बेबसी

बुढ़ापा हमेशा से बेबस होता है , उसकी ये बेबसी उसकी संतान के लिए अपनी बात मनवाने का जरिया बन जाती है | लघुकथा –बेबसी  पिताजी!! जब से बंटवारा हुआ है, तब से तो खेती करना मुश्किल हो गया है। अब जमीन इतनी बची नहीं कि खेती के सारे उपकरण खरीद कर खेती कर सकें। इन्हें खरीद कर तो हम बैंक ब्याज भरते भरते ही मर मिटेंगे। और पैसे देकर खेती कराने पर भी हाथ पल्लेे को कुछ बचता नहीं। ऊपर से ये बरसात, कभी बिन बुलायी मेहमान और कभी गूलर का फूल हो रही है “। ” ह्मम् ! बात तो तेरी ठीक है बेटा! ” पिताजी ने खाट पर पडे़ पडे़ ही बीडी़ में दम मारते हुए बेटे की बातों का हुंकारा भर दिया। पिताजी! सुना है गांव के पास से सड़क निकलने वाली है, कुछ दिन से गांव में बिल्डरों की आवाजाही बढ़ रही है। बडी़ ऊंची कीमत पर जमीन खरीद रहे हैं।गांव में कई लोगों ने तो बेच भी दी। मैं सोच रहा हूं क्यूं न हम भी….” “ना बेटा! ऐसा तो सोचना भी मत! जानता नहीं धरती हमारी मां होवे है। इसे कभी ना बेचेंगे” ” पर पिताजी हम उस पैसे से दूसरी जगह पर सस्ती और ज्यादा जमीन खरीद लेंगें “” ना बेटा ना, तू मुझे ना समझा!! जब तलक मैं जिन्दा हूं, एक इन्च धरती भी इधर से उधर न करने दूंगा। दोनों में बहस से माहौल गर्माता जा रहा था। न पिता झुकने के लिये तैयार थे, न पुत्र। “पिताजी! मैं तो यही चाहता था, कि तुम दस पांच सालऔर बैठे रहते और हमारा मार्गदर्शन करते रहते ” रमेश ने अपने क्रोध पर अंकुश लगातेे हुए कहा। ” तू कहना क्या चाहवै बेटा ” पिता ने शंका भरी नजरों से बेटे की तरफ देखा। ” कुछ नहीं पिताजी! बस मैं तो ये बता रहा था वो जो फिछले दिनों सतीश के पिताजी गुजरे थे ना, जिन्हें सब हार्ट अटैक बता रहे थे। वो अटैक ना था।वो तो सतीश ने ही….., और वो राजेश के चाचा का भी दो महिने से कुछ पता न चल रहा है, लोग तो कह रहे है कि राजेश ने ही उन्हें उरे परे कर दिया है। पिताजी रमेश के इशारे को समझ चुके थे। ” हां बेटा बात तो तेरी बिल्कुल सही है खेती में कुछ न बच रहा अब। तू कल ही बिल्डरों से बात कर ले और तू जहां कहेगा वहां दस्तखत कर दूंगा। सुनीता त्यागी मेरठ यह भी पढ़ें …. उल्टा दहेज़ दो जून की रोटी आप पढेंगें न पापा दूसरा विवाह आपको    “  बेबसी “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, 

चुप

यूँ तो चुप रह जाना आम बात है | ये चुप्पी हमेशा इसलिए नहीं होती कि कहने को कुछ नहीं है बल्कि इसलिए भी होती है कि कहने को इतना कुछ है है जिसे शब्दों में न बाँधा जा सके | लघुकथा -चुप  अपने शहर से दूर होने के कारण विवाहिता पुत्री जल्दी ..जल्दी अपने माता पिता से मिल पाने मे असमर्थ थी।माता पिता दोनो ही बीमार रहते।अत: उसने अपने मन की बात अपनी मम्मी से सांझा की। बेटी:मम्मी आप मेरे शहर आ जाओ!मै बहुत मिस करती हूं आप दोनो को। मम्मी: सही कहा ,बेटी बेटी: आप दोनो की फिकर लगी रहती है!जल्दी से आ भी नही पाती मिलने!इतना लम्बा सफर है कैसे आऊ? ये तो सही कहा..बेटी,,मां ने मुस्कुराकर हां मे गर्दन हिलाई। बेटी: मम्मी आप लोग मेरे पास शिफ्ट हो जाओ!कई बार मुझे बुरे बुरे ख्याल आ जाते है?मै परेशान हो जाती हूं। मम्मी:बेटी,,इतना आसान नही है शिफ्ट होना!इस बुढापे मे इतना सामान लेकर नये सिरे से जमाना। बेटी: क्या दिक्कत है?इस घर को बेचो!और वहां जाकर ले लो। मम्मी:बेटी,ये छोटा शहर है,,यहां सस्ता बिकेगा वहां मंहगा खरीदना पढेगा,,,वो शहर बडा है,बडे शहर की बडी बाते!सब कुछ मंहगा होगा!यहां थोडे मे गुजर हो जाती है,वहां जरुरते बढते देर ना लगेगी!इस बुढापे मे जितनी जरुरतो पर विराम लगे उतना अच्छा है!थोडा सफर बाकी रह गया हैजिन्दगी का,,,,.,,यही कट जायेगा!तू इतना ना सोच बेटी। बेटी: मम्मी एक बात कहू!बुरा तो नही मानोगे? मम्मी:बोल,,क्या है तेरे मन मे? बेटी:मम्मी अगर आप अपना मकान नही बेचना चाहते तो ये मकान किराये पे चढा दो!मै आपके लिये एक फ्लैट ले देती हूं!मेरी आंखो के सामने रहोगे तो मुझे सुकून रहेगा!मौका मिलते ही वीक एंड पर मै आपसे मिलने आ जाया कंरुगी!मन तो बहुत करता है पर आफिस जाने की मजबूरी व छुट्टी ना मिल पाने के कारण छह छह माह मिलने नही आ पाती!नजदीक होगे तो जल्दी आ जाया कंरुगी। मम्मी:नही,नही बेटी हमारी चिन्ता छोडो,,तुम अपनी गृहस्थी पर फोकस करो!हमारा यहां काम चल रहा है,तुम खुश रहो,सुखी रहो,!तुमने हमारे बारे मे इतना सोचा,यही कुछ कम है! बेटी:मम्मी मै आपका बेटा हूं,!आज कोई फर्क नही है,बेटी या बेटे मे! मै दोनो परिवारो की जिम्मेवारी उठा सकती हूं,आपने मुझे इतनी सशंक्त बनाया है!आप बेफिकर रहे,मेरे पास आकर शिफ्ट हो जाये! बेटी की बाते सुनकर मन प्रसन्नता से खिल उठा,पर ,,,,,,,,बेटी के पास,,,,,,,….कुछ सोच चुप रहना ही ठीक लगा। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … फैसला  मैं तुम्हें हारने नहीं दूंगा, माँ तीन तल भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया दूसरा विवाह आपको    “  चुप “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, silence

मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ

क्या किसी इम्तिहान में  हार , जिन्दगी की हार है , क्या फिर से कोशिश नहीं की जा सकती ,जबकि हमें पता है कि हर सफल व्यक्ति न जाने कितनी बार सफल हुआ है | एग्जाम के रिजल्ट से निराश हुए बच्चों के लिए … प्रेरक कथा -मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ बेटा फोन उठाओ ना , तीसरी बार जब पूरी  रिंग के बाद भी बेटे वैभव  ने फोन नहीं उठाया तो  मधु की आँखों से गंगा -जमुना बहने लगी , दिल तेजी से धड़कने लगा …. कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी | आज ही IIT का रिजल्ट आया है  और वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | रिजल्ट  वैभव ने घर पर ही देखा था पर उसे बताया नहीं , दोस्तों से मिल कर आता हूँ माँ कह कर तीर की तरह निकल गया |  उसने सोचा था अभी रिजल्ट नहीं निकला होगा … थोड़ी देर में आकर देखेगा | वो तो जब बड़ी बेटी घर आई और वैभव के रिजल्ट के बारे में पूंछने लगी तो  उसका ध्यान गया | बड़ी बेटी ने ही लैपटॉप खोल कर रिजल्ट देखा …. वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | उसी ने बताया रिजल्ट तो दो घंटे पहले निकल गया था | ओह … उसे माजरा समझते देर ना लगी …. वैभव ने रिजल्ट देख लिया , इसीलिये दुखी हो कर वो घर से बाहर चला गया | मधु का दिल चीख पड़ा … कितनी मेहनत की थी उसने , पिछली बार तो जब IIT में रैंक पीछे की आई थी तो उसने ही ड्राप कर रैंक सुधारने का फैसला लिया था | उसने बेटे की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी समझ कर हाँ कर दी थी , पति विपुल की मृत्यु के बाद और था ही कौन जिससे वो राय मशविरा करती |विपुल जब उसके ऊपर तीनों बच्चों को छोड़ दूसरी दुनिया चले गए थे  , तब आगे के कमरे में केक बना कर अपना व् बच्चों का गुज़ारा चलाते हुए उसने कभी बच्चों को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी | बस यही प्रयास था बच्चे पढ़ लिख कर काबिल बन जाएँ | वैभव सबसे बड़ा था , उसके बाद दो बेटियाँ … वो अकेली कमाने वाली | उसने वैभव पर कभी दवाब भी नहीं डाला था पर  वैभव खुद ही  चाहता था कि वो  बहुत आगे बढे , जीते और अपनी माँ का नाम ऊँचा करे | इसी लिए तो दिन -रात पढाई में लगा रहता … न खाने की सुध न सोने की | जब भी वो  कुछ कहती तो उसके पास एक ही उत्तर होता ,  ” मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ ”  तो क्या वैभव इस हार को बर्दाश्त न कर के …. नहीं नहीं , ऐसा नहीं हो सकता सोचकर उसने फिर से फोन मिलाना शुरू किया | उसकी आँखों के सामने वो सारी  खबरे घूमने लगीं जो उन बच्चों की थीं जिन्होंने परीक्षाफल से निराश होकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी | उनमें से कई अच्छे लेखक बन सकते थे , कई इंटीरियर डेकोरेटर कई अच्छे शेफ …. पर …वो सब एक हार से पूरी तरह हार गए |  उसकी आँखों के आगे उन  रोती -बिलखती माओं के चेहरे घूमने लगे | आज क्या दूसरों की खबर उसकी हकीकत बन जायेगी … नहीं … उसने और तेज़ी से फोन मिलाना शुरू किया | तभी दरवाजे की घंटी बजी | वो बड़ी आशा से दरवाजा खोलने भागी | छोटी बेटी थी | माँ को बदहवास देखकर वो सहम गयी | बड़ी ने छोटी को संभाला | मधु ने निश्चय किया कि वो पुलिस को खबर  कर दे | बहुत हिम्मत करके उसने दरवाजा खोला …. सामने वैभव खड़ा था | उसने रोते हुए वैभव को गले लगा लिया |  दोनों बहने भी वैभव के गले लग गयी |  सब को देख कर हड्बड़ाये हुए वैभव ने पुछा ,  ” क्या हुआ है माँ … सब ठीक तो है , आप लोग इतने परेशान  क्यों हैं |  मधु ने रोते हुए सब बता दिया | ओह !कह कर वैभव बोला , ” माफ़ करना माँ मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया | मैंने सोचा मैंने तो तुम्हें रिजल्ट बताया नहीं है , ये सच है कि  जब मैंने देखा कि मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ है तो मुझे धक्का लगा  फिर मैंने देखा  मेरा दोस्त निशान जिसने मेरे साथ  ही ड्राप किया था उसका भी सिलेक्शन नहीं हुआ है | मुझे याद आया उसने दो दिन पहले ही कहा था कि  अगर मेरा सेलेक्शन  नहीं हुआ तो मैं गंगा बैराज से कूद कर जान दे दूँगा | उसी घबराहट में मैं उससे बात करने के लिए घर से निकल गया | वो अपने घर से जा चुका था , बाहर बारिश हो रही  थी | फोन भीग न जाए इसलिए मैंने  फोन उसके घर साइलेंट पर करके रख दिया और   निशान को खोजने निकल पड़ा | मैं  उसके कहे के अनुसार गंगा बैराज पर पहुंचा …. निशान वही था … वो कुछ लिख रहा था | मैंने जल्दी से जा कर उसे गले लगाया , हम दोनों देर तक रोते रहे |  जब चुप हुए तो मैंने उसे समझाया , ” मूर्ख क्या करने चला था , कभी सोचा  अपनी माँ के बारे में , तुझसे ये हार सहन नहीं हो रही और वो तेरा दुःख भी झेलेंगी और  सारी  जिन्दगी ये हार झेलेंगी की वो एक अच्छी माँ नहीं हैं | लोग तो यही कहेंगे ना कि माता -पिता बहुत दवाब डालते थे … जान ले ली अपने ही बच्चे की | तुझे केवल अपनी हार दिखी उनकी हार नहीं दिखी | निशान फिर रोने लगा , ” हां , सच कहा , मैं स्वार्थी हो गया था … उस समय मुझे अपने आलावा कुछ नहीं दिख रहा था | जीवन है तो फिर जीत सकते हैं … लेकिन मेरे माता -पिता जो हारते वो कभी ना जीत पाते | मधु अपने बेटे की मुँह से ऐसे बात सुन कर रोने लगी |  वैभव उसके पास आ कर बोला , ” माँ , तुम्हारे  लिए भी तो आसान  था जब पिताजी छोड़ कर चले … Read more

उल्टा दहेज़

हमारे समाज में विवाह में वर पक्ष द्वारा दहेज़ लेना एक ऐसी परंपरा है जो  लड़कियों को लड़कों से कमतर सिद्ध करती है | अगर दहेज़ परंपरा इतनी ही जरूरी है तो आज जब लडकियाँ आत्मनिर्भर है और पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं  तो क्यों उल्टा दहेज़ लिया जाए |  लघुकथा -उल्टा दहेज़  अरे तुम  अभी तक तैयार नहीं हुई ,कहा था न तुम्हें आज लड़के वाले देखने आने वाले हैं |  नहीं माँ मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी |  शादी नहीं करनी … इसका क्या मतलब है | माँ मेरे हिसाब से ये लड़का ठीक नहीं है | मैंने आपकी और पापा की बात सुन ली थी | वो लोग दहेज़ में ४० लाख रुपये मांग रहे  हैं | ये तो समाज का चलन है | सदियों से यही होता आ रहा है | सदियों से यह होता आ रहा माँ उसके लिए मैं तो कुछ नहीं कर सकती | लेकिन जो लड़का पढ़ लिख कर गलत परम्पराओं में अपने माता -पिता का साथ दे रहा है , मैं उससे शादी नहीं कर सकती |  कभी सोचा है , तुम्हारी उम्र निकली जा रही है | आगे पढने और अपने पैरों खड़े होने की तुम्हारी जिद्द  का मान  रखते हुए हमने तुम्हें मनमानी करने दी | परिवार की सब लड़कियों की शादी हो गयी , एक तुम ही बैठी हो , कभी सोचा है , उम्र निकली जा रही है |  माँ  दहेज़ लेना गलत है , फिर आप जानती हैं कि उस लड़के की तनख्वाह मुझसे बहुत कम है , फिर भी उनकी इतनी मांग , और क्या मतलब है माँ कि उम्र निकली जा रही है , क्या वो लड़का मुझसे उम्र में छोटा है |  अरे , लड़कों का तो चलता है | उनकी उम्र बढ़ना मायने नहीं रखता | रही बात तनख्वाह की तो तेरी उम्र निकली जा रही है ऐसे में कहाँ से लाऊं तुझ सा लाखों कमाने वाला , उम्र दो चार साल और बढ़ गयी तो कोई पूंछेगा भी नहीं | कम से कम हमारे बुढापे के बारे में सोचो ,  लोग कितनी बातें बना रहे हैं | तुम्हारे हाथ पीले हो तो हम भी दुनिया से आँख मिला कर बात करें | ( आँसूं पोछते हुए ) तुम्हारी इस जिद ने हमें किसी के आगे आँख उठाने लायक नहीं छोड़ा है |  ओह , तो फिर ठीक है , मैं शादी को तैयार हूँ , पर मेरी एक शर्त है |  क्या ? मुझे ४० लाख दहेज़ चाहिए | जो तुम लोगों ने मेरी पढाई के लिए  में खर्च किया है  उसके एवज में |  दिमाग ख़राब हो गया है क्या ?ये उल्टा दहेज़ कैसा ? माँ आज तक दहेज़ देते ही इस लिए थे की लड़की को फाइनेंशियल प्रोटेक्शन मिले | अब  जब  मैं उस परिवार को और लड़के को फाइनेंसियल प्रोटेक्शन दूँगी | तो दहेज़ लेने का हक़ मेरा हुआ | भले ही आपके हिसाब से ये उल्टा दहेज़ हो |  नीलम गुप्ता  * दहेज़ जैसे कुप्रथा हमारे समाज से जाने का नाम नहीं ले रही है | ” उल्टा दहेज़ क्या उस प्रथा को खत्म करने में कारगर हो सकता है | कृपया अपने विचार रखे |  यह भी पढ़ें … फैसला अहसास तीसरा कोण तीन तल दूसरा विवाह आपको    “ उल्टा दहेज़ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, dowry, against dowry

फैसला

आज भारतीय नारी बदल चुकी है | आज वो , वो फैसला लेने की हिम्मत रखती है जिसे वर्षों पहले लेने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी |  फैसला  वह कई दिनों से उसे बार बार खुद को अपनाने के लिए परेशान कर रहा था I कभी फोन पर तो कभी सरे राह !बड़ी मुश्किल से वह अपने जीवन को पटरी पर लेकर आई ही थी कि अचानक एक बार फिर शांत झील में फिर से एक कंकर फेंकने की कोशिश कर रहा था I उस दिन तो घर ही आ गया I वो तो अच्छा था बच्चे घर पर नहीं थे वर्ना ….I आखिरकार उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज वह फैसला कर ही लेगी I  इससे पहले कि वह एक बार फिर घर के दरवाजे पर ही गिड़गिड़ाने लगे ,उसे भीतर बुला लिया उसने I उसकी हिम्मत बढ़ी I  कहने लगा – ‘ सोमु ,मुझे क्षमा कर दो I मैं भटक गया था I तुम्हारे जैसी पत्नी और फूल से बच्चों को छोड़ उस मायाविनी निशा के चंगुल में फंस गया था और तुमने भी तो मुझे नहीं रोका ! संभाल लेती मुझे ! वह मुझे बर्बाद कर सारे पैसे लेकर निकल भागी I वह आँखों में आंसू लिए उसके घुटने पर अपना सर रख सिसक पड़ा I मैं वादा करता हूँ सोमु !अब एक अच्छा पति ……I उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही उसने उसके मुँह पर अपनी अंगुलिया रख दी ,उसका हाथ अपने हाथों में ले बोली – ‘ मैं सब कुछ भूलने को तैयार हूँ ,पर उससे पहले मैं भी तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ I  ‘ हाँ हाँ कहो न ! ‘वह उत्साहित हो बोला’ मैं जनता था तुम एक सच्ची भारतीय नारी हो !एक दिन मुझे जरूर माफ़ कर दोगी I ‘ वह भीतर ही भीतर कट कर रह गयी जैसे यह सुन कर I पर उसकी आँखों की दृढ़ता कुछ और ही कह रही थी I‘ म …म …मुझसे भी कुछ गलती हुई है ! ‘‘क …क …कैसी गलती ? ‘ वह आशंकित हो उठा I‘दरअसल तुम्हारे अनुपस्थिति में ……मेरे ऑफिस के एक सहकर्मी ….I ‘ बात को बीच में ही काट कर – ‘बात कितनी आगे बढ़ी थी ? ‘हाथ झटक लगभग चीख पड़ा वह I आँखों से अंगारे से बरस रहे थे जैसे I लेकिन वह उन आँखों की अनदेखी कर उसका हाथ फिर थाम बोली -‘ क्या हुआ आकाश ? क्या तुम मुझे माफ़ नहीं करोगे ?आखिर गलती तो दोनों की एक ही है न ?’‘म ..म …मैं …’ उसकी आवाज़ मानों हलक में फंस सी गयी थी I मुख पूरा सफ़ेद !!  सोमु एक टक निहारती हुई अचानक बोल पड़ी – ‘लो हो गया फैसला ! ‘उसने पीठ दरवाजे की ओर की और बड़बड़ाई – तुम पहले भी गलत थे,और अब भी …अब भारतीय नारी अपने अधिकार जानती और समझती है Iमीना पाण्डेयबिहार यह भी पढ़ें … सुकून अहसास तीसरा कोण रुपये की स्वर्ग यात्रा बस एक बार आपको    “ फैसला “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi

तीन तल

युवा भविष्य के सपने देखते हैं बुजुर्ग अतीत की यादों में खोये रहते हैं और प्रोढ़ इन दोनों के लिए सोचने को विवश केवल वरतमान और कर्तव्य में ही जीते हैं | जीवन के ये तीन तल चुपके से परिभाषित कर देते हैं कि हमारी  सोच पर उम्र का असर होता है |  लघु कथा – तीन तल  दिल्ली में विश्वेश्वर प्रसाद जी का तीन तल का मकान है । सबसे नीचे के तल में वह अपनी पत्नी लक्ष्मी  देवी के साथ रहते हैं । दूसरे तल में उनका बेटा प्रकाश अपनी  पत्नी ज्योति के साथ रहता है । प्रकाश की उम्र कोई ५७ साल है । प्रकाश की एक अनब्याही बेटी नेहा बंगलौर में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है । सुधीर …. उनका २५  वर्षीय बेटा … जिसकी नयी नयी शादी हुई है अपनी पत्नी सुधा के तीसरे तल साथ रहता है । रात का समय है …. तीनों जोड़े सोने गए हैं । दृश्य  इस प्रकार है ।  सबसे ऊपर का तल …… ‘सुधा आज तुम इस लाल ड्रेस में बहुत सुन्दर लग रही हो‘ सुधीर  सुधा की तरफ प्रशंसा भरी नज़रों से देख कर कहता है । सुधा ख़ुशी से चहकते हुए सुधीर को देखती है और कहती है ‘ तुम क्या मुझे सदा ऐसे ही प्यार करते रहोगे । सुधीर ‘ अरे  ये भी कोइ कहने  की बात है , हमारा प्प्रेम तो अम्र होगा  … मैं तो तुम्हारे लिए ताजमहल बनवाऊंगा ‘। बीच के  तल में ………..प्रकाश ‘ सुनो ज्योति,  बेटे की शादी में बहुत खर्च हो गया है … ऊपर से नेहा की पढाई का भी खर्च है … मैं अबसे ओवरटाइम किया करूंगा ‘। ज्योति ‘ मैं भी सोंच रही हूँ बॉस से बात करके दो चार टूर मांग लूं … आखिर नेहा की शादी भी तो करनी है ‘।हाँ , कर लो , मैं भी सोच रही हूँ साबुन तेल थोड़े कम दाम वाले ही लूँ , पिताजी  मोतिया भी तो पक गया है , आखिर ओपरेशन कब तक टालेंगे |  सबसे नीचे का तल ….७५  वर्षीय विश्वेश्वर नाथ जी अपनी पत्नी लक्ष्मी  देवी से कहते हैं ‘ सुनो तुम्हें याद है जब हमारी शादी हुई थी तब तुम लाल साड़ी  में कितनी सुंदर लग रही थीं ‘। लक्ष्मी  देवी लजा कर कहती है ‘ हाँ और वही साड़ी मुन्ना ने खेलते हुए ख़राब कर दी थी …. तब तुम कितना गुस्सा हुए थे ‘। क्यों ना होता … मैं जो इतने प्यार से तुम्हारे लिए ले कर आया था … विश्वेश्वर जी ने उतर दिया । अतीत ….वर्तमान ओर भविष्य को याद करते हुए एक ही मकान के तीन तलों में तीन पीढियां सो गयीं । नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … सुकून जमीर डर प्रायश्चित बस एक बार आपको    “ तीन तल “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, three stories

जमीर

कहते हैं इंसान जब कोई गलत काम कर रहा होता है तो उसका जमीर उसे रोक देता है | फिर भी गलत काम करने वाले अपने जमीर की सुनते कहाँ हैं | भावप्रवण लघुकथा – जमीर  अपनी बिटिया को पोलियों की दवा पिलाने हेतु मुझे शहर जाकर वापिस आना था।उस समय इस तरह घर घर पोलियों दवा पिलाई नहीं जाती‌ थी।जागरूक लोग ही दवा पिलाते थे।पतिदेव अपने काम पर गये थे।मैं खुद ही अपनी छह माह की बेटी को गोद में लेकर चल दी । जैसे तैसे मैंने लिफ्ट लेकर जल्दी जल्दी बिटिया को अस्पताल में पोलियों दवा पिलाई और घर पहुंचने की जल्दी में तुरन्त बस स्टेंड आ गयी‌।पर कोई बस नहीं थी‌।चूंकि मेरे पति लंच करने आने वाले थे।काफी देर तक बस ना पाकर कुछ सोच मैंने सामने से आते हुए एक जुगाड जो रेहडीनुमा था,उसे हाथ दे दिया।पहले से ही उसमें कुछ लोग बैढे थे।मैंने उन्हें आराम से बैठा देखकर कहा—भाई जी मुझे भी बामनीखेडा तक जाना है बैठ जाऊ क्या? उसने मुस्कुराते हुए कहा:_हां हां,बहन जी मुन्नी को लेकर आराम से बैठ जाओ।मैं बैठ गयी। नियत स्थान पर उतरते समय मैं किराया देने लगी,,,मगर उसने ये कहकर किराया लेने से मना कर दिया कि वो इधर तो जा ही रहे थे,आप बैठ गयी तो क्या बात,,,किराये की बात मत करो ये कहकर मुस्कुराते हुए आंखों से ओझल हो गया। तभी घर की ओर चलते चलते मैं कुछ सोचने लगी,,,अतीत की घटना मेरे सामने आ गयी,,,सहसा मेरा ध्यानपास ही में सरकारी नौकरी  करने वाले मिस्टर खन्ना की ओर चला गया।कुछ दिन पहले ही ड्राइवर खन्ना आफिस के काम से शहर जा रहे थे,,कस्बे के बस स्टैंड पर खड़े होकर अपनी सरकारी गाड़ी में सवारियां भर रहे थे,,,। पूछने पर खिसिया कर बोले_मैडम जी जाना तो मुझे उधर ही है,सवारियां ये सोच बैठा दी किराये के रूप में कुछ खर्चा पानी निकल आयेगा। उसकी इस हरकत से मैं निरूतर हो गरी और*जमीर*की परिभाषा ढूंढने लगी।मेरी नज़र में ड्राइवर की बजाय एक रेहडी वाले का जमीर श्रेष्ठता पा गया था।। रीतू गुलाटी  यह भी पढ़ें … सुकून गुनाहों का हिसाब डर प्रायश्चित बस एक बार आपको    “ जमीर “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi

बस एक बार

बेटा हो या बेटी, संतान के आने से घर -आँगन चहक उठता है | फिर भी बेटे सम्मानित विशिष्ट अतिथि और बेटियाँ बिन बुलाई मेहमान ही रही हैं | कितना कुछ दबाये हुए बढती हैं उम्र की पायदानों पर और अनकही ही रह जाती हैं “बस एक बार ” की कितनी सारी तमन्नाएं | पढ़िए सुनीता त्यागी की लघु कथा … बस एक बार  मंझली बेटी भीषण दर्द से तड़प रही थी। आज डाक्टर ने सर्जरी के लिए बोल दिया था।हस्पताल में उसे यूं दर्द से छटपटाता देख रमेसर के भीतर का वो पिता जो पांचवी बार भी बेटी पैदा होने पर कहीं खो गया था, जिसके बाद कभी उसने मां -बेटियों की सुध नहीं ली थी, आज उस पिता में कुछ छटपटाहट होने लगी थी।  ” रो मत, सब ठीक हो जायेगा “, उसने बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।  पिता के स्पर्श को महसूस कर मंझली सुखद आश्चर्य में डूब गयी। पिता ने प्यार से हाथ फिराना तो दूर,कभी प्यार भरी नजरों से देखा भी नहीं था उसे।  “बापू बचालो मुझे!मत कराओ मेराअौपरेशन!! औपरेशन में तो मर जाते हैं! जैसे दादी मर गयीं थी”, मझली औपरेशन के नाम से घबरा कर रोती हुई कहने लगी। “ “ऐसा नहीं कहते बावली, मैं हूं ना!!”। रमेसर के चेहरे पर छलक आयी ममता को देखकर मंझली ने फिर कुछ कहने का साहस किया ” बापू! अगर मैं मर गयी, तो मेरी एक इच्छा अधूरी ही रह जायेगी ” । ” तुझे कुछ नहीं होगा बेटी ! फिर भी बता कौन सी इच्छा है तेरी”। पिता के मुंह से निकले शब्दों से मंझली को मानो पत्थरों से खुशबू आने लगी थी और उसकी आंखों से भी दबा हुआ उपेक्षा का दर्द फूट पड़ा, रुंधे गले से इतना ही कह पायी ” बापूू!! आज मुझे गोदी ले लो, बस एक बार!! सुनीता त्यागी  मेरठ  यह भी पढ़ें … दूसरा फैसला गुनाहों का हिसाब आत्म विश्वास टूटती गृहस्थी की गूँज  आपको आपको    “बस एक बार “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, father-daughter, girls, daughter, desire

टूटती गृहस्थी की गूँज

दो लोग विवाह के बंधन में बंध एक प्यार भरी गृहस्थी की शुरुआत करते हैं | उनकी बगिया में उगा एक नन्हा फूल उन्हें और करीब ले आता है | फिर ऐसा क्या हो जाता है कि दूरियाँ बढ़ने लगती है | बसी -बसायी गृहस्थी टूटने लगती है … जिसकी गूँज दूर -दूर तक सुनाई पड़ने लगती है | टूटती गृहस्थी की गूँज गुलाब एक मल्टीनेशनल कंम्पनी मे इंजीनियर के पद पर था। अच्छा पैकेज था। सब ओर खुशहाली थी। एकाएक कम्पनी ने छंटनी करनी शुरू कर दी। गुलाब भी इससे अछूता ना रह सका। तजुर्बेकार इंजीनियरो को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। गुलाब की गृहस्थी मे तूफान आ गया था। सब गडबडा गया था। नयी नौकरी मिलनी आसान नही थी वो भी मनपसन्द।। इन्टव्यू देता गुलाब पर कोई ना कोई कमी निकल आती। यूं ही हर दम खाली आते आते वह नकारात्मकता से घिरने लगा था। एक डर सा बैठने लगा था। प्रतिभाशाली होते हुऐ भी उसके भीतर एक डर घर कर गया था। दोस्तो की राय भी निराधार साबित हो रही थी। भगवान का ध्यान करता। पर चैन नही मिल रहा था। हर दम परेशान रहने लगा। खाने मे भी कुछ ना भाता,,, हां गुस्सा बढ चला था।। हरदम चिडचिडा सा रहता। अवसाद मे पडा पडा बुरा ही सोचता। जब से कम्पनी ने रिलीव करदिया तब तो बस घर जाने की सोचता कम्पनी मे काम के वास्ते वो अपने घर से 200 किलोमीटर की दूरी पर किराये के मकान मे रह रहा था। अब कया करे? अब तो उसने अपना बैग उठाया और घर आ गया। जिन माता पिता को वो मिस कर रहा था उनसे मिलकर अपनी व्यथा बताकुछ सुकून पा गया था। इधर पत्नी अपनी नौकरी हेतु अपने मायके जाकर जम गयी थी। छह माह की छोटी बेटी इन दोनो सेअलग थलग पड़ गयी थी। वो दोनो की आंख की तारा थी पर इन हालातो मे वो नानी की गोद मे थी। चूकि पत्नी का मायका बीच शहर मे था। इसीलिये पत्नी को ज्यादा परेशानी नही थी। पर बिना नोकरी गुलाब क्या करता उस शहर मे? उसने पत्नी को भी अपने संग ले जाना चाहा पर ये क्या।,,,, उसने एक दम मना कर दिया। गुलाब; -तुम चलो मेरे साथ पत्नी :- मै कैसे चलूगी,, मेरी नौकरी है यहां। गुलाब :- कौन सी पक्की नौकरी है? ऐसी तो वंहा भी मिल जायेगी। पत्नी :- नही नहीमै बिल्कुल पंसन्द नही करती आपके परिवार को। ना मै वंहा गुजारा कर पाऊगी। गुलाब:- मै यहां अकेला क्या करूंगा? खाली घर खाने को दोडता है मुझे? पत्नी :- मुझे नही पता पर मै नही जाऊगी आपके साथ ये बात पक्की है। छोटी सी फूल सी बेटी जिसे गुलाब खिलाना चाहता था संग रख प्यार देना चाहता था मजबूरी उसे छोड अपने घर लौट आया था। पर तनाव मे रहने लगा। पर पत्नी को कोई सरोकार ना था,,, उसे केवल अपनी इच्छाओ,, व आकांक्षो की फिक्र थी। ससुराल परिवार केलिये जो उसकी जिम्मेवारी थी,,, पति के लिये सहयोग भावना इन सब से दूर दू र तक कुछ लेना देना ना था। जिस पति ने उसका इतना साथ दिया था अब जब उसे पत्नी की जरूरत थी एक अच्छी राय चाहिये थी मनोबल बढाने की। उस समय वो नही थी। वो चाहती थी मेरा पति भी अपने घर ना जाये यही रहे मुझे सहयोग दे। पर पुरूष, की ईगो नारी की ईगो पर भारी थी। अपनी बच्ची के बिना यहां भी मन नही लग रहा था पर वहां भी नही रूक सकता था क्योकि ससुराल वालो का हस्तक्षेप जारी था। माता पिता की शह मे पत्नी ने पति को छोड मायके के प्रति ज्यादा जवाबदेही थी। अपने लिये पत्नी की इस भावना ने गुलाब के दिल मे नफरत भर दी थी। उसे कोई फर्क नहीपढता था गुलाब की नौकरी लगी या नही। पत्नी के इस व्यवहार से गुलाब परेशान रहने लगा। कई बार वो चिल्ला कर कहता_ _मेरा तो औरत जात से ही विश्वास उठ चला है__ऐसी होती है पत्नी। पति मरे या जीये उसे फर्क ही नही पढता। मै अब ऐसी औरत के संग नही रह सकता। जिसे सिर्फ मेरे पैसे से प्यार था मुझसे नही। इधर पत्नी मस्त थी अपने घर। उसने एक मास से एक फोन तक करके नही पूछा कि जॉब का क्या रहा?, इधर गुलाब पल पल टुट रहा था उसे अपनी टूटती गृहस्थी की गूंज साफ सुनाई दे रही थी जिसे वो टूटने नही देना चाहता था। वो चाहता था बस एक बार मेरी अच्छी सी नौकरी लग जाये वह सबकुछ ठीक हो जाये और मै फिर से उंचे मुकाम पर पहुंच जाऊ। इसी कशमकश मे घिरा, गुलाब फिर एक नये इन्टरव्यू की तैयारी मे जुट गया।। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … आत्मविश्वाससुकून वो पहला खत आकांक्षा आपको  कहानी    ” टूटती गृहस्थी की गूँज “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, Divorce

आत्मविश्वास

जीवन में खोना व् पाना तो लगा रहता है | जिसके अन्दर आत्मविश्वास होता है  उसे खोने का डर नहीं होता | और शायद इसी कारण कोई आत्मविश्वास के धनी व्यक्ति को कुछ खो जाएगा का डर दिखा कर शोषित नहीं कर पाता | एक ऐसी ही महिला की कहानी …                                                           आत्मविश्वास  बाईस वर्ष की माया सुन्दर तेज तर्रार तीखे नैन नक्श गोरा रंग। पोस्ट गैजुऐट आत्मविशवास से लबरेज युवती ने सीनियर सैं स्कूल मे सीनियर टीचर हेतु आवेदन किया। उसकी कार्य क्षमता से प्र्भावित होकर मुख्याध्यापक ने उसे मनपसंद विषय पढाने को दे दिये। माया भी खुश थी व बडी लगन से अपने काम को कर रही थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। पर…. भीतर ही भीतर मुख्याध्यापक की बुरी नजर माया पर पड़ चुकी थी। वो उसे अकसर छुट्टी के बाद बहाने से रोकने लगा था। कभी किसी मीटिगं के बहाने अथवा कोई ओर काम,,,। शुरू शुरू मे तो माया उनके कहने से रूक गयी थी। पर एकदिन तो हद हो गयी जब एकान्त का फायदा उठाकर मुख्याध्यापक ने माया को अपनी आगोश मे ले लिया और उसका मुँह चूमने लगा। उसकी इस हरकत से माया आगबबूला हो गयी। तभी उसने माया से माफी मांग ली। अब माया चौकंनी हो गयी थी। भीतर ही भीतर वो कुछ फैसला ले चुकी थी। तीसरे दिन फिर मुख्याध्यापक ने जैसे ही माया को अकेला पाया वो फिर सारी हदे पारकर गया। माया ने आव देखा ना ताव खीचकर एक तमाचा सारे स्टाफ के सामने मुख्याध्यापक के मुंह पर दे मारा। पहले से ही पर्स मे रखे त्यागपत्र को मुख्याध्यापक के मुंह पर दे मारा। जोर से चिल्लाकर माया बोली….. मै यहां ज्ञान बांटने आयी थी,,,, अपना शरीर नही… कहकर तेजी से बाहर निकल गयी। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … शैतान का सौदा सुकून वो पहला खत वर्षों बाद आपको  कहानी    “वर्षों बाद “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, Confidence