एक पाती भाई /बहन के नाम ( अर्चना नायडू )
”रक्षा -बंधन ; एक भावान्जलि ” एक थी , छोटी सी अल्हड़ मासूम बहना। … छोड़ आई अपना बचपन ,तेरे अँगना , बारिश की बूंदो सी पावन स्मृतियाँ , नादाँ आँखे उसकी उन्मुक्त भोली हँसी, …. क्या भैया ! तुमने उसे देखा है कही ,………… ! छोटी सी फ्राक की छोटी सी जेब में , पांच पैसे की टाफी की छीना -छपटी में , मुँह फूलती उसकी ,शैतानी हरकते स्लेट के अ आ के बीच ,मीठी शरारते क्या ?… तुम उसे याद करते हो कभी ,…. ! दिनभर, अपनी कानी गुड़िया संग खेलती , माँ की गोद में पालथी मारे बैठती , ,जहा दो चोटियों संग माँ गूंथती , हिदायतों भरी दुनियादारी की बातें , बोलो भैया ,!वो मंजर भूल तो नहीं जाओगे कभी.… ,! आज तेरे उसी घर – आँगन में, ठहर जाये ,वैसी ही मुस्कानों की कतारे , हंसी -ठहाकों की लम्बी महफिले , हम भाई-बहनो के यादो से भींगी बातें , और ख़त्म ना हो खुशियो की ये सौगाते कभी भी,… ! राखी के सतरंगे धागो में गूँथे हुए अरमान , तुमने दिए ,मेरे सपनो को अनोखे रंग , और ख्वाईशों को दिए सुनहरे पंख , और अब सफेद होते बालो के संग , स्नेह की रंगत कम न होने देना कभी.… ! माथे पर तिलक सजाकर ,नेह डोर बांधकर, भैया मेरे ,राखी के बंधन को निभाना , छोटी बहन को ना भुलाना , इस बिसरे गीत के संग , अपनी आँखे नम न करना कभी …. ! आँखों में , मीठी यादो में बसाये रखना, इस पगली बहना का पगला सा प्यार , यही याद दिलाने आता है एक दिन , बूंदो से भींगा यह प्यारा त्यौहार, बस ,भैया तुम मुझे भूला ना देना, कभी। …. ”’ ई. अर्चना नायडू जबलपुर अटूट बंधन