मिलाप

ताला चाभी … एक ऐसा रिश्ता जो एक दूसरे की जरूरत हैं | हम इंसानों के रिश्ते भी कई बार जरूरत के कारण  बन जाते हैं …. ये रिश्ते खून के नहीं होते , जान-पहचान या दोस्ती के भी नहीं होते , पर दोनों एक दूसरे के जीं में किसी कमी को पूरा कर रहे होते हैं | अचानक से हुआ इनका मिलाप इन्हें एक नए रिश्ते मैं बांध देता है ……. लघुकथा -मिलाप     शाम हो चुकी थी। एक बेहद विक्षिप्त लड़का नदी किनारे आकर उसमें कूद जाने की तैयारी में था। तभी उसने एक बूढ़े व्यक्ति को नदी में छलांग लगाते देखा। वह अपना कूदना भूलकर बूढ़े को बचाने के लिए पानी में फौरन उतर गया। उसे तैरना भलीभांति आता नहीं था। उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वह किसी तरह बूढ़े को खींचकर पानी के बाहर तट पर ले आया। बूढ़ा व्यक्ति नीम बेहोशी में था। उसने लड़के से पूछा, ‘‘मुझे…मुझे क्यों बचाया….? मैं जीना नहीं चाहता।’’    लड़के ने पूछा, ‘‘क्यों ?’’    बूढ़े ने कहा, ‘‘मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं। मेरा एक ही बेटा था। वह मुझे छोड़कर चला गया। लेकिन मुझे लगता है, तुम भी कूदनेवाले थे। तुम्हारी क्या मजबूरी है ?’’ पढ़ें –आई एम सॉरी विशिका    लड़का डबडबा गया। उसने कहा, ‘‘मैं भी अकेला हो गया हूं। कुछ समय पहले मां चली गई। अब पिता भी छोड़ गए।’’    दोनों गहरी उदासी में डूब गए और शून्य में ताकते रहे। रात उतरने लगी तो दोनों सड़क की तरफ बढ़ चले। सड़क पर आते-आते दोनों एक-दूसरे के नजदीक आने लगे। सड़क पर आते ही बूढ़े ने लड़के का हाथ पकड़ लिया और निराशा से निकलने की कोशिश में पूछा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ रहोगे ?’’    लड़के ने आसमान की ओर देखा। हल्के अंधेरे में एक तारा झिलमिलाता दिखा। तारे की रोशनी उसकी आंखों में भर गई। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, ‘‘हां, मैं आपके साथ चलूंगा।’’                                                       –ज्ञानदेव मुकेश   यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “मिलाप  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, mutual relation, need

सुरक्षित

मृत्यु भय ग्रसित व्यक्ति को पाराधीनता स्वीकार करने में भी सुरक्षित महसूस  होता है | हालांकि ये पराधीनता अपनाने के कई कारण हो सकते हैं पर सुरक्षा सबसे प्रमुख है | जानवर भी इसके अपवाद नहीं | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की कहानी ………. लघुकथा -सुरक्षित  रात अंधेरे एक तेंदुआ गांव में घुस आया और रहर के खेत में जा बैठा। दीनू काका अहले सुबह शौच पर जा रहे थे। उनकी नजर तेंदुए पर पड़ी। वे सिहर गए। वे लोटा फेंककर उल्टे पांव भागे। बस्ती में आते ही उन्होंने शोर मचा दिया। घर-घर में तेंदुए का दहशत व्याप गया। माओं ने बच्चों को गोद में छुपा लिया। कई मर्दों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। लेकिन कुछ मर्दों ने हिम्मत जुटाई।  हाथों में लाठियां लीं और शोर मचाते हुए रहर की खेत की तरफ बढ़े। उनके हाथों में लाठियों की ताकत थी, मगर दिलों में भय का राज था। उन्होंने रहर के खेत को दो तरफ से घेर लिया। मगर उनमें आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की लघुकथा –छुटकारा      क्षितिज से निकलकर सूरज चढ़ने लगा। प्रकाश चारो तरफ फैल गया। लेकिन तेंदुआ कहीं नजर नहीं आ रहा था। इस बीच किसी ने वन विभाग को सूचना दे दी। विभाग के कर्मचारी एक पिंजड़ा लेकर गांव की तरफ बढ़ चले। तभी खेत के एक छोर से तेंदुए के दौड़ने की आवाज मिली। ऐसा लगा जैसे वह हमला करने बढ़ा हो। कुछ मर्द बिदक गए। मगर शेष लाठियां पटकते हुए आगे बढ़ने लगे।  रहर की झाड़ियों  में घुसते ही तेंदुआ दिख गया। मर्द डर रहे थे। मगर उसी डर में आगे बढ़ रहे थे। तेंदुआ कुछ कदम आगे आता तो कुछ कदम पीछे चला जाता है। लोग डरते-डरते ही सही उसे मारने के लिए अंतिम हमला करने आगे बढ़ गए।    तभी वन विभाग अपना पिंजड़ा लेकर हाजिर हो गया। कर्मचारियों ने पिंजड़ा का दरवाजा खुला रख छोड़ा था। वन विभाग के लोग बंदूकें लिए हुए थे। एक छोर से उन्होंने भी तेंदुए को घेर लिया। डर उनमें भी समाया हुआ था। लाठियों और बंदूको के बीच तेंदुआ भी अब डर रहा था। वह भागा। तभी उसके सामने पिंजड़ा आ गया। गेट खुला था। बदहवासी में वह खुले गेट से पिंजरे में घुस गया। वन विभाग के लोगों ने दौड़कर गेट बंद कर दिया।   गांव और वन विभाग के लोगों ने राहत की सांस ली। उनका डर खत्म हुआ। मगर सच यह था कि िंपंजरे में आने के बाद तेंदुआ खुद को कहीं ज़्यादा महफूज़ महसूस करने लगा था।                                             -ज्ञानदेव मुकेश                                  न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                     पटना-800013 (बिहार)                                                                                                                                  यह भी पढ़ें ………    चुप    लेखिका एक दिन की     वो व्हाट्स एप मेसेज   बिगुल            आपको आपको    “माँ के जेवर “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-short story, short story in hindi, safe, attack

छुटकारा

   हम सब को लगता है कि हम हर समय दूसरों की मदद को तैयार रहते हैं | परन्तु जब मदद की स्थिति आती है तो क्या हम वास्तव में करना चाहते हैं ? कहीं हम इन सब से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की एक सशक्त लघुकथा … छुटकारा   सुबह उठते ही मैंने आदतन स्मार्ट फोन उठाया और वाट्सअप खोलकर देखना शुरू किया। सबसे पहले क्रमांक पर हमारे सरकारी ग्रुप पर एक मेसेज आया हुआ था। मेसेज में लिखा था, ‘अपने वरीय अधिकारी, राहुल सर अचानक काफी बीमार पड़ गए हैं। उनके हार्ट का वल्व खराब हो गया है। वे दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जीवन-मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका एक बड़ा ऑपरेशन होना है। सभी अधिकारियों से निवेदन है कि उनकी यथासंभव आर्थिक सहायता करें। सहायता की राशि संघ के अध्यक्ष के खाते में जमा की जा सकती है।’    सुबह-सुबह यह समाचार पढ़ मैं स्तब्ध रह गया। मैंने उनकी कुशलता के लिए ईश्वर से तत्क्षण प्रार्थना की। मेरा अगला ध्यान मेसेज में किए गए निवेदन पर गया। मैं बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। राहुल सर एक बड़े अधिकारी हैं। उन्हें भला पैसे की क्या कमी ? फिर भी ऐसा निवेदन ? मैं सोच में पड़ गया। मैं उनकी सहायता करूं कि न करूं ? यदि करूं भी तो कौन-सी रकम ठीक होगी ? मैं अजीब उधेड़बुन में फंस गया।     उस रात मैं बड़ा परेशान रहा। मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा था। ग्रुप पर मेसेज आया था तो कुछ नहीं करना भी शिकायतों को निमंत्रण देना था। यही उधेड़बुन लिए मैंने किसी तरह रात गुजारी।  पढ़िए -कहानी :हकदारी    सुबह होते ही मैंने फिर सबसे पहले अपना फोन उठाया। वाट्सअप खोला। प्रथम क्रमांक पर फिर सरकारी ग्रुप पर मेसेज आया हुआ था। मेसेज पढ़कर मैं धक् सा रह गया। लिखा था, ‘बेहद दुख के साथ सूचित किया जाता है कि अपने प्रिय राहुल सर कल रात में ही हमें छोड़कर चले गए।’    मेरे दुख का ठिकाना न रहा। राहुल सर का चेहरा मेरे सामने घूमने लगा। कुछ देर बाद मैं थोड़ा संयत हुआ। तभी अचानक मुझे एक राहत सी महसूस हुई। आश्चर्य, यह कैसी राहत थी ? मैंने अपने मन को टटोला। मैंने पाया, इस समाचार ने मेरे मन को कल के उधेड़बुन से मुक्त कर दिया था।                                                        -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                       न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                                    पटना- (बिहार)                                                                 यह भी पढ़ें … माँ के जेवर अहसास चॉकलेट केक दोष शांति आपको    “छुटकारा “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-Hindi story, Kahani, , Emotional Hindi story,  ,                            

माँ के जेवर

बचपन में जो बेटे माँ मेरी माँ मेरी कह कर झगड़ते थे वही बड़े होने पर माँ तेरी , माँ तेरी ख कर झगड़ते हैं | ऐसी ही एक माँ थी फुलेश्वरी देवी जिसकी सेवा सिर्फ छोटा बेटा ही करता था | फिर भी बड़े बेटे  का फरमान था कि सेवा भले ही छोटा बेटा  कर रहा हो पर माँ के जेवर आधे उसे भी मिलने चाहिए | माँ उसकी इस बात से हताश होती पर उसने भी अपने जेवरों के अनोखे बंटवारे का फैसला कर लिया | लघुकथा -माँ के जेवर  माँ , फुलेश्वरी देवी ,  कम्बल से अपना मुँह ढककर लेटी थी | नींद तो उसकी बहुत पहले खुल गयी थी, पर दोनों बेटों  की बहस सुन रही थी | बहस उसी को लेकर हो रही थी | बड़े भाई छोटे भाई से क्रोध में कह रहा था  ,” देखो , ये सेवा -एव का नाटक ना करो | मुझे पता है तुम माँ की जेवर  के लिए ये सब कर रहे हो | लेकिन कान खोल कर सुन लो , माँ जेवर हम दोनों में आधे -आधे  बंटेंगे | एक नाक की कील भी ज्यादा मैं तुमको नहीं लेने दूंगा |” छोटा भी बोला ,” अगर आप को लगता है कि मं इस लिए सेवा कर रहा हूँ कि माँ के जेवर हड़प लूँ , तो आप ले जाइए माँ को अपने साथ , करिए सेवा और रखिये साथ , फिर सारे जेवर आप ही रख लीजियेगा , मुझे एक भी नहीं चाहिए |” बड़े भाई ने बात काटते हुए कहा ,” वाह बेटा ! वाह इसमें सेवा की बात कहाँ आ गयी | जेवर के बहाने  तुम माँ का भार  मेरे ऊपर डालना चाहते हो | माँ इतने समय से तुमहारे  साथ रह रही है , उसको अगर मैं ले जाउंगा तो उसे वहाँ अच्छा नहीं लगेगा | मेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं , वो भी अपनी पढाई में व्यस्त रहते हैं , माँ दो बातों को तरस जायेंगी | तुम्हारे बच्चे तो अभी छोटे हैं , माँ से दुबक सोते हैं , तुम्हारी पत्नी को भी आराम मिल जाता है , घडी दो घडी का | इसलिए माँ को तुम अपने ही पास रखो , पर जेवर में मुझे भी हिस्सा चाहिए | छोटा भाई बोला ,” मैं तो बस आपके मन की टोह लेने के लिए ऐसा कह रहा था | माँ कहीं नहीं जायेंगी वो हमारे साथ ही रहेंगी | आपको हो ना हो मुझको तो अहसास है कि बचपन में माँ ने इससे ज्यादा सेवा की थी | आप जाइए जेवर के पीछे , और अभी जोर -जोर से मत चिल्लाइये , माँ जाग जायेंगी तो उन्हें बुरा लगेगा | बड़ा भाई – हाँ , हाँ जा रहा हूँ , जा रहा हूँ , पर जेवर की बात ना भुलाना  | बड़ा भाई चला गया |छोटा भाई माँ के कमरे में जाकर देखता है , कि माँ ने सुन न लिया हो उन्हें दुःख होगा |माँ को सोते देख वो चैन की सांस लेता है, फिर अपनी पत्नी को बुलातेहुए कहता है की ध्यन रखना माँ को भैया की बात न पता चले | पत्नी हाँ में सर हिला देती है | माँ की आँखों में आसूँ है | उसे पता कि छोटा बेटा बहु उसकी सेवा करते हैं , दिल से करते हैं , उन्हें पैसे का लालच नहीं है | बड़ा बेटा उसे कभी दो रोटी  को भी नहीं पूछता | जब देखो तब लड़ने चला आता है | उसे माँ से प्यार नहीं , जेवरों से प्यार है | बड़ा बेटा उसकी भी कहाँ सुनता है | हर बार जब भी तू -तू, मैं मैं होती है वो बड़े से तो कुछ नहीं कह पाती , छोटे को ही समझा बुझा कर शांत कर देती है ताकी घर में शांति बनी रहे | ………………… तीन वर्ष ऐसे ही बीत गए | बार – बार हॉस्पिटल  जाना , आना लगा रहता | कभी -कभी कई  दिनों के लिए भी बीमार पड़ती | छोटा बेटा और बहु दौड़ -दौड़ कर सेवा करते | एक बार माँ को मैसिव हार्ट अटैक पड़ा | बचने की उम्मीद कम थी , बस साँसों की डोर थमी थी | सब रिश्तेदार आ कर देख के जा रहे थे | एक दिन अस्पताल में उन्हें देखने उनकी छोटी बहन राधा मौसी भी आई तो माँ ने एक डायरी उसे पकड़ा कर कहा कि मेरा एक काम का देना मेरे मरने के बाद  तेरहवीं  के दिन इसे सबके सामने पढना | बहन डायरी ले कर अपने घर चली गयी | उसी रात माँ के प्राण पखेरू उड़ गए | शायद बहन को डायरी सौंपने के लिए ही प्राण अटके थे | तेरहवीं के दिन जब सब लोग खाने बैठे तो मौसी ने डायरी खोल कर पढना शुरू किया | मेरे बेटों ,                ये डायरी ही मेरी वसीयत है | अक्सर मैं तुम दोनों को  झगड़ते हुए सुनती | मेरी आत्मा बहुत तडपती पर मैं  ये दिखाती कि मैंने सुना ही नहीं है | ज्यादातर जेवरों की बात होती | मैं बताना चाहती हूँ कि मेरे जेवर भण्डार घर की  अलमारी के तीसरे खाने में छोटू के पुराने कपड़ों के नीचे एक डब्बे में रखे हैं | क्योंकि तुम दोनों मेरे ह बच्चे हो इसलिए मैं उन जेवरों को तौल के अनसुर बाँट कर आधा -आधा तुम दोनों को दे रही हूँ |  परन्तु मेरे पास कुछ और जेवर हैं वो मैं छोटे बेटे को दे रही हूँ …. वो है मेरा आशीर्वाद | मैं ढेरों आशीर्वाद अपने छोटे  बेटे के लिए छोड़े  जा रही हूँ क्योंकि सिर्फ उसी ने मेरी निस्वार्थ सेवा करी है |                                                                        तुम्हारी माँ  पत्र सुनते ही लोग छोटे बेटे की जयजयकार करने लगे | छोटे बेटे की आँखों में आँसू थे और बड़ा बेटा सर झुकाए लज्जित खड़ा था | माँ के जेवरों के ऐसे अद्भुत बंटवारे की … Read more

मीठा अहसास

यूँ तो हमारे हर रिश्ते भावनाओं से जुड़े होते हैं परन्तु संतान के साथ रिश्ते के मीठे अहसास की तुलना किसी और रिश्ते से नहीं की जा सकती | इसी अहसास के कारण तो माता -पिता वो कर जाते हैं अपनी संतान के लिए जिसका अहसास उन्हें खुद नहीं होता | ऐसी ही एक लघु कथा …. लघुकथा -मीठा अहसास लोहडी व संक्रान्त जैसे त्यौहार भी विदा ले चुके थे। लेकिन अब कि बार ग्लोबलाइजेशन के चलते ठंड कम होने का नाम नही ले रही थी।ठंड के बारे बूढे लोगो का तो बुरा हाल था,जिसे देखो वही बीमार।हाड-कांप ठंड ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया था।देर रात जागने वाले लोग भी अलाव छोड बिस्तरो मे घुसे रहते शाम होते ही। बर्फिली हवा से सब दुखी थे।कही बैठा ना जाता।सब सुनसान हो रहा था।रात छोड दिन मे भी कोहरा दोपहर तक ना खुलता।सूर्य देव आंख -मिचौली मे लगे रहते,कभी दिखते कभी गायब हो जाते। स्कूलो मे भी 15-15दिनो की छुट्टियाँ कर दी गयी थी!पर छोटे बच्चे कहां टिकते है? पर इस ठंड मे वो भी बिस्तर मे दुबक गये थे। बिस्तर पर पडे-पडे मै भी कब यादो के जंगल मे घूमने निकल गयी थी!पुरानी यादे,चलचित्र की रील की तरह मेरे सामने घूम रही थी।मुझे याद आया जब आज से 30 साल पहले मेरे पति की नाइट डयूटी थी। ये उस दिन की बात है जब मेरे पति रात की पारी मे दो बजे घर से चाय पीकर डयूटी पर जा चुके थे!मुझे आठवां महीना लगा हुआ था,और मेरा चार साल का बेटा बिस्तर पर सोया मीठी नींद ले रहा था।पतिदेव जब जाने लगे थे,तो मै उन्हे “बाय” कहने जब गेट पर आयी तो इतने कोहरे को देख मै भी ठंड से कांपने लगी। पतिदेव के जाने के बाद मे कुछ सोचने लगी,अभी दीवाली आने मे समय था,!हर दीवाली पर मै अपने बेटे को नयी डैस जरूर दिलवाती,इस बार सोचा,नयी स्कूल डैस दिलवाऊगी,मेरे बेटे को निकर पहन कर स्कूल जाने की आदत थी,अभी छोटा सा लगता था कद मे।फिर इसी साल स्कूल जाना शुरु किया था।मैनै स्कूल पैन्ट का कपडा लाकर रखा हुआ था,सोच रही थी,किसी दिन टेलर को देकर आऊगी,पर अपनी ऐसी हालत मे जा ही नही पायी,झेप के मारे! आज के कोहरे को देख,कुछ सोचने लगी।इतनी ठंड मे मेरा बेटा स्कूल कैसे जायेगा?कुछ सोचने के बाद मैने खुद उसकी पैन्ट सिलने का फैसला किया!रात के तीन बजे से छह बजे तक मैने पैन्ट सिलकर तैयार कर दी।सात बजे मेरा बेटा जागा,और मैनै उसे गरम पानी से नहला कर नयी पैन्ट पहना दी,वो बडा खुश हो गया,!उसके चेहरे की खुशी देकर मै भी भावविभोर हो गयी और अपनी सारी थकावट भूल गयी,भूल गयी ऐसी हालत मे मुझे मशीन चलानी चाहिये थी या नही। उसकी स्कूल वैन आने वाली थी,मैने उसे लंचबाक्स व बैग देकर विदा किया! पर,ये क्या?वो थोडी देर मे ही वापिस आ गया!मैने पूछा,बेटा,वापिस क्यो आ गये हो? बडी मासूमियत व भोलेपन से बोला,”मम्मी जी”बाहर तो कुछ दिख ही नही रहा!मै समझ गयी असल मे दूर तक फैले कोहरे के कारण उसे घर से दूर खडी स्कूल वैन दिखाई ही नही दे रही थी। तभी उसे मैने प्यार से समझाईश दी,-“बेटा” आप बेफिक्र होकर आगे-आगे चलते चलो,आपको आपकी स्कूल वैन दिख जायेगी।मेरे प्यार से समझाने के बाद वो चला गया था अपने स्कूल।।आज फिर इतने सालो बाद इस कोहरे ने उन दिनो की याद ताजा कर दी थी।एक मीठी याद के रूप मे मेरे मन मस्तिष्क मे गहरी छाप छोड गयी थी। और एक प्रश्न भी,कि अपनी औलाद के स्नेह मे बंधे हम कुछ भी,काम किसी भी समय करने बैठ जाते है ये मीठा अहसास ही तो है जो हमसे करवाता है। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … हकीकत बस एक बार एक टीस प्रश्न पत्र आपको  लघु कथा  “  मीठा अहसास “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – Mother, MOTHER and son, sweet memories

पेट की मज़बूरी

एक बूढ़े बाबा हाथ में झंडा लिए बढ़े ही जा रहे थे, कईयों ने टोका क्योंकि चीफ मिनिस्टर का मंच सजा था, ऐसे कोई ऐरा-गैरा कैसे उनके मंच पर जा सकता था| बब्बू आगे बढ़ के बोला “बाबा ! आप मंच पर मत जाइए, यहाँ बैठिये आप के लिए यही कुर्सी डाल देते हैं |”“बाबा सुनिए तो…” पर बाबा कहाँ रुकने वाले थे|जैसे ही ‘आयोजक’ की नज़र पड़ी, लगा दिए बाबा को दो डंडे, “बूढ़े तुझे समझाया जा रहा है, पर तेरे समझ में नहीं आ रहा”आँख में आँसू भर बाबा बोले, “हाँ बेटा, आजादी के लिए लड़ने से पहले समझना चाहिए था हमें कि हमारी ऐसी कद्र होगी | ‘बहू-बेटा चिल्लाते रहते हैं कि बुड्ढा कागजों में मर गया २५ साल से …पर हमारे लिए बोझ बना बैठा है’, तो आज निकल आया पोते के हाथ से यह झंडा लेकर…, कभी यही झंडा बड़े शान से ले चलता था, पर आज मायूस हूँ जिन्दा जो नहीं हूँ ….|” आँखों से झर-झर आँसू बहते देख आसपास के सारे लोगों की ऑंखें नम हो गईं| बब्बू ने सोचा जो आजादी के लिए लड़ा, कष्ट झेला वह …और जिसने कुछ नहीं किया देश के लिए वह मलाई ….,छी:!“पेट की मज़बूरी है बाबा वरना …|” रुँधे गले से बोल बब्बू चुप हो गया |————–००—————००———— यह भी पढ़ें … वो व्हाट्स एप मेसेज 99 क्लब का सदस्य प्रश्न पत्र भोजन की थाली आपको  लघु कथा  “  पेट की मजबूरी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – independence, freedom, leader, fight for nation लेखिका का  संक्षिप्त परिचयसम्पूर्ण नाम – सविता मिश्रा ‘अक्षजा’शिक्षा -ग्रेजुएटव्यवसाय..गृहणी (स्वतन्त्र लेखन )लेखन की विधाएँ – लेखन विधा …लेख, लघुकथा, व्यंग्य, संस्मरण, कहानी तथामुक्तक, हायकु -चोका और छंद मुक्त रचनाएँ |प्रकाशित पुस्तकें – .पच्चीस के लगभग सांझा-संग्रहों में हायकु, लघुकथा और कविता तथा कहानी प्रकाशित |प्रकाशन विवरण .. 170 के लगभग रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा बेब पत्रिकाओं में छपी हुई हैं रचनाएँ |दैनिक जागरण- भाष्कर इत्यादि कई अखबारों में भी रचनाएँ प्रकाशित |पुरस्कार/सम्मान –  “महक साहित्यिक सभा” पानीपत में २०१४ को चीफगेस्ट के रूप में भागीदारी |“कलमकार मंच” की ओर से “कलमकार सांत्वना-पुरस्कार” जयपुर (३/२०१८)“हिन्दुस्तानी भाषा  साहित्य समीक्षा सम्मान” हिंदुस्तान भाषा अकादमी (१/२०१८) ‘शब्द निष्ठा लघुकथा सम्मान’ २०१७ अजमेर,  ‘शब्द निष्ठा व्यंग्य सम्मान’ २०१८ अजमेर में |जय-विजय  वेबसाइट द्वारा  लघुकथा विधा में ‘जय विजय रचनाकार सम्मान’  लखनऊ (२०१६)बोल हरयाणा पर प्रस्तुत ‘परिवेश’ नामक कथा, “आगमन समूह” की आगरा जनपद की उपाध्यक्ष,गहमर गाजीपुर में ‘पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति’ २०१८ में सम्मान से सम्मानित |

गलती

आलीशान कोठी मे रहने वाले दम्पति की बडी खुशहाल फैमली थी।घर की साजो सामान से उनके रहन सहन का पता चलता था।घर के मालिक की उमर चालीस पैन्तालिस के आसपास थी।गठीले बदन घनी-घनी मूंछे उसके चेहरे का रौब बढा देती।रंग ज्यादा गोरा ना था पर फिर भी जंचता खूब था।अपना जमा जमाया बिजनेस था।घर मे विलासिता का सब सामान था।पत्नी भी सुन्दर मिली थी।होगी कोई चालीस बरस की।बडे नाजो मे रखी थी अपनी जीवन संगनी को।कुछ चंचल सी भी थी।पतिदेव को जो फरमाईश कर देती पूरी करवा कर दम लेती।कुल मिलाकर बडी परफैक्ट जोडी थी,यूं कहो मेड फार इच अदर थी। शादी के दस साल बीत जाने के बाद भी जब कोई औलाद नही हुई तब उन दोनो ने एक बिटिया को गोद ले लिया था। बडा प्यार करते दोनो बिटिया को।मधुरिमा नाम रखा उसका।दिन रात वो दोनो बिटिया के आगे पीछे रहते।उसके लिये अलग कमरा,अलग अलमारी यानि जरूरतो का सारा सामान सजा रहता।दिन पर दिन वो बिटिया सुन्दर होती जा रही थी।गोरा सुन्दर रंग उस पर काले लम्बे बाल।सुन्दर सुन्दर पोशाको मे वो बिल्कुल परी जैसी दिखती। मेरे पडोस मे ही उनकी कोठी थी। इस मिलनसार फैमली से मेरी खूब बनती।अक्सर छोटेपन मे मधुरिमा हमारे घर भी आती जाती। समय पंख लगाकर उड रहा था।मधुरिमा अब दसवी क्लास मे पहुंच गयी थी।बडी मासूम व भोली मधुरिमा मुझे भी बहुत भाती।अच्छे स्कूल की कठिन पढाई से निजात पाने हेतु उसने दो-दो टयूशने भी लगा ली थी।सब बढिया चल रहा था।आये दिन उनके घर कोई ना कोई फंक्शन होता,पूरा परिवार चहकता दिखता। हर साल मधुरिमा का जन्मदिन बडे होटल मे मनाया जाता। उस दिन मुझे अचानक किसी काम से उनके घर जाना हुआ,तकरीबन ग्यारह बज रहे थे सुबह के।आतिथ्य सत्कार के बाद मै बैठी हुई थी कि मधुरिमा को उसकी मम्मी ने आवाज लगाई…… मंमी–बेटी उठ जा,ग्यारह बज चुके है!नाश्ता कर लो आकर। मधुरिमा—(चुपचाप सोती रही) मंमी–बेटी उठ जा,कितनी देर से जगा रही हूं!!! मधुरिमा–आंखे खोल कर,,,,मंमी की ओर मुंहकर गुस्से से चिल्लाई–मुझे नही करना नाशता वाशता। मुझे सोने दो,आज मेरी छुट्टी है,मुझे केवल टयूशन जाना है। मंमी झेप सी गयी व चुप हो गयी,और मेरे पास आकर बातचीत करने लगी।थोडी देर मे वो काटने के लिये सब्जियाँ भी उठा लायी और काटने लगी।तभी मैने उठना चाहा पर उन्होने जबरदस्ती से फिर मुझे अपने पास बिठा लिया।हम दोनो बातो मे लग गये। ‌देखते ही देखते दो घंटे बीत गये । मधुरिमा की मम्मी ने किचन मे आकर दोपहर का लंच भी तैयार कर दिया था क्योकि उनके पति का डिफिन लेने नोकर आने वाला था।अब एक बजे फिर से मधुरिमा की मम्मी ने बिटिया को उठाने का उपक्रम किया,मगर फिर वही ढाक के तीन पात।हार कर मैनै भी कह ही दिया कि ये इतना सोयेगी,तो कल क्या करेगी?जब स्कूल जाना होगा। उसकी मम्मी बतलाने लगी,छुट्टी के दिन तो ये हमारी बिल्कुल नही सुनती,कहती है मै तो आज ज्यादा सोऊगी।देखना,अभी टयूशन का टाईम होगा तो अपने आप उठेगी।एक बार तो मैने भी मधुरिमा के कमरे का जायजा लिया,देखती क्या हुं,मधुरिमा आंख खोल कर अपने मोबाईल पर टाईम देख ले रही है और फिर सो जाती। ‌अपने पति का टिफिन नौकर को देकर अब मधुरिमा की मम्मी ने मधुरिमा को उठाने का फैसला किया!लगता था अब उन्हे गुस्सा आ रहा था।हार कर अब मधुरिमा उठी और राकेट की तरह बाथरूम मे घुस गयी।तुरन्त नहाकर टयूशन जाने के लिये तैयार होने लगी।जब वो तैयार हो रही थी तभी उसे घर के बाहर किसी चाट पकोडी बेचने वाले की आवाज सुनाई दी,वो मुस्कुरा दी। ‌मम्मी ने बार-बार लंच करने को कहा,तो हंसकर मधुरिमा ने कहा-मुझे तो चाट-पकोडी खानी है।मम्मी ने समझाईश देनी चाही। मम्मी -बेटी मैने तेरी पसन्द का लंच बनाया,सुबह का नाश्ता भी तेरी पसन्द का बनाया,और तूने चखा भी नही।अब चाट-पकोडी की फरमाईश कर रही है। बिटिया-मम्मी मुझे कुछ नही पता,मैनै जो मांगा है वही मंगाकर दो।सुना आपने। हार कर मम्मी ने नोकर को भेजकर चाट-पकोडी मंगवाई जिसे लेकर वो मेरे सामने दूसरे कमरे मे बैठकर खाकर खुश होकर बुक्स हाथ मे लेकर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर टयूशन के लिये निकल गयी। मैं सोचने लगी,मधुरिमा जैसी लडकियां जो अपनी मां का कहना नही मानती,ससुराल मे जाकर किस तरह सेटल होगी,कुसूर किसका है?क्या मां बाप के ज्यादा लाड प्यार का?अथवा मां ने ज्यादा ही सिर पर बैठा लिया? जो मां अपनी बेटी की जमीन शादी से पहले तैयार नही करती,क्या वो शादी के बाद ससुराल मे समायोजन कर पायेगी।मायके मे सब इतना नाज नखरा सहन करेगे क्या ससुराल मे भी ऐसा हो पायेगा?युवा होती इस बिटिया ने मेरे सामने किचन मे झांका तक नही,कया वो हकीकत की दुनिया मे अपने ससुराल जाकर किचन मे पारंगत हो पायेगी।माता-पिता अपने जीवन की सारी पूंजी लगाकर भी क्या अपनी बेटी की खुशियां खरीद पायेगे,हकीकत मे वो एक सुखद गृहस्थी की तारनहार हो पायेगी,?ऐसे अनसुलझे सवालो को लेकर मै अपने घर लौट आयी थी। रीतू गुलाटी ‌ यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये वो व्हाट्स एप मेसेज  लेखिका एक दिन की किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ गलती ‘कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, mistake

वो व्हाट्स एप मेसेज

                     जिसने दो साल तक कोई खोज खबर न ली हो …. अचानक से उसका व्हाट्स एप मेसेज दिल में ना जाने कितने सवालों को भर देता है | क्या एक बार  रिश्तों को छोड़ कर भाग जाने वाला पुन : समर्पित हो सकता है | वो व्हाट्स एप मेसेज  ३१ दिसम्बर रात के ठीक बारह बजे सुमी के मोबाइल पर व्हाट्स एप मेसेजेस की टिंग -टिंग बजनी शुरू हो गयी | मित्रों और परिवार के लोगों को हैप्पी न्यू  इयर का आदान -प्रदान करते हुए अचानक सौरभ के मेसेज को देख वो चौंक गयी | पूरे दो साल में यह पहला मौका था जब  सौरभ ने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की थी | सुमी ने धडकते दिल से मेसेज खोला और मेसेज पढना शुरू किया , ” हैप्पी न्यू इयर सुमी , मैं वापस आ रहा हूँ , तुम्हारे पास , फिर कभी ना जाने के लिए ” उसके नीचे ढेर सारे दिल बने थे | ना चाहते हुए भी सुमी की आँखें भर आयीं | मन दो साल पीछे चला गया | वो दिसंबर की ही कोई सुबह थी , जब वो गुनगुनी धूप में पूजा के लिए फूल तोड़ रही थी , तभी सौरभ ने आकर उसके जीवन में कोहरा भर दिया | सौरभ उसके पास आकर बोला , ” सुमी , मैं कल अपनी सेक्रेटरी मीनल के साथ अमेरिका जा रहा हूँ | अब मैं वहां उसी के साथ रहूँगा ,तुम्हारे लिए बैंक में रुपये छोड़े जा रहा हूँ , अब मेरी जिन्दगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | वहीँ की वहीँ खड़ी  रह गयी थी सुमी , सँभलने का मौका भी नहीं दिया उसने | सारे फोन कनेक्शन काट लिए , ना कोई प्रश्न पूछा और ना ही किसी बात का उत्तर देने का कोई मौका ही दिया | दो साल … हाँ पूरे दो साल इसी प्रश्न से जूझती रही कि तीन साल की सेजल और डेढ़ साल के गोलू  ,  -घर -परिवार और सौरभ की हर फरमाइश के लिए दिन भर चक्करघिन्नी की तरह नाचने के बावजूद आखिर क्या कमी रह गयी उसके प्रेम व् समर्पण में कि सौरभ उसके हाथ से फिसल कर अपनी सेक्रेटरी के हाथ में चला गया | महीनों बिस्तर पर औंधी पड़ी जल बिन मछली की तरह तडपती थी , उस वजह को जानने के लिए , ये सिर्फ प्रेम में धोखा ही नहीं था उसके आत्मसम्मान को धक्का भी लगा था  | सहेलियों ने ही संभाला था , उस समय  सेजल व् गोलू को | उसे भी समझातीं थीं ,” वो तेरे लायक नहीं था , कायर था , आवारा बादल …. क्या कोई वजह होती तब तो बताता, तू भी सोचना छोड़, भूल जा उस बेवफा को  |  धीरे -धीरे उसने खुद को संभाला , एक स्कूल में पढ़ाना  शुरू किया | जिन्दगी की गाडी पटरी पर आई ही थी कि ये मेसेज | थोड़ी देर मंथन के बाद अपने को संयत कर  उसने मेसेज टाइप  करना शुरू किया , ” सौरभ , वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है , कल तुम आगे बढ़ गए थे पर आज मैं भी वहीँ खड़ी हुई नहीं  हूँ कि तुम लौटो और मैं मिल जाऊं , अब  मैंने  आत्मसम्मान से जीना सीख लिया है अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | मेसेज सेंड करने के बाद उसके मन में अजीब सी शांति मिली | खिड़की से हल्की -हलकी  रोशिनी कमरे में आने लगी नए साल का नया सवेरा हो चुका था | वंदना बाजपेयी सुरभि में प्रकाशित यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ वो व्हाट्स एप मेसेज “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, whatsapp , whatsapp message

लेखिका एक दिन की

लोगों को लगता है कि लिखना बहुत आसान है | बस अपने मन की बात कागज़ पर उतार देनी है , पर इसके लिए मन के अंदर कितना संघर्ष होता है वो लिखने वाला ही जान सकता है , खासकर लेखिकाएं | शायद इसी कारण आज जितनी लेखिकाएं दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा लेखिकाएं अपने पहले प्रयास के बाद खुद ही एक गहरे अँधेरे में गुम हो गयीं | लघु कथा -लेखिका एक दिन की आज पाँच वर्ष हो गए थे | उस भयानक एक्सीडेंट के बाद निधि के आधे शरीर में लकवा मार गया था | वैसे भी तो वो घर के बाहर नहीं निकलती थी पर अब तो जिंदगी एक कमरे में ही सिमिट कर रह गयी थी | निराशा के दौरे पड़ते तो मृत्यु के सिवा कुछ ना सूझता | अवसाद का इलाज करने वाले डॉक्टर ने ही सलाह दी थी कि जो कुछ आप एक हाथ से कर सकती हैं करिए ताकि मन लगे | बचपन में लिखने का शौक था | कितने सपने थे लेखिका बनने के ….घर गृहस्थी के बाद सब छूट गया था |उसने लिखने की इच्छा जाहिर की | पति ने अगले ही दिन आई पैड लाकर दे दिया | मन में कुछ उमंग जागी , हाथों में हरकत हुई | फेसबुक अकाउंट भी बना दिया गया | मेरी डायरी शीर्षक डाल कर कुछ -कुछ लिख दिया | आँख लगने के बाद सबने पढ़ा | सब ने उसके लेखन की तारीफ भी की | एक सशक्त लेखिका उसके अंदर छुपी हुई दिखी | अगले दिन ऑफिस जाते समय टाई ठीक करते हुए पति ने कहा ,” देखो मेरे बारे में कुछ मत लिखना ….मेरे बारे में मतलब जो कुछ मैंने देखा सुना तुमसे कहा है उस बारे में …. और चाहे जो कुछ लिखो |” स्कूल जाते समय बच्चे भी कह गए ,” मम्मी हमारी बातों की फेसबुक पोस्ट मत बना देना …न ही हमारे स्कूल की कोई बात लिखना … और चाहें जो कुछ लिखो | सासू माँ की कमरे से आवाज़ आई , ” अरे तुम लोगों के बारे में नहीं लिखेगी | मेरे बारे में लिखेगी …सासें तो वैसे ही बुरी होती हैं , देखो कुछ भी लिखना मुझे पढ़ा जरूर देना | वो डर गयी | एक भी अक्षर लिखा नहीं गया | सब के पूछने पर कह दिया अब लिखने का मन नहीं करता | और उस पहली पोस्ट के बाद वो एक दिन किलेखिका हमेशा के लिए शब्दों से दूर हो गयी नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … हकीकत मक्कर इंटरव्यू मकान नंबर -१३ आपको  लघु कथा  “ लेखिका एक दिन की ” कैसी   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, writer, female writer, patient

मक्कर

बिमारी के नाटक को आम देसी भाषा में मक्कर कहा जाता है |  अक्सर औरतों को  थकन महसूस करने पर आराम करने पर मक्कर की उपाधि दी जाती है |  लघु कथा -मक्कर  सुमित के घर आते ही माँ ने बोलना शरू कर दिया ,” आज मुझे फिर से रोटियाँ बनानी पड़ी , तुम्हारी देवी जी तो मक्कर बना कर बैठी हैं कि थकान सी महसूस हो रही है | कब तक चलेगा ये सब ? अरे भाई हम ७५ की उम्र में रोटियाँ थापे और वो ४५ की उम्र में मक्कर बनाये बैठी रहे | एक हमारा जमाना था बुखार में भी पड़ें हो तो भी सास को रसोई में ना घुसने देते थे | लेट -बैठ कर जैसे भी किया बना कर खिलाया | वो जमाना ही और था तब अदब था बुजुर्गों के प्रति |  “देखता हूँ अम्माँ” कह कर सुमित अपनर कमरे में चला गया | मीरा बिस्तर पर लेटी आँसूं बहा रही थी | उसके कमरे और बैठक में दूरी ही कितनी थी | मन भर आया |  सोचा सुमित तो समझेगा | जब से ब्याह कर आई है अपना पूरा शरीर लगा दिया सास -ससुर की सेवा करने में | दोनों ननदों के ब्याह में भी ना काम में ना ली -देने में कोई कमी करी | फिर आखिर क्यों उसकी तकलीफ को कोई समझ नहीं पा रहा है | दिनों -दिन उसकी बढती थकान को क्यों सब मक्कर का नाम दे रहे हैं |  उसकी आशा के विपरीत सुमित भी उसे देखकर  बोला , ” देखो मीरा अब बहुत हो गया ये नाटक , आखिर कौन से जन्म का बदला ले रही हो तुम मेरे माँ -बाप से , महीना हो गया तुम्हें बिमारी का बहना करते -करते | दिखाया तो था डॉक्टर को , खून की कमी बताई है बस टॉनिक और दवाई समय पर लो और काम करो |  “तो क्या तुम्हें लगता है मैं खुद ठीक नहीं होना चाहती ?,”मीरा ने प्रश्न किया | ठीक होना , अरे तुम बीमार ही कब थीं , माँ सही कहतीं है मक्कर , काम करते -करते ऊब गयीं और आराम करने कए बहाना चुन लिया , अभी उस टेस्ट की रिपोर्ट भी आ जायेगी जो डॉक्टर ने बस यूँही मेरा खर्चा करने के लिए किया था , फिर किस तरह से सबको अपना मुँह दिखाओगी  ” कहते हुए सुमित कमरे के बाहर चला गया |  रात भर रोती रही मीरा , सुबह उठने की ताकत भी ना बची | घर की बहु देर तक सोती रहे | घर में कोहराम मचना तय था | अम्माँ ने पूरा घर सर पर उठा लिया | दोपहर तक ननदें भी आ गयी | छोटी ननद  खाना बना कर लायी और बोली , ” खा लो भाभी , अपनी अम्माँ की ये दुर्गति मुझसे तो देखी  ना जायेगी , अब जब तक तुम्हारे मक्कर ठीक नहीं हो जाते तब तक मैं यहीं रहूँगी |  मीरा अपना दर्द पीने  के आलावा कुछ ना कर सकी | दो दिन घर में उसी के मक्कर की चर्चा होती रही |  तीसरे दिन जब सुमित घर लौटे तो थोड़े उदास थे | हाथों में उसकी रिपोर्ट थी | अम्माँ ने डॉक्टर की फ़ाइल देखते ही कहा , ” का हुआ , पता चल गया सब नाटक है |” ननदों ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहा , ” हाँ , मक्कर पर मुहर लगे तो हम भी अपने घर लौटें |” सुमित धीरे से बोले , ” अम्माँ , किडनी बहुत ख़राब है , एडमिट करना पड़ेगा | वो डॉक्टर पकड नहीं पाया |  घर में सन्नाटा छा गया |  अपने कमरे में लेती  हुई मीरा सब सुन रही थी | ना जाने क्यों उसे अपनी बीमारी की रिपोर्ट बिना डायगनोस कर के थमाई गयी मक्कर की रिपोर्ट से कम तकलीफदायक लग रही थी |  वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … हकीकत मतलब इंटरव्यू मेकअप आपको  लघु कथा  “  मक्कर लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, patient, fatigue, dizziness