ॐ क्या परमात्मा निराकार निर्गुण हैं या साकार सगुण–

ॐ क्या परमात्मा निराकार निर्गुण हैं या साकार सगुण————– परमात्मा सिर्फ यदि ज्योति स्वरूप ही रहते,निर्गुण,निराकार ही होते ,तो इतने सृष्टि में जो रूप दृष्टिगोचर हो रहें हैं वे ना होते,हम सब रूप भी ना होते।क्योंकि हम सब भी तो परमात्मा के अंश ही तो हैं ।ऐसी कल्पना भी व्यर्थ की है।वो ज्योति को धारण करने के लिये कोई ना कोई आवरण,आकार तो बहुत जरूरी ही है।इसीलिये अपनी शक्ति अपने ऐश्वर्य के साथ परमात्मा सगुण रूप भी हैं और निर्गुण रूप भी हैं। ऐसे समझिये जब आपके अन्दर कोई विचार चल रहा है तो वह निराकार है,अप्रत्यक्ष है,और जब आप उस विचार के अनुसार कार्य करेंगें,तो कोई आकार,कोई आवरण ,कोई सहारा तो चाहियेगा ही।फिर उसका आकार के अनुसार नाम भी।तो ये ही रूप तो सगुण-साकार रूप हैं,जो समय-समय पर अपनी विविध-विविध शक्तियों के साथ आते रहें हैं धरा-धाम पर परमात्मा।                                            चित्र गूगल से साभार  पाॅवरहाउस की बिजली अथवा ऊर्जा का उपयोग तभी सम्भव होता है,जब तारों के द्वारा जगह-जगह आकार बनाकर खम्भों में डाली जाती है और फिर जगह-जगह वितरित की जाती है,।तरह-तरह के उपकरण बनाकर फिर संचारित की जाती है और घर-घर में भिन्न-भिन्न तरह के उपकरण जैसे—पंखा ,वल्व,फ्रिज,हीटर आदि अनेकों प्रकार के बिजली के यन्त्र हम सब प्रयोग में लाते हैं दिन-प्रतिदिन।अतः दोनो ही रूपों को मानना है और दोंनो ही रूप एक-दूसरे के पूरक हैं।पर जो प्रत्यक्ष में है,हम जिसको देख रहें हैं उससे तरह-तरह से व्यवहार भी कर सकते हैं,और उपयोग भी।इसलिये हमें तो सगुण रूप ही अति प्यारा हैं। सुमित्रा गुप्ता atoot bandhan हमारे फेस बुक पेज पर भी पधारे 

अब मॉफ भी कर दो

स्वीकारती हूँ  सींच रही थी मैं  अंदर ही अंदर  एक वट वृक्ष  क्रोध का  कि चुभने लगे थे कांटे  रक्तरंजित  थे पाँव   कि हो गया था असंभव चलना  नहीं ! अब और नहीं  अब बस …………. आज से, अभी से   मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मुझे आहत किया  मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मेरा पथ रोक लिया  पर उससे पहले मैं  क्षमा करती हूँ  अपने आप को  तमाम अपराध बोधों से  कि ऐसा वैसा किया होता  तो कुछ और होता जीवन  या ………  ये ,वो राह पकड़ी होती  तो कुछ और दिखाता दर्पण  हां ! अब मैं  सहज ,सरल हूँ  उतर गया है टनो बोझ क्रोध का  मिट  गयी हैं कालिख  मन दर्पण की  अब  दिख रहा है भविष्य पथ  उजला सा दूर तक   नए हौसलों के साथ  अब बढ़ाउंगी कदम ……….                                              क्या आपने कभी सोचा है की हँसते -बोलते ,खाते -पीते भी हमें महसूस होता है टनो बोझ अपने सर पर। एक विचित्र सी पीड़ा जूझते  रहते हैं हम… हर वक्त हर जगह। एक अजीब सी बैचैनी। ………… किसी अपने के दुर्व्यवहार की ,या कभी किसी अपने गलत निर्णय की हमें सदा घेरे रहती है। प्रश्न उठता है आखिर क्या है इससे निकलने का उपाय ? ऐ  विधाता ऐ खुदा हमें मॉफ कर,हमें मॉफ कर   हमें क्या पता कहाँ जा रहे क्या है रास्ता हमें मॉफ कर ,हमें मॉफ कर …………                                         आज भी किसी फिल्म का यह गीत मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर खीच लेता है। हम हर रोज ईश्वर से हाथ जोड़ कर मॉफी मांगते हैं और उम्मीद करते हैं कि उन्होंने हमें मॉफ कर दिया है। इसके बाद हम हल्का महसूस करते हैं।                                         परन्तु यह बात केवल ईश्वर से हमें क्षमा मिल जाने तक सीमित नहीं है बहुत जरूरी है कि हम अपने को मॉफ करना सीखें। मेरे आपके समाज के और देश के आपसी रिश्तों को तरोताज़ा रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अतीत की गलतियों को भूल कर ,उन गलतियों को मॉफ कर आगे बढे। अतीत चाहे रिश्तों की कड़वाहट से भरा हो चाहे अपने प्रति नाराज़गी भरी हो। कोई ऐसा कदम जो नहीं उठाया या कोई ऐसा कदम जो उठा लिया उन सब को सोच -सोच कर हम अपना वर्तमान खराब करते रहते हैं। सीखे मॉफ करना :-                            कड़वाहट भूलने के लिए सबसे जरूरी है मॉफ करना। कभी -कभी हम किसी बात को पकडे हुए न सिर्फ रिश्तों का मजा खो देते हैं बल्कि अंदर ही अंदर स्वयं भी किसी आग में जलते रहते हैं।                                                      मेरी एक परिचित हैं उनके यहाँ पिता -पुत्र में झगड़ा हो गया ,गुस्से में बेटा अपनी पत्नी को लेकर घर छोड़ कर चला गया। पिता दिल के मरीज थे ,बर्दाश्त नहीं कर सके उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी। एक अकेली मध्यमवर्गीय स्त्री पर अपनी ५ अनब्याही कन्याओं के विवाह की जिम्मेदारी आ गयी। उन्होंने बहुत हिम्मत के साथ एक -एक करके ४ लड़कियों का विवाह किया। उनका बेटा बार -बार मॉफी मांगने आता माँ का दिल पसीजता पर एक पत्नी अपने बेटे को ही अपने पति का हत्यारा समझती रही ,और अपने ही बेटे के प्रति भयंकर कड़वाहट से भरी रही। इस तीस ,इस पीड़ा से वो मुक्त नहीं हो पा रही थी। अंततः उन्होंने अपने बेटे को मॉफ करने का फैसला किया। बेटे ने अपनी बहन की शादी करायी। और अब श्रीमती उपाध्याय (परिवर्तित नाम )अपने बेटे -बहु , पोते -पोतियों के साथ वृद्धावस्था का आनंद उठा रही हैं। पूछने पर कहती हैं “काश मैंने अपने बेटे को पहले ही मॉफ कर दिया होता तो आज इतनी बीमारियों से न घिरी होती।              क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक ;-                               मनोवैज्ञानिक सुधा अग्रवाल कहती हैं कि अगर कोई मनुष्य अपने अंदर क्रोध ,नफरत की भावना ज्यादा लम्बे समय तक पनपने देता है तो उसे तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती हैं जैसे हाई ब्लड प्रेशर ,हाइपर टेंशन ,डिप्रेशन आदि। अपने गुस्से पर काबू रखने की कोशिश में व्यक्ति ईष्यालु ,झगडालू और क्रोधी हो जाता है। ऐसी सोच वाला व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा आगे नहीं जा सकता है। मनोवैज्ञानिक डॉ अतुल नागर कहते हैं ,अगर हम हर छोटी -छोटी बात पर लोगों से किनारा करते रहे तो कुछ समय बाद हम अपने में सिमट जायेंगे और हमारे सरे रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। पर्सनाल्टी एवं साइकोलॉजिकल रिव्यू के अनुसार मॉफ करने की आदत हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है रिश्ते बहुत कीमती हैं :-                                                  हम छोटा सा जीवन ले कर आये हैं। हमें अपने रिश्तों की कद्र  करनी चाहिए।  रिश्तों में आपसी प्रेम और ताल-मेल न सिर्फ हमें भावनात्मक मजबूती प्रदान करता है बल्कि हमारे विकास के मार्ग को भी प्रशस्त करता है। मनुष्य एक सामजिक प्राणी हैं और एक सुखद जीवन जीने के लिए उसे रिश्तों की आवश्यकता है। जरा -जरा सी बात पर रिश्ते तोड़ने से हम अलग -थलग पड़  जाएंगे। रिश्तों को बनाने में बहुत म्हणत पड़ती है उन्हें तोडा नहीं जा सकता ,वैसे भी जितने लोग हमारे साथ जुड़े होते हैं हमारा मनोबल उतना ही ऊंचा होता है।                       “जिंदगी के कैनवास पर जितने रंग होंगे ,तस्वीर उतनी ही सुन्दर बनेगी “                                                 इसका मतलब यह नहीं कि हम हर किसी के बुरे व्यवहार … Read more