वर्षों बाद …

                           हर घटना जब घटती है तो हम उसे एक एंगल से देखते हैं , अपने एंगल से , लेकिन जब दूसरे का एंगल  समझ में आता है तो हम जिस उम्र परिस्थिति के हिसाब से सोच रहे हैं , दूसरा उससे अलग अपनी उम्र व् परिस्थिति के हिसाब से सोच रहा होता है | तब लगता है , गलत कोई नहीं होता , हर घटना का देखने का सबका एंगल अलग होता है …..अक्सर ये समझ वर्षों बाद आती है लघु कथा -वर्षों बाद                                              मैं  हॉस्पिटल के बिस्तर पर  लेटी थी | ड्रिप चढ़ रही थी |  एक -एक पल मेरा मृत्यु से युद्ध चल रहा था | पता नहीं घर वापस जा भी पाउंगी या नहीं |  पर मृत्यु से भी ज्यादा मुझे कर रहा था अपनी बेटी का दुःख | मेरे बाद क्या होगा उसका | कितनी संवेदनशील है , किसी का दर्द सुन लें तो महीनों मन से निकाल नहीं पाती है | जब उसे ससुराल में पता चलेगा तो … टूट जायेगी , सह नहीं पाएगी , कितना रोएगी , अभी बेटा छोटा है उसे पालना है , इतनी जिम्मेदारियां सब पूरी करनी है , ऐसे कैसे चलेगा |                                            मैं अपने ख्यालों में खोयी हुई थी कि बेटी ने कमरे में प्रवेश किया | उसकी डबडबाई आँखे देख कर मैं टूट गयी , फूल सा चेहरा ऐसे मुरझा गया था जैसे कल से पानी भी न पिया हो | उसकी हालत देख कर मैंने मन को कठोर कर लिया और उससे बोली , ” किसने खब कर दी तुमको , अभी बच्चा छोटा है उसको देखो , तुम्हारा भाई है तो मेरी देखभाल को … बेटियाँ पराई  होती हैं उन पर ससुराल की जिम्मेदारी होती है | और इस तरह रो -रो कर मेरा अंतिम सफ़र कठिन मत करो | उसने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और बोली , ” कुछ मत बोलो माँ , कुछ मत बोलो … और वो मेरे सीने से लग गयी |                    उसके सीने से लगी मैं अतीत में पहुँच गयी | ऐसे ही माँ  अपने अंतिम समय में गाँव में आँगन में खाट पर लेटी थीं | मैं दौड़ती भागती बच्चों को ले माँ को देखने पहुँची थी | मुझे देख कर माँ , जो दो दिन से एक अन्न का दाना नहीं खा पायी थीं , न जाने खान से ताकत जुटा  कर बोलीं , ” हे , राम , इनको कौन खबर कर दीन , ए तो बच्चन को भी जेठ का माहीना में ले दौड्स चली आयीं , अब पराये घर की हो उहाँ की चिंता करो यहाँ की नहीं | अब  रो रो के हम्हूँ को चैन से न मरने दीन , चार दिन के जिए दो दिन माँ ही चले जाइये |” मैं माँ के पास से हट गयी थी | अगली सुबह माँ  का निधन हो गया |                      वो अंतिम मिलन मुझे कभी भूलता ही नहीं था  | माँ क्या मुझे देखना ही नहीं चाहती थीं | क्या बेटियों की विदा कर के माँ उन्हें पराया मान लेती हैं | मैं जब भी माँ को याद करती उनके अंतिम शब्द एक कसक सी उत्पन्न करते | मैं आंसू पोछ  कर सोचती , जब माँ ही मेरा आना पसंद नहीं कर रहीं थीं तो मैं अब क्यों याद करूँ | आज अचानक वही शब्द मेरे मुंह से अपनी बेटी के लिए निकल गए | तस्वीर आईने की तरह साफ़ हो गयी | ओह माँ , आप नहीं चाहती थी कि मैं आपके लिए ज्यादा रोऊँ , इसलिए आपने अंतिम समय ऐसा कहा था | सारी  उम्र मैं आपको उन शब्दों के लिए दोषी ठहराती रही | ऐसा कहते समय आपने कितनी पीड़ा कितना दर्द झेला होगा उसकी समझ भी मुझे आई तो आज … इतने वर्षों बाद | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …………. दोगलापनसुकून वो पहला खत जोरू का गुलाम  आपको  कहानी    “वर्षों बाद “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, Years later

सुकून

                               बेटी की शादी का माता -पिता को कितना हौसला होता है | बेटी के पैदा होते ही एक जिम्मेदारी सी होती है उनके कन्धों पर , बेटी को उसके घर , जहाँ की वो अमानत है यानि की ससुराल भेजने की | लेकिन ससुराल भेजने के बाद भी सुकून तब मिलता है जब … पढ़िए रीतू गुलाटी की कहानी  सुकून फरवरी माह की हल्की हल्की ठंड थी। ऐसे मे धूप का मजा सबको भाता है एक सुकून सा देता है। सीलन व अंधेरे कमरे मे बैढना जहां बुरा लगता है वही सरदी मे उजाले भरी धूप जैसै आकाश मे सोना सा चमक रहा हो ऐसा महसुस होता है। मीठी मीठी धूप बडी अच्छी लगती है। ऐसी गरमाहट मे बिस्तर पर नीदं सोने पे सुहागे जैसी लगती है। आज रविवार था छुट्टी का दिन! साथ मे कपडो की धुलाई का दिन। कामकाजी महिला के लिये यही एक स्पेशल दिन होता है जब वह फुर्सत मे होकर धूप का आनंद ले पाती है। दोपहर का खाना खाकर मै भी ज्यो लेटी गहरी नींद मे सो गयी। तभी डांइगरूम मे बैठे पतिदेव ने जो फिल्म का आनंद ले रहे थे,, अकेले पन से उकता कर मुझे फोन पर मिस काल दी और नीचे आने को कहा। हडबडा कर मै उठी और सूख चुके कपडो को समेटने लगी। आज का दिन मेरा बडा बदला बदला सा था,,, कारण मेरी बेटी की अच्छे से शादी का हो जाना। उसका कल घर पग फैरा था मै फिर फिर उसे याद कर अतीत मे लौट गयी थी। शादी के 15 दिन हो गये थे। और वो अपने हनीमून से भी लौट आयी थी। और अब ससुराल वालो के संग अपने मायके पहला फैरा डालने आयी थी। अपने पति के संग हंसती खिलखिलाती बडी सुंदर लग रही थी। उसके चेहरे की चमक से पता चल रहा था कि वह बडी खुश थी। बडी चहक रही थी। दूर का सफर करके लौटे थे खाना खाकर सब लेट चुके थे पर बेटी काम मे लगी थी। मेने कहा :_”बेटीतू भी आराम कर ले थोडी देर”। बेटी :- “नही मम्मी ,, मै कुछ सामान समेट लूं। कुछ रह ना जाये”आपने जो इतने गिफ्ट दिये है इन्हे सम्भाल कर गाडी मे रख लूं, कुछ छूट ना जाएं। मंमी:- “बेटी शाम का खाना भी पैक करना है क्या? “बेटी:- हां हां मम्मी जरुर! अब इतनी दूर थके हुऐ घर पहुंचेगे तो खाना कैसे बना पायेगे? यही से पैक करके रख लेती हूं। बडी लगन व फुरती से वो सब सामान समेट रही थी,,, इन सब को देख मुझे हंसी भी आ रही थी और प्यार भी आ रहा था। मुझे याद है शादी से पहले वो कितनी लापरवाह थी,,, सामान फैला रहता दूध पडा रह जाता वो ना पीती । मै चिल्लाती—अपना सामान तो समेट लोपर वो हंस देती और सोफे पर लेट टी वी देखने लग जाती। पर आज सबकुछ बदला हुआ था,,,,, दोपहर के खाने के बाद वो सारे जूठे बरतन बडे करीने से एक मे एक डाल कर समेटते हुऐ किचन मे रख आयी थी। मै हंस पडी सोच रही थी ये वही लडकी है जो खाकर अपने बरतन वही बैठक मे छोड देती थी। आज इतना बदलाव? 15 दिन मे ही बेटी ससुराल के तौर तरीके सीख गयी। पढाई लिखाई मे तो मेधावी थी ही, गृहस्थिन भी पक्की बन गयी थी। उसके जाते ही मेरी चिन्ता मिट गयी थी। मुझे डर लगता था की नये घर मे एडजेस्ट होने मे पता नही कितना समय लगे,,, पर मेरी संस्कारी बेटी ने मेरा मान बढा दिया। सीडियो से नीचे उतरते उतरते मै वर्तमान मे लौट आयी पर मुझे मुस्कुराते देख पतिदेव पूछ ही बैठे :-“अपनी बेटी के बारे मे सोच रही हो? मैनै हंसकर कहा :- “हां चलो बेटी अपने घर खुश है हमे और क्या चाहिये। “तभी पतिदेव हंसकर बोले :- सही कहा। “जहां का पौधा जहां लगना है वही लग जाएं और वही फूले फले” हमे और क्या चाहिये? शायद वो भी अपनी बेटीपर गर्व महसूस कर रहे थे। बेटी अपने घर खुश रहे इससे बडा “सुकून” और कया हो सकता है। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें …. बदलाव अंकल आंटी की पार्टी वो पहला खत सीख आपको  कहानी    “सुकून “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, comfort

बदलाव

रज्जो धीर गंभीर मुद्रा में बैठी थी , जबकि उसके  माथे पर चिंता की लकीरे थीं | अभी थोड़ी ही देर पहले आँगन से  घर परिवार जात -बिरादरी वाले  उठ कर गए थे | हर अंगुली रज्जो के ऊपर उठी थी | रज्जो पर इलज़ाम था कि उसकी बेटी ने भाग कर शादी कर ली है | क्या -क्या नहीं कहा सबने रज्जो को | माँ ही संस्कार देती है | बाँध कर ना रख पायी लड़की को | सब कुछ जहर की तरह गटकती रही रज्जो | अतीत का नाग उसे फिर डस रहा था | दुल्हन बन कर जब इस घर में आई थी | तब कहाँ पता था कि शराबी पति का दिल कहानी और लगा हुआ है | उसने बहुत कोशिश  की  कि वह शराब और उस लड़की को छोड़ दे | पर रज्जो के हिस्से में सिर्फ मार ही आई |  तभी तपती मन की धरती पर सावन की फुहार बन कर आई उसकी बेटी पूजा | रज्जो को यकीबन  था कि उसके लिए न सही पर पिता का दिल अपनी बेटी के लिए तो पसीजेगा | पर उसके नसीब में ये सुख कहाँ था | उसका पति दूसरी औरत को घर ले आया | उसने बेटों को जन्म दिया |  एक कहावत है माँ दूसरी तो बाप तीसरा हो जाता है | उसके साथ -साथ  उसकी बेटी पूजा भी दुर्व्यवहार का शिकार होने लगी | पीली फराक                 एक दिन हिम्मत करके वो बेटी को ले मायके चली आई | जो हो मेहनत करके खा लेगी पर अपनी बेटी पर जुल्म नहीं होने देगी | नादान कहाँ जानती थी कि  मायका भी पराया हो गया था | भाई उसे देख त्योरियां चढ़ा कर बोला , ” भले घर की औरते ऐसे अकेले रह कर कमाँ कर नहीं खातीं | यहाँ भी रहोगी तो क्या इज्ज़त रहेगी समाज में | हमारी तो नाक कट जायेगी | मुझे अपनी बेटी का ब्याह भी करना है | जाओ  ससुराल लौट जाओ | आदमी कोई पत्थर नहीं होता है -प्यार से बात करोगी तो उसे छोड़ देगा | निराश हो रज्जो अपने घर लौट आई | साल दर साल दर्द सहती रही पर उफ़ तक नहीं की | उसने आज भी उफ़ नहीं की थी | जानती थी , पूजा कब तक यहाँ दर्द सहती , कौन उसका ब्याह करता , वो उसकी राह पर नहीं चली जहाँ सिर्फ सहना ही लिखा होता है | विद्रोह करके निकल गयी उसके साथ जो शायद कुछ पल सुख के उसके नाम लिख दे | वो जानती थी कि पूजा लौट कर कभी नहीं आएगी | लौट के आई लड़कियों के लिए मायके दरवाजे कहाँ खुले होते हैं ? तभी भाई उसके सामने आया और क्रोध में बोला , ” कुल का नाम डुबो दिया इस लड़की ने , भाग कर शादी की वो भी एक विजातीय के साथ | अब हम क्या मुंह दिखाएँगे समाज को | अरे दिक्कत थी पालने में तो मेरे घर आ जाती | कुछ कह सुन के दो रोटी का जुगाड़ कर ही लेता यूँ नाक तो न कटने देता | रज्जो के चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कुराहट तैर गयी | भाई  का ये बदलाव अब की बार उसके लिए अप्रत्याशित नहीं था | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … घूरो , चाहें जितना घूरना हैं जीवन अनमोल है बेटियों की माँ पंडित जी  आपको  कहानी  “ बदलाव “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-  Hindi stories, change

पीली फराक

बाबू! इस जन्मदिन पर तो मेरे लिए पीले रंग की फराक लाओगे न? हाँ! हाँ! जरूर लाऊँगा। हरिया के दिमाग में उठते ही रधिया की बातें गूँजने लगी।       बदन बुखार और दर्द से टूटा जा रहा था। हिम्मत उठने की नहीं हो रही थी पर आज पीली फराक तो रधिया को लाकर देनी ही थी। तो जैसे- तैसे उठ कर रधिया की माई को चाय बनाने को कह फारिग होने निकल गया। आकर नहाया और चाय के साथ रात की रखी रोटी खाई। डिब्बे में चार रोटी, अचार, मिर्च और प्याज रखवाया। उसे लेकर, सिर पर गमछा लपेट कर चल पड़ा। घंटाघर के पास बड़े डाकघर के सामने जाकर खड़ा  हो गया जहाँ सारे मजदूर खड़े होते थे। फर्क        तब तक उसे वो बाबू दिख गए जो कई बार उसे अपने घर की सफाई करने के लिए ले गए थे। दौड़ कर बाबू को नमस्ते कर दी, शायद बाबू उसे सफाई के लिए ले जाएँ। बाबू ने उसे देखा तो अपने स्कूटर पर बैठा सफाई के लिए घर ले आए। सफाई करते हुए एक बज गया तो मुँह-हाथ धो, मालकिन से पानी माँग कर खाना खाने बैठा।        पानी देते हुए मालकिन ने पूछा.. हरिया! आज तेरी तबियत ठीक नहीं है क्या?       हाँ मालकिन! दो दिन से तेज बुखार है।        तो काम करने क्यों आया? दवाई खाकर घर पर आराम करता। ऐसे तेरा बुखार उतरेगा भला?         जानत हूँ मालकिन! पर वो क्या बताऊँ? हमार बिटिया का आज जन्मदिन है। उसने पीली फराक लाने को बोला कब से? काम करने न आता तो फराक कैसे लूँगा? बस एहि खातिर चला आया। राग पुराना              ठहर, अभी बुखार उतरने की गोली देती हूँ तुझे… कह कर अंदर से लाकर चाय-बिस्किट दिए और और एक पैरासिटामोल दी।            चलते समय पैसों के साथ अपनी बेटी की छोटी हो गई पीले रंग की फ्राक और कुछ लड्डू दिए।            पैसे,फराक और लड्डू लेकर हरिया इतवार को लगने वाले बाजार की और चल पड़ा पीली फराक ख़रीदने के लिए। सोचता हुआ जा रहा था कि रधिया को फराक के साथ दो चाकलेट  भी देगा तो वो कितनी खुश हो जाएगी। ————————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई  यह भी पढ़ें … घूरो , चाहें जितना घूरना हैं जीवन अनमोल है अनावृत  चोंगे को निमंत्रण आपको आपको  कहानी  “पीली फराक “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, international Labour day, YELLOW FROCK

फर्क

                                सुधाकर बाबू का किस्सा पूरे  ऑफिस में छाया हुआ था | सुधाकर बाबू की अखबार के एक अन्य कर्मचारी से ठन  गयी थी | सुधाकर बाबू प्रिंटिंग का काम देखते थे और दीवाकर जी अखबार का पहला पेज डिजाइन करता थे  | सुधाकर बाबू की दिवाकर जी से कैंटीन में चाय समोसों के साथ गर्मागर्म बहस हो गयी |  यूँ तो दोनों की अपने -अपने पक्ष में दलील दे रहे थे | इसी बीच  सुधाकर बाबू ने दिवाकर जी पर कुछ  ऐसी फब्तियां कस दी कि दिवाकर जी आगबबबूला हो गए | तुरंत सम्पादक के कक्ष में जा कर लिखित शिकायत कर दी कि जब तक  सुधाकर बाबू उनसे माफ़ी नहीं मांगेंगे तब तक वो अखबार का काम नहीं संभालेंगे, छुट्टी ले कर घर पर रहेंगे | संपादक जी घबराए | दिवाकर जी पूरे दफ्तर में वो अकेले आदमी थे जो अख़बार का  पहला पेज डिजाइन करते थे | पिछले चार सालों  में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली थी | कभी छुट्टी लेने को कहते भी तो अखबार के मालिक सत्यकार जी उन्हें मना लाते | सम्पादक जी ने हाथ -पैर जोड़ कर उन्हें हर प्रकार से मनाने की कोशिश की पर इस बार वह नहीं माने | अगर कल का अखबार समय पर नहीं निकल पाया तो लाखों का नुक्सान होगा | कोई और व्यवस्था भी नहीं थी |  उन्होंने सुधाकर जी को बुलाया | पर वो भी  माफ़ी मांगने को राजी न हुए | मजबूरन उन्हें बात मालिक तक पहुंचानी पड़ी | बात सुनते ही अखबार के मालिक ने आनन् -फानन में सुधाकर जी को बुलाया | प्रायश्चित इस बार सुधाकर जी भी गुस्से में थे | उन्होंने मालिक से कह दिया की बहस में कही गयी बात के लिए माफ़ी वो नहीं मांगेंगे | क्योंकि बहस तो दोनों तरफ से हो रही थी | दिवाकर जी को बात ज्यादा बुरी लग गयी तो वो क्या कर सकते हैं | आखिर उनकी भी कोई इज्ज़त है वो यूँही हर किसी के आगे झुक नहीं सकते | सत्यकार जी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की |उन्होंने कहा कि आपसी विवाद में अगर किसी को बात ज्यादा बुरी लग गयी है तो आप माफ़ी मांग लें | दिवाकर जी यूँ तो कभी -किसी से माफ़ी माँगने को नहीं कहते |  उन्होंने सुधाकर  जी को लाखों के नुक्सान का वास्ता भी दिया |  पर सुधाकर जी टस से मस न हुए | उन्होंने इसे प्रेस्टीज इश्यु बना रखा था | उनके अनुसार वो माफ़ी मांग कर समझौता नहीं कर सकते | दूसरा फैसला अंत में सत्यकार जी ने सुधाकर जी से  पूंछा ,  ” आपकी तन्ख्य्वाह कितनी है ? सुधाकर जी ने जवाब दिया – १५००० रुपये सर सत्यकार जी बोले , मेरे ऑफिस का १५ ०००० करोंण का टर्नओवर हैं | पर मैं विवादों को बड़ा बनाने के स्थान पर जगह -जगह झुक जाता हूँ | शायद यही वजह है कि हमारे बीच  १५००० रुपये से १५००० करोंण का फर्क है | देर शाम को दिवाकर जी अपनी टेबल पर बैठ कर अखबार का फीचर डिजाइन कर रहे थे और सुधाकर जी  टर्मीनेशन लैटर के साथ ऑफिस के बाहर निकल रहे थे | विवाद को न खत्म करने की आदत से उनके व्  सत्यकार जी के बीच सफलता का फर्क कुछ और बड़ा हो गया था | बाबूलाल मित्रों एक कहावत है जो झुकता है वही उंचाई  पर खड़ा रह सकता है | छोटी -छोटी बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने वाले जीवन में बहुत ऊंचाई पर नहीं पहुँच पाते | यह भी पढ़ें …….. घूरो , चाहें जितना घूरना हैं गैंग रेप   अनावृत  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क आपको आपको  कहानी  “राग पुराना”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, hindi stories, difference, short stories in hindi

राग पुराना

‘ तुमने तो फिर  वही पुराना राग अलापना शुरू कर दिया .’ ‘ जीवन के बहुत से सच हमेशा ताजे  बने रहते हैं , वे कभी …….!.’  ‘ बस – बस . मुझे पता है , आगे क्या कहोगे .  तुम जैसे इमोशनल लोगों की यही तो प्राब्लम है कि मौका लगते ही   किताबी बातें शुरू कर देते हो . ‘ किताबों में लिखी बातें  हवा में  नहीं बनती . जिंदगी के खट्टे – मीठे , तल्ख या मधुर अनुभव  और घटनाएँ  ही तो शब्दों में पिरोई जातीं हैं जो किताब बन कर सबके सामने आती हैं , कोई – कोई उसे पढ़   लेता है और प्रभावित भी होता है  . ये बात अलग है कि आज कल अधिकांश लोगों को यह सौभग्य नहीं मिलता या उन्होंने   खुद को इससे दूर कर लिया है .’. दूसरा फैसला ‘ देखो , मैं आज किसी बहस – वहस के मूड में नहीं हूँ . बहस करनी  है तो घर वापस चल सकते हो .’  ‘ यह क्या बात हुई ! जब कोई जवाब नहीं मिलता तो हमेशा डांटने के मोड में आ जाती  हो ? अच्छा बताओ तुम्हें मेरे साथ कहीं भी जाना  अच्छा लगता है या नहीं   ?’  ‘  तुम्हारा साथ हो और घूमना हो . वो बात अपनी जगह है परन्तु तुम्हारे साथ आने का खास मतलब यह है की मुझे घूमना और कोई भी नई जगह देखना अच्छा लगता है ,यह अलग बात है कि  तुम मेरे साथ होते हो तो मैं स्वयं को सुरक्षित महसूस करती   हुँ . दुनियादारी पर तुम्हारी पकड़ में हमेशा समझदारी दिखाई देती है  . तुम्हारे साथ मैं वह सब शेयर कर लेती हूँ जो उनके और  किसी के साथ शेयर  नहीं कर पाती . तुम मुझे और मेरी दुविधाओं को बड़ी संजीदगी से समझते ही नहीं , उन्हें टेकल भी कर लेते हो . तुममे और भी ऐसा बहुत कुछ है जो मैं भले ही मैं कह न सकूँ पर वह  है जो  मुझे तुम्हारे साथ समय बिताने को मजबूर करता है .मैं तुम्हारे साथ घूम कर इस बड़े से  शहर की हर जगह देखना   पसंद करती हूँ , शॉपिंग करना पसंद करती हुँ . ‘ ‘ पर मेरे साथ सिर्फ इतना ही नहीं है !’ ‘ हाँ – हाँ जानती हूँ कि क्या कहोगे !’ ‘ क्या कहूँगा ….?’ प्रायश्चित ‘ वही गुलशन नंदा के उपन्यास में लिखी बात कि सुधा , मुझे तुम्हारा साथ इसलिए पसंद है क्योंकि मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हुँ और अगर मैं तुमसे झूठ बोल रहा होऊंगा तो वह झूठ तुमसे नहीं , अपने आप से बोल रहा होऊंगा . यही न मेरे  मजनूँ मियां .’      ‘ अगर यह किसी रूमानी उपन्यास का डायलॉग है तो यही सही क्योंकि यही मेरा सच है और अगर तुम इसे झूठ मानती हो  तो ठीक है साथ रहकर  हमें किसी पाप का भागीदार नहीं बनना चाहिए . चलो घर वापस चलते हैं .’ ‘ नहीं न बाबा . इतनी जल्दी दिल छोटा  नहीं करते मेरे भोले प्रेमी महोदय  .  दुनिया के हर लेखक ने यह भी तो  लिखा है, जिसे हम सभी ने  कभी न कभी पढ़ा भी है कि   प्रेमिका की ना में भी उसकी हाँ  ही होती है . मैं तुम्हे प्यार करती हूँ , इसलिए भी तुम्हारे साथ घूमना और समय बिताना पसंद करती हूँ . प्रेमिका के मन की इतनी सी बात  भी नहीं समझते क्या ? वह अवाक् परन्तु आत्मीय दृष्टि से उसे निहारता रहा . ‘अब अपनी किताबों से बाहर निकलो और देखो मैना के उस जोड़े को , कैसे एक – दूसरे के साथ चुपचाप  अपनी भाषा में बतिया रहे है . चलो हम उनकी बातों को समझने की कोशिश करें .’ सुधा के हाथ अनजाने ही न जाने कब , सुधांशु के हाथों में आ गये और उनकी पकड़ मजबूत हो ती  गयी और उनके कदम मैना के जोड़े के करीब पहुँच गए .  वहां बैठने के कुछ देर बाद  सुधांशु  ने  धीमें से कुछ कहने के लिए होंठ खोले ही थे की सुधा ने  टोका , ” ” देखो फिर वही अपना पुराना राग मत अलाप देना , मुझे इस प्यारे से अल्हड़ जोड़े की बातें समझने दो .”  सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा  यह भी पढ़ें … घूरो , चाहें जितना घूरना हैं गैंग रेप   अनावृत  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क आपको आपको  कहानी  “राग पुराना”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, hindi stories, old pattern, short stories in hindi

बेटियों की माँ

आज फिर मेरी काम वाली देर से आयी । १२    बज गए थे ।  डेढ़ बजे बेटी को स्कूल से लेने जाना है । मैं बडबडाते हुए बर्तन मलने लगी । तभी दरवाजा खटका। कामवाली खड़ी थी।  ‘ इतनी देर से ‘ मैंने चिल्लाते हुए कहा  ।   वह चुपचाप रसोई में घुस कर अपना काम करने लगी । मैंने भी सोंचा आ तो  गयी ही है चीख चिल्लाकर क्यों अपना खून जलाऊँ । दूसरे कामों में व्यस्त होगी । रोज  की तरह सारा काम करने के बाद मैंने उसे चाय बनाकर दी । पर ये क्या उसकी आँखों में आँसू। मेरा मन द्रवित हो गया ,स्नेह से पूंछा ,  “क्या हुआ सरला क्यों दुखी हो”| क्या बताएं भाभी जी ……. वह सुबकते हुए  बोली …… कल रात आदमी से बहुत लड़ाई हुई । खाना भी नहीं खाया।   उसने लड़कियों की पढाई छुडवा दी।  सोचा था मैं तो बर्तन माज-माज कर किसी तरह अपना पेट भरती हूँ  पर कम से कम लड़कियाँ तो पढ़ जातीं , उन्हें तो मेरी तरह इस नरक में नहीं रहना पड़ता, दोनों पढाई में होशियार भी बहुत हैं। पर आदमी मान नहीं रहा ,कहता है की  देखो, आये दिन बच्चियों के साथ कुकर्म की घटनाएँ हो रही हैं । तू तो काम पर चली जाती है  स्कूल जाती बच्चियों को कोई ले गया तो ?  लड़कियां घर में ही रहेंगी पढ़ें चाहे ना पढ़ें ….. कम से कम सुरक्षित तो रहेंगी ।  मैं चुप थी, चाय का घूँट जैसे हलक से उतर ही न रहा हो |  मैं उसे क्या समझाती … इस ख़बरों के बाद से मैं भी तो अपनी बेटी को लेने स्वयं स्कूल जाने लगी थी।  हम दोनों एक ही  भय में जी रहे थे । नीलम गुप्ता  तुम्हारे बिना गैंग रेप   अनावृत यकीन आपको आपको  कहानी  “बेटियों की माँ  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: Rape, Crime, Crime against women, Victim, Fear, Daughter

पंडित जी

पंडितों के बारे में बचपन से हास-और उपहास की बाते ही सुनती रही थी | वो भोजन भट्ट होते हैं | कभी तोंद देखी  है उनकी ,चार पैसे दिखा दो तो पोथी पत्रा ले कर दौड़ते हुए चले आयेंगे | कोई काम नहीं है बस मला फेरो , अरे उस ज़माने में पंडित जब खाना खाने  आते थे तो इतना खा लेते थे |  चारपाई पर लेट कर जाते थे |  जो भी हो पंडितों की छवि बहुत बिगड़ी हुई थी | परन्तु एक घटना ने इनके बारे में फिर से सोचने पर विवश कर दिया |   लघु कथा – पंडित जी  हमारे इलाके में  एक मंदिर है , जहाँ के पंडित राधे श्याम जी  लगभग २० साल से पंडिताई कर कर रहे हैं | सुबह से शाम तक भगवान के भजन गाना , आरती , प्रशाद मंदिर की व्यवस्था में  एक कर्मठ योद्धा की तरह लगे रहते | उनसे मेरा ज्यादा परिचय तो नहीं था , पर  मेरा पंडित जी राम -राम कहना व्ए उनका प्रतिउत्तर में राम -राम कहना एक आत्मीय बंधन की शुरुआत थी | कभी -कभी वो खुद ही कुछ पूजा जाप आदि बता देते , या फिर क्या शास्त्र सम्मत तरीका है इसके बारे में भी बात करते |  एक  बार मंदिर जाने पर मेरे पास आये और धीमे स्वर में बहुत संकोच के साथ  बोले ,  ” मेरे बेटे की फीस में ३००० रूपये की कमी पड़ रही है , मंदिर में बहुत श्रद्धालु आते हैं सबसे परिचय है , फिर भी संकोच लगता है | हालांकि कुछ लोगों से कहा है पर ईश्वर की इच्छा उनके पास भी इस समय पैसे  नहीं हैं , अगर आप मदद कर सके तो … मैं बाद में वापस कर दूँगा ,बच्चे का साल बर्बाद हो जाएगा , २० साल से मंदिर की सेवा में हूँ , यहीं ,मैं आपको जुबान दे रहा हूँ … मैं आप के पैसे अवश्य लौटा दूंगा | मैंने घर आ कर पैसे निकाल कर उनको दे दिए क्योंकि मुझे उनकी बात में सच्चाई दिखी | मेरे साथ उस समय मेरी पड़ोसन भी गयी थीं , उन्होंने मुझसे कहा ,” कौन लौटाता है , आप उन पैसों को भूल जाइए, मुझे भी उस समय यही लगा कि हो सकता है ऐसा हो , फिर भी मुझे ये तसल्ली थी कि वो पैसे बच्चे की शिक्षा में लगे हैं | इसलिए शाम को मैंने पति को पूरी घटना बताते हुए कहा ,” मैंने एक बच्चे की शिक्षा के लिए वो पैसे दिए हैं , अगर वो नहीं लौटाते हैं तो ठीक है वो उनके बच्चे की शिक्षा में लग गए , अगर लौटा देते हैं तो मैं किसी दूसरे बच्चे की शिक्षा में वो पैसे लगा दूँगी … इसके बाद कई महीने बीत गए … मैंने उनसे कभी पैसों के बारे में बात नहीं की , वो स्वयं ही कहते रहे कि मैं लौटा दूँगा , लौटा दूँगा और मैं कोई बात नहीं कह कर आगे बढ़ जाती | करीब एक साल बाद वो मेरे पास आये और पैसे लौटते हुए बोले ,” आज ईश्वर की कृपा से मैं मुक्त हुआ , बहुत विपरीत परिस्थितियाँ आयीं, समय पर नहीं लौटा सका , पर अपना संकल्प सदा याद रहा , कागज़ में लिख कर रख लिया था | वो पैसे दे कर चले गए | मैंने वो पैसे किसी और बच्चे की शिक्षा में लगाने के लिए रख लिए | उनके अपने वचन के प्रति संकल्पित होने से  से मेरा मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया |  ———————————————–     यह भी पढ़ें … संवेदनाओं का मीडीयाकरण -नकारात्मकता से अपने व् अपने बच्चों के रिश्तों को कैसे बचाएं आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ? क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं आपको “पंडित जी “कैसे लगा  अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-pandit, hindu priest, 

सावधानी की सीख

होली की छुट्टी मे अतुल को घर आना था। बीमार मां को होली के त्योहार मे गुझिया बनानी पडेगी! इससे बेहतर मै खरीदकर ही ले जाता हूं ये सोच आफिस से लौटते हुऐ अतुल ने ATM से 2000रूपये निकाले और अपने पर्स मे रख अपने कन्धे पर टंगे पिठ्ठू बैग की अगली जेब मे रख मस्ती से चलते हुऐ मिठाई की दुकान पर पहुंच गुझिया के दो डिब्बे देने को कहा। मिठाई बढिया है ना इस बात की तसल्ली वास्ते ज्योहि झुका तभी भीडभाड मे कब चोर ने बैग से पर्स चोरी कर लिया अतुल को पता ही नही चला! मिठाई लेकर ज्योहि पैमेन्ट देने हेतु पर्स निकाला तो कलेजा धक्क से रह गया! दिल्ली जैसे NCR शहर मे इतना ऐतियात रखते रखते हुऐ भी अतुल के संग ये हादसा हो गया था। पर्स मे पैसो के संग संग दैनिक जरूरत का सामान भी चला गया था। ATM कार्ड क्रेडिट कार्ड, आधार कार्ड, पेन कार्ड, डाईविंग लाइसेस कार्ड वोटर कार्ड, मेटरो कार्ड सब एक ही झटके मे गायब हो चुका था। भाग कर बैक पहुंचा ATM बंद करवाया। पढ़ें -केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों ? FIR दर्ज करवायी! पर सब बेकार। दुखी मन से कुछ सोचने बैठा तभी अतुल के कानो मे मां की आबाज आयी…. कुछ दिन पहले ही मां ने हिदायत दी थी बेटा इतना सामान एक साथ पर्स मे मत रखो! पर मैने ही मां को ये कहकर चुप करा दिया था… अंजाने शहर मे रहता हूं इसकी जरूरत पडती रहती है! पर आज के नुकसान ने जीवन भर सावधान रहने की सीख दे दी थी। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … अच्छा नहीं लगता बोझ  आखिरी मुलाकात जिंदगी ढोवत हैं भगवान् बुद्ध के तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोक -कथा आपको    “ सावधानी की सीख “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read, short stories, precaution, lesson, thief

वादा

पिछले काफी दिनों से नीला तनाव में है | हर पल उसे एक डर भीतर ही भीतर खाए जा रहा है | क्या होगा ? आख़िर क्या होगा ? सवालों से घिरी नीला बिस्तर पर लेट जाती है | तनाव और थकान के कारण नींद उसे अपने आगोश में ले लेती है | सपनों के बादल मंडराने लगते हैं | चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा | नीला को इस अंधरे में कुछ नहीं दिखाई दे रहा है | वह बहुत घबरा रही है, मदद को पुकार रही है | पर कहीं कोई नहीं | चारों तरफ एक डरावनी ख़ामोशी पसरी है | बदहवास सी नीला इधर उधर भाग रही है , तभी दूर अँधेरे में उसे एक धुंधली सी रोशनी दिखाई देती है | वह उस ओर बढ़ती है|  अहसास हर कदम पर रोशनी गहरी हो रही हैं |करीब आने पर रोशनी एक झोंपड़ी के भीतर जलती दिखाई देती है | नीला तेज क़दमों से झोंपड़ी के पास पंहुच जाती है, पर दरवाजे के पास आकर रुक जाती है | उसकी सांसे तेजी से चल रही हैं | बहुत कोशिशों के बाद भी कदम आगे नहीं बढ़ रहे हैं | तभी झोंपड़ी के भीतर से एक आवाज आती है, घबराओ नहीं अन्दर आओ | नीला झोंपड़ी के अन्दर प्रवेश करती है | उसने देखा एक बच्ची उसकी ओर पीठ किए बैठी है | मुझे पता था माँ, तुम मुझे लेने जरुर आओगी | चाहे तुम कितने भी जुल्म सहो, पर तुम ही हो, जो मेरे बगैर नहीं रह सकती | आख़िर तुम मुझसे प्यार जो करती हो | थोड़ी खामोशी के बाद…| माँ क्यों खुद को परेशानी में डालती हो, मेरा मोह, तेरा जीवन बर्बाद कर देगा | कोई भी नहीं खड़ा होगा तेरे साथ | कब तक सहन करेगी | सारी ज़िन्दगी रोती रहेगी | तुझे जीना है, तो मेरा मोह छोड़ दे | यही तेरी और मेरी नियति है | यह कहकर वह बच्ची नीला की तरफ मुख कर, नीला की आँखों में ऑंखें डालकर एक मुस्कान फैंक देती है | नया नियम अचानक बच्ची के चारों ओर तेज धुँधर(मिट्टी का गुबार) सा उठता है | वह बच्ची उसी धूल के गुबार में डूबने लगती है | नीला अपना कदम बढ़ाने की कोशिश करती है, पर उसके कदम उठ नहीं रहे हैं | वह चिल्लाती है रुको ! अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाओ, बेटी | रोशनी लुप्त हो जाती है | एक बार फिर चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा | नीला जोर से चिल्लाती है इस बार उसकी नींद टूट जाती है | चेहरा पसीने से भरा है, सांसे तेज चल रही है, सारा शरीर जकड़ सा गया है | बड़ी हिम्मत कर, कमरे की लाइट जलाती है | विजय चैन की नींद सो रहा है | नीला चेहरे का पसीना पौंछ, टेबल पर रखे पानी की घूंट अपने भीतर भरती है | अपने आप से बात करते हुए कहती है | अब मुझे कोई नहीं रोक सकता | अब तक मेरे जहन में तुझे जन्म दूं या ना दूं यही सब चलता रहा है | पर अब तू ना डर बेटी, चाहे जो भी हो | मैं तुझे इस दुनियां में जरुर लाऊँगी | यह मेरा वादा है, बेटी || अर्जुन सिंह  यह भी पढ़ें … अच्छा नहीं लगता बोझ  आखिरी मुलाकात जिंदगी ढोवत हैं बदचलन आपको    “वादा“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read, short stories, promise, save girl child, girl child