सिर्फ 15 मिनट

                              आजकल बस” दो मिनट “के जमाने में सिर्फ १५ मिनट साल भर लम्बा लग रहा होगा | पर ये सिर्फ 15 मिनट वैज्ञानिकों द्वारा छोटे बच्चों पर किये गए शोध का नतीजा हैं जो आगे जा कर यह तय करते हैं कि बच्चे की शिक्षा , स्वास्थ्य व् सफलता कैसी रहेगी | तो आइये जाने सिर्फ 15 मिनट का राज सिर्फ  15 मिनट और सफलता /role of delayed gratification                                बहुत पहले की बात है अमेरिका में एक प्रयोग किया गया | जिसमें  छोटे बच्चों को अकेले बारी -बारी से  एक कमरे में भेजा गया ,जहाँ उनकी फेवरेट चॉकलेट रखी थी | साथ में कुछ पजल गेम  भी रखे थे | बच्चों से कहा गया कि आप एक चॉकलेट अभी ले लो, या फिर अगर आप 15 मिनट वेट कर सकते हो तो 15 मिनट बाद आप दो चॉकलेट  ले सकते हैं |  कुछ बच्चों से तो बिलकुल भी धैर्य नहीं हुआ उन्होंने तुरंत चॉकलेट ले ली | और खा भी ली , कुछ ने थोड़ी देर रुक कर खायी | कुछ बच्चे थोड़ी देर अपने को इधर-उधर उलझाए रखे फिर 15 मिनट से पहले ही बस एक चॉकलेट ले ली | पर कुछ बच्चे पूरे 15 मिनट तक कमरे में इधर उधर दौड़ते रहे , कुछ खेलते रहे या पज़ल सॉल्व  करते रहे पर उन्होंने कैसे भी कर के वो 15 मिनट पार कर दिए | उसके बाद उन्हें दो चॉकलेट मिलीं | आप सोच रहे होंगे बात तो छोटी सी  है | इससे क्या फर्क पड़ता है बच्चों ने तुरंत चॉकलेट ले ली या 15 मिनट बाद ली | परन्तु यही प्रयोग का हिस्सा था | उन बच्चों को निरंतर ऑब्जर्व किया गया | करीब २५ साल बाद ये निष्कर्ष निकाला गया किजिन बच्चों ने तुरंत चॉकलेट ले ली थी उनकी तुलना में जिन बच्चों ने 15 मिनट इंतज़ार किया था उनके पढाई में मार्क्स अच्छे आये , स्वास्थ्य अच्छा रहा व् रिश्ते अच्छे रहे व् उन्होंने जीवन में अधिक सफलता पायी | ये 15 मिनट का प्रयोग एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रयोग था जो यह बताता हैं  कि जब हम किसी किसी मनपसंद  काम से खुद को डिस्ट्रेक्ट कर पाते हैं तभी हम लॉन्ग टर्म गोल को पा पाते हैं | ये लॉन्ग टर्म गोल हमारा स्वास्थ्य है , रिश्ते हैं , शिक्षा है व् सफलता है | इसे delayed gratification भी कहते हैं | जानिये सिर्फ 15 मिनट कैसे आपको पीछे खींचते हैं  अब मान लीजिये कि आप क्लास में वार्षिक परीक्षा में प्रथम स्थान पाना चाहते हैं | इसके लिए आप को साल भर कम से कम चार घंटे रोज पढना होगा | बीच में कई बार मेहमान घर आयेंगे , कभी सब दोस्त लेटेस्ट मूवी देख रहे होंगे या कभी आपका फेवरेट क्रिकेट मैच टी . वी पर आ रहा होगा | आप चार घंटे तभी पढ़ पायेंगे जब आप इन डिस्ट्रेक्ट करने वाली चीजों से अपना ध्यान हटा पायेंगे | अगर आप मनपसन काम को करने लगेंगें तो आप चार घंटे रोज पढने का लक्ष्य पूरा नहीं कर पायेंगे | या फिर आपको किसी रिश्तेदार की बात बुरी लगी आपने तुरंत ही उसे जा कर खूब भला बुरा सुना दिया , बाद में आपको पता चला कि आपके समझने में गलती हुई थी | आप लाख सॉरी बोले अब वो रिश्ता पहले जैसा नहीं रहेगा | याद रखिये अच्छे रिश्ते भी हमारा लॉन्ग टर्म बांड होते है | टूटे लव बांड के साथ जिन्दगी बहुत मुश्किल होती है | या आप वेट लॉस  की तैयारी कर रहे हैं | अब आपके सामने आपकी मनपसंद डिश  गाज़र का हलुआ आती है  अगर आप खुद पर कंट्रोल नहीं कर पायेंगे तो आप  निश्चित रूप से  कटोरी भर हलुआ खा ही लेंगे और आप की कई दिनों की मेहनत  पर पानी फिर जाएगा | ज्यादातर वही लोग सफल हुए हैं जिन्होंने सफलता के लॉन्ग टर्म प्लान बनाए हैं | उसके लिए उन्होंने लम्बे समय तक फ्री में काम किया है |  अनुभव प्राप्त किया है , और शुरू पर पैसों पर बिलकुल फोकस नहीं किया है | जाहिर है की ज्यादातर काम पैसे कमाने के लिए ही किये जाते हैं |  परन्तु जो लोग शुरू से पैसे पर फोकस करते हैं वो एक काम को ज्यादा दिन तक नहीं कर पाते और कोई दूसरा काम शुरू कर देते हैं , जिस कारण वो पैसे तो कमाने लगते हैं पर उन्हें बड़ी सफलता नहीं मिलती | कैसे करे खुद पर कंट्रोल  खुद पर कण्ट्रोल करने के कुछ तरीके हैं , जिन पर हम बारी -बारी से चर्चा करेंगे |  खुद को डिस्ट्रेक्ट करें                             आप को बस वही करना है जो बच्चों ने किया था |  यानि  की आप  को अपने मनपसंद काम को करने से रोकना है | बच्चों ने चॉकलेट खाने से अपने को रोकने के लिए पज़ल खेली थी , दौड़ लगायी थी या कुछ और किया था | अब किसी भी तरीके से आप को भी डिस्ट्रेक्ट करना है … जैसे अभी आप का मन गाज़र का हलुआ खाने का हो रहा है तो आप खुद  को डिस्ट्रेक्ट करने के लिए वाक् पर चले जाए , कुछ व्यायाम  करलें , किसी सहेली से फोन कर लें या फिर कोई हल्का स्नैक जैसे मुरमुरे , खीरे  , ककड़ी आदि खा लें , जिससे आपकी हलुआ खाने की इच्छा खत्म हो जाए | तीन  गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज  आपका गोल है कि साल में आपको १लाख २० हज़ार रुपये बचा कर  किसी स्कीम में डालने हैं | यानी आपको हर महीने १०, ००० रूपये बचाने हैं | ऐसे में आप को खुद को छोटी -छोटी चीजें खरीदने से रोकना है  |  तो ऐसी मार्किट जाने से बचे जहाँ वो चीजें मिलती हैं | अगर जरूरी काम से जाएँ तो उन दुकानों से बच कर रहे | टी वी के ऐड न देखे ताकि बार -बार मन न चले | अपने … Read more

तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज

                  जीवन यहाँ पर इतना मेहरबान नहीं है कौन है जो इस शहर में परेशांन  नहीं है अभी कुछ दिन पहले एक गाँव में जाना हुआ | हवाओं में भी एक सुकून सा था , बरगद पर झूले थे , तालाब के पास बतियाती औरतें थीं , मर्तबान में मदर्स रेसिपी का नहीं खालिस माँ के हाथ का बना आचार होता है और होती है अपनेपन की एक सौंधी खुशबु  जो शहरी जीवन  में मयस्सर नहीं | यहाँ  तो हर आदमी बस भागा  जा रहा है …. और , और , और ‘और ‘की कभी न खत्म होने वाली दौड़ में | शहर की आपाधापी भरी जिंदगी में बेहतर जीवन स्तर रुपया पैसा होने के बावजूद भी क्या कभी -कभी यह नहीं लगता की हम क्यों खुश नहीं हैं , हम किसलिए भाग रहे हैं ? क्या आपको भी लगता हैं  की आप के पास रुपया -पैसा , नाम शोहरत  सब कुछ है फिर भी आप खुश नहीं हैं | तो प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी ख़ुशी है कहाँ ? और हम इसे कैसे पा सकते हैं | तीन  गेंदें जिनमें  छिपा है आपकी ख़ुशी का राज  एक बार की बात है एक आदमी जो पहले कुछ भी काम नहीं करता था , यूँही सारा समय बर्बाद कर दिया करता था , अपने गुरु के दिखाए कर्म के  मार्ग पर चल कर सफल व्यवसायी बन गया था ,दूर -दूर तक उसके नाम के चर्चे थे | इतना सब होने के बाद भी वो खुश नहीं था | एक दिन वो अपने गुरु के पास गया और बोला गुरु जी आप ने मुझे बहुत अच्छा ज्ञान दिया कि मैं अपने काम पूजा समझ कर करूँ मैंने आपके कहे अनुसार ही अपने काम पूजा समझ कर किया | आज  मैं दिन में १७ -१८ घंटे  काम करता हूँ | मैं एक सफल बिजनेस मैन हूँ | मेरे पास एक बड़ा घर है , बड़ी-बड़ी दो गाड़ियां हैं , जिनके नाम भी मैं पहले नहीं जानता था | मेरे बच्चे देश के नामी स्कूल में पढ़ते हैं | कुल मिला कर मेरे पास सब कुछ है | फिर भी मैं खुश नहीं हूँ | कृपया मुझे बताये मैं खुश कैसे रह सकता हूँ ? गुरूजी उसको देख कर मुस्कुराए | फिर अन्दर जा कर तीन गेंदे उठा कर ले आये | उनमें से एक गेंद काँच  की थी एक चीनी मिटटी की और एक रबर की | उन्होंने तीनों गेंदें उस आदमी को देते हुए कहा कि ये तीनों गेंदें लो और इन्हें लगातार उछालते और पकड़ते रहो | आदमी ने तीनों गेंदे ले ली और वो उनको बारी बारी से उछालने लगा | कुछ ऐसा सिस्टम बन गया कि हर समय उसके हाथ में दो गेंदे रहती और एक हवा में | काफी देर तक ऐसा होता रहा | अचानक एक स्थिति ऐसी आई कि उसने जो चीनी मिटटी की गेंद उछाली थी वो उसे कैच नहीं कर सकता था | क्योंकि उसके एक हाथ में रबर की गेंद व् दूसरे में  कांच की गेंद थी |  चीनी मिटटी की गेंद अगर नीचे गिर जाती तो वो टूट जाती | लिहाज़ा उसने वही किया जो ऐसी स्थिति में कोई भी समझदार आदमी करता | उसने अपने हाथ से रबर की गेंद गिरा दी व् चीनी  मिटटी की गेंद को पकड़ लिया | अब उसके एक हाथ में चीनी मिटटी की गेंद व् दूसरे में कांच की गेंद थी | रबर की गेंद जमीन पर पड़ी थी | वो आदमी गुरु के पास गया और बोला गुरु जी , मैं आप का दिया काम पूरा  नहीं कर सका | गुरूजी ने कहा जब तुम चीनी मिटटी की गेंद नहीं पकड़ पा रहे थे तो तुमने उसे क्यों नहीं गिर जाने दिया | तुमने रबर की गेंद को क्यों गिर जाने दिया ? वो व्यक्ति बोला गुरूजी ,” चीनी मिटटी की वो गेंद बहुत कीमती थी अगर वो गिर जाती तो वो टूट जाती | कांच की गेंद भी गिरने पर टूट जाती | रबर की गेंद तो इतनी कीमती भी नहीं थी , गिरने पर टूटती भी नहीं | फिर अगर आप इजाज़त देते तो मैं उसे फिर से उठा लेता और खेल शुरू कर देता | इसलिए मैंने रबर की गेंद को गिर जाने दिया पर मैंने इन  दो गेंदों को टूटने से बचा लिया | गुरूजी ने उसकी तरफ देख कर कहा ,”  तो फिर निश्चित तौर पर तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया | वो व्यक्ति आश्चर्य से गुरूजी की और देखते हुए बोला ,”कैसे ? गुरूजी ने शांत स्वर में कहा ,   ” ये तीन गेंदे तुम्हारी तीन प्राथमिकताएं हैं | चीनी मिटटी की गेंद तुम्हारा स्वास्थ्य तुम्हारा परिवार और तुम्हारे करीब के रिश्तेदार हैं |  ये तुम्हारे जीवन में सबसे कीमती हैं | कांच की गेंद  तुम्हारा काम तुम्हारी नौकरी  है जो तुम्हें अपनी जरूरतें पूरा करने का धन देती हैं | रबर की गेंद तुम्हारी लग्जरी हैं … बड़े से बड़ा मकान , महंगी से महंगी कार , महंगे से महंगा मोबाइल ये सब  न भी हों तो तुम्हारा काम चल सकता है | जब तक संतुलन चलता रहे अच्छी बात है , जब संतुलन न बन पाने लगे तो रबर की गेंद को छोड़ देना चाहिए | जीवन में ख़ुशी का सारा खेल इन तीन गेंदों का यानी प्राथमिकताओं का है |  आप खुश क्यों नहीं हैं ?   मित्रों , इंसान खुश क्यों नहीं है ? क्योंकि वो संतुलन न बना पाने की स्थिति में चीनी मिटटी की गेंद को छोड़ देता है | यानी वो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देता , अपने परिवार व् रिश्तों पर ध्यान नहीं देता | स्वास्थ्य खराब होते ही सब कुछ पाया हुआ बेमानी लगने लगता है | मोटिवेशनल  गुरु संदीप माहेश्वरी अक्सर कहते हैं जब उन्होंने बहुत पैसा कमा  लिया तब उनका ध्यान अपने स्वास्थ्य पर गया | मोटापा बढ़ गया था , कोलेस्ट्रोल हाई लेवल पर था , परिवार में झगडे होने लगे | रिश्ते टूटने की कगार पर आ गए | ऐसे में उन्हें अंदेशा हुआ की वो रबर की बॉल  को पकड़ने के … Read more

समय पर काम शुरू करने के लिए अपनाइए 5 second rule

                                आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखा रही हूँ | दरअसल लिखने की तो इच्छा मन में चल रही थी पर आज , कल -आज कल में टल रहा था | जब भी लिखने का मन बनता सोचती चलो थोड़ी देर गप्प मार लेते हैं फिर लिखेंगे , या एक कप कॉफ़ी पी लेते हैं फिर लिखूँगी | मूड बनाने के चक्कर में कई बार किसी और काम में अटक जाती और जिस विचार पर लिखना चाहती वो टाटा … बाय -बाय करके चला जाता | धीरे -धीरे फ्रस्टेशन बढ़ने लगा | लगा कि लगता है अब लिख ही नहीं पाऊँगी | तभी मेरे हाथ लगा एक इंटरव्यू जो, मेल रॉबिन्स का था , जिसमें उन्होंने  ५ सेकंड रूल के बारे में बताया था | ये रुल मुझे इतना प्रभावी लगा की मैंने इसी विषय पर लिखने का मन बना लिया ताकि मेरे साथ -साथ आप का भी  काम सुचारू रूप से चले | जानते हैं समय पर काम शुरू करवाने वाले  5 second rule के बारे में                                      मित्रों मेरी तरह आप के साथ भी ऐसा कई बार होता होगा कि आप कोई काम शुरू करना चाहते हैं पर शुरू नहीं कर पाते | काम आजकल में टालता रहता है | मसलन … 1)सहेली की सासू माँ बीमार हैं देखने जाना है पर हफ्ता बीत गया सोचते -सोचते घर से निकल ही नहीं पाए | 2) क्लास में ही सोच लिया था कि गणित का ये चैप्टर आज ही खत्म करना है पर आज कल करते हुए एग्जाम ही आ गए अब तो मर -खप के करना ही है | 3) कई रोज पहले माँ ने कहा था कमरा ठीक करने को , आज माँ ने खुद ही कर दिया , तबियत ख़राब होने के बावजूद |                                  ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं पर सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सोचते तो हैं कि ये काम करना है , उसे शुरू करने का संकल्प भी लेते हैं पर काम शुरू ही नहीं करते , टालते जाते हैं और समय बर्बाद करते जाते हैं ,इतना कि जीवन ही हाथ से निकल जाता है | क्या आप को पता है कि ऐसा करने के पीछे हमारे दिमाग का अहम् रोल होता है | काम को टालने की आदत का साथी है हमारा दिमाग                             हमारा दिमाग जिस पर हम इतना गर्व करते हैं वो ही काम को टालने की आदत के लिए जिम्मेदार है | आप जरूर जानना चाहेंगे कि कैसे ? दरसल हमारा दिमाग जब आराम कर रहा होता है या कुछ मनपसंद काम कर रहा होता है तो उसमें से एक केमिकल रिलीज होता है जिसे डोपामीन कहते हैं , इसके निकलते ही व्यक्ति ख़ुशी की अवस्था में आ जाता है | उससे वो किसी दूसरी अवस्था में जाने से इनकार कर देता है | इसे कम्फर्ट ज़ोन के तरीके से भी समझ सकते हैं | इसलिए जब कोई काम दिमाग में आता है , थोड़ी ही देर में दिमाग दलील देना शुरूकर देता है … अरे अभी क्या जरूरत है , थोड़ी देर में कर लेंगे | ये थोड़ी देर और थोड़ी देर , और थोड़ी देर और फिर इतनी देर में बदल जाती है कि काम शुरू करने की इच्छा ही खत्म हो जाती है | हम काम कैसे करते हैं                        ५ सेकंड रुल को जानने से पहले जरूरी है कि हम जान लें कि हमारा दिमाग काम कैसे करता है | दरअसल हमारा दिमाग दो तरह से काम करता है | पहला वो काम हैं जिन्हें हम रोज करते हैं …. वो ऑटो पायलट मोड में आ चुके होते हैं | जैसे स्कूल जाने के लिए तैयार होना , स्कूल या ऑफिस जाना , खाना बनाना या अन्य रोजमर्रा के काम जिन्हें हम सुबह उठ कर यंत्रवत करते जाते हैं | दूसरे श्रेणी में वो काम आते हैं जिन्हें हमें शुरू करना है , जिसके लिए हमें खुद को धक्का लगना पड़ता हैं | जैसे वजन कम करने के लिए जिम जाना शुरू करना है , नयी किताब शुरू करनी है या नया लेख लिखना शुरू करना है आदि -आदि |              दूसरी श्रेणी के कामों को पहली श्रेणी में लाने के लिए हमें उन कामों को कई दिन तक लगातार एक ही समय पर करना होता है जिससे वो ऑटो पायलट मोड में आ जाएँ ताकि हम उन्हें रोज आसानी से कर सकें | क्या है 5 second rule                          मेल रॉबिन्स के अनुसार जैसे ही आप के दिमाग में कोई काम करने का विचार आता है ठीक पांच सेकंड बाद दिमाग बहाने गढ़ना शुरू कर देता है कि थोड़ी देर बाद कर लेंगे , कल कर लेंगे आदि -आदि | यानी कि हमारे पास केवल 5 सेकंड होते हैं जिसमें हम वो काम शुरू कर दें तो दिमाग बहाना बना कर हमें रोक नहीं पायेगा | जैसे गणित का चैप्टर शुरू करना है तो तुरंत उठो और शुरू कर दो | जैसे कुछ सामन लेने ४ बजे जाना है , चार बजते ही निकल जाओ | जिम जाना है , समय होते ही पांच सेकंड के अन्दर निकल जाओ |                                   आप देखेंगे की इससे आपके सोचे हुए सब काम होने लगेंगे | मैंने स्वयं इस रुल को अपनाया , जैसे ही मेरा मन किया कि मैं इस विषय पर लिखूं मैं ५ सेकंड के अन्दर उठ कर लैपटॉप खोल कर लिखने लगी | अब देखिये लेख भी पूरा होने वाला है | आपने पढ़ा होगा की ज्यादातर सफल लोग जिस काम को सोचते हैं उसे उसी दिन शुरू कर देते … Read more

मेरी कीमत क्या है ?

                                         हर माँ अपने बच्चे से मेरा अनमोल रतन कहती है | हर व्यक्ति अपने परिवार के लिए बेशकीमती होता है, पर दुनिया उसे ऐसा नहीं मानती है | हर चीज को तोल -मोल कर खरीदने वाली दुनिया की नज़र में इंसान की भी कीमत है | ऐसे में अगर एक बच्चा अपने दादाजी के पास पूंछने चला जाता है कि मेरी कीमत क्या है? तो आश्चर्य की क्या बात है | एक प्रेरणादायक कहानी – प्रेरक कथा – मेरी कीमत क्या है ? एक बच्चा जो रोज अपने बड़ों को चीजों को कीमत के अनुसार खरीदते हुए देखता था , उसने एक दिन अपने दादाजी से पूंछा ,” दादाजी , दादाजी , मेरी कीमत क्या है ? दादाजी  उस समय बागवानी कर रहे थे , उनकी नज़र बाग़ में पड़े एक पत्थर पर थी | वो उसे  हाथो में उठा कर बहुत देर से देख रहे थे | बच्चे का प्रश्न सुन कर उन्होंने वो पत्थर अपने पोते को देते हुए कहा कि जाओ ये  पत्थर मार्किट में  ले जाओ और लोगों को दिखाओ , कोई इसे खरीदने को कहे तो कुछ बोलना नहीं बस दो अंगुली दिखा देना , वो जितनी कीमत बताये उसे आ कर मुझे बताना | बच्चा वहां जा कर खड़ा हो गया | एक औरत ने उसे देखा | उसने बच्चे से पूंछा तुम क्या ये पत्थर बेचने आये हो | बच्चे ने हाँ में सर हिलाया | वो बहुत देर तक उस पत्थर को देखती रही फिर बोली इस पत्थर को मैं  खरीदूंगी | मैं से अपनी सेंटर टेबल पर रखी प्लेट में और पत्थरों के साथ रखूंगी | इससे मेरी सेंटर टेबल की ख़ूबसूरती बढ़ जायेगी | तुम्हें इसके लिए कितने पैसे चाहिये? पढ़िए -गलतियों की सजा दें या माफ़ करें बच्चे ने दादाजी के कहे अनुसार दो अंगुलियाँ दिखा दी | महिला ने हंस कर कहा … ओह , ठीक है मैं तुम्हे इसके दो रूपये दूँगी | बच्चा पत्थर ले कर दादाजी के पास चला आया और उन्हें सारी बात बताई | दादाजी  ने कहा ,” अब मैं चाहता हूँ कि तुम इस पत्थर को म्यूजियम में ले जाओ |कोई इसकी कीमत पूंछे तो बस दो अंगुलियाँ दिखाना | बच्चा पत्थर ले कर भागता हुआ म्यूजियम चला गया | वहां  वह उस पत्थर को लेकर खड़ा हो गया | वहां कई आदमियों ने उस पत्थर को देखा | एक आदमी ने खरीदने की इच्छा जाहिर करी और उस बच्चे से उसकी कीमत पूँछी | बच्चे ने कुछ कहा नहीं बस दो अंगुलियाँ दिखा दी | आदमी ने कहा ठीक है , मैं इसके लिए तुम्हें २०० रुपये दूंगा | बच्चा फिर पत्थर ले कर दादाजी के पास आ गया | दादाजी ने कहा अब बस आखिरी बार मैं तुम्हे ये पत्थर ले कर शहर की सबसे प्रसिद्द ज्वेलरी शॉप में  भेज रहा हूँ , पर वहां भी तुम्हें बस अंगुलियाँ दिखानी हैं , कुछ बोलना नहीं है | बच्चा पत्थर ले कर चला गया | वहां उसने वो पत्थर दूकान के मालिक को दिखाया | दुकान का मालिक पत्थर देख कर बोला ,” अरे ये तो बहुत दुर्लभ पत्थर है , ये तुम्हें कहाँ से मिला ? मैं इसे लूँगा , तुम्हे इसकी कितनी कीमत चाहिए | पढ़िए -संता क्लॉज आयेंगे बच्चे ने फिर दो अंगुलियाँ दिखा दी | दुकान के मालिक ने कहा ,” मैं इसे २००००० रुपये में लूँगा | बच्चा आश्चर्य चकित हो गया | वो फिर पत्थर ले कर दौड़ता हुआ घर आया | उसने दादाजी को पत्थर देते हुए सारी घटना बतायी | दादाजी बोले ,” बेटा क्या अब तुम्हें समझ आ गया कि तुम्हारी कीमत क्या है ?  हम सबके अन्दर एक कीमती हीरा है , लेकिन अगर तुम अपने को ऐसे लोगों से घिरा रखोगे जो तुम्हे केवल दो रुपये का समझते हैं तो तुम जिंदगी भर अपने को दो रूपये का समझते रहोगे | इसलिए अपनी प्रतिभा का विकास करते हुए ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ लोगो की नज़र में तुम बेशकीमती हो , वहीँ तुम्हारी कद्र होगी और वहीँ पर तुम अपने जीवन की सही वैल्यू  पाओगे | इसलिए याद रखना कि हर कोई बेशकीमती है बस फर्क हमारे आस -पास के लोगों के नज़रिए का होता है | अब बच्चे को अपनी कीमत समझ आ गयी थी | –                     ———————————————————————– एक नज़र अपनी कीमत पर –  मित्रों अब जरा इसे अपने ऊपर रख कर समझिये | मान लीजिये आपको बागवानी बहुत अच्छे से आती है , लेकिन आप ऐसे मुहल्ले में रहते हैं जहाँ किस के पास लॉन तो छोडिये गमला रखने का भी स्थान नहीं है | अब आप लाख बताते रहे कि इस पौधे में ये खाद पड़ती है , वो बेल ऐसे लगती है , ये पौधा अब फल देता है , लोग आपकी बात सुनेगे ही नहीं , उन्हें लगेगा आप किताब से पढ़ कर ज्ञान झाड़ते हैं और उनका समय बर्बाद करते हैं | , उनका समय कीमती है और आप फ़ालतू हैं इसलिए बस गप्प हांकते हैं | अब राधा और सोनिया को ही लें | राधा  और सोनिया दोनों कोखाना बनाने का शौक था | दोनों अक्सर नयी -नयी डिश बना कर देखती | बड़े होने पर राधा ने एक होटल में और सोनिया ने एक हॉस्पिटल में कुक की नौकरी शुरू कर दी | राधा जब भी नयी डिश बनती , या पुरानी डिश को अच्छे से सजाती उसे खूब वाहवाही मिलती | उसका काम लोगों को और होटल के मालिक को नज़र आने लगा | उसकी तनख्वाह बढ़ने लगी | कुछ समय बाद उसने उससे बड़े होटल में नौकरी शुरू कर दी … फिर उससे बड़े .. | सोनिया मरीजों के लिए खाना बनाती | उसे ज्यादातर मूंग की दाल की खिचड़ी , दलिया , दाल का पानी बनाना पड़ता | क्योंकि मरीजों को भूंख नहीं लगती वो उसके खाने में कमी निकालते ( हमने भी अपने घरों में ऐसे  बुजुर्ग देखे हैं जो बीमार होने पर घर की औरतों को दोष … Read more

खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग

      और क्या चल रहा है आजकल .? क्या बताये मरने की भी फुरसत नहीं, और आपका, यही हाल मेरा है , समय का तो पता ही नहीं चलता , कब दिन हुआ , कब रात हुई … बस काम ही काम में निकल जाता है | दो मिनट सकूँ के नहीं हैं |                               दो लोगों के बीच होने वाला ये सामान्य सा वार्तालाप है , समय भगा चला जा रहा है , हर किसी के पास समय का रोना है ,परन्तु सोंचने की बात ये है कि ये समय आखिर चला कहाँ जाता है | क्या हम सब इतने व्यस्त हैं या खुद को इतना व्यस्त दिखाना चाहते हैं | खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग                                        मेरी एक रिश्तेदार हैं , जिनके यहाँ मैं जब भी जाती हूँ , कभी बर्तन धोते हुए , कभी खाना बनाते हुए या कभी कुछ अन्य काम करते हुए  मिलती हैं ,और मुझे देख कर ऐसा भाव चेहरे पर लाती हैं कि वो बहुत ज्यादा व्यस्त है उन्हें एक मिनट की भी बात करने की फुरसत नहीं है | उनके घर जा कर हमेशा बिन बुलाये मेहमान सा प्रतीत होता है | कभी फोन करो तो भी उनका यही क्रम चलता है | परिवार में सिर्फ तीन बड़े लोग हैं , फिर भी उनको एक मिनट की फुर्सत नहीं है | कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता था कि वही काम करने के बाद हम सब लोग कितना समय खाली बिता देते हैं या अन्य जरूरी कामों में लगाते हैं पर उनके पास समय की हमेशा कमी क्यों रहती हैं |  मुझे लगा शायद मेरे जाने का समय गलत हो , परन्तु और लोगों ने भी उनके बारे में यही बात कही तो मुझे अहसास हुआ कि वो अपने को अतिव्यस्त दिखाना चाहती हैं | मनोवैज्ञानिक अतुल नागर के अनुसार हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर अपनी सेल्फ वर्थ सिद्ध करना चाहते हैं |                           अभी कुछ समय पहले अमेरिका में एक ऑफिस में सर्वे किया गया | लोग जितना काम करते हैं उसकी उपयोगिता  को पैमाने पर नापा गया | देखा गया सिर्फ २ % लोग अतिव्यस्त हैं बाकी २० % के करीब प्रयाप्त व्यस्त की श्रेणी में आते हैं , बाकी 78 % लोग ऐसे कामों में खुद को व्यस्त किये थे जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है या वो ऑफिस के काम की गुणवत्ता बढ़ने में कोई योगदान नहीं देता है | ये सब लोग अपने को अतिव्यस्त दिखने का प्रयास कर रहे थे |                                                                      क्या आप ने कभी गौर किया है कि आज कामकाजी महिलाओं के साथ -साथ घरेलू महिलाओं के पास भी समय की अचानक से कमी हो गयी है |  छोटा हो या बड़ा  हर कोई समय नहीं है का रोना रोता रहता है | ये अचानक सारा समय चला कहाँ गया | पहले महिलाएं खाली समय में आचार , पापड , बड़ियाँ आदि बनती , स्वेटर बुनती , कंगूरे  काढती थीं , लोगों से मिलती थी , रिश्ते बनती थीं | | आज महिलाएं ये सब काम बहुत कम करती हैं , फिर भी उनके पास समय का आभाव रहता है | वो बात -बात पर समय का रोना रोती हैं | आज जब की घरेलू कामों को करने में मदद कर्ण वाली इतनी मशीने बन गयी है तो भी आज की महिलाएं पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा व्यस्त कैसे हो गयी हैं | रीना जी का उदाहरण देखिये वो खुद को अतिव्यस्त कहती हैं …वो सुबह ६ बजे उठती हैं ,वो कहतीं है वो बहुत व्यस्त हैं | कॉलोनी के किसी काम , उत्सव , गेट टुगेदर के लिए उनके पास समय नहीं होता | जबकि  घर में सफाई वाली बाई व् कुक लगी है | उनका  टाइम टेबल इस प्रकार है | सुबह एक घंटे का मोर्निंग वाक एक घंटे मेडिटेशन दो घंटे घर के काम एक घंटे नहाना धोना पूजा करना दो घंटे फेसबुक दो घंटे लंच के बाद सोना शाम को एक घंटे वाक एक घंटे जिम दो  घंटे स्पिरिचुअल क्लास में जाना दो घंटे टी.वी शो देखना खाना – पीना सोशल साइट्स पर जाना और सो जाना                                      जाहिर है कि उन्होंने अपने को व्यस्त कर रखा है , लेकिन दुखद है कि वो कॉलोनी की अन्य औरतों को ताना मारने से बाज नहीं आती कि उनके पास समय की कमी है , वो बेहद  बिजी हैं | आखिर वो ऐसा क्यों सिद्ध करना चाहती हैं ? एक व्यक्ति के अपने भाई से रिश्ते महज इसलिए ख़राब हो गए क्योंकि उसे लगा कि वो जब भी अपने भाई को फोन करता है वो हमेशा बहुत व्यस्त हूँ कह देता है , कई बार तो यह भी कह देता है कि अपनी भाभी से बात कर लो , मैं उससे पूँछ लूँगा | धीरे धीरे उस व्यक्ति को लगने लगा कि भाई अति व्यस्त दिखा कर उसकी उपेक्षा कर रहा है , उसे कहीं न कहीं ये महसूस करा रहा है की वो तो खाली बैठा है | ये बात उसे अपमान जनक लगी और उसने फोन करना बंद कर दिया | पिछले १५ सालों से उनमें बातचीत नहीं है |  क्या हमारे सारे रिश्ते अति व्यस्त होने की वजह से नहीं खुद को अतिव्यस्त दिखाने की वजह से खराब हो रहे हैं | एक तरफ तो हम अकेलेपन की बात करते हैं , इसे बड़ी समस्या बताते  हैं , दूसरी तरफ हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर उन् से खुद दूरी बनाते हैं | क्या ये विरोधाभास आज की ज्यादातर समस्याओं की वजह नहीं है |  खुद को अतिव्यस्त दिखा कर … Read more

गलतियों की सजा दें या माफ़ करें

                            सीमा जी मेरे पास बैठ कर आधे घंटे से अपनी एक सहेली की बुराई कर रही थी , जिसने अपने बेटे की शादी में उन्हें देर से कार्ड देने की गलती कर दी थी  , हालांकि उसकी सहेली ने कहा था कि कार्ड बाँटने का काम उसने स्वयं नहीं किया था | उन्होंने अपने एक सम्बन्धी को कार्ड व् गेस्ट लिस्ट पकड़ा दी थी , जब उन्हें उनकी गलती का पता चला तो शादी वाले दिन तमाम कामों में से समय निकाल कर स्वयं उनके घर उन्हें बुलाने गयीं, पर सीमा के हलक के नीचे ये तर्क  उतर नहीं रहा था |                                        ये समस्या सिर्फ सीमा की नहीं है | हममें से कई लोग किसी दूसरे की गलती या खुद की गयी गलती को माफ़ नहीं कर पाते | उसकी नाराजगी या कसक जीवन भर पाले रहते हैं | सबंधों में दूरी बढ़ा  कर हम दूसरे व्यक्ति या खुद को सजा दे रहे होते हैं , जिसका खामियाजा हमें अपने स्वास्थ्य और ख़ुशी की कुर्बानी के रूप में देना  पड़ता है | हर गलती सजा देने के लायक नहीं होती | अलबत्ता कुछ गलतियाँ  सजा की हकदार होती है | क्या ये जरूरी नहीं कि हम समझ लें कि किन गलतियों पर सजा दी जाये किन पर नहीं | गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें                                              गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें पर बात करने से पहले मैं आप को छोटे से दो उदहारण दूंगीं  | नन्हा सोनू डॉल हॉउस बना कर खेल रहा था | उसने  करीब एक घंटे की मेहनत से डॉल हाउस बनाया था | तभी उसका बड़ा भाई मोनू स्कूल से आया | वो एक छोटा सा प्लेन उठा कर दौड़ -दौड़ कर उसे उड़ाने लगा | इसी क्रम में वो सोनू के डॉल हॉउस से टकरा गया | डॉल हाउस टूट गया | सोनू जोर -जोर से रोने लगा | रोने की आवाज़ सुन कर उनकी माँ तृप्ति वहाँ आई | स्थिति समझ कर वो सोनू को समझाने लगी ,” भैया ने जानबूझकर कर नहीं तोडा है , भूल से हुआ है , कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ लग कर अभी दुबारा बना देती हूँ | तृप्ति सोनू के साथ डॉल हॉउस बनाने लगी व् उसने मोनू को दूसरे कमरे में खेलने को कह दिया | थोड़ी देर में मोनू भी सोनू के साथ खेलने लगा | मुकेश जी के दोस्त सुरेश जी उनसे कई बार मिलने को कह चुके थे | मुकेश जी अपने व्यापर में इतने व्यस्त थे कि चाहते हुए भी समय नहीं  निकाल पाए | एक दिन अचानक उनके पास खबर आई कि कार एक्सीडेंट में सुरेश जी की मृत्यु हो गयी है | 35 साल के सुरेश जी का यूँ चले जाना किसी सदमें से कम नहीं था , पर मुकेश जी के मन में दर्द के साथ -साथ एक गिल्ट या अपराधबोध भी भर गया | उन्हें लगा उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है | वो अपने मित्र के लिए समय नहीं निकाल पाए | इस अपराधबोध के कारण वो अवसाद में चले गए , व्यापार धंधा , घर-परिवार सब चौपट हो गया | समझें गलती हुई है या की है                                    जब भी कोई गलती करता है या हमसे खुद ही कोई गलती हो जाती है तो हम दोष देना शुरू कर देते हैं | किसी को आरोपी सिद्ध कर देना समस्या का समाधान नहीं है | ऐसे मौकों पर हमें देखना चाहिए कि गलती की है या हो गयी है | अगर जानबूझ कर गलती किहे तो ये एक अपराध बनता है | अगर अनजाने में हो गयी है तो उसके लिए क्षमा कर देना अपने व् उस रिश्ते के लिए बेहतर है | जैसा कि सोमू की माँ ने मोनू  को गलत न मान कर किया | वहीँ मुकेश जी जो ये कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि उनका मित्र इतनी जल्दी दुनिया से चला जाएगा , उसके जाने के बाद खुद को व् अपने व्यापर को दोषी समझने लगे | काम से अरुचि हुई व् व्यापार ठप्प हो गया | . खुश रहना चाहते हैं तो एक दूसरे की मदद करें  जब भी कोई दूसरा गलती करे तो पहले ये पता लगाने का प्रयास करें कि गलती की है या अनजाने में हो गयी है | अगर दूसरे से अनजाने में गलती हो गयी है | उसका इरादा आप को ठेस पहुँचाने का या आप का नुक्सान करने का नहीं था तो उसे क्षमा कर दें |   अगर आप से कोई गलती  अनजाने में हो गयी है तो खुद को भी क्षमा कर दें | मान के चलें कि इंसान गलतियों का पुतला है , गलतियाँ   हो जाती हैं | इस गलती से सबक लें और जिंदगी में आगे बढें | जब जानबूझ कर गलती की जाये                                                 जब कोई जानबूझ कर गलती करे तो उसे सजा अवश्य दें | क्योंकि अगर तब सजा नहीं दी जायेगी तो वो व्यक्ति फिर से गलती करेगा | बार -बार की गयी गलतियाँ उसे सुधरने का मौका नहीं देंगी और एक न एक दिन वो रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा | पर सजा गलती के अनुसार ही होनी चाहिए जैसे .. आप विद्यार्थी हैं व् आपका  मित्र आपसे नोट्स ले लेता है परन्तु आप को जरूरत पड़ने पर नहीं देता है , या आप की पढ़ाई  का तरीका जान लेता है पर अपना तरीका आप से शेयर नहीं करता है | ऐसे में आप भी उसके साथ वही व्यव्हार करिए , ताकि उसे समझ आ सके कि अगर वो आपसे दोस्ती चाहता है तो उसे भी … Read more

अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये -how to improve your memory and concentration

बच्चों की एग्जामिनेशन सिरीज में आज हम बच्चों के लिए याददाश्त व् एकाग्रता बढ़ने के टिप्स ले कर आये हैं |क्योंकि ये टिप्स दिमाग की कार्यविधि पर निर्भर हैं इसलिए ये केवल बच्चों के काम के ही नहीं हैं इसे गृहणी , ऑफिस में काम करने वाले , व्यापर करने वाले या कोई भी अन्य काम करने वाले अपना  सकते हैं | exam के दिन आने वाले हैं बच्चे अक्सर मुझसे पूछते हैं अपनी concentration power कैसे बढ़ाये | हम कैसे थोड़ी देर में ज्यादा याद कर कर लें , कैसे हमें पढ़ा हुआ याद रहे | क्योंकि ये बच्चों के लिए बहुत जरूरी विषय है इसलिए मैंने इस पर लेख लिखने का मन बनाया | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये how to improve your memory and  concentration यादाश्त व् एकाग्रता बढाने के लिए आपको सबसे पहले समझना होगा कि हमारा दिमाग कैसे काम करता हैं |हमारा दिमाग एक मेमोरी बैंक की तरह काम करता है , इसे समझने के लिए हम अपने दिमाग को तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं या कह सकते हैं कि दिमाग की तीन लेयर होती है ( हालांकि मैं ये स्पष्ट करना चाहती हूँ कि ब्रेन एनाटोमी  में ऐसे कोई लेयर नहीं होती है , इसे brain की psychology के आधार पर सबसे पहले फ्रायड ने तीन लेयर मॉडल  प्रस्तुत किया ,उस समय भले ही इसे नहीं समझा गया पर धीरे -धीरे इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली | ये तीन लेयर हैं … conscious mind या चेतन मन  sub conscious mind या अवचेतन मन  unconscious mind या अचेतन मन                                   इसे समझने के लिए एक त्रिभुज का इस्तेमाल भी कर सकते हैं | त्रिभुज में सबसे ऊपर का हिस्सा चेतन मन है जो दिमाग का केवल 10 % है , इसका काम रोजमर्रा के अनुभव लेना है जो पांच इन्द्रियों द्वारा लिए जाते हैं | ये  उसी के आधार पर जयादातर काम करता है | इसे कह सकते हैं कि ये जहाज का कप्तान है जो निर्णय लेता है , कई निर्णय तुरंत लेता है और कई निर्णय लेने में ये पूर्व सूचनाओं की मदद लेता है | पूर्व सूचनाएं दिमाग की नीचे की लेयर्स में होती हैं | ये ही वो हिस्सा है जो बाहरी दुनिया से बोल कर , देख कर , लिख कर आदि आदि तरीकों से संपर्क स्थापित करता है |  उसके बाद अवचेतन मन आता है जो सबसे बड़ा हिस्सा है | ये दिमाग का करीब 50 -60 % होता है | इसमें वो यादें इकट्ठा होती है है जो हाल की हैं , जो चेतन मन ने देखा सुना महसूस किया है वो यादें इसमें स्टोर हो जाती हैं | जब चेतन मन को किसी जानकारी की जरूरत होती है तो वो  अवचेतन मन से ले लेता है | अवचेतन मन सोंचता नहीं है वो केवल स्टोर करता है |   फिर आता है अचेतन मन  जो कि 30-40% होता है , इसमें पुरानी गहरी यादें दबी होती हैं , जिन्हें हमे लगता है कि हम भूल गए , पर जरूरत पड़ने पर वो याद आ जाती हैं | इसके आलावा यहाँ हमारी आदतें व् विश्वास रहते हैं | हम नहीं चाहते हुए भी वही  करते हैं जो कि बचपन में हमारी आदत व् विश्वास के रूप में वहां इकट्ठा है | कई बार आपने देखा होगा कि  जो किशोर पुत्र अपने पिता का बात -बात पर विरोध करता है पर बड़ा होने पर वह भी पिता की तरह ही हो जाता है , क्योंकि तब उसका चेतन मन तर्क करना बंद कर देता है और अचेतन मन वही फीड बैक देने लगता है जो बचपन में स्टोर हुआ था | यहाँ पर ख़ास बात ये है कि अचेतन का अर्थ बेहोश नहीं है , ये केवल एक नाम दिया हुआ है |                            कम्प्यूटर की भाषा में चेतन मन की बोर्ड और मोनिटर है , अवचेतन मन RAM है और अचेतन मन हार्ड डिस्क है |  कैसे काम करते हैं ये तीनों मन   दिमाग के तीनों हिस्से आपस में मिल कर काम करते हैं , यानि इस तरह से चेतन मन जो फैसला लेता है वो अपने अचेतन  , व् अवचेतन से सूचनाएं निकाल -निकाल कर लेता है | ये तालमेल सरवाइवल के लिए जरूरी है |                                    इसका सबसे सटीक उदाहरण Infant stage है | एक छोटा बच्चा  जिसका चेतन मन पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है वो अवचेतन व् अचेतन मन में स्टोर मेमोरी के आधार पर निर्णय लेता है … जैसे वो समझ लेता है की बोतल की निपल से उसका पेट भरता है माँ की गोदी में वो सुरक्षित महसूस करता है या रोने पर कोई उसके पास आता है |  बड़े होने पर चेतन मन किसी निर्णय को लेने से पहले अपने राडार अवचेतन मन तक घुमाता है जिसमें हाल की मेमोरी स्टोर होती है, वहां से पूर्व अनुभव के आधार पर वह ज्ञान लेता है और फिर फैसला लेता है | अचेतन मन में गहरे स्थित विश्वास व् आदतें होती हैं,   जिन्हें बदलना आसान नहीं है | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता  बढ़ाने के लिए क्या करें                                                                  दिमाग की तीन हिस्सों को जानने  के बाद हमें ये समझना होगा कि दिमाग कैसे चीजों को याद रखता है | सोंचिये जब हम सुबह से  अपने स्कूल , ऑफिस या कहीं और जाते हैं तो न जाने कितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं , न जाने कितनी गाड़ियाँ , घर , लोग … चेतन मन उन्हें देखता है , पर क्या वो सब हमें याद रहता है … नहीं | दरअसल अगर हमें सब याद रहने लगे तो भी दिमाग पगला जाएगा | इसलिए चेतन मन केवल जरूरी डेटा ही स्टोर करता है | ये जरूरी डेटा स्टोर करने के … Read more

चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स

                                      आज चेतन भगत को लोग एक “बेस्ट सेलर ” लेखक के रूप में जानते हैं , वो फिल्में भी बना रहे हैं , इसके अलावा वो लोगों को motivate करने के लिए बहुत सारे सेमीनार भी  अटेंड करते हैं , स्पीच देते हैं ,लोग उन्हें बुलाते हैं , सुनना चाहते हैं  ये सब सिर्फ एक बेस्ट सेलर लेखक या फिल्म मेकर की वजह से की वजह से नहीं है ,ये उस सफलता की वजह से है जो उन्हें हर क्षेत्र में मिली है | एक लेखक , फिल्म मेकर के अलावा  चेतन भगत के पास IIT व् IIM की डिग्री है |  ये वो डिग्रियां है जिनके पीछे आज देश के आधे से ज्यादा युवा भाग रहे हैं , यानि वो आल राउंडर हैं | इसीलिये  सब चेतन भगत को सुनना चाहते हैं उनसे टिप्स लेना चाहते है कि वो जीवन में सफल कैसे हो | लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चेतन भगत के हाई स्कूल में केवल 76 % मार्क्स आये थे | 76 % से IIT , IIM, बेस्ट सेलर ऑथर और फिल्म मेकर तक का सफ़र करने वाले चेतन भगत अपने को जीनियस नहीं मानते , वो अपने को मेडियोकर स्टूडेंट ही मानते हैं | उनका कहना है कि उनके जैसा हर स्टूडेंट अपने जीवन में सफल हो सकता है , बस उसे अपनी स्ट्रेटजी पर ध्यान देना होगा | ऊपर  से देखने में I.I.T, नावेल लिखना , माउंट अवेरेस्ट पर चढ़ना , मैराथन जीतना या वजन घटाना अलग -अलग लगे , पर इन सभी लम्बी रेस को जीतने के टिप्स सामान है , इसलिए उनकी नज़र में सफलता कैसी भी हो उसके सूत्र एक ही हैं | आज हम चेतन भगत के कुछ ऐसे ही स्टडी टिप्स स्टूडेंट्स के लिए लाये हैं | अगर आप किसी और क्षेत्र में प्रयास कर रहे हैं तो उस क्षेत्र में भी इन्हीं टिप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स  motivational speech for students by chetan bhagat                                                          चेतन भगत अक्सर वो किस्सा शेयर करते हैं जो उनके 76 % मार्क्स हाई स्कूल में आने के बाद हुआ | चेतन भगत घर आये , उनकी माँ व् मामा बैठे हुए थे | दोनों दुखी थे , जैसे की कोई बहुत बड़ा शोक का माहौल हो | कुछ देर उसे देखने के बाद मामा बोले , ” दीदी ये कुछ न कुछ तो कर  ही लेगा , जिन्दगी तो चला ही लेगा |” फिर उन्होंने चेतन भगत की ओर देखते हुए कहा “क्यों , कुछ तो कर लेगा न “? चेतन भगत ने हाँ  में सर हिलाया फिर वो अपने कमरे में आ गए | उस दिन उन्हें पहली बार लगा कि उनकी ” औकात ” केवल जैसे -तैसे कुछ न कुछ कर लेने की है | उन्हें समझ में आ गया की वो अपनी जिंदगी में कुछ भी बड़ा नहीं कर पायेंगे | अब क्या करें ?…. बहुत देर तक सोंचने के बाद उनके दिमाग में ख्याल आया कि वो एसटीडी बूथ खोल लेंगे , उस समय एसटीडी बूथ बहुत चलते थे , घर फोन करने के लिए लाइन लगा कर लोग खड़े होते थे | सुबह उठ कर उन्होंने मामा को यही बता दिया कि वो एसटीडी बूथ खोलेंगे | मामा ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा ,” ठीक है , इतना तो तुम कर ही लोगे |” ये एक  वाक्य चेतन भगत के मन में बैठ गया , उन्हें लगा कि उन् पर ठप्पा लग गया है , बेटा तुम इससे ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते |” उसी समय उनके दिमाग में दूसरा ख्याल आया कि अगर उन्हें इस ठप्पे को हटाना है तो उन्हें एक्स्ट्रा एफर्ट लगाने होंगे | उन्होंने अपने दोस्तों से बात की पता चला IIT का एग्जाम बहुत  प्रतिष्ठित है , पर इसके लिए दो साल तक कड़ी तैयारी करनी पड़ती है | चेतन भगत ने मन बना लिया कि अपनी औकात का लेवल बदलने के लिए मुझे ये एग्जाम पास करना ही है | उन्होंने मेहनत की और वो सफल हुए … उस दिन मामा फिर आये | वो बहुत खुश थे | उन्होंने कहा , ” मुझे पता था कि ये लड़का एक न एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगा | चेतन भगत कहते हैं कि हम सब जीवन में जब कभी असफल हो जाते हैं तो लोग , परिवार  समाज हमारे ऊपर ठप्पा लगा देता है कि “ये नहीं कर सकता “| अब हमारे पास दो रास्ते होते हैं – 1) हम ये मान लें कि हमसे नहीं हो सकता … इससे हम अपने कम्फर्ट ज़ोन में रहेंगे , ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी , ज्यादा सफल भी नहीं होंगे | 2) जब लोग कहे कि इसकी औकात इतनी ही है तो ज्यादा एफर्ट लगा कर अपनी औकात बदल लें | ये वैसा ही है जैसे  इलेक्ट्रान … हाई एनर्जी में जाने के लिए एनर्जी अब्सोर्ब करनी पड़ती है | आपको मेहनत  में खुद को अब्सोर्ब कर देना होगा | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्ट्रेटजी प्लान                                        चेतन भगत कहते हैं कि कोई भी सफलता किसी लम्बी मेहनत का नतीजा होती है | इसके लिए एक स्ट्रेटजी प्लान करनी पड़ती है | हम दिन में बहुत सारे छोटे -छोटे काम करते हैं , जैसे आज कमरा साफ़ करना है , या सब्जी लानी है या आज कोई खास डिश बनानी है | कई बार इन कामों को करने का मन होता है , कई बार नहीं होता है … अमूमन ये हर काम दो -तीन घंटे ले लेता है | ऐसे में जब मन नहीं होता है तो हम खुद को मोटिवेट करते हुए कहते हैं … अरे यार कर लेते हैं, कल अपना ही प्रेशर कम हो जायेगा , या … Read more

काम के शुरूआती महीने और आप की मानसिकता – power of mind set in Hindi

                                  जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं तो शुरूआती महीने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं | ये काम चाहे आपकी नयी किताब का लेखन हो, एग्जाम की तयारी हो या किसी बिजनेस या ऑफिस के नौकरी या प्रोमोशन पाने के लिए किये जाने वाले काम की शुरुआत | हम जब भी कोई काम करते हैं तो हमें दो चीजों पर ध्यान देना होता है | पहली अपनी मानसिक शक्ति पर दूसरा अपनी कार्य कौशल पर | सफलता के लिए वैसे तो ये दोनों जरूरी  हैं पर शुरूआती दौर में मानसिक शक्ति, मनोबल या मानसिक सोंच  (mind set) की ज्यादा जरूरत होती है ,कार्यकौशल (skill) धीरे -धीरे बढाया जा सकता है | इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपकी मानसिक शक्ति या सोंच  (will ) वो जड़ है जो आपसे काम करवाती है , और कार्यक्षमता वह पेड़ है जिस पर सफलता के फल लगते हैं| ये बात मैं बार -बार इसलिए दोहरा रही हूँ ,क्योंकि अगर शुरुआत में पर्याप्त सफलता न मिलने पर आपकी मानसिक सोंच कमजोर पड़ जाती है आप निराश हो जाते हैं  तो काम को बीच में तो काम को बीच में ही छोड़ देते हैं ऐसा करके  आप सारी संभावनाओं को ही नष्ट कर देते हैं|        किसी काम की शुरूआती महीने और  आप की मानसिकता     -power of mind set during first few months of a  work (in Hindi )  रीता और उसकी सहेलियों एक छोटा सा काम शुरू किया| काम था केक बनाने का , पाँचों सहेलियां एक -एक दिन बारी -बारी से किसी एक के घर इकट्ठी होती | सब मिल कर कर केक बनाते , आर्डर लाने का प्रयास करते और जहाँ से आर्डर आया , वहाँ  सही समय पर पहुंचाते | कुकिंग उन सब का शौक था , केक को अलग -अलग तरीके से बनाने के उनके कुछ इनोवेटिव आईडिया थे , नए -नए प्रयोग करके उन्हें काम करने में मज़ा आ रहा था | शुरू में कुछ आर्डर मिले , इनमें से ज्यादातर आर्डर उनके जान -पहचान वालों के ही थे , पर थोड़ी सी इनकम शुरू हुई , और प्रशंसा ढेर सारी  मिली |                                              छोटे -छोटे आर्डर मिलते ४ -६ महीने बीत गए | प्रॉफिट  बहुत बढ़ा ही नहीं |  जैसा की अक्सर किसी नए काम को शुरू करने पर होता है उन सब ने सोंचा था उनका काम बहुत तेजी से चलेगा , खूब सारे पैसे आयेंगे | उन पैसों से वो क्या -क्या खरीदेंगी इसकी भी योजना उन्होंने बना ली थी| परन्तु आर्डर ज्यादा आये नहीं | निराशा बढ़ने लगी, काम से मन हटने लगा | उन सब को लगा रोज -रोज केक बना कर आर्डर का इंतज़ार करने से अच्छा है घर बैठों | लगता है हमारी किस्मत में कमाना लिखा ही नहीं है | थोड़ी बहुत आपसी फूट भी शुरू हो गयी | सबने काम बंद होने का निर्णय ले लिया | कुछ सहेलियाँ मूड ठीक करने अपने मायके चली गयीं | काम बंद होने के ठीक 15 दिन बाद शहर के एक बड़े व्यापारी ने एक बहुत विशाल केक का आर्डर किया जो उन्हें अगले ही दिन चाहिए था | दरसल व्यापारी की बेटी  ने अपनी किसी सहेली के यहाँ उनका केक खाया था | उसे बहुत अच्छा व् अलग लगा इसलिए वो चाहती थी कि उसके जन्मदिन पर वही  केक बने | इसके लिए उसने विशेष रूप से रीता का नंबर माँगा था | अगर उस पार्टी में रीता के ग्रुप का केक जाता तो उसका बहुत  अच्छा प्रचार होता क्योंकि उस पार्टी में बड़े -बड़े नेता व व्यापारी व् अफसर आने वाले थे | परन्तु  अब रीता कुछ नहीं कर सकती थी | वो अकेले इतना बड़ा केक बना नहीं सकती थी और उसके पास टीम थी ही नहीं | मजबूरी में उसे कहना पड़ा कि उसका केक बिजनेस बंद हो गया है | अगर रीता और उसकी सहेलियां शुरूआती असफलता से हार नहीं मानतीं तो उनका केक बिजनेस आज बहुत सफल हो गया होता |                        ऐसा सिर्फ रीता के साथ ही नहीं हुआ , बहुत से लोगों के साथ होता है जो शुरूआती असफलता को सहन नहीं कर पाते हैं और निराश होकर काम को वहीँ बंद कर देते हैं | वो इस बात को नहीं जानते कि शुरू में सबका काम छोटा ही होता है , लेकिन जो लगातार लगा रहता है उसी का काम बड़ा होने की सम्भावना होती है | इसलिए शुरूआती असफलता या कम सफलता से निराश न होकर अपने काम में लगे रहना चाहिए |  अगर आपको अपने आप पर और अपने काम पर पूरा विश्वास है तो आप को सफलता जरूर मिलेगी | क्यों छोड़ते हैं लोग शुरू के दिनों में काम? लोग शुरू के दिनों में काम इसलिए छोड़ते हैं क्योंकि वो  थोड़े के महत्व को नहीं समझते | विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था कि – कंपाउंड इंटरेस्ट ( चक्रवर्धी ब्याज ) दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है जो इसे समझ लेता है , वो कम लेता हैं , जो नहीं समझता इसकी कीमत अदा करता है | क्या आप सोंच सकते हैं कि आइन्स्टीन ने ऐसा क्यों कहा ? दरअसल जब हमें थोडा लाभ मिल रहा होता है तो हम ये अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस थोड़े से कितना बढ़ सकता है और निराश होकर काम छोड़ देते हैं | इसके लिए एक कहानी हमारे ग्रंथों में है , आइये आपको सुनती हूँ … पढ़िए -सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips एक राजा दान के लिए बहुत प्रसिद्द था | कहा जाता था कि उसके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था | एक दिन उस के दरबार में एक साधु  आता है , उस समय राजा शतरंज खेल रहा होता है | साधु  राजा से कहता है , ” महाराज मुझे भिक्षा चाहिए | राजा कहता है आप को मेरे राज्य में … Read more

सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips

                              मनुष्य एक भावुक प्राणी है| ये भावनाएं ही उसे जानवर से इंसान बनती हैं , पर कई बार इन भावनाओं की वजह से ही  हम शोषण का शिकार हो जाते हैं | ये शोषण कभी अपने द्वारा होता है , कभी अपनों द्वारा | जिसकी वजह से हम जिन्दगी में हारते जाते हैं चाहे वो रिश्ते हों , सम्मान हो या सफलता| जरूरी है इन भावनाओं का संतुलन सीखना | जरा इन उदाहरणों पर गौर करें …                                                                             एक बच्चा जो पढने में बहुत तेज था| उसे खुद व्  उसके माता-पिता को आशा थी कि वो 10 th बोर्ड में 95% मार्क्स ले कर आएगा |  उसने मेहनत भी खूब करी | पेपर भी अच्छे हुए | रिजल्ट आने  से कुछ दिन पहले उसने अपने नंबर कैलकुलेट किये  , उसके  मुताबिक़ उसके ९२ % आने थे | वो इतना निराश हुआ की उसने आत्महत्या कर ली | कुछ दिन बार रिजल्ट निकला , उस बच्चे के 96 % मार्क्स थे |  वो बच्चा जिसका भविष्य बहुत अच्छा था , संभावित कल्पना को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मृत्यु का वरण कर लिया |                         राहुल ने  बिजनिस के दो -तीन  प्रयास किये , हर बार असफल रहा | लोगों के ताने उलाहने सुनने के बाद अब उसकी कमरे से निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती | एक कमरे में बैठे रहना और दीवारों को घूरना ही उसका जीवन हैं | एक और प्रयास के लिए उसके पास धन है पर उसका मन साथ नहीं दे रहा है |                             सविता जी एक टेलेंटेड लेखक हैं | मैंने उनके कई लेख पढ़े हैं , पर वो सार्वजानिक लेखन में नहीं आना चाहती क्योंकि उनके पति व् परिवार को उनका लिखना पसंद नहीं है , अक्सर उन्हें कलम घिस्सू की उपाधि दे कर हँसी  उड़ाई जाती है | सविता जी को पता है कि उनमें प्रतिभा है ,लेकिन अपने परिवार का तिरिस्कार झेल कर लिखने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाती | यही उनकी निराशा व्  कुंठा की वजह है | वो उदास रहती है ठीक से घर का काम नहीं कर पाती , न घर को सजाती संवारती हैं न खुद को |                                                  और एक उदाहरण जो शायद  आप ने देखा हो , अभी कुछ दिन पहले की बात है मैंने फेस बुक पर एक स्टेटस पढ़ा , ” मेरे मित्र जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ , उनकी हर पोस्ट लाइक करती हूँ , कमेंट करती हूँ , वो मेरी पोस्ट पढने तक नहीं आते इसलिए मैं फेसबुक छोड़ रही हूँ / कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हूँ | ऐसे में किन्हीं दो चार मित्रों की तुलना में उन्हें वो मित्र नज़र ही नहीं आ रहे हैं जो उनकी पोस्ट पर लाइक कर रहे हैं |                                  ये सारे उदाहरण भावनाओं द्वारा नियंत्रित होने के हैं | इन सब में प्रतिभा है , क्षमता है , दूसरे मौके हैं पर इन सब ने भावनाओं के आधीन हो कर छोड़ देना ज्यादा उचित समझा … कहीं मौके को कहीं जीवन को और कहीं जीवंतता को | मैं स्वयं भी बहुत Emotionally weak रहीं हूँ | मैंने इस बात को समझते हुए खुद को बदला है | मेरा ये लेख लिखने  का उद्देश्य भी यही है कि आप भी भावात्मक संतुलन नहीं बना पाते हैं तो आप भी जीवन में बहुत कुछ खो देंगे | इसलिए मैं आपके साथ ये emotional management tips share कर रही हूँ | जो आपके जीवन में सफलता और जीवंतता लाएगी |  भावनात्मक संतुलन के नियम  -Emotional management tips (in hindi)                                                                      जब भी मैं Emotional management कीबात करती हूँ तो मेरे सामने  रथ पर बैठे अर्जुन और उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण आ जाते हैं | अर्जुन एक महान योद्धा थे , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे , फिर भी युद्ध से ठीक पहले वो भावनाओं के शिकार होकर युद्ध छोड़ने की बात करने लगे | वो अपनी भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रख पा रहे थे , जिस कारण उनसे धनुष भी नहीं उठाया जा रहा था | क्या उस समय वो द्रोणाचार्य द्वारा दिया हुआ ज्ञान भूल गए थे ? क्या बरसों का उनका अभ्यास एक क्षण में खत्म हो गया था ? नहीं … बस उनके मन ने साथ देना बंद कर दिया था | दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़े अर्जुन के पास skill तो था पर will नहीं थी                                                                              स्किल यानी हमारा talent, हमारी प्रतिभा , हमारी क्षमता , और विल हमारी इच्छा शक्ति | सफलता के लिए स्किल जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है will. हम कई बार खुद कहते हैं कि फलाने  व्यक्ति में तो इतना talent नहीं था फिर वो इतना successful कैसे हो गया | जाहिर सी बात है कि उसकी सफल होने की इच्छा उस टैलेंटेड व्यक्ति से ज्यादा थी | शुरुआत में सबकी इच्छा ज्यादा होती है परन्तु असफलता ,हार व् आलोचना जो किसी भी सफलता का हिस्सा हैं हर कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता, जिसके कारण या तो वो प्रयास ही छोड़ देता है या  आधे … Read more