को बरगलाते थे | इस कारण उनको पकड़ना मुश्किल हो जाता | इससे राजा को बहुत दुःख लगता | ईश्वर  का घर भक्त के ह्रदय में है  अक्सर राजा इसी बारे में सोंचता रहता | उसे ये भी लगता की भगवान् उन लोगों को स्वयं दंड क्यों नहीं देता | भगवान् को तो सब पता है वो उन्हें आसानी से दंड दे सकता है | फिर मौन क्यों साध लेता है | इस तरह से मंदिरों को टूटते हुए कैसे देख सकता है | एक दिन राजा यही सोंचते – सोंचते सो गया | उसने स्वप्न में देखा की भगवान् आये हैं | उसने भगवान् को प्रणाम कर उनका स्वागत सत्कार किया व् उनसे यही प्रश्न पूंछा |  राजा के प्रश्न पर भगवान् मुस्कुराते हुए बोले समय आने पर मैं इसका उत्तर दूंगा | यह कहा कर वो अंतर्ध्यान हो गए |  राजा भी अपने राज्य के कामों में लग गया | एक दिन वो अपने दो बेटों के साथ समुद्र के किनारे घूमने गया | उसके बच्चे रेत का घरौदा बनाने में लग गए |दोनों अलग – अलग घरौदा बना रहे थे | दोनों ही घरौंदे  बहुत सुन्दर थे | राजा , रानी के साथ अपने बेटों के घरौंदे देख कर बहुत खुश हो रहा था | तभी अचानक दोनों बच्चों में विवाद छिड  गया की उनका घरौदा दूसरे से बेहतर है | बच्चे अपनी – अपनी बात सिद्ध करने की कोशिश करते रहे | थोड़ी देर में उनमें हाथ पाई हो गयी |  गुस्से  में उन दोनों ने एक दूसरे के घरौंदे तोड़ डाले | व् राजा – रानी के पास आकर बैठ गए | राजा – रानी ने दोनों को  प्यार किया की अरे घरौदे तो रेत के थे | टूट गए तो क्या हुआ | बच्चे खुश हो कर फिर से खेलने लगे |  उसी रात राजा के स्वप्न में भगवान् आये | उन्होंने राजा से कहा ,” राजन , तुमने अपने बच्चों को दंड क्यों नहीं दिया जब उन्होंने एक – दूसरे के घरौंदे तोड़े |  राजा बोला ,” प्रभु आप तो सर्वग्य हैं आप को तो पता है वो बच्चे हैं उनमें समझ नहीं है | वो महल बना रहे थे | जबकि उनका असली महल तो यहाँ है | उनकी इस नादानी का आनद लिया जाता है | इस पर उन्हें दंड थोड़ी ही दिया जाता है |  भगवान् ने मुस्कुरा कर कहा ,” बिलकुल सही, यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है | जो एक – दूसरे के  मंदिर तोड़ रहे थे | भक्त और भगवान का तो अटूट बंधन होता है |वो  नादान हैं उन्हें नहीं पता की मेरा घर मंदिर नहीं भक्तों का ह्रदय हैं | अब तुम ही बताओ मैं उनकी नादानी पर मुस्कुराऊं या उन्हें दंड दूं |  राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया |  दोस्तों , इस प्रेरक कथा में हमारी आज की समस्याओं का भी हल छुपा हुआ है |हम आज भी धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं | इसके पीछे इश्वर के प्रति प्रेम नहीं मेरा ईश्वर तेरे ईश्वर से महांन  है का भाव छिपा हुआ है | क्योंकि अगर हमारा  ईश्वर महान है तो उसे मानने  वाले हम अपने आप दूसरे से श्रेष्ठ हो गए | यह केवल अहंकार का तुष्टिकरण है | ये जानते समझते हुए भी कभी – कभी ईश्वर के भक्त आहत होते रहते हैं कि ईश्वर ये सब विद्ध्वंश देखता है फिर भी  उन्हें दंड क्यों नहीं देता | यह कहानी हमारे इसी प्रश्न को शांत करती है | ईश्वर जानते हैं वो नादान हैं | क्योंकि ईश्वर का घर तो भक्तों के ह्रदय में है |  इसीलिए  जो सही में ईश्वर  के भक्त हैं वो इस सत्य को समझते हुए सभी धर्मों का आदर करते हैं |  बाबू लाल  यह भी पढ़ें ……. प्रेरक कथा – दूसरी गलती सजा किसको प्रेरणा बाल मनोविज्ञानं पर  आधारित पांच लघु कथाएँ आपको आपको  कहानी  “भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

प्रेरक कथा – दूसरी गलती

स्वर्ग – नरक भले ही कल्पना हो | पर इन कल्पनाओं के माध्यम से हमें जीवन का मार्ग बताने की शिक्षा दी जातीं हैं | जैसे की इस प्रेरक कथा में स्वर्ग – नरक के माध्यम से जीवन में असफलता व् दुःख झेलने की वजह बताने की चेष्टा की गयी है | Hindi motivational story – swarg ka darvaaja एक व्यक्ति मरने के बाद ऊपर पहुंचा | उसने देखा वहां दो दरवाजे हैं | उसमें निश्चित तौर पर एक दरवाजा स्वर्ग का व् एक नरक का था | हालांकि किसी पर कुछ लिखा नहीं था | अब हर व्यक्ति की तरह वो व्यक्ति भी स्वर्ग ही जाना चाहता था | तो उसने ध्यान से दोनों दरवाजों को देखा | एक दरवाजे सेबहुत  सारे लोग अन्दर जा रहे थे | जबकि दूसरे से एक्का – दुक्का  लोग ही अन्दर जा रहे थे | व्यक्ति ने सोंचा की जिसमें ज्यादा लोग अन्दर जा रहे हैं वही स्वर्ग का दरवाजा होगा | वो भी उसी दिशा में आगे बढ़ने लगा | तभी यमदूत वहां आया | और बोला ,’ अरे , अरे ये तो नरक का दरवाजा है | स्वर्ग का तो वो है | लेकिन आप इस तरफ बढ़ चले हैं तो आप को नरक में ही जाना होगा | वह आदमी घबराया उसने दूत से कहा ,” मैं तो भीड़ देख कर ऊधर चल दिया था | क्या मैं वापस स्वर्ग में नहीं जा सकता | कोई तो उपाय  होगा | यमदूत बोला ,” वैसे तो मुश्किल है पर क्योंकि आपने पुन्य किये हैं इसलिए मैं आपको यह बही खाते की किताब दे रहा हूँ | आप इसमें से अपनी एक गलती दूर कर सकते हैं | मतलब मिटा सकते हैं | पर यह मौका आपको सिर्फ एक बार ही मिलेगा | जब उस आदमी के हाथ बही – खाते की किताब आई तो वो उलट – पलट कर देखने लगा | उसने देखा की उसके पड़ोसी के पुन्य तो उससे कई गुना ज्यादा हैं | अब तो पक्का उसे स्वर्ग मिलेगा | और ज्यादा दिन को मिलेगा | यह सोंच कर उसे बहुत ईर्ष्या होने लगी की उसका पड़ोसी बहुत ज्यादा दिनों तक स्वर्ग भोगेगा | उसने थोड़ी देर तक सोंच – विचार करने के बाद अपने पड़ोसी द्वारा किया गया एक बड़ा सा पुन्य मिटा दिया |वो चैन की सांस ले कर अगला पन्ना पलटने ही वाला था तभी यमदूत ने आकर उसके हाथ से किताब ले ली | और उसे नरक की तरफ ले जाने लगा | आदमी रोने चिल्लाने लगा अरे अभी तो मैं अपनी गलती ठीक ही नहीं कर पाया | आप मुझे नरक क्यों भेज रहे हैं | यमदूत मुस्कुराया और बोला ,” मैंने आपसे पहले ही कहा था की आप के पास बस एक मौका है | वो मौका आपने अपने पड़ोसी के पुन्य मिटाने में गँवा दिया | इस तरह से आपने थोड़ी ही देर में दो  गलतियां कर दी | एकतो जब आप पहले जब आप स्वर्ग जा सकते थे तब आपने भीड़ का अनुसरण किया | दूसरी बार जब आप कोमौका मिला तो अपनी गलती सुधारने के स्थान पर आपने पड़ोसी का पुन्य मिटाने का काम किया | जबकि आप का पड़ोसी तो अभी और दिन धरती पर रहने वाला है वो और पुन्य कर लेगा पर आप का तो आखिरी मौका चला गया | अब उस आदमी के पास नरक भोगने के आलावा कोई रास्ता नहीं था |उसने स्वयं स्वर्ग का दरवाजे से जाने का मौका गंवाया था | दोस्तों ये प्रेरक कथा हमें जीवन की शिक्षा देती है | मरने के बाद क्या होता है किसने देखा है पर जीते जी असफलता का कारण यही  दो गलतियाँ ही तो होती हैं | एक भीड़ को फॉलो करना | अपनी  पैशन को जानने समझने के स्थान पर हम भीड़ को फॉलो करते हैं| सब इंजीनियर बन रहे हैं या डॉक्टर बन रहे हैं तो हमें भी बनना है | सब टीचर बन रहे हैं तो हमें भी बनना है | भले ही हमारा मन गायक बनने  का हो |  तो ऐसी में न काम में मन लगता है न सफलता मिलती है जिस कारण जीवन नरक सामान लगने लगता है | जिसे अनचाहे ही भोगते हैं | व् दूसरी गलती ये होती है की हम अपने काम से ज्यादा इस बात की चिंता करते हैं की दूसरे हमसे नीचे कैसे हो या हम कोई चीज न पा सके तो न पा सके पर हमारा पड़ोसी उसे बिलकुल न पा सके | धन , नाम , पावर सब में हम अपने आस –पास वालों को अपने से कम देखना चाहते हैं |  इस ईर्ष्या के कारण हम खुद ही असफलता के द्वार खोलते हैं | क्योंकि हमारा फोकस काम पर न हो कर  बेकार की बातों पर होता है | जो हमें अन्तत : असफलता की और ले जाती है और हमारा स्वर्ग सा जीवन नरक में बदल देती हैं | इस प्रकार हम खुद ही ये दो गलतियाँ  कर के अपने स्वर्ग का दरवाज़ा बंद कर नरक का द्वार खोल देते हैं |यदि आप जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो ये दो गलतियां न करें | भीड़ को फॉलो करने के स्थान पर अपने दिल की आवाज़ सुने |व् दुसरे का काम बिगाड़ने के स्थान पर अपने काम  पर ध्यान दें | फिर देखिएगा ये जीवन कैसे स्वर्ग सा सुखद हो जाता हैं |  नीलम गुप्ता  दिल्ली  परिस्थिति सम्मान राम रहीम भीम और अखबार अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “प्रेरक कथा – दूसरी गलती “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

सजा किसको

saja kisko motivational story in hindi सुधीर  ११ वीं का छात्र है । अपना सामान बेतरतीब से रखना वो अपना धर्म समझता है । माँ को कितनी मुश्किल होती होगी इस सब को संभालने में उसे कोई मतलब नहीं । रोज सुबह उसका चिल्लाना … मेरा रुमाल कहाँ है , मोजा कहाँ है , वगैरह वगैरह बदस्तूर जारी रहता । माँ आटे से सने हाथ लिए दौड़ -दौड़ कर उसका सामान जुटाती । माँ उसको रोज समझाती ‘ बेटा अपना सामान सही जगह पर रखा करो … मुझे बहुत परेशानी होती है ‘। पर सुधीर उल्टा माँ पर ही इल्जाम लगा देता ” तुम जो करीने से सब रखती हो उससे ही सब बिगड़ जाता है ‘। आज माँ दूसरे  ही मूड में थी … उन्होंने सुधीर को अल्टीमेटम दे दिया … अगर  आज  अपना कमरा ठीक नहीं किया तो मैं तुम्हें स्कूल नहीं जाने दूँगी, ये तुम्हारी सजा है ।  आज वाद -विवाद प्रतियोगिता में सुधीर प्रतिभागी था । सो गुस्से में तमतमाते हुए उसने कमरा तो ठीक कर दिया पर बडबडाता रहा …  ये माँ है या तानाशाह इसकी मर्ज़ी से ही घर चले । अगर इनका हुक्म ना बजाओ तो सजा । what a rubbish ! गुस्से के कारण ना तो सुधीर  ने नाश्ता किया और ना ही लंच बॉक्स बैग में रखा । माँ पीछे से पुकारती ही रही । स्कूल जाते ही दोस्तों ने कैंटीन में उसे गरमागरम समोसे खिला दिए । गुस्सा शांत हो गया । प्रतियोगिता आरम्भ हुई … और उसमें सुधीर विजयी हुआ । देर तक कार्यक्रम चला । सब प्रतियोगियों को स्कूल की तरफ से खाना खिलाया गया । शाम को जब सुधीर घर आया, घर कुछ बेतरतीब सा दिखा । किचन में पानी पीने  गया । पर ये क्या एक भी गिलास धुला  हुआ नहीं है … और तो और पानी की बाल्टी भी नहीं भरी है । किचन से बाहर निकला तो पास वाले कमरे से डॉक्टर की माँ से बात करने की आवाज़ आ रही थी । ‘ जब आपको पता है कि इन्सुलिन लेने के बाद अगर कुछ ना खाओ तो डायबिटीज का मरीज़ कोमा में भी जा सकता है तब आपने ऐसा क्यों किया । ये तो अच्छा हुआ की आपकी पड़ोसन आपसे मिलने आ गयीं वर्ना आप तो बड़ी मुश्किल में पड जातीं  ‘। माँ टूटी आवाज़ में बोलीं ‘ क्या करूं  डॉक्टर साहब … आज बेटा  गुस्से में भूखा ही चला गया था, जब भी खाना ले कर बैठती बेटे का चेहरा याद आ जाता … खाना अंदर धंसा ही नहीं ‘। दरवाज़े पर खड़ा सुधीर सोंच रहा था … सजा माँ ने उसे दी …. या उसने माँ को ।                   बच्चों , हम सब की माँ सारा दिन हमारे लिए मेहनत  करती हैं | उनकी सारी  दुआएं बच्चों के लिए ही होतीहैं | ऐसे में अगर आप की माँ आप को कुछ डांट  दे तो ये उसका प्यार ही है | इस प्यार को समझने के लिए दिल की जरूरत है न की दिमाग की जो सजा पर अटक जाता है | अन्तत : ये समझना मुश्किल हो जाता है की सजा किसको मिली है वंदना बाजपेयी  जह भी पढ़ें … झूठ की समझ सम्मान बाल मनोविज्ञान पर आधारित पांच लघुकथाएं अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “सजा  किसको “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें   

प्रेरक कथा – जैसा खाए अन्न वैसा हो मन

हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत सारी प्रेरक कथाएँ सम्मलित हैं | जो आहिस्ता से किसी बड़ी शिक्षा को हमें समझा देती हैं | ऐसी ही एक प्रेरक कथा मैं आप के सामने प्रतुत करने जा रही हूँ | कथा महाभारत के समय की है | जैसा  की सब को पता है की महाभारत के युद्ध में धर्म और अधर्म के बीच लड़ाई हुई थी | बहुत रक्तपात हुआ | अंत में धर्म यानी पांडवों की विजय व् अधर्म यानी कौरवों की हार हुई | इसी युद्ध में इच्छा मृत्यु प्राप्त भीष्म पितामह अर्जुन के हाथों मृत प्राय होकर शर शैया पर गिर पड़े | उन्होंने अपने किसी पिछले जन्म के कर्म का चक्र पूरा करने के लिए स्वयं ऐसी मृत्यु चुनी थी | युद्ध समाप्ति के बाद भी सूरज के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हुए वो उसी शर शैया  पर ही लेटे रहे | एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी उनसे मिलने गए | सब उनके चारो तरफ बैठे गए और पितामह उन्हें धर्म का उपदेश दे रहे थे।  सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों को सुन रहे थे कि अचानक द्रौपदी खिलखिलाकर कर हंस पड़ी।  दौपदी तो प्रिय बहु थी |पितामह उसकी इस हरकत से बहुत आहत हो गए और उपदेश देना बंद कर दिया।  पांचों पांडवों  भी द्रौपदी के इस व्य्वहार से आश्चर्यचकित थे।  सभी बिलकुल  शांत हो गए।  कुछ क्षणोपरांत पितामह बोले ,  ” पुत्री, तुम एक सभ्रांत कुल की बहु हो , क्या मैं तुम्हारी इस हंसी का कारण जान सकता हूँ ?” द्रौपदी बोली-” पितामह, आज आप हमे अन्याय के विरुद्ध लड़ने का और धर्म का उपदेश दे रहे हैं , लेकिन जब भरी सभा में मेरे कपडे उतार कर मुझे अपमानित करने का प्रयास किया जा रहा था | तब तो आप भी सबके साथ मौन ही थे |आखिर तब आपके ये उपदेश , ये धर्म कहाँ चला गया था ? यह सुन पितामह की आँखों से आंसू  आ गए।  कातर स्वर में उन्होंने कहा  , “बेटी तुम तो जानती हो कि मैं उस समय दुर्योधन का अन्न खा रहा था।  वह अन्न प्रजा को दुखी कर एकत्र किया गया था , ऐसी अन्न को खाने से मेरे संस्कार दूषित हो गए थे | तब मैं अन्याय का विरोध न कर सका | अब जब की उस अन्न से बना मेरा लहू बह चुका है | तब मुझे फिर से संस्कार बोध हो गया है | मुझे धर्म समझ आ रहा है |  सच में जो जैसा अन्न खाता है उसका मन वैसा ही होता है |                                     मित्रों आज भी ये शिक्षा बदली नहीं है | इसी लिए कहते हैं धन कमाओ पर धर्म न गंवाओं | क्योंकि अगर धन सही तरीके से कमाया गया है | तभी उस घर में अच्छे संस्कार आते हैं | अच्छे संस्कार अच्छे भाग्य में परिवर्तित होते हैं | जो धन लूटपाट , घूसखोरी व् दूसरों का हक़ मार कर कमाया जाता है | वहां बीमारी , कष्ट , चोट – चपेट में धन व्यर्थ चला जाता है | उस घर के बच्चे कुसंस्कारी निकलते हैं जो धन को व्यर्थ की ऐशो – आराम में गंवा देते हैं |  इसलिए नेक कामों से व् नेक लोगों के हाथ बनया भोजन करे व् सात्विक और धर्म के मार्ग पर चलें | दीप्ति दुबे  फोटो क्रेडिट –वेब दुनिया यह भी पढ़ें  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क यकीन ढिंगली मोक्ष आपको आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा – जैसा खाए अन्न वैसा हो मन “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

बाल मनोविज्ञान आधारित पर 5 लघु कथाएँ

बच्चे हमारी पूरी दुनिया होते हैं | पर बच्चों की उससे अलग एक छोटी सी दुनिया होती है | कोमल सी , मासूम सी | उनमें एक कौतुहल होता है और ढेर सारी जिज्ञासाएं | हर बात पर उनके प्रश्न होते है | और हर प्रश्न के लिए उन्हें उत्तर चाहिए | मिल गया तो ठीक नहीं तो वो हर चीज को अपने तरीके से समझने की कोशिश करते हैं | बच्चे भले ही छोटे हों पर उनके मन को समझना बच्चों का खेल नहीं है | आज उनके हम उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश करते हुए आप के लिए लाये हैं पांच लघुकथाएं … पढ़िए बाल मनोविज्ञान पर पाँच  लघु कथाएँ  चिंमटा  नन्हा रिंकू खेलने में मगन है | आज वो माँ रेवती के साथ किचन में ही खेल रहा है | घर की सारी  कटोरियाँ उसने ले रखी हैं | एक कटोरी का पानी दूसरे में दूसरी का तीसरे में … बड़ा मजा आ रहा है उसको इस  खेल में | तभी उसका ध्यान चिमटे की ओर चला जाता है | वो झट से चिंमटा  उठा कर बजाने लगता है …टिंग , टिंग ,टिंग | रेवती  उसे मना  करती है ,” बेटा  चिमटा मत बजाओ | पर रिंकू कहाँ मानने वाला है | खेल चल रहा है … टिंग टिंग , टिंग  रेवती  :मत बजाओ , रखो उसे  रिंकू :टिंग , टिंग , टिंग  माँ चिंमटा  छींनते  हुए कहती है ,”नहीं , बजाते चिमटा ,पता है चिंमटा  बजाने से घर में कलह होने लगती है |  रिंकू रोने लगता है | तभी रिकू के पापा सोमेश फाइलों से सर उठा कर कहते हैं ,”दे दो चिमटा | मुझे ये फ़ाइल कल ही जमा करनी है | इसकी पे पे से तो चिमटे की टिंग , टिंग भली  रेवती  ; ऐसे कैसे दे दूँ | चिंमटा  बजाने से घर में कलह होने लगती है | सोमेश  :क्या दकियानूसी बात है | रेवती  : दकियानूसी नहीं , पुरखों से चली आ रही है |ऋषि – मुनि कह गए हैं | सोमेश  : सब अन्धविश्वास है | कम से कम मेरे बेटे को तो  अन्धविश्वास  मत सिखाओ रेवती : (आँखों में आँसूं भर कर )मुझे ही कहोगे | जब तुम्हारी माँ कहती हैं की चावल तीन बार मत धो , नहीं तो वो भगवान् के हो जाते हैं खा नहीं सकते | तब कहते हो मानने में क्या हर्ज है माँ कह रहीं है तो जरूर ही सच होगा  | फिर उनका  इतना  मन तो रख सकते हैं | आज मैं अपने बेटे से इतना भी नहीं कह सकती | सोमेश : (आवेश में ) देखो माँ को बीच में मत लाओ रेवती : क्यों न लाऊ | जो तुम्हारी माँ कहे वो संस्कार , जो मैं कहूँ वो पोंगा पंथी सोमेश : अच्छा, और तुम्हारी माँ तो …..                           रिंकू सहम कर चिंमटा  एक तरफ रख देता है | उसे पता चल गया है कि चिंमटा  बजाने से घर में कलह होती है | ———————————————————————— क़ानून  सरला जी ने दरवाजा खोला … ये क्या …. उनका ४ वर्षीय बेटा चिंटू आँखों में आँसू  लिए खड़ा है । क्या हुआ बेटा … सरला जी ने अधीरता से पूंछा । मम्मी आज मैं ड्राइंग की कॉपी नहीं ले गया था, इसलिए मैम ने चांटा मार दिया ।  सरला जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया । गुस्से मैं बोलीं … ये कैसी औरत है , तुम्हारी टीचर  क्या उसे बच्चों के कानून के बारे में पता नहीं है । चलो मेरे साथ मैं आज ही उस को कानून बताउंगी । तमतमाती हुई सरला जी चिंटू को साथ ले स्कूल पहुंची । प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत की और उन्हें बच्चों के कानून का वास्ता दिया । प्रिंसिपल ने तुरंत टीचर को बुलाकर ताकीद दी कि छोटे बच्चों को बिलकुल न मारा जाये ये कानून है ।  ख़ुशी ख़ुशी चिंटू अपनी मम्मी के साथ घर आ गया । खेलते खेलते उसने ड्रेसिंग टेबल की अलमारी खोल ली । रंग बिरंगी लिपस्टिक देखकर उसका मन खुश हो गया । कुछ दीवार पर पोत दी कुछ मुँह  पर लगा ली और कुछ सहज भाव से तोड़ दी ।   सरला जी वहां आयीं और ये नज़ारा देखकर उन्होंने आव देखा न ताव … चट चट ३-४ तमाचे चिंटू के गाल पर जमा दिए और कोने में खड़े होने की सजा दे दी । कोने में चिंटू खड़ा सोंच रहा है ….. क्या घर में छोटे बच्चों को मारने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है । ——————————– आत्मा  आज सुधीर दादी के साथ सुबह – सुबह मंदिर दर्शन को गया है । दादी सुमित्रा देवी ने सोंचा कि आज छुट्टी का दिन है …. पोते की छुट्टी है तो चलो उसे ले चलते हैं, आखिर संस्कार भी तो सिखाने हैं । सबसे पहले सुमित्रा देवी ने मंदिर के प्रांगण  में लगे पीपल को नमस्कार करने को कहा । सुधीर ने पूंछा ‘ क्यों दादी पेड़ को नमस्कार क्यों करें ‘। सुमित्रा देवी ने समझाया ‘ बेटा पेड़ भी जीवित होता है । उसमें भी आत्मा होती है और हर आत्मा में परमात्मा यानि की भगवान् होते हैं …. इसलिए हमें हर जीव का और पेड़ों का आदर करना चाहिए ‘। सुधीर दादी के साथ आगे बढ़ा । दादी ने गणेश जी को लड्डू का भोग लगाने के लिए कहा । सुधीर लड्डू चढ़ा रहा था की लड्डू छिटक कर दूर जा कर गिरा । सुधीर लड्डू उठाने लगा तो सुमित्रा देवी बोलीं ‘ सुधीर सम्मान के साथ भोग लगाया जाता है । यह गिर गया है तो दूसरा लड्डू चढाओ । किसी को कुछ दो तो इज्ज़त के साथ देना चाहिए … फिर ये तो परमात्मा हैं ‘। 4 वर्षीय सुधीर सब समझता जा रहा था । कैसे सम्मान देने के लिए दोनों हाथ लगा कर पूजा करनी चाहिए, कैसे हर जीव का आदर करना चाहिए । सुधीर बहुत खुश था, जैसे की प्रायः बच्चे किसी नयी चीज़ को सीख कर होते हैं । पूजा करने के बाद सुधीर दादी के साथ मंदिर से बाहर निकला । भिखारियों की भीड़ लगी थी । दादी … Read more

सफलता का बाग़

दोस्तों हम सब सफल होना चाहते हैं | इसके लिए शुरुआत भी बड़े जोर – शोर से करते हैं | पर सिर्फ शुरुआत की मेहनत  ही काफी नहीं है | सफलता के लिए लगातार परिश्रम के साथ धैर्य भी जरूरी है | नहीं  तो इन बंदरों की तरह हमें भी पछताना पड़ेगा | कैसे …… motivationl story in hindi  safalta ka baag एक आम के बाग़ के पास में बहुत सारे बन्दर रहा करते थे | वो जब तब झुण्ड बना कर बाग़ में पहुँच जाते थे और आम तोड़ कर खाने का प्रयास करते थे | पर बाग़ का  रखवाला उन्हें पत्थर मार – मार कर खदेड़ देता | नतीजे में आम तो उन्हें बहुत कम मिलते पत्थर ज्यादा मिलते | वो बेचारे ललचाते ही रह जाते |  बंदरों का मुखिया इस बात से बहुत परेशान था उसे रोज – रोज का अपमान अच्छा नहीं लगता | लिहाजा उसने सभी बंदरों की एक सभा बुलाई और कहा ,” हमारे बन्दर आम की जगह रोज पत्थर खा रहे हैं | ये तो बहुत शर्म की बात है | अब हम रोज – रोज यह अपमान नहीं सहेंगे | हम अपना एक अलग बाग़ लागयेंगे | | देखो तो नदी के किनारे की जमीन खाली भी पड़ी है | जब हमारा बाग़ होगा | तो हम जब चाहें , जितने चाहें आम खा सकते हैं | कोई हमें न रोक पायेगा न अपमानित कर पायेगा |  सब को मुखिया की बात बहुत अच्छी लगी | वाह अपना बाग़ | इस कल्पना से ही वो खुश हो गए | उन्होंने मुखिया से पूँछा ,” हम अपना बाग़ लगायेंगे कैसे ?”मुखिया ने कहा ,”अरे ये तो बहुत आसान है | ये जो आम् खाकर  उस गुठली को हम फेंक देते हैं | उसे जमीन में बो देना है | पानी देना है | फिर देखना कैसे आम की फसल लहलहाएगी | मैंने सब देखा है पर उससे पहले हमें जमीन को समतल करना होगा |  सारे बन्दर पूरा तरीका जान कर खुश हो गए | उन्होंने  बाग़ के लिए खाली पड़ी जमीन को समतल कर दिया | फिर उसमें गुठलियाँ बो दी | वो बहुत खुश थे की अब उनका अपना बाग़ होगा | पर ये क्या अभी १५ मिनट भी नहीं बीते होंगे की उन्होंने सारी  गुठलियाँ ये कहते हुए निकाली की देखे हमारे पेड़ कितने बड़े हुए | फिर उसके बाद पुन: बो दी | पूरे दिन भर में ये काम उन्होंने दसियों बार किया | और हर बार निराश हो कर कहते कि लो अभी तो कुछ  हुआ ही नहीं |  आम के बाग़ का रखवाला जो अपने बेटे के साथ  सुबह से उनके क्रिया कालाप देख रहा था | वो भी शुरू – शुरू में बंदरों के सुधर जाने का आनंद ले रहा था | पर जब उसने उन्हें बार – बार गुठली निकालते देखा तो उससे रहा न गया और अपने बेटे से बोला ,” बेटा देखा तुमने सफलता केवल परिश्रम से ही नहीं मिलती | उसके लिए धैर्य  की भी जरूरत होती है | बंदरों ने परिश्रम किया पर उनमें धैर्य  नहीं था | इसलिए उनका बाग़ कभी नहीं बनेगा |  ये बात सिर्फ बंदरों पर नहीं हम सब पर लागू होती है | सफलता के लिए धैर्य की बहुत जरूरत होती है | कई लोग बहुत जोर – शोर से काम शुरू तो करते हैं पर बाद मे थोड़े ही दिन में उकता जाते हैं और बीच में छोड़ देते हैं | जिससे सफलता मिलना संदिग्ध हो जाता है | सफलता का मूल मन्त्र केवल मेहनत नहीं लगातार  मेहनत के साथ धैर्य भी है | तभी सफलता का बाग़ तैयार होता है |  सरिता जैन  यह भी पढ़ें … विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा    आपको आपको  प्रेरक कथा “सफलता का बाग़  “ कैसा लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |