भगवान शिव और भस्मासुर की कथा नए संदर्भ में

हमारी पौराणिक कथाओं को जब नए संदर्भ में समझने की कोशिश करती हूँ तो कई बार इतने नए अर्थ खुलते हैं जो समसामयिक होते हैं l अब भस्मासुर की कथा को ही ले लीजिए l क्या थी भस्मासुर की कथा  कथा कुछ इस प्रकार की है कि भस्मासुर (असली नाम वृकासुर )नाम का एक असुर दैत्य था l क्योंकि असुर अपनी शक्तियां बढ़ाने के लिए भोलेनाथ भगवान शिव की पूजा करते थे l तो भस्मासुर ने भी एक वरदान की कह में शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की l आखिरकार शिव प्रसन्न हुए l शिव जी उससे वरदान मांगने के लिए कहते हैं l तो वो अमर्त्य का वरदान माँगता है l भगवान शिव उससे कहते हैं कि ये तो नहीं मिल सकता क्योंकि ये प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है l तुम कोई और वरदान मांग लो l ऐसे में भस्मासुर काफी सोच-विचार के बाद उनसे ये वरदान माँगता है कि मैं जिस के भी सर पर हाथ रखूँ  वो तुरंत भस्म हो जाए l भगवान शिव  तथास्तु कह कर उसे ये वरदान दे देते हैं l अब शिवजी ने तो उसकी तपस्या के कारण वरदान दिया था पर भस्मासुर उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे भागने लगता है l अब दृश्य कुछ ऐसा हो जाता है कि भगवान भोले शंकर जान बचाने के लिए आगे-आगे भागे जा रहे हैं और भस्मासुर पीछे -पीछे l इसके ऊपर एक बहुत बहुत ही सुंदर लोक गीत है, “भागे-भागे भोला फिरते जान बचाए , काँख तले मृगछाल दबाये भागत जाए जाएँ भोला लट बिखराये, लट बिखराये पाँव लंबे बढ़ाए रे, भागत जाएँ … अब जब विष्णु भगवान ने भस्मासुर की ये व्यथा- कथा देखी l तो तुरंत एक सूदर स्त्री का मोहिनी रूप रख कर भस्मासुर के सामने आ गए l भस्मासुर उन्हें देख उस मोहिनी पर मग्ध हो गया और उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया l मोहिनी  ने तुरंत माँ लिया पर उसने कहा कि तुम्हें मेरे साथ नृत्य करना होगा l भस्मासुर ने हामी भर दी l उसने कहा कि नृत्य तो मुझे नहीं आता पर जैसे-जैसे तुम करती जाओगी मैं पीछे-पीछे करता जाऊँगा l नृत्य शुरू हुआ l जैसे- जैसे मोहिनी नृत्य करती जाती भस्मासुर भी नृत्य करता जाता l नृत्य की एक मुद्रा में मोहिनी अपना हाथ अपने सिर पर रखती है तो उसका अनुसरण करते हुए भस्मासुर भी अपना हाथ अपने सिर पर रखता है l ऐसा करते ही भस्मासुर भस्म हो जाता है l तब जा के शिव जी की जान में जान आती है l   भगवान शिव और भस्मासुर की कथा नए संदर्भ में असुर और देव को हमारी प्रवृत्तियाँ हैं l अब भस्मासुर को एक प्रवृत्ति की तरह ले कर देखिए l तो यदि एक गुण/विकार को लें तब मुझे मुझे तारीफ में ये अदा नजर आती है l एक योग्य व्यक्ति कि आप तारीफ कर दीजिए तो भी वो संतुष्ट नहीं होगा l उसको अपनी कमजोरियाँ नजर आएंगी और वो खुद उन पर काम कर के उन्हें दूर करना चाहेगा l कई बार तारीफ करने वाले से भी प्रश्न पूछ- पूछ कर बुराई निकलवा लेगा और उनको दूर करने का उपाय भी जानना चाहेगा l कहने का तात्पर्य ये है कि वो तारीफ या प्रोत्साहन से तुष्ट तो होते हैं पर संतुष्ट नहीं l   परंतु अयोग्य व्यक्ति तुरंत तारीफ करने वाले को अपने से कमतर मान लेता है l उसके अहंकार का गुब्बारा पल भर में बढ़ जाता है l अब ये बात अलग है कि  तारीफ करने वाला भी शिव की तरह भस्म नहीं होता क्योंकि उसे उसकी मोहिनी यानि की कला, योग्यता बचा ही लेती है l   अलबत्ता भस्मासुर के बारे में पक्का नहीं कहा जा सकता l वो भस्म भी हो सकते हैं या कुछ समय बाद उनकी चेतना जागृत भी हो सकती है lऔर वो अपना परिमार्जन भी कर सकते हैं l वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …. यह भी गुज़र जाएगा ( motivational story in Hindi ) भविष्य का पुरुष जब राहुल पर लेबल लगा छिपा हुआ आम आपको लेख “भगवान शिव और भस्मासुर की कथा नए संदर्भ में “कैसा लगा ? अपनी राय से हमें अवश्य अवगत कराएँ l अगर आपको अटूट बंधन में प्रकाशित रचनाएँ और हमारा प्रयास पसंद आता है तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज को लाइक करें ताकि हमेंऔर अच्छा काम करने की प्रेरणा मिल सके l

आत्मनिर्भरता- कितनी जरूरी

archana anupriya

  अंग्रेजी में एक कहावत है- “God helps those,who help themselves”यानि, ईश्वर भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद कर सकता है। अंग्रेजी की यह कहावत आत्मनिर्भरता की संकल्पना सामने लाती है। व्यक्ति या देश जब अपनी क्षमताओं और अपने प्रयत्नों पर आश्रित होकर कार्य करता है,किसी अन्य के सहारे या किसी अन्य पर निर्भर रहने की उसे जब आवश्यकता नहीं होती है, तब वह व्यक्ति या देश आत्मनिर्भर कहलाता है। ‘आत्मनिर्भरता’या ‘स्वावलंबन’ किसी भी काल में किसी भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के लिए अनमोल धरोहर है। “आत्मनिर्भरता- कितनी जरूरी” आत्मनिर्भरता का अर्थ है – खुद के ऊपर निर्भर होना, स्वयं पर विश्वास रखना अर्थात् भाग्य या दूसरों के सहारे न बैठकर अपनी क्षमताओं का विकास करना। अब सवाल उठता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,तो एक दूसरे के साथ रहकर एक दूसरे के काम आना उसका स्वभाव भी है और जरूरत भी, तब ऐसे में, सारा काम वह अपनी क्षमताओं के आधार पर स्वयं ही कर ले, तभी पूर्णतया आत्मनिर्भर कहलाएगा, तो क्या यह संभव है? कदापि नहीं । एक ही आदमी सारे सामान पैदा करना, बनाना, खरीदना,उपभोग करना-सब कैसे कर सकता है ? एक दूसरे की सहायता की जरूरत तो पड़ेगी ही। कोई खाद्य सामग्री बनाएगा तो कोई रहन-सहन की व्यवस्था करेगा, कोई सुरक्षा का जिम्मा लेगा तो कोई यातायात की व्यवस्था करेगा, कोई प्रशासन देखेगाऔर कोई अर्थ की व्यवस्था करेगा… कहने का तात्पर्य है कि एक दूसरे का सहयोग अनिवार्य है। ऐसे में, आत्मनिर्भरता का क्या तात्पर्य हुआ ? यही प्रश्न किसी देश की आत्मनिर्भरता के संदर्भ में भी उठाया जा सकता है। आज के इस वैश्वीकरण के समय में कोई एक देश पूर्णतया आत्मनिर्भर हो कर रहे या यूं कहें कि रॉ मटेरियल से लेकर उत्पादन और उपभोग तक सब कुछ स्वयं ही कर सके यह संभव नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि तकनीकि, पेट्रोल, व्यवसाय, संस्कृति- लगभग सभी चीजों के लिए हम परस्पर निर्भर हैं। दुनिया जितनी सिमट रही है, बाजारवाद और प्रतिस्पर्धायें उतनी ही हर क्षेत्र में पनप रही हैं और अगर देखा जाए तो वस्तुओं की विविधता और गुणवत्ता की दृष्टि से यह जरूरी भी है। यह पारस्परिक आदान-प्रदान एक सीमा तक उचित प्रतीत होता है परंतु यह गलत तब प्रमाणित होता है जब केवल आयात हो और बदले में दिया कुछ न जा सके। जब अधिकारों का उपभोग विश्व में बिना कृतज्ञता का निर्वाह किए भिक्षावृत्ति तथा चोरी और लूट-खसोट में हो लेकिन विनिमय न हो, लेने वाला देने वाले के दबाव में रहे, उसकी नाराजगी से डरने लगे, उसकी इच्छा की गुलामी करने को विवश होने लगे तब ऐसे में,आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को जागृत करना अनिवार्य हो जाता है। सामान्यतया, जब हम दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं, जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता,सहानुभूति, हमदर्दी, नेकी पर विश्वास करने लगते हैं तब यह स्थिति किसी व्यक्ति, समाज या देश के लिए बहुत हानिकारक होती है।इससे हमारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावनाओं का ह्रास होता है। यह आदत हमें निज मददहीनता से भर देती है ।यह बिल्कुल उसी प्रकार है जब किसी शिशु को स्वतंत्र रूप से चलने, दौड़ने या गिरने न दिया जाए और उसके अंदर के आत्मविश्वास में अपंगता भर दी जाए। दूसरों पर निर्भरता किसी राष्ट्र को ऐसे ही आर्थिक और नैतिक रूप से अपंग कर सकती है, देश का स्वरूप विकृत कर सकती है।इसके अतिरिक्त, दूसरों से हमेशा अपेक्षा रखना लगभग स्वयं को दयनीय और तिरस्कार का पात्र बना लेने जैसा है।हम धीरे-धीरे परजीवी होने लगते हैं और अपनी स्थिति दयनीय बना लेते हैं। इसके ठीक विपरीत, यदि व्यक्ति या राष्ट्र वीर है,संकल्पी है, तो मुसीबतों से संघर्ष कर सकता है, आत्मविश्वासी बन सकता है और सब के लिए प्रशंसा का पात्र बन जाता है।प्रयत्न ही किसी को महान बनाता है; सफलता असफलता तो घटती रहती है। आत्मनिर्भरता ही व्यक्ति एवं राष्ट्र को मानसिक दृढ़ता,सहनशीलता एवं नैतिक सुरक्षा प्रदान करती है। कमजोर और पिछड़ा वर्ग भी सीख ग्रहण करता है, प्रयत्नों का हिस्सेदार बनता है और साहसिक प्रवृत्ति से संघर्ष करने तथा उन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा पाता है। अंततोगत्वा, एक मजबूत और सुनहरे भविष्य का निर्माण कर पाता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति या देश प्रेम और आदर प्राप्त करता है और खुशहाल प्रसिद्ध एवं यशस्वी बनता है, विश्व का नेतृत्व कर सकता है।परहितकारों द्वारा की गई दया आत्म सम्मान के लिए भी घातक है। लेकिन, जब किसी वस्तु के लिए परिश्रम एवं अर्थ हम स्वयं खर्च करते हैं, खून पसीना एक करते हैं तो ऐसी स्थिति में नैतिक दृष्टिकोण बहुत ऊंचा और शांति भरा होता है। आत्मनिर्भरता से ही व्यक्ति समाज और देश की उन्नति होती है और वह निरंतर सफलता की ऊंचाइयों को छूता जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया है- “यल्लमसे निज कर्मोपातम्, वित्त विनोदय चित्तम”…अर्थात स्वयं अर्जित किए गए धन का उपयोग करने में एक अकथनीय सुख की प्राप्ति होती है ।आत्मनिर्भरता राष्ट्र या समाज के प्रत्येक व्यक्ति में अद्भुत आत्मविश्वास उत्पन्न करती है और आत्मविश्वासी एवं कर्मठ व्यक्ति ही दुनिया की हर समस्या से जूझने को तैयार हो सकता है।परावलंबी सोच समाज और राष्ट्र को अपाहिज करती है,जबकि आत्मनिर्भरता अमृत का अक्षय स्रोत है।राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने बिल्कुल सही लिखा है- ” यह पापपूर्ण परावलंबी चूर्ण होकर दूर हो, फिर स्वावलंबन का हमें प्रिय पुण्य पाठ पढ़ाइए..” वास्तव में,आत्मनिर्भरता ही वह गुण है जो जीवन की कठिन राह को आसान बना देता है।स्वावलंबन में वह पुरुषार्थ छिपा है, जिसके आगे सारी वैश्विक शक्ति नतमस्तक हो सकती है।जो दूसरों के सामर्थ्य पर ऊँचाई पाते हैं,वे एक हल्के से आघात से जमींदोज हो सकते हैं क्योंकि दूसरों की सहायता हमारी स्वाभाविक क्षमता के विकास में बाधा बनती है, अपने पैरों को मजबूत बनाने का प्रयास ढीला पड़ जाता है और हर समय एक अनिश्चितता की तलवार लटकती रहती है।इसके विपरीत, जिस देश और समाज के नागरिक आत्मनिर्भरता की बुनियाद पर जीते हैं,वहाँ भूखमरी, बेरोजगारी, निर्धनता जैसी सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ नहीं के बराबर होती हैं और वह समाज एवं वह देश उत्तरोत्तर उन्नति करता जाता है। एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था और काफी हद तक आत्मनिर्भर था।परंतु, कालांतर में विदेशी व्यापारियों ने खासकर अंग्रेजी हुकूमत ने इसी व्यापार के रास्ते भारत … Read more

सिर्फ प्रतिभा होना सफलता की गारंटी नहीं

सफलता की गारंटी

आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा, “ देखो दोनों में प्रतिभा तो बराबर है पर एक कहाँ पहुँच गया और दूसरा ….|दरअसल हम प्रतिभा और सफलता को एक की पलड़े पर रखते हैं और आकलन उसी आधार पर करते हैं जबकि मेनेजमेंट की भाषा में कहें तो ये सही नहीं है |आइये जाने मेनेजमेंट की भाषा के अनुसार …   सिर्फ प्रतिभा होना सफलता की गारंटी नहीं मेनेजमेंट के अनुसार प्रतिभा यानी पर्सनल स्किल (यहाँ पर भाग्य का हस्तेक्षेप, जोड  तोड़ की राजनीति, चापलूसी आदि की बात नहीं हो रही है ) ये सफलता के लिए जरूरी है पर ये पहली पायदान ही है | अगर किसी में प्रतिभा नहीं है तो वो उस क्षेत्र में कॉम्पटीशन के लायक ही नहीं है |प्रतिभा से शुरुआत होती है | सेलेक्शन होता है, नौकरी मिलती है , काम मिलता है | मेहनत उसके बाद दूसरा गुण है मेहनत का | अगर प्रतिभा है भी और मेहनत नहीं है तो दूसरा कदम जल्दी तय नहीं होता | न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः का श्लोक तो सुना ही होगा | सिंह कंपास दौड़ कर शिकार करने की क्षमता तो है पर अगर वो सोता ही रहे तो क्या वो शिकार कर सकता है | नहीं ना ! इसी तरह से एक बच्चे का आई क्यू बहुत ज्यादा है | पर वो किताबों को हाथ भी नहीं लगता तो क्या उसक आई आई टी में चयन हो जाएगा या फिर गला बहुत सुरीला है पर रियाज करना ही नहीं तो क्या स्टेज परफोर्मेंस उससे बेहतर हो सकती है जो रोज रियाज करता हो | नहीं ना | कहानी लिखने की बहुत प्रतिभा है पर लिखने का मन ही नहीं होता तो क्या मात्र चार कहानियों से वो हमेशा चर्चित रहेंगे/रहेंगी जो बीसियों कहानी लिखते हैं | सच्चाई ये है कि कई बार मेहनत करने वाले प्रतिभाशाली लोगों से भी आगे निकल जाते हैं | टीम स्किल तीसरा है टीम स्किल | कितनी भी प्रतिभा है पर टीम के साथ सामंजस्य करना नहीं आता है | तो गाड़ी  तीसरे ही कदम पर रूक जायेगी | क्योंकि जायदातर काम टीम वर्क ही होते हैं | अक्सर बहुत मेहनती बहुत  प्रतिभाशाली व्यक्ति भी जो टीम के साथ सामंजस्य बना कर नहीं चलते कम्पनी में उनका प्रोमोशन नहीं होता | कोई कम्पनी नहीं चाहती कोई ऐसा व्यक्ति किसी बड़े पद पर हो जो टीम के साथ सामंजस्य नहीं बना पाता और रोज झगडे हो रहे हों | वहीँ कुछ कम प्रतिभाशाली टीम के साथ कुशलता से सामंजस्य बना कर जल्दी जल्दी प्रोमोशन पा जाते हैं | निर्णय क्षमता   इसके बाद आती है दूरदर्ष्टि के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता | दूरदृष्टि के आधार पर फैसले लेने की क्षमता नहीं है तो जिन्दगी इसी पद पर बीत जायेगी |महाभारत के युद्ध में अर्जुन की प्रतिभा में कोई कमी नहीं थी | उनके तरकश में एक से बढ़कर एक दिव्यास्त्र थे पर वो युद्ध शुरू होते ही अनिर्णय की स्थिति में आ गए | ऐसे में क्या वो युद्ध जीत पाते ? उत्तर फिर से नहीं है | रमेश जी का अच्छा कपड़ों का व्यापार है पर उनमें निर्णय की क्षमता नहीं है तो व्यापर बस वहीँ पर अटका हुआ है और आगे नहीं बढ़ रहा | वहीँ उनके पड़ोसी सुरेश जी ने समय और अवसर को देखते हुए अलग अलग शहरों में शो रूम खोल दिए | आज रमेश जी केवल अपने शहर की एक दूकान के मालिक हैं और सुरेश जी की क्लॉथ चेन है | ये अंतर सही समय पर सही निर्णय से आया |   पीपल स्किल आखिर में आती है पीपल स्किल | जो इंसान जितने ज्यादा लोगों के साथ सामंजस्य बना कर चलता है उसकी सफलता उतनी ही ज्यादा होती है |लोग हमारी ताकत होते हैं | एक कहावत है कि जिसके साथ जनता, उसकी दुनिया  सुनता” | यहाँ अपना काम टीम से सामंजस्य, इन्वेस्टर्स को विश्वास में लेना और ग्राहकों को सही सुविधा देना आता है |जो जितने ज्यादा क्षेत्रों को संभाल सकता है उसकी सफलता उतनी ही होती है | अब सोचने वाली बात ये है कि दो व्यक्ति जिनमें बराबर की प्रतिभा थी एक कम्पनी के टॉप पर बैठा है और दूसरा तीसरे पायदान पर ही अटका है | ऐसे में क्या ये कहा जा सकता है कि दो लोगों में प्रतिभा बराबर है तो सफलता भी बराबर होगी ? निश्चित तौर पर नहीं क्योंकि सफलता केवल प्रतिभा का होना नहीं है वो कई गुणों का मिश्रण है | हालांकि अगर आप में इनमें से कोई एक गुण नहीं है तो भी निराश होने की जरूरत नहीं क्योंकि इन्हें सीखा जा सकता है | अभी भी देर नहीं हुई है | यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल   आपको   लेख  “ सिर्फ प्रतिभा होना सफलता की गारंटी नहीं   “  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking,  Personality devalopment, talent, success

सफलता के तीन चरण

कभी किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ कर देखा है ? ऐसा कभी नहीं होता कि चोटी केवल एक बिंदु हो , वाहन  भी एक क्षैतिज धरातल होता है |  चोटी पर जगह कम नहीं होती , कितने मंदिर-मस्जिद , किले इन चोटियों पर बने है | पर पहाड़ के नीचे खड़े लोगों को ये समझ नहीं आता | उन्हें लगता है कि चोटी पर कोई एक व्यक्ति ही पहुँच सकता है और वही विजेता है |  क्षेत्र कोई भी हो , यही बात सफलता के साथ है | आप गिनती कर के देखिये कितने सफल डॉक्टर हैं , कितने सफल इंजीनियर और कितने सफल लेखक , गायक , कलाकार आदि | फिर भी लोगों को लगता है कि किसी दूसरे की सफलता मेरी सफलता में बाधक है | इसलिए वो खुद आगे बढ़ने में मेहनत करने के स्थान पर दूसरे की लकीर छोटी करने और उसे गिराने में लग जाते हैं |आगे बढ़ता व्यक्ति अपनों के इस व्यवहार परिवर्तन से दुखी होता है …कई बार उसका हौसला पस्त हो जाता है और वो  प्रयास छोड़ देता है | फिर वही होता है जो हमें दिखता है …बहुत से व्यक्ति जो सफल हो सकते थे , असफल व्यक्तियों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं | अगर हम सफलता के तीन चरणों को समझ लें तो सफल होते -होते अचानक से असफल होने की नौबत नहीं आती | अपना E .Q दुरुस्त रखने के लिए समझिये सफलता के तीन चरण  15 साल की रिया की आवाज़ बचपन से ही ईश्वर  का वरदान थी | यूँ तो उसकी दोनों बहनें ( मिताली और दीपा ) अच्छा गाती थी | पर रिया उनसे अलग ही थी | पर उनका ये गायन शौकिया था , उसमें कैरियर बनाने की उनकी तमन्ना नहीं थी | तीनों पढने में भी होशियार थीं |साथ -साथ गाती , खिलखिलातीं , रियाज करती | आने जाने वाले सभी लोग उनकी प्रशंसा करते | यही वो समय था जब उन्हें लगा कि उन्हें अपनी कला को दूसरों को भी दिखाना चाहिए | तीनों ने यू ट्यूब चैनल बनाए  और उसमें अपने -अपने गानों के वीडियो अपलोड करने लगीं | रिया के फॉलोअर्स व् लाइक तेजी से बढ़ने लगे , फेसबुक पर भी उसका एक अच्छा फैन मेल तैयार हो गया | जबकि मिताली और दीपा को महज कुछ लाइक ही मिलते | फेसबुक पर कुछ  अच्छे स्ट्रगल करके वाले या किसी मुकाम पर पहुँचने वाले गायक /गायिकाओं ने उसेबहुत प्रोमोट किया | उसके वीडियो के शेयर्स बढे और वो लोकप्रिय होने लगी | दोनों बहने भी उसकी इस सफलता  पर खुश होतीं और खुद भी अपने वीडियो उत्त्साह के साथ डालती | करीब एक वर्ष तक यही सब चलता रहा | रिया को पहला काम मिला उसे किसी विज्ञापन की जिंगल गानी थी | वो बहुत खुश थी | बहनों ने बधाई दी | रिया ने घर आकर उसका वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया | लाइक कमेंट आये … पर उसकी बहनों ने लाइक नहीं किया | रिया को अच्छा नहीं लगा पर उसने सोचा हो सकता है उसकी बहनें ख़ुशी में भूल गयीं हों | रिया शुरूआती कदम आगे बढ़ने लगे | धीरे -धीरे उसने महसूस किया कि वो सारे नए स्ट्रगल करने वाले , कुछ थोड़े से स्थापित और उसकी बहनें जो उसकी हर पोस्ट पर उत्त्सह्वर्धन करते थे , उसकी पोस्ट से एक दूरी बनाने लगे | आपस में  उनका व्यवहार अभी भी वैसा ही था | मित्रों व् बहनों का ऐसा व्यवहार व् उपेक्षा रिया को अंदर ही अन्दर तोड़ने लगा | उसे समझ नहीं आ रहा था कई उसकी गलती क्या है | वो तो अभी भी पहले की ही तरह है फिर अपने ही उसे क्यों छोड़ रहे हैं | उसका काम से मन हट गया | जो वीडियो वो रोज अपलोड करती अब हफ्ते में और फिर महीने में करने लगी | फैन फॉलोअर्स कम होने लगे | रिया अवसाद में डूबने लगी एक ऐसा अवसाद जिसमें उसे उसके अपनों ने डुबोया था | गाने का उत्साह और मन खत्म हो गया | रिया का अवसाद माँ से छिपा नहीं रह सका | एक दिन बालों में तेल लगाते हुए उन्होंने रिया से पूछा तो वो फफक -फफक कर रो उठी | उसने माँ को सारी  बात बतायी | अनुभवी माँ को बात समझते देर ना लगी | उन्होंने रिया से कहा , ” ठीक है , अपनों ने तुमसे दूरियाँ  बनायीं पर इसके लिए तुमने अपना काम क्यों छोड़ दिया | तुम अपना काम वैसे ही करती रहो , पूरी निष्ठां के साथ | देखना एक दिन सब लौटेंगे , उस दिन , जब तुम्हारी सफलता का तीसरा चरण होगा  | ” रिया ने माँ की बात को गंभीरता से लिया और फिर अपने काम में जुट गयी | उसे फिर से विज्ञापन मिलने लगे और फिर एक दिन वो भी आया जब उसे फिल्म में गीत गाने का अवसर भी मिला | रिया की मेहनत और भाग्य रंग लाया , वो गीत  सुपर हिट  हुआ | रिया के पास काम की झड़ी लग गयी | उसकी अपनी बहने व् मित्र जो उससे दूर हो गए थे उसके पास लौटने लगे | एक सम्मान समारोह में बहनों ने उसकी जमकर तारीफ़ करी | रिया बहुत खुश थी | घर आ कर वो रिया से बोलीं , ” रिया मुझे भी स्टेज पर थोड़ी देर गाने का मौका  दिला देना |” रिया ने हाँ कह दिया | वो अब परिपक्कव हो चुकी थी और समझ चुकी थी कि वो सफलता के दो चरण पार कर तीसरे में आ गयी है जहाँ अब उसकी बहनें व् मित्र वापस लौट आये हैं | मित्रों ये कहानी  भले ही रिया की हो पर आप भी अगर किसी काम में सफलता पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं तो आपको भी ये किस्सा अपना लग रहा होगा | दरअसल सफलता के तीन चरण होते हैं | सफलता का पहला चरण – ये वो समय है जब आप शुरुआत करते हैं | उस समय आपके मित्र , नजदीकी लोग आपका उत्साह  वर्धन करते हैं … “क्या गाते हो ? “क्या लिखते हो ?” ” अरे ट्राई … Read more

प्रेरणा में छिपी जलन

जो लोग आप का उत्साह बढाते हैं | आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते दिखते  हैं | क्या वो आप से जल सकते हैं ? यकीनन आपका उत्तर ना ही होगा | लेकिन ऐसा हो भी सकता है , कई बार वर्षों बाद जब आपको पता चलता है कि अमुक व्यक्ति आपसे जलता  रहा है और जिसके प्रेरणादायक शब्दों को सुन कर आप  उसे अपना हितैषी समझ रहे थे, तो सच्चाई सामने आने पर आप के पैरों तले जमीन खिसकना स्वाभाविक है | आखिर कैसे पहचाने उन लोगों को जिनकी प्रेरणा में जलन छिपी हो …. How to know if someone is secretly jealous of you  जरा इस उदाहरण पर ध्यान दीजिये …ये बातचीत है मिश्रा जी की और मिताली की हाँ तो क्या रिजल्ट रहा ?पड़ोस के मिश्रा जी ने पान चबाते हुए पूछा बड़ी ख़ुशी के साथ मिताली ने  रिजल्ट   उनके हाथ में पकड़ा दिया | मिताली को मिश्रा अंकल बहुत अच्छे लगते थे | वो उसकी पढाई -लिखाई में इतनी रूचि जो लेते थे | उनके शब्दों से उसे बहुत प्रेरणा मिलती थी |  रिजल्ट लेते ही उन्होंने मुँह थोड़ा बिचकाकर पान का रस अंदर की ओर गुटकते  हुए कहा ,  ” अरेरेरे ! क्लास में थर्ड , भई ये तो अच्छा नहीं लगा , फर्स्ट आओ  तब कोई बात होगी , हमें तो तभी ख़ुशी होगी , अभी और मेहनत करो और … ————————— ठीक है , ठीक है  , फर्स्ट तो आई हो पर ये गणित /हिंदी /विज्ञान में नंबर कुछ कम है , भी जब गणित में सौ में सौ नंबर आयेंगे तो ख़ुशी होगी |  ——————— ये स्कूल तो खासा नामी नहीं है , अरे फलाना स्कूल में पढ़ातीं तब कुछ ख़ुशी की बात होती | कोशिश करती रहो …करती रहो | ————————- अच्छा -अच्छा लिखने लगी हो ?( यहाँ आप किसी भी कला , प्रतिभा को ले सकते हैं )  कहाँ छप कहाँ रही हो ? ओह , ठीक है अच्छी बात है , तुम्हें बड़ी लेखिका , तब मानेगे जब नेशनल पत्रिकाओं में छ्पोगी …फिर शिकायत नहीं रहेगी कि हमने तारीफ़ नहीं करी |  मिताली क्लास में फर्स्ट भी आ गयी , गणित में १०० में १०० नंबर नंबर भी , अच्छे स्कूल में पढ़ाने  लगी और बड़ी पत्रिकाओं में छपने भी लगी |  लेकिन मिश्रा जी खुश नहीं हुए …इस बार उन्होंने ख़ुशी को आगे सरकाया भी नहीं , पर उनके निराश चेहरे ने उनके अतीत के सभी वाक्यों की पोल खोल दी | अब बारी मिताली के चौंकने की थी |  क्या आप ने देखे हैं ऐसे लोग ? पहचानिए प्रेरणादायक शब्दों के पीछे छिपी जलन की भावना को  जब बच्चा पहला कदम रखता है तो माता -पिता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता | वो हर कदम पर उसे प्रोत्साहित करते हैं ,सँभालते हैं , गिरने पर पैरों की मालिश कर उसे फिर से दुरुस्त करते हैं |  जब बच्चा चलने लगता है , दौड़ने लगता है तो उसे इस की जरूरत ही नहीं रहती | हमारे आस -पास हमारे अपनों में बहुत से ऐसे लोग होते हैं , जो हमारे किसी क्षेत्र में पहले कदम पर ताली नहीं बजाते , गिरने पर सँभालते भी नहीं , हाँ ये जरूर कहते हैं कि , “ठीक है कोशिश कर रही/रहे हो अच्छा है लेकिन जब ‘वो’ …प्राप्त करोगी /करोगे तब हमें ख़ुशी होगी | अक्सर हम इस बात को मोटिवेशनल समझने की व्  उन्हें अपना हितैषी समझने की  भूल कर जाते हैं | लेकिन जब हम गिरते, लडखडाते  संभलते , तथाकथित ”वो” स्थान  प्राप्त कर लेते हैं , तब असली चेहरा सामने आता …क्योंकि तब भी वो खुश नहीं होते | मोटिवेशन और इर्ष्या में अंतर अक्सर लोग नहीं समझ पाते हैं | जो व्यक्ति वास्तव में आप को प्रेरणा देना चाहता है वो हर कदम पर आपके साथ होगा | वो पहले कदम के बाद दूसरा कदम रखने की जुगत बतायेगा | लेकिन जो व्यक्ति इर्ष्या करता है वो पहले कदम के बाद ये कह कर तारीफ़ नहीं करेगा ….वो देखों वो है चाँद …जो वहां तक नहीं गया , समझो वो चला ही नहीं | जब व्यक्ति पहले ही कदम पर चाँद को देखता है तो उसका मनोबल टूट जाता है | अरे इतनी लम्बी यात्रा कैसे होगी , वो चलने से डर  जाता है और दूसरा कदम ही नहीं रख पाता | दरअसल पहले कदम पर ताली बजा कर हौसला अफजाई की जरूरत होती है ….चलने की अधिकतम सीमा बताने की नहीं | अगर आप के आस -पास के कोई व्यक्ति ऐसा कर रहे हैं तो उनके मन में आप के लिए प्रशंसा का भाव कम इर्ष्या का भाव ज्यादा है | वो आपकी छोटी से छोटी गलतियों पर ध्यान दिलाएंगे अगर आप सफल हैं और अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं तो ऐसी लोग आप की छोटी से छोटी गलती पर  ध्यान दिलाएंगे | मान लीजिये अगर आप  थोड़ा  सा असफल होते हैं तो उनका पहला शब्द होगा , ” देखा मैंने तो कहा था |” ऐसा कह के वो अपने को थोड़ा सा उंचा महसूस करते हैं | आपका उतरा चहेरा उनकी तसल्ली होती है | यहाँ पर कुछ अन्य लक्ष्ण दे रही हूँ ताकि आप अपने करीबी लोगों की छुपी हुई जलन को पहचान सकें  वो आपको नज़र अंदाज  करेंगे                          जब आप सफल होंगे तब उनका व्यवहार आप के प्रति बदल जाएगा | वो आपके लिए कभी समय नहीं निकालेंगे | जब भी आप उनके मिलने बात करने की इच्छा रखेंगे वो मैं व्यस्त हूँ कह कर बात खत्म कर देंगे | दोस्तों की महफ़िल में वो आप को नज़र अंदाज कर देंगे | आप देखेंगे कि जिस समय आप की उपस्थिति में वो आप को नज़रअंदाज कर रहे हैं …ठीक उसी समय वो किसी अन्य मित्र या व्यक्ति के आने पर अपना पूरसमी देकर खुल कर बात करेंगे | उल्टा चक्र                      दुनिया का नियम है कि  जब आप सफल हैं तो लोग आपस जुड़ते हैं और असफलता मिलते ही दूर होने लगते हैं | कहा भी … Read more

प्रधानमंत्री मोदी -अक्षय कुमार इंटरव्यू से सीखने लायक बातें

फोटो –दैनिक भास्कर से साभार  व्यक्ति कोई भी हो क्षेत्र कोई भी हो जब कोई व्यक्ति सफल होता है तो उसके पीछे उसकी कुछ ख़ास आदतें या गुण होते हैं | atootbandhann.com का प्रयास रहा है कि अपने पर्सनालिटी डीवैलपमेंट सेक्शन में उन शख्सियतों के गुणों की भी चर्चा की जाए , जिससे हम सब सब उन गुणों को अपने व्यक्तित्व में शामिल कर सकें | यहाँ पर ये बाध्यता नहीं है कि हम व्यक्ति को पसंद करते  हैं कि नहीं पर आत्म विकास की राह में गुण ग्राही होना पहली शर्त है | प्रधानमंत्री मोदी जी के आलोचक भी उनकी लोकप्रियता और एक चायवाले से प्रधान मंत्री बनने की सफल यात्रा से इनकार नहीं कर सकते | अक्षय कुमार द्वारा लिए गए इंटरव्यू से कुछ ऐसेही आत्मविकास और  सफलता के सूत्र ले कर आई हैं नीलम गुप्ता जी …. प्रधानमंत्री मोदी -अक्षय कुमार  इंटरव्यू से सीखने लायक बातें    फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा लिया गया प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू आजकल चर्चा में हैं | वैसे तो ये गैर राजनैतिक इंटरव्यू है पर इसका प्रभाव राजनैतिक दृष्टि से भी पड़ेगा इस संभावना  से इनकार नहीं किया जा सकता | ये  वीडियो वायरल हो गया है | जाहिर है पक्ष –विपक्ष वाले दोनों इसे देख रहे हैं और अपने –अपने हिसाब से आकलन कर रहे हैं | लेकिन मैं ये कहना चाहूँगी कि आप मोदी जी के पक्ष में हो या विपक्ष में लेकिन अगर इस इंटरव्यू से कुछ बातें सीखने को मिल रही हैं है तो उनसे सीखने में क्या हर्ज है | हम और आप में से बहुत से लोग फेंकू कह कर मोदी जी पर हंस सकते हैं पर उन शिक्षाओं पर अगर धयन दें तो अपने निजी जीवन में कुछ गुण जोड़ सकते हैं | तो आइये सीखते हैं … जिन्न पर नहीं कर्म पर भरोसा रखो प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू में अक्षय कुमार का एक प्रश्न और उसका जवाब मुझे बहुत अच्छा लगा |  प्रश्न था कि अगर आपके हाथ में अलादीन का चिराग आ जाए तो आप क्या माँगेंगे | आम तौर पर इसी उत्तर की उम्मीद की जा सकती है कि ये मांगेंगे वो माँगेगे और क्योंकि बात मोदी जी कई है चुनाव का माहौल है तो मुझे उम्मीद थी कि वो कहेंगे कि अपने देश की खुशहाली मांगेंगे , बच्चों की शिक्षा या जवानों और किसानों के लिए कुछ मांगेंगे | परन्तु मोदी जी का उत्तर इन सबसे जुदा था | उन्होंने कहा कि , “ वो जिन्न से मांगेंगे कि जहाँ कहीं भी लिखी हैं उन सब को मिटा दो , कि कोई ऐसे शक्ति होगी जो हमें बैठे –बैठे सब कुछ दिला देगी , ऐसी कहानियाँ बच्चों को नकारा बनाती हैं | उन्हें सिर्फ ऐसी कहानियाँ सुनानी चाहिए कि जितनी मेहनत करोगे उतना ही फल मिलेगा | मुझे याद है कि कुछ समय पहले ऐसी ही एक फिल्म बनी थी सीक्रेट … उसके ऊपर सीरिज़ में किताबें भी आयीं , बेस्टसेलर बनी खूब बिकीं | “Law of attraction” का नशा यूथ के सर चढ़ कर बोलने लगा | ऐसी ही मेरी एक रिश्तेदार की बेटी है जो उन दिनों कहा करती थी कि उसने सीक्रेट से लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन सीख लिया है जिसे वो प्रयोग में लाती है , उसका IIT में अवश्य चयन हो जाएगा | वो ज्यादा पद्थी नहीं थी पर उसे उस किताब की विज्युलाइजेशन टेक्नीक पर भरोसा था | वो रात को सोते समय रोज सोचती की वो IIT दिल्ली में पढ़ रही है , उस थ्रिल को , उस ख़ुशी को महसूस करती और सो जाती |  मैंने उसे समझाया भी कि जितने लोग सेलेक्ट हुए हैं उन्हें उस परिणाम से तो प्यार् था ही , वो सपनों में तो अपने को वहाँ देखना चाहते ही थे पर उसके लिए कड़ी मेहनत  भी करते थे | क्या तुमने कभी किसी चयनित उमीदवार  का इंटरव्यू नहीं सुना ? उनमें से किसी ने नहीं कहा कि वो सब उन्हें सपने देखने से मिल गया | सबने एक ही सूत्र बताया , मेहनत , मेहनत  और मेहनत | “वो मूर्ख थे “कहते हुए उसने मेरी बात काट दी | अगर यह सब कुछ बिना मेहनत के ही मिल जाए तो वो मूर्ख ही तो कहलायेगा जिसने उसके लिए जान झोंक दी | कुछ समय बाद जब रिजल्ट निकला तो उसका कहीं चयन नहीं हुआ था , साथ ही बारहवीं के बोर्ड एग्जाम में भी उसके बहुत कम नंबर  आये थे | उसने मुझसे कहा कि मैंने विज्युलाइजेशन टेक्नीक तो अपनाई थी पर मेरे मन में कहीं न कहीं यह विश्वास भी था कि मैं पढ़ तो रही नहीं हूँ , क्या ये टेक्नीक वर्क करेगी | मैंने कहाँ यहीं पर किताब में झोल है , वो विश्वास पढने से या मेहनत करने से ही आता है | हमारे दिमाग की कार्यविधि ही ऐसे है | कहते हैं कि हमारे दिमाग का एक हिस्सा रेपटीलियन ब्रेन होता है | जिसे सुस्त  और आलसी रहना पसंद हैं | कभी देखा है घड़ियाल या मगरमच्छ को घंटों एक जैसा पड़े हुए … वैसे ही हमारा दिमाग हर चीज यूँ ही पड़े –पड़े प्राप्त कर लेना चाहता है, या थोडा सा परिश्रम करने के बाद फिर अपने आलसी मोड में आ जाता है | जो लोग बहुत मेहनत करते हैं वो सब अपनी विल पॉवर का इस्तेमाल करते हैं | ऐसी कहानियाँ , किताबें फिल्में हमारी विल पॉवर को कमजोर करती हैं और दिमाग को फिर सुस्त हो जाने  को विवश करती हैं | बेहतर हो हमारे बच्चे , युवा , बुजुर्ग भी ऐसी कल्पनाओं से बचें ताकि जीवन के यथार्थ को समझ सकें … और मेहनत  में विश्वास कर सकें |  सामूहिक खेलों से बढती है टीम भावना                           आजकल बच्चे टी वी या फिर फोन में उलझे रहते हैं | पार्क में खेलने के स्थान पर बच्चे वीडियो गेम्स की ओर झुक रहे हैं | लेकिन ये एकांत प्रियता उनके सर्वंगीड विकास में बाधा है |  बच्चे जब वो खेल खेलते हैं जिसमें टीम हो तो वो बहुत सी चीजें सीखते हैं | जैसे … उनमें परस्पर सहयोग … Read more

क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?

जब भी आप कोई गेजेट खरीदते  हैं तो उसका यूजर मैन्युअल जरूरार पढ़ते हैं | आखिर उसी में सारे दिशा निर्देश होते हैं उस को चलाने के लिए | ऐसा ही एक कमल का गेजेट है हमारा mind यानि की दिमाग या फिर थोडा और विस्तार में जाएँ तो मन | जो हमारा हो कर भी हमारा नहीं है | पलक झपकते ही यहाँ पलक झपकते ही वहाँ |हमें ये तो पता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या क्या खाना चाहिए पर क्या हमने कभी अपने दिमाग का यूजर मैनुअल पढ़ा है ? पढ़िए और इसे सही से इस्तेमाल करना सीखिए … देखिएगा आप कितने शांत व् प्रसन्न रहेंगे | जानिये  अपने mind के  user manual के बारे में  क्या आप ठीक हैं ? हाँ ठीक तो हूँ , पर वो चार साल पहले की बात जब -तब याद आ जाती है तो मन से निकलती ही नहीं , कभी -कभी लगता है जैसे जीवन ही व्यर्थ है … जब तक उस बात का ठीक ना कर लूँ तब तक दिमाग से निकलना मुश्किल है | और आप ? अजी क्या बताये , ये प्रश्न  मत पूछिए जब तक कार न आ जाये /मकान  न खड़ा हो जाए , बेटे की शादी ना हो जाए /बेटे की नौकरी ना लग जाए तब तक क्या खाक ठीक हैं ?                                         हममे  से अधिकतर लोग अतीत की यादों या भविष्य की चिंता से जूझ रहे होते हैं | जबकि जीवन केवल इस पल है | दरअसल हमारा दिमाग तीन काल में चलता है भूत काल , वर्तमान काल और भविष्य काल | आप किसी ज्योतिषी के पास जाए तो वह आपके past या future के बारे में बताता है … ऐसे लोगों को त्रिकाल दर्शी भी कहते हैं | पर यहाँ हम बात कर रहे अपने mind की जो तीन स्तरों पर चलता है स्मृति , कल्पना और ये पल , यानि की memory, imagination और वर्तमान समय | अधिकतर लोगों को मेमोरी या इमेजिनेशन के कारण दुःख होता है | वर्तमान समय में उन्हें कोई खास दुःख नहीं होता फिर भी वो या तो पिछला या अगला सोच -सोच कर परेशां होते रहते हैं | अतीत से छुटकारा  मान लीजिये कि किसी के साथ कोई बहुत बड़ा हादसा हो गया वो उससे नहीं निकल पा रहा है … तब तो कुछ हद तक बात समझ में आती है पर ज्यादातर लोग छोटे बड़े हादसों , बातों , किसी की गलती के बारे में इतना सोचते हैं कि वो वर्तमान समय का आनन्द उठा ही नहीं पाते | आप जिसे महान जीवन समझते हैं वो पृथ्वी की नज़र में बस एक उपजाऊ मिटटी है जिसे एक फसल के बाद फिर से रौंद कर दूसरी फसल उगानी है … सद्गुरु जग्गी वाशुदेव                                          जो घटना घट चुकी है अब उसका कोई अस्तित्व नहीं है वो केवल अतीत में थी | लेकिन हम उसे अपनी स्मृति में जिन्दा रखते हैं और उसी दुःख को जिसे एक बार भोग कर हम निकल आये थे बार -बार भोगते हैं | कितने लोग हैं जो अच्छी स्मृतियों को बार -बार दोहराते हैं और अगर दोहराते भी हैं तो एक कसक के साथ कि अब वो समय नहीं रहा | जब आप कहते हैं कि मैं उसको माफ़ नहीं कर सकता मतलब आप उस व्यक्ति से सम्बंधित स्मृतियों को नहीं भुला पा रहे हैं , और खुद को बार -बार दंड दे रहे हैं | भविष्य की चिंता से मुक्त                                   एक कहावत है सामान सौ बरस का … खबर पल की नहीं | जो हम आज हैं वो हमारे अतीत में किये गए कामों और फैसलों की वजह से हैं जो हम कल होंगे वो आज किये गए कामों और फैसलों की वजह से होंगे | बेहतर है कि हम सही काम आज करें न कि भविष्य की चिंता | हमारे सोचते रहने से कुछ होने वाला नहीं है |  मेमोरी या इमेजिनेशन क्या है … माइंड के एप्रेटस में आने वाले विचार ही तो हैं -संदीप महेश्वरी  ऐसा नहीं हो सकता कि विचार ना आयें पर उन पर चिंतन ना करे ये आपके हाथ में है | इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रक्रिया को समझें | विचारों के बनने की प्रक्रिया को समझें , विचारों के बहुगुणित होने की प्रक्रिया को समझे | वर्तमान के जीवन को समझे … समझे कि केवल वर्तमान ही हमारे हाथ में हैं …. जहाँ हम कुछ कर सकते हैं बाकि दुःख सब विचार रूप में हैं | जिस दिन हम अपने mind का user manual समझ जायेंगे … उस दिन से ही हम चिंता मुक्त ,सुखी जीवन जी पायेंगे | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको   लेख  “  क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?“  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking, mind, user manual, user manual of mind

संवेदनाओं के इमोजी

       फेसबुक पर भावनाओं को व्यक्त करने के लिए तरह तरह के इमोजी उपलब्द्ध हैं , हंसने के रोने के , खिलखिलाने के शोक जताने के या दिल ही दे देने के , इतनी तकनीकी सुविधा के बावजूद हम एक भावना पर कितनी देर रह पाते हैं | किसी की मृत्यु पर एक रीता हुए इमोजी क्लीक करने के अगले ही पल किसी के चुटकुले पर बुक्का फाड़ कर हँसने वाले इमोजी को चिपकाते समय हम ये भी नहीं सोचते कि क्या  एक भावना से दूसरी भावना पर कूदना इतनी जल्दी संभव है या हम भावना हीन प्रतिक्रिया दे रहे हैं | कुछ लोग सोशल मीडिया पर समय की कमी बताते हुए इसे ठीक बताते हैं | परन्तु दुखद सत्य ये है कि ये बात केवल फेसबुक तक सीमित नहीं है … हमने इसे अपनी वास्तविक दुनिया में उतार लिया है | हम स्वयं संवेदनाओं के इमोजी बनते जा रहे हैं | रिश्तों में दूरी इसी का दुष्परिणाम है | संवेदनाओं के इमोजी  आज मैं बात कर रही हूँ एक सर्वे रिपोर्ट की |ये सर्वे अभी हाल में विदेशों में हुए हैं | सर्वे का विषय था कि “ कौन लोग अपने जीवन में ज्यादा खुश रहते हैं ?”यहाँ ख़ुशी का अर्थ जीवन के ज्यादातर हिस्से में संतुष्ट रहना था | इसमें जिन लोगों पर सर्वे किया गया गया उन्हें बचपन से ले कर वृद्ध होने तक निगरानी में रखा गया | इसमें से कुछ लोग जिंदगी में बहुत सफल हुए, कुछ सामान्य सफल हुए और कुछ असफल | कुछ के पास बहुत पैसे थे और कुछ को थोड़े से रुपयों में महीना काटना था | ज्यादातर लोगों को लगा कि जिनके पास पैसा है , सफलता है वो ज्यादा खुश होंगे पर एक आमधारणा के विपरीत सर्वे के नतीजे चौकाने वाले थे | सर्वे के अनुसार वही लोग ज्यादा खुश या संतुष्ट रहे जिनके रिश्ते अच्छे चल रहे थे | परन्तु आज हम अपने रिश्तों को प्राथमिकताओं में पीछे रखने लगे हैं | रिश्ते त्याग पर नहीं स्वार्थ पर चल रहे हैं | “गिव एंड टेक “…बिलकुल व्यापार  की तरह | ऐसे ही एक व्यापारी से टकराना हुआ जिनके पिताजी १५ दिन पहले गुज़र गए थे | सामान लेने आई एक महिला के सहानुभूति जताने पर बोले , ” अरे क्या बताये , पिताजी तो चले गए ,दुकान ठीक से ना चला पाने के कारण नुक्सान मेरा हो रहा है | जबकि तेरहवीं तक भी मैं बीच -बीच में खोलता था दुकान ताकि लोग मुझे भूल ना जाएँ |” आश्चर्य ये हैं कि जो अपने पिताजी को १३ दिन तक सम्मान से याद नहीं कर सके वो ये सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि दुनिया उन्हें और उनकी दुकान को भूले नहीं | स्नेह वृक्ष को बहुत सींचना पड़ता है तब छाया मिलती है | अभी हाल में  एक ऑफिसर की आत्महत्या की खबर सुर्ख़ियों में है |कारण घरेलु झगड़े हैं | पति -पत्नी के बीच मतभेद होना सामान्य बात है | लेकिन झगड़े के बाद यहाँ तक झगडे के समय भी एक दूसरे की चिंता फ़िक्र दिखती है | जहाँ झगडे में दुश्मनी का भाव हो, ना निकल पाने की घुटन हो , समाज के सामने अपनी व् अपने परिवार की जिल्लत का भय हो वहां निराश व्यक्ति इस ओर बढ़ जाता है | झगडे दो के बीच में होते हैं पर अफ़सोस उस समय उसको सँभालने वाला परिवार का कोई भी सदस्य नहीं होता | मोटिवेशनल गुरु कहते हैं ,” दुःख दर्द , शोक सब फिजूल है … समय की बर्बादी | आगे देखो , वो है सफलता का लॉली पॉप , उठो कपड़े झाड़ों ,दौड़ों ….देखो वो चूस रहा है , उसे हटा कर तुम भी चूसो … और मनुष्य मशीन में बदलने लगता है | लेकिन परिणाम क्या है ? सफलता की दौड़ में लगा हर व्यक्ति अकेला है ,  उसकी सफलता पर खुश होने वाला उसका परिवार भी नहीं होता | संदीप माहेश्वरी ने एक बार कहा था कि जिन्दगी को दो खंबों पर संतुलित करना आवश्यक है | एक सफलता का खम्बा , दूसरा परिवार का खम्बा , एक भी खम्बा कमजोर पड़ गया तो दूसरा महत्वहीन हो जाता है | दोनों को संतुलित कर के चलना आवश्यक है | एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स जिन्होंने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये उन्होंने भी अपने अंतिम समय में कहा ,” मृत्यु के समय आप को ये नहीं याद आता की आप कितने सफल हैं या आपने जीवन में कितने पैसे कमाए बल्कि ते याद आता है आप ने अपने परिवार के साथ अपने , अपनों के साथ कितना समय व्यतीत किया है | सब जान कर भी अनजान बनते हुए हम सब एक दिशा हीन दौड़ में शामिल हो गए हैं | जहाँ रुक कर , ठहर कर किसी के दुःख में सुख में साथ देना समय की बर्बादी लगने लगा है , बस सम्बंधित व्यक्ति के सामने चेहरे पर जरा सा भाव लाये और आगे बढ़ गए …अपनी रेस में |  हम सब इस दौड़ में संवेदनाओं के चलते , फिरते इमोजी बनते जा रहे हैं | इंसान का मशीन में तब्दील होना क्या रंग लाएगा |  कभी ठहर कर सोचियेगा | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको   लेख  “संवेदनाओं के इमोजी  “  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking, emotions, emoji, feelings, life

असफलता से सफलता की ओर

‘           मुंशी प्रेमचंद्र जी लिखते हैं कि सफलता में अतीव सजीवता होती है और विफलता में अत्यंत निर्जीवता | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता परन्तु हर कोई सफल नहीं हो पाता , शायद कुछ कमी रह जाती है प्रयास में , जिस कारण सफलता नहीं मिल पाती |अधिकतर लोग असफलता को सहन नहीं कर पाते और निराशा में डूब जाते हैं , और प्रयास करना ही छोड़ देते हैं | यही समय आत्ममुल्यांकन का भी होता है | जो गहरे से असफलता के कारणों पर विचार करके दुबारा प्रयास करता है , वो अवश्य सफल होता है |  आपको ऐसे अनेकों सफल व्यक्तियों के उदाहरण मिल जायेंगे जिन्होंने सफलता से पहले अनेकों असफलताओं का सामना किया है | असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखें                                       सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलु हैं जो जिन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा उन्होंने ढेरों असफलताओं का सामना करके भी सफलता पायी | जिन्होंने प्रयास ही नहीं किया वो असफल लोगों से भी ज्यादा असफल हैं क्योंकि उन्होंने कुछ नया सीखा भी नहीं जो प्रयास के दौरान सीख सकते थे | अगर आप की हिम्मत असफलता के कारण टूट रही है तो याद रखे  इन्हीं असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखनी है |  (1) परीक्षा का रिजल्ट बालक के सम्पूर्ण जीवन का पैमाना नहीं है              स्कूल में बालक की एक वर्ष में क्या प्रगति हुई? इस बात का उल्लेख उसके परीक्षा के रिजल्ट में होता है परन्तु यह रिजल्ट इस बात की कतई गारंटी नहीं देता है कि बालक जीवन में सफल होगा या असफल? हमारा मानना है कि बालक में केवल भौतिक ज्ञान की वृद्धि हो जाये तथा उसका सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान न्यून हो जाये यह संतुलित स्थिति नहीं है। जीवन में इसी असंतुलन के कारण आगे चलकर बालक का सम्पूर्ण जीवन असफल हो सकता है। पूरे वर्ष मेहनत तथा मनोयोग से पढ़ाई करके स्कूल का रिजल्ट तो अच्छा बनाया जा सकता है परन्तु सफल जीवन तो भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों शिक्षाओं के संतुलन का योग है। (2) परीक्षा का रिजल्ट तो केवल विभिन्न विषयों के भौतिक ज्ञान का आईना मात्रः-             आज स्कूल वाले बच्चों की पढ़ाई की तैयारी इस प्रकार से कराते हैं ताकि बालक अच्छे अंकों से परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायें। माता-पिता का भी पूरा ध्यान अपने प्रिय बालक के अंकों की ओर ही होता है। समाज के लोग भी मात्र यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि बालक ने सम्बन्धित विषयों में कितने अंक प्राप्त किये हैं। किसी का भी इस बात की ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि बालक को सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों को बाल्यावस्था से ही विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसको पुस्तकीय ज्ञान देना। मुझे करना है इसलिए मैं कर सकता हूँ। (3) कामयाब व्यक्ति भी अपने जीवन में कभी नाकामयाब हुए थे                           अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन 32 बार छोटे-बड़े चुनाव जीतने में नाकामयाब रहे थे। वह 33 वीं बार के प्रयास में कामयाब हुए और राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर असीन हुए। वह पूरे विश्व के सबसे लोकप्रिय अमरीका के राष्ट्रपति बने। इंग्लैण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल अपने स्कूली दिनों में एक बार भी परीक्षा में सफल नहीं रहे। वह परीक्षा में बार-बार फेल होने से कभी भी निराश नहीं हुए और बाद में अपने आत्मविश्वास के बल पर वह इंग्लैण्ड के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने। उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। किसी ने सही ही कहा है कि असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया। (4) मन के हारे हार है मन की जीते जीत :-             एडिसन बल्ब का आविष्कार करने के दौरान 10,000 बार असफल हुए थे। इसके बावजूद भी एडिसन ने आशा नहीं छोड़ी उन्होंने एक और कोशिश की और इस बार वह बल्ब का आविष्कार करने में सफल हुए। महात्मा गांधी अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान थर्ड डिवीजन में हाई स्कूल परीक्षा पास हुए थे। महात्मा गांधी अपनी मेहनत, लगन एवं ईश्वर पर अटूट विश्वास के बलबूते जीवन में एक कामयाब व्यक्ति बने और अपने जनहित के कार्यो के कारण सदा-सदा के लिए अमर हो गये। लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। (5) असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं                 हमेशा बड़ा लक्ष्य लेकर चले और अच्छी बातों का स्मरण करे। सब अच्छा ही होगा। ज्यादातर लोग बहुत सीमित दायरों में रहकर ही सोचते हैं और ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते। जहाँ तक हो सके अपनी रूचि के अनुसार ही काम चुने क्योंकि ऐसा करने से हम उसमें अपना सौ प्रतिशत समय दे सकते हैं। हमें जीवन में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं जो घर और बाहर दोनों स्तर का हो सकता हैं। ऐसे में हमें चाहिए की हम अपना संतुलन बना के रखे। यही हमारी सफलता का आधार हैं। असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं। उसी काम को और भी बेहतर तरीके से किया जाये इसलिए सफलता असफलता की चिंता किये बिना पूरे मन से काम करे। (6) नए विचारों और योजनाओं से डरे नहीं              कुछ लोग लक्ष्य तो तय कर लेते हैं लेकिन उसके अनुसार काम नहीं करते। वास्तव में सफलता पाने के लिए अपने लक्ष्य के अनुसार मेहनत करना चाहिए। आपके जीवन में कई ऐसे लोग आएँगे जिनका व्यवहार आपसे विपरीत होगा। इसके लिए जरूरी हैं की आप उससे दूरी बनाकर रखे और विवादों से सदैव बचने की कोशिश करे। जब भी हम कोई काम करते हैं तो हम अपने आप से बात अवश्य करते हैं। इस समय हमें हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुनकर ही अपने निर्णय पर पहुँचना चाहिए। हमारा मानना है कि नए विचार हमेशा नयी क्रांति को जन्म देते हैं इसलिए विचारों के प्रवाह को रोके नहीं बल्कि मन में अच्छे और नए विचार लाये ताकि योजनाएँ भी उसी के अनुरूप बने। हमारे मन में यह भरोसा जरूर होना … Read more

ड्रग एडिक्शन की गिरफ्त में युवा – जरूरी है जागरूकता

जैसे –जैसे शाम  गहराने लगती है , बड़े पार्कों में , जहाँ ज्यादा घने पेड़ व् झाड़ियाँ हों , दो तरह के लोगों की की संख्या बढ़ने लगती है पहला “ प्रेमी युगल जो हॉस्टल , कॉलेज या कोचिंग से कुछ पल साथ बिताने के लिए बहाने बना कर आये होते हैं , और दूसरा उन किशोर बच्चों और युवाओं के   छोटे –छोटे समूह जो ड्रग्स के शिकार हैं | पार्क के किसी सुनसान कोने में किसी चिलचिलाते  कागज़ , इंजेक्शन या सिगरेट  के साथ अपनी जिंदगी धुंआ करने वाले इन बच्चों के बारे में आज  मैं बात कर रही हूँ , जिन्हें आप ने भी शायद सब से डरते छुपते नशा करते देखा होगा , परन्तु कुछ कहा नहीं होगा , क्योंकि उस समय ये कुछ कहने सुनने की मानसिक अवस्था में नहीं होते हैं |  ड्रग एडिक्शन की गिरफ्त में युवा – जरूरी है जागरूकता  अभी  कुछ दिन पहले व्हाट्स एप पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक माँ अपने बच्चे को ढूंढते हुए कूड़े के ढेर के पास जाती है | वहाँ  उसे अपने बेटे का शव मिलता है | रोती –विलाप करती माँ को उसके हाथों में एक इंजेक्शन मिलता है |   ड्रग्स ने  उसके बच्चे की जान ले ली थी | माँ के ऊपर अंगुली उठाने से पहले रुकिए … ये भी हमारी आप जैसे ही कोई माँ होगी जो अपने बच्चे को दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा कहती होगी … पर कब कैसे ये लाडला ड्रग की गिरफ्त में आया इसकी कहानी माँ के प्यार की कमी नहीं एक साजिश थी , जिसका वो शिकार हुआ |  ड्रग्स लेने वाले बच्चों की संख्या दिनों दिन बढती जा रही है | ये बहुत दुखद है | भारत में हर साल १० हज़ार करों रुपये की हेरोईन इस्तेमाल होती है | भारत एशिया का सबसे बड़ा हेरोइन इस्तेमाल करने वाला देश है | ५० लाख से ज्यादा युवा ड्रग्स के एडिक्शन के शिकार हैं ये संख्या हर रोज बढ़ रही है | पंजाब और दिल्ली ने इनकी संख्या पूरे भारत में सबसे ज्यादा है | सबसे ज्यादा नुक्सान पंजाब को हुआ है | इस विषय पर “उड़ता पंजाब” फिल्म भी बनी थी | पाकिस्तान जो की अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहाँ   से आने वाली अफीम को नार्कोटेरिरिज्म का नाम दिया गया है | पाकिस्तान से एक लाख की अफीम दिल्ली आते –आते एक करोंण की हो जाती है , यानी पैसा और युवा वर्ग दोनों की बर्बादी का उद्देश्य पूरा हो जाता है | ये जानते समझते हुए भी ये संख्या रोज बढ़ रही है |  क्यों होते हैं ड्रग एडिक्ट  ये ड्रग्स कुछ रुपयों से ले कर लाखों रुपयों तक की होती है | इसीलिये गरीब से लेकर अमीर तक इसके शिकार हैं | यूँ तो किसी भी एडिक्शन से निकलना मुश्किल है पर  दूसरे नशों में एडिक्ट बनने  में समय लगता है पर ड्रग्स के मामले में एक या दो डोज ही एडिक्ट बनाने के लिए पर्याप्त हैं | ड्रग्स रीहैब सेंटर्स के अनुसार  हम जब भी तकलीफ में होते हैं तो हमारा शरीर कुछ ऐसे केमिकल बनाता  है जो हमें आराम पहुचायें , घर में किसी प्रियजन की मृत्यु होने पर भी इंसान एक सीमा तक रोने चीखने के बाद खुद ही शांत पड़ जाता है , थोड़ी देर बाद फिर दर्द की लहर आती है | दरअसल ये हमारे शरीर की दर्द की प्रतिरोधक क्षमता होती है | जो हमें बचाए रखती है |  ड्रग्स की एक या दो डोज लेने के बाद ही हमारा शरीर वो केमिकल बनाना बंद कर देता है | अब जब भी मष्तिष्क को शांति या आराम चाहिए तो ड्रग्स की शरण में जाना ही पड़ेगा | ये एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें एक बार फंसने के बाद निकलना मुश्किल है | कैसे बढ़ रहे हैं ड्रग एडिक्ट   ड्रग एडिक्शन की शुरुआत केवल किसी परिचित के ये कहने से होती है , “ एक बार , बस एक बार …. और ये शिकंजा बढ़ता चला जाता है | सवाल ये है की जो खुद ड्रग्स के कुप्रभाव अपने शरीर पर झेल रहा है वो दूसरों को क्यों फँसाता है ? दरअसल उसे फ्री में ड्रग्स का लालच दिया जाता है | जो जितनों को जोड़ लेगा उनको ड्रग्स फ्री हो जायेगी | एक ड्रग एडिक्ट के लिए ड्रग्स साँसे बन जाती है और वो अपना जीवन बचाने  के लिए दूसरों का जीवन लीलने से गुरेज नहीं करता | ड्रग्स बनाने वाली कम्पनियां भी यही तो  चाहती हैं इसीलिए वो सदस्य बढ़ाने  के एवज में फ्री ड्रग का ऑफर रखतीं है | पार्कों के आस –पास आपने भी कुछ ऐसे शातिर आँखें जरूर देखी  होंगी जो शिकार ढूंढ  रहीं है पर हमें क्या ये सोच कर हम आगे बढ़ जाते हैं , पर जो चपेट में आता है वो हमारा न सही किसी दूसरे का मासूम बच्चा ही होता है |  एक बार चपेट में आने का मतलब ज्यादातर मामलों में कभी ना निकल सकना ही होता है क्योंकि जितने रीहैब सेंटर हैं वो जितने ड्रग एडिक्ट हैं की तुलना में ऊँट के मुंह में जीरा ही हैं | कैसे दूर करें  ड्रग एडिक्शन  मेरा इस पोस्ट को लिखने का मकसद किशोर और युवाओं से ये गुजारिश करना है कि कोई कुछ भी कहे एक बार ले लो , अरे अभी  तो माँ के आँचल में बैठा है , बच्चा है … बेबी , बेबी … पर अपनी ना पर अडिग रहे | ये किसी भी हालत में बड़ा बनना नहीं है | बड़ा वो है जो समझदार है , जो हित –अनहित जानता है |  दूसरे समाज  को ड्रग एडिक्ट के बारे में अपना रवैया बदलना होगा | हम सब ड्रग एडिक्ट पर एक लेबिल लगा देते हैं कि ये तो ड्रग एडिक्ट है … समाज उसे स्वीकारता नहीं तो वो फिर से उन्हीं लोगों के पास जाएगा जो ड्रग एडिक्ट हैं , कम से कम उसे वहां अपनापन तो मिलेगा |  अपने बच्चों की छोटी सी छोटी गतिविधि पर ध्यान रखें | आपके व्हाट्स एप , मोबाइल या फेसबुक लाइक से कहीं जायदा जरूरी है कि बच्चों समय दिया जाए |  जरूरी है कि … Read more