नैहर छूटल जाए – एक परिवर्तन की शुरुआत

कहते हैं कि परिवर्तन की शुरुआत बहुत छोटी होती है, परन्तु वो रूकती नहीं है और एक से एक कड़ी जुडती जाती है और अन्तत : सारे समाज को बदल देती है …एक ऐसे ही परिवर्तन की सूत्रधार है कोयलिया | यूँ तो कोयलिया ‘नया ज्ञानोदय में प्रकाशित रश्मि शर्मा जी की कहानी ‘नैहर छूटल जाए’ का एक पात्र ही है पर उसे बहुत ही खूबसूरती से गढ़ा गया है | नैहर छूटल जाए – एक परिवर्तन की शुरुआत  कहानी ग्रामीण परिवेश की है | दो भाइयों की इकलौती बहन कोयलिया की माँ की मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी | पिता ने ही उसे माँ व् पिता दोनों का प्यार दिया | प्रेम –प्रीत से पली कोयलिया के नसीब में शराबी पति लिखा था | जो उसे अकसर मारता और वो देह पर नीले निशान लिए हुए मायके आ जाती | भाई और पिता उसकी खातिर करते पर भौजाइयाँ इस डर से की वो वहीँ ना बस जाए उसको गेंहू , चावल , खेत की तरकारी आदि दे कर  ये कह कर विदा कर देती कि जैसा भी है अब वही घर तेरा है | और कोयलिया विदाई के समय आँचल में चावल के दाने बाँध के साथ मायके का प्रेम  बाँध कर घर आ जाती | जिस साल कोयलिया पैदा हुई थी उस साल उसके पिता को खेती में बहुत लाभ हुआ | उन्हें लगा कि कोयलिया उनके  लिए बहुत भाग्यशाली है | धीरे -धीरे उन्होंने कई खेत खरीदे | माँ की मृत्यु के बाद कोयलिया बिना माँ की तो जरूर हो गयी पर उसके पिता व् भाइयों ने उसे लाड -प्यार की कोई कमी नहीं होने दी | इसी हक से तो वो हर बार ससुराल से मार खा कर सीधे अपने घर आ जाती | आखिर ये घर भी तो उसका अपना ही था |  उसी समय गाँव में कारखाना लगने का सरकारी प्रस्ताव आया | भूमि का अधिग्रहण शुरू हुआ | किसी के मकान का अधिग्रहण होना था तो किसी के खेत का | कोयलिया के पिता के खेत भी उसी भूमि में आये जिनका अधिग्रहण होना था | जमीन से चार गुना रकम मिलनी थी | हालांकि खेती की जमीन चली जाने पर आगे आय के श्रोत बंद हो रहे थे परन्तु उस पैसेका अन्यत्र कहीं इस्तेमाल किया जा सकता था | कोयलिया के पिता ने उसी समय भाइयों -भौजाइयों के आगे एक खेत जो उस्न्होने उस साल खरीदा था जिस साल कोयलिया पैदा हुई थी , उसके नाम करने को कहा | उन्हें कोयलिया प्रिय तो थी ही साथ ही शराबी दामाद का भय भी था कि उसकी वजह से कहीं उनकी बिटिया नाती को दिक्कत ना आये |  भूमि अधिग्रहण और पैसे का आवंटन में होने में गड़बड़ी होने पर गाँव वालों का विद्रोह शुरू हुआ | विद्रोह को दबाने के लिए पुलिस आई और उसने अंधाधुंध हवाई फायरिंग शुरू की | इस फायरिंग में सात लोगों की गोली लगने से मृत्यु हुई | उसी में एक कोयलिया के पिता भी थे | कोयलिया रोती पीटती आई उसे पिता को खोने के साथ -साथ नैहर छूटने का भी भी था | भाइयों और भाभियों ने आश्वासन दिया और वो दुखी ह्रदय से घर वापस आ गयी | दुःख था की छूटने का नाम नहीं ले रहा था | इसी बीच पता चलता है कि कंपनी की तरफ से उसके पिता की मृत्यु का हर्जाना मिलेगा | खबर सुन कर उसका दिल दुःख से भर गया … करोणों के पिता की जगह लाखों का हर्जाना , क्या उसका दुःख इससे कम हो सकता है ?परन्तु उसके पति की आँखों में चमक आ गयी | वह कोयलिया पर दवाब डालने लगा कि वो भी  अपना हिस्सा मांगे ताकि वो अपने घर की टपकती छत बरसात आने से पहले ठीक करवा सके | कोयलिया को बात ठीक लगती है | वो मायके जाती है | भाई -भाभी उसका बहुत स्वागत करते हैं , परन्तु हर्जाने में हिस्समांगने की बात सुन कर नाराज़ हो जाते हैं | भाभियाँ समझा देती हैं कि क्यों बेकार में हिस्सा माँगती हो | तुम बाबा की बेटी हो पर उनके कारज में खर्चा तो हमारा ही हुआ था | बाबा नहीं रहे पर तुम्हारा नैहर तो है  …तुम आओगी तो अपनी सामर्थ्य भर दाना -पानी हम बांधते रहेंगे तुम्हारे साथ … हम भी बेटी हैं ,नैहर बना रहे इससे ज्यादा एक बेटी को और क्या चाहिए |  कोयलिया को भाभियों की बात सही लगती है और वो वापस अपने घर आ जाती है | तभी मुआवजा मिलने की खबर आती है | पति फिर हिस्सा माँगने को कहता है | वो फिर नैहर  जाती है | बाबा के बाद वैसे भी अब उसका नैहर जाने का मन नहीं करता | भाई टका  सा जवाब दे देते हैं कि पैसा मिला ही नहीं और बाबा ने कब कहा था हमने तो सुना ही नहीं | उसका मन उदास तो होता है तो भाई उसे समझा देते हैं कि जब पैसा मिलेगा तब सोचेंगे | इस बार भाभियाँ मनुहार नहीं करती | वो वापस लौट आती है |  जो लड़की बात -बात पर नैहर जाती थी वो अब महीनों नैहर नहीं जाती | नैहर छूटा सा जा रहा है | अब तो बदन पर पड़े नीले निशानों को भी किसी को दिखने की इच्छा नहीं होती | क्या फायदा ? कौन उसका अपना है जो सुनेगा | अपने दर्द अपने मन में ही रखती है …. जो भी है उसका पति ही है उसी के सहारे उसकी जिन्दगी की नैया पार लगेगी |  तभी उसे पता चलता है कि भाइयों को मुआवजे की रकम मिल गयी है | पर किसी ने उसे बताया नहीं, नैहर सेकोई आया भी नहीं ? ये सोच कर उसे गहरा धक्का लगता है | बहुत दिन तक उदास रहने के बाद मन में क्रोध उफनता है | आखिर वो भी तो अपने बाबा की बेटी है , उस घर द्वार पर उसका भी हक़ है | ऐसे कैसे भैया भाभी उसे , उस घर में आने से बेदखल कर देंगे | वो अपने नैहर जाती है और बिना भाभियों से मोले सीधे भण्डार में जाकर … Read more

प्रत्यंचा -समसामयिक विषयों की गहन पड़ताल करती रचनाएँ

कविता भावो  की भाषा है वो जबरदस्ती नहीं लिखी जा सकती , उसे जब हृदय के कपाट खोल कर भावों के निर्झर सी निकलना होता है, वो तभी निकलती है | कई बार लिखने वाला और पढने वाला अपने -अपने भाव जगत के आधार पर उसे ग्रहण करता है | समीक्षक का धर्म होता है कि वो कवि के भाव स्थल पर उतर कर रचना की व्याख्या करे |  हालंकि जब विश्व पुस्तक मेले में पंखुरी जी ने बड़े ही स्नेह के साथ अपना नया कविता संग्रह ‘ प्रत्यंचा ‘ मुझे भेंट किया था तो मैं उस पर तुरंत ही कुछ लिखना चाहती थी , पर दुनियावी जिम्मेदारियों ने भावनाओं के उस सफ़र से मुझे वंचित रखा | खैर हर चीज का वक्त मुकर्रर होता है तो अब सही ….और पंखुरी जी के शब्दों में कहें तो … बिम्ब ऐसे हों जो दिखें ना कविता वो जो  मुट्ठी में ना आये इसलिए नहीं कि मेरे तुम्हारे प्रेम की कविता है और उनके हाथों में इसलिए कि कविता से भी मुझे प्रेम है ….| प्रत्यंचा -समसामयिक विषयों की गहन पड़ताल करती रचनाएँ  यूँ तो प्रत्यंचा नाम पढ़ कर किसी युद्ध का अहसास होता होता है | जहाँ तीर हो कमान हो और निशाना साध  कर सीधे ह्रदय को बेध दिया जाए | लेकिन ये प्रत्यंचा अगर कोई कवि भी  ताने तो भी उससे निकले भावनाओं के तीर भी ह्रदय को बेधते  ही हैं , पर ये बिना रक्तपात किये उसके भाव जगत में उथल -पुथल मचा कर मनुष्य को पहले से ज्यादा परिमार्जित कर देते हैं | ऐसी ही एक प्रत्यंचा चढ़ाई है पंखुरी सिन्हा जी ने अपने कविता संग्रह ‘प्रत्यंचा” में| क्योंकि बात पंखुरी  जी की कविताओं की है तो पुष्पों की उपमा देना मुझे ज्यादा उचित लग रहा है | सच कहूँ तो इस काव्य संग्रह से गुज़रते हुए मुझे लगा कि मैं लैंटाना के फूलों के किसी उपवन से गुँजार रही हूँ  विभिन्न रंगों और आकारों के छोटे -छोटे फूलों के गुच्छे , जो सहज ही आपका ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेते हैं | साहित्य जगत में पंखुरी सिन्हा जी के नाम से कोई अनभिज्ञ नहीं है | दो कहानी संग्रहों, दो हिंदी कविता संग्रहों और दो अंग्रेजी कविता संग्रहों की रचियता व साहित्य के अनेकों पुरुस्कारों द्वारा सम्मानित पंखुरी जी के  नवीनतम काव्य संग्रह ‘प्रत्यंचा ‘ से गुजरने की मेरी यात्रा बहुत सुखद रही | ये अलग बात है कि पंखुरी जी का पहला संग्रह कहानियों का था पर उन्हें पहला सम्मान कविता पर मिला | मैं जब से पंखुरी जी से जुडी हूँ मैंने ज्यादातर उनकी कवितायें ही पढ़ी हैं | कभी -कभी लगता है कि कहानी लिखी जाती है और कवितायें लिख जाती हैं ,खुद ब खुद क्योंकि वो दिल के बहुत पास होती हैं …और पाठक को भी उतनी ही अपनी सी महसूस होती हैं | पंखुरी जी की कविताओं की बात करें तो वो बहुत सहज हैं , जो उनका देखा , सुना अनुभव किया है , उसे वो बिना लाग -लपेट के पाठकों के सामने रख देती हैं , और पाठक को भी वो अपना अनुभव लगने लगता है | अब उनकी पहली कविता किस्से को ही देखिये | हम भारतीयों की किस्से सुनाने की बहुत आदत है | जहाँ चार लोग बैठ जाते हैं वहां किस्सागोई  शुरू हो जाती है …पर ये किस्सा है जमे हुए दही का | गाँवों और छोटे शहरों में आज भी मिटटी की हांडी में दही बेचा जाता है | अच्छे दही की पहचान हांडी की ठक -ठक की आवाज़ से होती है | पूरी तरह जम जाने और पत्थर हो जाने वाला दही ग्राह्य है | जब आप इस कविता में डूबेंगे तो ये किस्सा एक अलग ही किस्सा कहता है  इंसान के समाज द्वारा स्वीकृत होने का ,जीवन की विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में पत्थर सा मजबूत हुआ इंसान , जब बार -बार ठोंक पीट कर आजामाया जाता है तभी उसे सर आँखों पर बिठाया जाता है | दही अच्छा बताया जाता है स्वाद से नहीं ठक -ठक की आवाज़ से यानि उस खटखटाहट की आवाज़ से जो प्रतीकों में बताती है दही का जमना स्त्री विमर्श पर .. किसी स्त्री की कविताओं में स्त्री विमर्श के स्वर ना गूँजे ऐसा तो हो ही नहीं सकता | पंखुरी जी की  कविताओं में भी स्त्री सवाल उठाती है | वो साफ़ -साफ़ कहतीं हैं कि स्त्री के लिए चूडियाँ पहनना या उतारना उसकी इच्छा पर निर्भर नहीं करता | ये समाज के आदेश से होता है | समाज ने तय कर रखा है को वो चूड़ी ना उतारे |आपने गाँवों में देखा होगा कि मनिहारिन से चूड़ी पहनने के समय औरते एक पुरानी चूड़ी डाले रहती है क्योंकि कलाई  पूरी तरह से खाली करने की इजाज़त नहीं होती | स्त्री की कलाई और स्त्री की ही चूड़ियाँ पर अफ़सोस कि उनको पहनने -उतारने का हक़ स्त्री को नहीं है | ज्यादातर इस किस्म की होती हैं स्त्री मुक्ति की बातें कि चूड़ी उतारने की इजाजत नहीं होती या फिर पहनने की दुबारा विधापीठ -दो —————- स्त्री जीवन का एक बड़ा सच ये है कि स्त्रियाँ अपनी उम्र छिपाती है , क्यों छिपाती हैं इसके अलग अलग कारण हो सकते हैं और एक कारण पंखुरी जी भी ढूंढ कर लायी हैं … स्त्रियों के साथ भी बिलकुल स्त्री अस्मिता का पहला कदम मन की बातें कुछ मन में ही रख लेना भी एक अदा है और जैसे उम्र भी हो मन ही की बात फॉर्म की लिखाई से बाहर विधापीठ -1 ————— कौन सी स्त्री होगी जिसका हृदय सीता माता के दुःख पर चीत्कार ना कर उठे | उनका दुखी हृदय रामराज्य पर सवाल करता है कि जिस राज्य में एक निर्दोष स्त्री बिना अपनी सफाई का अवसर दिए वन में छोड़ दिए जाने की सजा पाती है वो राम राज्य कैसा है ? वहीँ उनके अंदर आशा भी है कि वह  स्त्रियों को सम्मान  दिलाने वाले श्री कृष्ण तक एक पुल बना देने में गिलहरी की तरह इंटें ढोंगी |  ये बहुत गंभीर बात है कि उस पुल के बन जाने से ही सीता का उद्धार है | हम सब स्त्रियाँ वो गिलहरी हैं … Read more

फिडेलिटी डॉट कॉम :कहानी समीक्षा

कहते हैं शक की दवा को हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी | यूँ  तो ये भी कहा जाता है कि रिश्ते वही सच्चे और दूर तक साथ चलने वाले होते हैं जहाँ आपस में विश्वास हो और रिश्ते की जमीन पर शक का कीड़ा दूर -दूर तक ना रेंग रहा हो , पर रिश्तों में कभी न कभी शक आ ही जाता है ,खासकर पति -पत्नी के रिश्ते में | लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि कोई जबरदस्ती शक आपके दिमाग में घुसा दे ? ये काम करने वाला कोई जान -पहचान वाला नहीं हो , बल्कि ऐसा हो जिससे आपका दूर -दूर तक नाता ही ना हो , और आप की शक मिजाजी में उसका फायदा हो | इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं  हैं | ऐसी ही एक साईट है फिडेलिटी डॉट कॉम और यही है सशक्त कथाकार प्रज्ञा जी की ‘नया ज्ञानोदय’ मई अंक में प्रकाशित कहानी का विषय | हमेशा नए विषय लाने और अपनी कहानियों में आस -पास के जीवन का खाका खींच देने में प्रज्ञा जी सिद्धहस्त हैं | उनकी लंबी -लंबी कहानियाँ पढने के बाद भी लगता है की काश थोड़ा  और पढ़ें | उनके हाल में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘मन्नत टेलर्स ‘में ‘उलझी यादों के रेशम ‘, ‘ मन्नत टेलर्स ‘व् कुछ अन्य कहानियाँ पाठक को अपने भाव जगत में डूब जाने को विवश कर ती हैं | उसके बारे में कभी विस्तार से चर्चा करुँगी , फिलहाल फिडेलिटी डॉट कॉम के बारे में … फिडेलिटी डॉट कॉम :कहानी समीक्षा  ये कहानी एक ऐसी लड़की विनीता के बारे में हैं , जो अपने कड़क मामाजी के अनुशासन में पली है | घर के अतरिक्त कहीं जाना , नौकरी करना उसे रास ही नहीं आता | विवाह के बाद उसके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन होता है , जब उसे अपने पति सुबोध के साथ कोच्चि में रहना पड़ता | अनजान प्रदेश , अजनबी भाषा ऊपर से सुबोध के मार्केटिंग में होने के कारण बार -बार लगने वाले टूर | अकेलापन उसे घेरने लगता है , लोगों से संवाद मुस्कुराहट से ऊपर जा नहीं पाता , और टीवी अब सुहाता नहीं | ऐसे में सुबोध उसे टैबलेट  पर फेसबुक और इन्टरनेट की दुनिया से जोड़ देता है | उसके हाथ में तो जैसे खजाना लग जाता है …रिश्तों के विस्तृत संसार के बीच अब अकेलापन जैसे गुज़रे ज़माने की बात लगने लगती है  | इन्टरनेट की दुनिया में इस साईट से उस साईट को खंगालते हुए एक पॉप अप विज्ञापन पर उसकी निगाह टिकती है, ” क्या आपको अपने साथी पर पूरा भरोसा है ? क्या करते हैं आप के पति जब काम पर बाहर जाते हैं ? क्या आप जानना चाहती हैं ? ना चाहते हुए भी वो उस पर क्लिक कर देती है | फिडेलिटी डॉट कॉम वेबसाईट का एक नया संसार उसके सामने खुलता है | जहाँ फरेबी पति -पत्नियों के अनेकों किस्से हैं , घबरा देने वाले आँकड़े हैं और खुद को आश्वस्त करने के लिए अपने जीवनसाथी की जासूसी करने के तरीके भी | दिमाग में शक का एक कीड़ा रेंग जाता है | जो चीजे अभी तक सामान्य थी असमान्य लगने लगतीं हैं | छोटे -छोटे ऊलजलूल प्रश्नों के हाँ में आने वाले उत्तरों से मन की  जमीन पर पड़े शक की नीव के ऊपर अट्टालिकाएं खड़ी होने लगतीं है और विज्ञापन की चपेट में आ कर वो , वो करने को  हामी बोल देती है जो उसका दिल नहीं चाहता | यानि की फिडेलिटी डॉट कॉम पर क्लिक करके अपनी पति की जासूसी करने का उपकरण खरीदने को तैयार हो जाती है और एक बेल्ट के लिए ओके कर देती है | ये वो जासूसी उपकरण होते है जो ऐसे कपड़ों पर लागाये जाते हैं जो उस व्यक्ति के हमेशा पास रहे | जिससे वो कहाँ जाता है , क्या करता है इसकी पूरी भनक उसके जीवन साथी को मिलती रहे |  हालाँकि बाद में खुद ही उसे इस बात का अफ़सोस होने लगता है कि उसने ये क्यों किया | कहानी में उसके मन का अंतर्द्वंद बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है | जैसे -जैसे कहानी आगे बढती है , पाठक आगे क्या होगा जानने के लिए दिल थाम कर पढता जाता  है | कहानी सकारात्मक और हलके से चुटीले अंत के साथ समाप्त होती है परन्तु ये बहुत सारे प्रश्न पाठक के मन में उठा देती है कि इन्टरनेट किस तरह से हमारे निजी जीवन व् रिश्तों में शामिल हो गया है और एक जहर घोलने में कामयाब भी हो रहा है | ऐसी तमाम साइट्स पर हमारी निजता को दांव पर लगाने वाला हमारा अपना ही जीवन साथी हो सकता है | लोगों से जोड़ने वाला हमें अपनों से दूर कर देने का तिलिस्म भी रच रहा है , जिसमें जाने अनजाने हम सब फँस रहे हैं | एक नए रोचक व् जरूरी कथ्य , सधे हुए शिल्प व् प्रस्तुतीकरण के लिए प्रज्ञा जी को बधाई वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … रहो कंत होशियार -सिनीवाली शर्मा की कहानी की समीक्षा भूख का पता -मंजुला बिष्ट की कहानी समीक्षा आपको समीक्षात्मक  लेख “फिडेलिटी डॉट कॉम :कहानी समीक्षा “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under- Book Review, kahani sangrah, story  in hindi , review, story review

एक नींद हज़ार सपने –आस -पास के जीवन को खूबसूरती से उकेरती कहानियाँ

सपने ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ वो वरदान है, जो उसमें जीने की उम्मीद जगाये रखते हैं  | यहाँ पर मैं रात में आने वाले सपनों की बात नहीं कर रही हूँ बल्कि उन सपनों की बात कर रही हूँ जो हम जागती आँखों से देखते हैं और उनको पाने के लिए नींदे कुर्बान कर देते हैं | “एक नींद हज़ार सपने” अंजू शर्मा जी का ऐसा ही सपना है जिसे उन्होंने जागती आँखों से देखा है, और पन्ने दर पन्ने ना जाने कितने पात्रों के सपनों को समाहित करती गयी हैं | एक पाठक के तौर पर अगर मैं ये कहूँ कि इस कहानी संग्रह को पढ़ते हुए मेरे लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा था कि मैं सिर्फ कहानियाँ पढ़ रही हूँ या शब्दों और भावों की अनुपम चित्रकारी में डूब  रही हूँ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी | अंजू जी, कहानी कला के उन सशक्त हस्ताक्षरों में से हैं जिन्होंने अपनी एक अलग शैली विकसित की है | वो भावों की तूलिका से कागज़ के कैनवास से शब्दों के रंग भरती हैं …कहीं कोई जल्दबाजी नहीं, भागमभाग नहीं और पाठक उस भाव समुद्र में  डूबता जाता है…डूबता जाता है |  एक नींद हज़ार सपने –आस -पास के जीवन को खूबसूरती से  उकेरती कहानियाँ  ‘गली नंबर दो’  इस संग्रह की पहली कहानी है | ये कहानी एक ऐसे युवक भूपी के दर्द का दस्तावेज है जो लम्बाई कम होने के कारण हीन भावना का शिकार है | भूपी मूर्तियाँ बनाता  है , उनमें रंग भरता है , उनकी आँखें जीवंत कर देता है , पर उसकी दुनिया बेरंग है , बेनूर है … वो अपने मन के एक तहखाने में बंद है , जहाँ एकांत है , अँधेरा है और इस अँधेरे में गड़ती  हुई एक टीस  है जो उसे हर ऊँची चीज को देखकर होती है | किसी की भी साइकोलॉजी  यूँ ही नहीं बनती, उसके पीछे पूरा समाज दोषी होता है | बचपन से लेकर बड़े होने तक कितनी बार ठिगने कद के लिए उसे दोस्तों के समाज के ताने सुनने पड़े हैं | एक नज़ारा देखिये … “ओय होय, अबे तू जमीन से बाहर आएगा या नहीं ?” ‘भूपी तू तो बौना लगता है यार !!! ही, ही ही !!’ “अबे, तू सर्कस में भरती क्यों नहीं हो जाता, चार पैसे कम लेगा|” “साले तेरी कमीज में तो अद्धा कपडा लगता होयेगा, और देख तेरी पेंट तो चार बिलांद की भी नहीं होयेगी |”                                          किसी इंसान का लम्बा होना, नाटा  होना , गोरा या काला होना उसके हाथ में कहाँ होता है | फिर भी हम सब ऐसे किसी ना किसी व्यक्ति का उपहास उड़ाते रहते हैं या दूसरों को उड़ाते देखते रहते हैं ….इस बात की बिना परवाह किये कि ये व्यक्ति के अंदर कितनी हीन भावना भर देगा | भूपी के अंदर भी ऐसी ही हीन ग्रंथि बन गयी जो उसे मौन में के गहरे कुए में धकेल देती है | ग्लैडिस से लक्ष्मी बन कर पूरी तरह से भारतीय संस्कृति में रची बसी भूपी की भाभी , उसके काम में उसकी मदद करती | लक्ष्मी का चरित्र अंजू जी ने बहुत खूबसूरती से गढ़ा है ,ये  आपको अपने आस –पास की उन महिलाओं की याद दिला देगा जो विवाह के बाद भारतीय संस्कृति में ऐसी रची कि यहीं की हो के रह गयीं | खैर, भूपी के लिए सोहणी का विवाह प्रस्ताव आता है जिसके पिता की ८४ के दंगों में हत्या  हो चुकी है और रिश्तेदारों के आसरे जीने वाली उसकी माँ किसी तरह अपनी बेटी के हाथ पीले कर देन चाहती हैं | भूपी के विपरीत सोहणी खूब –बोलने वाली, बेपरवाह –अल्हड़ किशोरी है जिसके पास रूप –रंग व् लंबाई भी है …वही लम्बाई जो भूपी को डराती है | भूपी और सोहणी का विवाह हो जाता है पर उसकी लंबाई भूपी को अपने को और बौना महसूस  कराने लगती है| सोहणी को कोई दिक्कत नहीं है पर ये हीन ग्रंथि, ये भय जो भूपी ने पाला है वो उनके विवाहित जीवन में बाधक है … कहानी में पंजाबी शब्दों का प्रयोग पात्रों को समझने और उनके साथ जुड़ने की राह आसान करता है | कहानी बहुत ही कलात्मकता से बुनी गयी है | जिसके फंदे-फंदे में पाठक उस कसाव को मह्सूस करता  है जो कहानी की जान है | एक उदाहरण देखिये … भूपी को दूर –दूर तक कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा , एक कालासाया उसके करीब नुमदार  हुआ और धीरे –धीरे उसे जकड़ने लगा | भूपी घबराकर उस साए से खुद को छुडाना चाहता है | वह लगभग जाम हो चुके हाथ –पैरों को झटकना चाहता है , पर बेबस है , लाचार है | “ समय रेखा “  संग्रह की दूसरी कहानी है | ये कहानी मेरी सबसे पसंदीदा दो कहानियों में से एक है, कारण है इसका शिल्प …जो बहुत ही परिपक्व लेखन  का सबूत है | अंजू जी के लेखन की यह तिलस्मी, रहस्यमयी शैली मुझे बहुत आकर्षित करती है, साथ ही इस कहानी दार्शनिकता इसकी जान है |  कहानी का सब्जेक्ट थोड़ा बोल्ड है और वो आज की पीढ़ी को  परिभाषित करता है | ये कहानी अटूट बंधन पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है और  आप इसे यहाँ पढ़ सकते हैं | वैसे तो ये कहानी बेमेल रिश्तों पर आधारित है  | आज हम देखते हैं कि बेमेल रिश्ते ही नहीं प्रेम विवाह भी टूटते हैं …इसका एक महत्वपूर्ण कारण है कि प्रेम होना और प्रेम में पड़ जाना दो अलग-अलग चीजें हैं | प्रेम में पड़ जाने के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं , जो उस समय समझ नहीं आते पर साथ रहने , या ज्यादा समय साथ गुज़ारने से मन की पर्ते खुलती हैं , प्रेम में पड़ जाने का कारण समझ में आता है , फिर होता है अंतर्द्वंद … कहानी की शुरुआत ही खलील जिब्रान के एक कोटेशन से होती है .. . “प्रेम के अलावा प्रेम में और कोई इच्छा नहीं होती |पर अगर तुम प्रेम करो और तुमसे इच्छा किये बिना रहा ना जाए तो यही इच्छा करो कि तुम पिघल जाओ प्रेम के रस में और प्रेम के इस पवित्र … Read more

कुछ अनकहा सा -स्त्री जीवन के कुछ अव्यक्त दस्तावेज

                            बातें , बातें और बातें …दिन भर हम सब कितना बोलते रहते हैं …पर क्या हम वो बोल पाते हैं हैं जो बोलना चाहते हैं | कई बार बार शब्दों के इन समूहों के बीच में वो दर्द छिपे रहते हैं हैं जो हमारे सीने में दबे होते हैं क्योंकि उनको सुनने वाला कोई नहीं होता या फिर कई बार उन शब्दों को कह पाना हमारी हिम्मत की परीक्षा लेता है , आसान नहीं होता अपने बाहरी समाज स्वीकृत रूप के आवरण के तले अपने मन में छुपी उस  नितांत निजी पहचान को खोलना जिसको हम खुद भी नहीं देखना चाहते …शायद इसी लिए रह जाता है बहुत कुछ अनकहा सा ..और इसी अनकहे  को शब्द देने की कोशिश की है कुसुम पालीवाल जी ने अपने कहानी संग्रह ” कुछ अनकहा सा ” में | जिसमें अनकहा केवल दर्द ही नहीं है प्रेम , समर्पण की वो भावनाएं भी हैं जिनको व्यक्त करने में शब्द बौने पड़ जाते हैं | इस संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ स्त्री पात्रों के इर्द -गिर्द घूमती हैं | यह संग्रह किसी स्त्री विमर्श के साहित्यिक ढांचे से प्रेरित नहीं है , लेकिन धीरे से स्त्री जीवन की समस्याओं की कई परते खोल देता है …जो ये सोचने पर विवश करती हैं कि इस दिशा में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है |  कुसुम जी के कई काव्य संग्रह  पाठकों द्वारा पसंद किये जा चुके हैं ये उनका पहला कहानी संग्रह है | जाहिर है उनको इस पर भी पाठकों की प्रतिक्रियाएं व् स्नेह मिल रहा होगा | इस संग्रह को पढने के बाद मैंने भी इस अनकहे  पर कुछ कहने का मन बनाया है …. कुछ अनकहा सा -स्त्री जीवन के कुछ अव्यक्त दस्तावेज  “गूँज” इस संग्रह की पहली कहानी है | ये गरीब माता -पिता की उस बेटी की कहानी है  जिसकी पढाई बीच में रोक कर उसकी शादी कर दी जाती है | पिता शुरू में तो अपनी बेटी की शिक्षा में साथ देते हैं फिर उसी सामाजिक दवाब में आ जाते हैं जिसमें आकर ना जाने कितने पिता अपनी बेटियों की कच्ची उम्र  में शादी कर देते हैं कि पता नहीं कब अच्छा लड़का मिले | अपने ऋण से उऋण होने की जल्दी बेटी के सपनों पर कितनी भारी पड़ती है इसका उन्हें अंदाजा भी नहीं होता | यही हाल सरोज का भी है जो अपने सपनों को मन के बक्से में कैद करके कर्तव्यों की गठरी उठा कर ससुराल चली आती हैं | आम लड़कियों और सरोज में फर्क बस इतना है कि उसके पास माँ की शिक्षा की वो थाती है जो आम लड़कियों को नसीब नहीं होती | उसकी माँ ने विदा होते समय  चावल के दानों के साथ उसके आँचल के छोर में ये वाक्य भी बाँध दिए थे कि , ” बेटा अपना अपमान मत होने देना , मर्द जाति  का हाथ एक बार उठ जाता हैं तो बार -बार उठता हैं तो बार -बार उठता है और इस तरह औरत का समूचा अस्तित्व ही खतरे में आ जाता हैं |”  अपने आस -पास देखिये , कितनी माएं हैं जो ऐसी शिक्षा अपनी बेटी को देती हैं | ये सरोज की थाती है | शराबी पति , धीरे -धीरे बिकती जमीन , हाथ में कलम के स्थान पर गोबर कंडा पाथना और घर और बच्चों की परवरिश के लिए दूसरों के घर जाकर सफाई -बर्तन करना , सरोज हर जुल्म बर्दाश्त करती हैं | लेकिन जब एक दिन उसका पति उस पर हाथ उठाता  है, तो   ….अपने शराबी पति के लिए किये गए सारे त्याग समर्पण भूल कर एक झन्नाटेदार तमाचा उसे भी मारती है | ये गूँज उसी तमाचे की है …. जिसकी आवाज़ उसकी छोटी से झुग्गी के चारों ओर फ़ैल जाती है | ये कहानी घरेलु हिंसा के खिलाफ स्त्री के सशक्त हो कर खड़े होने की वकालत करती है | अमीर हो , गरीब हो , हमारा देश हो या अमेरिका हर जगह पुरुष द्वारा स्त्री के पिटने की काली दास्तानें हैं | कितनी सशक्त महिलाएं बरसों बाद जब अपने पति से अलग हुई तो उन्होंने भी इस राज का खुलासा किया कि वो अपने पति से रोज पिटती थीं | आखिर क्या है जो महिलाएं ऐसे रिश्ते में रहती हैं … पिटती हैं और आँसूं बहाती  हैं | हो सकता है हर स्त्री का पति सरोज के पति की तरह शराब से खोखले हुए शरीर वाला न हो और वो उस पर हाथ ना उठा सके पर पर अन्याय के खिलाफ पहले दिन से ही वो घर के बाहर आ कर खुल कर बोल सकती है | और शब्दों के इस थप्पड़ की गूँज भी कम नहीं होगी | “कुछ अनकहा सा”   कहानी एक रेप विक्टिम की कहानी है | कहानी लम्बी है और कई मोड़ों से गुज़रती है | कहीं -कहीं हल्का सा तारतम्य टूटता है जिसे कुसुम जी  फिर साध ले जाती हैं | कहानी एक अनाथ बच्ची नर्गिस की है , जिसे उसका शराबी चाचा फरजाना बी को घरेलु काम करवाने के लिए बेंच देता है | उस समय नर्गिस की उम्र मात्र नौ साल होती   है | फरजाना बी एक समाज -सेविका हैं उनके तीन बेटे हैं सलीम , कलीम और नदीम | जिन्हें नर्गिस भाईजान कहती और समझती है | अपने कार्यकौशल से सबका ल जीतते हुए नर्गिस उस घर में   है … और   साथ ही बड़ी होती है जाती है उसकी अप्रतिम सुंदरता जो तीनों बेटों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं | एक  दिन बड़ा बेटा उसे अकेले में दबोच  लेता है | अपनी लुटी हुई इज्ज़त और टूटे मन  साथ जब वो फरजाना बी का सामना करती है तो वो उसे देख कर भी अनदेखा करती है | यहीं से दूसरे भाई को भी शह मिलती है और दोनों भाई जब -तब उसका उपभोग करने लगते हैं | रोज़ -रोज़ होते इन हमलों से खौफजदा बच्ची जो कभी कश्मीरी सेब सी थी  जाती है | ऐसे में तीसरा भाई नदीम मसीहा बन कर आता है और उससे निकाह का प्रस्ताव रख देता है | नदीम सिर्फ उसके शरीर … Read more

अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार -अनकहे रिश्तों के दर्द को उकेरती कहानियाँ

दैनिक जागरण बेस्ट सेलर की सूची में शामिल “अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार ” के बारे में में जब मुझे पता चला तो मेरी पहली प्रतिक्रिया यही रही कि ये भी कोई नाम है रखने के लिए , ये तो प्रेम की शुचिता के खिलाफ है | फिर लगा शायद नाम कुछ अलग हट कर है , युवाओं को आकर्षित कर सकता है , आजकल ऐसे बड़े -बड़े नामों का चलन है , इसलिए रखा होगा | लेकिन जब मैं किताब पढना शुरू किया तो मुझे पता चला कि लेखिका विजयश्री तनवीर जी भी इस  कहानी संग्रह का नाम रखते समय ऐसी ही उलझन  से गुजरी थीं | वो लिखती हैं , “मैंने सोचा और खूब सोचा और पाया कि बार -बार हो जाना ही तो प्यार का दस्तूर है | यह चौथी , बारहवीं , बीसवीं और चालीसवीं बार भी हो सकता है …प्रेम की क्षुधा पेट की क्षुधा से किसी दर्जा कम नहीं है |” जैसे -जैसे संग्रह की कहानियाँ पढ़ते जाते हैं उनकी बात और स्पष्ट , और गहरी और प्रासंगिक लगने लगती है , और अन्तत:पाठक भी इस नाम पर सहमत हो ही जाता है | इस संग्रह में नौ कहानियाँ हैं | ज्यादातर कहानियाँ विवाहेतर रिश्तों पर हैं | जहाँ प्यार में पड़ने , टूटने बिखरने और दोबारा प्यार में पड़ जाने पर हैं | देखा जाए तो ये आज के युवाओं की कहानियाँ हैं , जो आज के जीवन का प्रतिनिधित्व करती हैं | अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार -अनकहे रिश्तों के दर्द को उकेरती कहानियाँ  “ अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार “ भी एक ऐसी ही कहानी है | अनुपमा गांगुली  अपने दुधमुहे बच्चे के साथ रोज  कोलकाता  लोकल का लंबा  सफ़र तय कर उस दुकान पर पहुँचती है जहाँ वो सेल्स गर्ल है | कोलकाता  की महंगाई से निपटने के लिए उसका पति एक वर्ष के लिए पैसे कमाने बाहर चला जाता है | अकेली अनुपमा इस बीच बच्चे को जन्म देती है , उसे पालती है और अपनी नौकरी भी संभालती है | इसी बीच उसके जीवन में एक ऐसे युवक का प्रवेश होता है जो कोलकाता    की लोकल की भरी भीड़ के बीच अपने बच्चे को संभालती उस हैरान -परेशां माँ की थोड़ी मदद कर देता है | अनुपमा उस मदद को प्रेम  या आकर्षण समझने लगती है | उसके जीवन में एक नयी उमंग आती है , काम पर जाने की बोरियत आकर्षण में बदलती है , कपड़े -लत्तों और श्रृंगार पर ध्यान जाने लगता है , उदास मन को एक मासूम  सा झुनझुना मिल जाता है , जिसके बजने से जिन्दगी की लोकल तमाम परेशानियों के बीच सरपट भागने लगती है | जैसा कि पाठकों को उम्मीद थी ( अनुपमा को नहीं ) उसका ये प्यार …यहाँ पर सुंदर सपना कहना ज्यादा मुफीद होगा टूट जाता है | ये अनुपमा का चौथा प्यार था और इसका हश्र भी वही हुआ जो उसके पति के मिलने से पहले हुए दो प्रेम प्रसंगों का हुआ था | जाहिर है अनुपमा खुद को संभाल लेगी और किसी पाँचवे प्यार् को ढूंढ ही लेगी ….कुछ दिनों तक के  लिए ही सही | वैसे जीवन में घटने छोटे -छोटे आकर्षणों को प्यार ना कह कर क्रश के तौर पर भी देखा जा सकता है , हालांकि क्रश में अगले के द्वारा पसंद किये जाने न किये जाने का ना तो कोई भ्रम होता है न इच्छा | इस हिसाब से ” अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार ” नाम सही ही है | इस मासूम सी कहानी में मानव मन का एक गहरा मनोविज्ञान छिपा है | पहला तो ये कि व्यक्ति की नज़र में खुद की कीमत तब बढती है जब उसे लगता है कि वो किसी के लिए खास है | जब ये खास होने का अहसास वैवाहिक रिश्ते में नहीं मिलने लगता है तो मन का पंछी इसे किसी और डाल पर तलाशने लगता है | भले ही वो इस अहसास की परिणिति विवाह या किसी अन्य  रिश्ते में ना चाहता हो पर ये अहसास उसे खुद पर नाज़ करने की एक बड़ी वजह बनता है | कई बार तो ऐसे रिश्तों में ठीक से चेहरा भी नहीं देखा जाता है , बस कोई हमें खास समझता है का अहसास ही काफी होता है | ये एक झुनझुना है जो जीवन की तमाम परेशानियों से जूझते मन रूपी बच्चे के  थोड़ी देर मुस्कुराने का सबब बनता है | ऐसे रिश्तों की उम्र छोटी होती है और अंत दुखद फिर भी ये रिश्ते  मन के आकाश में बादलों की तरह बार -बार बनते बिगड़ते रहते हैं | आज की भागम भाग जिंदगी और सिकुड़ते रिश्तों के दरम्यान जीवन की परेशानियों से जूझती हजारों -लाखों अनुपमा गांगुली बार बार प्यार में पड़ेंगी … निकलेंगी और फिर पड़ेंगी | कहानी की सबसे खास बात है उसकी शैली …. अनुपमा गांगुली के साथ ही पाठक लोकल पकड़ने के लिए भागता है …पकड़ता , आसपास के लोगों से रूबरू होता है | एक तरह से ये कहानी एक ऐसी यात्रा है जिसमें पाठक  को भी वहीं आस -पास होने का अहसास होता है | “पहले प्रेम की दूसरी पारी “ संग्रह की पहली कहानी है | ये कहानी उन दो प्रेमियों के बारे में है जो एक दूसरे से बिछड़ने , विवाह व् बच्चों की जिम्मेदारियों को निभाते हुए कहीं ना कहीं एक दूसरे के प्रति प्रेम की उस लौ को जलाये हुए भी हैं और छिपाए हुए भी हैं | कहा भी जाता है कि पहला प्यार कोई नहीं भूलता | खैर आठ साल बाद दोनों एक दूसरे से मिलते हैं | दोनों ये दिखाना चाहते हैं कि वो अपनी आज की जिन्दगी में रम गए हैं खुश हैं , पर कहीं न कहीं उस सूत्र को ढूंढते  रहते हैं जिससे उनके दिल को तसल्ली हो जाए …कि वो अगले के दिल में कहीं न कहीं वो  अब भी मौजूद हैं … कतरा भर ही सही , साथ बिताये  गए कुछ घंटे जो अपने पहले प्यार के अहसास को फिर से एक बार जी लेना चाहते थे , दोतरफा अभिनय की भेंट चढ़ गए | सही भी तो है विवाह के बाद उस … Read more

सिनीवाली शर्मा रहौ कंत होशियार की समीक्षा

रहौ कंत होशियार

समकालीन कथाकाओं में सिनीवाली शर्मा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैl  ये बात वो अपनी हर कहानी में सिद्ध करती चलती हैं | उनकी ज्यादातर कहानियाँ ग्रामीण जीवन के ऊपर हैं | गाँवों की समस्याएं, वहां की राजनीति और वहां के लोक जीवन की मिठास उनकी कहानियों में शब्दश: उतर आते हैं | पर उनकी कहानी “रहौं कंत होशियार”  पढ़ते हुए मुझे तुलसीदास जी की एक चौपाई याद आ रही है l  छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा तुलसीदास जी की इस चौपाई में अधम शब्द मेरा ध्यान बार- बार खींच रहा है l हालंकी उनका अभिप्राय नाशवान शरीर से है पर मुझे अधमता इस बात में नजर आ रही है कि वो उन पाँच तत्वों को ही नष्ट और भृष्ट करने में लगा है जिससे उसका शरीर निर्मित हुआ है l आत्मा के पुनर्जन्म और मोक्ष की आध्यात्मिक बातें तो तब हों जब धरती पर जीवन बचा रहे l आश्चर्य ये है कि जिस डाल पर बैठे उसे को काटने वाले कालीदास को तो अतीत में मूर्ख कहा गया पर आज के मानव को विकासोन्मुख l आज विश्व की सबसे बडी समस्याओं में से एक है प्रदूषण की समस्या l विश्व युद्ध की कल्पना भी हमें डराती है लेकिन विकास के नाम पर हम खुद ही धरती को खत्म कर देने पर उतारू हैं l हम वो पाही पीढ़ी हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के एफ़ेक्ट को देख रही है और हम ही वो आखिरी पीढ़ी हैं जो खौफ नाक दिशा में आगे बढ़ते इस क्रम को कुछ हद तक पीछे ले जा सकते हैं l  आगे की पीढ़ियों के हाथ में ये बही नहीं रहेगा l स्मॉग से साँस लेने में दिक्कत महसूस करते दिल्ली वासियों की खबरों से अखबार पटे रहे हैं l छोटे शहरों और और गाँव के लॉग  दिल्ली पर तरस खाते हुए ये नहीं देखते हैं कि वो भी उसी दिशा में आगे बढ़ चुके हैं l जबकि पहली आवाज वहीं से उठनी चाहिए ताकि इसए शुरू में ही रोका जा सके l एक ऐसी ही आवाज उठाई है सिनीवाली शर्मा की कहानी रहौं कंत होशियार के नायक तेजो ने l ये कहानी एक प्रदूषण की समस्या उठाती और समाधान प्रस्तुत करतीएक ऐसी कहानी है जिस की आवाज को जरूर सुना जाना चाहिए l  सिनीवाली शर्मा रहौ कंत होशियार की समीक्षा  आज हमारे शहरों की हवा तो इस कदर प्रदूषित हो चुकी है कि एक आम आदमी /औरत दिन भर में करीब दस सिगरेट के बराबर धुँआ पी लेता है , लेकिन गाँव अभी तक आम की बौर की खुशबु से महक रहे थे, लेकिन विकास के नाम पर स्वार्थ की लपलपाती जीभ तेजी से गाँवोंके इस प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ देने को तत्पर है | ऐसा ही एक गाँव है जहाँ की मिटटी उपजाऊ है | लोग आजीविका के लिए खेती करते हैं, अभी तक किसान धरती को अपनी माँ मानते रहे हैं, उसकी खूब सेवा करके बदले में जो मिल जाता है उससे संतुष्ट रहते हैं| उनके सपने छोटे हैं और आसमान बहुत पास | लेकिन शहरों की तरह वहां का समय भी करवट बदलता है | वो समय जब स्वार्थ प्रेम पर हावी होने लगता है |    विकास के ठेकेदार बन कर रघुबंशी बाबू वहां आते हैं और ईट का भट्टा लगाने की सोचते हैं | इसके लिए उन्हें १५ -१६ बीघा जमीन एक स्थान पर चाहिए | वो गाँव वालों को लालच देते हैं की जिसके पास जितनी जमीन हो वो उसके हिसाब से वो उन्हें हर साल रूपये देंगे | बस उन्हें कागज़ पर अंगूठा लगाना है | ये जानते हुए भी कि भट्ठा को गाँव यानि उपजाऊ मिटटी से कम से कम इतना दूर होना चाहिए , बीच गाँव में उनके भट्टा लगाने की मंशा पर सब अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लेते हैं |  समीक्षा -अनुभूतियों के दंश (लघुकथा संग्रह ) कहानी की शुरुआत ही तेजो और रासो की जमीन गिरवी रखने की बात से होती है | तेजो इसका विरोध करता है | वो अपनी जमीन नहीं देता | वो बस इतना ही तो कर सकता है पर उसको दुःख है तो उपजाऊ मिटटी के लिए जो भट्टा लगाने से बंजर हो जायेगी | धरती के लिए उसका दर्द देखिये … ओसारे पर बैठे –बैठे सोचता रहा | धरती के तरह –तरह के सौदागर होते हैं | वो सबका पेट तो भरती है पर सुलगाती अपनी ही देह है | कहीं छाती फाड़कर जान क्या–क्या निकाला जाता है तो कहीं देह जलाकर ईंट बनाया जाता है | पर उसकी चिंता गाँव वालों की चिंता नहीं है | उनके सर पर तो पैसा सवार है | विकास के दूत रघुवंशी बाबू कहाँ से आये हैं इसकी भी कोई तहकीकात नहीं करता | बस एक उडी –उड़ी खबर है कि भागलपुर के पास उनकी ६ कट्टा जमीन है जिसका मूल्य करीब ४० -४५ लाख है | इतना बड़ा आदमी उनके गाँव में भट्ठा लगाये सब इस सोच में ही मगन हैं | तेजो भी सबके कहने पर जाता तो है पर ऐन अंगूठा लगाने के समय वो लौट आता है | इस बीच गाँव की राजनीति व् रघुवंशी बाबू को गाँव लाने का श्रेयलेने की होड़ बहुत खूबसूरती से दर्शाई गयी है | जिन्होंने ग्राम्य जीवन का अनुभव किया है वो इन वाक्यों से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे …… “जिसको देना था, दे चुके ! वे रघुवंशी बाबू की चरण धूलि को चन्नन बना कर माथे पर लगा चुके हैं | अपने कपार पर तो हम अपने खेत की माटी ही लागयेंगे | एक और किसान दयाल भी तेजो के साथ आ मिलता है | केवल उन दोनों  के खेत छोड़ कर सबने अपनी जमीन पैसों के लालच में दे दी | इसमें से कई पढ़े लिखे थे | पर स्वार्थ धरती माँ के स्नेह पर हावी हो गया | इतना ही नहीं लोगों ने अपने पास रखा पैसा भी बेहतर ब्याज के लाच में रघुवंशी बाबू को दे दिया | मास्टर साहब ने रिटायरमेंट से मिलने वाले रुपये से आठ लाख लगाये , प्रोफ़ेसर साहब ने अपनी बचत से तीन लाख, किसी ने बेटे के दहेज़ का रुपया लगाया तो … Read more

भूख का पता –मंजुला बिष्ट

आदमी की भूख भी बड़ी अजीब होती है रोज जग जाती है, और कई बार तो मनपसंद चीज सामने हो तो बिना भूख के भी भूख जग जाती है | खाने -पीने के मामले में तो भूख नियम मानती ही नहीं ….लेकिन जब ये और क्षेत्रों में भी जागने लगती है तो स्थिति बड़ी गंभीर हो जाती है…प्रस्तुत है मंजुला बिष्ट की कहानी की समीक्षा   भूख का पता –मंजुला विष्ट हंस मार्च 2019 में प्रकाशित मंजुला विष्ट की कहानी भूख का पता जानवर की भूख और इंसान की भूख में तुलना करते हुए जानवर की भूख को इंसान की भूख से उचित ठहराती है …. क्योंकि उन्हें आज भी पता है कि उन्हें कब और कितना खाना है , उनकी भूख आज भी प्राकर्तिक और संतुलित ही है | जब इंसान की भूख उत्तेजक हिंसक मनोरंजन को जोड़ दिए जाने पर भूख के सही पते खोने लगी है | ये भूख कहीं स्वाद में ज्यादा खा लेने में है , कहीं बेवजह हिंसा में है , कहीं वहशीपन में है … ये भूख बिलकुल भी संतुलित नहीं है | मानवता के गिरने में इसी असंतुलित भूख का हाथ है | कहानी थोड़ा रहस्यमय शैली में लिखी गयी है , जिस कारण वो आगे क्या हो कि उत्सुकता जगाती है | मुख्य पात्र एक बच्ची आभा है जो अपने संयुक्त परिवार के साथ रह रही है | बारिश है … दादाजी सो रहे हैं | आभा चाहती है वो चैन से सोते रहे परन्तु खेतों में भरा पानी , बिजली का कड़्कना , पेड़ों का गिरना उनकी नींद तोड़ रहा है | वो दादाजी की नींद की चिंता करते हुए बीच -बीच में अपनी विचार श्रृंखला से उलझ रही है | आभा के मन में दस साल की बच्ची के बलात्कार की खबर का दंश है | कैसे वो एक चॉकलेट के लिए किसी विश्वासपात्र के साथ चल दी जिसने अपनी भूख मिटा कर न सिर्फ उसके विश्वास का कत्ल किया बल्कि उसे जिन्दगी भर का दर्द भी दे दिया | कैसे है यो भूख जो छल से किसी को मिटा के मिटती है ? आभा के मन में अपने भाई सलिल के प्रति हमदर्दी है , क्योंकि रिश्ते के जीजाजी के कहने पर उनके पालतू खरगोश के बच्चे को चाचाजी के लिए पका दिया गया है | चाचाजी व् जीजाजी को आज निकलना था पर बरसात होने के कारण बाजार से ताज़ा मांस नहीं लाया जा सका | सलिल इस भूख को बर्दाश्त नहीं पाया जो स्वाद के लिए किसी अपने की बलि चढ़ा दे … देर तक वो रोता रहा , मांस के शौक़ीन सलिल ने उस दिन शाकाहारी खाना ही खाया | घर के कुत्ते भाटी ने भी उस बोटी को नहीं खाया … शायद उसे भी परिचित गंध आ रही थी | जबकि घर के बाकी लोग उसे स्वाद ले –लेकर खाते रहे | जीजाजी ने तो पेट भर जाने के बाद भी इतना खाया कि देर तक उन्हें डकार आती रही | पढ़ें -देहरी के अक्षांश पर -गृहणी के मनोविज्ञान की परतें खोलती कवितायें इन सब के बीच आभा को इंतज़ार है खरगोश के नए फाहों के जन्म का … जो शायद सलिल का दर्द कम कर सकें | खरगोश के पिंजड़े से आती आवाजें उसे आश्वस्त कर रहीं हैं कि आज सलिल का दर्द कम हो ही जाएगा … नए फाहों को देखकर वो पुराने बच्चे को भूल जाएगा | परन्तु जब आवाज़ बंद नहीं हुई तो सबका शक गया | पिंजड़ा खाली था , माँ अपने बच्चों के लिए तड़फ रही थी | उसकी चीखें सबको आहत कर रहीं थीं पर सवाल था आखिर बच्चे गए कहाँ ? सब का शक पालतू कुत्ते की तरफ चला गया | वो आज कब से बिस्तर पर ही बैठा था …शायद उसका पेट जरूरत से ज्यादा भर गया होगा |तभी आलस दिखा रहा है | अवश्य ही पिंजरे का दरवाजा ठीक से बंद ना होने के कारण पानी में गिरे बच्चे पालतू कुत्ते भाटी ने खा लिए होंगे | उसका आलस यही तो बता रहा है , फिर क्यों न खाता , आखिर उसकी जुबान पर अपनों के मांस का स्वाद जो लग गया था | जानवर जो ठहरा | परन्तु नहीं बेहद मार्मिक तरीके से कहानी बताती है कि भाटी ने उस बच्चों को खाया नहीं बल्कि पानी में डूब कर मर जाने से ना सिर्फ बचाया बल्कि सारी रात बिस्तर पर अपनी पूछ के नीचे छिपा कर उन्हें अपने बदन की गर्मी भी दी | जानवर होंने पर भी उसकी भूख गलत दिशा में नहीं बढ़ी | कहानी इसी नोट के साथ समाप्त होती है कि कुत्ता … एक ऐसा शब्द जो गाली के रूप में इस्तेमाल होता है वो इंसानों से कहीं बेहतर है …. उसकी भूख संतुलित है , वो अपनों का मांस नहीं चूसती , कब क्या खाना है कितना खाना है उसे पता है … स्वाद उसकी भूख को पथभ्रमित नहीं कर रहा , उसकी भूख हवस में नहीं बदल रही … कभी सुना है किसी जानवर ने किसी का बालात्कार किया हो ? इंसानी भूख ने अपना पता बदल लिया है वो जीभ लपलपाते हुए हर तरफ बढ़ रही है … बेरोकटोक , बेलगाम वंदना बाजपेयी फेसबुक पोस्ट से यह भी पढ़ें … अदृश्य हमसफ़र -अव्यक्त  प्रेम की कथा अँधेरे का मध्य बिंदु -लिव इन को आधार बना सच्चे संबंधों की पड़ताल करता उपन्यास देहरी के अक्षांश पर – गृहणी के मनोविज्ञान की परतें खोलती कवितायें   अनुभूतियों के दंश -लघुकथा संग्रह आपको समीक्षात्मक  लेख “भूख का पता –मंजुला विष्ट“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-  REVIEW, story review, published in Hans Magazine

प्रेम और इज्ज़त -आबरू पर कुर्बान हुई मुहब्बत की दस्ताने

मानव मन की सबसे कोमल भावनाओं में से एक है प्रेम | देवता दानव पशु पक्षी कौन है जिसने इसे महसूस ना किया हो | कहा तो ये भी जाता है कि मनुष्य में देवत्व के गुण भी प्रेम के कारण ही उत्पन्न होते हैं | परन्तु विडंबना  ये है कि जिस प्रेम की महिमा का बखान करते शास्त्र  थकते नहीं वही प्रेम स्त्री  के लिए  हमेशा वर्जित फल रहा है | उसे प्रेम करने की स्वतंत्रता नहीं है | मामला स्त्री शुचिता का है | तन ही नहीं मन भी उसके भावी पति की अघोषित सम्पत्ति है जिसे उसे कोरा ही रखना है |   बचपन से ही स्त्री को इस तरह से पाला जाता है कि वो प्रेम करने से डरती है | पर प्रेम किसी चोर की तरह ना जाने कब उसके मन में प्रवेश कर जाता है उसे पता ही नहीं चलता | प्रेम होते ही वो घर में प्रेम की अपराधिनी घोषित हो जाती है | कितने ही किस्से सुनते हैं इन प्रेम अपराधिनों के द्वारा आत्महत्या करने के , ऑनर किलिंग के नाम पर अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा मार दिए जाने के या फिर घर से भाग जाने के जिन्हें जिन्दगी भर अपने मूल परिवार से दोबारा मिलने का मौका ही नहीं मिलता | उनका एक हाथ हमेशा खाली ही रह जाता है | वो जीती तो हैं पर एक कसक के साथ | अब सवाल ये उठता है कि ये जितने किस्से हम सुनते हैं क्या उतनी ही लडकियाँ  प्रेम करती हैं ? उत्तर हम सब जानते हैं कि ऐसा नहीं है | तो बाकि लड़कियों के प्रेम का क्या होता है ? वो इज्ज़त के कुर्बान हो जाता है | इज्ज़त प्रेम से कहीं बड़ी है और लडकियां  प्रेम को कहीं गहरे दफ़न कर किसे दूसरे के नाम का सिंदूर आलता लगा कर पी के घर चली जाती हैं | वहाँ  असीम कर्तव्यों के बीच कभी बसंती बयार के साथ एक पीर उठती है दिल में जो शीघ्र ही मन की तहों में  दबा ली जाती है | परिवार की इज्ज़त पर अपने प्रेम को कुर्बान करने वाली ये आम महिलाए जो खुश दिखते हुए भी कहीं से टूटी और दरकी हुई हैं |  यही विषय है किरण सिंह जी के नए कहानी संग्रह “प्रेम और इज्ज़त “का | इससे पहले किरण जी की तीन किताबें आ चुकी हैं ये उनकी चौथी पुस्तक व् प्रथम कहानी संग्रह है | प्रेम और इज्ज़त -पुस्तक समीक्षा  सबसे पहले तो मैं स्पष्ट कर दूँ कि इस संग्रह की कहानियाँ  प्रेम पर जरूर हैं पर वो प्रेम कहानियाँ नहीं हैं | कहानियों को पढ़कर रोमांटिक अनुभूति नहीं होती वरन प्रश्न उठते हैं और पाठक अपने अन्दर गहरे उतर कर उनका उत्तर जानना चाहता है | कहानी संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ अपने विषय के अनुरूप ही हैं | इसमें सबसे पहले मैं जिक्र करना चाहूँगी पहली कहानी का , जिसका नाम भी ‘प्रेम और इज्ज़त ‘ही है | यह कहानी एक माँ और बेटी की कहानी है जिसमें माँ परिवार की इज्ज़त के नाम पर अपने प्रेम को कुर्बान कर देती है | वर्षों बाद उसका अपना ही अतीत उसकी बेटी के रूप में सामने आ खड़ा होता है | माँ एक अंतर्द्वंद से गुज़रती है और अंतत: अपनी बेटी के प्रेम को इज्ज़त की बलि ना चढाने देने का फैसला करती है | ये कहानी एक सार्थक सन्देश ही नहीं देती बल्कि एक बिगुल बजा ती है नव परिवर्तन का जहाँ माँ खुद अपनी बेटे के प्रेम के समर्थन में आ खड़ी हुई है | ये परिवर्तन हम आज समाज में देख रहे हैं | आज प्रेम के प्रति सोच में थोड़ा  विस्तार हुआ है | पुरातनपंथ की दीवारें थोड़ी टूटी हैं | कम से कम शहरों में लव मेरेज को स्वीकार किया जाने लगा है | परन्तु एक हद तक … और वो हद है जाति  या धर्म | जिस दर्द को  एक अन्य कहानी इज्ज़त में शब्द दिए हैं  | ‘इज्ज़त’ एक ऐसी लड़की नीलम की कहानी है जो शिक्षित है , और अपने समकक्ष ही एक उच्च शिक्षित व्यक्ति से प्रेम करती है , जो उसी के ऑफिस में भी काम करता है | समस्या ये है कि वो व्यक्ति छोटी जाति  का है | ये बात उनके परिवार के लिए असहनीय या इज्ज़त के विरुद्ध है | दुखी नीलम का ये प्रश्न आहत करता है कि जिस तरह मन्त्रों से धर्म परिवर्तन होता है क्या कोई ऐसा मन्त्र नहीं है जिससे जाति परिवर्तन भी हो जाए | नीलम की  पीड़ा उसकी व्यथा से बेखबर परिवार वाले उसके प्रेम को  अंत तक स्वीकार नहीं करते हैं | ये हमारे समाज का एक बहुत बड़ा सच है कि धर्म और जाति की मजबूत दीवारें आज भी प्रेम की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है | कहानी सवाल उठती है और जवाब हमें खुद ही तलाशने होंगे | कुछ अन्य  कहानियाँ है जहाँ प्रेम को स्वयं ही इज्ज़त के नाम पर कुर्बान कर दिया जाता है | जिसमें कल्पना के राजकुमार , बासी फूल ,तुम नहीं  समझोगी ,  गंतव्य , आई लव यू टू और भैरवी हैं | इन सभी कहानियों में खास बात ये है कि एक बार विवाह के बाद दुबारा अपने ही प्रेमी से मिलने पर जब प्रेम के फूल पुन : खिलने को तत्पर होते हैं तो विवाह की कसमें याद कर वो स्वयं ही अपने बहकते क़दमों को रोकते हैं | एक टीस के साथ फिर से जुदा हो जाते हैं | एक तरह से ये भारतीय नारी या भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं | ये हमारे भारतीय समाज की एक बहुत बड़ी सच्चाई  है पर पूर्ण सत्य नहीं है क्योंकि अनैतिक संबंध भी हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं भले ही वो सात पर्दों में दबे रहे हैं | हालांकि जैसा की संग्रह   के शीर्षक में वर्णित है  तो यहाँ लेखिका ने ऐसी ही कहानियों को शामिल किया है जो इज्ज़त को अधिक महत्व देती हैं | उस हिसाब से ये उपयुक्त है | इसके अतिरिक्त कुछ कहानियाँ हैं जो समाज की समस्याओं को प्रस्तुत करती हैं   कई में वो समाधान करती हैं और … Read more

crazy rich Asians -कुछ गहरी बातें कहती रोमांटिक कॉमेडी

crazy rich Asians  ये नाम है एक इंग्लिश बेस्ट सेलर नॉवेल का का जिसे केविन क्वान ने  २०१३ में लिखा था | नावेल बहुत लोकप्रिय हुआ और २०१८ में इस नॉवेळ पर हॉलीवुड फिल्म भी बनी है | फिल्म ऑस्कर के लिए भी नोमिनेट हुई है | केविन ही फिल्म के निर्माता भी हैं |  कहा  जा रहा है ये पहली हॉलीवुड फिल्म हैं जिसकी पूरी कास्ट एशियन है | केविन  के अनुसार जब भी अमीरों की बात होती है तो हम अमेरिका के बारे में सोचते हैं , परन्तु  ऐशिया और चाइना के लोग भी बहुत अमीर हैं | जिनका निवास ऐशिया में अमीरों के लिए प्रसिद्द शंघाई , टोकियो  या हांगकांग नहीं , सिंगापुर  है | जिसके बारे में ज्यादा बात नहीं होती | केविन खुद एक अमीर घराने से हैं और उपन्यास का अधिकतर हिस्सा  सत्य पर आधारित है | Crazy rich Asians -पुस्तक समीक्षा  यूँ तो उपन्यास  एक romcom यानी कि रोमांटिक कॉमेडी है | जिसमें रिचेल चू और निक यंग की प्रेम कहानी है | जहाँ निक सिंगापुर के बेहद अमीर घराने का एकलौता वारिस है जो फिलहाल अमेरिका में पढाता  है | वहीँ रिचेल अमेरिकी निवासी है  जो आज़ाद ख्याल ,   स्वतंत्र  और सामान्य घर की व्अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर है | उसके घर में वो और उसकी माँ हैं | पिता की उसके जन्म लेने से पहले मृत्यु हो गयी थी | उसकी माँ ने उसकी परवरिश एक स्वतंत्र महिला के रूप में की है | निक व् रिचेल  की दोस्ती प्रेम में बदलती है | लेकिन अभी तक रिचेल को पता नहीं होता है कि निक इतना अमीर है | ये बात तब खुलती है जब निक उसे अपने एक रिश्तेदार की शादी में सिंगापुर ले जाता है | रिचेल का एक बिलकुल भिन्न दुनिया से सामना होता है | पैसे की दुनिया , मेटिरियलिस्टिक दुनिया | जहाँ पार्टी कल्चर है युवाओं में शराब , कोकेन , और अनैतिकता है , महिलाओं के लुक्स और शारीरिक बनावट से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक की सालाह देते लोग हैं | वहीँ दूसरी ओर घर में चायनीज माएं और बहनें है जो घर को बांधे रखने के लिए अपना जीवन लगा रहीं हैं |  अपने घर के बच्चों से बेखबर उन्हें अमेरिकी सभ्यता से डर है , क्योंकि वहाँ  की महिलाएं अपने कैरियर अपने वजूद को प्राथमिकता देती हैं | उनके अनुसार वो इन घरों में नहीं चल सकतीं | ऐसा ही भय निक की माँ को  रिचेल के लिए भी है | उन्हें लगता है ये लड़की इतना त्याग नहीं नहीं कर पाएगी | उसको पढ़ते हुए मुझे अपने देश  की माएं याद आ जाती हैं जो इस बात से आँखें मूदें रहती हैं कि एक अमेरिका उनकी नाक की नीचे उनके घर में  बस चुका है , वो बस विदेशी लोगों का भय अपने मन में पाले रहती हैं | क्योंकि ये एक कॉमेडी है इसलिए कोई गंभीर बात नहीं है जिस पर विशेष चर्चा हो  | पर कुछ बातें धीरे से सोचने  पर विवश कर देती हैं | जैसे की रिचेल जो उस घर में निक की माँ जैसी  ही बन कर सासू माँ द्वारा स्वीकारे जाने की कोशिश करती है पर सफल नहीं होती , तो उसकी सहेली कहती है , तुम उनकी तरह मत बनो तुम अपनी तरह बनो , तुम्हारी अपनी जो ख़ास बातें हैं उन पर फोकस करो | उनकी तरह बनने की कोशिश में तुम उस घर में आखिरी रहोगी पर अपनी तरह बन कर पहली | तुम्हारी स्वीकार्यता तुम्हारे अपने गुणों की वजह से होनी चाहिए न की ओढ़े हुए गुणों की वजह से | चेतन भगत ने भी एक बार कुछ -कुछ ऐसा ही कहा था , सास पसंद नहीं करती तो …. ये पोस्ट वायरल हुई थी | ये एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि ससुराल द्वारा स्वीकृत होने के लिए लडकियाँ  अपनी बहुत सी कलाएं गुण छोड़ देती है | उन्हें कार्बन कॉपी बनना होता है | माँ भी यही शिक्षा देकर भेजती है , बिटिया लोनी मिटटी रहना | पर क्या एक लड़की वास्तव में लोनी मिटटी रह सकती है या वो एक आवरण ओढती है , उस आवरण के नीचे उसकी कई मूल इच्छाएं , सपने , और जिसे आजकल कहा जाता है … पैशन , दफ़न रहता है |  अभी कुछ दिन पहले की ही बात है एक महिला से बात हो रही थी , उसका कागज़ पर बनाया स्केच मुझे बहुत अच्छा लगा | तारीफ़ करते ही कहने लगी , मेरी पेंटिंग्स की सब सराहना करते थे , कुछ शादी के बाद बनायीं भी थीं पर ससुर जी को दीवाल में कील गाड़ना पसंद नहीं था , इसलिए दूसरों को दे दी |  मैं सोचती रही कि दीवाल पर तो कील नहीं गड़ी पर कितनी बड़ी कील उसके दिल में गड़ी है ये किसी को अंदाजा ही नहीं था | हालानी ये बात सिर्फ बहुओं के लिए ही नहीं है हम सब को अपने गुणों की कद्र करनी चाहिए | हम किसी भी महफ़िल का हिस्सा हों हमारी पहचान हंमारे अपने गुण होते हैं न कि ओढ़े हुए गुण | कौवा और मोर वाली कहानी तो आपको याद ही होगी | दूसरी बात जिसने प्रभावित किया वो है  निक की  चचेरी  बहन एसट्रिड  |अरब ख़रब पति एसट्रिड  एक सामान्य आर्मी ऑफिसर से प्रेमविवाह करती है | वो चाहती है कि उसके पति को इस बात का अहसास भी ना हो की वो उससे कमतर है | इसलिए ना जाने कितनी कंपनियों के सी ई ओ के पद ठुकरा देती है | अपना सारा समय चैरिटी में ही बिताती है |  कभी महँगी चीजों की खरीदारी भी करती है तो भी उन्हें छुपा देती है कि उसका पति उन्हें देख कर आहत ना हो | उसका प्रयास यही रहता है कि उसका पति  उससे ऊपर ही रहे | हमारे देश में भी तो पत्नियां अपने पति का ईगो बचाए रखने के लिए कितना कुछ कुर्बान कर देती हैं | परन्तु जब ऐस्ट्रिड अपने पति के अनैतिक रिश्तों की खबर लगती है तो वो टूट जाती है |  यहाँ एशियन  पुरुषों  की मानसिकता दिखाई गयी है , वो इसका दोष भी … Read more