हकीकत

गाँव की जिंदगी कितनी खुशहाल नज़र आती है , लम्बे चौड़े खेत , बेफिक्र बचपन ,न पढाई की चिंता न किसी प्रतियोगिता की ,  ताज़ा -ताज़ा फल व् सब्जियां….. पर क्या सिर्फ यही हकीकत है |  लघुकथा -हकीकत   बहु का बी .टी .सी . में चयन हो गया था | प्रारंभिक ट्रेनिंग के लिए नरवल जाना था | दीनदयाल जी आज बहुत खुश थे | बरसों बाद गाँव जाने का सपना पूरा हो रहा था | अम्माँ –बाबू के बाद गाँव ऐसा छूटा कि बस यादों में ही सिमिट कर रह गया | खेती-जमीन यूँ तो थी नहीं और जो थी उसके इतने साझीदार थे कि आम की फसल में एक आम चखने को मिल जाए तो भी बड़ी बात लगती थी , फिर भी मन कभी –कभी पुरानी यादों को टटोलने जाना चाहता , तो  पत्नी और बच्चे साफ इनकार कर देते | तर्क होता वहाँ क्या है देखने को ?लिहाजा मन मार कर रह जाते | नरवल उनका अपना गाँव नहीं था , पर गाँव तो था , इस बार सरकारी नौकरी के लालच में बेटा भी साथ जाने को तैयार था | रास्ते भर फूले नहीं समा रहे थे | खेत –खिलिहान देखकर जैसे दामन में भर लेना चाहते हों | गाँवों की निश्छल और खुशनुमा जिन्दगी के बारे में रास्ते भर बेटा –बहु को बताते हुए स्मृतियों का खजाना खाली कर रहे थे | शहर की जिंदगी से ऊबे हुए बेटे –बहु को भी सब सुनना अच्छा लग रहा था | बहु ने चहक कर कहा , “ सही है पापा , जिन्दगी तो गाँव की ही अच्छी है , ताज़ा –ताज़ा तोड़ कर खाने में जो स्वाद है वो शहर की सब्जियों में कहाँ ? बहु की बात पर ख़ुशी से मोहर लगाते हुए दीनदयाल जी ने सड़क के किनारे कद्दू (सीताफल )बेंचते हुए छोटे बच्चे को देखकर गाड़ी रोकी , उनका इरादा अपनी बात सिद्ध करने का था | बच्चे के पास दो कद्दू थे | दीनदयाल जी ने गर्व मिश्रित आवाज़ के साथ कद्दुओं का दाम पूछा ,  “ का भाव दे रहे हो बचुआ ?” बच्चा बोला , “ ई चार का और ऊ पाँच का | दीनदयाल : और दूनो लेबे तो ? बच्चा : तो सात का दीनदयाल : दूनो दियो पाँच का , तो लेबे बच्चा : नाही बाबू , अम्माँ मरिहे दीनदयाल : अम्माँ काहे  को मरिहे , पाँच का दो और छुट्टी करो , हमका दूर जइबे  का है | बच्चा : ना बाबू अम्माँ मरिहे दीनदयाल : अरे अम्माँ खुश हुइए कि बिक गा है , लाओ देओ , कहते हुए दीनदयाल जी ने पाँच का नोट बढ़ा दिया | बच्चे ने सकुचाते हुए कद्दू दीनदयाल जी को सौप दिए | बहु ने खुश होकर कहा , “ पापा , कितना सस्ता है यहाँ पर , आप सही कहते थे | दीनदयाल जी गर्व से भर उठे , आज उन्होंने गाँव की जिन्दगी शहर से अच्छी है को बहु बेटों के आगे सिद्ध कर दिया था | लौटने के रास्ते में भी शहर की सुविधाओं के बावजूद गाँव के  निर्मल जीवन व् सस्ताई की बात होती रही | बेटा –बहु भी हाँ में हाँ मिला रहे थे | सारे काम निपटा कर जब वो सोने चले तो आँखों के आगे उसी बच्चे की तस्वीर घूम गयी | अम्माँ मरिहे शब्द घंटे की तरह दिमाग में गूंजने लगा |  बहु-बेटे पर धाक ज़माने के लिए, सस्ते में  लिए गए कद्दू बहुत महंगे लगने लगे | पूरी रात बेचैनी में कटी | एक बार फिर से अपने बचपन की बदहाली आँखों के आगे तैर गयी | सुबह उठते ही वे गाड़ी स्टार्ट कर नरवल की ओर  उस बच्चे को ढूँढने के लिए निकल पड़े | पत्नी पीछे से  पूछती रही , पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया | कहते भी क्या ? बहु –बच्चों के सामने भले ही उन्होंने गाँव के सस्ते होने को सिद्ध कर  दिया था , पर उस सस्ताई के पीछे छिपे महंगे दर्द की हकीकत को वो जानते थे | वंदना बाजपेयी   यह भी पढ़ें ……. अम्माँ परदे के पीछे अपनी – अपनी आस बदचलन  आपको  लघु कथा  “ हकीकत  “ कैसे लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, farmer, Indian farmer, price

मतलब

सुनो , “ये करवाचौथ के क्या ढकोसले पाल रखे हैं तुमने ?” कहीं व्रत रखने से भी कभी किसी की उम्र बढ़ी है ? रहोगी तुम गंवार ही , आज जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है , और तुम वही पुराने ज़माने की औरतों की तरह ….इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए ना कि परम्परा तोड़ सको |” हर साल तुम्हें समझाता हूँ पर तुम्हारे कानों पर जूं  भी नहीं रेंगती | हर साल करवाचौथ पर गुस्सा करवा -करवा कर तुम मेरी उम्र घटवाती हो , देखना एक दिन मैं  यूँही चीखते -चिल्लाते  चला जाऊँगा भगवान् के घर ….फिर रह जायेंगे तुम्हारे सारे ताम -झाम , नहीं मानेगा करवाचौथ इस घर में | हर बार की तरह दीनानाथ जी के कटु वचनों से मंजुला घायल हो गयी | आँसू पोछते हुए बोली , ” भगवान् के लिए आज के दिन शुभ -शुभ बोलो ,मेरी सारी  पूजा लग जाए,तुम्हारी उम्र  चाँद सितारों जितनी हो | माना की तुम्हें परम्परा में विश्वास नहीं है पर मेरी इसमें आस्था है …. तुम कुछ भी कहो इस घर में करवाचौथ हमेशा ऐसे ही पूरे विधि विधान से मनेगा |” ओह इस मूर्ख औरत को समझाना व्यर्थ है , जब मैं नहीं रहूँगा तो खुद ही अक्ल आ जायेगी | तब नहीं मनेगा इस घर में करवाचौथ | ——————- रात को चाँद अपने शबाब पर था | हर छत पर ब्याह्तायें सज धज कर अपने पति के साथ चलनी से चाँद का दीदार कर रहीं थीं | दीनानाथ जी ने पीछे मुड़ कर अपनी छत पर नज़र डाली | ना वहां चलनी थी , ना दीपक , ना चाँद के इंतज़ार को उत्सुक आँखे | चार साल हो गए मंजुला को तारों के पास गए हुए , तब से इस घर में करवाचौथ नहीं मना | हमेशा करवाचौथ को अपनी उम्र से जोड़कर देखने वाले दीनानाथ जी ने आंसूं पोछते हुए कहा ,”वापस आ जाओ मंजुला अब कभी  नहीं कहूँगा करवाचौथ ना मनाने को | नादान था मैं हर करवाचौथ को तुम्हारा दिल दुखाता रहा …नहीं पता था कि इस घर में करवाचौथ ना मनने का मतलब ये भी हो सकता है | __________________________________________________________________________________ नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें …                                                  वारिस गुटखे की लत  ममत्व की प्यास घूरो चाहें जितना घूरना है                                                    आपको  कहानी  “इंटरव्यू “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-  karvachauth   , story, short story, free read  ,                                     

इंटरव्यू

कौन नहीं सफल होना चाहता , फिर विशिका के जीवन का सपना ही बॉस बनना था | उसने इसके लिए तैयारी बहुत की थी , फिर क्यों इंटरव्यू की तिथि पास आते ही वो इसे न देने के बहाने खोजने लगी | इंटरव्यू सुनील और विशु  एक ही ऑफिस में काम करते हैं | रैंक भी लगभग एक जैसी ही है | जहाँ विशु महत्वाकांक्षी  थी और जल्दी से जल्दी बॉस बनना चाहती थी, इसके लिए वो मेहनत भी बहुत कर रही थी | ऑफिस में सब को पता था |  वहीँ सुनील हमेशा आरामदायक तरीके से काम करने में विश्वास करता था | उसे न प्रोमोशन की जल्दी थी न आगे बढ़ने की , अगर किसी चीज की उतावली रहती थी तो ये कि लेटेस्ट मैच , मूवी न छूट जाए | जहाँ सुनील खुश मिजाज व जल्दी दोस्त बम्नाने वाला वहीं  विशु अंतर्मुखी  पर  ईश्वर  की इच्छा ,साथ काम करते हुए दोनों की दोस्ती हुई फिर दोनों के दिल मिल मिल गए | घरवालों को भी कोई दिक्कत नहीं थी | शादी के लिए हाँ कर दी | इसी बीच विशु का इंटरव्यू आ गया | अगर वो इंटरव्यू क्लीयर कर लेती तो उसे सुनील का बॉस बन जाना था | सबको उसकी सफलता की उम्मीद थी | परन्तु जैसे -जैसे इंटरव्यू पास आ रहा था विशु इंटरव्यू न देने के बहाने खोजती जा रही थी | ऑफिस में सब को आश्चर्य था कि आखिर विशु को क्या हो रहा है | उस दिन इंटरव्यू था , सुबह से विशु दिखाई  नहीं दे रही थी | सुनील ने कई बार फोन किया विशु ने उठाया ही नहीं | सुनील परेशान था … आखिर क्या कारण हो सकता है ? उसने अपने सहकर्मी के साथ विशु के घर जाने की सोची |                                       दरवाजा विशु ने ही खोला , वो तैयार भी नहीं थी …. शायद नहाई तक नहीं थी , बेतरतीब कपडे बता रहे थे कि वो सुबह से बिस्तर  पर ही पड़ी थी | सुनील को देखते ही उसके गले लग गयी पर बताया कुछ नहीं | सुनील खुद चाय बना कर लाया , बहुत कुरेदने पर उसने कहा , ” सुनील मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती , मुझे डर है कि मेरे बॉस बन जाने पर हमारे रिश्ते पर असर पड़ेगा | अपनी पत्नी को ऑफिस में अपने बॉस के रूप में देखना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा | हमारे रिश्ते बिगड़ जायेंगे | मुझे अपने रिश्तों की कीमत पर कोई सपना पूरा नहीं करना है |              अब गले लगने की बारी सुनील की थी | उसने विशु के सर पर  हल्की सी चपत मारते हुए कहा , ” पगली , बॉस बनने का सपना मेरे तुम्हारी जिंदगी में आने से पहले ही था | मैं इस बात को जानता था , तब तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी | अगर तुमें लगता है कि पति बनते ही मैं बदल जाऊँगा तो तुम यकीनन मेरे जैसे  आदमी से शादी मत करो  . जो एक बात में बदल सकता है वो हर बात में बदल सकता है …. इसलिए दोनों ही हालत में तुम अपना कैरियर चुनो ,रही मेरी बात तो तुम्हारा सपना पूरा होना मेरी सबसे बड़ी ख़ुशी है , मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम मेरी ऑफिस में बॉस हो |             विशु खुश हो कर इंटरव्यू के लिए तैयार होने चली गयी | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …                                                                          वारिस गुटखे की लत  ममत्व की प्यास घूरो चाहें जितना घूरना है                                                    आपको  कहानी  “इंटरव्यू “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-  interview   , story, short story, free read                                      

वारिस

अपने बेटे के विवाह के समय से माता -पिता के मन में एक सपना पलने लगता है कि इस घर को एक वारिस मिले जो खानदान के नाम और परंपरा को जीवित रखे | स्वाभाविक है , पर कभी कभी ऐसा भी होता है कि अपनी इस इच्छा की भट्टी में मासूम बहु की सिसकियों की आहुति उन्हें जरा भी नहीं अखरती |  वारिस शादी की पहली रात यानि सुहागरात वाले दिन ही मेरे पति ने मेरे ऊपर पानी से भरी एक बाल्टी उढ़ेल दी थी ।वो सर्दी की रात और ठन्डा पानी..मुझे अन्दर तक झकझोर गया था । कमरे में आते हुए जब शिव को मैंने देखा था तो चाल ढाल से समझ चुकी थी । कि जिसके साथ मुझे बाँधा गया है वो शायद मन्दबुद्धि है । मेरा शायद आज उसकी इस हरक़त से यक़ीन में बदल चुका था । मैं बिस्तर से उठकर कमरे के बगल वाली कोठरी में कपड़े बदलने पहुँची तो शिव पीछे-पीछे आ पहुँच था । मैं गठरी बन जाना चाहती थी शर्म से । लेकिन वो मुझे नचाना चाहता था । “ ऐ ..नाचो न .., नाचो ..न ..पार्वती ! इसी पेटीकोट में नाचो “ शिव ने जैसे ही कहा मैं हैरत से बोल उठी थी..“ क्यों ? तुम अपनी पत्नि को क्यों नचाना चाहते हो “ “ वो ..न … तब्बू तो ऐसे ही नाचती है न ..जीनत भी नाचती है ..मुंशी जी मुझे ले जाते हैं अपने साथ “ शिव बच्चे की तरह खिलखिलाकर बोल उठा था..। और मुझे नौकरों के बूते पर पले बच्चे की परवरिश साफ नज़र आ रही थी …जिसके घर पर शादी में रंडी नचाना रहीसी था , तो उसके बच्चे का हश्र तो ये होना ही था । मैं समझ चुकी थी आज से मेरे भाग्य फूट गये हैं । पिता जी को कितना बड़ा धोखा दिया था उनके ही रिश्तेदार ने ये सम्बन्ध करवा कर । जमींदार सेठ ईश्वरचंद के घर में उनके इकलौते बेटे को ब्याही पार्वती सिसक उठी थी …“ हे ईश्वर ये तूने क्या किया ..मेरी किस्मत तूने किसके साथ बाँध दी …” अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा था …।सुबह सेठानी के पैर छूने झुकी तो “ दुधो नहाओ.. पूतों फलो “ ये कहते हुये मुझे गले का हार देते हुये सेठानी बड़े मीठे स्वर में बोली …..धैर्य से काम लेना बहुरिया । पड़ोस में मुंह दिखाई का बुलावा देकर लौटी चंपा ने मुझे कनखियों से जैसे ही देखा मैं समझ गयी थी कि ये भी जानना चाहती है कुछ ..“ काहे भाभी बिटवा कछु कर सके या कोरी ही लौट जईहो “ चंपा का सवाल मुझे बिच्छू के डंक की तरह लगा था । मैं चुप रह गयी थी । दूसरी बिदा में जब ससुराल आई थी तो सेठ जी ने पहले दिन ही कहला दिया था सेठानी से ..,,“ हमारे घर की बहुएं मुंशी , कारिन्दों के आगे मुंह खोल कर नहीं रहती हैं कह देना बहू से । “ छह महीने बीत गये थे , शिव को कोई मतलब नहीं था मुझसे ..होता भी कैसे ? वो मर्द होता तो ही होता न …..अचानक एक दिन ….” बहू से कह दो सेठानी ..! हमारे दोस्त का लड़का आयेगा । उसकी तीमारदारी में कोई कमी न रखे “ सेठ जी ने कहा और अपने कमरे में चले गये.. मैं घूँघट की ओट में सब कुछ समझ चुकी थी । “ये दोगला समाज अपनी साख रखने के लिए अपनी बहू और बेटियों को दाव पर लगाने से भी नहीं चूकता । “ और , मैं उस रात एक अजनबी और उस व्यक्ति को सौंप दी गयी थी जो इस घर को वारिस दे सके….. ( कुसुम पालीवाल, नोयडा) यह भी पढ़ें … मेकअप लेखिका जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “वारिस“कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,new born, varis

पेशंन का हक

सरकार की पेंशन योजना बुजुर्गों के स्वाभिमान की रक्षा करती है | लेकिन क्या केवल योजना बना देने से बुजुर्गों की समस्याएं दूर हो सकती हैं | क्या ये जरूरी नहीं कि सरकार ये भी सुनिश्चित करे कि अपनी पेंशन निकलने में में उन्हें कोई दिक्कत न हो | पेशंन का हक उस दिन पेशन दफ्तर मे एक बूढी मां को गोद मे उठाए पुत्र को देख मैं चौकं गयी। घोटालो को रोकने हेतू सरकारी आदेशो की पालना के कारण सभी वृद्ध वृद्धा सुबह से ही जमा थे अपने जीवित होने का प्रमाण  देने।एक वृद्धा तो ठंड सहन ना कर पाने के कारण हमेशा के लिये ठंडी हो गयी थी। अब फिर सरकार ने बैकं से पेशन देने का राग अलापा।अब पेशन बैंक से आयेगी इस बात से असहाय वृद्ध ज्यादा दुखी थे जिनके हाथ मे नगद पैसे आते थे। उस दिन बैंक मे एक बूढी स्त्री ने आते ही पूछा.,.मेरी पेशन आ गई?हां””पर 500 रूपये खाते मे छोडने होगे।खाता जो खुला है। उस पर वो दुखी होकर बोली “”””पर अब मुझे 1000 रूपये जरूर दे दो।क्योकि सावन मे मेरी विवाहिता पुत्री मायके आने वाली है।मैं200 रूपये कटवा दूगी हर महीने।तभी मेरी आंखो के सामने शहर के अमीर आडतिये की शक्ल घूम गयी,जो इतना धनी होते हुऐ भी पैशन हेतू चक्कर काट रहा था। असहाय लोगो की मदद रूप मे इस सरकारी पेंशन का वास्तविक हकदार कोन है? काश लोग पेशंन की परिभाषा समझ पाते।। लघुकथा रीतू गुलाटी ऋतु परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “पेशंन का हक “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,pension

डॉन्ट डिस्टर्व मी

         घर और बाहर दोहरी जिन्दगी जीने वालों के चेहरे , चल , चरित्र और सोच भी दोहरी हो जाती है | उत्तर जानने के लिए पढ़िए  लघु कहानी  डॉन्ट डिस्टर्व मी क्या रोज की खीच -खींच मचा रखी है “तुमने यह नहीं किया तुमने वो किया ” यह कहते हुए सोनाली ने शुभम को अनदेखा कर अपना पर्स उठाया और चल दी । आटो स्टैण्ड पर आ आटो  में बैठ ऑफिस की ओर चल दी , उतर कर कुछ दूरी ऑफिस के लिए पैरों भी जाना होता था । आफीस में पहुँचते ही उसे साथी ने टोक दिया “कि आप लेट हो गयी ,”मुँह बना अपने केविन की ओर जा ही रही थी कि पिओन आ बोला “साहब , बुलाते है , पर्स रख साहब के केविन में पहुँची ,जी सर  । साहब जो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था , बोला “व्हाट प्रोब्लम , वाय आर यू सो लेट ? सर आइ नोट लेट , आइ हेव सम प्रोव्लम ,  आइ ट्राई नाट कम टू लेट । अपनी बात को कहते हुए आगे वॉस के आदेश का इन्तजार करने लगी ।             दो मिनट के मौन के बाद वॉस ने आदेश देते हुए कहा कि ” सी मी फाइल्स आॅफ इमेल्स , सेन्ट  टुमारो” मिसेज सोनाली । “यस सर , इन फ्यू मिनट्स ” कहते हुए अपने केविन की ओर चल दी । और फाइल्स को निकालने लगी  । लगभग पन्द्रह मिनट्स बाद फाइल्स हाथ में लेकर वाॅस के आकर बोली ,  देट्स फाइल्स ।          फाइल्स देखते  हुए वाँस,  जो एक अधेड़ उम्र का था , गुड सोनाली,  कहते हुए प्रोमोशन का आश्वासन दिया । प्रफुल्लित होते हुए घर चली आई दरवाजे पर पैर रखते ही  सुबह  शुभम के साथ घटित वाक्या पुनः याद आ गया । डा मधु त्रिवेदी संक्षिप्त परिचय  ————————— .  पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी  पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ  बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर  साइंस आगरा  प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  यह भी पढ़ें … परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ डॉन्ट डिस्टर्व मी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, ,personality, 

लेखिका

किसी भी काम को तुरंत सफलता नहीं मिलती ,  खासकर अगर वो कोई रचनात्मक काम है | लेखन ऐसा ही काम है पर उसमें निरंतर प्रयास जारी रखने से देर -सवेर सफलता मिलती ही है | लघुकथा -लेखिका  “निशू, तुम सोशल साइट्स पर हर वक्त क्या करती रहती हो?” “तुम दफ्तर चले जाते हो और बच्‍चे स्‍कूल। उसके बाद खाली समय में बोर होती रहती थी। मैंने सोचा क्यों ना कुछ लिखूं, अपने रोजमर्रा के अनुभवों के बारे में, अपने मन के भावों के बारे में।  बस मेरा समय कट जाता है इसीबहाने से।” “समय काटने के और भी तो तरीके हैं बच्चों को ट्यूशन देने लगजाओ और नहीं तो कम से कम कपड़े ही सिलने लग जाओ। चार पैसे तुम्हारे ही काम आएंगे।” अभिषेक ने ताना मारते हुए कहा। बात तो कुछ सही थी। बच्‍चों को टयूशन देने का तो समय नहीं था। आखिर उसे अपने बच्‍चों को भी पढ़ाना ही होता था। घर में सिलाई मशीन भी थी। उसने कपड़े सिलना शुरू कर दिया। लेकिन उसने अपने अनुभवों और भावनाओं को सोशल साइट्स पर लिखना नहीं छोड़ा। उन्‍हें वह रचनाओं का रूप देती रही। एक दिन एकपाक्षिक पत्रिका की तरफ से निमंत्रण मिला। “निशा जी, हम आपको अपनी पत्रिका के लिए अनुबंधित करना चाहते हैं। आपकीरचनाएं सचमुच महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी हैं। हम चाहते हैं कि आप महिलाओं के लिए एक पाक्षिक कालम लिखें। बाद में हम इन रचनाओं पुस्तक रूप में प्रकाशित करना चाहेंगे। अनुबंध कीशर्तें साथ हैं। कालम लिखने के लिए आपको मानदेय मिलेगा और पुस्‍तकों की बिक्री पर नियमानुसार आपको रायल्‍टी दी जाएगी।“ अब अभिषेक खुद इस बात को लोगों को बताते नहीं थकता था। निशा अब अपने शहर में सफल लेखिका का पर्याय बन चुकी थी। –विनोद खनगवाल जिला सोनीपत (हरियाणा) यह भी पढ़ें … गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन  आपको    “लेखिका  “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, tempo, short story in hindi, writer

मेकअप

हमारा व्यक्तित्व बाह्य और आंतरिक रूप दोनों से मिलकर बना होता है | परंतु लोगों की दृष्टि पहले बाह्य रूप पर ही पड़ती है | आंतरिक गुण दिखने के लिए भी कई बार बाह्य मेक अप की जरूरत होती है | लघु कथा -मेकअप  विद्यापति जी की  शुरू से धर्म आध्यात्म में गहरी रूचि थी |  अक्सर मंदिर चले जाते और पंडितों के बीच बैठ कर धर्मिक चर्चा शुरू कर देते | धर्म धीरे -धीरे अध्यात्म की ओर बढ़ गया | मानुष मरने के बाद जाता कहाँ हैं , कर्म का सिद्धांत क्या है ? क्या ईश्वर में सबको संहित होना है आदि प्रश्न सर उठाने लगे | अब ये प्रश्न तो मंदिर  की चौखट के अन्दर सुलझने वाले नहीं थे | सो देशी -विदेशी सैंकड़ों किताबें पढ़ डाली | घूम -घूम कर प्रवचनों का आनंद लेते | कई लोगों की शागिर्दगी करी |ज्ञान बढ़ने लगा |                            और जैसा की होता आया है जब कुछ बढ़ जाता है तो बांटने का मन होता है | विद्यापति जी का भी मन हुआ कि चलो अब ये ज्ञान बांटा जाए | लोगों को समझाया जाये की जीवन क्या है | आखिर उन्होंने जो इतनी मेहनत से हासिल किया है उसे आस -पास के लोगों को यूँ हीं दे दें , जिससे उनका भी उद्धार हो | वैसे भी वो चेला ही क्या जिसकी गुरु बनने की इच्छा ही न हो |  उन्होंने ये शुभ काम मुहल्ले के पार्क से शुरू किया | जब भी वो कुछ बोलते चार लोग उनकी बात काट देते | कोई पूरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था | यहाँ तक की अम्माँ भी घर में उनकी बात सुनती नहीं थीं | विद्यापति जी बड़े परेशान  हो गए | बरसों के ज्ञान को घर में अम्माँ चुनौती देती तो बाहर  पड़ोस के घनश्याम जी | बस तर्क में उलझ कर रह जाते | अहंकार नाजुक शीशे की तरह टूट जाता और वो टुकड़े मन में चुभते रहते | मन में ‘मैं ‘ जागृत हुआ | मैंने इतना पढ़ा फिर भी मुझे कोई नहीं सुनता |किसी को कद्र ही नहीं है | वही बात टी वी पर कोई कहे तो घंटों समाधी लगाए सुनते रहेंगें | वो तो मन से भी आध्यात्मिक हैं फिर कोईक्यों नहीं सुनता |  पत्नी समझदार थी | पति की परेशानी भाँप गयी , बोली ,  ” सारा दोष आपके मेकअप का है , ये जो आप ब्रांडेड कपडे पहन कर टाई लगा कर और पोलिश किये जूते चटकाकर ज्ञान बांटते हो तो कौन सुनेगा आपको | लोगों को लगता है हमारे जैसे ही तो हैं फिर क्या बात है ख़ास जो हम इन्हें सुने | थोडा मेकअप करना पड़ेगा … हुलिया बदलना पड़ेगा | बात विद्यापति जी को जाँच गयी | अगले दिन सफ़ेद धोती -कुरता ले आये | एक झक सफ़ेद दुशाला और चार -पांच रुद्राक्ष की माला भी खरीद  ली |दाढ़ी -बाल बढाने  शुरू हो गये  | कुछ दिन बाद पूरा मेकअप करके माथे पर बड़ा तिलक लगा कर निकले तो पहले तो माँ ही सहम गयीं , ” अरे ई तो सच्ची में साधू सन्यासी हो गया | उस दिन माँ ने बड़ी श्रद्धा से उनके मुंह से रामायण सुनी | विद्यापति जी का आत्मविश्वास बढ़ गया |  घर के बाहर निकलते ही चर्चा आम हो गयी | विद्यापति जी बड़े ज्ञानी हो गए हैं | साधारण वस्त्र त्याग दिए | हुलिया ही बदल लिया , अब ज्ञान बांटते हैं | आज पार्क में भी सबने उन्हें ध्यान  सुना | धीरे -धीरे पार्क में उन्हें सुनने वालों की भीड़ बढ़ने लगी | आज विद्यापति जी के हाथों में भी रुद्राक्ष  की मालाएं  लिपटी होती हैं , पैरों में खडाऊं  आ गए हैं …. अब उन्हें सुनने दूसरे शहरों  से भी लोग आते हैं | नीलम गुप्ता * मित्रों हम जो भी काम करें उसके अनुरूप परिधान होने चाहिए | उसके बिना बिना हमारी बात का उतना प्रभाव नहीं पड़ता | फिल्मों में भी किसी चरित्र को निभाने से पहले उसके गेट अप में आना पड़ता है |असली जिंदगी में भी यही होता है | आप जो भी करे आप के वेशभूषा उसी के अनुरूप हो | यह भी पढ़ें …….. परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ मेकअप “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, makeup,personality, spiritual guru

टैम्पोवाली

             ये सही है कि जमाना बदल रहा है पर स्त्रियों के प्रति सोच बदलने में समय लगेगा | ये बात जहाँ निराशा उत्पन्न करती है वहीँ कई लोग ऐसे भी हैं जो आशा की किरण बन कर उभरते हैं | एक ऐसे ही किरण चमकी टैम्पो वाली की जिंदगी में  लघुकथा -टैम्पोवाली सुबह का अलार्म जो बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता । जल्द ही काम सिमटा कर  बूढ़ी माँ की अाज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे परअपना टैम्पो को खड़ा कर लेंती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखे उसके चेहरे पर आ टिक जाती थी एक सिहरन फैल जाती उसके बाॅडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।                  सिर से पैर तक अपने को ढके वो अपने काम में लीन रहती हर रेड लाइट पर रूक उसको ट्रेफिक पुलिस से भी दो चार होना पड़ता , यह पुलिस भी गरीब को सताती है और अमीर के सामने बोलती बंद हो जाती है ।      शादीशुदा होने के बावजूद उसको पति का हाथ बँटाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।         दिन प्रतिदिन यही चलता शाम को घर लौटने पर बेटी बेटे की देख रेख करना और सासु के साथ हाथ बँटाना रात थक बच्चों के साथ सो जाना । वाकई रोटी का संकट भी विचित्र होता है सब कुछ करा देता है । सुबह से शाम तक सिटी के चौराहों की धूल फाँकना सवारी को बैठाना और उतारना और कहीँ कहीँ पुरुष की सूरत में  बैठने वाले कुत्तों से दो चार होना यहीँ जीवन चर्या थी ।  और …पासा पलट गया            एक बार उसका टैम्पो कई दिन तक नहीं निकला तो उसकी रोजमर्रा की सवारी थी उसमें से एक जो उसके टैम्पों से आफिस जाया करता था बरबस ही उसके विषय में सोचने लगा कि “ऐसा क्या हुआ जो वो दिखाई नहीं देती ” पर पता न होने के कारण ढूढ़ भी नही सका ।                   टैम्पोवाली का  बीमारी से शरीर बहुत दुर्बल हो गया था एक रोज जब वह किसी दोस्त से मिलने जा रहा था तो वही टैम्पो खड़ा देखा जिस पर अक्सर बैठ आफिस जाता था पूछताछ करने पर पता लगा कि वो पास ही रहती है ।                 पता कर घर पहुँचा तो माँ बाहर आई “बोली , बाबू किते से आये हो और किस्से मिलना है ” संकुचाते हुए उसने टैम्पो वाली के विषय में पूछा तो पता लगा , बीमार है और पैसे न होने के कारण इलाज नहीं हो सकता  , बताते हुए माँ सिसकने लगती है ” वो व्यक्ति कुछ पैसे निकाल देता है इलाज के लिए ।           बच इसी बीच उसका पति अपना टैम्पो ले आ जाता है वस्तुस्थिति को समझते हुए पति हाथ जोड़ पैर में गिर पड़ता है और सोचने लगता है कि दुनियाँ में नेक लोगों की कमी नहीं । डॉ . मधु त्रिवेदी  यह भी पढ़ें … गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन  आपको    “टैम्पोवाली “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, tempo, short story in hindi

और …पासा पलट गया

एक कहावत है , ” बड़ा कौर खा ले पर बड़ी बात बोले ” | कहावत बनाने वाले बना गए पर लोग जब -तब जो मन में आया बोलते ही रहते हैं …. इस बात से बेखबर की जब पासे पलटते हैं तो उन्हीं की बात उन के विपरीत आ कर खड़ी हो जाती है | और …पासा पलट गया  श्रीमती देसाई मुहल्ले में  गुप्ता जी की बड़ी बेटी श्यामा के बारे में सब से  अक्सर कहा करतीं , ” अरे देखना उसकी शादी नहीं होगी | रंग देखा है तवे सा काला है | कोई अच्छे घर का लड़का तो मिलेगा ही नहीं |हाँ पैसे के जोर पर कहीं कर दें तो कर दें, पर मोटी  रकम देनी पड़ेगी “|मैं तो करोंड़ों रुपये ले कर भी अपने मोहित के लिए ऐसे बहु न लाऊं कहते हुए वो अपने खूबसूरत बेटे मोहित को गर्व से देखा करतीं , जो वहीँ माँ के पास खेल रहा होता | मोहित माँ को देखता फिर खेलने में जुट जाता | मुहल्ले वाले हाँ में हाँ मिलाते , हाँ रंग तो बहुत दबा हुआ है | पर क्या पता पैसे जोड़ रही हों | तभी तो देखो किसी से मिलती -जुलती नहीं | अपने में ही सीमित रहती हैं | अब आने जाने में खर्चा तो होता ही है | मुहल्ले की इन बातों से बेखबर श्रीमती गुप्ता अपनी बेटी श्यामा को अच्छी शिक्षा व् संस्कार देने में लगी हुई थीं |क्योंकि वो कहीं जाती नहीं थीं , इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि श्रीमती देसाईं उनके बारे में क्या कहती हैं | कुछ साल बाद उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया | अब श्रीमती देसाई का शिकार मुहल्ले की कोई दूसरी महिला हो गयी थी | समय पंख लगा कर उड़ गया |  युवा मोहित ने माँ के सामने  श्यामा के साथ शादी की इच्छा जाहिर की | श्यामा  , अब IIT से  इंजिनीयरिंग करने के बाद उसी MNC में काम करती थी जिसमें मोहित था | कब श्यामा के गुणों पर मोहित फ़िदा हो गया किसी को पता नहीं चला | मोहित ने सबसे पहले बताया भी तो माँ को , वो भी इस ताकीद के साथ कि अगर ये शादी नहीं हुई तो कभी शादी नहीं करेगा | माँ की मिन्नतों और आंसुओं का मोहित पर कोई असर नहीं हुआ | मजबूरन श्रीमती देसाई को  हाँ बोलनी पड़ी | शादी के रिसेप्शन में चर्चा आम थी …. ” लगता है श्रीमती देसाई को करोंड़ों रूपये मिल गए हैं तभी तो वो श्यामा से मोहित की शादी के लिए राजी हुई | “ नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … परिवार चॉकलेट केक अपनी अपनी आस बदचलन  आपको    “ और …पासा पलट गया “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, dice, life