स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “
स्वामी विवेकानंद हमारे देश का गौरव हैं| बचपन से ही उनके आम बच्चों से अलग होने के किस्से चर्चा में थे | पर कहते हैं न की कोई व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है| स्वामी विवेकानंद जी के भी कुछ पूर्वाग्रह थे , जो उनको एक सच्चा संत बनने के मार्ग में बाधा बन रहे थे| परन्तु अन्तत: उन्होंने उस पर भी विजय पायी, परन्तु ये काम वो अकेले न कर सके इसके लिए उन्हें दूसरे की मदद मिली | क्या आप जानते हैं स्वामी विवेकानंद के पूर्वाग्रह तोड़ कर उन को पूर्ण रूप से महान संत का दर्जा दिलाने वाली कौन थी? उत्तर जान कर आपको बहुत आश्चर्य होगा… क्योंकि वो थी एक वेश्या |आइये पूरा प्रकरण जानते हैं – स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष प्रसंग ये किस्सा है जयपुर का, जयपुर के राजा स्वामी राम कृष्ण परमहंस व् स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े अनुयायी थे| एक बार उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने महल में आमंत्रित किया| वो उनका दिल खोल कर स्वागत करना चाह्ते थे | इसलिए उन्होंने अपने महल में उनके सत्कार में कोई कमी नहीं रखी| यहाँ तक की भावना के वशीभूत हो उन्होंने स्वामी जी के स्वागत के लिए नगरवधुएं (वेश्याएं ) भी बुला ली| राजा ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि स्वामी के स्वागत के लिए वेश्याएं बुलाना उचित नहीं है | उस समय तक स्वामी जी पूरे सन्यासी नहीं बने थे| एक सन्यासी का अर्थ है उसका अपने तन –मन पर पूरा नियंत्रण हो| वो हर किसी को जाति , धर्म लिंग से परे केवल आत्मा रूप में देखे| स्वामी जी वेश्याओं को देखकर डर गए| उन्हें उनका इस तरह साथ में बैठना गंवारा नहीं हुआ| स्वामी जी ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया| जब राजा को यह बात पता चली तो वो बहुत पछताए| उन्होंने स्वामी जी से कहा कि आप बाहर आ जाए, मैं उन को जाने को कह दूँगा | उन्होंने सभी वेश्याओं को पैसे दे कर जाने को कह दिया| एक वेश्या जो जयपुर की सबसे श्रेष्ठ वेश्या थी| उसे लगा इस तरह अपमानित होने में उसका क्या दोष है| वह इस बर्ताव से बहुत आहत हुई| वेश्या ने भाव -विह्वल होकर गीत गाना शुरू किया उस वेश्या ने आहात हो कर एक गीत गाना शुरू किया| गीत बहुत ही भावुक कर देने वाला था| उसके भाव कुछ इस प्रकार थे … मुझे मालूम है मैं तुम्हारे योग्य नहीं, तो भी तुम तो करुणा दिखा सकते थे मुझे मालूम है मैं राह की धूल सही , पर तुम तो अपना प्रतिरोध मिटा सकते थे मुझे मालूम है , मैं कुछ नहीं हूँ, कुछ भी नहीं हूँ मुझे मालूम है, मैं पापी हूँ, अज्ञानी हूँ पर तुम तो हो पवित्र, तुम तो हो महान, फिर भी मुझसे क्यों भयभीत हो जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ वो वेश्या आत्मग्लानि से भरी हुई रोते हुए ,बेहद दर्द भरे शब्दों में गा रही थी | उसका दर्द स्वामी जी की आँखों से बरसने लगा| उनसे और कमरे में न बैठा गया वो दरवाजा खोलकर बाहर आ कर बैठ गए| बाद में उन्होंने डायरी में लिखा,मैं हार गया| एक विसुद्ध आत्मा से हार गया | डरा हुआ था मैं,लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं था, मेरे ही अन्दर कुछ लालसा रही होगी, जिस कारण मैं अपने से डरा हुआ था| उसकी विशुद्ध आत्मा और सच्चे दर्द से मेरा भय दूर हो गया| विजय मुझे अपने पर पानी थी, किसी स्त्री का सामना करने पर नहीं| कितनी विशुद्ध आत्मा थी वह, मुझे मेरे पूर्वाग्रह से मुक्त करने वाली कितनी महान थी वो स्त्री | मित्रों अपनी आत्मा पर विजय ही हमें सच में महान बना ती है| जब कोई लालसा नहीं रहती , तब हमें कोई व्यक्ति नहीं दिखता, केवल आत्मा दिखती हैं .. निर्दोष पवित्र और शांत प्रेरक प्रसंग से टीम ABC यह भी पढ़ें … विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा आपको आपको लेख “ स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ ” “ कैसा लगा | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स KEYWORDS :Swami Vivekanand,Swami Vivekanand jaynti