आखिर निर्णय लेने से घबराते क्यों हैं ?

      सुनिए ,  आज मीरा के घर पार्टी में जाना है , मैं कौन सी साड़ी पहनूँ | ओह , मेनू कार्ड में इतनी डिशेज , ” आप ही आर्डर कर दो ना , कौन सी सब्जी  बनाऊं …. आलू टमाटर या गोभी आलू | देखने में ये एक पत्नी की बड़ी प्यार भरी बातें लग सकती हैं …. परन्तु इसके पीछे अक्सर निर्णय  न ले पाने की भावना छिपी होती है | सदियों से औरतों को इसी सांचे में ढला गया है कि उनके हिस्से का निर्णय कोई और लेता है और वो बस उस पर मोहर लगाती हैं | इसको Decidophobia कहते हैं | १९७३ में वाल्टर कॉफ़मेन ने इसके ऊपर एक किताब भी लिखी थी | ये एक मनोवैज्ञानिक रोग है जिसमें व्यक्ति छोटे से छोटे DECISION लेने में अत्यधिक चिंता , तनाव , बेचैनी से गुज़रता है | आखिर  निर्णय लेने से घबराते  क्यों हैं ? / How-to-overcome-decidophobia-in-hindi मेरा नाम शोभा है | मेरी उम्र ७२ वर्ष है | मेरे चार बच्चे हैं | चारों  अपनी गृहस्थी में मस्त हैं | मैं -नाती पोते वाली,  दादी और नानी हूँ | मेरी जिन्दगी का तीन चौथाई हिस्सा रसोई में कटा है | परन्तु अभी हाल ये है कि मैं सब्जी काटती हूँ तो बहु से पूछती हूँ …. ” भिंडी कितनी बड़ी काटू , चावल दो बार धोऊँ  या तीन बार , देखो दाल तुम्हारे मन की घुट गयी है या नहीं |  बहु अपना काम छोड़ कर आती है और बताती है , ” नहीं मम्मी , नहीं ये थोडा छोटा करिए , दाल थोड़ी और घोंट लीजिये आदि -आदि | आप सोच रहे होंगे कि मैं अल्जाइमर्स से ग्रस्त हूँ या मेरी बहु बहुत ख़राब है , जो अपनी ही मर्जी का काम करवाती है | परन्तु ये दोनों ही उत्तर सही नहीं हैं | मेरी एक ही इच्छा रहती है कि मैं घरेलू काम में जो भी बहु को सहयोग दूँ वो उसके मन का हो | आखिरकार अब वो मालकिन है ना …. उसको पसंद न आये तो काम का फायदा ही क्या ? पर ऐसा इस बुढापे में ही नहीं हुआ है | बरसों से मेरी यही आदत रही है … शायद जब से होश संभाला तब से | बहुत पीछे बचपन में जाती हूँ तो जो पिताजी कहते थे वही  मुझे करना था | पिताजी ने कहा साड़ी पहनने लगो , मैंने साड़ी  पहनना शुरू किया | पिताजी ने कहा, ” अब तुम बड़ी हो गयी हो , आगे की पढाई नहीं करनी है” | मैंने उनकी बात मान ली | शादी करनी है … कर ली | माँ ने समझाया जो सास कहेगी वही करना है अब वो घर ही तुम्हारा है | मैंने मान लिया | मैं वही करती रही जो सब कहते रहे | अच्छी लडकियां ऐसी ही तो होती हैं …. लडकियाँ पैदा होती हैं …. अच्छी लडकियां बनायीं जाती हैं |  आप सोच रहे होंगे , आज इतने वर्ष बाद मैं आपसे ये सब क्यों बांटना चाहती हूँ ? दरअसल बात मेरी पोती की है | कल मेरी बारह वर्षीय पोती जो अपने माता -पिता के साथ दूसरे शहर में रहती है  आई थी वो मेरे बेटे के साथ बाज़ार जाने की जिद कर रही थी , मैं भी साथ चली गयी | उसे बालों के क्लिप लेने थे | उसने अपने पापा से पूछा , ” पापा ये वाला लूँ या ये वाला ?” …. ओह बेटा ये लाल रंग का तो कितना बुरा लग रहा है , पीला वाला लो | और उसने झट से पीला वाला ले लिया | बात छोटी सी है , परन्तु मुझे अन्दर तक हिला गयी | ये शुरुआत है मुझ जैसी बनने की …. जिसने अपनी जिन्दगी का कोई निर्णय कभी खुद लिया ही नहीं , क्योंकि मैंने कभी निर्णय लेना सीखा ही नहीं | कभी जरूरत ही नहीं हुई | धीरे-धीरे निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म हो गयी | वो कहते हैं न जिस मांस पेशी  को  इस्तेमाल ना करो वो  कमजोर हो जाती है | मेरी निर्णय  लेने की क्षमता खत्म हो गयी थी | मैंने पूरी जिंदगी दूसरों के मुताबिक़ चलाई |  मेरी जिंदगी तो कट गयी पर ये आज भी बच्चों के साथ हो रहा है …. खासकर बच्चियों के साथ , उनके निर्णय माता -पिता लेते हैं और वो निर्णय लेना सीख ही नहीं  पातीं | जीवन में जब भी विपरीत परिस्थिति आती है वो दूसरों का मुंह देखती हैं, कुछ इस तरह से  राय माँगती है कि उनके हिस्से का  निर्णय कोई और ले ले | लड़के बड़े होते ही विद्रोह कर देते हैं इसलिए वो अपना निर्णय लेने लग जाते हैं | निर्णय न  लेने की क्षमता के लक्षण  1) प्रयास रहता है की उन्हें निर्णय न लेना पड़े , इसलिए विमर्श के स्थान से हट जाते हैं | 2) चाहते हैं उनका निर्णय कोई दूसरा ले | 3)निर्णय लेने की अवस्था में मनोवैज्ञानिक दवाब कम करने के लिए कुंडली , टैरो कार्ड या ऐसे ही किसी साधन का प्रयोग करते हैं | 4)छोटे से छोटा निर्णय लेते समय एंग्जायटी के एटैक पड़ते हैं 5) रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल होती है | माता -पिता बच्चों को निर्णय लेना सिखाएं  आज जमाना बदल गया है , बच्चों को बाहर निकलना है , लड़कियों को भी नौकरी करनी है …. इसी लिए तो शिक्षा दे रहे हैं ना आप सब | लेकिन उन्हें  लड़की  होने के कारण या अधिक लाड़ -दुलार के कारण आप निर्णय लेना नहीं सिखा रहे हैं तो आप उनका बहुत अहित कर रहे हैं | जब वो नौकरी करेंगी तो ५० समस्याओं को उनको खुद ही हल करना है | आप हर समय वहां नहीं हो सकते | मेरी माता पिता से मेरी ये गुजारिश है कि अपने बच्चों को बचपन से ही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें | छोटी -छोटी बात पर उनके निर्णय को प्रात्साहित करें , जिससे भविष्य में उन्हें निर्णय लेने में डर  ना लगे | अगर उनका कोई निर्णय गलत  भी निकले तो यह कहने के स्थान पर कि मुझे पता था ऐसा ही होगा ये कहें कि कोई  … Read more

जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे

जिंदगी के छोटे –छोटे सूत्र कहीं ढूँढने नहीं पड़ते वो हमारे आस –पास ही होते हैं पर हम उन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं | ऐसे ही दो सूत्र मुझे तब मिले जब मैं मिताली के घर गयी | ये सूत्र था … जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे  मिताली के दो बच्चे हैं एक क्लास फर्स्ट में और एक क्लास फिफ्थ में | दोनों बच्चे ड्राइंग कर रहे थे | उसकी बेटी सान्या जो छोटी है अपनी आर्ट बुक में डॉट्स जोड़ कर कोई चित्र बना रही थी | और बेटा राघव ड्राइंग फ़ाइल में ब्रश से पेंटिंग कर रहा था | जहाँ बेटी हर मोड़ पर उछल  रही थी क्योंकि उसे पता नहीं था की क्या बनने वाला है …  उसे बस इतना पता था की उसे बनाना है कुछ भी , इसलए बनाते हुए आनंद ले रही थी | गा रही थी हँस  रही थी | बेटा बड़ा था उसे पता था कि उसे क्या बनाना है | वो भी आनंद ले रहा था | लेकिन जब भी उसे अहसास होता कि कुछ मन का नहीं हो रहा है वो दो –तीन कदम पीछे लौटता दूर से देखता , सोचता , “ अरे ये रंग तो ठीक नहीं है , इसकी जगह ये लगा दे , ये लकीर थोड़ी सीधी  कर दी जाए , यहाँ कुछ बदल दिया जाए | फिर जा कर उसमें रंग भरने लगता बच्चे रंग भरते रहे और मैं जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र ले कर घर वापस आ गयी | जीवन एक  कैनवास जैसा ही तो है जिसमें हमें रंग भरने हैं पर इस रंग भरने में इतना तनाव नहीं भर लेना चाहिए कि रंग भरने का मजा ही चला जाए या बाहर से रंग भरते हुए हम अन्दर से इतने बेरंग होते जाए कि अपने से ही डर लगने लगे | चित्र बनाना है उस बच्ची की तरह हँसते हुए , गाते हुए ,हर कदम पर इस कौतुहल के साथ कि देखें आगे क्या बनने वाला है  पर क्योंकि अब हम बड़े हो गए हैं तो दो कदम पीछे हट कर देख सकते हैं , “ अरे ये गलती हो गयी , यहाँ का रंग तो छूट ही गया , यहाँ ये रंग कर दें तो बेहतर होगा | पर क्या हम इस सुविधा का लाभ उठाते हैं ?  शायद नहीं , आगे आगे और आगे बढ़ने का दवाब में जल्दी –जल्दी रंग भरने में कई बार हम देख ही नहीं पाते कि एक रंग ने बाकी रंगों को दबा दिया है | जीवन भी एक रंग हो गया और सफ़र का आनंद भी नहीं मिला |पीछे हटने में कोई बुराई नहीं है पर मुश्किल ये है कि हम पीछे हट कर देखना नहीं चाहते हैं | जो बन गया , जैसा बन गया उसी पर रंग पोतते जाना है | क्या जरूरी नहीं है हम दो कदम पीछे हट कर उसी समय जिंदगी को सुधार लें | भले ही आप का चित्र सबसे पहले न बन पाए पर यकीनन चित्र उसी का अच्छा बनेगा जो दो कदम आगे एक कदम पीछे में विश्वास रखता है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …  अपनी याददाश्त व् एकाग्रता को कैसे बढाएं समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल वो 22 दिन इतना प्रैक्टिकल होना भी ठीक नहीं आपको  लेख “ जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-life, Be positive, success

क्या आप भी मल्टी टेलेंटेड हैं ?

मल्टी   टेलेंटेड होना बहुत ख़ुशी की बात है पर मल्टी टेलेंटेड लोग सफल नहीं होते |  उनसे कम टेलेंटेड लोग ज्यादा सफल हो जाते हैं | ऐसा क्यों होता है ? अगर आप भी मालती टेलेंटेड हैं और सफलता के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ये लेख आपके लिए है | क्या आप भी मल्टी टेलेंटेड हैं ?                          मन्नू एक प्रतिभाशाली लड़की है | ईश्वर जब प्रतिभाएं बाँट रहा था तो  उसकी तरफ न जाने क्यों ज्यादा मेहरबान हो गया | मन्नू बहुत अच्छा गाती है , जब सुर लगाती है तो लगता है कि सरस्वती साक्षात् उसके गले में प्रवेश कर गयीं है , सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते |  जब चित्र बनती तो चित्र बोल पड़ते | अभी कुछ दिन पहले गुलाब का फूल बनाया था , ऐसा लग रहा था ताज़ा डाली पर खिला है , बस अभी तोड़ लें | इसके आलावा मन्नू का फेशन सेन्स भी जबरदस्त है | कोई कपडा मिले उसे नया लुक कैसे देना है ये उसके दिमाग में तुरंत आ जाता और फिर शुरू हो जाता कपडे  को उस आकार में डालने की कवायद |   जो भी उसके सिले हुए कपडे देखता वो कह उठता … मन्नू तुम से बेहतर फैशन डिजाइनर तो कोई हो ही नहीं सकता |                                                      अक्सर लोग मन्नू से रश्क करते , उन्हें लगता मन्नू इतनी प्रतिभाशाली है , वो तो अपनी प्रतिभा के बलबूते पर खूब नाम और पैसा कमा लेगी | ऐसे बातें सुन कर मन्नू के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते थे | उसे लगता था वो बड़ी होकर अपने हर हुनर  को प्रोफेशन बनाएगी | जैसे ही उसने 12 th किया तो उसने गायकी में आगे बढ़ने की सोची  | शुरू में तो उसे बहुत अच्छा लगा | लेकिन धीरे -धीरे उसे लगने लगा कि ये क्षेत्र उसके लिए नहीं है | घंटों रियाज के कारण वो पेंटिंग या फैशन डिजाइनिंग तो कर ही नहीं पाती | उसका मन उसे  पेंटिंग की और खींचने लगा | कुछ दिन पेंटिंग के बाद भी वो बोर हो गयी उसे लगा इससे तो अच्छा फैशन  डिजाइनिंग  थी | उसने फिर अपना कोर्स बदला और फैशन डिज़ानिंग में आ गयी |  ये सब करते -करते चार साल बीत गए थे | मन्नू  की सहेलियाँ जॉब करने लगीं थीं | कुछ जो उससे कम अच्छा गाती या , पेंटिंग करती थीं उन्होंने भी कहीं न कहीं पैर जमा लिए थे , वहीँ मन्नू एक कोर्स से दूसरे कोर्स की और भटक रही थी | मन्नू अवसाद से घिर गयी | उसे लगा वो जीवन में कुछ  नहीं कर पाएगी | एक  मल्टी टेलेंटेड लड़की जिससे बहुत आशाएं थी … कुछ न कर सकी | ये बात सिर्फ मन्नू की ही नहीं है …. बहुत सारे प्रतिभाशाली लोग अपनी तमाम प्रतिभाओं में से चुन नहीं पाते हैं कि वो किसे अपना कैरियर बनाएं |  वो इधर से उधर भटकते रहते हैं लिहाजा किसी चीज में सफल नहीं होते हैं , और अवसाद का शिकार होते हैं | इससे बचने के लिए मल्टी टेलेंटेड लोगों को शुरू से ही बहुत ध्यान देना होता है| चुनिए वो गुण जिसे आपको कैरियर बनाना है –                                               माना की आप के पास कई तरह की प्रतिभाएं हैं पर आपको उनमें से एक चुनना हो होगा | ये काम बचपन में जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा  ताकि आप उस विधा में महारथ हासिल कर सकें | अब मान लीजिये  कोई लड़की है जो इंजीनियर बनना चाहती है व् उसे खाना बनाने का भी बहुत शौक है तो वो  एक शेफ व् इंजीनियर दोनों नहीं बन सकती | उसे बचपन में ही तय करना होगा कि दोनों प्रतिभाओं में से उसे किसे प्रोफेशन बनाना है और किसे हॉबी | प्रोफेशन वो है जिसे हम रोज ८ से १० घंटे आराम से कर सकते हैं | ऐसा नहीं है कि जिसे हमने प्रोफेशन के लिए चुना है  उसमें हम ऊबते नहीं है …. ऊबते हैं पर बनस्पत कम ऊबते हैं | हॉबी वो है जिसे करने में हमें अच्छा लगता है पर उसे रोज घंटों नहीं कर सकते | जैसे लेखन मेरा प्रोफेशन  है और  बुनाई  मेरी हॉबी या टीचिंग मेरा प्रोफेशन है और लेखन मेरी हॉबी | एक लक्ष्य निर्धारित कर के उसे निखारिये                                  किसी भी क्षेत्र में ज्ञान असीमित है | इसलिए जरूरी है कि अप एक लक्ष्य निर्धारित करके उसे निखारने का प्रयास करें | जैसे  आपने गायन को प्रोफेशन के लिए चुना है तो आप निर्धारित करिए कि आप कम से कम रोज चार घंटे अभ्यास करेंगे | इंजिनीयरिंग को चुना है तो रोज चार घंटे गणित व् विज्ञानं पढ़िए | आप जितनी गहराई में जायेंगे उतना स्पष्ट होते जायेंगे | अर्जुन ने हर रोज तीर चलाने का ही अभ्यास किया था … भाला फेंकने व् गदा चलाने का  अभ्यास उतना ही किया जितना जरूरी था पर तीर चलाने का अभ्यास उसने रात में जग -जग कर किया , क्योंकि उसे धनुर्धर बनना था | आप को भी जो बनना है पहला फोकस उसी पर होना चाहिए | जैसे कि कोई अपना परिचय देता है कि , ” मैं एक डॉक्टर हूँ , पर मैं लिखता भी हूँ , मेरे दो उपन्यास आ चुके हैं | अपने प्रोफेशन की गहराई में एक छोटा क्षेत्र चुनिए                                                जब आपने ये निर्णय कर लिया है कि आपको क्या करना है या कौन सा प्रोफेशन चुनना है तो उसकी गहराई में जाकर  उसका एक हिस्सा चुनिए | याद रखिये लेजर शार्प फोकस हीरे को काट  देता है | इस लेजर शार्प फोकस के … Read more

सपने देखना भी एक हुनर है

    कौन है जो सपने नहीं देखता , पर क्या हमारे सब सपने पूरे होते हैं |  कुछ लोग जीवन में आने वाली समस्याओं से विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं से घबराकर अपने ख़र्चों में कटौती करने और अपने सपनों का गला घोंटने में लग जाते हैं। क्या आप को पता है की पूरे होने वाले सपने देखने के लिए सपने देखने का हुनर सीखना भी जरूरी है | सपने देखना भी एक हुनर है  जो लोग बड़े सपनों से भयभीत हो उनका गला घोंटते हैं , उनके अनुसार जीवन में समस्याओं से बचने का यही एकमात्र उपाय है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत होती है। समस्याओं से बचने से न तो हमारी समस्याएँ कम होती हैं और न उनका समाधान ही हो पाता है। ये तो बिल्ली को देखकर कबूतर के आँखें मूँद लेने जैसी स्थिति है। ऐसे लोग प्रायः कहते हैं कि हवाई किले मत बनाओ या दिन में सपने देखना छोड़ दो लेकिन आज ये बात सिद्ध हो चुकी है कि जीवन में आगे बढ़ने या कुछ पाने के लिए दिन में सपने देखना बहुत ज़रूरी है। हमारा भविष्य हमारे सपनों के अनुरूप ही आकार ग्रहण करता है। आज दुनिया में जो लोग भी सफलता के ऊँचे पायदानों पर पहुँचे हैं वो अपने सपनों की बदौलत ही ऐसा कर पाए हैं और जो लोग किसी भी क्षेत्र में सबसे नीचे के पायदान से भी नीचे हैं वो भी अपने कमज़ोर व विकृत सपनों के कारण ही वहाँ हैं। ‘‘रिच डैड पुअर डैड’’ के अनुसार       ‘‘रिच डैड पुअर डैड’’ के लेखक राॅबर्ट टी. कियोसाकी कहते हैं कि हमें अपने ख़र्चों में कमी करने की बजाय अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए और अपने सपनों को सीमित करने की बजाय अपने साहस और विश्वास में वृद्धि करनी चाहिए। जिस किसी ने भी सही सपने चुनने और देखने की कला विकसित की है वही संसार में सबसे ऊपर पहुँच सका है। ऊपर पहुँचने का अर्थ केवल धन-दौलत कमाने तक सीमित नहीं है अपितु जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति व विकास से है। अच्छा स्वास्थ्य तथा प्रभावशाली व आकर्षक व्यक्तित्व पाने का सपना भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता। जो लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित ऊँचाइयों तक नहीं पहुँच पाते ज़रूर उनके सपनों व उन्हें देखने के तरीक़ों में कोई कमी रही होगी। सपना देखने के बाद उसकी देख-भाल व परवरिश करना भी अनिवार्य है ताकि वो अपने अंजाम तक पहुँच सके। प्रश्न उठता है कि सही सपनों का चुनाव कैसे करें और कैसे उन्हें देखें? इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पश्चिमी देशों में हर साल 11 मार्च को ‘ड्रीम डे’ अथवा ‘स्वप्न दिवस’ मनाया जाता है। खुली आँखों से देखे सपने      वास्तविकता ये है कि हमारा मन कभी चैन से नहीं बैठता। उसमें निरंतर विचार उत्पन्न होते रहते हैं। एक विचार जाता है तो दूसरा आ जाता है। हर घंटे सैकड़ों विचार आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। ये विचार हमारी इच्छाओं के वशीभूत होकर ही उठते हैं। ये हमारे सपने ही होते हैं। सपनों का प्रारंभिक स्वरूप। हमारे अवचेतन व अचेतन मन में विचारों की कमी नहीं होती। पूरे जीवन के अच्छे व बुरे सभी अनुभव इनमें संग्रहित रहते हैं। ये अनुभव ही हमारे विचारों के मूल में होते हैं। इन असंख्य विचारों में से जो विचार जीवन या भौतिक जगत में वास्तविकता ग्रहण कर लेता है वो एक सपने की पूर्णता ही होती है। कई बार हमें अपने इस सपने की जानकारी भी नहीं होती। सपने की जानकारी न होने से सपने की जानकारी होना बेहतर ही नहीं बेहतरीन है। संभावना रहती है कि ग़लत विचार हमारा सपना बनकर हमें तबाह कर डाले। अतः नींद में नहीं अपितु खुली आँखों से सोच-समझकर सपने देखना ही श्रेयस्कर है। सीखें सपने देखने की कला       अब एक और प्रश्न उठता है कि सही विचारों अथवा सपनों के चयन के लिए क्या किया जाए? सही विचारों के चयन के लिए विचारों को देखकर उनका विश्लेषण करना और उनमें से किसी अच्छे उपयोगी विचार का चयन करना अपेक्षित है। जब हम रोज़ मर्रा की सामान्य अवस्था में होते हैं तो न तो विचारों को सही-सही देखना ही संभव है और न उनका विश्लेषण करना ही। इसके लिए मस्तिष्क की शांत-स्थिर अवस्था अपेक्षित है। ध्यान द्वारा यह स्थिति प्राप्त की जा सकती है।  मस्तिष्क की चंचलता कम हो जाने पर जब हम शांत-स्थिरि हो जाते हैं तो उस अवस्था में विचारों को देखना और उनका विश्लेषण करना संभव हो जाता है। उस समय हमें चाहिए कि हम अनुपयोगी नकारात्मक विचारों पर ध्यान न देकर केवल उपयोगी सकारात्मक उदात्त विचारों पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित कर लें। हम जो चाहते हैं मन ही मन उसे दोहराएँ। उसी विचार के भाव को पूर्ण एकाग्रता के साथ मन में लाएँ। उस भाव को अपनी कल्पना में चित्र के रूप में देखें।      अपने विचार, भाव या सपने को चित्र के रूप में देखना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व फलदायी होता है। हम पूरे घटनाक्रम को एक फिल्म अथवा उस सपने की परिणति को एक चित्र की तरह देखें। आपकी फिल्म अथवा चित्र जितना अधिक स्पष्ट होगा सपने की सफलता उतनी ही अधिक निश्चित हो जाएगी।  यह पूरी प्रक्रिया हमारे मस्तिष्क को अत्यंत सक्रिय व उद्वेलित कर देती है। मस्तिष्क की कोशिकाएँ हमारे सपने के अनुरूप अपेक्षित परिस्थितियों का निर्माण करने में जुट जाती हैं और तब तक न स्वयं चैन से बैठती हैं और न हमें ही चैन से बैठने देती हैं जब तक कि वो सपना पूरा नहीं हो जाता। बिना किसी सपने के न तो हमारा मस्तिष्क ही सक्रिय होता है और न अपेक्षित परिस्थितियों का निर्माण ही होता है। इसी से जीवन में सपनों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। तो आप भी अपने अंदर सपने देखने का हुनर विकसित का लीजिये | बड़े सपनॉन से दरिये नहीं , उन्हें जी भर के देखिये … उन्हें सच करिए … और दोनों हाथ बढ़ा कर वो सब समेत लीजिये जिसे पाने का कभी आपने सपना देखा था |  सीताराम गुप्ता, दिल्ली – 110034 यह भी पढ़ें … case study-क्या जो दीखता है वो बिकता है विचार मनुष्य की सम्पत्ति हैं स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन … Read more

नेगेटिव लोगों से कैसे दूर रहे

                                 एक वाक्य जो आजकल बहुत प्रचलन में है ,  ” आप जैसा सोचते हैं वैसे बनते हैं ” | हम सब अच्छा सोचना चाहते हैं , हम सब खुश रहना चाहते हैं , पॉजिटिव  रहना चाहते हैं पर ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता | कई बार परिस्थितियाँ  प्रतिकूल  होती हैं  और कई बार हमारे इर्द गिर्द के कुछ लोग हमेशा नकारात्मकता से भरे रहते हैं | ये लोग हमारे अंदर भी नकारात्मकता भरते रहते हैं |  परन्तु चाह  कर भी हम उनसे दूर नहीं हो पाते क्योंकि वो या तो हमारे परिवार और करीबी लोग होते हैं या फिर साथ काम करने वाले | ऐसे में ये प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि हम नेगेटिव लोगों से कैसे दूर  रहे | नेगेटिव लोगों से कैसे दूर  रहे                         सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहती हूँ कि पॉजिटिव और नेगेटिव परिस्थितियों से मिलकर हमारा जीवन बना है | हम हर समय पॉजिटिव नहीं रह सकते , न ही  नेगटिव रह सकते हैं | परिस्थितियां तो आएँगी ही जो  हमें अपने अनुसार ढालने का प्रयास करेंगी |  ज्यादातर पॉजिटिव रहने के लिए जरूरी है कि हमारे आस -पास के लोग  पॉजिटिव हों परन्तु ऐसा हमेशा नहीं होता | नकारात्मक लोग हमारे जीवन का काम का हिस्सा होते हैं | जो हमारे अच्छे खासे पॉजिटिव मूड को नेगेटिव कर देते हैं |  अगर ऐसा है  तो आप को पॉजिटिव बने रहने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखनी होंगीं | अपने बचाव की रणनीति बनाएं                                                अगर नेगेटिव लोग आपके आस -पास हैं और आप पर बुरा प्रभाव  पड़ रहा है तो जाहिर तौर पर आपको खुद को बचाना चाहिए | जैसे अगर आप के घर के सामने की बिल्डिंग बन रही है तो आप के घर में धूल  आएगी ही | यहाँ पर आप ये तो नहीं कह सकते कि आप अपना घर बनाना बंद कर दें | आप कितना भी कहें धरना प्रदर्शन करें उनका घर तो बनेगा और आपके घर में धूल  मिटटी आएगी ही | बेहतर होगा कि आप परिस्थिति को स्वीकार करें व् बचाव की रणनीति अपनाए जैसे आप अपनी खिड़कियाँ बंद कर लें , परदे डाल  कर रखे ताकि कम धूल  आये |  इसी तरह से अगर नेगेटिव लोग आपकी जिंदगी में आ गए हैं , चाहे वो रिश्तों में हों या ऑफिस में आप उनके साथ कम से कम इंटरेकशन करें | दिव्या को जब पता चला कि उसकी जेठानी इसलिए उसके  गायन  में नुक्स निकालती है ताकी वो डर कर गाना छोड़ दे तो उसने अपना रियाज छोड़ने के स्थान पर जेठानी जी से पूछना बंद कर दिया कि सुर ठीक से लगे हैं या नहीं | आज सब दिव्या के गाने की तारीफ़ करते हैं , हालांकि उनकी जेठानी अभी भी उसमें दस बुराइयां ढूंढ लेती हैं | पर अब दिव्या को फर्क नहीं पड़ता | जानने का प्रयास केलिए कि वो नेगेटिव क्यों है                                                        आज पॉजिटिव थिंकिंग पर जोर दिया जा रहा है , हम सब चाहते हैं कि हमारे आस -पास पॉजिटिव लोग रहे | पर हमेशा जो लोग हमारे पास नकारात्मक दिखाई दे रहे हैं वो वास्तव में नकारात्मक नहीं हैं , परिस्थितियों ने उन्हें ऐसा बना दिया है | कई बार स्टे पॉजिटिव के नशे में हम अपना मूलभूत स्वाभाव सहानुभूति व् समानुभूति खो देते हैं | याद रखिये बचपन में कोई बच्चा नकारात्मक नहीं होता | परिस्थितियाँ उन्हें ऐसा बना देती हैं | जो हमारे करीब के लोग हैं हमें उनकी परिस्थिति को समझना होगा कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं | इससे न सिर्फ उनकी व् हमारी नकारात्मकता दूर होगी बल्कि हम ज्यादा अच्छे रिश्ते बना पायेंगे |  मीरा के चहेरे भाई की  स्कूल पिकनिक पर नदी में डूब कर मृत्यु हो गयी थी | शादी के बाद वो अपने पति को कहीं भी टूर पर जाने से रोकती अगर वो जाता तो हर आधे घंटे में फोन कर पूछती कि क्या वो ठीक है ? ऑफिस में उसके पति का माज़क बनने लगा , उसके जी में आया कि उसके बारे में मीरा हर समय गलत सोचती है , उसे विश्वास  नहीं है क्यों न इस रिश्ते  को खत्म कर लूँ | अंतिम फैसला लेने से पहले उसने मीरा से बात करने का निश्चय किया | प्यार भरे शब्दों से मीरा टूट गयी | उसने अपने बचपन का वो दर्द बता दिया जिसे वो भूल कर भी याद नहीं करना चाहती थी पर जो उसके  अवचेतन में हर पल जिन्दा था | पति के प्यार  व् सहानुभूति से वो डर धीरे -धीरे निकल गया | ऐसे बहुत से कारण होते हैं जो लोगों को हमेशा के लिए नकारात्मक बना देते हैं | अगर आप के आस -पास भी ऐसे लोग हैं तो आप कारण जानने  का प्रयास करें … हो सकता हैं उन्हें प्यार व् सहानुभूति से फिर से नार्मल किया जा सके | करे खुद की रीसाइकिलिंग                                       पानी का एक साइकिल है वो गन्दा हो जाता है तो उसे एक प्रोसेस द्वारा फिर से साफ़ कर लिया जाता है | एक प्रोसेस नेचर का बनाया हुआ है और एक प्रोसेस हमारे जल विभाग ने बनाया है | आपको भी इन  नकारात्मक लोगों के साथ वक्त बिताने के बाद थोडा समय खुद की रीसाइकिलिंग में लगाना चाहिए | आप देखेंगे कि जो लोग आप के आस -पास नकारात्मक हैं वो , ऐसा काम नहीं कर पाए हैं , या ऐसे चीज नहीं पा पाए हैं जो आपके पास है | इस कारण वो नीचा महसूस कर रहे हैं | उनकी कोशिश यही होगी कि वो आप को नीचा दिखाए या … Read more

case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?

                                एक सवाल अक्सर उठता रहता है जो दिखता क्या वही बिकता है  या जो बिकता है वही दिखता है ?सवाल भले ही उलझन भरा हुआ है पर हम सब के लिए बहुत मह्त्वपूर्ण है | case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ? आप में से कई लोग सोच रहे होंगे , ” अरे हमें इससे क्या , हम कोई व्यापारी थोड़े ही हैं | अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि  हम सब लोग कहीं न कहीं कुछ न कुछ  बेंच रहे हैं |  अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो भी आप  उस कार्य के लिए अपनी क्षमता बेंच रहे हैं , डॉक्टर या इंजिनीयर हैं तो अपना ज्ञान बेंच रहे हैं , कलाकार हैं तो अपनी कला बेंच रहे हैं | यानी हम सब कुछ न कुछ बेंच रहे हैं …. इसलिए ये  जानना हम सब के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है | जो दिखता है वो बिकता है                                       नीलेश व् महेश दोनों साइंस टीचर हैं | दोनों के पास अपने सब्जेक्ट का ज्ञान है पर नीलेश जी ने अपने   प्रचार के लिए अख़बारों में व् विभिन्न वेबसाइट्स पर ऐड दिए | जिसमें विज्ञान के अच्छे टीचर चाहिए तो संपर्क करें में अपनी प्रोफेशनल योग्यता व्  अपना फोन नम्बर डाल दिया | उसके पास बहुत सारे कॉल्स आये व् उसे शुरुआत में ही बहुत सारे बच्चे पढ़ाने के लिए मिल गए | महेश जी ने केवल आस -पास के बच्चों को पढ़ाना  शुरू किया | उनके पास शुरुआत में बहुत कम बच्चे थे | इस तरह से ये लगता है कि जो दिखता है वही बिकता है | इस आधार पर बड़ी -बड़ी कम्पनियां विज्ञापन करती रहती है भले ही उनका प्रोडक्ट स्थापित हो गया हो | ताकि मार्किट में उनका प्रोडक्ट बराबर दिखता रहे | ऐसा करने से उसके बिकने की सम्भावना बढ़ जाती है | मेरे घर के पास में एक रिलायंस स्टोर है | वहां क्वालिटी वाल्स ने  स्कीम लगा रखी है दो छोटी ब्रिक लेने पर 50 रुपये की छूट | बड़ा -बड़ा लिखा होने के बावजूद उनकी कम्पनी की एक लड़की काउंटर पर खड़ी रहती है जो बिल भरने आये लोगों को बचत के बारे में समझा कर आइस  क्रीम खरीदने को कहती है | अक्सर लोग जो आइस क्रीम खरीदने नहीं आये होते हैं बार -बार चार्ट दिखाए जाने पर आइस क्रीम खरीद लेते हैं | इसी तरह  लक्स साबुन को ही लें साधना भी लक्स से नहाती थी और सोनम कपूर भी | सारी  सुंदर अभिनेत्रियाँ  लक्स साबुन से नहाती हैं ये लक्स के विज्ञापन का तरीका है | लक्स एक स्थापित ब्रांड है फिर भी विज्ञापन बार -बार इसलिए दिखाए जाते हैं ताकि लोग उसी ब्रांड से चिपके रहे  कोई दूसरा प्रोडक्ट न लें | क्योंकि अगर उन्होंने कोई दूसरा प्रोडक्ट लिया तो लक्स को उसकी क्वालिटी से फिर से टकराना पड़ेगा पूरा विज्ञापन उद्योग इसी पर टिका है …. “जो दिखता है वो बिकता है “इसीलिये विज्ञापन बार -बार दिखाए जाते हैं | जो बिकता है वो दिखता है                                कुछ लोगों का इसके विपरीत भी तर्क  होता है | उनके अनुसार जो माल बिकता है वही दि खता है | जैसे अगर  टी वी का कोई ब्रांड या कोई अन्य सामान बार -बार  बिक रहा है तभी वो हर दुकान पर दिखाई देगा | जो सामन बिक नहीं रहा दुकान दार उसे अपनी दूकान पर नहीं रखेंगे | मैगी पर बैन के बाद कई नूडल्स बाज़ार में आये थोड़े बहुत बिके भी , पर जब मैगी वापस लौटी तो फिर से मार्किट पर छा गयी | हर दूकान पर किसी और ब्रांड की नूडल्स हो न हों पर मैगी जरूर होती है | क्योंकि वो बिकती है इसी लिए हर दुकान पर दिखती है | जैसे  अगर आप लेखक हैं आप की कोई रचना लोगों को पसंद आ गयी तो लोग उसे शेयर करेंगे | आपने अपनी हर रचना को पूरी शिद्दत से लिखा उसका प्रचार किया | पर वही रचना हर वाल पर दिखेगी , जो लोगों को पसंद आई है| इसी क्रम में एक उदाहरण हालिया रिलीज फिल्म ” राजी” है | आलिया भट्ट की छोटे बजट की इस फिल्म का   शुरूआती प्रचार नहीं हुआ , पर क्योंकि फिल्म अच्छी बनी थी | इसलिए हॉल से निकलने वाले व्लोगों ने इसकी बहुत प्रशंसा की | समीक्षकों ने जगह -जगह समीक्षाएं लिखी | माउथ पब्लिसिटी इतनी जबरदस्त हुई कि ३० करोंड़ के बज़ट की फिल्म देखते ही देखते 100 करोंड़ क्लब में शामिल हो गयी | किसी लो बज़ात फिल्म के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है | और ये सब बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के हुआ |  यानी जो बिकता है वही दिखता है | दिखता या बिकता से महत्वपूर्ण है कौन टिकता है                                               ऊपर के उदाहरणों से दोनों बातें तय हो रही है जो दिखता है वो बिकता है ये फिर जो बिकता है वही दिखता  है | परन्तु इन दोनों से महत्वपूर्ण बात ये है कि मार्किट में टिकता वही है जिस प्रोडक्ट में  दम हो | जैसे मान लीजिये नीलेश को शुरू में बहुत सारे ट्यूशन मिल गए व् महेश को बहुत कम | निखिल के पढ़ाने के तरीके से विद्यार्थी खुश  नहीं हुए धीरे -धीरे उसका नाम गिरने लगा उसे कम ट्यूशन मिलने लगे पर महेश के पढ़ाने के तरीके को उसके  विद्यार्थियों ने पसंद किया माउथ पब्लिसिटी से उसका काम आगे बढ़ा | एक साल के अंदर निखिल के ट्यूशन बहुत कम व् महेश जी के ट्यूशन बहुत हो गए |                                        आप इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि  आप विज्ञापन … Read more

क्या आप हमेशा हमेशा रोते रहते हैं ?

किसी को दुःख हो तकलीफ हो तो कौन नहीं रोता है | अपना दर्द अपनों से बाँट लेने से बेहतर दवा तो कोई है ही नहीं, पर ये लेख उन लोगों के लिए है जो हमेशा रोते रहते हैं | मतलब ये वो लोग हैं जो  राई को पहाड़ बनाने की कला जानते हैं पर अफ़सोस शुरुआती सहानुभूति के बाद उनकी ये कला उन्ही के विरुद्ध खड़ी नज़र आती है |  ये वो लोग हैं जिनको जरा सी भी तकलीफ होगी तो ये उसको ऐसे बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करेंगे जैसे दुनिया में इससे बड़ी कोई तकलीफ है ही नहीं | कई बार तो आप महसूस करेंगे कि आप के 104 डिग्री बुखार के आगे उनका 99 डिग्री  बाजी मार ले जाएगा | लेकिन अगर आप या आप का कोई प्रिय इस आदत से ग्रस्त है तो अभी भी मौका है … सुधर जाइए |   उनके लिए जो हमेशा  रोते रहते हैं ?  आइये सबसे पहले मिलते है राधा मौसी सी | यूँ तो वो किसी की मौसी नहीं है पर हम सब लाड में उन्हें मौसी कहते हैं |एक बार की बात है राधा मौसी अपनी सहेली के घर मिलने गयीं | सहेली के घर वो जितनी देर बैठी रहीं उन्हें एक कुत्ते के रोने की आवाज़ आती रही | उन्होंने अपनी सहेली से कहा | पर वो ऊँचा सुनती थी इसलिए उसने उन्होंने  कहा कि उसे तो सुनाई नहीं दे रहा है | राधा मौसी बहुत परेशान हो गयीं | उसके दो कारण थे एक तो कुत्तों का रोना अपशकुन माना जाता है | दूसरे वो कुत्तों से बहुत प्यार करती थीं | हालांकि उन्होंने कुत्ते पाले नहीं थे पर गली के कुत्तों को वो रोज दूध रोटी खिलाती |  गली के सब कुत्ते भी उनसे हिल मिल गए थे | मनुष्य और जानवर का रिश्ता कितनी जल्दी सहज बन जाता है  मुहल्ले वालों के लिए इसका उदाहरन राधा मौसी बन गयीं थीं |  खैर राधा मौसी को इस तरह वहां बैठ कर लगातार कुत्ते के रोने की आवाज़ सुनना गवारां  नहीं हो रहा था | राधा मौसी ने सहेली से विदा ली और आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ ली | आवाज़ का पीछा करते –करते वो  एक घर में पहुंची | घर की बालकनी में एक महिला चावल बीन रही  थी | वहीँ एक कुत्ता उल्टा लेटा  रो रहा था | राधा मौसी ने उस महिला से कहा , “ क्या ये आप का कुत्ता है ? महिला ने हाँ में सर हिलाया | राधा मौसी ने फिर पुछा ये क्यों रो रहा है ? महिला ने लापरवाही दिखाते हुए कहा , “ कोई ख़ास बात नहीं है , इसकी तो आदत है , ये तो रोता ही रहता है | राधा मौसी को ये बात बहुत अजीब लगी | उन्होंने कुत्ते  को देखा | वो अभी भी रो रहा था | उसके रोने में दर्द था | राधा मौसी से रहा नहीं गया उन्होंने फिर कहा , “ ये ऐसे ही नहीं रो रहा , देखिये तो जरूर कोई बात है | वो महिला बोली , “ जी , दरअसल इसकी पीठ में जमीन पर पड़ी एक छोटी सी कील चुभ रही है | अब तो राधा मौसी का हाल बेहाल हो गया | उन्होंने उस महिला  को सुनाना शुरू कर दिया , “ कैसी मालकिन है आप , आप के कुत्ते के कील चुभ रही है और आप मजे से चावल चुन रहीं हैं , आप देखती नहीं कि आपके कुत्ते को दर्द हो रहा है |  महिला चावल बीनना रोक कर उनकी तरफ देख कर इत्मीनान से बोली , ” अभी इसे इतना दर्द नहीं हो रहा है |  अब चुप रहने की बारी राधा मौसी की थी |  मित्रों , ये कहानी सिर्फ राधा मौसी और उस महिला की नहीं है | ये कहानी हम सब की है | इस कहानी के दो मुख्य भाग हैं …. 1) अरे ये तो रोता ही रहता है | 2) अभी दर्द इतना नहीं हो रहा है |                           हम इनकी एक-एक करके विवेचना करेंगे |  अरे ,ये तो रोता ही रहता है                           बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो हर समय अपना रोना रोते रहते हैं |  सुख और दुःख जीवन के दो हिस्से हैं |  हम सब के जीवन में ये आते रहते हैं | पर कुछ लोग  केवल अपने दुखो का ही रोना रोते रहते हैं | ऐसे लोग सिम्पैथी सीकर होते हैं | उनके पास हमेशा एक कारण होता है कि वो आप से सहानभूति ले | उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि अगले के जीवन में इस समय क्या दुःख चल रहा है |  श्रीमती शर्मा जी को ही लें | कॉलोनी में सब उन्हें महा दुखी कहते हैं |  क्योंकि वो हर छोटी से छोटी घटना से बहुत परेशान हो जाती हैं और हर आने जाने से उसकी शिकायत करने लगती हैं | श्रीमती गुप्ता हॉस्पिटल में एडमिट  थीं | हम सब का उनको देखने जाने वाले थे | श्रीमती शर्मा से भी पूंछा , उनके पैरों में दर्द था , मसल पुल हो गयी थी | उन्होंने कहा,  “आप लोग जाइए मैं थोड़ी देर में आउंगी” |  उन्होंने श्रीमती गुप्ता की बीमारी का कारन भी नहीं पूंछा | हम सब जब वहां थे , तभी वो हॉस्पिटल आयीं और लगीं अपने पैर की तकलीफ का रोना रोने | इतना दर्द , उतना दर्द , ये दवाई वो दवाई आदि -आदि | काफी देर चर्चा करने के बाद उन्होंने पूंछा ,  ” वैसे आपको हुआ क्या है ? श्रीमती गुप्ता ने मुस्कुरा कर  कहा , ” मुझे नहीं पता था आप इतनी तकलीफ में हैं , मुझे तो बस कैंसर हुआ है  |                   इस जवाब को सुन कर आप भले ही हंस लें पर आप को कई ऐसे चेहरे जरूर याद आ गए होंगे जो  हमेशा अपना रोना रोते रहते हैं | ऐसे लोगों से ज्यादा देर बात करने वालों को महसूस होता है कि उनकी … Read more

स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला

हम सब को गुस्सा आता है | ऐसा परिवार के अन्दर तब होता है जब हमें  कोई ऐसा कुछ ख देता है जो हमें बहुत चुभ जाता है | और हम भी लगते हैं उसे खरी खोटी सुनाने | इससे बात बनती नहीं है बल्कि और बिगड़ जाती है | कई बार गुस्से में ऐसा कुछ कह  देते हैं कि बाद में पछताना पड़ता है |  वैज्ञानिकों  की सुने तो एक घंटा क्रोध करने में उतनी शक्ति लगती है जितनी सात घंटे  मेहनत का काम करने में | फिर भी हम गुस्सा करते रहते हैं और खुद भी परेशान होते रहते हैं व् रिश्ते भी बिगाड़ते रहते हैं |  ऐसा तो नहीं है कि कभी किसी को गुस्सा न आये | पर गुस्से की उर्जा का सही प्रयोग कैसे करें इसके लिए माँ ने जीवन की किताब से पढ़कर  एक बहुत अच्छा तरीका अपनाया  |  स्ट्रेस मेनेजमेंट और  माँ का फार्मूला  बचपन से अब तक मैंने माँ को कभी गुस्सा करते व् चिल्लाते नहीं देखा | ऐसा नहीं है कभी उन्हें कोई बात बुरी  न लगी हो, या गुस्सा न आया हो  | कई बार दूसरे लोगों की , यहाँ तक की पिता जी की बातें भी उन्हें बहुत तकलीफदायक लग जातीं और उनकी आँखे डबडबा जाती , पर वो कोई जवाब न दे कर वहां से हट जातीं | थोड़ी  ही देर में हम देखते माँ ने कपड़ों की अलमारी , या रसोई घर या स्टोर को खाली कर उसकी सफाई शुरू कर दी है | उस समय वो कम बोलतीं बस उनका ध्यान अपने काम पर होता | शाम तक उनकी सफाई भी हो जाती और उनका मूड भी ठीक हो जाता |  बड़े होने पर मैंने एक दिन माँ से पूंछा , “ माँ आपको गुस्सा नहीं आया , उन्होंने ऐसा कहा , वैसा कहा , आप तो सफाई में लग गयीं | मिसिंग टाइल सिंड्रोम माँ ने उत्तर दिया  , ऐसा नहीं है , कि मुझे बुरा नहीं लगा , पर झगडे के लिए वैसे भी दो लोगों का होना जरूरी है , मैं उस बारे में और सोच कर बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी | इसलिए उस समय सारा ध्यान सफाई में लगा देती हूँ | शाम तक जब काम सही खत्म होता है तो मुझे ये सोच कर ख़ुशी होती है कि मैंने अपनी ऊर्जा बेकार बातों को सोचकर बर्बाद नहीं होने दी , काम का काम हो गया और मन इतनी देर में काफी हद तक उस बात को नज़र अंदाज कर चुका होता है | आज माँ इतनी मेहनत के काम नहीं कर सकती पर आज भी जब उन्हें कोई दुःख घेरता है तो एक कॉपी में राम-राम  लिखने लगती है | थोड़ी देर में उनका ध्यान उस बात से हट जाता है | आज स्ट्रेस मेनेजमेंट पर बहुत बातें होती हैं | बहुत किताबें हैं , बहुत सेमीनार होते हैं | माँ ने ऐसी कोई किताब नहीं पढ़ी थी | उन्हें बस इतना पता था कि दुःख या क्रोध में बहुत ऊर्जा होती है … बस इसे सकारात्मक दिशा में लगा दो … जिसका परिणाम एक काम के पूरे होने में होगा और काम पूरा होने की ख़ुशी में मूड अपने आप ठीक हो जाएगा | हमारी पुरानी पीढ़ी ने इतनी किताबें नहीं पढ़ी थी , पर जीवन का ज्ञान उनका हमसे कहीं ज्यादा बेहतर था | उन्हें पता था कि जब दिमाग बोलना रोकना संभव न हो तो शरीर को इतना थका दो कि दिमाग कुछ बोल ही पाए और थोड़ी देर में बात आई गयी हो जाए | सही बात है कि जो ज्ञान अनुभव से आता है उसे आत्मसात करना किताबी ज्ञान को आत्मसात करने से ज्यादा सहज है |इसलिए स्ट्रेस कम करने का माँ का फार्मूला मुझे बहुत  बेहतर लगा |  वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … निर्णय लेने में होती है दिक्कत तो अपनाएं भगवद्गीता के सात नियम तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढाये  सिर्फ 15 मिनट -power of delayed gratification जीवन  आपको ““कैसे लगा  अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | FILED UNDER –  personality development, positive thinking, stress management

मिसिंग टाइल सिंड्रोम

                               जिन्दगी में कितना कुछ भी अच्छा हो , हम उन्हीं चीजों को देखते हैं जो मिसिंग हैं | और यही हमारे दुःख का सबसे बड़ा कारण है | क्या इस एक आदत को बदल कर हम अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं | मिसिंग टाइल सिंड्रोम /Missing Tile Syndrome                               एक बार की बात है एक छोटे शहर में एक मशहूर होटल  ने अपने होटल में एक स्विमिंग पूल बनवाया |  स्विंग पूल के चारों  ओर बेहतरीन इटैलियन  टाइल्स लगवाये | परन्तु मिस्त्री की गलती से एक स्थान पर टाइल  लगना छूट गया | जो भी आता पहले उसका ध्यान टाइल्स  की खूबसूरती पर  जाता | इतने बेहतरीन टाइल्स देख कर हर आने वाला मुग्ध हो जाता | वो बड़ी ही बारीकी से उन टाइल्स को देखता व् प्रशंसा करता |  तभी उसकी नज़र उस मिसिंग टाइल  पर जाती और वहीँ अटक जाती |  उसके बाद वो किसी भी अन्य  टाइल की ख़ूबसूरती नहीं निहार पाता | स्विमिंग पूल से लौटने वाले हर व्यक्ति की यही शिकायत रहती की एक टाइल मिसिंग है | हजारों टाइल्स  के बीच में वो मिसिंग टाइल उसके दिमाग पर हावी रहता | कई लोगों को उस टाइल को देख कर बहुत दुःख होता  की  इतना परफेक्ट बनाने में भी एक टाइल  रह ही गया | तो कई लोगों को उलझन हो होती  कि कैसे भी करके वो टाइल ठीक कर दिया जाए | बहरहाल वहां से कोई भी खुश नहीं निकला , और एक खूबसूरत स्विमिंग पूल लोगों को कोई ख़ुशी या आनंद नहीं दे पाया |                    मित्रों दरअसल उस स्विमिंग पूल में वो मिसिंग टाइल एक प्रयोग था | मनोवैज्ञानिक प्रयोग , जो इस बात को सिद्ध करता है कि हमारा ध्यान कमियों की तरफ ही जाता है | कितना भी खूबसूरत सब कुछ हो रहा हो पर जहाँ एक कमी रह जायेगी वहीँ पर हमारा ध्यान रहेगा  | टाइल तक तो ठीक है पर यही बात हमारी जिंदगी में भी हो तो ? तो ये एक मनोवैज्ञानिक समस्या है | जिससे हर चौथा व्यक्ति गुज़र रहा है | इस मनोविज्ञानिक समस्या को मिसिंग टाइल सिंड्रोम का नाम दिया गया | ये शब्द ‘Dennis Prager ने दिया था | उनके अनुसार उन चीजों पर ध्यान देना जो हमारे जीवन में नहीं है , आगे चल कर हमारी ख़ुशी को चुराने का सबसे बड़ा कारण बन जाता है |  ऐसी ही एक कहानी प्रत्यक्ष की है |प्रत्यक्ष के लिए विवाह के लिए परिवार वाले लड़की दूंढ़ रहे थे | इसके लिए उन्होंने  अखबार में ऐड दिए , क्योंकि आज वो जमाना तो रहा नहीं की गाँव के पंडित जी रिश्ता बताएं या फिर परिवार के लोग रिश्ता बताये , तो अरेंज्ड मैरिज में यही तरीका अपनाया जाता है | खैर  बहुत सारे प्रपोजल आये | प्रत्यक्ष  की बहन ने उससे फोन करके पूंछा , ” भैया कई सारे प्रपोजल हैं | सभी लडकियां अच्छी हैं , पर आप कोई एक खास गुण  बता दो जो आप अपनी भावी पत्नी में देखना चाहते हों | जिससे हमें आसानी हो | ठीक है , आज रात को बताऊंगा , कह कर उसने फोन रख दिया | रात को फोन करके उसने कहा मेरी निगाह में इंटेलिजेंस सबसे प्रमुख गुण है जो मैं  अपनी भावी पत्नी में देखना चाहता हूँ | बहन ने ठीक है कह कर फोन रख दिया | दूसरे दिन उसकी नींद प्रत्यक्ष  के फोन की रिंग से खुली |  प्रत्यक्ष ने कहा , ” याद रखना इंटेलिजेंस के साथ -साथ , रंग तो गोरा ही होना चाहिए, तुम रंग पर ध्यान देना  | दोपहर को प्रत्यक्ष का फिर फोन आया , ” मैं कहना चाहता हूँ , खाली रंग ही न हो , अगर फीचर्स अच्छे नहीं हुए तो रंग का फायदा ही क्या, तुम चुनाव करते समय फीचर्स पर ध्यान देना  ? बहन ने अच्छा मैं अभी ऑफिस में हूँ कह कर फोन रख दिया | निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम  शाम को वो ऑफिस से निकल भी नहीं पायी थी कि प्रत्यक्ष का फोन फिर आ गया | उसने कहा कि अब मुझे पक्का समझ आ गया है , मैं अपनी भावी पत्नी में दयालुता देखना चाहता हूँ | जो दयालु होगी केवल वही स्त्री सामंजस्य बिठा पर प्रेम से रहेगी | अच्छा ठीक है भैया घर पहुँच कर बात करुँगी कह कर उसने फोन रख दिया | दूसरे दिन सुबह फिर प्रय्क्ष का फोन हाज़िर था | बहन ने फोन उठाते हुए कहा कि , भैया , अब आप रहने दो , मैं बताती हूँ कि आप  अपने भावी जीवन साथी में किस गुण को वरीयता देंगे | प्रत्यक्ष  बोला , ” अरे तुम्हे कैसे पता ? मुझे पता है है भैया , आप की  भावी जीवन साथी की पिक्चर परफेक्ट इमेज में जो मिसिंग टाइल हैं या जो गुण आप ने अभी तक नहीं बताये हैं अब आप का सारा फोकस उसी  पर होगा , और आप उनमें से किसी एक गुण को सबसे बेहतर मानेंगे और अपने भावी जीवनसाथी में देखना चाहेंगे | प्रत्यक्ष निरुत्तर हो गया | पर क्या ये समस्या हममे से ह्यादातर की नहीं है | सामाजिक जीवन में मिसिंग टाइल के उदाहरण 1) शर्मा जी के बेटे की शादी में सारा इंतजाम बहुत अच्छा था , केवल  वेटर्स की ड्रेस प्रेस नहीं थी | समारोह से लौटने वाला  हर व्यक्ति वेटर्स की ड्रेस प्रेस नहीं थी ही कह रहा था , किसी का ध्यान अच्छे इंतजाम ओपर नहीं था | 2) नेहा बहुत सुंदर हैं पर उसका माथा थोडा ज्यादा चौड़ा है |  जब उसकी शादी हुई वो तैयार हो कर बहुत खूबसूरत लग रही थी | पर हर आने वाला यही कह रहा था बहु तो बहुत सुंदर है पर माथा थोडा कम चौड़ा होता |लोगों के फोकस में पूरा व्यक्तित्व नहीं बस माथा था | 3) नीतिका के हर सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स आते हैं | … Read more

निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम

                                                        बहुत पुरानी एक कहानी है कि एक बच्चा था उसे निर्णय लेने में दिक्कत होती थी | एक बार की बात है कि वो अपने माता -पिता के साथ बाज़ार गया | बच्चा छोटा था तो पिता ने सोचा कि इतनी दूर बाज़ार आ कर थक गया होगा चलो इसे पहले कुछ खिला देते हैं | वो एक आइसक्रीम की दूकान पर गए उन्होंने बच्चे से कहा , ” बेटा वैनिला लोगे या स्ट्राबेरी | बच्चे को दोनों पसंद थी | वो बहुत देर तक निर्णय नहीं ले पाया कि उसे कौन सी आइसक्रीम खानी है | देर हो रही थी इसलिए पिता ने सोचा की चलो पहले सामान खरीद लें शायद बच्चे को अभी भूख नहीं लगी है तो बाद में कुछ खिला देंगे | वो बच्चे के साथ कपड़ों की दूकान पर गए | यहाँ भी बच्चा फैसला नहीं ले पाया | पिता ने फिर सोचा , चलो पहले जुटे खरीद लेते हैं | पर बच्चा नहीं समझ पाया कि उसे कौन से जूते पसंद है | लिहाज़ा माता -पिता बच्चे के सामान के स्थान पर अन्य खरीदारी कर के घर वापस आ गए | बच्चे को न जूते मिले न कपडे न ही आइसक्रीम , जबकि सबसे पहले उससे ही पूंछा गया था | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वो किसी भी चीज में निर्णय नहीं ले पाया | हममें से कई लोग निर्णय नहीं ले पाते हैं , या फिर सही निर्णय नहीं ले पाते हैं  जिस कारण समय निकल जाने पर वो जीवन भर पछताते हैं | अधिकतर देखा गया है कि जो लोग जल्दी निर्णय लेते हैं और अपने निर्णय पर टिके रहते हैं वो सफल होते हैं | यानि अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले ज्यादातर लोग असंतुष्ट , असफल और दुखी रहते हैं | भगवद्गीता ने आज से पाँच हज़ार साल पहले निर्णय  लेने का तरीका भगवान् श्री कृष्ण ने सिखाया है | भगवद्गीता सिर्फ धार्मिक पुस्तक नहीं है यह जीवन दर्शन है | अक्सर लोग इसे केवल धार्मिक पुस्तक समझ कर पढ़ते हैं और इसके मूल भाव को नहीं समझ पाते जबकि  भगवद्गीता में मनुष्य के जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं के समाधान प्रस्तुत हैं | अगर निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम /7 decision making lessons from shri Bhagvad Geeta by krishna महाभारत के युद्ध के समय जब कौरवों और पांडवो की दोनों सेनायें आमने -सामने थीं तो अर्जुन मोह ग्रसित होकर युद्ध से इनकार कर देते हैं | उसी समय भगवान् कृष्ण उन्हें गीता का ज्ञान देते हैं | जो आज भी व्यवाहरिक है | यानि 5000 साल पहले भगवान् श्री कृष्ण भगवद्गीता में ऐसे कई नियम बता गए थे जो मनुष्य को निर्णय लेने में मदद करते हैं | आइये इनमें से प्रमुख 7 सूत्रों पर चर्चा  करते हैं |  1) आपका निर्णय भावनाओं पर आधारित न हो                                            जब भी हम कोई काम करते हैं तो हमें अच्छा या बुरा महसूस होता है | ये अच्छा या बुरा महसूस होना भावनाएं हैं | श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि कोई भी निर्णय विवेक पर आधारित हो भावनाओं पर नहीं | जब भी हम भावनाओं पर आधारित निर्णय लेते हैं तो वो निर्णय गलत ही होते हैं | जैसे एक विद्यार्थी है उसे पढने में अच्छा नहीं लगता , टीवी देखने में या वीडियो गेम खेलने में ज्यादा मजा आता है ज्यादा अच्छा फील होता है | परन्तु अगर वो अपनी फीलिंग्स के आधार पर पढाई नहीं करेगा और सारा समय टीवी या मोबाइल में बर्बाद कर देगा तो क्या उसका निर्णय सही कहा जाएगा | जाहिर है नहीं | feelings are temporary आज अगर  विद्यार्थी ने फीलिंग्स के आधार पर निर्णय ले लिया तो सारी उम्र अच्छी नौकरी न मिल पाने के कारण वो खुश नहीं रहेगा | जाहिर है तब उसकी अपने बारे में  भावनाएं भी अच्छी नहीं रहेंगी | इसलिए जो निर्णय विवेक पर आधारित न हो कर भावनाओं पर आधारित होते हैं वो हमेशा गलत होते हैं |  2 ) अत्यधिक दुःख या अत्यधिक ख़ुशी की अवस्था में निर्णय न लें                                                              गीता के छठे अध्याय में कहा गया है कि जब भी कोई निर्णय लें अपने दिमाग को संतुलित करके लें | आपने महसूस किया होगा कि जब हम बहुत खुश होते हैं तो हर बात में हां बोल देते हैं और जब हमारा मूड खराब होता है तो अच्छी से अच्छी बात भी हमें नागवार गुज़रती है और हम उसे करने से मना  कर देते हैं | अर्जुन के साथ भी यही हो रहा था | वो मोह में थे , इसलिए उन्होंने युद्ध करने से इंकार कर दिया था | अकसर क्रोध या मोह में लिए गए निर्णय गलत ही  होते हैं | जैसे कि शर्मा जी को उनकी कम्पनी के मालिक ने इंटरव्यू ले कर आदमी रखने की जिम्मेदारी सौंपी | शर्मा जी  जानते थे कि उनका भाई अयोग्य है पर मोह वश उन्होंने योग्य आदमी को छोड़ कर अपने भाई को उस कम्पनी में नौकरी पर रखा | उसने काम में लापरवाही की जिस कारण मालिक को नुक्सान हुआ | जब मालिक को पता चला कि  शर्मा जी ने भाई होने के कारण उसे नौकरी पर रखा है तो उन्होंने उसे निकाल दिया व् शर्मा जी की पदावनति कर दी | शर्मा जी अगर सही निर्णय ले कर योग्य उम्मेदवार को चुनते तो बाद में अपने निर्णय पर न पछताते | इसी तरह अभी हाल की घटना है | दो बहने एक दस साल की एक बारह साल की  माता -पिता के काम पर जाने के बाद घर पर टीवी  देख रही थीं | रिमोट बड़ी बहन के हाथ  में था | छोटी बहन अपनी … Read more