अभी तो में जवान हूँ

अभी तो मैं जवान हूँ

जब पचपन के घरघाट भयन, तब देखुआ आये बड़े – बड़े। हम सादी से इनकार कीन, सबका लौटारा खड़े – खड़े॥ कविता का ये अंश अवधि के लोकप्रिय कवि रमई काका (1925-1982)की कविता “बुढ़ऊ का ब्याह” से लिया है | कविता भले ही पुरानी हो पर बुढ़ापे में जवान दिखने की खवाईश आज भी उतनी ही ताज़ा है | ऐसे ही है बिसन चाचा.. जिनके सर पर जवान दिखने का भूत कुछ इस तरह सवार हुआ कि .. आइए पढ़ें  आज के समय की बेहद  लोकप्रिय व्यंगकार अर्चना चतुर्वेदी जी की व्यंग रचना “अभी तो मैं जवान हूँ ” हो सकता है व्यंग पढ़ते -पढ़ते आपको भी कोई नुस्खा मिल जाए |   जवान दिखने के मामले में हमारे बिसन चच्चा ने लुगाइयों को भी पछाड़ रखा है ..उन्हें तो बस जवान दिखने का शौक ऐसा चर्राया है कि वो कुछ भी करने को तैयार हैं .. उम्र भले ही छप्पन की हो पर दिल फुल टू जवान है. देखने में कद काठी मजबूत है ..हाँ गाल थोड़े पिचक से गए हैं ..और आँखे भी थोड़ी गड्डे में धंस गयी हैं ..मुस्कान बड़ी मारक है सो बंदी पटाने में देर नहीं लगती ..पिछले दो चार साल से खोपड़ी के बाल उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं जो काफी हिस्सा चिकना हो गया है ..उसकी वजह से बाकी बचे बालों को रंगने में भी मुश्किल होती है | अब बिसन चच्चा बाकी सब तो एडजस्ट कर लेते हैं ..आँखों पर ऐनक चढ़ा लेते हैं ..चेहरे का रेगुलर फेशियल भी हो जाता है पर इन ससुरे बालों का क्या जिनकी वजह से वे भरी जवानी में बूढ़े नजर आने लगे हैं ..और ये उन्हें कतई गवारा नहीं कि कोई जवान सुन्दरी उन्हें अंकल कहकर निकल ले .. किसी ने कहा आंवला पाउडर लगाओ.. तो पूरे सर पर आवला पोत कर बैठ गए .किसी ने कहा दोनों हाथों के नाख़ून आपस में रगडो ..फिर तो चच्चा हर वक्त नाख़ून ही रगड़ते ..रगड़ रगड़ कर नाख़ून घिस गए पर चाँद गंजी की गंजी ही रही..पर चच्चा निराश नहीं हुए . ..कई देशी इलाज अपना डाले ..खूब बेस्वाद पुडिया भी खा डाली..हकीम जी के दिए बदबू दार तेल भी लगाये पर नतीजा जीरो. कहते हैं ना जो एक बार साथ छोड़ जाए ..वो आसानी से कहाँ वापिस आते हैं ..पर चच्चा हार मानने वालों में से नहीं … अभी तरह तरह के उपाय इलाज ..चल ही रहे थे कि किसी ने चच्चा को बता डाला “ चच्चा बाजार में ऐसी तकनीकी आई है जिससे नए बाल उगाये जाते हैं” अच्छा क्या सच में बाल ऊग सकते हैं, फिर से? “ चच्चा ने खुश होते हुए पूछा हाँ चच्चा अरे आपने क्रिकेट खिलाडी सहवाग को नहीं देखा… अब ..कैसा जवान सा दीखे बाल उगवा के” भतीजे ने अपनी बात अब उदाहरण सहित समझाई चच्चा तो ख़ुशी से ऊछल पड़े और बोले ..तू तो बस ऐसा कर ..पता करके आ जा कितने में हो जायेगा ये काम ..और कितने दिन लगेंगे बाल आने में ? मैं तो अब उगवा ही डालूँगा चाचा रोज सुबह शाम भतीजे को फोन करके जानकारी लेते ..अब भतीजे जी आनाकानी कर रहे थे उन्हें पता ही नहीं था कि सच में ये तकनिकी कहाँ है और कौन करता है ईलाज ..पर चच्चा तो बैचैन हो उठे थे ..वो वक्त जाया नहीं करना चाहते थे ..सो और लोगों से भी पूछने लगे ..आखिरकार एक दिन अखबार में बड़ा सा विज्ञापन देख चच्चा उछल पड़े ..और सीधे पहुँच गए बताये हुए पते पर .और अपनी समस्या सुना डाली ..उन्हें जल्द से जल्द समाधान चाहिए था | वहां जाकर जब उन्होंने फीस सुनी और पूरी प्रक्रिया सुनी ..तो थोड़े से सकपकाए क्योंकि इतने रूपये अभी उनके पास नहीं थे और यदि हों भी तो अपने बालों पर इतना खर्च कर दिया तो पत्नी जी जीना मुहाल कर देंगी. जो कई सालों से सोने की चूड़ियों की मांग कर रही हैं और चच्चा बहाने बना रहे हैं ..वैसे भी इतने खर्चे और इतने दर्द के बाद बाल जमेंगे ही इसकी कोई गारंटी नहीं थी . चच्चा बेचारे निराश से हो लौट तो आये ..पर मिशन बाल उगाओ जारी था ..किसी भी जगह शादी ब्याह में या पार्टी में जाते तो खूब सजते ..अच्छे भी लगते ..दस लोगों से पूछते कैसा लग रहा हूँ? ..लेकिन जैसे ही अपने फोटो देखते फिर उदास हो जाते ..” यार बाल ऊग जाते तो मै भी जमता ..कैसा बूढ़ा सा दिख रहा हूँ “ सब समझाते “ अरे चाचा बहुत जमते हो तुम ,तुम्हे जरुरत ना है इन बालों की” पर चाचा के दिल में तो काँटा सा लगा था .. कुछ दिन बाद किसी भतीजे ने उन्हें विग लाकर दे दी ..विग देखकर चाचा खुश हुए ..फिर एक दो दिन खोपड़ी पर विग पहनी..शक्ल तो अच्छी दिख रही थी ..बिना मेहनत बालों की खेती भी हो गयी पर इस विग में इतनी गर्मी लगती कि चाचा का जी घबरा उठता और खोपड़ी पसीने से भीग उठती. सो ये इलाज भी फेल ही साबित हुआ | चाचा फिर से तरह तरह के तेल साबुन लगा बाल उगाने का प्रयास करने लगे.. किसी ने कहा कड़ी पत्ता पीस कर लगाओ ..तो किसी ने कहा गुडहल का फूल तेल में डालकर कर लगाओ ..चाचा सारा दिन इन्ही नुस्खो में लगे रहते ,,पत्नी और बच्चे मजाक बनाते पर चाचा पर कोई असर नहीं होता . वो तो अर्जुन बन चुके थे जिनका निशाना सिर्फ मछली की आँख पर था | फिर एक दिन किसी हकीम साहब ने बाल उगाने की गारंटी ली और उन्हें एक तेल दे दिया जिसे उन्हें रात को लगाकर सोना था ..सुबह बाल दिखेंगे खोपड़ी पर .. चाचा ख़ुशी ख़ुशी लगभग उछलते हुए घर पहुंचे …बीबी को हुक्म दिया जल्दी से खाना लगा दे ..ताकि जल्दी सोने जा सके. आखिरकार तेल जो लगाना था ..पत्नी जी से खरी खोटी भी सुनी पर जबाब देने में कौन समय बर्बाद करे ..बाल उगायें या इसके मुहँ लगें सोचकर चच्चा चुप ही रहे . रात हुई तो चच्चा ने अपनी खुपड़िया की जम कर मालिश की और सो गए …आधी रात को चच्चा को फुफकारने की आवाज आई और खोपड़ी पर कुछ गिलगिला सा … Read more

अथ श्री मुफ्त मेट्रो कथा

चुनाव का मौसम यानी फ्री का मौसम … हर राजनैतिक पार्टी कुछ ना कुछ फ्री देने की घोषणा करती है | मोदी जी पद्रह लाख हर गरीब के अकाउंट में डलवा रहे थे तो राहुल जी 72000 … अब केजरीवाल जी कहाँ पीछे रहते उन्होंने दिल्ली मेट्रो में सफ़र करने वाली हर महिला का किराया माफ करने की बात कही है | जिसे वो केवल चुनावी वादे  के रूप में ही नहीं ला रहे हैं बल्कि वो चुनाव से पहले ही इसे लागू  करना चाहते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि जनता अब वादो पर यकीन नहीं करती , इसीलिये उसनेअपने ७२००० का नुक्सान करवाने का रिस्क  भी ले लिया है | और ‘आप’ की पतली हालत को देखते हुए वो जनता की रिस्क लेने की खराब आदत को फिर से कोई मौका नहीं देना चाहते | केजरीवाल जी ने इस सुविधा के लिए bpl कार्ड बनवाने की परेशानियों सभी महिलाओं को मुक्ति दे दी है | यानी आप मर्सिडीज से चलती हों या ११ नंबर की बस से कोई फर्क नहीं है , आप मुफ्त मेट्रो यात्रा कर सकती हैं | लेकिन इस फ्री से महिलाओं में एक और फ्री की इच्छा जगी है …. अथ श्री मुफ्त मेट्रो कथा  केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों को बिजली हाफ और पानी माफ़ देने के बाद तीसरे अध्याय में महिलाओं को मेट्रो का किराया माफ़ करने की बात कही है | ख़ुशी के मारे हम महिलाओं के  तो पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं | सुनते हैं इसमें सरकार को १२००००००००००० अतरिक्त भर पड़ेगा | जीरो जरा चेक कर लीजियेगा | ख़ुशी में कहीं  कम ज्यादा ना हो गए हों | इसी ख़ुशी को बांटने के लिए मुहल्ले में हम सब ने इस बात पर वार्ता -पार्टी दी | और सबने अपने –अपने विचार रखे |  सबसे ज्यादा खुश श्रीमती गुप्ता थीं | यूँ तो उनके पास चार  गाड़ियां हैं , पर उनके हिस्से में मर्सिडीज आती है | कारण है वो एवरेज ज्यादा देती है तो बाकी लोग जिन्हें रोज जाना होता है वह मारुती की गाड़ियां ले कर फुर्र हो जाते हैं और् मर्सिडीज रिश्तेदारों पर अपनी शान दिखाए जाने के लिए किसी उत्सव की प्रतीक्षा में खड़ी रह जाती है | अब इस खबर से वो खासी उत्साह  में थीं कि अब तो वो मेट्रो की फ्री यात्रा से दिल्ली के अलग –अलग मालों में जाकर जाकर तमाम एक के साथ एक फ्री स्कीम का लाभ उठा पाएंगी | भाई मानना पड़ेगा कि इस देश में इतनी राजनैतिक पार्टियों के होते हुए भी अमीरों की गरीबी देखने का जो हुनर केजरीवाल के पास है वो किसी के पास नहीं | श्रीमती मलिक ने सुझाव रखा,” क्यों न हम हर महीने होने वाली किटी  पार्टी का आयोजन मेट्रो में ही रखा करें | क्या है कि मैंने तीन –चार किटी  ज्वाइन कर रखी हैं |अब घर में पार्टी हो तो ए सी दिन भर चलता रहता है | बिजली हाफ का फायदा ही नहीं मिल पाता | बिजली का बिल इतना लम्बा –चौड़ा आता है कि देख के पसीना आ जाए | अब ये पार्टियाँ मेट्रो में ही की जाए तो कैसा रहेगा | शुरू के स्टेशन से पकड लेगें तो बैठने की जगह भी मिलेगी | फिर घुमते रहो दिन भर , मनाते रहो पार्टी पर पार्टी आमने –सामने की सीटों पर बैठे हुए | घर का बिजली का बिल भीकम आएगा … ये फायदा अलग से | श्रीमती देसाई कहाँ चुप बैठने वाली थीं , झट से बोलीं , “ मेरे विचार से तो केजरीवाल सरकार को महिलाओं को लंच पैकेट भी फ्री में मुहैया करवाने चाहिए | क्या है कि गर्मी बहुत है ना | हम महिलाओं को खाना बनाने में कितना पसीना बहाना पड़ता है | अब लंच मुफ्त रहेगा तो घूमते रहो रोज यहाँ से वहां … क्या फर्क पड़ता है कि मेट्रो द्वारिका से वैशाली जा रही है या वैशाली से द्वारिका | श्रीमती देसाई की बात सभी महिलाओं को सही लगी | और हम सब चल पड़ीं केजरीवाल से फ्री लंच की मांग करने … जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है एक फ्री मिलने पर दूसरे फ्री की मांग शुरू हो जाती है | केजरीवाल जी मना तो नहीं करेंगे … आखिर बात महिलाओं की …श्श्श …चुनाव की जो है 🙂  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … अप्रैल फूल -याद रहेगा होटल का वो डिनर सूट की भूख तुम्हारे पति का नाम क्या है ? वो पहला खत आपको आपको  व्यंग लेख “ अथ श्री मुफ्त मेट्रो कथा   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under- ,  Satire in Hindi, metro, Delhi metro  free metro ride for women in delhi, 

आइना देखने की दूसरी पारी

अंदाज अपना देखते हैं , आईने में वो, और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो                        निजाम राम पूरी जी का ये शेर जब युवावस्था की दहलीज पर पढ़ा था, तो उसका असर कई दिन तक मन की किताब पर काबिज रहा था, पर जैसा कहते हैं न कि फैशन पलट कर आता है , वैसेही ये शेर भिजीँ में दुबारा पलट कर आया …पर इस बार बड़ा ही खतरनाक मालूम पड़ा | कैसे ?… आइना देखने की दूसरी पारी  ये आइना भी बड़ा अजीब है , न जाने क्या –क्या दिखाता है | बचपन में आपने भी जब पहली बार आइना देखा होगा तो लगा होगा  इसमें कोई  दूसरा बच्चा है जो आपके साथ खेलना चाहता है | दूसरे बच्चे का तो नहीं पर आईने का खेल उसी दिन शुरू हो जाता है | किशोरावस्था तक आते –आते हर आम और खास को आइना पूरी तरह गिरफ्त में ले ही लेता है |ख़ास तौर से अगर लड़कियों की बात करें तो  कौन लड़की होगी जो इस उम्र में दस बार आइना ना देखती हो | जी हाँ गौर  से आइना देखने की पहली उम्र  तब होती है जब लड़की  उम्र के  १५ वें १६ वें पायदान पर दस्तक देती है | अपने पर रीझ कर आइना देखने की उम्र के आते ही घर वाले समझ जाते है कि  बच्ची अब सयानी हो रही है | लेकिन आइना गौर से देखने की दूसरी उम्र भी आती है …पर ये बुढापे की कमसिनी यानि प्रौढ़ावस्था की दस्तक होती है | इस  भयानक अनुभव में खुद पर रीझने के स्थान पर खीझना होता है | आप भले ही हँस लें पर मेरे द्वारा ये लेख लिखने का उद्देश्य एक मासूम का प्रश्न है कि उम्र के इस दौर में आइना देखने के बाद … “मेरे दिल में होता है जो , तेरे दिल में होता है क्या ?” और अगर आप का उत्तर “होता तो है थोड़ा –थोड़ा “ है तो अभी से संभल जाइए | चलिए बात शुरू करते हैं उस दौर से जो गुज़र गया यानि कि जब  हमारी भी १५- १६ की उम्र थी | तब भैया और पिताजी से छुपकर आइना देख लिया करते थे | अलबत्ता माँ कभी –कभी ये चोरी पकड़ लेती और धीरे से मुस्कुरा देती | माँ को इस बात का तकाजा था कि लडकियां इस उम्र में आइना देखती ही है |  आइना देखते –देखते उम्र खिसकने लगी और जीवन में पतिदेव का पदार्पण हुआ , और आईने का काम उनकी आँखों से लिया जाने लगा | कभी तैयार होने के बाद उनकी आँखों में आई चमक को देखकर,  बस प्रकाश के नियमों पर चल कर परावर्तन करने वाला आइना  भाने ही नहीं लगा | बच्चों के होने के बाद घर गृहस्थी के तथाकथित जंजाल में फंसने के बाद तो आइना एक गैर जरूरी चीज सा कमरे के कोने में बैठा अपने अच्छे दिनों को रोता | कारण ये था कि सजने संवारने की फुरसत ही नहीं मिलती | बाल कढ गए हैं , बिंदी ठीक जगह लगी गई, माँग ठीक से भर गयी  … बस इतना काफी लगता  | अलबत्ता शादी ब्याह –कामकाज और तीज त्योहारों में उसके दिन बहुरते …हालांकि उसे शिकायत रहती थी और कभी –कभी बहुत प्यार से उलाहन देता ,  कि आप तो ईद का चाँद हो गयी हैं, अरे हम तो रोज दीदार करने  की चीज हैं और आप कभी तवज्जो ही नहीं देती | पर हम भी आम भारतीय नारियों की तरह  काम , काम और काम की धुन पर इस तरह नाचते रहते कि आईने की फ़रियाद अनसुनी ही रह जाती |    हालांकि कुछ हमसे कुछ बड़ी उम्र की अनुभवदार महिलाएं हमें समझाती भी थी कि, “हर समय काम के चक्कर में यूँ अपनी बेख्याली ना करो ,कुछ अपने साज श्रृंगार पर ध्यान दो, आईने का डसा पानी भी नहीं मांगता |”पर हम अपनी ही रौ में उनकी एक ना सुनते | फिर रहीम दास जी भी तो कह गए हैं कि  रहीमदास जी कह गए हैं कि,  “ तिनका  कबहूँ ना निंदिये”  … और हम तो आईने की उपेक्षा दर उपेक्षा करने पर तुले थे , उसे बदला तो लेना ही था | उसे उम्मीद थी की कभी तो ऊँट आएगा पहाड़ के नीचे और खुदा कसम उसका इंतज़ार मुक्कमल हुआ और कल वो दिन आ ही गया | कल वुधवार की बाज़ार में सस्ता सामान लेने की फिराक में ‘बिग बाज़ार’की ‘वैरी बिग’ लाइन में लगे थे कि एक महिला मेरे पास आई और बोली , “ दीदी मैं आपके पीछे खड़ी हूँ , एक सामान छूट गया है लेकर आती हूँ |”,”दीदी “ शब्द पर ध्यान गया , हमने उन्हें गौर से देखा उम्र में हमसे बड़ी ही लग रहीं थी ,शायद भीड़ में हमें ठीक से देखा नहीं होगा सोचकर हमने दिल को तसल्ली दी और लाइन में जमें रहे | तभी एक अन्य महिला आई (यकीनन वो ६० के पार होगी ) और हमें देखकर बोली , “ आंटी जी ये कैश की लाइन है या पे.टी .एम की |” “कैश की” हमने उनको उत्तर तो दे दिया पर सबसे सस्ता वार वुधवार का नशा सर से उतर गया | सामान के थैले लादे हुए हाँफते –दाफते घर आते हुए हमने इसका सारा दोष अपने बालों को दिया | उन्हीं बालों को , जिनके बारे में हम ये सोचते हुए इतराते नहीं थे कि ४५… पार करने के बाद भी हमारे सिर्फ दो-चार-दस  बाल ही सफ़ेद हुए हैं वर्ना आजकल तो लड़कियों के २८ -३० में ही बाल सफ़ेद होने लगते हैं | पर आज हमें लगा कि उस महिला ने अपने बाल डाई कर रखे थे और हम अपने आठ –दस सफ़ेद बालों के साथ आंटी नज़र आ रहे थे लिहाज़ा उसने इनका फायदा उठाया | अपने टूटे दिल पर लेप लगाने के लिए  घर आकर अपने को काम में उलझा लिया | ये दर्द भी दवा सा लगा |तभी बेटी पास आई और बोली मम्मी जरा हंस कर दिखाओं | उसकी इस बात पर हंसी स्वाभाविक रूप से आगई | मैंने हंसी रोक कर … Read more

लव यू इमरान – आखिर ये पहले क्रश का मामला है

एक समय था जब लड़कियों के क्रश इमरान खान हुआ करते थे |लडकियाँ उन्हें खून से खत लिखा करती थीं |  आज शोशल मीडिया की अनेकों जगह  पर लव यू इंडिया की जगह लव यू इमरान  दिखाई पड़ रहा है | पढ़िए इसी पर एक व्यंगातमक रचना ……….. लव यू इमरान – ये पहले क्रश का मामला है  साहिबान कद्रदान , मेहरबान ,                      आगे समाचार ये है कि युद्ध की मुंडेर पर खड़े भारत पाकिस्तान  के बीच अच्छी खबर ये है कि  पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते हमारे जाबांज विंग कमांडर अभिनन्दन को भारत को सौप दिया गया है  कल  हम सबने  अपने देश के इस बहादुर बेटे की  कुमकुम  और अक्षत की थाली ले कर  आगवानी की है | इस ख़ुशी की खबर आते ही जिस तरह से  सोशल मीडिया पर लव यू पाकिस्तान , लव यू  इमरान के नारे  लग रहे हैं उससे इमरान खान एक आतंकवादी देश के मुखिया कम शांति दूत ज्यादा घोषित किये जा रहे है | इतना लव यू , लव यू तो  हमारे प्यारे -प्यारे सुदर्शन कुवांरे बेचलर नेता  के नसीब में भी नहीं आया |                                 मामले पर जरा गौर  किया तो देखा कि ये लव यू महिलाओं ने ज्यादा लिखा | कसम से हमें भी अपनी जवानी के दिन याद आ गए | उस समय इमरान खान बहुत तेज गेंद फेंकते थे | जब वो दौड़ना शुरू करते थे तो दिल पर हाथ रखे महिलाएं जोर से हूऊऊऊ …. किया करतीं , बेचारे गावस्कर क्रीज पर डटे -डटे उनको खूब दौड्वाते पर लड़कियों की दिल की धड़कन तो इमरान ही बढाते  थे | वो  भारत के खिलाफ मैच खेलते पर लड़कियों की दीवानगी इमरान के साथ रहती | लड़कियों की  इस  कदर दीवानगी पाने के लिए गावस्कर उम्र निकल जाने के बाद भी पिच पर इसी उम्मीद से डटे रहे पर वो उन्हें नहीं मिली तो नहीं मिली | उन्हीं दिनों हमारे  कॉलेज की लडकियाँ खून से इमरान को लव लैटर  लिखतीं थीं | ये लव लैटर कॉलेज में ही लिखे जाते क्योंकि प्रेम तब वर्जित क्षेत्र था | बाकायदा सेफ्टीपिन का इस्तेमाल होता खून निकालने के लिए | जिनका खून थोडा ज्यादा था वो कुछ बड़े खत लिखतीं , जो एनीमिया की शिकार थीं वो बस लव यू इमरान लिख कर छोड़ देतीं | ये चिट्ठियाँ इमरान तक पहुंची या नहीं … पता नहीं | ये उन्होंने पढ़ी या नहीं ये भी पता नहीं …. ये भी पता नहीं | अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने पढ़ी नहीं होगीं , वर्ना एक -आध शादी किसी भारतीय लड़की से भी कर लेते | खैर ,  यही लडकियाँ इमरान की चिट्ठी का इंतज़ार करते -करते दूसरों की बीवियाँ बन गयीं और घर गृहस्थी में ऐसी  रमीं की ये पहला क्रश  भूल ही गयीं , फिर इमरान ने भी खेलना  छोड़ दिया | अब इधर फिर से उन्होंने प्रधानमंत्री बन बैटिंग शुरू की और अपने पूर्ववर्तियों की तरह आतंक की फ़ास्ट बॉल हमारे देश पर फेंकने लगे | इमरान की शक्ल देख कर फिर पहला क्रश याद तो आया पर बेचारीं करतीं क्या … इस बार मामला खेल का नहीं देश का था तो  हर बॉल पर दिल पकड कर हाआआआ इमरान कर नहीं सकतीं थीं | मन मसोस कर रह जातीं | कभी कभी मन होता कि इमरान से कहें कि क्या हुआ है तुम्हें , कभी तो कुछ ऐसा करो कि हम लव यू इमरान कह सकें .. पर इमरान मानते ही नहीं , उन्हें सेना की जो सुननी थी | अब अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते ही सही इमरान ने मौका दे ही दिया ,  उन लडकियां … मेरा मतलब प्रौढ़ाओं के दिल में प्रेम की पुरानी दस्तक की याद ताज़ा करने का  | ये फर्माबदार  महिलाएं अभिनंदन की वापसी के लिए सारे राष्ट्रीय , अन्तराष्ट्रीय  प्रयासों को दरकिनार करते हुए लव यूं इमरान , लव यू इमरान का राग अलापने लगीं  | उम्र हो गयी है , अब ये खत छुप  कर लिखने की जरूरत भी नहीं है ,तो  सोशल मीडिया पर ये चिट्ठियाँ सरेआम लिखी जाने लगीं …. क्या पता  इस बार इमरान तक पहुँच ही जाए आखिर सोशल मीडिया पर तो वो भी रहते हैं | रहते ही होंगे . बाल पक  गए हैं , इसलिए सबको इतना तो समझ आ रहा है कि इमरान ठहरे फ़ास्ट बॉलर , वो  अगला बाउंसर क्या मारेंगे .. पता नहीं , फिर भी जानते समझते हुए , अपने देश की रणनीति और कूटनीति पर गर्व करते हुए भी जो लव यू इमरान लिख रहीं हैं उनको कुछ ना कहें …. ये पहले क्रश का मामला है … पहला प्यार और पहला क्रश भुलाए भूलता है क्या ? नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें ………. अप्रैल फूल -याद रहेगा होटल का वो डिनर सूट की भूख तुम्हारे पति का नाम क्या है ? वो पहला खत आपको आपको  व्यंग लेख “ लव यू इमरान – आखिर ये पहले क्रश का मामला है  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under- ,  Satire in Hindi, Imran khan, Love, I Love , You

दादी कानपुर वाली -दादी और फोटो शूट

                        दादी कानपुर वाली …. प्रस्तुत है पहली कड़ी … दादी कानपुर वाली -दादी और फोटो शूट  हम दादी बोल रहे हैं कानपुर से … अरे वही रिया की दादी … पहचानी की नाही , वही दिल्ली वाली रिया की दादी …. अब तो पहिचान ही गयी हुइयो | तो बतावे लायक बात ई है कि अभी हम कानपुर गए राहे शादी में शामिल होंये  का | शादी हमरे परिवार की राहे , उही का हालचाल बतावे की धुकधुकी मन मा लगी राहे तो सोचा कि कही डाले , अब बूढ़े आदमी का का भरोसा , का पता कब भगवान् का बुलावा आ जाई और हमारी बात हमरे जी मा ही रह जाई | वो कहत हैं ना कि ओही कि खातिर बार -बार जन्म लें  को पड़त हैं | अब हम तो चाहित  है छुटकारा ई बार -बार के जन्म मरण से , तो सोची की बता ही दें |    तो बात दरअसल ई है  बबुआ कि  ये जो आजकल शादी ब्याह में फोटो खींचत हैं ना उ हमको तनिको नाहीं सुहात हैं | ऊ स्टेज पर ही दूल्हा -दुल्हन को ऐसे सटा के बिठा देत हैं कि लाजें से आँखे झुक जात हैं | ऊपर बार -बार कहत हैं अब हाथ पकड़ के फोटो खिचाव , अब गले में बाहें डाल के खिचाव , अब कंधे पे सर रख के खिचाव , और दूनो जैनों,  माने कि  दूल्हा दुल्हन खी -खी करत खिचात राहत हैं | हम बड़े बुजर्गन का तनिको संकोच नाही  रह गया है | पहिले का जमाना का भला था | बुजर्गन की आशीर्वाद देत भये फोटो खिचत थी | अब काहे का आशीर्वाद , बुजर्गन को तो स्टेज पर चढ़ीबे का मौका ही नाहीं मिलता है , आशीर्वाद का दें | हमहूँ मुन्ना की शादी किये राहे  तब तो सबका एक -एक करी के बड़ी इज्ज़त देई -देई के स्टेजवा पर बुलात थे , स्टेज पर बुलाई जान वाली महरारु अइसन लजात थीं की मानो उनही का बियाह हो रहा हुई | अरे मुन्ना की शादी में पप्पू की अम्माँ को दुई बार बुलाये रहे , वो लजात हि राही और हम उके बाद भूले गयी, का है काम काज में काम भी बहुत होत हैं , फिर तो अइसन नाराज़ भइ की चार साल तक बातहू ना कीन्ह रहीं , पप्पू की शादी मा भी मुँह लुकाय -लुकाय डोलत  रहीं | पर आज का बाल बच्चा समझदार हैं | जानत है स्टेज पर तो फोटो शूट चलिहे , तो आपन -आपन मोबाइल से दुई चार लोगन के साथ आपन फोटू खीच के खुदही रख लेत है | सही है इत्ता -महंगा कपड़ा पहिनो , तरह -तरह की डिजाइन बनाय के साज श्रृंगार करो और फोटू  एकहू ना आय तो का फायदा | हमहूँ को मुन्ना की बहु दुई हज़ार की धोती खरीद के दीन रही , सब ऊँच -नीच भी समझाय  दीन रही , मोबाइल से फोटो भी खींच दींन  रही | फिर भी तुम लोग तो जानत हइयो कि परंपरा भी कोई चीज होत है , तो आशीर्वाद की परंपरा राखिबे की खातिर   हमहूँ स्टेज पर चढ़ने की कोशिश कीं राहे , अब तुम सब जानत हुइयो कि ई उमर मा घुटन्वा कितना पिरात हैं , काहे  की कोई न कोई बुजुर्ग तो रहिबे करी तुम्हार लोगन का घर मा | तो  जब हम घुटना पकड़ के चढ़ीबे की कोशीश करत राहीं तो ऊ फोटो ग्राफर हम का ऐसन घूरन  कि लागन लाग कि अबैहे कच्चा ही चबा  जाहिए | तो हम तो भईया तुरंत ही जाई के आपन सीट पर दुबक गए | अब ईहे दशा रह गयी है बुजर्गन की , रोटी खाओ और राम भजो , बोलो कछु नाहीं  |         चलो ऊ भी छोड़ दे तो एक बात तो कहे बिना हमसे ना रहा जाई , ई जो  तुम लोग का काहत हो , अरे उही शादी के पहले की  फोटो खीचन को ….उ प्री वेल्डिंग फोटो शूट , उको सभी बरात -जनात के सामने अइसन बड़ा सा टी वी में दिखात हो कि जी मा धुकधुकी होन लागत है कि सबै कुछ तो खींच डाल तो अब ई वरमाला -अर्माला की जरूरत का रह गयी |  अरे ऊ फोटो खिचन वाले को तो  फोटो खींचन वाले का तो पैसा मिलत है , उ का बस चले तो शादी के बाद के सारे कार्यक्रम भी स्टेजवा पर मनवा दे | राम -राम , एक हमरा जमाना था , शादी के दुई साल बीत गए मुन्ना की अम्माँ भी बन गए पर मजाल है कि मुन्ना के बाबूजी का चेहरा भी ठीक से देखा हो | अरे सभ्यता संस्कार भी कौन्हो चीज होत है की नाहीं | हमने तो अपने जी की कह ली , अब समझना तो तुम्हीं लोगन का है | अब ज्यादा बात करन का टेम  नहीं है अपने पास , ऊ का है ना अभी दूसरी शादी मा भी जाना है , ई भी घरही की है | अब जाने से पहिले घुटनों की मालिश भी तो करी के पड़ी |  वो का है कि आजकल ऊ डी जे पर बुजुर्गन को भी तो नचा देत हैं | पिछली बार सब बहुअन ने मिल के नचवा दीन ,ऊ झिन , झिन , झिन , झिन पे ,  तो ई बार थोड़ी तैयारी से जईये | का है की जमाना बदल रहा है ना तो बुजुर्गंन  को भी बदलना पड़त है | है की नाही चलो , खूब खुश रहो , मौज करो | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें ……. खुद को अतिव्यस्त दिखाना का मनोरोग क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते                         आंटी अंकल की पार्टी और महिला दिवस                                      गोलगप्पा संस्कृति आपको  लेख “ दादी कानपुर वाली -दादी और फोटो शूट  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि … Read more

साडे नाल रहोगे ते योगा करोगे

यूँ तो योग तन , मन और आत्मा सबके लिए बहुत लाभदायक है इसलिए ही इसे पूरे विश्व ने न केवल अपनाया है बल्कि इसे बढ़ावा देने के लिए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी घोषित कर दिया | लेकिन जरा सोचिये इसे योग में अगर हास्य योग भी जुड़ जाए तो …. फिर तो मन भी चंगा हो जाएगा | व्यंग -साडे नाल रहोगे ते योगा करोगे  अपने दुनीचंद जी लोक-संपर्क विभाग में काम करतें हैं। ‘पब्लिसिटी’ में विश्वास रखते हैं। वे सरकारी मशीनरी का एक पुर्जा जो हैं। जब तक उनका एक आध फोटू या लेख कुछेक समाचार पत्रों में ना लग जाये तब तक उनके “आत्माराम” को संतुष्टि नहीं होती। कोई सरकारी मौका या दिवस हो या न हो, कम से कम ‘फोटू’ के साथ अख़बारों में उनके नाम से कुछ जरूर लिखा होना चाहिये। अपने दुनीचंद जी उस बहू की तरह हैं जो रोटी तो कम बेलती है लेकिन अपनी चूड़ियाँ खूब खनकाती है ताकि पतिदेव और सासू मां को पता लगता रहे कि बहू किचन में है तो घर का काम-काज ही कर रही होगी। दुनीचंद जी इतने सनकी हैं कि अगर इनको अपने बारे में जनता को कुछ बताने का मौका न मिले तो इनको बदहजमी और पेट में गैस की शिकायत हो जाती है। इस समस्या से निवारण के लिये वे जंगलों की तरफ निकल पड़ते हैं फिर वहां चाहे बकरियां मिले या भेड़ें, उनके साथ अपना ‘फोटू’ खिचवाते हैं। है क्या, गडरिये का डंडा खुद पकड़ लेते हैं और उसे अपना कैमरा पकडवा देते हैं। जूनून की भी हद होती है, उस दिन अपने मित्र के साथ एक सरकारी दौरे पर कहीं जा रहे थे. रास्ते में सड़क के किनारे जनाब को कंटीली, लाल फूलों वाली झाड़ियाँ दिखी। ड्राईवर को आदेश देकर जनाब दुनीचंद जी ने गाड़ी रुकवा दी, इनका तर्क था -“मैंने आज तक इतने सुंदर फूल काँटों वाली झाड़ियों पर लगे पहले कभी नहीं देखे, यह मौका हाथ से निकल गया तो फिर यह मौका अगले साल अगले मौसम में ही मिलेगा। जनाब ने दो फोटू लिये- एक अपना और एक अपने ड्राईवर का। अपने ड्राईवर का ‘फोटू’ क्यूं लिया, भला? बदला लेने के लिये क्योंकि ड्राईवर ने दुनीचंद जी का पहले फोटू ‘खेंचा’ था चाहे इसका आग्रह खुद दुनीचंद जी ने किया था। अख़बार में इनकी तस्वीर या लेख लगे न लगे, इससे क्या फर्क पड़ता है? खुद ही अपने ‘फेसबुक’ पेज पर लगा लेते हैं. बस, फोटू होनी चाहिये, फिर चाह दस्ताने डालकर झाड़ू ही क्यों न मारना पड़े। घर में बेगम झाड़ू पकड़ाने का निवेदन करती है तो जनाब को कुछ सुनाई नहीं देता, मेरा मतलब ऊँचा सुनाई देता है– ‘ओ मैं कहेया, मैनू नहीं सुनया, भागवाने!” भनाती हुयी बेगम को इनका स्पष्टीकरण होता है. बेगम भी थोडा-बहुत रौला–रप्पा कर के खुद ही झाड़ू उठा लेती है! जिले में कहीं भी डिप्टी कमिश्नर या चीफ मिनिस्टर आ जा रहे हों तो बिना-किसी के ‘दस्से-बताये’ सबसे पहले वहाँ पहुँच जाते हैं! भला क्यूं? एक तो इनकी नौकरी का सवाल और दूसरा, वहाँ फोटू खिचने होते हैं। दुनीचंद जी का मानना है कि अखबार में एक आध लेख फोटो के साथ छपवा देने से लोगो को विश्वास हो जाता है और उन्हें सबूत मिल जाता है कि देश में विकास हो रहा है, प्रगति हो रही है। मेरे विचार से यह प्रगति के नाम पर धोखा हो रहा है, दिखावेबाज़ी हो रही है. ड्रामेबाजी है, एन्वें ई शोशे-बाज़ी। यह वैसी ही तरक्की है जैसे उस दिन नेता जी ने मुझे मेरे पूछने पर बताई – जनाब आपके मंत्री बनने के बाद क्या हुयी है प्रगति? जोश में आकर बड़े गर्व से बोले -“मेरे मंत्री बनने के बाद काफी प्रगति हुयी है: आम के पौधे पेड़ हो गये हैं,गल्ली के पिल्लै शेर हो गये हैं!” यह सब करना पड़ता है जी। अपने दुनीचंद जी का योगा दिवस मिलकर मनाने का न्योता था। मैं कैसे मना करता। फोन पर दूनीचंद जी कहने लगे –“कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है, समय पर आ जाना, ‘रल्ल मिल’ कर योगा-दिवस मनायेंगे..” मैंने मिलने की जगह पूछी तो कहने लगे – “वही, अपने गुरूद्वारे के पिछवाड़े वाले मैदान में, सुबह के नों बजे।” मैंने भी दुनीचंद जी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया. फिर इतना कौन सा फासला था। दुनीचंद जी का बताया हुआ गुरुद्वारा मेरे घर से दो-तीन मोहल्ले छोड़ कर ही तो था। कोई सात समंदर की दूरी थोडा ही थी हमारे बीच में। दिलों में बस मुहब्बतें बरकरार होनी चाहिये और मन में कुछ करने का इरादा। फिर चाहे फासला विलायत तक का हो या अमेरिका तक का। इन्शाह अल्लाह…बाकी सब खैर सल्लाह! अच्छा खायें, अच्छा पीयें, मस्त रहें, व्यस्त रहें, खुश रहें, आबाद रहें लेकिन योगा जरूर करें. मरना ही है तो स्वस्थ रहते हुए मरे, बीमारी से मरना बड़ा तकलीफदेह है, फिर इलाज कौनसा सस्ता है, यह तो हम भारतवासी खुश किस्मत हैं कि सरकारी अस्पताल में हमारा फ्री उपचार होता है, दवाइयां भी मुफ्त मिलती हैं। सुना है कि अमेरिका में तो जनाब अस्पताल में एक बार का दाखला आपको दिवालिया कर देता है। वहां इतनी महंगी दवाइयां होती हैं कि उनके दाम अदा करने के बाद वे गले से नीचे नहीं उतरती। खैर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की प्रभात, मैं समय पर उठा, नहा-धोकर धूप-बत्ती की और फिर गुरूद्वारे के पीछे वाले मैदान तक पहुँचाने वाले रास्ते पर हो लिया। गुरूद्वारे के पास पहुँच कर मुझे कुछ दाल में काला लगा। सोच रहा था कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है, मैदान के बाहर और अन्दर भीड़ –भड़क्का होगा, कुछ तांगे, कुछ गाड़ियां, कुछ रिक्शे वाले शहर की सवारियां ढो रहे होंगे, कुछ चहल-पहल होगी लेकिन जनाब वहाँ तो खामोशी का वातावरण था, न कोई बंदा दिखा और न ही कोई परिंदा, मेरा मतलब वहां न कोई बंदा था और न बन्दे की जात। मैदान के मुख्य द्वार से अन्दर घुसकर मैं यह क्या देखता हूँ, इतने बड़े मैदान में बस दो ही बन्दे थे, मुझे मिलाकर तीन। एक अपने दुनीचंद जी और दूसरा वहां कैमरे वाला मौजूद था जो ध्यान में लीन होने और योग मुद्रा का ड्रामा कर रहे दुनीचंद जी की तस्वीरे अपने कैमरे से भिन्न भिन्न ‘एंगेल’ से कैद कर … Read more

तानाशास्त्र

              ताना मारना एक ऐसी कला है जो किसी स्कूल में नहीं पढाई जाती | इस के ऊपर कोई शास्त्र नहीं है | फिर भी ये पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक का सफ़र बड़ी आसानी से तय कर लेती है | ताना मरने की कला में कोई धर्म  , जाति, देश  का भेद भाव नहीं है , कोई नहीं कहता कि ये हमारे धर्म /देश का ताना है , देखो फलाने  धर्म /देश वाले ने हमारा ताना चुरा लिया |  तानों पर किसी का कॉपीराईट नहीं है , आप देशी -विदेशी , अमीर , गरीब किसी के ताने चुरा सकते हैं | ताना बनाने वाले की सज्जनता तो देखिये वो कभी नहीं कहेगा कि ये ताना मेरा बनाया हुआ है | आज जब हम अपनी चार लाइन की कविता के चोरी हो जाने पर एक दूसरे को भला बुरा कहते हैं,  तो ताना बनाने वालों के लिए मेरा मन श्रद्धा से भर उठता है | तानाशास्त्र  खैर पहला ताना किसने किसको दिया ये अभी शोध का विषय है | परन्तु तानों से मेरा  पहला परिचय दादी ने कराया | जब उन्होंने कहा , ” धीय मार बहु समझाई जाती है “| मतलब आप बहु को न डांट  कर बेटी को डांट दीजिये … बहु तक मेसेज पहुँच जाएगा | जैसे बहु ने बर्तन साफ़ नहीं धोये हैं तो आप बेटी को बुला कर कहिये कि , ” कैसे बर्तन धोती हो , दाग रह गए , अक्ल कहाँ घुटने में है | अब बेटी भले ही कहती रहे , ” माँ , मैंने तो बर्तन धोये ही नही |” हालांकि ये पुराना तरीका है , इसे अब मत आजमाइयेगा , नहीं तो बहु पलट कर कहेगी … डाइरेक्ट मुझसे कहिये ना या ये भी हो सकता है कि बहु कह दे , ठीक है , कल से आप ही धोइयेगा | याद रखियेगा ये पुराना ज़माना नहीं है अब बहु की “नो का मतलब नो होता है “| तानों के प्रकार   समय के साथ तानों का काफी तकनीकी विकास हो चुका है , नित नए अनुसन्धान हो रहे हैं |  अगर इतने अनुसन्धान मार्स मिशन पर होते आज हम मंगल गृह पर पॉपकॉर्न खा रहे होते | फिर भी मोटे तौर पर ताने दो तरह के होते हैं … तुरंता ताना – इस ताने में ताना मारने वाला ऐसे ताना मारता है कि उसे तुरंत समझ में आ जाता है कि उसे ताना मारा गया | सुनने वाले के चेहरे की भाव भंगिमा बदल जाती है | अब ये उसके ऊपर है कि वो इस ताने के बदले में कोई विशेष ताना मार पाता  है या नहीं | अगर वो भी अनुभवी खिलाड़ी हुआ तो “ताने ऊपर ताना ” यानि की ताने की अन्ताक्षरी शुरू हो जाती है | डे आफ्टर टुमारो ताना – ये ताने की विकसित शैली है | आमतौर पर ताना कला में डिग्री होल्डर ही इसका प्रयोग कर पाते हैं | इसमें आप किसी के घर में आराम से चाय -समोसों के साथ ताना खा कर आ जाते हैं , और आप को पता ही नहीं चलता | दो दिन बाद आपके दिमाग की बत्ती जलती है … अरे ये तो ताना था | विशेष प्यारक -मारक ताने                                                  तानों पर अपने अनुभव के आधार पर एक अच्छा ताना वो है जो आपको तुरंत समझ भी आ जाए और आप जवाब में कुछ कह भी न सकें | ऐसी तानों का असर बहुत लम्बे समय तक रहता है |  ऐसे बहुत सारे ताने आपको भी मिले होगे , भूले तो नहीं होंगे | दुखी मत होइए दाद दीजिये कि क्या ताना था बाल काले से सफ़ेद हो गए पर ताना दिमाग में जहाँ बैठा है वहां से रत्ती भर भी नहीं हिला | जिनको इसका अनुभव नहीं है उन्हें उदाहरण के तौर  वो ताना शेयर कर रही हूँ जो ससुराल में मेरा पहला प्यारा , प्यारा  ताना था | हर पहली चीज की तरह वो भी मुझे बहुत अजीज है | हुआ यूं की शादी के बाद एक रिश्तेदार हमारे घर आयीं | उन्होंने पिताजी द्वारा भेंट किये गए सामान को दिखाने की इच्छा जाहिर की | सामान देखते हुए वो बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते  हुए बोलीं , ” अरे , कैसा सामान दिया है तुम्हारे पिता ने ,  हमारी लाडली बहु के साथ नाइंसाफी की है | उनके तो दो-दो बेटियाँ है , तो छोटी क्यों लाडली होगी , पर हमारी तो एक एक ही बहु है | कम से कम ये तो ध्यान रखते  कि हमारी बहु हमें कितनी लाडली है | अब इस ताने के जवाब में एक पिता की दूसरी बेटी  यानि की प्यारी लाडली बहु कुछ कह ही नहीं सकती क्योंकि वो तो इकलौती है | तो उन्हें ज्यादा धक्का लगना  स्वाभाविक है | “ कोई और बहु होती तो शायद बुरा भी मानती पर मैं तो शुरू से ही ताना शास्त्र की मुरीद रही हूँ | इसलिए मेरे मुँह से बस एक ही शब्द निकला “वाओ ” क्या ताना है | मन किया कि अभी उनके चरण छू लें , पर इससे ताने का अपमान होता | ताने के सम्मान में मैंने अपनी इच्छा मन में ही दबा ली | ऐसे प्यार भरे मारक ताने सुनने वाले अक्सर कहते   पाए जाते  हैं , ” वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता /हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम | वैसे ताना मारने वालों में अक्सर ” तानाशाही ” के गुण आ ही जाते हैं | ये तानाशाह बिना तीर -तलवारके सर कलम करते चलते हैं | तानाशास्त्र – ताना कला को बचाने की कोशिश  तानों की इतनी महिमा जानने के बाद मैंने भी इस कला को सीखने की पूरी कोशिश की | कुछ ताने पति की खिदमत में पेश किये  कुछ आये गए की | हालांकि अभी तक घर के बाहर बहुत सफलता नहीं मिली | अक्सर लोगों ने उससे बड़ा ताना दे कर हमारे ताने पर पानी फेर दिया | पर … Read more

ब्रांडेड का बुखार

 सिर्फ ऋतुएं ही नहीं बदलती | ऋतुओ की तरह जमाने भी बदलते हैं | यह चक्र यूँहीं चलता रहता है | पुराने से नया , नए से और नया , वगैरह –वगैरह | मुझे याद आ रहा है हेमामालिनी द्वारा पर्दे पर अभिनीत “ नया जमाना “मूवी  का पुराना गाना “ नया जमाना आएगा …. “ यह बहुत पुरानी सत्तर के दशक की मूवी है | पर सच में आ ही तो गया | अरे भाई ब्रांडेड का ज़माना आ ही तो गया | पिछले कई सालों से ब्रांडेड का खूनी पंजा हमें जकड़ता ही जा रहा है | जहाँ जाओ वहीँ ब्रांडेड | यह शब्द सुन –सुन कर मेरा सर चकराने लगा है | यह शब्द इतना पापुलर हो गया है कि सर चढ़ कर बोलने लगा है | हर घर में सुबह से शाम तक भगवान् का नाम भी इतना नहीं लिया जाता है जितना की इस शब्द का उच्चारण किया जाता है | आज आलम यह है कि जो जितना ब्रांडेड सामान का उपयोग करेगा वो उतना ही आधुनिक और उच्चवर्गीय कहलायेगा | चाहे वो झूठ ही क्यों न हो , सडे  गले कपड़ों को भी अगर कोई ब्रांडेड कह दे तो हमारे मुँह में चमक आ जाती है | और हम उसे फैशन समझ कर उस व्यक्ति की सराहना करते हैं | सब पर चढ़ा ब्रांडेड का बुखार            किसी आम घर का दृश्य देखिये |” मम्मी आपने मेरी जींस कहाँ रख दी , “बेटी नीरा जोर से अपने कमरे से चिल्ल्लाई | अरे कौन सी माँ सविता अपने आटे से सने हाथ पोंछते हुए बोलीं | बेटी का जवाब भी सुन लीजिये ,” वहीँ काली वाली,  kkk  ब्रांडेड वाली |कपड़ों पर तो ब्रांडेड की माया छाई  ही है | इनकी तो बात ही मत पूंछो  | क्योंकि आधुनिकता का प्रचार करते हुए ब्रांडेड होना अति आवश्यक मान लिया गया  है | पर अपनी आदतें भी ब्रांडेड होती जा रही हैं | माँ के हाथ का खाना , गुज़रे ज़माने की बात लगती है | अब तो दाल रोटी , पिज़्ज़ा बर्गर के सामने मुँह पर पल्लू रख कर शर्माती है | चक्की का आटा  अब किसे सुहाता है | छोटे किराने  की दुकाने मुँह फाड़ –फाड़ कर रो रही हैं कि , “ आओ भाई आओ हमारा सामान भी आजमाओ | “ अरे भाई! अब कौन उनकी सुनता है | ब्रांडेड माल  जो बाजू में सारी  सुन्दरता को अपने में समेटे बैठी है और सबका दिल चुरा ले गयी है | हांल  की ही  बात है श्रीमती खन्ना ने श्रीमती देशमुख से एक पार्टी में कहा , “ हाय ! कैसी हो ? “ इधर कुछ दिनों से दिखाई नहीं  दीं | हां यार थोड़ी बिजी हो गयी थी | फोन करने का भी टाइम नहीं मिला, श्रीमती देशमुख ने जवाब दिया  | कहाँ बिजी हो गयी ? श्रीमती खन्ना ने प्रश्न दागा | हमारे मोहल्ले में आजकल योगा  और एरोबिक्स फ्यूजन एक्सरसाइज का कैंप चल रहा है | इसे वर्ल्ड फेमस x x x ब्रांड वाले करा रहे हैं | खालिश शुद्ध देशी योग … योगा भी नहीं पर निर्भर रहने वाली श्रीमती खन्ना का सुनते ही चेहरा चमक  गया | उत्साह से बस इतना ही बोली , हाउ लकी यू आर | अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर“                 अब बात करते हैं भाषा की | तो वो भी कहाँ रही देशी | वो भी हो गयी है ब्रांडेड – हिंगलिश | यानी अपनी हिंदी में अग्रेजी का तड़का | यकीन मानिए अगर ये तड़का न हो तो आज कल के बच्चे हिंदी हज़म ही न कर पाए | वैसे भी हिंगलिश स्टेटस सिम्बल है | ब्रांडेड लोग हिंगलिश में ही बात करते हैं | शुद्ध हिंदी में बात करने वाला तो गंवार समझा जाता है |हमारी लाइफ स्टायल यानी जीने का तौर तरीका और सलीके बदल गए हैं | पति ब्रांडेड कंपनी में काम करते हैं | बच्चा ब्रांडेड स्कूल में पढने जाता है | मम्मी किट्टी पार्टी में ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों में जाती हैं |  पर्स और मोबाइल की तो बात ही छोड़ो | वहां बैठी सभी औरतें ( लेडीज कहना ज्यादा उचित होगा ) आपस में ब्रांडेड की ही बातें करती हैं | हद तो तब हो गयी जब मिसेज शर्मा ने अपनी नौकरानी को चाय के साथ ब्रांडेड बिस्कुट लाने का आदेश दिया | ऐसा लगा कि उनका भारी –भरकम शरीर  भी इन  ब्रांडेड चीजों को खा – खा कर  फूल चुका है | चर्बी से “ मुटिया गयी हो “ कभी न खत्म होने वाला वाकया बन गया है |                   भगवान् बचाए इस ब्रांडेड रुपी राक्षस से | कल सब्जी वाला ठेले में मेंथी –पालक लाया तो मैंने पूंछा , “ भैया कोई और सब्जी नहीं लाये ? “ वह अपने पीले –चीकट दांतों को निपोरते हुए तपाक से बोला , “ आंटी जी मैं कल आपक लिए बिरानडेट सब्जी  लाउंगा | लाल –पीले काप्सीकम , ब्रॉकली और बोलो क्या लाऊं ?यह शब्द सुन –सुन कर मुझे उपकाई सी आने लगी | क्या हमारी हरी ताज़ा सब्जियां किसी से कम हैं ? फलों के ठेलों में भी विदेशी ब्रांडेड फल हमारे देशी फलों के साथ धींगा – मुश्ती  करते देखे जा सकते हैं | न जाने कब वो उन्हें हमारी थाली सी नीचे गिरा दे , कौन जानता है | क्योंकि डॉक्टर जो रिकमंड करने लगे हैं … देशी सेब नहीं , जल्दी ठीक होना है तो ऑस्ट्रेलिया का एप्पल खाइए | आज मैं शर्मिंदा हूँ                          कभी –कभी लगता है सब छोड़ –छाड़ कर गाँव चली जाऊं | वहां के भोले –भाले लोग कम से कम इस ब्रांडेड से तो परे होंगे | पर कहाँ ? गाँव का सीधा –सादा किसान मेरे यहाँ काम करने आया तो मुझे लगा कि यह भोला –भला ही रहेगा |पर मैं गलत थी | चार महीने में ही वो ब्रांडेड बन गया | देशी चाल  ही भूल गया | हाय रे मेरी किस्मत | कहाँ जाऊं ? किसे सुनाऊं ? लोग डिप्रेशन को दूर भगाने के लिए सुबह –सुबह प्राणायाम करते हैं | पर इस ब्रांडेड बिमारी का कोई तोड़ मुझे नज़र नहीं आता | … Read more

अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर

अप्रैल फूल है तो आयातित त्यौहार पर हम भारतीय भी अपने जीवन में हास्य और रोमांच जोड़ने के लिए इसे बड़े उत्साह से मानते हैं| मेरे द्वारा अप्रैल फूल मनाने की शुरुआत बचपन में ही हो गयी थी, जब हम सहेलियाँ एक दूसरे को कहती, ये देखो छिपकली, वो देखो कॉक्रोच, फिर जैसे ही अगला डरता, कहने वाला “अप्रैल फूल” कह कर हँस देता| धीरे –धीरे मेरी उम्र तो बढ़ने लगी पर अप्रैल फूल की उम्र ‘ये देखो छिपकली, वो देखो कॉक्रोच’ से आगे बढ़ी ही नहीं| मैंने भी उसे पुराने फैशन की तरह भुला दिया, पर आज से 4-5 साल पहले अप्रैल फूल ने दुबारा मेरे जिंदगी में दस्तक दी|  अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर मार्च का आखिरी सप्ताह चल रहा था, एक सुबह चाय पीते हुए पतिदेव ने मेरा हाथ थाम  कर कहा, “अगले सोमवार को हम दोनों होटल अशोका में डिनर पर चलेंगे|” फाइव स्टार में जाने की बात सुन कर मैं खुश हो गयी| मैंने पतिदेव से कहा , “ठीक है, मैं बच्चों से कह दूँगी |” पतिदेव बोले, “बच्चे नहीं, सिर्फ तुम और मैं| मैं घर से दूर थोड़ा समय तुम्हारे साथ अकेले में बिताना चाहता हूँ|  कितना थक जाती हो तुम और मैं भी अपने काम में व्यस्त रहता हूँ| इतने सालों में तुमने कितना कुछ किया है मेरे लिए, इस घर के लिए इसलिए| कुछ समय तुम्हें घर –गृहस्थी के झंझटों से दूर रिलैक्स कराना चाहता हूँ| बस तुम और मैं और हमारा पुराना समय|” पढ़िए -तुम्हारे पति का नाम क्या है  किसी मध्यम वर्गीय भारतीय स्त्री के लिए ये प्रस्ताव बहुत अजीब सा है| अमूमन तो बच्चे होने के बाद कोई पति –पत्नी, बच्चों के बिना अकेले किसी बड़े होटल में डिनर पर जाते नहीं| वहीं जैसे–जैसे शादी पुरानी होती जाती है तो साथ में भाई-बहन और उन के बच्चे भी जाने लगते हैं| फिर हमारी शादी तो पड़ोसियों के बच्चों को साथ ले जाने तक पुरानी हो चुकी थी| अटपटा तो बहुत लगा| मन में ख्याल आया कि लगता है पतिदेव ने “अच्छे पति कैसे बनें” या “पत्नी को खुश कैसे रखे” जैसी कोई किताब पढ़ ली है या फिर मेरी लिखी किसी नारी की व्यथा–कथा पढ़ ली होगी| खैर जो भी हो, हमारे धर्म में प्रायश्चित करने वालों को मौका देने का प्रावधान है| आज के माहौल में मैं धर्म विरुद्ध बिलकुल भी नहीं जाना चाहती थी|  हामी भरते हुए मैंने बस इतना पूंछा, “उस दिन तो सोमवार है, क्या आप छुट्टी लेंगे?” पतिदेव बोले, “नहीं मैं टेबल बुक करा दूंगा| मैं ऑफिस से पहुँच जाऊँगा और तुम घर से|” मैंने पति की तरफ देखा उनकी आँखों में सच्चाई नज़र आई|  चुपके-चुपके हुई मेकअप की तैयारी  पतिदेव के ऑफिस जाते ही मैंने ये बात फोन कर के अपनी बहन को बतायी| वो तो ख़ुशी के मारे उछल पड़ी, “वाओ! क्या बात है, जीजाजी अभी भी तुम्हारी इतनी कद्र करते हैं! वर्ना इस उम्र में पतियों को अखबार और टी.वी की बहसों से छुट्टी ही नहीं मिलती”| थोड़ी देर में भाभियों और अन्य बहनों के फोन आने लगे| सब हमें इस बात का अहसास दिला रहे थे कि हम कितने खास हैं जो हमें शादी के इतने साल बाद भी ये अवसर मिला| उस दिन हमें पहली बार अहसास हुआ कि शादी के कई साल बाद पति का अपनी पत्नी को अकेले डिनर पर ले जाने का प्रस्ताव मध्यम वर्गीय भारतीय समाज में किसी पत्नी के लिए ये किसी दिवा स्वप्न से कम नहीं है| तभी पड़ोसन आ धमकी, शायद उन्होंने हमारी फोन पर की हुई बातें  सुन ली थी| वो चहक कर बोली, “भाभीजी आप को मैं तैयार करुँगी| मैंने झेंपते हुए कहा, “अरे तैयार क्या होना है|” वो बोली, “अरे, ऐसे मौके बार–बार थोड़ी ही न आते हैं| बिलकुल परी सी तैयार हो कर जाइएगा| सोमवार में पाँच दिन बाकी थे| हम चुपके–चुपके साड़ी, मैंचिंग चूड़ियाँ, बिंदी, पर्स, लिपस्टिक सेलेक्ट करने में जुट गए| लिपस्टिक के शेड्स ट्राई करते–करते मेरे होंठ ही छिल गए| खैर नियत दिन आया| मैं सज धज कर घर से बाहर निकली| पड़ोसिनों ने ‘आल दा बेस्ट’ कह कर हाथ हिलाया| मैं किसी राजकुमारी की तरह मुस्कुराते हुए टैक्सी में बैठ गयी| मेरा सजधज कर होटल पहुंचना   होटल पहुँच कर देखा पति देव तो आये ही नहीं हैं| रिसेप्शन पर पता किया तो हमारे नाम पर कोई टेबल भी बुक नहीं थी| मैं खुद ही आधा घंटा लेट थी, उस पर टेबल भी बुक नहीं, पतिदेव भी नदारद| मुझे लगा जरूर अपनी पुरानी आदत के अनुसार जनाब टेबल बुक कराना भूल गए होंगे| मैंने भी तय कर लिया कि मैं भी फोन नहीं करुँगी| जब आयेंगे तब कहूँगी, “मुझे नहीं करना आप के साथ डिनर-विनर, आप और आप का भुल्लकड़पन आपको ही मुबारक |” मन ही मन गुस्सा होते हुए मैं होटल के बाहर खड़ी पतिदेव का इंतज़ार करने लगी| मेरे दिमाग में वो सारी घटनाएं एक–एक करके  रील की तरह चलने लगीं जब–जब पति कुछ भूले थे| समय बढ़ता जा रहा था और मेरे गुस्सा भी|  वो घबराहट भरे पल  मैंने घड़ी देखी| दो घंटे बीत चुके थे| अब तो मुझे थोड़ी घबराहट हुई| अभी तक कोई फोन भी नहीं किया| क्या बात है? मैंने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा तोड़ते हुए पतिदेव को फोन लगाया, फोन उठा ही नहीं| मेरी घबराहट और बढ़ी| मैं फोन पर फोन लगाने लगी, पर कोई फोन नहीं उठा| मुझे लगा शायद पतिदेव घर पहुँच कर बच्चों को साथ ला रहे होंगे| मैंने बच्चों को फोन किया, वो भी नहीं उठा| घबरा कर मैंने पड़ोसन को फोन करके घर में देख कर आने को कहा| थोड़ी देर बाद पड़ोसन का फोन आया, वो बोली, “भाभी जी, घर से तो कोई आवाज़ आ नहीं रही है| लगता है कोई है नहीं|”  पढ़िए- हमने भी करी डाई ईटिंग अब तो मेरी घबराहट की कोई सीमा नहीं थी| दिल जोर-जोर से धडकने लगा| मैंने घर के लिए ऑटो किया| मैं लगातार फोन किये जा रही थी, और लगातार ‘नो रिप्लाई’ आ रहा था| अनिष्ट की आशंका से मेरे आँसू बहे जा रहे थे और सब सकुशल हो कि मेरी मनौतियाँ १०१ रुपये से १००१ रुपये, १६ सोमवार, ११ … Read more

अफसर महिमा- व्यंग

विष्णु लोक में नारायण भगवान अनमने ढंग से बैठे हैं. उन्हें बड़ी बेचैनी हो रही है. वे नारदजी की प्रतीक्षा बेसब्री से कर रहे हैं. लक्ष्मीजी आती हैं और उन्हें चिंता-मग्न देखकर पूछ बैठती हैं-  ” क्या हुआ भगवन! आप बड़े चिंतित नजर आ रहे हैं?“ भगवान उत्तर देते हैं- ” हाँ, प्रिये! मुझे चिंता हो रही है. काफी दिन हो गए, नारद नहीं आए. मैं उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.“   तभी वीणा लिये नारदजी का प्रवेश . वे भगवान के पास आकर बैठ जाते हैं.   नारदजी भी खुश  नजर नहीं आ रहे हैं जैसाकि अक्सर वे प्रसन्न मुद्रा में दिखते थे.                                                    ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….2  ” आओ नारद! मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था. मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी. तुम्हें पृथ्वी लोक में इतने दिन कैसे लगे?“- भगवान ने पूछा तो नारद बुदबुदाने लगे-   ” ओम जय लक्ष्मी मैया, बढ़ा दो फीस, भर दो जेब हमारी“…….. ” यह क्या नारद? तुम क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारे मुख से यह क्या सुन रहा हूँ?“- भगवान को नारदजी के मुख से निकले ये शब्द आष्चर्यचकित कर देते हैं. नारदजी अभी भी बुदबुदा रहे हैं-   ” भूख-प्यास मिटती नहीं, इच्छाएँ बढ़ती जातीं.   टी. वी. फ्रिज से काम न चलता, घर में जरूरी कंप्यूटरधारी!“ ” नारद, हे नारद! होश  में आओ. यह तुम क्या कह रहे हो? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है“- भगवान ने टोका तो नारदजी सचेत हुए-  ” क्षमा करें भगवन! मैं भूल ही गया था कि मैं पृथ्वी लोक में नहीं , बल्कि विष्णु- लोक में आ गया हूँ.“  ” कोई बात नहीं. लेकिन तुम जो अभी कह रहे थे, उसका अर्थ मैं समझा नहीं. तुम कुछ अलग तरह की बात कर रहे थे“- नारायण ने पूछा तो नारद ने दोबारा क्षमा माँगते हुए कहा-  ” अपराध क्षमा हो भगवन! मैं आपकी आरती गाना भूल गया था.“  ” यह सब कैसे हुआ? मुझे विस्तार से समझाओ नारद!“- भगवान ने शेषनाग की शय्या पर आराम से लेटते हुए कहा. लक्ष्मीजी उनके पैर दबाने लगीं.  ” बताता हूँ प्रभु! बताता हूँ!“- नारदजी बोले.                                2                                     ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……3  ” हाँ, तो सुनो प्रभु! इस बार मैं पृथ्वी लोक गया तो वहाँ का नजारा बिल्कुल बदला  हुआ था. इसबार मैं करीब-करीब सभी देशों  में गया. पर आपकी जो जन्मभूमि थी, मेरा मतलब, आपने जहाँ अवतार लिए व पापियों का नाश  किया, उसकी बात ही कुछ और थी.“  ” नारद, तुमने मेरी जन्मभूमि को थी   क्यों कहा? क्या अब वह मेरी नहीं है?“ ” क्षमा करें प्रभु! यह भी बताऊँगा. आपने जहाँ जन्म लिया, अवतार लिए, वहाँ अब दूसरे देवताओं की पूजा प्रचलित हो गयी है.“- नारद ने स्पष्ट किया.  ” दूसरे देवताओं की पूजा? क्या इन्द्र और वरूण की पूजा होने लगी है?“- भगवान ने पूछा तो नारदजी को हँसी आ गई.  ” इन्द्र या वरूण? ये तो पौराणिक देवता हैं प्रभु! अब इनका पृथ्वी लोक में कोई काम नहीं.“- नारद बोले.  ” क्या पृथ्वी लोक में कोई काम नहीं? इन्द्र तो वर्षा करवाते हैं, वर्षा के देवता हैं और वरूण समुद्र के देवता! क्या पृथ्वीवासियों को इनका महत्त्व नहीं मालूम? अगर इन्द्र नाराज हो गये तो वर्षा……“ भगवान देवताओं का महत्त्व बताने लगे तो नारदजी ने उन्हें बीच में टोक दिया.  ” भगवन! मैं फिर आपसे क्षमा चाहता हूँ. ये सब पुराने देवता हो गये हैं और अब तो पृथ्वीवासी इनकी बिल्कुल परवाह नहीं करते. ना ही उन्हें इन देवताओं के कोप का भय रह गया है.“  ” वह कैसे?“- भगवान की उत्सुकता बढ़ जाती है.  ” मैंने कहा न कि इन्द्र और वरूण आदि देवता पुराने हो गये हैं. उनकी जगह नये भगवानों ने ले ली है. वे काफी आधुनिक देवता हैं और उन्हें प्रसन्न करना ज्यादा जरूरी है“- नारदजी बोले.                            3                                 ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……..4  – ” जरा मैं भी तो सुनूँ कि आधुनिक देवता कौन हैं?“- भगवान ने कहा.  ” सुनो भगवन! पृथ्वीवासी अब आधुनिक देवताओं को पूजने लगे हैं. ये काफी माॅडर्न भगवान हैं और उनकी शक्तियाँ भी पौराणिक देवताओं से ज्यादा बढ़ी-चढ़ी हैं जिसे ष्पावर’ कहते हैं. आजकल इन देवताओं की ष्पावर’ इतनी बढ़ गयी है कि लोग भयभीत रहते हैं. वे इन देवताओं की पावर से घबराते हैं भगवन्! और किसी तरह की मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते“. नारद बोलते जा रहे थे कि भगवान ने टोका-  ” नारद ! तुम जरा स्पष्ट और सरल भाषा में मुझे बताओ, तुम्हारी भाषा मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है.“ ” ओह! मैं कुछ भूल गया था कि आप अभी आधुनिक यानि मॉडर्न ’ यानि कि अंग्रेजी यानि कि ‘ इंग्लिष’ भाषा से अनजान हैं. यही समस्या पृथ्वीवासियों विषेषकर भारतवासियों की है कि वे मॉडर्न  लैंगवेज’ समझते नहीं और जो यह लैंग्वेज नहीं समझते वे बेचारे पीछे रह जाते हैं. जिंदगी की दौड़ में पिछड़ जाते हैं“- नारदजी का स्वर जरा तेज हो गया. ” हे नारद! मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मेरे अज्ञान का मजाक मत उड़ाओ. मुझे मेरी भाषा में ही समझाओ“- भगवान ने कहा।  ” अपराध क्षमा हो प्रभु! आदत से मजबूर हूँ. क्या करूँ संगति का असर है. मैं इतने दिनों तक पृथ्वीलोक में रहा तो विष्णुलोक की भाषा ही भूल गया. यह भी भूल गया कि आप भी आधुनिक भाषा से अनजान हैं. ऐसा ही भारतवासियों के साथ होता है. वे जब अपना देष छोड़कर विदेश  चले जाते हैं तो अपनी भाषा, संस्कृति भूल जाते हैं और जिस देष में जाते हैं वहीं का रहन-सहन, भाषा, खान-पान, संस्कृति सब अपनाने लगते हैं. भाषा की समस्या उनके साथ भी आती है अतः इंग्लिश ’ सीखना उनके लिए अनिवार्य है. उनका अपनी … Read more