सक्सेस के लिए जरूरी है हौसलों की उड़ान
विपरीत परिस्तिथियों में भी पा सकते हैं सफलता कु. इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ व्याख्याता (कंप्यूटर.साइंस) शा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय,नरसिंहपुर (म.प्र.) कुछ भी नहीं इस दुनिया में ‘असंभव’ । … बस, एक अवरोध का ‘अ’ ही तो हटाना हैं । … लो जी बन गया ‘संभव’ ।। हम अक्सर अपने जीवन में तब असफल नहीं होते जब किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने अभियान में विफ़ल हो जाते हैं बल्कि सही मायनों में हार वह हैं जब हम भरपूर प्रयास और जी-तोड़ मेहनत करने के भी बाद मिली पराजय को स्वीकार नही कर पाते और हताश होकर बैठ जाते हैं । फिर कभी ख़ुद को तो तो कभी दूसरों को कोसते हुये या फिर फ़िज़ूल से बहानों में उलझकर कर्म करने की जगह अपने आपको किसी खोल या कंदरा में छुपाकर हक़ीकत से आँख मिलाने से कतराते हैं । अमूमन होता यही हैं कि जब हम अपने देखे गये स्वपन या निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते तो अत्यधिक निराश हो जाते हैं जिससे प्रायः हमारा मनोबल टूट जाता हैं । ऐसी स्थिति में हम हमेशा अपनी हार का ठीकरा किसी और के सर पर फोड़कर या थोपकर ख़ुद को निर्दोष साबित करने में जुट जाते हैं और किसी ऐसी वजह को तलाश लेते हैं जो हमें संतुष्ट कर सके कि दोष हमारा नहीं वरन किसी और का था । इन्हीं परिस्थितियों में जन्म होता हैं कुछ तथाकथित आधारहीन से तर्कों का जिसे सामान्यतः ‘लक’ या ‘भाग्य’ का नाम दे दिया जाता हैं और फिर उसके उपर सारा इलज़ाम धरकर हम चिंतामुक्त हो आराम से सो जाते हैं । मेरा ख्याल हैं जो भी लोग तकदीर, किस्मत, भाग्य, ज्योतिष, भविष्यवाणी या ऐसे ही किसी अन्य खोखले शब्दों का सहारा लेते हैं और अपनी नाकामियों को इनके सर पर मढ़ देते हैं दरअसल वो ख़ुद ही भीतर से पोले होते हैं तभी उनको इस तरह की किसी बैशाखी की जरुरत पड़ती हैं क्योंकि इन्हें ख़ुद में तो कोई कमी नज़र आती नहीं न ही वे अपने दोष ही देखना चाहते हैं इसलिये ही इन अकर्मण्यों ने इस तरह के शब्दों को ईज़ाद किया हैं गर कभी सोचे तो समझ में आयेगा कि जीवन किसी अदृश्य हवाओं में लिखी इबारत या हथेलियों में खिंची लकीरों से नहीं बल्कि हमारे चलने और कर्म करने से आगे बढ़ता हैं । ●●●——————– क्या हैं भाग्य ??? … मन का हो तो कहते उसे ‘सौभाग्य’ । … मन का न हो तो कहते उसे ‘दुर्भाग्य’ । … ये सब हमारे ही गढ़े हुये शब्द हैं जनाब जीवन मिलता एक बार ही तो कहो ‘अहोभाग्य’ । ————————————–●●● जीवन को सुख-दुःख, हार-जीत, गम और ख़ुशी का सम्मिश्रण कहा गया हैं इसलिये इसमें इंद्रधनुष की तरह भावनाओं का हर एक रंग मिलता हैं जो हमें समय के साथ अलग-अलग अहसास देकर एकरसता से उबरता हैं और जीने की उमंग भी देता हैं ऐसे में जब ख़ुशी के बाद गम या जीत के बाद हार मिल जाये तो घबराना नहीं चाहिये बल्कि नकारात्मक परिस्थितियों से भी सीख लेना चाहिये जो सिर्फ हमें निराश ही नहीं करती बल्कि कोई सीख भी देती हैं जिसे यदि हम समझ जाये तो उसी हार से जीत का रास्ता भी बना सकते हैं । ये सिर्फ हमारी सोच का ही नतीजा होता हैं जो हम विपरीत माहौल में हथियार डाल देते हैं जबकि यदि गंभीरता से सोचे और मनन करे तो पायेंगे कि इनमें ही जीत के सुप्त बीज पड़े होते हैं जिन्हें केवल अपनी मनोनुकूल अवस्था न होने के कारण हम नजरअंदाज़ कर देते हैं जबकि यदि हम इन्हें खोजकर परिश्रम से सींचे तो वो हमारे सपने के साकार वृक्ष में परिणित होकर हमें अपनी सुखद छाया में आश्रय दे सकते हैं । जब किसी जीतने वाले की कहानी पढ़ते या सुनते हैं तो पता चलता हैं कि उनमें और हममें क्या अंतर हैं क्यों वो सर्वोच्च और हम निचले पायदान पर बैठे हैं और किस तरह उन्होंने इस तरह के किसी स्थिति के आने पर हार मानकर बैठने की बजाय अपनी पराजय को जय में बदला । ये सही हैं कि ऐसे हालात में बहुत कम ही लोग होते हैं जो उठ पाते हैं और फिर उन ऊंचाइयों तक पहुँच पाते हैं जिसका स्वपन उन्होंने देखा था बाक़ी तो सब किसी न किसी न किसी बहाने की दीवार खड़ी कर उसके पीछे अपने आपको छुपा लेता हैं और अपनी विफलता का सही आकलन करने की बजाय पलायन का रास्ता चुन लेते हैं । असफ़लता के हौसलों की उड़ान : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ अक्सर लोग अपनी चाँद सी दूर नज़र आने वाली मंजिल को पाने की खातिर उसकी राह में आने वाली रुकावटों से घबरा जाते हैं और मिलने वाली पराजय का आकलन करने की बजाय उसे ही अपना मुस्तकबिल मान वही थम जाते हैं लेकिन जीत का चाँद तो उसका ही होता हैं ना जो उसके लिए सबसे लड़ जाते हैं । हार में छिपी हैं उसे जीतने की राह । देख मनन कर के फिर ले परचम लहरा ।। सुनने में बड़ा अविश्वसनीय लगता हैं लेकिन ऐसा बहुत लोगों की ज़िन्दगी में हुआ हैं जब वो अपने उद्देश्य को पूरा करने में असफ़ल हुये पर उन्होंने हार नहीं मानी और जिस वजह से सफ़लता उनसे दूर जा रही थी उसका मार्ग भी उन्होंने अपनी उसी असफलता से खोजा । आज जिस रौशनी में हम अपना जीवन गुजारते हैं जिस कृत्रिम प्रकाश से हम एक क्षण में अंधकार को दिन में बदल लाते हैं वो जिस शख्स की देन हैं उसे अपने जीवनकाल में इसे बनाने के लिए एक लंबा समय और अनवरत प्रयोग करने पड़े तब जाकर वो एक सही विधि खोज पाये जिससे उसे पता चला कि वो अब तक जिन तरीकों से इसे ईज़ाद करने की कोशिश कर रही था दरअसल वो सभी युक्तियाँ गलत थी लेकिन अपनी सफ्लता श्रेय भी उसने उन्हीं सारे असफ़ल प्रयोगों को दिया । जी हाँ, मैं उसी महान वैज्ञानिक ‘थॉमस अल्वा एडिसन’ की बात कर रही हूँ जिसने हम सबको ‘बल्ब’ के रूप में ही एक अनुपम सौगात नहीं दी जिसकी बदौलत हमने रात को दिन में बदल पाने में सक्षम हुये बल्कि अपनी असीमित कल्पनाशक्ति से एक हजार से अभी अधिक अविष्कारों … Read more