करवटें मौसम की – कुछ लघु कवितायें
डेज़ी नेहरा जी के काव्य संग्रह ” करवटें मौसम की ” जो की ” विश्वगाथा” प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है, की कवितायें पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे कवियत्री के संवेदनशील मन में एक गंभीर चिंतन चल रहा है , जिसे वो कविता के माध्यम से आम पाठकों के लिए सरल से सरल शब्दों में कहना चाहती है, परन्तु जब बात मन की हो तो इसके आयाम इतने विस्तृत होते हैं कि पाठक उस गहराई में बहुत देर तक घूमता रह जाता है, और प्रवेश करता है एक ऐसी सुरंग में जहाँ मानव मन की गुत्थियाँ खुलती चली जाती हैं | कम शब्दों गहरी बात कह देना डेजी जी की विशेषता है | उनके लघुकथा संग्रह ‘कटघरे’ में ये कला और उभर कर आई है | दोनों ही पुस्तकों में मानव मन पर उनकी सूक्ष्म पकड़ दिखाई पड़ती है | हम आपके लिए डेजी नेहरा जी के काव्य संग्रह ” करवटें मौसम की ” से कुछ लागु कवितायें लाये हैं | आप भी थोड़े शब्दों में गहरी बात का आनंद लीजिये | करवटें मौसम की – गहरी बात कहती कुछ लघु कवितायें 1)मौसम कुदरत ने तो भेजा था हर मौसम हर एक के लिए फिर जाने… बटोरने वालों ने किया जुर्म या मौसमों ने स्वयं ही किया पक्षपात किसी की झोली में झरे पतझड़ सारे किसी के हिस्से खिले वसंत ही वसंत 2 )पंख पंख आते -जाते रहते मेरी दुनिया में मौसमों के साथ यही भला है वर्ना … मैं भूल न जाता जमीं पे पैर रखना पढ़ें – कटघरे : हम सब हैं अपने कटघरों में कैद ३)जिंदगी उलझे रहे तो है जिंदगी वरना ‘सजा’है बस विश्वास है तो है ‘बंदगी’ वरना ‘खता ‘है बस उबर गए तो है ‘मुक्ति’ वरना ‘तपस्या’है बस 4)मुस्काने हमारी मुस्काने … पहले भी थी स्वत :ही बेवजह किशोरावस्था में मुस्काने…. अभी भी हैं कढ़ी-गढ़ी दमदार परिपक्वता में 5)हर साल सुना है करते हो आत्मावलोकन हर वर्ष के अंत में लेते हो नया प्रण हर बार , प्रारम्भ में , इन दो दिनों को छोड़ क्या करते हो सारा साल ? 6 )परिवर्तन वक्त बदलता है संग ‘सब’ नियम है, सुना है तुम बदलें रंग ‘सब’ फिर मैंने ही ये पड़ाव क्यूँ चुना है ? 7)आस अब गम न हो कोई तुमसे लो! छोड़ दी हर ख़ुशी की आस जो जुडी है तुम से 8)शुक्रिया सपनों की वादी से सच की छाती तक अमृत की हंडिया से विष की नदिया तक ले आये तुम तुम्हारा शुक्रिया !! कि … इंसान की हार से जीवन के सार से परिचय जो करवा दिया इतनी जल्दी 9)…मान लेती हूँ तुझमें साँसे मेरी जानती हूँ मुझमें साँसे तेरी ‘मान’लेती हूँ कि … बनी रहूँ मैं बनाएं रखूँ तुझको 10)रंग इन्द्रधनुषी रंगों से परे भी होते हैं कई रंग दिखा दिए सारे ही मुझको शुक्रिया जिन्दगी वरना काली-सफ़ेद भी कोई जिंदगी होती ? 11)श्रेष्ठ योनि जब सब होकर भी कुछ नहीं तुम्हारे पास अपनों से मिली बेरुखी जी करती हताश नाउम्मीद, अकेला और बदहवास ‘मन ‘ ठोकर सी मारता है इस जीवन को जिसे कभी योनियों में श्रेष्ठ स्वयं माना था उसने यह भी पढ़ें … बहुत देर तक चुभते रहे कांच के शामियाने काहे करो विलाप -गुदगुदाते पंचों और पंजाबी तडके का अनूठा संगम मुखरित संवेदनाएं -संस्कारों को थाम कर अपने हिस्से का आकाश मांगती एक स्त्री के स्वर अंतर -अभिव्यक्ति का या भावनाओं का आपको समीक्षा “ करवटें मौसम की – कुछ लघु कवितायें “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |