आखिर निर्णय लेने से घबराते क्यों हैं ?
सुनिए , आज मीरा के घर पार्टी में जाना है , मैं कौन सी साड़ी पहनूँ | ओह , मेनू कार्ड में इतनी डिशेज , ” आप ही आर्डर कर दो ना , कौन सी सब्जी बनाऊं …. आलू टमाटर या गोभी आलू | देखने में ये एक पत्नी की बड़ी प्यार भरी बातें लग सकती हैं …. परन्तु इसके पीछे अक्सर निर्णय न ले पाने की भावना छिपी होती है | सदियों से औरतों को इसी सांचे में ढला गया है कि उनके हिस्से का निर्णय कोई और लेता है और वो बस उस पर मोहर लगाती हैं | इसको Decidophobia कहते हैं | १९७३ में वाल्टर कॉफ़मेन ने इसके ऊपर एक किताब भी लिखी थी | ये एक मनोवैज्ञानिक रोग है जिसमें व्यक्ति छोटे से छोटे DECISION लेने में अत्यधिक चिंता , तनाव , बेचैनी से गुज़रता है | आखिर निर्णय लेने से घबराते क्यों हैं ? / How-to-overcome-decidophobia-in-hindi मेरा नाम शोभा है | मेरी उम्र ७२ वर्ष है | मेरे चार बच्चे हैं | चारों अपनी गृहस्थी में मस्त हैं | मैं -नाती पोते वाली, दादी और नानी हूँ | मेरी जिन्दगी का तीन चौथाई हिस्सा रसोई में कटा है | परन्तु अभी हाल ये है कि मैं सब्जी काटती हूँ तो बहु से पूछती हूँ …. ” भिंडी कितनी बड़ी काटू , चावल दो बार धोऊँ या तीन बार , देखो दाल तुम्हारे मन की घुट गयी है या नहीं | बहु अपना काम छोड़ कर आती है और बताती है , ” नहीं मम्मी , नहीं ये थोडा छोटा करिए , दाल थोड़ी और घोंट लीजिये आदि -आदि | आप सोच रहे होंगे कि मैं अल्जाइमर्स से ग्रस्त हूँ या मेरी बहु बहुत ख़राब है , जो अपनी ही मर्जी का काम करवाती है | परन्तु ये दोनों ही उत्तर सही नहीं हैं | मेरी एक ही इच्छा रहती है कि मैं घरेलू काम में जो भी बहु को सहयोग दूँ वो उसके मन का हो | आखिरकार अब वो मालकिन है ना …. उसको पसंद न आये तो काम का फायदा ही क्या ? पर ऐसा इस बुढापे में ही नहीं हुआ है | बरसों से मेरी यही आदत रही है … शायद जब से होश संभाला तब से | बहुत पीछे बचपन में जाती हूँ तो जो पिताजी कहते थे वही मुझे करना था | पिताजी ने कहा साड़ी पहनने लगो , मैंने साड़ी पहनना शुरू किया | पिताजी ने कहा, ” अब तुम बड़ी हो गयी हो , आगे की पढाई नहीं करनी है” | मैंने उनकी बात मान ली | शादी करनी है … कर ली | माँ ने समझाया जो सास कहेगी वही करना है अब वो घर ही तुम्हारा है | मैंने मान लिया | मैं वही करती रही जो सब कहते रहे | अच्छी लडकियां ऐसी ही तो होती हैं …. लडकियाँ पैदा होती हैं …. अच्छी लडकियां बनायीं जाती हैं | आप सोच रहे होंगे , आज इतने वर्ष बाद मैं आपसे ये सब क्यों बांटना चाहती हूँ ? दरअसल बात मेरी पोती की है | कल मेरी बारह वर्षीय पोती जो अपने माता -पिता के साथ दूसरे शहर में रहती है आई थी वो मेरे बेटे के साथ बाज़ार जाने की जिद कर रही थी , मैं भी साथ चली गयी | उसे बालों के क्लिप लेने थे | उसने अपने पापा से पूछा , ” पापा ये वाला लूँ या ये वाला ?” …. ओह बेटा ये लाल रंग का तो कितना बुरा लग रहा है , पीला वाला लो | और उसने झट से पीला वाला ले लिया | बात छोटी सी है , परन्तु मुझे अन्दर तक हिला गयी | ये शुरुआत है मुझ जैसी बनने की …. जिसने अपनी जिन्दगी का कोई निर्णय कभी खुद लिया ही नहीं , क्योंकि मैंने कभी निर्णय लेना सीखा ही नहीं | कभी जरूरत ही नहीं हुई | धीरे-धीरे निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म हो गयी | वो कहते हैं न जिस मांस पेशी को इस्तेमाल ना करो वो कमजोर हो जाती है | मेरी निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो गयी थी | मैंने पूरी जिंदगी दूसरों के मुताबिक़ चलाई | मेरी जिंदगी तो कट गयी पर ये आज भी बच्चों के साथ हो रहा है …. खासकर बच्चियों के साथ , उनके निर्णय माता -पिता लेते हैं और वो निर्णय लेना सीख ही नहीं पातीं | जीवन में जब भी विपरीत परिस्थिति आती है वो दूसरों का मुंह देखती हैं, कुछ इस तरह से राय माँगती है कि उनके हिस्से का निर्णय कोई और ले ले | लड़के बड़े होते ही विद्रोह कर देते हैं इसलिए वो अपना निर्णय लेने लग जाते हैं | निर्णय न लेने की क्षमता के लक्षण 1) प्रयास रहता है की उन्हें निर्णय न लेना पड़े , इसलिए विमर्श के स्थान से हट जाते हैं | 2) चाहते हैं उनका निर्णय कोई दूसरा ले | 3)निर्णय लेने की अवस्था में मनोवैज्ञानिक दवाब कम करने के लिए कुंडली , टैरो कार्ड या ऐसे ही किसी साधन का प्रयोग करते हैं | 4)छोटे से छोटा निर्णय लेते समय एंग्जायटी के एटैक पड़ते हैं 5) रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल होती है | माता -पिता बच्चों को निर्णय लेना सिखाएं आज जमाना बदल गया है , बच्चों को बाहर निकलना है , लड़कियों को भी नौकरी करनी है …. इसी लिए तो शिक्षा दे रहे हैं ना आप सब | लेकिन उन्हें लड़की होने के कारण या अधिक लाड़ -दुलार के कारण आप निर्णय लेना नहीं सिखा रहे हैं तो आप उनका बहुत अहित कर रहे हैं | जब वो नौकरी करेंगी तो ५० समस्याओं को उनको खुद ही हल करना है | आप हर समय वहां नहीं हो सकते | मेरी माता पिता से मेरी ये गुजारिश है कि अपने बच्चों को बचपन से ही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें | छोटी -छोटी बात पर उनके निर्णय को प्रात्साहित करें , जिससे भविष्य में उन्हें निर्णय लेने में डर ना लगे | अगर उनका कोई निर्णय गलत भी निकले तो यह कहने के स्थान पर कि मुझे पता था ऐसा ही होगा ये कहें कि कोई … Read more