झूठा –(लघुकथा )

वो थका हुआ घर के अंदर आया और दीवार के सहारे अपनी सायकिल खड़ी कर मुँह हाथ धोने लग गया । तभी पत्नी तौलिया हाथ में पकड़ाती हुई बड़े प्यार से पूछ बैठी “क्यों जी वो जो पायल जुड़वाने के लिए सुनार को दी थी वो ले आये..? “ “ओ-हो जल्दी-जल्दी में भूल गया ।”  उसने तौलिये से हाथ पोंछते हुए जवाब दिया ।  “चार दिन से चिल्ला रही हूँ ,रोज भूल जाते हो । मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है इस घर में ..।” पत्नी पाँव पटकती हुई रसोई में चली गयी थी ।  उसनें झाँक कर रसोई में देखा तो पत्नी अंदर ही थी । इधर उधर देखते हुए चुपचाप वो माँ के कमरे में आ गया । बेटे को देखते ही चारपाई में लगभग गठरी बनी हुई माँ के मानों जान आ गयी । वह अब माँ के पैताने बैठ गया था । “क्यों रे ! कितने दिन से बहू चिल्ला रही है ..क्यों रोज-रोज भूल जावे तू..कलेस अच्छा न लगे मोहे..।”  माँ उसका चेहरा अपने हाथों से टटोलते हुए कह ही रही थी कि तभी उसनें जेब से चश्मा निकालते हुए माँ को पहना दिया । “अम्मा मोहे भी न भावे तेरा टटोल टटोल कर यूँ चलना तो आज़ तेरा टूटा चश्मा बनवा लाया । सच कहूँ माँ पायल बनवाना तो भूल ही गया मैं ।” कहते हुए उसने माँ की गोद में अपना सिर रख दिया। “चल हट झूठे …!” कहते हुए माँ नें आँचल से उसकी आँखों की कोरों में छलक आये आँसुओं को पोंछ दिया । सुधीर द्विवेदी  यह भी पढ़ें ……… पापा ये वाला लो सफलता का हीरा स्वाद का ज्ञान बोनसाई राम , रहीम , भीम और अखबार सुधीर द्विवेदी जी की लघुकथा आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी , कविता , लेख है तो हमें editor.atootbandhan@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर प्रकाशित किया जाएगा | 

स्वाद का ज्ञान

Motivational story in hindi – swad ka gyan                          दोस्तों , हमारी माताओ और बहनों की आधी से अधिक  जिन्दगी रसोई में निकल जाती है | दिन का बड़ा हिस्सा वो रसोई में व्यंजन तैयार करने में लगा देती हैं | यहाँ उनकी सृजनात्मकता देखने को मिलती है | पर अपनी इस रचना धर्मिता में वो अपने स्वाद का ध्यान नहीं रखती | उनका पूरा ध्यान इस बात पर होता है की उनके द्वारा बनाए गए खाने से घर के सदस्य संतुष्ट हो जाएँ | ख़ास कर अपने पति और बच्चों की पसंद का खाना तैयार करते समय उनके मन में गज़ब का उत्साह और संतुष्टि होती है | अपने इस अवैतनिक काम के लिए वो बस दो शब्द स्नेह भरे सुनना चाहती हैं | तभी तो आपने भी महसूस किया होगा | बड़े मन से बनाए गए खाने को आपको परोसने के बाद एक निश्छल सा प्रश्न उनकी  तरफ से आता है ,” खाना कैसा बना है ? खाने वाले की स्वीकृति की मोहर उनका दिन बना देती है | पर क्या हम ऐसा कर पाते हैं ? आज एक ऐसी ही कहानी एक पंडित और पंडिताइन जी की है | पंडित जी अपनी पत्नी के साथ रहते थे | संतान कोई थी नहीं | घर में बस दो लोग |सुबह भोजन करने के बाद पंडित जी अपना पोथी पत्रा ले कर बाहर निकल जाते | देर शाम को घर आते | फिर खाना खा कर सो जाते | ये उनका दैनिक नियम था | अब पंडिताइन जी दन भर अकेली रहती | पति का स्नेह व् साथ पाने के लिए वो बहुत मेहनत से रसोई तैयार करती | धनिया का एक एक पत्ता तोडती , मसाले हाथ से सिल बटने पर पीसती , देर तक भूनती | इस तरह बड़ी मेहनत से सुस्वादु व्यंजन तैयार करती | फिर तैयार हो कर पति का इंतज़ार करती | पुलक कर खाना परोसने के बाद वो ये प्रश्न पूँछना नहीं भूलती की खाना कैसा बना है | उन्हें किसी मीठे से ऊत्तर का इंतज़ार रहता | पर उनका इंतज़ार पूरा होने का नाम नहीं ले रहा था | पंडित जी सर झुकाए झुकाए खाना खा लेते | पूंछने पर भी कोई उत्तर नहीं देते | पंडिताइन जी निराश हो जाती उन्हें लगता शायद खाना पंडित जी की रूचि के अनुसार नहीं बना है | जब वही खाना वह अडोस – पड़ोस में किसी को खिलाती तो सब बहुत प्रशंसा करते | फिर भी पंडिताइन जी को अपने पति से प्रशंसा सुननी थी | इसलिए वो संतुष्ट नहीं होती | वो अगले दिन और बेहतर बनाने का प्रयास करती | पर वही  ढ़ाक के तीन पात | पंडित जी को कुछ नहीं कहना था तो नहीं कहना था | दिन बीतते गए और पंडिताइन जी की निराशा भी बढती गयी | सारे प्रयास विफल जा रहे थे | एक दिन उन्होंने कुछ अलग करने का निश्चय किया | अगले दिन उन्होंने दाल चावल के कंकण नहीं बीने , वैसे ही बना दिए | सब्जियां ठीक से धोयी नहीं | हरी सब्जियां थी पकने के बाद किसकिसाने  लगी | रोटी भी कच्ची – पक्की सेंक दी | नियत समय पर पंडित जी खाना खाने बैठे | पंडिताइन जी ने खाना परोस दिया | पंडित जी ने जैसे ही पहला कौर मुंह में रखा | तो थू – थू कर के उलट दिया | गुस्से में पंडिताइन से बोले ,” ये भी कोई खाना है , इससे बेस्वाद तो कुछ हो ही नहीं सकता | ऊपर से इतना किसकिसा रहा है की मेरा पूरा मुंह धूल  से भर गया | पंडिताइन जी तो इसी अवसर की प्रतीक्षा  में थी | तपाक से बोली ,” अरे आप को तो स्वाद का ज्ञान हैं | रोज इतना रुच विध के आपके लिए खाना बनाती | पूँछती  भी की खाना कैसा बना है | बरसों – बरस बीत गए पर आपने कोई जवाब ही नहीं दिया | तब मुझे लगा की शायद आपको स्वाद का ज्ञान ही नहीं है | मैं बेकार ही इतनी मेहनत करती हूँ | मैं जो बनाउंगी , जैसा भी बनाउंगी आप चुप – चाप खा लेगे | अब पंडित जी का चेहरा देखने लायक था |उन्हें अपनी गलती का अहसास भी हो गया  | दोस्तों , हम सब की जीभ में टेस्ट बड्स यानी की स्वाद की ग्रंथियां होती हैं | जो हमें भोजन के स्वाद के बारे में बताती हैं | फिर भी कितने लोग हैं जो खुलकर तारीफ़ करते हैं |ये झूठा अहंकार किस बात का ?  ये हमारे ही घर की महिलाएं हैं जो इतनी मेहनत से भोजन तैयार करती हैं | क्या हमारा फर्ज नहीं बनता की खाना पसंद आने पर खुलकर प्रशंसा करें व् उन्हें इस के लिए धन्यवाद करें | उम्मीद है की आपभी अब इस बात का ध्यान रखेंगे , खाना खाते समय दो मीठे बोल भी बोलेंगे खाली खाने का स्वाद ही नहीं लेंगे | वर्ना किसी दिन आपको भी कंकण पत्थर से भरी दाल खाने को मिल सकती है | तैयार रहिये | हमारी ये प्रेरक कथा “ स्वाद का ज्ञान “ आप को कैसी लगी | पसंद आने पर इसे शेयर जरूर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी लेख , आदि है तो हमें editor.atootbandhann@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर उसे यहाँ प्रकशित किया जाएगा | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …  पापा ये वाला लो सफलता का हीरा टाइम है मम्मी आग 

पापा , ये वाला लो

                                     दोस्तों , कहा गया है की बच्चे मन के सच्चे होते हैं |ऐसी ही एक छोटे बच्चे की कहानी मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ | जो बचपन की मिठास से भरी है |  चार साल का छोटा सा बच्चा राजू अपने पापा -मम्मी व् दादी बाबा के साथ रहता था |राजू सब का लाडला था | कभी कभी उसके पापा  कहते की  राजू के साथ थोड़ी सी कड़ाई से पेश आना चाहिए | ज्यादा लाड – प्यार की वजह से वो जिद्दी होता जा रहा है |  पर कोई उनकी बात सुनता ही नहीं था | तो पापा ने खुद ही राजू को सुधारने की ठान ली |  एक बार राजू को उसकी दादी ने दो सेब दिए | राजू उन सेबों को खाने से स्थान पर खेलने लगा | खेलते – खेलते वहीँ बिस्तर के पास रख दिए और दूसरे खिलौनों से खेलने लगा | तभी राजू के पापा आये |  उन्होंने राजू के पास सेब देख कर उसे बांटना सिखाने के लिए कहा ,” राजू तुम्हारे पास तो दो सेब हैं | एक सेब मुझे दे दो |  राजू को खिलौनों  में व्यस्त देखकर पापा ने फिर कहा ,” राजू , एक सेब मुझे दे दो | नन्हें राजू ने सुना ही नहीं | वो तो अपने खेल में ही मस्त रहा | अब पापा को थोडा गुस्सा आ गया | वो जोर से बोले ,” राजू तुम्हारे पास दो सेब हैं | कायदे से तुम्हें इन्हें बांटना चाहिए | बांटना तो दूर तुम मुझे मांगने पर भी एक भी नहीं दे रहे हो |ऊपर से मेरी बात भी नहीं सुन रहे हो | ये बहुत गलत बात है | चलो ठीक है | तुम नहीं दे रहे हो तो मैं खुद ही ले लेता हूँ | पापा सेब लेने आगे बढ़ने लगे |  अब राजू का ध्यान पापा की बात पर गया | उसने झट से दोनों सेब उठा लिए और बोला एक  मिनट पापा | कहते हुए उसने एक सेब  की एक बाईट ली | पापा ने दूसरे सेब की तरफ हाथ बढ़ाया | तभी राजू ने दूसरे सेब की भी एक बाईट ले ली |  अब तो पापा को नाराज़गी महसूस हुई की राजू इतना छोटा होने के बाद स्वार्थी हो गया है | अपनी चीजे किसी से शेयर ही नहीं करना चाहता | पापा उसे डाँटने ही वाले थे | तभी राजू का मीठा सा स्वर गूंजा … “ये वाला लो पापा , ये ज्यादा मीठा है “                              पापा का गुस्सा एक मिनट में छू मंतर हो गया | उनकी आँखे नम हो गयीं और उन्होंने राजू को गले से लगा लिया | और बोले ,” i love you बेटा | दोस्तों , राजू कितना प्यारा बच्चा था | वह अपने पापा को best देना चाहता था | पर पापा उसकी feelings नहीं समझ पाए | एक सेकंड के लिए ही धोखा खा गए | वो तो बच्चा था जल्द ही confusion दूर हो गया | पर कई बार टीन एज आने के बाद पेरेंट्स व् बच्चों में ये कान्फुजन दूर नहीं हो पाता | जहाँ एक तरफ पेरेंट्स को लगता है की बच्चे उन पर ध्यान नहीं देते | उनसे कुछ शेयर नहीं करते | पर कई बार बच्चे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो अपने पेरेंट्स को बेस्ट देना चाहते हैं | इस कारण तनाव में चले  जाते हैं | जरूरत है दोनों इस पर खुल कर बात करें | व् पहले से ही धारणा बना लेने के स्थान पर  सही समय पर प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें ….  महात्मा गाँधी जी के 5 प्रेरक प्रसंग सफलता का हीरा बोनसाई खीर  में कंकण  बाल मनोविज्ञान पर ये कहानी आप को कैसी लगी | अगर आप को यह कहानी पसंद आई हो तो इसे शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | 

सफलता का हीरा

पुराने जमाने में राज़ दरबारों में तरह – तरह की प्रतियोगिताएं हुआ करती थी | इससे लोगों केज्ञान का विकास तो होता ही था |उनको एक शिक्षा भी मिलती थी | वो शिक्षाएं आज भी हमारे काम आ रही हैं | तो आज भी आपसे एक ऐसी ही कहानी शेयर कर रहा हूँ |  तो कहानी यह है की एक राजा था | उसके राज्य में बहुत सारे विद्वान लोग थे | अक्सर उनके दरबार में दूसरे राज्यों के लोग आते व् दोनों के बीच विद्वता  की परीक्षा होती | ज्यादातर उसी के राज्य के लोग जीतते | इसलिए राजा को गर्व तो रहता ही | उसके राज्य की ख्याति भी दूर – दूर तक फ़ैल रही थी |  एक बार उसके दरबार में एक हीरों का व्यापारी आया | उसने राजा को दो हीरे दिए और कहा ,” इनमें से एक असली है और एक नकली | आप ऐसा करिए की इसे अपने पूरे राज्य में घुमाइए |  अगर कोई बता देगा की कौन सा नकली है तो यह हीरा उसका |  और अगर नहीं बता पाता  है तो आप उस हीरे के मूल्य से दोगुना धन मुझे दीजिये | हीरे तो देखने में वाकई  एक जैसे थे | राजा असमंजस में पड़  गया | राज्य में ढिंढोरा पिटवा  दिया गया , “ आइये –आइये और असली हीरा पहचान कर उसे घर  ले जाइए |  भीड़ लग गयी लोग आते गए हीरा देखते गए पर  पहचानने में असफल रहे | तभी एक अँधा व्यक्ति आया | उसने दोनों हीरे अपने हाथ में लिए और एक को वापस करते हुए बोला , “ ये है असली हीरा , जो मेरे हाथ में है वो तो निरा कांच है |  हीरे का व्यापारी असमंजस  में पड़ गया ,” वाकई उसने सही पहचाना था , पर कैसे ? उसे तो दिखाई ही नहीं देता | अँधा व्यक्ति मुस्कुराया , हमें छू कर पता चला सरकार | इस धूप  में जो गर्म हो गया वो कांच जो ठंडा ही रहा वो हीरा | अब राजा ने व्यापारी से पूंछा क्या आप का भी यही तरीका था | व्यापारी ने कहा , “ नहीं महाराज , कह कर उसने दोनों टुकड़े जमीन पर पटक दिए | कांच बिखर गया | पर हीरा  जैसे का तैसा ही रहा |  राजा बहुत खुश हुआ | उसने शर्त के मुताबिक़  उस अंधे व्यक्ति को हीरा दे दिया व् व्यापारी को सम्मान के साथ उसके राज्य  भेज दिया  |                           दोस्तों इस छोटी सी कहानी से हमें बहुत बड़ी सीख मिलती है | जिसे हम अपनी जिंदगी में इस्तेमाल कर सकते हैं | दरसल हीरा सफलता है | जैसा ही सभी जानते हैं की सफल होने के मार्ग में बार – बार असफल होना पड़ता है | जो लोग आज सफल है न और जो असफल हैं उनमें बस इतना अंतर है की सफल लोगों ने असफल होने के बाद भी प्रयास करना नहीं छोड़ा |  उन्होंने अपनी कमियाँ ढूंढी उन्हें दूर किया और उस काम को अलग तरीके से करा शुरू किया |  पर करना इतना आसन भी नहीं है उसके लिए पोजिटिव  एटीट्युड रखना पड़ता है | असफलताएं या तो व्यक्ति को तोड़ देती हैं या व्यक्ति अपना ध्यान व् शक्ति  काम पर लगाने के स्थान पर गुस्से और झुन्झुलाने में लगा देता हैं | जिससे तापमान इतना बढ़ा जाता है की व्यक्ति रोगी हो जाता है | दोनों ही परिस्तिथियों में सफलता का हीरा नहीं मिलता |इसलिए अगर सफलता चाहिए तो अपने को सकारात्मक या पॉजिटिव रखना होगा | तभी सफलता का असली हीरा मिलेगा |  दीपक मित्तल  दोस्तों , तो ये थी कहानी “सफलता का हीरा “आपको ये कहानी कैसे लगी ? अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करें व् रोज ऐसी कहानियाँ पाने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें |  यह भी पढ़ें ………. बोनसाई राम , रहीम , भीम और अखबार जमीन में गड़ें हैं शैतान का सौदा

महात्मा गाँधी जी के 5 प्रेरक प्रसंग

महात्मा गाँधी

  हमारे  राष्ट्र पिता  महात्मा गाँधी जी का जीवन अपने आप में मिसाल है | कोई भी व्यक्ति अपने भाषणों या प्रवचनों से महान नहीं बन जाता | ये महानता उसके जीवन की छोटी – छोटी बातों में झलकती है | आज हम महात्मा गाँधी जी के जीवन के कुछ ऐसे ही पांच प्रेरक प्रसंग लाये हैं | जो  बापू की महानता तो सिद्ध करते ही हैं | हमें भी उस मार्ग का अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं | पहला प्रसंग – समय की कीमत  महात्मा गाँधी जी समय को बहुत मूल्यवान कहा करते थे |क्योंकि गया हुआ वक्त फिर कभी नहीं आता है |  वो न तो स्वयं समय बर्बाद करते न अपने आस पास किसी को करने देते | दांडी यात्रा के समय की बात है | गाँधी जी तेज तेज चलते जा रहे थे | उनका ध्यान लक्ष्य की ओर था |  सबके कहने पर वो थोड़ी देर को एक स्थान पर रुके | तभी एक अंग्रेज व्यक्ति उनसे मिलने आया | गाँधी जी को देख कर बोला ,” हेलो मिस्टर गाँधी, मेरा नाम वाकर है |” गांधी जी ने उसकी तरफ देखा फिर बोले ,” आप वाकर हैं तो मैं भी वाकर हूँ | “कह  कर वो अपनी यात्रा पर आगे चल पड़े |  तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला,” आप को उनसे मिल लेना  चाहिए था | पता है वो कौन थे | अगर आप का नाम तमाम अंग्रेजी अख़बारों में छपता |  उन से मिल लेते तो आप बहुत प्रसिद्द हो जाते |  गाँधी जी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया – मेरे लिए सम्मान से कीमती मेरा समय है |  प्रसंग दो – जब गाँधी जी ने सारी  सभा को हंसा दिया  यूँ तो महात्मा गाँधी जी की छवि एक अनुशासित , समय के पाबन्द व्यक्ति के रूप में है | पर उनमें हास्य बोध भी गज़ब का था | इसका उदाहरण  एक जन सभा में देखने को मिला | दरसल गाँधी जी आज़ादी की लड़ाई के दौरान बहुत सारी जनसभाएं करते थे | जिसमें उनके अहिंसात्मक आन्दोलन पर जोर रहता था |  एक बार की बात है वो एक जनसभा कर रहे थे | गाँधी जी गंभीरता पूर्वक अपनी बात जनता के सामने रख रहे थे | तभी पीछे के लोग शोर मचाने लगे की उन्हें कुछ भी सुनाई नहीं पड रहा है | गांधी जी ने भाषण रोक कर पूंछा ,” जिस – जिस को सुनाई नहीं दे रहा है वो हाथ उठाये | कुछ लोगों ने हाथ उठा दिए |  गाँधी जी ने हँसते हुए कहा ,” देखिये ,ये तो बड़ा विरोधाभास है | मेरा भाषण आप को सुने नहीं दे रहा था | पर ये बात आप को सुनाई दे गयी की हाथ उठाना है | इतना सुनते ही पूरी सभा ठहाकों से भर गयी | प्रसंग तीन -बोइये और काटिए  महात्मा गाँधी जी पूरे भारत की यात्रा करते रहते थे | एक बार अपनी किसी यात्रा के दौरान वो एक छोटे से गाँव में रुके | वहां के किसान उनसे मिलने गए | उन्होंने गाँधी जी से कहा आप परम ज्ञानी हैं | हमें भी कुछ ज्ञान दीजिये |  गाँधी जी ने कहा ,” ठीक है , पहल ये बताइये आजकल आप कौन सी फसल बो रहे हैं | किसान उनके प्रश्न पर आश्चर्य में पड़ गए और बोले ,” क्या कहें , शायद आपको जानकारी नहीं है | साल का ये महीना हमारे लिये बिलकुल खाली होता हैं | क्योंकि इसमें कुछ भी बोया नहीं जाता | बाकी समय जब जब हम फसल बोते व् काटते हैं तो हमारे पास एक पल का भी समय नहीं होता | यहाँ तक की हमारे पास रोटी खाने तक का समय नहीं होता | पर अभी तो हम बिलकुल निठ्ठले हैं |  गाँधी जी बोले ,” ये आप का चयन है की आप खाली बैठे हैं | वर्ना कोई भी समय ऐसा नहीं होता जब कोई फसल बोई न जाए व् काटी न जा सके |  किसान आश्चर्य में पड़ गए | वो हाथ जोड़ कर बोले ,” कृपया हमें बताइए की वो कौन सी फसल है जो इस समय बोई व् काटी जा सकती है | हम अवश्य ये करेंगे |  गाँधी जी बोले ,” जब आप के पास काम की अधिकता होती है तब तो आप अतिव्यस्त होते हैं | पर जब आप के पास खाली समय हो तब उसे यूँ ही बर्बाद मत करिए |  आप कर्म को बोइये आदत को काटिए  आदत को बोइये चरित्र को काटिए  चरित्र को बोइये भाग्य को काटिए  तभी ये मानव जीवन सार्थक होगा |  प्रसंग चार -सार को निकाल लिया                        अपनी निंदा सुनना आसान नहीं है | पर हमारे बापू हर बात में संयत रहते थे | एक बार की बात है एक अंग्रेज ने उनको पत्र लिखा | पत्र सिर्फ गालियों से भरा हुआ था | गाँधी जी ने पत्र पढ़ा | फिर  अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाये उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया | फेंकते समय उन्होंने उसमें लगे  एक आलपिन को निकाल कर रख लिया | शाम को वो अंग्रेज जब उनसे मिलने आया तो उसने बड़ी शातिर मूस्कुराहट  के साथ पूंछा ,” आपने पत्र पढ़ा | गाँधी जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया ,” हां बिलकुल | अंग्रेज ने फिर पूंछा ,” उसमें आपको कुछ सार लगा | गाँधी जी ने आलपिन दिखाते हुए कहा ,” जी , मुझे तो उसमें ये सार का दिखा | इसलिए मैंने इसे संभाल  कर रख लिया | बाकी काम का नहीं लगा | तो उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया | प्रसंग पांच – कभी झूठ मत बोलो    एक बार की बात है गाँधी जी के बड़े भाई ने कुछ कर्ज लिया था | जिसे वो आर्थिक स्तिथि ठीक न होने से वापस नहीं कर प् रहे थे | वो तगादे वालों से बहुत परेशांन  थे | गाँधी जी ने उनकी मदद करने के लिए अपना कड़ा बेंच दिया | घर में डांट खाने के भय से उन्होंने झूठ बोल दिया की कड़ा कहीं गिर गया है | माता  – पिता … Read more

बोनसाई

   चित्राधर – प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, आसमान छूती प्रसिद्धि; आत्मविश्वास से भरपूर। कितने ही पुरस्कारों से नवाज़ी गई हस्ती। सुगंध की भाँति फैलती, महकती कीर्ति ; बोनसाई बनाने में महारत हासिल, किंतु आज कितनी मुरझाई हुई!  उनके अपने कोख जाए बच्चे की लम्बाई, अपनी कक्षा के बच्चों से काफी कम थी। शुरू में तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, किन्तु इधर साल दो साल से वह बहुत उद्विग्न रहने लगीं थीं। एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे चिकित्सकों के चक्कर लगा- लगाकर वह थक गईं थीं। प्रारम्भ में तो चिकित्सकों ने काफी हौसला दिया था और वे टौनिक तथा दवाइयाँ देते रहे थे, किन्तु अब कह दिया था कि बच्चे में जन्मजात त्रुटि है। एक सीमा से अधिक, इसकी लम्बाई नहीं बढ़ाई जा सकती। वह बौना है। यह सुनकर उनका कलेजा टूक टूक हो गया था।   अवसाद से पीड़ित, आँसुओं से बोझिल पलकें उन्होंने उठाईं तो देखा कि बरगद, नीम, पाकड़, नींबू, नारंगी आदि पौधे उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हुए हैं। वे उन्हें व्यंग से निहार रहे थे।  बरगद कह रहा था, “क्यों, हमें बोनसाई बनाने का बहुत शौक है न तुम्हें, अब तुम्हारा बेटा बोनसाई बन गया है तो क्यों आँसू बहा रही हो? तुमने हमारी जड़ों को क्रूरता से बार बार काट-छाँटकर हमें बौना रहने पर मजबूर कर दिया है। हमारे विशाल आकार को खिलौना बनाकर अपने घर में सजा लिया है। अब जब अपने ऊपर आन पड़ी है तो टसुए बहा रही हो। “ सारे पौधे निरादर से हंस पड़े थे,” हमारी कद- काठी का तुमने ही तो सत्यानाश किया है। लोगों को हरी-भरी छाया और फल देने से तो तुमने ही वंचित कर दिया है हमें।“ उसी समय दरवाजे की घंटी बजने से उनकी आँख खुल गई। उनकी सांसें जोर- जोर से चल रही थीं और वे पसीने से तर थीं। उन्होंने अपने उभरे हुए पेट पर हाथ फेरते हुए, खुद को संयत किया। वे बुदबुदाईं,’  नहीं मैं तुम्हें बौना नहीं देख सकती!’  बाहर आकर उन्होंने देखा कि कुछ ग्राहक उनसे तैयार बोनसाई लेने को आए हुए हैं। उन्होंने ग्राहकों से कहा, “माफ कीजिएगा, मैंने बोनसाई बनाना छोड़ दिया है।“ उन लोगों के जाने के पश्चात उन्होंने बड़ी ही नरमियत से बरगद और नीम के पौधों को मिट्टी से अलग किया और उन्हें स्कूल के किनारे की चौड़ी कच्ची जमीन पर रोपने का आदेश देकर माली के हाथ में खुरपी पकड़ा दी। लेखिका परिचय- नाम- उषा अवस्थी शिक्षा- एम ए मनोविज्ञान  सम्प्रति- 1- समिति सदस्य ‘अभिव्यक्ति’ साहित्यिक संस्था, लखनऊ 2- सदस्य ‘भारतीय लेखिका परिषद’, लखनऊ प्रकाशित रचनाएँ- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संग्रहों, भारतीय लेखिका परिषद’ की पत्रिका ‘अपूर्वा’, दैनिक पत्रों ‘दैनिक जागरण’ व ‘राष्ट्रबोध’, साप्ताहिक पत्र ‘विश्वविधायक’ एवं विविध पत्रिकाओं यथा ‘भावना संदेश’, ‘नामान्तर’ आदि में रचनाएँ प्रकाशित विशेष-1- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा समय समय पर कविताओं का प्रसारण 2- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के कवियत्री सम्मेलन की अध्यक्षता 3- कुछ वर्षों का शैक्षणिक अनुभव 4- संगीत प्रभाकर एवं संगीत विशारद ————————————————–

Happy Birthday bhaiya – अटूट होता है रिश्तों का बंधन

                                                    कहते हैं भाई बहन का रिश्ता कच्चे धागे में बंधा दुनिया का सबसे पक्का रिश्ता होता है | क्योंकि वहां लेने देने की भावना से परे सिर्फ स्नेह होता है | सौ फीसदी खरा , सोने सा | कहते ये भी हैं जब कोई इस लोक से दूर चला जाता है तो वो तारा बन जाता है | कल रात आसमान बहुत साफ़ था | बहुत सारे तारे टिमटिमा रहे थे | और उनके बीच मैं ढूंढ  रही थी अपने “ओम भैया”को | शायद ये , शायद वो …फिर दिखा सबसे चमकीला तारा | हां वही, वही तो हैं भैया | कहते ये भी हैं की इस पार से उस पार हम भले ही न पहुँच सके | पर भावनाएं पहुँच जाती है | उन पर कोई पहरा नहीं होता | ईश्वर  से की गयी प्रार्थनाएं इस बात का प्रमाण नहीं हैं क्या ? मेरी आँखे भले ही धुंधला गयी हों | भावनाएं साफ़ – साफ़ देख रहीं हैं और होंठ बुदबुदा रहे हैं “Happy Birthday भैया , इस दुनिया या उस दुनिया में कहीं भी रहने से रिश्ते नहीं टूटते | क्योंकि रिश्तों का बंधन अटूट होता है |  भैया , क्योंकि आप सदा सकारात्मक विचारों के प्रचार प्रसार में विश्वास रखते थे | आप हमेशा कहा करते थे  जिंदगी यूँ ही काटने के लिए नहीं है | ये एक मिशन है ,इसमें में कुछ करना है,ऐसा जो सबके  काम आ सके |  एक – एक मिनट कीमती है | रुपये गँवा कर कमाये  जा सकते हैं | पर एक पल भी जो गँवा  दिया वो पूरी जिंदगी में फिर से कमाया नहीं जा सकता |आप खुद भी अपनी जिंदगी में  समय की बहुत कद्र करते थे | और हमेशा सीखने सिखाने पर जोर देते थे |     इसलिए आज आप के जन्मदिन पर मैं आपका अपने काम के प्रति जूनून व् समय की कद्र का किस्सा शेयर कर रही हूँ |  बात तब की है | जब कंप्यूटर नया – नया आया था | भैया  भी मीडिया की फील्ड में नए – नए गए थे | एक बार न्यूज़ पेपेर ऑफिस में कोई काम अटक गया | भैया को   उस समय कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं थी | उन्होंने  इसे एक कमी के रूप में लिया और तुरंत कम्प्यूटर कोर्स करने की ठानी |हर काम को जल्दी से जल्दी करने की अपनी आदत के अनुसार भैया ने  इसे एक हफ्ते में सीखने की ठान  ली |  तमाम कंप्यूटर इंस्टीटयूट में पता करने पर  पता चला की इसे सीखने में ६ हफ्ते लगेंगे | लेकिन समय को समय न देना तो भैया की  पुरानी आदत थी | इसलिए उन्होंने  एक साथ ६ जगह वही कोर्स ज्वाइन कर लिया | और हर किसी से बात कर ली की मुझे वहीँ से सिखाना जहाँ से मैं पूँछु | अलबत्ता फ़ीस मैं आपको पूरी दूँगा |  अब हर कम्प्यूटर इंस्टीटयूट वाला हंसने लगे | ऐसा कैसे हो सकता है ? यह कैसे संभव है | एक घंटे में जितना यहाँ सिखाया जाता है | उससे ज्यादा कोई कैसे सीख सकता है | समय की और ह्युमन ब्रेन की कोई सीमा है |  पर भैया तो भैया , ठान ली तो ठान ली |  अब शुरू हुई भैया की भाग – दौड़ | शाम को ऑफिस से आने के बाद पहले एक इंस्टीटयूट जाते वहाँ सीखते | फिर दूसरे में जाते और कहते की अब इसके आगे सिखाओ | फिर तीसरे में उससे आगे ,…फिर घर में प्रैक्टिस  न खाने की सुध न आराम की | बस एक धुन लग गयी तो लग गयी |  एक हफ्ते में भैया ने कम्प्यूटर का कोर्स पूरा कर लिया | जो काम सबको असंभव लगता था उसे भैया ने कर दिखाया | शायद इसी लिए आपने इतनी कम उम्र में इतनी सफलता पायी |जो किसी साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है | मुझे  शिव खेडा का वो कोट याद आ रहा है … “जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते ,वो काम को अलग ढंग से करते हैं “|  इस प्रसंग को शेयर करने का मेरा उद्देश्य इतना था की सफलता यूँहीं दरवाजे पर चल कर नहीं आती है | उसके लिए बहुत अनुशासन , जूनून और समय की कद्र करनी पड़ती है |  कभी कभी जब मैं संकोचवश किसी की फ़ालतू बात सुनती रहती तो भैया टोंकते | कभी कभी मैं कह देती , जरा सा सुन ही तो लिया | भैया तपाक से कहते  ,” दीदी ,नकारात्मक लोग केवल वही समय बर्बाद नहीं करते जो आपने सुनने में लगाया है | उनकी बातें उनके जाने के बाद भी दिमाग में चलती रहती हैं | उन्हें शुरू में ही रोक दिया करिए | नहीं तो जीवन का बहुत कीमती समय बर्बाद होता है |  मुझे पता है भैया आप जहाँ कहीं भी है सीखने , सिखाने में लगे होंगे और हम लोगों को देख भी रहे होंगे कि कहीं हम लोग अपना समय फ़ालतू तो नहीं बर्बाद कर रहे हैं |  आपके जाने के बाद एक – एक पल की कीमत सीख ली है हमने | यही आपका बर्थडे गिफ्ट है | आपक जहाँ भी होंगे आपको यह गिफ्ट जरूर मिल गया होगा | क्योंकि रिश्तों का बंधन अटूट होता है |एक बार फिर से ..                                           Happy Birthday bhaiya वंदना बाजपेयी निर्णय लो दीदी – ओमकार भैया को याद करते हुए वो बाईस दिन एक दिन पिता के नाम -मेरे पापा मदर्स डे पर पत्र

राम , रहीम , भीम और अखबार

सरिता  जैन ये कहानी है तीन मित्रों की |  उनमें से एक था मुस्लिम , एक , सवर्ण और एक दलित |नाम थे रहमान , राम और भीम  | तीनों एक दूसरे के सुख – दुःख के साथी |  रोज शाम को उनकी बैठक होती रहती थी | बातें भी बहुत होती | जैसा की पुरुषों में होता है अक्सर राजनैतिक चर्चाएं होने लगती हैं | यूँ तो तीनों कहने को बात कर रहे होते |पर कहीं न कहीं उनके मन में अपनी जाति और धर्म की भावना छिपी रहती  | इस कारण जब भी कोई खबर सामचारपत्रों में आती सबका उसको देखने का एंगल अलग अलग होता | इस कारण कभी कभी हल्की बहस भी हो जाती | पढ़िए – कामलो सो लाडलो एक बार एक अखबार के एक छोटे कॉलम में खबर छपी किसी पुरानी इमारत के टूटने की | उसमें से कुछ पपु राने मंदिरों की मूर्तियों के अवशेष निकले | खबर छोटे कॉलम में थी पर हिन्दू मुस्लिम दोस्तों के मध्य बड़ा विषय बन गया | काम अतीत में हुआ था , जिसकी जानकारी सभी को थी , पर लड़ाई आज करना जरूरी थी | बमुश्किल भीम ने बात खत्म कराई | उसने कहा जो अतीत में हो गया हो गया | अब तो हम सब ऐसे अन्यायों का विरोध कर सकते हैं | फिर क्यों अतीत पर झगडें | पर मामला रफा दफा हुआ नहीं | रहीम ने भी आरोप लगाना शुरू कर दिया |असहिष्णुता  का आरोप  | आज हमें बोले का हक़ नहीं है | चारों और असहिष्णुता का बोलबाला है | ऐसे में कैसे हम अपने मन की आवाज़ कहें | राम ने तुरंत बात काटी | क्यों आप फेसबुक ट्विटर , इन्स्टा , सभाओं सब जगह बोल रहे हैं | फिर भय कैसा ?बोलते तो आप शुरू से रहे हैं बस सुनना  नहीं चाहते हैं  | हम सब एक देश के नागरिक हैं | आप को ही विशेष दर्जा क्यों ? रहीम को बात नागवार गुजरी | न रहीम अतीत के गर्व में झूमने न राम भी अतीत भूलने को तैयार था | लिहाज़ा दोस्ती टूट गयी | रहीम उठ कर चला गया |  अब राम और भीम ने बात करना शुरू किया | फिर अखबार की खबर का जिक्र था |  बहस एक किताब पर थी | जिसमें माँ दुर्गा को गाली दी गयी थी | स्त्री की अस्मिता के लिए लड़ने वाली माँ दुर्गा को XX तक कह दिया गया था | अब बारी राम के गुस्से में आने की थी | उसने माँ दुर्गा को अंट शंट  बोलने वाले को तार्किक तरीके से गलत सिद्ध करने की कोशिश की | पढ़िए – मनोबल न खोएं अब बारी भीम की उबलने की थी | वही जो अभी तक राम को अतीत भूलने की सलाह दे रहा था | अब अतीत से किस्से ढूंढ – ढूंढ कर लाने लगा | राम ने कहा अब तो अतीत जैसा माहौल नहीं है | तुम लोगों को आरक्षण भी मिला है | और खबरों में तरजीह भी | दलित की बेटी के साथ अत्याचार तो खबर बनता है , जिस खबर में दलित या मुस्लिम इस्तेमाल नहीं होता वो सब सवर्ण की बेटियाँ होती हैं फिर खबर क्यों नहीं बनती की सवर्ण की बेटी के साथ अत्याचार | ये सब जानते हो फिर ये मुद्दा क्यों ? पर भीम मानने को तैयार नहीं था | वो आज के आज बदला लेना चाहता था | उनसे जो अब उसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहते थे | लिहाजा दोस्ती टूट गयी |भीम चला गया |  दोस्तों तीन दोस्त जो एक दूसरे के सुख दुःख के साथी थे | जो एक अच्छे भविष्य को गढ़ सकते थे  | अतीत पर लड़ पड़े | और अलग हो गए | क्या आज हमारे देश में यही नहीं हो रहा | हम सब अखबार पढ़ते हैं | तर्क गढ़ते हैं | तर्कों में जीतते हैं तर्कों में हारते हैं | पर सुझाव के बारे में कोई नहीं सोंचता | अतीत  जिसे न सुधारा जा सकता है न संवारा जा सकता है | कुछ किया जा सकता तो सिर्फ वर्तमान में | जहाँ जरूरी है समझ सिर्फ इस बात की , कि अब हमें प्यार से रहना है | ताकि देश का भविष्य सुन्दर हो | काश ये बात राम , रहीम और अखबार तीनों को समझ आ जाए |  यह भी पढ़ें … लक्ष्मी की कृपा यह भी गुज़र जाएगा  वो भी नहीं था  यकीन 

लक्ष्मी की कृपा

लक्ष्मी की कृपा  किरण सिंह बहुत दिनों बाद मेरे सामने वाला फ्लैट किराए पर लगा…! सभी फ्लैट वासियों के साथ साथ मुझे भी खुशी और उत्सुकता हुई कि चलो घर के सामने कोई दिखेगा तो सही …. भले ही पड़ोसी अच्छा हो या बुरा……! मन ही मन सोंच रही थी कि ज्यादा घुलूंगी मिलूंगी नहीं.. क्यों कि बच्चों की पढ़ाई , अपना काम सब बाधित होता है ज्यादा सामाजिक होने पर… और फिर पता नहीं कैसे होंगे वे लोग….मिलने को तो कई लोग मिल जाते हैं यहाँ….. घुल मिल भी जाते हैं…. दोस्ती की दुहाई देकर दुख सुख भी बांटते हैं…….मुंह पर तो प्रशंसा के पुल बांधते हैं और पीठ पीछे चुगली करने से भी नहीं चूकते…इसलिए मैंने मन ही मन सोंच लिया कि पहले मैं उनके रंग ढंग देखकर ही घुलूंगी मिलूंगी…! करीब शाम चार बजे आए मेरे पडोसी मिस्टर एंड मिसेज सिन्हा जी..! मेरे ड्राइंग रूम की खिड़की से सामने वाले फ्लैट में आने जाने वालों की आहट मिल जाती थी फिर भी मैं अपने स्वभाव के विपरीत बैठी खटर पटर की आवाज सुन रही थी….. सोंची नहीं निकलूंगी बाहर पर आदत से मजबूर मेरे कदम बढ़ ही गए नए पड़ोसी के दरवाजे तक चाय पकौड़ी के साथ…..! देखी पड़ोसन बिल्कुल ही साधारण सी साड़ी में लिपटी हुई… माथे पर बड़ी सी बिंदी… भारी भरकम शरीर…… कुछ थकी हुई सी….. चाय पकौड़ी को देखकर शायद बहुत ही राहत मिली उन्हें…… चेहरे पर मुस्कान खिल गई और पति पत्नी दोनों ही शुक्रिया अदा करने से नहीं चूके….! मैंने भी कह दिया मैंने कुछ भी तो नहीं किया और रात के भोजन के लिए आमंत्रित कर आई…! उनसे मिलने के बाद काफी खुशी मिली मुझे….. मन में सोंचने लगी इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी ज़रा सा भी दंभ नहीं है और पहली ही नजर में वे अच्छे लगने लगे .! पढ़िए – रिश्तों पर खूबसूरत कहानी यकीन रात्रि में वे सपरिवार हमारे घर आए…… बच्चे तो घर में प्रवेश करते ही प्रसन्नता से उछल पड़े….. कोई मेरे ड्राइंग में सजे हुए एक्वेरियम की मछलियों को देखने लगा तो कोई दीवार में लगे पेंटिंग्स का….!थोड़ा बहुत दबी जुबान में मिस्टर सिन्हा भी प्रशंसा कर ही दिए…… पर मिसेज सिन्हा बिल्कुल धीर – गम्भीर, चुपचाप मूरत बनी बैठी थी…..! खाने-पीने के साथ-साथ बातें भी हुई….. और बहुत देर बाद मिसेज सिन्हा का मौन ब्रत टूटा…कहने लगी देखिए जी हमलोग सादा जीवन जीना पसंद करते हैं….. दिखावा में विश्वास नहीं करते….. और हमारा परिवार थोड़े में ही सन्तुष्ट है….और फिर अपनी कहानी सुनाने लगीं…! एक रिश्तेदार ( ममेरी देवर ) के यहाँ मैं कुछ दिनों के लिए गई थी…. देवरानी ( पम्मी ) सुन्दर – सुन्दर महंगे कपड़े पहनी थी… पर दूसरे ही दिन बिल्कुल साधरण कपड़े पहनने लगी… मैंने कहा कल तुम बहुत सुंदर लग रही थी आज क्यों इतनी सिम्पल………तब वह कहने लगी भाभी आपकी सादगी देखकर मुझे शर्म महसूस होने लगी इसलिए…… कि आप इतनी सम्पन्न और फिर भी इतनी सादगी ………….! इतना सुनने के बाद तो मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक सम्मान उत्पन्न हो गया…! हम पड़ोसी में प्रगाढ़ता बढ़ने लगी….सिनेमा…. बाजार… या कहीं भी साथ साथ निकलते थे… अपना दुख सुख एक-दूसरे से बांटने लगे….! तब ब्रैंडेड कपड़े सभी नहीं पहनते थे…. किन्तु हमारे बच्चे तब भी ब्रैंडेड कपड़े , जूते आदि पहनते थे…! एकदिन मिस्टर सिन्हा ने मेरे पति से कहा कि इतने महंगे-महंगे कपड़े अभी से पहनाएंगे तो बच्चों में खुद कमाने की जिज्ञासा ही नहीं रहेगी….! तब स्कूल के परीक्षाओं में उनके बच्चों का नम्बर अधिक आता था… पतिदेव ने आकर मुझे सुनाई तो मुझे भी उनकी बातें अच्छी और सच्ची लगी….! यही बात मैंने अपने बेटे ऋषि से कही….. तो उसने कहा कि आप चिंता मत करिए….. यदि हम आज ऐसे रह रहे हैं तो कल और भी बेहतर तरीके से रहने के लिए और भी मेहनत करेंगे… और फिर कहा कि दुनिया में हर इन्सान अपने से ऊपर वाले इन्सान को गाली देता है पर रहना चाहता है उन्हीं की तरह…. यह सब वे ईर्ष्या वश कह रहे हैं…. आप लोगों की बातें क्यों सुनती हैं….! मैने अपने बेटे से कोई बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रहना ही उचित समझा…! पर उस समय मिस्टर सिन्हा की बातें मुझे कुछ हद तक सही लग रही थीं… पर करती भी क्या……. बच्चों की आदतें तो मैंने ही खराब की थी…! पढ़िए – फेसबुक : क्या आप दूसरों की निजता का सम्मान करते हैं धीरे-धीरे समय बीतता गया….. हम दोनों के परिवारों के बीच प्रगाढ़ता बढ़ने लगी…! मिस्टर सिन्हा के ऊपर लक्ष्मी की कृपा भी बरसने लगी…! कुछ ही महीनों में उन्होंने सामने वाला फ्लैट खरीद भी लिया… घर के इन्टिरियर में बिल्कुल मेरे घर की काॅपी की गई थी…! बच्चों के महंगे ब्रैंडेड कपड़ों की तो पूछिए ही मत…! और मिसेज सिन्हा के वार्डरोब में तो महंगी साड़ियाँ देखते ही बनती थीं…मिस्टर सिन्हा के क्या कहने…. उनकी तो अतृप्त ईच्छा मानो अब जाकर पूरी हुई हो…. पचास वर्ष की आयु में किशोरों के तरह कपड़े पहन मानो किशोर ही बन गए हों…! मुझे अपने बेटे की कही हुई एक एक बात सही लगने लगी…… और मैं मन ही मन सोंचने लगी कि यह तो लक्ष्मी जी की कृपा है…! यह भी पढ़ें ………. टाइम है मम्मी काश जाति परिवर्तन का मंत्र होता अस्पताल में वैलेंटाइन डे दोषी कौन  परिचय … साहित्य , संगीत और कला की तरफ बचपन से ही रुझान रहा है ! याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती  ….! घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी  कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की … Read more

यह भी गुज़र जाएगा ( motivational story in Hindi )

 everything is temporary – motivational story in Hindi  जीवन सुख दुःख से मिलकर बना है | हम सब ये जानते हैं | फिर भी दुखी कौन रहना चाहता है | पर ऐसा होता नहीं | लगता है ऐसा कोई एक मंत्र  मिल जाए जिससे हमेशा खुश रहे | आज मैं एक ऐसा ही एक मंत्र आप सब के साथ शेयर करने जा रही हूँ | ये मंत्र मेरा बनाया हुआ नहीं है | दरसल इस मंत्र के पीछे एक कहानी है | बहुत पहले की बात है | एक राजा था भी हमारी तरह लगता था की वो हमेशा  रहे | अब होता ये की जब वो वास्तव में खुश होता तो उसे डर लगा रहता की कहीं बड़ा सा दुःख न आ जाए और सारी  खुशियाँ खत्म कर दे | जब वो दुखी होता  तो उसे लगता ये समय  तो कभी खत्म ही नहीं होगा | ये तो चलता जा रहा है | चलता जा रहा है | उसने सोंचा की खुशियों के साथ थोडा सा दुःख हो और दुखों के साथ थोड़ी सी ख़ुशी हो तो शायद सामंजस्य बन जाए | उसने कोशिश करी पर यह संभव नहीं हुआ | अब तो राजा बहुत बेचैन रहने लगा | उसने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी की जो कोई उसकी इस समस्या का समाधान कर देगा उसे बहुत बड़ा इनाम मिलेगा | पर कोई उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाया | तभी राज्य में दूसरे राज्य का एक विद्वान व्यक्ति आया उसने राजा के पास संदेश भिजवाया की वो उसकी समस्या का समाधान कर देगा  | राजा ने उसे पूरे आदर के साथ राजमहल में बुलवाया | पढ़िए – वो भी नहीं था युवक बोला , “ महाराज कोई भी परिस्तिथि हो आप जब भ्रमित हो तो यह मंत्र बोलिये ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा ने ऐसा ही करने का निश्चय किया | अब जब ख़ुशी आई तो राजा ने यही मंत्र कहा ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | अब राजा ने सोंचा यह समय तो गुज़र जाएगा | कल को ख़ुशी रहे न रहे तो  क्यों न इसमें खुल के जी लें | और खुल के खुश हो लें | राजा ने ऐसा ही किया | वो बहुत खुश हुआ | कुछ समय बाद दुःख आया | राजा का मन घबरा गया | फिर उसने जोर – जोर से व्ही मंत्र कहना शुरू किया ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा का मन बड़ा हल्का हो गया | अरे ये दुःख स्थायी तो है नहीं | फिर क्यों इसको इतना महत्व दें | अपना काम अच्छे से करते रहे | क्योंकि ये तो एक न एक दिन जाना ही है | मित्रों यही सदा सुखी रहने का मूल मंत्र है | जब सब कुछ अस्थायी है तो सुख या दुःख से चिपकना कैसा | जब ख़ुशी का समय हो तो उन्मुक्त आनंद लो  क्योंकि वो हमेशा रहने वाला नहीं है | और जब दुःख का समय हो तो घबराओं नहीं क्योंकि “यह भी गुज़र जाएगा “ |  सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …  कामलो सो लाडलो मनोबल न खोएं यकीन टाइम है मम्मी