प्रश्न चिन्ह …आखिर क्यों?…. कटघरे में खड़े मिथकीय पात्र

प्रश्न चिन्ह .. आखिर क्यों ?

    प्रश्नों से परे  कोई भी नहीं है …ना मैं, ना आप और ना ही हमारे मिथकीय पात्र | हिन्दू दर्शन की खास बात ये हैं की प्रश्नों को रोका नहीं गया है अपितु अधिक से अधिक प्रयास किया गया है की व्यक्ति प्रश्न  पूछे और उसकी जिज्ञासाएँ शांत की जाएँ | अनेक ग्रंथों की शुरुआत ही प्रश्नों से हुई है …नचिकेता के प्रश्नों से आत्मा के  गूढ़ रहस्य का ज्ञान होता है तो अर्जुन के प्रश्नों से कर्म योग का | इसलिए प्रश्न पूछे जाने का  स्वागत सदा से होता रहा है |   रामायण या महाभारत हों या अन्य ग्रंथ ऐतिहासिक/मिथकीय की स्पष्ट परिभाषों में नहीं आ पाते | प्रश्न ये भी उठता है की इनमें तारीख का जिक्र क्यों नहीं किया| जो भी उस काल के बारे में कहा गया संकेतों में कहा गया | इसका एक कारण संभवत: ये भी रहा होगा की ये कथाएँ किसी काल के क्रम में कैद ना हो जाएँ वो चरित्र केवल उस काल के चरित्र कह कर उसी दृष्टि से ना रोक दिए जाएँ वो हर युग में पहुंचे ….और उस युग के प्रश्नों का समाधान उसी की भाषा वाणी और भेष में करें |   यही कारण है की ये कथाएँ आज भी  हैं | नए प्रश्नों के साथ, नए उत्तरों के साथ | पौराणिक काल के लेखकों से अभी तक उन कथाओं को समझने और उस समय लोगों को समझाने के लिए तमाम कथाएँ, उपकथाएँ जोड़ी गईं | अब ये पढ़ने वाले के ऊपर है की उन कथाओं को अक्षरश: वही मान ले, उनकी आज के काल-क्रम के आधार पर पुनरव्याख्या करें  या तर्क से खारिज करें,पर कथाएँ शाश्वत हैं और रहेंगी क्योंकि वो हर व्यक्ति को ये प्रश्न पूछने, विचारने, खोजने की छूट देती हैं |   “सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा … स्वामी विवेकानंद अब प्रश्न  ये भी उठ सकता है की हम सत्य को हजार तरीके से क्यों कहते हैं? उत्तर यही है की हर व्यक्ति अपनी क्षमता व योग्यता के आधार पर उसे समझ सकता है और समझाने वाला इसी आधार पर  प्रयास करता है | मूल उद्देश्य  अटके रहना नहीं समझ कर आत्मसात करना है | प्रश्न चिन्ह …आखिर क्यों?…. कटघरे में खड़े मिथकीय पात्र कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए वंदना गुप्ता जी लेकर आई है काव्य संग्रह “प्रश्न चिन्ह…. आखिर क्यों?” यहाँ उन्होंने कुछ पौराणिक पात्रों से प्रश्न पूछ कर उन्हें उत्तर देने को विवश किया | ये प्रश्न समस्त स्त्रियों की तरफ से पूछे गए हैं और कुछ में पात्रों ने स्वयं ही अपने काल के नायकों से प्रश्न पूछे हैं तो कुछ ने स्वयमेव ही प्रश्नों के उत्तर दिए हैं | जैसे-जैसे आप संग्रह में आगे बढ़ते जाएंगे इनमें से कुछ प्रश्न आपके प्रश्न बन जाएंगे तो कई बार कुछ नए प्रश्न भी खड़े हो जाएंगे .. क्योंकि जिज्ञासाओं  का उठना और उनका समाधान कर शांत किये जाना ही मूल उद्देश्य रहा है |   पहला प्रश्न गांधारी से है जिन्होंने आँखों पर पट्टी बांधी है .. ये प्रश्न समस्त स्त्री जाति की तरफ से है की आखिर क्या कारण है की आप ये शिक्षा आज की नारियों को देती हैं की वो अपने पति के कार्यों के लिए कभी प्रश्न ना उठाए | आँखों पर पट्टी बांध कर बस रबर स्टैम्प बन कर हर गलत पर मोहर लगाती चले | गांधारी से प्रश्न एक युग चरित्र पति पारायण का खिताब पा स्वयं को सिद्ध किया बस बन सकी सिर्फ पति परायणा नहीं बन सकीं आत्मनिर्भर कर्तव्यशील भी नहीं बन सकीं नारी के दर्प का सूचक   पहले तो गांधारी अपने पक्ष में उत्तर देती हैं फिर धीरे -धीरे उनका स्वर कमजोर पड़ने लगता है | लेखिका ललकार कर कहती है ॥ जीवन के कुरुक्षेत्र में कितनी नारियां होम हो गईं तुम्हारा नाम लेकर क्या उठा पाओगी उन सबके कत्ल का बोझ लेखिका ताकीद करती है …. इतिहास चरित्र बनना अलग बात होती है और इतिहास बदलना अलग   आगे देखिए ….   क्योंकि गांधारी बनना आसान था और है मगर नारी बनना ही सबसे मुश्किल अपने तेज के साथ अपने दर्प के साथ अपने ओज के साथ   बुद्ध से प्रश्न …           बुद्ध से प्रश्न करते हुए वो पूछती है की सन्यास के लिए जाते समय यशोधरा को क्यों नहीं बता कर गए | संसार को त्याग कर सन्यास लेने वाले पत्नी के आगे क्यों कमजोर पड़ गए | बुद्ध उत्तर देते हैं …. शायद मैं ही तुम्हारे द्रण निश्चय के आगे टिक  नहीं पाता तुम्हारी आँखों में देख नहीं पाता वो सच की देखो स्त्री हूँ सहधर्मिणी हूँ पर तुम्हारी पगबाधा नहीं इसी बात को  राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त  “यशोधरा में कुछ इस प्रकार लिखते हैं … स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में – क्षात्र-धर्म के नाते सखि, वे मुझसे कहकर जाते। “मुक्तिबोध” शीर्षक  कविता में राम और कैकेयी की वार्ता के माध्यम से वो युग -युग से कैकेयी पर लगे आरोपों को ना सिर्फ बेआधार बताती हैं बल्कि कैकेयी को एक ऐसे वचन की रक्षा करते हुए दिखती हैं जिसके कारण कैकेयी का चरित्र  नई ऊँचाइयों को छूता है | पुनः मैथलीशरण गुप्त जी की “साकेत” में कैकेयी की मानवीय भूल दिखाई गई है | जहाँ वो इसके लिए पश्चाताप करती है | करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊं? राई भर भी अनुताप न करने पाऊं?” उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी, सबमे भय, विस्मय और खेद भरती थी। और   “क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी, मेरा मन ही रह सका ना निज विश्वासी। यहाँ कैकेयी को नए दृष्टिकोण से देखिए .. मैंने राम को वचन दिया जीवन उसके चरणों में हार दिया अपने प्रेम कए प्रमाण दिया तो क्या गलत किया Xxxxxxxxx मैंने प्रेम में स्व को मिटाकर राम को पाया है सशक्त स्त्री उर्मिला                उर्मिला रामायण में एक उपेक्षित पात्र रहीं हैं |हालांकि वो एक सशक्त स्त्री हैं | कई लोगों ने इस बात को समझ कर उर्मिला के ऊपर लिखा हैं | प्रस्तुत संग्रह में उर्मिला स्वयं अपनी कहानी … Read more

बंद दरवाजों का शहर – आम जीवन की खास कहानियाँ

समीक्षा -बंद दरवाजों का शहर

आज बात करते हैं सशक्त कथाकार, उपन्यासकार रश्मि रविजा जी के कहानी संग्रह “बंद दरवाजों का शहर” की | यूँ तो रश्मि जी की कहानियाँ पत्र -पत्रिकाओं में पढ़ती ही आ रही थी और पसंद भी कर रही थी पर उनके पहले उपन्यास “काँच के शामियाने” ने बहुत प्रभावित किया | इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण दस्तक दी | इसके बाद कई वेब पोर्टल्स पर उनके उपन्यास पढे | रश्मि जी की लेखनी की खास बात यह है की वो अपने आस -पास के आम जीवन के चरित्र उठाती है और उन्हें बहुत अधिक शब्दगत आभूषणों से सजाए बिना अपनी विशिष्ट शैली में इस तरह से प्रेषित करती हैं कि वो पाठक को अपनी जिंदगी का हिस्सा लगने लगे | इसके लिए वो कहानी की भाषा और परिवेश का खास ख्याल रखती हैं | यहाँ पर एक बात खास तौर से कहना चाहूँगी की कहानी जिंदगी का हिस्सा लगने के साथ-साथ जिंदगी में, रिश्तों में, मन में इतनी गहरी पैठ बनाती हैं कि कई बार आश्चर्य होता है की हमारे आप के घरों की चमचमाती फर्श के उजालों के के नीचे छिपे अँधेरों तक वो कैसे देख पाती हैं | वो कहानी के आलोचकों की दृष्टि से किए गए वर्गीकरण को नकार देती और वो बिना परवाह किए सीधे अपने पाठकों से संवाद करते हुए वो कहती हैं जो वो कहना चाहती है .. उनकी कहानियों में तर्क हैं, प्रेम है अवसाद है, सपने हैं तो खुशियां भी झलकती हैं और झलकता है एक कहानीकार का संवेदनशील हृदय, तार्किक दिमाग | तो आइए झाँकते हैं आकर्षक कवर से बंद इन दरवाजों के पीछे | बंद दरवाजे हमेशा से रहस्य का प्रतीक रहे हैं | आखिर कौन रहता होगा इनके पीछे ? क्या होता होगा इनके अंदर ? कैसे लोग होने वो ? बंद दरवाजों का शहर – आम जीवन की खास कहानियाँ रश्मि  रविजा संग्रह की पहली कहानी “चुभन टूटते सपनों के किरचों की” एक ऐसी कहानी है जो पढ़ने के बाद आपके दिमाग में चलती है .. बहस करती है, दलील देती है | अभी तक हम सुनते आए हैं कि “प्यार किया नहीं जाता हो जाता है” पर ये कहानी प्रेम और विवाह के बीच तर्क को स्थान देती है | प्यार भले ही हो जाने वाली चीज हो .. किसी भी कारण से हुआ आकर्षण, एक केमिकल लोचा आप कुछ भी कहें पर विवाह सोच समझ के लिया जाने वाला फैसला है | पहले ये फैसला परिवार लेता था अपनी सोच -समझ की आधार पर |फिर प्रेम विवाह होने लगे तब ये फैसला लड़का -लड़की प्रेम के आधार पर लेने लगे | जब विवाह हो जाता है तो कई साल बाद फ़र्क नहीं पड़ता कि वो प्रेम विवाह था या माता -पिता द्वारा तय किया गया | सब जोड़े एक से नजर आते हैं | विवाह की सफलता -असफलता के प्रतिशत में भी फ़र्क नहीं पड़ता | ये कहानी नई पीढ़ी के माध्यम से एक नई शुरुआत करती है .. जो प्रेम तो करती है पर प्रेम में अंधी हो कर विवाह नहीं कर लेती | विवाह के समय तर्क को स्थान देती है | यू पी बिहार से आकर मुंबई में रहने वाले एक आम माध्यम वर्गीय परिवार की दो बहनों की अलग परवरिश, अलग सोच, किसी के टूटे सपनों की किरचें, किसी के तर्क के आधार पर कहानी को इस तरह बुना है कि पाठक इसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाता | इस कहानी पर फिलहाल बाल मोहन पांडे जी का शेर .. इसीलिए मैं बिछड़ने पर सोगवार नहीं सुकून पहली जरूरत है तेरा प्यार नहीं पहली कहानी के ठीक उलट दूसरी कहानी “अनकहा सच” एक मीठी सी असफल प्रेम कहानी है | जहाँ दो बच्चे (क्लास मेट) एक दूसरे से लड़ते झगड़ते हुए एक दूसरे से प्रेम कर बैठते हैं | एक तरफ उन्हें अपना प्रेम नजर आ रहा होता है और दूसरे का झगड़ा | जो उन्हें प्रेम को स्वीकार करने में बाधा डालता है | जब इस प्रेम का खुलासा होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | दोनों अपनी -अपनी जिंदगी में खुश भी रहते हैं पर पहले प्यार की ये चुभन कभी टीस बनके कभी फुहार बन के दिल में बनी ही रहती है | आज के फास्ट ट्रैक लव और ब्रेकअप के जमाने में ये कहानी पुराने जमाने के प्रेम की मिठास याद दिला देती है | हो सकता है की पाठक एक पल को सोचे क्या आज भी ऐसा होता है ? फिर खुद ही कहे हो भी तो सकता है आखिर जिंदगी है ही इतनी अलग ..इतनी बहुरंगी | दुष्चक्र कहानी जीवन के “सी-सॉ” वाले झूले के उन दो बिंदुओं को उठाती है जिनके बीच संतुलन साधना बहुत जरूरी है | ये दो बिन्दु हैं कैरियर और परिवार, खासकर बच्चे | ये कहानी एक बच्चे की कहानी है जिसके पिता बाकी परिवार के साथ उसे टेन्थ में किसी रिश्तेदार के पास छोड़कर दुबई नौकरी करने चले जाते हैं | कहानी बच्चे के ड्रग के दुष्चक्र में फँसकर ड्रग एडिक्ट बनने और रिहैब में जाकर इलाज करा कर स्वस्थ होने के साथ आगे बढ़ती है | कहानी की खास बात ये है कि ये पूरी तरह से माता -पिता के विरोध में नहीं है | बच्चे का रिस्पॉन्स भी महत्वपूर्ण है.. चाहे वो अपने नए आए भाई -बहन के प्रति हो या परिस्थितियों में बदलाव के प्रति | ये कहानी सभी के मनोविज्ञान की सीवन उधेड़ती है | तो फिर गुलजार साहब का शेर .. कहने वालों का कुछ नहीं जाता सहने वाले कमाल करते हैं “बंद दरवाजों का शहर” कहानी जिसके नाम से संग्रह का नाम रखा गया है, मेट्रो सिटीज के अकेलेपन को दर्शाती है | हम सब जो छोटे शहरों के बड़े आँगन वाले घरों से निकलकर पहली बार किसी मेट्रो शहर में रहने जाते है तो एक अजनबीयत से गुजरते हैं | यहाँ बूढ़े बुजुर्ग घर की बाहर खाट डालकर मूंगफली कुतरते नहीं मिलते ना ही दरवाजे के बाहर खेलते बच्चे, स्वेटर बुनती महिलाये | दिखता है तो बस कॉक्रीट का जंगल, ऊंची अट्टालिकाओं में ढेर सारे फ्लैट .. और उनके बाद दरवाजे … Read more

शिलाएं मुस्काती हैं-प्रेम के भोजपत्र पर लिखीं  यामिनी नयन की कविताएँ 

शिलाएं मुस्काती हैं-प्रेम के भोजपत्र पर लिखीं  यामिनी नयन की कविताएँ 

  नारी की काया  में प्रवेश कर कोई भी रचनाकार स्त्री की पीड़ा  को उतनी  साफगोई से व्यक्त नहीं कर सकता जितनी वाक् निपुणता से एक महिला सृजनधर्मी | फिर भी यह आवश्यक है कि यह पीड़ा उसकी झेली या भोगी हुई हो| आत्मसात की हो संत्रस्त महिला  की त्रासदी | आजकल समय के शिलाखंड पर प्रेम की अभीप्सा  से लेकर  प्रेम में छली  गई किशोरियों, परित्यक्ताओं, भुलाई हुई स्त्रियों या  खुरदरे  दाम्पत्य जीवन पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है |इस में  भोगा और ओढ़ा हुआ दोनों हैं |विमर्शवादियों का हल्ला -गुल्ला भी | यामिनी नयन गुप्ता हिंदी कविता की  ऐसी स्थापित साहित्यधर्मी  है जो  महिलाओं के मन की उथल -पुथल,बदलती सामाजिक जीवन शैली से पैदा  हुई बेचैनी और नए समीकरणों को सशक्त स्वर दे रही हैं |उनके स्वर में छिछली भावुकता नहीं, महिलाओं के हर्ष –विषाद  की गहरी अनुभूति है| साक्षी हैं ‘शिलाएँ  मुस्काती हैं’ नामक संकलन की बासठ कविताएँ | शिलाएं मुस्काती हैं-प्रेम के भोजपत्र पर लिखीं  यामिनी नयन की कविताएँ    शिलाएं मुस्काती हैं की कविताओं में चाहे सामाजिक सरोकार हों या जीवन की निजता के  प्रश्न ; इनमें  जुड़ा है  ”प्रेम ,नेह ,और देह का त्रिकोण”|”व्याकुल मन का संगीत”  और प्रेम में पड़े होने का एहसास |”प्रेम ,नेह और देह” की इस यात्रा में कभी देह पिछड़ जाती है ‘अदेह’ को जगह देने हेतु, तो कहीं  सशक्त  साम्राज्ञी बन बैठती है (अब मैंने जाना -क्यों तुम्हारी हर आहट पर मन हो जाता है सप्तरंग\मैं  लौट जाना चाहती हूँ अपनी  पुरानी दुनिया में देह से परे —बार बार तुम्हारा आकर कह देना\यूँ ही -\मन की बात \बेकाबू जज्बात ,\मेरे शब्दोँ में जो खुशबू है \तुम्हारी अतृप्त बाँहोँ की गंध है)|  कहाँ  देह से परे की पुरानी दुनिया ,कहाँ ‘अतृप्त बाँहोँ की गंध’ |  हर मंजर बदल गया|  छा गई प्रेम की खुमारी — (तुम संग एक संवाद के बाद \पृष्ठों पर उभरने लगती हैं \सकारात्मक कविताएँ \निखरने लगते हैं उदासी के घने साये \छा जाता है स्याह जीवन में\इंद्रधनुषी फाग)| प्रेम में डूबी स्त्री को प्रेम के अतिरिक्त और कुछ दीखता ही नहीं | वह प्रेमास्पद से नहीं, उसके प्रेम से प्रेम करती है (मुझे तुम से नहीं \तुम्हारे प्रेम से प्रेम है  \तुम खुद को -प्रेम से नहीं कर पाते हो अलग \और अर्जुन के लक्ष्य सदृश्य \मुझे दीखता है बस प्रेम )| स्त्री ”हर काल  ,हर उमर  में’  बनी रहना चाहती है प्रेयसी | वैवाहिक जीवन उसके लिए विडंबना है ,जिसमें हैं ”गृहस्थी की उलझने\पौरुष दम्भ से जूझती पति  की लालसाएँ–जबकि ये  चाहती  हैं ”कि बची रहे जीने की ख्वाइशों की जगह \यांत्रिक जीवन से परे \बनी रहे नींदों में ख्वाबोँ  की जगह ‘| नारी विमर्शवादी अनामिका कहती हैं —‘बच्चे उखाड़ते हैं/ डाक टिकट/ पुराने लिफाफों से जैसे-/ वैसे ही आहिस्ता-आहिस्ता/ कौशल से मैं खुद को/ हर बार करती हूँ तुमसे अलग”! अनामिका जी भूल गईं कि प्रेम संबंधों को जोड़ता है,उखड़ता नहीं | खटास से भरे होते हैं प्रेम विहीन सम्बन्ध | पर समय बदल रहा है|अलग कर लेना सरल हो चुका है | सुलभ हैं ‘‘मनचाहे साथी” जिनकी ” प्रेमिकाएँ \कभी बूढ़ी न हुईं \साल दर साल बीतते \वर्षों  बाद भी रहीं प्रेमी के दिल में \स्मृति में कमसिन, कमनीय\उस उम्र की तस्वीर बन कर \महकती रहेंगी वो स्त्रियां \किताबों में रखे सुर्ख गुलाब की तरह ”| सीधी बात है विवहिता स्त्री  की उलझनों से मुक्त, कमनीय जीवन बिताया जाय | फिर परिवार का क्या होगा?स्त्री पुरुष का मिलन नैसर्गिक है-कुछ नैसर्गिक आवश्यक्ताओं की पूर्ती के लिए | ‘अतृप्त बाँहोँ की गंध’ से कहीं अधिक गंधमयी सुगन्ध  से प्लावित जीवन| डॉ. पद्मजा शर्मा को दिए एक साक्षात्कार में प्रसिद्ध कथाकार साहित्यभूषण सूर्यबाला ने कहा– ”देह पर आकर स्त्री मुक्ति का सपना टूट जाता है और एवज में बाजार की गुलामी मिलती है, स्त्री को | पुरुष से मुक्ति की कामना पुरुष वर्चस्वी बाजार की दासता से आ जुड़ती है|स्वयं को वस्तु  (कमोडिटी )बनाने के विरोध को लेकर चलने वाली स्त्री आज स्वयं अपने शरीर की  सबसे अनमोल पूँजी को वस्तु (कमोडिटी )बना कर बाजार के हवाले कर रही है”| यामिनी का कवि  वस्तु  या कमोडिटी के जंजाल से बचा कर प्रेम की शुचिता को बनाए  रखना चाहता है|यद्यपि वह चूकता नहीं  प्रश्न उठाने से  — ‘‘मेरी छवि ,मेरे बिम्ब और संकेतों  में \गर तुम बांच नहीं सकते प्रेम \तो कैसा है तुम्हारा प्रेम \और कैसा समर्पण \रास  नहीं आ रहा है मुझे\तुम्हारा होकर भी ,न होने का भाव” | एक प्रश्न और –पत्नी बड़ी या प्रेमिका? |विमर्शवादी मंतव्य है कि पत्नियाँ कभी प्रेमिका नहीं बन पातीं| कंचन कुमारी कहती हैं ‘’तुम्हारी दुनियाँ में पत्नियाँ प्रेमिकाएँ नहीं होती।पत्नियाँ नहीं पहुँचती चरमसुख तक \यह हक है सिर्फ प्रेमिकाओं का\पत्नियाँ डरती है तुम्हारे ठुकराने से,\प्रेमिकाएँ नहीं डरा करती\, वहाँ  होता है विकल्प \सदैव किसी और साथी का.. अर्थात सब कुछ अस्थायी है| एक देह का चरमसुख नहीं दे पाया, तो दूसरा सही ,दूसरा नहीं तो तीसरा| प्रेम न हुआ तीहर है,जब चाही बदल ली | फिर यह कहना व्यर्थ है कि प्रेम में पड़ी स्त्री के मन में, दिल की गहराई में,उनींदी आँखोँ में हर पल हर क्षण प्रेमी की सुखद छुअन के एहसास भरे होते हैं | क्या जरूरत थी कबीर को यह कहने की ”प्रेम न बाडी  ऊपजे , प्रेम न हाट बिकाई ,राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई” | शायद आयातित आधुनिकता और  बाजारी संस्कृति में बुढ़िया गए हैं कबीर | कोरोना संक्रमण से हाल ही में दिवंगत हुए जाने-माने  साहित्यकार प्रभु जोशी ने अपने  अंतिम लेख में कहा कि ” मेरा शरीर मेरा’’  जैसा  नारा” (स्लोगन) अश्लील साहित्य के व्यवसायियों की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकीलों ने दिया था। उसे हमारे साहित्यिक बिरादरी में राजेन्द्र यादव  ने उठा लिया और लेखिकाओं की एक बिरादरी ने अपना आप्त वाक्य बना लिया’’। विमर्शवादी मंतव्य को स्पष्ट करते हुए कवि की कहन हैं कि पत्नियाँ के लिए ”मन चाहे स्पर्श ,आलिंगन \चरम  उत्कर्ष के वह  पल \ सदा रहे कल्पना में ही\कभी उतर नहीं पाते वास्तविकता के धरातल पर”| देहातीत संबंधों की बात सिमट कर रह जाती है चरमसुख और प्रणयी की मुलायम छुअन में | विमर्शवादियों की ऐसी बातें कवि ने बहुत ही संयत और शालीनता के साथ स्पष्ट की … Read more

अपेक्षाओं के बियाबान-रिश्तों कि उलझने सुलझाती कहानियाँ

अपेक्षाओं के बियाबान

    डॉ. निधि अग्रवाल ने अपने अपने पहले कहानी संग्रह “अपेक्षाओं के बियाबान” से साहित्य  के क्षेत्र में एक जोरदार और महत्वपूर्ण दस्तक दी है | उनके कथानक नए हैं, प्रस्तुतीकरण और शिल्प प्रभावशाली है और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये कहानियाँ हमारे मन के उस हिस्से पर सीधे दस्तक देती हैं जो हमारे रिश्तों से जुड़ा है | जिन्हें हम सहेजना चाहते हैं बनाए रखना चाहते हैं पर कई बार उन्हें छोड़ भी देना पड़ता है | और तो और कभी- कभी किसी अच्छे रिश्ते की कल्पना भी हमारे जीने कि वजह बन जाती है | महत्वपूर्ण बात ये है कि लेखिका रिश्तों  की गहन पड़ताल करती हैं और सूत्र निकाल लाती हैं| इस संग्रह कि कहानियाँ  ….हमारे आपके रिश्तों  की कहानियाँ है पर उनके नीचे गहरे.. बहुत गहरे  एक दर्शन चल रहा है | जैसे किसी गहरे समुद्र में किसी सीप के अंदर कोई मोती छिपा हुआ है .. गोता लगाने पर आनंद तो बढ़ जाएगा, रिश्तों के कई पहलू समझ में आएंगे |  अगर आप युवा है तो अपने कई उनसुलझे रिश्तों के उत्तर भी मिलेंगे |   कवर पर लिखे डॉ. निधि के शब्द उनकी संवेदनशीलता और  भावनाओं पर पकड़ को दर्शाते हैं..   “दुखों का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता| किसान फसल लुटने पर रोता है |प्रेमी विश्वास खो देने पर |दुख की तीव्रता नापने का कोई यंत्र उपलबद्ध हो तो रीडिंग दोनों की एक दिखाएगा | किसान की आत्महत्या और और प्रेमी की आत्महत्या पर समाज कि प्रतिक्रियाएँ भले ही भिन्न हों, पर जीवन और मृत्यु के बीच किसी एक को चुनने कि छटपटाहट एक जैसी होती है| पीछे छोड़ दिए गए अपनों के आंसुओं का रंग भी एक समान होता है|” अपेक्षाओं के बियाबान-रिश्तों कि उलझने सुलझाती कहानियाँ संग्रह की पहली कहानी “अपेक्षाओं के बियाबान”जिसके नाम पर संग्रह है, पत्र द्वारा संवाद की शैली में लिखी गई है | यह संवाद पाखी और उसके पिता तुल्य  दादा के बीच है | संवाद के जरिए सुखी दाम्पत्य जीवन को समझने की कोशिश की गई है | एक तरफ दादा हैं जो अपनी कोमा मेंगई  पत्नी से भी प्रेम करते हैं, संवाद करते हैं | शब्दों की दरकार नहीं है उन्हें, क्योंकि  उन्होंने सदा एक दूसरे के मौन को सुना है | वहीं पाखी है जो अपने पति से संवाद के लिए तरसती है, उसका पति जिंदगी की दौड़ में आगे -आगे भाग रहा है और वो अपेक्षाओं के बियाबान में | अपेक्षाएँ जो  पूरी नहीं होती और उसे अवसाद में घेर कर अस्पताल  तक पहुंचा देती हैं | एक छटपटाहट है, बेचैनी है .. जैसे आगे भागते हुए साथी से पीछे और पीछे छूटती जा रही है .. कोई गलत नहीं है, दोनों की प्राथमिकताएँ, वो भी अपनी ही गृहस्थी  के लिए टकरा रही है |क्या है कोई इसका हल?   “दाम्पत्य जल में घुली शक्कर है .. पर मिठास विद्धमान होती है| पर बिना चखे अनुभूति कैसे हो?   चखना जरूरी है|इसके लिए एक दूसरे को दिया जाने वाला समय जरूरी है | भागने और रुकने का संतुलन ..   “यमुना बैक की मेट्रो”  एक अद्भुत कहानी है | हम भारतीयों पर आरोप रहता है कि हम घूरते बहुत हैं| कभी आपने खुद भी महसूस किया होगा कि कहीं पार्क में, पब्लिक प्लेस पर या फिर मेट्रो में ही हम लोगों को देखकर उनके बारे में, उनकी जिंदगी के बारे में यूं ही ख्याल लगाते हैं कि कैसे है वो ..इसे अमूमन हम लोग टाइम पास का नाम देते हैं | इसी टाइम पास की थीम पर निधि एक बेहतरीन कहानी रचती हैं | जहाँ  वो पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं, किसी मनोवैज्ञानिक की तरह उनके मन की परते छीलती चलती है| महज आब्ज़र्वैशन के आधार पर लिखी गई ये कहानी पाठक को  संवेदना के उच्च स्तर तक ले जाती है | कहानी कहीं भी लाउड नहीं होती, कुछ भी कहती नहीं पर पाठक की आँखें भिगो देती है |   जैसे एक टीचर है जो कौशांबी से चढ़ती है| हमेशा मेट्रो में फल खाती है | शायद काम की जल्दी में घर में समय नहीं मिलता | फिर भी चेहरे पर स्थायी थकान है | एक साँवली सी लड़की जो कभी मुसकुराती नहीं | पिछले दो महीनों में बस एक बार उसे किसी मेसेज का रिप्लाय करते हुए मुसकुराते देखा है| तनिष्क में काम करने वाली लड़की जो कभी जेवर खरीद नहीं पाती ..अनेकों पात्र, चढ़ते उतरते .. अनजान अजनबी, जिनके दुख हमें छू जा हैं | यही संवेदनशीलता तो हमें मानव बनाती है|  तभी तो ऑबसर्वर सलाह (मन में) देता चलता है | एक एक सलाह जीवन का एक सूत्र है |जैसे ..   “उतना ही भागों कि उम्र बीतने पर अपने पैरों पर चलने कि शकी बनी रहे| उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लगाने पर भी कोई कंधा समीप नजर नहीं आता”   “अभी पंखों को बाँधें रखने पर भी पंखों को समय के साथ बेदम हो ही जाना है | वो अनंत आकाश की उन्मुक्त उड़ान से विमुख क्यों रहे”   “फैटम लिम्ब”एक मेडिकल टर्म है, जिसमें पैर/हाथ या कोई हिस्सा  काट देने के बाद भी कई बार उस हिस्से में दर्द होता है जो अब नहीं है | ये एक मनोवैज्ञानिक समस्या है| कहानी उसके साथ रिश्तों में साम्य  बनाते हुए उन सभी रिश्तों को फैन्टम लिम्ब की संज्ञा देती है जो खत्म हो चुके हैं .. पर हम कहीं ना कहीं उससे लिंक बनाए हुए उस पीड़ा को ढो रहे हैं| जो कट चुका है पर जद्दोजहद इस बात की है कि हम उसे कटने को, अलग होने को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए ढो रहे हैं | कहानी को सुखांत किया है | सुखांत ना होती तब भी अपने उद्देश्य में सफल है |   “परजीवी” स्त्रियों के मन की तहों को खोलती एक मीठी सी मार्मिक कहानी है | मीठी और मार्मिक ये दो विरोधाभासी शब्द जानबूझ कर चुने | कहानी की शुरुआत माँ कि मृत्यु पर भारत आती लड़की के माँ की स्मृतियों  में लौटने से शुरू होती है पर एक स्त्री के मन की गांठों को खोलती है .. उसके भाव जगत की पड़ताल करती है … Read more

कमरा नंबर 909-दर्शनिकता को समेटे सच कि दास्तान

कमरा नंबर -909

– डॉ. अजय कुमार शर्मा डॉक्टर  होने के साथ-साथ एक संवेदनशील साहित्यकार भी हैं |  इसका पता उनकी रचनाओं को पढ़कर लगता है जो किसी विषय कि गहराई तक जाकर उसकी पड़ताल करती हैं | डॉ.  अजय शर्मा कि किताबें कई  यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई जाती हैं | देश के कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरुस्कारों से सम्मानित डॉ.  अजय शर्मा का  नया  उपन्यास कमरा नंबर 909 विषय कि गहन पड़ताल कि उनकी चीर-परिचित शैली के साथ  दर्शनिकता को समेटे हुए सच कि दास्तान कहता है | कमरा नंबर 909-दर्शनिकता को समेटे सच कि दास्तान   सन 2020 में पूरे विश्व में तबाही मचाने वाले कोविड-19 (कोरोना वायरस) ने हमारे देश में दस्तक दी|  और देखते ही देखते हम सबकी  जिंदगी बदल गई | लॉकडाउन, मास्क, सैनिटाइज़र ये नए शब्द हमारे शब्दकोश में जुड़ गए| जब जीवन इतना प्रभावित हुआ तो साहित्य कैसे ना  होता| कविता, कहानी, लेख आदि में कोरोना ने दस्तक दी| ऐसे में सुप्रसिद्ध साहित्यकार अजय शर्मा जी ने कमरा नंबर 909 के माध्यम से कोरोनाकाल (फर्स्ट वेव) को अपने उपन्यास का विषय बनाया| कमरा नंबर 909 अस्पताल के कोविड वार्ड का कमरा है| ये उपन्यास इस विषय पर लिखे गए अन्य उपन्यासों से अलग इसलिए हैं क्योंकि  जहां यह एक मरीज के रूप में निजी अनुभवों का सटीक चित्रण करता है वहीं मृत्यु को सामने देख कर भयभीत मनुष्य की संवेदनाओं, उनके रिश्तों की गहन पड़ताल भी करता है| कोरोना ने भय का जो वातावरण बना रखा है, जिससे सोशल डिस्टेंसिग, एमोशनल डिस्टेंसिग में बदल गई है ये उपन्यास इसे सूक्ष्मता से रेखांकित करता है कि कैसे एक बहन अपने भाई को राखी बांधने से ही भयभीत है | घरों  में काम करने वाली भोली है जो घर -घर जा कर कोरोना फैलाने के आरोप के लिए कहती है, “हम किसी को क्या दे सकते हैं|” पति  -पत्नी के मिठास भरे संबंधों और पूरे परिवार कि एकजुटता इस आपदा काल में हमारे देश के पारिवारिक ढांचे कि रीढ़ कि तरह उभरती है| उपन्यास में डॉ. आकाश कोरोना ग्रस्त होकर अस्पताल में भर्ती हैं| वहाँ कमरा नंबर 909 उनकी पहचान है| यहाँ  और मरीज भी हैं|  सभी कोरोना से ग्रस्त हैं| मृत्यु सामने दिख रही है | ऐसे में नकली परदे उतर जाते हैं और इंसान का असली स्वभाव सामने  आता है | व्यक्ति  जो जीवंतता से भरपूर होने के समय करता है असल में वो उससे उलट भी हो सकता है |यहीं पर गुप्ता जी है व  एक ऐसे गुरु हैं और उनका चेला विकास हैं जो “जीवन में खुश कैसे रहे” सिखाते थे | विकास तो मुलाजिम है जो गुरु के यहाँ  काम करता है पर गुरु का सारा अभिनय खुल कर आता है| जो दूसरों को मृत्यु के भय से निकल जीने कि कला सिखाता है वह स्वयं मृत्यु से इस कदर भयभीत है|एक अंश  देखिए .. “लोगों का भगवान जो लोगों के दिल और दिमाग में रोशिनी  का दिया जलाता है, वह कुछ ही मिनटों का अंधेरा बर्दाश्त नहीं कर सका|”    हम सब ने कभी ना  कभी ऐसे गुरु देखे हैं और हो सकता है निराशा के आलम में मोटी फीस दे कर उनके चंगुल में भी फंसे हों | बहुत खूबसूरती से यहाँ ये बात समझ में या जाती है कि ये उनका महज प्रोफेशन है असलियत नहीं | इसी उपन्यास में मेडिटेशन कि एक बहुत खूबसूरत  परिभाषा मिली जिसे कोट करना और याद रखना मुझे जरूरी लगा … “सत्य हर व्यक्ति का नैसर्गिक गुण है|असत्य  हम अर्जित करते हैं |बोलने का हम लोग अभ्यास करती हैं |ऐसे ही मेडिटेशन का हम लोग अभ्यास करते हैं|जो अपने आप लग जाए वही सहज ध्यान है    इसमें वो सहज ध्यान कि प्रकृति के बारे में बानी और बुल्ले शाह का उदाहरण देते हुए बताते हैं | मैंने भी अभी कुछ साल  पहले U. G. Krishnamurti की किताब “Mind is a myth में सहज धीं के ऊपर पढ़ा था | उसके अनुसार .. “The so called self-realization is the discovery for yourself and by yourself that there is no self to discover.”   गुप्ता जी एक उदार व्यक्ति हैं | दूसरे कि पीड़ा को समझने का एक संवेदनशील हृदय उनके पास है | गुप्ता जी और  आकाश की  बातचीत के माध्यम से आध्यात्म  व दर्शन कि सहज व सुंदर चर्चा पाठकों को पढ़ने को मिलती है |डॉ. अजय शर्मा स्वयं डॉक्टर हैं, इसलिए उपन्यास में कई मेडिकल टर्म्स पढ़ने को मिलते हैं |   इसके अतिरिक्त कोरोना के विषय में फैली गफलत कि वो वास्तव में वायरस है या 5G टेक्नॉलजी से उभरा  एलेक्टरोमैगनैटिक रेडिऐशन, अमेरिका -इराक का युद्ध,सद्दाम हुसैन का अंत और अमेरिका कि सुपरमेस्सी कि लड़ाई इसे व्यापक फलक प्रदान करती हैं|एक अंश देखिए ..   जब डोनाल्ड ट्रम्प को कोरोना हुया, तो वह इलाज के तुरंत बाद अस्पताल से निकला और गाड़ी में उसने मास्क को उतार फेंका| उसका विरोध भी हुआ लेकिन उसने परवाह नहीं की|लोगों के लिए मास्क उतारना शायद एक साधारण सी घटना हो सकती है| लेकिन मुझे लगता है कि उसने मास्क उतार कर चीन के मुँह पर तमाचा मारते हुए ये बताने कि कोशिश कि है, “तुम लाख कोशिश कर लो पर अमेरिका सुपर पावर था, है और रहेगा| आज जब फिर से ये मांग उठ रही है कि कोरोना वायरस कि उत्पत्ति कि जांच हो| चीन ने जिस मांग को उस समय दबा दिया |आज अमेरिका में दूसरी सरकार होते हुए भी इस मांग का अगुआ अमेरिका ही है और भारत भी अब इस मांग में शामिल हो गया है | इस बात कि भनक इस उपन्यास ने पहले ही दे दी थी |  क्योंकि राजनैतिक परिस्थितियाँ सामाजिक परिस्थितियों को प्रभावित करती हैं | पृष अभी भी वही है कि क्या सुप्रिमेसी कि इस लड़ाई ने ही सारे विश्व और उसकी अर्थव्यवस्था को अस्पतालों में लिटा दिया है | अस्पताल के बिस्तर से सुप्रिमेसी कि लड़ाई तक पहुँच जाना उपन्यास कि खासियत है| संक्षेप में कहें तो सरल सहज भाषा में लिखा ये उपन्यास सिर्फ कोरोनाकल और उससे उत्पन्न परिस्थितियों को ही नहीं दर्शाता बल्कि इसमें दर्शन और आध्यात्म कि की ऐसी बातें पिरोई गई हैं जिन् पर पाठक ठहर कर चिंतन में डूब जाता है … Read more

श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम 

श्री राम कथामृतम

      “ राम तुम्हारा चरित स्वंय ही काव्य है,   कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है।“                        मैथिली शरण गुप्त    दशरथ पुत्र राम, कौसल्या नंदन राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम .. राम एक छोटा सा नाम जो अपने आप में अखिल ब्रह्मांड को समेटे हुए है| हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार राम विष्णु का अवतार हैं | अवतार धरती पर तब ही अवतरित नहीं होते जब पाप बढ़ जाते हैं | अवतार के जन्म के पीछे सिर्फ मानव समाज का उद्धार ही नहीं बल्कि इसके पीछे उद्देश्य यह भी होता है कि साधारण मानव के रूप में जन्म ले कर उसे यह सिखा  सकें कि कि उसमें वो क्षमता है कि विपरीत परिस्थितियों का सामना कर ना सिर्फ हर बाधा पार कर सकता है अपितु  अपने अंदर ईशरत्व के गुण भी  विकसित कर सकता है | जन -जन के मन में व्याप्त राम हमारे धर्म का, इतिहास का हिस्सा है | कुछ लोग राम कथा को मिथक मानते हैं | फिर भी सोचने वाली बात है कि इतिहास हो या मिथक समकालीन वाल्मीकि से लेकर आज तक ना जाने कितनी कलमों ने, कितनी भाषाओं और कितनी शैलियों में, कितने क्षेपकों-रूपकों के साथ  राम कथा से अपनी कलम को पुनीत किया है |  सवाल ये उठता है कि, “आखिर क्या कारण है कि इतने युग बीत जाने के बाद भी राम कथा सतत प्रवाहमान है | इसका उत्तर एक ही है ..  श्री राम का चरित्र, जो सिखाता है कि एक साधारण मानव का चरित्र जीते हुए भी व्यक्ति कैसे ईश्वरीय हो जाता है | इतिहास की इस धरोहर को बार -बार कह कर सुन कर, पढ़कर हम उन गुणों को अपने वंशजों में पुष्पित -पल्लवित करना चाहते हैं | आज तक राम के चरित्र को लिखने में दो तरह की दृष्टियों का प्रयोग होता  रहा है | एक तार्किक दृष्टि दूसरी  भक्त की दृष्टि | तर्क और बौद्धिकता की दृष्टि किसी चरित्र को समझने के लिए जितनी जरूरी है, भक्त की दृष्टि उन गुणों को ग्रहण करने के लिए उतनी ही जरूरी है | भक्त की दृष्टि से लिखी गई  राम चरित मानस की लोकप्रियता इस बात की पुष्टि करती है |  घर -घर पढ़ी जाने वाली राम चरित मानस ने हमारे भारतीय परिवेश में धैर्य, सहनशीलता, क्षमा, परिवार में सामंजस्य आदि गुण तिरोहित होते रहे हैं | श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम  समय बदला और  इंटरनेट की खिड़की से पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति भी देश में आई | ग्लोबल विलेज के लिए ये जरूरी भी है और इसके कई सकारात्मक पहलू भी हैं पर “माता -पिता का आदर करो” के  स्थान पर “पापा डोन्ट प्रीच” बच्चों के सर चढ़ कर बोलने लगा | बड़ों का आदर कम हुआ, परिवार बिखरने लगे, बच्चों में असहनशीलता, अवसाद, अंकुरित होने लगे | घबराए माता-पिता ने संस्कार देने के लिए राम कथाओं की शरण लेनी चाही तो उनका नितांत अभाव दिखा | ऐसे में कि रण सिंह जी सुचिन्तित योजना के तहत बच्चों के लिए श्री राम कथामृतम ले कर आईं |   अपनी संस्कृति से बच्चों को जोड़ने के अभिनव प्रयास और सुंदर छंदबद्ध गेयता से समृद्ध इस पुस्तक को केन्द्रीय हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश के बाल साहित्य को दिए जाने वाले 2020 के सुर पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है |   चैत मास की नवमी तिथि को  जन्म लिए थे राम  कथा सुनाती हूँ मैं उनकी  जपकर उनका नाम     अपने आत्मकथ्य में वो कहती हैं कि “कौन बनेगा करोंणपति” देखते हुए उन्हें यह अहसास हुआ कि राम के जीवन से संबंधित छोटे- छोटे प्रश्नों के उत्तर भी जब लोग नहीं बता पाते हैं तो राम के गुणों को अपने अंदर आत्मसात कैसे कर पाएंगे | उन्होंने एक साहित्यकार के तौर पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बच्चों को राम के चरित्र व गुणों से अवगत कराने का मन बनाया | क्योंकि बच्चे कविता को जल्दी याद कर लेते हैं इसलिए ये कथा उन्होंने बाल खंडकाव्य के रूप में प्रस्तुत की है |जिसमें 16 कथा प्रसंग  प्रांजल भाषा में लिखे गए हैं |    बाल रूप श्री राम                गुरुकुल में बच्चे कैसे रहते थे | मित्रता में राजा और -प्रजा बाधक नहीं थी | ये पढ़कर बच्चे समझ सकते हैं कि वो स्कूल में अपने मित्रों के साथ कैसा व्यवहार करें | साथ ही किसी से मित्रता करने का यह अर्थ नहीं है कि आप उसके जैसे बन जाए | हम अपने  गुणों और अपनी विशेष प्रतिभा के साथ भी मित्रता निभा सकते हैं ..    राजा -प्रजा सभी के बच्चे  रहते वहाँ समान  कठिन परिश्रम से करते थे  प्राप्त सभी हर ज्ञान  …… बने राम निषाद गुरुकुल में  अच्छे -सच्चे मित्र  उन दोनों का ही अपना था  सुंदर सहज चरित्र    ताड़का वध  व अहिल्या उद्धार    धोखे से इन्द्र द्वारा छली गई पति द्वारा शापित अहिल्या का राम उद्धार करते हैं | राम उस स्त्री के प्रति संवेदना रखने की शिक्षा देते हैं जिसका शीलहरण हुआ |    छूए राम ज्यों ही पत्थर को  शीला बनी त्यों नार  पतित पावन रामचन्द्र ने  दिया उन्हें भी तार    राम -सिया और लखन का वन गमन  राम, पिता की आज्ञा  मान  कर वन चल देते हैं | उस समय तार्किक मन  ये कह  रहा होता है कि राम के साथ गलत हो रहा है | परंतु राम के राम रूप में स्थापित होने में इस वन गमन का कितना बड़ा योगदान है ये हम  सभी जानते हैं | जो परिस्थितियाँ आज हमें कठिन दिख रहीं हैं, हो सकता है उनका हमारे जीवन को सफल आकार देने में बहुत योगदान हो |    खुशी -खुशी आदेश जनक का राम किये स्वीकार  कौशल्या से आज्ञा  लेने  आए हो तैयार    भरत मिलाप   आज हम जिस रामराज्य की बात करते हैं हैं वो भाई -भाई के प्रेम की नींव पर ही टिक सकता है | जहाँ निजी स्वार्थ के ऊपर आपसी प्रेम हो, देशभक्ति की भावना हो | मान  राम की बात भरत ने  रखी एक फिर शर्त  राजा होंगे राम आप ही  क्योंकि आप समर्थ    सीता हरण   रावण द्वारा सीता का हरण एक दुखद प्रसंग है |फिर भी वो … Read more

मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी

मनोहर सूक्तियाँ

क्या एक विचार जिंदगी बदल सकता है ? मेरे अनुसार “हाँ” वो एक विचार ही रहा होगा जिसने रेलवे स्टेशन पर गाँधी जी को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत दी .. और मोहन दास करमचंद महात्मा गाँधी बन गए | मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी Willie Jolley अपनी किताब It Only Takes a Minute to Change Your Life में कहते हैं .. वो विचार ही होता है जब हम कोई ऐसा निर्णय लेते हैं जो हमारी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट होता है | अगर निजी तौर पर बात कहूँ तो एक लोकोक्ति के रूप में मेरे नाना जी ने मन की गीली मिट्टी पर एक विचार रोप दिया था “चटोरी खोए एक घर बतोडी खोए चार घर ” अर्थात जिसे अच्छे अच्छे खाने का शौक होता है वो अपने घर के ही पैसे बर्बाद करता है | लेकिन जिसे फालतू बात करने का शौक होता है वो अपने साथ चार लोगों का समय बर्बाद करता है | कयोकि बात करने के लिए चार लोग चाहिए | यहाँ समय की तुलना सीधे -सीधे धन से की गई है | इस बात को समझ कर मैंने हमेशा समय को बर्बाद होने से बचाने की कोशिश की | निश्चित तौर पर आप लोगों के पास भी ऐसे किस्से होंगे जहाँ एक विचार आपके जीवन का उसूल बन गया | ऐसी ही एक किताब “हीरो वाधवानी ” जी की उपहार स्वरूप मेरे घर में आई | 246 पेज की इस किताब में 180 पेज में सूक्तियाँ या जीवन संबंधी विचार हैं ,जो हमें प्रेरणा देते हैं या सोचने पर विवश करते हैं | बाकी पेज में समीक्षात्मक लेख हैं | कुछ सूक्तियाँ साझा कर रहीं हूँ .. ईश्वर ने हमें एक मुँह और दो हाथ -पैर इसलिए दिए हैं ताकि हम कहें कम करें अधिक | क्रोध और अहंकार करने वाले बाहर से भले द्रण लगें अंदर से कमजोर होते हैं | मित्रता तोड़ना आईने तोड़ने जैसा है | तेज आँधी नहीं घर का क्लेश नींव को हिला देता है | ईश्वर ने सबसे अधिक हड्डियाँ इंसान के पैरों में रखीं हैं ताकि वो अपने पाँव से चले दूसरे के कंधे पर सवार ना हो | ईर्ष्यालू अंधा होता है क्योंकि वो जिससे ईर्ष्या करता है उसके परिश्रम व प्रयत्नों को नहीं देखता | ऐसी बहुत सारी जीवन उपयोगी सूक्तियाँ हैं जिन्हे एक झटके में न पढ़ कर रोज एक पेज पढ़ कर मनन करने से जीवन में अवश्य परिवर्तन आएगा | एक अच्छी व अलग किताब के लिए “हीरो वधवानी जी को बधाई व शुभकामनाएँ | वंदना बाजपेयी पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं बस कह देना कि आऊँगा- काव्य संग्रह समीक्षा एक टीचर की डायरी – नव समाज को गढ़ते हाथों के परिश्रम के दस्तावेज आपको मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी समीक्षा कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ अटूट बंधन की साइट सबस्क्राइब करें अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करे

लव इन लॉकडाउन -कोविड -19 फर्स्ट वेव में पनपते प्रेम की दास्तान

लव इन लॉक डाउन

इस दुनिया की सबसे खूबसूरत शय है प्रेम .. प्रेम जिसके ऊपर कोई बंधन नहीं है |न धर्म का ना जाति का न उम्र का न सरहद का और ना ही लॉक डाउन का | लॉकडाउन एक ऐसा शब्द जिससे एक साल पहले तक हममें से कोई वाकिफ भी नहीं | 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के साथ हमने जाना कि सब कुछ थमना क्या होता है | पर उस दिन यही लगा कि यह किसी व्रत की तरह है | एक दिन का संकल्प लिया है .. हो जाएगा | फिर शुरू हुआ लॉक डाउन और हमनें असलियत में देखा, रुकी हुई सड़कें, रुकी हुई रेले, रुके हुए हवाई जहाज और रुका हुआ देश ,,,, एक अजीब स भय, अजीब स सन्नाटा हम सब के मन पर छाया हुआ था पर ऐसे में भी प्रेम क्या रुका है ? क्या रुक सकता है ? लव इन लॉकडाउन -कोविड -19 फर्स्ट वेव में पनपते प्रेम की दास्तान इस खूबसूरत कल्पना के साथ सुपरिचित लेखक श्यामजी सहाय एक उपन्यास ले कर आए हैं “लव इन लॉक डाउन ” बहुत ही खूबसूरत कवर वाले इस उपन्यास को पढ़ने से वो लोग शायद खुद को ना रोक पाएँ जिन्हें प्रेम कहानियाँ पसंद हैं | पर ये उपन्यास मात्र एक प्रेम कहानी ही नहीं है ये तीन मुख्य बिंदुओं पर टिका है | एक लव और दूसरा लॉक डाउन | लेकिन इसमें एक मुख्य किरदार घुमंतू बाबा भी हैं | इस उपन्यास पर बात करते समय इसके तीनों मुख्य बिंदुओं पर अलग- अलग बात करनी पड़ेगी | जब हम इसको इस तरह से पढ़ेंगे तो कवर पेज पर दो की जगह तीन दिल बनाने का मतलब भी समझ आ जाएगा| लॉक डाउन – ये कहानी शुरू होती है जनता कर्फ्यू वाले दिन यानी 22 मार्च 2020 से जब कहानी के नायक अमन का अट्ठारवाँ जन्मदिन है | वो इसे सेलिब्रेट करना चाहता है पर जनता कर्फ्यू लग जाता है | इसके बाद उपन्यास जनता कर्फ्यू, लॉक डाउन , घंटे बजाना, दीपक जलाना जैसे कार्यक्रमों के साथ आगे बढ़ते हुए भय के माहौल के साथ लॉक डाउन और अन्लॉक की एक -एक प्रक्रिया से रुबरु कराता चलता है | किस तरह से मामूली खांसी जुकाम को कोविड समझ कर अस्पताल में भरती कर दिया जाता है और दो बार निगेटिव रिपोर्ट आने पर ही डिसचार्ज किया जाता है | भय के आलम में लोग घर के अंदर ही मास्क लगा रहे हैं | सोशल डिस्टेंसिग कर रहे हैं | सोशल डिस्टेंसिग इमोशनल डिस्टेंसिग में बदल रही है | कहने का तात्पर्य ये है कि इसमें लॉकडाउन से जुड़ी छोटी बड़ी घटना को इस तरह से पिरोया गया है कि वो कहानी का हिस्सा सा लगता है | हम लोगों ने ये समय देखा है कहानी पढ़ते समय भोगे हुए दृश्यों की एक रील सी मन में चलने लगती है | इस हिस्से को हम लॉकडाउन डायरी कह सकते हैं | मुझे लगता है भविष्य की पीढ़ी जब लॉक डाउन के जानना चाहेगी तो इस किताब से उसे बहुत मदद मिलेगी | घुमंतू बाबा एक कहानी का एक मुख्य किरदार हैं | जिनका प्रवेश कहनी के पंद्रहवें एपिसोड में होता है | घुमंतू बाबा का असली नाम ज्ञानी दुबे है वो अकेले न्यूनतम सुविधाओं के साथ रहते हैं | अविवाहित हैं | उनके पास हर विषय का ज्ञान है |और ज्यादातर बातों का सटीक उत्तर देते हैं | इसलिए वो सबके प्रिय है | महत्वपूर्ण बात ये है कि इनका ज्ञान उबाऊ और नीरस नहीं लगता | इसका कारण है घुमंतू बाबा की साफगोई और रोचक शैली | कहानी के ये पात्र ऐसा है कि उनकी एक दो बातों से असहमत होते हुए भी आप उनके ज्ञान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे | अब आते कहानी के तीसरे अहम बिन्दु यानी लव पर .. ये कहनी तीन प्रेम कहानियों को एक साथ ले कर चलती है | अमन -सोनी, हरप्रीत -सुदीप व रोहन और शेफाली | तीनों का प्रेम अलग प्रेम का तरीका अलग |तीनों की पृष्ठ भूमि अलग इन अलग पारिवारिक पृष्ठ भूमि का असर नायिका के स्वभाव पर पड़ना स्वाभाविक है हरप्रीत-सुदीप की जोड़ी में हरप्रीत बहुत शोख चंचल है और प्रेम के समय में बहुत लाउड भी | दोनों खुश हैं पर हरप्रीत की एक बैक स्टोरी भी है | फौजी की बेटी हरप्रीत की माँ का चरित्र आम भारतीय महिलाओं से अलग है | उनके पति यानी हरप्रीत के पिता से सालों की दूरी और उनके पिता का प्रेम के पलों में वहशी हो जाना उन्हें तकलीफ देता रहा है .. जिस कारण वो स्वयं तृप्ति की अंधेरी गलियों में भटकती हैं | परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि सुदीप को हरप्रीत पर शक हो जाता है | ऐसे में माँ का अपनी बेटी भारतीय संस्कृति की शिक्षा देना अजीब लगता है | बाद में परिस्थितियों का यू टर्न स्वागत योग्य है | रोहन और शेफाली में शेफाली ज्यादा चंचल है शेफाली विधवा स्त्री की बेटी है और हौले से प्रेम कहानी आगे बढ़ती है| तीसरी और सबसे अहम जोड़ी कहानी के नायक अमन और सोनी की है | अमन आई आई टी दिल्ली का फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट है और सोनी दिल्ली में हॉस्टल में रहकर 12 th कर रही है | वे क्रमश:18 और 16 साल के हैं | दोनों पटना में एक घर छोड़ कर रहते हैं पर घंटी/घंटा बजाने के दौरान (लॉकडाउन में ) पहली बार एक दूसरे को देखते हैं | आँखों -आँखों में प्रेम की चिंगारी फूटती है और प्रेम वहाट्स ऐप चैट के माध्यम से आगे बढ़ता है | दोनों संस्कारी परिवार के शुचितवादी हैं और प्रेम शुचिता के साथ परवान चढ़ने लगता है | हर काल में हर तरह का प्रेम मौजूद रहता है | आधुनिक काल में भी उसे नकारा नहीं जा सकता | लेखक ने प्रेम में शुचिता को दिखाने के लिए परिपपक्व भाषा व पुराने गानों का प्रयोग किया है | जैसे चंदन सा बदन चंचल चितवन .. गदराया बदन, उससे युवा पाठक शायद न कनेक्ट कर पाए| क्योंकि शुचिता वादी प्रेम भी अभिव्यक्ति के स्तर पर बदल चुका है | दादी के दवाब में इस उम्र सगाई … Read more

ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है•••डॉ. सुनीता

मुशर्रफ आलम जौकी

  उर्दू व हिंदी साहित्य का जाना-पहचाना नाम मुशर्रफ आलम जौकी जी का कल दिनांक 19 अप्रैल 2021 को निधन हो गया| नए साल के स्वागत में ‘2021: एक नई सुबह की शुरुआत करें’ शीर्षक से लिखे लेख में जब उर्दू के जानेमाने लेखक मुशर्रफ आलम जौकी ने लिखा था कि, “मैं इतनी बुरी दुनिया की कल्पना नहीं कर सकता. क्या वास्तव में वायरस थे? या फिर महाशक्तियों ने दुनिया को मूर्ख बनाना शुरू कर दिया? अब मुझे एहसास हो रहा है कि वायरस ने देश में एक भयानक खेल की नींव रखी है|” दुखद है कोरोना ने इतने महान लेखक को हमसे छीन लिया| उनके निधन पर समस्त साहित्य जगत में शोक है| विनम्र  श्रद्धांजलि | पढिए युवा आलोचक डॉ. सुनीता जी की उनके कृतित्व पर  टिप्पणी   ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है••• हिंदी, ऊर्दू अदब के शीर्ष अफ़सानानिगार मुशर्रफ आलम जौकी के  निधन पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ! सूचना मिलते ही मुझे #पाखी के दिसम्बर अंक में #पानी की सतह’ की याद आ गयी। यह शायद आख़िरी कहानी है जिसे मैंने पढ़ा है। ‘And the spirit of God moved upon the face of the waters’ (और ख़ुदा की रूह पानी की सतह पर तैरती थी) बाइबल। कहानी की शुरुआत उपरोक्त संदर्भ से होती है। धीरे-धीरे प्रजापति शुक्ला और तारा शुक्ला के साथ आगे बढ़ती है। हसन और॰॰॰ पेंटिंग से बाहर आने के साथ नये आयाम देती है। कहानी के नैरेटर नये अंदाज में सामने आते हैं। वैसे तो कहानी चुपके से ख़त्म हो जाती है, सिर्फ़ बरक में ख़त्म होती है जबकि पेंटिंग और हसन के साथ दिल-दिमाग में पुनः द्वंद्व के साथ शुरू होती है। ‘धूप का मुसाफ़िर’ एक छोटी सी कहानी है मगर मानस को झकझोरने में सक्षम है। दरअसल भावुक जज़्बाती रूह को कंपा देने वाले चेहरों की झुर्रियों को पढ़ने की कला सभी के पास नहीं होती है। लेकिन यह कला जौकी साहब में मौजूद है। अपने कथानक में संक्षिप्तता की अनिवार्यता का बख़ूबी ख़्याल रखते हुये जौकी साहब ने भाषायी संतुलन से हमेशा चमत्कृत किया है। जब उन्होंने ‘फ़िज़िक्स, केमिस्ट्री अलजेब्रा’ रचा तब साहित्य के लिये नयी परिभाषा भी इजात की है।यह बात और है कि अभी तक डीकोड नहीं किया गया है। जब भविष्य में इतिहास रचा जाये तब शायद डिकोडिंग का बीजलेख मिले। बहरहाल रचना के बरक्स ‘लैंडस्केप के घोड़े, ले साँस भी आहिस्ता, बाज़ार की एक रात, मत रो शालिग्राम, लेबोरट्री, फ़रिश्ते भी मरते हैं, सदी को अलविदा कहते हुये, बुख़ा इथोपिया जैसी तमाम रचनाओं से हमें लबालब भर दिया है। उलीचने का शऊर हमें स्वयं तय करना होगा। ‘प्रेम संबंधों की कहानी’ में इतनी विविधता है कि प्रेम की भी स्थायी परिधि और परिभाषा हो सकती है यह यक़ीन करने को जी चाहता है लेकिन फिर दिल व दिमाग़ जंग करते हैं और कहते हैं कि नहीं अभी तक प्रेम पर बहुत कुछ अलिखित है जिसका लिखा जाना शेष है। ‘फ़्रिज में औरत’ यह एक फंतासी तत्व से भरपूर रचना है। औरत फ़्रिज से प्रकट होती है जबकि शहर प्रतीक बनकर उभरता है। ग़ौरतलब है कि कहानी सिम्बोलिज्म की यथार्थ की भूमि को खुरचकर पढ़ने की कला की ओर उन्मुख करती है। उपरोक्त को पढ़ते वक्त रजनी गुप्त की पुस्तक ‘एक न एक दिन’, डॉ. अनुसूया त्यागी की ‘मैं भी औरत’, नूर ज़हीर की ‘अपना ख़ुदा एक औरत और वंदना गुप्ता की ‘मैं बुरी औरत हूँ’ के साथ-साथ सुधा अरोड़ा की पुस्तक ‘एक औरत ज़िंदा सवाल’ के समानांतर में उड़िया की रचनाकार प्रतिभा केड़िया को भी समकक्ष रख सकते हैं। इससे रचना की परतें तो अधिक खुलेंगी ही और दो हज़ार साल पहले और मौजूदा वक्त की औरत की भी गिरहें खुलेंगी। तकनीकी स्टोरेज में क़ैद मुसाफ़िर भी बोलेंगे। रचनाओं के आलोक में स्त्रियाँ झांकती हैं और प्रवृत्तियों की प्रक्रिया को बदल देती हैं। जौकी साहब की स्त्रियाँ मल्टीप्लेक्स, मल्टीलेयर्ड और यूनाइटेड फ़ैमिली का सेनेरियो भी बदलती चलती हैं। सूक्ष्मता से समाकलित विश्लेषण के परिप्रेक्ष्य में जौकी साहब की अधिकांश रचना बेशक हिंदी में ही लिखी गयी हैं बावजूद सभी रचनाओं का परिवेश भारतीय नहीं है। आप चाहें तो भाषायी खिलंदड़पन और कथ्यात्मकता में चुटीलेपन के बीच ऊर्दू की तमीज़ के नेपथ्य से भेदक, तीक्ष्ण दर्द पर नज़र व नज़रिया के लिये याद रखते हुये कुफ़्र की रात में चाँद वाली चौपर बिछाकर चौसर खेल भी सकते हैं। सरल क़बीलाई जीवन में कुलाँचे भरते मुस्लिम समाज के जीवन-स्थितियों का यथार्थपरक चित्रण किया है। अपने प्रौढ़, गहन-गंभीर व सशक्त शैली के कारण ख्यातिलब्ध शख़्सियत में शुमार रहे हैं। द्वंद्वात्मक मानसिकता का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तो किया ही है, जीवन-मूल्यों के चटखने की प्रतिध्वनियों की सघनता को भी पकड़ा है। आख़िर में यह कह सकती हूँ कि ‘प्रिमिटिव पैसिव सिंपैथी’ में बंधे होकर भी मुक्तिवादी भावाभिव्यक्ति करते रहे। ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है। आगे भी लेती रहेगी। डाॅ. सुनीता     यह भी पढ़ें .. प्रिडिक्टेबली इरेशनल की समीक्षा -book review of predictably irrational in Hindi “सुशांत सुप्रिय के काव्य संग्रह – इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं “की शहंशाह आलम की समीक्षा ” गहरी रात के एकांत की कविताएँ विसर्जन कहानी संग्रह -समीक्षा किरण सिंह ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है•••डॉ. सुनीता के बारे में अपनी राय अवश्य व्यक्त करें |अगर आपको अटूट बंधन के लेख पसंद आटे हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पुस्तक विमोचन

कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान

  भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण किया है। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। प्रस्तुत है कार्यक्रम की रिपोर्ट  कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक का अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में होना चाहिए अनुवाद- पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा   नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने किया। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्‍तक का लोकार्पण ऑनलाइन माध्‍यम से संपन्‍न हुआ। पुस्‍तक के लोकार्पण समारोह का संचालन प्रभात प्रकाशन के निदेशक श्री प्रभात कुमार ने किया, जबकि धन्‍यवाद ज्ञापन श्री पीयूष कुमार ने किया। ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ पुस्तक में कोरोना महामारी के बहाने मानव सभ्‍यता की बारीक पड़ताल करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि मौजूदा संकट महज स्वास्थ्य का संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है। पुस्‍तक की खूबी यह है कि यह संकट गिनाने की बजाय उसका समाधान भी प्रस्‍तुत करते चलती है। ये समाधान भारतीय सभ्यता और संस्कृति से उपजे करुणा, कृतज्ञता, उत्तरदायित्व और सहिष्णुता के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित हैं। भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री दीपक मिश्रा ने इस पुस्‍तक को महत्वपूर्ण और अत्यंत सामयिक बताते हुए कहा कि पुस्‍तक सरल और सहज भाषा में एक बहुत ही गहन विषय को छूती है। इस महत्वपूर्ण पुस्‍तक का अंग्रेजी सहित अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद किए जाने की जरूरत है। ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। महज 130 पृष्‍ठों की लिखी इस पुस्‍तक को पढ़कर अर्नेस्‍ट हेमिंग्‍वे के मात्र 84 पृष्‍ठों के उपन्‍यास ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ की याद आना अस्‍वाभाविक नहीं है, जिसमें एक बड़े फलक के विषय को बहुत ही कम शब्‍दों में समेटा गया है। हेमिंग्‍वे को ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ के लिए नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। कैलाश जी की यह किताब उनके ‘सामाजिक-राजनीतिक इंजीनियर’ के रूप को भी हमारे सामने प्रकट करती है। महान संस्‍कृत कवि भवभूति ने समाज सेवा को ही मानवता की सेवा कहा है। कैलाश जी इसके ज्‍वलंत उदाहरण हैं। यद्यपि पुस्‍तक गद्य में लिखी गई है लेकिन इसकी सुगंध कविता जैसी है। जिस दर्द की भाषा का हम प्रयोग करते हैं वह भाषा इस पुस्‍तक में मिलती है। इस अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कैलाश जी के कवि रूप की प्रशंसा की और पुस्तक में शामिल श्री सत्यार्थी की कविताओं को उद्धृत करते हुए उसकी दार्शनिक व्याख्या भी की।   राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने भी पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि कोविड संकट के दौर में इस पुस्‍तक का लिखा जाना मानव सभ्‍यता के इतिहास में एक नया अध्‍याय का जोड़ा जाना है। इस पुस्तक के माध्यम से बहुत ही बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण सवालों को उठाया गया और उनका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है।  यह सही है कि कोविड-19 का संकट महज स्‍वास्‍थ्‍य का संकट नहीं है बल्कि यह सभ्‍यता का संकट है। समग्रता में इसका समाधान करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता में निहित है, जिनका उल्‍लेख कैलाश जी अपनी पुस्तक में करते हैं। उन्‍होंने करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता की नए संदर्भ में व्‍याख्‍या भी की है, जिनका यदि हम अपने जीवन में पालन करें तो समाधान निश्चित है। कैलाश जी वैक्‍सीन को सर्वसुलभ करने की बात करते हैं और उस पर पहला हक बच्‍चों का मानते हैं, जो उनके सरोकार का उल्‍लेखनीय पक्ष है। संकट बहुत बड़ा है। चुनौती बहुत बड़ी है इसलिए इसका समाधान नए ढंग से सोचना होगा, तभी हम अपने अस्तित्‍व को बचा पाएंगे।   नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता श्री कैलाश सत्‍यार्थी ने इस अवसर पर लोगों ध्यान कोरोना संकट से प्रभावित बच्चों की तरफ आकर्षित किया।   उन्होंने कहा कि महामारी शुरू होते ही मैंने लिखा था कि यह सामाजिक न्‍याय का संकट है। सभ्‍यता का संकट है। नैतिकता का संकट है। यह हमारे साझे भविष्‍य का संकट है और जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। इसके कुछ उपाय तात्‍कालिक हैं, तो कुछ लगातार खोजते रहने होंगे। महामारी के सबसे ज्‍यादा शिकार बच्‍चे हुए हैं। आज एक अरब से ज्‍यादा बच्‍चे स्‍कूल से बाहर हैं। इनमें से तकरीबन आधे के पास ऑनलाइन पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं है। बच्चों की दशा को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की संस्‍थाओं ने अनुमान लगाया है कि कोरोना से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 12 लाख बच्‍चे कुपोषण के कारण मौत के शिकार हो जाएंगे। उन्होंने इन परिस्थितियों को बदलने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे बच्‍चों की सुरक्षा के लिए हमने दुनिया के अमीर देशों से वैश्विक स्‍तर पर ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ की मांग की है। महामारी से निपटने के लिए अमीर देशों ने अनुदान के रूप में कोविड फंड में 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, जिसमें उद्योग, व्‍यापार जगत और अर्थव्‍यवस्‍था को भी सुधारना था। हमने उसमें से आबादी के हिसाब से 20 प्रतिशत हिस्‍सा बच्‍चों के लिए देने की मांग की है। लेकिन अमीर देशों ने अभी तक बच्‍चों के मद में मात्र 0.13 प्रतिशत रकम ही दी है। न्‍याय की खाई कितनी चौड़ी है इस उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री सत्यार्थी ने इस अवसर पर कोरोना वैक्‍सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि संकट से उबरने के लिए हमें “करुणा का वैश्‍वीकरण” करना होगा।   श्री कैलाश सत्‍यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद भी बच्चों के अधिकारों के लिए सड़क पर उतर कर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अपना नोबेल पदक राष्ट्र को समर्पित करने वाले श्री सत्यार्थी ने दुनिया के बच्चों को शोषण मुक्त करने के लिए ‘’100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’’ नामक दुनिया के सबसे बड़े युवा आंदोलन की शुरुआत की है। जिसके तहत 10 करोड़ वंचित बच्चों के अधिकारों की लड़ाई के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जाएगा। जबकि ‘’लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ के तहत वे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर … Read more