व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम -बदले खुद को

Five rules of personality development हम सब जीवन में सफल होना चाहते हैं | उसके लिए प्रयास भी करतें हैं | पर फिर भी कुछ लोगों को सफलता नहीं मिल पाती | कई बार हमारा प्रयास दूसरों से कम होता है | पर कई बार हम प्रयास तो करतें हैं परन्तु फिर भी सफलता नहीं मिल पाती | यहाँ मैं आप लोगों से साझा करना चाहूँगी  , प्रसिद्ध  लेखक शिव खेडा की एक किताब का लोकप्रिय वाक्य जो सफल होने की चाह रखने वालों के लिए मूल मंत्र है …   सफल लोग कोई अलग काम नहीं करते बस वो काम को अलग तरीके से करते हैं |  दरसल असफल होने में केवल हमारे प्रयासों की कमी ही नहीं होती बल्कि कई बार इसका  कारण हमारे व्यक्तित्व के कुछ कमियाँ होती हैं |क्योंकि व्यक्तित्व विकास और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं | इसलिए आज कल सफल होने के लिए अपने व्यक्तित्व में आवश्यक सुधार  करने पर बहुत जोर दिया जाता है |व्यक्तित्व के कई कमियाँ  वैसे तो सफलता की राह में बाधक हो सकती हैं | पर यहाँ मैं प्रमुख 5 कमियों की बात कर रही हूँ ,जो ज्यादातर लोगों में होती हैं | बस आप को यह जानने की जरूरत है | तो आइये जानते हैं सफलता के लिए सबसे जरूरी व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम | जिन्हें आप आज से ही अपनाइए और बदल दीजिये खुद को | फिर देखिये सफलता कैसे नहीं आती है |  १ ) न करें बेफजूल बातों से समय की बर्बादी                      मुझे याद आता है मेरे नाना जी कहा करते थे ,” चटोरी खोये एक घर , बतोड़ी   खोये चार घर “ कहने का तात्पर्य यह है की जिस स्त्री ( यहाँ पुरुष भी हो सकता है ) स्वादिष्ट भोजन की आदत पड़ गयी हो | वो रोज बाहर का खाना खरीद कर अपना धन बर्बाद करेगी  | परन्तु जिसे फ़ालतू में बात करने की आदत  लग गयी | उसे बात करने के लिए कम से कम चार लोग चाहिए | अत : वो चार लोगों का समय बर्बाद करेगी  | उस समय का उपयोग किसी काम  में या धन अर्जित किये जाने में किया जा सकता था | अगर इसी को दूसरी तरह से कहें तो ये  तो  आप भी  बचपन  से  सुनते  आ  रहे  होंगे   की  दूसरे   के  सामने  तीसरे  की  बुराई  नहीं  करनी  चाहिए |   एक और  बात  जो  मुझे  ज़रूरी  लगती  है  वो  ये  कि  यदि  कोई  किसी  और  की  बुराई  कर  रहा  है  तो  हमें  उसमे  रूचि  नहीं  लेनी   चाहिए  और  उससे आनंदित  नहीं  होना   चाहिए | अगर  आप  उसमे  रूचि  दिखाते  हैं  तो  आप  भी  कहीं  ना  कहीं  नकारात्मकता  को  बढ़ावा दे रहे हैं |   बेहतर  तो  यही  होगा  की  आप  ऐसे  लोगों  से  दूर  रहे  पर  यदि  साथ  रहना  मजबूरी  हो  तो  आप  ऐसे  विषयों पर मौन हो जाए   , सामने  वाला  खुद  बखुद  शांत  हो  जायेगा | कई बार बुराई करने वालों को रोकने के लिए हमें उनकी बातें काटनी भी चाहिए | जैसे कोई लगातार किसी की बुराई कर रहा हो तो आप ऐसे कह सकते हैं की हाँ ये तो है पर देखो उनकी वो बात कितनी अच्छी है | इससे बुराई करने वाले का ध्यान भी नकारात्मकता  से सकारात्मकता की ओर जाएगा | क्योंकि कई बार बुराई करने वाले को भी उस व्यक्ति से नफ़रत नहीं होती बस किसी बात से नाराजगी होती है |  २ ) आत्मविश्वास कम करती है तुलना                  अभी कुछ दिन पहले मुझे मेरे एक परिचित मिले  | थोड़े उदास से दिख रहे थे | पूँछने  पर बताया फेस बुक पर उसकी पत्नी की दो सहेलियों ने गाड़ी  खरीद ली है | गाडी के साथ फोटो शेयर की है | तब से  गाडी लेने की जिद कर रही है | कहती है उसे सहेलियों के सामने इन्फीरियर फील होता है |  इसे  इंसानी  फितरत  कह  लीजिये  या  कुछ  और  पर  सच  ये  है  की  बहुत  सारे  दुखों  का  कारण  हमारा  अपना  दुःख  ना  हो  के  दूसरे   की  ख़ुशी  होती  है |  आप  इससे  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करिए , इतना  याद  रखिये  की  किसी  व्यक्ति  की  असलियत  सिर्फ  उसे  ही  पता  होती  है , हम  लोगों  के  बाहरी यानि नकली रूप  को  देखते  हैं  और  उसे  अपने  अन्दर के यानि की असली  रूप  से  तुलना  करते  हैं |  इसलिए  हमें लगता  है  की  सामने  वाला  हमसे  ज्यादा  खुश  है , पर  हकीकत  ये  है  की  ऐसी तुलना  का  कोई  मतलब  ही  नहीं  होता  है | ऊपर वाले उदाहरण में मेरे परिचित  की पत्नी को कार तो दिखी पर कार के साथ  ई एम आई नहीं दिखी , दस जगह जरूरी खर्चों में कटौती नहीं दिखी | इसलिए किसी से तुलना मत करिए |  आपको  सिर्फ  अपने  आप  को बेहतर करते  जाना  है और व्यर्थ की  तुलना करके हीन भावना  या नकारात्मकता नहीं बढानी  चाहिए | . 3) अपना हाथ जगन्नाथ                                     एक बहुत छोटी सी कहानी है | एक पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला था | एक दिन शाम को चिड़िया घर लौटी तो देखा घोसले में उसके बच्चे रो रहे हैं | चिड़िया के पूछने पर अच्छों ने बताया ,” मम्मी आप घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | आज किसान यहाँ आया था और उसने अपने कर्मचारियों  से कल इस पेड़ को काटने को कहा है | चिड़िया ने बच्चों को चुप कराया और कहा,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा | ३ ,४ दिन बीत गए | फिर एक दिन चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | बच्चों ने बताया ,” मम्मी आज किसान अपने बेटों से कह रहा था की कल इस पेड़ को काट दो | आप प्लीज घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | चिड़िया बच्चों को चुप कराते हुए बोली , “,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा |” कुछ दिन और बीत गए | एक दिन फिर चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | पूंछने पर बोले ,” मम्मी आज किसान कह रहा था ,” कल मैं इस पेड़ को काटूँगा | “ सुन कर चिड़िया ने बच्चों से कहा ,” बच्चों अब घोसला शिफ्ट करने का समय आ गया है |मैं अभी तैयारी करती हूँ … Read more

तेज दौड़ने के लिए जरूरी है धीमी रफ़्तार

एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है ,“go slow to go fast “अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो अपनी शुरूआती गति थोड़ी धीमी रखिये | आपको सुनने में बहुत अजीब लग रहा होगा | पर याद करिए बचपन में पढ़ी कछुए और खरगोश की कहानी | कछुआ धीमे चलता है और रेस जीत जाता है | वहीँ शुरू में सरपट दौड़ने वाला खरगोश ऊंघता रह जाता है | ये कहानी मात्र प्रतीकात्मक है | जहाँ खरगोश के ऊँघने और हारने के अपने अपने सन्दर्भ में कई कारण समझे जा सकते हैं |  जैसा की बिल गेट्स कहते हैं , “ किसी भी कम्पनी के सफल होने के लिए ये कार्ययोजना जरूरी नहीं है की हम पहले साल कितना तेज दौड़ेंगे , बल्कि ये जरूरी है की हम दस साल में कितना दौड़ लेंगे | आप जरूर जानना चाहते होंगे की कैसे आप धीमे दौड़ते हुए तेज दौड़ने वाले धावक सिद्ध होते हैं , तो जरा इन  कारणों पर गौर करिए | बना रहेगा  काम के प्रति पैशन पिछले दिनों अपने बचपन के दोस्त से मिला | वह डॉक्टर है , और उसके पास मिलने का समय बहुत कम ही रहता है | क्लिनिक में बैठ कर कभी ठीक से बात हो नहीं पाती | उसका खुद यूं घर आ जाना कुछ अजीब सा लगा | राज उसने ही खोला | बतौर दीपक ( परिवर्तित नाम ) अगर पिछले सालों में अपने जीवन को मुझे एक शब्द में परिभाषित करना पड़े तो निश्चित तौर पर वो शब्द होगा “व्यस्त ” | जो मुझे हमेशा से बहुत खूबसूरत शब्द लगता रहा है |जैसे घडी की सुइयां चलती हैं , जैसे दिल धडकता है , जैसे साँसे चलती हैं … बिना रुके बिना थके , तो हम क्यों नहीं |मुझे लगता था सारी खुशियाँ व्यस्त , अति व्यस्त रहने में है |अगर मैं व्यस्त हूँ तो इसका मतलब मैं अपने समय का पूरा सदुपयोग कर रहा  हूँ | हमारी सारी पाजिटिव थिंकिंग की किताबें भी तो यही सिखाती हैं | समय कीमती है | एक – एक मिनट का इस्तेमाल करो | आगे बढ़ो , दौड़ों , और सफलता , और पैसा , और शोहरत | पर पता नहीं क्यों सब कुछ मिलने के बाद भी एक खालींपन रह जाता है , जैसे बहुत कुछ पा कर खो दिया | ” इतना कह कर दीपक तो चला गया , क्योंकि उसे एक जरूरी ऑपरेशन करना  था | पर मैं सोचने में व्यस्त हो गया  ” अति व्यस्त ” लोगों के बारे में | बात सिर्फ दीपक की नहीं उन बहुत से लोगों की है जो अति व्यस्त रहते हैं | जो व्यस्तता को ही ख़ुशी समझते हैं |इनमें से ज्यादातर मल्टीटास्किंग होते हैं | एक साथ कई काम हाथ में ले लेना इनका हुनर होता है |परन्तु तेज दौड़ते – दौड़ते उनका काम के प्रति पैशन खत्म हो जाता है | अपना काम जिसे वो बेहद प्यार करते थे | बेहद उबाऊ लगने लगता है | समझ विकसित करने का अवसर आपने अगर कभी किसी बच्चे को पढ़ाया होगा तो आप बेहतर जानते होंगे की | जो बच्चे जल्दी – जल्दी पाठ पढ़ कर आप को सुना देते हैं उनकी समझ गहरी नहीं  होती | वह पाठ को ठीक से समझ नहीं पाते और ट्रिकी सवालों के जबाब नहीं दे पाते | और हाँ ! हर बार पाठ के रिविजन में उन्हें उतना ही टाइम लगता है | पर जो बच्चे एनालिसिस के स्तर  पर जा कर पाठ समझते हैं | उन्हें पहली बार पढने में तो समय लगता है | पर बार – बार उसे दोहराना नहीं पड़ता | वह पाठ आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर आसानी से दे पाते हैं | यही बात जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है | जब आप किसी प्रोजेक्ट को समझ कर एक – एक कदम सधा हुआ व् ठोस उठाते है तो सफल होने की सम्भावना बहुत होती है | क्योंकि आप अपने हर कदम की एनालिसिस करते हुए आगे बढ़ते हैं | जिससे गलतियाँ सुधरती चलती हैं व् सही दिशा का चयन कर पाते हैं | आपसी बॉन्डिंग होती है बेहतर  ज्यादातर बड़ी सफलताएं टीम वर्क का नतीजा होती हैं | जब आप जब आप तेज भागते हैं तो आपकी टीम को भी उसी गति से दौड़ना पड़ता है | जहाँ उन्हें आपसी समझ विकसित करने का अवसर नहीं मिलता | कुछ सदस्य तो तेज दौड़ते हैं कुछ धीमे | उनके बीच ” वर्क कॉडीनेशन ” का आभाव हो जाता है | नतीजा नेट परिणाम जीरो आता है | वहीँ अगर टीम की बॉन्डिंग अच्छी होती है तो हर व्यक्ति अपना १०० % दे पाता है व् तुलनात्मक रूप से कम्पनी का विकास होता है | जरूरी हैं अंतिम दस मीटर  कभी आपने किसी ऐथिलीट को दौड़ते हुए देखा है | यहाँ जीतने वाले शुरू में अपनी पूरी ताकत नहीं झोंक देते बल्कि एक सामान गति से दौड़ते हैं और अंतिम दस मीटर की निर्णायक दौड़ में अपनी पूरी उर्जा लगा देते हैं |जरूरी है पाला छूना न की ये की आप पहले कितना तेज दौड़े थे |अगर आप शुरू में अपनी पूरी उर्जा झोंक देते हैं तो आप थका हुआ महसूस करेंगे | हो सकता है आप काम इतना बाधा लें की आप के पास उसे पूरा करने की ताकत ही न बचे | यही वो जगह है जहाँ आप का काम पिछड़ना शुरू कर देता है | अगर आप पहले से ही अपनी गति व् उर्जा का उचित आकलन करते हुए आगे बढ़ते तो काम को सफलता पूर्वक निष्पादित कर पाते | जरूरी है पौज  फिर से मुझे एक पुरानी अंग्रेजी कहावत याद आ रही है …  go fast enough to go there  go slow enough to see  आपने कभी सोंचा है की मूवी में इंटरवेल क्यों होते हैं | या यूँ कहने की जब हम नेट पर भी कोई मूवी देख रहे होते हैं तो थोड़ी – थोड़ी देर में पॉज  कर के क्यों उठ जाते हैं | कारण स्पष्ट है मूवी ज्यादा एन्जॉय करने के लिए थोडा पॉज  जरूरी है |यही बात जिन्दगी की मूवी पर भी लागू होती है | जहाँ तेज दौड़ने के बीच में थोडा सा पॉज  या … Read more

असफलता से सीखें

क्या आप को पता है की असफलता भी हमें सिखाती है | सफलता का एक महत्वपूर्ण सूत्र है असफल व्यक्तियों से या अपनी असफलता से  सीखना  | जी हाँ , जिंदगी के पाठ्य क्रम में सफलता व् असफलता दोनों ही शिक्षक हैं | जहाँ जरूरी है सफल ही नहीं असफलता या असफल व्यक्तियों से सफल होने के तरीके सीखना | आप भी आश्चर्य में पड़ गए होंगे | कभी आपने बचपन में किसी रस्सी को पकड़ कर उसका एक सिरा दरवाजे में बाँध कर दूसरा पकड़ कर हिलाया है | आपने महसूस किया होगा रस्सी में एक तरंग  चलने लगती है | ऊपर नीचे , ऊपर नीचे | हमारी जिंदगी भी बिलकुल ऐसी ही हैं | कभी सफलता के शिखर कभी विफलता के गर्त |अंतर केवल इतना है की असली जीवन में जो लोग एक बार गर्त में आते ही प्रयास छोड़ देते हैं वो असफल कहलाते हैं | जो गर्त में जा कर फिर से उठने का प्रयास करते हैं वो सफल कहलाते हैं | वही रस्सी के दूसरे छोर  या सफलता के शिखर तक पहुँच पाते हैं | इसके लिए असफल होने पर निराश न होकर अपनी असफलताओं से सीख लेनी पड़ती है | कैसे सीखें असफलता से   अपनी बात को समझाने के लिए मैं एक छोटी सी कहानी आपसे शेयर करना चाहता हूँ | रोहित और उसके मित्र की | रोहित एक असफल व्यक्ति था | वह अपने एक अति सफल जानकार के पास सफलता के गुर सीखने गया | जाते ही उसने प्रश्न किया | आप सफलता के गुर सिखाइए | सफल मित्र ने कहा ,” मैं क्या सिखाऊ , मैं तो खुद सीखता हूँ | आप किससे सीखते हैं , रोहित  ने उत्साह से पूंछा | असफल व्यक्तियों से , सफल व्यक्ति ने सीधा सादा  उत्तर दिया | वो कैसे ? रोहित ने आश्चर्य से पूंछा | सफल व्यक्ति बोला , “ खैर ! वो बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ की तुम असफल कैसे हुए | रोहित बोला , “ मैं बहुत जल्दी सफलता पाना चाहता था | मैंने एक कम्पनी खोली वो ठीक से जम भी न पायी की दूसरी खोल दी  | अब पहली में घाटा  होने लगा | तो उसे पूरा करने के लिए मैंने अपने सारे पैसे लगा कर तीसरी कम्पनी खोल ली | ताकि उसकी कमाई  से दोनो का घाटा पूरा कर सकूँ | पर हुआ उल्टा | काम के अत्यधिक दवाब के चलते एक –एक कर के मेरी तीनों कम्पनियां बिक गयी | और मैं सड़क पर आ गया | मैं कर्जे में डूबा हुआ हूँ | देखो तुम्हारी बातों  से मैंने दो बातें सीखी | जिन्हें तुम सफलता के सूत्र भी कह सकते हो | पहला जब तक एक काम ठीक से न जम जाए दूसरे में हाथ न डालो |दूसरी बात कभी अपना सारा पैसा कम्पनी में न  लगा दो ताकि घाटे की स्तिथि में दिवालिया होने की नौबत न आये | आप भी सीख सकते हैं असफलता से  जैसे रोहित के मित्र ने असफलता से सीखा वैसे हम सब असफल व्यक्तियों से सीख सकते हैं की क्या नहीं करना चाहिए | फलाना व्यक्ति ने ऐसा क्या किया जिससे वो असफल हुआ | यहाँ एक खास बात और हैं आप अपनी असफलता  से भी सीख सकते हैं | ज्यादातर होता यह है की जब हम असफल होते हैं तो इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते की हम से कुछ गलती हुई है | इस कारण हम दूसरों पर दोष लगाने लगते हैं |  मसलन फलां ने काम सही नहीं किया |फलां दोस्त उस समय पैसे देने से मुकर गया | या फलां व्यक्ति को परखने में मुझसे भूल हो गयी | अगर कोई भी कारण नहीं मिलता है तो हम भाग्य को दोष देने लगते हैं | अरे , मेरा तो भाग्य ही खराब है | मैं कुछ भी करूँ काम बनता ही नहीं है | पर अगर आप अपने अहंकार को जरा हटा कर सोंचेंगे तो आपको  अपनी कमियाँ स्वीकारने का साहस आएगा | असफलता से सीखने के लिए करें सेल्फ एनालिसिस                              दोस्तों , कठिन है पर अपनी असफलता से सीखने के लिए सेल्फ एनालिसिस की जरूरत होती है |जैसे … मैंने पढाई नहीं की इसलिए नंबर कम आये टीचर के फेवरेटिज्म नहीं मेरे नम्बर मेरे दोस्त से कम इसलिए आये क्योंकि इस सा उत्तर देने के बावजूद मैं स्पेलिंग मिस्टेक ज्यादा की थीं | मेरी दोस्त मुझसे ज्यादा टेलेंटेड हैं | उससे प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए मुझे ज्यादा समय सीखने में लगाना होगा अगर मैं ऑफिस में प्रमोशन नहीं पा  रहा हूँ | जबकि मैं काम सबसे बेहतर करता हूँ तो हो सकता है मैं अपने काम को ठीक से रीप्रेजेंट नहीं कर पा  रहा हूँ | अगर फलां व्यक्ति जिसे मैंने नौकरी पर लगाया था | ठीक से काम नहीं कर रहा तो भी मेरी गलती है | क्योंकि मैं योग्य व्यक्ति का चयन करने में असफल हो गया |  अगर मेरी टीम योग्य होते हुए भी सही काम नहीं कर पा  रही है तो जरूरी मुझसे टीम कोलीद करने में कुछ गलतियाँ हुई होंगी  बिजनेस में फेल होने की वजह मेरे प्रोडक्ट में ये कमी हो सकती है या फिर मेरी कस्टमर से डीलिंग सही नहीं है | या मैं प्रोडक्ट का प्रमोशन सही तरीके से नहीं कर पा रहा हूँ |  ये तो कुछ उदाहरण हैं | हर काम और उसमें असफलता के अलग –अलग कारण होते हैं | जरूरी है हम उनकी एनालिसिस करें | अपनी गलतियों को स्वीकारें | यही उन्हें सुधार  कर आगे बढ़ना  सफलता की ओर ले जाने वाला पहला कदम होता है | जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं वो कई बार असफल हुए पर उन्होंने सफलता इसलिए पायी क्योंकि उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा अपनी असफलता को स्वीकार किया असफलता के लिए स्वयं को जिम्मेदार माना पूरे जी जान  उस कमी को दूर करने का प्रयास किया और निरंतर ये प्रयास करते रहे |   दोस्तों अगर आप सफल हैं तो उस सफलता को बरकरार रखने या युस मुकाम से आगे बढ़ने के लिए और यदि असफल हैं तो … Read more

13 फरवरी 2006

10 फरवरी 2006 वेदना पिघल कर आँखों से छलकने को आतुर थीं.. पलकें अश्रुओं को सम्हालने में खुद को असहाय महसूस कर रही थीं…जी चाहता था कि कोई अकेला कुछ देर के लिए छोड़ देता कि जी भर के रो लेती……….फिर भी अभिनय कला में निपुण अधर मुस्कुराने में सफल हो रहीं थीं ..बहादुरी का खिताब जो मिला था उन्हें….! कैसे कोई समझ सकता था कि होठों को मुस्कुराने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ रहा था…! किसी को क्या पता था कि सर्जरी से पहले सबसे हँस हँस कर मिलना और बच्चों के साथ घूमने निकलना , रेस्तरां में मनपसंद खाना खाते समय मेरे हृदय के पन्नों पर मस्तिष्क लेखनी बार बार एक पत्र लिख -लिख कर फाड़ रही थी… कि मेरे जाने के बाद……………..! 11 फरवरी 2006 11 फरवरी 2006 रात करीब आठ बजे बहन का फोन आया… पति ने बात करने के लिए कहा तब आखिरकार छलक ही पड़े थे नयनों से नीर…. और रूला ही दिए थे मेरे पूरे परिवार को… नहीं सो पाई थी  उस रात को मैं .. कि सुबह ओपेन हार्ट सर्जरी होना था…. सुबह स्ट्रेचर आता है… उसपर मुझे लेटा दिया जाता है…. कुछ दूर चलकर स्ट्रेचर वापस आता है कि सर्जरी आज नहीं होगा……! कुछ लोगों ने तो अफवाह फैला दी  थी  कि डॉक्टर नरेश त्रेहान इंडिया पाकिस्तान का क्रिकेट मैच देखने पाकिस्तान जा रहे हैं..! सर्जरी से तो डर ही रही थी | मुझे  बहाना मिल गया था हॉस्पिटल से भागने का…….. गुस्से से चिल्ला पड़ी थी मैं .. डॉक्टरों की टीम आ पहुंची थी मुझे समझाने के लिए | तभी डॉक्टर नरेश त्रेहान भी आ पहुंचे थे ,और समझाने लगे थे कि मुझे इमर्जेंसी में बाहर जाना पड़ रहा है… मैं चाहता हूँ कि मेरे प्रेजेन्स में ही आपकी सर्जरी हो…………… …..! 13 फरवरी 2006 13 फरवरी 2006 सुबह करीब ९ बजे स्कार्ट हार्ट हॉस्पिटल की नर्स ने जब स्ट्रेचर पर लिटाया और ऑपरेशन थियेटर की तरफ ले जाने लगी थी तो मुझे लग रहा था कि जल्लाद रुपी परिचारिकाएं मुझे फांसी के तख्ते तक ले जा रही हैं……… हृदय की धड़कने और भी तेजी से धड़क रही थी…. मन ही मन मैं सोंच रही थी शायद यह मेरे जीवन का अन्तिम दिन है…….जी भर कर देखना चाहती थी दुनिया को……… पर नजरें नहीं मिला पा रही थी परिजनों से कि कहीं मेरी आँखें छलककर मेरी पोल न खोल दें…….मैं खुद को बिलकुल निर्भीक दिखाने का अभिनय करती रही थी परिचारिकाएं ऑपरेशन थियेटर के दरवाजे के सामने स्ट्रेचर रोक देती हैं.. और तभी किसी यमदूत की तरह डाक्टर आते हैं..  स्ट्रेचर के साथ साथ डॉक्टर भी ऑपरेशन थियेटर में मेरे साथ चल रहे थे…. चलते चलते वे अपनी बातों में उलझाने लगे थे ..जैसे किसी चंचल बच्चे को रोचक कहानी सुनाकर बातों बातों में उलझा लिया जाता है.. ! डाक्टर  ने कहा किरण जी लगता है आप बहुत नाराज हैं..! मैने कहा हाँ.. क्यों न होऊं…? और मैं हॉस्पिटल की व्यवस्था को लेकर कुछ कुछ उलाहने.देने लगी थी . तथा इसी प्रकार की कुछ कुछ बातें किये जा रही थी..! मैने डाक्टर से पूछा बेहोश करके ही ऑपरेशन होगा न..? डाक्टर ने मजाकिया अंदाज में कहा अब मैं आपका होश में ही ऑपरेशन करके आपपर एक नया एक्सपेरिमेंट करता हूँ..! बातों ही बातों में डॉक्टर ने मुझे बेहोशी का इंजेक्शन दे दिया उसके बाद मुझे क्या हुआ कुछ पता नहीं..! 14 फरवरी 2006 करीब ३६ घंटे बाद १४ फरवरी  को मेरी आँखें रुक रुक कर खुल रही थी ..! आँखें खुलते ही सामने पतिदेव को खड़े देखा तब .मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि मैं सचमुच जीवित हूँ…!कहीं यह स्वप्न तो नहीं है यह सोचकर मैने  अपने पति के तरफ अपना हाँथ बढ़ाया..जब पति ने हांथ पकड़ा तब विश्वास हुआ कि मैं सचमुच जीवित हूँ..! तब मैं भूल गई थी उन सभी शारीरिक और मानसिक यातनाओं को जिन्हे मैंने सर्जरी के पूर्व झेला था ..! उस समय जिन्दगी और भी खूबसूरत लगने लगी थी ..वह हास्पीटल के रिकवरी रूम का वेलेंटाइन डे सबसे खूबसूरत दिन लग रहा था..! अपने भाई , बहनों , सहेलियों तथा सभी परिजनों का स्नेह.., माँ का अखंड दीप जलाना……, ससुराल में शिवमंदिर पर करीब ११ पंडितों द्वारा महामृत्युंजय का जाप कराना..,…… पिता , पति , और पुत्रों के द्वारा किया गया प्रयास… कैसे मुझे जाने देते इस सुन्दर संसार से..! वो सभी स्नेहिल अनुभूतियाँ मेरे नेत्रों को आज भी सजल कर रही हैं …. मैं उसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर पा रही…हूँ ! आज मुझे डॉक्टर देव , नर्स देवी , और स्कार्ट हार्ट हास्पिटल एक मंदिर लगता है..! एक सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत थी 13 फरवरी 2006 मुझे यही अनुभव हुआ कि समस्याओं से अधिक मनुष्य एक भयानक आशंका से घिर कर डरा होता है और ऐसी स्थिति में उसके अन्दर नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगता है जो कि सकारात्मक सोंचने ही नहीं देता है |  उसके ऊपर से हिन्दुस्तान में सभी डॉक्टर ही बन जाते हैं….! मैं अपने अनुभव के आधार पर यही कहना चाहती हूं कि स्वास्थ्य  सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु डॉक्टर के परामर्श पर चलें…. विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है इसलिए भरोसा रखें डाॅक्टर पर………. आत्मविश्वास के लिए ईश्वर पर भी भरोसा रखें……. और सबसे पहले डॉक्टर और हास्पिटल का चयन में कोई समझौता न करें .! *************** किरण सिंह मित्रों सकारात्मक सोंच बहुत कुछ बदल देती है | जरूरी है हम ईश्वर  पर और अपने ऊपर विश्वास बनाये रखे | किरण सिंह जी का यह संस्मरण आपको कैसा लगा ? पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | फ्री ई मेल सबस्क्रिप्शन लें ताकि हमारी नयी पोस्ट सीधे आपके ई मेल पर पहुंचे |  यह भी पढ़ें …….. कलयुग में भी होते हैं श्रवण कुमार गुरु कीजे जान कर एक चिट्ठी साहित्यकार / साहित्यकार भाइयों बहनों के नाम २० पैसा

अधूरापन : अभिशाप नहीं , प्रेरणा है

बड़ा अधूरा सा लगता है ये शब्द ~ अधूरापन | जिसे कहते  ही  मन में न जाने कितने  नकारात्मक विचार  आ जाते हैं ।और साथ ही आ जाते हैं बहुत सारे प्रश्न – क्यों , कब कहाँ , कैसे ? क्योंकि  यह शब्द अपने आप में जीवन की किसी कमी को दर्शाता है। पर सोचिये कि अगर ये थोड़ी सी कमी जीवन में ना हो तो जीवन खत्म सा नहीं हो जायेगा?या यूं भी कह सकते हैं की ये सारी भाग – दौड़  उसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए ही तो है | रसायन विज्ञान कहता है की हर एटम अपनी आखरी कक्षा में आठ इलेक्ट्रान रख कर इनर्ट गैसों की तरह बनना चाहता है | पर उसके लिए या तो उसे कुछ इलेक्ट्रान निकालने  होगे या लेने होंगे | एक एटम के दूसरे एटम से जुड़ने की सारी रासायनिक  प्रक्रियाएं इसी अधूरेपन को पूरा करने का ही नतीजा हैं | वर्ना तो न तो नए मोलिक्यूल बनते न नए पदार्थ न ही जीव और वनस्पति जगत का इवोल्यूशन हुआ होता | १)अधूरापन देता है हर पल पूर्णतया से जीने की प्रेरणा   एक पुराना हिंदी गाना है “ आधा है चंद्रमा , रात आधी , रह न जाए तेरी मेरी बात आधी “ | कहने को तो यह महज एक फ़िल्मी गीत है पर कहीं न कहनी इसमें गहरा जीवन दर्शन छिपा है | बात आधी छूट जाने का भय … हर पल को पूर्णता से जीने की प्रेरणा देता है |  अभी कुछ ही दिन पहले की बात है गूगल सर्च करते हुए “ नीयर डेथ एक्सपीरिएंस” पर  एक व्यक्ति का संस्मरण  पढ़ा | वह व्यक्ति हर समय पैसा कमाने में लगा रहता था | जब उसका प्लेन क्रैश होने वाला था तो उसे केवल और केवल यह लग रहा था की वह अब अपनी ६ साल की बेटी को नहीं देख पायेगा |प्लेन पानी में गिरा वह बच गया | और उसके बाद उसने अपने जीवन में इस अपूर्णता को समझा जो वो अपने परिवार को वक्त न दे कर कर रहा था | अधूरेपन को जानने के बाद ही उसने काम और परिवार के मध्य समय का संतुलन बनाया |                                                  आज इस अधूरे पन को पूर्णता से सोंचने का कारण भी कुछ अधूरा है | दरसल  मैं बालकनी में बैठी अपने ख्यालों में खोयी हुई थी  | तभी एक करीबी रिश्तेदार के बच्चे का फोन आया | फॉर्मल बातें करने के बाद उसने गिनाना शुरू किया की  उसके जीवन में यह कमी है , वो कमी है | इसलिए उसका काम करने का मन नहीं करता |जरा गौर से सोंचिये की ये उसकी ही नहीं कहीं न कहीं हम सब की परेशानी होती है जहाँ कोई कमी दिखी अधूरापन दिखा बस हार मान कर बैठ गए | फिर जिंदगी से लगे शिकायत करने या फिर यूं ही उसे घसीटने |  मैं इस विषय में सोच ही रही थी ,  तभी मेरी निगाह सामने के घर में नन्हे रिशु पर पड़ी  |  नन्हा रिशु बहुत देर से अपनी माँ को परेशांन  कर रहा था | अचानक माँ को ख्याल आया | उन्होंने एक खाली बाल्टी रिशु के आगे रख दी और रिशु को एक खाली  कटोरी दे कर कहा ,” रिशु नल खोल कर इस बाल्टी को कटोरी से पानी ला –ला कर भरो | रिशु पूरी तन्मयता से काम में जुट गया | खाली बाल्टी ने उसे एक उद्देश्य दे दिया था … उसे भरने का | मुझे अपने ही प्रश्न का उत्तर मिल गया |  हम अक्सर अपनी जिंदगी में किसी खालीपन या कमी की शिकायत करते है | उसे उत्साहहीनता  का कारण मानते हैं |पर अगर तस्वीर को पलट कर देखे तो ये कमी ही हमारे लिए प्रेरणा का काम करता  है | जिससे हम उस कमी को पूरा करने में पूरी ताकत झोंक देते हैं | कहीं न कहीं यह हमारे ऊपर है की हम उस अधूरेपन से निराश हो कर हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते हैं या उसे अपने जीवन के उद्देश्य में उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल करें |   २)निराश न हों अधूरेपन से                                         अगर आप ध्यान दीजिए तो आदमी को भी  काम करने के लिए प्रेरित ही यह कमी करती है। कोई भी कदम, हम इस खालीपन को भरने की दिशा में ही उठाते हैं। मनोवैज्ञानिकों  का कहना है कि मनुष्य जीवन भर असंतुलित को संतुलित करने में लगा रहता है | और तो और हमें भूख भी तभी लगती है जब ताकत की कमी महसूस हो रही हो | आप किसी भी घटना को ले लीजिए हर घटना के पीछे किसी न किसी कमी को पूरा करने का कारण  छिपा होता है यहाँ तक की परोपकार व् आतंकवाद के पीछे भी | कोई  व्यक्ति किस तरह के कपड़े पहनता है,किस तरह के रंग पसंद करता है |   किस तरह कि किताब पढन या गाने सुनना पसंद करता  है, किस तरह का कार्यक्रम देखना पसंद करता है और कैसी संस्था से जुड़ा है ये सब अपने जीवन की उस कमी को दूर करने से सम्बंधित है। अभी कुछ समय पहले एक कैंसर के मरीजों के वेलफेयर संसथान में जाना हुआ | ज्यादातर स्वयंसेवी वो थे जिन्होंने कैंसर से अपने किसी प्रियजन को खोया है | वो किसी और कैंसर पेशेंट की सेवा करके अपने जीवन की कमी पूरा करना कहते हैं |  पढ़िए –मनसा वाचा कर्मणा – जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और क्या है कर्मफल कभी नदी में पड़ने वाली भंवर  को देखा है | शायद नदी की तलहटी में एक छोटी सी कमी या अधूरापन होता है | फिर कैसे चारों  तरफ से जल आ कर उसे भरता ही रहता है , भरता ही रहता है ~ बिना रुके बिना थके |  ऐसी  ही एक प्रेरणादायी घटना याद आ रह है जो   हमारे देश में सुनामी के दौरान घटी जहाँ एक दंपत्ति ने अपने तीनों बच्चों को खो दिया | उन्होंने अपनी आँखों  के सामने अपने बच्चों को लहरों द्वारा लीलते देखा | इस हृदयविदारक घटना के बाद उन्हें अपना जीवन बेमानी लगने … Read more

आप अकसर क्या व्यक्त करते हैं – खेद या आभार

वंदना बाजपेयी  मृत व्यक्ति को किसी जीवित व्यक्ति से अधिक फूल मिलते हैं क्योंकि खेद व्यक्त करना आभार व्यक्त करने से ज्यादा आसान है – ऐनी फ्रैंक                                          वो मेरा स्टूडेंट था | तकरीबन १० साल बाद मुझसे मिलने आया था | अभी क्या करते हो ? पूछने  पर उसने सर झुका लिया  , केवल चाय की चुस्कियों की गहरी आवाजे आती रहीं | मुझे अहसास हुआ की मैंने कुछ गलत पूँछ लिया है | माहौल को हल्का करने के लिए मैं किसी काम के बहाने उठ कर जाने को हुई तभी उसने चुप्पी तोड़ते हुए कहा , ” एक दुकान संभालता  हूँ ,  बस गुज़ारा हो जाता है | ” फिर सर झुकाए झुकाए ही बोला ,”मुझे खेद हैं |  काश ! मैंने समय पर आप की सलाह मान ली होती तो आज मेरी तकदीर कुछ और होती | ”  पढ़िए – कोई तो हो जो सुन ले कोई बात नहीं |जहाँ हो अब आगे बढ़ने का प्रयास करो |  हालांकि जब तुम मुझसे मिलने आये थे तो मुझे आशा थी की तुम मेरी सालाह के लिए आभार व्यक्त करने आये हो |”मेरे सपाट उत्तर के बाद पसरा मौन  उसके जाने के बाद भी मेरे मन में पसरा रहा |                                                   वो मेरा ब्रिलियेंट स्टूडेंट था | पर जैसे – जैसे क्लासेज आगे बढ़ी वो पढ़ाई से जी चुराने लगा | मैंने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया की मेहनत ही सफलता का मूलमंत्र है | पर वो मेहनत  से जी चुराता रहा | स्कूल बदलने के बाद मेरा उससे संपर्क नहीं रहा | आज आया भी तो खेद व्यक्त करने के लिए |  जीवन की कितनी बड़ी विडंबना है की हम सही समय पर सही काम नहीं करते और खेद व्यक्त करने के लिए बहुत कुछ बचा कर रखते हैं | न सिर्फ कैरियर के मामले में बल्कि आपसी रिश्तों में , लोक व्यवहार में | कितने लोग अपने बीमार रिश्तेदारों से आँख बचाते रहते हैं और समय निकल जाने पर खेद व्यक्त करते हुए कहते हैं की ,” आप ने तो हमें बताया ही नहीं |” उस समय बताते तो हम ये ये ये कर देते | सड़क पर गरीब ठंड  से मर रहा है , हममे से कितने उसे अपने घर के एक्स्ट्रा कम्बल दे देते हैं , अलबत्ता उसके मरने के बाद शोक अवश्य करते हैं की काश हमने तब उसे कम्बल दे दिया होता | बेहतर होता की हम उसे पहले कम्बल दे देते और ईश्वर का आभार व्यक्त करते की उसने हमें इस लायक बनाया है की हम किसी की मदद कर सकें |कई बार तो हम अपने बच्चों के मामले में भी समय रहते लापरवाही करते हैं फिर कहते है | समय का फेर है हम उस समय ध्यान नहीं दिया | उदाहरणों की लम्बी लिस्ट है |  पढ़िए – चमत्कार की तलाश में बाबाओं का विकास                                          क्या आप जानते हैं की ऐसा क्यों होता है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि  आभार् व्यक्त  करना मेहनत मांगता है | आभार व्यक्त करना समय पर तीमारदारी मांगता है , आभार व्यक्त करना  अपने अहंकार को कम करना मांगता है , आभार व्यक्त करना समय का सदुप्रयोग मांगता है | … खेद व्यक्त करना आसान राह है  पर यह एक ऐसी राह है जिसकी कोई मंजिल नहीं है | तमाम सुडा , कुडा और वुडा हमें जहाँ हैं वहीँ पर रोक कर रखते हैं | मंजिल सदा सही समय पर सही काम करने वालों को मिलती है | आप अक्सर क्या व्यक्त करते हैं – खेद या आभार  वंदना बाजपेयी  रिलेटेड पोस्ट ….. यात्रा दर्द से कहीं ज्यादा दर्द की सोंच दर्दनाक होती है सुने अपनी अंत : प्रेरणा की आवाज़  कामलो सो लाडलो

सक्सेस के लिए करिए खुद के साथ कम्पटीशन

motivational article on competing with yourself  – प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, लेखक एवं समाजसेवी, लखनऊ प्रतिस्पर्धा  केवल ये नहीं है की आप दूसरों से कितना बेहतर है | बल्कि असली प्रतिस्पर्धा ये है की आप कल जो थे उससे आज कितने बेहतर हुए हैं … अज्ञात  आज का युग घोर प्रतिस्पर्धा का युग है। विश्व के हर क्षेत्र में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की आपाधापी मची है। उचित-अनुचित को ताक पर रखकर सफलता प्राप्त करने के हर तरीके अपनाये जा रहे हैं। ऐसे विषम समय में हमें यह समझना होगा कि प्रतिस्पर्धाओं का उद्देश्य बालक की आंतरिक गुणों की अभिव्यक्ति क्षमता को विकसित करना होता है। यदि हम अपनी मौलिक चीजों को औरों के सामने अपने ढंग से प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इसके लिए इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं की आवश्यकता पड़ती है। बच्चों को बाल्यावस्था से नये और रोमांचक तरीके से सिखाने की शिक्षा पद्धति विकसित की जानी चाहिए। यह शिक्षा ‘स्वयं के साथ प्रतिस्पर्धा’ के विचार पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा द्वारा प्रत्येक बालक को आत्म-विजेता बनने का मार्गदर्शन देना है। आत्म-विजेता ही सफल विश्व नायक बन सकता है। विश्व का नेतृत्व कर सकता है।  प्रत्येक मनुष्य की स्मरण शक्ति असीमित है। मनुष्य में सारे ब्रह्याण्ड का ज्ञान अपने मस्तिष्क में रखने की क्षमता होती है। यह एक सत्य है कि स्मरण शक्ति एक अच्छा सेवक है इसे अपना स्वामी कभी मत बनने दो। आंइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक तथा एक साधारण व्यक्ति के मस्तिष्क की संरचना एक समान होती है। केवल फर्क यह है कि हम अपने मस्तिष्क की असीम क्षमताओं की कितनी मात्रा का निरन्तर प्रयास द्वारा सदुपयोग कर पाते हैं। हर व्यक्ति को अपनी इस विशिष्टता को पहचानकर उसे सारे समाज की सेवा के लिए विकसित करना चाहिए। हमारा विश्वास है कि दूसरों से प्रतिस्पर्धा की पारम्परिक शिक्षा नीति से यह अधिक प्रभावशाली एवं शक्तिशाली शिक्षा नीति है। इस नये विचार ने शिक्षा की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। इस नीति में हार कर भी व्यक्ति निराशा से नहीं घिरता है तथा जीतने वाले के प्रति उसकी सहयोग भावना बनी रहती है। अगर हम विश्व में हुए आविष्कारों तथा सफलताओं को देखें तो हम पायेंगे कि ये उन व्यक्तियों द्वारा किये गये थे जो ‘स्वयं के साथ प्रतिस्पर्धा’ करके विश्व में आगे आये थे। competing with yourself makes  you better     competing with others makes  you bitter  हेलन कीलर स्वयं गूँगी व बहरी थी पंरतु उसने इस प्रकार के बच्चों के लिए ब्रेललिपि का आविष्कार किया।अगर वह भी दूसरों से तुलना करती रहती तो कभी इस जीवन में कुछ काम नहीं कर पाती | संकल्पित होता है जो लक्ष्य के प्रति सचेत होता है। वह एक न एक दिन अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाता है। स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था- असफलताओं की चिंता मत करो। वे बिल्कुल स्वाभाविक हैं, जीवन का सौंदर्य हैं। इनके बिना भी जीवन क्या होता? जीवन में यदि संघर्ष न रहे तो जीवन जीना भी व्यर्थ ही है। महान कोई जन्म से नहीं बनता। बल्कि इसी संसार में कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करके वे महान बनते हैं, सफल होते हैं। बस, हम स्वयं की शक्तियों को पहचानें। जिन लोगों ने भी इस पृथ्वी पर नाम कमाया जो लोग विश्व-विख्यात या जनप्रिय बने, वे तमाम लोग सामान्य होते हुए भी असामान्य थे क्योंकि उन्होंने स्वयं की शक्ति को पहचाना। समय की कीमत को जाना। अंग्रेजी में कहावत है – ‘फस्र्ट थिंक्स फस्र्ट’ अर्थात जिसे सबसे पहले करना है, उसे सर्वोपरि वरीयता देकर सबसे पहले करना चाहिए। प्रतिभा सबके पास समान होती है। परंतु सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कौन समय रहते उसे पहचान लेता है। जो इसे पहचान लेता है, वही एक न एक दिन महापुरूष की तरह असहाय लोगों का सेवक बनता है। प्रकृति प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमताओं का आभास कराती है। परंतु आज यह दुर्भाग्य है कि इसमें से बहुत से लोग स्वयं के अंदर छिपे हुए शक्ति के भंडार को नहीं पहचान पाते। जिस दिन व्यक्ति अपनी असीम शक्ति को पहचान लेता है, वह उसी दिन असफलता के बंधन से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है। हमारी युवा पीढ़ी जो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पलों को इस देश सहित विश्व के निर्माण में लगा रहे हैं वे हमारी ताकत, रोशनी, दृष्टि, ऊर्जा, धरोहर तथा उम्मीद हैं। यह भी पढ़ें …….. क्या आप जानते हैं सफलता के इको के बारे में क्या आप वास्तव में खुश रहना चाहते हैं जो मिला नहीं उसे भूल जा आदमी सोंच तो ले उसका इरादा क्या है जरूरी है मन का अँधेरा दूर होना

शुभ या अशुभ मुहूर्त नहीं, कार्य होते हैं शुभ अथवा अशुभ

सीताराम गुप्ता, दिल्ली      अधिकांश लोगों का मत है कि किसी भी कार्य को सही अथवा शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए क्योंकि शुभ मुहूर्त में किए गए कार्यों में ही अपेक्षित पूर्ण सफलता संभव है अन्यथा नहीं। मोटर गाड़ी या प्राॅपर्टी खरीदनी हो, मकान बनवाना प्रारंभ करना हो, गृह प्रवेश करना हो अथवा विवाहादि अन्य कोई भी मांगलिक कार्य हो लोग प्रायः शुभ मुहूर्त में ही ये कार्य सम्पन्न करते हैं। अब तो बच्चों को भी मनचाहे महूर्त में पैदा करवाने का प्रचलन प्रारंभ हो गया है। बारह दिसंबर सन् 2012 के बारह बजे का तथाकथित शुभ मुहूर्त आप भूले नहीं होंगे जब पूरी दुनिया में अपरिपक्व नवजात शिशुओं को निर्दयतापूर्वक इस संसार में लाने के प्रयास किए जा रहे थे। ये बाज़ारवाद की पराकाष्ठा है जहाँ अज्ञान व अंधविश्वास फैला कर लागों का बेतहाशा शोषण किया जा रहा है।      किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ घड़ी, शुभ दिन अथवा शुभ महीना कौन सा होगा इसका पूरा शास्त्र हम लोगों ने रच डाला है लेकिन देखने में ये भी आता है कि एक समय विशेष पर शुभ मुहूर्त में जहाँ अनेकानेक मांगलिक कार्य सम्पन्न हो रहे होते हैं वहीं उन्हीं क्षणों में दूसरी ओर रोग-शोक, मृत्यु, दुर्घटनाएँ, उत्पीड़न, शोषण आदि के असंख्य दृष्य भी सर्वत्र दिखलाई पड़ते हैं। कहीं परीक्षा परिणाम घोषित हो रहा है जिसमें कोई पास तो कोई फेल हो रहा है। ऐसी स्थिति में हम प्रायः कह देते हैं कि ये अपने-अपने कर्मों का फल है। जैसा कर्म वैसा परिणाम। ठीक है। यदि हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना ही है, कर्म के अनुसार परिणाम मिलना ही है तो फिर महत्त्व कर्म का हुआ या मुहूर्त का?      शुभ मुहूर्त वास्तव में है क्या? शुभ मुहूर्त वास्तव में कार्य को प्रारंभ करने का उचित समय है। यह समय प्रबंधन का ही एक स्वरूप है ताकि कार्य समय पर सम्पन्न हो सके और निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो सके। हमारे संसाधन और प्रयास निरर्थक न हो जाएँ। अब जीवन के दूसरे महत्त्वपूर्ण पक्ष को भी देखिए। आपका किसी महत्त्वपूर्ण या मनचाहे कोर्स में प्रवेश हो जाता है अथवा नौकरी मिल जाती है तो आपको एक निर्दिष्ट समय पर ही जाना पड़ता है अन्यथा आपका प्रवेश या नौकरी रद्द कर दी जाती है। क्या ऐसी स्थितियों में भी आप शुभ मुहूर्त के चक्कर में पड़ेंगे? हम जानते हैं कि यदि ये अवसर हाथ से निकल गया तो दोबारा नहीं मिलने वाला। प्रायः यही पढ़ाई अथवा नौकरी हमारे जीवन में सुख-समृद्धि लाती है तथा हमारे जीवन को अर्थ व गुणवत्ता प्रदान करने में सहायक व सक्षम होती है। यहाँ अवसर महत्त्वपूर्ण हो जाता है न कि कोई मुहूर्त विशेष।      यदि हम ध्यानपूर्वक देखें या चिंतन करें तो ज्ञात होता है कि मुहूर्त शुभ या अशुभ नहीं होता शुभ या अशुभ होता है कार्य। भयानक मानवीय दुर्घटना, रोग-शोक, बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं में जन-माल की हानि, किन्हीं भी कारणों से प्रियजनों का वियोग जिन क्षणों में घटित होते हैं वे क्षण स्वयमेव अशुभ बन जाते हैं जबकि वे क्षण जिनमें कोई सुखद संयोग, धन लाभ, अनुकूल संधि, संतान प्राप्ति, विवाह योग्य जातकों का विवाह, रोग मुक्ति के बाद स्वास्थ्य लाभ अथवा अन्य किसी भी प्रकार का संतुष्टि प्रदान करने वाला कार्य घटित होता है या क्षण जीवन में अवतरित होता है वह क्षण शुभ क्षण व उस क्षण सम्पन्न किया जाने वाला कार्य शुभ कार्य हो जाता है।      हिन्दी भाषा के श्रेष्ठ कवि, साहित्य शिरोमणि संत तुलसीदास का जन्म तथाकथित अशुभ नक्षत्र में होने के कारण उनके माता-पिता ने उनका त्याग कर दिया गया था। एक दासी के द्वारा उनका पालन-पोषण किया गया लेकिन उसकी मृत्यु के उपरांत बालक तुलसी को दर-दर भटकना पड़ा। भीख माँग कर उदरपूर्ति करनी पड़ी। लेकिन बाद में यही बालक संस्कृत का प्रकांड पंडित बना और लोकभाषा अवधी में रामचरितमानस नामक रामकथा लिखने का क्रांतिकारी कार्य किया। यह उनके अध्यवसाय के कारण संभव हुआ न कि किसी मुहूर्त विशेष की कृपा से। इस संसार के योग्यतम व्यक्ति किसी मुहूर्त विशेष की कृपा से आगे नहीं बढ़े अपितु अपने अथक प्रयास व सकारात्मक दृष्टिकोण से उन्होंने हर घड़ी को शुभ घड़ी में बदल दिया।      समझदारी और विवेक से कोई भी समय शुभ समय हो जाएगा जबकि इसके अभाव में किसी भी घड़ी को अशुभ होते देर नहीं लगती। शुभ मुहूर्त के कारण जीवन में कभी भी महत्त्वपूर्ण कार्य करने के अवसर नहीं मिलते। एक आदर्श दिनचर्या अथवा आदर्श ऋतुचर्या का पालन करना ही वास्तव में शुभ मुहूर्त की सृष्टि करना है। हमारा विवेक, समय प्रबंधन, हमारी सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता, हमारा सामान्य ज्ञान व हमारी व्यावहारिक बुद्धि आदि ऐसे तत्त्व हैं जो किसी भी क्षण को शुभ अर्थात् उपयोगी बनाने में सक्षम हैं। शुभ मुहूर्त की तलाश छोड़ कर शुभ, उपयोगी व सकारात्मक कार्यों के चयन व उपलब्ध उपयोगी अवसरों के क्रियान्वयन में हम जितनी शीघ्रता कर सकें उतना ही हमारे लिए श्रेयस्कर होगा। यह भी पढ़ें ……. बुजुर्गों को दे पर्याप्त स्नेह व् सम्मान क्या आप वास्तव में खुश रहना चाहते हैं जो मिला नहीं उसे भूल जा जो गलत होने पर भी साथ दे वो मित्र नहीं घोर शत्रु

क्या आप जानते हैं सफलता के इको के बारे में ?

ओमकार मणि त्रिपाठी  ( पूर्व प्रकाशित )  मैं समुद्र के किनारे बैठा हुआ था  | लहरे आ रही हैं जा रही थीं  | बड़ा ही मनोरम दृश्य था  | पास में कुछ बच्चे खेल रहे थे  | एक बच्चे के हाथ से नारियल छूट कर गिर गया  | लहरें उसे दूर ले गयीं  | बच्चा रोने लगा  | तभी लहरे पलट कर आयीं , शायद बच्चे का नायियल वापस करने , वो नारियल वापस कर फिर अपनी राह  लौट गयीं  | माँ बच्चे को गोद में उठा कर बोली , “ देखो तुमने समुद्र को नारियल दिया था तो उसने भी तुम्हें नारियल दिया | रोया न करो , अपनी चीज बांटोगे तो दूसरा भी अपनी चीज देगा |   ऐसे ही एक कहानी मुझे माँ बचपन में अक्सर सुनाया करती थीं | कहानी इस प्रकार है ….                         एक  माँ, अपने नन्हें पुत्र की साथ पर्वत की चढ़ाई कर रही थी, अचानक पुत्र का पैर फिसल गया और वो गिर पड़ा। चोट लगते ही वो जोर से चिल्लाया- आह… ह.ह.ह.ह…..माँ.…।  पुत्र चौंक पड़ा क्योंकि पहाड़ से ठीक वैसी ही आवाज लौटकर आई। अचम्भा से उसने प्रश्न किया- कौन हो तुम? पहाड़ों से फिर से आवाज आई- कौन हो तुम? पुत्र चिल्लाया- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! आवाज आई- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! किसी को सामने न पाते हुए पुत्र गुस्से से चिल्लाया- तुम डरपोंक हो! आवाज लौटी- तुम डरपोंक हो! पुत्र आश्चर्य में पड़ गया, उसने अपनी माँ से पूछा- ये क्या हो रहा है? वो जोर से चिल्लाई- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! पहाड़ों से आवाज लौटी- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! उन्होंने दोबारा चिल्लाया- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। आवाज लौटी- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। बच्चा ने दोबारा वही पुछा- ये क्या हो रहा है? तभी माँ ने उसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते  हुए कहा- बेटा, आम शब्दों में लोग इसे इको कहते हैं लेकिन असल में यही जिंदगी है।  जिंदगी में आपको जो कुछ भी मिलता है, वो आपका ही कहा या फिर किया हुआ होता है।  जिंदगी तो सिर्फ हमारे कार्यों का आईना होती है। यदि हमें अपनी टीम से श्रेष्ठता की उम्मीद रखना है, तो हमें खुद में श्रेष्ठता लाना होगा। यदि हम दूसरों से प्यार की उम्मीद करते हैं, तो हमें दूसरों से दिल खोलकर प्यार करना होगा।  आखिर में, जिंदगी हमें हर वो चीज लौटाती है, जो हमने दिया है।,  ऐसा ही एक उदाहरण और है | वो उदाहरण एक खेल का है | उस खेल का नाम है बुमरेग | ये एक ऐसा खेल है जिसमें हम बुमेरैंग को जितनी तेजी से फेंकते हैं | यह उतनी ही तेजी से हमारे पास पलट कर आता है | अगर विज्ञानं की भाषा में कहें तो यह न्यूटन का थर्ड लॉ फॉलो करती है वही क्रिया प्रतिक्रिया का | क्या यही हमारी जिंदगी भी नहीं है ?    गौर से सोंचिये ये तीनों उदाहरण यही बताते हैं की हम जो भी शब्द  दूसरों के लिए प्रयोग  करते हैं, वो एकदिन घूमकर हमारे पास आता ही है। हम जो भी इस दुनिया को देते हैं, एक दिन वह कई गुना होकर हमारे पास लौट आता है।        समुद्र हो , पहाड़ हो , नदी हो या प्रकृति का कोई अन्य हिस्सा , सब के सब मौन होते हुए भी हमें बहुत कुछ समझाते हैं |  इसी को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही प्रकृति से समझ कर एक सूत्र वाक्य में पिरो दिया था “ जैसी करनी वैसी भरनी “ |  जो दोगे वही मिलेगा |  जीवन का सबसे बड़ा सिद्धांत यही है, कि आप जो बोयेंगे, एकदिन वही आपको काटना पड़ेगा।  जो भी चीजें आप अपने लिए सबसे ज्यादा चाहते हैं, उसे सबसे ज्यादा बाँटिये। यदि आप दूसरों से सम्मान पाना चाहते हैं, तो आपको दिल खोलकर दूसरों का सम्मान करना होगा।  लेकिन यदि आप दूसरों का तिरस्कार करेंगे तो बदले में आपको भी वही मिलेगा।यदि आप चाहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में दूसरे आपका साथ दें, तो आप उनकी मुश्किलों में उनके साथ खड़े रहिये। यदि आप प्रशंसा करेंगे, तो वही आपको मिलेगा।  यही तो जीने का नियम है,  हमारे पूर्वज धर्मिक संस्कार के रूप में हमें इसे मानना सिखा भी गए हैं | तभी तो हम  अन्न  प्राप्ति कि इच्छा  के लिए अन्न  दान , धन प्राप्ति कि इच्छा   के लिए अर्थ दान करते हैं |   पर जब बात सफलता कि आती है तो हम यह कहने से नहीं  चूकते कि आज कि अआज़ की गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में किसी कि नीचे गिराए बिना आप ऊपर चढ़ नहीं सकते | युद्ध , प्रेम और सफलता के मार्ग में सब जायज है का नारा लागाते हुए हम दूसरे कि सफलता को देख कर मन में यह भाव पाल लेते हैं की अगर वह सफल है तो मैं सफल नहीं हो सकता | यही से इर्ष्या कि भावना पनपने लगती है जो अनेकों नकारात्मक विचारों का मूल है |                           डेल  कार्नेगी के अनुसार,  “जीतने का सबसे सरल रास्ता है कि आप दूसरों को उनकी जीत में मदद करें।यदि आप जीतना चाहते हैं, तो दूसरों की सफलता के हितैषी बनिए। जो आप देंगे वो कई गुना लौटकर आपके पास आएगा।”                   यह अलिखित नियम है कि अगर हम किसी कि  सफलता के बारे में नकारात्मक विचार रखेंगे तो सदा असफल ही होएंगे | इसका कारण यह भी है कि जब आप किसी सफल व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं तो आप का ध्यान  अपने काम में नहीं लगता बल्कि दूसरे को नीचा दिखाने  में लगा रहता है | सफलता तभी संभव है जब हम किसी काम में बिना आगा पीछा सोचे पूरी तरह से डूब जाए | ऐसा वही लोग कर पाते हैं जिन्हें अपने काम से प्यार होता है | इस प्यार का प्रतिशत जितना ज्यादा होता है व्यक्ति उतना ही सफल होता है | क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं हर हाल में उसकी  भलाई देखते हैं |  मान लीजिये जब आप चित्रकारी या लेखन से वास्तव में प्यार करतें है तो आप किसी दूसरे का चित्र या लेख देख पढ़ कर प्रसन्न होने कि वाह कितना अच्छा  काम किया जा रहा है इस क्षेत्र में | आप उसकी बारीकियों पर गौर कर उसे सराहेंगे | यह सराहना आप को और अच्छा काम करने कि प्रेरणा देगी |आप अपने क्षेत्र में … Read more

ख़राब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पॉजिटिव

अपने बच्चों पर BEST  RESULT का दवाब न डालें  पंकज“प्रखर” कोटा(राजस्थान) माता-पिता अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं और अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन से उनमे आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें और उन्हें आश्वस्त करें की अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नही भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं की एक असफलता हमारा जीवम समाप्त नही करती बल्कि जीवन जीने के और भी नये व अच्छे रास्ते खोल देती है | परीक्षाओं का परिणाम निकलने का मौसम है और इन दिनों ज्यादातर विद्यार्थी सफलता और अफलता  या इच्छानुरूप अंक प्राप्त होंगे या नही होंगे इसी प्रकार के विचारों के बीच अपनी आशा रुपी नौकामें गोते खारहे होंगे | ऐसे समय में आवश्यकता है की माता-पिता अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं औरअपने स्नेह एवं मार्गदर्शनसे उनमे आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें और उन्हें आश्वस्त करें की अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नही भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं की एक असफलता हमारा जीवम समाप्त नही करती बल्कि जीवन जीने के और भी कई सारे नये व अच्छे रास्ते खोल देती है | ऐसे समय में माता-पिता का ये कर्तव्य हो जाता है की वो अपने युवा हो रहे बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करें उनकी चेष्टाओं को समझने का प्रयत्न करें उनके मित्र बने | आजके माता-पिता की ये शिकायत होती है की बच्चा उनकी नही सुनता अपनी मनमानी करता है ये आज की पीढ़ी की प्रमुख समस्या है ,युवा हो रहे बच्चे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहतेहै| यदि आप चाहते है की आपके बच्चे आप के अनुसार अपने जीवन को एक सांचे में ढाले और जीवन को श्रेष्ट मार्ग पर लेकर जाए तो उसके लिए ये आवश्यक हो जाता है की आप उन्हें वो सब करने दें जो वो चाहते है ,जी हाँ शायद आप को ये शब्द आश्चर्य में डाल दे परन्तु ये सत्य है आप जिन चीज़ों के लिए उन्हें रोकेंगे उनका मन उसी चीज़ की और अकारण ही आकर्षित होगा |चाहे तो ये प्रयोग माता-पिता स्वय अपने साथ करके देख सकते है|लेकिन हाँ इसका मतलब ये भी नही है की बच्चे को हानि होती रहे और आप देखते रहें | इसका एक सीधा सरल सा उपाय ये है की आप उन्हें कार्य करने से रोके नही बल्कि उससे होने वाली हानियों से उन्हें अवगत करायें | उन्हें समझाएं की ये करने से तुम्हे ये हानि होगी और नही करने से ये लाभ, और उसके द्वारा की गयी गलती के लिए उसे कोसते ना रहे बल्कि उसे आने वाले अवसरों के लिए सचेत करें | इस प्रयोग से दो लाभ है पहला तो ये की बच्चे को आपकी सोच पर विश्वास बड़ेगा और बच्चा भावनात्मक रूप से आप से और अधिकजुड़ जाएगा की जो बात आपने उसे बताई थी वो सही थी यदि वो आपकी बात मान लेता तो उसे लाभ होता दूसरा लाभ ये होगा की बच्चे को काम करके जो अच्छा या बुरा अनुभव हुआ है वो उसे सदेव याद रखेगा अच्छे लाभ उसकी योग्यत प्रदर्शित करेंगे उसके आत्मविश्वास को बढ़ायेंगेऔर बुरे अनुभव उसको कुछ सिखाकर जायेंगे |युवा हो रहे बच्चों के आप मार्गदर्शक बनिए नकी उनपर हुकुम चलाने वाले तानाशाह नही क्युकी बच्चे के मनोभाव कोमल होते है माता पिता कीडांट- फटकार और कडवी बातें बच्चे को मानसिक हानि पहुंचती है |माता-पिता को इससे बचना चाहिए| लेकिन आज के माता-पिता यहीं चुक जाते है बच्चे के परसेंट उनकी आकांक्षा के अनुरूप नही हुए या बच्चा असफल हो गया तो बस घर का माहौल ही बिगड़ जाता है याद रहे डॉक्टर हमेशा रोग पर प्रहार करता है रोगी पर नही | यदि बच्चा समझाने पर भी आपकी बात नही मानरहा है तो इसके दोषी बच्चे नही बल्कि आप स्वयं है यदि आपने शुरू से उन्हें अनावश्यक छूट न दी होती और उसमे संस्कारों का सिंचन किया होता तो आज ये परिस्थितियाँ नही होती अपनी कमी का ठीकरा हमे बच्चों पर नही फोड़ना चाहिए | आज हम सभी अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, सी.ए.और न जाने, क्या-क्या तो बनाना चाहते हैं, पर उन्हें चरित्रवान, संस्कारवान बनाना भूल जाते हैं। यदि इस ओर ध्यान दिया जाए, तो विकृत सोच वाली अन्य समस्याओं से आसानी से बचा जा सकेगा। आज के बच्चे अधिक रूखे स्वभाव के हो गए हैं। वह किसी से घुलते-मिलते नहीं। इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग के इस युग में रोजमर्रा की जिंदगी में आमने-सामने के लोगों से रिश्ते जोड़ने की अहमियत कम हो गई है। बच्चा माता-पिता के पास बैठने की जगह कंप्यूटर पर गेम खेलनाअधिक पसंद करता है | इसके लिए आवश्यक है की बच्चे के साथ भावनात्मक स्तर पर जुडेंउसे पर्याप्त समय दें उसकी बात भी सुने और उपयुक्त सलाह दें उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियों के लिए उसे सराहें तो निश्चित रूप से बच्चा आप को भी समय देगा और आपकी बात सुनेगा और समझेगा |  रिलेटेड पोस्ट ………. बच्चों की बाल सुलभ भावनाएं – माता – पिता धैर्य के साथ आनंद लें बस्तों के बोझ तले दबता बचपन किशोर बच्चे बढती जिम्मेदारियां आज बच्चों को संस्कार कौन दे रहा है माँ दादी या टीवी बदलता बचपन