एक महानसती थी “पद्मिनी”

लेखक:-पंकज प्रखर एक सती जिसने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया उसकी मृत्यु के सैकड़ोंवर्ष बाद उसके विषय में अनर्गल बात करना उसकी अस्मिता को तार-तार करना कहां तक उचित है | ये समय वास्तव में संस्कृति के ह्रास का समय है कुछ मुर्ख इतिहास को झूठलाने का प्रयत्न करने में लगे हुए है अब देखिये एक सर फिरे का कहना है अलाउद्दीन और सती पद्मिनी में प्रेम सम्बन्ध थे जिनका कोई भी प्रमाण इतिहास की किसी पुस्तक में नही मिलता| लेकिन इस विषय पर अब तक हमारे सेंसर बोर्ड का कोई भी पक्ष नही रखा गया है वास्तव में ये सोचनीय है |रानी पद्मिनी का इतिहास में कुछ इस प्रकार वर्णन आता है की “पद्मिनी अद्भुत सौन्दर्य की साम्राज्ञीथी और उसका विवाह राणा रतनसिंह से हुआ था एक बार राणा रतन सिंह ने अपने दरबार से एक संगीतज्ञ को उसके अनैतिक व्यवहार के कारण अपमानित कर राजसभा से निकाल दिया | वो संगीतज्ञ अलाउद्दीन खिलजी के पास गया और उसने पद्मिनी के रूप सौन्दर्य का कामुक वर्णन किया | जिसे सुनकर अलाउद्दीन खिलजी प्रभावित हुआ और उसने रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की ठान ली | इस उद्देश्य से वो राणा रतन सिंह के यहाँ अतिथि बन कर गया राणा रतन सिंह ने उसका सत्कार कियालेकिनअलाउद्दीन ने जब रतनसिंह की महारानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा प्रकट की तो रत्न सिंह ने साफ़ मना कर दिया क्योंकि ये उनके वंश परम्परा के अनुकूल नही था | लेकिनउस धूर्त ने जब युद्ध करने की बात कही तो अपने राज्य और अपनी सेना की रक्षा के लिए रतनसिंह ने पद्मिनी को सीधा न दिखाते हुए उसके प्रतिबिंब को दिखाने के लिए राज़ी हो गया जब ये बात पद्मिनी को मालूम पड़ी तो पद्मिनी बहूत नाराज़ हुईलेकिनजब रतनसिंह ने इस बात को मानने का कारण देश और सेना की रक्षा बताया तो उसने उनका आगृह मानलिया | 100 महावीर योद्धाओं और अन्य कई दास दासियों ओरपने पति राणा रत्न सिंह  के सामने पद्मिनी ने अपना प्रतिबिम्ब एक दर्पण में अलाउद्दीन खिलजी को दिखाया जिसे देख कर उस दुष्ट के मन में उसे प्राप्त करने की इच्छा और प्रबल हो गयीलेकिनये अलाउद्दीन खिलजी के लिए भी इतना सम्भव नही था |रतन सिंह ने अलाउद्दीन के नापाक इरादों को भांप लिया था | उसने अलाउद्दीन के साथ भीषण युद्ध किया राणा रतन सिंह की आक्रमणनीति इतनी सुदृणथी की अल्लौद्दीन छ: महीने तक किले के बाहर ही खड़ा रहालेकिनकिले को भेद नही सका अंत में जब किले के अंदर पानी और भोजन की सामग्री ख़त्म होने लगी तो मजबूरन किले के दरवाजे खोलने पडे राजपूत सेना नेकेसरिया बाना पहनकर युद्ध कियालेकिनअलाउद्दीन खिलजी ने रतन सिंह को बंदी बना लिया और चित्तौड़गढ़ संदेसा भेजा की यदि मुझे रानी पद्मिनी दे दी जाए तो में रतनसिंह को जीवित छोड़ दूंगा जब पद्मिनी को ये पता चला तो उन्होने एक योजना बनाकर अलाउद्दीन खिलजी के इस सन्देश के प्रतिउत्तर स्वरुप स्वीकृति दे दीलेकिनसाथ ये भी कह भिजवाया की उनके साथ उनकी प्रमुख दासियों का एक जत्था भी आएगा अलाउद्दीनइसके लिए तैयार हो गया | पद्मिनी की योजना ये थी की उनके साथ दासियों के भेस में चित्तौड़गढ़ के सूरमा और श्रेष्ठ सैनिक जायेंगे ऐसा ही हुआ जैसी ही अल्लुद्दीन के शिविर में डोलियाँ पहुंची उसमे बैठे सैनिकों ने अल्लौद्दीन खिलजी की सेना पर धावा बोल दिया उसकी सेना को बड़ी मात्र में क्षति हुई और राणा रतनसिंह को छुड़ालिया गया | इसका बदला लेने के लिए अलाउद्दीन ने पुन: आकरमण किया |जिसमे राजपूत योद्धाओं में भीषण युद्ध किया और देश की रक्षा के लिए अपने प्राण आहूत कर दिए उधर जब रानी पद्मिनी को मालुम पढ़ा की राजपूत योद्धाओं के साथ राणा रतन सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए है तो उन्होंने अन्य राजपूत रानियों के साथ एक अग्नि कुंद में प्रवेश करजोहर(आत्म हत्या ) कर अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु प्राण दे दिए लेकिनजीते जी अपनी अस्मिता पर अल्लौद्दीन का साया तक भी नही पडने दिया |” ये इतिहास में उद्दृत हैलेकिनआज के तथा कथित लोग अपने जरा से लाभ के लिए इस महान ऐतिहासिक घटना को मनमाना रूप देने पर आमादा है |इसके लिए सरकार को और हमारे सेंसर बोर्ड को उचित कदम उठाने चाहिए और सिनेमा क्षेत्र से जुडे लोगों को जो भी ऐतिहासिक फिल्मी बनाना चाहते है उनके लिए ये अनिवार्यकरदेना चाहिए की वो इतिहास से जुडे उस व्यक्ति विशेष के बारे में विश्वसनीय दस्तावेजों का अध्ययन करे और फिर उन्हे लोगों के सामने प्रस्तुत करें क्यौंकी इतिहास से जुडे किसी भी घटना या व्यक्ति के विषय में मन माना कहना या गड़ना उचित नही है इसका समाज और राष्ट्र पर नकारात्मक प्रभाव जाता है और देश की ख्याति धूमिल होती है |

हम सबकी जिम्मेदारी, मिलकर बनाये दुनियाँ प्यारी

           प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक   मानव जाति के अन्नदाता किसान को जमीन को कागजी दांव-पेच से आगे एक महान उद्देश्य से भरे जीवन की तरह देखना चाहिए। कागजी दांव-पेच को हम एक किसान की सांसारिक माया कह सकते हैं, लेकिन अब जमीन पर पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा सांसारिक मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि जीवन का एक मकसद बनकर अन्नदाता तथा प्रकृति-पर्यावरण से भी जुड़ा रहे। किसान को अपने उत्तम खेती के पेशे का उसे पूरा आनंद उठाना है। सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है। जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे। जमीन-धरती हमारी माता है। परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। केवल धरती मां के एक टूकड़े से नहीं वरन् पूरी धरती मां से प्रेम करना है। धरती मां की गोद में खेलकूद कर हम बड़े होते हैं। धरती मां को हमने बमों से घायल कर दिया है। शक्तिशाली देशों की परमाणु बमों के होड़ तथा प्रदुषण धरती की हवा, पानी तथा फसल जहरीली होती जा रही है।                      अक्सर हमारी पूरी उम्र गुजर जाती है और यह तय ही नहीं कर पाते कि हम यहां हैं क्यों? इससे हमारी जीवन की गुणवत्ता दोयम दर्जे की हो जाती है। गुणवत्ता सुधारनी है, तो हमें पहले-पहल बस इतना करना चाहिए कि इसका एक उद्देश्य तय करें। इतने भर से जीवन में आमूल-चूल बदलाव आ सकता है। पैसा, करियर आदि चीजों से हटकर बस हम इतना ठान लें कि कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि उसके पूरा होने के बाद शांति और तसल्ली के साथ मर पाएं, तो समझिए जीवन यात्रा ठीक होगी। जीवन का मकसद सदैव हमारे सामने होने से राह की बाधायें परेशान नहीं करती हैं वरन् वे जीवन के सफर में एक नया अनुभव छोड़ जाती है। प्रत्येक क्षण में मनुष्य के लिए बहुत कुछ अच्छा है। वर्ष में 1 जनवरी का केवल एक दिन ही नया नहीं है वरन् प्रत्येक सुबह एक नया दिन तथा रात्रि में मृत्यु की गोद में सोने का अहसास लेकर आती है।             ओलंपिक में नौका रेस के मुकाबले के दौरान नाविक प्रतियोगी लाॅरेन्स एकाएक अपने घायल प्रतियोगी की मदद के लिए रूक गए। नतीजा यह हुआ कि वह रेस में सबसे पीछे रहे। उन्होंने जीतने की इच्छा से अधिक दूसरे के जीवन को महत्व दिया, इसलिए उनके लिए सबसे अधिक तालियां बजी। उन्होंने वह हासिल कर लिया, जो जीतने वाले के लिए एक सपना होता है। बर्तोल्त ब्रेख्त अपनी कविता में कहते हैं- हमारा उद्देश्य यह न हो कि हम एक बेहतर इंसान बने, बल्कि यह हो कि हम एक बेहतर समाज से विदा ले। रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को समय के किनारे पड़ी हुई ओस की भांति हल्के-हल्के नाचने दे। यह नाच तभी हो सकता है, जब हमारा मन ओस की तरह हल्का हो। शुद्ध, दयालु तथा प्रकाशित हृदय हो। हृदय में परहित के लिए जगह हो। आध्यात्मिक गुरू तेजश्री कहते है कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी हमें दिखाई देती है वरन् दुनिया वैसी है जिस दृष्टिकोण-विचार से हम उसे देखते हैं।             पंजाब केसरी के वरिष्ठ नागरिक केसरी क्ल्ब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चैपड़ा के अनुसार पिछले दिनों मैंने काॅफी टेबल बुक ‘बेटिया’ लांच की, जिसमें देश के हर फील्ड से प्रसिद्ध बेटियां, चाहे वह राजनीतिक, स्पोट्र्स, एक्टिंग, सामाजिक, पत्रकारिता क्षेत्र को शामिल किया, जिसका उद्देश्य था कि देश की हर आम-खास बेटी जाने कि वह किसी से कम नहीं, वह भी उनकी तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती है। आज भ्रूण हत्या करने वाले भी सोच लें कि बेटी है तो परिवार, समाज, देश है। श्रीमती किरण चैपड़ा के नारियों तथा वरिष्ठ नागरिकों को आगे बढ़ाने के उत्कृष्ट जज्बे को लाखों सलाम।             बुढ़ापा जीवन का एक अटूट सत्य है। बुढ़ापा और गरीबी से जिंदगी अभिशाप बन जाती है। हम बुजुर्गों का ऐसा सहारा बनें, ताकि उन्हें बुढ़ापा अभिशाप नहीं अनुभवों का खजाना महसूस हो। आओ ऐसा संसार बसाएं जहां सुखी-दुखी लोग अपने आपको अकेला, असहाय न महसूस करें और आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें। वृद्धजनों का सम्मान होना चाहिए। सरकारी तथा निजी संस्थाओं को ओल्ड ऐज होम अधिक से अधिक बनाना चाहिए। ताकि वरिष्ठ नागरिक अपने हम उम्र के लोगों के साथ मजे से हर पल जीवन जीते  हुए संसार से विदा हो।             23 साल की उम्र में रितेश बनें अरबपति। छोटी सी उम्र सिम कार्ड बेचकर गुजारा करने वाले रितेश अग्रवाल आज भारत के सफलतम उद्यमियों में से एक हो गए हैं। एक समय रितेश इंजीनियरिग की परीक्षा देना चाहते थे परंतु आज मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे देश के नामी अरबपतियों में से एक हैं। वह ओयो रूम्स के संस्थापक है। कुदरत में भरपूर है। जैसा हम चाहते हैं तथा वैसा करते हैं तो सफलता हमारे कदम चूमती है। सकारात्मक दृष्टिकोण का भी सफलता में काफी श्रेय है। श्रेष्ठ भावना यह है कि कैसे करें ईश्वर की नौकरी? रितेश की कहानी एक जिम्मेदार इंसान की कहानी है समझ मिलने के बाद। बड़बोले बनने से अच्छा है कि सच्चे कर्मयोगी बनने की कला सीखे।             असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर चयनित हुए उपदेश कुमार वत्स का कहना है कि सिर्फ आगे देखेंगे, तभी आगे बढ़ पाएंगे। मैनेज करना आपके हाथ में होता है। यह बस इस पर निर्भर करता है कि आपकी मानसिकता तैयारी को लेकर कितनी सकारात्मक है। एक समय मेरे मन में जाॅब छोड़कर तैयारी करने का विचार आया, लेकिन फिर लगा कि मैं मैनेज कर सकता हूं और करके रहंूगा। आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो पूरे मन से करें। फोकस के अभाव में की गई तैयारी, आपको पुनः उसी जगह खड़ा कर देती है, जहां से आपने शुरूआत की थी। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती।             बहादुर बच्चों से मुखातिब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें मन की शक्ति मजबूत बनाने की जरूरत है। इस दौरान पीएम ने 25 बच्चों को गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय वीरता सम्मान … Read more

तन की सुंदरता में आकर्षण, मन की सुंदरता में विश्वास

सुंदर काया और मोहक रूप क्षणिक आकर्षण पैदा कर सकते हैं लेकिन आंतरिक सुंदरता सामने वाले के मन को हमेशा के लिए वशीभूत कर लेती है। जो लोग रूप पर टिके रह जाते हैं वे अपनी आंतरिक क्षमताओं की तलाश नहीं कर पाते। रूप उनके लिए एक ऐसा जाल बन जाता है जिसे तोडऩा आसान नहीं होता। इसके उलट शरीर से निर्विकार रह कर मन की ताकत पर एकाग्र रहने वाले लोग महानता के शिखर चढ़ जाते हैं।  शक्‍ल से खूबसूरत लोग दिल से भी खूबसूरत हों, ऐसा जरूरी नहीं है। आत्‍मा की सुंदरता पाने के लिए तो व्यक्ति में गुणों का होना जरूरी है। दिखने में बुरा होते हुए भी अगर कोई गुणवान और प्रतिभावान हो तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि जीवन की लंबी दौड़ में साँझ की तरह ढलते रूप की नहीं, बल्कि सूरज की तरह अँधेरे में उजालों को रोशन करने वाले गुणों की कद्र होती है। चरि‍त्र अच्‍छा हो और सीधा-साधा मन हो तो आप सबको जीत सकते है। हमारे संस्कार हमें अंदर से सुंदर बनाते हैं और इन संस्कारों के बि‍ना तो ऊपरी सुंदरता कि‍सी काम की नहीं है। मन विचार करता है और संकल्प लेता है। अच्छे संकल्प मन को शुद्ध करते हैं और शक्तिशाली बनाते हैं। अच्छे विचार और अच्छे संकल्प मन को लगातार निर्मल करते रहते हैं। मन की सुंदरता के लिए ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। जिस तरह  शरीर तभी तक सेहतमंद और सुंदर रह सकता है जब तक कि उसके अंदर का मैल बाहर निकलता रहे,उसी तरह मन की सुन्दरता के लिए भी यह जरूरी है कि मन का मेल बाहर निकलता रहे. हमारे भीतर बहुत से नकारात्मक और फ़ालतू विचार जमा हो जाते हैं और प्रायः वही हमारे मन में घूमते रहते हैं,जिससे मानसिक सौंदर्य प्रभावित होता है.इसलिए हमें निरंतर कुविचारो से मुक्ति के लिए प्रयासरत रहना चाहिए.  जीवन को सुंदर बनाने के लिए सुंदर मन की आवश्यकता है। यदि मन पवित्र, स्वस्थ्य तथा मजबूत है तो जीवन स्वयं ही सुंदर और आनंदमय बन जाता हैं। मन शरीर को नियंत्रित करता है और इस प्रकार हमारे कर्मो को निर्धारित करता है। हमारा व्यवहार ही प्रशंसा व निंदा का कारण बनता है। गुरू, पीर, पैगम्बरों तथा धार्मिक ग्रंथों ने अपना संदेश मन को ही दिया है। मन वाहन में स्टेयरिंग की भांति है। मन ही मानव को इधर-उधर घुमाता है अथवा सुरक्षित रूप से लक्ष्य पर  पहुंचाता है। जब मन को पथ का ज्ञान हो जाता है, तब लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य ही हो जाती है। वाह्य सौंदर्य भ्रामक है, वास्तविक सौंदर्य तो आंतरिक है। यही वजह है कि भगवान श्रीराम ने शबरी को भामिनी कहकर संबोधित किया था। भामिनी का भाव सुंदर स्त्री से है। जबकि यह सभी जानते हैं कि शबरी की बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक सुंदरता की ख्याति है। बाहरी सौंदर्य तो क्षणभंगुर है। आयु के साथ-साथ ढल जाता है। लेकिन मन की सुंदरता हमेशा बनी रहती है। प्राचीन काल में सौंदर्य की परिभाषा संतुलित थी लेकिन आधुनिकता के दौर में इसका पैमाना भी बदल गया है। सभी ने सादा जीवन और उच्च विचार वाली गरिमयी पद्घति को छोड़कर भौतिकतावादी शैली को गले लगा लिया है। आजकल सुंदरता के मायने ही बदल गए हैं। वाह्य सुंदरता की होड़ में आंतरिक सुंदरता अपना स्थान खोती जा रही है.तन को सुन्दर बनाने की दौड़ में मन का सौंदर्य लोग भूलते जा रहे है,जबकि मन की सुन्दरता सिर्फ दूसरो के लिए ही नहीं ,बल्कि खुद के लिए भी आनंददायी होती है . ओमकार मणि त्रिपाठी 

क्‍या सिखाता है कमल का फूल?

कमल के फूल को योग और अध्‍यात्‍म में एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है। योगिक शब्दावली में बोध व अवबोधन के अलग- अलग पहलुओं को हमेशा से कमल के तरह-तरह के फूलों से तुलना की गई है। शरीर के सात मूल चक्रों के लिए कमल के सात तरह के फूलों को प्रतीक चिह्न माना गया है। कमल के फूल को एक प्रतीक के रूप में इसलिए चुना गया है क्योंकि जहां कहीं कीचड़ और दलदल बहुत गाढ़ा होता है वहां कमल का फूल बहुत अच्छी तरह से खिल कर बड़ा होता है। जहां कहीं पानी गंदा हो और मल-कीचड़ से भरा हो, कमल वहीं पर सबसे बढ़िया उगता है। जीवन ऐसा ही है। आप दुनिया में कहीं भी जायें, और तो और अपने मन के अंदर भी, हर तरह की गंदगी और कूड़ा-करकट भरा मिलेगा। अगर कोई कहे कि उसके अंदर मैल नहीं है तो फिर या तो उसने अपने अंदर नहीं झांका या फिर वह सच नहीं बोल रहा है, क्योंकि मन तो आपके वश में है ही नहीं। इसने वह सब-कुछ बटोर लिया है जो उसके रास्ते आया है। आपके पास यह विकल्प तो है कि आप इसका इस्तेमाल कैसे करें लेकिन यह विकल्प नहीं है कि आपका मन क्या बटोरे और क्या छोड़े। आपके मन में जमा हो रही चीजों को ले कर आपके पास कोई विकल्प नहीं है। आप बस यही तय कर सकते हैं कि आप किस तरह से अपने मन की जमापूंजी का इस्तेमाल करें। दुनिया में हर तरह की गंदगी और कूड़ा-करकट है और यह सारा मैल, यह सारा कूड़ा आपके मन में समाता ही रहता है। मल और कूड़ा-करकट देखने से कुछ लोगों को एलर्जी हो जाती है। उनको गंदगी और कूड़ा-करकट गवारा नहीं होता इसलिए वे खुद को इन सब चीजों से दूर ही रखते हैं। वे सिर्फ उन्हीं दो-तीन लोगों के साथ मिलते-जुलते, उठते-बैठते हैं, जिनको वे एकदम सही मानते हैं और बस यही लोग उनकी जिंदगी में रह जाते हैं। आज दुनिया में बहुत लोग ऐसा कर रहे हैं क्योंकि उनको सारी गंदी, सारी निरर्थक चीजों से एलर्जी है। वे एक कोठरी में बंद जिंदगी-सी जी रहे हैं। कुछ दूसरे तरह के लोग ऐसे हैं जो सोचते हैं कि “दुनिया मल-दलदल और कूड़े-करकट से भरी-पटी है तो चलो मैं भी इस कीचड़ का ही हिस्सा बन जाता हूं” और फिर वे भी उसी दलदल में मिल जाते हैं। लेकिन एक और भी संभावना है और वह यह कि आप इस कूड़े-करकट और मल-दलदल को खाद की तरह इस्तेमाल करें और खुद को एक कमल के फूल की तरह खिलायें। कमल के फूल ने इस मल, गंदगी और कूड़े-करकट को किस तरह एक सुंदर और सुगंधित फूल में रूपांतरित कर दिया है! आपको एक कमल के फूल की तरह बनना होगा और गंदे हालात से अनछुए बाहर निकल कर कमल के फूल की तरह खिलना होगा। गंदे-से-गंदे हालात में होने के बावजूद आपको अपनी खूबसूरती और खुशबू बरकरार रखने के काबिल बनना होगा। अगर किसी के पास ऐसी कला है तो वह अपने जीवन-दुख के दलदल में बिना डुबे, उससे बिल्‍कुल अछूता उपर-उपर निकल जाएगा और जो व्यक्ति इस काबिलियत को पहचान कर उसको नहीं तराशता उसको यह जिंदगी जाने कितने तरीकों से तोड़-मरोड़ कर खत्म कर देती है। हर इंसान के अंदर कमल के फूल की तरह खिलने और जीने की काबिलियत होती है। ओमकार मणि त्रिपाठी 

बिना गुनाह की सजा भुगत रहे हैं शिक्षा मित्र

उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित किये गए शिक्षामित्रो को एक साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.जहाँ एक ओर प्रदेश में 1.35 लाख सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रो का समायोजन हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है,वहीँ प्रदेश सरकार ने अब उनके वेतन पर भी रोक लगा दी है.वेतन पर रोक लगने से शिक्षामित्रो के त्यौहार फीके हो गए हैं.जहाँ अन्य लोग दीपपर्व की तैयारियां कर रहे हैं,वंही शिक्षामित्र इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उनकी नौकरी रहेगी या जाएगी.एनसीईटी से कुछ राहत मिलने की खबरे जरूर आयी हैं,लेकिन जब तक कोई ठोस निर्णय न हो जाये,तब तक शिक्षामित्र दुविधा में ही रहेंगे. बात सिर्फ समायोजन रद्द होने या वेतन रोके जाने तक ही सीमित नहीं है,शिक्षामित्रो को बिना किसी गुनाह के जगहंसाई का भी सामना करना पड़ रहा है.कुछ स्कूलों में प्रधानाध्यापक शिक्षामित्रो पर कटाक्ष कर रहे हैं और उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर कराने को लेकर आगे-पीछे हो रहे हैं.इसके अलावा शिक्षामित्रो को घर-परिवार और समाज की भी फब्तियां सुनने पड़ रही हैं. कई ऐसे भी शिक्षामित्र हैं,जिन्होंने सहायक अध्यापक बनने की उम्मीद में नौकरी और रोजगार के कई दूसरे अच्छे-अच्छे मौके छोड़ दिए और काफी मशक्कत के बाद सहायक अध्यापक बनने के बाद एक बार फिर मायूसी का सामना करना पड़ा. वेतन रोकने का आदेश आने के बाद से हजारों शिक्षामित्र आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.यही वजह है कि प्रदेश और केंद्र सरकार के ढुलमूल रवैये को लेकर शिक्षामित्रो में काफी रोष व्याप्त है.ज्यादातर शिक्षामित्र हर दिन अपने पक्ष में किसी अनुकूल खबर का इंतज़ार करते हैं और कोई राहत की खबर न मिलने से फिर मायूस होकर अगले दिन का इंतज़ार करते हैं.मुश्किल यह है कि सरकार ने आधिकारिक रूप से अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वे अपने-अपने विद्यालय जाएँ या न जाएँ और जाएँ तो किस हैसियत से जाएँ.उल्लेखनीय है कि तकनीकी तौर पर समायोजित शिक्षामित्र इस समय न तो सहायक अध्यापक,क्योंकि सहायक अध्यापक बनते ही उनका शिक्षामित्र पद समाप्त हो गया था. कुल मिलकर शिक्षामित्र बिना किसी गलती के सजा भुगत रहे हैं.उन्हें सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित करने का निर्णय प्रदेश सरकार ने लिया था और यदि प्रदेश सरकार ने अपने अधिकारों का उल्लघन किया है,तो इसमें शिक्षामित्रो का क्या दोष है.प्रकाशपर्व दीपावली के पहले यदि 1.35 लाख शिक्षामित्रो को इस तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है,तो निश्चित रूप से उसके लिए सरकारें जिम्मेदार हैं.हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार को इस मामले को लेकर जिस तरह की तत्परता दिखानी चाहिए थी,वह उसने नहीं दिखाई.उधर एनसीईटी भी आधिकारिक रूप से अपना पक्ष घोषित करने में विलम्ब कर रहा है.यदि उसे किसी भी तरह की राहत देनी है,तो जल्द ही उसकी सार्वजानिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए.कुल मिलकर दोनों सरकारों और सम्बंधित विभागों को शिक्षामित्रो की वेदना को गंभीरता से लेना चाहिए और जल्द से जल्द अपना रूख साफ करना चाहिए,जिससे शिक्षामित्रो के मन से संशय दूर हो सकें. ओमकार मणि त्रिपाठी 

कहाँ हो -मै बैंक /डाक घर में हूँ

संजय वर्मा ‘दृष्टि ‘ पुराने 500 व  1000  की करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं होने के बाद  नए 500 व् 2000 के करेंसी नोट के चलन से भ्रष्टाचार  ,नकली करेंसी रोकनेआदि हेतु कारगार साबित होगा  किन्तु कुछ व्यवहारिक परेशानी का सामना आम लोगो से लेकर खास लोगो  करना पड रहा है । धीरे धीरे इसका भी कुछ न कुछ समाधान अवश्य निकलेगा ही । टीवी पर करेंसी नोट बदलवाने व् पुराने करेंसी नोट बदलवाने की खबरे प्रसारित हो रही और  फेसबुक -वाट्सअप पर इसके त्वरित समाचार के लिए  और समाधान हेतु घर परिवार की नजरें ताजे समाचारों हेतु मानों पलक पावड़े लिए बैठी हुई है । तभी घर के अंदर से पति महोदय को पत्नी ने आवाज लगाई -नहा  कर बाजार से सब्जी -भाजी ले आओ किन्तु पति महोदय को लगा फेस बुक का चस्का । वे फेस बुक के महासागर में तैरते हुए मदमस्त हुए जा रहे । बच्चे पापा से स्कूल ले जाने की जिद कर रहे थे  की स्कूल  में देर हो जाएगी । काम की सब तरफ से पुकार हो रही मगर जवाब बस एक मिनिट । नाइस ,वेरी नाइस की कला में माहिर हो गए थे । मित्र की संख्या में हजारों  इजाफा से वे मन ही मन खुश थे किन्तु पडोसी को चाय का नहीं पूछते इसका यह भी कारण हो सकता उन्हें फुर्सत नहीं हो । दोस्तों में काफी ज्ञानी हो गए थे । मित्र भी सोचने लगे कि यार ये इतना ज्ञान कहा से लाया इससे पहले तो ये हमारे साथ दिन भर रहता और हमारी देखी  हुई फिल्म की बातें समीक्षा के रूप में सुनता रहता था । एक दिन मोहल्ले वाले मित्रों ने सोचा इनके घर चल कर के पता किया जाए ठण्ड में गरमागरम चाय भी मिल जायगी । मित्रों ने घर के बाहर लगी घंटी  दो चार बार बजाई । अंदर से आवाज आई जरा देखना कौन आया है ।  उन्हें उठ कर  देखने की  भी फुरसत नहीं मिल रहे थी । दोस्तों ने कहा यार आज कल दिखता ही नहीं क्या बात है । हमने सोचा कही बीमार तो नहीं हो गया हो इसलिए खबर लेने और करेंसी 500 ओर 1000 रूपये बंद होने और नए 500 व् 2000 की नै करेंसी नोट आगये की खबर देने भी  आये है ।पता नहीं दिख नहीं रहा तो शायद खबर मालूम न हो । घर में देखा तो भाभीजी वाट्सअप में अपने रिश्तेदारों को त्योहारों की फोटो सेंड करने में सर झुकाये तल्लीन और कुछ बच्चे भी इसी मे लगे थे । अब ऐसा लग रहा था की फेसबुक और वाट्सअप में जैसे मुकाबला हो रहा हो । घर के काम का समय मानो विलुप्तता की कगार पर जा खड़ा हुआ हो । सब जगह चार्जर लटक रहे थे । मोबाइल यदि कही भूल से रख दिया और नहीं मिला तो ऐसा लगता जैसे कोई अपना लापता हो गया हो और दिमाग में चिड़चिड़ापन ,हिदायते ,उभर कर आना  मानों रोज की आदत बन गई हो । चार्जिग करने के लिए घर में ही होड़ होने लगी । बैटरी लो होजाने   से सब एकदूसरे को सबुत पेश करने लगे । वाकई इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रगति हुई किन्तु लोग रिश्तों और दिनचर्या में कम ध्यान देकर अधिक समय और सम्मान  फेस बुक और वाट्सअप और मोबाइल पर केंद्रित करने लगे है । उधर 500 और 1000 हजार की करेंसी बदलवाने की चिंता और नए मिलने वाले नोटों का इंतजार जिससे घर के रुके काम सुचारू रूप से गति पकड़ले । गांव -शहर में करेंसी  बदलवाने को ले जाते हुजूम से बैंक और डाकघर चर्चित हुए वही कोई परिचित किसी से पूछे की आप कहा हो। वो एक ही पता बता रहा है मै बैंक /डाक घर में हूँ ।  संजय वर्मा “दॄष्टि “ मनावर ( धार)  Attachments area

सोनम , आयशा या एरिका – आखिर महिलाओं की सरेआम बेईज्ज़ती को कब तक मजाक समझते रहेंगे हम

वंदना बाजपेयी अभी कुछ दिन पहले जब सोशल मीडिया देश नोट बंदी जैसे गंभीर मुद्दे पर उलझा हुआ था | हर चौथी पोस्ट इसके समर्थन या विरोध से जुडी थी कुछ नोट बंदी के कारण भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन में लगे थे | नए नोटों की किल्लत थी | और लंबी कतारों से जूझते हुए लोगों को अपना ही कैश मिल रहा था | नए नवेले २००० के नोट तो सब लोगों को दिखे ही नहीं थे | तभी एक सिरफिरे ने नए – नए दो हज़ार के नोट पर लिख दिया ” सोनम गुप्ता बेवफा है ” | देखते ही देखते ये पोस्ट वायरल हो गयी |सोनम गुप्ता नेशनल हास्य का विषय बन गयी | नोट बंदी के गहन विवेचन में व्यसत लोग अचानक एक्टिव हो गए , ठीक वैसे ही जैसे मस्ताजी के क्लास छोड़ते ही बच्चे शोरगुल में व्यस्त हो जाते हैं | पर क्या बड़ों की इस बचकाना हरकत की बच्चों की मासूमियत से तुलना की जा सकती है | वो भी तब जब मुद्दा महिलाओं के सम्मान से जुडा हो | इस पोस्ट के वायरल होते ही इतिहास खंगाले जाने लगे | की सबसे पहले किसी ने १० के नोट पर “सोनम गुप्ता बेवफा है “लिखा था | फिर अन्य नोटों पर भी यही लिखा जाने लगा | हालांकि किसी को नहीं पता की ये सोनम गुप्ता कौन है | फिर भी लोग लगे मजाक उड़ाने | कई वेबसाईट ने तो उसकी पूरी कहानी छाप दी | जाहिर है वो मनगढ़ंत थी | किसी ने बताया की सोनम गुप्ता की क्या मजबूरी थी की वो बेवफा हो गयी | तो किसी ने सोनम गुप्ता की बफवाफी को सही ठहराते हुए सोनम का बचाव किया |तो कोई येन केन प्रकारें सोनम गुप्ता को बेवफा सिद्ध करने में जुट गया |सोनम गुप्ता एक ऐसा नाम है जो रातों रात सबकी जुबान पर चढ़ गया | एक सॉफ्ट ड्रिंक कम्पनी ने तो यहाँ तक घोषणा कर दी की कोई महिला जिसका नाम सोनम गुप्ता है उनके आउटलेट पर आये तो वो उसे फ्री कोल्ड ड्रिंक पिलायेंगे |जो भी हो सोनम गुप्ता एक ऐसा प्रसिद्द नाम बन गयी | जिसे कोई नहीं जानता पर जिसे सब जानते हैं | हंसी मजाक के बीच कभी सोंचा है की क्या ये उन महिलाओं के लिए पीड़ा दायक नहीं है जिनका वास्तव में नाम सोनम गुप्ता है | जब कोई मित्र परिचित उन्हें सोनम गुप्ता कह कर भीड़ में पुकारता होगा तो सभी सर उस और मुद जाते होंगे | या कोई अजनबी उनका नाम पूंछता तो उसके चरे पर एक शरारती मुस्कान आ जाती होगी | हंसी मजाक के बच्च सोनम गुप्ता पर क्या गुज़रती होगी इसकी किसे परवाह है | बात सिर्फ सोनम गुप्ता तक ही सीमित नहीं है | महिलाओ पर ही ज्यादातर चुटकुले बनते हैं | उनमें पत्नी व्अ प्रेमिकाओं पर बन्ने वाले चुटकुले सबसे ज्यादा हैं | प्रेमिकाओं को तो बात – बात पर बेवकूफ व् पत्नियों को अत्याचारी और पति की संपत्ति से प्यार करने वाली दर्शाना आम बात है | अगर आप हास्य के धारावाहिक देखे तो उसमें भी ज्यादातर पुरुष महिला बन कर स्त्री शरीर का मजाक उड़ाते हुए फूहड़ हास्य पैदा करते हैं | स्त्री का शरीर अपमान का विषय बन जाता है | कभी चूड़ियाँ पहन रखी हैं क्या ? कह कर महिला को अक्षम व् कमतर करार दे दिया जाता है |अभी कुछ समय पहले एक विज्ञापन आता था जिसमें एक खास डियो के महक से स्त्री पुरुष की दीवानी हो जाती है | मजे की बात यह है की उस स्त्री को शिक्षित दिखया गया है |तो क्या शिक्षित स्त्री इतनी मूर्ख होती है की वो पुरुष के गुणों को परखने की जगह उसके डीयो पर मर मिटती है | पुरुषों के विज्ञापनों में महिलाओं का ज्यादातर इसी रूप में इस्तेमाल होता है | क्या ये शर्मनाक नहीं है | ये सब सोनम गुट बेवफा है के आगे की कड़ियाँ ही हैं | मेरी एक मित्र ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से प्रश्न किया था की हमेशा मुन्नी बदनाम , शीला जवान या सोनम गुप्ता बेवफा क्यों हो जाती है | क्यों ऐसा नहीं होता की पप्पू जवान , रमेश बदनाम या सुरेश बेवफा हो जाए | शायद ऐसा कभी नहीं होगा | क्योकि पुरुषों को तो हम वैसा मान कर उन्हें क्लीन चित दिए रहते हैं परन्तु स्त्री के लिए ये शब्द आज भी अपमान का विषय बने हुए हैं | युग बदले परन्तु सीता और अग्नि परीक्षा से स्त्री का रिश्ता वही का वही रहा | पुरुषों को हर बात के लिए बैजात बरी कर के स्त्रियों को उसी कटघरे में खड़ा कर आरोप लगाना मज़ाक का नहीं बहस का मुद्दा होना चाहिए | जहाँ तक नोट पर लिखने का सवाल है उसे तो रिजर्व बैंक ने प्रतिबंधित कर दिया है | नए आदेश के अनुसार अब लिखे हुए नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे | उसने लोगों को आगाह भी किया है की आप लिखे हुए नोट न स्वीकारे | इस आदेश के बाद भविष्य में सोनम गुप्ता अपमानित होने से बच जायेगी |पर क्या सामाजिक रूपसे हम सोनम , आयशा या एरिका को अपमानित करने की आदत से मुक्त हो पायेंगे | लाख टेक का सवाल अब भी वहीं है की महिलाओं की सरेआम बेज्जती को कब तक मजाक समझते रहेंगे हम ?

हमारी ब्रा के स्ट्रैप को देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ” भाई “

अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दी?’ तौलिये से ढंको इसे। ऐसा एक मां अपनी 13-14 साल की बेटी को उलाहने के अंदाज में कहती है। ‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है’, कहते हुए एक लड़की अपनी सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर ब्रा का स्ट्रैप ढंक देती है। ‘सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गए हैं।’ ‘ढंग से दुपट्टा लो, इसे गले में क्यों लपेट रखा है?’ ‘लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।‘ ‘हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, घरेलू लड़की चाहिए।‘ ‘नकद कितना देंगे? बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।‘ ‘दिन भर घर में रहती हो। काम क्या करती हो तुम? बाहर जाकर कमाना पड़े तो पता चले।‘ ‘मैं नौकरी कर रहा हूं ना, तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत? अच्छा, चलो ठीक है, घर में ब्यूटी पार्लर खोल लेना।‘ ‘बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं कि तुम घर की जिम्मेदारियां भूल जाओ। औरत होने का मतलब समझती हो तुम?’ ‘जी, मैं अंकिता मिश्रा हूं। शादी से पहले अंकिता त्रिपाठी थी। यह है मेरा बेटा रजत मिश्रा।‘ ‘तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूं? मैं सेक्स नहीं करूंगा क्या?’ ‘कैसी बीवी हो तुम? अपने पति को खुश नहीं कर पा रही हो? बिस्तर में भी मेरी ही चलेगी।’ ‘तुम्हें ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई? वरजिन नहीं हो तुम?’ ‘तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो? इससे पहले कितनों के साथ सोई हो?’ ‘तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे? लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो। तुम पहल करोगी तो तुम्हारी इमेज खराब होगी।‘ ‘नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है। हां, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है। बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।’ ‘इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ घूमेगी तो रेप नहीं होगा?’ ‘इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप नहीं होगा।‘ ‘सिगरेट-शराब सब पीती है, समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।‘ ‘पहले जल्दी शादी हो जाती थी, इसलिए रेप नहीं होते थे।‘ ‘लड़के हैं, गलती हो जाती है।’ ‘फेमिनिजम के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है। 10 लोगों के साथ सेक्स करना और बिकीनी पहनना ही महिला सशक्तीकरण है क्या?’ ‘मेट्रो में अगल कोच मिल तो गया भई! अब कितना सशक्तीकरण चाहिए?’ ‘क्रिस गेल ने तो अकेले सभी बोलर्स का ‘रेप’ कर दिया।’ लंबी लिस्ट हो गई ना? इरिटेट हो रहे हैं आप। सच कहूं तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूं यह सुनकर कि मैं ‘देश की बेटी’, ‘घर की इज्जत’, ‘मां’ और ‘देवी’ हूं। नहीं हूं मैं ये सब। मैं इंसान हूं आपकी तरह। मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं इसलिए मैं औरत हूं। बस, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होते हम पर? ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जाते हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिजायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जाते हैं और रेप कर देते हैं। अच्छा, मेरी टांगें देखकर आप बेकाबू हो गए। आप उस बच्ची के नन्हे-नन्हे पैर देखकर भी बेकाबू हो गए। उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरों ने भी आपको बेकाबू कर दिया। अब इसमें भला आपकी क्या गलती! कोई ऐसे अंग-प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाजमी है। यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी में घूमते देख महिलाएं बेकाबू नहीं होतीं। लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा को किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप? मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से? छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें। यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें? चलिए अब कपड़ों की बात करते हैं। आप एक स्टैंडर्ड ‘ऐंटी रेप ड्रेस’ तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे। बुरा लग रहा होगा आपको? मैं पुरुषों को जनरलाइज कर रही हूं। हर पुरुष ऐसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने। जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढांचे में ढालने की कोशिश क्यों करते हैं? आपके हिसाब से दो तरह की लड़कियां होती हैं, एक वे जो रिचार्ज के लिए लड़कों का ‘इस्तेमाल’ करती हैं और एक वे जो ‘स्त्रियोचित’ गुणों से भरपूर होती हैं यानी सीता, द्रौपदी टाइप। बीच का तो कोई शेड ही नहीं है, है ना? च बताइए, आप डरते हैं ना औरतों को इस तरह बेफिक्र होकर जीते देखकर? आप बर्दाश्त नहीं कर पाते ना कि कोई महिला बिस्तर में अपनी शर्तें कैसे रख सकती है? आपका इगो हर्ट होता है जब महिला खुद को आपसे कमतर नहीं समझती। फिर आप उसे सौम्यता और मातृत्व जैसे गुणों का हवाला देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करने लगते हैं। सौम्यता और मातृत्व बेशक श्रेष्ठ गुण में आते हैं। तो आप भी इन्हें अपनाइए ना जनाब, क्यों अकेले महिलाओं पर इसे थोपना चाहते हैं? क्या कहा? मर्द को दर्द नहीं होता? कम ऑन। आप जैसे लोग ही किसी सरल और कोमल स्वभाव वाले … Read more

कुछ हाइकू…….पृथ्वी दिवस पर

(1) धरा दिवस       लगें वृक्ष असंख्य       करें प्रतिज्ञा। (२) माता धरती       करें चिंता इसकी       शिशु समान। (3) कहे समय       रहेगी न धरती       करोगे क्या? (4) हम निर्दयी       न सोचे ये धरती       हो कुछ ऐसा। (5) रक्षक बनें       बची रहे धरती       फैले संदेश। (6) बरसें मेघ       नदियाँ रहैं भरी       पोसें धरा। (7) धरा पुकारे       बचे अस्तित्व मेरा       खोजें उपाय। (8) संकल्प ठने       पॉलिथीन मुक्त हो       अपनी धरा। (9) सम्मान करें       धरा से मिले प्राण       उसे लौटाएँ। (10) धरा दिवस         मनाएँ रोज सब         निखरे धरा। (11) कचरा कम          बने जैविक खाद          उर्वर धरा। (12) ढूँढे तरीके         रिसाइकिल करें         निज वस्तुएँ। (13) मिलें संस्कार         सेवा भाव घर से         हंसेंगी धरा। (14) मांगे प्यार         धूल धूसरित धरा         बुलाए हमें। (15) नर्तन करे         हरी भरी धरती         सँवारे सभी। —————————— कॉपीराइट@डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई

आज गंगा स्नान की नहीं गंगा को स्नान कराने की आवश्यकता है

  गंगा एक शब्द नहीं जीवन है , माँ है , ममता है | गंगा शब्द से ही मन असीम श्रद्धा से भर जाता है | परन्तु क्या सिर्फ श्रद्धा करन ही काफी है या हमारा माँ गंगा के प्रति कुछ कर्तव्य भी है |बरसों पहले एक फ़िल्मी गीत आज  भी प्रासंगिक है ” मानों तो मैं गंगा माँ हूँ , न मानों तो बहता पानी “ | जिस गंगा को हम पूजते आये हैं , क्या उसे माँ मानते हैं या हमने उसे बहता पानी ही मान लिया है | और उसे माँ गंगे से गंदे नाले मेंपरिवार्तित करने में लगे हुए हैं |   गंगा … पतित पावनी गंगा … विष्णु के कमंडल से निकली  , शिव जी की जटाओ में समाते हुए  भागीरथ प्रयास के द्वारा धरती पर उतरी | गगा  शब्द कहते ही हम भारतीयों को ममता का एक गहरा अहसास होता है | और क्यों न हो माँ की तरह हम भारतवासियों को पालती जो रही है गंगा  | मैं उन भाग्यशाली लोगों में हूँ जिनका बचपन गंगा  के तट पर बसे शहरों में बीता | अपने बचपन के बारे में जब भी कुछ सोचती हूँ तो कानपुर में बहती गंगा और बिठूर याद आ जाता है | छोटे बड़े हर आयोजन में बिठूर जाने की पारिवारिक परंपरा रही है | हम उत्साह से जाते | कल -कल बहती धारा के अप्रतिम सौंदर्य को पुन : पुन : देखने की इच्छा तो थी ही , साथ ही बड़ों द्वरा अवचेतन मन पर अंकित किया हुआ किसी अज्ञात पुन्य को पाने का लोभ भी था | जाने कितनी स्मृतियाँ मानस  पटल पर अंकित हैं पर निर्मल पावन गंगा प्रदूषण का दंश भी झेल रही है | इसका अहसास जब हुआ तब उम्र में समझदारी नहीं थी पर मासूम मन इतना तो समझता ही था की  माँ कह कर माँ को अपमानित करना एक निकृष्ट काम है |   ऐसा ही एक समय था जब बड़ी बुआ हम बच्चों को अंजुरी में गंगा जल भर कर आचमन करना सिखा रही थी | बुआ ने जैसे ही अंजुरी में गंगा जल भरा , समीप में स्नान कर रहे व्यक्ति का थूकी हुई पान की पीक  उनके हाथों में आ गयी  | हम सब थोडा पीछे हट गए | थूकने वाले सज्जन उतनी ही सहजता से जय गंगा मैया का उच्चारण भी करते जा रहे थे | माँ भी कहना और थूकना भी , हम बच्चों के लिए ये रिश्तों की एक अजीब ही परिभाषा थी | यह विरोधाभासी परिभाषा बड़े होने तक मानस पटल पर और भी प्रश्न चिन्ह बनाती गयी | हमारे पूर्वजों नें गंगा को मैया कहना शायद इसलिए सिखाया होगा की हम उसके महत्व को समझ सकें | और उसी प्रकार उसकी सुरक्षा का ध्यान दें जैसे अपनी माँ का देते हैं | गंगा के अमृत सामान जल का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके इस लिए पुन्य लाभ से जोड़ा गया | पर हम पुन्य पाने की लालसा में कितने पाप कर गए | फूल , पत्ती , धूप दीप , तो छोड़ो , मल मूत्र , कारखानों के अवशिष्ट पदार्थ , सब कुछ बिना ये सोचे मिलाते गए की माँ के स्वास्थ्य पर ही कोख में पल रहे बच्चों का भविष्य टिका है | इस लापरवाही का ही नतीजा है की आज गंगा इतनी दूषित व प्रदूषित हो चुकी है कि पीना तो दूर, इस पानी से नियमित नहाने पर लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। गंगाजल में ई-कोलाई जैसे कई घातक बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं, जिनका नाश करना असंभव हो गया है। इसी तरह गंगा में हर रोज 19,65,900 किलोग्राम प्रदूषित पदार्थ छोड़े जाते हैं। इनमें से 10,900 किलोग्राम उत्तर प्रदेश से छोड़े जाते हैं। कानपुर शहर के 345 कारखानों और 10 सूती कपड़ा उद्योगों से जल प्रवाह में घातक केमिकल छोड़े जा रहे हैं। 1400 मिलियन लीटर प्रदूषित पानी और 2000 मिलियन लीटर औद्योगिक दूषित जल हर रोज गंगा के प्रवाह में छोड़ा जाता है। कानपुर सहित इलाहाबाद, वाराणसी जैसे शहरों के औद्योगिक कचरे और सीवर की गंदगी गंगा में सीधे डाल देने से इसका पानी पीने, नहाने तथा सिंचाई के लिए इस्तेमाल योग्य नहीं रह गया है। गंगा में घातक रसायन और धातुओं का स्तर तयशुदा सीमा से काफी अधिक पाया गया है। गंगा में हर साल 3000 से अधिक मानव शव और 6000 से अधिक जानवरों के शव बहाए जाते हैं।इसी तरह 35000 से अधिक मूर्तियां हर साल विसर्जित की जाती हैं। धार्मिक महत्व के चलते कुंभ-मेला, आस्था विसर्जन आदि कर्मकांडों के कारण गंगा नदी बड़ी मात्रा में प्रदूषित हो चुकी है। स्तिथि इतनी विस्फोटक है की अगर व्यक्ति नदी किनारे सब्जी उगाए तो लोग प्रदूषित सब्जियां खाकर ज्यादा बीमार होंगे। इन आकड़ों को देने का अभिप्राय डराना नहीं सचेत करना है | यह सच है की गंगा की सफाई के अभियान में कई सरकारी योजनायें बनी हैं | अरबों रुपये खर्च हुए फिर भी स्थिति  वहीँ की वहीँ है | पर्यावरणीय मानकों के मुताबिक नदी जल के बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (B.O.D )का स्तर अधिकतम 3 मि.ली. ग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। सफाई के तमाम दावों के बावजूद वाराणसी के डाउनस्ट्रीम (निचले छोर) पर बीओडी स्तर 16.3 मि.ग्रा. प्रति ली. के बेहद खतरनाक स्तर में पाया गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट दर्शाती है कि गंगा के प्रदूषण स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। शायद सरकारी योजनायें कागजों पर ही बनती हैं | और उन कागजों में धन का बहाव गंगा के बहाव से भी ज्यादा तेज है | धन तो प्रबल वेग से बह जाता है | पर गंगा अपने आँचल में हमारे ही द्वारा डाली गयी गंदगी समेटे वहीँ की वहीँ रह जाती है | अब सवाल ये उठता है की क्या हम इन सरकारी योजनाओं के भरोसे ( जिनका निष्क्रिय स्वरूप हमने अपनी आँखों से देखा है ) अपनी माँ को छोड़ दें | या माँ को माँ कहना छोड़ दें ? बहुत हो गया पुन्य का लोभ , पीढ़ियाँ बीत गयी गंगा में स्नान करते – करते | अब जब गंगा को स्वयं स्नान की आवश्यकता है तो हम पीछे क्यों हटे | इस का हल … Read more