शक्ति रूप

इस कहानी को पढ़कर एक खूबसूरत कविता की पंक्तियाँ याद आ रहीं है |  “उठो द्रौपदी वस्त्र संभालो , अब गोविन्द ना आयेंगे “ वायरल हुई इस कविता में यही सन्देश था कि आज महिलाओं और खासकर बच्चियों के प्रति बढती यौन हिंसा को रीकने के लिए अब हमारी बच्चियों को अबला  बन कर किसी उद्धारक की प्रतीक्षा नहीं करनी बल्कि शक्ति रूपा बन कर स्वयं ही उनका संहार  करना है | शक्ति रूप सोलह साल की नाबालिग लड़की जंगल में लकड़ी बीनने जा रही थी। जरूर कोई मजबूरी रही होगी। नहीं तो आज के समय में ऐसी कौन-सी माँ  होगी, जो बेटी को खतरों से खेलने के लिए छोड़ दे। लेकिन आज सचमुच खतरा मंडरा रहा था। वह जंगल में थोड़ा अंदर पहुँची , तभी इंसान रूपी दो भेड़ियों ने उस लड़की को घेर लिया। लड़की तत्क्षण समझ गई कि आज उसकी इज्जत जाएगी और शायद जान भी। लड़की बचने का उपाय खोजने लगी। सबसे पहले उसने दया की भीख मांगी। उसने कहा, ‘‘भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। एक अबला की इज्जत से न खेलो। वो तुम्हारा भला करेगा।’’ संवेदनहीन भेडियों  पर इस अनुनय-विनय का कोई असर नहीं हुआ। वे लड़की तरफ बढ़ने लगे। लड़की दो कदम पीछे हटी। उसने चिल्लाना शुरू किया, ‘‘बचाओ ! बचाओ !!’’ शहर में जहां हृदय-युुक्त प्राणी रहते हैं, वहां उसकी गुहार न सुनी जाती, तो यहां जंगल में उसकी सुनने वाला कौन था। लड़की का यह प्रयास भी व्यर्थ गया। अब उसने पुलिस का नाम लेना शुरू किया। उसने दरिंदों को डराते हुए कहा, ‘‘तुम बचोगे नहीं। पुलिस अब बहुत चैकन्नी हो गई है। वो तुम्हें ढूंढ़ निकालेगी और तुम्हें कड़ी सजा देगी।’’  भेड़िया अट्टहास करने लगे। उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस में इतनी ताकत कहां ? दूसरे, हम कोई साक्ष्य छोड़ेंगे तब न !’’ भेडियों ने उसे अपनी गिरफ्त में लेने के लिए पंजा मारा। लड़की झटके से फिर चार कदम पीछे हटी। उसने मां-बेटी का हवाला देना शुरू किया। उसने कहा, ‘‘तुम्हारे घर में मां-बेटी नहीं हैं क्या ? क्या मैं तुम्हारी छोटी बहन की तरह नहीं हूं ?’’ भेड़िया विद्रूप हंसी हंसने लगे। जैसे कह रहे होें, भेड़िया और मानवीय रिश्ता ? हुंह ! खुद को बहन कहने का यह प्रयास भी व्यर्थ गया। लड़की अब रोने लगी। वह गिड़गिडा़ती रही, चिल्लाती रही। मगर यह सब इन निष्ठुरों पर चिकने घड़े पर पानी के समान था। अब वह उनकी पकड़ में आने ही वाली थी।  तभी पीछे एक पहाड़ी आ गई। लड़की को पहाड़ी पर चढ़ भागने का मौका मिल गया। वह पहाड़ी पर तेजी से काफी ऊपर चढ़ गई। वे दरिंदे भी पहाड़ी चढ़ने लगे। लड़की फिर घबराई। वह थक चुकी थी। उसे लगा, अब वह पकड़ी जाएगी। तभी उसने देखा, पहाड़ी पर बड़े-बड़े कई पत्थर पड़े हैं। अब उसने ताकत दिखाने की सोची। उसने पाया, आज उसकी साहस और शक्ति ही उसकी रक्षा करेगी। वह ऊपर से चिल्लाई, ‘‘रुक जाओ पापियो ! आगे बढ़े तो मैं ये पत्थर तुमपर गिरा दूंगी !’’ भेड़िये डरे नहीं और आगे बढ़ते रहे। लड़की अब शक्ति रूप में आ गई। उसने कई पत्थर नीचे ढकेल दिए। अब भेड़ियों को बचने और भागने की बारी थी। वे बचते-बचते नीचे की तरफ भागने लगे। इधर लड़की पत्थर-पर-पत्थर गिराती चली गई। थोड़ी ही देर में भेड़िये आंखों से ओझल थे। शक्ति रूप की जीत हुई थी। कुछ देर इंतजार के बाद लड़की निश्ंिचत होकर नीचे उतर आई।                                                                                                                                                                                                            ज्ञानदेव मुकेश                                                  पटना-800013 (बिहार)                                                 फोन नं –   0्9470200491 यह भी पढ़ें … चॉकलेट केक आखिरी मुलाकात गैंग रेप यकीन  आपको  कहानी  “शक्ति  रूप   “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under – hindi story, emotional story in hindi, crime against women, rape, women empowerment

श्रम का सम्मान

अक्सर शारीरिक श्रम को मानसिक श्रम की तुलना में कमतर आँका जाता है पर क्या पेट भरा ना हो तो  चाँद पर जाने के ख्वाब पाले जा सकते हैं या फिर सड़कों पर लगे कूड़े के ढेर हमारे घरों को साफ़ रखने की तमाम कोशिश के बावजूद हमारे शरीर को बीमार बना ही देंगे | और इन सबसे बढ़कर हम महिलाएं जो कुछ घर के बाहर निकल कर काम कर पा रही हैं उनके पीछे हमारी  घरेलु सहायिकाओं की अहम् भूमिका से भला कौन इंकार कर सकता है | तो क्या क्या जरूरी नहीं है कि हम शारीरिक श्रम का भी सम्मान करना सीखें |  श्रम का सम्मान  आज जब सुबह घरेलु सहायिका कमला के लिए दरवाजा खोला तो रोज की तरह ना वो मुस्कुराई , ना दुआ , ना सलाम | चेहरा देख कर लगने लगा कि का मूड बहुत ख़राब है |  पूछने पर कहने लगी , ” सरू भाभी के कल रूपये चोरी हो गए …कल शाम को ही घर फोन पहुँच गया ,बात नहीं बताई , बस  तुरंत ही बुलाया | हम भी आनन -फानन में रिक्शा कर के उनके घर गए | घर पहुँचते ही मुझसे पूछने लगीं , मेरे रुपये खो गए हैं , बड़ी रकम थी , तुम ने ही लिए हैं , तुम्हीं कपड़े धोती हो , बता दो ? दे दो ?  मैं तो एकदम सकते में आ गयी | कितने रुपये थे , पूछने पर बताया भी नहीं | फिर थोड़ी देर बाद दूसरे कमरे में जाकर बेटे से बात की फिर आ कर खुद ही कहने लगीं ठीक है घर जाओ , साथ में ताकीद दी कि किसी को बताना नहीं | शायद मिल गए …पर वो भी बताया नहीं | बस जी में आया तो इल्जाम लगा कर गरीब की इज्जत उछाल दी |  बताइये भाभी , दस साल से काम कर रहे हैं , हमेशा इधर -उधर पड़े पैसे उठा -उठा कर देते रहे , वो सब भूल गयीं | उनके घर में इतने मेहमान आये हुए हैं , उनमें से किसी से नहीं कहा , क्या उनका ईमान नहीं डोल सकता ? लेकिन उनसे कहने की हिम्मत नहीं पड़ी | सारे दोष गरीब में ही नज़र आते हैं … अमीर क्या कम पैसा मारते हैं | भाभी, मैंने काम छोड़ दिया , साथ ही उन्हें सुना भी आई, ” आप को काम वालों की इज्ज़त करना सीखना चाहिए | हम भीख नहीं मांग रहे हैं , मेहनत कर के पैसे कमा रहे हैं , वैसे ही जैसे आप पढ़े लिखे हैं आप लिखाई -पढाई वाली   नौकरी कर के पैसे कमा रहे हैं …. इज्ज़त दोनों की बराबर है … और अगर आप कुछ तीज – त्यौहार पर कुछ दे देती हैं तो आप को जहाँ आप काम कर रही हैं वहाँ बोनस मिलता हैं…. दुनिया को दिमाग के काम की जरूरत है तो हाथ के काम की भी जरूरत है |हम लोगों को काम की कमी नहीं है , काम की कमी पढ़े -लिखों को हैं …. वो बोले जा रही थी , बोले जा रही थी … और मैं अपनी मेहनत पर भरोसा रखने वाली उस स्वाभिमानी स्त्री के आत्मसम्मान पर गर्व के आगे नतमस्तक हुई जा रही थी |  वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … तन्हाँ सुरक्षित छुटकारा चॉकलेट केक आपको  लघु कथा   “श्रम का सम्मान “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, unskilled labour, mental work vs physical work, Domestic help, maid

तन्हाँ

जिस तरह से सबके अपनि खुशियाँ मनाने के तरीके अलग -अलग हैं उसी तरह सबके अपने दुःख से निकलने के तरीके अलग हो सकते हैं | पर समाज ये मानना नहीं चाहता | समाज चाहता है कि दुखी व्यक्ति २४ x ७ दुखी दिखे | कई बार वो दुःख से लड़कर निकलने की कोशिश करते व्यक्ति को और तन्हाँ कर देता है |  लघु कथा -तन्हाँ  “देखो आस -पड़ोस , छोटे -मोटे अंक्शन- फंक्शन में तो तुम्हे जाना ही होगा, वर्ना गौरव और नन्हे नीरज का ध्यान कैसे रख पाओगी , अपने दुःख से तुम्हें निकलना ही होगा ” सास दमयंती जी ने फोन पर अधिकारपूर्वक मधु से कहा |  इस बार मधु उनके आग्रह से इनकार ना कर सकी |  वि जानती थी की दुःख की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती …फिर  भी जीना तो था ही |  महिलाओं का एक छोटा सा मिलन समारोह था | उसने वहाँ  जाने का मन बनाया | ठीक से तैयार हुई , और पड़पड़ाये होंठों पर गहरी मैरून लिपस्टिक लगा ली |  समारोह में तमाम बातों के बीच लिपस्टिक की चर्चा छिड गयी | ‘वो” बड़े उत्साह से लिपस्टिक के शेड्स के बारे में बताने लगी  | तभी एक महिला ने दूसरी को कोहनी मार कर धीरे से कहा, “ साल भर ही हुआ है इनके बेटे की मृत्यु हुए पर देखो कैसे शौक कर रहीं हैं , भाई, हमें तो इन्हें देखकर ही वो दृश्य याद आ जाता है …पानी हलक में रुक जाता है, पता नहीं लोग कैसे मेनेज कर लेते हैं |” कही तो ये बात कई लोगों ने थी पर इस बार उन्होंने सुन ली | मुस्कुराते होंठ दर्द में कस गए, आँखें गंगा –जमुना हो चली , सिसकते हुए बोलीं , “ जब मैं रात को बेतहाशा चीख-चीख कर रोती हूँ और मुझे लगता है कि ये यादें मेरे प्राण ले जायेंगी, तब आप आती हैं मुझे चुप कराने , जब मैं किसी तरह से वो दर्द भूल कर अपने दूसरे  बेटे के लिए जीना सीख रही हूँ तो आप… थोड़ी देर के लिए शांति छा गयी | फिर सब उनको सहानुभूति देने लगे | वही जो सब देना चाहते थे | उनका काम पूरा हुआ …और वो जो थोड़ी देर को सब भूलने आयीं थीं अपने दर्द के साथ अकेले तन्हाँ रह गयीं | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … सेंध   सुकून   बुढ़ापा मीना पाण्डेय की लघुकथाएं आपको आपको    “तन्हाँ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, sad woman, lonliness, sadness

घर की देवी

हर साल मंदिरों में नवरात्रों के दौरान भीड़ बहुत बढ़ जाती है | हर कोई माँ की उपासना करने में लगा होता है | कहते हैं माँ और भगवानों से ज्यादा दयालु होती हैं क्योंकि वो बच्चे की पुकार पर पहले ही दौड़ आती है | लोग इसे सच मानते हैं क्योंकि हर किसी को अपनी माँ के स्नेह का अनुभव होता है …पर क्या देवी माँ के ये उपासक अपनी घर में उपस्थित अपनी माँ के प्रति भी कुछ श्रद्धा रखते हैं ? घर की देवी      भैया, तुम और भाभी दशहरे में घर नहीं आए। मां बहुत बेसब्री से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थीं। मैंने देखा, तुम लोगों के आने की बात सुनकर वे बेहद प्रसन्न थीं। वे खुशी के अतिरेक में फूली नहीं समा रही थीं। मैंने मां के चेहरे पर खुशी का ऐसा उछाह पहले कभी नहीं देखा। यदि तुमलोग सचमुच आ जाते तो वे खुशी से पागल हो जातीं और तुमलोगों पर आशीर्वाद और दुआओं की घनघोर वर्षा कर देंती।  मगर तुमलोगों ने ऐन वक्त पर आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और तुमलोग नहीं आए। इससे मां निराशा और दुख के गहरे सागर में चली गईं। तुमलोगों ने दशहरा अपने शहर में ही बनाया। सुना कि तुमलोगों ने खूब सारी तैयारियां कीं। घर में ही मां दुर्गा का भव्य और विशाल दरबार सजाया। दिनभर मां की पूजा-अर्चना की और मंगल आरती उतारी। तरह-तरह के फूल-फल और नैवेद्य चढाए और देवी मां को प्रसन्न किया।  निस्संदेह ऐसी समर्पित पूजा-अर्चना से तुमलोगों को देवी मां का आशीर्वाद मिला होगा। मगर तुम लोगों के आने की सूचना पर मां के चेहरे पर तो अप्रतिम प्रसन्नता खिली थी, उसे याद कर मैं दावे एवं पूर्ण विश्वास से कह सकती हूं कि आपको देवी मां से वह आशीर्वाद नहीं मिला होगा, जो तुम्हारे घर आने पर अपनी बूढ़ी मां के थरथराते हाथों से मिलता। घर आते तो वह एक बड़ी पूजा-अर्चना होती। मैं कुछ ज्यादा या गलत कह गई तो क्षमा करना।                                                                              तुम्हारी,                                                                            छोटी बहन।                                                               -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                           न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी,                                                  पटना-800013 (बिहार)                                                                                           काफी इंसानियत कलयुगी संतान बदचलन आपको आपको    “घर की देवी“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, mother, devi

लघु कहानी — कब तक ?

     कल एक बहुत ही खूबसूरत विचार पढ़ा … “यह हमारे ऊपर है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अनुचित परम्पराओं को तोड़े ….जब वो कहते हैं कि हमारे परिवार में ऐसा ही होता आया है …तो आप उनसे कहिये कि यही वो बिंदु (स्थान) है जहाँ इसे परिवार से बाहर हो जाना चाहिए” समाज बदल गया पर आज भी हम परंपरा के नाम पर बहुत सीगलत चीजे ढो रहे हैं …खासकर लड़कियों के जीवन में बहुत सारे अवरोध इन परम्पराओं ने खड़े कर रखे हैं … 1)      हमारे परिवार की लडकियां पढ़ाई नहीं जाती | 2)      हमारे परिवार की लड़कियों की शादी तो २० से पहले ही जाती है | 3)      हमारे परिवार की लडकियां नौकरी नहीं करती | 4)      हमारे परिवार की लडकियाँ ….बहुत कुछ आप खुद भी भर सकते हैं |  ऐसी ही एक परंपरा को तोड़ती एक सशक्त लघु कथा  लघु कहानी —  कब तक ? बचपन से ही उसे डांस का बहुत शौक था । अक्सर छुप छुप कर टीवी के सामने माधुरी के गाने पर थिरका करती थी । जब वह नाचती थी तो उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती थी ।       मां भी बेटी के शौक के बारे में अच्छे से जानती थी .. कई बार मां ने बाबा को मनाने की कोशिश की थी पर उसका रूढ़िवादी परिवार नृत्य को अच्छा नहीं समझता था ।      ” क्या ?? नचनिया बनेगी ? ”  इस तरह के कमेंट से उसका मन भर आता था ।    एक दिन से ऐसे ही बाबा के काम पर जाने के बाद वह टीवी के सामने थिरक रही थी कि उसके कानों में आवाज आई  ” रश्मि, तैयार हो जा.. डांस एकेडमी चलना है !”   रश्मि मां का मुंह देखने लगी ।  “चल , तैयार हो .. देर हो जायेगी । ” मां उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली ।     अब मां ने फैसला कर लिया था कि बच्ची की इच्छा को यूं नहीं मरने देगी । परिवार के सामने बेटी की ढाल वह बनेगी । आखिर कब तक बेटियां इच्छाओं का गला घोंट घोंट कर जीवित रहेगी ?  कब तक ??  ___ साधना सिंह   गोरखपुर यूपी यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “कब तक ?”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, 

दुकानदारी

ए भैया कितने का दिया ? 100 रुपये का | 100 का , ये तो बहुत ज्यादा है लूट मचा रखी है | 50 का लगाओ तो लें | अरे बहनजी ८० की तो खरीद है , क्या २० रुपये भी ना कमायें , सुबह से धूप में खड़े हैं | ठीक है 70 का देना हो तो दो , वर्ना हम चले | ठीक है , ठीक है , सिर्फ आपके लिए | मोल -मोलाई की ये बातें हम अक्सर करते और सुनते हैं | ये सब दुकानदारी का एक हिस्सा है , जो थोड़ा सा झूठ बोल कर चलाई जाती है | पर क्या सब ये कर पाते हैं ? लघुकथा-दुकानदारी ‌ये उन दिनो की बात है जब नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद हमने नया-नया कोल्ड डिंक का काम शुरू किया!चूकि सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे।दुकानदारी के दाव-पेच मे हम कोरे पन्ने थे।पहले सीजन मे जोश-जोश मे खूब माल भर लिया था!अनुभव व चालाकी के अभाव मे ज्यादा सेल नही कर पाये,नतीजन माल बचा रहा,! आफ सीजन नजदीक आता देख व बचे माल को देख हमे अपनी अक्ल पर पत्थर पढते दिखाई दिये।हमने आव देखा ना ताव,अपने सारे माल को लेकर उसी होलसेलर के पास जा पहुंचे पर ये क्या,वो तो माल लेने से बिल्कुल मुकुर गया! मेरे यहाँ से ये माल गया ही नही?ये माल तो एक्सपायर हो गया है!इसकी डेट भी निकल चुकी है!कस्टमर तो लेगा ही नही। हम भी आपे से बाहर हो गये,कभी दुकानदारी की नही थी ,सिर मुडाते ही ओले पढे,वाली हालत हो गयी थी हमारी।उसे कुछ भी कहना,कागज काले करने वाली बात थी। एक्सपायरी माल हम तो बेच नही सकते थे। क्योंकि हमारा जमीर ही हमारा साथ नही दे रहा था।हारकर हमने उसे ही कोई हल बताने को कहा!उसने हंसकर कहा-एक बात हो सकती है….अगर तुम अपना सारा माल मुझे आधे दाम पर दे दो तो मै इसपर लिखी तारीख को तेजाब से साफ करके नये रेट से ही शराबखाने मे डाल मुनाफा कमा लूगा।क्योकि वहां आने वाले नशेडिय़ों, शराबियो ने कौन सी छपी तारीख पढनी है।हमे उसकी सलाह माननी पड़ी पर ये खरीद-बेच का गणित हमे समझ नही आया,और फिर हमे ये दुकानदारी बंद करनी पडी।। सोचने लगे थे मुनाफे के चक्कर मे,अपनी दुकानदारी चमकाने के चक्कर मे इंसान कितना नीचे तक गिर सकता है,ये वाक्या हमे मुंह चिढा रहा था।। ऋतु गुलाटी यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “दुकानदारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, shop, shopkeeper, shopping

परहितकारी

परहित सरिस धरम नहीं भाई … तुलसीदास जी की यह चौपाई परोपकार को सबसे श्रेष्ठ धर्म बताती है | अच्छे मुश्यों का प्रयास रहता है कि वो परोपकार कर दूसरों का हित करें परन्तु जीव -जंतु भी परोपकार की भावना से प्रेरित रहते हैं | ऐसे ही मूक प्राणियों की परहित भावना को अभिव्यक्त करती लघुकथा … लघुकथा -परहितकारी  सुबह-सुबह आसमान में सूर्य की लालिमा उभरने लगी थी। इस लालिमा के स्वागत में पक्षियों का कलरव शुरू हो चुका था। राहुल नींद से उठकर आंखें मल रहा था। तभी उसके बालकनी में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी। राहुल समझ गया कि चिड़ियां पानी पीने के लिए व्याकुल हो रही हैं। राहुल रोज रात में सोने से पहले बाॅलकनी के मुंडेर पर पानी की कुछ प्यालियां रख देता था। मगर कल रात वह प्यालियां रखना भूल गया था। वह फौरन किचेन में गया और दो प्यालियों में पानी भरकर बालकनी में आया। उसने मुंडेर पर प्यालियां रख दीं और वह पीछे हट गया। मगर प्यासी चिड़ियां पानी के प्याली तक नहीं आईं। राहुल आश्चर्यचकित था। पढ़ें –जीवन दाता     वही मंुडेर पर कुछ गमले रखे थे। सभी चिड़ियां उन गमलों के पौधे के ईर्द-गिर्द मंडरा रही थीं और चीं-चीं कर रही थीं। राहुल कुछ समझ नहीं पाया। वह चिड़ियों की इस हरकत से परेशान होने लगा। तभी दादी मां बालकनी में आई। उन्होंने राहुल को परेशान देखा तो इसका कारण पूछा। राहुल ने कहा, ‘‘देखो न दादी, चिड़ियां मेरा पानी न पीकर गमलों पर क्यों मडरा रही हैं ?’’   दादी ने गमलों को गौर से देखा। सभी गमले सूख चुके थे। उनमें पड़ी मिट्टी में दरारें पड़ने लगी थीं। दादी मां सब समझ गईं। उन्होंने राहुल एक बाल्टी पानी और मग लाने को कहा। राहुल पानी और मग ले आया। दादी मां ने जल्दी-जल्दी सभी गमलों में पानी डाला। देखते-ही-देखते गमलों में पड़ी मिट्टी की दरारें खत्म हो गईं।    तभी राहुल ने देखा, सभी चिड़ियां गमलों पर से मंडराना छोड़कर पानी की प्यालियों की तरफ बढ़ गईं और चोंच डुबाकर पानी पीने लगीं। राहुल के आश्चर्य की सीमा न रही। दादी मां ने राहुल को हैरान देखा तो कहा, ‘‘ये पंछी हैं, मनुष्य नहीं। यह अपनी प्यास से ज्यादा दूसरों की प्यास की फिक्र करते हैं।’ ’   राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘दूसरों की प्यास ? मतलब ?’’   दादी मां ने राहुल के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘इन सूखे पौधों की प्यास। यही पौधे तो हमें जीवन देते हैं। इन्हें भी तो पानी देना होगा।’’                                                                                                                                                                                                                                           – ज्ञानदेव मुकेश                                                 न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                                 पटना-800013 (बिहार)                                                         यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “परहितकारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

जीवनदाता

गर्मी का मौसम शुरू हो गया है | इन्सान तो क्या , जीव -जंतु , पेंड -पौधे सब का हाल बुरा है | तपती हुई धुप में कितनी बार हम लोगों को लगता है कि कहीं से बस दो बूँद पानी मिल जाए तो जीवन चल जाये | शायद ऐसा ही तो जीव -जंतु , पेंड पौधे भी कहा करते होंगे , पर क्या उनकी आवाज़ हम सुन पाते हैं ? ये आवाज़ महसूस की एक नन्हे बच्चे ने …  लघुकथा -जीवनदाता  गर्मी के दिन थे। सुबह होते ही सिर पर तेज-कड़ी धूप निकल आती थी। सिंटू ने सुबह-सुबह अपनी किताब से पेड़-पौधों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। तभी उसे प्यास लगी तो वह कमरे से निकल कर मां के पास आया। मां ने एक ग्लास पानी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, पानी बर्बाद मत करना। आजकल इसकी बड़ी किल्लत हो गई है।’’ घर के अंदर उमस हो रही थी। सिंटू ग्लास लेकर छत पर निकल आया। वहां उसने देखा, गमले के पौधे सूख रहे हैं। वह अपनी प्यास भूल गया। उसने ग्लास का सारा पानी गमले में उड़ेल दिया। तभी मां बाहर आ गई और यह दृश्य देखकर चैेक पड़ीं। उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुमने क्या किया ?’’ सिंटू ने कहा, ‘‘मां, हम पानी के बिना कुछ दिन रह सकते हैं। मगर आक्सीजन के बगैर बिल्कुल नहीं। मत भूलो, ये पौधे हमें आॅक्सीजन देकर जीवन देते हैं। इनका खयाल पहले रखना जरूरी है।’’                                                            -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                               पटना- (बिहार)                                                         e-mail address –             gyandevam@rediffmail.com                                                                                                                                                                यह भी पढ़ें – गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ आपको लघु   कथा  “जीवन दाता “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

पालने में पूत के पैर

यूँ तो ये एक कहावत ही है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं , अर्थात नन्हा नाजुक सा बच्चा बड़ा हो कर कैसे स्वाभाव वाला बनेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | हम सब अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे बच्चों से जरूर रूबरू हुए होंगे जिनकी सफलता के बारे में हमें उनके छुटपन से ही अंदाजा हो गया था | एक ऐसा ही अंदाजा लघुकथा के रूप में पिरोया है रीतू गुलाटी जी ने … लघुकथा –पालने में पूत के पैर  आज अचानक फेसबुक पर अपने प्यारे छात्र अनु की तस्वीर देख मेरा मन खुशी से उछल पडा।आज कितने सालो के लम्बे अंतराल बाद जो दिखा था।जल्दी से मैने उसका प्रोफाईल चेक किया,जिसे देख आश्चर्य से मेरा मुंह खुल्ला का खुल्ला रह गया। वो दिल्ली मे सरकारी जॉब पा गया था वो भी Sectional Officer at Ministry of Housing and Urban Affair department मे। M.Sc. करके Ph.D. भी कर गया था,Indian Agriculture Research Institute से।वाह वाह,मै तो खिल गयी थी!कंहाँ से कंहा पहुंच गया मेरा वो छात्र,,,,।मै कुछ सोचने लगी,और अतीत के पन्ने बदलने लगी,!मुझे याद आया जब अनु ने मेरे ग्रामीण परिवेश मे बने एक छोटे से स्कूल मे प्रवेश लिया था,! पतला सा,लम्बा सा,सांवले रंग का वो बच्चा विलक्षण सा लगा।उसकी आँखों की चमक कुछ कहती थी।सीधा-सादा सरल बच्चा नर्सरी से आठवी क्लास तक मेरे संपर्क मे रहा!और आठवीं क्लास के हरियाणा बोर्ड मे 99%नम्बर लेकर वो मेरे स्कूल से लेकर अपने गांव मे चर्चित हो गया था। उसके माता-पिता भी बडे शरीफ व सीधे -सादे थे।पिता खेती करता व दूध भी बेचता।समय समय पर अनु भी पिता की साथ फसल कटवाता।कच्चे मिट्टी के घर मे वो रहते।और हर छह माह बाद फसल कटने के उपरान्त ही उसका पिता फीस भरता।उसका एक छोटा भाई जो रंगत मे अनु से उलट था फिर भी शैतानी करता पर अनु चुपचाप व गंभीर दिखता,,व पढाई मे जुटा रहता। एक दिन मै आठवीं क्लास का पढा रही थी,तभी मैनै पढाई से इतर कुछ बाते करनी शुरू कर दी,तभी अनु मुझे बोला–मैम पहले मेरा वो चैप्टर जल्दी से कम्पलीट करा दीजिये।मै मुस्कुरा दी।उसकी पढाई की लगन ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर दिया था ,कि पूत के पैर पालने मे दिख जाते है।। रीतू गुलाटी ‘ऋतू ‘ यह भी पढ़ें … सीख डोंट डिस्टर्ब मी लेखिका एक दिन की इंटरव्यू आपको  लघु कथा  ” पालने में पूत के पैर “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, short story

प्रेम का बंधन

                                                                          सफलता , सुख सम्पत्ति अकेलापन भी लाती है और दुःख में सम भाव का अहसास टूटे  रिश्तों के धागों को जोड़ कर परम का अटूट बंधन बना देता है | मानवीय स्वाभाव की इस विशेषता पर एक लघुकथा … लघु कथा -प्रेम का बंधन  दोनों की आयु बारह-तेरह वर्ष होगी। उनके हाथ में रद्दी का सामान जमा करने वाला एक ठेला था। वे उसे घसीटते हुए गली में आगे बढ़ रहे थे और लोगों से अपने घर के कबाड़ बेचने का ऊंचे स्वरों में आह्वान कर रहे थे। मैंने उनकी पुकार सुनी तो उन्हें अपने घर में बुलाया। वे बड़ी उम्मीद से घर में आए। मगर मैंने उनके घर में घुसते ही सवाल किया, ‘‘तुम लोग पढ़ते क्यों नहीं ? यह उम्र क्या यही सब करने की है ?’’ उन्हें प्रश्न बेहद अवांछित लगा। उनमें जो बड़ा था, उसने उलाहना देते हुए पूछा, ‘‘गरीब पहले खाएगा या पढ़ेगा ?’’ जवाब सुनकर मैं अपराध-बोध से ग्रसित हो गया। आवाज को मुलायम करते हुए मैंने पूछा, ‘‘क्या तुम बहुत गरीब हो ?’’ उसमें से छोटे ने कहा, ‘‘हां, आज हम बहुत गरीब हैं। मगर कभी हम अच्छे खाते-पीते घर के थे। हम बड़े शौक से स्कूल जाते थे। मगर एक दिन हमारे बड़े ताऊ ने धोखे से हमारी पूरी जमीन हथिया ली। मेरे पिता जी कोर्ट-कचहरी करते रहे। मगर हमें हमारी जमीन वापस नहीं मिली। उल्टे जो घर में बचा-खुचा था, मुकदमेबाजी के भेंट चढ़ गया। हम कंगाल हो गए। ऊपर से दोनों परिवारों में भीषण दुश्मनी पैदा हो गई। ’’ पढ़िए -लघुकथा :मिलाप  मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे उस दुष्ट ताऊ का क्या हुआ ? क्या वह सुख-चैन से जी रहा है ?’’ छोटे लड़के ने जवाब जारी रखते हुए कहा, ‘‘उस अन्यायी ताऊ का भी भला नहीं हुआ। वह बीमार हो गया। उसकी छाती में पानी भर गया। वह इलाज कराता रहा। मगर ठीक नहीं हुआ। हथियाई हुई जमीन इलाज की बलि चढ़ गई। एक दिन वह भी कंगला हो गया और आखिर एक दिन भगवान को भी प्यारा हो गया।’’ यह सब सुनकर मुझे बड़ा अफसोस हुआ। मेरे मुंह से ‘आह!’ निकल गई। मैंने कहा, ‘‘धन-दौलत तो स्वाहा हो गए मगर दोनों परिवारों की दुश्मनी का क्या हुआ ?’’ इसपर दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे। इस बार बड़े लड़के ने कहा, ‘‘बस यही तो फायदा हुआ। मेरे बाऊजी के मरते ही हमारी दुश्मनी हवा हो गई।’’ मैं चैंक पड़ा। बड़े लड़के की तरफ मुंह घुमाकर मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे बाऊ जी ? मतलब ?’’ उसने बड़ी सहजता से कहा, ‘‘मेरे बाऊजी ही इसके दुष्ट ताऊ थे, जिन्होंने मेरे छोटे ताऊ की जमीन हड़प ली थी। ये छोटा मेरा चचेरा भाई है। हम दोनांे की जमीन गई तो हमारे परिवारों की दुश्मनी भी गई। अब हम मिलकर रोजी-रोटी कमाते हैं। हम जमीन पर आ गए तो क्या हुआ, अब हम एक हैं।’’ एकता की ऐसी अद्भुत कहानी सुनकर मैं भौंचक रह गया।                                                                   -ज्ञानदेव मुकेष                                                                                                        न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                          पटना-800013 (बिहार) यह भी पढ़ें …     परिवार इंसानियत अपनी अपनी आस बदचलन आपको कहानी    “प्रेम  का बंधन  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, love, bond, atoot bandhan