सक्सेस के लिए जरूरी है हौसलों की उड़ान

विपरीत परिस्तिथियों में भी पा सकते हैं सफलता  कु. इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ व्याख्याता (कंप्यूटर.साइंस) शा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय,नरसिंहपुर (म.प्र.) कुछ भी नहीं इस दुनिया में ‘असंभव’ । … बस, एक अवरोध का ‘अ’ ही तो हटाना हैं । …  लो जी बन गया   ‘संभव’ ।। हम अक्सर अपने जीवन में तब असफल नहीं होते जब किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने अभियान में विफ़ल हो जाते हैं बल्कि सही मायनों में हार वह हैं जब हम भरपूर प्रयास और जी-तोड़ मेहनत करने के भी बाद मिली पराजय को स्वीकार नही कर पाते और हताश होकर बैठ जाते हैं । फिर कभी ख़ुद को तो तो कभी दूसरों को कोसते हुये या फिर फ़िज़ूल से बहानों में उलझकर कर्म करने की जगह अपने आपको किसी खोल या कंदरा में छुपाकर हक़ीकत से आँख मिलाने से कतराते हैं । अमूमन होता यही हैं कि जब हम अपने देखे गये स्वपन या निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते तो अत्यधिक निराश हो जाते हैं जिससे प्रायः हमारा मनोबल टूट जाता हैं । ऐसी स्थिति में हम हमेशा अपनी हार का ठीकरा किसी और के सर पर फोड़कर या थोपकर ख़ुद को निर्दोष साबित करने में जुट जाते हैं और किसी ऐसी वजह को तलाश लेते हैं जो हमें संतुष्ट कर सके कि दोष हमारा नहीं वरन किसी और का था । इन्हीं परिस्थितियों में जन्म होता हैं कुछ तथाकथित आधारहीन से तर्कों का जिसे सामान्यतः ‘लक’ या ‘भाग्य’ का नाम दे दिया जाता हैं और फिर उसके उपर सारा इलज़ाम धरकर हम चिंतामुक्त हो आराम से सो जाते हैं । मेरा ख्याल हैं जो भी लोग तकदीर, किस्मत, भाग्य, ज्योतिष, भविष्यवाणी या ऐसे ही किसी अन्य खोखले शब्दों का सहारा लेते हैं और अपनी नाकामियों को इनके सर पर मढ़ देते हैं दरअसल वो ख़ुद ही भीतर से पोले होते हैं तभी  उनको इस तरह की किसी बैशाखी की जरुरत पड़ती हैं क्योंकि इन्हें ख़ुद में तो कोई कमी नज़र आती नहीं न ही वे अपने दोष ही देखना चाहते हैं इसलिये ही इन अकर्मण्यों ने इस तरह के शब्दों को ईज़ाद किया हैं गर कभी सोचे तो समझ में आयेगा कि जीवन किसी अदृश्य हवाओं में लिखी इबारत या हथेलियों में खिंची लकीरों से नहीं बल्कि हमारे चलने और कर्म करने से आगे बढ़ता हैं ।    ●●●——————– क्या हैं भाग्य ??? … मन का हो तो कहते उसे ‘सौभाग्य’ । … मन का न हो तो कहते उसे ‘दुर्भाग्य’ ।   … ये सब हमारे ही गढ़े हुये शब्द हैं जनाब जीवन मिलता एक बार ही तो कहो ‘अहोभाग्य’ । ————————————–●●● जीवन को सुख-दुःख, हार-जीत, गम और ख़ुशी का सम्मिश्रण कहा गया हैं इसलिये इसमें इंद्रधनुष की तरह भावनाओं का हर एक रंग मिलता हैं जो हमें समय के साथ अलग-अलग अहसास देकर एकरसता से उबरता हैं और जीने की उमंग भी देता हैं ऐसे में जब ख़ुशी के बाद गम या जीत के बाद हार मिल जाये तो घबराना नहीं चाहिये बल्कि नकारात्मक परिस्थितियों से भी सीख लेना चाहिये जो सिर्फ हमें निराश ही नहीं करती बल्कि कोई सीख भी देती हैं जिसे यदि हम समझ जाये तो उसी हार से जीत का रास्ता भी बना सकते हैं । ये सिर्फ हमारी सोच का ही नतीजा होता हैं जो हम विपरीत माहौल में हथियार डाल देते हैं जबकि यदि गंभीरता से सोचे और मनन करे तो पायेंगे कि इनमें ही जीत के सुप्त बीज पड़े होते हैं जिन्हें केवल अपनी मनोनुकूल अवस्था न होने के कारण हम नजरअंदाज़ कर देते हैं जबकि यदि हम इन्हें खोजकर परिश्रम से सींचे तो वो हमारे सपने के साकार वृक्ष में परिणित होकर हमें अपनी सुखद छाया में आश्रय दे सकते हैं । जब किसी जीतने वाले की कहानी पढ़ते या सुनते हैं तो पता चलता हैं कि उनमें और हममें क्या अंतर हैं क्यों वो सर्वोच्च और हम निचले पायदान पर बैठे हैं और किस तरह उन्होंने इस तरह के किसी स्थिति के आने पर हार मानकर बैठने की बजाय अपनी पराजय को जय में बदला । ये सही हैं कि  ऐसे हालात में बहुत कम ही लोग होते हैं जो उठ पाते हैं और फिर उन ऊंचाइयों तक पहुँच पाते हैं जिसका स्वपन उन्होंने देखा था बाक़ी तो सब किसी न किसी न किसी  बहाने की दीवार खड़ी कर उसके पीछे अपने आपको छुपा लेता हैं और अपनी विफलता का सही आकलन करने की बजाय पलायन का रास्ता चुन लेते हैं । असफ़लता के हौसलों की उड़ान : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ अक्सर लोग अपनी चाँद सी दूर नज़र आने वाली मंजिल को पाने की खातिर उसकी राह में आने वाली रुकावटों से घबरा जाते हैं और मिलने वाली पराजय का आकलन करने की बजाय उसे ही अपना मुस्तकबिल मान वही थम जाते हैं लेकिन जीत का चाँद तो उसका ही होता हैं ना जो उसके लिए सबसे लड़ जाते हैं ।   हार में छिपी हैं उसे जीतने की राह । देख मनन कर के फिर ले परचम लहरा ।। सुनने में बड़ा अविश्वसनीय लगता हैं लेकिन ऐसा बहुत लोगों की ज़िन्दगी में हुआ हैं जब वो अपने उद्देश्य को पूरा करने में असफ़ल हुये पर उन्होंने हार नहीं मानी और जिस वजह से सफ़लता उनसे दूर जा रही थी उसका मार्ग भी उन्होंने अपनी उसी असफलता से खोजा । आज जिस रौशनी में हम अपना जीवन गुजारते हैं जिस कृत्रिम प्रकाश से हम एक क्षण में अंधकार को दिन में बदल लाते हैं वो जिस शख्स की देन हैं उसे अपने जीवनकाल में इसे बनाने के लिए एक लंबा समय और अनवरत प्रयोग करने पड़े तब जाकर वो एक सही विधि खोज पाये जिससे उसे पता चला कि वो अब तक जिन तरीकों से इसे ईज़ाद करने की कोशिश कर रही था दरअसल वो सभी युक्तियाँ गलत थी लेकिन अपनी सफ्लता श्रेय भी उसने उन्हीं सारे असफ़ल प्रयोगों को दिया । जी हाँ, मैं उसी महान वैज्ञानिक ‘थॉमस अल्वा एडिसन’ की बात कर रही हूँ जिसने हम सबको ‘बल्ब’ के रूप में ही एक अनुपम सौगात नहीं दी जिसकी बदौलत हमने रात को दिन में बदल पाने में सक्षम हुये बल्कि अपनी असीमित कल्पनाशक्ति से एक हजार से अभी अधिक अविष्कारों … Read more

सफल व्यक्ति ~आखिर क्या है इनमें ख़ास

पंकज प्रखर  मानव ईश्वर की अनमोल कृति है लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्दगिर्द ही रचा बसा हैगीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की कल्पना तक नही की जा सकती इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पढ़े है जो पुरुषार्थ के महत्व को प्रमाणित करते है हम इतिहास टटोलकर देखें तो ईसा मसीह,सुकरात, अब्राहम लिंकन,कालमार्क्स ,नूरजहाँ,सिकंदर आदि ऐसे कई उदाहरण इतिहास में विद्यमान है जिन्होंने अपने निजी जीवन में बहुत से दुःख और तकलीफें झेली इनके जीवन में जितने दुःख और परेशानियां आई इन्होने उतनी ही मजबूती के साथ उनका मुकाबला करते हुए न केवल एक या दो बार बल्कि जीवन में अनेको बार उनका डटकर मुकाबले किया और अपने प्रबल पुरुषार्थ से उन समस्याओं और दुखों को परास्त करते हुए इतिहास में अपना एक सम्माननीय स्थान बना लिया | सिकंदर फिलिप का पुत्र था कहा जाता है की सिकंदर की माँ अपने प्रेमी के प्रणय जाल में इतनी अंधी थी की उसने अपने पति फिलिप को धोखे से मरवा दिया और सिकंदर का भी तिरस्कार किया मगर सिकंदर का परिस्थितियों पर हावी होने का इतना प्रबल पुरुषार्थ था की सिकंदर ने अपने दुर्भाग्य को पुरुषार्थ से सोभाग्य में परिणित कर दिया | एक मूर्तिकार का बेटा जो देखने में बड़ा कुरूप था उसने अपने जीवन की शुरुवात एक सैनिक के रूप में की और बहुत छोटी उम्र में उसके पिता का साया उस पर से उठ गया अब उसकी माँ ही थी जो अपने पुत्र और अपने जीवन का निर्वाह दाई का कम करके करती थी यही कुरूप बालक आगे चलकर सुकरात के नाम से प्रसिद्द हुआ जिसने अपने पुरुषार्थ से दर्शनशात्र के जनक की उपाधि प्राप्त की | एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने वाला लिओनार्दो विन्ची को भी अपने जीवन में माता पिता के बीच हुए मनमुटाव के कारण अलग होने पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पढ़ा बहुत गरीब स्थिति में उसने अपना जीवन बिताया थोडा बड़े होते ही घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गयी लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया और इटली ही नही अपितु पुरे विश्व में शिल्प और चित्रकला के नये आयाम स्थापितकरअपनी कलाकृतियों के द्वारा अमर हो गया | ईसामसीह जिनके आज दुनिया में एक तिहाई अनुयायी है उनका जन्म एक बड़ई के घर में हुआ लेकिन ईश्वर में अपनी आस्था और विश्वास के द्वारा उन्होंने श्रेष्ठ मार्ग पर चलते हुए सभी विघ्न बाधाओं को काटते हुए वे एक महामानव बने और लोगों के लिए सत्य का मार्ग अवलोकित कर गये | भारत वर्ष को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म भी एक दासी से हुआ था लेकिन उसे चाणक्य जैसे गुरु मिले और उनके बताये रास्ते पर चलते हुए वह अपने पराकृम और पुरुषार्थ के द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने में सफल रहा | प्रसिद्द विचारक और दार्शनिक कुन्फ़्युसिअस को तीन वर्ष की छोटी सी उम्र में ही पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा था अपने पिता को वो अभी ठीक प्रकार से पहचान भी नही पाया था की वह अनाथ हो गया है और छोटी सी उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन  के कार्य में लगना पढ़ा लेकिन बढ़ा बनने की इच्छा उसमे प्रारम्भ से ही थी यद्यपि 19 वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हो गया और तीन संतानों के साथ बड़ी ही तंगहाली में उसने जीवन जिया लेकिन अपने पुरुषार्थ और दृण इच्छा शक्ति के कारण उसने चमत्कार कर दिखया और महान  दार्शनिक कहलाया | कालमार्क्स यद्यपि गरीब था और मरते तक उसने तंगहाली में ही जीवन जिया लेकिन अपनी संकल्प शक्ति और दृण विचारों द्वारा दुनिया के करोड़ो लोगों को अपने भाग्य का विधाता आप बना गया उसने अपनी पुस्तक “दास केपिटल” को सत्रह बार लिखा अठारवीं बार में वो अपने उद्दत रूप में निकलकर बाहर आई और साम्यवाद की आधारशिला बन गयी| नूरजहाँ जिसके इशारे पर जहांगीर अपना शासन चलाता था एक निर्वासित ईरानी की बेटी थीजो शरणार्थी बनकर सम्राट अकबर के दरबार में आया था | अपने संगठन शक्ति दूरदर्शिता दावपेंचऔर सीमित साधनों के बल पर औरंगजेब के नाकों चने चबवाने वाले शिवाजी के पिता शाहजी एक रियासत के दरबारी थे शिवाजी को अपने पिता का किसी प्रकार का सहयोग या आश्रय नही मिला उनका साहस केवल माता की शिक्षा और गुरु के ज्ञान पर टीका हुआ था वे साहस और पराकृम के बल पर स्वराज्य के लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ते गये एवं यवनों से जूझकर छत्रपति राष्ट्राध्यक्ष बने | शेक्सपियर जिनकी तुलना संस्कृत के महान कवि कालिदास से की जाती है एक कसाई के बेटे थे परिवार के निर्वाह हेतु उन्हें भी लम्बे समय तक वही काम करना पड़ा लेकिन बाद में अपनी अभिनय प्रतिभा तथा साहित्यिक अभिरुचि के विकास द्वारा अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि तथा नाटककार बन गये | न्याय और समानता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले  अब्राहम लिंकन को कौन नही जानता उन्होंने अपने जीवन में असफलताओं का मुँह इतनी बार देखा की यदि पूरे जीवन के कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उनमे सौ में से निन्यानवे तो असफल रहे है जिस काम में भी उन्होंने हाथ डाला असफल हुए |रोजमर्रा के निर्वाह हेतु एक दूकान में नौकरी की तो दुकान का दिवाला निकल गया किसी मित्र से साझेदारी की तो धंधा ही डूब गया जैसे तैसे वकालत पास की लेकिन वकालत नही चली चार बार चुनाव लढ़े  और हर बार हारे जिस स्त्री से शादी की उसके साथ भी सम्बन्ध बिगड़ गये और वो इन्हें छोड़कर चली गयी जीवन  में एक बार उनकी महत्वाकांक्षा  पूरी हुई जब वे राष्ट्रपति बने और इस सफलता के साथ ही वो विश्व इतिहास में सफल हो गये | विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइनजिसने परमाणु शक्ति की खोज की वो खोजी बचपन में मुर्ख और सुस्त था | उनके माता-पिता को चिंता होने लगी थी की ये अपना जीवन कैसे चला पायेगा लेकिन जब उन्होंने प्रगति पथ पर बढ़ना शुरू किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया | सफलता के लिए … Read more

हमेशा खुश रहने के लिए अपनाएं 15 आदतें

सीताराम गुप्ता कौन है जो प्रसन्न रहना नहीं चाहता? हम सभी प्रसन्न रहना चाहते हैं। प्रसन्न रहने के लिए क्या कुछ नहीं करते लेकिन फिर भी कई बार सफलता नहीं मिलती। जितना प्रसन्नता की तरफ़ दौड़ते हैं प्रसन्नता और हममें अंतर बढ़ता जाता है। यदि जीवन में सचमुच प्रसन्न रहना चाहते हैं और हमेशा प्रसन्न रहना चाहते हैं तो अपनाएं ये 15 आदतें  अपनी स्वीकार्यता को बढा़एँ और रहे खुश  वास्तव में कोई भी स्थिति बहुत अच्छी या बहुत बुरी नहीं होती। हर स्थिति को स्वीकार कर उससे प्रसन्नता पाने का प्रयास करें। हमें अपने मन की कंडीशनिंग के कारण ही कोई भी स्थिति या वस्तु अच्छी या बुरी लगती है। अपने मन की इस कंडीशनिंग अथवा बंधन को तोड़कर हर स्थिति को स्वीकार करें। इससे हमारी परेशानी कम होकर प्रसन्नता में वृद्धि होगी। हम प्रायः सरदी में गरमी की, गरमी में बरसात की और बरसात में सूखे की कामना करते हैं जो हमारी प्रसन्नता को कम कर देता है। हर ऋतु का अपना आनंद है। हर ऋतु के मौसम व खानपान का आनंद लीजिए। जेठ जितना तपता है सावन उतना ही अधिक बरसता है। सावन का आनंद लेना है तो जेठ की चिलचिलरती घूप को स्वीकार करना अनिवार्य है। भयंकर शीत ऋतु के उपरांत ही वसंत का आनंद उठाना संभव है। जीवन में हमारी जितनी अधिक स्वीकार्यता होगी उतना ही अधिक आनंद हम पाएँगे क्योंकि अप्रिय या विषम परिस्थितियाँ सदैव नहीं रहतीं। खुश रहने के लिए करें दृष्टिकोण में परिवर्तन  प्रसन्न रहने के लिए अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना अनिवार्य है। सकारात्मक दृष्टिकोण से युक्त व्यक्ति ही वास्तव में प्रसन्न रह सकता है। किसी भी वस्तु या स्थिति से कोई भी व्यक्ति ख़ुश रह सकता है तो मैं और आप क्यों नहीं रह सकते? दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन द्वारा ही यह संभव है। हमें अपनी सीमाओं को स्वीकार करने से नहीं घबराना चाहिए। ये भी ज़रूरी है कि हम अपनी परिस्थितियों को बदलने की भरपूर कोशिश करें लेकिन ये भी तभी संभव है जब हम वर्तमान को स्वीकार कर उससे संतुष्ट रहने का प्रयास करें। वर्तमान परिस्थितियों में हमेशा असंतुष्ट रहने वाला व्यक्ति कभी भी परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में लेकर उनमें सुधार नहीं कर सकता। बच्चे प्रायः छोटी-छोटी चीज़ों में ख़ुशी ढूंढ लेते हैं और हर हाल में प्रसन्न रह सकते हैं। यदि वास्तव में प्रसन्नता चाहिए तो उन चीज़ों से अवश्य प्रसन्न होने का प्रयास कीजिए जिनसे बच्चों को प्रसन्नता मिलती है। जीवन में दृष्टिकोण में परिवर्तन द्वारा यह आसानी से किया जा सकता है। प्रकृति के सान्निध्य में अधिक समय व्यतीत करें: जब भी मौक़ा मिले प्रकृति के निकट जाने का प्रयास करें। पर्वतीय स्थानों की यात्राएँ करें। ट्रैकिंग करें। समुद्र तट अथवा नदियों के किनारे घूमें। शहरों में रहते हैं और बाहर जाने का कम अवसर मिलता है तो अपने आसपास के बड़े पार्कों व झीलों की सैर करने जाएँ व झालों में नौकाविहार करें। फूल-पत्तियों का अवलोकन करें। उनकी बनावट व रंगों को ध्यानपूर्वक देखें। पेड़ों के पास बैठें। बागबानी अथवा किचन गार्डनिंग करना न केवल हमारी रचनात्मकता में वृद्धि करता है अपितु उस रनात्मकता से प्रसन्नता भी मिलती हे। अँधेरी व चाँदनी रातों में छत पर बैठकर चाँद-तारों का अवलोकन करें। घर में कृत्रिम सजावटी वस्तुओं का ढेर लगाने की बजाय घर को प्राकृतिक वस्तुओं व ताज़ा फूलों से सजाएँ। लिविंग रूम में फूलों के गमले रखें। खुश  रहने के लिए करें बच्चों के साथ समय व्यतीत  बच्चों के साथ समय व्यतीत करना प्रसन्न रहने का अचूक नुस्ख़ा है। हम अपना बचपन वापस नहीं लौटा सकते लेकिन बच्चों के साथ समय गुज़ारने पर उसका आनंद अवश्य ले सकते हैं। बच्चे बड़े सरल हृदय होते हैं। उन्हीं की तरह सरल हृदय बनकर उनसे बात कीजिए। जब हम अपनी कुटिलता या अत्यधिक चतुराई का त्याग करके सीधे-सच्चे बन जाते हैं तो हमें सचमुच प्रसन्नता की अनुभूति होती है। बच्चों के साथ समय बिताना प्रसन्नतादायक होता है। बच्चों से कुछ सुनिए और उन्हें भी सुनाइए। बच्चों के साथ उनके ही खेल खेलिए। उनके साथ कोई प्रतियोगिता कीजिए। आप हारें या जीतें प्रसन्नता अवश्य मिलेगी। अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों की प्रसन्नता का ध्यान रखें यदि वास्तव में स्वयं प्रसन्न रहना चाहते हैं तो दूसरों की प्रसन्नता का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। यदि हमारे आसपास गरमी होगी तो हमें भी गरमी लगेगी और ठंड होने पर ठंड लगेगी। यदि हमारे आसपास के लोग प्रसन्न नहीं होंगे तो प्रसन्नता हमसे भी कोसों दूर रहेगी। यदि हम समृद्ध हैं लेकिन हमारे आसपास के लोग अभावग्रस्त हैं तो हमारी समृद्धि को भी ख़तरा बना रहेगा। यदि हमारे मित्र व संबंधी हमसे अधिक समृद्ध हैं तो कम से कम हमें तो परेशान नहीं करेंगे। इसी तरह यदि हमारे परिवार के सदस्य, मित्र व रिश्तेदार प्रसन्न हैं तो वो हमारी प्रसन्नता में बाधा नहीं बनेंगे। हमें भी चाहिए कि हम उनकी ख़ुशियों के बीच रोड़ा बनने की बजाय उनकी प्रसन्नता में वृद्धि के प्रयास करते रहें। उनकी प्रसन्नता भी हमारे ही हित में होगी। आसपास की सुंदरता से खुश  होना सीखें हमारा घर व बाल्कनी बहुत सुंदर नहीं है तो कोई दुख की बात नहीं लेकिन यदि हमारे पड़ौसियों के घर व उनकी बाल्कनियाँ सुंदर हैं और उनमें रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं तो सचमुच प्रसन्नता की बात है क्योंकि हम अपने घर पर या अपनी बाल्कनी में खड़े होकर आसपास के दृष्य ही देखते हैं। इस प्रसन्नता को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अपने आसपास के लोगों को अच्छी क़िस्म के रंग-बिरंगे व आकर्षक फूलों के बीज उपलब्ध करवाने का प्रयास करें। जब फूल खिलेंगे तो फूलों को बोने वाले ही नहीं आप भी प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। उनकी सुगंध आप तक भी अवश्य ही पहुँचेगी। सबसे प्रेम ख़ुशी का खुशनुमा  राज  प्रेम जीवन का अनिवार्य तत्त्व है। इसका मूल्य आँकना असंभव है। संसार में जितना प्रेम बढ़ेगा लोग उतने ही अधिक संतुष्ट व सुखी अनुभव करेंगे। सबसे प्रेम कीजिए। मन से प्रेम कीजिए। प्रेम में कोई लेनदेन न हो अपितु वह निस्स्वार्थ भाव से किया गया हो। जब हम निस्स्वार्थ व निष्छल प्रेम करेंगे तो अन्य लोग भी हमें वैसा ही प्रेम देंगेे जिससे हमारी प्रसन्नता में वृद्धि ही होगी। हमारा प्रेम संकुचित नहीं होना चाहिए। हम अपने … Read more

सुने अपने अंत : प्रेरणा की आवाज़

अपनी अंत : प्रेरणा से निर्णय लें | तब आप की गलतियाँ आपकी अपनी होंगीं , न की किसी और की – बिली विल्डर _________________________ जीवन अनिश्चिताओं से भरा पड़ा है | ऐसे में हर कदम – कदम हमें निर्णय लेने पड़ते हैं | कुछ निर्णय इतने मामूली होते हैं की उन का हमारी आने वाली जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ता | पर कुछ निर्णय बड़े होते हैं | जो हमारे आने वाले समय को प्रभावित करते हैं | ऐसे समय में हमारे पास दो ही विकल्प होते हैं | या तो हम अपनी अंत : प्रेरणा की सुने | या दूसरों की राय का अनुसरण करें | जब हम दूसरों की राय का अनुकरण करते हैं तब हम कहीं न कहीं यह मान कर चलते हैं की दूसरा हमसे ज्यादा जानता है | इसी कारण अपनी ” गट फीलिंग ” को नज़र अंदाज़ कर देते हैं |  वो निर्णय जिनके परिणाम भविष्य के गर्त में छुपे हुए हैं | उनके बारे में कौन कह सकता है की क्या सही सिद्ध होगा क्या गलत |कौन कह सकता है की आज हम जिस बच्चे के कैरियर के लिए सलाह ले या दे रहे हैं उस पर आगे चल कर उसे सफलता मिलेगी ही, या जिस रिश्ते को बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं वो आगे चल कर बेहतर साबित होगा या आत्मघाती कदम साबित होगा , कोई नहीं जानता एक नौकरी या व्यवसाय को छोड़कर जब दूसरे में जा रहे हैं वो भविष्य में फलदायी साबित होगा या नहीं |  अनिश्चितताओं से भरे जीवन में कोई भी निर्णय फलदायी होगा या नहीं न हमारा न किसी और का सुझाया हुआ, ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता | गलतियों की सम्भावना दोनों में है | हम केवल आज वो निर्णय ले सकते हैं जो हमें आज सही लग रहे हैं , चाहे वो हमारे द्वारा सुझाये हुए हों या दूसरे के द्वारा परन्तु जरूरी नहीं है इससे वही परिणाम आये जो हम चाहते हैं | ऐसे में बेहतर है हम वो निर्णय लें जो हमारी अंत : प्रेरणा कह रही है | अगर भविष्य में वो गलत भी साबित हुआ तो भी हम दूसरों पर आरोप मढ कर उनकी आलोचना करने से बच जायेंगे | बेवजह आलोचना कर के नकारात्मकता फैलाने के स्थान पर हम कोई अन्य निर्णय ले कर आगे बढ़ने की का प्रयास करेंगे |  हम अपने जीवन के उतार – चढाव का बेहतर तरीके से तभी संचालन कर सकेंगे जब हम अपनी जिंदगी की गाडी के ड्राइवर की सीट पर बैठे हो | अलबत्ता अपने निर्णय पर कायम रहने के लिए जरूरी है की हममें स्टेयरिंग पकड़ने की हिम्मत हो | वंदना बाजपेयी  पढ़ें ……… प्रेम की ओवर डोज अरे ! चलेंगे नहीं तो जिंदगी कैसे चलेगी बदलाव किस हद तक अहसासों का स्वाद

भाग्य बड़ा की कर्म

 “ भाग्य बड़ा है या कर्म “ ये एक ऐसा प्रश्न  है जिसका सामना हम रोजाना की जिन्दगी में करते रहते है | इसका सीधा – सादा   उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना की “पहले मुर्गी आई थी  या अंडा “का | वास्तव में देखा जाए तो भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं | कर्म से भाग्य बनता है और ये  भाग्य हमें ऐसी परिस्तिथियों में डालता रहता है जहाँ हम कर्म कर के विजयी सिद्ध हों  या परिस्तिथियों के आगे हार मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे और बिना लड़े  ही पराजय स्वीकार कर लें | भाग्य जड़ है और कर्म चेतन | चेतन कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है | जैसा की जयशंकर प्रसाद जी “ कामायनी में कहते हैं की कर्म का भोग, भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन-आनन्द। अब मैं अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कुछ तर्क देना चाहती हूँ | जरा गौर करियेगा की हम कहाँ – कहाँ भाग्य को दोष देते हैं पर हमारा वो भाग्य किसी कर्म  का परिणाम होता है | 1)कर्म जब फल की चिंता रहित हो तो सफलता दिलाता है  हमारी भारतीय संस्कृति  जीवन को जन्म जन्मांतर का खेल मानते हुए कर्म से भाग्य और भाग्य से कर्म के सिद्धांत पर टिकी हुई है |गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग के नाम से ही जाना जाता हैं | ये सच है की जन्म – जन्मांतर को तार्किक दृष्टि से सिद्द नहीं किया जा सकता | फिर भी कर्म योग के ये सिद्धांत आज विश्व के अनेक विकसित देशों में MBA के students को पढाया जा रहा है | और और इसे पुनर्जन्म पर नहीं तर्क की दृष्टि से सिद्ध किया जा रहा है | जैसा की प्रभु श्री कृष्ण गीता में कहते हैं की .. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। उसकी तार्किक व्याख्या इस प्रकार दी जाती है की ….फल की चिंता अर्थात स्ट्रेस या तनाव जब हम कोई काम करते समय जरूरत से ज्यादा ध्यान फल या रिजल्ट पर देते हैं तो तनाव का शिकार हो जाते हैं | तनाव हमारी परफोर्मेंस पर असर डालता है | हम लोग दैनिक जीवन की मामूली से मामूली बातों में देख सकते हैं की स्ट्रेस करने से थकान महसूस होती है , एनर्जी लेवल डाउन होता है और काम बिगड़ जाता है |पॉजिटिव थिंकिंग की अवधारणा इसी स्ट्रेस को कम करने के लिए आई | मन में अच्छा सोंच कर काम शुरू करो , जिससे काम में जोश रहे , दिमाग फ़ालतू सोंचने के बजाय काम पर फोकस हो सके | कई बार पॉजिटिव थिंकिंग के पॉजिटिव रिजल्ट देखने के बाद भी हम अपनी निगेटिव थिंकिंग को दोष न देकर कहते हैं …. अरे पॉजिटिव , निगेटिव थिंकिंग नहीं ये तो भाग्य है |J २ ) भाग्य नहीं गलत डिसीजन है असफलता का कारण  कई बार जिसे हम भाग्य समझ कर दोष देते हैं वो हमारा गलत डिसीजन होता है | उदाहरण के लिए किसी बच्चे की रूचि लेखक बनने की है | पर माता – पिता के दवाब में , या दोस्तों के कहने पर बच्चा गणित ले लेता है | निश्चित तौर पर वो उतने अच्छे नंबर  नहीं लाएगा | हो सकता है फेल भी हो जाए | अब परिवार के लोग सब से कहते फिरेंगे की मेरा बच्चा तो दिन रात –पढता है पर क्या करे भाग्य साथ नहीं देता |मैंने ऐसे कई बच्चे देखे जिन्होंने तीन , चार साल मेडिकल या इंजिनीयरिंग की रोते हुए पढाई करने के बाद लाइन चेंज की | और खुशहाल जिन्दगी जी | बाकी उसी को बेमन से पढ़ते रहे , असफल होते रहे और भाग्य को दोष देते रहे | क्या आप को नहीं लगता हमीं हैं जो भाग्य की ब्रांडिंग करते हैं | J J ३)प्रतिभा और परिश्रम बनाते हैं भाग्य   इसी प्रतियोगिता में ही शायद मैंने पढ़ा था की हर चाय वाला मोदी नहीं हो जाता | यानी हम ये मान कर चलते हैं की हर अँगुली बराबर होती है |J प्रतिभा को हमने सिरे से ख़ारिज कर दिया , और उन  स्ट्रगल्स को भी जो मोदी ने मोदी बनने के दौरान की | पूरे देश घूम – घूम कर जनसभाएं की | लोगों से जुड़ने का प्रयास किया | उनकी समस्याएं समझी , सुलझाई | क्या हर चाय वाला इतना करता है | या इतना महत्वाकांक्षी भी होता है | हम सब ने बचपन में संस्कृत का एक श्लोक पढ़ा है | उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥                   हम ये श्लोक पढ़कर एग्जाम पास कर लेते हैं | पर तर्क ये देते हैं की हम भी चाय बेंचते हैं | फिर हम मोदी क्यों नहीं बने | चाय वाला =चायवाला , सबको मोदी बनना चाहिए | अरे ,ये तो भाग्य है | J 4)सफलता बरकरार रखने के लिए भाग्य पर नहीं स्ट्रेटजी पर ध्यन दें   अब जरा गौर करते हैं , उन किस्सों  पर जिनमें शुरू में प्रतिभा बराबर होती है | कई बार शुरूआती प्रतिभा बराबर होने के बाद भी हम लगातार उतने सफल नहीं हो पाते | क्योंकि एक बार सफलता पाना और उसे बनाए रखना दो अलग – अलग चीजे हैं | उसके लिए अनुशासन , फोकस , अपने अंदर जूनून को जिन्दा रखना , असफल होने के बाद भी प्रयास न छोड़ना आदि कर्म आते हैं | जो लगातार करने पड़ते है | चोटी  पर बैठा व्यक्ति जिस स्ट्रेस को झेलता है , उस के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है | Our greatest weakness lies in giving up.  The most certain way to succeed is always to try just one more time.  — Thomas Edison काम्बली और तेंदुलकर का उदहारण अक्सर दिया जाता है |क्या सचिन तेंदुलकर की निष्ठा जूनून , लगन  , अनुशासित जीवन और हार्ड वर्क को हम नकार सकते हैं | पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के  ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने | J 5 )कर्म तय कराता है महा गरीबी से महा अमीरी का सफ़र   एक और स्थान जिसे हम भाग्य के पक्ष में रखते हैं | … Read more

अच्छा सोंचो … अच्छा ही होगा

वो देखो प्राची पर फ़ैल रहा है उजास दूर क्षितज से  चल् पड़ा है नव जीवन रथ एक टुकड़ा धूप पसर गयी है मेरे आँगन में जल्दी –जल्दी चुनती हूँ आशा की कुछ किरण  हंसती हूँ ठठाकर क्योंकि अब मेरी मुट्ठी में बंद है मेरी शक्ति  हर नयी चीज का आगमन मन को प्रसन्नता  से भर देता है। हर निशा के बाद नव भोर को भास्कर का अपनी किरणों का रथ ले कर आना ,चिड़ियों की चहचाहट ,नए फूलों का खिलना ,घर में अतिथि का आगमन भला किसके मन को हर्षातिरेक से नहीं भर देता। आज   हम समय के एक ऐसे मुहाने पर खड़े हैं , जहाँ आने वाले वर्ष  का नन्हा शिशु  माँ के गर्भ से निकल  अपने आकर -प्रकार के साथ धरती पर आने को  उत्सुक है। यह एक संक्रमण काल है | जहाँ बीता वर्ष  अपनी बहुत सारी  खट्टी -मीठी यादें देकर जा रहा है वहीं नूतन वर्ष से बहुत सारे सपनों के पूरा होने की आशा है |समय अपनी गति के साथ आगे बढ़ता है। एक का अवसान ही दूसरे का उदय है। निशा का अंत ही सूर्य का आगमन है ,सूर्य के उदय के साथ ही भोर के तारे का अस्त है। मृत्यु के शोक के साथ ही नव जीवन का हर्ष है। जय शंकर प्रसाद “कामायनी में कहते हैं। …………… “दुःख की पिछली रजनी बीचविकसता सुख का नवल प्रभात,एक परदा यह झीना नीलछिपाये है जिसमें सुख गात।                           ध्यान से देखा जाये तो हम जीवन पर्यंत एक संक्रमण बिंदु पर खड़े रहते हैं ,जहाँ हमारे सामने होता है एक गिलास आधा भरा हुआ ,आधा खाली। ये मुझ पर आप पर हम सब पर निर्भर है कि हम उसे किस दृष्टी से देखे। हमारे पास चयन की स्वतंत्रता है। सुकरात के सामने विष का प्याला रखा है ,शिष्य साँस रोके अंतिम प्रवचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सुकरात प्याले को देख कर कहते है “आई ऍम स्टिल अलाइव “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,सुकरात प्याला हाथ में ले कर कहते हैं “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,सुकरात जहर मुँह में लगाते हैं “मैं अभी भी जिन्दा हूँ ,कहकर उनकी गर्दन एक तरफ लुढ़क जाती है। …सुकरात अभी भी ज़िंदा हैं, अपने विचारों के माध्यम से ,क्योंकि उन्होंने मृत्यु  को नहीं माना जीवन को स्वीकार किया। यही अभूतपूर्व सोच उन्हें आम लोगों से अलग करती है।                                   प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो कहते हैं “मेरे पास आओ मैं तुम्हे कुछ दूंगा नहीं बल्कि जो तुम्हारे पास हैं वो ले लूंगा।” और तुम यहाँ से खाली हो कर जाओगे। यहाँ ओशों के अनुसार सद्गुरु एक चलनी की तरह हैं। जो शिष्य के समस्त नकारात्मक विचारों को निकाल देता है व् सकारात्मक विचारों को शेष रहने देता है। सर का बोझ हट्ते ही मनुष्य सफल सुखी व् प्रसन्न हो जाता है।                                        वास्तव में हर मनुष्य की जीवन गाथा उसके अमूर्त विचारों का मूर्त रूप है। विचार ही देवत्व प्रदान करते है विचार ही राक्षसत्व के धरातल पर गिराते हैं। अगर मोटे तौर पर वर्गीकरण किया जाये तो  विचार दो प्रकार के होते हैं. …सकारात्मक (प्रेम ,दया ,करुना ,उत्साह ,हर्ष आदि ),नकारात्मक (ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध ,वैमस्यता आदि )दिन भर में हमारे मष्तिष्क में आने वाले लगभग ६०,००० विचारों में जिन विचारों की प्रधानता होती है वही  हमरी मूल प्रकृति होती है.सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों  की तुलना में अधिक खुश व् सफल देखे गए हैं।                                   भारतीय संस्कृति भी अपने मूल -मन्त्र (सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।) में सकरात्मक सोच की अवधारणा को ही पुष्ट करती है |  निर्विवाद सत्य है ,जो लोग सब का भला सोचते हैं उनमें ऊर्जा का स्तर  ज्यादा होता है |                                                            विचारों का मानव जीवन पर कितना प्रभाव है ,इसका उदहारण मनसा वाचा कर्मणा के सिद्धांत पर चलने वाले  हिन्दू धर्म ग्रन्थ गीता में देखने को मिलता है |जहाँ व्रत ,पूजा उपवास से लेकर अच्छे और बुरे हर कर्म को विचार या भावना के आधार पर तामसी ,राजसी या सात्विक कर्म में बांटा जाता है। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं “हे अर्जुन मृत्यु के समय समस्त इन्द्रियाँ मन में समाहित हो जाती हैं और मन आत्मा में समाहित हो कर प्राणो के साथ निकल जाता है। संभवत:ये मन विचारों से ही निर्मित है। हमारे कर्म हमारे विचारों के आधीन हैं और कर्मों के आधीन परिस्तिथियाँ हैं |ब्रह्म कुमारी शिवानी जी भी अपने हर प्रवचन में विचार का महत्व बताती हैं | उनके अनुसार जिसे हम कर्म कहते हैं | वह एक न होकर तीन बिन्दुओं से बना है | विचार शब्द और क्रिया | अर्थात हम जो सोंचते , बोलते और करते हैं | तीनों मिल कर कर्म बनाते हैं | अगर हम किसी व्यक्ति काम और घटना के प्रति विचार दूषित रखते हैं परन्तु संभल कर बोलते हैं और काम भी ठीक से करते हैं | तब भी परिणाम नकारात्मक ही आएगा | इसलिए हम सब अक्सर ये प्रश्न करते हैं की हम तो सबके साथ अच्छा करते हैं फिर मेरे साथ ही बुरा क्यों होता है | कारण स्पष्ट है हमारे विचार नकारात्मक होते हैं |.                धर्म ग्रंथों में भी विचारों का महत्व बताया गया है | क्योंकि विचारों का प्रभाव कर्म से भाग्य के सिद्धन्त पर इस जन्म में ही नहीं अगले जन्म में भी होता हैं |  कहते हैं   जैसा हम जीवन भर सोचते हैं वैसा ही मन पर अंकित होता जाता है यही गुप्त भाषा (कोडेड लैंगुएज )हमारे अगले जन्म का प्रारब्ध बनती है। स्वामी  विवेकानंद के अनुसार नकारत्मक व् सकारत्मक उर्जायें मृत्यु के बाद हमारी आत्मा को खींचती हैं | हम अपने जीवन काल में रखे गए विचारों के आधार पर ही वहां पहुँचते हैं व् वैसा ही नकारात्मक या सकारात्मक जन्म पाते हैं |  अतः न सिर्फ इस जीवन के लिए बल्कि अगले जीवन के लिए भी एक- एक विचार महत्वपूर्ण है।  धर्म से इतर अगर दुनयावी … Read more

“नज़रे बदलो नज़ारे बदल जायेंगे” आपकीसोच जीवन बना भी सकती है बिगाढ़ भी सकती है

पंकज प्रखर,  सकारात्मक सोच व्यक्ति को उस लक्ष्य तक पहुंचा देती है जिसे वो वास्तव में प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसके लिए एक दृण सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है| जब जीवन रुपी सागर में समस्यारूपी लहरें हमे डराने का प्रयत्न तोहमे सकारात्मकता का चप्पू दृण निश्चय के साथ उठाना चाहिए | यदि आप ऐसा करते है तो निश्चितरूप से मानकर चलिए आप की नैया किनारे लग ही जाएगी | लेकिन ये निर्भर करता है की उस समयसमस्या के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है ,आप उन परिस्थितियों पर हावी होते है या परिस्थितियाँ आप पर दोपंक्तियाँ याद आती है नज़रें बदली तो नज़ारे बदले,कश्ती ने बदला रुख तो किनारे बदले|सोच का बदलना जीवन का बदलना है जी हाँ आप जब चाहे अपने जीवन को बदल सकते है| समाज में कई बार देखने को मिलता है की एक व्यक्ति जो पूरी मेहनत से काम करता हैवो उस व्यक्ति से पीछे रह जाता है जो कम समय में मेहनत करता है और अधिक सफल दिखता है| यह प्राय: विद्यार्थियों के साथ भी देखा जाता है कम मेहनत करने वाला  छात्र ज्यादा अंक अर्जित करने में सफल होता है| जबकि पूरे वर्ष लगन से पढ़ने वाला छात्र कई बार पिछड़ जाता है इसका कारण क्या है जी हाँ इसका कारण है हमारी सोच ,विचार और उसके अनुरूप किये गये हमारे कर्म हम जैसा सोचते है वैसे ही बनते चले जाते है | इसका एक सशक्त उदाहरण में आपको देना चाहूँगा | भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, गरीब मछुआरे के बेटे थे। बचपन में अखबार बेचा करते थे। आर्थिक कठनाईंयों के बावजूद वे पढाई करते रहे। सकारात्मक विचारों के कारण ही उन्होने भारत की प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक सफलताएं हासिल कीं। अपने आशावदी विचारों से वे आज भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व में वंदनीय हैं। उन्हे मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है। हमारे देश में ही नही अपितु पूरे विश्व में ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होने विपरीत परिस्थिति में भी अपनी सकारत्मक वैचारिक शक्ति से इतिहास रचा है। दूसरा उदाहरण आता है महानतम राजनेताऔं में से एक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल का जो बचपन में हकलाते थे, जिसके कारण उनके सहपाठी उन्हे बहुत चिढाया करते थे। अपनी हकलाहट के बावजूद चर्चिल ने बचपन में ही सकारत्मक विचारों को अपनाया और मन में प्रण किया कि, मैं एक दिन अच्छा वक्ता बनुंगा। उनके आशावादी विचारों ने विपरीत परिस्थिति में भी उन्हे कामयाबी की ओर अग्रसर किया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन को एक साहसी अनुभवी और सैन्य पृष्ठभूमि वाले प्रधानमंत्री की जरूरत थी। विस्टन चर्चिल को उस समय इस पद के लिये योग्य माना गया। राजनीति के अलावा उनका साहित्य में भी योगदान रहा। इतिहास, राजनीति और सैन्य अभियानों पर लिखी उनकी किताबों की वजह से उन्हे 1953 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये सब उपलब्धिया उनके सकारत्मक विचारों का ही परिणाम है। सकारात्मक सोच का तीसरा उदाहरण आता है जो क्रिकेट प्रेमी है उन्होंने कई बार क्रिकेटरों को कहते सुना होगा कि एक दो चौका पङ जाने से दूसरीटीम का मनोबल टूट गया जिससे वे गलत बॉलिंग करने लगे और मैच हार गये। वहीं कुछ खिलाङियों के साथ ये भी देखने को मिलता है कि वे पुरे सकारात्मक विचारों से खेलते हैं परिस्थिती भले ही विपरीत हो तब भी, जिसका परिणाम ये होता है कि वे हारी बाजी भी जीत जाते हैं। हमारी सकारात्मक सोच, सकारात्मक संवाद और सकारात्मक कार्यों का असर हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। वहीं निराशा तथा नकारात्मक संवाद व्यक्ति को अवसाद में ले जाते हैं क्योंकि विचारों में बहुत शक्ति होती है। हम क्या सोचते हैं, इस बात का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। इसीलिए अक्सर निराशा के क्षणों में मनोवैज्ञानिक भी सकारात्मक संवाद एवं सकारात्मक कहानियों को पढने की सलाह देते हैं। हमारे सकारात्मक विचार ही मन में उपजे निराशा के अंधकार को दूर करके आशाओं के द्वार खोलते हैं। सकारात्मक विचार की शक्ति से तो बिस्तर पर पङे रोगी में भी ऊर्जा का संचार होता है और वे पुनः अपना जीवन सामान्य तौर से शुरु कर पाता है। हमें अपने मस्तिष्क को महान विचारों से भर लेना चाहिए तभी हम महान कार्य संपादित कर सकते हैं। जैसे कि हम सोचे, मै ऊर्जा से भरपूर हूँ, आज का दिन अच्छा है, मैं ये कार्य कर सकता हूँ क्योकि विचार शैली विषम या प्रतिकूल परिस्थिति में भी मनोबल को ऊँचा रखती है। सकारात्मक व्यक्ति सदैव दूसरे में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। अक्सर देखा जाता है कि, हममें से कई लोग चाहे वो विद्यार्थी हों या नौकरीपेशा या अन्य क्षेत्र से हों काम या पढाई की अधिकता को देखकर कहने लगते हैं कि ये हमसे नहीं होगा या मैं ये नही कर सकता। यही नकारात्मक विचार उन्हे आगे बढने से रोकते हैं। यदि हम ना की जगह ये कहें कि हम कोशिश करते हैं हम ये कर सकते हैं तो परिस्थिति सकारात्मक संदेश का वातावरण निर्मित करती है। जिस तरह हम जब रास्ते में चलते हैं तो पत्थर या काटोँ पर पैर नही रखते उससे बचकर निकल जाते हैं उसी प्रकार हमें अपने नकारत्मक विचारों से भी बचना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार एक पेङ से माचिस की लाख से भी ज्यादा तीलियाँ बनती है किन्तु लाख पेङ को जलाने के लिए सिर्फ एक तीली ही काफी होती है। उसी प्रकार एक नकारात्मक विचार हमारे हजारों सपनो को जला सकता है। हमारे विचार तो, उस रंगीन चश्में की तरह हैं जिसे पहन कर हर चीज उसी रंग में दिखाई देती है। यदि हम सकारात्मक विचारों का चश्मा पहनेंगे तो सब कुछ संभव होता नजर आयेगा। भारत की आजादी, विज्ञान की नित नई खोज सकारात्मक विचारों का ही परिणाम है। आज हमारा देश भारत विकासशील से बढकर विकसित राष्ट्र की श्रेणीं में जा रहा है। ये सब सकारात्मक विचारों से ही संभव हो रहा है। अतः हम अपने सपनो और लक्ष्यों को सकारत्मक विचारों से सिचेंगे तो सफलता की फसल अवश्य लहलहायेगी। बस, केवल हमें सकारात्मक विचारों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना होगा। स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, “मन में अच्छे विचार लायें। उसी विचार को अपने जीवन का लक्ष्य … Read more

जो मिला नहीं उसे भूल जा

सीताराम गुप्तादिल्ली दुखों से बचने के लिए जीवन के बायोडाटा में सिर्फ़ उसे शुमार करें जो आज आपके पास हैउर्दू शायर अमजद इस्लाम ‘अमजद’ की ग़ज़ल का मत्ला है : कहाँ आ के रुकने थे रास्ते, कहाँ मोड़ था उसे भूल जा,वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा। जीवन में हमारी बहुत-सी ख़्वाहिशें होती हैं। उनमें से कुछ पूरी हो जाती हैं तो कुछ नहीं। हमारी जो ख़्वाहिशें पूरी नहीं हो पातीं हमारा सारा ध्यान उन्हीं पर केंद्रित रहता है। हम बार-बार उन्हीं अभावों को लेकर दुखी होते रहते हैं। अभाव ही हमारी ज़िंदगी का चिंतन बन जाता है जो हमारे दुखों का सबसे बड़ा कारण है। यही अभाव का चिंतन कालांतर में हमारे जीवन की वास्तविकता में परिवर्तित हो जाता है क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है। ख़्वाहिशों अथवा इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता लेकिन ये हक़ीक़त हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि अभावों के बावजूद हमें जीवन में बहुत कुछ मिला होता है। हमारी अनेक उपलब्धियाँ होती हैं। हमने अभावों के बावजूद हार नहीं मानी है और ईमानदारी से आगे बढ़ने का प्रयास करते रहे हैं। इन उपलब्धियों को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? लेकिन वास्तविकता यही है कि हम इन्हें नज़रअंदाज़ कर जो नहीं किया या जो नहीं मिला उसे सोच-सोचकर परेशान होते रहते हैं। हम बोर्ड या यूनिवर्सिटी के टॉपर न सही लेकिन हमने भी स्कूल-कॉलेजों में उतना ही वक़्त दिया है जितना टॉपर्स ने दिया है। हमारे प्रयास और कर्म महत्त्वपूर्ण हैं न कि परिणाम। उद्देश्य महत्त्वपूर्ण होते हैं न कि कमाई। हमारे पास विशाल प्रासादनुमा बंगला अथवा शानदार फार्महाउस नहीं है तो क्या रहने के लिए एक साधारण-सा घर तो है। हमारा अपना भरा-पूरा परिवार तो है जो हर प्रकार से हमारे जीवन में ख़ुशियाँ बिखेरता रहता है। कई लोग पूरी दुनिया में नितांत अकेले हैं। असंख्य लोगों के पास न तो सर छुपाने के लिए छत ही है और न ठीक से दो वक़्त की रोटी जुगाड़ ही। क्या हम अनेक लोगों से हर तरह से बेहतर नहीं हैं? क्या ये हमारी वर्तमान संतुष्टि के लिए पर्याप्त नहीं? हम और अच्छा घर बनाने या आर्थिक स्थिति को और सुदृढ़ करने का प्रयास करें लेकिन वर्तमान में हमारे पास जो उपलब्ध है उससे आनंदित होने में ही समझदारी है। जीवन में मानसिक संतुष्टि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है मात्र भौतिक जगत की उपलब्धियाँ नहीं। हमें जीवन की वास्तविकता को भी समझने का प्रयास करना चाहिए। निदा फ़ाज़ली की पंक्तियाँ हैं :जो जी चाहे वो मिल जाए, कब ऐसा होता है,हर जीवन जीवन जीने का समझौता होता है,अब तक जो होता आया है वो ही होना है,जीवन क्या है चलता-फिरता एक खिलौना है,दो आँखों में एक से हँसना एक से रोना है। जीवन एक विचित्र पहेली है। हम इसकी विचित्रता को समझकर उसके अनुरूप ढलने की बजाय उसके शिकार हो जाते हैं। जीवन में हार न मानना व आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना बहुत अच्छी बात है। हम बाहरी दुनिया में तो ख़ूब संघर्ष करते हैं लेकिन अपने अंदर बिलकुल नहीं झांकते। यदि हम अपने अंदर के संघर्ष को कम कर लें तो बाहरी संघर्ष भी कम हो जाए और हम अपेक्षाकृत सुखी हो जाएँ। हमें जीवन में जो मिला है उसे स्वीकार कर उससे प्यार शुरू कर दें तो हमारी अधिकांश समस्याएँ समाप्त हो जाएँ। जीवन में संघर्ष को समाप्त कर आनंदित रहते के लिए जीवन की वास्तविकता को समझने के साथ-साथ जीवन के सकारात्मक पक्षों को याद रखिए व नकारात्मक पक्षों को भुला दीजिए। जब हम नौकरी वग़ैरा के लिए अपना बायोडाटा तैयार करते हैं तो उसमें हम केवल अपनी शैक्षिक उपलब्धियों व प्राप्त अनुभवों का ही शुमार करते हैं अपनी अयोग्यताओं, असफलताओं अथवा कमज़ोरियों का नहीं। हम उन विषयों या भाषाओं का नाम लिखते हैं जिसमें हमने बीए एमए वगैरा किया होता है न कि उन विषयों या भाषाओं का नाम लिखते हैं जो हमने पढ़े ही नहीं। हम कभी नहीं लिखते कि मैंने इतिहास में एमए नहीं किया या प्रबंधन में डिप्लोमा नहीं किया फिर जीवन के बायोडाटा में क्यों उन चीज़ों का शुमार करते हैं जो हमें नहीं मिल पाई हैं? हम क्या हैं और क्या कर सकते हैं ये महत्त्वपूर्ण है न कि हमें क्या नहीं मिला और हम क्या नहीं कर सकते। यदि ये छोटी-सी बात हमारी समझ में आ जाए तो जीवन की दिशा बदल जाए। हम बिना कारण मोल ली परेशानियों से बच जाएँ। हमारे अतीत में सुख और दुख दोनों होते हैं। कुछ लोग अतीत के दुखों में डूबे रहते हैं। बुरे क्षणों को कोसते रहते हैं। अपने दुखों व असफलताओं के लिए दुनिया जहान को दोषी ठहराते रहते हैं। दोस्तो, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के प्रति शिकवे-शिकायत कभी कम नहीं होते। यदि किसी ने बुरे वक़्त में या ज़रूरत के वक़्त साथ नहीं भी दिया तो भी क्या? क्या ये महत्त्वपूर्ण नहीं कि आप किसी का अहसान लेने से बच गए? दूसरे उन परिस्थितियों में उनसे उबरने के लिए आपने कुछ न कुछ नया करने की ठानी होगी।  आपका दृष्टिकोण बदला होगा। आपके आत्मविश्वास व आपकी कुछ करने की क्षमता में वृद्धि हुई होगी। क्या ये आपकी उपलब्धि नहीं? क्या ये परिवर्तन महत्त्वपूर्ण नहीं? जीवन में आनंदित रहते के लिए घटना के सकारात्मक पक्ष अर्थात् प्राप्त उपलब्धियों को याद रखिए व नकारात्मक पक्ष अर्थात् असफलताओं को मत याद कीजिए। कई लोग वैसे तो बड़ी-बड़ी डींगें मारते हैं कि लाखों की कमाई है पर इस बात का रोना और भी शिद्दत से रोते हैं कि ख़र्च भी लाखों का है। कमाई से सुख नहीं ख़र्च से दुख। भाई साहब कमाई न होती तो क्या होता? कहाँ से करते लाखों का ख़र्च? इतनी अच्छी कमाई है कि सारे ख़र्चे बड़ी आसानी से निकल आते हैं ये सोचना ही अच्छा होगा। कई लोगों का सारा ध्यान कमाई पर होता है और प्राप्त कमाई से वो प्रसन्न रहते हैं तो कई लोगों का सारा ध्यान खर्चों पर लगा रहता है और खर्चों को देख-देखकर परेशान होते रहते हैं। मात्र विचार अथवा सोच से हम दुखी अथवा सुखी हो सकते हैं अतः सोच को सही व प्रसन्नता के अनुकूल बनाने का प्रयास करना ही श्रेयस्कर है। प्रसन्नता ही उत्तम … Read more

कहीं आपको फेसबुक का नशा तो नहीं ?

                        ऍफ़ बी  या फेस बुक  विधाता कि बनाई दुनियाँ के अन्दर एक और दुनियाँ ……… जीती जागती सजीव …कहते है कभी भारतीय ऋषि परशुराम ने विधाता कि सृष्टि के के अन्दर एक और सृष्टि बनाने कि कोशिश कि थी …. नारियल  के रूप में |उन्होंने आखें ,मुंह बना कर चेहरे का आकार दे दिया था ……. पर किसी कारण वश उस काम को रोक दिया | पर युगों बाद मार्क जुकरबर्ग ने उसे पूरा कर दिखाया फेस बुक या मुख पुस्तिका के रूप में | बस एक अँगुली का ईशारा और प्रोफाइल पिक के साथ  पूरी जीती –जागती दुनियाँ आपके सामने हाज़िर हो जाती है |भारत ,अमरीका ,इंगलैंड या पकिस्तान सब एक साथ एक ही जगह पर आ जाते हैं और वो जगह होती है आप के घर में आपका कंप्यूटर ,लैपटॉप या मोबाइल | कितना आश्चर्य जनक कितना सुखद | इंसान का अकेलापन दूर करने वाली ,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली साइट इतनी लोकप्रिय होगी इसकी कल्पना तो शायद मार्क जुकरबर्ग ने भी नहीं कि थी | आज फेस बुक दुनियाँ कि सेकंड नम्बर कि विजिट की  जाने वाली साइट है |पहली गूगल है | इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि आज इसके लगभग एक बिलियन रजिस्टर्ड यूजर्स हैं | यानी कि दुनियाँ का हर सातवाँ आदमी ऍफ़ बी पर है ……….. आप भी उन्हीं में से एक हैं ,हैं ना ? आज अगर आप किसी से मिलते हैं तो  औपचारिक बातों के बाद उसका पहला प्रश्न यही होता है “क्या आप ऍफ़ बी  पर हैं और अगर आप नहीं कहते हैं तो अगला आप को ऊपर से नीचे तक ऐसे देखता है “ जैसे आप सामान्य मनुष्य नहीं हैं बल्कि चिड़ियाघर से छूटे कोई जीव हों |                        अब आप अगर सामान्य मनुष्य है ,चिड़ियाघर से छूटे  जानवर नहीं तो इतना तो तय है कि आप भी ऍफ़ बी यूज( इस्तेमाल ) कर रहे होंगे |पर सोचने वाली बात यह है  कि आप ऍफ़ बी इस्तेमाल   कर रहे हैं या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं| यहाँ ओवर यूज से मेरा मतलब है आप दिन भर में एक घंटे से ज्यादा ऍफ़ बी यूज तो नहीं कर रहे हैं ….. यहाँ केवल वही  समय नहीं देखना है जो आप ऑनलाइन रहते है बल्कि वो समय भी जोड़ना है जब आप ऍफ़ बी ,उसके लाइक कमेंट ,स्टेटस के बारे में सोचने में बिताते हैं और मानसिक रूप से ऍफ़ बी पर ही रहते हैं क्योंकि वस्तुतः हम वहीँ होते हैं जहाँ हमारा मन होता है | ऐसे समय में हाथों से किया जाने वाला काम प्रभावित होता है |और अगर ऐसा है तो सतर्क हो जाइए क्योंकि  अकेलापन दूर करने वाली ,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली इस साइट का एक खतरनाक असर भी है …….. कि ये बहुत जल्दी ही आप को एडिक्ट बना लेती है | क्या मैं ऍफ़ बी एडिक्ट हूँ –                      ऊपर कि पंक्तियाँ पढ़ कर जरूर आप के मन में यह सवाल उठा होगा | आप जानना चाहते होंगे कि कहीं मैं ऍफ़ बी एडिक्ट तो नहीं हो गया | उत्तर आसान है ……… जैसे हर बीमारी के सिमटम्स होते हैं वैसे ही ऍफ़ बी एडिकसन  के कुछ सिमटम्स हैं | जरा गौर करिए कहीं आप में इनमें से कोई चिन्ह तो नहीं है | *आप के हाथ कहीं भी व्यस्त हो आपके दिमाग में एक अजीब सी बेचैनी रहती है कि मैंने आज जो स्टेटस डाला था उस पर कितने लाइक कमेंट आये होंगे | * आप बार –बार अपने मित्रों के स्टेटस और अपने स्टेटस में होने वाले लाइक कमेंट कि तुलना करते रहते हैं…. अपने स्टेटस पर कम लाइक कमेंट देख कर आप का मूड उखड जाता हैं और आप बच्चों और घरवालों पर बेवजह झल्लाने लगते हैं | *आप कहीं भी हों कुछ भी कर रहे हो थोड़ी –थोड़ी देर में मोबाइल खोल कर देख लेते हैं कहीं कुछ नया स्टेटस तो नहीं आया है ? *अगर आप का इंटरनेट नहीं चल रहा है तो या तो आप पास पड़ोस में जाकर ऍफ़ बी देखते हैं या अपने दोस्तों से फोन कर –कर के पूंछते हैं कि आपके स्टेटस पर कितने लाइक कमेंट हैं | * रात को सोते समय आप ऍफ़ बी देख कर ही सोते हैं और कोशिश करते हैं कि गुड नाईट का स्टेटस डाल दे * सुबह आँख खुलने के बाद आप सबसे पहले ऍफ़ बी देखते हैं * आप को अपने आस –पास कि घटनाओं से उतना फर्क नहीं पड़ने लगता जितना ऍफ़ बी कि घटनाओं से *आप को लगने लगता है कि अब अप दुनियाँ के सबसे व्यस्त इंसान हो गए हैं जिसके पास अब अपने जिगरी दोस्त से बात करने के लिए १० मिनट भी नहीं हैं जिसके साथ कभी आपकी घंटों बातें ही ख़त्म नहीं होती थी | * और सबसे खतरनाक आप टॉयलेट में भी मोबाइल ले जाकर  स्टेटस चेक करने लगे हैं |                       अगर आप में इनमें से कोई लक्षण है तो सावधान  आप ऍफ़ बी एडिक्ट हो गए हैं | वैसे भी अगर मोटे तौर पर देखा जाए जो लोग एक घंटे से ज्यादा ऍफ़ बी प्रयोग करते हैं उन सब में एडिक्ट होने कि प्रबल संभावना रहती है |इस नियम में केवल उन लोगों को छूट है जो व्यावसायिक तौर पर ऍफ़ बी का प्रयोग करते हैं …. जैसे अपने सामान के  प्रचार के लिए , किसी सामाजिक कारण के लिए या किसी मुद्दे पर जन जागरण के लिए …  आपके ऍफ़  बी अडिक्ट होने कि संभावना ज्यादा है अगर …… क )अगर आप ने जीवन में कोई लक्ष्य नहीं बनाया है                            इन्हें आप घुमंतू भी कह सकते हैं | इनमें से ज्यादातर वो किशोर व् युवा आते हैं जो  लक्ष्य विहीन सिर्फ पास होने के लिए पढ़ रहे है ….. जाहिर है वो इम्तिहान के आस –पास ही पढेंगे बाकी समय कुछ मौज –मस्ती करने कि इरादे से ऍफ़ बी पर आते हैं और फिर यही के हो कर रह जाते हैं | ख ) जो दूसरों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं                           आप इन्हें हीन भावना ग्रस्त या कुछ हद तक अवसाद में भी कह सकते … Read more

परमात्मा और उसके सेवक कभी भी छुट्टी नहीं लेते हैं!

– डा0 जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक,  सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) परमात्मा तथा उसके सेवक छुट्टी कर लें तो संसार तथा ब्रह्ममाण्ड में हाहाकार मच जाये:-              परमात्मा ने जब से यह सृष्टि बनायी तभी से अपने सेवकों सूर्य, वायु, चन्द्रमा, ग्रह, पर्यावरण, प्रकृति आदि को अपने द्वारा रचित मानव जाति की सेवा के लिए नियुक्त किया। सृष्टि का गतिचक्र एक सुनियोजित विधि व्यवस्था के आधार पर चल रहा है। ब्रह्ममाण्ड में अवस्थित विभिन्न नीहारिकाएं ग्रह-नक्षत्रादि परस्पर सहकार-संतुलन के सहारे निरन्तर परिभ्रमण विचरण करते रहते हैं। अपना भू-लोक सौर मंडल के वृहत परिवार का एक सदस्य है। सारे परिजन एक सूत्र में आबद्ध हैं। वे अपनी-अपनी कक्षाओं में घूमते तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य स्वयं अपने परिवार के ग्रह उपग्रह के साथ महासूर्य की परिक्रमा करता है। इतने सब कुछ जटिल क्रम होते हुए भी सौर, ग्रह, नक्षत्र एक दूसरे के साथ न केवल बंधे हुए हैं वरन् परस्पर अति महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते हैं। इस सृष्टि का रचनाकार परमात्मा कभी अवकाश नहीं लेता है तथा उसके सेवक सूर्य अपनी किरणों के द्वारा संसार को रोशनी तथा ऊर्जा से भरने के लिए सदैव बिना थके अपना कार्य करता रहता है। वायु निरन्तर बहते हुए सभी को सांसों के द्वारा जीवन प्रदान करती है। (2) परमात्मा के अवतारों से हमें कर्तव्य मार्ग पर डट जाने की शक्ति प्राप्त होती है:-             परमात्मा से प्रेरणा लेकर उनके अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध, अब्राहम, मुसा, महावीर, जरस्थु, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह भी जीवन पर्यन्त बिना छुट्टी लिए मानव जाति के उद्धार के लिए कार्य करते रहे। जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब परमात्मा मानव जाति के दुखों को दूर करके उनके जीवन में हर्ष, आनन्द, स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि भरने के लिए संसार के सबसे पवित्रतम हृदय वाले मानव की आत्मा में अवतरित होता है। परमात्मा ने अपने संदेश वाहक के रूप में राम, कृष्ण, बुद्ध, अब्राहम, मुसा, महावीर, जरस्थु, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह को युग युग में अपने मानव कल्याण के कार्य के लिए चुना है। विद्यालय ही केवल समाज के प्रकाश केंद्र हैं (3) परमात्मा की शिक्षाओं पर चलने वाले ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित होते हैं:-             अवतारों का जन्म भी मनुष्य की तरह संसार में किसी माँ की कोख से होता है। अवतारों का शरीर भी मनुष्य की तरह ही हाड़-मांस के बने होते हैं तथा इनकी देह भी नाशवान होती है। वे जीवन-पर्यन्त परमात्मा की इच्छा के लिए जीते हुए भौतिक शरीर को त्याग कर परमात्मा के लोक में चले जाते हैं। संसार से जाने के पूर्व ये अवतार मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए पवित्र पुस्तकंे जैसे गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस दे जाते हैं। अवतारों की एकमात्र इच्छा परमात्मा का सेवक बनकर दुखों तथा कष्टों से घिरी मानव जाति को कल्याण, विकास, प्रकाश, ज्ञान तथा मुक्ति की राह दिखाना होता है। ये अवतार अपनी मजबूत आत्मा के बल से भारी कष्ट उठाकर मानव जाति के जीवन में अपनी शिक्षाओं के द्वारा सुख, समृद्धि, यश तथा आनन्द भरकर जीवन यात्रा को सफल बनाते हैं। अवतारों के पास मानव जाति को सुखी बनाने के लिए परमपिता परमात्मा से प्राप्त विचार, मार्गदर्शन तथा प्रेरणा का खजाना होता है।  परमात्मा के द्वारा नियुक्त सभी अवतारों ने मानव जाति के जीवन को सुखी बनाने के लिए कार्य किया और कभी भी छुट्टी नहीं ली। (4) अपने लक्ष्य को हर पल याद रखना ही महानता की कुंजी है:-             परमात्मा तथा उनके अवतारों से प्रेरणा लेकर संसार के महापुरूष भी जीवन-पर्यन्त बिना छुट्टी लिए मानव जाति की एकता, खुशहाली, समृद्धि, विकास तथा न्याय के लिए कार्य करते रहे। महात्मा गांधी, पं0 जवाहर लाल नेहरू, डा0 अम्बेडकर, डा0 राधाकृष्णन, अब्राहम लिंकन, एडीशन, आइंस्टीन, मदर टेरेसा, ग्राहम बेल, मेरी क्यूरी, न्यूटन, आर्य भट्ट, जैम्स बाट, विनोबा भावे जैसे अनेक साधारण व्यक्ति महान इसलिए बने क्योंकि उन्होंने मानव जाति के कल्याण के कार्य से कभी छुट्टी नहीं ली। वे पूरे मनोयोग से मानव कल्याण संबंधी कार्य में लगे रहते थे। महापुरूषों ने अपने परिवारों का भरण पोषण भी भली प्रकार किया। वे भी साधारण लोगों की तरह खाते, पीते, सोते आदि सभी दिनचर्याऐं करते थे लेकिन अपने जीवन का उद्देश्य एक पल के लिए भी नहीं भूलते थे। यदि ये महापुरूष कार्य से अवकाश लेते तो मानव जाति की इतनी महत्वपूर्ण सेवा तथा समाजोपयोगी नई-नई खोजें न कर पाते। परमात्मा की नौकरी करने वालों को अंतिम सांस तक अवकाश प्राप्त नहीं होता है। शरीर बूढ़ा होकर कमजोर हो सकता है लेकिन आत्मा तथा मस्तिष्क कभी बूढ़े नहीं होते हैं। विश्व एकता कला दीप धरती से आतंकवाद को समाप्त करने के लिए जलायें (5) कर्तव्यपरायण व्यक्ति अपने कर्तव्यों को हर पल याद रखते हंै तथा उसके अनुरूप कार्य करते हैं:-             मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा मनुष्य एक आध्यात्मिक प्राणी है। मनुष्य के जीवन में भौतिकता, सामाजिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलन जरूरी है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर-परिवार के सदस्यों की शिक्षा, स्वास्थ्य, कैरियर, मुकदमें, नाते-रिश्तेदारी आदि के प्रति अपने कत्र्तव्यों को निभाना पड़ता है। साथ ही इससे आगे बढ़कर परमात्मा द्वारा निर्मित समाज की बेहतरी की चिन्ता भी करना चाहिए। संतुलित व्यक्ति अपने घर के कत्र्तव्यों को भली प्रकार पूरा करते हुए अपनी नौकरी तथा व्यवसाय से जुड़े कत्र्तव्यों को भी बड़े ही सुन्दर ढंग से पूरा करते हैं। प्रभु की राह पर चलते हुए नौकरी या व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए अन्य लोगों के मन में काफी विश्वास तथा सम्मान की भावना होती है जिसके कारण प्रभु की राह पर चलने वाले इन लोगों का भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक लाभ तथा यश भी अन्य की तुलना में काफी अधिक हो जाता है। लेकिन बेईमानी से नौकरी तथा व्यवसाय करने वालों की भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समृद्धि तथा लोकप्रियता बिना नींव के मकान की तरह होती है। (6) एक झोली में फूल भरे हैं एक झोली में काॅटे! कोई कारण होगा?:-             विश्व में वही परिवार, समाज, जाति तथा राष्ट्र उन्नति करता है जो कड़ी मेहनत तथा ईमानदारी से निरन्तर अपनी नौकरी या व्यवसाय करता है। इसके विपरीत जो ज्यादा छुट्टी तथा ज्यादा आराम करते हैं वे पिछड़ जाते हैं। कई लोग तो अपने शरीर के साथ ही मस्तिष्क को छुट्टी दे देते हैं। … Read more