अभी तो में जवान हूँ
जब पचपन के घरघाट भयन, तब देखुआ आये बड़े – बड़े। हम सादी से इनकार कीन, सबका लौटारा खड़े – खड़े॥ कविता का ये अंश अवधि के लोकप्रिय कवि रमई काका (1925-1982)की कविता “बुढ़ऊ का ब्याह” से लिया है | कविता भले ही पुरानी हो पर बुढ़ापे में जवान दिखने की खवाईश आज भी उतनी ही ताज़ा … Read more