गैंग रेप

सुबह-सुबह ही मंदिर की सीढ़ियों के पास एक लाश पड़ी थी,एक नवयुवती की। छोटा सा शहर था, भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। किसी ने बड़ी बेदर्दी से गले पर छुरी चलाई थी,शीघ्र ही पहचान भी हो गई,सकीना!!! कई मुँह से एक साथ निकला। सकीना के माँ बाप भी आ पहुंचे थे,और छाती पीट-पीट कर रो रहे  थे। तभी भीड़ को चीरते हुए रोहन घुसा,  बदहवास, मुँह पर हवाइयां उड़ रही थी। उसको देखते ही,कुछ मुस्लिम युवकों ने उसका कॉलर पकड़ चीखते हुए कहा, ये साला—-यही था कल रात सकीना के साथ,मैं चश्मदीद गवाह हूँ। मैंने इन दोनों को होटल में जाते हुए देखा था, और ये जबरन उसको खींचता हुआ ले जा रहा था। भीड़ में खुसफुसाहट बढ़ चुकी थी। रोहन पर कुकृत्य के आरोप लग चुके थे। रोहन जितनी बार मुँह खोल कुछ कहने का प्रयास करता व्यर्थ जाता। दबंग भीड़ उसको निरंतर अपने लात घूंसों पर ले चुकी थी। पिटते पिटते रोहन के अंग-प्रत्यंग से खून बह रहा था। तभी दूसरी ओर से हिन्दू सम्प्रदाय की भीड़ का प्रवेश, साथ मे सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां। जल्दी ही रोहन को जीप में डाल अस्पताल ले जाया गया। उसकी हालत नाजुक थी। बार बार आंखें खोलता और कुछ कहने का प्रयास करता और कुछ इशारा भी— पर शाम होते होते उसने दम तोड़ दिया। उसका एक हाथ उसके पैंट की जेब पर था।       डॉ आरिफ ने जब उसका हाथ पैंट की जेब से हटाया तो उन्हें एक कागज दिखा, उस कागज़ को उन्होंने निकाला, पढ़ा। कोर्ट मैरिज के कागज़ात। पीछे से पढ़ रहे एक युवक ने उनके हाथ से कागज छीन उसके टुकड़े टुकड़े किये और हवा में उछाल दिया।     देखते देखते, शहर में मार काट मच चुकी थी।जगह जगह फूंकी जाती गाड़ियां, कत्लेआम, —दो सम्प्रदाय आपस मे भीड़ चुके थे।चारों तरफ लाशों के अंबार। प्रशासन इस साम्प्रदायिक हिंसा को काबू में करने  की भरसक कोशिश कर रहा था, पर बेकाबू हालात सुधरने का नाम नही ले रहे थे। अखबार, टी वी सनसनीखेज रूप देकर यज्ञ में आहुति डालने का काम कर रहे थे।    ऐसे में ही बेरोजगार हिन्दू नवयुवकों की एक टोली, जिसके सीने में प्रतिशोध की अग्नि धधक रही थी,उनको सामने से आती नकाब पहने,दो युवतियां दिखीं। आंखों ही आंखों में इशारा हुआ, और एक गाड़ी स्टार्ट हुई। युवतियों के मुँह पर हाथ रख उनकी चीख को दबा दिया गया। काफी देर शहर में चक्कर काटने के बाद गाड़ी को एक सुनसान अंधेरे स्थान पर रोक दिया गया। युवतियां अभी भी छटपटा रही थीं सो उनके मुंह मे कपड़ा ठूंस हाथ बांध दिए गए। और सिलसिला एक अमानवीय अत्याचार का—- बेहोश पड़ी युवतियों को घायल अवस्था मे एक रेल की पटरी के पास फेंक गाड़ी फरार हो ली। सुबह के अखबारों में उन युवतियों के खुले चेहरे के फोटो छपे ,पहचान के लिए। फौरन थाने में रोती कलपती निकहत बी पहुंची, हाय अलका! सुमन! मेरी बच्चीयों, तुम को सुरक्षित मुस्लिम मोहल्ले से निकाल देने का हमारा ये प्रयास ये रंग लेगा, पता न था।  हाय मेरी बच्चियां, खुदा जहन्नुम नसीब करे ऐसे आताताइयों को। उनका विलाप, करुण क्रंदन, बहते हुए आंसुओं को रोक पाने में समर्थ न था। और उन आताताइयों में से, 2 आतातायी ,उन युवतियों के चचेरे भाई सन्न से बैठे थे—– उनकी समझ मे नही आ रहा था ये हुआ क्या??———–              रश्मि सिन्हा यह भी पढ़ें ………. तुम्हारे बिना काकी का करवाचौथ उसकी मौत यकीन आपको आपको  कहानी  “गैंग रेप  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords:gang rape, crime, crime against women, victim

बाल मनोविज्ञान आधारित पर 5 लघु कथाएँ

बच्चे हमारी पूरी दुनिया होते हैं | पर बच्चों की उससे अलग एक छोटी सी दुनिया होती है | कोमल सी , मासूम सी | उनमें एक कौतुहल होता है और ढेर सारी जिज्ञासाएं | हर बात पर उनके प्रश्न होते है | और हर प्रश्न के लिए उन्हें उत्तर चाहिए | मिल गया तो ठीक नहीं तो वो हर चीज को अपने तरीके से समझने की कोशिश करते हैं | बच्चे भले ही छोटे हों पर उनके मन को समझना बच्चों का खेल नहीं है | आज उनके हम उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश करते हुए आप के लिए लाये हैं पांच लघुकथाएं … पढ़िए बाल मनोविज्ञान पर पाँच  लघु कथाएँ  चिंमटा  नन्हा रिंकू खेलने में मगन है | आज वो माँ रेवती के साथ किचन में ही खेल रहा है | घर की सारी  कटोरियाँ उसने ले रखी हैं | एक कटोरी का पानी दूसरे में दूसरी का तीसरे में … बड़ा मजा आ रहा है उसको इस  खेल में | तभी उसका ध्यान चिमटे की ओर चला जाता है | वो झट से चिंमटा  उठा कर बजाने लगता है …टिंग , टिंग ,टिंग | रेवती  उसे मना  करती है ,” बेटा  चिमटा मत बजाओ | पर रिंकू कहाँ मानने वाला है | खेल चल रहा है … टिंग टिंग , टिंग  रेवती  :मत बजाओ , रखो उसे  रिंकू :टिंग , टिंग , टिंग  माँ चिंमटा  छींनते  हुए कहती है ,”नहीं , बजाते चिमटा ,पता है चिंमटा  बजाने से घर में कलह होने लगती है |  रिंकू रोने लगता है | तभी रिकू के पापा सोमेश फाइलों से सर उठा कर कहते हैं ,”दे दो चिमटा | मुझे ये फ़ाइल कल ही जमा करनी है | इसकी पे पे से तो चिमटे की टिंग , टिंग भली  रेवती  ; ऐसे कैसे दे दूँ | चिंमटा  बजाने से घर में कलह होने लगती है | सोमेश  :क्या दकियानूसी बात है | रेवती  : दकियानूसी नहीं , पुरखों से चली आ रही है |ऋषि – मुनि कह गए हैं | सोमेश  : सब अन्धविश्वास है | कम से कम मेरे बेटे को तो  अन्धविश्वास  मत सिखाओ रेवती : (आँखों में आँसूं भर कर )मुझे ही कहोगे | जब तुम्हारी माँ कहती हैं की चावल तीन बार मत धो , नहीं तो वो भगवान् के हो जाते हैं खा नहीं सकते | तब कहते हो मानने में क्या हर्ज है माँ कह रहीं है तो जरूर ही सच होगा  | फिर उनका  इतना  मन तो रख सकते हैं | आज मैं अपने बेटे से इतना भी नहीं कह सकती | सोमेश : (आवेश में ) देखो माँ को बीच में मत लाओ रेवती : क्यों न लाऊ | जो तुम्हारी माँ कहे वो संस्कार , जो मैं कहूँ वो पोंगा पंथी सोमेश : अच्छा, और तुम्हारी माँ तो …..                           रिंकू सहम कर चिंमटा  एक तरफ रख देता है | उसे पता चल गया है कि चिंमटा  बजाने से घर में कलह होती है | ———————————————————————— क़ानून  सरला जी ने दरवाजा खोला … ये क्या …. उनका ४ वर्षीय बेटा चिंटू आँखों में आँसू  लिए खड़ा है । क्या हुआ बेटा … सरला जी ने अधीरता से पूंछा । मम्मी आज मैं ड्राइंग की कॉपी नहीं ले गया था, इसलिए मैम ने चांटा मार दिया ।  सरला जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया । गुस्से मैं बोलीं … ये कैसी औरत है , तुम्हारी टीचर  क्या उसे बच्चों के कानून के बारे में पता नहीं है । चलो मेरे साथ मैं आज ही उस को कानून बताउंगी । तमतमाती हुई सरला जी चिंटू को साथ ले स्कूल पहुंची । प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत की और उन्हें बच्चों के कानून का वास्ता दिया । प्रिंसिपल ने तुरंत टीचर को बुलाकर ताकीद दी कि छोटे बच्चों को बिलकुल न मारा जाये ये कानून है ।  ख़ुशी ख़ुशी चिंटू अपनी मम्मी के साथ घर आ गया । खेलते खेलते उसने ड्रेसिंग टेबल की अलमारी खोल ली । रंग बिरंगी लिपस्टिक देखकर उसका मन खुश हो गया । कुछ दीवार पर पोत दी कुछ मुँह  पर लगा ली और कुछ सहज भाव से तोड़ दी ।   सरला जी वहां आयीं और ये नज़ारा देखकर उन्होंने आव देखा न ताव … चट चट ३-४ तमाचे चिंटू के गाल पर जमा दिए और कोने में खड़े होने की सजा दे दी । कोने में चिंटू खड़ा सोंच रहा है ….. क्या घर में छोटे बच्चों को मारने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है । ——————————– आत्मा  आज सुधीर दादी के साथ सुबह – सुबह मंदिर दर्शन को गया है । दादी सुमित्रा देवी ने सोंचा कि आज छुट्टी का दिन है …. पोते की छुट्टी है तो चलो उसे ले चलते हैं, आखिर संस्कार भी तो सिखाने हैं । सबसे पहले सुमित्रा देवी ने मंदिर के प्रांगण  में लगे पीपल को नमस्कार करने को कहा । सुधीर ने पूंछा ‘ क्यों दादी पेड़ को नमस्कार क्यों करें ‘। सुमित्रा देवी ने समझाया ‘ बेटा पेड़ भी जीवित होता है । उसमें भी आत्मा होती है और हर आत्मा में परमात्मा यानि की भगवान् होते हैं …. इसलिए हमें हर जीव का और पेड़ों का आदर करना चाहिए ‘। सुधीर दादी के साथ आगे बढ़ा । दादी ने गणेश जी को लड्डू का भोग लगाने के लिए कहा । सुधीर लड्डू चढ़ा रहा था की लड्डू छिटक कर दूर जा कर गिरा । सुधीर लड्डू उठाने लगा तो सुमित्रा देवी बोलीं ‘ सुधीर सम्मान के साथ भोग लगाया जाता है । यह गिर गया है तो दूसरा लड्डू चढाओ । किसी को कुछ दो तो इज्ज़त के साथ देना चाहिए … फिर ये तो परमात्मा हैं ‘। 4 वर्षीय सुधीर सब समझता जा रहा था । कैसे सम्मान देने के लिए दोनों हाथ लगा कर पूजा करनी चाहिए, कैसे हर जीव का आदर करना चाहिए । सुधीर बहुत खुश था, जैसे की प्रायः बच्चे किसी नयी चीज़ को सीख कर होते हैं । पूजा करने के बाद सुधीर दादी के साथ मंदिर से बाहर निकला । भिखारियों की भीड़ लगी थी । दादी … Read more

झूठ की समझ

“आज अचानक तुझे क्या सूझ गया जो इन पुरानी किताबों को खंगाल रही हो | कुछ नहीं है इनमें  सब रद्दी है हर बार दीवाली पर सोचती हूँ कि बेच दूंगी | लेकिन कभी हाथ नहीं बढ़ता इनकी ओर जब भी इन की ओर बढ़ती हूँ तेरे पिता का चेहरा सामने आ जाता है | उन्हें बहुत प्यार था इन किताबों से | पर तूं तो बता क्या ढूढ़ रही है ?” “माँ मैं अपनी पुरानी डायरियां देख रही हूँ |” “माँ : क्यों ?” “उसमें मेरी कविताएँ और कहानियां लिखी हैं |” “तो तुम अब उसका क्या कर रही है ?” “माँ अजय को दिखानी है |” “माँ : क्यों ?” “वो कविता और कहानियां लिखते हैं | जब मैंने उनसे कहा कि मैं भी पहले लिखती थी | तो हँसने लगे | मेरा रोज मजाक बनाते हैं| इस बार मैंने तय कर लिया है | मैं उन्हें अपनी डायरियां दिखाकर ही रहूंगी |” “माँ ,लगी रह कुछ मिल जाये तो, मैं तो जा रही हूँ | मेरा तो इस धुल से दम घुटता है |” कुछ देर बाद रीना को उसकी एक पुरानी डायरी मोटी – मोटी किताबों के बीच दुबकी मिल जाती है | अरे वाह ! आखिर मिल ही गयी | डायरी निकालते वक्त उसके साथ रखी किताब निचे गिर जाती है | रीना जब उसे उठाती है | तो उसमे से एक पत्र नीचे गिरता है | रीना उसे उठाती है | अरे ये तो मेरा ही लिखा है | रीना उसे पढ़ने लगती है | पत्र को पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखें भर आती है | यह पत्र उसने 13 साल की उम्र में माँ के कहने पर लिखा था | माँ को पढ़ना – लिखना नहीं आता है | उस रोज खाना बनाते हुए माँ रो रही थी | माँ पिता जी के रोज के झगड़ों से परेशान थी | पर अपने भाई और पिता को हर बार खुश होने का पैगाम भिजवाती थी |  रीना ने उस समय माँ को कहा था कि माँ तुम हर बार झूठ क्यों लिखवाती हो ? पिता जी तुम्हारे साथ रोज झगड़ा करते हैं फिर भी तुम मामा और नाना को खुश हूँ लिखवा कर पत्र भिजवाती हो | उस समय रीना माँ से नाराज हो गयी थी | माँ का झूठ उसे समझ नहीं आ रहा था | तभी माँ की आवाज आती है | रीना आंसू पोंछ लेती है और माँ की ओर बढती है |  आज उसे माँ का वह झूठ समझ आ रहा था |  – अर्जुन सिंह यह भी पढ़ें … परिस्थिति सम्मान राम रहीम भीम और अखबार अनफ्रेंड आपको  लघु कथा “झूठ की समझ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

तो मैं तो

तुलना हमेशा नकारात्मक नहीं होती | कई बार जब हम दुःख में होते हैं | तो ऐसा लगता है जैसे सारा जीवन खत्म हो गया | पर उसी समय किसी ऐसे व्यक्ति को देखकर जो हमसे भी ज्यादा विपरीत परिस्थिति में संघर्ष कर रहा है | मन में ये भाव जरूर आता है कि जब वो इतनी विपरीत परिस्तिथि में संघर्ष कर सकता हैं तो मैं तो …. आज इसी विषय पर एक बहुत ही प्रेरक लघु कथा लाये हैं कानपुर  के सुधीर द्विवेदी जी | तो आइये पढ़ते हैं  … motivational short story – तो मैं तो  अँधेरे ने रेल पटरी को पूरी तरह घेर रखा था । वो सनसनाता हुआ पटरी के बीचो-बीच मन ही मन सोचता हुआ बढ़ा जा रहा था । ‘ हुँह आज दीवाली के दिन कोई ढंग का काम नहीं मिला …पूरे दिन में पचास रुपये कमाए थे वो भी उस जेबकतरे ने..। हम गरीबों के लिए क्या होली क्या दीवाली ..साला जीना ही बेकार है अपुन का..।‘  सोचते हुए उसनें पटरी पर पड़े पत्थर पर जोर से लात मारी । अँगूठे से रिसते घाव ने उसका दर्द और बढ़ा दिया था । तभी पटरी पर धड़धड़ाती आती हुई रेलगाड़ी को देख उसका चेहरा सख्त हो गया । शायद मन ही मन वो कोई कठोर निर्णय ले चुका था । रेलगाड़ी और उसके बीच की दूरी ज्यूँ-ज्यूँ दूरी घटती जा रही थी उसकी बन्द आँखों में दृश्य चलचित्र की तरह चल रहे थे । भूखे बेटे का मासूम चेहरा , घर में खानें के लिए कुछ न होने पर खीझती पत्नी ,गली से निकलते सब्जी वाले की आवाज़ …। खट से उसकी आँखें खुल गयी  “जब वो सब्जी वाला एक हाथ कटा होनें पर भी जिंदगी से लड़ रहा है तो मैं तो… ?”अपनें दोनों मजबूत हाथो को देखते हुए वो फुसफुसाया । सीटी बजाती हुए रेलगाड़ी धड़-धड़ करती हुई अब उसके सामनेँ से गुजर रही थी । उसका चेहरा तेज़ रोशनी में दमक उठा था । सुधीर द्विवेदी जो परिस्थितियाँ हमें मिली हैं हमें उन्हीं में संघर्ष करना चाहिए विषय पर सुधीर द्विवेदी जी की  motivational short story – तो मैं तो आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आप को “अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद हैं तो कृपया हमारा फ्री ई मेल सब्स्क्रिप्शन लें ताकि हम लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके ई मेल पर भेज सकें |  यह भी पढ़ें ……. मिटटी के दिए झूठा एक टीस आई स्टिल लव यू पापा

झूठा –(लघुकथा )

वो थका हुआ घर के अंदर आया और दीवार के सहारे अपनी सायकिल खड़ी कर मुँह हाथ धोने लग गया । तभी पत्नी तौलिया हाथ में पकड़ाती हुई बड़े प्यार से पूछ बैठी “क्यों जी वो जो पायल जुड़वाने के लिए सुनार को दी थी वो ले आये..? “ “ओ-हो जल्दी-जल्दी में भूल गया ।”  उसने तौलिये से हाथ पोंछते हुए जवाब दिया ।  “चार दिन से चिल्ला रही हूँ ,रोज भूल जाते हो । मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है इस घर में ..।” पत्नी पाँव पटकती हुई रसोई में चली गयी थी ।  उसनें झाँक कर रसोई में देखा तो पत्नी अंदर ही थी । इधर उधर देखते हुए चुपचाप वो माँ के कमरे में आ गया । बेटे को देखते ही चारपाई में लगभग गठरी बनी हुई माँ के मानों जान आ गयी । वह अब माँ के पैताने बैठ गया था । “क्यों रे ! कितने दिन से बहू चिल्ला रही है ..क्यों रोज-रोज भूल जावे तू..कलेस अच्छा न लगे मोहे..।”  माँ उसका चेहरा अपने हाथों से टटोलते हुए कह ही रही थी कि तभी उसनें जेब से चश्मा निकालते हुए माँ को पहना दिया । “अम्मा मोहे भी न भावे तेरा टटोल टटोल कर यूँ चलना तो आज़ तेरा टूटा चश्मा बनवा लाया । सच कहूँ माँ पायल बनवाना तो भूल ही गया मैं ।” कहते हुए उसने माँ की गोद में अपना सिर रख दिया। “चल हट झूठे …!” कहते हुए माँ नें आँचल से उसकी आँखों की कोरों में छलक आये आँसुओं को पोंछ दिया । सुधीर द्विवेदी  यह भी पढ़ें ……… पापा ये वाला लो सफलता का हीरा स्वाद का ज्ञान बोनसाई राम , रहीम , भीम और अखबार सुधीर द्विवेदी जी की लघुकथा आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी , कविता , लेख है तो हमें editor.atootbandhan@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर प्रकाशित किया जाएगा | 

बोनसाई

   चित्राधर – प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, आसमान छूती प्रसिद्धि; आत्मविश्वास से भरपूर। कितने ही पुरस्कारों से नवाज़ी गई हस्ती। सुगंध की भाँति फैलती, महकती कीर्ति ; बोनसाई बनाने में महारत हासिल, किंतु आज कितनी मुरझाई हुई!  उनके अपने कोख जाए बच्चे की लम्बाई, अपनी कक्षा के बच्चों से काफी कम थी। शुरू में तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, किन्तु इधर साल दो साल से वह बहुत उद्विग्न रहने लगीं थीं। एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे चिकित्सकों के चक्कर लगा- लगाकर वह थक गईं थीं। प्रारम्भ में तो चिकित्सकों ने काफी हौसला दिया था और वे टौनिक तथा दवाइयाँ देते रहे थे, किन्तु अब कह दिया था कि बच्चे में जन्मजात त्रुटि है। एक सीमा से अधिक, इसकी लम्बाई नहीं बढ़ाई जा सकती। वह बौना है। यह सुनकर उनका कलेजा टूक टूक हो गया था।   अवसाद से पीड़ित, आँसुओं से बोझिल पलकें उन्होंने उठाईं तो देखा कि बरगद, नीम, पाकड़, नींबू, नारंगी आदि पौधे उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हुए हैं। वे उन्हें व्यंग से निहार रहे थे।  बरगद कह रहा था, “क्यों, हमें बोनसाई बनाने का बहुत शौक है न तुम्हें, अब तुम्हारा बेटा बोनसाई बन गया है तो क्यों आँसू बहा रही हो? तुमने हमारी जड़ों को क्रूरता से बार बार काट-छाँटकर हमें बौना रहने पर मजबूर कर दिया है। हमारे विशाल आकार को खिलौना बनाकर अपने घर में सजा लिया है। अब जब अपने ऊपर आन पड़ी है तो टसुए बहा रही हो। “ सारे पौधे निरादर से हंस पड़े थे,” हमारी कद- काठी का तुमने ही तो सत्यानाश किया है। लोगों को हरी-भरी छाया और फल देने से तो तुमने ही वंचित कर दिया है हमें।“ उसी समय दरवाजे की घंटी बजने से उनकी आँख खुल गई। उनकी सांसें जोर- जोर से चल रही थीं और वे पसीने से तर थीं। उन्होंने अपने उभरे हुए पेट पर हाथ फेरते हुए, खुद को संयत किया। वे बुदबुदाईं,’  नहीं मैं तुम्हें बौना नहीं देख सकती!’  बाहर आकर उन्होंने देखा कि कुछ ग्राहक उनसे तैयार बोनसाई लेने को आए हुए हैं। उन्होंने ग्राहकों से कहा, “माफ कीजिएगा, मैंने बोनसाई बनाना छोड़ दिया है।“ उन लोगों के जाने के पश्चात उन्होंने बड़ी ही नरमियत से बरगद और नीम के पौधों को मिट्टी से अलग किया और उन्हें स्कूल के किनारे की चौड़ी कच्ची जमीन पर रोपने का आदेश देकर माली के हाथ में खुरपी पकड़ा दी। लेखिका परिचय- नाम- उषा अवस्थी शिक्षा- एम ए मनोविज्ञान  सम्प्रति- 1- समिति सदस्य ‘अभिव्यक्ति’ साहित्यिक संस्था, लखनऊ 2- सदस्य ‘भारतीय लेखिका परिषद’, लखनऊ प्रकाशित रचनाएँ- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संग्रहों, भारतीय लेखिका परिषद’ की पत्रिका ‘अपूर्वा’, दैनिक पत्रों ‘दैनिक जागरण’ व ‘राष्ट्रबोध’, साप्ताहिक पत्र ‘विश्वविधायक’ एवं विविध पत्रिकाओं यथा ‘भावना संदेश’, ‘नामान्तर’ आदि में रचनाएँ प्रकाशित विशेष-1- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा समय समय पर कविताओं का प्रसारण 2- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के कवियत्री सम्मेलन की अध्यक्षता 3- कुछ वर्षों का शैक्षणिक अनुभव 4- संगीत प्रभाकर एवं संगीत विशारद ————————————————–

अन्फ्रेंड

बेटे के चित्र के बगल का बिंदु कई घण्टों से हरा था ,परन्तु कई बार मैसेज करने के बाद रिप्लाई नही आया था । स्क्रीन पर काफी समय से आँखे गड़ाये हुए अब उसका सिर भी दुखने लगा था।  तभी स्क्रीन पर एक मैसेज चमका ..”आई एम् फाइन ! आप लोग कैसे हो ? ” मैसेज पढ़ते ही बूढ़ी आँखों में चमक आ गयी थी । “सब ठीक है बेटा । कितनी देर से मैसेज कर रहे है हम ..तू जवाब क्यूँ नही देता ?” काँपती हुई अँगुलियों से बड़ी मुश्किल से ढूँढे हुए अक्षरों से लिख कर उसने सेण्ड बटन पूरे जोर से दबा दिया। लम्बे इन्तजार के बाद स्क्रीन पर फिर कुछ शब्द चमके  ” चिल डैड ! यू नो .आपका बेटा सोशल नेटवर्किंग में बहुत पॉपुलर है, सबको रिस्पॉन्स करना मुश्किल होता है इसीलिए ना जाने कितने लोगो को तो रोज अन्फ्रेंड करना पड़ता है,आप भी जब देखो तब .|”  ” पर बेटा.. ” इतना ही लिख ही पाया था कि बेटे के चित्र के बगल में “एक्टिव वन मिनट एगो..” लिखा दिखने लगा । “लगता है इंटरनेट स्लो चल रहा है अभी.., तुम सो जाओ ।” पत्नी को सो जाने को कहते हुए उसने अपने हिस्से आये बेटे के उन चन्द शब्दों को स्क्रीन पर कई बार पढ़ा, थक कर काफी देर तक इधर-उधर करवट बदलता रहा,  ‘कहीं मुझे भी तो अन्फ्रेंड ….’ सोच कर हडबडा कर उठा और बेटे की हजारों लोगों की फ्रेंडलिस्ट में अपना नाम ढूँढने लग गया । सुधीर द्विवेदी  यह भी पढ़ें …  लक्ष्मी की कृपा यह भी गुज़र जाएगा  वो भी नहीं था  यकीन 

राम , रहीम , भीम और अखबार

सरिता  जैन ये कहानी है तीन मित्रों की |  उनमें से एक था मुस्लिम , एक , सवर्ण और एक दलित |नाम थे रहमान , राम और भीम  | तीनों एक दूसरे के सुख – दुःख के साथी |  रोज शाम को उनकी बैठक होती रहती थी | बातें भी बहुत होती | जैसा की पुरुषों में होता है अक्सर राजनैतिक चर्चाएं होने लगती हैं | यूँ तो तीनों कहने को बात कर रहे होते |पर कहीं न कहीं उनके मन में अपनी जाति और धर्म की भावना छिपी रहती  | इस कारण जब भी कोई खबर सामचारपत्रों में आती सबका उसको देखने का एंगल अलग अलग होता | इस कारण कभी कभी हल्की बहस भी हो जाती | पढ़िए – कामलो सो लाडलो एक बार एक अखबार के एक छोटे कॉलम में खबर छपी किसी पुरानी इमारत के टूटने की | उसमें से कुछ पपु राने मंदिरों की मूर्तियों के अवशेष निकले | खबर छोटे कॉलम में थी पर हिन्दू मुस्लिम दोस्तों के मध्य बड़ा विषय बन गया | काम अतीत में हुआ था , जिसकी जानकारी सभी को थी , पर लड़ाई आज करना जरूरी थी | बमुश्किल भीम ने बात खत्म कराई | उसने कहा जो अतीत में हो गया हो गया | अब तो हम सब ऐसे अन्यायों का विरोध कर सकते हैं | फिर क्यों अतीत पर झगडें | पर मामला रफा दफा हुआ नहीं | रहीम ने भी आरोप लगाना शुरू कर दिया |असहिष्णुता  का आरोप  | आज हमें बोले का हक़ नहीं है | चारों और असहिष्णुता का बोलबाला है | ऐसे में कैसे हम अपने मन की आवाज़ कहें | राम ने तुरंत बात काटी | क्यों आप फेसबुक ट्विटर , इन्स्टा , सभाओं सब जगह बोल रहे हैं | फिर भय कैसा ?बोलते तो आप शुरू से रहे हैं बस सुनना  नहीं चाहते हैं  | हम सब एक देश के नागरिक हैं | आप को ही विशेष दर्जा क्यों ? रहीम को बात नागवार गुजरी | न रहीम अतीत के गर्व में झूमने न राम भी अतीत भूलने को तैयार था | लिहाज़ा दोस्ती टूट गयी | रहीम उठ कर चला गया |  अब राम और भीम ने बात करना शुरू किया | फिर अखबार की खबर का जिक्र था |  बहस एक किताब पर थी | जिसमें माँ दुर्गा को गाली दी गयी थी | स्त्री की अस्मिता के लिए लड़ने वाली माँ दुर्गा को XX तक कह दिया गया था | अब बारी राम के गुस्से में आने की थी | उसने माँ दुर्गा को अंट शंट  बोलने वाले को तार्किक तरीके से गलत सिद्ध करने की कोशिश की | पढ़िए – मनोबल न खोएं अब बारी भीम की उबलने की थी | वही जो अभी तक राम को अतीत भूलने की सलाह दे रहा था | अब अतीत से किस्से ढूंढ – ढूंढ कर लाने लगा | राम ने कहा अब तो अतीत जैसा माहौल नहीं है | तुम लोगों को आरक्षण भी मिला है | और खबरों में तरजीह भी | दलित की बेटी के साथ अत्याचार तो खबर बनता है , जिस खबर में दलित या मुस्लिम इस्तेमाल नहीं होता वो सब सवर्ण की बेटियाँ होती हैं फिर खबर क्यों नहीं बनती की सवर्ण की बेटी के साथ अत्याचार | ये सब जानते हो फिर ये मुद्दा क्यों ? पर भीम मानने को तैयार नहीं था | वो आज के आज बदला लेना चाहता था | उनसे जो अब उसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहते थे | लिहाजा दोस्ती टूट गयी |भीम चला गया |  दोस्तों तीन दोस्त जो एक दूसरे के सुख दुःख के साथी थे | जो एक अच्छे भविष्य को गढ़ सकते थे  | अतीत पर लड़ पड़े | और अलग हो गए | क्या आज हमारे देश में यही नहीं हो रहा | हम सब अखबार पढ़ते हैं | तर्क गढ़ते हैं | तर्कों में जीतते हैं तर्कों में हारते हैं | पर सुझाव के बारे में कोई नहीं सोंचता | अतीत  जिसे न सुधारा जा सकता है न संवारा जा सकता है | कुछ किया जा सकता तो सिर्फ वर्तमान में | जहाँ जरूरी है समझ सिर्फ इस बात की , कि अब हमें प्यार से रहना है | ताकि देश का भविष्य सुन्दर हो | काश ये बात राम , रहीम और अखबार तीनों को समझ आ जाए |  यह भी पढ़ें … लक्ष्मी की कृपा यह भी गुज़र जाएगा  वो भी नहीं था  यकीन 

एक लघु कहानी —–सम्मान

आज साहित्य के क्षेत्र में सम्मान समारोह आम हो गए हैं | कोई कितना भी कलम घिस ले पर सम्मान के लिए जुगाड़ चाहिए | जगह – जगह बटते सम्मानों की हकीकत का पर्दाफाश  करती लघुकथा … सम्मान  संजय कुमार गिरि एक व्यक्ति :सम्मान ले लो …..सम्मान ले लो भाई …सम्मान ! दोसरा व्यक्ति :अरे भाई ये आप क्या बेच रहे हो ? पहला व्यक्ति :जी सम्मान बेच रहा हूँ ! दूसरा व्यक्ति :सम्मान ?ये सम्मान क्या होता है ? पहला व्यक्ति :भाई क्या आपने “साहित्य सम्मान “नहीं सुना कभी ? दूसरा व्यक्ति :भाई ये सम्मान तो “हिंदी साहित्य” की सेवा करने वाले साहित्यकार व्यक्ति को ही मिलता है न ? पहला व्यक्ति:हां भाई लेकिन आज कल जगह जगह इसकी दूकान जो खुल गई हैं …..और लोग थोक के भाव सम्मान खरीद और बेच रहे हैं , दूसरा व्यक्ति :अच्छा जी , पहला व्यक्ति:जी हाँ !! आज कल ये ही हो रहा है भाई ! दूसरा व्यक्ति :भला वो कैसे भाई …ये सम्मान ख़रीदा और बेचा कैसे जा सकता है ? पहला व्यक्ति:जी हां भाई ……आज कल तो यही हो रहा है ,हर छोटे बढे कवि ,साहित्यकार को आज कल सम्मान पाने का नशा सवार हो रहा है ,एक दो रचनाएं लिखी नहीं की चल दिए सम्मान लाने,साहब को बड़ा मंच चाहिए ..इसके लिए चाहे कितने भी पैसे खर्च करने पढ़े ……साहब को टी वी पर दिखना चाहिए और एक बार टी वी पर क्या आ गए अपने को वरिष्ठ कवि मान बैठते हैं ! पढ़िए लघु कथा – हिंजड़ा *इतने में एक व्यक्ति वहां पर आता ही और फेरी वाले से कहता है भैया जी एक सम्मान मुझे भी देना ,कितने का है ? पहला व्यक्ति :भाई जी पांच हजार का इसमें राष्ट्र के एक बढे कवि द्वारा आपका सम्मान कराया जाएगा , दूसरा तीन हजार का है जिसमें आपको एक सम्मान दिया जायेगा और देश के कुछ समाचार पत्रों में आपकी फोटो सहित प्रकाशित किया जाएगा , तीसरा दो हजार का है जसमें आपको एक गली के नुक्कड़ एक कवि सम्मलेन कराकर मंच पर सम्मानित कराया जाएगा , और चौथा सम्मान आपको पन्द्रह सौ का पड़ेगा जिसमें आपको एक छोटी सी काव्य गोष्ठी में सम्मानित कराया जाएगा ,हां इसका पूरा खर्चा भी आपको ही उठाना पड़ेगा ! बताइये आपको अब कौन सा सम्मान चाहिए ? वह घबरया हुआ व्यक्ति भाई थोडा सा कम कर लीजिये ये तो बहुत महगा पड़ेगा ? भाई आपको चाहिए कौन सा पहले यह तो बताइये ? कवि बोला : जी जिसमें थोडा ही खर्चा आये भाई वो ही सम्मान दिलवा दीजिये न ? पहला व्यक्ति झुन्झुलाते हुए बोला :भाई कितना खर्च कर सकते हो आप ? भाई कुच्छ ऐसा करों न की पंद्रह सौ से भी थोडा कम का हो और सम्मान वो भी ठीक ठाक मिल जाए और मेरा नाम भी हो जाए ? पढ़िए लघुकथा – बोझ पहला व्यक्ति :तो भाई ऐसा करो एक काव्य गोष्ठी आप अपने यहाँ पर रखो और गोष्ठी में आने वाले अतिथियों के लिए कम से कम बीस फूल मालाओं और नास्ते का इंतजाम कर लेना ,आपके घर पर ही हम सब आकर काव्य गोष्ठी का आयोजन कर आपको सम्मानित कर देंगे !आप हमें बस हज़ार रुपये ही दे देना ! बात हज़ार रुपये पर तय हो गई और वह कवि महोदय ख़ुशी ख़ुशी अपनी राह चल दिए ! मैं चुपचाप खड़ा यह सब देखता रहा और देखता रहा !और सोचने लगा की क्या यही सब है राष्ट्र कवि दिनकर,पन्त ,प्रसाद निराला और मुंशी प्रेमचंद की साहित्य धरोहर जिसका इस प्रकार से इस्तमाल किया जा रहा है आज का साहित्य कार इतना गिरता जा रहा है की उसे सम्मान खरीदना और बेचना पड़ रहा है !यह क्या होता जा रहा है जगह जगह साहित्य के नाम पर लोगो ने दूकान खोल राखी है और लोगों को उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है उन्हें साहित्य के नाम पर छला जा रहा है यह कैसा समय आ गया है यह क्यूँ किया जा रहा है क्या पैसा ही आज सब कुछ बन गया है आज सच्चे साहित्य कार की समाज में कोई इज्जत नहीं रही ,आखिर क्यूँ ऐसे हो रहा है ?आखिर क्यूँ ? ———————————— संजय कुमार गिरी  शिक्षा- स्नातक (हिन्दी) तकनीकी शिक्षा-पेंटर (स्केचिंग,फाइनआर्ट ) सम्प्रति :-G4S SCURITY OFFICERS ( supervisor) ,ट्रू मीडिया पत्रिका एवं समर सलिल पत्रिका में संवाददाता ! मीडिया प्रभारी – युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच / नवांकुर साहित्य सभा /भारतीय विकास समिति  सम्मान – (१) मद्ये-निषेध निदेशालय दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष 1996-97 में आयोजित गीत ,कविता प्रतियोगिता में प्रोत्साहन पुरस्कार एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री साहिब सिंह वर्मा द्वारा सम्मानित। (2)”गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान 2017 युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली ,पत्रकारिता में सम्मानित ! (3)”साहित्य कमल” –युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली ,द्वारा वर्ष 2016 में पत्रकारिता में सम्मानित ! 4)आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्मान ,2017 युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली , 5) “साहित्य प्रहरी” —-सुप्रभात मंच द्वारा सम्मानित ,( वर्ष 2015) 6) “मुक्तक रत्न “—मुक्तक लोक मंच द्वारा सम्मानित ( वर्ष 2016) 7 )”कविता गौरव “–कविता लोक मंच द्वारा सम्मानित ,बागपत ( वर्ष 2015) साहित्य गौरव “—-काव्यशील मंच, दिल्ली ,दिल्ली( वर्ष 2017) 9) “साहित्य साधना सम्मान” –तरंग साहित्यिक मंच ,कानपुर (वर्ष 2017) 10 )”मुक्तक भूषण सम्मान” “हिंदी दिवस के सुअवसर पर -मुक्तक-लोक मंच द्वारा (वर्ष 2017) पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित रचनाएँ एवं साहित्यिक खबरें :—– ट्रू मिडिया पत्रिका (दिल्ली) , समर सलिल पत्रिका (लखनऊ) ,साहित्य सरौज साहित्यिक पत्रिका (गहमर ),दिन-प्रतिदिन दैनिक सांध्य (अम्बाला ), विजय न्यूज ,समाचार पत्र (दिल्ली ),वीमेन एक्सप्रेस (दिल्ली ), ,RedHainded समाचार पत्र (दिल्ली ),समय जगत समाचार पत्र (भोपाल ),आज समाज(गुडगाँव ),स्वैक्छिक दुनिया (कानपुर ),जन सामना (कानपुर ) आदि ! मुख्यवेबसाइट- http://giriarts.blogspot.com /कलम का सफ़र यही भी पढ़ें ….  अनावृत गलती किसकी बहु और बेटी बाल परितक्त्या

“परिस्थिति “

रोचिका शर्मा        चेन्नई अपनी बेटी के बी. ए. अंतिम वर्ष में दाखिला लेते ही मैने उसके लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया और बेटी को बोला ” थोड़ा घर का काम-काज भी सीखो, सिलाई , कढ़ाई और साथ-साथ में ब्यूटी-पार्लर का कोर्स भी कर लो । लड़का योग्य हो तो उसके परिवार वाले लड़की में भी तो कुछ गुण देखेंगे ना । वैसे तो हम अपने व्यवसाय वाले लेकिन लड़की नौकरी वाला लड़का चाहती थी सो नौकरी वाला लड़का ढूँढना शुरू किया । इधर बेटी ने भी पास के ब्यूटी-पार्लर में कोर्स करना शुरू कर दिया । एक वर्ष में कोर्स  होते-होते बेटी की सगाई एक फ़ौजी अफ़सर से हो गयी । बेटी की तो खुशी का ठिकाना न रहा । एक ही माह  में विवाह  की तिथि पक्की हो गयी । टेंट ,बाजा ,घोड़ी ,हॉल सभी की बुकिंग का काम चालू हुआ । बेटी भी शादी के मेकप के लिए ब्यूटी-पार्लर बुक करने जाने लगी । उसे टोकते हुए मैने कहा ,” पड़ोस का ब्यूटी-पार्लर न बुक करना , कोई दूसरा पार्लर देखो ” । बेटी बोली पड़ोस का अच्छा तो है माँ , और फिर मैने वहाँ से कोर्स किया है , खुशी-खुशी अच्छा मेकअप करेगी । मैने अपनी नाक सिकोडते हुए कहा ” पर है तो विधवा ! न न अपशकुन होता है ” । इतना सुनते ही बेटी तो मानो बिफर गयी ,बोली ” कैसी दाखियानूसी बातें करती हो माँ ?आज के जमाने में ये सब ! ” मैने बेटी की एक ना सुनी और उसे हुक्म दिया दूसरा पार्लर बुक करने को । बेटी भी झमेले में नहीं पड़ना चाहती थी , सो दूसरा पार्लर बुक कर आई । विवाह के दिन लाल जोड़े में मेरी बेटी  लक्ष्मी का स्वरूप लग रही थी ।मेरे तो पैर ज़मीन पर ना थे । विवाह संपन्न हुआ और बेटी विदा हो गयी । एक ही साल में उसने सुंदर बेटी को जन्म दिया ।जब-तब लाल बत्ती की गाड़ी में आती और हम से मिल जाती ।फ़ौजियों की पार्टी-शार्टी, शान-शौकत , मैं भी उसका रुतबा देख फूली ना समाती । कुछ ही दिनों में उसके पति की नियुक्ति पाक- सीमा पर हो गयी ।दामाद के माँ-बाप तो थे नहीं , सो बेटी दिल्ली  में अकेली ही रहती । एक दिन खबर आई कि दामाद बम -ब्लास्ट में मारे गये । मेरे तो मानो पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी । दुख का पहाड़ टूट पड़ा था पूरे परिवार पर ! अंतिम क्रिया कर्म की सब रीतियों के बाद हमने बेटी को अपने ही पास रखने का फ़ैसला किया ।  तभी एक माह बाद पड़ोस की पार्लर वाली आई और बेटी को सांत्वना देते  हुए बोली, ” पहाड़ सी जिंदगी ,कैसे  जियोगी ?, ऊपर से एक बेटी भी ! कोई छोटी-मोटी नौकरी के लिएबाहर जाओगी ,इससे तो ब्यूटी-पार्लर खोल लो । घर की घर में बेटी को भी संभाल सकती हो , औरतों  का ही आना जाना रहताहै , सुरक्षित एवं मनलगाने वाला काम है ।  आज के जमाने में बिना  सहारे की जवान औरत को भी तो लोग ठीक दृष्टि से नहीं देखते हैं । उसकी बात मुझे ठीक लगी । जाते-जाते बोली बहिन पार्लर खोलने में कोई मदद चाहिए तो मैं करूँगी ।उसके जाने पर मैंने  भी बेटी को समझाया कि वह ठीक ही कह रही है । इतना सुनते ही बेटी  बोली लेकिन माँ मैं तो विधवा हूँ,कौन आएगा मेरे पार्लर में ? तुम ही तो कहती थीं कि अपशकुन होता है । आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था । मेरीआँखें  भर आईं थीं  । मुझे पश्चाताप हो रहा था अपने किए पर । बहुत शर्मिंदा थी मैं अपनी ओछि सोच पर , अपनी संकीर्ण मानसिकता पर , मैं समझ गयी थी कि कितनी ग़लत थी मैं । जहाँ एक तरफ नारी उत्थान की बातें होती हैं , औरतें हर क्षेत्रमें आगे बढ़ रही हैं वही आज के युग में एसी सोच ! शायद ईश्वर ने इसीलिए एसी परिस्थिति में डाल दिया था मुझे  । वरना मैं अपनी सोच कभी ना बदल पाती ।  उस पार्लर वाली का धन्यवाद करते हुए मैं मन ही मन उसके परिवार के लिए मंगल कामना करने लगी ।                                                    यह भी पढ़ें ………. स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन