सतीश राठी की लघुकथाएं
===माँ === बच्चा , सुबह विधालय के लिए निकला और पढ़ाई के बाद खेल के पीरियड में ऐसा रमा कि दोपहर के तीन बज गए | माँ डाँटेगी! डरता – डरता घर आया | माँ चौके में बैठी थी , उसके लिए खाना लेकर | देरी पर नाराजगी बताई , पर तुरंत थाली लगाकर भोजन कराया | भूखा बच्चा जब पेट भर भोजन कर तृप्त हो गया तो , माँ ने अपने लिए भी दो रोटी और सब्जी उसी थाली में लगा ली | ‘’ ये क्या माँ ! तू भूखी थी अब तक ? ‘’ ‘’ तो क्या ! तेरे पहले ही खा लेती क्या ? ‘’ तेरी राह तकती तो बैठी थी | ‘’ अपराध बोध से ग्रस्त बच्चे ने पहली बार जाना कि माँ सबसे आखिर में ही भोजन करती है | =======जन्मदिन ====== ‘’ सुनो ! अपना गोलू आज एक साल का हो गया है | ‘’ गोलू के मुँह में सूखा स्तन ठूँसते हुए सुगना ने अपने चौकीदार पति से कहा | ‘’ तुम्हें कैसे याद रह गया इसका जन्मदिन ? ‘’ चौकीदार का प्रश्न था | ‘’ उसी दिन तो साहब की अल्सेशियन कुतिया ने यह पिल्ला जना था , जिसका जन्मदिन कोठी में धूमधाम से मनाया जा रहा है | ‘’ – ठंडी साँस लेते हुए सुगना बोली | ======= संवाद ======== छोटी सी बात का बतंगड़ बन गया था | पूरे चार दिनों से दोनों के मध्य संवाद स्थगित था | पत्नी का यह तल्ख़ ताना उसके मन के बाने को चीर – चीर कर गया था कि – ‘’ विवाह को वर्ष भर हो गया ,एक साड़ी भी लाकर दी है तुमने ? ‘’ शब्दों की आँचमें सारा खून छीज गया था | अपमान का पारा सिर चढ़कर तप्त तवे सा हो उठा था , और वह कड़वे नीम से कटु शब्द बोल गया था कि – ‘’ नई साड़ियाँ पहनने का इतना शौक था तो अपने पिता से कह दिया होता ; किसी साड़ी की दूकान वाले से ही ब्याह कर देते |’’ तब से दोनों के बीच स्थापित अबोला आज तक जारी था | यों रोज़ उसके सारे कार्य समय समय पर पूर्ण हो जाते थे …शेव की कटोरी से लेकर भोजन की थाली और प्रेसबंद कपड़ों तक | बस सिर्फ प्रेम और मनुहार की वे समस्त बातें अनुपस्थित थी , जिनके बिना दोनों एक पल भी नहीं रह पाते थे | लेकिन आज ! आज जब आफिस से उसे आदेश मिला कि पन्द्रह दिनों के डेपुटेशन पर भोपाल जाना है तो घर आकर वह स्वयं को रोक नहीं पाया रुँधे गले से भीगे शब्द निकल पड़े – ‘’ सुनो सुमि ! मेरा सूटकेस सहेज देना , पन्द्रह दिनों के लिए भोपाल जाना है |’’ ‘’ क्या …? भोपाल ! ! पन्द्रह दिनों के लिए ! ! ! और इतना बोलकर सुमि के शेष बचे शब्द आँसुओं में बह पड़े | उनकी आँखों से बहते गर्म अश्रु आपस में ढेर सारी बातें करने लगे | ======== विवादग्रस्त ======== घर के दरवाजे पर आकर एक क्षण के लिए वह ठिठक गया | सुबह भोजन की थाली पर बैठा ही था कि बेबात की बात पर पत्नी से विवाद हो गया था और बिना भोजन किए ही वह आफिस चला गया था | धीमे से उसने दरवाजा बजाया | पत्नी ने आकर दरवाजा खोला और मौन रसोई में चली गई | उसने कपड़े बदले और लुंगी पहिन कर , नल से हाथ – मुँह धोने लगा | पत्नी चुपचाप टावेल रखकर चली गई | वातावरण की चुप्पी सुबह के तनाव को फिर से गहरा कर रही थी | रसोई में गया तो पत्नी ने भोजन की थाली सजाकर उसकी ओर खिसका दी | उसने देखा की उसकी प्रिय सब्जी फ़्राय गोभी थाली में थी | प्रश्नवाचक निगाहों से पत्नी की ओर देखकर वह बोला – ‘’ और तुम ? ’’ ‘’ मुझे भूख नहीं हैं | ’’ – पत्नी ने सिर झुकाकर धीमे से कहा | ‘’ तो .. मैं भी नहीं खा रहा |’’ – कहकर वह उठने लगा तो पत्नी ने हाथ पकड़कर बैठा लिया और एक पराठा थाली में अपने लिए भी रख लिया | दोनों एक दूसरे की आँखों में झाँककर धीरे से मुस्कुरा दिए | वह सोचने लगा कि विवाद आखिर किस बात पर हुआ था , लेकिन बात उसे याद नहीं आई | ========== खुली किताब =========== वह सदैव अपनी पत्नी से कहता रहता कि , ‘’ जानेमन !मेरी जिन्दगी तो एक खुली किताब की तरह है …जो चाहे सो पढ़ ले | ’’ इसी खुली किताब के बहाने कभी वह उसे अपने कॉलेज में किए गए फ्लर्ट के किस्से सुनाता , तो कभी उस जमाने की किसी प्रेमिका का चित्र दिखाकर कहता – ‘’ ये शीला …उस जमाने में जान छिड़कती थी हम पर….हालाँकि अब तो दो बच्चों की अम्मा बन गई होगी | ‘’ पत्नी सदैव उसकी बातों पर मौन मुस्कुराती रहती | इस मौन मुस्कुराहट को निरखते हुए एक दिन वह पत्नी से प्रश्न कर ही बैठा — यार सुमि ! हम तो हमेशा अपनी जिन्दगी की किताब खोलकर तुम्हारे सामने रख देते हैं , और तुम हो कि बस मौन मुस्कुराती रहती हो | कभी अपनी जिन्दगी की किताब खोलकर हमें भी तो उसके किस्से सुनाओ | ’’ मौन मुस्कुराती हुई पत्नी एकाएक गम्भीर हो गई , फिर उससे बोली —‘’ मैं तो तुम्हारे जीवन की किताब पढ़ – सुनकर सदैव मुस्कुराती रही हूँ , लेकिन एक बात बताओ ….मेरी जिन्दगी की किताब में भी यदि ऐसे ही कुछ पन्ने निकल गए तो क्या तुम भी ऐसे ही मुस्कुरा सकोगे ? ‘’ वह सिर झुकाकर निरुत्तर और मौन रह गया | ========== आटा और जिस्म =========== दोनों हाथ मशीन में आने से सुजान विकलांग हो गया | नौकरी हाथ से गयी | जो कुछ मुआवजा मिला वह कुछ ही दिनों में पेट की आग को होम हो गया | रमिया बेचारी लोगों के बर्तन माँजकर दोनों का पेट पाल रही थी | पर … आज ! आज स्थिति विकट थी | दो दिनों से आटा नहीं था और भूख से बीमार सुजान ने चारपाई पकड़ … Read more