प्रश्न चिन्ह …आखिर क्यों?…. कटघरे में खड़े मिथकीय पात्र
प्रश्नों से परे कोई भी नहीं है …ना मैं, ना आप और ना ही हमारे मिथकीय पात्र | हिन्दू दर्शन की खास बात ये हैं की प्रश्नों को रोका नहीं गया है अपितु अधिक से अधिक प्रयास किया गया है की व्यक्ति प्रश्न पूछे और उसकी जिज्ञासाएँ शांत की जाएँ | अनेक ग्रंथों की शुरुआत ही प्रश्नों से हुई है …नचिकेता के प्रश्नों से आत्मा के गूढ़ रहस्य का ज्ञान होता है तो अर्जुन के प्रश्नों से कर्म योग का | इसलिए प्रश्न पूछे जाने का स्वागत सदा से होता रहा है | रामायण या महाभारत हों या अन्य ग्रंथ ऐतिहासिक/मिथकीय की स्पष्ट परिभाषों में नहीं आ पाते | प्रश्न ये भी उठता है की इनमें तारीख का जिक्र क्यों नहीं किया| जो भी उस काल के बारे में कहा गया संकेतों में कहा गया | इसका एक कारण संभवत: ये भी रहा होगा की ये कथाएँ किसी काल के क्रम में कैद ना हो जाएँ वो चरित्र केवल उस काल के चरित्र कह कर उसी दृष्टि से ना रोक दिए जाएँ वो हर युग में पहुंचे ….और उस युग के प्रश्नों का समाधान उसी की भाषा वाणी और भेष में करें | यही कारण है की ये कथाएँ आज भी हैं | नए प्रश्नों के साथ, नए उत्तरों के साथ | पौराणिक काल के लेखकों से अभी तक उन कथाओं को समझने और उस समय लोगों को समझाने के लिए तमाम कथाएँ, उपकथाएँ जोड़ी गईं | अब ये पढ़ने वाले के ऊपर है की उन कथाओं को अक्षरश: वही मान ले, उनकी आज के काल-क्रम के आधार पर पुनरव्याख्या करें या तर्क से खारिज करें,पर कथाएँ शाश्वत हैं और रहेंगी क्योंकि वो हर व्यक्ति को ये प्रश्न पूछने, विचारने, खोजने की छूट देती हैं | “सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा … स्वामी विवेकानंद अब प्रश्न ये भी उठ सकता है की हम सत्य को हजार तरीके से क्यों कहते हैं? उत्तर यही है की हर व्यक्ति अपनी क्षमता व योग्यता के आधार पर उसे समझ सकता है और समझाने वाला इसी आधार पर प्रयास करता है | मूल उद्देश्य अटके रहना नहीं समझ कर आत्मसात करना है | प्रश्न चिन्ह …आखिर क्यों?…. कटघरे में खड़े मिथकीय पात्र कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए वंदना गुप्ता जी लेकर आई है काव्य संग्रह “प्रश्न चिन्ह…. आखिर क्यों?” यहाँ उन्होंने कुछ पौराणिक पात्रों से प्रश्न पूछ कर उन्हें उत्तर देने को विवश किया | ये प्रश्न समस्त स्त्रियों की तरफ से पूछे गए हैं और कुछ में पात्रों ने स्वयं ही अपने काल के नायकों से प्रश्न पूछे हैं तो कुछ ने स्वयमेव ही प्रश्नों के उत्तर दिए हैं | जैसे-जैसे आप संग्रह में आगे बढ़ते जाएंगे इनमें से कुछ प्रश्न आपके प्रश्न बन जाएंगे तो कई बार कुछ नए प्रश्न भी खड़े हो जाएंगे .. क्योंकि जिज्ञासाओं का उठना और उनका समाधान कर शांत किये जाना ही मूल उद्देश्य रहा है | पहला प्रश्न गांधारी से है जिन्होंने आँखों पर पट्टी बांधी है .. ये प्रश्न समस्त स्त्री जाति की तरफ से है की आखिर क्या कारण है की आप ये शिक्षा आज की नारियों को देती हैं की वो अपने पति के कार्यों के लिए कभी प्रश्न ना उठाए | आँखों पर पट्टी बांध कर बस रबर स्टैम्प बन कर हर गलत पर मोहर लगाती चले | गांधारी से प्रश्न एक युग चरित्र पति पारायण का खिताब पा स्वयं को सिद्ध किया बस बन सकी सिर्फ पति परायणा नहीं बन सकीं आत्मनिर्भर कर्तव्यशील भी नहीं बन सकीं नारी के दर्प का सूचक पहले तो गांधारी अपने पक्ष में उत्तर देती हैं फिर धीरे -धीरे उनका स्वर कमजोर पड़ने लगता है | लेखिका ललकार कर कहती है ॥ जीवन के कुरुक्षेत्र में कितनी नारियां होम हो गईं तुम्हारा नाम लेकर क्या उठा पाओगी उन सबके कत्ल का बोझ लेखिका ताकीद करती है …. इतिहास चरित्र बनना अलग बात होती है और इतिहास बदलना अलग आगे देखिए …. क्योंकि गांधारी बनना आसान था और है मगर नारी बनना ही सबसे मुश्किल अपने तेज के साथ अपने दर्प के साथ अपने ओज के साथ बुद्ध से प्रश्न … बुद्ध से प्रश्न करते हुए वो पूछती है की सन्यास के लिए जाते समय यशोधरा को क्यों नहीं बता कर गए | संसार को त्याग कर सन्यास लेने वाले पत्नी के आगे क्यों कमजोर पड़ गए | बुद्ध उत्तर देते हैं …. शायद मैं ही तुम्हारे द्रण निश्चय के आगे टिक नहीं पाता तुम्हारी आँखों में देख नहीं पाता वो सच की देखो स्त्री हूँ सहधर्मिणी हूँ पर तुम्हारी पगबाधा नहीं इसी बात को राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त “यशोधरा में कुछ इस प्रकार लिखते हैं … स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में – क्षात्र-धर्म के नाते सखि, वे मुझसे कहकर जाते। “मुक्तिबोध” शीर्षक कविता में राम और कैकेयी की वार्ता के माध्यम से वो युग -युग से कैकेयी पर लगे आरोपों को ना सिर्फ बेआधार बताती हैं बल्कि कैकेयी को एक ऐसे वचन की रक्षा करते हुए दिखती हैं जिसके कारण कैकेयी का चरित्र नई ऊँचाइयों को छूता है | पुनः मैथलीशरण गुप्त जी की “साकेत” में कैकेयी की मानवीय भूल दिखाई गई है | जहाँ वो इसके लिए पश्चाताप करती है | करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊं? राई भर भी अनुताप न करने पाऊं?” उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी, सबमे भय, विस्मय और खेद भरती थी। और “क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी, मेरा मन ही रह सका ना निज विश्वासी। यहाँ कैकेयी को नए दृष्टिकोण से देखिए .. मैंने राम को वचन दिया जीवन उसके चरणों में हार दिया अपने प्रेम कए प्रमाण दिया तो क्या गलत किया Xxxxxxxxx मैंने प्रेम में स्व को मिटाकर राम को पाया है सशक्त स्त्री उर्मिला उर्मिला रामायण में एक उपेक्षित पात्र रहीं हैं |हालांकि वो एक सशक्त स्त्री हैं | कई लोगों ने इस बात को समझ कर उर्मिला के ऊपर लिखा हैं | प्रस्तुत संग्रह में उर्मिला स्वयं अपनी कहानी … Read more